Book Title: Aagam Manjusha 05 Angsuttam Mool 05 Bhagavati
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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भोगीवि ?, गोयमा ! चक्खिदियं पञ्च कामी धार्णिदियजिब्भिदियफासिंदियाई पडुच्च भोगी से तेणद्वेणं जाव भोगीवि, अवसेसा जहा जीवा जाव वेमाणिया, एएसिं णं भंते! जीवाणं कामभोगीणं नोकामी नोभोगीणं भोगीण य कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ?, गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा कामभोगी नोकामीनोभोगी अनंतगुणा भोगी अनंतगुणा । २८९ । छउमत्ये णं भंते! मणूसे जे भविए अनयरेसु देवलोएस देवत्ताए उबवजित्तए से नूणं भंते! से खीणभोगी नो पभू उद्वाणेणं कम्मेणं त्रलेणं वीरिएणं पुरिसकारपरकमेणं बिउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरत्तिए ?, से नूणं भंते! एयमहं एवं वयह ?, गोयमा! णो इणट्टे समट्टे, पभू णं से उट्ठाणेणवि कम्मेणवि चलेणवि वीरिएणवि पुरुषक्कारपरक्कमेणवि अक्षयराई विपुलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए, तम्हा भोगी भोगे परिच्चयमाणे महानिज्जरे महापज्जबसाणे भवइ, आहोहिए णं भंते! मणुस्से जे भविए अन्नयरेसु देवटोएस एवं चेव जहा छउमत्थे जात्र महापजवसाणे भवति, परमाहोहिए णं भंते! मणुस्से जे भविए तेणेव भवग्गणेणं सिज्झित्तए जाव अंत करेत्तए से नूणं भंते! से खीणभोगी सेसं जहा छउमत्यस्स, केवली णं भंते! मणुस्से जे भविए तेणेव भवग्गहणेणं एवं जहा परमाहोहिए जाव महापज्जवमाणे भवइ । २९० । जे इमे भंते! असक्षिणो पाणा, तं० पुढवीकाइया जाव वणस्सइकाइया छट्टा य एगविया तसा, एए णं अंधा मूढा तमंपविट्टा तमपडलमोहजालपडिच्छण्णा अकामनिकरणं वेदणं वेदंतीति वत्तव्वं सिया ?, हंता गोयमा ! जे इमे असक्षिणो पाणा जाव पुढवीकाइया जाव वणस्सइकाइया छट्टा य जाव वेदणं वेतीति वत्तव्वं सिया, अस्थि णं भंते! पभूवि अकामनिकरणं वेदणं वेदंति ?, हंता गोयमा अस्थि कहन्नं भंते! भूवि अकामनिकरणं वेदणं वेदेति ?, गोयमा ! जे णं णो पभू विणा दीवेणं अंधकारंसि रूबाई पासित्तए जे णं नो पभू पुरओ रुवाई अणिज्झाइत्ताणं पासित्तए जेणं नो पभू माओ रूवाई अणवयक्खित्ताणं पासित्तए जे णं नो पमू पासओ रुवाई अणालोइत्ताणं पासित्तए जे णं नो पभू उड्ढं रूवाई अणालोएत्ताणं पासित्तए जे णं नो पभू आहे रूवाई अणालोयएत्ताणं पासित्तए एस णं गोयमा ! पभूवि अकामनिकरणं वेदणं वेदेति, अस्थि णं भंते! पभूवि पकामनिकरणं वेदणं वेदेति ?, हंता अस्थि, कदनं भंते! पभूवि पकामनिकरणं वेदणं वेदेति ?, गोयमा ! जे णं नो पभू समुहस्स पारं गमित्तए जेणं नो पभू समुहस्स पारगयाई रुवाई पासित्तए जेणं नो पभू देवलोगं गमित्तए जेणं नो पभू देवलोगगयाई रूबाई पात्तिए एस णं गोयमा ! पभूवि पकामनिकरणं वेदणं वेदेति । सेवं भंते! सेवं भंते!त्ति । २९१ ॥ श० ७ उ० ७ ॥ छउमत्थे णं भंते! मणूसे तीयमणंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं एवं जहा पढमसए चउत्थे उद्देसए तहा भाणियव्वं जाव अलमत्यु । २९२ । से णूणं भंते ! दत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चैव जीवे ?, हंता गोयमा हत्थिस्स य कुंथुस्स य०, एवं जहा रायप्पसेणइजे जात्र खुड्डियं वा महालियं वा से तेणद्वेणं गोयमा ! जाव समे चैव जीवे। २९३ । नेरइयाणं भंते! पावे कम्मे जे य कडे जे य कज्जइ जे य कजिस्सइ सब्वे से दुक्खे जे निजिन्ने से सुहे ?, हंता गोयमा नेरइयाणं पावे कम्मे जाव सुहे, एवं जाव वैमाणियाणं । २९४ । कति णं भंते! सन्नाओ पं०, गोयमा ! दस सन्नाओ पं० तं०आहारसन्ना भयसन्ना मेहुणसन्ना परिग्गहसन्ना कोहसन्ना माणसन्ना मायासन्ना लोभसन्ना लोगसन्ना ओहसन्ना, एवं जाव वेमाणियाणं, नेरइया दसविहं वेयणं पचणुभवमाणा विहरंति, तं०- सीयं उसिणं सुहं पिवास कंडुं परज्झं जरं दाहं भयं सोगं । २९५ । से नूणं भंते! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समा चेव अपञ्चक्खाणकिरिया कज्जति ?, हंता गोयमा हत्थिस्स य कुंथुस्स य जाव कज्जति, से केणट्टेणं भंते! एवं वृच्चइ जाव कज्जइ ?, गोयमा ! अविरतिं पडुच, से तेणट्टेणं जाव कजइ । २९६ । आहाकम्मण्णं भंते! भुंजमाणे किं बंधइ किं पकड़ किं चिणाइ किं उवचिणाइ १. एवं जहा पढमे सए नवमे उद्देसए तहा भाणियव्वं जाव सासए पंडिए पंडियत्तं असासयं । सेवं भंते! सेवं भंते त्ति । २९७ ॥ श० ७ उ० ८ ॥ असंबुडे णं भंते! अणगारे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पम् एगवन्नं एगरुवं विउब्वित्तए ?, णो तिणट्टे समट्टे, असंवुडे णं भंते! अणगारे बाहिरए पोम्गले परियाइत्ता पभू एगवन्नं एगरूवं जाव हंता पभू से भंते! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता बिउब्व तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विव्वति अन्नत्थगए पोम्गले परियाइत्ता विकुव्वइ ?, गोयमा ! इहगए पोम्गले परियाइत्ता विकुब्बइ नो तत्थगए पोम्गले परियाइत्ता विकुब्बइ नो अन्नत्थगए गोग्गले जाव विकुब्वति, एवं एगवनं अणेगरूवं चउभंगो जहा उट्टसए नवमे उद्देसए वहा इहावि भाणियब्वं नवरं अणगारे इहगयं इहगए चेव पोग्गले परियाइत्ता विकुव्वाइ, सेसं तं चैव जाव लुक्खपोग्गलं निद्वपोम्गलत्ताए परिणामेत्तए ?, हंता पभू से भंते! किं इहगए पोगले परियाइत्ता जाव नो अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुब्वइ । २९८ । णायमेयं अरहया सुयमेयं अरहया विज्ञायमेवं अरहया महासिलाकंटए संगामे२, महासिन्प्रकंटए णं भंते! संगामे वट्टमाणे के जइत्था के पराजइत्था ?, गोयमा ! वज्जी विदेहपुत्ते जइत्था, नव मलई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो पराजइत्या, तए णं से कोणिए राया महासिलाकंटकं संगामं उबट्ठियं जाणित्ता कोटुंबियपुरिसे सद्दावेइ त्ता एवं बयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उदाई इत्थिरायं पडिकप्पेह हयगयरहजोहकलियं चाउरंगिणिं सेण्णं २१९ श्रीभगवत्यं सत" मुनि दीपरत्नसागर
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