Book Title: Aagam Manjusha 05 Angsuttam Mool 05 Bhagavati
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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दुक्खी नेरइए दुक्खैणं फुडे नो अदुक्खी नेरतिए दुक्खेणं फुडे, एवं दंडओ जाव वैमाणियाणं, एवं पंच दंडगा नेयव्वा-दुक्खी दुक्खेणं फुडे दुक्खी दुक्ख परियायइ दुक्खी दुक्खं उदीरेइ दुक्खी दुक्खं वेदेति दुक्खी दुक्खं निजरेति । २६५ अणगारस्स णं भंते! अणाउत्तं गच्छमाणस्स वा चिमाणस्स वा निसीयमाणस्स वा तुयट्टमाणस्स वा अणाउत्तं वत्थं पडिग्गहं कंचलं पायपुंणं गेण्हमाणस्स वा निक्खियमाणस्स वा तस्स णं भंते! किं इंरियावहिया किरिया कजइ० १, गो० नो ईरियावहिया किरिया कज्जति संपराइया किरिया कज्जति से केणट्टेणं० १, गोयमा ! जस्स णं कोहमाणमायालोमा बोल्छिन्ना भवति तस्स णं ईरियावहिया किरिया कज्जइ नो संपराइया किरिया कज्जइ, जस्म णं कोमाणमायालोमा अवोच्छिन्ना भवंति तस्स णं संपराइया किरिया कजइ नो ईरियावहिया०. अहासुत्तं रीयमाणस्स ईरियावहिया किरिया कजइ उस्स्रुत्तं रीयमाणस्स संपराइया किरिया कजइ, सेणं उत्तमेव रियति से तेणट्टेणं । २६६ अह भंते! सइंगालस्स सधूमस्स संजोयणादोसदुट्टस्स पाणभोयणस्स के अट्टे पं० १. गोयमा! जेणं निम्गंथे वा निग्गंधी वा फासएसणिज्जं असणपाणः पडिग्गहित्ता मुछिए गिद्धे गढिए अज्झोवबन्ने आहारं आहारेति एस णं गोयमा ! सइंगाले पाणभोयणे, जे णं निग्गंथे वा निग्गंधी या फासुएसणिलं असणपाण: पडिग्महित्ता मया २ अप्पत्तियकोह किन्यामं करेमाणे आहारमाहारेइ एस णं गोयमा ! सधूमे पाणभोयणे, जेणं निग्गंथे वा जाव पडिग्महेत्ता गुणुप्पायणहेडं अन्नदव्येणं सद्धिं संजोएत्ता आहारमाहारेइ एस णं गोयमा संजोयणादोसदुट्टे पाणभोयणे. एस णं गोयमा! सइंगालस्स सधूमस्स संजोयणादोसदुस्स पाणभोयणस्स अट्टे पं०. अह भंते! वीतिंगालस्स वीयधूमस्स संजोयणादो पमुकस्स पाणभोयणस्स के अट्टे पं० १. गोयमा ! जेणं णिग्गंथो वा जाब पडिग्गहेत्ता अमुच्छिए जाव आहारेति एस णं गोयमा ! वीतिंगाले पाणभोयणे, जेणं निग्गंधे वा निग्गंधी वा जाव पडिग्महित्ता णो महया अप्पत्तियं जाव आहारेइ एस णं गोयमा ! वीयधूमे पाणभोयणे. जे णं निग्गंथे जाव पडिग्गहेत्ता जहा लद्धं तद्दा आहारमाहारेड एस णं गोयमा ! संजोयणादोसत्रिप्यमुक्के पाणभोयणे. एस णं गोयमा ! बीतिंगालस्स वीयधूमस्स संजोयणादोसविप्पमुकस्स पाणभोयणस्स अट्टे पं० १२६७ अह भंते! खेनानिकंतस्स काळानिकंतस्स मग्गातिकंतस्स पमाणानिकंतस्स पाणभोयणस्स के अट्ठे पं० १, गो० जे णं निम्गंथे वा निग्गंधी वा फासुएसणिजं णं असणं अणुग्गए सूरिए पडिग्गहित्ता उगए सूरिए आहारमाहारेति एस णं गोयमा वित्तातिकंते पाणभोयणे. जे णं निग्गंथो वा जाच साइमं पढमाए पोरिसीए पडिग्गहित्ता पच्छिमं पोरिसिं उवायणावेना आहार आहारेइ एस णं गोयमा कालातिकंते पाणभोयणे. जे णं निम्गंथो वा जाव साइमं पडिग्गहित्ता परं अद्धजोयणमेराए वीइकमावद्दत्ता आहारमाहारेद्द एस णं गोयमा ! मग्गातिकते पाणभोयणे, जेणं निग्गंथो वा निग्गंधी वा फासुएसणिज्जं जाव साइमं पडिग्गहिता परं बत्तीसाए कुकुडिअंडगपमाणमेत्ताणं कवलाणं आहारमाहारेद्द एस णं गोयमा ! पमाणाइकते पाणभोयणे, अनुकुकुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कचले आहारमाहारेमाणे अप्पाहारे दुवाल कुकुटि अंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे अवइदोमोयरिया सोलसकुकुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारमाहारेमाणे दुभागप्पत्ते चउव्वीसं कुकुड अंडगप्पमाणे जाव आहारमाहारेमाणे ओमोदरिए बत्तीसं कुक्कुडिअंडगमेत्ते कबैले आहारमाहारेमाणे पमाणाने. एत्तो एक्केणवि गासेणं ऊणगं आहारमाहारेमाणे समणे निग्गंथे तो पकामरसभोई इति वत्तच्वं सिया, एस णं गोयमा खेत्तातिकंतस्स कालातिक्कंतस्स मग्गातिकंतम्स पमाणातितस्स पाणभोयणस्स अड्डे पं० | २६८ । अह भंते! सत्थातीयस्स सत्यपरिणामियस्स एसियस्स वेसियस्स समुदाणियस्स पाणभोयणस्स के अट्टे पं० १. गोयमा ! जे णं निमथो वा निग्गंधी वा निक्खित्तसत्थमुसले ववगयमालयवन्नगविलेवणे ववगयचुयचइयचत्तदेहं जीवविप्पजढं अकयमकारियमसंकप्पियमणाहूयमकीयकडमणुदिहं नवकोडीपरिसुद्धं दसदोसविष्यमुकं उग्गमुपायणेसणासुपरिसुद्धं वीतिंगालं वीतधूमं संजोयणादोसविप्यमुक्कं असुरसुरं अचचचवं अदुयमविलंबियं अपरिसाडी अक्खोवंजणवणाणुलेवणभूयं संयमजायामायावत्तियं संजमभारवहणट्टयाए बिलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणेणं आहारमाहारेति एस णं गोयमा सत्यातीयम्स सत्यपरिणामियस्स जाव पाणभोयणस्स अट्टे पं०, सेवं भंते! सेवं भंते त्ति । २६९ ॥ ० ७०१ ॥ से नूणं भंते! सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्वसत्तेहिं पञ्चक्खायमिति वदमाणस्स सुपचक्खायं भवति दुपञ्चरस्वायं भवति ?, गोयमा ! सव्वपाणेहिं जात्र सव्वसत्तेहिं पञ्चवायमिति वदमाणस्स सिय सुपचक्खायं भवति सिय दुप्पच्चक्वायं भवति, से केणट्टेणं भंते! एवं वृच्चइ सव्वपाणेहिं जाब सिय दुपचक्खायं भवति ?, गोयमा जम्म णं सव्वजीवेहिं जाव सव्वमत्तेहि पचवायमिति वदमाणस्स णो एवं अभिसमन्नागयं भवति इमे जीवा इमे अजीवा इमे तसा इमे थावरा तस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वमतेहिं पद्मवायमिति वदमाणस्स नो सुपञ्चखायं भवति दुपचक्वायं भवति एवं खलु से दुपचक्खाई सव्वपाणेहिं जाय सव्वसत्तेहिं पलक्वायमिति वदमाणो नो सब भासं भामइ मोम भासं भासइ. एवं खलु से मुसाबाई सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं तिविहंतिविहेणं असंजयविश्यपढिहयपञ्चक्वायपावकम्मे सकिरिए असंबुडे एगंतदंडे एगंनबाले २१४ श्रीभगवत्यं सतं-9
मुनि दीपरत्नसागर

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