Book Title: Aagam Manjusha 05 Angsuttam Mool 05 Bhagavati
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 41
________________ परभक्यिाउयं च, जंसमयं इहमवियाउयं पडिसंवेदेइ तंसमयं परमवियाउयं परिसंवेदेह जाव से कहमेयं भंते ! एवं ?, गोयमा ! जन्नं ते अन्नउत्थिया० तं चेव जाव परभवियाउर्य च, जे ते एकमाइंसु मिच्छा ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा ! एवमातिक्खामि जाव परूवेमि० अन्नमन्नघडताए चिट्ठति एवामेव एगमेगस्स जीवस्म बहुहिं आजातिसहस्सेहि बहूई आउयसहस्साई आणुपुधि गढियाई जाव चिट्ठति, एगेऽविय णं जीवे एगेर्ण समएणं एर्ग आउयं पडिसंवेदेड, तं०-इहभवियाउयं वा परमावियाउयं वा०।१८२। जीवे णं मंते ! जे अविए नेइएसु उववज्जित्तए से णं भंते! किं साउए संकमइ निराउए संकमइ, गोयमा ! साउए संकमइ नो निराउए संकमइ, से णं भंते! आउए कहिं कडे कहिं समाइण्णे ?, गोयमा! पुरिमे भवे कडे पुरिमे भवे समाइण्णे, एवं जाव वेमाणियाणं दंडओ, से नूर्ण भंते! जे जमविए जोणि उववजित्तए से तमाउयं पकरेइ, ०-नेरइयाउयं वा जाच देवाउयं दा?, हंता गोयमा! जे जंभविए जोणि उववजित्तए से तमाउयं पकरेइ, सं०. नेरहयाउयं वा तिरि० मणु देवाउयं वा, नेरहयाउयं पकरेमाणे सत्तविहं पकरेइ, तं०-रयणप्पभापुढवीनेरइयाउयं वा जाच अहेसत्तमापढवीनेरडयाउयं वा, तिरिक्खजोणियाउयं पकरेमाणे पंचविहं पकरेइ, सं०-एगिदियतिरिक्खजोणियाउयं वा भेदो सब्बो भाणियव्यो, मणस्साउयं दुविह, देवाउयं चउविहं । सेवं भंते ! सेवं भंते ! । १८३॥ श० ५ उ०३॥ छउमत्थे णं भंते ! मणुस्से आउडिजमाणाई सहाइं सुणेइ, तं०-संखसहाणि वा सिंगस० संखियस० खरमुहिस. पोयास० परिपिरियास० पणवस० पडहस० भंभास होरंभस० मेरिसदाणि वा माइरिस दुंदुहिसक तयाणि वा वितयाणि वा घणाणि या मुसिराणि वा ?,हंता गोयमा ! छउमत्थे णं मणसे आउडिजमाणाई सद्दाई सुणेइ, तं०-संखसहाणि वा जाव झुसिराणि वा, ताई भंते! किं पुट्ठाई सुणेइ अपुट्ठाई सुणेह?, गोयमा ! पुढाई सुणेइ नो अपुट्टाई सुणेइ, जाव नियमा छदिसिं सुणेर, छउमत्ये णं मणुस्से कि आरगयाई सहाई सुणेइ पारगयाइं सहाई सुणेइ ?, गोयमा! आरगयाई सद्दाई सुणेइ नो पारगयाई सहाई सुणे, जहाणं मंते ! छउमत्ये मणुस्से आरगयाई सहाई सुणेइ नो पारगयाई सहाई सुणेइ तहा णं भंते ! केवली मणुस्से कि आरगयाई सहाई सुणेइ पारगयाई सदाहं सुणेइ ?, गोयमा ! केवली णं आरगयं वा पारगर्य वा सव्वदूरमूलमणतियं सदं जाणेइ पासेइ, से केणद्वेणं तं चेव केवली णं आरगयं वा पारगयं वा जाव पासइ, मोयमा! केवली णं पुरच्छिमेणं मियंपि जाणइ० अमियंपि जा एवं दाहिणेणं पचत्यिमेणं उत्तरेणं उड्ढे अहे मियंपि जाणइ अमियंपि जा० सव्वं जाणइ केवली सव्वं पासइ केवली सव्वओ जाणइ पासइ० सव्वकालं जा० पा० सबभावे जाणइ पासह केवली, अणते नाणे केवलिस्स अणंते दंसणे केवलिस्स निम्बुडे नाणे केवलिस्स निबुढे दसणे केवलिस से तेणडेणं जाव पासइ।१८४॥ छउमत्ये णं मंते! मणुस्से हसेज वा उस्सुयाएज वा, हंता हसेज वा उस्सुयाएजवा, जहाणं भंते ! छउमत्थे मणुसे इसेज वा उस्सु तहाणं केवलीवि हसेज वा उस्सुयाएज वा?, गोयमा ! नो इणढे समढे, से केणद्वेणं भंते! जाव नो णं तहा केवली हसेज वा उस्सुयाएज वा?, गोयमा! जण्णं जीचा चरित्तमोहणिजस्स कम्यस्स उदएणं हसति वा उस्सुयायति वा से णं केवलिस नस्थि, से तेणद्वेणं जाव नो ण तहा केवली हसेज वा उस्सुयाएज वा, जीवे णं भंते ! इसमाणे वा उस्सुयमाणे या कइ कम्मपयडीओ बंधइ, गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहरंधए वा, एवं जाय वेमाणिएपोहत्तिएहिं जीवेगिंदियवजो तियभंगो, छउमत्थे णं भंते ! मणूसे निदाएज्ज वा पयलाएज वा?, इंता निहाएज या पयलाएज वा, जहा हसेज वा तहा नवरं दरिसणावरणिजस्स कम्मस्स उदएणं निहायति वा पयलायति वा, से णं केवलियस्स नत्यि तं चेव, जीवे भंते ! निहायमाणे वा पयलायमाणे वा कति कम्मपडीओ बंधइ ?, गोयमा! सत्तविहबंधए वा अढविहवंधए वा, एवं जाय वेमाणिए, पोहत्तिएसु जीवेगिंदियवजो तियभंगो। १८५। हरी णं भंते ! हरिणेगमेसी सकदूए इत्थीगभं संहरमाणे किं गम्भाओ गम्भं साइरह गम्भाओ जोणि सादर जोणीओ गम्भं साहरइ जोणीओ जोणिं साहरह?, गोयमा! नो गम्भाओ गम्भं साहरइ नो गम्भाओ जोणिं साहब नो जोणीओ जोणि साहरइ परामुसिय२ अव्वाबाहेणं अव्वाचाहं जोणीओ गम्भं साहर, पभू णं मंते! हरिणेगमेसी सकस्स दूए इत्यीगम्भं नहसिरसि वा रोमकूवंसि वा साहरित्तए वा नीहरित्तए वा?, हंता पभू, नो वेवणं तस्स गम्भस्स किंचिवि आचाहं वा विचाहं वा उपाएजा छविच्छेदं पुण करेजा, एमुहुमं च णं साहरिज वा नीहरिज वा । १८६। तेणं कालेणं० समणस्म भगवओ महा. वीरस्स अंतेवासी आइमुत्ते णामं कुमारसमणे पगतिमहए जाब विणीए, तए णं से अहमुत्ते कुमारसमणे अण्णया कयाई महाबुट्टिकायंसि निवयमाणंसि कक्खपडिग्गहरयहरणमायाए बहिया संपढिए विहाराए, तए णं से अइमुत्ते कुमारसमणे वाहयं वहमाणं पासइ ता मट्टियाए पालिं बंधइत्ता णाविया मे.२ नाचिओविच णावमयं पहिग्गहगं उदगंसि कट्ट पब्बाहमाणे २ अभिरमइ, तंच थेरा अदक्सु, जेणेव समणे भगव० तेणेव उवागच्छति त्ता एवं वदासी एवं खलु देवाणुपियाणं अंतेवासी अतिमुत्ते णामं कुमारसमणे से णं भंते ! अतिमुत्ने कुमारसमणे कविहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिहिति जाव अंतं करेहिति ?, अज्जो ! समणे भगवं महावीरे ते बेरे एवं वयासी एवं खलु अज्जो! मम अंतेवासी अहमुत्ते णाम कुमारसमणे १९७ श्रीभगवत्यंगं - ५ मुनि दीपरनसागर

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