Book Title: Yantrapurvak Karmadi Vichar
Author(s): Jain Mahila Mandal
Publisher: Jain Mahila Mandal
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Page #1 --------------------------------------------------------------------------  Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगुठे अमृत वसे, लब्धीतणा भंडार । गुरु गौतमने समरतां, मनवांच्छित् फल दातार ॥ INTEE ) BETEENEFTTTTTEEMENT SARALERTAINTINGH प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामी महाराज धी न्यु लक्ष्मी प्रेस, मांडती, मुबई ३. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीन छुटक पत्रादि उपरथी संशोधन करी तैयार करेल रसवतीरुप यंत्रपूर्वक कर्मादिविचार. ( छ कर्मग्रन्थना रहस्यभूत. ) " कर्मग्रन्थना अभ्यासीओने " माटे आ अत्यंत उपयोगी लघु ग्रन्थ योजवामां आव्यो छे. छपावी प्रसिद्ध करनार जैन महिला मंडळ. श्री शांतिनाथ महाराजनो उपाश्रय. TH पायधुनी - मुंबई. वीर संवत् २४५८ नकल ५०० विक्रम संवत् १९८८ मूल्य - सदुपयोग. PRINTED BY MAVJI D. PATEL AT THE NEW LAXMI PRINTING PRESS MANDVI BOMPAY No. 8. & PUBLISHED BY JAIN MAHILA MANDAL PYDHONIE, BOMBAY, Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. आ अमूल्य ग्रन्थनी उपयोगीता विषे भाविको माटे बहु प्रतिती कराववा आवश्यकता जणाती नथी. ग्रन्थ मांहेनुं वस्तुज स्वयं पोतानी सिद्धता प्रतिपादन करे छे. तो पण थोडं स्पष्टिकरण अनावश्यक नहि गणाय. मुख्यत्वे करीने आंतर विषयनी स्पष्टतार्थे भाषा रुपोनो एक विभाग अने बीजो यंत्रोना रुपमा आंकडाथी दर्शावेल बीजो विभाग एम बे भिन्न देखाता छतां मूळ स्वरुपे एक एवा विस्तारमा ग्रन्थनी रचना करवामां आवी छे, कर्मग्रन्थना अभ्यासीओ माटे आ पुस्तक एक आशिर्वाद समान छे. अने षद्कर्मग्रन्थमां अलभ्य एवं केटलुं एक पूर्व पुरुषोना छुटक पत्रोमांथी उध्धृत करी आमां तेनो समावेश करवामां आव्यो छे. ए आ ग्रन्थनी खास महत्ता छे. आ उपरांत चौद गुणठाणाना बंध हेतु अने भांगा वगेरे पंचसंग्रहमांथी उद्धरी विशेष पूर्णी करी छे. जे खास करीने आवश्यक छे. केटलुएक वस्तु सामान्य बुद्धिना मनुष्यने कर्मग्रन्थद्वारा समजावु मुश्केल पडे तेम हावाथी आ ग्रन्थमां तेनु खास स्पष्टिकरण करी आश्रव, संवर, समुद्घात, बंध हेतु, चार ध्यान, पांच भाव कुळकोटी वगेरे ६२ मार्गणाए बतावेल छे ते तथा १७ प्रकारनी प्रकृतिओनी १५ प्रकारनी प्रकृतिओ ६२ मार्गणाए उतारी छे. ते अने एबुं बीजु घणुं वस्तु कर्मग्रन्थ मांहेथी तारवq सामान्य मनुष्यने माटे मुश्केल गणाय तेथी आमां तेनी खास स्पष्टता करवामां आवी छे. कर्मग्रन्थोनी उपयोगीता तो तेना अभ्यासी श्रावक-श्राविकाओ तथा साधु-साध्वीजिओज समजि शके. परन्तु ए तो निर्विवाद छे के "ज्ञानावरणी" कर्मना क्षयार्थे आ ग्रन्थन पाठन एक प्रबळ अने प्रेरणात्मक साधन छे. आ ग्रन्थनां मननथी तेमनु दुध्यान नष्ट प्राय थइ आत्माने सकाय निर्जरा प्राप्त थाय छे. आ ग्रन्थ अभ्यासीओने "विनामूल्ये" वहेंचवानो प्रबंध करेल छे. तेथी दरेक बन्ध के भगीनी तेनो सदुपयोग करी पोतानु तथा पर श्रेय करवा पूर्ण प्रयाश करशे. अने निस्कारण ग्रन्थ प्राप्ति करी तेनो दुरुपयोग न थाय तेवी सर्वने नभ्र विनंति छे.आवा ग्रन्थोनी प्राप्ति करी तेनो सदुपयोग न करवो ते एक प्रकारनी ज्ञाननी आशा तनाज लेखाय तेथी तेनो भक्तिभावे अभ्यास करी करावी आत्मकल्याण करवू ए उत्तम छे. बाकी रहेली अध्रुवसताक ने ध्रुवसत्ताक प्रकृतिओ ६२ मार्गणाए लखवी रही गयेल ते बुकने अंते आपेल छे. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतमां आ पुस्तक घणु उतावळे प्रगट करवू पडयुं छे. अने तेथी तेमां प्रेसनी के गुफो तपासवामां थयेली भूलो प्रत्ये उदार द्रष्टिए जोवा सौने विनंति साथे प्रार्थना छ के-जे कंइ दोष जेवू जणाय ते तरफ प्रकाशकनु लक्ष खेंचवू के जेथी बीजि आवृतिमां तेनो समावेश करी शकाय. - पूस्तक प्रगट करवामां जेमणे आर्थिक सहाय करी छे. तेओ सर्वनो आ स्थळे अंतःकरण पूर्वक आभार मानवामां आवे छे. तेमनां मुबारक नामा अत्रे आपवां अमारी फरज समजावाथी आ नीचे आप्यां छ. . . ५०) शेठ झवेरचंद्र गुमानचंद्र · पाटण... .. ५०) शेठ अभेचंद्र मूळचंद्र सुरत. ४०) शेठ कस्तुरचंद्र नानचंद्र रुपाल. २५) व्हेन प्रभावती अमदावाद.. २५) शेठ केसरीचंद्र गुलाबचंद्र आत. आ उपरांत रु. ५) तथा बीजि पण परचुरण सहाय अमोने मळी छे तेमनो पण आभार मानी आवां शुभ कार्यमा सहाय करवा बदल तेमनां श्रेय सार्थे प्रार्थीए छीए. अलम् अति विस्तरेणः - लि. . . श्री जैन महिला मंडळ. पायधुनी-मुंबई, Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . प्रत्र २८-२९ . अनुक्रमणिका. ... विषय कर्मग्रन्थ पहेलो. .(कर्मविपाक) १. आठ कर्मना नाम : आठ कर्मना उत्तरभेद १५८ ( प्रकृतिओ) ... ३ प्रकृति आश्रयी टुक वर्णन । कर्मग्रन्थ बीजो. (कर्मस्तव) ४ गुणस्थाने बंधविचार ५ गुणस्थाने उदयविचार ६ गुणस्थाने उदीरणाविचार ७ गुणस्थाने सत्ताविनार कर्मग्रन्थ त्रीजो. (बंध स्वामित्व) । ८-१४ गुणस्थानके ७९ मार्गणाए बंध संबंधी प्रकृतिदर्शक यंत्र ... ९-६२ मार्गणाए गुणस्थान तथा उदय ( प्रकृतिओ ) .... चतुर्थ षडशीति कर्मग्रन्थादिगत विचार. १. जीवादि २१ द्वारे जीवस्थान, गुणस्थान, योग, उपयोग, लेश्या, अल्पबहुत्व १-२-३ जीवद्वार, गतिद्वार, इंद्रियद्वार ४-५-६ कायद्वार, योगद्वार, वेदद्वार ७-८-९ कषायद्वार, लेश्याद्वार, सम्यक्त्वद्वार १०-११-१२ ज्ञानद्वार, दर्शनद्वार, चारित्रद्वार १३ थी १८ उपययोगद्वार, आहारकद्वार, भाषकद्वार, परित्तद्वार, पर्याप्तद्वार, सूक्ष्मद्वार १९ थी २१ सन्नीद्वार, भव्यद्वार, चरिमद्वार ११ चोथा कर्मग्रंथना छकाय आश्री संयोगी भांगा १२ गुणस्थानने बंध हेतु अने तेना भांगा पहेले गुणठाणे १० थी १८ बंध हेतुना भांगा ... बीजे गुणठागे १० थी १७ बंध हेतुना भांगा... श्रीजे गुणठाणे ९ थी १६ बंध हेतुना भांगा ... चोथे गुणठाणे ९ यी १६ बंध हेतुना भांगा ... पांचमे गुणठाणे ८ थी १४ बंध हेतुना भांगा ... छठे गुणठाणे ५ थी ७ बंध हेतुना भांगा ... सातभे गुणठाणे ५ धी ७, आठभे गुणठाणे ५ थी ७, बंध हेतुना भांगा नवमे गुगठाणे २ ने ३, दशमे गुणागे १ ने २, अग्यारभे बारमे १ बंध हेतुना भांगा ते मे गुणठाणे १ बंध हेतुना भांगा १३ अठाणुं बोलनो मोटो अल्पबहुत्व ( जीवस्थान, गुणस्थान, योग, उपयोग, लेश्या सहित) ... १४ भाव प्रकरण (औपशमिकादिक भागोना भांगा विगेरे ) १५ चौंद गुणस्थाने मूळभाव ने उत्तरभाव पांचमा शतक कर्मग्रन्थादिगत विचार. १६ पुण्यप्रकृति ४२ . १७ पापप्रकृति ८२ . .. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .... ... ६२-६३ ६३-६४ ... , ८ ० ० ० ७५-७६ १८ आश्रवना ४२ भेद १९ संवरना ५७ भेद २. ध्रुवबंधी प्रकृति ४७, अध्रुवसबंधो ७३ २१ ध्रुवोदयी प्रकृति २७, अध्रुवोदयी ९५ २२ ध्रुवसत्ताक प्रकृति १३०, अध्रुवसत्ताक २८ ... २३ सर्वघाती २०, देशघाती २५ अघाती ७५ (बंध प्रकृतिओ। २४ परावर्तमान ९१, अपरावर्त्तमान २९ (बंध प्रकृति ) २५ क्षेत्रविपाकी ४, भवविपाकी ४, जीववीपाकी ७८, पुद्गलविपाकी ३६ उदयप्रकृतिओ) २६ बंध हेतु ५७ ___गत्यादि ६२ मार्गणाए प्रकृतिओन विवरण २७ सर्वघाती वंध प्रकृति २० नुं विवरण ( ६२ मार्गणाए) . २८ देशघाति बंध प्रकृति २५ नुं विवरण २९ अघाति बंध प्रकृति ७५ नुं विवरण ३० क्षेत्रविपाकी ४ प्रकृतिनो उदय ३१ भवविपाकी ४ आयुष्यनो उदय ३२ जीववीपाकी ७८ प्रकृतिनो उदग ३३ पुद्गल विपाकी ३६ प्रकृतिनो उदय ३४ आश्वना ४२ भेद ३५ संवग्तत्त्वना ५७ भेद ३६ चार ध्यान ना १६ भेद ३७ समुदघात ७ ३८ बंध हेतु ५७ ३९ पांच भावना ५३ भेद ४. पाप प्रकृति ८२ नो बंध ४१ पुण्य प्रकृति ४२ नो बंध ४२ ध्रुवबंधी ४७ प्रकृति ४३ अध्रवबंधी ७३ प्रकृति ४४ प्रवोदयी २७ प्रकृति ४५ अधुवोदयी ९५ प्रकृति ४६ अपरावर्त्तमान २९ प्रकृति ४७ परावर्त्तमान ९१ प्रकृति ।। ४८ वामठ मार्गणाए कुळकोटी ... ४९ योगस्थानना स्वामी आश्री अल्पवहुत्व ५० चौद प्रकारना जीवना स्थितिस्थानन अल्पबहुत्व ५१ एकेंद्रियादिक जीवोमां स्थितिबंध आश्री अल्पबहुत्व ५२ पुदगल वर्गणानो क्रम ५३ आठ कर्मनी उत्तर प्रकृतिनो उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थितिबंध ५४ आठे कर्मनो उत्कृष्ट अबाधाकाळ ७७-७८ 2vvvvv १०४ १०८ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ १०८ १०९ १११ ११२ ११३ . १४५ ५५ आठे कर्मनी उत्तर प्रकृतिओमो उकृस्ट अबाधाकाळ ५६ जीवना ५६३ भेद पैकी जे जे क्षेत्रादिमां जेटला भेद लाभे तेनुं संख्यासूचक यंत्र ५७ ६२ मार्गणा पैकी चार गति आश्री जीवना ५६३ भेदोनुं विवरण ( यंत्र) ५८ ६२ मार्गणाए जीवना ५६३ भेदोनुं विवरण (यंत्र ) ५९ ८१ वोलनी गतागतिनुं यंत्र ६. २५ स्थाने २३ संपदानी प्राप्ति आश्री यंत्र ६१ सिद्वार ( समयसिद्धि विगेरेनी संख्या) ... ६२ छठा कर्मग्रंथर्नु संक्षिप्त विवरण मूळ प्रकृति आश्री बंध उदय सत्तास्थान ने संवेध जीवरथाने मूळ प्रकृतिना बंध उदय सत्तस्थान ने संवेध" उत्तर प्रकृति आश्री बंध, उक्य सत्तास्थान ने तेनो संवेध ज्ञानावरणीय, अंतराय, दर्शनावरणीय कर्म वेदनीय कर्म आयुष्य कर्म गोत्रम - मोहनी कर्म नामकर्म चौद जीवस्थान आश्री, उत्तर प्रकृतिना वंध, उदय, समा स्थान ने तेनो मवेध ज्ञानावग्णीय ने अंतराय कर्म दर्शनावरणीय, वेदनीय ने गोत्रकर्म । आथुकर्म मोहनीय कर्म नाम कर्म चौद गुणस्थान आश्री उत्तर प्रकृतिना बंध, उदय. सत्ता स्थान अने तेनो संवेध ज्ञानावरणीय, अंतगय, दर्शनावरणीय कर्म वेदनीय ने गोत्र कर्म आयकर्म ... मोहनीय कर्म - नामकर्म ... . गति मार्गणाए बंध, उदय, सत्तास्थान ने तेनो संवैध । इंद्रिय मार्गणाए बंध, उदय, सत्तास्थान ने तेनो संवेध ज्यां उदय त्यां उदीरणा-तेमा ४१ प्रकृति संबंधी अपवाद चौंद गुणस्थाने बंध प्रकृतिनी संख्या .... . उपशम श्रेणिर्नु स्वरूप सिद्धिना सुखर्नु संक्षिप्त वर्णन ६३ बासठ भांगणाए मोहनीय कर्मना बंध, उदय, सत्तास्थान, तेना भंग, पदो अन पदबूंद संबंधी यंत्र ६४ वासठ मार्गणागत गुणस्थानोमा मोहनीय कर्मना बंध, उदय, सत्तास्थान तेना भंग, पदो ने पदवृंद संबंधी यंत्र १६८-६९ १६९ १८० १८१ - २२८ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] ६५ बासठ मार्गणाए नामकर्मना बंध, उदय, सत्तास्थान अने सेना भंग संबंधी यंत्र... ....... २३८ ६६ चौद गुणत्त्थाने जीवस्थानादि संबंधी यंत्र जीवस्थान, योग, उपयोग, लेश्या, मूळ बंधहेतु, मिथ्यात्व, अविरति, कषाय ( १ थी ८); २४१ योग, उत्तर बंधहेतु, अल्पबहुत्व, मूळभाव, उपशम, क्षायिक, क्षयोपशम, मौदयिक,(९ थी १६) २४२ पारिणामिक, उत्तरभाव, सांनिपातिक मूळ, द्विकसंयोगी सातमो भंग, त्रिकसंयोगी नवमो भंग, त्रिकसंयोगी दशमो भंग, चतुःसयोगी चोथो भंग, चतुःसंयोगी पांचमो भंग, पंचसंयोगी एक भंग, सांनिपातिक उत्तरभेद ( १७ थी २७ ).... २४३ जीवायोनी, कुलकोटी, समुदघात, दंडक, ध्यानभेद, चारित्र, परिसह, समकित (२७ थी ३५) २४४ दृष्टि, आश्रव, संवर, निर्जरा, पुण्यबंध, पापबंध, आठ कर्म आश्री, बंध ने उदय (३७ थी ४४) :. उदीरणा, सत्ता, देवताना भेद, नारकीना भेद, मनुष्यना भेद, तिर्यचना भेद, जीवना भेद, ध्रुवबंधी, अधुवबंधी (४४ थी ५३) .... . . २४६ - ध्रुवोदयी, अध्रुवोदयी, ध्रुवसत्ता, अध्रुवसत्ता, परावर्त्तमान, अपरावर्त्तमान, (५४ थी ६०) २४७ • सर्वघाती, देशघाती, दर्शनावरणीना बंध उदय सत्तास्थान: मोहनीयना बंधस्थान ने उदय - स्थान, (६१ थी ६६) ................... . ......। २४८ भाहनीयना सत्तास्थान, नामकर्मना बंधस्थान, उदयस्थान, सत्तस्थान, आत्माना आठ प्रकार (६७ थी ७२) . ... २४९ मोहनी. कर्मनी उदय आश्री चोवीशी, नामकर्मना बंधना भांगा उदयना भांगा, वेदनीयना भंग, गोत्रना भंग, आयुना भंग. नामकर्मसत्ताना भंग, मोहनीना पद, योगसंबंधी उदय भंग, पदवर्ण (७३ थी ८२) , ... .... .......... २.० पयोगना उदयभंग, पदवर्ण, लेश्याना उदयभंग, पदवर्ण, योगनी चोवीशी, योगना पद उपयोगनी चोवीशी, उपयोगना पद, लेश्यानी चोवीशी, लेझ्याना पद (८४ थी ९४).. ६७ प्रथमना दश गुणटाणे योग, चोवीशी, गुणाकार, चोवीशीनो सरवाळो, चोवीशे गुणतां उदयभंग, पद, गुणाकार, कुल पद, चोवीशे गुणतां पदवृंद, उदय, उदय चोवीशी, पद कुल ( १३)... ६८ प्रथमना दश गुणस्थाने उपयोग चोवीशी, गुणाकार, उपयभंग पद, पदभंग, पदवृंद, लेश्या, चोवीशी, गुणाकार, उदयभंग, पद ने लेश्यानो गुणाकार, पदवृंद (१३) ६९ प्रथमना ११ गुणठाणे बंधत्थान, बंधना भांगा, उदयस्थान, उदयभंग चोवीशी, उदयना भांमा, उदयस्थानपद, पदवृंद (७) ७, मोहनी कर्मना बंधस्थान. बंधना भांगा, उदयस्थान, उदय चोवीशी, उदयभंग, उदयस्थानपद, उदयस्थानपदवृंद, मोहनीना सत्तास्थान (८) २५५ ७१ बालट मार्गणाए गति जाति विगैरना यंत्र गति, जाति, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञानाज्ञान, संयम, दर्शन, भव्याभव्य, सम्यक्त्व, २५६-५९ संजी, असंज्ञी, आहारी, अणाहारी, शरीर, पर्याप्ति, प्रण (१ थी १६) ध्यानभेद, संज्ञा, समुदधात, संस्थान, संघयण, दृष्टि, दंडक, जीवायोनी, कुळकोटी, अवगाहना, जीवस्थान गुणस्थान, योग, उपयोग, लेझ्या, अल्पबहुत्व (१७ थी ३३) २६०-६३ मूळ बंधहेतु, उत्तर बंधहेतु, मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, योग, मूळभाव, उत्तरभाव, उपशम, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक, पारिणामिक, सांनिपातिक, द्विकसंयोगो, त्रिक संयोगी, चतु:संयोगी, पंचसंयोगी, सांनिपातिक कुल, (३३ थी ५३) Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [4] पुण्यबंध, पापबंध, ध्रुवबंध अध्रुवबंध, परावर्तमान, अपरावर्तमान, ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र, अंतराय - सर्व जातिना प्रकृतिबंध ( ५४ थी ६९ ) बंधविच्छेद प्रकृति, बंध ओघप्रकृति, मिथ्यात्वादि १४ गुणठाणे बंधसंबंधी प्रकृतिओनी संख्या कुल १६ (६९ थी ८६) पुण्यप्रकृति, पापप्रकृति, ध्रुवोदयी, अध्रुवोदयी, क्षेत्रविपाकी भवविपाकी, जीवविपाकी, पुदगलविपाकी, ज्ञान'वरणी विगेरे आठे कर्मानी उदय प्रकृतिनी संख्या. कुल १६ ( ८७ थी १०४ ) उदयविच्छेद प्रकृति, उदय ओघप्रकृति, मिथ्यात्वादि १४ गुणठाणे उदयसंबंधी प्रकुतिओनी संख्या कुल १६. (१०५ थी १२१ ) उदीरणा ओघपकुति, मिथ्यात्वादि १४ गुणठाणे उदीरणा संबंधी मकुतिओनी संख्या कुल १५ (१२२ थी १३७) मोहनी सर्वघाती, देशघाती, अघाती बंध, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष, अजीब, कर्मना उदयना भंग ने चोवीशी, वासठ मार्गणानी भवस्थिति ( १३८ थी ४९ ) कायस्थिति, अने ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी. वेदनीय, आयु, गोत्र ने अंतराय - ए छ कर्मना भंग (१५० थी १५७ ) धृवसत्ताक,,, अघृवसत्ताक, सत्ताओघमकुति, चौदगुणठाणे सप्तागत प्रकुतिओनी संख्या (१५८ थी १७६) ७२ सत्तागत १४८ पकतिनी समजुती - धृवसत्ताक १२६ ने अघृवसत्ताक २२ प्रकतिओ ६२ मार्गणाए ७३ वासठ मार्गणाए १४ गुणस्थानक आश्री अवृत्तक घूत्रसत्ताक मकतिओतुं विवरण पृष्ठ २६८-२६९ २७०-२७३ २७४-२७६ २७७-२७९ २००-२०२ २८३-२८५ २८६-२८८ ... २८९-२९४ २९५ २९७-३०१ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मविपाकमुक्ताय नमः यंत्रपूर्वक कर्मादिविचार. कर्मग्रंय पहेलो (कर्मविपाक) " माया _बाठ कर्मनां नाम. १ ज्ञानावरणीय २ दर्शनावरणीय ३ वेदनीय ४ मोहनीय ५ आयुष्य ६ नामकर्म ७ गोत्रकर्म ८ अंतरायकर्म. आठ कर्मना उत्तर नेद १५७ (१) ज्ञानावरणीयना ५ मेद ३ मिथ्यात्व मोहनीय १ मतिज्ञानावरणीय ४ अनंतानुबंधी क्रोध २ श्रुतज्ञानावरणीय " मान ३.अवधिज्ञानावरणीय ४ मनःपर्यवज्ञानावरणीय लोम ५ केवलज्ञानावरणीय ८ अप्रत्याख्यानी क्रोध (२) दर्शनावरणीय कर्मना ९ भेद , मान १ चक्षुर्दशनावरणीय " माया. २ अचक्षुर्दर्शनावरणीय लोभ ३ अवधिदर्शनावरणीय १२ प्रत्याख्यानी क्रोध ४ केवलदर्शनावरणीय १३ . मान ५ निद्रा । ६ निद्रानिद्रा १५ लोभ ७ प्रचला १६ संज्वलन क्रोध ८ प्रचलाप्रचला १७ , मान ९ थीणद्धी १८ , माया (३) वेदनीय कर्मना बे भेद १९ लोम १ सातावेदनीय २० हास्य मोहनीय २ असातावेदनीय २१ रति मोहनीय (४) मोहनीय कर्मना २८ भेद २२ शोक मोहनीय १ सम्यकत्व मोहनीय २३ अरति मोहनीय २ मिश्र मोहनीय २४ भय मोहनीय माया Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२] २५ जुगुप्सा मोहनीय २६ स्त्री वेद ... २८ नपुंसक वेद (५) आयुष्यकर्मना चार मेद १ देवायु २ मनुष्यायु ३ तिर्थचायु ४ नरकायु (६) नाम कर्मना १०३ मेद र १ देवगति २ मैनुष्यमति ३ तिथंचगतिः ४ बरकगति .. ५ एकेंद्रियजाति ६ इंद्रियजाति ७. तेइंद्रियजाति ८ चौरिंद्रियचाति ९ पचद्रियजाति १० औदारिक शरीर ११ वक्रिय शरीर १२ आहारक शरीर । १३ तैजस शरीर १४ कार्मण शरीर १५ औदारिक अंगोपांग १६ वैकिय अगोपांग १७ आहारक अंगोपांग . १८ औदारिक बंधन १९ वैक्रिय बंधन २० आहारक बंधन २१ तैजस बंधन २२ कार्मण बंधन::: २३ औदारिक तैजस बंधन : २४ वैक्रिय तैजस बंधन २५. आहारक तैजस बंधन ... २६ औदारिक कार्मण बंधन २७ वैक्रिय कार्मण बंधन । २८ आहारक कार्मण बंधन २९ औदारिक तैजस कार्मण बंधन ३० वैक्रिय तैजस कार्मण बंधन ३१ आहारक तैजस कार्मण बंधन ३२ तैजस कार्मण बंधन ३३ औदारिक सघातन . ३४ वक्रिय संघातन .३५ आहारक संघातन ३६ तैजस संघातन.. . : ३७ कार्मण संघातन ३८ वज्रऋषभनाराच संघयण ३९ ऋषभनाराच संघयण: ४० नाच संघयण ४१ अर्धनाराच संघषण ४२ कीलिका संघयण ..' ४३ छेवढं सघयण .. ४४ समचतुरस्र संस्थान ४५ न्यग्रोध संस्थान ४६ सादि संस्थान ४७ कुब्ज सस्थान ४८ वामन संस्थान : ४९ हुंडक सस्थान . ५० कृष्ण वर्ण ५१ नील वर्ण ५२ रक्त वर्ण ५३ पित वर्ण ५४ श्वेत वर्ण ५५ सुरमि गंध ५६ दुरभि गंध ५७ तिक्त रस ५८ कटुक रस ५९ कषायलो रस ६० आम्ल रस Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१ मधुर रस ६२ गुरु स्पर्श ६३ लघु स्पर्श ६४ मृदु ६५ खर स्पर्श ६६ शीस स्पर्श ६७ उष्ण स्पर्श ६८ स्निग्ध स्पर्श. ६९ रुक्ष स्पर्श ७० देवानुपूर्वी ७१ मनुष्यानुपूर्वी ७२ तिर्यचानुपूर्वी ७३ नरकानुपूर्वी ७४ शुभ विहायोगति ७५ अशुभ विहायोगति ७६ पाशात नामकर्म ७७ श्वासोच्छास नामकर्म ७८ आतप नामकर्म ७९ उद्योत नामकर्म ८० अगुरुलघु नामकर्म ८१ तीर्थकर नामकर्म ८२ निर्माण नामकर्म ८३ उपघात नामकर्म ८४ स नामकर्म ८५ बादूर नामकर्म ८६ पर्याप्त नामकर्म [३] ८ प्रत्येक नामकर्म ८८ स्थिर नामकर्म ८९ शुभ नामकर्म ९० साभाग्य नामकर्म ९१ सुस्वर नामकर्म ९२ आदेय नामकर्म ९.३ यशः कीर्ति नामकर्म !! ९४ स्थावर नामकर्म ९५ सूक्ष्म नामकर्म ९६ अपर्याप्त नामकर्म ९७ साधारण नामकर्म ९८ अस्थिर नामकर्म ९९ अशुभ नामकर्म ०० दुर्भाग्य नामकर्म १०१ दुःस्वर नामकर्म ०२० अनादेय नामकर्म १०३ अपयश नामकर्म ( ७ ) गोत्रकर्मना वे मेद १ उच्च गोत्र २ नीच गोत्र (८) अंतरायकर्मना पांच मेद १ दानांतराय २ लाभांतराव ३ भोगांतराय ४ उपभोगांतराय ५ वीर्या राय प्रकृति आश्रयी टुंक वर्णन: उपर प्रमाणे ज्ञानावरणीयनी ५, दर्शनावरणीयनी ९, वेदनीयनी २, मोनीयनी २८, आयुष्यनी ४, नामकर्मनी १०३, गोत्रकर्मनी २ अने अंतराय कर्मनी ५-एवी रीतें आठ कर्मनी मली १५८ प्रकृति थाय छे. Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] सत्तामां-उपर प्रमाणे १५८ प्रकृति होय छे, कोई स्थले दश बंधन सिवाय, फक्त पांच शरीरनां पांच ज बंधन गणीने १४८ पण कहेली छे. ते मुझोए विचारी लेवं. उदयमां-पंदर बंधन, पांच संघातन, तथा वर्णादि सोल एम ३६प्रकृति बाद करतां. बाकी नी १२२प्रकृति गणवामां आवी छे. कारण के बंधन तथा संघातनने शरीर साथे मेलवी देवामां आव्या छे. अने वर्णादि वीशने बदले सामान्य रीते वर्ण, गंध, रस, - स्पर्श, एम चार भेद गणवामां आव्या छे. उदीरणामां-पण उपर प्रमाणे १२२ प्रकृति ज गणवामां आवी छे. बंधमां-उपर कहेली १२२ मांथी सम्यक्त्व मोहनीय अने मिश्रमोहनीय सिवाय १२० प्रकृति गणवामां आवी छे. सम्यक्त्व मोहनीय, अने मिश्रमोहनीय, ए बे प्रकृति बंधमां होती नथी; कारणके ते मिथ्यात्व मोहनीयना, अर्धविशुद्ध तथा शुद्ध करेलां दलीआं छे. तेथी ते बंधनमां गणाय नहीं. आ बे प्रकृति अनादि मिथ्यात्वीने उदयमां पण होती नथी. कर्मग्रन्थ बीजो (कर्मस्तव) १ गुणस्थाने बंध विचार. सामान्य बंध १२०. वर्ण १६, बंधन १५, संवातन ५, समकित मोहनी १, मिश्र मोहनी १, ए ३८ विना. १ मिथ्यात्व गुणस्थाने–११७प्रकृतिनो बंध होय छे. तीर्थकर नामकर्म १, आहारक शरीर १, आहारक अंगोपांग १, ए ३ प्रकृति विना. २ सास्वादन गुणस्थाने-१०१ प्रकृतिनो बंध. नरक त्रिक ३, जाति चतुष्क ४, स्थावर, चतुष्क ४, हुंडक १, आतप १, छेवटुं संघयण १, नपुंसक वेद १, मिथ्यात्व मोहनी १, ए १६ विना. ३ मिश्र गुणस्थाने-७४ प्रकृतिनो बंध. तिथंच त्रिक ३, स्त्यानधि त्रिक ३, दुर्भग त्रिक ३, अनंतानुबंधी ४, मध्य संस्थान ४, मध्य संहनन ४, नीच गोत्र १, उद्योतनाम कर्म १, अशुभ विहायोगति १, स्त्रीवेद १, ए २५ विना तथा २ आयुष्य (अवंधक होय तेथी) कुल २७ विना. ४ अविरवि गुणस्थाने-७७ प्रकृतिनो बंध. आयुष्य २, तथा तीर्थकर नाम कर्म १, ए त्रण प्रकृति सहित पूर्वनी ७४ प्रकृति मळी कुल ७७. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५] ५ देशविरति गुणस्थाने-६७ प्रकृतिनो बंध होय छे. वज्रऋषभ नाराच १, मनुष्य त्रिक ३, अप्रत्याख्यान चतुष्क ४, औदारिक द्विक २, ए दश प्रकृति विना. ६ प्रमत्त गुणस्थाने-६३ प्रकृतिनो बंध होय छे. प्रत्याख्यान चतुष्क ४ विना.. ७ अप्रमत्त गुणस्थाने-५९ अथवा ५८ प्रकृतिनो बंध होय छे. शोक,१, अरति १, अस्थिर १, अशुभ १, अयश १, असाता १, ए ६ विना ५७ प्रकृति रहे, तेमां आहारक द्विक २, अहीं बंधाय छे, तेथी एबे मेळवतां ५९ थाय. तेमांथी देवायु १, जतां ५८ रहे. कारणके अहीं कोईने देवायुनो बंध होय छे, अने कोईने नथी होतो. तेथी छठेथी बांधतां बांधतां अहीं आवे तेने होय. अहीं शरु तो करेज नही. ८ निवृत्ति गुणस्थान-आना सात भाग छ, तेमां पहेले भागे ५८ (उपर प्रमाणे) बीजे भागे निद्राद्विक विना ५६, त्रीजे पण ५६, चोथे ५६, पांचमे ५६, - छठे ५६, अने सातमे भागे सुरद्विक २, पंचेंद्रिय जाति १, शुभ विहायोगति १, सनवक ९, औदारिक विना शरीर चतुष्क ४,अंगोपांगद्विक २, समचतुरस्र संस्थान १, निर्माण १, जिननाम कर्म १, वर्णादि चतुष्क ४, अगुरुलधु चतुष्क ४, ए ३० विना बाकीनी २६ प्रकृतिनो बंध रहे. ९ अनिवृत्ति गुणस्थान-आना पांच भाग छ. तेमां पहेले भागे उपरनी २६ माथी हास्य १, रति १, दुगंछा १, अने भय १, ए चार प्रकृति जतां २२ रहे. बीजे भागे पुरुषवेद जवाथी २१, त्रीजे भागे संज्वलन क्रोध जतां २०, चोथे भागे मान जवाथी १९, अने पांचमे भागे माया जवाथी १८ रहे. १० सूक्ष्म संपराय गुणस्थाने—उपरनी १८मांथी संज्वलन लोभ जतां १७ प्रकृतिनो बंध रहे छ ११ उपशांत मोह गुणस्थाने-उपरनी १७ प्रकृतिमांथी दर्शनावरणीय ४, उच्चगोत्र १, यशनामकर्म १, ज्ञानावरणीय ५, अने अंतराय ५, ए१६ प्रकृति जवाथी बाकी एक ज सातावेदनी प्रकृतिनो बंध रहे छे. १२ क्षीणमोह गुणस्थाने-एक साता वेदनीनो ज बंध छे. १३ सयोगी केवली गुणस्थाने--एक साता वेदनीनो ज बंध होय छे. १४ अयोगी केवली गुणस्थाने-एके प्रकृतिनो बंध न होय. आगुणस्थान अबंधक छे २ गुणस्थाने उदय विचार ओधे प्रकृति १२२ (उपर जणावेली १२०मां समकित मोहनी ने मिश्रमोहनी उमेरवाथी) १ मिथ्यात्व गुणस्थाने–मिश्रमोहनी १, समकित मोहनी १, आहारक द्विक २, जिन नाम कर्म १, ए पांच प्रकृति विना बाकीनी ११७ प्रकृतिनो उदय होय छे. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ सास्वादन गुणस्थाने-१११ प्रकृतिनो उदय होय. सूक्ष्य १, अपर्याप्त १, साधारण १, आतपे १, मिथ्यात्व १, ए पांच विना तथा नरकानुपूर्वानो अनुदय होवाथी कुल छ प्रकृति जतां बाकी १११. ३ मिश्र गुगस्थाने-उपरनी १११ माथी अनंतानुबंधी ४, स्थावर १, एकेन्द्रिय १, तथा विकलेंद्रिय ३, ए नव प्रकृतिनो अंत होय, तथा त्रण आनुपूर्वीनो अनुदय होय, तेथी कुल बार प्रकृति जतां ९९ प्रकृतिनो उदय रहे, अने मिश्र मोहनी भळवाथी ....१०० प्रकृतिनो उदय होय.. ४ अविरति गुणस्थाने--१०४ प्रकृतिनो उदय होय. कारण के उपरनी १०० प्रकृतिमां समकित मोहनी १, तथा आनुपूर्वी ४, ए पांच प्रकृतिनो उदय होवाथी अने मिश्रमोहनीना उदयनो विच्छेद थवाथी बाकीनी चार प्रकृति मेळघतां १०४ थायः ५ देशविरति गुणस्थाने-८७ प्रकृनिनो उदय होय. अप्रत्याख्यानी ४, मनुष्यानुपूर्वी १, तिथंगानुपुर्वी १, वैक्रियाष्ठक ८, दुर्भाग्य १, अनादेय १, अयश १, ए १७ प्रकृति विना. ६ प्रमत्त गुणस्थाने--८१ नो उदय होय. तिर्यग्गति १, तिर्यगायु १, नीचगोत्र १, उद्योत १, - प्रत्याख्यानी ४, ए आठ विना तथा आहारक द्विक भळे तेथी. ७ अप्रमत्त गुणस्थाने-७६ प्रकृतिनो उदय होय. स्त्यानर्द्धि त्रिक ३, आहारकद्विक २, ए पांच प्रकृति विना. ८ निवृत्ति गुणस्थाने-७२प्रकृतिनो उदय.समकित मोहनी १,छेल्लां संघयण ३,ए चार विना ९ अनिवृत्ति गुणस्थाने-६६ नो उदय. हास्यादिक ६ विना. १० सूक्ष्मसंपराय गुणस्थाने–६० नो उदय. वेद ३, संज्वलन क्रोध १, मान १, माया १, ए छ विना. ११ उपशांतमोह गुणस्थाने--५९ नो उदय. संज्वलन लोभ विना. १२ क्षीणमोह गुणस्थाने-पहेले भागे ऋषभ नाराच १, नाराच १, ए वे विना ५७, तेमांथी निद्राद्विक २ विना छेल्ले समये ५५. १३ सयोगी गुणस्थाने—४२ नो उदय. ज्ञानावरणीय ५, अंतराय ५, दर्शनावरणीय ४, ए १४ विना तथा तीर्थकर नाम कर्म मेळवतां कुल १३ प्रकृति बाद करतां ४२ रहे. (अहीं तीर्थंकर नाम कर्मनो उदय होय छे.) १४ अयोगी गुणस्थाने-१२प्रकृतिनो उदय छल्ला समय सुधी रहे. कारणके उपरनी ४२मांथी औदारिक द्विक २, अस्थिर १, अशुभ १, शुभ विहायोगति १, अशुभ विहायोगति १, प्रत्येक १, स्थिर १, शुंभ १, संस्थान ६, अगुरुलघु १, उपघात"१, श्वासोच्क्षस १, वर्ण १, गंध १, रस १, स्पर्श १, निर्माण १, तैजस १, पराघात १, कार्मण १, वज्रऋषभनाराच १, दुःस्वर १, सुस्वर १, साता अने असातामांथी Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. . १, ए ३० प्रकृतिना उदयनो विच्छेद १३ माने अंते होय. अने १४ माने छेल्ला समये सुभग १, आदेय १, यश १, साता असातामांथी १, त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, पंचेंद्रिय जाति १, मनुष्य गति १, मनुष्यायु १, जिन नाम १, उच्च गोत्र १, ए बार प्रकृतिनो उदय विच्छेद करे. ३ गुणस्थाने उदीरणा विचार. पहेला गुणस्थानथी छठा एटले प्रमत्त गुणस्थान सुधी उदयनी पेठे ज उदीरणा जाणवी. अप्रमत्त गुणस्थानथी त्रण त्रण प्रकृति ओछी करवी. एटले के उदयमा प्रमत्त गुणस्थाने स्त्यानार्द्ध त्रिक ३ अने आहारकद्विक २, ए पांच प्रकृतिनो विच्छेद थाय छे. पण उदीरणामां वेदनीय द्विक २, अने मनुष्यायु १, ए त्रण प्रकृति सहित आठ प्रकृतिनो विच्छेद थतो होगाथी अप्रमत्तादिक गुणस्थाने त्रण त्रण प्रकृति उदय करतां उदीरणामां ओछी गणवी. तेथी अप्रमत्ते ७३, निवृत्तिए ६९, अनिवृत्तिए ६३, सूक्ष्म संपराये ५७, उपशांतमोहे ५६, क्षीणमोहे ५४, अने सयोगीए ३९. अयोगी गुणस्थाने वर्तताने उदीरणा होती नथी.. ४ गुणस्थाने सत्ता विचार. ओघे १४८ प्रकृति होय. (१५८ मां बंधन १५ गण्या छे ते ५ गणवाथी १४८ थाय.) १ मिथ्यात्व गुणस्थाने-१४८ नी सत्ता.. २ सास्वादन गुणस्थाने-१४७ नी सत्ता. जिन नाम कर्म विना.. ३-मिश्र गुणस्थाने-१४७ नी सत्ता. जिननामकर्म विना. ४-अविरति गुणस्थाने-१४८नी सत्ता. अथवा अनंतानुबंधी ४, मिथ्यात्व १, मिश्र १, समकितमोहनी १, ए सातनो अंत थवाथी १४१ नी सत्ता अचरम शरीरी क्षायिक सम्यग्दृष्टिने उपशम श्रेणिनी अपेक्षाए होय. अने क्षपक श्रेणिनी अपेक्षाए नरकायु १, तिर्यगायु १, सुरायु १, ए त्रण विना १४५ नी सत्ता होय. अने तेमांथी सप्तक एटले सात टाळीये त्यारे १३८ नी सत्ता होय. (आ चारे भांगा अविरति गुणस्थानथी मांडीने अनिवृत्ति बादर संपराय नामना नवमा गुणस्थानकना प्रथम भाग सुधी होय. ते आ प्रमाणे.).. ओघे क्षपक- उपशम- क्षपकश्रेणीमां श्रेणी श्रेणी सप्तक क्षये ५ देशविरति गुणस्थाने-१४८- १४५- १४१ ) क्षायक १३८ ६ प्रमत्त गुणस्थाने- १४८- १४५- १४१ सम- १३८ ७ अप्रमत्त गुणस्थाने- १४८- १४५- १४१ किती १३८ ८निवृत्ति गुणस्थाने- १४८- १४५- १४२%3 .. ... १३८ ..... अनंतानुबंधी ४, तिर्यगायु १, नरकायु १, ए छ विना १४२ जाणवी. Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८] ९ अनिवृत्ति बादर संपराय गुणस्थाने उपशमश्रेणी. क्षपकश्रेणी. स्वाभाविक. विसंयोजनी १ पहेले भागे- १४८- १४२ १३८ २ बीजे भागे- १४८- १४२ १२२ स्थावर द्विक २, तिर्यंच द्विक २, नरक द्विक २, आतप द्विक २, स्त्यानर्द्धि त्रिक ३, एकेंद्रिय जाति १, विकलेंद्रिय त्रिक ३, साधारण १, ए १६ विना १२२ समजवी. ३त्रीजे भागे-१४८-१४२-११४. बीजा कषाय ४, जीजा कपाय ४, ए ८ विना. ४ चोथे भागे-१४८-१४२-११३. नपुंसक वेद जवाथी. ... ५पांचमे भागे-१४८-१४२-११२. स्त्रीवेद जवाथी. ६ छठे भागे-१४८-१४२-१०६. हास्यादिक ६ जवाथी. ७सातमे भागे-१४८-१४२-१०५. पुरुषवेद जवाथी. ८ आठमे भागे--१४८-१४२-१०४. संज्वलन क्रोध जवाथी. ९ नवमे भागे-१४८-१४२-१०३. संज्वलन मान जवाथी. १० सूक्ष्म संपराय गुणस्थाने--१४८-१४२-१०२. संज्वलन माया जबाथी. ११ उपशांतमोह गुणस्थाने--१४८-१४२-१०१. संज्वलन लोभ जवाथी. १२ क्षीणमोह गुणस्थाने-१०१. तेमाथी द्विचरम समये निद्रा १, निद्रानिद्रा १, ए बे जवाथी ९९ प्रकृतिनी सत्ता होय. १३ सयोगी गुणस्थाने–८५ नी सत्ता होय. कारण के उपरनी ९९ मांथी ज्ञानावरणीय ___५, दर्शनावरणीय ४, अंतराय ५, ए १४ जवाथी. १४ अयोगी गुणस्थाने छेल्लानी पहेलाना (द्विचरम) समये ८५ मांथी वेद २, विहायो गति२, गंध २, स्पर्श ८, वर्ण ५, रस ५, शरीर ५, बंधन ५, संघातन ५, निर्माण १, संघयण ६, अस्थिर १, अशुभ १, दुर्भग १, दुःस्वर १, अनादेय १, अयश १, संस्थान ६, अगुरुलघु १, उपघात १, पराघात १, उच्चस १, अपर्याप्त १, साता असातामाथी १, पर्याप्त १, स्थिर १, प्रत्येक १, उपांग ३, सुस्वर १, नीचगोत्र १, ए ७२ प्रकृतिनो अंत होय. तेथी अयोगी गुणस्थानना छेल्ला समये १३नी सत्ता होय. मनुष्यत्रिक३, बस त्रिक३, यश१, आदेय१, सुभग१, जिननाम? उच्च गोत्र १, पंचेंद्रिय जाति १, साता असातामांथी १, ए १३ एटले नरानुपूर्वी सहित १३ प्रकृतिनो अंत थवाथी कर्म सत्ता समग्र नाश पामे. तेमां जो नरानु पूर्वी सहित ७३ द्विचरम समये गई होय तो अहीं ते विना १२ नो क्षय करे. आ प्रमाणे बंध, उदय, उदीरणा अने सत्ता ए चारनो विचार चौद गुणस्थानने आश्रीने जाणवो. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रीजो कर्मग्रन्थ. १४ गुणस्थानके ७९ मार्गणाए बंध संबंधी प्रकृतिदर्शक यंत्र. (दरेक मार्गणाए गुणठाणा केटला होय ने त्यां बंध केटली प्रकृतिनो होय ते बताव्युं छे.) मार्गणा नामानि गुणस्थान ओघवंध | १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० | ११ | १२ | १३ | १४ नंबर नरकगति ए सामान्य रत्नप्रभादि ३ नरके पंकप्रभादि ३ नरके तमः तमः प्रभा [९] तिर्यंचे पंचंद्रि पर्याप्ता तिर्यच अपप्तिा १०९ मनुष्य पयाप्ता १४ । १२० ११७ १०१ ६९ ७१ ६७ ६३ ५९ ५८ २२ १७ १ मनुष्य अपर्याप्ता देवगतिमा सामान्ये भवनपति ब्यंतर ज्योतिषी सौधम इशान वे देवलोके । ४ । १०४ । १०३ ९६ ४० Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंबर मार्गणा नामानि गुणस्धान ओघबध १ २ ३ । सनत्कुमारादि ६ देवलोके | ४ | १०१ १०० ९६ ७० ७२ आनतादि देवलोक ने नवप्रैवेयके ४ ५७ ९६ . ९२, ७० ७२ अनुत्तर विमाने १ ७२ + + | + | ७२ (एकलुंचोथु गुणठाणुज होय.) एकेंद्रिय द्वींद्रिय त्रोद्रिय १८ चतुरिद्रिय पंचेंद्रिय पृथ्वीकाय अपकाय तेजस्काय वायुकाय वन पतिकाय २ त्रसकाय ११७ १०१ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ मनोयोग ४ १३ | १२० | ११० १०१ ७४ १३ । १२० | ११७ १०१ ४ ७७ ६७ ६३ ५९ ५८ २२ १७ ५ ६५ ६३ ५९ ५० २२ १७ १ | १ | + १ १ | + वचनयोग ४ २८ औदारिककाययोग २९ औदारिक मिश्र काययोग । वैक्रिय काययोग वैक्रिय मिश्र काययोग ३२ आहारक काययोग ३३ आहारक मिश्र क ययोग [११] ३४ कार्मण काययोग । ४ ११२ । १०७ ९४ + ७५ + + + + + + + + १ स्त्रीवेद ३६ पुरुषवेद ३७ नपुसकवेद ७७ ६७ ६३ ५९ ५८ २२ | ११७ १०१ ७४ | ११५ १०१ ३८ अनंतानुबंधी ४ २ / ११७ अप्रत्याख्यानावरण ४ प्रत्याख्यानावरण ४ | ५ | ११८ ११७ १०१ ४४ . Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंबर १० ११ १२ १३ १४ । संज्वलन ३क्रोध, मान, माया मार्गणा नामानि गुणस्धान | ओघबंध १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ संज्वलन ३क्रोध, मान, माया ९ | १२० ११७ १०१ ७४ ७७ ६७ ६३ ५९ ५८) २२ - १० - १२० ११७ १०१ ४४ ७७ ६७ ६३ ५९ ५८ २३ ११ संज्वलन लोभ १७ नतिज्ञानी श्रुतज्ञानी + - ७७ ६७ ६३ ५९ ५८ २२ १७ १ ७७ ६५ ६३ ५९ ५८ २२ १७ १ + + अवधिज्ञानी मनःपर्यवज्ञानी केवलज्ञानी [१२] मतिअज्ञानी ३ ३ ११५ ११५ १०१ ११७ / ११० १०१ ७४ ७४ श्रुतअज्ञानी विभंगज्ञानी सामायिक चारित्र । ५२ छेदोपस्थापनीय चारित्र + + + परिहारविशुद्धि चारित्र + सूक्ष्मसंपराय चारित्र + + + + + · + + + + + Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५ यथाख्यात चारित्र देशविरति चारित्र अविरति चक्षुर्दर्शन अचक्षुदर्शन अवविदर्शन केवलदर्शन कृष्णलेश्या [१३] नीललेश्या ६४ कापोतलेश्या ६५ तेजोलेश्या ४-६ ११८ | ११७ १०१ ७४ ७७ ६७ ६३ ४-६ ११८ ११७ १०१ ७४ ७७ ६५ ६३ ११८ | ११७ १०१ ७४ ७७ ६७ ६३ ७ १११ १०८ १०१ ४ ७७ ६७ ६३ ७ | १०८ | १०५ १०१ ७४ ७७ ६७ .६३, ५९ १३ १०४ । १०१ ९७ ७४ ७७ ६७ ६३ ५९ १४ । १२० ११७ १०१ ७४ ७७ ६७ ६३ ५९ पद्मलेश्या ६७ शुक्लेश्या १ ५८ ५८ २२ १७ १ २२, १७ - भव्य अभव्य Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मागंणा नामानि. ७० औषामिक समकिते ८ ६ सास्वादने १०१ ७२ क्षायोपशमिके + । । क्षायिके ११ ७९ - + मिश्रे मिथ्यात्वे ११७ १४ | १२० ११५ ११७ १०१ संज्ञी ७४ ७७ ६७ ६३ ५९ ५८ २२, १७ १ ७७. असंज्ञी २ आहारी १३ | १२० ११७ १०१ ११२ । १०७ ९४ ४४ + ७७ ७५ ६७ ६३ ५९ ५८ २२ + + + + + १७ १ + + ।। + अनाहारी ५ १ . १. आमां से गुण ठाणुं न होय तेनी चोकडी + समजवी, अने जे गुणठाणे बंध न होय तेनू मेंदु • समजवू, Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बासठ मार्गणाए गुणस्थान तथा उदय. ६२ मार्गणाए १४ गुणस्थान तथा उदयनी १२२ प्रकृतिनुं संक्षिप्त विवरण. १ नरक गति-गुणस्थान ४, त्यां ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ४, अंतराय ५, मिथ्यात्व १, तैजस १, कार्मण १, वर्णादि ४, अगुरुलधु १, निर्माण १, स्थिर १, अस्थिर १, शुभ १, अशुभ १, आ २७ प्रकृतिओ ध्रुवोदयी छे. तेमां १ मिथ्यात्व पहेलेज गुणस्थाने ध्रुवोदयी होय. अने ५ ज्ञानावरणीय, ४ दर्शनावरणीय, ५ अंतराय, ए १४ प्रकृति बारमा गुणस्थान सुधी सर्वने ध्रुवोदयी होय. शेष १२ प्रकृति तेरमा गुणठाणाना अंतसुधी सर्व जीवने ध्रुवोदयी होय. हवे ध्रुवोदयी २७, निद्रा २, वेदनीय २, नरकायु १, नीचगोत्र १, नरकद्विक २, पंचेंद्रिय जाति १, वैक्रियद्विक २, हुंडक संस्थान १, अशुभ विहायोगति १, पराघात १, उन्श्वास १, उपघात १, सचतुष्क ४, दुर्भग १, दुःम्बर १, अनादेय १, अयश १, कषाय १६, हास्यादि ६, नपुंसकवेद १, सम्यक्त्वमोहनी १, मिश्रमोहनी १, एवं ४६ प्रकृति ओवे नारकीने उदये होय. अहीं स्त्यानर्द्धि त्रिकनो उदय कम्मपयडी तथा पंचसंग्रहने अनुसारे न होय. ते विष कर्मप्रकृतिमा कयुं छे के-- "निद्दानिदाईणत्ति असंखवासाय मणुअ तिरिया य । वेउबाहारगतणू वजित्ता अप्पमत्तेया ॥१॥" अर्थ—“असंख्यात वर्षना आयुष्यवाळा मनुष्य, तिर्यच (युगलियां ), वैक्रिय शरीरी, आहारक शरीरी, तथा अप्रमत्त अणगार (साधु ), एटला वर्जीने शेष सर्व जीवने स्त्यानर्द्धि त्रीकनी उदीरणा होय." (उदय सतेज उदीरणा होय छे.) __आ वचनने अनुसारे देवता अने नारकी पण वैक्रिय शरीरी छे, तेथी स्त्यानर्द्धि त्रिकनो उदय घटे नहीं, तेथी तेनो त्याग कर्यो छे. भवधारणीय वैक्रिय शरीर आश्री स्त्यानद्धि त्रिकनो उदय होय, अने उत्तरवैक्रिय करतां स्त्यानर्द्धि त्रिकनो उदय न होय. देवता अने नारकीने उत्तरवैक्रिय पण होय छ, ते ७६ ना ओघमांथी सम्यक्त्व १, मिश्र १, ए २ वर्जीने मिथ्यात्वे ४४. तेमांथी नरकानुपूर्वी १, मिथ्यात्व १, ए र विना सासादने ७३. तेमांथी अनंतानुबंधी ४ विना अने मिश्र युक्त करतां मिश्रगुणस्थाने ६३. तेमां नरकानुपूर्वी नांखवाथी अविरतिए १ तिर्यच गतिए-गुणस्थान ५. Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] देवत्रिक ३, नरकत्रिक ३, वैक्रियद्विक २, आहारकद्विक २, मनुष्यत्रिक ३, उच्चगोत्र १, जिननाम १, ए १५ विना ओघे १०७. तथा वैक्रियद्विक सहित गणीए त्यारे १०९. ' तेमांथी सम्यक्त्व १, मिश्र १, ए बे विना मिथ्यात्वे १०७.. तेमांथी सूक्ष्म १, अपयाप्त १, साधारण १, आतप १, मिथ्यात्व १, ए पांच विना सासादने ३२९ अनंतानुबंधी ४, स्थावर १, एकेंद्रियादि जाति ४, तिर्यंचानुपूर्वी १, ए १० विना अने मिश्र युक्त करतां मिश्र गुणस्थाने २३. . . मिश्रने बाद करतां तथा सम्यक्त्व १, अने तिर्यंचानुपूर्वी १, ए बे भेळवतां अविरतिए २४. अप्रत्याख्यानी ४, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, तिथंचानुपूर्वी १, ए ८ विना देशविरतिए ८६. अहीं गुणप्रत्ययीक वैक्रियनी विवक्षा न करीए तो दरेक गुणठाणे ये बे ओछी गणवी. .... ३ मनुष्यगति-गुणस्थान १४.. वैक्रियाष्टक ८, जाति ४, तियंचत्रिक ३, उद्योत १, स्थावर १, सूक्ष्म १, साधारण १, आतप १. ए २० विना ओघे १०२ अने वैक्रियद्विक गणीए तो १०४. आहारकद्विक २, जिननाम १, सम्यक्त्व १, मिश्र १ ए ५ विना मिथ्यात्वे १५. अपर्याप्त १, मिथ्यात्व १. एबे विना सासादने ९७. अनंतानुबंधी ४, मनुष्यानुपूर्वी १,. ए.५ विना अने मिश्र भळवाथी मिश्र ९३. मिश्र बाद करतां ने सम्यक्त्व १, मनुष्यानुपूर्वी १, एबे भेळवतां अविरतिए २४. अप्रत्याख्यानी ४, मनुष्यानुपूर्वी १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, ए आठ विना देशविरतिए ८४. प्रत्याख्यानी ४, नीचगोत्र १, ए पांच काढतां ने आहारकद्विक २, भेळवतां प्रमत्ते ८१. स्त्यानधि त्रिक ३, आहारकद्विक २. ए पांच विना अप्रमत्ते ७६. सम्यक्त्वमोहनी १, छेल्लां संघयण ३, ए चार विना अपूर्वे ७२. हास्यादि ६ विना अनिवृत्तिए ६६. वेद ३, संज्वलन ३, ए ६ विना सूक्ष्मसंपराये ६०. संज्वलना लोभ विना उपशांतमोहे ५९. ऋषभनाराच १, नाराचं १, ए बे विना क्षीणमोहे ५७.. बे निद्रा विना क्षीणमोहने छेल्ले समये ५५.: । ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ४, अंतराय ५, ए १४ विना सयोगीए ४२. कारणके अहीं जिननाम कर्मनो उदय होय. Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७] औदारिक २, विहायोगति २, अस्थिर १, अशुभ १, प्रत्येक १, स्थिर १, शुभ १, संस्थान ६, अगुरुलघु ४, वर्णादि ४, निर्माण १, तैजस १, कार्मण १, वज्रऋषभनाराच संघयण १, दुःस्वर १, सुखर १, साताअसातामांथी १, ए ३० विना अयोगी गुणस्थाने १२ रहे. सुभग १, आदेय १, यश १, वेदनीय १, त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, पंचेंद्रिय जाति १, मनुष्यायु १, मनुष्यगति १, जिननाम १, उच्चैर्गोत्र १, ए १२ अयोगी गुणस्थानना छेल्ले समये जाय. । देवगति-गुणस्थान ४. नरकत्रिक ३, तिथंच त्रिक ३, मनुष्यत्रिक ३, जाति ४, औदारिकद्विक २, आहारकद्विक २, संघयण ६, न्यग्रोधादि संस्थान ५, अशुभ विहायोगति ५, आतप १, उद्योत १, जिननाम १, स्थावर चतुष्क ४, दुःस्वर १, नपुंसकवेद १, नीचगोत्र १, एवं ३९ वर्जीने ओघे ८३. ज्यारे स्त्यानर्द्वित्रिक वीए त्यारे ८० नो उदय होय. तेभांधी सम्यक्त्व १, मिश्र १, विना मिथ्यात्वे मिथ्यात्व १ विना सासादने ०. अनंतानुबंधी ४, देवानुपूर्वी १, ए ५ विना अने मिश्र भळे त्यारे मिश्र गुणस्थाने ७३. मिश्र काढी देवानुपूर्वी १, सयम्क्त्व १, ए वे भळे त्यारे अविरतिए ७४. -एकेंद्रियजाति-गुणस्थान २. वैक्रियाष्टक ८, मनुष्यत्रिक ३, उच्चगोत्र १, स्त्रीवेद १, पुंवेद १, द्वींद्रियादि जाति ४, आहारकद्विक २, औदारिक अंगोपांग १, संघयण ६, संस्थान ५, विहायोगति २, जिननाम १, त्रस १, दुःस्वर १, सुखर १, सम्यक्त्व १, मिश्र १, सुभग १, आदेय १, ए ४२ विना ओधे तथा मिथ्यात्वे ८० अने वैक्रिय शरीर सहित करीए त्यारे ८१. सूक्ष्मत्रिक ३, आतप १, उद्योत १, मिथ्यात्व १, पराघात १, श्वासोच्छ्वास १, ए ८ विना सासादने ७३. द्वींद्रियजाति-गुणस्थान २. वैक्रियाष्टक ८, नरत्रिक ३, उच्च गोत्र १, स्त्रीवेद १, वेद १. एकेद्रिय १. त्रींद्रिय १, चतुरिंद्रिय १, पंचेंद्रिय १, आहारकद्विक २, संघयण ५, सस्थान ५, शुभ विहायोगति १, जिननाम १, स्थावर १, सूक्ष्म १, साधारण १, आतप १, सुभग १, आदेय १, सम्यक्त्व १, मिश्र १, ए ४० विना ओधे अने मिथ्यात्वे ८२ नो उदय होय. Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८] तेमांथी लब्धि अपर्याप्त १, उद्योत १, मिथ्यात्व १, पराघात १, अशुभ विहायोगति १, उच्छ्वास १, सुखर दुःखर २, ए ८ विना सासादने ७४. ७-८त्रींद्रिय तथा चतुरिंद्रिय-ए बने मार्गणाए द्वींद्रियनी पेठे ज जाणवं. पण द्वींद्रियने ठेकाणे त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय, एम जाणवू. ९ पंचेंद्रिय-गुणस्थान १४. जाति ४, स्थावर १, सूक्ष्म १, साधारण १, आतप १, ए ८ विना ओधे ११४. तेमांथी आहारक द्विक २, जिननाम १, सम्यक्त्व १, मिश्र ए ५ विना मिथ्यात्वे १०९ मिथयत्व १, अपर्याप्त १, नरानुपूर्द १, ए ३ विना सास्वादने १०६. अनंतानुबंधी ४, आनुपूर्वी ३, ए ७ विना अने मिश्रभळतां मिश्रे १०० मिश्र टाळीने आनुपूर्वी ४, सम्यक्त्व १, भळे त्यारे अविरतिए १०४. अप्रत्याख्यानी ४, वैक्रियाष्टक ८, नरकानुपूर्वी १, तिर्यंचानुपूर्वी १, दुर्भग १, अनादेश १, अयश १, ए १७ विना देशविरतिए ८७. छठा गुणस्थानथी मनुष्य गतिनी पेठे ८१-७६-७२-६६-६०-५१-५७-४२-१२ एम अनुक्रमे जाणवू. १० पृथ्वीकायनी मार्गणाए–एकेंद्रियनी पेठे गुणस्थान २. साधारण विना ओधे अने मिथ्यात्वे ७९. सूक्ष्म १, लब्धि अपर्याप्त १, आतप १, उद्योत १, मिथ्यात्व १, पराघात १, श्वासोच्छ्वास १, ए सात विना सासादने ७२. (अहीं करण अपर्याप्तनी अपेक्षाए सासादनपणुं जाणवू) ११ अपकायनी मार्गणाए-गुणस्थान २. आतप विना ओधे अने मिथ्यात्वे ७८. सूक्ष्म १, अपर्याप्त १, उद्योत १, मिथ्यात्व १, पराघात १, उच्चस १, ए ६ विना सासादने ७२. १२ तेजस्कायनी मार्गणाए-गुणस्थान १. उद्योत १, यश १, ए बे विना ओधे अने मिथ्यात्वे ७६. . १३ वायुकायनी मार्गणाए--पण उपर प्रमाणे. ७६. १४ वनस्पति कायनी मार्गणाए-गुणस्थान २. . एकेंद्रियनी पेठे आतप विना ओधे मिथ्यात्वे ७९. अने सासादने ७२. १५ सकायनी मार्गणाए-गुणस्थान १४. स्थावर १, सूक्ष्म १, साधारण १, आतप १, एकेंद्रिय जाति १, ए ५ विना ओधे ११७ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९] आहारक द्विक २, जिननाम १, सम्यक्त्व १, मिश्र १, ए ५ विना मिथ्यात्वे १११. मिथ्यात्व १, अपर्याप्त १, नरकानुपुर्वी १, ए ३ विना सासादने १०९. अनंतानुबंधी ४, विकलेंद्रिय ३, अनुपूर्वी ३, ए १० विना अने मिश्र भळे त्यारे मिश्र गुणस्थाने १००. अनुपूर्वी ४, सम्यक्त्व १, ए ५ भळे अने मिश्र टळे त्यारे अविरतिए १०४. देशविरति आदि गुणस्थाने ओघनी पेठे ८७-८१-७६-७२-६६-६०-५१-५७ ४२-१२ वगेरे जाणी लेवु. ६ मनोयोगीने-गुणस्थान १३. स्थावर चतुष्क ४, जाति ४, आतप १, अनुपूर्वी ४, ए १३ विना ओघे १०९. आहारक द्विक २, जिननाम १, सम्यक्त्व १, मिश्र १, ए ५ विना मिथ्यात्वे १०४. मिथ्यात्व विना सासादने १०३. अनंतानुबंधी ४ विना अने मिश्र भळवाथी मिश्रे १००. मिश्र टाळी सम्यक्त्व भळवाथी अविरतिए १००. अप्रत्याख्यानी ४, वैक्रियद्विक २, देवगति १, देवायु १, नरकगति १, नरकायु १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, ए १३ विना देशविरतिए ८७. त्यारपछी ओघनी पेठे जाणवू. ७ वचनयोगीने-गुणस्थान १३. स्थावर ४, एकेंद्रिय १, आतप १, अनुपूर्वी ४, ए १० विना ओघे ११२. आहारकद्विक २, जिननाम १, सम्यक्त्व १, मिश्र १, ए ५विना मिथ्यात्वे १०७. मिथ्यात्व १, विकलेंद्रिय ३, ए ४ विना सासादने १०३ (वचनयोग पर्याप्ताने होय, त्यां सासादन न होय.) अनंतानुबंधी ४ काढी मिश्र भळवाथी मिश्रे १००. अविरतिथी आरंभीने बीजा गुणस्थानोने विषे मनोयोगीनी पेठे जाणQ. १८ काययोगीने-गुणस्थान १३. ओघे १२२. मिथ्यात्वे ११७. सासादने १११. इत्यादि ओघनी पेठे जाणवू. १९ पुरुषवेदीने-गुणस्थान ९. नरकत्रिक ३, जाति ४, स्थावर १, सूक्ष्म १, साधारण १, आतप १, जिननाम १, स्त्रीवेद १, नपुंसकवेद १, ए १४ विना ओघे १०८. आहारकद्विक २, सम्यक्त्व १, मिश्र १, ए चार विना मिथ्यात्वे १०४. मिथ्यात्व १, अपर्याप्त १, ए २ विना सास्वादने १०२.. अनंतानुबंधी ४, अनुपूर्वी ३, ए ६ काढीने मिश्र मेळववाथी मिश्रे ९६. मिश्र काढीने सम्यक्त्व १, अनुपूर्वी ३, ए चार भळवाथी अविरतिए ९९. Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०] अनुपूर्ती ३, अप्रत्याख्यानी ४, देवद्विक २, वैक्रियद्विक २, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, ए १४ विना देशविरतिए ८५. प्रत्याख्यानी ४, तिर्यचद्विक २, उद्योत १, नीचगोत्र १, ए ८ काढीने आहारक द्विक २ भळे त्यारे प्रमत्ते ७९. स्त्यानार्द्वित्रिक ३, आहारकद्विक २, ए ५ विना अप्रमत्ते ७४. सम्यक्त्वमोहनी १, छेल्लां संघयण ३, ए चार विना अपूर्वे ७०. हास्यादि ३ विना अनिवृत्तिए ६४. २० स्त्रीवेदीने-पुरुषवेदीनी पेठे पण ओघे अने प्रमत्ते आहारकद्विक विना तथा चोथे गुणस्थाने आनुपूर्वी ३ विना कहे. कारणके स्त्रीने वाटे वहेता चोथु गुणस्थान न होय. स्त्रीने १४ पूर्वनुं ज्ञान न होवाथी. आहारकद्विक पण न होय. तेथी ओघे तथा ९ गुणस्थान१०६-१०४-१०२-९६-९६-८५-७७-७४-७०-६४ ए प्रमाणे जाणवं. २१ नपुंसकवेदीने-गुणस्थान ९. देवत्रिक ३, जिननाम १, स्त्रीवेद १, पुंवेद १, ए ६ विना ओघे ११६. आहारकद्विक २, सम्यक्त्व १, मिश्र १, ए चार विना मिथ्यात्वे ११२. सूक्ष्मत्रिक ३, आतप १, मिथ्यात्व १, नरकानुपूर्वी १, मनुष्यानुपूर्वी १, ए ७ विना सास्वादने १०५. अनंतानुबंधी ४, तिर्यगानुपूर्वी १, स्थावर १, जाति ४, ए १० विना तथा मिश्र भळे एटले मिश्र गुणस्थाने ९६. नरकानुपूर्वी १, सम्यक्त्व १, ए २ भेळवीने मिश्र काढीए, त्यारे अविरतिए ९७. अप्रत्याख्यानी ४, नरकत्रिक ३, वैक्रिय द्विक २, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, ए १२ विना देशविरतिए ८५. . तिर्यंचगति १, तिर्यगायु १, नीचगोत्र १, उद्योत १, प्रत्याख्यानी ४, ए ८ काढीने आहारक द्विक २ भळे त्यारे प्रमत्ते ७९. स्त्यानार्द्ध त्रिक ३, आहारक द्विक २, ए ५ विना अप्रमत्ते ७४. सम्यक्त्व मोहनी १, अंत्य संघयण ३, ए ४ विना अपूर्वे ७० हास्यादि ६ विना अनिवृत्तिए ६४. क्रोध मार्गणाए-गुणस्थान ९. मान ४, माया ४, लोभ ४, जिननाम कर्म १, ए १३ विना ओघे १०९. सम्यक्त्व १, मिश्र १, आहारक द्विक २, ए ४ विना मिथ्यात्वे १०५. सूक्ष्मत्रिक ३, आतप १, मिथ्यात्व १, नरकानुपूर्वी १, ए ६ विना सासादने Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१] ९९. अनंतानुबंधी क्रोध १, स्थावर १, जाति ३, आनुपूर्वी ३, ए ९ काढीने मिश्र मेळवतां मिश्रे ९१. अप्रत्याख्यानी क्रोध १, आनुपूर्वी ४, देवगति १, देवायु १, नरकगति १, नरकायु १, वैक्रिय द्विक २, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, ए १४ विना देश विरतिए ८१. तिर्यचगति १, तिर्यंचायु १, उद्योत १, नीचगोत्र १, प्रत्याख्यानी क्रोध १, ए ५ काढीने आहारक द्विक भळे त्यारे प्रमत्ते ७८. स्त्यानर्द्धि त्रिक ३, आहारकद्विक २, ए ५ विना अप्रमत्ते ७३. सम्यक्त्व मोहनी १, अंत्य संघयण ३, ए ४ विना अपूर्वे ६९. हास्यादि ६ विना अनिवृत्तिए ६३. २३-२४-२५ मान, माया अने लोभ मार्गणाए-पण एज प्रमाणे उदय कहेवो, पोते सिवाय अन्य कषाय १२ विना समजवो. लोभ मार्गणाए दशमे गुणस्थाने ३ " वेद टळे त्यारे ६०. २६-२७ मतिज्ञान अने श्रुतज्ञान मार्गणाए-गुणस्थान ९ चोथाथी बारमा सुधी. स्थावर ४, जाति ४, आतप १, अनंतानुबंधी ४, जिननाम १, मिथ्यात्ष १, मिश्र १, ए १६ विना ओघे १०६. आहारक द्विक २ विना अविरतिए १०४. देशविरतिथी ओघनी पेठे ८७-८१-७६-७२-६६-६०-५९-५७, २८ अवधिज्ञाननी मार्गणाए-पण उपर प्रमाणे जाणवू. विशेष एटलं के-तिर्यंचानुपूर्वी विना ओधे १०५. तथा पन्नवणा सूत्रनी वृत्तिने अनुसारे अवधिज्ञानीने तिर्यचानुपूर्वी जणाय छे तेथी १०६. आहारक द्विक २ विना अविरतिए १०३. बाकी मतिज्ञानीनी पेठे जाग. अवधि के विभंग सहित तिर्यंचमां उपजे नहीं ते माटे ए लख्युं छे. ते वक्रगतिनी अपेक्षाए जाणवू. अने ऋजु गतिनी अपे क्षाए तिर्यंचमां उपजे छे. ____२९ मनःपर्यवज्ञाननी मार्गणाए–प्रमत्तथी मांडीने गुणस्थान ७. ओघे ८१. प्रमत्तादिके८१-७६-७२-६६-६०-५९-५७. ३० केवळज्ञाननी मार्गणाएछल्ला बे गुणस्थान त्यां ओघनी पेठे ४२-१२. ३१-३२ मतिज्ञान तथा श्रुतअज्ञाननी मार्गणाए-गुणस्थान ३. आहारक द्विक २, जिननाम १, सम्यक्त्व १, ए ४ विना ओघे ११८, सासादने १११, मिश्रे १००, ओघनी पेठे. . Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२] ३३ विभंगज्ञाननी मार्गणाए-गुणस्थान ३. आहारक द्विक २, जिननाम १, सम्यक्त्व १, स्थावर चतुष्क ४, जातिचतुष्क ४, आतप १, नरतियंचानुपूर्वी २, ए विना ओघे १०७ (मनुष्यने तिर्यंचमां उपजतां वाटे विभंगज्ञान न होय ए वक्रगतिनी अपेक्षाए लख्यु छे. पण ऋजुगतिनी अपेक्षाए नरने तिर्यचमां उपजतां वाटे विभंग होय. चन्नवणामांथी विशेष पद तथा कायस्थिति पदने अनुसारे लख्युं छे, तेथी विभंगज्ञाने ओघे १०९) मिश्र विना मिथ्यात्वे १०९, बे अनुपूर्वी न गणीए तो १०६. मिथ्यात्व १. नरकानुपूर्वी १, ए विना सास्वादने ३०६ अनंतानुबधी ४, देवानुपूर्वी १, ए ५ विना अने मिश्र भळे त्यारे मिश्रे १००. पक्षे (अथवा) अनंतानुबंधी ४, नर १, तिर्यंच १, देव १, ए ३. अनुपूर्वी, एवं ७ विना अने मिश्र भळे त्यारे मिश्रे १००. ३४-३५ सामायिक तथा छैदोपस्थापनीय—ए बे चारित्रनी मार्गणाए गुणस्थान ४. - प्रमत्तथी. त्यां ओघनी पेठे ८१, ७६, ७२, ६६. ३६ परिहारविशुद्धि मार्गणाए--गुणस्थान २ छटुं अने सातमुं. त्यां ८१ मांहेथी आहारकद्विक २, स्त्रीवेद १, संघयण ५, ए ८ विना ओघे तथा प्रमत्ते ७३, अथवा संघयण ५ गणीए त्यारे ७८. (ए चौदपूर्वी न होय माटे आहारकद्विक नहीं, अने स्त्रीवेदी पण न होय अने वज्रऋषभनाराच संघयण होय, ते माटे ऋषभनाराचादि पांचनी ना कही. तथा कोइक आचार्य ते ५ संघयण पण कहे छे, ए विचारवानुं छे. ) स्त्यानचित्रिक ३ टळे त्यारे अप्रमत्ते ७६. ३७ मूक्ष्मसंपराय मार्गणाए-गुणस्थान १ दशमुं. अहीं ६० नो उदय ओघनी पेठे. ३८ यथाख्यात मार्गणाए-गुणस्थान ४ छेल्लां. त्यां जिननाम सहित ओघे ६०, जिननाम विना उपशांतमोहे ५९, संघयण २ विना क्षीणभोहे ५७, निद्रादुग २ विना छेल्ले समये ५५, सयोगीए ४२, अयोगीए १२. ३९ देशविरतिनी मार्गणाए--गुणस्थान १ पांचमुं. त्यां ८७ नो उदय ओधनी पेठे. ४० अविरतिनी मार्गणाए-गुणस्थान ४. त्यां जिननाम १, आहारकद्विक २, ए ३ विना ओघे ११९. सम्यक्त्व १, मिश्र १, ए २ विना मिथ्यात्वे ११७. सूक्ष्मत्रिक ३, आतप १, मिथ्यात्व १, नरकानुपूर्वी १ ए ६ विना सास्वादने १११ अनंतानुबंधी ४, स्थावर १, जाति ४, अनुपूर्वी ३, ए १२ विना मिश्र भळवाथी मिश्र गुणस्थाने १००. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२३] अनुपूर्वी ४, सम्यक्त्व १, ए ५ भळे अने मिश्र काढीए त्यारे अविरतिए १०४. ४१ चक्षुर्दर्शननी मार्गणाए-गुणस्थान १२. त्यां जाति ३, स्थावर चतुष्क ४, जिननाम १, आतप १, अनुपूर्वी ४, ए १३ विना ओघे १०९. आहारकद्विक २, सम्यक्त्व १, मिश्र १, ए ४ विना मिथ्यात्वे १०५. मिथ्यात्व विना सास्वादने १०४. अनंतानुबंधी ४, चतुरिंद्रिय जाति १, ए पांच विना अने मिश्र भळे त्यारे मिश्रे १००. मिश्र काढी सम्यक्त्व भळे त्यारे अविरतिए १०० . अप्रत्याख्यानी ४, वैक्रियद्विक २, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, देवगति १, देवायु १, नरकगति १, नरकायु १, ए १३ विना देशविरतिए ८७. पछी ओघनी पेठे जाणवू. ४२ अचक्षुर्दर्शननी मार्गणाए-गुणस्थान १२. जिननाम विना ओधे १२१. आहारकद्विक २, सम्यकत्व १, मिश्र १, ए ४ विना मिथ्यात्वे ११७. पछी ओघनी पेठे १११, १००, १०४, ८७, ८१, ७६, ७२, ६६, ६०, ४३ अवधिदर्शननी मार्गणाए-गुणस्थान ९, चोथाथी बारमा सुधी. सिद्धांते विभंगने पण अवधिदर्शन कयुं छे, ते रीते तो पहेलां त्रण गुणस्थान पण होय. पण अहीं कर्मग्रंथे विभंगने अवधिदर्शन नथी का तेथी अवधिज्ञानीनी पेठे ओघे १०६. तिथंचानुपूर्वी विना. अविरतिए १७३, आहारकद्विक विना. पछी ओपनी पेठे, पन्नवणानी अपेक्षाए तियंचानुपूर्वी होय त्यारे ओघे १०६ समजवी. इत्यादि. ४४ केवळदर्शननी मार्गणाए-छेल्लां गुणस्थान २, त्यां ४२ अने १२ नो उदय होय. ४५-४६-४७ कृष्ण, नील अने कापोत लेश्यानी मार्गणाए-गुणस्थान ६. त्यां जिननाम विना ओघे १२१, तथा पहेली त्रण लेश्याए चार गुणस्थाननी अपेक्षाए आहारक द्विक विना ओघे ११९. मिथ्यात्वादिके ११७, ११, १००, २४ ८७, ८१, ओवनी पेठे समजवु, ४८ तेजोलेश्यानी मार्गणाए--गुणस्थान ७.. त्यां सूक्ष्मत्रिक ३, विकलेंद्रिय ३, नरकत्रिक ३, आतप १, जिननाम १, ए ११ विना ओघे १११. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२४] आहारकद्विक २, सम्यक्त्व १, मिश्र १, ए ४ विना मिथ्यात्वे १०७. मिथ्यात्व विना सास्वादने १०६. अनंतानुबंधी. ४, स्थावर १, एकेंद्रिय १, अनुपूर्वी ३, ए ९ विना अने मिश्र भळे त्यारे मिश्र गुणस्थाने ९८. अनुपूर्वी ३ भळे अने मिश्र काढीए तथा सम्यक्त्व नाखीए त्यारे अविरतिए १०१ अप्रत्याख्यानी ४, अनुपूर्वी ३, वैक्रियद्विक २, देवगति १, देवायु १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, ए १४ विना देशविरतिए ८७. प्रमत्ते ८१, अप्रमत्ते ७६. ४९ पद्मलेश्यानी मार्गणाए-गुणस्थान ७. त्यां स्थावर ४, जाति ४, नरकत्रिक ३, जिननाम १, आतप १, ए १३ विना ओघे १०९. आहारकद्विक २, सम्यक्त्व १, मिश्र १, ए ४ विना मिथ्यात्वे १०५. मिथ्यात्व विना सास्वादने १०४. अनंतानुबंधी ४, अनुपूर्वी ३, ए ७ विना अने मिश्र भळे त्यारे मिश्रे ९८. अनुपूर्वी ३, सम्यक्त्व १, ए ४ भेळवीने मिश्र काढतां अविरतिए १०१. अप्रत्याख्यानी ४, अनुपूर्वी ३, देवगति १, देवायु १, वैक्रियद्विक २, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, ए १४ विना देशविरतिए ८७. प्रमत्ते ८१. अप्रमत्ते ७६. ५० शुक्ललेश्यानी मार्गणाए-गुणस्थान १३. त्यां स्थावर चतुष्क ४, जाति ४, नरकत्रिक ३, आतप १, ए १२ विना ओघे ११० आहारकद्विक २, सम्यक्त्व १, मिश्र १, जिननाम १ ए५ विना मिथ्यात्वे १०५. मिथ्यात्व विना सास्वादने १०४. अनंतानुबंधी ४, अनुपूर्वी ३, ए ७ काढीने मिश्र भेळवीए त्यारे मिश्रे ९८. अविरतिए १०१, देशविरतिए ८७, त्यार पछी ओधनी पेठे. ५१ भव्य मार्गणाए-गुणस्थान १४, ओघे १२२, मिथ्यात्वे ११७ इत्यादि ओवनी पेठे. ५२ अभव्य मार्गणाए-गुणस्थान १. सम्यक्त्व १, मिश्र १, जिननाम १, आहारकद्विक २, ए ५ दिना ओ तथा मिथ्यात्वे ११७. ५३ उपशम समकितनी मागणाए-गुणस्थान ८ चोथाथी अग्यारमा सुधी. त्यां स्थावरचतुष्क ४, जाति ४, अनंतानुबंधी ४, सम्यक्त्व मोहनी १, मिश्र मोहनी १, मिथ्यात्व १, जिननाम १, आहारकद्विक २, आतप १, अनुपूर्वी ४, ए २३ विना ओघे ९९. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२५] अविरतिए पण ९९, तथा उपशम समकिती मरीने अनुत्तर विमाने जाय, त्यां वाटे वहेतां चोथे गुणस्थाने कोइकने देवानुपूर्वीनो उदय होय, ते अपेक्षाए ओवे १०० तथा अविरतिए पण १००. अप्रत्याख्यानी ४, देवगति १, देवायु १, नरकगति १, नरकायु १, वैकियद्विक २, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, देवानुपूर्वी १, ए १४ विना देश विरतिए ८६, समकित नांखीए त्यारे ८७. तिर्यंच गति १, तिर्यच आयु १, नीचगोत्र १, उद्योत १, प्रत्याख्यानी ४, ए ८ विना प्रमचे ७९. स्त्यानद्धित्रिक ३ विना अप्रमत्ते ७६. समकित १, अंत्यसंघयण ३, ए ४ विना अपूर्वे ७२, पछी अनुक्रमे ६६, ६०, ५९. ५४ क्षायिक समकितनी मार्गणाए--गुणस्थान ११, चोथाथी. स्यां जाति ४, स्थावरचतुष्क ४, अनंतानुबंधी ४, आतप १, समंकित १, मिश्र १, मिथ्यात्व १, ऋषभनाराचादि संघयण ५, ए २१ विना ओघे १०१. आहारकद्विक २, जिननाम १, ए ३ विना अविरतिए ९८. अप्रत्याख्यानी ४, वैक्रियाष्टक ८, नरकानुपूर्वी १, तिर्यचत्रिक ३, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, उद्योत १, ए २० विना देशविरतिए ७८.. प्रत्याख्यानी ४, नीचगोत्र १, ए ५ काढीने आहारकद्विक भेळवतां प्रमत्ते ७५. स्त्यानचित्रिक ३, आहारकद्विक २, ए ५ विना अप्रमत्ते ७०. अपूर्वे पण ७०. हास्यादि ६ विना अनिवृत्तिए ६४. वेद ३, संज्वलन ३ ए ६ विना सूक्ष्मसंपराये ५८. संज्वलन लोभ विना उपशांत मोहे ५७.. क्षीण मोहे पण ५७. बे निद्रा विना क्षीणमोहने चरम समये ५५. सयोगिए ४२. अयोगिए १२. ५५ क्षायोपशमिकनी मार्गणाए-गुणस्थान ४ चोथाथी सातमा सुधी. मिथ्यात्व १, मिश्र १, जिननाम १, जाति ४, स्थावर चतुष्क ४, आतप १, अनंतानुबंधी ४, ए १६ विना ओघे १०६. आहारकद्विक विना अविरतिए १०४, Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - देशविरतिए ८७. प्रमत्ते ८१. अप्रमत्ते ७६. ओवनी पेठे.... ५६ मिश्र मार्गणाए--गुणस्थान १ त्रीजुं. उदय १०० नो. . ५७ सास्वादन मार्गणाए-गुणस्थान १ बीजुं. १११ नो उदय. ५८ मिथ्यात्व मार्गणाए-गुणस्थान १ पहेलं. .. त्यां आहारकद्विक २, जिननाम १, सम्यक्त्व १, मिश्र १, ए ५ विना ११७. ५९ संज्ञी मार्गणाएगुणस्थान १४. अथवा १२. ..त्यां स्थावर १, सूक्ष्म १, साधारण १, आतप १, जाति ४, ए ८ विना ओधे ११४. अने गुणस्थान १२ लइए तो जिननाम विना ११३ आहारकद्विक २, सम्यक्त्व १, मिश्र १, ए ४ विना मिथ्यात्वे १०९. :: * अपर्याप्त १, मिथ्यात्व १, नरकानुपूर्वी १, ए ३ विना सास्वादने १०६. अनंतानुबंधी ४, आनुपूर्वी ३, ए ७ विना ने मिश्र भळे त्यारे मिश्रे १००. त्यारपछी ओघनी पेठे जाणवू. ६० असंझी मार्गणाए-गुणस्थान २. त्यां वैक्रियाष्टक ८, जिननाम १, आहारकाद्विक २, सम्यक्त्व १, मिश्र १. संघयण ५, संस्थान ५, सुभग १, आदेय १, शुभ विहायोगति १, उच्च गोत्र ...... १, स्त्रीपुंवेद २, ए २९ विना ओघे तथा मिथ्यात्वे ९३. सूक्ष्मत्रिक ३, आतप १, उद्योत १, मनुष्यत्रिक ३, मिथ्यात्व १, पराघात ..... १, उच्चास १, सुस्वर १, दुःस्वर १, अशुभ विहायोगति १, ए १४ विना सास्वादने ७९. ६१ आहारीनी मार्गणाए-गुणस्थान १३ त्यां अनुपूर्वी ४ विना ओघे ११८. आहारकद्विक २, जिननाम १, सम्यक्त्व मोहनी १, मिश्र भोहनी १, ए ५ विना मिथ्यात्वे ११३. सूक्ष्मत्रिक ३, आतप १, मिथ्यात्व १, ए ५ विना सास्वादने १०८. अनंतानुबंधी ४, स्थावर १, जाति ४, ए ९ विना अने मिश्र भळे त्यारे भिश्रे १००. मिश्र काढी सभकित भळे त्यारे अविरतिए १००... अप्रत्याख्यानी ४, वेक्रियद्विक २, देवगति १, देवायु १, नरकगति १, नर...कायु १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, ए. १३ विना देशविरतिए ८७. त्यारपछी ओपनी पेठे जाणQ.. ६२ अनाहारी मार्गणाए-गुणस्थान ५ पहेलं, बीजूं, चोथु, तेरमुं अने चौदमुं. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२७] त्या औदारिकद्विक २, वैक्रियद्विक २, आहारकद्विक २, संवयण ६, संस्थान ६, विहायोगति २, उपवात १, परावात १, उच्छ्वास १, आतप १; उद्योत १, प्रत्येक १, साधारण १, सुस्वर १, दुःस्वर १, मिश्रमोहनी १, निद्रा ५, ए ३५ विना ओघे ८७. जिननाम १, सम्यक्त्व १, ए २ विना मिथ्यात्वे ८५. सूक्ष्म १, अपर्याप्त १, मिथ्यात्व १, नरकत्रिक ३, ए ६ विना सास्वादने ७९. (मिश्र अनाहारीने होय नहीं) अनंतानुबंधी ४, स्थावर १, जाति ४, ए ९ विना अने सम्यक्त्व मोहनी १, नरकत्रिक ३, ए ४ भळे त्यारे अविरतिए ७४. वर्णादि ४, तैजस १, कार्मण १, अगुरुलघु १, निर्माण १, स्थिर १, अस्थिर १, शुभ १, अशुभ १, मनुष्यगति १, पंचेंद्रियजाति १, जिननाम १, सत्रिक ३, सुभग १, आदेय १, यश १, मनुष्यायु १, वेदनी २, उचगोत्र १, ए २५ तेरमे सयोगी गुणस्थाने केवळी समुद्घातवेळा त्रीजे, चोथे अने पांचमे समये अनाहारीने उदये होय. त्रसत्रिक ३, मनुष्यगति १, मनुष्यायु १, उच्च गोत्र १, जिननाम १, बेमांथी एक वेदनी १, सुभग १, आदेय १, यश १, पंचेंद्रिय जाति १, ए १२ चौदमे गुणस्थाने उदये होय. अहीं उदयने विषे उत्तर चैक्रियनी विवक्षा करी नथी. अपर्याप्ता ते लब्धि अपर्याप्ता विवक्ष्या छे, पण करण विवक्ष्या नथी. तथा सिद्धांतमां पृथ्वी, अप अने वनस्पति मांहे सास्वादन कहुं नथी. सास्वादनीने मतिश्रुत ज्ञानी कह्या छ. विभंगने अवधिदर्शन कयुं छे. वैक्रिय आहारके औदारिक मिश्र कह्यु छे. कर्मग्रंथे आटला बोल कह्या नथी, ते माटे अहीं पण कह्या नथी. आ उदयना विचारने विषे जे कोइ बोलमां फेरफार होय, ते डाह्या पंडिते विचारी शास्त्रनो अभिप्राय जोइ शुद्ध करवो इति ६२ मार्गणाए १४ गुणस्थान तथा उदयनी १२२ प्रकृतिनुं संक्षिप्त विवरण. (षडशीत्यादि कर्मग्रंथगत विचार.) जीव १ गइ २ इंदि ३ काए ४ जोए ५ वेए ६ कसाय ७ लेसाय ८।। सम्मत्त ९ नाण १० देसण ११ संजय १२ उवओग १३ आहारे १४॥ १॥.... मासग १५ परित्त १६ पजत्त १७ सुहुम १८ सन्नी १९ य होई भव २० चरिमे २१ एएसि तु पयाणं, वासहीओ होइ नायव्वो ॥२॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२८] १ समुच्चय जीवमा जीवथान १४ गुणस्थान १४ योग १५ पयोग . लेश्य १२६ Wr २ नारकीमां " r 2002 "mar . cccc ur ur ur 0 ३ तिर्यचमा १४ ५ १३ ९ ६ ४ तिर्यचनी स्वीमां ५ मनुष्यमां. ३ १४ १५ १२६ ६ मनुष्यनी स्त्रीमा ७ देवमां ८ देवीमा ९ सिद्धमा सर्वथी थोडी मनुष्यनी स्त्री १ । तेथी मनुष्य असंख्यात गुणा २। तेथी नारकी असंख्यात गुणा ३॥ तेथी तिर्यंचनी स्त्री असंख्यात गुणी ४। तेथी देवता असंख्यात गुणा ५। तेथी देवी संख्यात गुणी ६। तेथी सिद्ध अनंत गुणा ७। तेथी तिर्यंचे अनंत गुणा ८॥ जीव थान गुणस्थान योग उपयोग लेश्या १० सेंद्रिय १४ १२ १५ १०६ ११ एकेंद्रियमा ४ ३ ५ ३४ १२ वींद्रियमां २ २ ४ ३ १३ त्रींद्रियमा २ २ ४५ ३ १४ चतुरिंद्रियमा २ २४६३ १५ पंचेंद्रियमा ४ १२ १५ १०६ १६ अनिंद्रियमों . सर्वथी थोडापंचेंद्रिय १ । तेथी चतुरिंद्रिय विशेषाधिक २ । तेथी त्रींद्रिय विशेषाधिक ३। तेथी द्वींद्रिय विशेषाधिक ४। तेथी अनिद्रिय अनंतगुणा ५। तेथी एकेंद्रिय अनंतगुणा ६। तेथी सेंद्रिय विशेषाधिक ७॥ जवस्थान गुणस्थान गेग उपयोग लेइया १७ सकायिकमां १४ १४ १५ १२ ६ १८ पृथ्वीकायिकमा ४ १९ अपकायिकमां ४ २० तेजस्कायिकमां४ १ ३ . ३ ३ २१ वायुकायिकमां ४ १ ५ . ३ ३ मसि भेळवतां. २ एकेंद्रिय भेळवतां . ३ केवळी सिवाय ४ केवळी सिवाय ५ केरळी ع ع م م م aw ar ar م م Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ms. c موم شد مہ [२९] २२ वनस्पतिकायिकयां ४ ३ ३ ३ ४ २३ त्रसकायिकमां १० १४ १५ १२६. २४ अकायिकमां सर्वथी थोडा त्रसकायिक १। तेथी तेजस्कायिक असंख्यात गुणा २। तेथी थ्वीकायिक विशेषाधिक ३ । तेथी अपकायिक विशेषाधिक ४ । तेथी वायुकायिक वेशेषाधिक ५। तेथी अकायिक अनंतगुणा ६ । तेथी बनस्पतिकायिक अनंतगुणा ७॥ थी सकायिक विशेषाधिक ८॥ जीवस्थान गुणस्थान उपयोय योग लेश्या २५ सयोगीमां १४ १३ १५ .१२६ २६ मनोयोगीमां ३ १३ १३ १२६ २७ वचनयोगीमां २८ काययोगीमां २९ अयोगीमां सर्वथी थोडा मनोयोगी १। तेथी वचनयोगी असंख्यात गुणा २। तेथी अयोगी अनंतगुणा ३। तेथी काययोगी अनंतगुणा ४। तेथी सयोगी विशेषाधिक ५॥ जीवस्थान गुणस्थान उपयोग योग लेश्या ३० सवेदीमां १४ ____९ १५ १२२ ६ ३१ स्त्रीवेदीमां ३२ पुरुषवेदीमां १५ १२६ ३३ नपुंसकवेदीमा १४ । ३४ अवेदीमां सर्वथी थोडा पुरुषवेदी १। तेथी स्त्रीवेदी संख्यातगुणा २ । तेथी अवेदी अनंतगुणा ३। तेथी नपुंसकवेदी अनंतगुणा ४ । तेथी सवेदी विशेषाधिक ५॥ जीवस्थान गुणस्थान योग उपयोग लेश्या ३५ सकषायीमां ३६ क्रोधकषायीमां ३७ मानकषायीमां ३८ मायाकषायीमां ३९ लोभकषायीमा १४ १० १५ १०६ ४० अकषायीमां १. भाववेदनी कपेक्षाए. २ द्रव्यवेदनी अपेक्षाए. ३ आकृतिनी अपेक्षाए. wr wrur w w cccc wc * * * * w w on Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ •vi 6 6 km xn ::::: • सर्वथी थोडा अकषायी १ । तेथी मानकषायी अनंतगुणा २। तेथी क्रोधकषायी विशेषाधिक ३ । तेथी मायाकषायी विशेषाधिक ४ । तेथी लोभकपायी विशेषाधिक ५। तेथी सकषायी विशेषाधिक ६॥ ... जीवस्थान गुणस्थान योग उपयोग लेश्या ४१ सलेश्यामा १४ १३, १५ १२६ . . : ४२. कृष्णलेश्यामां १४ १५ ४३ नीललेश्यामां ४४ कापोतलेश्यामा ४५ तेजोलेश्यामा ४६ पमलेश्याम :४७ शुक्लले श्यामां ४८ अलेश्यामा सर्वथी थोडा शुक्ललेश्यी १ । तेथी पद्मलेश्यी संख्यातगुणा २। तेथीं तेजोलेश्यी संख्यातगुणा ३ तेथी अलेश्यी अनंतगुणा ४ । तेथी कापोतलेश्यी अनंतगुणा ५। तेथी नीललेश्मी विशेषाधिक ७ । तेथी कृष्णलेश्यी विशेषाधिक ७ । तेथी सलेश्यी विशेषाधिक ८॥ जीवस्थान गुणस्थान योग उपयोग लेश्या ४९ सम्यक्त्वमा ५० उपशमसम्यक्त्वमा ' ५१ क्षायिक सम्यक्त्वमां .. ५२ क्षायोपशमसम्यक्त्वमा २ । ५३ सास्वादनसम्यक्त्वमां . ७ . ५४ मिश्रदृष्टिमां. १ १ ५५ मिथ्या दृष्टिमां .. १४ .१. १३. ५ ६ सर्वथी सास्वादन सम्यक्त्ववंत थोडा १ । तेथी उपशमसम्यक्त्ववंत संख्यातगुणा २। तेथी मिश्रदृष्टि संख्यातगुणा ३ । तेथी क्षायोपशमसम्यक्त्ववंत संख्यातगुणा ४ । तेथी क्षायिकसम्यक्त्ववंत अनंतगुणा ५ । तेथी सम्यक्त्ववंत विशेषाधिक ६ [ तेथी मिथ्यादृष्टि अनंतगुणा ७॥ ' जीवस्थान गुणस्थान योग उपयोग लेश्या ५६ संज्ञानीमां . १२ १५ ९ ६ . ५७ · मतिज्ञानीमां ५८ श्रुतज्ञानीमां M wr ur R .M ur wrur wr M.imum om Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ rom Mmm ५९ अवधिज्ञानीमां . २... ९ .१५ ............. ६० मनःपर्यवज्ञानीमा १ ७ १३ ७- ६ ६१ केवलज्ञानीमा ६२ समुच्चये अज्ञानीमा सोमनानीमा १४३ १४ १३ ६३ मति अज्ञानीमां • ६४ श्रुत अज्ञानीमां १४, ३१३६ ६५ विभंग ज्ञानीमा २ १३५६. सर्वथी थोडा मनःपर्यवज्ञानी १ । तेथी अवधिज्ञानी असंख्यातगुणा २॥ तेथी पतिश्रुतज्ञानी मांहोमांहो तुल्य अने तेथी विशेषाधिक ३ तेथी विभंगज्ञानी असंख्यातगुणा ४ । तेथी केवलज्ञानी अनंतगुणा ५ । तेथी सज्ञानी विशेषाधिक ६। तेथी मतिश्रुत अज्ञानी माहोमांहे तुल्य अने तेथी अनंतगुणा ७ तेथी समुच्चये अज्ञानी विशेषाधिक जाणवा ८॥ जीवस्थान गुणस्थान योग उपयोग लेश्या ६६ चक्षुर्दर्शनीमा १२ १३ १०६ ६७ अचक्षुर्दर्शनीमां १४ १२. . १५.. .१०. ६ .६८ अवधिदर्शनीमां. २ . ९ १५ ७ ६ - ६९ केवलदर्शनीमां . १ र २ ७ . २ १ सर्वथी थोडा अवधिदर्शनी १ । तेथी चक्षुर्दर्शनी असंख्यातगुणा २ । तेथी केवलदर्शनी अनंतगुणा ३ । तेथी जचक्षुदर्शनी अनंतगुणा ४ ॥.... जीवस्थान गुणस्थान योग उपयोग लेश्या ७० संयतमां.. १.. ९ . १५ .. ७१ सामायिक चारित्रमा १ ४ १३ । .. ७. ७२ छेदोपस्थापनीयमां ७३ परिहारविशुद्धिमां ७४ सूक्ष्मसंपरायमां ७५. यथाख्यातमां. . १ ७६ देशविरतिमा १ ७७ अविरतिमां ७८ नोसंयत नोअसंयत नो संयतासंयतमां . . . ........२ . सर्वथी थोडा सूक्ष्मसंपरायी १। तेथी परिहार विशुद्धिक संख्यातगुणा २ । तेथी - w w w w 9999u.. one of w w Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३२] थाख्याती संख्यातगुणा ३ | तेथी छेदोपस्थापनीय संख्यातगुणा ४ | तेथी सामायिक चाrat संख्यातगुणा ५ | तेथी संयत विशेषाधिक ६ । तेथी संयतासंयत असंख्यातगुणा ७ | तेथी नोसंयत नोअसंयत नोसंयतासंयत अनंतगुणा ८ | तेथी असंयत अनंतगुणा ९ । जीवस्थान गुणस्थान योग उपयोग लेश्या १४ १४ १५ १४ १४ १५ ७९ साकारोपयुक्तमा ८० अनाकारोपयुक्तमां सर्वथी थोडा अनाकारोपयुक्त १ | तेथी साकारोपयुक्त संख्यातगुणा २ ॥ जीवस्थान गुणस्थान योग १४ ८१ आहारकमां ८२ अनाहारकमां ८३ भाषकमां अभाषकमां ८४ सर्वथी थोडा अनाहारक १ | तेथी आहारक असंख्यातगुणा २ ॥ जीवस्थान गुणस्थान योग ५ १३ १३ सर्व थोडा भाषक १ | तेथी अभाषक अनंतगुणा २ ॥ ८५ परित्तमां अपरित्तमां ८६ ८७ नोपरित नोअपरित्तमां ८ १४ १४ ० ९१ सूक्ष्ममां ९२ बादरमां ९३ नोसूक्ष्म नोबादरमां उपयोग लेश्या १३ १५ १२ ६ १०. जीवस्थान गुणस्थान योग १४ १५ १ १३ १२ ६ १२ ६ उपयोग लेश्या १२ ६. १० उपयोग लेश्या १२ ६ सर्वथी थोडा परित १ | तेथी नोपरित नोअपरित अनंतगुणा २ | तेथी अपरित अनंतगुणा ३ ॥ परित एटले अल्प संसारी, अपरित्त - बहुलसंसारी, नोपरित नोअपरित ते सिद्ध जाणवा ॥ जीवस्थान गुणस्थान योग उपयोग लेश्या १४ १५ १२ ७ ६ ८८ पर्याप्तामां ८९ अपर्याप्तामां ९० नोपर्याप्त नोअपर्याप्तामां सर्वथा थोडा नीपर्याप्ता नोअपर्याप्ता १ | तेथी अपर्याप्ता अनंतगुणा २ | तेथी पर्याप्ता ० ० ० संख्यातगुणा ३ ॥ जीवस्थान गुणस्थान योग उपयोय लेश्या २ १ ३ ३ १२ १४ १२ m wo ३ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३३] सर्वथी थोडा नोसूक्ष्म नोबादर १ | तेथी बादर अनंतगुणा २ | तेथी सूक्ष्म असंख्यातगुणा ३ ॥ असंयोगी भांगा ६ गुणस्थान ९४ संज्ञीमां १२ ६ ९५ असंज्ञीमां २ ४ ९६. नोसंज्ञी नोअसंझीनां २ १ सर्वथी थोडा संज्ञी १ । तेथी नोसंज्ञी नोअसंज्ञी अनंतगुणा २ | तेथी असंज्ञी अनंतगुणा ३ ॥ १ पृथ्वी. २ अप्. ३ तेज. ४ वायु. ५ वनस्पति, ६ त्रस. द्विक संयोगी भांगा १५. जीवस्थान २ १२ १ जीवम्थान गुणस्थान १४ १४ ९७ भव्ययां ९८ अभव्यमां १४ १ सर्वथी थोड़ा अभव्य १ | तेथी भव्य अनंतगुणा २ ॥ जवस्थान गुणस्थान योग १४ १४ १५ ९९ चरिममां १०० अचरिममां १४ १ १३ सर्वथी थोडा अचरिम १ | तेथी चरिम अनंतगुणा २ || चरिम शब्दे समकित पामेला अने अचरम शब्दे समकित नहीं पामेला एम व्याख्या होय तो आ यंत्र घटी शके छे. ते सिवाय बीजी अपेक्षा समजाती नथी. चोथा कर्मप्रयमांना भांगा. १ पृथ्वी अप्. २ पृथ्वी तेज. योग उपयोग १० १५ १२ ३ पृथ्वी वायु. ४ पृथ्वी वनस्पति. योग उपयोग १५ १२ १३ ५ पृथ्वी त्रस. ६ अप् तेज. ७ अप् वायु. ८ अप् वनस्पति. ९ अप् स. १० तेज वायु ११ तेज वनस्पति. १२ तेज त्रस. १३ वायु वनस्पति. ले १४ वायु स. १५ वनस्पति त्रस उपयोग १२ लेश्या ६. लेश्या w w Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३४] त्रिक संयोगी भांगा २०. . २ पृथ्वी अप तेज वनस्पति... १ पृथ्वी अप तेज. ३ पृथ्वी अप तेज त्रस.. २ पृथ्वी अप् वायु. ४ पृथ्वी अप वायु वनस्पति. - ३ पृथ्वी अप वनस्पति. ५ पृथ्वी अप् वायु त्रस. ४ पृथ्वी अप त्रस. ६ पृथ्वी अप् वनस्पति त्रस. ५ पृथ्वी तेज वायु. ७ पृथ्वी तेज वायु वनस्पति. ६ पृथ्वी तेज वनस्पति. ८ पृथ्वी तेज वायु त्रस. ७ पृथ्वी तेज त्रस. ९ पृथ्वी तेज वनस्पति त्रस. ८ पृथ्वी वायु वनस्पति. . १० पृथ्वी वायु वनस्पति त्रस. ९ पृथ्वी वायु त्रस. ११ अप तेज वायु वनस्पति. . १. पृथ्वी वनस्पति त्रस. १२ अप् तेज वायु त्रस. ११ अप तेज वायु. १३ अप् तेज वनस्पति त्रस. १२ अप् तेज वनस्पति. १४ अप वायु वनस्पति त्रस. १३ अप् तेज त्रस. १५ तेज वायु वनस्पति त्रस. १४ अप् वायु वनस्पति. पंचसंयोगी भांगा ६. १५ अप वायु त्रस. ... १ पृथ्वी अप तेज वायु वनस्पति. १६ अप् वनस्पति त्रस. २ पृथ्वी अप् तेज वायु त्रसः . १७ तेज वायु वनस्पति. ४ पृथ्वी अप तेज वनस्पति त्रस.. १८ तेज वायु त्रस. ४ पृथ्वी अप् वायु वनस्पति त्रस.. १९ तेज वनस्पति त्रस. ५ पृथ्वी तेज वायु वनस्पति त्रस. २० वायु वनस्पति त्रस. ६ अप् तेज वायु वनस्पति त्रस. चतुःसंयोगी भांगा १५. षट् संयोगी भांगो १.. १ पृथ्वी अप् तेज वायु. १ पृथ्वी अप तेज वायु वनस्पति त्रस. चोथा कर्मग्रंथना भांगा. १ एक जीवने एक समये मिथ्यात्वे जघन्य पदे--१० बंध हेतु होय. ते आ रीते. पांच मिथ्यात्वमाथी १ मिथ्यात्व. पांच इंद्रियोमाथी १ इंद्रिय. छ कायनावधमांथी १ कायनो बध. त्रण वेदमांथी १ वेद. वे युगलमांथी १ युगल. युगलनी बे प्रकृति. Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३५] चार कषायमांथी ३ कषाय. अनंतानुबंधी विना. दश योगमांथी १ योग. आहारक द्विक २, औदारिक मिश्र १, वैक्रिय . मिश्र १, कार्मण काय योग १, ए ५ विना योग १० समजवा. हवे जघन्ये मूळ १० बंध हेतुना भांगा कहे छे. ५ मिथ्यात्वने. ६ कायवध साथे गुणवा. ५ इंद्रियो साथे गुणवा. १५० . २ हास्य रति के शोक अरति साथे गुणवा. ३०० . __३ वेद साथे गुणवा. ४ कषाय साथे गुणवा. ३६०० १० योग साथे गुणवा. ३६००० आ दश बंध हेतुना भांगा थया. आ एक कायवधना भांगा थया. हवे उत्तर भेदे १८ बंधहेतु उत्कृष्टथी होय, ते कहे छे--१०-११-१२-१३ १४-१५-१६-१७-१८-ए रीते दश आदि लईने अढार सुधी बंधहेतु कहेवा. हवे एक कायना वधमां पूर्वे कहेला दश बंध हेतुमां भय के जुगुप्सा के अनं तानुबंधी एक कषाय, एम एक एक भेळवतां ११ बंध हेतु थाय. पूर्वना १० बंध हेतुमां भय नांखतां ११ तेना भांगा ३६०००. पूर्वना १० बंध हेतुमां जुगुप्सा नांखतां ११ तेना भांगा ३६०००. पूर्वना १० बंध हेतुमां अनंतानुबंधी १ नाखतां ११ तेना भांगा ३६०० ने आहारक द्विक विना १३ योगे गुणतां ४६८०० भांगा थाय. ज्यारे बे कायना बधनी विवक्षा करीए, त्यारे द्विक संयोगी १५ भांगा थाय, तेने पूर्वोक्त रीते गुणीए त्यारे ११ बंध हेतुना ९०००० भांगा थाय. ते आ प्रमाणे Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्विक संयोगी १५ भांगाने ५ मिथ्यात्व साथे गुणतां ७५.. तेने ५ इंद्रिये गुणतां ३७५. तेने १ युगल एटले बे वडे गुणतां ७५०. तेने ३ वेद साथे गुणतां २२५०. तेने ४ कषाय साथे गुणतां ९०००. तेने १० योग साथे गुणतां ९०००० भांगा थाय. कुल ३६००० १ ला विकल्पना. ३६००० २ जा विकल्पना. ४६८०० ३ जा विकल्पना. ९०००० ४ था विकल्पना. २०८८०० भांगा अगीआर बंधहेतुना चार विकल्पो मळीने थया. पूर्वोक्त १० मध्ये भय अने जुगुप्सा ए २ नांखीए त्यारे १२ बंधहेतु थाय त्यां एक कायनो वध लेखवतां पूर्वनी पेठे ३६०००. पूर्वोक्त १० मध्ये एकने बदले बे काय ने भय मेळवतां तेना भांगा ९००००. बे काय अने कुत्सा मेळवतां तेना भंग पूर्वनी पेठे ९००००. त्रण कायनो वध लेखवीए त्यारे २० भांगा त्रिक संयोगी छे, तेनी साथे गुणवा. २० भांगाने ५ मिथ्यात्वे गुणतां १००. तेने ५ इंद्रिये गुणतां ५००. तेने २ युगले गुणतां १०००. तेने ३ वेदे गुणतां ३०००. तेने ४ कषाये गुणतां १२०००. तेने १० योगे गुणतां १२००००. अनंतानुबंधी अने भय मेळवीए त्यारे १२ बंधहेतुना भांगा ३६०० ने १३ योग साथे गुणतां ४६८००. अनंतानुबंधी अने कुत्सा भेळवतां पण पूर्वनी जेटला ४६८००. अनंतानुबंधी अने बे कायनो वध लेखवतां द्विक संयोगी १५ भंगना जे ९००० . भंग छे, तेने १३ योग साथे गुणतां ११७०००. ए रीते १२ बंध हेतुना सात विकल्पना मांगा नीचे प्रमाणे । ३६००० पहेला विकल्पना. ४६८०० पांचमा विकल्पना. ... ९०००० बीजा बिकल्पना. ४६८०० छठा विकल्पना ९००००त्रीजा विकल्पना. ११७००० सातमा विकल्पना. १२०००० चोथा विकल्पना. ५४६६०० कुल भांगा थया. Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३७] ed १३ बंधहेतुना भांगा कहे छे. पूर्वोक्त १० मां भय अने कुत्सा तथा एकने बदले वे कायनो वध भेळवतां १३ बंधहेतु थाय. त्यां ९०००० भांगा थाय. भय अने त्रण कायनो वध लेखवीए त्यारे १२०००० भांगा थाय. कुत्सा अने ऋण कायनो वध लेखवीए त्यारे १२०००० भांगा थाय. अनंतानुबंधीने उदये भय अने कुत्सा भेळवीए अने १३ योग साथे गुणीए त्यारे ४६८०० भंग थाय. अनंतानुबंधी, भय अने वे कायनो वध लेखवतां भंग ११७००० थाय. अनंतानुबंधी, कुत्सा अने वे कायनो वध लेखवतां भंग ११७००० थाय. अनंतानुचंधी ने ऋण कायनो वध लेखवीये त्यारे त्रिक संयोगी २० भंग साधे गुणतां भंग १५६००० थाय. २०×५ = १०० १००×५ = ५०० ५००X२ = १००० १००० x ३ = ३००० ३०००x ४ = १२००० १२०००×१३=१५६००० पूर्वोक्त १० साथे ४ कायनो वध लेखवीए त्यारे ९०००० भांगा थाय. आ प्रमाणे १३ बंध हेतुना ८ विकल्पना ८५६८०० भांगा थाय तेनी विगत. ९०००० पहेला विकल्पना. १२०००० बीजा विकल्पना. १२०००० त्रीजा विकल्पनाः ४६८०० चोथा विकल्पना. ११७००० पांचमा विकल्पना. ११७००० छट्ठा विकल्पना. १५६००० सातमा विकल्पना. ९०००० आठमा विकल्पना. १ पूर्वोक्त १० मध्ये भय अने कुत्सा भेळवीए अने एकने बदले ऋण कायनो वध साथे गणी त्यारे १४ बंध हेतु थाय. तेना भांगा १२०००० २ भय ने चार कायने वघे ९०००० ९०००० ३६००० ११७००० ३ कुत्सा अने चार कायने वधे ४ पांच कायना वधे ५ अनंतानुबंधीना उदये भय, कुत्सा अने बे कायने वधे ( १३ योग साथे गुणवा ) ६ अनंतानुबधी, भय अने ऋण कायने वघे ७ अनंतानुबंधी, कुत्सा अने त्रण कायने वधे ८ अनंतानुबंधी ने चार कायने वधे आ प्रमाणे चौद बंध हेतुना ८ विकल्पे थइने भांगा थया १५६००० १५६००० ११७००० ८८२००० Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३८] १ पूर्वोक्त १० मध्ये भय, कुत्सा अने एकने बदले ४ कायनो वध लेखवीए ___ त्यारे १५ बंध हेतु थाय त्यां भांगा २ भय अने ५ कायना वधे ३६००० ३ कुत्सा अने ५ कायना वघे ३६००० ४ छ कायना वधे ५०४३=१५० ५४५=२५ १५०४४६०० २५४२=५० ६००x१०=६००० ५ अनंतानुबंधीने उदय भय, कुत्सा अने त्रण कायनो वध गणीए अने १३ योगे गुणीए त्यारे भांगा ६ अनंतानुबंधी, भय ने चार कायने वधे ११७००० ७ अनंतानुबंधी, कुत्सा ने चार कायने वधे ११७००० ८ अनंतानुबंधी ने पांच कायने वधे ४६८०० आ प्रमाणे पंदर बंध हेतुना ८ विकल्पे थईने भांगा थया. . ६०४८०० १ पूर्वोक्त १० हेतु मध्ये भय, कुत्सा अने एकने बदले पांच कायनो वध लेखवीए त्यारे १६ बंध हेतु थाय. तेना भांगा ३६००० २ भय अने छ कायनो वध लईए. त्यारे ३ कुत्सा अने छ कायनो वध लइए त्यारे ६००० ४ अनंतानुबंधी, भय, कुत्सा अने चार कायना वध साथे गुणतां ११७००० ५ अनंतानुबंधी, भय अने पांच कायना वध साथे गुणतां . ४६८०० ६ अनंतानुबंधी, कुत्सा अने पांच कायना वध साथे गुणतां , ४६८०० ७ अनंतानुबंधी ने छ कायना वध साथे गुणतां ७८०० आ प्रमाणे सोळ हेतुना सात विकल्पे मांगा थया.. - २६६४०० १ पूर्वोक्त १० मध्ये भय, कुत्सा अने एकने बदले छ कायनो वध लईए त्यारे १७ बंध हेतु थाय तेना भांगा २ अनंतानुबंधी, भय, कुत्सा ने पांच कायनो वध लेखवीए त्यारे ४६८०० ३ अनंतानुबंधी, भय अने छ कायना वधे ७८०० ४ अनंतानुबंधी, कुत्सा अने छ कायना वधे ७८०० आ प्रमाणे १७ बंध हेतुना चार विकल्पे भांगा थया.. पूर्वोक्त १० मध्ये अनंतानुबंधी, भय कुत्सा ने एकने बदले छ कायनो वध ... लेखवतां १८ बंधहेतुनो १ विकल्प तेना भांगा ७८०० थाय. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३९] षटकाय संयोगी १ मिथ्यात्व ५ वेद १९ . कषाय ४ इंद्रिय ५ २५ युगल २ योग १३ ७८०० ए रीते मिथ्यात्व गुणस्थाने १० बंध हेतुना भांगा ११ बंध हेतुना भांमा २०८८०० १२ बंध हेतुना भांगा ५४६६०० १३ बंध हेतुना भांमा ८५६८०० · १४ बंध हेतुना भांगा ८८२००० १५ बंध हेतुना भांगा ६०४८०. १६ बंध हेतुना भांगा २६६४०० १७ बंध हेतुना भांगा ६८४०० १८ बंध हेतुना भांगा ७८०० ए रीते मिथ्यात्व गुणस्थाने दशथी मांडीने अटार सुधीरा बंध __ हेतुने नव विकल्पे थईने भांगा थया. ३४७७६०० हवे बीजा सास्वामन गुणस्थाने-मांगा ३८३०४. थाय, ते कहे छे. अहीं जघन्य १० हेतु होय. तेमां मिथ्यात्व न होय. अने अनंतानुबंधीना उदय विना बीजु गुणस्थान न होय. तेथी कषाय ४, वेद १, युगल १, इंद्रियनी अविरति १, कायनो वध १, योग तेरमांथी १, ए १० हेतु जवन्यथी. अने उत्कृष्टथी १७ हेतु-१०-११-१२-१३-१४-१५-१६-१७. आ उत्कृष्ट बंधहेतु एक समये होय. तेना ८ विकल्प होय. विशेष एटलं के नपुंसक वेद वैक्रियमिश्र योग न होय. नारकी अपर्याप्त अवस्थाए सास्वादनी न होय तेथी. ३ वेदने पूर्व प्रमाणे १३ योग साथे गुणतां ३९. तेमांथी एक रूप काढता ३८. तेने छ काय साथे गुणतां २२८. तेने ५ इंद्रिय साथे गुणतां ११४०. तेने १ युगलना २ साणे गुणतां २२८०. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेने ४ कषाय साथै गुणतां ९१२०. बीजागुणस्थानना भांगानी गणतरी नीचे प्रमाणे ६ कायने ५ इंद्रिय साथे गुणतां ३०. तेने १ युगलना बे साथे गुणतां ६०. . तेने ४ कषाये गुणतां २४०. तेने २ वेद साथे गुणतां ४८०. तेने १३ योग साथे गुणतां ६२४०. तथा वेद १ लईए तो ते साथे गुणतां २४०. तेने वैक्रियमिश्र विना योग १२ साथे गुणतां २८८०. पूर्वना ६२४० मा २८८० भेळवमां कुल ९१२० जवन्य दश बंध हेतुना भांगा जाणवा. ...१ पूर्वोक्त १० हेतु मध्ये भय भेळवीए त्यारे ११ बंध हेतु थाय तेना ९१२० २ दशमां कुत्सा भेळवीए त्यारे ११ बंध हेतुना भांगा . ९१२० ...३ बे कायनो वध लेखवीए त्यारे द्विक संयोगी १५ भंग साथे . .. गुणतां नीचे प्रमाणे थता भांगा २२८०० ए रीते ३ विकल्पे थईने ११ हेतुना कुल भंग थाय, ४१०४० ११ हेतुना द्विक संयोगी भांगा १५ ने ५ इंद्रिय साथे गुणतां ७५. तेने युगलना २ साथे गुणतां १५०. तेने ४ कषाय साथे गुणतां ६००. तेने २ वेद साथे गुणतां १२००. तेने १३ योग साथे गुणतां १५६०० तथा वेद १ लईए तो ६०० ने १२ योग साथे गुणतां ७२००. ते पूर्वना १५६०० मां भेळवीए त्यारे २२८०० भांगा थाय, ते उपर लख्याछे. पूर्वोक्त १० हेतु मध्ये भय कुत्सा मेळवीए त्यारे १२ हेतु थाय. १ तेमां पहेले विकल्पे भांगा ९१२० २ भय अने बे कायना वधे भांगा २२८०० ३ कुत्सा अने बे कायनो वध लेतां भांगा . २२८०० ४ त्रण कायनो वध लेतां भांगा नीचे लख्या प्रमाणे ३०४०० आ रीते १२ हेतुना चार विकल्पे भांगा थाय. ८५१२० Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहीं त्रिक संयोगी २० भांगाने ५ इंद्रिये गुणतां १००० तेने युगलना बे साथे गुणतां २००. तेने ४ कषाय साथे गुणतां ८००.. तेने २ वेद साथे गुणतां १६००. तेने १३ योग साथे गुणतां २०८००. तथा एक वेद साथे गुणतां ८०० तेने १२ योग साथे गुणतां ९६०० तेमां पूर्वना २०८०० भेळवीए त्यारे ३०४०० थाय ते उपर लख्या छे. १ पूर्वोक्त १० मध्ये भय, कुत्सा अने एकने बदले वे कायनो वध लइए त्यारे १३ बंधहेतुना भांगा. २२८०० २ भय ने त्रण कायनो वध लेखवीए त्यारे ३०४०० ३ कुत्सा ने त्रण कायनो वध लेखवीए त्यारे ३०४०० ४ चार कायनो वध लेखवतां चतुःसंयोगी १५ भांगा साथे गुणतां । २२८०० थाय छे ते २२८०० आ रीते १३ हेतुना चार विकल्पे भांगा थाय. १०६४०० १ पूर्वोक्त १० मध्ये भय कुत्सा अने एकने बदले त्रण कायनो वध लईए त्यारे १४ हेतु थाय भांगा पूर्वनी पेठे.. ३०४०० २ भय ने चार कायना वधे २२८०० ३ कुत्सा ने चार कायना वधे. . २२८०० ४ पांच कायना वध.. आ रीते १४ हेतुना चार विकल्पे भांगा थाय, ८५१२० पूर्वोक्त १० मध्ये भय, कुत्सा ने एकने बदले चार कायनो वध लेखबीए त्यारे १५ हेतु शाय. १ पहेला विकल्पना भांगा २ भय अने पांच कायना वधे मांगा ३ कुत्सा अने पांच कायना वधे ९१२० ४ छ कायना वधे १५२० ए रीते १५ हेतुना चार विकल्पे भांगा थया.. .... ४२५६० पूर्वोक्त १० मध्ये भय, कुत्सर अने एकने बदले पांच कायनो वध लेता . १६ हेतु थाय. १ तेना पहेले विकल्पे भांगा ..९१२० २ भय अने छ कायना वधे भांगा . १५२० . ३ कुत्सा अने छ कायना वधे . ....... .. १५२० आ रीते १६ हेतुना त्रण विकल्पे भांगा थाय... १२१६० ९१२० Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ काय, १ इंद्रिय, ४ कषाय, २ युगल एकना, १ वेद, १ भय, १ कुत्सा, १ योग, ए १७ हेतुनो ६ संयोगी एक भंग होय. १ कायने ५ इंद्रिय साथे गुणतां ५. तेने युगलना,२ साथे गुणतां १०. तेने ४ कषाय साथे गुणतां ४०. तेने २ वेद साथे गुणतां ८०. तेने १३ योग साथे गुणतां १०४०. तथा १ वेद लइए तो ४० ने १२ योग साथै गुणतां ४८०. तेमां पूर्वना १०४० भेळवीए त्यारे १५२० भांगा थाय. आ रीते सास्वादन गुणस्थाने१० हेतुना भांगा ९१२० १४ हेतुना भांगा ८५१२० ११ हेतुना भांगा ४१०४० १५ हेतुना भांगा ४२५६० १२ हेतुना भांगा ८५१२० १६ हेतुना भांगा १२१६० १३ हेतुना भांगा १०६४०० १७ हेतुना भांगा . १५२० आठ विकल्पना थईने भांगा कुल ३८३०४० थाय. ३ मिश्र गुणस्थाने-३०२४०० भांगा थाय, ते कहे छे. मिश्र गुणस्थाने अनंतानुबंधी न होय तेथी एक जीवने एक समये ९-१० ११-१२-१३-१४-१५ अने उत्कृष्ट १६ हेतु थाय. त्यां जघन्यथी काय १, इंद्रिय १, कषाय ३, हास्यादि युगल २, वेद १. योग १, ए ९ हेतु होय. तेमां ६ कायने ५ इंद्रिय साथे गुणतां ३० तेने ४ कषाय साथे गुणतां १२० तेने युगलना बे साथे गुणतां , २४० तेने ३ वेद साथे गुणतां ७२० तेने १० योग साथे गुणतां ७२०० पूर्वोक्त ९ मध्ये भय मेळवतां १० हेतु थाय. १ तेना पहेले विकल्पे भांगा ७२०० २ कुत्सा भेळवतां भांगा - ३ बे कायनो वध लेखवतां भांगा (नीचे जणाव्या प्रमाणे) १८००० आ प्रमाणे ३ विकल्पे दश हेतुना भांगा ३२४०० थाय. . . . ३२४०० Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५०. ७२०० ० [४३] तेमां द्विक संयोगीना भांगा १५ तेने ५ इंद्रिय साथे गुणतां . ७५ बे युगल साथे गुणतां त्रण वेद साथे गुणतां ४५० ४ कषाय साथे गुणतां १८०० १० योग साथे गुणतां १८००० पूर्वोक्त ९ मध्ये भय अने कुत्सा भेळवीए त्यारे ११ हेतु थाय. १ तेमां पहेलो विकल्प पूर्वनी पेठे २ कुत्सा अने बे कायना वधे १८००० ३ भय अने बे कायना वधे १८००० ४त्रण कायना वधे (नीचे जणाच्या प्रमाणे) २४००० ए प्रमाणे चार विकल्पे ११ हेतुना भांगा ६७२०० थाय. ६७२०० तेमां त्रिक संयोगी भांगा २० ने ५ इंद्रिये गुणतां १००, तेने २ युगल साथे गुणतां २००, तेने ३ वेद साथे गुणतां ६००, तेने ४ कषाय साथे गुणतां २४००, तेने १० योग साथे गुणतां २४०००. पूर्वोक्त ९ हेतु मध्ये भय, कुत्सा अने बे कायनो वध लेखवतां १२ हेतु थाय. १ तेमा पहेले विकल्पे भांगा १८००० २ भय ने ३ कायना वधे भांगा २४००० ३ कुत्सा ने ३ कायना वधे मांगा २४००० ४ चार कायना वधे भांगा १८००० आ प्रमाणे ४ विकल्पे १२ हेतुना भांगा ८४००० थाय. ८४००० पूर्वोक्त ९ हेतु मध्ये भय, कुत्सा अने त्रण काय लेखवतां १३ हेतु थाय. १ तेमां पहेले विकल्पे भांगा २४००० २ भय ने चार कायना वधे १८००० ३ कुत्सा ने चार कायना वधे १८००० ४ पांच कायना वधे ७२०. आ प्रमाणे ४ विकल्पे १३ हेतुना भांगा ६७२०० थाय. ६७२०० पूर्वोक्त ९ हेतु मध्ये भय, कुत्सा अने चार कायनो वध लेखवता १५ हेतु थाय, Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२०० १ तेमां पहेले विकल्पे भांगा पूर्वनी पेठे ... १८००० २ भय अने पांच कायना वधे ३ कुत्सा अने पांच कायना वधे ७२०० ४ छ कायना वधै १२०० ए प्रमाणे ४ विकल्पे १४ हेतुना भांगा ३३६०० थाय.. ३३६०० पूर्वोक्त ९ मध्ये भय, कुत्सा अने पांच कायनो वध लेतां १५ हेतु थाय. १ तेमां पहेले विकल्पे पूर्वनी पेठे ७२०० २ भय ने छ कायना वधे १२०० ३ कुत्सा ने छ कायना वधे ए प्रमाणे ३ विकल्पे १५ हेतुना भांगा थया. . ९६०० काय ६, इंद्रिय १, कषाय ३, हास्यादिक एक युगलना २, वेद १, योग १, ... भय १, कुत्सा १, ए १६ बंध हेतुना भांगा १२०० थाय, आ ८ विकल्पे मिश्र गुणस्थाने ९ हेतुना भांगा ७२०० १३ हेतुना भांगा ६७२०० १० हेतुना भांगा ३२४००....१४ हेतुना भांगा ३३६००. ११ हेतुना भांगा ६७२०० १५ हेतुना भांगा ९६०० . १२ हेतुना भांगा ८४००० १६ हेतुना भांगा १२०. . कुल भांगा ३०२४०० थाय. ४-५ हवे अविरति अने देशविरति ए वे गुणस्थाने कहे छ. तेमां चोथे गुणस्थाने ३५२८०० भांगा थाय. त्यां जघन्य ९ अने उत्कृष्ट १६ बंध हेतु होय-९-१०-११-१२-१३-१४-१५-१६. आहारक द्विक विना १३ योगने ३ वेद साथे गुणतां ३९ . तेमांथी ४ रूप काढीए त्यारे ३५ तेने ६ काय साथे गुणतां २१० तेने ५ इंद्रिय साथे गुणतां १०५० तेने युगलना २ साथे गुणतां २१०० ... तेने ४ कषाये गुणतां ८४००.. . Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काय इंद्रिय ६ ५ नपुंसकवेदे . २४० स्त्रीवेदे योग १२ । योग २४० १० . २८८० २४०० युगल कषाय २४० पुंवेद . २४० योग . १३ ३१२० . त्रण प्रकारना एकंदर करतां ८४०० पूर्वोक्त ९ हेतु मध्ये भय भेळवतां १० हेतु थाय. १ तेना पूर्वनी पेठे पहेला विकल्पमां भांगा । २ नव मध्ये कुत्सा भेळवतां भांगा ३ नव मध्ये बे काय लेखवतां भांगा ए रीते ३ विकल्पे १० हेतुना भांगा ३७८०० थाय. द्विक संयोगी भांगा. नपुंसकवेदे . ८४०० ८४०० २१००० ३७८०० स्त्रीवेदे इंद्रिय योग , योग १० ७५ १२ ७२०० ६००० युगल कषाय योग ७८००, त्रण प्रकारना एकंदर करता २१०००. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वोक्त ९ हेतु मध्ये भय अने कुत्सा मेळवतां ११ बंध हेतु थाय. १ तेमां पहेले विकल्पे मांगा ८४०० २ भय तथा बे काय लेखवतां भांगा २१००० ३ कुत्सा अने बे काय लेखवतां भांगा २१००० ४ त्रण काय लेखवतां भांगा २८००० ए प्रमाणे ४ विकल्पे ११ हेतुना भांगा ७८४०० थाय.. ७८४०० त्रिक संयोगी भांगा नपुंसकवेदे ० ० ० ० ० ० ० ० ००० ० ८०० इंद्रिय योग योग १२ ९६०० १० : युगल कषाय २८००० २१०० योग १३ १०४०० त्रण प्रकारना एकंदर करतां २८०००, पूर्वोक्त ९ मध्ये भय, कुत्सा अने बे कायनो वध लेखक्तां १२ हेतु थाय. १ तेमा पहेले विकल्पे भांगा २१००० २ नवर्मा भय अने त्रण कायनो वध लेखवां २८००० ३ नवमां कुत्सा अने त्रण कायनो वध लेखवतां ४ नवमा चार कायनो वध लेखवतां भांगा आ रीते ४ विकल्पे १२ हेतुना भांगा ९८००० थाय. ९८००० पूर्वोक्त ९ मध्ये त्रण कायनो वध, भय अने कुत्सा लइए. त्यारे १३ हेतु थाय. १ तेमां पहेले विकल्पे भांगा २८००० २ नवमां भय अने चार कायना वधे भांगा २१००० ३ नवमां कुत्सा अने चार कायना वधे भांगा २१००० ४ नवमां पांच कायना वधे मांगा ८४०० आ रीते ४ विकल्पे थइने १३ हेतुना भांगा ७८४०० थाय. ७८४०० Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१००० [४७ पूर्वोक्त ९ मध्ये भय, कुत्सा अने चार कायनो वध लेखवतां १४ हेतु थाय. १ तेमां पहेले विकल्पे मांगा। २ नवमां भय ने पांच काय लेखवीए त्यारे भांगा ८४०० ३ नवमां कुत्सा अने पांच काय लेखवीए त्यारे भांगा ४ नवमां छ कायनो वध लेखवतां नीचे जणाव्या प्रमाणे मांगा १४०० आ रीते ४ विकल्पे १४ हेतुना नंगा ३९२०० थाय. ३९२०० पुवेदे नपुंसकदे . . स्त्रीवेदे पद्कायसंयोगी १ इंद्रिय ५ योग १२ योग १० युगल . कषाय पुंवेद योग . ५२० त्रणे प्रकारना एकंदर करतो १४००. पूर्वोक्त ९ मध्ये भय, कुत्सा अने पांच कायनो वध लेखवतां १५ हेतु थाय. १ तेमां पहेते विकल्पे भांगा। २ नवमां भय अने छ कायनो वध लेखवतो १४०० ३ नवमां कुत्सा अने छ कायनो वध लेखवतां आ ३ विकल्पे थइने १५. हेतुना भांगा ११२०० थाय.. .११२०० पूर्वोक्त ९ मध्ये भय, कुत्सा अने छ कायनो वध लेखवतां. १६ हेतु थाय. तेमां विकल्प एक ज छे तेना भांगा १४०. थाय. ९ बंध हेतुना भांगा ८४०० १३ बंध हेतुना भांगा ७८४०० १. बंध हेतुना भांगा ३७८०० .१४ बंध हेतुना भांगा ३९२०. ११ बंध हेतुना भांगा ७८४०० . १५ बंध हेतुना भांगा ११२०० १२ बंध हेतुना मांगा ९८००० १६ बंध हेतुना भांगा १४०० कुल चोथे गुणस्थाने ९ थी १६ बंध हेतुना ३५२८०० भांगा थाय. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... हवे पांच स्थावरना संयोगी भांगा कहे छ.--- एक संयोगी भांगा ५ त्रिक संयोगी भांगा १०० १ पृथ्वी १ पृथ्वी अप् तेज *२ अप् २ पृथ्वी अपं वायु ३ तेज ३ पृथ्वी अप वनस्पति '४ वायु ४ पृथ्वी तेज वायु .५ वनस्पति .५ पृथ्वी तेज वनस्पति द्विक संयोगी भांगा १० ६ पृथ्वी वायु वनस्पति १ पृथ्वी अप ७ अप् तेज वायु २ पृथ्वी तेज ८ अप् तेज वनस्पति ३ पृथ्वी वायु ९ अप् वायु वनस्पति ४ पृथ्वी वनस्पति १० तेज वायु वनस्पति ५ अप तेज - चतुः संयोगी भांगा ५. ६ अप् वायु १ पृथ्वी अप तेज वायु ७ अप् वनस्पति २ पृथ्वी अप् तेज वनस्पति ८ तेज वायु ३ पृथ्वी अप वायु वनस्पति • ९ तेज वनस्पति ४ पृथ्वी तेज वायु वनस्पति १० वायु वनस्पति ५ अप् तेज वायु वनस्पति पंच संयोगी भांगो १.. १ पृथ्वी अप् तेज वायु वनस्पति. हवे पांचमे गुणस्थाने एक जीव आश्री जघन्यथी ८ बंध हेतु अने उत्कृष्टथी १४ ___ हेतुना विकल्प ७ थाय. तेना भांगा १६३६८० थाय. केम जे त्रस विना एक संयोगी भांगा ५, द्विक संयोगी भांगा १०, त्रिक संयोगी भांगा १०, चतुःसंयोगी भांगा ५, पंचसंयोगी भांगो १ तेनु कोष्टक उपर प्रमाणे जाणवू. बंध हेतु आ प्रमाणे. ८-९-१०-११-१२-१३-१४... जघन्यथी काय १, इंद्रिय १, कषाय २, युगलनी २, वेद १, योग १. एम जघन्य ८ बंध हेतुनो विकल्प एकज छे, तेना भांगा ६६००. काय ५ १५० . इंद्रिय.. ५ कषाय , ४ . युगल २ योग ११ ६६०० Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युगल १३२०० हवे ८ मध्ये भय अथवा कुत्सा: अथवा चे काय, लेखवतों ९ हेतु थाय. १ आठमां भय भेळवतां ९ हेतुना पहेले विकल्पे भांगा ६६०० २ आठमां कुत्सा भेळवतां भांगा . ६६०० ३ वे कायनो वध लेखवतां भांगा नीचे लख्या प्रमाणे. १३२०० आ त्रण विकल्पे ९ हेतुजा भांगा २६४०० थाय. १२६४०० द्विक संगोंगी भांगा. १० इंद्रिय .. . .. कषायः ४ . १२०० योग ११ वेद ३ १३२०० पूर्वोक्त आठमां भय अने कुत्सा भेळवतां १० हेतु थाय.. १ तेमां पहेले विकल्पे भांगा. ___ २ आठमां भय ने वे काय लेखवतां भांगा __३. आठमां कुत्सा अने वे काय लेखवतां । १३२०० - ४ त्रण कायनो वध लेखवता १३२०० आ ४ विकल्पे १० हेतुना भांगा ४६२०० थया । ४६२०० पूर्वोक्त आठ मध्ये भय, कुत्सा अने बे कायनो वध लेखवतां ११ हेतु थाय १ तेमां पहेले विकल्पे भांगा १. १३२०० २ आठमा भय अने ऋण काय लेखवतो : :१३२:०० ३ आठमां कुत्सा अने त्रण काय लेखवतां १३२०० ४ चार कायना वधे आ ४ विकल्पे ११ हेतुना भांगा ४६२०० थया.. ४६२०० पूर्वोक्त आठ मध्ये भय अने चार कामनो वध लेखवतां १२ हेतु थाय. :. १ तेमां पहेले विकल्पे भांगा ६६०० : २ आठमां कुत्सा अने चार कायना वधे . .... ३ आठमां भय, कुत्सा अने त्रण कायना वधे" १३२०० ४ पांच कायना वधे.. १३२० एम ४ विकल्पे १२ हेतुना भांगा २७७२० थया.. २७७२० Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२० [५०] पूर्वोक्त ८ मध्ये भय, कुत्सा अने चार कायनो वध लेखवतां १३ हेतु पाय. १ तेमां पहेले विकल्पे भांगा ६६०० २ आठमां भय अने पांच कायनो वध लेखवतां ३ आठमां कुत्सा ने पांच कायनो वध लेखवतां १३२० एम ३ विकल्पे थइने १३ हेतुना भांगा ९२४० थाय. ९२४० पूर्वोक्त आठ मध्ये भय, कुत्सा अने पांच कायनो वध लेखवीए त्यारे १४ बंध हेतु थाय, तेनो विकल्प एकज छे. तेना भांगा १३२०. १ पंच संयोगीयो भांगो.. इंद्रिय . ४ कषाय . युगल १२० ११ योग . ३ वेद १३२० ए प्रमाणे पांचमे गुणस्थाने सात विकल्पे थइने भांगानो सरवाळो कहे छै. ८ बंध हेतुना भांगा ६६० १२ बंध हेतुना भांगा २७७२० - ९ बंध हेतुना भांगा २६४०० १३ बंध हेतुना भांगा ९२४० १० बंध हेतुना मांगा ४६२०० १४ बंध हेतुना भांगा १३२० ११ बंध हेतुना भांगा ४६२०० १६३६८० ६ हवे छठे गुणस्थाने त्रणमांथी वेद १, एक युगलनी २, चार कषाय मध्ये पहेलो तथा बीजो कषाय १, तेर योगमाथी योग १, तेमां स्त्रीवेदे आहारक द्विक विना होय. आ ५ हेतु जघन्य पदे एक जीवने एक समये होय. तथा उत्कृष्टथी ७ हेतु होय. ५-६-७. वेद ३ . वेद. २ स्त्रीवेद १ योग १३ योग ११ रूप काढीए २ युगल कषाय २९६. , Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५१] पांच हेतुना भांगा २९६ पांचमां भय लेखवतां ६ हेतुना भांगा । ५९२ पांचमां कुत्सा लेखवतां ६ हेतुना भांगा । पांचमां भय अने कुत्सा लेखवतां सात हेतुना २९६ ११८४ एम सर्व मळीने त्रण विकल्पे भांगा ११८४ थाय. ७ एम सातमे गुणस्थाने एक जीवने एक समये संज्वलनो कषाय १, वेद १, एक युगलनी २, अग्यार योगमाथी योग १, एम जधन्ये बंध हेतु ५, तथा उत्कृष्टे बंध हेतु ७. (५-६-७.) पांच हेतुना भांगा २५६ पांचमां कुत्सा भेळवतां ६ हेतुना २५६ पांचमां भय भेळवतां ६ हेतुना। २५६ पांचमां भय अने कुत्सा भेळवतां ७ हेतुना ए ३ विकल्पे थइने भांगा वेद ३ वेद . २ योग ११ योग ३३ एक रूप काढीए १ ३२ ४४ युगल . २ कषाय कषाय युगल कषाय ४ स्त्रीवेदे २५६ २५६ ८ आठमे गुणस्थाने पूर्वनी पेठे जधन्ये बंध हेतु ५, उत्कृष्टे ७. (५-६-७.) पांच बंध हेतुना भांगा पांचमां भय नांखता ६ हेतुना भांगा २१६) पांचमां कुत्सा नांखतां ६ हेतुना मांगा २१६४ पांचमां भय अने कुत्सा नाखतां ७ हेतुना भांगा २१६ ८६४ युगल २xवेद ३-६४कषाय ४=२४xयोग ९=२१६ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९ नक्मे गुणस्थाने एक जीवने एक समये कषाय १, योग १, ए २ बंध हेतु जवन्यथर्थी होय. अने उत्कृष्टथी वेद १ सहित करीऐ त्यारे ३ बंध हेतु होय. बे बंध हेतुना भांगा ४ कषायने योग साथे गुणतां ... ३६ त्रण बंध हेतुना भांगा उपरना ३६ ने त्रण वेदे गुणतां १०८ १४४ १० दशमे गुणस्थाने. एक समये एक जीवने संज्वलनो १ लोभ जघन्यथी अने उत्कृ ____ष्टथी नवमांथी १ योग ए बे बंध हेतु होय. अहीं ९ योगना ९ भांगा होय. ११-१२ अगीयारमा तथा बारमा गुणस्थाने ९ योग मध्येथी एक जीवने एक योग - होय. नव योगना ९ भांगा होय. १३ तेरमे गुणस्थाने सात योग मध्येथी एक जीवने जघन्ये १ योग होय. माटे सात ___ योगना ७ भांगा होय. गुणस्थान । भांगा । गुणस्थान भांगा १ मिथ्यात्व १३४७७६०० ८ अपूर्वकरण । ८६४ २सास्वादन ३८३०४० .९ अनिवृत्तिकरण १४४ ३मिश्र 1:३०२४०० १० सूक्ष्म संपराय ४ अविरति ३५२८०० ११ उपशम १२ क्षीणमोह ६ प्रेमत्त ११८४ १३ सयोगी ७ अप्रमत्त १०२४ । १४ अयोगी सर्व गुणस्थाने भांगानो सरवाळो ४६८२७७० अल्पबहुत्व. जीव- गुण- योग उप- लेश्या स्थान स्थान योग १ सर्वथी थोडा गर्भज मनुष्य २ १४ १५ १२ ६ २ तेथी मानुषी संख्यातगुणी. २१४ १३ १२ ६ ३ तेथी बादर तेजस्काय पर्याप्ता असंख्यातगुणा. ४ तेथी अनुत्तर विमानवासी देवता असंख्यातगुणा. ५ तेथी उपरना ग्रैवेयक त्रिकना देवता संख्यातगुणा. ६ तेथी मध्य ग्रैवेयक त्रिकना देवता संख्यातगुणा.. ७ तेथी हेठला ग्रैवेयक त्रिकना देवता संख्यातगुणा. ८ तेथी बारमा देवलोकनों देवता संख्यातगुणा.. ५ देशविरति Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ २ २ ४.११ ९ ४ ११ ९ ४ ११. ९ १ १ १ २. ४ ११ ९ १ २ ४.११९ १ २६ ४ ११ ९ १ २ ४ ११ ९ १ २ २ २ २ ४ ११ ९ १ ४ ११ ९ २ ४ ११. ९. १ ४ ११ ९ १ [५३] ९ तेथी अग्यारमा देवलोकना देवता संख्यातगुणाः १० तेथी दशमा देवलोकना देवता संख्यातगुणा... ११ तेथी नत्रमा देवलोकना देवता संख्यातगुणा. १२ तेथी सातमी नरकना नारकी असंख्यातगुणा. १३ तेथी छठी नरकना नारकी असंख्यातगुणा.. १४ तेथी ओठमा देवलोकना देवता असंख्यातगुणा. १५ तेथी सातमा देवलोकना देवता असंख्यातगुणा. १६ तेथी पांचमी नरकना नारकी असंख्यातगुणा.. १७ तेथी छटा देवलोकना देवता असंख्यातगुणा. १८ तेथी चोथी नरकना नारकी असंख्यातगुणा. १९ तेथी पांचमा. देवलोकना देवता असंख्यातगुणा. २० तेथी त्रीजी नरकना नारकी असंख्यातगुणा.. २१ तेथी चोथा देवलोकना देवता असंख्यात गुणा. २२ तेथी त्रीजा देवलोकना देवता असंख्यातगुणा. २३ तेथी बीजी नरकना नारकी असंख्यातगुणा. २४ तेथी संमूर्छिम मनुष्य असंख्यातगुणा. २५ तेथी बीजा देवलोकना देवता असंख्यातगुणा. २६ तेथी बीजा देवलोकनी देवी संख्यातगुणी. २७ तेथी पहेला देवलोकना देवता संख्यातगुणा. २८ तेथी पहेला देवलोकनी देवी संख्यातगुणी. २९ तेथी भवनपतिना देवता असंख्यातगुणा. . ३० तेथी भवनपतिनी देवी संख्यातगुणी. ३१ तेथी पहेली नरकना नारकी असंख्यातगुणा.. ३२ तेथी खेचर पंचेंद्रिय तिर्यंच पुरुष असंख्यातगुणा. ३३ तेथी खेचर तिर्यंचनी स्त्री संख्यातगुणी. ३४ तेथी स्थलचर तिर्यंच पुरुष संख्यातगुणा.... ३५ तेथी स्थलचर तिर्यचनी स्त्री संख्यातगुणी. ३६ तेथी जलचर पुरुष संख्यातगुणा. ३७ तेथी जलचरनी स्त्री संख्यातगुणी. ३८ तेथी व्यंतर देवता संख्यातगुणा.. ३९ तेथी व्यंतरनी देवी संख्यातगुणी. २४ ११ ९ १ २. ४ ११ ९ २ २४ ११ १९.४ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ ४ ११ ९ १ ४ ५ १३ ९६ २ १४ १५ १२ ६ १ १ २ २ २ २ १ ५ ४० तेथी ज्योतिषी देवता संख्यातगुणा. ४१ तेथी ज्योतिषीनी देवी संख्यातगुणी. ४२ तेथी खेचर तिर्यच नपुंसक संख्यातगुणा. ४३ तेथी स्थलचर तिथंच नपुंसक संख्यातगुणा. ४४ तेथी जलचर तिर्यच नपुंसक संख्यातगुणा. ४५ तेथी चतुरिंद्रिय पर्याप्ता संख्यातगुणा. ४६ तेथी पंचेंद्रिय पर्याप्ता विशेषाधिक. ४७ तेथी द्वींद्रिय पर्यामा विशेषाधिक. ४८ तेथी त्रींद्रिय पर्याप्ता विशेषाधिक. ४९ तेथी पंचंद्रिय अपयोप्ता असंख्यातगुणा. ५० तेथी चतुरिद्रिय अपर्याप्ता विशेषाधिक. ५१ तेथी त्रींद्रिय अपर्याप्ता विशेषाधिक. ५२ तेथी हींद्रिय अपर्याप्ता विशेषाधिक. ५३ तेथी प्रत्येकवनस्पतिकाय पर्याशा असंख्यातगुणा. ५४ तेथी बादर निगोद शरीर पर्याप्ता असंख्यातगुणा, ५५ तेथी बादर पृथ्वीकाय पर्याप्ता असंख्यातगुणा. ५६ तेथी बादर अण्काय पर्याशा असंख्यातगुणा. ५७ तेथी बादर वायुकायिक पर्याप्ता असंख्यातगुणा. ५८ तेथी बादर तेजस्कायिक अपर्याप्ता असंख्यातगुणा. ५९ तेथी प्रत्येक वनस्पतिकायिक अपर्याप्पा असंख्यातगुणा. ६० तेथी बादर निगोद शरीर अपर्याप्ता असख्यातगुणा. ६१ तेथी बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्ता असंख्यातगुणा. ६२ तेथी बादर अपकायिक अपर्याप्ता असंख्यातगुणा. ६३ तेथी बादर वायुकायिक अपर्याप्ता असंख्यातगुणा. ६४ तेथी सूक्ष्म तेजस्कायिक अपय मा असंख्यातगुणा. ६५ तेथी सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्ता विशेषाधिक. ६६ तेथी सूक्ष्म अपकायिक अपर्याप्ता विशेषाधिक. ६७ तेथी सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्ता विशेषाधिक. ६८ तेथी सूक्ष्म तेजस्कायिक पर्याप्ता संख्यातगुणा. ६९ तेथी सूक्ष्म पृथ्वीकायिक पर्याप्ता विशेषाधिक. ७० तेथी सूक्ष्म अप्कायिक पर्याप्ता विशेषाधिक. wr mur m mur m mr mr mm rm M س Mor س س س س سد سم ه س هه سه سد سہ سہ سہ سہ سہ سہ س Mom OM MOMo س س س سي سي Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m m m w. १४ ३ १३ १ w ६ १२ १४ १५ १२ ६ १ १ २ ३ ३ MMMM.C..., m mmm ७१ तेथी सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्ता विशेषाधिक. ७२ तेथी सूक्ष्म निगोद शरीर अपर्याशा असंख्यातगुणा. ७३ तेथी सूक्ष्म निगोद शरीर पर्याप्ता संख्यातगुणा. ७४ तेथी अभव्य जीव अनंतगुणा. ७५ तेथी प्रतिपाति जीव अनंतगुणा. ७६ तेथी सिद्ध भगवान अनंतगुणा.. ७७ तेथी बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्ता अनंतगुणा ७८ तेथी बादर पर्याप्ता विशेषाधिक. ७९ तेथी बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्ता असंख्यातगुणा ८० तेथी बादर अपर्याप्ता विशेषाधिक. ८१ तेथी वादर जीव विशेषाधिक. ८२ तेथी सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्ता असंख्यानगुणा. ८३ तेथी सूक्ष्म जीव अपर्याप्ता विशेषाधिक.. ८४ तेथी सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त संख्यातगुणा ८५ तेथी सूक्ष्म जीव पर्याप्ता विशेषाधिक. ८६ तेथी सूक्ष्म जीव विशेषाधिक. ८७ तेथी भव्य जीव विशेषाधिक. ८८ तेथी निगोदना जीव विशेषाधिक. ८९ तेथी वनस्पति जीव विशेषाधिक.. ९० तेथी एकेंद्रिय जीव विशेषाधिक. ११ तेथी तिर्यच जीव विशेषाधिक. १२ तेथी मिथ्यात्वी जीव विशेषाधिक. १३ तेथी अविरति जीव विशेषाधिक. १४ तेथी सकषायी जीव विशेषाधिक. १५ तेथी छमस्थ जीव विशेषाधिक. ६ तेथी सयोगि जीव विशेषाधिक. ७ तेथी भवस्थ जीव विशेषाधिक. ८ तेथी सर्व जीव विशेषाधिक. १४ १४ १५ १२ ६ occwm M १४ ५ १३. ९ ६ २४ ४ १३ . ९ ६ १४ १० १५ १० ६ १४ १२ १५ १० ६ १४ १३ १५ १२ ६ १४ १४ १५ १२ ६ १४ १४ १५ १२. ६ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५६] चोथो कर्मग्रन्थ भावप्रकरण. भाव पांच छै.-औपशमिकभाव, क्षायिकभाव, शायोपशमिकभाव, औदयिकभाव तथा पारिणामिक भाव.. . १ औषशमिकभावना बे भेद छे.-औपशमिकसम्यक्त्व तथा औपशमिकचारित्र. २ क्षायिकभावना नव भेद छे. केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिकसम्यक्त्व, दानलब्धि, लाभलब्धि, भोगलब्धि, उपभोगलब्धि, वीर्यलब्धि, तथा क्षायिकचारित्र. : . ३ क्षायोपशमिकभावना अढार भेद छे. केवलज्ञान अने केवलदर्शन विना चार ज्ञान, त्रण अज्ञान, त्रण दर्शन, दानादिक पांच लब्धि, क्षायोपशमिकसम्यक्त्व, सर्वविरति तथा देशविरति. ४ औदयिकभावना एकवीश भेद छे.-अज्ञान, असिद्धता, असंयम, छ लेश्या, चार कषाय, चार गति, त्रण वेद, तथा मिथ्यात्व.. - ५ पारिणामिकभावना त्रण भेद छे. भव्यपणु, अभव्यपणुं, तथा जीवत्व. सान्निपातिकना भेद २६ नुं निवारण.. द्विकसंयोगी भांगा १० ..त्रिकसंयोगी भांगा १० १ औपशभिक क्षायिक १ औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक "२ औपशमिक मिश्र · २ औपशमिक क्षायिक औदयिक ३ औपशमिक औदयिक ३ औपशभिक क्षायिक पारिणामिक . ४ औपशमिक पारिणामिक ४ औपशमिक मिश्र औदयिक. ५ क्षायिक मिश्र ५ औपशमिक मिश्र पारिणामिक ६ क्षायिक औदयिक ६ औपशमिक औदयिक परिणामिक ७ क्षायिक पारिणामिक ७ क्षायिक मिश्र औदयिक ८ मिश्र औदयिक ८ क्षायिक मिश्र पारिणामिक " ९ मिश्र पारिणामिक ९क्षायिक औदयिक पारिणामिक ; . १० औदयिक पारिणामिक १० मिश्र औदयिक पारिणामिक । चतुःसंयोगी भांगो ५. १ औपशमिक... क्षायिक क्षायोपशमिक , औदयिक ... २ औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक पारिणामिक ३ औपशमिक .. क्षायिक औदयिक पारिणामिक ४ औपशमिक मिश्र औदयिक पारिणामिक ५ क्षायिक मिश्र औदयिक ..... पारिणामिक ... १ मिश्र शब्दे क्षायोपशमिक भाव जाणवो. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५७] पंचसंयोगी भांगा १. १ औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक औदयिक पारिणामिक. सांनिपातिकना भांगा ६. ७ मो क्षायिक पारिणामिक १ द्विकसंयोगी सिद्धना जीवोने होय. ९ मो क्षायिक औदयिक पारिणामिक १ त्रिकसंयोगी केवलीने होय. १० मो क्षायोपशमिक औदयिक पारिणामिक १ त्रिकसंयोगी चारे गतिना जीवने होय. ४ थो औपशमिक मिश्र औदयिक पारिणामिक १ चतुःसंयोगी उपशमसम्यग्दृष्टि चारे गतिना जीवने होय. ५ मो क्षायिक मिश्र औदयिक पारिणामिक १ चतुःसंयोगी क्षायिकसम्यग्दृष्टि चारे गतिना जीवने होय. ६ हो औपशमिक क्षायिक मिश्र आदयिक पारिणामिक १ ए पंचसंयोगी भांगो उपशम . श्रेणिए वर्तता क्षायिक सम्यग्दृष्टि मनुष्यने ९-१०-११ गुणस्थानके होय. सान्निपातिक भांगा ६ ना भेद १५. क्षायोपशमिक १, औदयिक २, पारिणामिक ३, ए त्रिकसंयोगे नारकीना जीव १, देव __ ता २, तिथंच १, मनुष्य ४, ए त्रिकसंयोगी भांगा ४. हवे चार भावने संयोगे ४ भांगा कहे छे.क्षायिक सम्यक्त्व १, मिश्र २, औदयिक ३, पारिणामिक ४, ए चार भाव साथे चारे गतिमां होय. सर्व मलीने ८ भेद थया. हवे औपशमिक १, मिश्र २, औदयिक ३, पारिणामिक ४, ए चार भावे चार गतिना संज्ञी पंचेंद्रिय होय. सर्व मली १२ भांगा थया. हवे क्षायिक १, औदयिक २, पारिणामिक ३, ए त्रिक संयोगी भांगे १३-१४ मे गुण । स्थानके केवळी होय. ए १३ मो भांगो थयो. क्षायिक १, पारिणामिक २, ए द्विक संयोगी भांगे सिद्धना जीवो होय. ए १४ मो भांगो थयो. हवे औपशमिक १, मिश्र २, क्षायिक ३, औदयिक ४, पारिणामिक ५, ए पांच सयोगी भांगो उपशमश्रेणी करतां ९-१०-११ ए त्रण गुणस्थानके एक समये होय. ए १५ मो भांगो जाणवो. ॥ इति सांनिपातिकना १५ भांगा ॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५८] अथ चौद गुणस्थानके मूल नाव तथा उत्तरजावन विवरण. १ मिथ्यात्व गुणस्थाने. मूलभाव ३. उत्तरभाव ३४–क्षायोपशमिकना १० (लब्धि ५, अज्ञान ३, दर्शन २), औदयि कना २१, तथा पारिणामिकना ३. सर्व मली ३४. २ सास्वादन गुणस्थाने. मूलभाव ६. उत्तरभाव ३२–क्षायोपशमिकना १० (लन्धि ५, अज्ञान ३, दर्शन २), औदयि कना २० (मिथ्यात्व विना), पारिणामिकना २ (अभव्य विना) सर्व मली ३२. ३ मिश्र गुणस्थाने. मूलभाव ३. उत्तरभाव ३३–क्षायोपशमिकना १२ (मिश्रज्ञान ३, दर्शन ३, लन्धि ५, मिश्र मोहनी १), औदयिकना १९ ( मिथ्यात्व तथा अज्ञानपणा विना), पारिणा मिकना २. सर्व मली ३३. ४ अविरति गुणस्थाने. मूलभाव ५-३-४- (सर्व जीव आश्रीने ५) पृथक् जीव आश्री ३ के ४. उत्तरभाव ३५-उपशम सम्यक्त्व १, क्षायिक सम्यक्त्व १. क्षायोपशमिकना १२ (ज्ञान ३, दर्शन ३, लब्धि ५, क्षायोपशम सम्यक्त्व १), औदयिकना १९ (मिथ्यात्व तथा अज्ञान विना), पारिणामिकना २. सर्व मली ३५, ३४, ३४, ३३. ५ देशविरति गुणस्थाने. मूलभाव ५-४-४-३. उत्तरभाव ३४–उपशम सम्यक्त्व १, क्षायिक सम्यक्त्व १, क्षायोपशमिकना १३ (ज्ञान ३, दर्शन ३, लब्धि ५, सम्यक्त्व १, देशविरति १), औदयिकना १७ (मिथ्यात्व, अज्ञान, देवगति अने नरकगति ए चार विना), पारिणामिकना २. सव मली ३३-३४-३३-३२. ६ प्रमत्त गुणस्थाने. मूलभाव ५-४-४-३. उत्तरभाव ३३–उपशम सम्यक्त्व १, क्षायिक सम्यक्त्व १, क्षायोपशमिकना १४ (अज्ञान ३, देशविरति १, ए चार विना) औदयिकना १५ (गति ३, मिथ्यात्व १, अज्ञान १, असंयम १, ए छ विना), पारिणामिकना २. सर्व मली ३३-३२ -३२-३१. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५९ ] ७ अप्रमत्त गुणस्थाने. मूलभाव ५-४-४-३. उत्तरभाव ३० - उपशम सम्यक्त्व १, क्षायिक सम्यक्त्व १, क्षायोपशमिकना १४ (अज्ञान ३, देशविरति १, ए चार विना), औदयिकना १२ ( अज्ञान १, लेश्या ३, गति ३, मिथ्यात्व १, असंयम १, ए नव विना), पारिणामिकना २. सर्व मली ३० - २९ - २९-२८. ८ आठमे गुणस्थाने. मूलभाव ५-४-४. उत्तरभाव २७ – उपशम सम्यक्त्व १, क्षायिक सम्यक्त्व १, क्षायोपशमिकना १३ (अज्ञान ३, क्षायोपशम सम्यक्त्व १, देशविरति १, ए पांच विना), औदयिकना १० ( गति ३, लेश्या ५, मिथ्यात्व १, अज्ञान १, असंयम १, ए अगीयार विना), पारिणामिकना २. सर्व मली २७ - २६-२६. ९ नवमे गुणस्थाने. मूलभाव ५–४.१ उत्तरभाव २८ –उपशमना २, क्षायिकनो १, क्षायोपशमिकना १३ ( अज्ञान ३, क्षायोपशमसम्यक्त्व १, देशविरति १, ए पांच विना), औदयिकना १० (मनुष्यगति ९, शुक्ललेश्या १, असिद्ध १, कषाय ४, वेद ३, ए १० छे. बाकी - ना ११ नथी), पारिणामिकना २. सर्व मली २८-२७. १० दशमे गुणस्थाने. मूलभाव ५-४. उत्तरभाव २२ – उपशमना २, क्षायिकनो १, क्षायोपशमिकना १३ ( नवमे गुणस्थाने का ते), औदयिकना ४ ( लोभ १, मनुष्यगति १, असिद्ध १, शुक्ललेश्या १), पारिणामिकना २. सर्व मली २२ - २१. ११ अगीयारमे गुणस्थाने. मूलभाव ५-४. उत्तरभाव २० –उपशमना २, क्षायिकनो १, क्षायोपशमिकना १२ ( ज्ञान ४, दर्शन ३, लब्धि ५), औदयिकना ३ ( मनुष्यगति १, शुक्कलेश्या १, असिद्ध १) पारिणामिकना २. सर्व मली २०-१९. ( क्षायिकनी भजना ). १२ बारमे गुणस्थाने. मूलभाव ४. १ जो क्षायिक सनकिती पशमं श्रभि पडिवजे तो तेने ५ भावज होय तेथी अहीं चार भावनो बीजो प्रकार लाभ नहीं. Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरभाव १९–क्षायिकना २, औदयिकना ३ (मनुष्यगति १, असिद्ध १, शुक्ल लेश्या १) क्षायोपशमिकना १२ (ज्ञान ४, दर्शन ३, लब्धि ५), पारिणामिकना २, सर्व मली १९. १३ तेरमे गुणस्थाने. मूलभाव ३. उत्तरभाव १३–क्षायिकना ९, औदयिकना ३ ( मनुष्यगति १, शुक्ललेश्या १, असिद्ध १), पारिणामिकनो १. (जीवत्व) सर्व मली १३. आ गुणस्थानके आव्या पछी भव्यत्वने लेखामां गण्डे नथी. १४ चादमे गुणस्थाने. मूलभाव ३. उत्तरभाव १२–क्षायिकना ९, औदयिकना २ ( मनुष्यगति १, असिद्ध १) पारिणामिकनो १ (जीवत्व). सर्व मली १२. ॥ इति चौद गुणस्थानके मूलभाव तथा उत्तरभाव- विवरण ॥ शतकादि कर्मग्रंथ विचार. १ पुण्यप्रकृति ४२. १ सात वेदनी १५ आहारकांगोपांग २९ त्रस नामकर्म २ उच्च गोत्र १६ वज्रर्षभनाराच संघयण ३० बादर नामकर्म ३ मनुष्य गति १७ समचतुरस्र संस्थान ३१ पर्याप्त नामकर्म ४ मनुष्यानुपूर्वी १८ शुभ वर्ण ३२ प्रत्येक नामकर्म ५ देवगति १९ शुभ गंध ३३ स्थिर नामकर्म ६ देवानुपूर्वी २० शुभ रस ३४ शुभ नामकर्म ७ पंचेंद्रिय जाति २१ शुभ स्पर्श ३५ सौभाग्य नामकर्म ८ औदारिक शरीर २२ अगुरुलघु नामकर्म ३६ सुस्वर नामकर्म ९ वैक्रिय शरीर २३ पराघात नामकर्म ३७ आदेय नामकर्म १० आहारक शरीर २४ उच्छ्वास नामकर्म ३८ यश कीति नामकर्म ११ तैजस शरीर २५ आतप नामकर्म ३९ देवायु १२ कार्मण शरीर २६ उद्योत नामकर्म ४०. मनुष्यायु १३ औदारिकांगोपांग २७ शुभ विहायोगति ४१ तिर्यगायु १४ वैक्रियांगोपांग २८ निर्माण नामकर्म ४२ तीर्थंकर नामकर्म Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ मति ज्ञानावरणी २ श्रुत ज्ञानावरणी ३ अवधि ज्ञानावरणी ४ मनःपर्यव ज्ञानावरणी ५ केवल ज्ञानावरणी ६ दानांतराय ७ लाभांतराय ८ भोगांतराय ९ उपभोगांतराय १० वीयांतराय ११ चक्षु दर्शनावरणी १२ अचक्षु दर्शनावरणी १३ अवधि दर्शनावरणी १४ केवल दर्शनावरणी १५ निद्रा १६ निद्रानिद्रा १७ प्रचला १८ प्रचलाप्रचला १९ स्त्यानर्द्धि निद्रा २० नीच गोत्र [६१] पाप प्रकृति ८२. २१ असाता वेदनी ५३ रति २२ मिथ्यात्व मोहनी ५४ अरति २३ स्थावर नामकर्म ५५ भय २४ सूक्ष्म नामकर्म ५६ शोक २५ अपर्याप्त नामकर्म ५७ दुगंछा २६ साधारण नामकर्म ५८ पुरुष वेद २७ अस्थिर नामकर्म ५९ स्त्री वेद २८ अशुभ नामकर्म ६० नपुंसक वेद २९ दुर्भग नामकर्म ६१ तिर्यंच गति ३० दुःस्वर नामकर्म ६२ तियेचानुपूर्वी ३१ अनादेय नामकर्म ६३ एकेंद्रिय जाति ३२ अयश नामकर्म ६४ द्वींद्रिय जाति ३३ नरकगति ६५ त्रींद्रिय जाति ३४ नरकानुपूर्वी ६६ चतुरिंद्रिय जाति ३५ नरकायु ६७-७० अशुभ वर्णादि ४ ३६-३९ अनंतानुबंधी ४ ७१ अशुभ विहायोगति ४०-४३ अप्रत्याख्यानी ४ ७२ उपघात ४४-४७ प्रत्याख्यानी ४ ७३-७७ संघयण ५ ४८-५१ संज्वलन ४ ७८-८२ संस्थान ५ ५२ हास्य आश्रव ४२. २२ प्राणातिपातिकी क्रिया २३ आरंभिकी क्रिया २४ पारिग्रहिकी क्रिया २५ मायाप्रत्ययिकी क्रिया २६ मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया २७ अप्रत्याख्यानिकी क्रिया २८ दृष्टिकी क्रिया २९ स्पृष्टिकी क्रिया . १-५ इंद्रिय ५ ६-९ कषाय ४ १०-१४ अव्रत ५ १५-१७ जोग ३ १८ कायिकी क्रिया १९ अधिकरणिकी क्रिया २० प्राद्वेषिकी क्रिया २१ पारितापनीकी क्रिया Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० प्रातीत्यकी क्रिया ३१ सामंतोपनिपातिकी क्रिया ३२ शस्त्री क्रिया ३३ स्वहस्तिकी क्रिया ३४ आयनिकी ( आज्ञापनिकी) क्रिया ३५ विदारणिकी क्रिया ३६ अनाभोगिकी क्रिया १-५ समिति ५ ६-८ गुप्ति ३ ९ क्षुधा परिषह १० पिपासा परिषह ११ शीत परिषह १२ उष्ण परिषह १३ देश परिषह १४ अचेलक परिषह १५ अरति परिषह १६ स्त्री परिषह १७ चर्या परिषह १८ निषद्या परिषह १९ शय्या परिषह २० आक्रोश परिषह २१ वध परिषह २२ याचना परिवह २३ अलाभ परिषह ७ अगुरुलघु नाम ८ निर्माण नाम [६२] ३१ क्षमा धर्म ३२ मार्दव धर्म ३३ आर्जव धर्म ३४ मुक्ति धर्म ३५ तप धर्म ३६ संयम धर्म १- ४ वर्ण चतुष्क ४ ५-६ तेजस नाम कार्मण नाम ३७ अनवकांक्षाप्रत्ययिकी क्रिया ३८ प्रायोगिकी क्रिया ३९ समुदानिकी क्रिया ४० प्रेमिकी क्रिया संवर तत्वना ५७ भेद. २४ रोग परिषह २५ तृणस्पर्श परिषह २६ मल परिषह २७ सत्कार परिषह २८ प्रज्ञा परिषह २९ अज्ञान परिषह ३० सम्यक्त्व परिषह ४१ द्वेषिकी क्रिया ४२ इर्याथिक क्रिया ३७ सत्य धर्म ३८ शौच धर्म ३९ अकिंचन्य धर्म ४० ब्रह्मचर्य धर्म ध्रुव बंधी ४७. ९ उपघात नाम १० भय मोहनी ११ कुत्सा मोहनी १२: मिथ्यात्व मोहनी ४१ अनित्य भावना ४२ अशरण भावना' ४३ संसार भावना ४४ एकत्व भावना ४५ अन्यत्व भावना ४६ अशुचित्व भावना ४७ आश्रव भावना ४८ संवर भावना ४९ निर्जरा भावना ५० लोकस्वभाव भावना ५१ बोधिबीज भावना ५२ धर्म भावना ५३ सामायिक चारित्र ५४ छेदोपस्थापनीय चारित्र ५५ परिहारविशुद्धि चारित्र ५६ सूक्ष्मसंपराय चारित्र ५७ यथाख्यात चारित्र १३- २८ कषाय १६ २९-३३ ज्ञानावरणीय ५ ३४ - ४२ दर्शनावरणीय ९ ४३-४७ अंतराय ५ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्रुव बंधी ७३. १-३ शरीर ३ . ३०-३३ आनुपूर्वी ४ ४९-५८ स्थावर दशक १० ४-६ उपांग ३ ३४ जिन नाम ५९-६० गोत्र २ ७-१२ संघयण ६ ३५ उच्छ्वास नाम ६१-६२ वेदनी २ १३-१८ संस्थान ६ ३६ उद्योत नाम ६३-६६ हास्यादि युगल २ नी ४ १९-२३ जाति ५ ३७ आतप नाम ६७-६९ वेद ३ २४-२७ गति ४ ३८ पराघात नाम ७०-७३ आयु ४ २८-२९ विहायोगति २ ३९-४८ त्रस दशक १० ध्रुवोदयो २७. १ निर्माण नामकर्म ५ शुभ नामकर्म १३-१७ ज्ञानावरणीय ५ २ स्थिर नामकर्म . ६ अशुभ नामकर्म १८-२२ अंतराय ५ ३ अस्थिर नामकर्म ७-८ तैजस कार्मण नामकर्म २३-२६ दर्शनावरणीय ४ ४ अगुरुलघु नामकर्म ९-१२ वर्णादिक ४ २७ मिथ्यात्व मोहनी अध्रुवोदयी ९५. १-३ शरीर ३ ३६ उद्योत नाम ६१-६२ शोक अरति २ ५-६ उपांग ३ ३७ आतप नाम ६३-६५ वेद ३ ७-१२ संघयण ६ ३८ पराघात नाम ६६-६९ आयु ४ • १३-१८ संस्थान ६ ३९-४२ त्रसचतुष्क ४ ७०-८५ कषाय १६ १९-२३ जाति ५ ४३-४६ सुभग चतुष्क ४ ८६-८७ भय तथा कुत्सा २४-२७ गति ४ ४७-५० स्थावर चतुष्क ४ ८८-९२ निद्रा ५ २८-२९. विहायोगति द्विक ५१-५४ दुर्भग चतुष्क ४ ९३ उपघात न.म ३०-३३ अनुपूर्वी ४ ५५-५६ गोत्रद्विक २ ९४ मिश्र मोहनी ३४ जिन नाम ५७-५८ वेदनीय द्विक २ ९५ समकित मोहनी ३५ उच्चस नाम । ५९-६० हास्य रति २ ध्रव सत्ता १३० १-१० त्रस १० ४१ तैजस शरीर नाम ४७ तैजस कार्मण बंधन ११-२० स्थावर १० ४२ कार्मण शरीर नाम । ४८-६३ कषाय १६ २१-२५ वर्ण ५ ४३ तैजस संघात नाम ६४ भय २६-२७ गंध २ ४४ कार्मण संघात नाम ६५ कुत्सा २८-३२ रस ५ ४५ तैजस तैजस बंधन ६६ मिथ्यात्व मोहनी ३३-४० स्पर्श ८ ४६ कार्मण कार्मण बंधन ६७-७१ ज्ञानावरणीय ५ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६४] ७२-८० दर्शनावरणीय ९ १०९-११० वेदनी २ - १२२ उच्छास नाम ८१-८५ अंतराय ५ १११-११४ बे युगलनी ४ १२३ उद्योत नाम ८६ निर्माण नाम ११५ औदारिक शरीर १२४ आतप नाम ८७ उपधात नाम ११६ औदारिक अंगोपांग १२५ परावात नाम ८८ अगुरूलघु नाम ११७ औदारिक संघातन १२६-१२७विहायोगति८९-९१ वेद ३ ११८ औदारिक औदारिक बंधन द्विकनी २ ९२-९७ संघयण ६ ११९ औदारिक तैजस बंधन १२८-१२९ तिर्थचद्विक ९८-१०३ संस्थान ६ १२० आदारिक कार्मण बंधन १३० नीच गोत्र १०४–१०८ जाति ५ . १२१ औदारिक तैजस काभण बंधन __ अध्रुव सत्ता २८. १ सम्यक्त्व मोहनी १० वैक्रिय कार्मण बंधन २१ आहारक शरीर २ मिश्र मोहनी ११ वैक्रिय तैजस कार्मण बंधन २२ आहारक अंगोपांग ३-४ मनुष्य द्विक १२ देवगति २३ आहारक संघातन ५ वैक्रिय शरीर १३ देवानुपूर्वी २४ आहारक आहारक बंधन ६ वैक्रिय अंगोपांग १४ नरकगति २५ आहारक तैजसं बंधन ७ वैक्रिय संघातन १५ नरकानुपूर्वी २६ आहारक कार्मण बंधन ८ वैक्रिय वैक्रिय बंधन १६ जिननाम २७ आहारककार्मणतैजसबंधन ९ वैक्रिय तैजस बंधन १७-२० आयु ४ २८ उच्च गोत्र . सर्व घाती २०. १ केवळ ज्ञानावरणीय ३-७ निद्रा ५ ८-१९ प्रथम कषाय १२ २ केवळ दर्शनावरणीय २० मिथ्यात्व देश घाती २५ १-४ ज्ञानावरणीय ४ ८-११ संज्वलन कषाय ४ १२-२० नोकषाय ९ ५-७ दर्शनावरणीय ३ २१-२५ अंतराय ५ अघाती ७५. १-८ प्रत्येक प्रकृति ८ १४-१६ अंगोपांग ३ २३-२८ संस्थान ६ ९-१३ शरीर ५ १७-२२ संघयण ६ २९-३३ जाति ५ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४-३७ गति ४ ३८-३९ विहायोगति २ ४०-४३ अनुपूर्वी ४ ४४-४७ आयु ४ ४८-५७ त्रस दशक ५८-६७ स्थावर दशक ६८-६९ गोत्र २ ७०-७१ वेदनी २ । ७२-७५ वर्णादि ४. १-३ वेद ३ ४-७ बे युगलनी ४ ८-२३ कषाय १६ २४-२५ उद्योत, आतप २६-२७ गोत्रकर्मनी २ २८-२९ वेदनी २ परावर्तमान ९१. ३०--३४ निद्रा ५ ३५-४४ त्रस १० ४५-५४ स्थावर १० ५५-५८ आयु ४ ५९-६१ शरीर ३ ६२-६४ अंगोपांग ३ ६५-७० संस्थान ६ ७१-७६ संवयण ६ ७७-८१ जाति ५ ८२-८५ गति ४ ८६-८७ विहायोगति २ ८८-९१ आनुपूर्वी ४ अपरावर्तमान २९. १-४ वर्णादि ४ ९ अगुरुलघु नाम २५ भय मोहनी. ५ तैजस शरीर १०-१४ ज्ञानावरणीय ५ २६ कुत्सा मोहनी ६ कार्मण शरीर १५--१८ दर्शनावरणीय ४ २७ मिथ्यात्व मोहनी ७ निर्माण नाम १९-२३ अंतराय ५ २८ उच्वास नाम ८ उपधात नाम २४ पराघात नाम २९ तीर्थकर नाम क्षेत्रविपाकी ४. ४ चार अनुपूर्वीनो उदय. भव विपाकी ४. ४ आयु ४ नो उदय. जीव विपाको ७८ उदय. १-५ ज्ञानावरणीय ५ ५०-५१ वेदनी २ ६३-६६ दुर्भग चतुष्कनी ४ ६-१४ दर्शनावरणीय ९ ५२ तीर्थंकर नाम ६ ७-७१ जाति ५ १५-४२ मोहनी २८ ५३-५५ त्रस-बादर-पर्याप्त ३ ७२--७५ गति ४ ४३-४७ अंतराय ५ ५६-५८स्थावर-सूक्ष्म-अपर्याप्त ३ ७६-७७ विहायोगति २ ४८-४९ गोत्र २ ५९-६२ सुभग चतुष्कनी ४ ७८ श्वासोवास Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बध ह पुद्गल विपाकी ३६ उदय. १-४ वर्णादि ४ १०-११ तैजस कार्मण ३१ उपधात नाम ५ निर्माण नाम १२ अगुरुलघु नाम ३२ साधारण नाम ६ स्थिर नाम १३-१५ शरीर ३ ३३ प्रत्येक नाम ७ अस्थिर नाम १६-१८ अंगोपांग ३ ३४ उद्योत नाम ८ शुभ नाम १९-२४ संघयण ६ ३५ आतप नाम ९ अशुभ नाम २५-३० संस्थान ६ ३६ पराघात नाम बंध हेतु ५७. (मिथ्यात्व ५) (अविरति १२) २९ प्रत्याख्यानी ४ १ आभिग्रहिक मिथ्यात्व १० इंद्रियनी अविरति ५ ३३ संज्वलनी ४ २ अनभिग्रहिक मिथ्यात्व १६ कायनी अविरति ६ ४२ नोकषाय ९ ३ आभिनिवेशिक मिथ्यात्व १७ मननी अविरति १ (योग १५) . ४ सांशयिक मिथ्यात्व (कषाय २५) ४६ मनना योग ४ ५ अनाभोग मिथ्यात्व २१ अनंतानुबंधी ४ ५० वचनना योग ४ २५ अप्रत्याख्यानी ४ . ५७ काथना योग ७ सर्व घाती बंध प्रकृति २० Y विवरण. २५ नरकगतिनी मार्गणाथी मांडीने पचीशमी लोभ मार्गणा सुधी २० नो बंध जाणवो. २८ मति, श्रुत अने अवधि ए त्रण ज्ञाननी मार्गणाए स्त्यानाचित्रिक ३, प्रथमना क पाय ४. मिथ्यात्व मोहनी १, ए ८ विना १२ नो बंध जाणवो. २९ मनःपर्यव ज्ञाननी मार्गणाए आदिना कषाय १२, मिथ्यात्व १, स्त्यानार्द्धत्रिक ३, ए १६ विना ४ नो बंध. ३० केवळ ज्ञाननी मार्गणाए बंध नथी. ३३ मति, श्रुत अने विभंग ए त्रण अज्ञाननी मार्गणाए बंध २० नो जाणवो. ३६ सामायिक, छेदोपस्थापनीय अने परिहारविशुद्धिनी मार्गणाए मनःपर्यव ज्ञाननी पेठे १६ विना ४ नो बंध. ३७ सूक्ष्मसंपराय मार्गणाए केवळ ज्ञानावरण १, केवळ दर्शनावरण १, ए २ नो बंध. ३८ यथाख्यात मार्गणाए बंध नथी. ३९ देशविरतिनी मार्गणाए पहेला तथा बीजा कषाय ८, स्त्यानर्द्धि त्रिक ३, मिथ्यात्व १, ए १२ विना ८ नो बंध. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ अविरति, चक्षु अने अचक्षुदर्शननी मार्गणाए २० नो बंध. ४३ अवधि दर्शन मार्गणाए अवधि ज्ञाननी पेठे १२. ४४ केवळ दर्शननी मार्गणाए .. ५२ कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म अने शुक्ल ए छ लेश्या तथा भवी अने अभवी ए ८ मार्गणाए २० नो बंध. ५६ उपशम, क्षायक, क्षायोपशमिक अने मिश्रनी मार्गणाए मतिज्ञाननी पेठे ८ विना १२. ५७ सास्वादन मार्गगाए मिथ्यात्व विना १९ नो बंध. ६२ मिथ्यात्व, संज्ञी, असंज्ञी, आहारी अने अनाहारी मार्गणाए २० नो बंध. देश घाती प्रकृति बंध २५ नुं विवरण. २५ नरक गतिनी मार्गणाथी मांडीने पचीशमी लोभ मार्गणा सुधी २५ नो बंध होय. २९ मति ज्ञान, श्रुत ज्ञान, अवधि ज्ञान अने मनःपर्यव ज्ञाननी मार्गणाए स्त्रीवेद १, . नपुंसक वेद १, ए २ विना २३. ३० केवळ ज्ञाननी मार्गणाए बंध .. ३३ मति, श्रुत अने विभंग अज्ञाननी मार्गणाए २५. ३६ सामायिक, छेदोपस्थापनीय अने परिहारविशुद्धिनी मार्गणाए स्त्रीवेद १, नपुंसकवेद १, ए २ विना २३. ३७ सूक्ष्मसंपराय मार्गणाए संज्वलन कषाय ४, नोकषाय ९, ए १३ विना १२. ३८ यथाख्यात चारित्र मार्गणाए .. ३९ देशविरति मार्गणाए स्त्रीवेद १, नपुंसक वेद १, ए २ विना २३. ४२ अविरति, चक्षु दर्शन अने अचक्षु दर्शननी मार्गणाए २५. ४३ अवधि दर्शननी मार्गणाए अवधिज्ञाननी पेठे २३. ४४ केवळ दर्शननी मार्गणाए .. ५२ कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म, शुक्ल ए ६ लेश्या तथा भव्य अने अभव्य ए ८ मार्गणाए २५. ५६ उपशम, क्षायक, क्षायोपशमिक समकित अने मिश्रनी मार्गणाए स्त्रीवेद १, नपुं सक वेद १, ए वे विना २३. ५७ सास्वादन मार्गणाए नपुंसक वेद विना २४. ६२ मिथ्यात्व, संज्ञी, असंज्ञी, आहारी, अनाहारी मार्गणाए २५. Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६८] अघाती बंध ७५ नुं विवरण. १ नरक गतिनी मार्गणाए देव त्रिक ३, नरक ३, वैक्रिय द्विक २, सूक्ष्म त्रिक ३, जाति ४, स्थावर १, आतप १, आहारक द्विक २, ए १९ विना ५६ नो बंध होय, २ देव गतिनी मागणाए देवत्रिक ३, नरकत्रिक ३, वैक्रिय द्विक २, आहारक द्विक २, मूक्ष्म त्रिक ३, विकल त्रिक ३, ए १६ विना ५९. ३ मनुष्य गतिनी मार्गणाए ७५. ४ शिर्यच गतिनी मार्गणाए जिननाम १, आहारक द्विक २, ए ३ विना ७२. ८ एद्रिय, द्वींद्रिय. त्रिंद्रीय अने चतुरिद्रियनी मार्गणाए देवत्रिक ३, नरकत्रिक ३, वैक्रिय द्विक २, आहारक द्विक २, जिननाम १, ए ११ विना ६४. ९ एंचेंद्रियनो मार्गगाए ७५. ११ पृथ्वीकाय अने अपकायनी मागगाए एकेंद्रियादिकनी पेठे ११ विना ६४. १३ तेजस्काय अने वायुकायनी मार्गणाए एकेंद्रियनी मार्गणानी ११, मनुष्यत्रिक ३, उच्च गोत्र १, ए १५ विना ६०. १४ वनस्पति कायनी मार्गणाए पूर्वोक्त ११ विना ६४. २५ त्रसकाय, मन, वचन, काया, पुरुष वेद, स्त्री वेद, नपुंसक वेद, क्रोध, मान, माया - अने लोभनी मागणाए ७५. २८ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अने अवधिज्ञाननी मार्गणाए नीच गोत्र १, तिर्यंच त्रिक ३, नरकत्रिक ३, जाति ४, स्थावर ४, पहेला विना संघयण ५, पहेला विना संस्थान ५, आतप १, उद्योत १, अशुभ विहायोगति १, दुर्भग त्रिक ३, ए ३१ विना ४४. २९ मनःपर्यव ज्ञाननी मार्गणाए मतिज्ञाननी मार्गणाना ३१, वज्रर्पभनाराच संवयण १, मनुष्य त्रिक ३, औदारिक द्विक २, ए ३७ विना ३८. ३० केवळज्ञाननी मार्गणाए १ साता वेदनी. ३३ मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान अने विभंग ज्ञाननी मार्गणाए जिन नाम १, आहारक द्विक २, ए ३ विना ७२. ३६ सामायिक, छेदोपस्थापनीय अने परिहारविशुद्धिनी मार्गणाए मनःपर्यव ज्ञाननी पेठे ३७ विना ३८. ३७ सूक्ष्मसंपराय मार्गणाए जिननाम १, उच्च गोत्र १, सातावेदनी १, ए ३ प्रकृतिज बांधे ३८ यथाख्यात चारित्रनी मार्गणाए १ सातावेदनीज बांधे. ३९ देशविरति मार्गणाए मनःपर्यव ज्ञाननी ३७, आहारक द्विक २, ए ३९ विना ३६. . Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६९] ४० अविरति मार्गणाए आहारक दिक विना ७३. ४२ वक्षुदर्शन तथा अचक्षुदर्शननी मागणाए ७५. ४३ अवधिदशननी मागणाए अवधिज्ञाननी पेठे ४४. ४४ केवळदर्शननी मार्गणाए १ सातावेदनी. ४७ कृष्ण, नील, कापोत, ए ३ लेश्यानी मार्गणाए आहारक द्विक विना ७३. ४८ तेजो लेश्यानी मागणाए नरक त्रिक ३, सूक्ष्मत्रिक ३, विकलेंद्रिय ३, ए ९ विना ६६. ४९ पद्म लेश्यानी मार्गणाए तेजो लेश्यानी ९, एकेद्रिय १, आतप १, स्थावर १, ए १२ विना ६३. ५० शुक्ल लेश्यानी मार्गणाए पूर्वोक्त १२, तिर्यंचत्रिक ३, उद्योत १, ए १६ विना ५९. ५१ भव्यनी मार्गणाए ७५. ५२ अभव्यनी मार्गणाए आहारकद्विक २, जिननाम १, ए ३ विना ७२. ५४ क्षायिक अने क्षायोपशमिक मार्गणाए मतिज्ञान प्रमाणे ३१ विना ४४. ५५ उपशम समकित मार्गणाए मतिज्ञानप्रमाणे ३१ तथा आहारक द्विक ए ३३ विना ४२.. ५६ मिश्र मागणाए मतिज्ञाननी मार्गणानी ३१, मनुजायु १, देवायु १, जिननाम १, आहारकद्विक २, ए ३६ विना ३९. ५७ सासादन मार्गणाए नरकत्रिक ३, जाति ४, स्थावर ४, हुंडक संस्थान १, छेवर्ल्ड संघयण १, आतप १, आहारकद्विक २, जिननाम १, ए १७ विना ५८. ५८ मिथ्यात्व मार्गणाए जिनजाम १, आहारकद्विक २, ए ३ विना ७२. ५९ संज्ञी मार्गणाए ७५. ६० असंज्ञी मार्गणाए आहारकद्विक २, जिननाम १, ए ३ विना ७२. ६१ आहारकनी मार्गणाए ७५. ६२ अनाहारकनी मार्गणाए आयु ४, आहारकद्विक २, नरकद्विक २, ए ८ विना ६७. क्षेत्रविपाकी ४ अनुपूर्वीनो उदय. १ नरक गतिनी मार्गणाए नरकनी अनुपूर्वी १. २ देव गलिए देवतानी अनुपूर्वी १. ३ मनुष्य गतिए मनुष्पनी अनुपूर्वी १. ४ तिर्यच गतिए तिथंचनी अनुपूर्वी १. ८ एकेंद्रिय, द्वींद्रिय, त्रींद्रिय अने चतुरिंद्रियने तिर्यचनी अनुपूर्वी १. ९ पंचेंद्रियने चारे गतिनी अनुपूर्वी ४. १४ पृथ्वी, अप, तेजो, वायु अने वनस्पतिने तिर्यंचनी अनुपूर्वी १. Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७०] १६ त्रसकाय तथा काययोगने चारे गतिनी अनुपूर्वी ४. १८ पुरुषवेद अने स्त्रीवेदने नरकनी अनुपूर्वी विना ३. १९ नपुंसकवेदने देवतानी अनुपूर्वी विना ३. २५ क्रोध, मान, माया, लोभ, मतिज्ञान तया श्रुतज्ञानने चारे गतिनी अनुपूर्वी ४. २६ अवधिज्ञानने पण चारे गतिनी अनुपूर्वी ४. परंतु तिर्यचनी न होय तो ३. २८ मतिअज्ञान तथा श्रुतअज्ञानने चारे गतिनी अनुपूर्वी ४. २९ विभंग ज्ञानने पण ४. विशेष एटलो के मनुष्य अने तिर्यचनी अनुपूर्वी न होय तो २. ३० अविरतिने पण ४. ३१ अचक्षु दर्शनने ४. ३२ अवधि दर्शनने ३ अथवा ४. ३५ कृष्ण, नील अने कापोत लेश्यावंतने ४. ३८ तेजो, पद्म अने शुक्ल लेश्यावंतने नरकनी अनुपूर्वी विना ३. ४० भव्य तथा अभव्यने ४. ४१ उपशभ समकितने उपशम श्रेणीना मरीने देवगतिमां जाय त्यारे १ देवगतिनी अनु पूर्वी होय अथवा न होय. ४३ क्षायिक अने क्षयोपशमने ४. ४४ सास्वादनने नरकनी अनुपूर्वी विना ३. ४६ मिथ्यात्वीने तथा सहीने ४. ४७ असंज्ञीने देव अने नारकीनी बे अनुपूर्वी विना २. ४८ अनाहारीने ४. ६२ मनयोग, वचनयोग, मनःपर्यवज्ञान, केवळज्ञान, सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परि हारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय, यथाख्यात, देशविरति, चक्षुदर्शन, केवळदर्शन, मिश्र, अने आहारी आ १४ मार्गणाए अनुपूर्वी न होय. भवविपाकी आयुष्य ४ नो उदय. ४ चारे गतिमा पोत पोतानुं आयु होय. ८ एकेंद्रिय, द्वींद्रिय, त्रींद्रिय अने चतुरिँद्रियने १ तिर्यंचन आयु. ९ पंचेंद्रियने चारे गतिर्नु आयु ४. १४ पृथ्वी, अप, तेज, वायु अने वनस्पतिने तिर्यंचायु १. १८ त्रसकाय, मनयोग, वचनयोग अने काययोगने आयु ४. २० पुरुषवेद अने स्त्रीवेदने नरकायु विना ३. Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७१] २१ नपुंसकवेदने देवायु विना ३. २८ क्रोध, मान, माया, लोभ, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञानने ४. ३० मनःपर्यव अने केवळज्ञानने मनुजायु १. ३३ मतिअज्ञान, श्रअज्ञान अने विभंगज्ञानने आयु ४. ३८ सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय अने यथाख्यातने मनुजायु १, ३९ देशविरतिने मनुष्य तथा तिर्यचर्नु आयु २. ४३ अविरति, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन अने अवधिदर्शनने आयु ४. ४४ केवळदर्शनने मनुष्यायु १. ४७ कृष्ण, नील अने कापोत लेश्यावंतने आयु ४. ५० तेजो, पद्म अने शुक्ल लेश्यावंतने नरकायु विना ३. ५९ भव्य, अभव्य, छए समकित, तथा संज्ञीने आयु ४. ६० असंज्ञीने मनुष्य तथा तिर्यंचनुं आयु २. ६२ आहारी तथा अनाहारीने चारे गतिर्नु आयु ४. __ जीवविपाकी ७८ नो उदय. १ नरकगति-उच्चगोत्र १, स्त्रीवेद १, पुरुषवेद १, गति ३, जाति ४, जिननाम १, सुभग चतुष्क ४, स्थावर ३, शुभ विहायोगति १, ए १९ विना ५९. अने जो स्त्यानदिनुं त्रिक ३ काढीए तो ५६. २ देवगति-नीच गोत्र १, नपुंसकवेद १, जाति ४, गति ३, अशुभ विहायोगति १, जिननाम १, स्थावर त्रिक ३, दुःस्वर १, ए १५ विना ६३. अथवा स्त्या नर्द्धि त्रिक काढीए त्यारे ६०. ३ मनुष्य गति--जाति ४, गति, ३, स्थावर १, सूक्ष्म १, ए ९ विना ६९. ४ तियच गति-उच्च गोत्र १, जिननाम १, गति ३, ए ५ विना ७३. ५ एकेंद्रिय-उच्च गोत्र १, स्त्रीवेद १, पुरुषवेद १, जाति ४, गति ३, विहायोगति २, जिननाम १, त्रस १, सुस्वर १, दुःस्वर १, समकित मोहनी १, मिश्र मोहनी १, सुभग १, आदेय १, ए २० विना ५८. ८ वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय-उच्च गोत्र १, स्त्रीवेद १, पुरुष वेद १, जाति ४, गति ३, शुभ विहायोगति १, स्थावर १, सूक्ष्म १, सुभग १, आदेय १, समकित मोहनी १, मिश्र मोहनी १, जिन नाम १, ए १८ विना ६०. ९ पंचेंद्रिय-जाति ४, स्थावर १, सूक्ष्म १. ए ६ विना ७२. . Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • [७२] ११ पृथ्वीकाय, अपकाय—एकेंद्रियनी पेठे २० विना ५८. १३ तेजस्काय, वायुकाय--एकेंद्रिय मार्गणानी १०, यश १, ए २१ विना ५७. १४ वनस्पतिकाय—एकेंद्रिय प्रमाणे २० विना ५८. १५ त्रसकाय-स्थावर १, सूक्ष्म २, एकेंद्रिय १, ए ३ विना ७५. १६ मनयोग--स्थावर ३, जाति ४, ए ७ विना ७१. १७ वचनयोग-स्थावर ३, एकेंद्रिय १, ए ४ विना ७४. १८ काययोग-७८. १९ पुरुषवेद-स्त्रीवेद १, नपुंसकवेद १, जाति ४, गति १, स्थावर १, सूक्ष्म १, जिन नाम १, ए १० विना ६८. २० स्त्रीवेद-पुरुषवेद १, नपुंसक वेद १, जाति ४, विगेरे उपर प्रमाणे १० विना ६८ २१ नपुंसकवेद-जिननाम १, पुरुषवेद १, स्त्रीवेद १, देवगति १, ए ४ विना ७४. २२ क्रोध-मान ४, माया ४, लोभ ४, जिननाम १, ए १३ विना ६५. २३ मान-क्रोध ४, माया ४, लोभ ४, जिननाम १, ए १३ विना ६५. २४ माया-क्रोध ४, मान ४, लोभ ४. जिननाम १, ए १३ विना ६५. २५ लोभ-क्रोध ४, मान ४, माया ४, जिननाम १, ए १३ विना ६५. २८ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान-स्थावर ३, जाति ४, जिननाम १, मिथ्यात्व १, मिश्र १, अनंतानुबंधी ४, ए १४ विना ६४. २९ मनःपर्यवज्ञान-पहेला, बीजा अने त्रीजा कषायनी चोकडीनी १२, जाति ४, स्थावर १, सूक्ष्म १, जिननाम १, सम्यक्त्व मोहनी १, मिश्र मोहनी १, अपर्याप्त १, मिथ्यात्व १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, नीच गोत्र १, देवगति १, नरकगति १, ए २९ विना ४९. ३० केवळज्ञान-मनुष्यगति १, पंचेंद्रिय जाति १, त्रस द्विक ३, वेदनीयक्तिक २, वि हायोगतिद्विक २, उच्च गोत्र १, यश १, आदेय १, सुभग १, सुस्वर १, जिन नाम १, उच्छवास १, दुःस्वर १, आ १७ होय. ३२ मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान-जिननाम १, समकित लोहनी १, मिश्र मोहनी १, ए ३ विना ७५. ३३ विभंगज्ञान-स्थावर ३, जाति ४, जिननाम १, समकित मोहनी १, ए ९ विना ६९. ३५ सामायिक, छेदोपस्थापनीय--मनःपर्यव ज्ञाननी मार्गणा प्रमाणे २९ विना ४९. ३६ परिहारविशुद्धि--मनःपर्यव ज्ञाननी २९, स्त्रीवेद १, ए ३० विना ४८. ३७--सूक्ष्मसंपराय-जाति ४, गति ३, स्थावर १, सूक्ष्म १, जिननाम १, सम्यक्त्व मोहनी १, मिश्र लोहनी १, मिथ्यात्व १, पहेला बोजात्रीजा कषायनी १२ संज्वलन ३, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, नीच गोत्र १, स्त्याना त्रिक ३, हास्यादि ६, वेद ३, अपर्याप्त १, ए ४५ विना ३३. .. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७३] ३८ यथाख्यात-सूक्ष्मसंपरायनी ४५ मां संज्वलन लोभ उमेरी जिननाम रहित कर वाथी ४५ विना ३३. ३९ देशविरति–पहेला बीजा कषायनी ८, मिश्र मोहनी १, मिथ्यात्व १, स्थावर १, सूक्ष्म १, जिननाम १, अपर्याप्त १. दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, गति २, जाति ४, ए २३ विना ५५. ४० अविरति--जिननाम १ विना ७७. ४१ चक्षुदर्शन-जाति ३, स्थावर त्रिक ३, जिननाम १, ए ७ विना ७१. ४२ अचक्षुदर्शन-जिननाम १ विना ७७. ४३ अवधिदर्शन-अवधिज्ञाननी मार्गणा प्रमाणे १४ विना ६४. ४४ केवळदर्शन-केवळज्ञाननी मार्गणा प्रमाणे १७. ४७ कृष्ण, नील, कापोत-जिननाम १ विना ७७. ४८ तेजोलेश्या-सूक्ष्म द्विक २, जाति ३, नरकगति १, जिन १, ए ७ विना ७१. ४९ पद्मलेश्या-स्थावर त्रिक ३, जाति ४, नरकगति १, जिन १, ए ९ विना ६९: ५० शुक्ललेश्या--स्थावर त्रिक ३, जाति ४, नरकगति १, ए ८ विना ७०. ५१ भव्य-७८, ५२ अभव्य-समकित मोहनी १, मिश्र मोहनी १, जिननाम १, ए ३ विना ७५. ५३ उपशम-स्थावर त्रिक ३, जाति ४, अनंतानुबंधी ४, समकित मोहनी १, मिश्र मोहनी १, जिननाम १, मिथ्यात्व १, ए १५ विना ६३.: ५४ क्षायिक जाति ४, स्थावर ३, समकित मोहनी १, मिश्र १, मिथ्यात्व १, अनं तानुबंधी ४, ए १४ विना ६४. ५५ क्षयोपशम-जाति ४, स्थावर ३, मिथ्यात्व १, मिश्र १, जिन १, अनंतानुबंधी ४, ए १४ विना ६४. ५६ मिश्र--जाति ४, स्थावर ३, समकितमोहनी १, मिथ्यात्व १, जिननाम १, अनं तानुबंधी ४, ए १४ विना ६४. ५७ सास्वादन-जिननाम १, समकितमोहनी १, मिश्र १, मिथ्यात्व १, सूक्ष्म १, अपर्याप्त १, ए ६ विना ७२. ५८ मिथ्यात्व--जिननाम १, समकितमोहनी १, मिश्रमोहनी १, ए ३ विना ७५. .. ५९ संज्ञी- स्थावर १, सूक्ष्म १, जाति ४, ए ६ विना ७२. .. ६० असंज्ञी--जिननाम १, समकितमोहनी १, मिश्र १, सुभग १, आदेय १, शुभवि हायोगति, १ उच्चगोत्र १, स्त्रीवेद १, पुरुषवेद १, देवगति १, नरकगति १, ए ११ विना ६७, Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७४] .६१ आहारी--७८.. ६२ अनाहारी--विहायोगति २, उच्छवास १, सुस्वर १, दुःस्वर १, मिश्रमोहनी १, ए ६ विना ७२. पुद्गल विपाकी ३६. नो उदय. १ नरकगति-संघयण ६, संस्थान ५, आतप १, औदारिकद्विक २, आहारकद्विक २, साधारण १, उद्योत १, ए १८ विना १८, २ देवगति-उपर प्रमाणे १८ विना १८. ३ मनुष्यगति–वैक्रियद्विक २, उद्योत १, आतप १, साधारण १, ए ५ विना ३१.. ४ तिर्यचगति--वैक्रियद्विक २, आहारकद्विक २, ए ४ विना ३२. । ५ एकेंद्रिय--संघयण ६, संस्थान ५, वैक्रियद्विक २, आहारकद्विक २, औदारिक - अंगोपांग १, ए १६ विना २० ८ द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय-संघयण ५, संस्थान ५, वैक्रियद्विक २, आहारकद्विक ...२, आतप १, साधारण १, ए १६ विना २०. ९ पंचेंद्रिय-साधारण १, आतप १, ए वे विना ३४. १० पृथ्वीकाय-एकेंद्रियनी १६, साधारण १, ए १७ विना १९. ११ अपकाय- उपरनी १७, आतप १, ए १८ विना १८. १३ तेजस्काय, वायुकाय-उपरनी १८, उद्योत १, ए १९ विना १७... १४ वनस्पतिकाय-पृथ्वीकायनी १७ मांथी साधारण काढी आतप सहित करवाथी १७ विना १९. । १९ त्रसकाय, मनोयोग, वाग्योग, काययोग, पुरुषवेद-साधारण १, आतप १, ए २ विना ३४. २० स्त्रीवेद-आहारकद्विक २, साधारण १, आतप १, ए ४ विना ३२. २५ नपुंसकवेद, क्रोध, मान, माया, लोभ-३६... २८ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान-आतप १, साधारण १. ए २ विना ३४. २९ मनःपर्यवज्ञान-साधारण १, आतप १, उद्योत १, वैक्रियद्विक २, ए ५ विना ३१. ३० केवळज्ञान--आहारकद्विक २, वैक्रियद्विक २, पहेला संघयण विना संवयण ५, आ तप १, उद्योत १, साधारण १, ए १२ विना २४... .) ३२ मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान--आहारकद्विक २ पिना ३४. ३३ विभंगज्ञान-आहारकद्विक २, साधारण १, आतप १, ए ४ विना ३२. ३५ सामायिक, छेदोपस्थापनीय--मनःपर्यव प्रमाणे ५ विना ३१. -.. Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ परिहारविशुद्धि--आहारकद्विक २, पहेला विना संघयण ५, साधारण १, आतप १, उद्योत १, वैक्रियद्विक २, ए १२ विना २४.. ३७ सूक्ष्मसंपराय--आहारकद्विक २, वैक्रियद्विक २, छेल्लां संघयण ३, आतप १, उद्योत १, साधारण १, ए १० विना २६. ३८ यथाख्यात--उपर प्रमाणे १० विना २६. ३९ देशविरति--आहारकद्विक २, वैक्रियद्विक २, साधारण १, आतप १, ए ६ विना ३०. ४० अविरति--आहारकद्विक २ विना ३४. ४१ चक्षुदर्शन--साधारण १, आतप १, ए २ विना ३४. ४२ अचक्षुदर्शन--३६. ४३ अवधिदर्शन--अवधिज्ञान प्रमाणे २ विना ३४, . .. ४४ केवलदशेन--केवळज्ञान प्रमाणे १२ विना २४. . ४७ कृष्ण, नील, कापोत-३६. ५० तेजोलेश्या, पद्मलेश्या शुक्ललेश्या--आतप १, साधारण १, ए २ विना ३४. ५१ भव्य-३६. ५२ अभव्य-आहारकद्विक विना ३४. ५३ उपशमसाधारण १, आतप १, आहारकद्विक २, ए ४ विना ३२..... ५४ क्षयोपशम-साधारण १, आतप १, ए २ विना ३४.. ५५ क्षायिक-पहेला विना संघयण, ५, आतप १, साधारण-१, ए ७ विना २९.. ५६ मिश्र-आहारकद्विक २, साधारण १, आतप १, ए ४ विना ३२.. ५७ सास्वादन-उपर प्रमाणे ३२, ५८ मिथ्यात्व-आहारकद्विक २ विना ३४. ५९ संज्ञी-साधारण १, आतप १, ए २ विना ३४. ६. असंज्ञी--पहेलां संघयण ५, पहेलां संस्थान ५, आहारकद्विक २, वैक्रियद्विक २, ए १४ विना २२. ६१ आहारी--३६. ६२ अनाहारी-तैजस १, कार्मणं १, वर्णादि ४, अगुरुलघु १, निर्माण १, स्थिर १, अस्थिर १, शुभ १, अशुभ १, ए १२ होय. आश्रव ४२. १० मनुष्यगति, स, मन, वचन, काया, भव्य, संज्ञी,आहारी, शुक्ल लेश्या, पंचेंद्रिय, __ ए १० मार्गणाए ४२ आश्रव होय. ... Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७६ ] ३३ गति ३, वेद ३, कषाय ४, अज्ञान ३, अविरति १, लेश्या ५, अभव्य १, मिथ्यात्व १, सास्वादन १, मिश्र १, ए २३ मार्गणाए इर्यावहीनी क्रिया विना ४१ होय. ३८ पहेलां ज्ञान ३, अवधि दर्शन १, क्षायिक १, ए ५ मार्गणाए मिथ्यात्विकी क्रिया विना ४१. ४० पहेला बे दर्शने ४२ आश्रव होय. मिथ्यात्विकी क्रिया सहित. ४१ क्षयोपशम मार्गणाए इर्यावहीनी क्रिया अने मिथ्यात्विकी क्रिया ए वे क्रिया विना ४० आश्रव होय. ४२ उपशम समकित इर्यावहिकी क्रिया सुद्धां ४२ आश्रव होय. ४८ एकेंद्रिय १, स्थावर ५, ए छ मार्गणाए इंद्रिय १, अवत ५, कषाय ४, काययोग १, ए ११, मां दृष्टिकी १, प्रातीत्यकी १, सामंतोपनिपातिकी १, आज्ञापनिकी १, इर्यापथिकी १, प्रायोगिकी १, ए छ क्रिया विना १९ किया मेळवतां कुल ३० आश्रव होय. ४९ द्वींद्रिय मार्गणाए एकेंद्रियना ३०, वचन योग १, रसनेंद्रिय १, कुल ३२ आश्रव होय. ५० त्रींद्रिय मार्गणाए उपरना ३२ मां घ्राणेंद्रिय भेळवतां ३३ आश्रव होय. ५१ चतुरिंद्रिय मार्गणाए उपरना ३३, चक्षु इंद्रिय १, दृष्टिकी क्रिया १, ए करतां ३५ आश्रव होय. ५४ पहेला ३ चारित्रनी मार्गणाए प्राणातिपातिकी १, पारिग्रहिकी १, मिथ्यात्विकी १, प्रत्याख्यानिकी १, इर्यावहिंकी १, ए ५ क्रिया तथा इंद्रिय ५, अत्रत ५, ए १५ विना २७ आश्रव होय. ५५ मनः पर्यवज्ञाने ११ मुं १२ मुं गुणठाणं पण होवाथी इर्यावहिकी क्रिया सुद्धां २८ आश्रव होय. ५६ सूक्ष्मसंपराय मार्गणाए योग ३, संज्वलन लोभ १, कायिकी क्रिया १, अनाभोगिकी १, प्रेमिकी १, ए ७ आश्रव होय. कोइक नय भेदे अधिकरणिकी १, प्राद्वेषिकी १, ए वे क्रिया सहित होवाथी ९ कहे छे. ५९ यथाख्यात, केवलज्ञान, केवळदर्शन ए त्रण मार्गणाए योग ३, इर्यापथिकी १, ए ४ आश्रव होय. ६० देशविरति मार्गणाए मिथ्यात्विकी १, इर्यापथिकी १, ए २ विना ४० अथवा अवरति १ सहित करवाथी ३ विना ३९. ६१ असंज्ञी मार्गणाए मनयोग १, इर्यापथिकी १, ए २ विना ४० Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७] ६२ अनाहारी मार्गण दृष्टिकी १, प्रातीत्यकी १, सामंतोपनिपातिकी १, नैसृष्टिकी १, स्वहस्तिकी १, आज्ञापनिकी १, विदारणिकी १, मन, वचन १, ए ९ विना ३३ आश्रव होय. संवरतत्र ५७. १९ मनुष्यगति १, पंचेंद्रिय १, त्रस १, योग ३, पहेलां ज्ञान ४, पहेलां दर्शन ३, शुक्ल लेश्या १, भव्य १, उपशम १, क्षायिक १, संज्ञी १, आहारी १, ए १९ मार्गणा ५७ भेद होय. २० लोभ मार्गणाए यथाख्यात चारित्र विना ५६ भेद होय. ३२ वेद ३, कषाय ३, श्या ५, क्षायोपशम १, ए १२ मार्गणाए यथाख्यात १, सूक्ष्मसंपराय १, ए २ चारित्र विना ५५ भेद होय. ३५ देवता १, नारकी १, तिर्येच १, ए ३ मार्गणाए १२ भावना होय. ५२ इंद्रिय ४, काय ५. अज्ञान ३, अभव्य १, छेल्लां समकित ३, असंज्ञी १, ए १७ माfire संवर नथी. ५५ पहेलां त्रण चारित्रनी मार्गणाए पोतपोतानुं चारित्र राखीने बाकीनां चार चारित्र विना ५३ भेद होय. ५७ सूक्ष्मसंपराय तथा यथाख्यातनी मार्गणाए ८ परिषहने ४ चारित्र विना ४५ भेद होय. ५८ देशबिरति मार्गणाए १२ भावना. ५९ अविरतिए १२ भावना. ६१ केवळज्ञान अने केवळदर्शननी मार्गणाए पहेलां चारित्र ४, भावना १२, अचेलपरिपह १, अरतिपरिषह १, स्त्रीपरिषह १, सम्यक्त्वपरिषह १, निषद्यापरिषह १, आक्रोशपरिषह १, याचनापरिषह १, अलाभपरिषह १, सत्कारपरिषह १, प्रज्ञापरिषह १, अज्ञानपरिषह १, ए २७ विना बीजा ३० भेद होय. सामाfor चारित्र राखीने त्रण चारित्र काढीए तो ३१ भेद होय. ६२ अनाहारी मार्गणाए केवल ज्ञानप्रमाणे ३१ भेद होय. चार ध्यानना नेद १६. २ देवता अने नारकी ए वे मार्गणाए आर्तध्यानना ४ भेद, रौद्र ध्यानना ४ भेद, ए आठ भेद होय. कोइ प्रतमां ९ भेद पण छे. तेमां धर्मध्याननो पहेलो आज्ञाविचय भेद गणवो, तेथी ९ भेद थाय. ६ मनुष्य, पंचेंद्रिय, त्रस, क्षायिक समकित, ए ४ मार्गणाए आर्तध्यानना ४, रौद्रध्यान४, धर्म ध्याना ४, शुक्लध्यानना ४, ए १६ भेद होय. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७८] ७ तिर्यचनी मार्गणाए आर्तध्यानना ४, रौद्रध्यानना ४, धर्मध्याननो पहेलो भेद आज्ञा विचय तथा बीजो अपायविचय ए १० भेद होय, अथवा ८ होय. १७ एकेंद्रिय, द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय, पृथ्वी, अप, तेज, वायु, वनस्पति अने अ. संज्ञी ए १० मार्गणाए ध्यान नथी. केमके मन विना ध्यान न होय. एम . श्री देवचंदजीए करेला विचारसारमा छ. अने कोइना मतमां आर्तध्यानना ४, रौद्रध्यानना ४, ए ८ भेद पण छै. २२ योग ३, आहारी, शुकलेश्या, ए ५ मार्गणाए आर्तध्यानना ४, रौद्रध्यानना ४, धर्म ध्यानना ४, शुक्लध्यानना पृथक्त्व वितके सविचार १, एकत्व पृथक्त्व ..सविचार १, ए १४ भेद होय. अने जो सूक्ष्मक्रिया अनिवृसि सहित करीए • तो १५ भेद होय. २४ भव्य तथा संज्ञी ए बे मार्गणाए १६ भेद होय, अथवा शुक्लध्यानना छेल्ला बे पाद . विना १४ भेद होय. ३२ वेद ३, कषाय ४, उपशम १, ए ८ मार्गणाए शुक्लध्यानना छेल्ला ३ पाद विना . . १३ भेद होय. .. ३८ ज्ञान ३, दर्शन ३, ए ६ मार्गणाए शुक्लध्यानना त्रीजा अने चोथा पाद विना १४ भेद. ४५ अभव्य १, अज्ञान ३, मिश्र १, सास्वादन १, मिथ्यात्व १, ए ७ मार्गणाए आर्त ध्यानना ४, रौद्रध्यानना ४, ए ८ भेद होय. ४६ मनःपर्यव ज्ञान मार्गणाए धर्मध्यानना ४, शुल्लध्यानना पहेला पाद २, ए छ भेद .. अथवा आर्तध्यानना त्रीजा भेद (निदानार्तध्यान) विना बीजा ३ भेद सहित करीए तो ९. ४८ केवळज्ञान, केवळदर्शन, ए बे मार्गणाए शुक्लध्याननो त्रीजो तथा चोथो पाद ए २ ५० सामायिक, छेदोपस्थापनीय, ए बे मार्गणाए आर्तध्यानना निदानात पाद विना ३, धर्मध्यानना ४, शुक्लध्याननो पहेलो पाद १, ए ८ भेद होय. अथवा धर्म ध्यानना ४, शुक्लध्याननो पहेलो पाद १, ए ५ भेद होय. ५१ परिहारविशुद्धि मार्गगाए आर्तध्यानना निदानात पाद विना ३ भेद, अने धर्मध्या नना ४ भेद, ए ७ भेद होय. ५२ सूक्ष्मसंपराय मार्गणाए शुक्लध्याननो पहेलो पाद, ए १ भेद होय. ५३ यथाख्यात मार्गणाए शुक्लध्यानना ४ भेद होय. ५४ देशविरति मार्गणाए आर्तध्यानना ४, रौद्रध्यानना ४, धर्मध्याननो पहेलो तथा बीजो पाद २, ए.१० भेद होय. अथवा आर्तध्यानना ४, रौद्रध्यानना ४, ए ८ भेद होय. Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७९] ५५ अविरति मार्गणाए देवतानी पेठे ८ अथवा ९. ६१ लेश्या ५. क्षयोपशम १, ए ६ मार्गणाए आर्तध्यानना ४, रौद्रध्यानना ४, धर्म ध्यानना ४, ए १२ भेद होय. ६२ अनाहारी मार्गणाए शुक्लध्याननो त्रीजो तथा चोथो ए २ भेद होय. अथवा तिर्यव प्रमाणे १: अथवा ८ भेद होय. समुद्घात ७. १० मनुष्यगति १, पंचेंद्रिय जाति १. त्रसकाय १, योग ३, क्षायिक १, आहारी १, शुक्ललेश्या १, भव्य १, आ १० मार्गणाए ७ समुद्धात होय. ३१ पुरुषवेद १, नपुंसकवेद १, कषाय ४, ज्ञान ४, पहेला बे चारित्र २, दर्शन ३, __ लेश्या ५, क्षयोपशम १, ए २१ मार्गणाए केवळी समुद्वात. विना ६ समुद्घात होय. ४२ देवगति १, तिर्यचगति १, स्त्रीवेद १, अज्ञान ३, अविरति १, अभव्य १, मिथ्यात्व १, परिहारविशुद्धि १, देशविरति १, ए ११ मार्गणाए केवळी समुद्धात तथा आहारक समुद्घात ए २ विना ५ समृद्घात होय.. ? ४६ असंज्ञी १, नारकी १, एकेंद्रिय १, वायुकाय १, ए ४ मार्गणाए केवळी समुद्धात १, आहारक समुद्घात १, तैजस समुद्धात १, ए ३ वर्जीने ४ समुद्वात होय. ४७ यथाख्यात मार्गणाए-वेदना, मरण, केवली, ए त्रण समुद्घात होय. ५४ विकलेंद्रिय ३, स्थावर ४, ए ७ मार्गणाए वेदना १, कषाय १, गरण १, ए ३ समुद् घात होय. ५६ केवळज्ञान, केवळदर्शन, ए २ मार्गणाए १ केवळी समुद्घात ज होय.. .. ५७ सूक्ष्मसंपराय मार्गणाए वेदना १, कषाय १, मरण १. ए ३ समुद्घात होय अथवा कषाय विना २ होय. ५८ संज्ञी मार्गणाए केवळी विना ६ अथवा ते सहित गणीए तो साते होय. ५९ उपशम मार्गणाए वेदना १, कषाय १, मरण १, ए ३ समुवात होय. ६० मिश्रमार्गणाए मरण विना वेदना १, कषाय १, बे समुद्घात होय. .... ६१ सास्वादन मार्गणाए केवळी १, आहारक १, ए २ समुद्घात वर्जीने ५ होय. अथवा वेदना १, कषाय १, मरण १, ए ३ समुद्वात होय. ६२. अनाहारी मार्गणाए वेदना १, मरण १, ए.२ समुद्घात होय. Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८०] बंध हेतु ५७. १ नरकगति--मूळ बंध हेतु ४, (मिथ्यात्व १, अविरति १, कषाय १, योग १,) उत्तर भेदे मिथ्यात्व ५, अविरति १२, स्त्रीवेद अने पुरुषवेद विना कषाय २३, .. औदारिक द्विक २ तथा आहारक द्विक ए ४ विना ११ योग कुल बंध हेतु.५१. २ देवगति-मूळ बंध हेतु ४. उत्तरभेदे-मिथ्यात्व ५, अविरति १२, नपुंसकवेद विना कषाय २४, औदारिक द्विक अने आहारक द्विक ए चार योग विना ११ योग. ए ५२ बंध हेतु.. ३ तिर्यचगति--मूळ बंध हेतु ४. उत्तरभेदे-मिथ्यात्व ५. अविरति १२, कषाय २५, आहारक द्विक विना योग १३, एवं ५५. १७ मनुष्य १, पंचेंद्रिय १, त्रस १, काययोग १, अचक्षुदर्शन १, लेश्या ६, भव्य १, _ संज्ञी १, आहारी १, ए १४ मार्गणाए-मूळ बंध हेतु ४, उत्तर भेद ५७. १८ एकेंद्रिय--मूळ बंध हेतु४. उत्तरभेदे-अनाभोग मिथ्यात्व १, तथा स्पर्शेद्रिय १, काय ६, ए ७ अविरति, तथा पुरुषवेद अने स्त्रीवेद विना कषाय २३, - औदारिकद्विक २, वैक्रियद्विक २ कार्मण काययोग १, ए ५ योग-एवं ३६ बंध हेतु. १९ द्वींद्रिय--मूळ बंध हेतु ४. उत्तरभेदे--अनाभोगिक मिथ्यात्व १, तथा इंद्रिय २, काय ६, ए ८ अविरति, बे वेद विना २३ कषाय, औदारिकद्विक २, कार्मण ... काययोग १, असत्यामृषा वचनयोग १, ए ४ योग, कुल ३६ बंध हेतु. २० त्रींद्रिय-मूळ बंध हेतु ४. उत्तरभेदे-अनाभोग मिथ्यात्व १, तथा इंद्रिय ३, काय ६, ए ९ अविरति, बे वेद विना कषाय २३, योग द्वींद्रिय प्रमाणे ४, एवं ३७ बंध हेतु. २१ चतुरिंद्रिय--मूळ बंध हेतु ४. उत्तरभेदे-अनाभोग मिथ्यात्व १, तथा इंद्रिय ४, काय ६, ए १० अविरति,तथा बे वेद विना कषाय २३, योग पूर्ववत् ४,एवं ३८. २५ पृथ्वी, अप, तेज, वनस्पति--मूळ बंध हेतु ४. उत्तरभेदे-अनाभोग मिथ्यात्व १, अविरति एकैद्रिय प्रमाणे ७, बे वेद विना कषाय २३, औदारिक द्विक २, कार्मण काययोग १, ए ३ योग, कुल ३४ बंध हेतु... .. २६ वायुकाय--पृथ्वीकाय प्रमाणे. परंतु वैक्रियद्विक सहित करीने योग ५ लेवा. कुल ३६ भेद. २८ मनयोग, वचनयोग-मूळ बंध हेतु ४. उत्तरभेदे--मिथ्यात्व ५, अविरति १२, कषाय २५, औदारिक मिश्र १, कार्मण काययोग १, ए बे विना योग १३, कुल ५५ बंध हेतु. Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८१] २९ पुरुषवेद--मूळ बंध हेतु ४. उत्तरभेदे-मिथ्यात्व ५, अविरति १२, बे वेद विना कराये २३, योग १५, एवं ५५ बंध हेतु, ३० स्त्री वेद-मूळ भेद ४. उत्तर भेदे--पुरुष वेद प्रमाणे पण आहारक द्विक विना ५३ भेद. ३१ नपुंसकवेद--मूळ भेद ४. उत्तरभेदे-पुरुषवेद प्रमाणे, पण पुरुष अने स्त्री, ए बे वेद विना ५५ बंध हेतु होय. ३२ कोध-मूळ भेद ४. उत्तरभेदे-मिथ्यात्व ५, अविरति १२, क्रोध ४ तथा नोकषाय ९ए १३ कषाय, योग १५, एवं ४५ बंध हेतु. ३३ मान-मूळ भेद ४. उत्तरभेदे क्रोधनी प्रमाणे, पण क्रोधने ठेकाणे मान ४ लेवां. ३५ माया, लोभ-उपर प्रमाणे, पण मानने ठेकाणे माया ४ लेवी. मायाने ठेकाणे लोभ ४ लेवा. ए प्रमाणे कषायनी मार्गणाए ४५ भेद कहेवा. ३८ ज्ञान पहेलां ३--मूळ बंध हेतु ३. उत्तरभेदे-मिथ्यात्व ५ नही, अविरति १२, अ नंतानुबंधी कषाय ४ विना कषाय २१, योग १५, एवं ४८ भेद. ३९ मनःपर्यव ज्ञान--मूळ बंध हेतु २. उत्तरभेदे मिथ्यात्व ५, तथा अविरति १२ नही, ___ संज्वलन कषाय ४, नोकषाय ९. एवं कषाय १३, तथा कार्मण काययोग १, औदारिक मिश्र १, ए बे विना योग १३, कुल २६ भेद. ४० केवळ ज्ञान--मूळ भेद १. उत्तरभेद-मिथ्यात्व ५, अविरति १२, कषाय २५, ए सर्व विना योग मनना २, वचनना २, अने कायना ३ एवं ७ योग बंध हेतु. ४३ अज्ञान ३-मूळ भेद ४. उत्तरभेद-मिथ्यात्व ५, अविरति १२, कषाय २५, आहा . रक द्विक विना योग १३, एवं ५५ बंध हेतु. ४५ सामायिक अने छेदोपस्थापनीय-मूळ भेद २. मिथ्यात्व अने अविरति विना. उ तर भेदे-संज्वलन ४, नोकषाय ९, ए १३ कषाय, औदारिक मिश्र १, का र्मण काययोग १, ए २ विना १३ योग, एवं २६ बंध हेतु. ४६ परिहारविशुद्धि-मूळ भेद २. मिथ्यात्व अने अविरति विना. उत्तरभेदे-संज्वलन कषाय ४, स्त्रीवेद विना नोकषाय ८, ए १२ कषाय, मनयोग ४, वचन योग ४, औदारिक काययोग १ ए ९ योग, कुल २१ बंध हेतु. ४७ सूक्ष्मसंपराय-मूळ भेद २. उत्तरभेदे-संज्वलन लोभ १, योग उपर प्रमाणे ९, एवं १०बंध हेतु. ४८ यथाख्यात-मूळ भेद १. मिथ्यात्व, अधिरति अने कषाय विना, उत्तरभेदे-आहा रक द्विक २, वेक्रिय द्विक २, ए ४ विना योग ११ बंध हेतु. ४९ देशविरति-मूळ भेद ३ मिथ्यात्व विना. उत्तरभेदे-त्रसनी अविरति विना ११, पहेला अने बीजा कषायनी चोकडी विना कषाय १७, आहारक द्विक २, कार्मण काययोग १, औदारिक मिश्र १, ए ४ विना योग ११, एक ३९ बंध हेतु. Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८२] ५१ अविरति तथा अभव्य-मूळ बंध हेतु ४. उत्तरभेदे-आहारक द्विक २ विना ५५ बंध हेतु. ५२ चक्षुदर्शन-मूळ बंध हेतु ४. उत्तरभेदे-औदारिक मिश्र १, कार्मण काययोग १, ए २ विना ५५ बंध हेतु. ५३ अवधि दर्शन-अवधि ज्ञाननी पेठे बंध हेतु ४८. ५४ केवल दर्शन-केवळ ज्ञाननी पेठे योग ७ बंध हेतु. ५५ उपशम-मूळ बंध हेतु ३ मिथ्यात्व विना. उत्तरभेदे-अविरति १२, पहेला कषायनी चोकडी विना कषाय २१, आहारकद्विक विना योग १३, एवं ४६ बंध हेतु. ५७ क्षयोपशम तथा क्षायिक-मूळ बंध हेतु ३ मिथ्यात्व विना. उत्तरभेदे-अविरति १२, पहेला कषायनी चोकडी विना कषाय २१, योग १५, एवं ४८. ५८ मिश्र--मूळ बंध हेतु ३ मिथ्यात्व विना. उसरभेदे-अविरति १२, कषाय उपर प्रमाणे २१, औदारिक मिश्र १, वैक्रिय मिश्र १, आहारक द्विक २, कार्मण काययोग १, ए ५ विना योग १०, एवं ४३. ५९ सास्वादन-मूळ बंध हेतु ३. मिथ्यात्व विना. उत्तर भेदे-अविरत्ति १२, कषाय २५, आहारक द्विक विना योग १३, एवं ५०. ६० मिथ्यात्व-मूळ बंध हेतु ४. उत्तर भेद-आहारक द्विक विना ५५ बंध हेतु. ६६ असंज्ञी--मूळ बंध हेतु ४. उत्तर भेदे-अनाभोग मिथ्यात्व १, मननी. अविरते विना ११, बे वेद विना कषाय २३, औदारिक द्विक २, वैक्रिय द्विक २, कार्मण काययोग १, असत्यामृषा वचनयोग १, ए योग ६, एवं ४१ बंध हेतु. ६२ अनाहारी-भूळ बंध हेतु ४. उत्तर भेदे-मिथ्यात्व ५, अथवा अनाभोग मिथ्यात्व १, अविरति १२. अथवा छ कायनी ६, कषाय २५, कार्मण काययोग १, एवं ४३, अथवा ३३ बंध हेतु होय. भाव ५३. १ नारकी-मूळ भाव ५. उत्तरभेद-उपशम भावे उपशम सम्यक्त्व १. क्षायिक भावे क्षायिक समकित १, क्षयोपशम भावे मनःपर्यव ज्ञान १, सर्व विति १, देश विरति १, ए ३ विना १५ भाव. औदयिक भावे छेल्ला ३ लेश्या, गति ३, वेद २, ए ८ विना १३ भाव. पारिणामिक भावे भव्यत्व १, अ भव्यत्व १, जीवत्व १, ए ३ भाव. एवं ३३ भाव होय. २ देवता---मूळ भाव ५. उत्तर भेद-उपशम भावे उपशम सम्यक्त्व १. क्षायिक भावे क्षायिक सम्यक्त्व १. क्षयोपशम भावे नारकी प्रमाणे १५ भाव. औदयिक भावे गति ३, वेद १, ए ४ विना १७ भाव. पारिणामिकना उपर प्रमाणे ३. एवं ३७ भाव होय. Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८३] मनुष्य--मूळभाव ५. उत्तर भेद--उपशम भावे सम्यक्त्व अने चारित्र ए २. क्षायिक भावे सम्यक्त्व अने चारित्र ए २, केवल ज्ञान १, केवल दर्शन १, दानादि लब्धि ५, ए ९. क्षयोपशम भावे ज्ञान ४, अज्ञान ३, दर्शन ३, दानादि लब्धि ५. विरति द्विक २, सम्यक्त्व १, ए १८. औदयिक भावे गति ३ विना १८. पारिणामिक भावे पूर्व प्रमाणे ३. एवं ५० भाव. तिर्यंच--मूळ भाव ५. उत्तर भेद-उपशम भावे सम्यक्त्व १, क्षायिक भावे सम्यक्त्व १, क्षयोपशम भावे मनःपर्यव ज्ञान १, सर्व विरति १, ए २ विना १६. औदयिक भावे गति ३ विना १८. पारिणामिक भावे पूर्ववत् ३. एवं ३९. एकेंद्रिय, पृथ्वी, अस्, वनस्पति--मूळ भाव ३. उत्तर भेद-उपशम अने क्षायिक भाव न होय. क्षयोपशम भावे दानादि लब्धि ५, उपयोग ३, ए ८. औदयिक भावे गति ३, पद्म लेश्या अने शुक्ल लेश्या ए २, वेद २, ए ७ विना . १४. पारिणामिक भावे पूर्ववत् ३. कुल २५ भाव होय. २ द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, तेज, वायु--मूळभाव ३. उपशम अने क्षायिक विना. उत्तरभेद क्षयोपशम भावे एकेंद्रिय प्रमाणे ८. औदयिक भावे गति ३, वेद २, छेल्ला लेश्या ३, ए ८ विना १३. पारिणामिक भावे उपर प्रमाणे ३. कुल २४. ३ चतुरिंद्रिय-द्वींद्रिय प्रमाणे. पण चक्षु दर्शन सहित २५ भाव कहेवा. १० पंचेंद्रिय, त्रस, मनोयोग, वचनयोग, काययोग, संज्ञी, आहारी, ए ७ मार्गणाए मूळ भाव ५ अने उत्तर भेद ५३ भाव होय. २७ बेद ३, क्रोध, मान, माया, लोभ, ए ७ मार्गणाए—मूळ भाव ५, उत्तर भेद-उप शम भाव सम्यक्त्व अने चारित्र ए २. क्षायिक भावे सम्यक्त्व १. क्षयोपशम भावे १८. औदयिक भावे गति १, वेद २, ए ३ विना १८. तेमां कषायनी मार्गणाए क्रोधमां मान, माया अने लोभ विना कहेवू. मानमा क्रोध, माया अने लोभ विना कहेवू. तथा लोभमां क्रोध, मान अने माया विना कहेवू. एम ३ विना १८ भाव होय. पारिणामिक भावे ३. कुल ४२ भाव होय. ३१ मति, श्रुत, अवधि ज्ञान, अवधि दर्शन ए ४ मार्गणाए--मूळ भाव ५. उत्तर भेद उपशम भावे सम्यक्त्व अने चारित्र २. क्षायिक भावे सम्यक्त्व अने चारित्र २.क्षयोपशम भावे अज्ञान ३ विना १५.औदयिक भावे अज्ञान १, मिथ्यात्व १, ए २ विना १९. पारिणामिक भावे अभव्य विना २. कुल ४०. भाव होय. Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८४] ३२ मनःपर्यव ज्ञान--मल भाव ५. उत्तर भेद-उपशम भावे २. क्षायिक भावे २. क्षयो पशम भावे अज्ञान ३, देशविरति १, ए ४ विना १४. औदयिक भावे गति ३, अज्ञान १, असंयम १, मिथ्यात्व १, ए ६ विना १५. पारिणामिक 'भावे उपर प्रमाणे २. कुल ३५, ३४ केवळ ज्ञान, केवळ दर्शन-मूल भाव ३. उपशम तथा क्षयोपशम विना. उत्तरभेद क्षायिक भावे ९. औदयिक भावे शुक्ल लेश्या १, मनुष्य गति १, असिद्ध १, ए ३ भाव होय. पारिणामिक भावे जीवत्व १. कुल १३. ३७ अज्ञान ३---मूल भाव ३. उपशम अने क्षायिक विना. उत्तर भेद-क्षयोपशम भावे लब्धि ५, अज्ञान ३, प्रथमना दर्शन २, ए १०. औदयिक भावे २१. पारिणामिक भावे ३. कुल ३४. ३९ सामायिक, छेदोपस्थापनीय-मूल भाव ५. उत्तर भेद-उपशम भावे सम्यक्त्व अने चारित्र २. क्षायिक भावे सम्यक्त्व १. क्षयोपशम भावे अज्ञान ३, देश विरति १, ए ४ विना १४. औदयिक भावे गति ३, मिथ्यात्व १, असंयम १, अज्ञान १, ए ६ विना १५. पारिणामिक भावे अभव्य विना २. कुल ३४. ४० परिहारविशुद्धि-मूलभाव ५. अथवा उपशम विना ४. उत्तर भेद-उपशम भावे सम्यक्त्व १. क्षायिक भावे सम्यक्त्व १, क्षयोपशम भावे सामायिकनी पेठे १४. औदयिक भावे गति ३, मिथ्यात्व १, अज्ञान १, असंयम १, स्त्री वेद १, ए ७ विना १४. पारिणामिक भावे ३. एवं ३२. अथवा उपशम भाव न लईए त्यारे ३१. ४१ सूक्ष्मसंपराय-मूल भाव ५. उत्तर भेद-उपशम भावे सम्यक्त्व अने चारित्र २. क्षायिक भावे सम्यक्त्व १. क्षयोपशम भावे अज्ञान ३, सम्यक्त्व १, देशविरति १, ए ५ विना १३. औदयिक भावे लोभ १, मनुष्यगति १, असिद्ध पणुं १, शुक्ल लेश्या १, ए ४. पारिणामिक भावे २. कुल २२. ४२ यथाख्यात--मूल भाव ५. उत्तर भेद--उपशम भावे २. क्षायिक भावे ९. क्षयोपशम भावे अज्ञान ३, सम्यक्त्व १, विरति द्विक २, ए ६ विना १२. औदयिक भावे असिद्ध पणुं १, मनुष्यगति १, शुक्ल लेश्या १, ए ३. पारिणामिक भावे २. कुल २८. ४३ देशविरति--मूलभाव ५. उत्तर भेद-उपशम भावे सम्यक्त्व १. क्षायिक भावे स म्यक्त्व १. क्षयोपशम भावे अज्ञान ३, मनःपर्यव ज्ञान १, सर्व विरति १, ए ५ विना १३. औदयिक भावे अज्ञान १, मिथ्यात्व १, गति २, ए ४ विना १७. पारिणामिक भावे २ अभव्य विना. कुल ३४. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ अविरति--मूल भाव ५. उत्तर भेद-उपशम भावे सम्यक्त्व १. क्षायिक भावे स म्यक्त्व १. क्षयोपशम भावे विरति द्विक २, मनःपर्यव ज्ञान, १, ए ३ विना १५. औदयिक भावे २१. पारिणामिक भावे ३. कुल ४१ होय. ४६ चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन-मूल भाव ५. उत्तर भेद-उपशम भावे २. क्षायिक भावे सम्यक्त्व अने चारित्र २, क्षयोपशमे १८, औदयिके २१. पारिणामिके ३. कुल ४६. ४९ लेश्या पहेली ३-मूल भाव ५. उत्तरभेद-उपशम भावे सम्यक्त्व १. क्षायिक भावे सम्यक्त्व १. क्षयोपशम भावे १८. औदयिक भावे पांच लेश्या विना १६. पारिणामिक भावे ३. कुल ३९. ५१ तेजो अने पद्म लेश्या-मूल भाव ५. उत्तर भेद-उपशम भावे सम्यक्त्व १. क्षायिक भावे सम्यक्त्व १. क्षयोपशम भाबे १८. औदयिक भावे लेश्या ५, नरक .. गति १, ए ६ विना १५. पारिणामिक भावे ३. एवं ३८. ५२ शुक्ल लेश्या-मूल भाव ५. उत्तर भेद-उपशम भावे २. क्षायिक भावे ९. क्षयोप शमे १८. औदयिक भावे लेश्या ५, नरक गति १, ए ६ विना १५. पारि णामिक भावे ३. एवं ४७. ५३ भव्य-मूल भाव ५. उत्तर भेदे-अभव्य विना ५२ भाव होय. ५४ अभव्य-मूल भाव ३. उपशम अने क्षायिक विना. उत्तर भेद-क्षयोपशम भावे लब्धि ५, अज्ञान ३, दर्शन २, ए १० भाव. औदयिक भावे २१. पारिणा मिक भावे भव्य विना २. एवं ३३. ५५ उपशम--मूल भाव ५. उत्तर भेद-उपशम भावे २. क्षायिक भावे सम्यक्त्व १. क्षयोपशम भावे अज्ञान ३, देशविरति १, ए ४ विना १४. औदयिक भावे मिथ्यात्व १, अज्ञान १, ए २ विना १९. पारिणामिक भावे अभव्य विना २. कुल ३८. ५६ क्षयोपशम--मूल भाव ३. उपशम अने क्षायिक विना. उत्तर भेद-क्षयोपशम भावे अज्ञान ३ विना १५. औदयिक भावे उपर प्रमाणे १९. पारिणामिक भावे उपर प्रमाणे २. कुल ३६. ५७ क्षायिक-- मूल भाव ५. उत्तर भेद-उपशम भावे चारित्र १. क्षायिक भावे ९. क्षयो पशमे अज्ञान ३, देशविरति १, ए ४ विना १४. औदयिक भावे पूर्वनी पेठे १९. पारिणामिके २. कुल ४५. Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८६] ५८ मिश्र-मूल भाव ३. उपशम अने क्षायिक विना. उत्तर भेद-क्षयोपशमे मिश्र ज्ञान ३, दर्शन ३, दानादि लब्धि ५, मिश्र समकित १, ए १२ होय. औदयिक भावे पूर्ववत् १९. पारिणामिक भावे २. कुल ३३. ५९ सास्वादन-मूल भाव ३. उपशम अने क्षायिक विना. उत्तर भेद--क्षयोपशम भावे लब्धि ५, दर्शन २, अज्ञान ३, ए १०. औदथिक भावे मिथ्यात्व विना २०. पारिणामिके २. कुल ३२. ६० मिथ्यात्व-मूल भाव ३. उपशम अने क्षायिक विना. उत्तर भेद-क्षयोपशम भावे उपर प्रमाणे १०. औदयिके २१. पारिणामिक ३. कुल ३४. ६१ असंज्ञी--मूल भाव ३. उपशम अने क्षायिक विना. उत्तर भेद-क्षयोपशमे लब्धि ५, अज्ञान २, दर्शन २, ए ९. औदायिक भावे गति २, बेद २; पद्म तथा शुक्ल लेश्या २, ए ६ विना १५. पारिणामिके ३. कुल २७. ६२ अनाहारी--मूल भाव ५. उत्तर भेद-उपशम भावे समकित १. क्षायिक भावे ९. क्षयोपशम भावे मनःपर्यव ज्ञान १, विरति द्विक २, चक्षुदर्शन १, ४ विना १४. औदयिक भावे २१, पारिणामिक भावे ३. एवं ४८ भाव होय. पाप प्रकृतिनो बंध ८२ १ नरक गति--नरक त्रिक ३, सूक्ष्म त्रिक ३. विकलेंद्रिय १, एकेंद्रिय १, स्थावर १, ए ११ विना ७१ प्रकृतिनो बंध होय. २ देव गति--नरक त्रिक ३, सूक्ष्मत्रिक ३, विकलेंद्रिय ३, ए ९ विना ७३. ४ मनुष्य, तिर्यंच गति-८२ प्रकृतिनो बंध. ८ एकेंद्रिय, द्वींद्रिय. त्रींद्विय, चतुरिंद्रिय-नरक त्रिक ३ विना ७९ नो बंध. ९ पंचेंद्रिय ८२ नो बंध. १४ पृथ्वी काय--नरक त्रिक ३ विना ७९. तेवीज रीते अप्काय, तेउकाय, वाउकाय, अने वनस्पति कायने विषे पण ७९ नो बंध जाणवो. २५ त्रस कायनी मार्गणाथी आरंभीने लोभनी मार्गणा सुधी ११ मार्गणाए-८२ नो बंध. २८ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान-स्त्यानर्द्धि त्रिक ३, अनंतानुबंधी ४, स्त्रीवेद १, नपुंसक वेद १, मिथ्यात्व मोहनी १, नीच गोत्र १, नरक त्रिक ३, जाति ४, स्थावर ४, संस्थान ५, संघयण ५, तिर्यच द्विक २, दुर्भग त्रिक ३, अशुभ विहायोगति १, ए ३८ विना ४४, २९ मनःपर्यव ज्ञान--मतिज्ञाननी मार्गणाए काढी छे ते ३८, प्रत्याख्यानी ४. अप्रत्या ख्यानी ४, ए ४३ विना ३६. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८७] ३० केवळ ज्ञान -- अबंध. ३३ मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान, विभंग ज्ञान – ८२. ३६ सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि – मनः पर्यव ज्ञानी पेठे ४६ विना ३६ ३७ सूक्ष्मसंपराय —— ज्ञानावरणी ५, दर्शनावरणी ४, अंतराय ५, ए १४ नो बंध होय. ३८ यथाख्यात——अबंध. ३९ देशविरति --- मतिज्ञाननी मार्गणाए काढी छे ते ३८, अप्रत्याख्यानी ४, ए ४२ विना ४० ४२ अविरति, चक्षु, अचक्षु दर्शन ८२. ४३ अवधिदर्शन – अवधिज्ञाननी पेठे ४४. ४४ केवळ दर्शन - - अबंध. ४७ कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या - ८२. ४८ तेजोलेश्या--नरकत्रिक ३, सूक्ष्म त्रिक ३, विकलेंद्रिय ३, ए ९ विना ७३. ४९ पद्म लेश्या - उपरनी ९, एकेंद्रिय १, स्थावर १, ए ११ विना ७१. ५० शुक्ल लेश्या —— उपरनी ११, तिर्यच द्विक २, ए १३ विना ६९. ५२ भव्य, अभव्य -- ८२. ५६ उपशम, क्षयोपशम, क्षायिक, मिश्र - - मतिज्ञाननी पेठे ३८ विना ४४. ५७ सासादन-नरक त्रिक ३, जाति ४, स्थावरचतुष्क ४, हुंडक संस्थान १, छेलं संघयण १, नपुंसक वेद १, मिथ्यात्व मोहनी १, ए १५ । विना ६७. ६१ मिथ्यात्व, संज्ञी, असंज्ञी, आहारी–८२. ६२ अनाहारी --- नपुंसक त्रिक ३ विना ७९. पुण्यप्रकृतिनो बंध ४२. १ नरकगति -- देवत्रिक ३, वैक्रिय द्विक २, आहारक द्विक २, आतप १, ए ८ विना ३४ बांधे. २ देवगति-- देवत्रिक ३, वैक्रिय द्विक २, आहारक द्विक २, ए ७ विना ३५. ३ तिर्यंचगति-- जिननाम १, अहारक द्विक २, ए ३ विना ३९. १० एकेंद्रि, द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय, पृथ्वीकाय, अप्काय, वनस्पतिकाय, ए ७ मा गणा देवत्रिक, ३, वैक्रिय द्विक २, आहारक द्विक २, जिननाम १, ए ८ विना ३४. १२ तेजस्काय, वायुकाय - देवत्रिक ३, मनुष्यत्रिक ३, आहारकद्विक २, वैक्रियद्विक २, उच्चगोत्र १, जिन नाम १, ए १२ विना ३०. Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८८] १९ मति ज्ञान, श्रूत ज्ञान, अवधि ज्ञान, अवधि दर्शन, शुक्ल लेश्या, क्षायिक, क्षयोपशम, ____ ए ७ मार्गणाए-तिर्यंचायु १, उद्योत १, आतप १, ए ३ विना ३९. . २३ मनःपर्यव ज्ञान, सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, ए ४ मार्गणाए . मनुष्यत्रिक ३. औदारिक द्विक, २, आतप १, उद्योत १, तिर्यंचायु १, वज्रर्षभनाराच १, ए ९ विना ३३. २४ सूक्ष्मसंपराय-यश १, उच्चगोत्र १, सातावेदनी १, ए ३ बांधे. २५ देशविरति-आतप १, आहारक द्विक २, मनुष्यत्रिक ३, तिर्यगायु १, उद्योत १, औदारिक द्विक २, वज्रर्षभनाराच १, ए ११ विना ३१. ३१ अज्ञान ३, अभव्य मिथ्यात्व, असंज्ञी, ए ६ मार्गणाए-जिननाम १, आहारक द्विक १, ए ३ विना ३९. ३५ कृष्ण, नील, कापोत लेश्या, अविरति ए ४ मार्गणाए-आहारक द्विक विना ४०. ३६ पद्म लेश्या--तियंचायु विना ४१. . ३७ मिश्र-जिन नाम १, आहारक द्विक २, आतप १, उद्योत १, तिर्यगायु १, मनु घ्यायु १, देवायु १, ए ८ विना ३४. ३८ सासादन-जिन नाम १, आहारक द्विक २, आतप १, ए ४ विना ३८. ३९ अनाहारी-मनुष्यायु १, देवायु १, तिथंचायु १, आहारक द्विक २, ए ५ विना ३७. ४० उपशम--मनुष्यायु १, देवायु १, तियेचायु १, उद्योत १, आतप १, ए ५ विना ३७ ४३ यथाख्यात, केवळ ज्ञान, केवळ दर्शन ए ३ मार्गणाए---१ साताबेदनी बांधे. ६२ मनुष्यगति, पंचेंद्रिय जाति, त्रसकाय, बेद ३, योग ३, कषाय ४, चक्षुदर्शन, अचक्षु दर्शन, तेजोलेश्या, भव्य, संज्ञी, आहारी, ए १९ मार्गणाएं-४२ बांधे. ध्रुवबंधी ४७. २५ नारकीनी मार्गणाथी आरंमीने पचीशमी लोभनी मार्गणा सुधी ४७ नो बंध होय. २६ मतिज्ञान-अनंतानुबंधी ४, मिथ्यात्व १, स्त्यानद्धि त्रिक ३, ए ८ पिना ३९. २८ श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान-उपर प्रमाणे ८ विना ३९. २९ मनःपर्यवज्ञान-अनंतानुबंधी४, अप्रत्याख्यानी ४, प्रत्याख्यानी ४, मिथ्यात्व १, स्त्यानार्द्ध त्रिक ३, ए १६ विना ३१. ३० केवळ ज्ञान-अबंध... ३३ मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान, विभंग ज्ञान--४७. ३६ सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहार विशुद्धि-मनःपर्यव ज्ञाननी पेठे १६ विना ३१ ३७ सूक्ष्मसंपराय-ज्ञानावरणी ५, दर्शनावरणी ४, अंतराय ५, ए १४ बांधे. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८९] ३८ यथाख्यात---अबंध... ३९ देशविरति-अनंतानुबंधी ४, अप्रत्याख्यानी ४, स्त्यानदि त्रिक ३, मिथ्यात्व १, ए १२ विना ३५. ४२ अविरति, चक्षु, अचक्षु दर्शन-४७. ४३ अवधि दर्शन--अवधि ज्ञाननी पेठे ८ विना ३९. .. ४४ केवळ दर्शन--अबंध. ५२ कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पद्म शुक्ल, भव्य, अभव्य, ए ८ मार्गणाए--४७. ५६ उपशम, क्षयोपशम, क्षायिक,मिश्र, ए ४ मार्गणाए-मनःपर्यवज्ञाननी पेठे ८ विना ३९. ५७ सास्वादन-मिथ्यात्व १ विना ४६. ६२ मिथ्यात्व, संज्ञी, असंज्ञी, आहारी, अनाहारी, ए ५ मार्गणाए --४७. ___ अध्रुव बंधी ७३. १ नरकगति--जाति ४, स्थावर चतुष्क ४, वैक्रिय द्विक २, आहारक द्विक २, नरक त्रिक ३, वेदत्रिक ३, आतप १, ए १९ विना ५४. २ देवगति-देव त्रिक ३, नरक त्रिक ३, वैक्रिय द्विक २, सूक्ष्म त्रिक ३, विकल त्रिक ३, आहारक द्विक. २, ए १६ विना ५७. ३ मनुष्यगति--७३. ४ तियेचगति--आहारक द्विक २, जिन नाम १, ए ३ विना ७०. ८ एकेंद्रिय, द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय-देवत्रिक ३, नरक त्रिक ३, वैक्रिय द्विक २, आहारक द्विक २, जिन नाम १, ए ११ विना ६२. ९ पंचेंद्रिय--७३.. ११ पृथ्वीकाय, अपकाय--एकेंद्रियनी पेठे ६२. १३ तेजस्काय, वायुकाय – मनुष्य त्रिक ३, उच्च गोत्र १, एकेंद्रियनी ११, ए १५ विना ५८, १४ वनस्पतिकाय--पृथ्वीकायनी पेठे ६२. २५ त्रसकाय, मनोयोग, वचनयोग, काययोग, पुरुषवेद, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, क्रोध, __मान, माया, लोभ, ए ११ मार्गणाए ७३. २८ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान--तिर्यंच त्रिक ३, नरक त्रिक ३, दुर्भग त्रिक ३, जाति ४, स्थावरचतुष्क ४, प्रथम विना संघयण ५, पहेला विना संस्थान ५, आतप १, नपुंसकवेद १, स्त्रीवेद १, उद्योत १, अशुभ विहायोगति १, नीचगोत्र १, ए ३३ विना ४०. Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०] २९ मनःपर्यवज्ञान–पूर्वनी मतिज्ञाननी ३३, मनुष्य त्रिक ३, वज्रर्षभनाराच १, औदा- रिकद्विक २, ए ३९ विना ३४. ३० केवलज्ञान-सातावेदनी १. ३३ मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभंगज्ञान-आहारक द्विक २, जिन नाम १, ए ३विना७०. ३६ सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि-मनःपर्यव ज्ञाननी पेठे३९ विना ३४. ३७ सूक्ष्मसंपराय--सातावेदनी १, उच्च गोत्र १, यश नाम १, ए ३ होय. ३८ यथाख्यात--सातावेदनी १ होय. ३९ देशविरति-मतिज्ञाननी ३३, मनुष्य त्रिक ३, वज्रर्षभनाराच संघयण १, औदारिक द्विक २, आहारक द्विक २, ए ४१ विना ३२. ४० अविरति--आहारक द्विक विना ७१. ४२ चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन-७३. ४३ अवधिदर्शन–अवधि ज्ञाननी पेठे ४०. ४४ केवळदर्शन-सातावेदनी १ होय. ४७ कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या--आहारक द्विक २ विना ७१. ४८ तेजो लेश्या-नरक त्रिक ३, सूक्ष्म त्रिक ३, विकलेंद्रिय त्रिक ३, ए ९ विना ६४. ४९ पन लेश्या--उपरनी ९, एकेंद्रिय १, स्थावर १, आतप १, ए १२ विना ६१. ५० शुक्ल लेश्या--पद्मलेश्यानी १२, तिर्यच त्रिक ३, उद्योत १, ए १६ विना ५७. ५१ भव्य--७३. ५२ अभव्य--आहारक द्विक २, जिन नाम १, ए ३ विना ७०. ५३ उपशम-मतिज्ञाननी ३३, देवायु १, मनुष्यायु १, ए ३५ विना ३८. ५५ क्षयोपशम, क्षायिक-मतिज्ञाननी पेठे ३३ विना ४०. ५६ मिश्र--मतिज्ञाननी ३३, देवायु १, मनुष्यायु १, आहारक द्विक २, जिन नाम १, ___ए ३८ विना ३५. . ५७ सास्वादन-नरक त्रिक ३, स्थावर चतुष्क ४, जाति ४, आतप १, हुंडक १, छेवटुं संघयण १, नपुंसक १, आहारक द्विक २, जिननाम १, ए १८ विना ५५. ५८ मिथ्यात्व--आहारक द्विक २, जिननाम १, ए ३ विना ७०. ५९ संज्ञी-७३. ६० असंज्ञी--आहारक द्विक २, जिननाम १, ए ३ विना ७०. ६१ आहारी-७३, ६२ अनाहारी--आयु ४, नरक द्विक २, आहारक द्विक २, ए ८ विना ६५. Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१] ध्रुवोदयी २७. २५ नारकीथी मांडीने लोभनी मार्गणा सुधी - २७ नो उदय. २९ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यव ज्ञान - मिथ्यात्व १ विना २६. ३० केवलज्ञान -- ज्ञानावरणी ५, दर्शनावरणी ४, अंतराय ५, मिथ्यात्व १, ए १५ विना १२ ३३ मतिअज्ञान, अतअज्ञान, विभंगज्ञान—–२७, ३९ सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय, यथाख्यात, देशविरति, ए ६ मार्गणाए – मिथ्यात्व १, विना २६. ४२ अविरति, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन -- २७. ४३ अवधिदर्शन – मिथ्यात्व विना २६. ४४ केवळदर्शन -- केवळज्ञाननी पेठे १२. ५२ कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या, शुक्ललेश्या, भव्य, अभव्य, ए ८ मार्गणाए २७ . ५७ उपशम, क्षयोपशम, क्षायिक, मिश्र, सास्वादन, ए ५ मार्गणाए – मिथ्यात्व विना २६. ६२ मिथ्यात्व, संज्ञी, असंज्ञी, आहारी, अनाहारी, ए ५ मार्गणाए –२७. अधुवोदयी ९५. १ नरकगति-- मनुष्य, देव अने तिर्यंच ए ३ आयुष्य, उच्चगोत्र १, स्त्री पुरुष वेद २, शरीर २, अंगोपांग २, जाति ४, गति ३, संघयण ६, संस्थान ५, आनुपूर्वी ३, शुभ विहायोगति १, जिननाम १, स्थावर चतुष्क ४, आतप १, उद्योत १, सुभग चतुष्क ४, ए ४३ विना ५२. २ देवगति -- शरीर २, अंगोपांग २, आनुपूर्वी ३, गति ३, आयु ३, जाति ४, जिननाम १, संघयण ६, संस्थान ५, नीचगोत्र १, नपुंसकवेद १, स्थावर चतुष्क ४, अशुभ विहायोगति १, आतप १, उपघात १, उद्योत १, ए ३९ विना ५६. ३ मनुष्यगति-- वैक्रियाष्टक ८, तिर्येच त्रिक, ३, जाति ४. स्थावर १, सूक्ष्म १, साधारण १, आतप १, उद्योत १, ए २० विना ७५. ४ तिर्यंचगति-- वैक्रियाष्ठक ८, मनुष्य त्रिक ३, आहारक द्विक २, उच्चगोत्र १, जिननाम १, १५ विना ८०. ५ एकेंद्रिय — वैक्रियाष्टक ८, मनुष्य त्रिक ३, उच्चगोत्र १, वेद २, जाति ४, आहारक द्विक २, संघयण ६, संस्थान ५, औदारिक अंगोपांग १, विहायोगति २, समकित मोहनी १, मिश्रमोहनी १. जिननाम १, सुखर दुःस्वर २, त्रस, १, अयश १, आदेय १, ए ४२ विना ५३. Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [९२] ६ वींद्रिय--वैक्रियाष्टक ८, मनुष्यत्रिक ३, उच्चगोत्र १, वेद २, जाति ४, आहारक द्विक २, संघयण ५, संस्थान ५, शुभ विहायोगति १, जिननाम १, - स्थावर १, सूक्ष्म १, साधारण १, आतप १, अनादेय १, यश १, सम कितमोहनी १, मिश्रमोहनी १, ए ४० विना ५५. ८त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय---उपर प्रमाणे ४० विना ५५. ९. पंचेंद्रिय--जाति ४, स्थावर ३, आतप १, ए ८ विना ८७. १. पृथ्वीकाय--एकेंद्रिय मार्गणानी ४२, साधारण १, ए ४३ विना ५२. ११ अपकाय-पृथ्वीकायनी ४३, आतप १, ए ४४ विना ५१. १३ तेजस्काय, वायुकाय---उपरनी ४४, यश १, उद्योत १, ए ४६ विना ४९. १४ वनस्पतिकाय--पृथ्वीकाय प्रमाणे. पण साधारण १ नांखीने आतप १ काढीए त्यारे ४३ विना ५२. १५ त्रसकाय--स्थावर ३, आतप १, एकेंद्रिय जाति १, ए ५ विना ९०. १६ मनोयोग--जाति ४, अनुपूर्वी ४, स्थावर चतुष्क ४, आतप १, ए १३ विना ८२. १७ वचनयोग--स्थावर ४, एकेंद्रिय जाति १, अनुपूर्वी ४, आतप १, ए १० विना ८५. १८ काययोग-९५. १९ पुरुषवेद--वेद २, नरकत्रिक ३, जाति ४, स्थावर ३, आतप १, जिननाम १, ए १४ विना ८१. २० स्त्रीवेद--उपरनी १४, आहारक द्विक २, ए १६ विना ७९. २१ नपुंसकवेद-देवत्रिक ३, जिननाम १, वेद २, ए ६ विना ८९. . २२ क्रोध-मान ४, माया ४, लोभ ४, जिननाम १, ए १३ विना ८२. .. २३ मान-क्रोध ४, माया ४, लोभ ४, जिननाम १, ए १३ विना ८२. २४ माया--क्रोध ४, मान ४. लोभ ४, जिननाम १, ए १३ विना ८२. २५ लोभ--क्रोध ४, मान ४, माया ४, जिननाम १, ए १३ विना ८२. २७ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान-जाति ४, स्थावर ४, अनंतानुबंधी ४, जिननाम १, आतप १, मिश्रमोहनी १, ए १५ विना ८०.. २८ अवधिज्ञान--मतिज्ञाननी पेठे १५ विना ८० अने जो तिर्यंचनी अनुपूर्वी १ का ढीए तो १६ विना ७९. २९ मनःपर्यवज्ञान-जाति ४, स्थावर ४, अनंतानुबंधी ४, अप्रत्याख्यानी ४, प्रत्या ख्यानी ४, आनुपूर्वी ४, जिननाम १, आतप १, उद्योत १, तिर्यंच द्विक.. २, नरक द्विक २, देव द्विक २, वैक्रिय द्विक २, मिश्र १, दुर्भग १, अना देय १, अयश १, नीचगोत्र १, ए ४० विना ५५. Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [९३] ३० केवळ ज्ञान -- त्रस अष्टक ८, उच्चगोत्र १, जिननाम १, मनुष्य द्विक २, पंचेंद्रिय जाति १, वेदनी वेमांथी १, संघयण १, संस्थान ६, विहायोगति २, औदारिक द्विक २, पराघात १, उच्छूास १, उपघात १, सुस्वर १, दुःस्वर १, ए ३० होय. ३२ मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान -- आहारक द्विक २, जिननाम १, मिश्रमोहनी १, समकित मोहनी १, ए ५ विना ९०. ३३ विभंगज्ञान - जाति ४, स्थावर १, सूक्ष्म १, साधारण १, आतप १, आहारक द्विक २, जिननाम १, समकित मोहनी १, मनुष्य अने तिर्यचनी आनुपूर्वी २, अप१, ए १५ विना ८०. अने जो २ अनुपूर्वी न काढीए तो १३ विना ८२. ३५ सामायिक, छेदोपस्थापनीय - मनः पर्यव ज्ञाननी पेठे ४० विना ५५. ३६ परिहारविशुद्धि – मनःपर्यव ज्ञाननी ४०, आहारक द्विक २, स्त्रीवेद १, ए ४३ विना ५२. अने जो संघयण ५ काढीए तो ४८ विना ४७. ३७ सूक्ष्म संपराय - आहारक द्विक २, स्त्यानदि त्रिक ३, छेल्लां संवयण ३, समकित मोहनी १, हास्यादि पट्क ६, वेद ३, संज्वलनादि ३, आ २१ मां मनः पर्यव ज्ञाननी ४० सहित करवाथी कुल ६१ विना ३४. ३८ यथाख्यात — सूक्ष्मसंपरायनी ६१ मांथी लोभ काढी जिननाम नांखवाथी ६१ विना ३४. ३९ देशविरति — जाति ४, स्थावर ४, अनंतानुबंधी ४, आनुपूर्वी ४, देव द्विक २, नरक द्विक २, वैक्रियद्विक २, दुर्भग त्रिक ३, आहारक द्विक २, जिननाम १, बीजा कषायनी ४, आतप १, मिश्रमोहनी १, ए ३४ विना ६१. ४० अविरति -- जिननाम १, आहारक द्विक २, ए ३ विना ९२. ४१ चक्षुदर्शन - जाति ३, स्थावर ४, आनुपूर्वी ४, जिननाम १, आतप १, ए १३ विना ८२. ४२ अक्षुदर्शन -- जिननाम १ विना ९४. ४३ अवधिदर्शन - - अवधिज्ञाननी पेठे १६ विना ७९. ४४ केवळ दर्शन - - केवळ ज्ञाननी पेठे ३० होय. ४७ कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, ए ३ मार्गणाए - - जिननाम १, आहारक द्विक २, ए ३ विना ९२. एकलुं जिननाम काढीए त्यारे ९४. ४८ तेजोलेश्या - - नरक त्रिक ३, विकलेंद्रिय त्रिक ३, सूक्ष्म त्रिक ३, जिननाम १, आतप १, ए ११ विना ८४. ४९ पद्म लेश्या -- तेजो लेश्यानी ११, एकेंद्रिय जाति १, स्थावर १, ए १३ विना ८२. ५० शुक्ल लेश्या -- पद्म लेश्यानी १३ ने जिननाम रहित करवाथी १२ रहे. ए १२ विना ८३. Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] ५१ भव्य -- ९५. ५२ अभव्य -- जिननाम १, आहारक द्विक २, समकित मोहनी १, मिश्र मोहनी १, ए विना ९०. ५३ उपशम - जाति ४, स्थावर चतुष्क ४, आनुपूर्वी ४, अनंतानुबंधी ४, आहारक द्विक २, जिननाम १, आतप १, समकित मोहनी १. मिश्र मोहनी १, ए २२ विना७३ ५४ क्षयोपशम -- जाति ४, स्थावर चतुष्क ४, अनंतानुबंधी ४, जिन नाम १, आतप १, मिश्र मोहनी १, ए १५ विना ८०. ५५ क्षायिक - - जाति ४, स्थावर चतुष्क ४, अनंतानुबंधी ४, आतप १, पहेला विना संघयण ५, समकित मोहनी १, मिश्र मोहनी १, ए २० बिना ७५. ५६ मिश्र - - जाति ४, स्थावर चतुष्क ४, अनंतानुबंधी ४, जिननाम १, आहारक द्विक २, समकित मोहनी १, आतप १, आनुपूर्वी ४, ए २१ विना ७४. ५७ सास्वादन--सूक्ष्म त्रिक ३, आतप १, समकित मोहनी १, मिश्र मोहनी १, आहारक द्विक २, जिननाम १, नरकानुपूर्वी १, ए १० विना ८५. . ५८ मिथ्यात्व - - अभव्यनी पेठे ५ विना ९०. ५९ संज्ञी - - पंचेंद्रियनी पेठे ८ विना ८७, अने जिननाम विना ८६. ६० असंज्ञी -- वैक्रियाष्टक ८, संघयण ५, संस्थान ५, समकित १, मिश्र १, आहारक द्विक २, जिननाम १, वेद २, उच्च गोत्र ९, शुभ १, आदेय १, यश १, २९ विना ६६. ए ६१ आहारी -- अनुपूर्वी ४ विना ९१. ६२ अनाहारी - संघयण ६, संस्थान ६, आहारक द्विक २, वैक्रिय द्विक २, औदारिक द्विक २, विहायोगति द्विक २, निद्रा ५, पराघात १, उच्छ्वास १, आतप १, उद्योत १, प्रत्येक १, सुस्वर १, उपघात १, साधारण १, दुःखर १, मिश्र मोहनी १, ए ३५ विना ६०. अपरावर्तमान प्रकृति बंध २९. ३ नरकगति, देवगति, मनुष्यगति -- २९ नो बंध. ८ तिर्यंचगति, एकेंद्रिय, द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय, ए ५ मार्गणाए -- जिननाम १, विना २८. ९ पंचेंद्रिय -- २९. १४ पृथ्वी, अप् तेज, वायु, वनस्पति, ए ५ मार्गणाए -- जिननाम विना २८. Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ त्रसकाय, मन, वचन, काय, योग, पुरुषवेद, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, क्रोध, मान, माया, लोभ, ए ११ मार्गणाए--२९. . २९ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान,अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, ए ४ मार्गणाए--मिथ्यात्व विना २८. ३० केवळ ज्ञान--०. ३३ मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभंगज्ञान--जिननाम विना २८. ३६ सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि-मिथ्यात्व विना २८... ३७ सूक्ष्मसंपराय-वर्णादि ४, तैजस १, कार्मण १, निर्माण १, उपवात १, अगुरुलघु १, पराघात १, उच्वास १, जिननाम १, भय १. कुत्सा १, मिथ्यात्व १, ए १५ विना १४. ३८ यथाख्यात३९ देशविरत-मिथ्यात्व १ विना २८. ४२ अविरति, चक्षु, अचक्षु दर्शन--२९. ४३ अवधि दर्शन-मिथ्यात्व विना २८. ४४ केवळ दर्शन--०. ५१ कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पालेश्या, शुक्ललेण्या, भव्य. __ ए ७ मार्गणाए--२९, ५२ अभव्य--जिननाम विना २८, ५५ उपशम, क्षयोपशम, क्षायिक-मिथ्यात्व विना २८. ५७ मिश्र, सास्वादन--जिननाम १, मिथ्यात्व १, ए २ विना २७, ५८ मिथ्यात्व-जिननाम विना २८. ५९ संज्ञी-२९. ६० असंज्ञी--जिनेनाम विना २८. ६२ आहारी, अनाहारी-२९. __ परावर्तमान प्रकृति वंध ९१. १ नरकगति-जाति ४, स्थावर दशकमांथी ४, वैक्रिय द्विक २, आहारक द्विक २, नरक त्रिक ३, देवत्रिक ३, आतप १. ए १९ विना ७२. २ देवगति--देवत्रिक ३, नरकत्रिक ३, वैक्रिय द्विक २, सूक्ष्मत्रिक ३, विकलेंद्रियत्रिक ३, आहारक द्विक २, ए १६ विना ७५ ३ मनुष्यगति--९१. ४ तिर्यंचगति--आहारक द्विक २, विना ८९. . . Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [९६] . ८ एकेंद्रिय, द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय-देवत्रिक ३, नरकत्रिक ३, वैक्रिय द्विक २, आहारक द्विक २, ए १० विना ८१. . ९ पंचेंद्रिय--९१.. ११ पृथ्वीकाय, अपकाय-एकेंद्रिय प्रमाणे १० विना ८१. १३ तेजस्काय, वायुकाय--एकेंद्रियनी १०, मनुष्यत्रिक ३, उच्चगोत्र १, ए १४ विना ७७. १४ वनस्पति काय--एकेंद्रिय प्रमाणे १० विना ८१. २५ त्रसकाय, मन, वचन, काया, पुरुष वेद, स्त्री वेद, नपुंसक वेद, क्रोध, मान, माया, लोभ ए ११ मार्गणाए--९१. २८ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान--तियंचत्रिक ३, नरकत्रिक ३, दुर्भगत्रिक ३, जाति ४, स्थावर चतुष्क ४, पहेला विना संघयण ५, पहेला विना संस्थान ५, निद्रा ३, अनंतानुबंधी ४, आतप १, नपुंसकवेद १, स्त्रीवेद १, उद्योत १, अशुभ विहायोगति १, नीच गोत्र १, ए ४० विना ५१. २९ मनःपर्यवज्ञान--मतिज्ञाननी ४०, बीजा कषायनी ४, जीजा कषायनी ४, मनुष्य . त्रिक ३, वज्रर्षभनाराच संघयण १, औदारिक द्विक २, ए ५४ विना ३७. ३० केवळज्ञान-सातावेदनी १, ३३ मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभंग ज्ञान-आहारक द्विक विना ८९. ३६ सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि--मनःपर्यवज्ञान प्रमाणे ५४ विना ३७. ३७ सूक्ष्मसंपराय-उच्चगोत्र १, सातावेदनी १, यशनाम १, ए ३. ३८ यथाख्यात--सातावेदनी १. ३९ देशविरति-मतिज्ञाननी ४०, बीजा कषायनी ४, मनुष्य त्रिक ३, वज्रर्षभनाराच संघयण १, औदारिक द्विकनी २, आहारक द्विक २, ए ५२ विना ३९. ' ४० अविरति-आहारक द्विक २ विना ८९. ४२ चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन-९१. ४३ अवधिदर्शन–अवधिज्ञाननी पेठे ४० विना ५१. ४४ केवळदर्शन-सातावेदनी १. ४७ कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या--आहारक द्विक विना ८९. ४८ तेजोलेश्या--नरकत्रिक ३, सूक्ष्मत्रिक ३, विकलत्रिक ३, ए ९ विना ८२. ४९ पद्म लेश्या-उपरनी ९, एकेंद्रिय १, स्थावर १, आतप १, ए १२ विना ७९. ५० शुक्ल लेश्या-उपरनी १२, तिर्यच त्रिक ३, उद्योत १, ए १६ विना ७५. ५१ भव्य-९१. ५२ अभव्य-आहारक द्विकनी २ विना ८९. Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [९] ५३ उपशम-- आहारक द्विक २, नरक त्रिक ३, जाति ४, स्थावर ४, आतप १, नपुंसकवेद १, तिचत्रिक ३, स्त्यानर्द्धि त्रिक ३, दुर्भग त्रिक ३, अनंतानुबंधी ४, संघयण ५, संस्थान ५, स्त्रीवेद १, उद्योत १, नीचगोत्र १, विहायोगति १, ए ४२ विना ४९. ५५ क्षयोपशम, क्षायिक — उपरनी ४२ मांथी आहारक द्विक काढीने बाकी ४० विना ५१. ५६ मिश्र - उपशम समकितनी ४२, मनुष्यायु १, देवायु १, ए ४४ विना ४७. ५७ सास्वादन -- नरक त्रिक ३, जाति ४, स्थावर ४, आतप १, हुंडक संस्थान १, छे संघयण १, नपुंसक वेद १, आहारक द्विक २, ए १७ विना ७४. ५८ मिथ्यात्व - आहारक द्विक विना ८९. ५९ संज्ञी - - ९१. ६० असंज्ञी -- आहारक द्विक विना ८९. ६१ आहारी - ९१. ६२ अनाहारी -- आयु ४, नरक द्विक २, आहारक द्विक २, ए ८ विना ८३. १ नरक गति -- २५००००० २ देवता -- २६००००० ३ मनुष्य - १२००००० ४ तिर्यच – १३४५०००० ५ एकेंद्रिय - ५७००००० (पांचे स्थावरनी) ६ द्वींद्रिय - ७००००० ७ त्रींद्रिय – ८००००० ८ चतुरंद्रिय -- ९००००० ९ पंचेंद्रिय - - ११६५०००० कुल कोटी. १० पृथ्वी - १२००००० ११ अप् - ७००००० १२ तेज -- ३००००० १७ वचन- १४०५०००० (त्रसनी पेठे) १८ काया - - १९७५०००० १९ पुरुष -- ९१५०००० २० स्त्रीवेद - - ९१५०००० २१ नपुंसक - - १७१५०००० २२ क्रोध -- १९७५०००० २३ मान - १९७५०००० २४ माया -- १९७५०००० २५ लोभ - - १९७५०००० : २६ मतिज्ञान -- ११६५०००० (पंचेंद्रियवत्) २७ श्रुतज्ञान - - ११६५०००० २८ अवधिज्ञान - ११६५०००० २९ मनः पर्यवज्ञान - १२००००० १३ वायु- - ७००००० १४ वनस्पति - २८००००० ३० केवळ ज्ञान - १२००००० ३१ मतिअज्ञान - १९७५०००० १५ त्रस - - १४०५०००० १६ मन -- ११६५०००० (पंचेंद्रिय पेठे) ३२ श्रुतअज्ञान - १९७५०००० Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [९८] ३३ विभंगज्ञान-११६५०००० (पंचेंद्रियवत्) ४८ तेजोलेश्या-१३८५०००० ३४ सामायिक चारित्र-१२००००० ४९ पद्मलेश्या--९१५००००(पुरुषवेदवत्) ३५ छेदोपस्थापनीय--१२००००० ५० शुक्ललेश्या-९१५०००० (,) ३६ परिहारविशुद्धि-१२००००० ५१ भव्य--१९७५०००० ३७ सूक्ष्मसंपराय--१२००००० ५२ अभव्य-१९७५०००० ३८ यथाख्यात--१२००००० ५३ उपशम--११६५००००(पंचेंद्रिय वत्) ३९ देशविरति--६५५०००० ५४ क्षयोपशम--११६५०००० ४० अविरति--१९७५०००० ५५ क्षायिक-७३००००० ४१ चक्षुदर्शन-१२५५०००० ५६ मिश्र-११६५००००(पंचेंद्रियनी पेठे) ४२ अचक्षुदर्शन--१९७५०००० ५७ सासादन-१८७५०००० .. ४३ अवधिदर्शन--११६५०००० ५८ मिथ्यात्व-१९७५०००० ४४ केवळदर्शन--१२००००० ५९ संज्ञी-११६५००००(पंचेंद्रियनी पेठे) ४५ कृष्णलेश्या--१९७५०००० ६० असंज्ञी--१४६५०००० ४६ नीललेश्या-१९७५०००० ६१ आहारी-१९७५०००० ४७ कापोतलेश्या--१९७५०००.०. ६२ अनाहारी-१९७५०००० तिर्यंच आश्री गुलमोटी. त्रस आश्री. पांच स्थावरनी-५७००००० पंचेंद्रियनी--११६५०००० विकलेंद्रियनी-२४००००० विकलेंद्रियनी-२४००००० जलचरनी--१२५०००० । १४०५०००० स्थलचरनी--१०००००० पुरुषवेद आश्री खेचरनी—१२००००० । देव-२६ लाख. . उरपरिसर्पनी–१०००००० मनुष्य-१२ लाख. जलचरादि-५३॥ लाख. भुजपरिसर्पनी–९००००० ९१५०००० १३४५०००० नपुंसकवेद आश्री. पंचेंद्रिय आश्री. मनुष्य-१२ लाख. मनुष्य--१२००००० नारकी–२५ लाख. देव--२६००००० पांच स्थावर-५७ लाख. नारकी--२५००००० जलचरादि--५३॥ लाख. जलचरादि--५३५०००० विकलेंद्रिय--२४ लाख. . ११६५०००० १७१५०००० Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [९९] देशविरति आश्री. क्षायिक आश्री. मनुष्य--१२ लाख.. नारकी-२५ लाख. जलचरादि-५३॥ लाख. देवता--२६ लाख. ६५५०००० मनुष्य-१२ लाख. चक्षुदर्शन आश्री. स्थलचर--१० लाख. मनुष्य--१२ लाख. ७३००००० देव--२६ लाख. सास्वादन आश्री. नारकी-२५ लाख. पंचेंद्रिय-११६५०००० जलचरादि-५३॥ लाख. विकलेंद्रिय--२४००००० चतुरिंद्रिय--९००००० पृथ्वी-१२००००० १२५५०००० अप--७००००० तेजोलेश्या आश्री. वनस्पति--२८००००० देव--२६ लाख. १८७५०००० मनुष्य--१२ लाख. असंज्ञी आश्री. जलचरादि--५३॥ लाख. मनुष्य--१२ लाख. पृथ्वीकाय-१२ लाख. जलचरादि--५३॥ लाख. अपकाय--७ लाख. विकलेंद्रिय--२४ लाख. तेजस्काय--२८ लाख. पांच स्थावर-५७ लाख. १३८५०००० . .. १४६५०००० योगस्थानना स्वामी. पंचमकर्मग्रन्थ (शतक) विषय. .. १ सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जघन्य योगः सर्वस्तोकः। ३ ततो बादरपर्याप्त जघन्ययोगोऽसंख्येय गुणः।। ३ ततो द्वींद्रिय अपर्याप्त जघन्ययोगोऽसंख्येय गुणः। ४ ततः त्रींद्रिय अपर्याप्त जयन्ययोगोऽसंख्येय गुणः। ५ ततश्चतुरिंद्रिय अपर्याप्त जघन्ययोगोऽसंख्येय गुणः। ६ ततोऽसंज्ञि अपर्याप्त जघन्ययोगोऽसंख्येय गुणः। ७ ततः संज्ञि अपर्याप्त जघन्ययोगोऽसंख्येय गुणः। ८ ततः सूक्ष्म अपयोप्त उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः। ९ ततो बादर अपर्याप्त उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०० १० ततः सूक्ष्म पर्याप्त जघन्ययोगोऽसंख्येय गुणः । ११ ततो बादर पर्याप्त जघन्ययोगोऽसंख्येय गुणः। १२ ततः सूक्ष्म पर्याप्त उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः। १३ ततो बादर पर्याप्त उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः। १४ ततो द्वींद्रिय अपर्याप्त उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः । १५ ततस्त्रींद्रिय अपर्याप्त उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः। १६ ततश्चतुरिंद्रिय अपर्याप्त उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः। १७ ततोऽसंज्ञि अपर्याप्त उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः। १८ नतः संज्ञि अपर्याप्त उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः। १९ ततो द्वींद्रिय पर्याप्त जघन्ययोगोऽसंख्येय गुणः। २० ततस्त्रींद्रिय पर्याप्त जघन्ययोगोऽसंख्येय गुणः। २१ ततश्चतुरिंयि पर्याप्त जघन्ययोगोऽसंख्येय गुणः । २२ ततोऽसंज्ञि पर्याप्त जघन्ययोगोऽसंख्येय गुणः। २३ ततः संज्ञि पर्याप्त जघन्ययोगोऽसंख्येय गुणः। २४ ततो द्वींद्रिय पर्याप्त उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः। २५ ततस्त्रींद्रिय पर्याप्त उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः। २६ ततश्चतुरिंद्रिय पयोझ उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः। २७ ततोऽसंज्ञि पर्याप्त उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः। २८ ततः संनि पर्याप्त उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः। २९ ततोऽनुत्तरसुर उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः। ३० ततो ग्रेवेयकसुर उत्कृष्टयोगो ऽसंख्येय गुणः। ३१ ततो युगलिक उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः। ३२ ततः आहारक शरीर उत्कृष्टयोगोऽसंख्येय गुणः । ३३ ततो शेषदेवनारकतिर्यचमनुष्याणां यथोत्तरमुत्कृष्टो योगोऽसंख्येय गुणः। १४ जीवना स्थितिस्थान- अल्पबहुत्व. ' (पंचम कर्मग्रन्थविषय.) १ सूक्ष्मैकेद्रिन्य अपर्याप्त स्थितिस्थानानि सर्वस्तोकानि । २ ततो बादरैकेंद्रिय अपर्याप्त स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि । ३ ततः सूक्ष्मैकेंद्रिय पर्याप्त स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि । ४ ततो बादर एकेंद्रिय पर्याप्त स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि । Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०१] ५ ततो द्वींद्रिय अपर्याप्त स्थितिस्थानानि असंख्येयगुणानि । ६ ततो द्वींद्रिय पर्याप्त स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि । ७ ततस्त्रींद्रिय अपर्याप्त स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि । ८ ततस्त्रींद्रिय पर्याप्त स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि । ९ ततश्चतुरिंद्रिय अपर्याप्त स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि । १० ततचतुरंद्रिय पर्याप्त स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि । ११ ततोऽसंज्ञी अपर्याप्त स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि । १२ ततोऽज्ञी पर्याप्त स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि । १३ ततो द्वींद्रिय पर्याप्त गुरुस्थितिः विशेषाधिका । १४ ततस्त्रींद्रिय पर्याप्त जघन्यस्थितिः विशेषाधिका । १५ ततस्त्रींद्रिय अपर्याप्त जघन्यस्थितिः विशेषाधिका । १६ ततस्त्रींद्रिय अपर्याप्त गुरुस्थितिः विशेषाधिका । १७ ततस्त्रींद्रिय पर्याप्त गुरूस्थितिः विशेषाधिका । १८ ततचतुरंद्रिय पर्याप्त जवन्यस्थितिः विशेषाधिका । १९ ततश्चतुरिंद्रीय अपर्याप्त जघन्यस्थितिः विशेषाधिका । २० ततचतुरिंद्रीय अपर्याप्त गुरुस्थितिः विशेषाधिका । २१ ततश्चतुरिंद्रिय पर्याप्त गुरुस्थितिः विशेषाधिका । २२ ततोऽसंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त जघन्यस्थितिः संख्येयगुणा । २३ ततोऽसंज्ञी पंचेंद्रिय अपर्याप्त जघन्यस्थितिः विशेषाधिका । २४ ततोऽसंज्ञि पंचेंद्रिय अपर्याप्त गुरुस्थितिबंध विशेषाधिका । २५ ततोऽसंज्ञि पंचेंद्रिय पर्याप्त गुरुस्थितिबंध विशेषाधिका । २६ ततोऽयतेरुत्कृष्टस्थितिबंघः संख्येयगुणः । २७ ततोऽदेशविरति जधन्यस्थितिबंध संख्येयगुणः । २८ ततोऽदेशविरति उत्कृष्टस्थितिबंधः संख्येयगुणः । २९ ततोऽविरत पर्याप्त लघुस्थितिबंध: संख्येयगुणः । ३० ततोऽविरत अपर्याप्त लघुस्थितिबंधः असंख्येयगुणः । ३१ ततोऽविरंत अपर्याप्त गुरुस्थितिबंध: संख्येयगुणाधिकः । ३२ ततोऽविरत पर्याप्त गुरुस्थितिबंध: संख्येयगुणाधिकः । ३३ ततः संज्ञिपंचेंद्रिय पर्याप्त लघुस्थितिबंध: संख्येयगुणाधिकः । ३४ ततः संज्ञिपंचेंद्रिय अपर्याप्त लघुस्थितिबंध: संख्येयगुणाधिकः । ३५ ततः संज्ञिपंचेंद्रिय अपर्याप्त गुरुस्थितिबंधः संख्येयगुणाधिकः । ३६ ततः संज्ञिपंचेंद्रिय पर्याप्त गुरुस्थितिबंधः संख्ये यगुणाधिकः । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०२] एकेंद्रियादिक जीवोमां स्थितिबंध आश्री अल्पवहुत्व १ सर्वथी स्तोक बंध दशमे गुणस्थाने यतिनो होय. २ तेथी बादर पर्याप्ता एकेंद्रियने जघन्य बंध असंख्यात गुणो. ३ तेथी सूक्ष्म पयोप्ता एकेंद्रियने जघन्य बंध विशेषाधिक. ४ तेथी बादर अपर्याप्ता एकेंद्रियने जघन्य बंध विशेषाधिक. ५ तेथी सूक्ष्म अपर्याप्ता एकेंद्रियने जवन्य वंध विशेषाधिक. ६ तेथी सूक्ष्म अपर्याप्ता एकेंद्रियने उत्कृष्ट बंध विशेषाधिक. ७ तेथी बादर अपर्याप्ता एकेंद्रियने उत्कृष्ट बंध विशेषाधिक. ८ तेथी सूक्ष्म पर्याप्ता एकेंद्रियने उत्कृष्ट बंच विशेषाधिक. ९ तेथी बादर पर्याप्ता एकेंद्रियने उत्कृष्ट बंध विशेषाधिक. १० तेथी द्वींद्रिय पर्याप्तानो जघन्य बंध संख्यात गुणो. ११ तेथी द्वींद्रिय अपर्याप्तानो जघन्य बंध विशेषाधिक. १२ तेथी द्वींद्रिय अपर्याप्तानो उत्कृष्ट बंध विशेषाधिक. १३ तेथी द्वींद्रिय पर्याप्तानो उत्कृष्ट बंध विशेषाधिक. १४ तेथी त्रींद्रिय पर्याप्तानो जघन्य बंध विशेषाधिक. १५ तेथी त्रींद्रिय अपर्याप्तानो जघन्य बंध विशेषाधिक. १६ तेथी त्रींद्रिय अपर्याप्तानो उत्कृष्ट बंध विशेषाधिक. १७ तेथी त्रींद्रिय पर्याप्तानो उत्कृष्ट बंध विशेषाधिक. १८ तेथी चतुरिंद्रिय पर्याप्तानो जघन्य बंध विशेषाधिक. १९ तेथी चतुरिंद्रिय अपर्याप्तानो जघन्य बंध विशेषाधिक. २० तेथी चतुरिंद्रिय अपर्याप्तानो उत्कृष्ट बंध विशेषाधिक. २१ तेथी चतुरिंद्रिय पर्याप्तानो उत्कृष्ट बंध विशेषाधिक. २२ तेथी असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्तानो जघन्य बंध संख्यात गुणो. २३ तेथी असंज्ञी पंचेंद्रिय अपर्याप्तानो जघन्य बंध विशेषाधिक. २४ तेथी असंज्ञी पंचेंद्रिय अपर्याप्तानो उत्कृष्ट बंध विशेषाधिक. २५ तेथी असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्तानो उत्कृष्ट बंध विशेषाधिक. २६ तेथी यतिने छठे गुणस्थाने उत्कृष्ट बंध संख्यात गुणो. २७ तेथी देशविरतिने जघन्य बंध संख्यात गुणो. २८ तेथी देशविरतिने पांचमे गुणस्थाने उत्कृष्ट बंध संख्यात गुणो. २९ तेथी अविरतिने चोथे गुणस्थाने पर्याप्ताने जघन्य बंध संख्यात गुणो. Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०३] ३० तेथीं अविरति अपर्याप्ताने जघन्य बंध संख्यात गुणो. ३१ तेथी अविरति अपर्याप्ताने उत्कृष्ट बंध संख्यात गुणो. ३२ तेथी अविरति पर्याप्ताने उत्कृष्ट बंध संख्यात गुणो.. ३३ तेथी संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्ताने जघन्य बंध संख्यात गुणो. ३४ तेथी संज्ञी पंचेंद्रिय अपर्याप्ताने जघन्य बंध संख्यात गुणो. ३५ तेथी संज्ञी पंचेंद्रिय अपर्याप्ताने उत्कृष्ट बंध संख्यात गुणो. ३६ तेथी संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्ताने उत्कृष्ट बंध संख्यात गुणो. ( आमां २६ थी ३४ सुधीना बंध अंतःकोटाकोटी सागरोपम समजवा.) पुद्गळ वर्गणानो क्रम. उत्तरोत्तर पूर्वानुपूर्वीए सूक्ष्म समजवी ने पश्चानुपूर्वीए स्थूळ समजवी. १ अग्रहण वर्गणा. २ औदारिक ग्रहण जघन्य उत्कृष्ट वर्गणा. ३ औदारिक वैक्रिय बन्नेने अग्रहण वर्गणाः ४ वैक्रिय ग्रहण जघन्य उत्कृष्ट वर्गणा. ५ वैक्रिय आहारक बनेने अग्रहण वर्गणा. ६ आहारक ग्रहण जघन्य उत्कृष्ट वर्गणा. ७ आहारक तैजस बनेने अग्रहण वर्गणा. ८ तैजस ग्रहण जघन्य उत्कृष्ट वर्गणा. ९ तैजस भाषा बनेने अग्रहण वर्गणा. १० भाषा ग्रहण जघन्य उत्कृष्ट वर्गणा. ११ भाषा अने श्वासोच्छ्वास बनेने अग्रहण वर्गणा. १२ श्वासोच्छास ग्रहण जघन्य उत्कृष्ट वर्गणा. १३ श्वासोच्छ्वास अने मन बनेने अग्रहण वर्गणा. १४ मनने जघन्य उत्कृष्ट ग्रहण वर्गणा, १५ मन अने कार्मण बंनेने अग्रहण वर्गणा. १६ काभण प्रायोग्य जवन्य उत्कृष्ट ग्रहण वर्गणा, १७ ध्रुव अचित्त जघन्य वर्गणा. १८ ध्रुव अचित्त उत्कृष्ट वर्गणा. १९ अध्रुव अचित जघन्य वर्गणा. २० अध्रुव अचित उत्कृष्ट वर्गणा. Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .[१०४] २१ प्रत्येक जीवना पांच शरीरना प्रदेशो पकी एकेक प्रदेशमा सर्व जीवथी अनंतगुणा विस्रसा परिणत सूक्ष्म पुद्गळ स्कंध आश्रित प्रत्येक वर्गणा जघन्यथी उत्कृष्ट पर्यत एकेक प्रदेशथी वधती असंख्याती छे, दरेक जातिनी अनंती छे. २२ अनंती शून्य वर्गणा. २३ बादर निगोदीया जीवना त्रण शरीर प्रदेशने आश्रित अनंता पुद्गळ स्कंध विस्रसा परिणत होय, तेनी पण एकेकाधिक प्रदेशे वधती अनंती वर्गणा जघन्यथी उत्कृष्ट पर्यत असंख्याती छे. २४ अनंती शून्य वर्गणा. २५ सूक्ष्म निगोदीया शरीरना एकेक प्रदेश आश्रित विस्रसा परिणत अनंत पुद्गळ स्कं धनी वर्गणा जघन्य उत्कृष्ट. २६ अनंती शून्य वर्गणा. २७ मिश्र स्कंधनी अनंती वर्गणा. २८ अचत्ति महास्कंध ते पर्वत कूटादिने विषे विस्रसा परिणामे आश्रित अनंत प्रदेशा ___त्मक वर्गणा ते केवळीनी पेठे आठ सामयिक समुद्धात करे. आठ कर्मनी उत्तर प्रकृतिनो उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थितिबंध. १ ज्ञानावरणीय ५. उत्कृष्ट. जघन्य. पांचे ज्ञानावरणी. पांचे ज्ञानावरणी. त्रीस कोडाकोडी सागरोपम. अंतर्मुहूर्त. २ दर्शनावरणीय ९. ४ दर्शनावरणीय,त्रीस कोडाकोडी सागरोपम. ४ दर्शनावरणीय, अंतर्मुहूर्त. ५ निद्रा. त्रीस कोडाकोडी सागरोपम. ५निद्रा,एक सागरोपमना सातैया त्रण भाग. ३ वेदनीय २. १ साता, पंदर कोडाकोडी सागरोपम. १ साता, बार मुहूर्त. १ असाता, त्रीस कोडाकोडी सागरोपम. १ असाता,एक सागरोपमना सातैया त्रण भाग. ४ मोहनीय २६. १६ कषाय, चाळीश कोडाकोडी सागरोपम. १२ कषाय,एक सागरोपमना सातैया चार भाग. १ मिथ्यात्व,७० कोडाकोडी सागरोपम. १ संज्वलन क्रोध, २ मास. २ हास्य, रति, १० कोडाकोडी सा० १ संज्वलन मान, १ मास. ४ शोक, अरति, भय, दुगंछा, २० को- १ संज्वलन माया, १५ दिवस. ___ डाकोडी सागरोपम. १ संज्वलन लोभ, अंतर्मुहूर्त. Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ पुरुषवेद, १० कोडाकोडी सा० ... १ मिथ्यात्व, १ सागरोपम. १स्त्रीवेद, १५ कोडाकोडी सा० २ हास्य, रति,सागरोपमनो सातयो १ भागः १ नपुंसकवेद, २० कोडाकोडी सा० ४ शोक, अरति, भय, दुगंछा, एक सागरो . पमनां सातैया बे भाग. १ पुरुषवेद, आठ वर्ष. . . १ स्त्रीवेद,१ सागरोपमना चौदीया ३ भाग. १ नपुंसकवेद,१ सागरोपमना सातैया २भाग. ५ आयु कर्म-४... २ नरकायु, देवायु, ३३. सागरोपमः २ नरकायु, देवायु, दशहजार वर्षः .३ मनुष्यायु, तिर्यंचायु, ३ पल्योपमः . ३ मनुष्यायु, तिर्यंचायु, अंतर्मुहूर्त... ६नाम कर्म ९३. .. (चार गति.) ....... . उत्कृष्ट.. जघन्य.. १ मनुष्यगति, १५ कोडाकोडी सागरोपम १ मनुष्यगति एक सागरोपमना चौदीया त्रण, भाग. २ नरक लथा तिथंचगति, २० कोडाकोडी र नरक तथा तिर्यंचगति, एक सागरोपसागरोपम.. मना सातैया बे भाग. १. देवगति, १० कोडाकोडी सागसेफ्मः १ देवगति,१ सागरोपमनो सातैयो?भाग. .::.. . (पांच जाति) १. एकेंद्रिय, २० कनेडाकोडी सा० १ एकेंद्रिय, सागरोपमना सातैया बे भाग. ३ विकलेंद्रिय, १८ कोडाकोडी सा० ३ विकलेंद्रिय, सागरोपमना पांत्रीशीया .. .. नव भाग... .. .. १ पंचेंद्रिय, २० कोडाकोडी सा० १ पंचेंद्रिय, सागरोपमना सातया बे भाग. .. (पांच शरीर त्रण उपांग, पांच बंधन, पांच संघातन. ) . . ४ औदारिक शरीर, उपांग, तथा संघातन ४ औदारिक शरीर, उपांग, बंधन, संघा२० कोडाकोडी सा० तन, १ सागरोपमना सातैया २ भाग. ४ वैक्रिय शरीर, बंधन, उपांग तथा सं.. ४ चैक्रिय शरीर, बंधन, उपांग, संवातन, यातन, २० कोडाकोडी सा , एक सागरोपमना सातैया बे भाग. ४ आहारक चतुष्क, अंत: कोडाकोडी... ४ आहारक चतुष्क अंतर्मुहूर्त.... ६ तैजस तथा कार्मणः शरीर, बंधन, सं- , ६ तेजस तथा.. कार्मण शरीर, बंधन, सं.. घातन, २० कोडाफोडी !... घातन, सागरोपमना सातैयाबे भाग. Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (छ संघयण तथा छ संस्थान.) २ पहेलं संघयण तथा संस्थान, दश को- २ पहेलं संघयण तथा संस्थान, सागरोप__डाकोडी. मनो सातैयो एक भाग. २ बीजुं संघयण तथा संस्थान, १२ को- २ बीजुं संघयण तथा संस्थान, सागरोपडाकोडी. मना पांत्रीशीया छ भाग. २ त्रीजुं संघयण तथा संस्थान, १४ को- २त्रीजु संघयण तथा संस्थान, सागरोपडाकोडी. ___ मना पांत्रीशीया सात भाग. २ चोथु संघयण तथा संस्थान, १६ को- २ चोथु संघयण तथा संस्थान, सागरोप__ डाकोडी. मना पांत्रीशीया आठ भाग. २ पांचमुं संघयण तथा संस्थान, १८ को- २ पांचमुं संघयण तथा संस्थान, सागरोपडाकोडी. मना पांत्रीशीया नव भाग. २ छठे संघयण तथा संस्थान, २० को- २ छठे संघयण तथा संस्थान, सागरोप__ डाकोडी. मना सातैया बे भाग. (वर्णादि वीश.) ७ मृदु, लघु, स्निग्ध, उष्ण, सुरभिगंध, ७ मृदु, लघु, स्निग्ध, उष्ण, सुरभिगंध, श्वेतवर्ण, मधुररस, १० कोडाकोडी. श्वेतवर्ण, मधुररस, सागरोपमनो सातैयो एक भाग. २ हलिद्रवर्ण, आम्लरस, साडाबार को- २ हलिद्रवर्ण, आम्लरस, सागरोपमना अ ___ हावीशीया पांच भाग. २ लोहितवर्ण, कषायरस, १५ कोडाकोडी. २ लोहितवर्ण, कषायरस, सांगरोपमना - अहावीशीया छ भाग. २ नीलवर्ण, कटुकरस, साडासतर कोडा- २ नीलवर्ण, कटुकरस, सागरोपमना अकोडी सागरोपम. हावीशीया सात भाग. ७ कृष्णवर्ण, तिक्तरस, गुरुस्पर्श, कर्कश, ७ कृष्णर्ण, तिक्तरस, गुरुस्पर्श, कर्कश, रुक्ष. शीत, दुर्गध, २० कोडाकोडी... रुक्ष, शीत, दुरभिंगध, सागरोपमना सातैया बे भाग. (आनुपूर्वी चार.) १ मनुष्यानुपूर्वी, १५ कोडाकोडी. १ मनुष्यानुपूर्वी, सागरोपमना चाँदीया ३ भाग १ देवानुपूर्वी, १० कोडाकोडी. १ देवानुपूर्वी, सागरोपमनो सातैयो १ भाग. २ तिथंच तथा नारकीनी आनुपूर्वी, २ तिर्यच तथा नारकीनी आनुपूर्वी, सागरो२० कोडाकोडी. पमना सातैया वे भाग. डाकोडी. Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०७] __ (विहायोगति २.) १ शुभ विहायोगति, १० कोडाकोडी. १ शुभ विहायोगति, सागरोपमनो सातैयो . एक भाग. १ अशुभ विहायोगति, २० कोडाकोडी. १ अशुभ विहायोगति, सागरोपमना सा तैया बे भाग. . (प्रत्येक प्रकृति ८.) ४ उच्छ्वास, उद्योत, आतप, पराघात, २० ४ उच्चास, उद्योत, आतप, पराघात, कोडाकोडी.. सागरोपमना सातैया बे भाग. ३ उपघात, अगुरुलघु, निर्माण, २० को- ३ उपघात, अगुरुलघु, निर्माण, सागरोडाकोडी. पमना सातैया बे भाग. १ तीर्थंकर नामकर्म, अंतः कोडाकोडी. १ तीर्थकर नामकर्म दश हजार वर्ष, (त्रस दशक.) ४ त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, २० को- ४ त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, सागरोपमना .. डाकोडी.. सातैया बे भाग. ६ स्थिरादि छ, १० कोडाफोडी.. ६ स्थिरादि छ. सागरोपमनो सातैयो एक ___भाग. परंतु जसनामनी आठ मुहूर्त. (स्थावर दशक.) १ स्थावर नामकर्म, २० कोडाकोडी. १ स्थावर नामकर्म, सागरोपमना सातैया बे भाग. ३ सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, १८ ३ सूक्ष्म, अपर्याप्स, साधारण, सागरोपमना कोडाकोडी. पांत्रीशीया नव भाग. ६ अस्थिर षद्क, २० कोडाकोडी. ६ अस्थिर षट्क,सागरोपमना सातैयारभाग. __ ७ गोत्र कर्म २. १ उच्च गोत्र, १० कोडाकोडी. १ उच्च गोत्र, आठ मुहूर्त १ नीच गोत्र, २० कोडाकोडी. १ नीच गोत्र, सागरोपमना सातैया ने भाग. ८ अंतराय कर्म ५. ५पांचे अंतराय ३० कोडाकोडी. ५पांचे अंतराय अंतर्मुहूर्त. Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आठे कर्मनो उत्कृष्ट अबाधा काळ. कर्मः अबाधा काळ... कम. ..अबाधा काळ. : १. ज्ञानावरणीय-, ३००० वर्ष, ५. आयु--- करोड पूर्वनो त्रीजो भागः २ दर्शनावरणीय-- ३००० वर्ष ६ नाम--- २००० वर्ष. ३ वेदनीय-- ३००० वर्ष... .. ७ गोत्र--- २००० वर्ष. ४ मोहनीय--.....७००० वर्ष. ८ अंतराय-- ३००० वर्ष, आठे कर्मनी उत्तर प्रकृतिनो उत्कृष्ट अबाधा काळ. ७० कोटाकोटी सागरोपमनी स्थितिवाळी प्रकृति र ..७००० वर्ष. ३० कोटाकोटी सागरोपमनी स्थितिवाळी प्रकृति ३००० वर्ष. २० ...कोटाकोटी सागरोपमनी स्थितिवाळी प्रकृति-. २०००-वर्ष.. १८ कोटाकोटी सागरोपमनी स्थितिवाळी प्रकृति-- .१८१० वर्ष. १७॥ कोटाकोटी सागरोपमनी स्थितिवाळी अंकृति-- . १७५० वर्ष. १६ कोटाकोटी सागरोपमनी स्थितिवाळी प्रकृति १६०० वर्ष. १५ कोटाकोटी सागरोपमनी स्थितिवाळी प्रकृति १५०० वर्ष. १४ कोटाकोटी सागरोपमनी स्थितिवाळी प्रकृति-- अर, १४०० वर्षः १२॥ कोटाकोटी सागरोपमनी स्थितिवाळी प्रकृति-- । १२५० वर्ष. १२ कोटाकोटी सागरोपमनी स्थितिवाळी प्रकृति-- १३०० वर्षः १० कोटाकोटी सागरोपमनी स्थितिवाळी प्रकृति हि ४० वर्ष. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पष्करा) .७कालादी ६ धातकीखंडे ५लवणसमुद्र | ४जबूद्वीप ३.ऐवतमा २महाविदेशमा १भरतमा तिनो यत्र. जेटल जेटला लाभे जे जे क्षेत्रमा जीवना ५६३ भेद 1०२ २१६ ७५ जीव भेद.. Vidi १०२०१० | २ | २ | २ | २ । २ । २ । ६ २० । ६/६६i | ३६/ [ / 41 १४६ नारकी सातना पर्याप्ता अपर्यापा... १४.. सूक्ष्म एकेन्द्रिय ५ पर्याप्ता अपर्याप्ता. तिर्यचना २. पृथ्वीकाय पर्याप्ता अपर्गप्ता.. [भेद ४८ २० अपकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता. : २ तेजस्काय पयाता अपर्याप्त........." २. वायुकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता. साघारण वनस्पतिकाय पर्याप्त अपर्याप्ता. , प्रत्येक वनस्पतिकाय पर्याप्ता अपर्याप्ता. ,, विकलेंद्रिय पर्याप्ता . अपर्याप्ता.. " | २० |तियच पचेंद्रिय पर्याप्ता अप्रयाप्ता... , | | .. | | १५ पां भरत कममूमिना पर्या०अप० समू• मनुष्यन १५ पांच ऐ वत कर्मभृमिना पर्या अपसमू० [३० | Tn.| १५ पांव महाविदेह कर्मभूमिना पर्या अप०समू० , छप्पन्न अंतींपना पर्या० अप० समू० . , त्रीश अकर्मभूमिना पर्या अप० संमू , ° २०: दश भुवनपति पर्या० अप० . . देवताना .... .. ३० पंदर -परमाधार्मिक पयो० अप० । [१९८ ।.. . ३२. सोल व्यंतर पर्या० अप० ५ दश तिर्यगजभक पर्या० अप० , २० पांच ज्योतिषना चर, अचर, 'पर्या० अप० ,, त्रण किल्बिष पर्या० अप० . २६ बार देवलोकना पर्या० अप० नव ग्रैवेयकना पर्या० अप० .१८ नव लोकांतिकना पया० अप १० विजयादि पान अनुत्तग्ना पया अप ., ० ० ० ० ०१. ०६ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . नंदीश्वग्द्वीपे । १६ . १०तिरछालोके . . .. .. ... | • • .. .. .। . م. أ ه ا ه ا ११ अधोलोके . . . • १२ ऊर्ध्वलोके • • • • • | ६२४ १३ मेरुपर्वते • • .. . १४ अढीद्वीपे | ६२० १५ १५ १५ १६८९. . • . १५बारदेवलोके | ६८ . १० • • १६ नवग्रेवेयके . . • • १७पांचअनुत्तरे २ [११०] • • . १८ सिद्धशिलाए १४ • • १९ लोकने छेडे १२ . १० • • . . . . . २० अधोग्राम • • २१ मुठीमां | १२ | . .. . . . . . . .. .. . . .. . . ... . ... अजीव भेद ५६० धर्मना(कंध,देश,प्रदेश,द्रव्य,क्षेत्र,काल,भाव,गुण). अधर्मनारधर्म प्रमाणे. आकाशना ८ । कालना ६ । पुद्गलना ५३० सर्व भेद ५६० अरत क्षेत्रे. स्कंध विना स्कंध विना ७ स्कंध विना ७ स्कंध तथा देश विना ६/ ५३. जंबू द्वीपे. लवण समुद्रे नंदीश्वर द्वारे , , , ,, Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ ६२ मार्गणा ओश्री जीवना ५६३ भेदोनुं विवरण. १ देवगतिना भेद. १९८१० भुवनपति, १५ परमाधार्मिक, १६ व्यन्तर, १० तिर्यग्जूभक, १० ज्योतिषी, १२ देवलोक, ३ किल्बीपी, ९ लोकान्तिक, ९ वेयक, ५ अनुत्तरविमान । ए ९९ पर्याप्ता, तथा एज ९९ अपर्याप्ता मळीने सर्व भेद १९८ छ, २ मनुष्यगतिना भेद.३०३१५ कर्मभूमिना–५ भरत, ५ ऐवत, अने ५ महाविदेह. अढीद्वीपना मळीने ३० अकर्मभूमिना--५ हैमवत, ५ ऐरण्यवत, ५ हरिवंश, ५ रम्यक, ५ देवकुरु, ५ उत्तरकुरु (आ त्रीश | क्षेत्र युगलीयानां छे.) ५६ अंतरद्वीप--जंबुद्वीपना हिमवंत तथा शिखरी ए बे पर्वतनी चार चार दाढाओ लवणसमुद्रमां पडे, । छे, ते एकेकी दादा उपर सात सात अंतरद्वीप छे, तेथी आठे दाढाओना मळीने ५६ अंतरद्वीप . १०१ गर्भज पर्याप्ता, १०१ गर्भज अपर्याप्ता, १०१ संमूर्छिम अपर्याप्ता (चौद स्थानकना) कुल मळीने ३०३.. ३तियग्मतिना भेद. ४८२० तिर्यपंचेंद्रियना, तेमां--४ जलचर--गर्भज अने संमृर्छिम ए बे पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता.. (११श ४ स्थलचर--". ४ खेचर , " " " ४ उरपरिसर्प , ४ भुजपरिसर्प, Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Agrail Id: AS ६ विकलेन्द्रियना, तेमां - - द्वींद्रिय, त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय ए ३ पर्याप्ता तथा एज ३ अपर्याप्ता २२ एकेन्द्रियना, तेमां – पृथ्वीकोयना सूक्ष्म अने बादर ए वे पर्याप्ता तथा एज बे अपर्याप्ता मळीने ४८ नरकगतिना भेद. १४ ७ ४ गतिनी मागणा. ५ इन्द्रियोनी ६ कायनी ३ योगनी - ३. वेदनी.... ४ कषायनी " ७ तमस्तमः प्रभाः ए सात पर्याप्ता तथा एज सात Bald ओ रीते चार गतिना मळीने अथ बासठ (६३) मार्गणाए जीवना- "केटला केटला भेद पमाय ते कहे छे. बासठ मार्गणा आ प्रमाणे चार थया 1 तेवीज रीते ४ अपकायना, ४ तेउकायमा अने चार वायुकायना, सर्वे मळी १६ थया । वनस्पतिकायना ६, तेमां - ४. सुरण वनस्पति सूक्ष्म तथा बादर. ए वे つ पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता. 2151 २ प्रत्येक वनस्पति पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता । प्रभा, शर्करा, ३ बालुकप्रभा, ४ पैकप्रभा, ५ धूमप्रभा, ६ तमःप्रभा, अपता मळीने १४ भेद छे. ५६३ भेद जाणवी. ८ ज्ञाननी मागणा. ७ संयमनी ४ दर्शन नी ६ श्यानT -२ भव्यनी ६०सम्यक्कानी २ संझीनी मार्गणा. २ आहारीनी 31 -- ए रीते ६२ मार्गणामांनी प्रत्येक मार्गणा जीवना भेद केला पामे ते कहे छे [१२] Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अथ ६२ मार्गणानुं विवरण. जीवना। मनुष्यगति.. i मार्गणानां नाम. | भेदनी देवगति. तिर्यग्मति. नरकगति. संख्या १ दवगातना मार्गणा. | १९८१० भुवनपति, १५ परमाधार्मिक, १६ व्यंतर, १० प्तिर्यग जंभक, १० ज्योतिषी, १२ देवलोक, ३ किल्बिषी, ९ लोकांतिक, ९ प्रैवेयक, ५ अनुसरविमान, सर्वमली ९९ प याप्ता तथा ९९ अपर्याप्ता, । मनुष्यगतिनी मार्गणा. ३०३ ॥ १०१ गर्भजपर्याप्ता, १०१ गर्भज अपर्याप्ता, १०१ समूर्छिम मनुष्य. | । तिर्यग्गतिनी मार्गणा. ४८ २२ एकेन्द्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता. ६ विकलेन्द्रिय ाप्ता अपर्याप्ता. / २० तिर्यक पंचेंद्रिय गर्भज संमू छंग पर्याप्ता अपर्याप्ता. ४ नारकीनी मार्गबा. १४ • पर्याप्ता. ७ अपर्याप्ता. एकेद्रियनी मार्मणा. २२/ ४ पृथ्वींकाय, ४ अपकाय, ४ वायु काय, ४ तेजस्काय,६ वनस्पतिकाय. दीन्द्रियनी मार्गणा. २ द्वींद्रिय पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता. त्रीन्द्रियनी मार्गणा. २ बौद्रिय पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता. [११३] ncludinataniLEL... ......... ...... . ... ८ चतुरिन्द्रियी मार्गणा २॥ पंचेंद्रियनी मार्गमा. ५३५ ९९ पर्याप्ता, ९९ अपर्याप्त. चतुरिंद्रिय पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता. १.१ गर्भजपर्याप्ता, १.१ गर्भज-२० तिर्यक् पंचेंद्रिय पर्याप्ता तथा ७ पर्याप्ता. ७ अपर्याप्ता. | अपर्याप्ता, १०१ समूर्छिम मनुष्य. अपर्याप्ता. . Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । |२०पृथ्वीकायनी मागणा. ४ २ सूक्ष्म पर्याप्ता अपर्याप्ता. २ बादर पर्याप्ता अपर्याप्ता. ११ अपकायनी मार्गणा. २ अप्काय सूक्ष्म पर्याप्ता अपर्याप्ता. २ अफ्काय बादर पर्याप्ता अपर्याप्ता. १२तेजस्कायनी मार्यणा. २ तेजस्काय सूक्ष्म पर्याप्ता अपर्याप्ता. २ तेजस्काय वादर पर्याप्ता अपर्याप्ता १३वायुकन्यनीमार्गणा. २ मायुकाय सूक्ष्म पर्याप्ता अपर्याप्ता. २ वाधुकाय बादर पर्याप्ता अपर्याप्ता. १४ वनस्पतिकायनीमार्गण ६ २ साधारण वनरपति सूक्ष्म पर्याप्ता अपर्याप्ता. २ साधारण वनस्पति बादर पर्याप्ता । अपर्याप्ता. २ प्रत्येक वनस्पति पर्याप्ता अपर्याप्ता. १५त्रसकायनी मार्गणा. ५४१ ९९ पर्याप्ता, ९९ अपर्याप्ता, १०१ गर्भज पर्याप्ता, १.१ गर्भज २० तिर्यक् पंचेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता. ७ पर्याप्ता, ७ अपर्याप्ता. | अपर्याप्ता, १०१ संमूर्छिम मनुष्य. ६ विकलेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता. १६मनयोगनी मार्गणा. २१२ ९९ देवता पर्याप्ता. १०१ गर्भजमनुष्य पर्याप्ता. ५ गर्भज तिर्यंच पंचद्रिय पर्याप्ता. ७ नारकी पर्याप्ता. १७वचनयोगनी मार्गणा २२० ९९ देवता पर्याप्ता. १०१ गर्भजमनुष्य पर्याप्ता. ५ तिर्यक् पंचेंद्रिय गर्भन पर्याप्ता, नारकी पर्याप्ता. ५ तिर्यक पंचेन्द्रिय संमूर्छिम । पर्याप्ता, ३ विकलेन्द्रिय पर्याप्ता. १८ काययोगनी मार्गणा. ५६३ ९९ पर्याप्ता. ९९ अपर्याप्ता. १०१ गर्भज पर्याप्ता, १०१ गर्भन २२ एकेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता , पर्याप्ता, ७ अपर्याप्ता, अपर्याप्ता, १०१ संमूछिभ मनुष्य. ६ विकलेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता, २०तिर्यक् पंचेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता. १९स्त्रीवेदनी मार्गणा. ३४० १० भुवनपति, १५ पामाधार्मिक, १०१ गर्भज पर्याप्ता, १०१ गर्भज १० गर्भज पर्याप्ता अपर्याप्ता. १६ व्यंतर, १० तिर्यग् जंभक, १० अपर्याप्ता. ज्योतिषि, २ देवलोक पहेलु तथा बीजु, १किल्विषी, सर्व मली ६४ पर्याप्ता तथा ६४ अप र्याप्ता. कुल १२८. [११४]] Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० पुरुषवेदनी मार्गणा ४१० ९९ पर्याप्ता, ९९ अपर्याप्ता. २१ नपुंसक वेदनी मांगणा. १९३ २२ क्रोधनी मागणा. २३ माननी मागणा. २४ मायानी मागणा. २५ लोभनी मागेणा. ५६३९९ पर्याप्ता, ९९ अपर्याप्ता. ५६३ ९९ पर्याप्ता, ९९ अपर्याप्ता. २९ मनपर्यवज्ञाननी मार्गणा • केवलज्ञाननी मार्गणा. ५६३ ९९ पयाप्ता ९९ अपयांप्ता. २४६ २८ अवधिज्ञाननी मार्गणा अथवा ९९ पर्याप्ता ९९ अपर्याप्ता. २५१ १०१ गर्भज पर्याप्ता, १०१ गर्भजं १० गर्भज तिर्यक् पंचेन्द्रिय पर्याप्ता • अपर्याप्ता. अपयाप्ता. १५ १५ ३० कर्मभूमिमां गर्भज अपर्याप्ता १०१ संमूर्च्छिम अपयाप्ता. अपर्याप्ता, ७ पर्याप्ता, पर्याप्ता २२ एकेंद्रिय पर्याप्ता मनुष्य विकलेंद्रिय पर्याप्ता २० तिर्यक् पंचेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता. अपवाप्ता, अपयाप्त १०१ गर्भज पर्याप्ता १०१ गर्भज २२ एकेन्द्रिय पर्या अपर्याप्ता, ७ पर्याप्ता, ७ अपयाप्ता. अपर्याप्ता, १०१ संमूर्छिम मनुष्य ६ विकलेन्द्रिय पर्याप्ता अपयाप्ता, २० तिर्यक् पंचेंद्रिय पर्याप्ता अर्ध्याप्ता. १०१ गर्भज पर्याप्ता, १०१ गर्भज २२ एकेन्द्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता, ७ पर्याप्ता, ७ अपर्याप्ता. अपर्याप्ता, १०१ संमूर्छिम मनुष्य . ६ विकलेन्द्रिय पर्याप्ता २० तिर्यक् पंचेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता. १०१ गर्भज पर्याप्ता, १०१ गर्भ २२ एकेन्द्रिय पर्याप्त । अपर्याप्ता, अपर्याप्ता, १०१ संमूर्छिम मनुष्य ६ विकलेन्द्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता २० तिर्यक् पंचेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता. ५६३ ९९ पर्याप्ता, ९९ अपर्याप्ता. १०१ गर्भज पर्याप्ता, १०१ गर्भज २२ एकेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता, ७ पर्याप्ता, ७ अपर्याप्ता. अपर्याप्ता, १०१ संमूर्छिम मनुष्य ६ विकलेंद्रिय पर्याप्ता अपयांप्ता, २० तिर्यक् पंचेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता. अपर्याप्ता संज्ञी. (संज्ञी) (मंज्ञी) २६ मतिज्ञाननी मार्गणा. ४२३ ९९ पर्याप्ता ९९ अपर्याप्ता. (पर- १०१ गर्भज पर्याप्ता १०१ गर्भज १० गर्भज तिथेच पंचेंद्रिय पर्याप्त उपप्ता, ६ अपर्याप्ताएटले माधार्मिक पूर्वसंग तिकदेवताने अपर्याप्ता. सातमी नरकनो अपयोप्ता कारणे समकित पामे छे. ) समकित पामे नहीं. २७ श्रुतज्ञाननी मार्गणा ४२३ ९९ पर्याप्ता ९९ अपर्याप्ता. १०१ गर्भज पर्याप्ता, १०१ गर्भज १० गर्भज तिर्यच पंचेंद्रिय पर्याप्ता ७पर्याप्ता, ६ अपर्याप्ता एटले अपर्याप्ता. अपयाप्ता. सातमी नरकनो उपर प्रमाणे नहि. १५ कर्मभूमिना गर्भज पर्याप्ता. १५ कर्मभूमिना गर्भज अपर्याप्ता. ७ अपयाप्ता. पर्याप्ता, १५ कर्मभूमिना गर्भज पर्याप्ता. १५ कर्मभूमिना गर्भज पर्याप्ता. ७ अपर्याप्ता. ५ गर्भज तिर्यंच पंचेंद्रिय पर्याप्ता, ७पर्याप्ता, ६ अपर्याप्ता उपर अथवा ५ गर्भज तिर्यच पंचेंद्रिय प्रमाणे. अपर्याप्तः मळीने १०. [११५] Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१मतिअज्ञाननी मार्गणा./५३५१० भुःनपति, १५ परमाधार्मिक,१०१ गर्भज पर्याप्ता, १.१ गर्भज २२ एकेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता,७ पर्याप्ता, ७ अपयप्तिा.. १० तिर्यग् बृभक, १६ व्यंतर, अपर्याप्ता, १.१ संमार्छिम मनुष्य. ६ विकलेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता, १० ज्योतिषी, १२ देवलोक, ३ किल्विषी, ९ ग्रैवेयक. सर्व मली २० तिर्यपंचेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता.. ८५ पर्याप्ता तथा ४५. अपर्याप्ता | कुल १७०. ३२ श्रुतअज्ञाननी मार्गणा. ५३५ १० भुवनपति, १५ परमाधार्मिक, १०१ गर्भज पर्याप्ता, १.१ गर्भज २२ एकेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता.७ पर्याप्ता, ७ अपर्याप्ता. १० ज्योतिषी. १२ देवलोक, १६ व्यतर १० तिर्यग्नुंभक | अपर्याप्ता, १०१ संमूर्छिम मनुष्य. ६ विकलेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता. किल्विषी, ९ ग्रैवेयक. सर्व मली २० तिर्यपंचेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता. ८५ पर्याप्ता, अने ८५ अपर्याप्ता. कुल १७०.. ३३ विभंगज्ञाननी मार्गणा. २०४ १० भुवनपति, १५ पम्माधार्मिक, १५ कर्मभूमिना गर्भज पर्याप्ता.५ गर्भज तिर्यंच पंचेंद्रिय पर्याप्ता.७ पर्याप्ता, ७ अपर्याप्ता. अथवा it १६ व्यंतर, १० तिर्यग गंभक, अथवा १५ कर्मभूमिना गर्भन अथवा ५ गर्भज तिर्यंच पंचेंद्रिय | २२४ १० ज्योतिषी १२ देवलोक, ३. किल्विषी, ९ वेयक सर्वमा पर्याप्ता, तथा १५ कर्मभूमिमा पर्याप्ता तथा ५ गर्भज तिर्यच ८५ पर्याप्ता अने ८५ अपर्याप्ता. गर्भज अपर्याप्ता मली ३०. पंचेंद्रिय अपर्याप्ता मळीने १०. कुल १७०. ३४ सामायिक चारित्रनी १५ १५ कर्मभूमिना गर्भज मनुष्य पर्याप्ता. | मार्गणा. ३५छेदोपस्थापनिक ना- १० ५ भरत अने ५ ऐवतना गर्भज रित्रनी मार्गणा. मनुष्य पयाप्ता. ३६ परिहारविशुद्धि चारित्र १० ५ भरत तथा ५ ऐश्वतना गर्भ नी मार्गणा. | मनुष्य पर्याप्ता. ३७मूक्ष्मसंपराय चारित्रनी १५ १५कर्मभूमिना गर्भज मनुष्य पर्याप्ता. मार्गणा. ३८ यथाख्यात चारित्रनी १५/ १५कर्मभूमिना गर्भज मनुष्य पर्याप्ता. . मागेणा. ३९ देशविरति चारित्रनी • . १५कर्मभृमिना गर्भज मनुष्य पर्याप्ता.५ गर्भज तिर्यक् पंचेंद्रिय पर्याप्ता.. [११६] | मार्गणा. Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • अविरति चारित्रनी ५६३९९ पर्याप्ता, ९९ अपर्याप्ता. १०१ गर्भज मनुष्य पर्याप्ता, १०१२२ एकेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता, ७ पर्याप्ता, अपर्याप्ता.. मार्गणा. गर्भज मनुष्य अपर्याप्ता, १०१६ विकलेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता, | संमूर्छिम मनुष्य. २० तिर्यक्रपंचेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता. ४१ अचक्षुदर्शननी ५६३९९ पर्याप्ता, ९९ अपर्याप्ता. १०१ गर्भज मनुष्य पर्याप्ता, १०१२२ एकेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता. ७ पर्याप्ता, अपर्याप्ता. मार्गणा. गर्भज मनुष्य अपर्याप्ता, १.१६ विकलेंद्रिय पर्याप्ता भपयाप्ता. मूर्छिम मनुष्य. २० तिर्यपंचेंद्रिय पर्याप्ता अपर्यामा. ४२ चक्षुदर्शननी मार्गणा २१८९९ पर्याप्ता. १०१ गर्भज मनुष्य पर्याप्ता. १० गर्भज संपछिम पर्याप्ता, १ चतु ७ पर्याप्ता. द्रिय पर्याप्ता. ४३ अबधिदर्शननी मार्गणा २४६९९ पर्याप्ता, ९९ अपर्याप्ता. ३० कर्मभूमिना गर्भन पर्याप्ता'५ तिर्यक् पंचेंद्रिय गर्भज पर्याप्ता. • पर्याप्ता, अपर्याप्ता. अथवा __ अपर्याप्ता, अथवा ५ तिर्यंच पंचेंद्रिय गर्भज पर्याप्ता अने ५ अपर्याप्ता. ४४ केवलदर्शननी मार्गणा. १५ १५ कर्मभूमिना गर्भज मनुष्य पर्याप्ता. . ४५ कृष्णलेश्यानी मार्गणा. ४५९१० भुवनपति १५ पम्माधार्मिक, १०१ गर्भज मनुष्य पर्याप्ता, १.१२२ एकेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता, ६ सातमी, छठी अने १६ भ्यंतर, १० तिर्यग् ब्रुभक, गर्भज मनुष्य अपर्याप्ता, १०१६ विकलेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता, पांचमीना पर्याप्ता, सर्व मली ५१ पर्याप्ता अने ५१ संमूर्छिम मनुष्य. २०तिर्यक् पंचेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता. तर्था अपर्याप्ता. अपर्याप्ता. कुल १०२. ४५९॥ ४६ नीललेश्यानी मार्गणा. ४२९१० भुवनपति, १६ व्यतर, १०१०१ गई। मनुष्य पर्याप्ता, १०१२२ एकेन्द्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता, ६ पांचमी,चोथी अने সথা | तिर्यग्भक ए ३६ पर्याप्ता गर्भज मनु अपर्याप्ता, १.१६ विकलेन्द्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता, त्रीजीना पर्याप्ता तथा तथा एज ३६ अपर्याप्ता. कुल संमूर्डिम मनुष्य. २०तिर्यक् पंचेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता. अपर्याप्ता. ७२. अथवा १५ परमाधार्मिक पर्याप्ता, ता १५ अपर्याप्ता मली १७ कापेतलेझ्यानीमार्गणा. ४२९१० भुवनपति, १६ व्यंतर, १.१.१ गर्भन मनुष्य पर्याप्ता, १.१.२२ एकद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता, ६ त्रीजी, बीजी अने अथवा तिर्यग् सुंभक, ए ३३ पर्याप्ता, गर्भज मनुष्य अपर्याप्ता, १.१६ विकलेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता, पहेलीना पर्याप्ता तथा तथा एनं ३६ अपर्याप्ता कुल संमूर्छिम मनुष्य. २०तिर्यक् पंचेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता. अपर्याप्ता. ७१. अथवा १५ पामाधार्मिक पर्याप्ता तथा १५ अपर्याप्त मली . Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ तेजोलेश्यानी मागण॥ ३१३ १० भुवनपति, १६ व्यंतर १०१०१ गर्भज मनुष्य पर्याप्ता, १०११० गर्भज तियक पंचेन्द्रिय पर्याप्ता गर्भज मनुष्य अपर्याप्ता, तिर्यग् जंभक, १० ज्योतिषि २ देवलोक (पहेली), १ किल्विषी, ए ४९ पर्याप्ता तथा एज ४९ अपर्याप्ता मली ९८. edits off अपर्याप्ता, ३ पृथ्वीकाय अप्काय प्रत्येक वनस्पतिकाय एत्रण बाद‍ अपयाता. ४९ पद्मलेश्यानी मागणा. शुक्रलेदयानी मार्गणा. Hool Bal से ११ भव्यनी मार्गणा. अपयाप्ता. ६६ ३ त्रीजु, चोथुं, पांचमुं देवलोक, १५ कर्मभूमिना गर्भज मनुष्य पर्याप्ता १० गर्भज तिर्यक पंचेंद्रिय पर्याप्त १. किल्विषी ९ लोकांतिक ए १५ कर्मभूमिना गर्भज मनुष्य १३ पर्याप्ता तथा एज १३/ अपर्याप्ता ए मलीने ३०. अपयशामली २६. अपर्याप्ता. ब ८४७ छहाथी बारमा सुधी सात देव - ३० पंदर कर्मभूमिना मनुष्य पर्याप्ता १० गर्भज तियंच पंचेंद्रिय पर्याप्ता लोक, १ किल्विषी ९ ग्रैवेयक तथा अंदर अप्रर्याप्ता. ५, अनुत्ता विमान, ए २२ पर्याप्ता तथा एच २२ अपर्याप्ता मी ४०४ ५६३ ९९ पर्याप्ता ९९ अपर्याप्ता. १०१ गर्भजमनुष्य पर्याप्ता, गर्भजमनुष्य अपर्याप्ता, संमूर्छिम मनुष्य. ५३५ | अथवा ५०५ Bad ५२ अभव्यनी मार्गणाः ३३३ १० भुवनपति, १६ व्यंतर, १० तिर्यग अथबा जृंभक, १० ज्योतिषी, १२ देव - लोक, ३ किल्विषी, ९ ग्रैवेयक. ए ७० पयाप्ता तथा एज ७० अपयोक्ता मली १४०. अथवा १०१ संमूभि मनुष्य, ३० कर्म २२ भूमिना पर्याप्ता अपर्याप्ता गर्भज ६ मनुष्य ए मली १३१. अथवा २० ६० अकर्मभूमिना गर्भज मनुष्य पयोप्ता अपयोप्ता, तथा ११२| परमाधार्मिक, १५ पर्याप्ता अने १५ अंतर द्वीपना गर्भ मनुष्य अपर्याप्ता मली १७०. पर्याप्ता. ए सर्व मली ३०३.२ S वाघ या 2 dardi 10 १०१ २२ एकेन्द्रिय पर्याप्ता अपयाप्ता, ७ पयाप्ता. ७ अपयाप्ता. १०१६ विकलेन्द्रिय पर्याप्ता अपयाप्ता, २० तिर्यक पंचेंद्रिय गर्भज स संमूर्छिम पर्याप्ता अपयाप्ता. एकेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता, ७ पर्याप्ता. ७ अपर्याप्ता. बिकलेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्त' तिर्यक् पंचेंद्रिय गर्भज संमूर्छिम पर्याप्ता अपर्याप्ता.. [prabh Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ उपशमसमकितनी मागणा ५४ क्षयोपशमसमकितनी । ४२४ ९९ पर्याप्ता ९९ अपर्याप्ता. मार्गणा. कसम कितनी मागणा. alo inn ५६ मिश्रसमकितनी मार्गणा. Baded ५७ सासादन समकितनी मागणा. 40 ५८ मिथ्यात्वसम कितनी २०३१० भुवनपति, १५ परमधार्मिकः १०१ गर्भज मनुष्य पर्याप्ता. ५ तिर्यक पंचेंद्रिय गर्भज पर्याप्ता. ७पर्याप्ता, १६ व्यंतर १० तिर्यग जंभक, १० ज्योतिषी, १२ देवलोक, ३ किल्विषी ९ ग्रैवेयक. ए ८५ पाप्ता तथा ५ अनुत्तर विमान अपर्याप्ता मली ९०. मागेणा. अपयाप्ता. १०१ गर्भज मनुष्य पर्याप्ता, १०११० तिर्यक पंचेंद्रिय गर्भज पर्याप्ता ७पर्याप्ता, ६ अपर्याप्ता गर्भज मनुष्य अपर्याप्ता. (सात मीना नहि.) तिर्यक् पंचेंद्रिय गर्भज चतुश्पद ६ पहेली बीजी, श्रीजीना युगलिया पर्याप्ता अपर्याप्ता. पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता. १६८ १२ देवलोक, ९ लोकांतिक, ९ ग्रैवे यकृ. ५. अनुत्तर विमान. ए. ३५ पयाप्ता तथा ३५ अपयाप्ता मलीने ७०. ३० कर्मभूमिना गर्भज मनुष्य पर्याप्ता २ अपयप्ता, ६० अकर्मभूमिना गर्भज मनुष्य पर्याप्ता अपर्याप्ता मलीने ९० गर्भज मनुष्य पर्याप्ता. १९८१० भुवनपति, १५ परमधार्मिक, १०१ १६ व्यंतर १० तिर्यग् जृंभक, १० ज्योतिषी, १२ देवलोक, ३ किल्विषी, ९ मैवेयक ए ८५ पर्याप्ता. 17 ४०० १० भुवनपति, १५ परमधार्मिक, १०१ गर्भज मनुष्य पर्याप्ता. १०१ गर्भज मनुष्य अपर्याप्ता. १६ व्यंतर, १० तिर्यग कुंभक, १० ज्योतिषी, १२ देवलोक, ३ मिल्विषी, ९ ग्रैवेयक. ए ८५ पयोप्ता, तथा ८५ अपयोक्ता मली ७०. ५३५१० भुवनपति, १५ परमाधार्मिक, १६ व्यंतर, १० तिर्यग् जृंभक, १० ज्योतिषी १२ देवलोक, ३ किल्विषी, ९ मैवेयक. ए ८५ पयोता तथा ८५ अपर्याप्ता. १०१ गर्भज मनुष्य पर्याप्ता, १०१ गर्भज मनुश्य अपर्याप्ता, १०१ संमूर्छिम मनुश्य. तिर्यक पंचेंद्रिय गर्भज पर्याप्ता. ७ ब 2040 पता. १० तिर्यक् पंचेंद्रिय गर्भज पर्याप्त पर्याप्ता. अपर्याप्ता ५ तिर्यक पंचेंद्रिय संमूर्छिम अपर्याप्ता ३ विकले दिय अपर्याप्ता, ३ पृथ्वी अप प्रत्येक वनस्पति ए ऋण बादर अपर्याप्ता. कुल २१. २२ एकेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता ६७ पर्याप्ता, ७ अपर्याप्ता, विकलेंद्रिय पर्याप्ता अपयांप्ता, २० तिर्यक् पंचेंद्रिय पयाता अपर्याप्ता. कुल ४८.. [११९] Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९ सेशीनी मार्गया. ४२४९९ पर्याप्त, ५९ अपर्याप्ता. ६. असंझीनी मार्गणा. १३९ .. गर्भन मनुष्य पर्याप्ता, १०१२० तिर्यक पंचेंद्रिय गर्भज पर्याप्ता५ पर्याप्ता, ७ भाता. गर्भन मनुष्य अपर्याप्ता, अपर्याप्ता, १०१ अंमूर्छिम मनुष्प, तिक्क् पंचेत्रिय समाईम पर्याप्त अपर्याप्त, ६ विकन्द्रिय पर्याप्त भपर्याप्ता, १५ एकेन्द्रिय पर्याप्त अपर्याप्ता, १. गर्भज मनुष्य पयामा, १०१२३ एनित्य पर्याप्त अपर्याप्ता, पर्यात, ५ अपर्याप्ता. गर्भज मनुष्य अपर्याप्ता, १०१६ विकलेन्द्रिव पर्यादा अपर्याप्त, । समाईम ममुप तिर्यक् पंचेंद्रिय पर्याप्ता अपर्याप्ता, भाहारीनी मार्गणा. | ५६३९९ पर्याप्त, ५६ अपर्याप्ताद २/+अनाहारीनी मार्गणा, ३४७९९ अपर्याप्ता. १. गर्भन मनुष्य अपर्याप्ता, ११ एद्रिय अपर्याप्त, ३ विकले.७ अपर्याप्ता, संसूछि मनूष्य, १५ कर्मभूमि द्रिय अपर्याप्ता, १० तिर्यक ना गर्भज मनूष्य पर्याप्ता. पंचेंद्रिय अपर्याप्त __ + जीक मगने चव्या पछी जे ठेकाणे अवतार ले छ, ने ठेकाणे पहोंच्या एटले आहारपर्णप्ति बांध्या पहला वचा उत्कृष्टा ३४ समया सुधी अनाहारी रहे छे, ते उपर लल्या अपर्याप्ताः । अने केवली समुदात करे हे, ते वखत (१) समय अनाहाग रहे थे, ते उपर सल्या कर्मभूमिना गर्भज पर्याप्ता जापाच', Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11 ⠀ ⠀ c ० O ० ० ० ० ० ० ० १५ ० ० ० O O U ० ० ० ० ० १५ १५ ० ० O ० ० ० 0 G ० O ० C ० ० ० O ० O O ० ० १५ १५ ० ० ० ० 20 ० ू ० ० O ० ० ० ० O ० O ० .0 S ० • O ० ० ० ० ० 5 A • ० ० ० ० O ० ० ० ० ० o ० ० U ० U ० ० ० ० o १५ ० ० ० ० [28] अग्गति ० ० LC ० ० ० ० ० O ० ० S ० नारकी भेद गति आगति विषे. श्री गौतमस्वामिने नमः। ف सर्व आगति २७१. सर्व गति मेद ५६३. १४ तेमां ७ पर्याप्ता ७ अपयांप्ता. पृथ्वी काय ४, अपकाय ४, वनस्पति कायना भेद ६ ते पर्याप्ता अपर्याप्ता मलीने थयेला १४. तेजस्काय ४, वायुकाय ४ पर्याता अपर्याप्ता मलीने थयेला भेद ८. विकलेंद्रिय पर्याप्ता अपर्यासा मलीने भेद ६. जलचरादि संमूर्छिम तिर्यच पर्याप्ता अपर्याप्ता मलीने भेद १०. जलचरादि गर्भज निर्यच पर्याप्ता अपर्याप्ता मलीने भेद १०. मनुष्य गर्भज पंदर कर्मभूमिना पर्याप्ता अपर्याप्ता मलीने. ३०. मनुष्य संमूर्छिम अपर्याप्ताना भेद १०१ ३० अमिना गर्भज मनुष्य पर्याप्ता अपर्याप्ता मलीने भेद ६०. ५६ अंतद्रूपना गर्भज मनुष्य पर्याप्ता अपर्याप्ता मलीने भेद ११२. १० भवनपति, १५५‍धार्मि पर्याप्ता अपर्याप्ता मलीने भेद ५०. १३ व्यंतर, १० तियेगजृंभक पर्याप्ता अपर्याप्ता मलीने भेद ५२. १० ज्योतीषी, १ किल्वषी, १ देवलोक, पर्याप्ता अपर्याप्ता मली भेद २४ ईशान देवलोक पर्याप्ता अपर्याप्ता मनी भेद २. त्रीजा देवलोकथी ८ मा देवलोक सुधी ६, ९ लोकांतिक, २ किल्बिषी पर्याप्ता अपर्याप्ता मली भेद ३४. छला ४ देवलोक ९ ग्रैवेयक, पर्याप्ता अग्योप्ता मली भेद २६. 'अनुत्तर पर्यात अपर्याप्ता मली भेद १० A x ww १४ १५ १६ १७ १८ १९ ८१. बोलनी गतागति. Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ १२ १३ १४ . . . १ जलचर. १५ . . . . 2 • • • • . • . • १२ तमःप्रभा गति. |१३ तमस्तमःप्रभा आगति. . . १४ तमस्तम:प्रभा गति. १५१० भुवनपति, १५/ पग्माधार्मिक गति. १६१० भुवनपति, १५ ०३ परमाधार्मिक गति. १७१६ व्यंतर १० ति- . । र्यगनुंभक आगति. १८१६ व्यंतर १० ति- ३ येगजभक गति. १९१०ज्योतिषी 1देवलोक । १ किल्विषी आगनि. २० १० ज्योतिषी,१ देव- . लोक,किल्विषी गति. २१ ईशान देवलोक १ ० ० । आगति. . • . • . . • . [१२२] . ५ हिमवत: ५ऐवत रहित, .. . ° . . ० ० २२ ईशान देवलोक गति. २३ ६ सहस्त्रार सुधी, ९ लोकांतिक, २ कि स्विषी आगति. २४ ६ सहस्त्रार सुधी. ९ लोकांतिक, २ कि. ल्विषी गति.. २५ ४ देवलोक छेलां, ९ ग्रेवेयक, ५ अनुत्तर आगति. २६ ४ देवलोक छेलां ९ ग्रे वेयक,५ अनुत्तर गति. . . १५ . . . १५ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ पृथ्वी काय, अपूकाय, वन पतिकाय आगति. २८ पृथ्वी काय, अप्काय, वनस्पतिका गति २९ तेजस्काय आगति. ३० तेजस्काय गति. ३१ विकलेंद्रिय आगति. ३२ विकलेंद्रिय गति. ३५ जलचर गर्भज आमति ३६ जलचर गर्भज गति. ३७ स्थलचर आमति. | ३८ स्थलचर गति. ३९ खेचर आगति. ४० खेचर गति. ४१ उरपरिसर्प आगति. ४२ उरपरिसपे गति. १४ १४ १४ १४ ३३ तियं च समूर्छिमआगति О १४ ३४ निर्यच संमूर्छिम गति. २ पेली १४ नरक. | ४३ | भुजपरिसर्प आगति. | ४४ भुजपरिसर्प गति. संमूर्छिम १ २ ३ १४ ८ ४५ मनुष्य आगति ० ० ० ७ ० ७ १४ ૧૪ १४ ७ १४ ८ पेले १४ थी चार नाक. पेलेथी पांच नरक. १० 1 ७ १४ ४ थी बे नरक. ० ܡ ܡ १४ १४ ८ १४ १४ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ७ ६ १६ पल १४ ८ ६ थी त्रण, नरक. १४ ८ ८ ८ १४ | 22 ८ 22 V v x ७ ६ १० " ६ w w ६ ६ w w १० १० - १० १० ... १० १० १० १० १० १० १० १० 00 १० १० m १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० 9 ८ ३० १०१. ३० १०१ ३०१०१ 0 ० ३० १०१ ३० १०१० ३० १०१ ३०१०१ ० ० o ० ३० १०१ ० ० ० १० ० ११२ ० ३० १०१ ३० १०१ ६० ११२ ३० १०१/ ३० १०१ ६० ११२ ० ० 6。 ० ० ० ३० १०१ ३० १०१ ६० ११२ ० ० ३० १०१ ० ३० १०१ ६० ११२ ० ३० १०१ ३० १०१ ६० ११२ ० 1. ० ० ११ २५ ० २५ ५० २५ ५० २५ ५० २५ ५० २५ ५० १२ ० o ५२ ५२ ५२ २६ ५२ १३ १२ ० ० ० 0 १२ २४ १२ ૨૪ २६ १२ ५२ ૨૪ १२. २४ १२ १४ ० १४ १ 0 ० १ २ १ १ १ २ o १५ ० १७ ૨૪ १७ ૨૪ १७ १७ ३४ १७ ० ३४ ३.४ १६ D ० ० ० G σ ० .0 ० · ० १७ O 0 ० ० ० ० ० ७ ० 0 ० १८ २४३ ० १७९ 0 १७९ ० १७९ ० २.६७ २३७ २६७ ० २६७ ० २६७ १९. ० o ० ५२७ १७१ १७९ ० ४८ ० १७९ ३४५ ५२१ ० ० ५२३ ५१९ О ० ५१७ 0 [१२३] Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • • .. • • . . . . . . . . • . . . ४६ मनुष्य संमूर्छिम गति. ० १४ ८६ ४७१५ कर्मभूमि आगति. ६ १४ . ६ ४८१५ कर्मभूमि गति. | १४ | ४९५ हिमवत, ५ ऐरण्य- . |वत आगति. ५०५ हिमवत, ५ ऐरण्य वत गति. ५१५ हरिवर्ष, ५ रम्यक, ५ देवकुरु, ५ उत्तरकुरु आगति. ५२५ हरिवर्ष, ५ रम्यक, ५ देवकुरु, ५ उत्तर कुरु गति. ५३५६ अंतरद्वीप आगति. ५४५६ अंतरद्वीप गति. | ५५ तीर्थकर आगति. . . . . • . . . . . • • . . . . . १ देव लोक. १ [१२४] १५ ५६ तथंकर गति. ५७ चक्रवर्ती आगति. . . • • . . . . २६ ' ११ १ ५८ चक्रवर्ती गति. पहेली | १४ . • . . ९ वासुदेव आगति. • . . . पहेली बीजी ___ ६० वासुदेव गति. ६१ बलदेव आगति. • • . . . . पहेली बीजी ६२ लदेव गति. Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ ६३ केवली आगति. १० . ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६/१७/१८ १९ १० २६ | ११ | १ १५ / १३/ ५१०८ . ६४ केवली गति. ६५/साधु आगति. . . . . . . . १मोक्ष. पेलेथीर पेलेथो । ८ ० ०° पांच नरक.नार न क.. ६६/पाधु गति. ६७ श्रावक आगति. ६८ श्रावक गति. ६९ सम्यग्दृष्टि आगति. هم ه م ७० सम्यग्दृष्टि गति. ७१ मिश्रदृष्टि आगति. |७२ मिथ्यादृष्टि आगतिः ३०१०१ ३० ३०१०१ ३० ه م م [१२५] ७३ मिथ्यादृष्टि गति. । ३० १.१ ६० ه م ه م ه م ره و ه ७४ पुरुष आगति. ७५ पुरुष गति. ३० १.१ ६० ७६ खी आगति. ३० १.१ ३० १७ - १३ ७७ वी गति. ३० १०१. ६० | २६१० ०५६१ ७८ नपुंसक भागति. ७९ नपुंसक गति. ८० दिग्दृष्टि आगति. १०.३० १.१ ३० ५६ । १ । १७ १३५ ८१ दिग्दष्टि गति. ६ | १० १० ३०१०१ । ६०११२. ३४ | २६१० + गति थी. ए स्थितिमां मरण पामे नही .टे. देवता ९९ अपर्याप्ता, नागकी ७ अपर्याप्ता, अकर्मभूमि ३० अपर्याप्ता, अंतीपना ५६ अपर्याप्ता, ए १९२ अपर्याप्त वस्थाए मरे नहि. माटे एटला आगीमां. वर्जवा ने ३७१ ज लेवा. Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . पनवणा सूत्रना वीशमा पदमां कहेली २३ संपदानुं विवरण. [१ | २ | ३ | ४ / ५। ६ । ७ | ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ २५। रत्नप्रभा पृथ्वी. शर्कराप्रभा. वालुकाप्रभा. पकप्रभा. • • • • धूमप्रभा. ० ० ० ० ० तमस्तमःप्रभा. व्यंतर. पृथ्वीकाय.. . ज्योतिषी. बैबै भुवनपति.. • अप्काय. • • • • वनस्पतिकाय. ० ० ० ० ० ० ०तेजस्काय. "SEP. ० - पहेलं बीजं देवलोक. ९ माथी १२ मा सुधी. नवग्रैवेय क. पांच अनुत्तर विमान. त्रीजाथी आठमा सुधी. ० ० ० ० द्वौद्रिय. • • • • वींद्रिय. • • • • चतुरिंद्रिय. . . ० .तिर्यंच. ० ० ० ० ० ० ० वायुकाय. • • • • ० ४ बलदेव ० • "IRL . . . HEEEEEE. ० ० ० ० ० ० [१२६] ० ० ० ० ० • ० थाय ० १तीर्थंकर थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थायाँ ८ २ चक्रवर्तिः थाय थायथाय . . थाय थाय थाय थाय थाय ९ ३ वासुदेव थाय थाय . . . थाय थाय थाय थ य ६] थाय थाय . थाय थाय थाय . | . . . . थाय थाय थाय थाय थाय १० ५ मांडलिक थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थ य थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय |२२| ६ सेनापतिरत्न थाय थाय थाय थाय थाय थाय . थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय.. | ७गाथापतिपत्न थाय थाय थाय थाय थाय थाय . थाय थाय थाय थायथाय थाय . थाय थ य थाय थाय पाय थाय थाय थाय थाय . ८ वाकिरत्न. थाय थाय थाय थाय थाय थाय . थाय थायथाय थाय थाय थाय . थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय ९ पुगेहितरत्न. थाय थाय थाय थाय थ य थाय . थाय थायथाय थायथाय थाय . . थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय १० अश्वरत्न. थाय थाय थाय थ य थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय ११ गजरत्न. थाय थाय थाय थायाथाय थायथाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाथ थाय थाय. १२ स्त्रीरत्न. थाय थाय थाय थाय | . थाय थायाथाय थायथाय थाय . . थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय १३ चक्ररत्न. . थाय थाय थाय थायथाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय १४ छत्ररत्न. थाय थायथाय थायथाय थाय थ य थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय १५चर्मरत्न. थाय थायथाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय १६ दंडरत्न. थाय थायथाय थायथाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय १७खकरत्न. . थ य थाय थाय थायथाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय धाय १८ मणिरत्न. . थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थ य थाय थाय थाय ००० ०१४ १९ काकिणीरत्न. . . थाय थाय थाय थायथाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय .१४ २० सम्यक्त्व. थाय थाय थांय थाय थाय थाय थाय थाय थायथाय थाय थाय थाय . . थाय थाय थाय थाप थाय याय धार थाय थाय थाय २३॥ २१ देशविरति. थाय थाय थाय थाय थाय थाय . थाय थायथाय थाय थाय थाय ० ० थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय २२॥ २२ सर्वविति. थाय थाय थाय थाय थाय . . थाय थाय थाय थाय थाय थाय .. थाय थाय थाय थाय थाय थाय थाय,थाय थाय थाय २१ २३ केवली. थाय थाय थाय थ य .. . थाय थायथाय थायथाय थाय . । . थाय थाय . . . थाय थाय थाय थाय थाय १५ । एव सर्व पदवी. २३.१६ १५१३ १२ १११० । ३. २१ ।२१२१ १९ /१९ १९| ९ | ९ | १९ ) १९ १८१८ | १८ २३ १६ १४ |१४|८ । ० - ० - ० • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० • ० ० Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२७] सिद्ध द्वार. १ पहेली नरकना नीकल्या एकसमये १० सिद्ध थाय. २ बीजी नरकना नीकल्या एकसमये १० सिद्ध थाय. ३ त्रीजी नरकना नीकल्या एकसमये १० सिद्ध थाय. ४ चोथी नरकना नीकल्या एकसमये ४ सिद्ध थाय. ५ भवनपति देवना नीकल्या एकसमये १० सिद्ध थाय... ६ भवनपति देवीना नीकल्या एकसमये ५ सिद्ध थाय. ७ पृथ्वीना नीकल्या एकसमये ४ सिद्ध थाय. ८ पाणीना नीकल्या एकसमये ४ सिद्ध थाय. ९ वनस्पतिना नीकल्या एकसमये ६ सिद्ध थाय. १० पंचेंद्रिय तिर्यंच गर्भजना नीकल्या एकसमये १० सिद्ध थाय. ११ तियेच स्त्रीना नीकल्या एकसमये १० सिद्ध थाय. १२ मनुष्य पुरुषना नीकल्या एकसमये १० सिद्ध थाय. १३ मनुष्य स्वीना नीकल्या एकसमये २० सिद्ध थाय. १४ व्यंतर देवना नीकल्या एकसमये १० सिद्ध थाय, १५ व्यंतरनी देवीना नीकल्या एकसमये ५ सिद्ध थाय. . १६ ज्योतिषी देवना नीकल्या एकसमये १० सिद्ध थाय, १७ ज्योतिषी देवीना नीकल्या एकसमये २० सिद्ध थाय. १८ वैमानिक देवना नीकल्या एकसमये १०८ सिद्ध थाय. १९ वैमानिक देवीना नीकल्या एकसमये २० सिद्ध थाय. २०. स्वलिंगी सिद्ध थाय तो १०८ सिद्ध थाय. २१ अन्यलिंगी सिद्ध थाय तो १० सिद्ध थाय. २२ गृहस्थालेंगी सिद्ध थाय तो ४ सिद्ध थाय. २३ स्त्रीलिंगे २० सिद्ध थाय.. २४ पुरुषलिंगे १०८ सिद्ध थाय, २५ नपुंसकलिंगे १० सिद्ध थाय. २६ ऊर्ध्वलोके ४ सिद्ध थाय. २७ अधोलोके २० सिद्ध थाय. २८ तिर्छालोके १०८ सिद्ध थाय. २९ उत्कृष्ट अवगाहनावाला एकसमये २ सिद्ध थाय. ३० जघन्य अवगाहनावाला एकसभये ४ सिद्ध थाय. Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२८] ३१ मध्यम अवगाहनावाला एकसमये १०८ सिद्ध थाय. ३२ समुद्रमा २ सिद्ध थाय. ३३ नदीप्रमुख शेषजलमां ३ सिद्ध थाय. ३४ तीर्थमां १०८ सिद्ध थाय. ३५ अतीर्थमां १० सिद्ध थाय. ३६ तीर्थकर २० सिद्ध थाय. । ३७ अतीर्थकर १०८ सिद्ध थाय. ३८ स्वयंबुध ४ सिद्ध थाय.. ३९ प्रत्येकबुध १० सिद्ध थाय. ४० बुद्धबोधि १०८ सिद्ध थाय. ४१ एक सिद्धा ते एकसमये १ सिद्ध थाय. ४२ अनेक सिद्धा ते एकसमये उत्कृष्टा १०८ सिद्ध थाय. ४३ विजय विजय प्रत्ये एकसमये वीश वीश सिद्ध थाय. ४६ भद्रशालवन १, नंदनवन २, सोमनसवन ३, ए त्रणमां चार चार सिद्ध थाय. ४७ पंडकवनमा २ सिद्ध थाय. ४८ अकर्मभूमिमा अपहरणवडे १० सिद्ध थाय. ४९ कर्मभूमिमां १०८ सिद्ध थाय. ५३ पहेले, बीजे, पांचमे, छठे ए चार आरे अपहरणथी १० सिद्ध थाय. ५५ त्रीजे, चोथे एबे आरे १०८ सिद्ध थाय. ५७ अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी ए बेमां १०८ सिद्ध थाय. ५८ नोउत्सर्पिणी नोअवसर्पिणीमां १०८ सिद्ध थाय.. ५९ एकथी आरंभीने बत्रीश सिद्ध थाय तो ८ समय सुधी. ६० तेत्रीशथी आरंभीने अडतालीश सुधी-सिद्ध थाय तो ७ समय सुधी. ६१ ओगणपचासथी आरंभीने साठ सुधी सिद्ध थाय तो ८ समय सुधी. ६२ एकसठथी आरंभीने बोंतेर सुधी सिद्ध थाय तो ५ समय सुधी. ६३ तोतेरथी आरंभीने चोराशी सुधी सिद्ध थाय तो ४ समय सुधी. ६४ पंचाशीथी आरंभीने छन्बु सुधी सिद्ध थाय तो ३ समय सुधी. ६५ सत्ताणुथी आरंभीने एकसो ने बे सुधी सिद्ध थाय तो २ समय सुधी. ६६ एकसो ऋणथी आरंभीने एकसो आठ सुधी सिद्ध थाय तो १ समय सुधी. ॥ इति सिद्ध द्वार समाप्त ॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२९] छठा कर्मग्रंथर्नु संक्षिप्त विवरण. . गाथा २ मूळ प्रकृतिना बंधमा ४ स्थान–८७६।१। आठनो बंध जघन्य तथा उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त. आयु विनानो सातनो बंध जयन्य अन्तर्मुहूर्त अने उत्कृष्ट छ मास ऊणा तेत्रीश सागरोपम पूर्व कोटी त्रिभाग अधिक. छनो बंध उपशम श्रेणिमां दशमे गुणस्थाने जवन्य एक समय अने उत्कृष्ट अंतमुहूर्त. ( छनो बंध दशमे गुणस्थानेज छे, अने तेनी स्थिति उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्तनी ज छे. ) एकनो बंध जघन्य एक समय ते उपशम श्रेणिमां ११ मे, त्यांथी भवक्षये देवलोकमां जतां अविरति थाय एटले सातनो बंध. एकनो बंध उत्कृष्ट देशोन पूर्व कोटी प्रमाण. जेम कोई जीव गर्भावासे सात मास रही जन्म पानी आठभे वर्षे दीक्षा लई क्षपणश्रेणि मांडी केवळज्ञान पामे. ते सयोगी केवळी पणे देशोन पूर्व कोटि पर्यंत विचरे. ... हवे कई मूळ प्रकृति बांधतां बंधने आश्रीने केटलां स्थान पामीए, ते कहे छ.१ आयु बांधतां आठेनो बंध होय. २ मोहनी वांवतां आठ अने सातनो बंध होय. ३ ज्ञानावरण, दर्शनावरण, नाम, गोत्र अने अंतराय बांधतां आठ, सात अने छनो वंध होय. ४ वेदनी बांधतां ८-७-६-१ नो बंध होय. उदय आश्री त्रण प्रकृति स्थान ८-७-४. १ आठनो अभव्य आश्री अनादि अनंत. २ आठनो भव्य आश्री अनादि सांत. ३ आठनो उपशमश्रेणिए चडी पाछो पडी बीजीवार चडे, तेने आश्री सादि सांत. ४ सादि अनंत भंग लाभेज नहीं. १ आठनो आयु मोहनी युक्त. २ सातनो मोहनी विना ११-१२ मे, ते जवन्य एक समय, उत्कृष्ट अंतमुहूर्त. ३ चारनो घाति कर्म क्षय करवाथी १३ मे गुणस्थाने. ते जघन्य अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्ट देशोन पूर्व कोटि पर्यंत. कई कर्म प्रकृतिना उदये केलां उदय स्थान पामीए, ते कहे छे.-- १ मोहनीना उदये आठनो १० मा गुणस्थान सुधी. २ ज्ञानावरण, दर्शनावरण अने अंतरायना उदये ८ नो अने ७ नो मोहनी न होय त्यारे ११-१२ मे पामीए..... Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ वेदनी, आयु, नाम अने गोत्रना उदये ८-७-४ नो. तेमां ८ नो १० मा गुणस्थान सुधी, ७ नो ११-१२ मे, ४ मो १३-१४ मे. . हवे सत्ताने आश्रीने त्रण स्थान-८-७-४. ८ नी सत्ता अभव्य आश्री अनादि अनंत, भव्यने आश्री अनादि सांत. मोहनी विना ७ नी सत्ता १२ मे गुणस्थाने अंतर्मुहूर्त प्रमाण. चार अवातिनी सत्ता १३-१४ मे गुणस्थाने. कई प्रकृतिनी सत्ताए केटलां सत्ता स्थान होय, ते कहे छे.१ मोहनीनी सत्ता छते आठेनी सत्ता. २ ज्ञानावरण, दर्शनावरण अने अंतरायनी सत्ता छते ८-७ नी सत्ता. तेमां ८ नी ११ मा गुणस्थान सुधी अने ७ नी १२ मे गुणस्थाने.. . ३ अघाति चार छते ८-७-४ नी सत्ता. गाथा ३... हवे बंध, उदय अने सत्ताना प्रकृति स्थान आश्री संवेध कहे छे. ८-७-६ विध बंधकमा ८ नो उदय, आठनी सत्ता. ८ विध बंधक सातमा गुणस्थान सुधी. ७विध बंधक ९ मा सुधी. ६ विव बंधक १० मा सुधी. __ अहीं त्रण विकल्प थया, ते नीचे प्रमाणे.१ आठनो बंध, आठनो उदय, आठनी सत्ता.. २ सातनो बंध, आठनो उदय, आठनी सत्ता. ३ छनो बंध, आठनो उदय, आठनी सत्ता.. एक विध बंधकमां त्रण विकल्प नीचे प्रमाणे.४.१ नो बंध, ७ नो उदय, ८ नी सत्ता. ११ मे गुणस्थाने. ५.१ नो बंध, ७ नो उदय, ७ नी सत्ता. १२ मे गुणस्थाने. ६.१ नो बंघ, ४ नो उदय, ४ नी सत्ता. १३ मे गुणस्थाने. ७. अबंधक, ४ नो उदय, ४ नी सचा. १४ मे गुणस्थाने. - मूळ प्रकृतिना संवेध उपर प्रमाणे समजवा. गाथा ४ जीवस्थाने बंध, उदय अने सत्ता घटावे छे.-- जीवना १४ स्थानमा पर्याप्त संज्ञी पंचेंद्रिय विना बाकीनां १३ जीवस्थानके बे विकल्प. १. ७ नो बंध, ८ नो उदय, ८ नी सत्ता. आयु न बांधतो होय त्यारे. २. ८ नो बंध, ८ नो उदय, ८ नी सत्ता. आयु बांधतो होय त्यारे. Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. ७ नो बंध, ८ नो उदय, ८ नी सत्ता. उपर प्रमाणे. २. ८ नो बंध, ८ नो उदय, ८ नी सत्ता. ३. ६ नो बंध, ८ नो उदय, ८ नी सत्ता. १० मे गुणस्थाने. ४. १ नो बंध, ७ नो उदय, ८ नी सत्ता. ११ मे गुणस्थाने. ५. १ नो बंध, ७ नों उदय. ७ नी सत्ता. १२ मे गुणस्थान के. केवळी श्री २ विकल्प१. १ नो बंध, ४ नो उदय, ४ नी सत्ता. १३ मे गुणस्थाने. २. अबंध, ४ नो उदय, ४ नी सत्ता. १४ मे गुणस्थाने. गुणस्थाने ७ भंग नीचे प्रमाणे ३-८-९-१०-११-१२-१३-१४ आ आठ गुणस्थाने एक एक विकल्प. १. ३-८-९ मे ७ नो बंध, ८ नो उदय, ८ नी सत्ता. २. १० मे ६ नो बंध, ८ नो उदय, ८ नी सत्ता. ३. ११ मे १ नो बंध, ७ नो उदय ८ नी सत्ता. ४. १२ मे १ नो बंघ, ७ नो उदय, ७ नी सत्ता. ५. १३ मे १ नो बंध, ४ नो उदय, ४ नी सत्ता. ६. १४ मे अबंधक, ४ नो उदय, नी सत्ता. १-२-४-५-६-७ आ छ गुणस्थाने बब्बे विकल्प. { आयु बंध काळे ८ नो बंध, आठनो उदय, आठनी सत्ता. आयु अबंध काळे ७ नो बंध, आठनो उदय, आठनी सत्ता. हवे उत्तर प्रकृति आश्री संवेध कहे छे.५ ज्ञानावरणीय, ९ दर्शनावरणीय, २ वेदनीय, २८ मोहनीय, ४ आयुष्य, ४२ नाम, २ गोत्र, ५ अंतराय कुल ९७ प्रकृति छै. नामकर्मना अवांतर भेदो ५१ वधारी तेने भेळा गणतां कुल १४८. धमां बंधन संघातन शरीर भेळां ज गणवां, वर्णादि चतुष्कनां अवांतर भेद न गणवा, समकित मिश्र मोहनी न गणवी. एटले ५-५-१६-२ कुल २८ जतां १२० नो बंध. उदयमां २ मोहनी वधारतां १२२. अने सत्तामां टाडेली २८ भेळवतां कुल १४८. गाथा ५ [१३१] पर्याप्त संज्ञी पंचेंद्रिय आश्री ५ विकल्प ७. गाथा ६-७ - उत्तर प्रकृतिनां बंधादि स्थान. ज्ञानावरणीय अने अंतरायनी पांच पांच उत्तर प्रकृति ध्रुवबंधी होवाथी ते एक एक ज विकल्प. Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ८ [१३२] ५ नो बंध, ५ नो उदय, ५ नी सत्ता. १० मा गुणस्थान सुधी. बंध उपरम पामे छते. अबंध, ५ नो उदय, ५ नी सत्ता. ११ - १२ मे गुणस्थाने. दर्शनावरणीय. बंधने सत्ता आश्री समानपणे ३ विकल्प. ९-६-४. १ नवनो बंध पहेले बीजे गुणस्थाने. अभव्यने अनादि अनंत, भव्यने अनादि सांत, सम्यक्त्व पतितने सादि सांत जघन्यथी अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्टथी देशे ऊ पा पुद्गल 'परावर्त काळ. २ छनो बंध त्रीजाथी आठमा गुणस्थानना पहेला भाग सुधी. जघन्यश्री अंत - मुहूर्त, उत्कृष्टथी बे ६६ सागरोपम. मध्यमां मिश्र आववाथी त्यारपछी कोई क्षपकश्रेणि मांडे अने कोई मिथ्यात्वे जाय. ३. ४ नो बंध ८ माना बीजा भागथी १० मा गुणस्थान सुधी जघन्य एक समय ते ८ माने बीजे भागे पहेले समये उपशमश्रेणि मांडी बीजे समये काळ करी स्वर्गे जाय. उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त. १ नवनी सत्ता अभव्यने अनादि अनंत, भव्यने अनादि सांत, सादि सांत होय ज नहीं. ते पण उपशमश्रेणि आश्री ११ मा सुधी. क्षपकश्रेणि आश्री ९ माना पहेला भाग सुधी. २ छनी सत्ता ९ मा ना बीजा भागथी १२ माना द्विचरम समय सुधी अंतर्मुहूर्त गाथा ९ प्रमाण. ३ चारनी सत्ता १२ माना चरम समये एक ज समयनी. दय आश्री वे स्थान ४-५. १ चार दर्शनावरण ध्रुवउदयी होवाथी. २ चार दर्शनावरणमां कोई पण एक निद्रा भळे त्यारे पांच थाय. केमके एकथी धारे निद्रा उदयमां न होय. तेमज एक पण निरंतर न होय. कदाचित् होय. हवे संवेध कहे छे. १. ९ नो बंध, ४ नो उदय, ९ नी सत्ता. निद्रा न होय त्यारे. २. ९ नो बंध, ५ नो उदय, ९ नी सत्ता. निद्रा होय त्यारे . ३. ६ नो बंध, ४ नो उदय, ९ नी सत्ता. ( ४. ६ नो बंध, ५ नो उदय, ९ नी सत्ता. } ( क्षपकने तो त्रीजो विकल्प ज होय. ) ५. ४ नो बंध, ४ नो उदय, ९ नी सच्चा. ६. ४ नो बंध, ५ नो उदय, ९ नी सत्ता. त्रीजाथी आठमाना प्रथम भाग सुधी. अपूर्वकरणना बीजा भागथी दशमा गुणस्थान सुधी. Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३] (क्षपकने तो पांचमो विकल्प ज होय.) . ७.४ नो बंध, ४ नो उदय, ६ नी सचा. स्त्यानार्द्ध त्रिकनो क्षय करनार क्षपक आश्री नवमा गुणस्थाननो पहेलो भाग __ गया पछी दशमाना अंत सुधी. हवे अबंधकपणाना ४ विकल्प कहे छे.-- ८. अबंधके ४ नो उदय, ९ नी सचा. । उपशांत ९. अबंध. ५ नो उदय, ९ नी सत्ता. मोहे. १०. अबंध. ४ नो उदय, ६ नी सत्ता. १२ मे द्विचरम समय पर्यंत. ११. अबंध. ४ नो उदय, ४ नी सभा. १२ मे चरम समये. कोई आचार्य क्षपकमां निद्रानो उदय कहे छे. तेना मते बे विकल्प वधे. १२. ४ नो बंध, ५ नो उदय, ६ नी सत्ता. .. . १३. अबंध, ५ नो उदय, ६ नी सत्ता. गाथा १० वेदनीय कर्म. बंधस्थान १ साता के असाता. उदयस्थान १ साता के असाता. सचास्थान २ साता, असाता ले, अथवा १. तेनो संवेध नीचे प्रमाणे,१ असातानो बंध, असातानो उदय, साता अमे असातानी सशा. २ असातानो बंध, सातामो उदय, बोनी सचा. (आ के विकल्प पहेलाथी छठा सुधी. पछी असातानो बंध नथी.) ३ सातानो बंध, असातानो उदय, बनेनीसचा. ४ सातानो बंध, सातामो उदय, बननी सत्ता. (आ बे विकल्प १ ला थी १३ मा सुधी, पछी १४ मे बंधनो अभाव छ.) ५ अबंधक, असातानो उदय, बेउनी सचा. ६ अबंधक, सातानो उदय, बेउनी सचा. (आ बे विकल्प १४ माना विचरम समय मुषी. पछी बेमांथी एकनो उदय सत्तामांथी क्षय थाय.) ७ अबंधक, असातानो उदय, असातानी सचा. ८ अबंधक. सातानो उदय, सातानी सशा. (आ बे विकल्प एक समयनी स्थितिवाला छे.) . . Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१३४] आयुष्य कर्म. बंधस्थान १, एक ज आयुष्य बंधाय. उदयस्थान १. एक गतिर्नु ज आयुष्य वेदाय. सचास्थान २. परभवनुं आयुष्य बांध्या पहेलां १, बांध्या पछी २. हवे संवेध कहे छे.'- .. आयुकर्मनी ३ अवस्था. १ नवा आयुना बंधकाळनी पूर्व अवस्था. ... २ नवा आयुना बंधकाळनी अवस्था.. . ३ नवं आयु बांध्या पछीनी अवस्था. ... - नरक गति आश्री ५ विकल्प. १ अबंध काळे, नरकायु उदय, नरकायु सत्ता. १ थी ४ गुणस्थान सुधी. . बंध काळे. २ तिर्यगायु नंध, नरकायु उदय, तिर्यग् नरकायु सचा. पहेले तथा बीजे गुण स्थाने आ विकल्प जाणवो. ३ मनुष्यायु बंध, नरकायु उदय, नारक नरायु सत्ता, १-२-४ गुणस्थाने. बंधोत्तर काळे. ४ अबंध, नरकायु उदय, तिर्यग् नरकायु सचा. पहेलेथी चोथा सुधी. आयु बंध कर्या पछी त्रीजे चोथे गुणस्थाने जवानो संभव होवाथी. ५ अबंध, नरकायु उदय, नर नारकायु सत्ता. आ विकल्प प्रथमना चार गुणस्थाने. आज प्रमाणे देवायु संबंधी ५ विकल्प जाणवा. हवे तियेंगायुना ९ विकल्प कहे छे.--. १ अबंध काळे, तिर्यगायु उदय, तिर्यगायु सत्ता, पहेला पांच गुणस्थाने. बंध काळे. २ नरकायु बंध, तिर्यगायु उदय, नारक तिर्यगायु सत्ता. पहेले गुणस्थाने. ' ३ तिर्यगायु बंध, तिर्यगायु उदय, तिर्यक् तिर्यगायु सत्ता. ४ नरायु बंध, तिर्यगायु उदय, नर तिर्यगायु सत्ता. १-२ गुणस्थाने. ५ देवायु बंध, तिर्यगायु उदय, देवतिर्यगायु सत्ता. १-२-४-५ गुणस्थाने. बंधोत्तर काळे... ६ अबंधक, तिर्थगायु उदय, तिर्यक् तिर्यगायु सत्ता. १ थी ५ गुणस्थान सुधी. केमके आयु बांध्या पछी २-३-४-५ मे जवानो संभव छ, तेथी. ७ अबंधक, तिर्यगायु उदय, तिर्यगायु मनुष्यायु सत्ता. ८ अबंधक, तिर्यगायु उदय, देवतिर्यगायु सत्ता.. Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३५] ९ अबंधक, तिर्यगायु उदय, नरक तिर्यगायु सत्ता. (आ छेल्ला ३ विकल्प पहेलेथी पांचमा गुणस्थान सुधी होय.) नरायुना विकल्प नीचे प्रमाणे ९. १ अबंध काळे नरायु उदय, नरायु सत्ता. पहेलेथी चौदमा गुणस्थान सुधी. बंध काळे. २ नारकायु बंध, नरायु उदय, नारक नरायु सत्ता. पहेले गुणस्थाने. . ३ तिर्यगायु बंध, नरायु उदय, तिर्यग नरायु, सत्ता. पहेवे बीजे गुणस्थाने. ४ नरायु बंध, नरायु उदय, नर नरायु सत्ता. पहेले बीजे गुणस्थाने. ५ देवायु बंध, नरायु उदय, देव नरायु सत्ता. ७ मा गुणस्थान सुधी. बंधोत्तर काळे. ६ अबंधक, नरायु उदय, नरक नरायु सत्ता. महेलाथी सातमा गुणस्थान सुधी. ७ अबंधक, नरायु उदय, तिर्यग नरायु सत्ता. पहेलेथी सातमा सुधी.. .. ८. अबंधक, नरायु उदय, नर नरायु सत्ता. पहेलेथी सातमा सुधी. ९ अबंधक, नरायु उदय, देव नरायु सचा. अगीयारमा गुणस्थान सुधी. केमके देवायु बांध्या पछी पण उपशमश्रेणिनो संभव छे तेथी. . कुल आयु कर्मना विकल्प २८ थया. (५-५-९-९) गोत्र कर्म. . . ... बंधस्थान १. उंच के नीचनो बंध होय. . उदयस्थान १. उंच के नीचनो उदय होय. सनास्थान २, बनी सत्ता होवाथी एक भंग. अने तेजस्काय तथा वायुकायमां नीच गोत्र ज सत्तामा होवाथी तथा अयोगी द्विचरम समये नीच गोत्रनो क्षय थवाथी बीजो भंग. हवे संवेध कहे छ.. १ नीचनो बंध, नीचनो उदय, नीचनी सचा. तेजस्काय तथा वायुकाय अने तेमांथी नीकळ्या पछी केटलाक काळ सुधी एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय अने तिर्यच पंचेंद्रियमां पण लाभे. २ नीचनो बंध, नीचनो उदय, उंच नीचनी सत्ता. ३ नीचनो बंध, अपना उदय, उंच नीचनी सत्ता. (आंबे विकल्प पहले बीजे गुणस्थाने होय. त्रीजाथी नीच गोत्रना बंधनो अभाव छे. . ४ उंचनो बंध. नीचनो उदय. बेनी सत्ता. १ थी ५ गुणस्थान सुधी. त्यार पछी नीच गोत्रना उदयनो अभाव छे..... . Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३६ ५ उंचनो बंध, उंचनो उदय, बेनी सचा. १ थी १० गुणस्थान सुधी. पछी बंधनो अ अभाव छे. ६ बंधाभाव, उंचनो उदय, बेनी सत्ता. ११ थी १४ माना द्विचरम समय सुधी. ७ बंधाभाव, उंचनो उदय, उंचनी सत्ता. १४ मानी चरम समये ज. (कुल गोत्र कर्म आश्री ७ विकल्प थया.) गाथा ११ मोहनी कर्म. बंधस्थान १० (२२-२१-१७-१३-९-५-४-३-२-१). १ मिश्र मोहनी, समकित मोहनीनो बंध न होवाथी ते बे, हास्य ने रति, अरति ने शोक, ए थे युगलमांथी एक वखते एक युगलनो बंध होबाथी ते वे, त्रणे वेदमांथी एक वखते एकनो ज बंध होबाथी बाकीना बे-एटले सर्व मळी ६ बाद थवाथी वधारेमां वधारे एक काळे २२ नो बंध मिथ्यात्व गुणस्थाने होय. २ मिथ्यात्वनो बंध टळवाथी २१ नो बंध चीजे मुणस्थाने. ३ अनंतानुबंधी ४ जवाथी १७. नो बंध त्रीजे चोथे गुणस्थाने ४ अप्रत्याख्यानी ४ जवाथी १३ नो बंध पांचमे. ५ प्रत्याख्यानी ४ जवाथी ९ नो बंध ६-७-८ मे. ६ हास्य, रति, भय, जुगुप्सा जवाथी ५ नो बंध नवमाने पहेले भागे. . ७ पुरुष वेदनो बंध टळवाथी ४ नो बंध नवमाने बीजे भागे. ८ संज्वलन क्रोध जवाथी ३ नो बंध नवमाने बीजे भागे. ९ संज्वलन मान जवाथी २ नो बंध नवमाने चोथे भागे. १० संज्वलन माया जवाथी १ नो बंध नवमाने पांचमे भागे, बादर संपराय बिलकुल जवाथी अबंधक. गाथा १२ हवे उदय स्थान ९ कहे छे.-- (१-२-४-५-६-७-८-९-१०) नवमा गुणस्थानकथी पश्चानुपूर्वीए विचारवा. चार चोकडीमांथी एक एक ज उदयमा होवाथी बाकी १२ रहे. त्रण वेदमांथी एकनो ज उदय होवाथी बाकी २ हे. हास्य, रति, अरति, शोकमांथी एक युगलनोज उदय होबाथी चाकी २ रहे. पण दर्शनमोहनीमांधी एक न उदयमां होवाथी बाकी २ रहे. कुल १८ जवाथी उदयमां वधारेमां वधारे १० होय. १ संज्वलनमांथी एकमो उदय होय त्यारे १ नुं उदयस्थान. २त्रण वेदमांथी एकनो प्रक्षेप करीए. त्यारे २ नुं उदयस्थान. Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३७] ३ बे युगलमांथी हास्य रतिनो प्रक्षेप करवाथी ४ नुं उदयस्थान. ४ भयनो प्रक्षेप करवाथी ५. ५ जुगुप्सानो प्रक्षेप करवाथी ६. ६ प्रत्याख्यानावरणमांथी १ नो प्रक्षेप करवाथी ७. ७ अप्रत्याख्यानावरणमाथी १ नो प्रक्षेप करवाथी ८. ८ अनंतानुबंधीमांथी १ नो प्रक्षेप करवाथी ९. ९ मिथ्यात्वनो प्रक्षेप करवाथी १० नु उदयस्थान. आनुं विशेष वर्णन आगळ आवशे. गाथा १३-१४ सत्तास्थान १५.. ( २८-२७-२६-२४-२३-२२-२१-१३-१२-११-५-४-३-२-१). १ सर्व प्रकृति सत्तामां होय त्यारे २८. २ समकित मोहनी जतां २७. ३ मिश्र मोहनी जतां तथा अनादि मिथ्यात्वीने पण २६. ४ अठ्ठावीशनी सत्तामाथी अनंतानुबंधी ४ जतां २४. ५ मिथ्यात्व मोहनी जतां २३. . ६ मिश्र मोहनी जतां २२. ७ सम्यक्त्व मोहनी जतां २१. ८ अप्रत्याख्यानी ४ तथा प्रत्याख्यानावरणी ४ ए ८ जतां १३. ९ नपुंसकवेद जतां १२. १० स्त्रीवेद जतां ११.. ११ हास्यादि ६ जतां ५. १२.पुरुषवेद जतां ४. १३ संज्वलन क्रोध जतां ३, १४ संज्वलन मान जतां २. १५ संज्वलन माया जतां १. गाथा १५ संज्वलन लोभ जतां सत्ता शून्य. आनो संवेध करतां घणा भंग थाय छ, ते जाणवा माटे बंधस्थानना भंग कहे छे. प्रथम २२ ना बंधमां ६ विकल्प आ प्रमाणेः१६ कषाय, १ त्रण वेदमांथी एक, २ वे युगलमांथी एक, २ भय तथा जुगुप्सा, तथा १ मिथ्यात्व. कुल २२.. त्रण वेद संबंधी त्रण विकल्पने हास्य रति के अरवि शोक रुप वे युगल साथे गुणतां ६ विकल्प. . . . ......... . . . Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३८] मिथ्यात्व विना २१ ना बंधमां ४ विकल्प. - -- २१ नो बंध सासादने होय. त्यां नपुंसक वेद बंधमां न होवाथी वे वेद अने बे युगल साथै गुणतां ४. अनंतानुबंधी ४ विना १३ ना बंधयां २ विकल्प. १७ नो बंध त्रीजे चोथे गुणस्थाने होवाथी त्यां स्त्रीवेदनो बंध नथी, एटले स्त्रीवेदना बंधनुं कारण अनंतानुबंधी छे, ते त्यां नथी, तेथी एक पुरूष वेदने बे युगल साथै गुणतां २. अप्रत्याख्यानी ४ विना १३ ना बंधमां २ विकल्प. - १३ नो बंध पांचमे गुणस्थाने होय. त्यां पुरुष वेद एकनो ज बंध होवाथी हास्यादि वे युगल साथै गुणतां २. प्रत्याख्यानी ४ जतां ९ नो बंध ६-७-८ मे गुणस्थाने छे. तेमां छठ्ठे बे युगल होवाथी २ विकल्प. सातमे अने आठमे अरति शोक बंधमां न होवाथी एक विकल्प. हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, ए चार जतां ५ ना बंधमां १ त्रिकल्प. तेज प्रमाणे ४-३ - २-१ ना बंधमां एक एक विकल्प. कुल २९ विकल्प छे. हवे २२ विगेरे बंधनुं काळमान कहे छे. २२ नो बंध अभव्यने अनादि अनंत, भव्यने अनादि सांत, सम्यक्त्वथी पतितने जघन्यथी अंतर्मुहूर्त अने उत्कृष्टथी देशोन अर्ध पुद्गळ परावर्त होवाथी सादिसांत. २१ नो बंध बीजे गुणस्थाने. जघन्य १ समय, उत्कृष्ट ६ आवळीका. १७ नो बंध चोथे. जघन्य अंतर्मुहूर्त. उत्कृष्ट ३३ सागरोपमथी अधिक एटले अनुत्तर सुर चवीने मनुष्य थया पछी देशविरति के सर्वविरति न पामे त्यां सुधी. १३ नो बंध पांचमे, जघन्य अंतर्मुहूर्त. उत्कृष्ट देशोन पूर्व कोटि. ९ नो बंध पण देशोन पूर्वकोटि. छठ्ठे सातमे.. ५-४-३-२-१ नो बंध जधन्य एक समय. ते कोई जीव उपशम श्रेणि मांडी बीजे समये काळ करी देवता थाय, त्यां चोथे गुणस्थाने आवतां १७ नो बंध करे ते आश्रीने जाणवो. उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त. गाथा १६-१७ हवे २२ विगेरेबंधस्थानमां उदय स्थान केटलां होय, ते कहे छे. २२ ना बंधमां ४ उदय स्थान ७-८-९-१०. १ मिथ्यात्व, ३ अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान, संज्वलन क्रोधादि १ त्रणमांथी एक वेद, २ बे युगलमांथी एक युगल, कुल ७ आना भांगा २४ थाय. ते Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ प्रमाणे-बे युगलने त्रण वेदे गुणतां ६, तेने ४ क्रोधादिके गुणतां २४. आ सातना उदयमा एक चोवीशी थई. ७ मां भय, वा जुगुप्सा. वा एक अनंतानुबंधी नाखतां ८ ना उदयमां उपर प्रमाणे गुणतांत्रण चोवीशी जुदी जुदी थाय. . ७ ना उदयमां भय अने जुगुप्सा, वा भय अने अनंतानुबंधी, वा जुगुप्सा अने अनंतानुबंधी, एम बे बे नाखतां ९ ना उदययां पण उपर प्रमाणे विचारतां त्रण चोवीशी थाय. ७ ना उदयमां भय, जुगुप्सा अने अनंतानुबंधी ए त्रणे क्षेपवतां १० ना उदयमां एक चोवीशी थाय. कुल २२ ना बन्धमा उदय आश्री ८ चोवीशी थई. . २१ ना बन्धमा उदय आश्री ३ विकल्प ७-८-९. ४. प्रकारमाथी एक एक कषाय, १ त्रण वेदमांथी एक वेद, २ एक युगल, आ ७ मां पण पूर्व रीते एक चोवीशी. ७ ना उदयमां भय के जुगुप्सा नांखवाथी आठना उदयमां बे चोवीशी. ७ ना उदयमां भय अने जुगुप्सा बने नांखवाथी नवना उदयमां १ चोवीशी, __ कुल २१ ना बन्धमा ४ चोवीशी थई. (एकवीशनो बन्ध सासादने होय, तेना चे भेद-श्रेणि पतित तथा समकित पतित. तेमां श्रेणिगतने माटे तो उपर प्रमाणे भेद थाय. श्रेणिगतमां पण बेवात छे. एक आचार्य कहे छे के अनंतानुबन्धीनो उपशम करी श्रेणिए चढे. तेने मते तो श्रेणिथी पडतां सासादने आवे त्यारे उपर प्रमाणे मेद थाय. बीजा आचार्य कहे छे के अनंतानुबंधीनो तो क्षय कर्या पछी ज उपशम श्रेणि मंडाय. तेने मते तो ते प्राणी श्रेणिथी पडतो सासादने न आवे. तेथी तेने आश्री उपर प्रमाणे भेद न थाय.). १७ ना बन्धमा ४ उदयस्थान ६-७-८-९. १७ नो बन्ध त्रीजे चोथे गुणस्थाने होय. तेमां त्रीजाने त्रण उदयस्थान ७-८-९. ३ जातिनो कषाय एक एक, १ वेद, २ युगल, १ मिश्र मोहनी. आ सातना __ उदयमां पूर्ववत् १ चोवीशी. . .. ७ मां भय वा जुगुप्सा क्षेपवाथी ८ ना उदयमा २ चोवीशी. ७ मां भय अने जुगुप्सा बन क्षेपवाथी ९ ना उदयमा १ चोवीशी. Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४०] कुल १७ ना बधमां त्रीजा गुणस्थानने आश्री ४ चोवीशी थई. चोथे गुणस्थाने ४ उदयस्थान ६-७-८-९. उपशम समकिती तथा क्षायिक समकितीने ६ नो उदय. - ३ कषाय, १ वेद, २ युगलनी. तेनी चोवीशी. ६ ना उदयमां भय के जुगुप्सा के समकित मोहनी क्षेपवाथी ७ ना उदयमां `त्रण चोवीशी. ६ ना उदयमां भय अने जुगुप्सा वा भय अने समकित मोहनी वा जुगुप्सा अने समकित मोहनी क्षेपवतां ८ ना उदयमां त्रण चोवीशी. ६ ना उदयमां भय, जुगुप्सा अने समकित मोहनी त्रणे क्षेपवतां ९ ना उदयमां एक चोवीशी. कुल चोथा गुणस्थान आश्री ८ चोवीशी. कुल १७ ना बन् धमां १२ चोवीशी थई. १३ ना बन्धम उदय आश्री ४ विकल्प ५-६-७-८, २ प्रत्याख्यान संज्वलन क्रोधादि, १ वेद, २ युगल. कुल पांचना उदयमां एक चोबीशी. ५ ना उदयमां भय के जुगुप्सा के समकित मो० क्षेपवतां ६ ना उदयमां ३ चोवीशी. ५ ना उदयमां भय अने जुगुप्सा वा भय अने समकित मोहनी वा जुगुप्सा अने समकित मोहनी नाखतां ७ ना उदयमां ३ चोवीशी. ५ना उदयमां भय, जुगुप्सा, अने समकित मोक्षेपवतां ना उदयमां एक चोवीशी. कुल १३ ना बन्धमा ८ चोवीशी. ९ ना बन्घमां प्रमत्त गुणस्थाने उदय आश्री ४ स्थान ४-५-६-७. १ कषाय, १ वेद, २ युगळ. आ चार आश्री १ चोवीशी. ४ मां भय के जुगुप्सा के समकित मोहनी क्षेपवतां ५ ना उदयमां ३ चोवीशी. ४ मां भय अने जुगुप्सा के भय अने समकित मोहनी के जुगुप्सा अने समकित मोहनी क्षेपari ६ ना उदयमां ३ चोवीशी. ४भां भय, जुगुप्सा अने समकित ए त्रणे क्षेपवतां ७ ना उदयमां एक चोवीशी. कुल ९ ना बधमां ८ चोवीशी थई. ५ ना [बन्धमां १ उदयस्थान - २ नु. १ कषाय, १ वेद. तेना त्रण वेद अने चार कषाये गुणतां १२ भंग, ४- ३-२-१ ना बन्धमां एक उदयस्थान - १ नं. Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४१] संज्वलन ४ मांयी गमे ते एक कषायनो उदय होवाथी ४ ना बन्धमा चार भंग थाय. कोई आचार्य त्यां पण एक वेदनो उदय कहे छ, तेथी तेने मते त्रण वेदे गुणतां १२ भंग थाय. कुल २ ना उदयमा २४ भंग. गाथा १८. ३ ना बन्धमां उदयस्थान १. तेना मंग ३. .... . २ ना बन्धनां उदयस्थान १. तेना भंग २. १ ना बन्धमा उदयस्थान १. तेनो भंग १. अबन्धक पणामां पण दशमे उदयस्थाने १ संज्वलन लोभ सूक्ष्म किट्टीकृतने वेदवा रूप होय ,११ मे गुणस्थाने उदय पण नष्ट थया छतां कषायर्नु: उपशांतपणुं होवाथी सत्तामा रहेला होय छे, ते प्रसंगे कह्यु.. बाकी एकली सत्ता होवाथी संवेधमां तेनी जरूर नथी. गाथा १९. हवे १० थी १ सुधीना उदयस्थानमा केटला भंग संभवे, ते बतावे छे. १० ना उदयमा १ चोवीशी. ६ ना उदयमा ७ चोवीशी. ९ ना उदयमां ६ चोवीशी. ५ ना उदयमा ४. . . ८ ना उदयमा ११ चोवीशी. .४ ना उदयमां १ , __७ ना उदयमा १० , कुल ४० चोवीशी. २ ना उदयमां १ चोवीशी मतांतर साथे १'ना उदयमां ११ भंग छटा गाथा २०, ४१ चोवीशी होवाथी तेने २४ शे गुणतां ९८४ थाय. तेमां ११ भेळवतां .. ९९५ थाय. आ उदय आश्री चोवीशीना भंग थया. हवे जेटली प्रकृतिनो उदय छे, ते आश्री गुणतां पद संख्या नीचे प्रमाणे थाय१. ने एके गुणतां १०. ६ ने साते गुणतां ४२. ९ ने छए गुणतां ५४. ५ ने चारे गणतां २०. ८ ने अग्यारे गुणतां ८८. ४ ने एके गुणतां.४. ७ ने दशे गुणतां ७०. २ ने एके गुणतां २. आ २९० ने चोवीशे गुणतां ६९६० थाय. तेमां छुटा ११ भंग क्षेपवतां .६९७१ थाय. आ प्रमाणे भंग तो मतांतर प्रमाणे ४ ना बंधमां पण एक वेदनो उदय गणतां थाय पण ते १२ भंग काढी नाखीए तो उदयना भंग ९८३ थाय, अने तेना पदमांथी मतांतरनी एक चोवीशीना २४ काढी नाखतां ६९४७ पदसंख्या थाय. १० नो उदय. चोवीशी १ (२२ ना बंधमां).. ९ नो उदय. चोवीशी ६. ७ नो उदय. चोवीशी १०. चोवीशी ३ (२२ ना बंधमां)... चोवीशी १ (२२ ना बंधमां). Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४२] चोवीशी ? (२१ ना बन्धमां). चोवीशी १ (२१ ना बन्धमा) चोवीशी १ (१७ ना बन्धमां, बीजे). चोवीशी १ (१७ ना बन्धमां, बीजे). चोवीशी १ (१७ ना बन्धमां, चोथे) चोवीशी ३ (१७ ना बन्धमां, चोथे). ८ नो उदय. चोवीशी ११. चोवीशी ३ (१३ ना बंधमां), चोवीशी ३ (२२ ना बंधमां) चोवीशी १ (९ ना बंधमां). चोवीशी २ (२१ ना बंधमां) ६ नो उदय. चोवीशी ७. चोवीशी २ (१७ ना बंधमां, बीजे). चोवीशी १ (१७ ना बंधमां, चोथे). चोवीशी ३ (१७ ना बंधमां, चोथे). चोवीशी ३ (१३ ना बंधमां). चोवीशी १ (१३ ना बंधमां). चोवीशी ३ (९ ना बंधमां). ५ नो उदय. चोवीशी ४. . चोबीशी १ (१३ ना बंधां). चोवीशी ३ (८ ना बंधमां). ४ नो उदव. चोवीशी १ (९ ना बंधमां). २ नो उदय. चोवीशी १ (५-४ ना बंधमा मतांतरे). १ नो उदय. छुटक भंग ११. ४ ना बंधमां ४, ३.ना बंधमां ३, २ ना बंधमां २, १ ना बंधमां १, अबंधकमां १. गाथा २१ : आ प्रमाणे उदय अने तेना भंग जघन्य एक समय अने उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त होय छे. कारण के ४ थी १० सुधीना उदयमां कोई एक वेद के एक युगल होय छे, तेथी जरूर अंतर्मुहूर्ते ते पलटाय छे. वेनो उदय अने एकनो उदय तो प्रगटपणे अंतर्मुहर्तनो ज छे. आ प्रमाणे विवक्षित उदयमां के भंगमां एक समय रहीने बीजे समये गुणस्था नांतर थाय, त्यारे तो अवश्य बंधस्थानना भेदथी, गुणस्थानना भेदथी वा स्वरूपथी उदयांतर अने भंगांतरमा जाय छे. तेथी सर्वे उदय अने सर्वे भंग जघन्य एक समयना छे. गाथा २२ आ प्रमाणे बंधस्थान साथे उदयस्थाननो संवेध कह्यो. हवे सत्तास्थान साथे संवेध कहे छे.-- २२ ना बंधमां त्रण सत्तास्थान-२८-२७-३६. . २२ नो बंध मिथ्यादृष्टिने होय छे, तेने उदयस्थान चार छ--७-८-९-१०. ७ ना उदयमा एक ज सत्तास्थान २८ नुं छे.(अनंतानुबंधी उदयमा न होवाथी) ८ ना उदयमांत्रण सत्तास्थान-२८-२७-२६. अनादि मिथ्यात्वीने पण ३६. ९ ना उदयमा ३ सत्ता स्थान-२८-२७-२६. . . (८ अने ९ मां अनंतानुबंधीना उदय विनानाने तो २८ नु ज सत्तास्थान अने .: तेना उदयवाळाने त्रण सत्तास्थान.) Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४३] १० ना उदयमां त्रण सत्तास्थान - २८-२७-२६उदयमां अनंतानुबंधी अवश्य होवाथी २१ ना बंधमां एक सत्तास्थान २८ नं. २१ ना बंधमां उदयस्थान ३ (७-८-९) ते त्रणेमां सम्यक्त्व गुण वडे मिथ्यात्व शुद्ध करेल होवाथी तेनी त्रणे प्रकृति सत्तामां पामीए तेथी २८. ( २१ नो बंध बीजे गुणस्थाने ज होवाथी . ) १७ ना बंधमां ६ सत्ता स्थान - २८-२७-२४-२३-२२- २१. १७ नो बंध त्रीजे तथा चोथे गुणस्थाने होय छे. तेमां त्रीजा गुणस्थान (ळाने ३ उदयस्थान होय छे - ७-८ - ९. तथा चोथा गुणस्थान बाळाने ४ उदयस्थान होय छे-६-७-८-९. ६ ना उदयव । ळा उपशम समकितीने बे सत्तास्थान - २८ - २४. समकित प्राप्ति काळे २८. उपशम श्रेणिधी पडतां उपशांत अनंतानुबंधीवाळाने २८. अने उद्वलित अनंतानुबंधी वाळाने सत्तामां २४ तथा क्षायिक समकितीने २१ नुं ज सत्तास्थान होय छे. केमके सप्तकनो क्षय छे. कुस ६ ना उदयमां त्रण सत्ता स्थान छे - २८ - २४-२१. ७ ना उदयमां मिश्रदृष्टिने सत्तास्थान त्रण छे- २८-२७-२४. जे २८ नी सत्तावाळो त्रीजुं गुणस्थान पामे, तेने तो २८ नी सत्ता. परंतु जे मिध्यादृष्टिए समfaa मोहनी उद्वलित करी होय, मिश्र न करी होय त्यां सुधी तेने २७ नी सत्ता. अने जे पूर्वे समकिती छतो अनंता नुबंधीनी विसंयोजना करी पछी मिश्र जाय तेने २४ नी सत्ता. तेवा जीव चारे गतिमां पामीए. चोथा पांचमा अने छठ्ठा गुणस्थानवाला जीव अनंतानुबंधीनी विसंयोजना कर्या पछी परिणामना वशथी त्रीज़े गुणस्थाने आवे तेने आश्रीने २४ छे. ७ ना उदयमा चोथा गुणस्थान वाळाने ५ सत्तास्थान - २८ - २४-२३-२२-२१. तेमां २८ तथा २४ नी सत्ता उपशमवाळाने के क्षयोपशमवाळाने. पण २४ नी सत्ता तो अनंतानुबंधीनी विसंयोजना कर्या पछी. २३ अने २२ नी सत्ता क्षयो पशमवाळाने. तेमां अनंतानुबंधी अने मिथ्यात्व खपावनारने २३, तदुपरांत मिश्र खपावनारने २२. समकित मोहनी खपावतां चरम ग्रासे वर्ततो कोई जीव काळ करे तो ते चारे गतिमां पामीए, तेथी २२ नुं सत्तास्थान पण चारे गति. मां पामीए. तथा २१ नी सत्ता क्षायिक सम्यग्दृष्टिनेज होय. ८ ना उदयमां पण त्रीजा चोथा गुणस्थानवाळाने उपर प्रमाणे पांच सत्तास्थान. ९ ना उदयमां पण तेज प्रमाणे समजवुं विशेष एटलो छे के ९ नो उदय क्षयोपशम समकितीने ज होय, तेथी तेने ४ सधास्थान - २८-२४-२३-२२. Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४४] १३ ना बंधमां पांच सत्तास्थान - २८ - २४-२३-२२-२१. १३ ना बंधवाळा तिर्येच अने मनुष्य होय छे. तेमां तिर्यंचने चार उदयस्थान -५ -६-७-८, तथा सत्तास्थान २८ अने २४ ए बे ज होय. कारण के बीजां सत्तास्थान तिर्यचने न होय. बीजां सत्तास्थान तो क्षायिक उत्पन्न मनुष्यने होय छे. अने क्षायिकवाळो तिर्यचमां जाय तो असंख्य अयुमां ज जाय छे, त्यां देशविरति न होवाथी तेने १३ नो बंध होतो नथी. २८ नी सत्ता उपशम अने वेदक ( क्षयोपशम) समकितीने होय छे. तेमां उपशम उत्पन्न काळे अंतरकरणना काळमां वर्तता जीवमां कोई देशविरतिपणुं पण पामे छे. कोई मनुष्य सर्वविरति पण अंगीकार करे छे. प्रगट ज छे. अने अनंतानुबंधीनी विसं योजना कर्या पछी २४ नी सत्ता होय. २८ नी सत्ता वेदक वाळाने होय ते तो ५ ना उदयमां देशविरति मनुष्यने ३ सत्तास्थान - २८ - २४-२१. ६-७ ना उदयमां पांच सत्तास्थान -- २८-२४-२३-२२-२१. ८ ना उदयमा २१ विना चार सत्तास्थान –२८-२४-२३-२२. ९ ना बंवमां प्रमत्त तथा अप्रमत्तने ४ ना उदयमां त्रण त्रण सत्तास्थान - २८ - २४-२१. ५-६ ना उदयमां ५ सत्तास्थान. ७ ना उदयमा २१ विना ४ सत्तास्थान. गाथा २३ ५ ना बंधमां ६ सत्तास्थान - २८-२४-२१-१३-१२-११. २८ - २४ नी सत्ता उपशम श्रेणिमां उपशम समकितीने होय. २१ नी सत्ता उपशम श्रेणिमां क्षायिक समकितीने होय (बीजी त्रीजी चोकडी न खपावी होय त्यां सुधी). १३ नी सत्ता बीजी त्रीजी चोकडी खपावे त्यारे. १२ नी सच्चा नपुंसक बेद खपावे त्यारे . ११ नी सत्ता स्त्रीबेद खपावे त्या रे. ५ विगेरे सत्ता पांचना बंधवाळाने न होय, कारण के त्यां पुरुषवेद बंधभां छे, अने पुरुषवेद बंधा त्यां सुधी हास्यादि षट्कनो क्षय न थाय तेथी. ४ ना बंधमा छ सत्तास्थान – २८ - २४-२१-११-५-४. २८ - २४ - अने २१ नी सत्ता उपशम श्रेणिमां. पण जो नपुंसकवेदे क्षपकश्रेणि मांडे तो समकाळे नपुंसकवेद अने स्त्रीवेदने खपावे. तेज वखने बंधमांथी पुरुषवेद खपावे. पछी पुरुषवेद अने हास्यादि षट्क सत्तामांथी खपावे. एटले ते न खपावे त्यां सुधी ११ नी सत्ता, अने खपाव्या पछी ४ नी सत्ता. Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खीवेदे क्षपकश्रेणि मांडनारने पण ए प्रमाणे ११ अने ४ नी सत्ता. ते बन्नेने ५ नी सत्ता होय. पुरुषवेदे क्षपकश्रेणि मांडनारने हास्यादि षट्कनी साथे ज पुरुषवेदनो बंधमांथी क्षय थाय छे. तेथी चतुर्विध बंध काळे तेने ११ नुं सत्तास्थान होतुं नथी, पण पांचवें ज सत्तास्थान होय छे. ते ५ नी सत्ता बे समय ऊणी बे आवलिका पर्यंत जाणवी. पछी पुरुषवेद खपावतां ४ नी सत्ता, ते पण अंतर्मुहूर्त समजवी. ____३-२ अने १ ना बंधमां प्रत्येके पांच पांच सत्तास्थान. ३ ना बंधमां ५ सत्तास्थान आ प्रमाणे-२८-२४-२१-४-३. तेमा पहेला त्रण उपशम श्रेणिमां. अने छेल्लां बे क्षपक श्रेणिमां, ते आ प्रमाणे-संज्वलन क्रोधनी प्रथमनी स्थिति आवलिका मात्र रहे त्यारे तेना बंध, उदय अने उदीरणा समकाळे क्षय पामे, तेथी बंध ३ नो रहे. पण सत्तामांथी बे समय ऊन बे आवलिका जेटले काळे तेने खपावे नहीं त्यां सुधी सत्ता ४ नी अने खपावे त्यारे सत्ता ३ नी, ते अंतर्मुहूर्त पर्यंत. २ ना बंधमां ५ सत्तास्थान आ प्रमाणे-२८-२४-२१-३-२. अहीं पण उपर - प्रमाणे समजवू. फक्त संज्वलन क्रोध पछी मान खपावतां ३-२ नी सत्ता. १ ना बंधमां ५ सत्तास्थान-२८-२४-२१-२-१. अहीं पण उपर प्रमाणे स मजवु. विशेष ए के संज्वलन मान पछी माया खपावतां २-१ नी सत्ता रहे. एटले पूर्ण न खपे त्यां सुधी २, अने पूर्ण खपे त्यारे १. अबंधकमां सत्तास्थान ४. ते आ प्रमाणे -२८-२४-२१-१. तेमांत्रण उपशम श्रेणिमां, अने एक संज्वलन लोभ ज्यां सुधी पूर्ण न खपे त्यां सुधी दशमे गुणस्थाने क्षपकने १ नी सत्ता. गाथा २४ आ प्रमाणे मोहनी कर्मनां बंधस्थान १०, उदयस्थान ९, अने सत्तास्थान १५ ना संवेध कह्या. हवे नाम कर्मनी व्याख्या करतां प्रथम तेना बंधादि स्थान केटलां छे ते कहे छे. गाथा २५ नाम कर्मनां बंधस्थान ८ (२३-२५-२६-२८-२९-३०-३१-१.) तिर्यच मनुष्यादि गति पणे ते दरेक स्थान अनेक प्रकारे छे ते कहे छे. तिर्यच गतिने ५ बंधस्थान-२३-२५-२६-२९-३०. तेमां एकेंद्रिय प्रायोग्य त्रण बंधस्थान-२३-२५-२६. तेमां २३ नो बंध अपर्याप्त एकेंद्रिय प्रा योग्य बांधतां तिथंच तथा मनुष्य मिथ्यादृष्टिने होय. ते आ प्रमाणे१ तिर्यग्गति. .३ औदारिक, तैजस, कार्मण. १ अगुरुलघु. १ एकेंद्रिय जाति. ४ वर्णादि चतुष्क. उपघात. Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ तिर्यग्गानुपूर्वी. १ हुंडक संस्थान. १ स्थावर नाम. १ सूक्ष्म के बादर. १ दुर्भग नाम. १ निर्माण. १ अपयोप्त.. १ अनादेय नाम. १ अस्थिर नाम. १ प्रत्येक के साधारण. १ अयश कीर्ति. १ अशुभ नाम. आ २३ ना चार विकल्प थाय. १ सूक्ष्म प्रत्येक, २ सूक्ष्म साधारण, ३ बादर प्रत्येक, ४ बादर साधारण. आ २३ मां पराघात अने उच्छ्वास भेळवतां २५ थाय. ते एकेंद्रिय पर्याप्त प्रायोग्य बांधतां नारकी विना त्रण गतिवाळा मिथ्यादृष्टिने होय. ते २५ आ प्रमाणे.१ तिर्यंच गति, १ तिर्यग्गानुपूर्वी, १ एकेंद्रिय जाति, १ औदारिक शरीर, १ तैजस, १ कार्मण, ४ वर्णादि चतुष्क, १ हुंडक संस्थान, १ अगुरुलघु, २ उपघात ने निर्माण, १ पराघात, १ उच्छ्वास, १ स्थावर नाम, . १ सूक्ष्म के बादर १ पर्याप्त, १ प्रत्येक के साधारण, १ शुभ के अशुभ, १ स्थिर के अस्थिर, १ दुर्भग, १ अनादेय, १ यश के अयश, . आ २५ भेदना २० विकल्प थाय, ते आ प्रमाणे,८ बादर पर्याप्त प्रत्येक आश्री स्थिर अस्थिर, शुभ अशुभ, तथा यश अयश वडे गुणतां ८ विकल्प. ४ बादर पर्याप्त साधारण आश्री शुभ अशुभ, स्थिर अस्थिर वडे गुणतां ४ (तेने अयश ज होय छे). ८ सूक्ष्म पर्याप्त साधारण अने प्रत्येक ए बनेने शुभाशुभ अने स्थिरास्थिर साथे गुणतां ८ (तेने पण अयश ज होय छे). आ २५ प्रकृतिमा आतप के उद्योत ए बेमांथी एक भेळवतां २६ थाय. ते पण एकेंद्रिय पर्याप्त प्रायोग्य बांधतां नारकी विना त्रणे गतिना मिथ्यादृष्टिने जाणवी. ते २६ मा सूक्ष्म अने साधारण न लेवां, कारण के तेने आतप के उद्योत नाम होतु नथी. ते २६ ना सोळ विकल्प थाय. ते नीचे प्रमाणे.आतपने स्थिरास्थिर साथे गुणतां २, तेने शुभाशुभ साथे गुणतां ४, तेने यश अयश साथे गुणतां ८, तेवाज उद्योतना पण ८ मळीने १६ थाय छे. कुल एकेंद्रिय आश्री (४-२०-१६) ४० विकल्प थया. हवे द्वींद्रिय आश्री बंधस्थान ३ (२५-२९-३०) Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १४७ ] द्वींद्रिय अपर्याप्त प्रायोग्य बांधतां मिथ्यादृष्टिने २५ नो बंध आ प्रमाणे. .१ औदारिक शरीर, १ वर्णादि चतुष्क, १ तिर्यग्गानुपूर्वी, २ तैजस अने कार्मण, १ छेवडुं संघयण, १ त्रस नाम, १ प्रत्येक, १ अनादेय, १ दुर्भग, आमां परावर्तमान प्रकृति पण अशुभ ज आवती होवाथी अहीं एकज भंग थाय छे. आ २५ मां अपर्याप्त स्थाने पर्याप्त करीने १ पराघात, १ उच्छास, १ अप्रशस्तगति, अने १ दुःखर, ए चार प्रकृति भेळवतां २९ नो बंध थाय. आ २९ ना स्थिरास्थिर, शुभाशुभ अने यश अयश वडे गुणतां भंग ८ थाय. आ २९ मां उद्योतनाम भेळवतां ३० थाय. तेना पण उपर प्रमाणे ८ भंग थाय. कुल द्वींद्रिय आश्री (१ - ८ - ८) भंग १७ थाय छे. तेज प्रमाणे त्रींद्रिय अने चतुरिंद्रिय आश्री मिध्यादृष्टिने त्रण त्रण बंधस्थान तथा सत्तर सत्तर भंग समजवा. मात्र इंद्रिय नाममां जुदुं नाम बोलवु . कुल विकलेंद्रिय आश्री भंग ५१. १ तिर्यग्गति, १ औदारिक अंगोपांग, १ हुंडक संस्थान, १ उपघात, १ अपर्याप्त, १ अशुभ, १ निर्माण, १ बादर, १ स्थिर के अस्थिर, १ आदेय के अनादेय, तिर्यक् पंचेंद्रिय प्रायोग्य ३ बंध स्थान ( २५-२९-३०) तेमां २५ अपर्याप्त तिर्यच पंचेंद्रिय संबंधी उपर द्वींद्रियमां कह्या प्रमाणे समजवा. मात्र द्वद्रियनामने स्थाने पंचेंद्रियनाम बोलवु तेनो भंग पण एकज छे. हवे २९ तिर्यच पंचेंद्रिय पर्याप्त आश्री बांधे, ते आ प्रमाणे १ तिर्यग्गति, २ तैजस कार्मण, १ छमांथी एक संघयण, १ तिर्यग्गा नुपूर्वी, १ पंचेंद्रिय जाति, १ अगुरुलघु, १ बादर नाम, १ अस्थिर, १ अयश, १ द्वींद्रिय जाति. १ प्रत्येक, १ शुभ के अशुभ, १ सुस्वर के दुःस्वर, १ उपघात, १ निर्माण, २ औदारिकद्विक, १ छमांयी एक संस्थान, १ प्रशस्त के अप्रशस्तगति, १ त्रस, १ पर्याप्त, १. सुभग के दुर्भग, १ यश के अयश, १ पराघात, ४ वर्णादि चतुष्क १ अगुरुलघु, १ उच्छ्वास, आ प्रमाणे २९ मिथ्यादृष्टि चारे गतिना बांधे. सास्वादनी पण २९ बांधे, परंतु सासादनी संघयण अने संस्थान पांचमांथी एक एक बांधे, छटुं संस्थान Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४८] अने संघयण न बांधे. आ २९ ना बंधमां भंग ४६०८ थाय. ते नीचे प्रमाणे.-- छ संस्थाने गुणतां तेने छ संघयणे गुणतां तेने बे विहायोगतिए गुणा ७२ तेने स्थिरास्थिरे गुणतां १४४ तेने शुभाशुभे गुणतां २८८ तेने सुभग दुर्भगे गुणतां ५७६ तेने आदेय अने अनादेये गुणतां ११५२ तेने यश अने अयशे गुणतां २३०४ तेने सुस्वर अने दुःस्वरे गुणतां ४६०८ आ २९ मां उद्योतनाम भेळवतां ३० बांधे. तेना भंग पण उपर प्रमाणे ४६०८ थाय. ... कुल तिर्यंच पंचेंद्रियना (१-४६०८-४६०८) भंग पण ९२१७ थाय. कुल तिर्यंच गति आश्री प्रथमना ४० ने ५१ भेळवतां ९३०८ भंग थाय.. मनुष्यगति प्रायोग्य बांधतां ३ बंधस्थान (२५-२९-३०) तेमां २५ पूर्वे द्वींद्रिय अपर्याप्तमां गणाव्या प्रमाणे. पण तेमां मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी, पंचेंद्रियजाति, एम बोलवू. तेनो भंग १. २९ नो बंध त्रण प्रकारे ते आ प्रमाणे.-- १ मिथ्यादृष्टि आश्री चारे गतिना जीव बांधे. १ सास्वादन आश्री चारे गतिना जीव बांधे. १त्रीजा चोथा गुणस्थान आश्री देवता तथा नारको बांधे. तेमा पहेला बीजा गुणस्थानने आश्री तो उपर तिर्यंच पंचेंद्रिय पर्याप्तमा कह्या प्रमाणे २९ समजवा. त्रीजा चोथा गुणस्याने आश्री २९ नीचे प्रमाणे१ मनुष्यगति, १ मनुष्यानुपूर्वी, १ पंचेंद्रिय जाति, २ औदारिकद्विक, २ तैजस कार्मण, ४ वर्णादि चतुष्क, १ पहेलुं संघयण. १ पहेलुं संस्थान, १ अगुरुलघु, १ उपघात, १ पराघात, १ उच्च स, २ बादर, १ पर्याप्त, १ प्रत्येक, १ स्थिर के अस्थिर, १ शुभ के अशुभ, १ सुभग, १ सुस्वर, १ आदेय, १ यश के अयश, १ निर्माण, .. . १ प्रशस्त विहायोगति, १ त्रस, Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४९] आ २९ आश्री स्थिरास्थिर, शुभाशुभ, अने यश अयश, आ त्रण विकल्प होवाथी आठ भंग थाय. मिथ्यादृष्टि आश्री २९ तिर्यचगति प्रमाणे होवाथी २९ ना बंधना मनुष्यगति आश्री पण पूर्ववत् ४६०८ भंग थाय. सास्वादन आश्री २९ ना बंधा एक एक संघयण अने संस्थान घटवाथी भंग ३२०० थाय ते आ प्रमाणे.५४५=२५४२=५०x२=१००x२=२००४२=४००x२=८००४२=१६००x२= ३२००. आनो समावेश ४६०८ नी अंतर्गत समजवो. . जीजा प्रकारना २९ ना बंधमां तीर्थंकर नाम भेळवतां ३० नो बंध सम्यग्दृष्टिने होय. तेना स्थिरास्थिर, शुभाशुभ, अने यश अयश साथे गुणतां ८ भंग थाय. कुल मनुष्यगति आश्री (१-४६०८-८ मळी) ४६१७ भंग थया. हवे देवगति प्रायोग्य बांधतां ४ बंधस्थान-२८-२९-३०-३१ होय. तेमां २८ नो बंध आ प्रमाणे.१ देवगति, १ देवानुपूर्वी, २ वैक्रियद्विक, २ तैजस कार्मण, ४ वर्णादिचतुष्क, १ समचतुरस्र संस्थान, १ अगुरुलघु, १ उपघात, १ पराघात, १ प्रशस्त विहायोगति, १ त्रस, ... १ बादर, १ पर्याप्त, १ प्रत्यक, १ स्थिर के अस्थिर, १ शुभ के अशुभ, १ सुभग, १ सुस्वर, १ आदेय, . १ यश के अयश, १ निर्माण, १ पंचेंद्रिय जाति, आ २८ प्रकृति १-२-३-४-५ अने ६ हा गुणस्थान सुधी देवगति प्रायोग्य बांधतां बांधे, तेना भंग स्थिरास्थिर, शुभाशुभ अने यश अयशवडे ८ थाय. आ २८ मां तीर्थकर नाम भेळवतां २९ थाय. पण ते चोथा गुणस्थानथीज बं. धाय, तेना पण पूर्ववत् ८ भंग थाय. पूर्वोक्त २८ मां आहारकद्विक भेळवतां ३० थाय. पण अहीं विकल्पवाळी त्रणे प्रकृति शुभज जाणवी, तेथी तेनो भंग १. ते सातमा तथा आठमा गुण स्थानवाळानेज होय. पूर्वोक्त ३० मां तीर्थकर नाम भेळवतां ३१ थाय, पण ते सातमा आठमा गुण स्थानवाळाज बांधे, अहीं पण एकज भंग. सर्व मळीने देवगति प्रायोग्य भंग १८ थया. Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५०] नरकगति प्रायोग्य एकज बंधस्थान-२८. १ नरकगति, १ नरकानुपूर्वी, २ वैक्रियद्विक, २ तैजस कार्मण, ४ वर्णादिचतुष्क, १ पंचेंद्रिय जाति, १ हुंडक संस्थान, १ अगुरुलघु, १ उपघात, १ पराघात, १ उच्छ्वास, १ निर्माण, १ त्रस, १ बादर, १ पर्याप्त, १ प्रत्येक, १ अस्थिर, १ अशुभ, १ दुर्भग, १ अनादेय, १ अयश, १ दुःखर, १ अप्रशस्त विहायोगति. आ २८ प्रकृति अशुभ बांधे. पहेले गुणस्थाने एनो बंध होय. एनो भंग एकज थाय. एक यश-कीर्ति नामकर्मनो बंध अपूर्वकरणे थाय. ते देवगति प्रायोग्य बंध पण व्यवच्छिन्न थया पछी ८-९-१० मा गुणस्थानवाळाने होय. गाथा २६. कया बंधस्थाने कुल केटला भंग थया, ते गणावे छे. २३ ना बंधमां ४ विकल्प एकेंद्रिय अपर्याप्त प्रायोग्य. २५ ना बंधमां २५ विकल्प. तेमां २० एकेंद्रिय पर्याप्तना तथा बेत्रण चार इंद्रिय वाळा, मनुष्य तथा तियेच पंचेंद्रिय अपर्याप्तमा एक एक मळी पांच. कुल २५. २६ ना बंधमां १६ विकल्प. एकेद्रिय पर्याप्त प्रायोग्य. २८ ना बंधमां ९ विकल्प. ८ देवगतिना, १ नरकगतिनो. २९ ना बंधमां ९२४८ विकल्प. ४६०८ तिर्यंच पंचेंद्रिय, ४६०८ मनुष्य, २४ विकलेंद्रिय, तथा ८ देवता. ३० ना बंधमां ४६४१ विकल्प. ४६०८ तिर्यंच पंचेंद्रिय, २४ विकलेंद्रिय, ८ __ मनुष्य तथा १ देव प्रायोग्य. ३१ ना बंधमां १ विकल्प, १ ना बंधमां १ विकल्प. ८-९-१० मा गुणस्थान आश्री. कुल १३९४५ विकल्प थया. नाम कर्मना उदयस्थान १२. गाथा २७ (२०-२१-२४-२५-२६-२७-२८-२९-३०-३१-९-८). एकेंद्रियने उदयस्थान ५. (२१-२४-२५-२६-२७). . तेमा २१ नीचे प्रमाणे.-. . २ तैजस कार्मण, २ स्थिरास्थिर, २ शुभाशुभ, आ १२ ४ वर्णादि चतुष्क, १ अगुरुलघु,........ १ निर्माण, ) ध्रुवोदयी छे. Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५१] १ तिर्यग्गति, १ तिर्यग्गानुपूर्वी, १ स्थावर नाम. १ एकेंद्रिय जाति, १ बादर के सूक्ष्म, १ पर्याप्त के अपर्याप्त, १ दुर्भग, १ अनादेय, १ यश के अयश. आ प्रमाणे २१ नो उदय अपांतरालगतिमां समजवो. अहीं भंग ५ छे. तेमां स्थावर बादर अने सूक्ष्मने पर्याप्त अने अपर्याप्तवडे गुणतां मात्र अयश साथे ४ भंग थाग. तेमांना ३ ने यशनो उदय न होय तेना ३, तथा स्थावर बादर पर्याप्त आश्री यशनो पण उदय होय तेथी तेना भंग २. अहीं मात्र आहार पर्याप्त थतां तेमां पर्याप्तने पर्याप्त नामकर्मनो तथा अपर्याप्तने अपर्याप्त नामकर्मनो उदय होय, तेथी बन्ने गणाय. आ जीवने शरीरस्थ थतां ४ प्रकृति वधे. १ औदारिक शरीर, १ हुंडकसंस्थान, १ उपघातनाम, १ प्रत्येक के साधारण. ए - ४ वधे, तथा १ तिर्यचनी आनुपूर्वी घटे, तेथी कुल २४ नो उदय थाय. 'तेना भंग १० थाय. ते नीचे प्रमाणे.-- ४ बादर पर्याप्तने प्रत्येक अने साधारण तथा यश अने अयश साथे गुणतां ४. २ बादर अपर्याप्तने प्रत्येक अने साधारण साथे गुणतां २. तेने मात्र अयशज होय. ४ सूक्ष्मने प्रत्येक तथा साधारण साथे अने पर्याप्त तथा अपर्याप्त साथे गुणतां ४. तेने पण अयश ज होय. बादर वायुकायने वैक्रिय शरीर करती वखत औदारिक शरीरने ठेकाणे बैक्रिय शरीर कहे. तेथी तेने पण २४ नो उदय थाय, पण तेनो भंग एक ज थाय. केमके तेजस्काय तथा वायुकायने साधारणपणे यशःकीर्तिनो उदय छ ज नहीं. वैक्रिय शरीर पर्याप्तने ज होय छे, तेथी ते आश्री पण भंग जुदा न थाय. कुल २४ ना उदयमां भंग ११ थाय छे. २४ ना उदयवाळा एकेंद्रिय शरीर पर्याप्तिवडे पर्याप्त थतां तेमां पराघात नाम भळवाथी २५ नो उदय थाय तेना भंग ६. ४ बादरने प्रत्येक तथा साधारण साथे तथा यश अने अयश साथे गुणतां ४. २ सूक्ष्मने प्रत्येक तथा साधारण साथे गुणतां २. तेने अयशनो ज उदय होय. अहीं पर्याप्तपणुं गणी अपर्याप्तना जुदा भेद कह्या नथी. बादर वायुकायने वैक्रिय करतां शरीर पर्याप्तिवडे पर्याप्त थतां पराधात क्षेपवाथी २५ थाय. तेनो पण पूर्ववत् एकज भंग. कुल २५ ना उदयमां ७ भंग. Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वोक्त २५ ना उदयवाळा एकेंद्रिय श्वासोच्छवास पर्याप्तिवडे पर्याप्त थतां उच्वास नामकर्म मेळववाथी २६ नो उदय. तेना पण उपर प्रमाणे भंग ६. अथवा २५ ना उदयवाळाने श्वासोच्छ्वास पर्याप्तिए पर्याप्त थया अगाउ आतप के उद्योतनो उदय थवाथी २६ नो उदय. तेना पण भंग ६. ते आ प्रमाणे४ उद्योत नामवाळा बादरने प्रत्येक अने साधारण साथे तथा यश अने अयश साथे गुणतां ४ थाय. तथा आतप नामवाळा प्रत्येकने यश अयश साथे गुणतां २ थाय. आतप नाम साधारणने न होवाथी. कुल ६ भंग. बादर वायुकायने वैक्रिय करतां २५ ना बंधमां उच्चास नाम मेळवतां २६ थाय. तेनो पूर्वनी जेम एकज भंग. केमके तेउ वायु कायने आतप, उद्योत अने यशनो उदय नथी. कुल २६ ना उदयमां १३ भंग थाय. उच्चासवाळा २६ ना उदयी एकेंद्रियने आतप के उद्योत भेळवतां २७ नो उदय थाय. तेना छ भंग. उपर आतप के उद्योतमां बताव्या प्रमाणे. कुल एकेंद्रियना उदय भंग (५-११-७-१३-६) ४२ थाय. द्वींद्रियने उदय स्थान ६ (२१-२६-२८-२९-३०-३१). १२ ध्रुवोदयी, १ तिर्यग्गति, १ तिर्यगानुपूर्वी, १ १ द्वींद्रिय जाति, १ सनाम, १ बादरनाम, १ पर्याप्त के अपर्याप्त, १ यश के अयश, १ दुर्भग, १ अनादेय. आ प्रमाणे २१ अपांतरालगतिमा लाभे. अहीं त्रण भंग थाय. ते आ प्रमाणे २ पर्याप्ताने यश के अयश साथे गुणतां २. १ अपर्याप्पाने एक अयश ज होय, तेथी तेनो १. पूर्वोक्त २१ मां शरीरस्थ थतां ६ वधे. ते आ प्रमाणे१ औदारिक शरीर, १ औदारिक अंगोपांग, १ हुंडक संस्थान, १ छेवटुं संघयण, १ उपघात नाम, १ प्रत्येक नाम. आ ६ प्रकृति वधारवी, अने १ तिर्यचनी आनुपूर्वी काढवी. एटले २६ थाय. तेना पण पूर्वोक्त प्रकारे ३ भंग जाणवा. शरीर पर्याप्तिवडे पर्याप्ताने १ प्रशस्त विहायोगति, १ पराघात नाम, वधे एटले २८. अहीं पर्याप्ताने यश अयश साथे गुणतां २ भंग थाय छे, पर्याप्तपणानो तथा प्रशस्तविहायोगतिनो सद्भाव छ माटे. पूर्वोक्त २८ मां श्वासोच्छ्वास पर्याप्तिए पर्याप्त थतां १ उच्छ्वास नाम वधे एटले २९ थाय. तेना पण पूर्ववत् भंग २.. Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५३] अथवा शरीर पर्याप्ति पर्याप्तने उच्ासनो उदय न थाय अने उद्योत नामनो उदय थाय, तो पण २९. तेना पण यश अयश साथे भंग २. कुल २९ ना उदयमां भंग ४. २९ मां सुस्वर के दुःस्वर भेळवतां ३० नो उदय. तेना सुस्वर दुःस्वर तथा यश अयश साथे गुणतां भंग ४. अथवा स्वरनो उदय नहीं थतां उच्छ्वासवाळाने उद्योत नामनो उदय थतां पण ३०. तेना भंग यश अयश साथै गुणतां २. कुल ३० ना उदयमां भंग ६. भाषा पर्याप्तिए पर्याप्त स्वरना उदयवाळाने ३० मां उद्योतनाम भेळवतां ३१ थाय. तेना सुस्वर दुःस्वर अने यश अयश साथे गुणतां भंग ४. कुल द्वींद्रिय आश्री भंग ( ३-३-२-४-६-४) २२ थाय. त्रींद्रिय अने चतुरंद्रियने पण उपर प्रमाणे ज छ छ उदय स्थान तथा बावीश बावीश भंग होवाथी कुल विकलेंद्रियना भंग ६६. प्राकृत एटले वैक्रिय देह कर्या विनाना स्वाभाविक तिर्येच पंचेंद्रियने उदयस्थान ६ (.२१-२६–२८-२९-३०-३१ ) १ तिर्यग्गति, १ तिर्यगानुपूर्वी, १ पर्याप्त के अपर्याप्त, १२ ध्रुवोदयी, १ बादरनाम, १ त्रसनाम, १ दुर्भग के सुभग, १ आदेय के अनादेय. १ पंचेंद्रियजाति, १ यश के अयश, आ प्रमाणे २१ नो उदय अपांतरालगतिमां होय. तेना भंग ९. ८ पर्याप्तने यश अयश साथे, सुभग दुर्भग साथे, तथा आदेय अनादेय साथै मुणत ८ था. १ अपर्याप्तने अयश, दुर्भग अने अनादेय ज होवाथी १. अन्य कहे छे के सुभग तथा आदेय अने दुर्भग अनादेयनुं युगल साथै ज उदयमां होवाथी पर्याप्त आश्री ४ अने अपर्याप्त आश्री १ एम भंग ५ थाय छे. पूर्वोक्त २१ मांथी तिर्यंचनी अनुपूर्वी काढीने छ नांखवाथी २६ थाय. १ छ संस्थानमांथी एक, १ छ संघयणमांथी एक, १ औदारिक अंगोपांग, आ प्रमाणे २६ प्रकृति शरीरस्थने होय. तेना भंग २८९ नीचे प्रमाणे -- १ उपघात, २८८ पर्याप्तने छ संघयण, छ संस्थान, सुभग दुर्भग, आदेय अनादेय तथा यश अयश साथे गुणतां २८८ थाय, ते आ प्रमाणे -- १ औदारिक शरीर, १ प्रत्येक. Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . पर्याप्ताने ६ संघयणे गुणतां ६ . तेने ६ संस्थाने गुणतां ३६. तेने सुभग दुर्भगे गुणतां ७२ तेने आदेय अनादेये गुणतां १४४ तेने यश अयश साथे गुणतां २८८. १ अपर्याप्ता आश्री भांगो एकज थाय. कुल भंग २८९. अपर्याप्तने छेवटुं संघयण, हुंडक संस्थान, दुर्भग, अनादेय अने अयश होबाथी तेनो एकज भांगो थाय छे. तेथी कुल २८९ भंग थाय छे. पूर्वोक्त २६ मां शरीर पर्याप्तिए पर्याप्तने २ प्रकृति उमेरतां २८ थाय. . १ पराघात, १ प्रशस्त के अप्रशस्त विहायोगति. आ प्रमाणे २८ ना उदयमां पूर्वोक्त २८८ भेदने के प्रकारनी विहायोगति साथे गुणतां भंग ५७६ थाय. (अहीं अपर्याप्तपणुं न गणवं.)। पूर्वोक्त २८ मां श्वासोच्छ्वास पर्याप्तिए पर्याप्त थतां उच्छ्वास नाम भळवाथी २९ नो उदय. तेना पण भंग ५७६. अथवा शरीर पर्याप्तिए पर्याप्तने उच्छ्वासनो उदय नहीं थतां तथा उद्योतनामनो उदय थतां २९. तेना भंग पण ५७६. , कुल २९ मा उदयमा भंग ११५२. पूर्वोक्त २९ मां भाषापर्याप्तिए पर्याप्त थतां सुस्वर के दुःस्वर भळवाथी ३० नो उदय. तेना भंग पूर्वोक्त ५७६ ने सुस्वर दुःस्वर साथे गुणतां कुल ११५२. अथवा भाषापर्याप्तिनो उदय नहीं थतां उच्चासवाळाने उद्योतनो उदय थतां ३० नो उदय. तेना भंग ५७६ . कुल ३० ना उदयमां भंग १७२८ . स्वर सहित ३० वाळाने उद्योत नाम भळतां ३१ नो उदय. तेना भंग पूर्वनी ... जेम ११५२. कुल प्राकृत तिर्यंच पंचेंद्रिय आश्री भंग ४९०६. (९-२८९-५७६,११५२-१७२८-११५२). तिथंच पंचेंद्रियने वैक्रिय शरीर करता उदयस्थान ५. (२५-२७-२८-२९-३०). पूर्वे अपांतरालगतिमां कहेली २१ मांथी शरीरस्थ थतां तिरंचनी आनुपूर्वी काढीने नीचेनी ५ नाखवी. २ वैक्रियद्विक, १ समचतुरस्र संस्थान, १ उपघात, १ प्रत्येक v. . Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५५] आ प्रमाणे २५ नो उदय तेना भंग पर्याप्ताने सुभग दुर्भाग, आदेय अनादेय, यश अयश साथे गुणतां ८ ( अहीं अपर्याप्त नामनो उदय होय ज नहीं.). पूर्वोक्त २५ मां शरीर पर्याप्तिए पर्याप्तने १ पराघात नाम अने १ प्रशस्तविहायोगति वधवाथी २७ नो उदय थाय. तेमां अप्रशस्त गति न होवाथी भंग ८. पूर्वोक्त २७ मां श्वासोवास पर्याप्तिए पर्याप्त थतां उदास नाम वधवा थी २८ थाय. तेना पण भंग ८. अथवा २७ मां उच्छ्वास न वधतां उद्योत वधे, तो पण २८ थाय. तेना पण भंग ८. कुल २८ ना उदयमां भंग १६ थाय. २८ मां भाषापर्याप्तिए पर्याप्त धतां सुखर नामनो उदय धवाथी २९ धाय. तेना पण भंग ८. अथवा २८ मां भाषापर्याप्तिए पर्याप्त न थतां सुस्वरनो उदय न थवाथी अने उद्योतनामनो थवाथी २९. तेना पण भंग ८. कुल २९ ना उदयमां भंग १६. सुस्वर युक्त २९ मां उद्योत नाम भळवाथी ३० धाय. तेना भंग ८. कुल वैकिय शरीर करतां भंग ( ८-८-१६- १६-८ ) ५६ थया. कुल तिर्यच पंचेंद्रियना भंग (४९०६ - ५६) ४९६२ थया. कुल तिर्यंचगति आश्री विकलेंद्रियना ६६, एकेंद्रियना ४२, तथा पंचेंद्रियना ४९६२ मळी कुल ५०७० थया. सामान्य मनुष्यने उदयस्थान ५ ( २१-२६-२८-२९ ३० ) अहीं सर्वे भंग उपर प्रमाणे समजवा मात्र मनुष्यने वैक्रिय आहारक विना उद्योत नामनो उदय न होवाथी २९-३० उद्योतनाम विनाना होय. तेथी २९ मां भंग ५७६, अने ३० मां भंग १९५२ थाय. कुल सामान्य मनुष्य आश्री भंग २६०२ (९-२८९-५७६-५७६-११५२ ) मनुष्यने वैक्रिय करतां उदयस्थान ५ ( २५-२७-२८-२९-३० ) १२ ध्रुवोदयी, २ वैक्रियद्विक, १ समचतुरस्र, १ पर्याप्त, १. प्रत्येक, १ उपघात, १. यश के अयश, १ आदेय के अनादेय, १ मनुष्यगति, आ प्रमाणे २५ ना उदयमां सुभग दुर्भग, आदेय अनादेय, गुणतां भंग ८ थाय. पांचमा छट्ठा गुणस्थानवाळाने वैक्रिय करतां त्रणे शुभनो ज उदय समजवो, तेथी तेनो एकजं भंग थाय. पण तेनों समावेश आ आठनी अंदर समजवो. २ त्रस ने बादर, १ सुभग के दुर्भग, १ पंचेंद्रिय. अने यश अयश साथे Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५६] शरीर पर्याप्तिए पर्याप्तने १ पराघात, १ प्रशस्तविहायोगति ए बे भेळवतां २७ नो उदय. तेना भंग पण ८. २७ मां श्वासोच्छ्वास पर्याप्तिए पर्याप्त थतां उच्छ्वास नाम भेळवतां २८ नो उदय. तेमां पण भंग ८. अथवा संयतने वैक्रिय करतां उच्चस नामना उदय अगाउ उद्योत नामनो उदय थतां पण २८ थाय. परंतु तेनो भंग एकज. केमके तेने त्रणे अशुभनो उदय नथी. कुल २८ ना उदयमां भंग ९. २८ मां उच्चसवाळाने भाषापर्याप्तिए पर्याप्त थतां सुस्वरनाम भळवाथी २९ __थाय. तेना भंग ८. अथवा भाषापर्याप्ति अगाउ संयतने उद्योत नाम भळवाथी पण २९. तेनो भंग पूर्ववत् १. कुल २९ ना उदयमां भंग ९. पूर्वोक्त सुस्वर युक्त २९ मां संयतने उद्योत नाम भळवाथी ३०. तेनो भंग १. कुल वैक्रिय आश्री भंग (८-८-९-९-१) ३५. __ आहारक शरीरी मनुष्यने उदयस्थान ५ (२५-२७-२८-२९-३०) वैक्रियवत् २५. तेमां वैक्रियने स्थाने आहारकद्विक बोलवू. अने प्रकृति बधी शुभ ज कहेवी. केमके आहारकने अशुभनो उदय होतो नथी. तेथी अहीं भंग १. २७ ना उदयमां पण भंग १. २८ ना उदयमा उच्छ्वासने उद्योतना विकल्पथी भंग २. २९ ना उदयमां सुस्वर अने उद्योतना विकल्पथी भंग २. . ३० ना उदयमा उद्योत भळतां भंग १. कुल आहारक आश्री भंग (१-१-२-२-१) ७. केवळीना उदयस्थान १० (२०-२१-२६-२७-२८-२९-३०-३१-९-८) १२ ध्रुवोदयी, २ त्रस ने बादर, १ मनुष्यगति, १ पंचेंद्रिय जाति, १ सुभग, १ पर्याप्तनाम, १ आदेय, १ यशकीर्ति. आ २० नो उदय सामान्य केवळीने केवळी समुद्घातमां कार्मण काययोगे वर्ततां ४-५-६ ४ समये होय. अहीं भंग १. उपरनी २० मां तीर्थकर नाम भेळवतां २१ प्रकृतिनो उदय. तीर्थकरने उपर कहेले वखते ज होय. अहीं पण भंग १. पूर्वोक्त २० मां औदारिकमिश्र काययोगे वर्ततां सामान्य केवळीने २-३-७ मे समये ६ उमेरतां २६ नो उदय होय. ते ६ आ प्रमाणे-२ औदारिक Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५७] द्विक, १ छ संस्थाननांथी १, १ उपघात, १ प्रत्येक, १ वज्रर्षभनाराच संहनन, अहीं ६ संस्थानवडे ६ भंग थाय. पण ते सामान्य मनुष्यमां गणायेल होवाथी जुदा न गणवा. पूर्वोक्त २६ मां तीर्थंकर नाम भेळवतां २७ थाय. पण तेमां संस्थान समचतुरस्र ज होय. तेथी तेनो भंग १. पूर्वोक्त २६ मां नीचेनी चार भेळवतां ३० थाय. १ पराघात, १ उच्छ्वास, १ सुस्वर के दुःस्वर, १ प्रशस्त के अप्रशस्त गति. आ ३० नो उदय सयोगी केवळीने औदारिक काययोगे वर्ततां कायम होय. तेमां छ संस्थान, वे गति, अने सुस्वर दुःस्वर साथै गुणतां भंग २४ थाय. पण ते सामान्य मनुष्यमां गणायेल होवाथी जुदा न गणवा. पूर्वोक्त ३० मां तीर्थंकर नाम भळतां ३१ थाय. तेनो उदय सयोगी केवळी arकरने औदारिक काययोगे वर्ततां होय. पण तेमां सुस्वर अने प्रशस्त विहायोगति ज होय, तेथी तेनो भंग १. ते ज ३१ वाग्योग रुंध्ये छते सुस्वर नाम टळवाथी ३०, अने उच्छ्वास रुघवाथी उच्छवास नाम टळे त्यारे २९ नो उदय तीर्थकरने होय. ३० मांथी सामान्य केवळीने वाग्योग रुंध्ये छते २९, अने उच्छ्वास रुंध्ये छते २८ थाय. तेमां २९ ना ६ संस्थान अने बे गति साथे गुणत १२ भंग थाय. अने २८ ना ६ संस्थान साथै ६ भंग थाय. पण ते पूर्वे सामान्य मनुष्यमां गणायेल होवाथी जुदा न गणवा. मनुष्य गति, १ पर्याप्तनाम, आ आठनो उदय सामान्य केवळीने चरम समये होय. अहीं भंग १. ८ मां तीर्थंकर नाम भेळवतां ९ नो उदय थाय. ते तीर्थंकरने चरम समये होय. आ प्रमाणे केवळीना १० उदयस्थानमां ८ भंग ( २०-२१-२७-२९-३०-३१ - ९-८ ) वघारे गणवा. तेमां पहेला छेल्ला विना ६ तीर्थकर आश्री अने पहेलो तथा छेल्लो सामान्य केवळी आश्री. कुल मनुष्य गतिमां उदय आश्री (२६०२ - ३५ - ७ - ८ ) भंग २६५२. १ पंचेंद्रिय जाति, { सुभग नाम, १ त्रस नाम, १ बादर नाम, १ आदेय, १ यशः कीर्ति. देवगतिमां उदयस्थान ६ ( २१-२५-२७-२८-२९-३० ) १२ ध्रुवोदयी, १ देवानुपूर्वी, १ देवगति, १ पंचेंद्रियजाति, १ त्रसनाम, १ बादर नाम, १ सुभग के दुर्भग, १ आदेय के अनादेय, १ यश के अयश, १ पर्याप्तक नाम. Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५८] . आ २१ नो उदय अपांतराल गतिमा होय. तेमा सुभग दुर्भम, आदेय अनादेय, ... .अने यश अयश साथे गुणतां ८ भंग थाय. (दुभेग, अनादेय अने अयश नो उदय पिशाचादिने होय तेथी.) पछी शरीरस्थाने देवानुपूर्वी घटे. अने पांच वधे. ते आ प्रमाणे. २ वैक्रियद्विक, १ उपधात, १ प्रत्येक, १ समचतुरस्र संस्थान. कुल २५ ना उदयमा पूर्ववत भंग ८ (देवने समचतुरस्र विना बीजुं संस्थान न होय. तथा संधयण बिलकुल न होय.) पूर्वोक्त २५ मां शरीर प्रर्याप्तने १ परावात अने १ प्रशस्तगति भळवाथी २७ - थाय. तेना पण भंग ८. ( देवताने अप्रशस्त गति होती नथी.) २७ ना उदयवाळाने श्वासोच्छ्वास पर्याप्तिए पर्याप्त थतां उच्छ्वास नाम भळवाथी २८ नो उदय. तेना पण भग ८. अथवा श्वासोच्छ्वास पर्याप्तिए पर्याप्त न थतां उच्छ्वास नाम न भळवाथी अने उद्योत नामनो उदय थवाथी पण २८ ना उदयमां पण भंग ८. कुल २८ ना उदयमां भंग १६. उच्छ्वास वाळाने भाषापर्याप्तिए पर्याप्त थतां सुस्वर भळवाथी २९ नो उदय. तेना पण भंग ८. (देवताने दुःस्वरनो उदय होतो नथी.) अथवा भाषापर्याप्तिए पर्याप्त न थतां सुस्वर न भळवाथी अने उद्योत नाम भळ वाथी पण २९. तेना पण भंग ८. कुल २९ ना उदयमां भंग १६. सुस्वर युक्त २९ मां उद्योत नाम भळवाथी ३० नो उदय. तेना पण भंग ८. कुल देवगति आश्री भांगा ६४. (८-८-८-१६-१६-८) (उद्योतनाम उत्तर ... वैक्रियमां होय.) . नरकगति आश्री उदयस्थान ५. (२१-२५-२७-२८-२९.). १२ ध्रुवोदयी, १ नरकगति, १ नरकानुपूर्वी, १ दुर्भग, १ अनादेय, १ अयश, १ वसनाम, १ बादरनाम. १ पर्याप्तनाम, १ पंचेंद्रिय जाति, आ २१ नो उदय अपांतराल गतिमां समजवो. तेनो भंग १. ११ मांथी आनुपूर्वी जतां अने पांच नीचेनी वधतां २५ थाय. तेनो भंग. १ २ वैक्रिय द्विक, १ हुंड संस्थान, १ उपघात, १ प्रत्येक. ते २५ मां शरीरस्थ थतां १ पराघात अने १ अप्रशस्त विहायोगति भळतां २७ नो उदय. अहीं पण भंग १. Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ मां श्वासोच्छ्वास पर्याप्त थतां उच्छ्वास नाम भळवाथी २८ थाय. तेनों भंग १. २८ बाळा भाषा पर्याप्त थतां सुस्वर नाम भळवाथी २९ नो उदय. तेनो भंग १. - कुल नरकगति आश्री भंग ५. चारे गति आश्री कुल उदय मंग ७७९१. . तिर्यच पंचेंद्रियना ४९६२ नरकना ५ मनुष्यना २६५२ . एकेंद्रियना ४२ . . , देवना , ६४ विकलेंद्रियना ६६ . गाथा २८-२९. १२ उदयस्थानमां दरेक उदयस्थाने केटला केटला भंग थाय,ते कहे छे. २० ना उदयमां भंग १. सामान्य केवळी आश्री. २१ ना उदयमां भंग ४२. ५ एकेंद्रिय आश्री, ९ विकलेंद्रिय आश्री, . ९ तिर्यंच पंचेंद्रिय, ९ मनुष्य पंचेंद्रिय, ... १ तीर्थकर, ८ देवता, १ नारकी. २४ ना उदयमां भंग ११. एकेंद्रिय आश्री. २५ ना उदयमां भंग ३३. . ७ एकेंद्रिय, .. ८ वैक्रिय तिर्यंच पंचेंद्रिय, ...... ८ वैक्रिय मनुष्य, . १ आहारक मनुष्य, ८ देवता, १ नारकी २६ ना उदयमां भंग ६००. १३ एकेंद्रिय आश्री, ... ९ विकलेंद्रिय आश्री, २८९ सामान्य तिर्यंच पंचेंद्रिय, ,२८९ सामान्य मनुष्य. , २७ ना उदयमां भंग ३३. ६ एकेंद्रिय आश्री, ८ वैक्रिय तिर्यंच पंचेंद्रिय, .. ८ वैक्रिय मनुष्य, १ आहारक संयत, १ केवळी, ८ देवता, १ नारवी, २८ ना उदयमां भंग १२०२. ६ विकलेंद्रिय आश्री, ५७६ सामान्य तिर्यंच पंचेंद्रिय, १६ वैक्रिय तिर्यंच पंचेंद्रिय, ५७६ सामान्य मनुष्य,.... ९ वैक्रिय मनुष्य (८-१), २ आहारक,... १६ देवता, ..१.नारकी. Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६०] २९ ना उदयमा भंग १७८५. १२ विकलेंद्रिय, ११५२ सामान्य तिर्यंच पंचेंद्रिय, १६ वैक्रिय तिर्यच पंचेंद्रिय, ५७६ सामान्य मनुष्य, ९ वैक्रिय मनुष्य (८-१), २ आहारक, १ तीर्थकर, १६ देवता, १ नारकी. ३० ना उदयमां भंग २९१७. १८ विकलेंद्रिय, १७२८ सामान्य तिर्यंच पंचेंद्रिय, ८ वैक्रिय तिर्यच पंचेंद्रिय, ११५२ सामान्य मनुष्य, १ वैक्रिय मनुष्य (८-१), १ आहारक, १ केवळी, ८ देवता. ३१ ना उदयमा भंग ११६५. १२ विकलेंद्रिय, ११५२ सामान्य तियेच पंचेंद्रिय, १ तीर्थंकर. ९ ना उदयमा भंग १. तीर्थकर आश्री ८ ना उदयमां भंग १. सामान्य केवळी आश्री. __ कुल उदय भंग. ७७९१. गाथा ३० नामकर्मनां सत्तास्थान १२. (९३-९२-८९-८८-८६-८०-७९-७८-७६-७५-९-८) सर्वप्रकृति सत्तामा होय त्यारे तीर्थकर नाम विना आहारक चतुष्क (आहारक शरीर, आहारकांगोपांग, आहारक ___ बंधन, आहारक संघातन) विना. तीर्थकर नाम विना. ८८ मांथी देवगति, देवानुपूर्वी अथवा नरकगति, नरकानुपूर्वी जतां अथवा ८० नी सत्तावाळो नरकद्विक तथा वेक्रिय चतुष्क बांधे त्यारे ८६. अथवा ८० नी सत्तावाळो देवद्विक अने वैक्रिय चतुष्क बांधे त्यारे प्रथमना ८६ माथी नरकद्विक अने वैक्रिय चतुष्क जतां अथवा बीजा ८६ मांथी देवद्विक अने वैक्रिय चतुष्क जतां ८० मांथी मनुष्यद्विक गतां आटला अक्षपकनां सत्तास्थान जाणवां हवे क्षपकनां कहे छे Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९ ७६ [१६१] ९३ मांथी नरकद्विक, तिर्यग्द्विक, पंचेंद्रिय विना ४ जाति, स्थावरनाम, सूक्ष्मनाम, साधारण, आतप, उद्योत, ए १३ खपावे त्यारे ९२ मांथी पूर्वोक्त १३ खपावे त्यारे ८९ मांथी ए १३ खपावे त्यारे ८८ मांथी ए १३ खपावे त्यारे मनुष्यगति, पंचेंद्रियजाति, बस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यश, तीर्थकर नाम, ए ९ प्रकृति अयोगी केवळीने चरम समये होय. ९. आ ९ मांथी तीर्थकर नाम जतां गाथा ३१. हवे नामकर्मनां बंधस्थान ८, उदयस्थान १२ अने सत्तास्थान १२ नो संवेध कहे छे.ओघे एटले सामान्ये अने आदेशे एटले विशेषे. अमुक बंधस्थाने आटलां उदय स्थान अने आटलां सत्तास्थान ते सामान्य कहेवाय छे. अने १४ गुणस्थानमां ६२ मागणाए प्रत्येकने आटलां आटलां बंध, उदय अने सत्तास्थान छे, एम कहेवू ते विशेष कहेवाय छे. गाथा ३२. . प्रथम सामान्ये संवेध कहे छे. २३-२५-२६ ना बंधमां ९ उदयस्थान अने ५ सत्तास्थान होय. तेमां २३ नो बंध अपर्याप्त एकेंद्रिय योग्यज छे. तेना बंधक एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, - तिर्यच पंचेंद्रिय, अने मनुष्य छे. ते २३ ना बंधने यथायोग्य सामान्ये ९ - उदयस्थान होय.-(२१-२४-२५-२६-२७-२८-२९-३०-३१) २३ ना बंधमां २१ नुं उदयस्थान अपांतरालगतिमां वर्तता एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, तिर्यंच पंचेंद्रिय अने मनुष्यने होय. २३ ना बंधमा २४ नो उदय अपर्याप्त तथा पर्याप्त एकेंद्रियने होय. २३ ना बंधमां २५ नो उदय पर्याप्त एकेंद्रिय, वैक्रियतियच, मनुष्य मिथ्यादृष्टिने. २३ ना बंधमां २६ नो उदय पर्याप्त एकेंद्रिय, पर्याप्त अपर्याप्त विकलेंद्रिय, ति येक पंचेंद्रिय, तथा मनुष्य मिथ्यादृष्टिने होय. २३ ना बंधमां २७ नो उदय पर्याप्त एकेंद्रिय, वैक्रिय तियंच, मनुष्य मिथ्या ___ त्वीने शरीर पर्याप्तिए पर्याप्तने होय. २३ ना बंधमां २८-२९-३० नो उदय पर्याप्त विकलेंद्रिय, तिर्यंच पंचेंद्रिय, मनुष्य मिथ्यादृष्टिने होय. २३ ना बंधमा ३१ नो उदय विकलेंद्रिय, तियेच पंचेंद्रिय, मनुष्य मिथ्यादृष्टिने. आ प्रमागे ना २३ ना बंधमां सता थान ५ (९२-८८-८६-८०-७..) Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६२] २३ ना बंधमां २१ नां उदयमां सर्वने पांचे सत्तास्थान. मात्र मनुष्यने ७८ विना चार सत्तास्थान, २३ ना बंधमां २४ ना उदयमां पण पांचे सत्तास्थान. मात्र वायुकायने वैक्रिय करतां २४ ना उदयमां वर्ततां ८० ने ७८ विना त्रण सत्तास्थान ( कारण के वैक्रियने तो ते अनुभवेज छे. अने वैक्रिय होवाथी देवद्विक के नरकद्विक पण बन्ने जतां नथी. तेमज वैक्रिय षट्क गया पछ ज मनुष्यद्विक सत्तामांथी जाय छे. तेथी ते पण रहे छे. ) २३ ना बंधमां २५ ना उदयमां पांचे सत्तास्थान. पण ७८ नुं सत्तास्थान वैक्रिय वायुका तथा उकाय आश्री जाणवुं. ( कारण के तेउ वाउ बिना बीजा बधा पर्याप्ता जीवो नियमे करी मनुष्यद्विक बांधी शके छे. ) २३ ना बंधमां २६ ना उदयमां पांचे सत्तास्थान. पण ७८ नुं अवैक्रिय, तेऊ वाऊ तथा विकलेंद्रिय अने पंचेंद्रिय पर्याप्तज के जे तेऊ वाऊमांथी अनंतर आवेला होय ते पर्याप्ता अपर्याप्ताने आश्रीने जाणवुं. कारण के ते मनुष्षद्विक. Maitri नथी. तेथी तेने ७८ पामीए. बीजाने नहीं. २३ ना बंधमां २७ ना उदयमां ७८ विना चार सत्तास्थान. कारण के २७ नुं उदयस्थान तेऊ वायु विना बीजा पर्याप्त बादर एकेंद्रिय तथा वैक्रिय तिर्यंच मनुष्यने छे. तेमने मनुष्यद्विकनो संभव छे माटे ७८ न पामीए. २३ ना बंधमां २८-२९-३०-३१ ना उदयमां ७८ विना चार चार सत्तास्थान. कारण के ए चार उदयवाळा एकेंद्रिय न होवाथी बाकीना जेने ए चार ऊदयस्थान छे तेने मनुष्यद्विकनो संभव छे. कुल २३ ना बंधमां ९ उदयस्थाने सत्तास्थान ४० छे. २५ अने २६ ना बंधमां पण एज प्रमाणे नव नव उदय स्थान अने चाळीश चाळीश सत्तास्थान जाणवां. विशेष एटलो छे के- केवळ पर्याप्त एकेंद्रिय प्रायोग्य २५-२६ बांधतां देवताओने २१-२५-२७-२८- २९-३० ए छ उदयस्थानमा ९२ अने ८८ ए वे ज सत्तास्थान कहां छे. केमके अपर्याप्त विकलेंद्रिय, तिर्यच. मनुष्य प्रायोग्य २५ नो बंध देवता बांधता नथी, केमके अपर्याप्त एकेंद्रिय के विकलेंद्रियादिर्मा ऊपजवानो तेमने अभाव छे. २८ ना बंधमां ८ उदयस्थान अने ४ सत्तास्थान छे. ते ८ उदयस्थान आ प्रमाणे - २१ - २५-२६-२७-२८- २९-३०-३१. २८ नो बंध देव प्रायोग्य तथा नरक प्रायोग्य होय. तेमां देव प्रायोग्य २८ नो बंध करतां आठे उदयस्थान होय अने नारक प्रायोग्य २८ नो बंध करतां २ उदयस्थान (३०-३१). Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६३] मी देवगति प्रायोग्य २८ ना बंधनां ८ उदयस्थान कड़े छे. २८ नाम २१ नो उदय क्षायिक सम्यग्दृष्टि अने वेदक सम्यग्दृष्टि तिर्यच मनुष्यने अपांतराल गतिमां होय. 79 " "" " " २५ नो उदय आहारक संयतने तथा वैक्रिय तिर्यच मनुष्य सम्यग्दृष्टि वा मिथ्यादृष्टिने होय. २६ नो उदय क्षायिक के वेदक सम्यग्दृष्टि, पंचेंद्रिय तिर्यच, मनुष्य शरीरस्थाने होय, २७ नो उदय आहारक संयतने तथा वैक्रिय तिर्यंच मनुष्य समकिती के मिथ्यादृष्टिने होय. २८-२९ नो उदय शरीर अने श्वासोच्छ्रास पर्याप्तिवाळा तिर्येच मनुष्य क्षायिक के वेदक समकितीने तथा आहारक संयतने तथा वैक्रिय तिर्यंच मनुष्य समकिती के मिथ्यात्वीने होय. ३० नो उदय तिर्यच मनुष्य समकिती, मिथ्यात्व मिश्र, तथा आहारक संयतने अने वैक्रिय संयतने होय. ३१ नो उदय पंचेंद्रिय तिर्यंच समकिती तथा मिथ्यात्वीने होय. 99 ed नरकगति प्रायोग्य २८ ना बंधमां ३० - ३१ ए बन्ने उदय स्थान कहे छे. ) २८ ना बंधमां ३० नो उदय पंचेंद्रिय तिर्यंच अने मनुष्य मिथ्यात्वीने होय. २८ ना बंघमा ३१ नो उदय पंचेंद्रिय तिर्येच मिथ्यात्वीने होय. २८ ना बंधमां सामान्ये ४ सत्तास्थान ( ९२-८९-८८–८६ ), ते आ प्रमाणेदेवगति प्रायोग्य २८ ना बंधमां २१ उदयमां सत्तास्थान २ (९२-८८ ). देवगति प्रायोग्य २८ ना बंधमां २५ नो उदय आहारकनी सत्तावाळा तेमज आहारकनी सत्ता विनाना होय, तेथी तेने पण वे सत्तास्थान ( ९२ - ८८). विशेष एटलो छे के आहारक संयतने आहारकनी सत्तामां नियमे करीने ९२ नुं ज सत्तास्थान होय. देवगति प्रायोग्य ८८ ना बंधमां २६-२७-२८ - २९ ना उदयमां पण सामान्य बे बे सत्तास्थान ( ९२-८८ ), देवगति अने नरकगति प्रायोग्य २८ ना बंधमां ३० ना उदयमां सामान्य ४ सत्तास्थान ( ९२-८९-८८-८६ ), तेमां ९२-८८ पूर्ववत् अने ८९ नी सत्ता तो कोई तीर्थंकर नामकर्म बांधेल मनुष्य वेदक समकिती पूर्वबद्ध नरकायुवाको नरकाभिमुख थये छते समकितथी प्रच्युत थई मिथ्यात्वे जतां तीर्थंकर नामकर्मनो बंध न करे, त्यारे नरक प्रायोग्य Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६४] २८ बांधे ते वखते होय. अने ८६ नी सत्ता आ प्रमाणे-आहारक चतुष्क, तीर्थकर नाम, देवद्विक, नरकद्विक, वैक्रिय चतुष्क, ए १३ विना ८० नी सत्तावाळो पंचेंद्रिय तिर्यंच के मनुष्य थयेल होय, ते सर्व पर्याप्ति वडे पर्याप्त थया पछी जो विशुद्ध थाय, तो देवगति प्रायोग्य २८ बांधतां देवद्विक अने वैक्रिय चतुष्क बांधे त्यारे सचा ८६ नी थाय. अथवा संक्लिष्ट पणे नरकगति प्रायोग्य २८ बांधे त्यारे पण ८६ नी थाय. देवगति अने नरकगति प्रायोग्य २८ ना बंधमां ३१ ना उदयमा ३ सत्तास्थान (९२ ८८-८६) ८९ नी सत्ता अहीं न होय. कारण के ३१ नो उदय तिर्यंच पंचेंद्रियने होय. तेमां तीर्थंकर नाम सत्ताए होय नहीं. ८६ नुं सत्तास्थान उपर प्रमाणे थाय. कुल २८ ना बंधमां ८ उदयस्थाने मळी सत्तास्थान १९. २९ तथा ३० ना बंधमां नव नव उदयस्थान अने सात सात सत्तास्थान. तेमां. उदयस्थान ९ आ प्रमाणे-२१-२४-२५-२६-२७-२८-२९-३०-३१. २९ ना बंधमा २१ नो उदय तिर्यग् मनुष्य प्रायोग्य २९ बांधतां पर्याप्तापर्याप्त एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, पंचेंद्रिय, तिर्यंच, मनुष्य, देवता तथा नारकीने होय. २४ नो उदय पर्याप्तापर्याप्त एकेंद्रियने होय. २५ नो उदय पर्याप्त एकेंद्रिय, देवता, तथा नारकीने होय. तथा वैक्रिय ___तिर्यंच मनुष्य मिथ्यात्वीने होय. २६ नो उदय पर्याप्त एकेंद्रियने, पर्याप्तापर्याप्त विकलेंद्रिय, तिर्यंच पंचें द्रिय तथा मनुष्यने होय. २७ नो उदय पर्याप्त एकेंद्रियने, देवताने, नारकीने, वैक्रिय तिर्यंच तथा मनुष्य मिथ्यादृष्टिने होय. २८-२९ नो उदय विकलेंद्रिय, तिर्यंच पंचेंद्रिय, मनुष्य, वैक्रिय तिर्यंच मनुष्य, देवता तथा नारकीने होय. , ३० नो उदय विकलेंद्रिय तियेच पंचेंद्रिय, मनुष्य, उद्योतवाळा देवने होय. ३१ नो उदय पर्याप्त विकलेंद्रिय तथा तिर्यंच पंचेंद्रिय उद्योतना वेद कने होय. देवगति प्रायोग्य २९ बांधतां अविरत सम्यग्दृष्टि मनुष्यने उदयस्थान पांच होय. -२१-२६-२८-२९-३०. आहारक संयत तथा वैक्रियसंयतने उदयस्थान पांच-२५-२७-२८-२९-३०. Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असंयतने तथा संयतासंयतने चोथा पांचमा गुणठाणावाळाने वैक्रिय करतां उदय स्थान चार-२५-२७-२८-२९, संयत सिवाय बीजाने वैक्रिय करतां उद्योतनामनो अभाव होवाथी ३० न होय. सामान्ये २९ ना बंधमां सत्तास्थान ७ (९३-९२-८९-८८-८६-८०-७८).. विकलेंद्रिय, तिर्यंच पंचेंद्रिय प्रायोग्य २९ बांधतां पर्याप्तापर्याप्त एकेंद्रिय, विकलें द्रिय, तिर्यंच पंचेंद्रियने २१ ना उदयमां वर्ततां सत्तास्थान पांच-९२ ८८-८६-८०-७८. तेज प्रमाणे २४-२५-२६ ना उदयमां पण पांच पांच सत्तास्थान जाणवां. २७-२८-२९-३०-३१ ना उदयमा ७८ विना चार सत्तास्थान तेनी भावना २३ ना बंधमा पूर्वे कही छे, तेम अहीं पण समजवी. मनुष्यगति प्रायोग्य २९ बांधतां एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, तिथंच पंचेंद्रियने तथा तिर्यग्गति मनुष्यगति प्रायोग्य फरीने बांधता मनुष्यने पोतपोताना उदय स्थानमा यथायोग्य वर्ततां ७८ विना चार सत्तास्थान. देवता नारकीने तिर्यक् पंचेंद्रिय तथा मनुष्य प्रायोग्य २९ बांधतां पोतपोताने उदये वर्ततां वे बे सत्तास्थान (९२-८८). नारकी मिथ्यादृष्टि तीर्थंकर नाम सत्तावाळाने मनुष्यगति प्रायोग्य २९ बांधतां पोतपोताना उदयस्थान पांचमां यथायोग्य वर्ततां ८९ - एकज सत्तास्थान. केमके तीर्थकर सहित आहारक चतुष्क रहित होय, तेज मिथ्यात्वे जाय छे. बन्ने सहित होय ते जता नथी. देवगति प्राोग्य २९ तीर्थंकर नाम सहित बांधतां अविरत सम्यग्दृष्टि मनुष्यने . २१ ना उदयमां वतेतां वे सत्तास्थान (९३-८९). ए प्रमाणे २५-२६-२७-२८-२९-३० ना उदयमां पण बे बे सत्तास्थान(९३-८९) आहारक संयतने पोतपोताना उदयमां वर्ततां ९३ नु ज सत्तास्थान. सामान्ये २९ ना बंधमा २१ ना उदयमां ७ सत्तास्थान. २४ ना उदयमा ५ सत्तास्थान. २५ ना उदयमा ७ " सामान्ये २९ ना बंधमां २६ ना उदयमां ७ सत्तास्थान. २७ ना उदये ६ २८ ना उदये ६ २९ ना उदये ६ ३० ना उदये ६ ३१ जा उदये ४ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६६] ३० ना बंधा उदयस्थान ९, अने सत्तास्थान ७, पूर्वे तिर्यग्गति प्रायोग्य २९ बांधतां एकेंदियाद्रिकने जे प्रमाणे उदयस्थान अने सत्तास्थान का छे,तेज प्रमाणे उद्योतनाम सहित ३० बांधतां पण समजवां. तेना भंग ४ थाय. उपरांत मनुष्यगति प्रायोग्य तीर्थकर नाम सहित ३० बांधतां देव नारकीने आ प्रमाणे२१ ना उदयमां देवताने सत्तास्थान २ (९३-८९). २१ ना उदयमां नारकीने सत्तास्थान १ ८८९). आहारक तीर्थंकर बनेनी सत्तावाळा नरके जता नथी. एज प्रमाणे २६-२७-२८-२९-३०ना उदयमां पण समजq. फक्त नारकीने ३० नो उदय नहीं. कारण के ३० ना उदयमा उद्योतनाम होय छे, ते नारकीने होतुं नथी. सामान्ये ३० ना बंधमां ९ उदये सत्तास्थानना भंग ५२. ते नीचे प्रमाणे२१ ना उदये ७ सत्तास्थान. २८ ना उदये ६ सत्तास्थान. २४ , ५ , २९ , ६ " २५ , ७. ". ३० , ६ कुल. ५२ गाथा ३३. ३१ ना बंधमां उदयस्थान १ [३० D). ३१ नो बंध देवगति प्रायोग्य तीर्थकर आहारक नाम सहित बांधतां सातमा आठमा गुणस्थानवाळाने होय. तेओ वैक्रिय आहारक करता नथी. तेथी तेओने २५ विगेरे उदय स्थान होय नहीं. सत्तास्थान पण एक ९३ नु ज होय. तीर्थकर आहारक बन्नेनो संभव होवाथी. एकना बंधमां एक ज उदयस्थान (३०). एक नो बंध अपूर्वकरणादिने छ, तेने अति विशुद्ध होवाथी ते वैक्रिय आहारक करता नथी. तेथी तेने बीजां उदयस्थान न होय. एक ना बंधमां सत्तास्थान ८ (९३-९२-८९-८८-८०-७९-७६-७५). तेमां पहेला ४ सत्तास्थान उपशमश्रेणिवाळाने वा क्षपकने ९ मे गुणस्थाने ज्यां सुधी १३ प्रकृति खपावी न होय त्यांसुधी.अने १४ खपाव्या पछी छेल्ला चार सत्तास्थान लाभे. ते १० मा गुणस्थान सुधी. केमके पछी तो अबंधक पणुं थाय. अपंधकपणामां उदयस्थान १० अने सत्तास्थान १०. Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६७] उदयस्थान १० आप्रमाणे-२०-२१-२६-२७-२८-२९-३०-३१-९.८. २०-२१ नो उदय तीर्थकर अतीर्थकरने केवळी समुद्घातमां कार्मणकाय योगे वर्ततां होय. २६-२७ नो उदय पण ते बनेने ज औदारिकमिश्र काययोगे वर्ततां होय. सामान्य केवळीने स्वभावे ३० नो उदय, स्वरनाम रुंधतां २९ नो अने उच्छवास रुंधे त्यारे २८ नो. तीर्थकरने स्वभावे ३१ नो उदय स्वरनाम रुंधे त्यारे ३० नो, अने उचश्वास रुंचे ___त्यारे २९ नो (ए प्रमाणे ३०-२९ मां वे बे विकल्प.) तीर्थकरने अयोगीपणामां चरम समये उदय ९ नो. सामान्य केवळीने अयोगीपणामां चरम समये उदय ८ नो अबंधकपणामां सत्तास्थान १० (९३-९२-८९-८८-८०-७९-७६-७५-९-८). २० ना उदयमा सत्तास्थान २ (७९-७५), २६-२८ ना उदयमां सत्तास्थान २ (७९-७५), २१ ना उदयमा सचास्थान २ (८०-७६). २७ ना उदयमां पण सत्तास्थान २ (८०-७६). २९ ना उदयमां सत्तास्थान ४ (८०-७६-७९-७५). ३० ना उदयमां सत्तास्थान ८ (९३-९२-८९-८८-८०-७९-७६-७५) तेमा पहेलां ४ उपशम श्रेणिवाळाने तथा क्षपकवाळाने ज्यांसुधी १३ न खपावी होय त्यांसुधी. अने पाछळना ४ क्षपकवाळाने तथा सयोगीने. तेमां आहा रक सत्कर्मा तीर्थकरने ८०, एवा ज अतीर्थकरने ७९, आहारक ४ विना • तीर्थकरने क्षीणकषाय वा सयोगी केवळीपणे ७६. तथा अतीर्थकरने ७५. ३१ ना उदयमां पण ए प्रमाणे वे सत्तास्थान (८०-७६) ते तीर्थंकरने ज होय. ९ ना उदयमांत्रण सत्तास्थान (८०-७६-९) तेमा पहेला बे द्विचरम समय सुधी अयोगी केवळी तीर्थकरने होय. चरम समये ९ नी सत्ता होय. ८ ना उदयमांत्रण सत्तास्थान (७९-७५-८) तेमां पहेला बे द्विचरम समय सुधी अयोगी केवळी अतीर्थंकरने होय. चरम समये ८ नी सत्ता होय. आ प्रमाणे अबंधकपणामां १० उदयस्थान आश्रीने सत्तास्थानना विकल्प ३०. गाथा ३४-३५. हवे गुणस्थान जीवस्थानने आश्रीने उक्त संवेधना स्वामी कहे छे. आठ मूल कर्मप्रकृतिओना बंध उदय अने सत्ताना स्वामी प्रथम जीवस्थानके कहे छे. पर्याप्त संज्ञी पंचेंद्रियविना १३ जीवस्थानमां बंध, उदय अने सत्ता. Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६८] ज्ञानावरणी अने अंतराय आश्री ३ विकल्प. - ५ नो बंध, ५ नो उदय, ५ नी सत्ता ( ध्रुव बंधोदय सत्ता होवाथी ). पर्याप्त संज्ञी पंचेंद्रिय आश्री ३ के २ विकल्प - त्रण विकल्प उपर प्रमाणे १० मा गुणस्थान सुधी बे विकल्प ते ११-१२ मे बंध नहीं, ५ उदय, ५ नी सत्ता. केवळीने मनोविज्ञान नथी, पण द्रव्यमन आश्री संज्ञी कहेवाय छे. तो तेने त्रणे विकल्पमां शून्य. गाथा ३६. दर्शनावरणी आश्री १३ जीवस्थानके वे विकल्प ९ नो बंध, ४ नो उदय, ९ नी सत्ता. ९ नो बंध, ५ नो उदय, ९ नी सत्ता. संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त आश्री ११ विकल्प पूर्ववत्. १) ९नो बंध, ४नो उदय, ९नी सत्ता. २) ९नो बंघ, ५नो उदय, ९नी सत्ता. ३) ६नो बंध, ४नो उदय, ९नी सत्ता. ४) ६नो बंध, ५नो उदय, ९नी सत्ता. ५) ४नो बंध, ४नो उदय, ९नी सत्ता. ६) ४नो बंध, ५नो उदय, ९नी सत्ता. वेदनीय कर्म - संज्ञपर्याप्त श्री ८ विकल्प. - - ७) ४नो बंध, ४नो उदय, ६नी सत्ता. ८) अबंधक, ४नो उदय, ९नी सत्ता. ९) अबंधक, ५नो उदय, ९नी सत्ता. १०) अबंधक, ४नो उदय, ६नी सत्ता. ११) अबंधक, ४नो उदय. ४नी सत्ता. १ असातानो बंध, असातानो उदय, साता असाता सत्ता. २ असातानो बंध, सातानो उदय, सांता असाता सत्ता. ( आ बे विकल्प पहेलाथी छठ्ठा गुणस्थान सुधी. ) ३ सातानो बंध, असातानो उदय बन्नेनी सत्ता. ४ सातानो बंध, सातानो उदय, बन्ननी सत्ता. ( आ बे भंग पहेलाथी तेरमा गुणस्थान सुधी. ) ५ बंधाभाव, असातानो उदय, बन्जेनी सत्ता. ६ बंधाभाव, सातानो उदय बन्नेनी सत्ता. ( चौदमा गुणस्थानना द्वीचरम समय सुधी. ) ७ बंधाभाव, असातानो उदय, असातानी सत्ता. ८ बंधाभाव, सातानो उदय, सातानी सत्ता. ( बाकीना १३ जीवस्थानमां प्रथमना ४ भंग. ) } छेल्ले समये. Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६९] गोत्र कर्मसंजी पर्याप्त आश्री ८ भंग.-- १ नीच गोत्रनो बंध, नीच गोत्रनो उदय, नीचगोत्रनी सत्ता. (तेउ वायुमांथी नीकळ्या पछी संज्ञी तिर्यंच पंचेंद्रियमां केटलाक काळ सुधी आ पहेलो भंग रहे.) २ नीचनो बंध, नीचनो उदय, उंच नीचनी सत्ता. ३ नीचनो बंध, उंचनो उदय, उंच नीचनी सत्ता. (आबे भंग पहेला बीजा गुणस्थान सुधी.) ४ उंचनो बंध नीचनो उदय, बन्नेनी सत्ता. (आ भंग पहेलेथी पांचमा सुधी.) ५ उंचनो बंध, उंचनो उदय, बनेनी सत्ता. - (आ भंग दशमा गुणस्थान सुधी.) ६ अबंध, उंचनो उदय, बंनेनी सत्ता. (आ भंग ११ माथी १४ माना द्विचाम समय सुधी.) ७ अबंध, उंचनो उदय, उंचनी सत्ता. ( आ भंग १४ माना चरम समये होय.) बाकी १३ जीवस्थानके त्रण भंग नीचे प्रमाणे. १ नीचनो बंध, नीचनो उदय, नीचनी सत्ता. ( आ भंग तेउ वायुमां उंचनुं उद्वलन कर्या पछी सर्वदा होय, अने तेमाथी नीकळ्या पछी पृथ्व्यादिकमां तेमज विकलेंद्रियमा केटलोक काळ पामीए.) .२ नीचनो बंध, नीचनो उदय, बन्नेनी सत्ता. ३ उंचनो बंध, नीचनो उदय, बनेनी सत्ता. (बीजा भंग न लाभे. तिथंच गतिमा उंच गोत्रना अभावथी.) आयुकर्म.संज्ञी पर्याप्तमा २८ भंग, संज्ञी अपर्याप्तमा १० भंग, पंचेंद्रिय असंज्ञी पर्याप्तमा ९ भंग, बाकीना ११ जीवस्थानके ५ भंग. प्रथम २८ आ प्रमाणे-(नरकायु संबंधी ५ भंग.) १ अबंध काळे, नरकायु उदय, नरकायु सत्ता. २ बंधकाळे, तिर्यगायु बंध, नरकायु उदय, नरक तिर्यगायु सचा. ३ बंधकाळे, मनुष्यायु बंध, नरकायु उदय, नरक मनुजायु सत्ता. ४ बंधोत्तरकाळे, नरकायु उदय, तिथंच नरकायु सचा. Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७०] ५ बंधोत्तरकाळे, नरकायु उदय, मनुज नरकायु सचा. (आ प्रमाणे देवगति आश्री पण पांच भंग जाणवा. कुल भंग १० ) .... तिर्यंचायु आश्री ९ भंग नीचे प्रमाणे.१ अबंध काळे, तिर्यगायु उदय, तिर्यगायु सचा. २ बंधकाळे, देवायु बंध, तिर्यगायु उदय, देवतिर्यगायु सत्ता. ३ बंधकाळे नरकायु बंध, तिर्यगायु उदय, नरकतिर्यगायु सत्ता. ४ बंधकाळे मनुजायु बंध, तिर्यगायु उदय, मनुज तिर्यगायु सत्ता. ५ बंधकाळे तिर्यगायु बंध, तिर्यगायु उदय, तिर्यक्तिर्यगायु सचा. ६ बंधोत्तरकाळे, तिर्यगायु उदय, देवतिर्यगायु सचा. ७ बंधोचरकाळे, तिर्यगायु उदय, नरकतिर्यगायु सचा. ८ बंधोत्तरकाळे, तिर्यगायु उदय, मनुजतिर्यगायु सत्ता. ९ बंधोतर काळे, तिर्यगायु उदय, तियतिर्यगायु सचा. ( आ प्रमाणे मनुष्यायु आश्री पण ९ भंग जाणवा. कुल भंग. १८) कुल संज्ञी पर्याप्तना भंग २८. संज्ञी अपर्याप्त आश्री १० भंग नीचे प्रमाणे.१ अबंध काळे, तिर्यगायु उदय, तिर्यगायु सत्ता २ बंधकाळे, तिर्यगायु बंध, तिर्यगायु उदय, तिर्यक्तिर्यगायु सत्ता. ३ बंधकाळे, मनुजायु बंध, तिर्यगायु उदय, मनुजतिर्यगायु सत्ता. ४ बन्धोचरकाळे, तिर्यगायु उदय, तिर्यक्तिर्यगायु सचा. ५ बन्धोत्तरकाळे, तिर्यगायु उदय, मनुजतिर्यगायु सत्ता. __ (आ प्रमाणे मनुष्यगति आश्री पण पांच भंग जाणवा. कुल भंग १०. (देव नारकी थवानुं न होवाथी.) असंज्ञी पर्याप्त तिर्यंच पंचेंद्रियना ९ भंग संज्ञी तिर्यचना आयु आश्री जे कह्या छे ते जाणवा. (आ जीवभेद नरक, देव अने मनुष्यमां न होवाथी बीजा भंग नहीं.) बाकीना ११ जीवस्थानके संज्ञी अपर्याप्तने तिर्यंचगति आश्री पांच भंग कया छ, तेज पांच भंग समजवा. तेमने तिर्यंचपणुं ज होवाथी अने देव नारकीम जवापणुं न होवाथी. ते ११ जीवस्थान नीचे प्रमाणे. ४ जीवभेद एकेंद्रिय सूक्ष्म बादर, पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता, ६ जीवभेद विकलेंद्रियना त्रणे पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता. .. Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७१] १ जीवभेद असंज्ञी पंचेंद्रिय अपर्याप्ता. गाथा ३७. हवे मोहनीकर्मनी वात कहे छे. मोहनी कर्मना बन्धस्थान जीवस्थान उपर कहे छे.८ पर्याप्तापर्याप्त सूक्ष्म अने अपर्याप्त बाकीना ६, एम कुल आठ जीवस्थाने बंध स्थान १ (२२ नु) ते २२ आ प्रमाणे-१ मिथ्यात्व, १६ कषाय, २ युगलनी, १ वेद, २ भय जुगुप्सा. अहीं त्रण वेद अने बे युगलवडे मिथ्यात्व गुणस्थाने विकल्प ६, ५ पर्याप्त संज्ञी पंचेंद्रिय विना बाकीना पांच पर्याप्त जीवस्थाने बंध स्थान २ (२२-२१) तेमां २२ मिथ्यात्वे. उपर प्रमाणे. तेना भंग ६. २१ सासादने (मिथ्यात्व विना) त्यां नपुंसक वेदनो बंध न होवाथी बे - वेद अने बे युगल साथे ४ भंग. १ पर्याप्तसंज्ञी पंचेंद्रियने १० बंधस्थान पूर्ववत्. उदय स्थान८ जीवभेदे २२ ना बंधे उदयस्थान ३ (८-९-१०) १ मिथ्यात्व, ४ कषाय, १ नपुंसक वेद, २ युगल, आ ८ ना उदयमां ४ कषाय अने २ युगल आश्री भंग ८. ८ मां भय के जुगुप्सा भळवाथी ९ ना उदयमा बन्ने प्रकारे आठ आठ . भंग थवाथी कुल भंग १६. ८ मां भय जुगुप्सा बन्ने भळवाथी १० ना उदयमा ८ भंग. कुल ८ जीवस्थाने उभय आश्री भंग ३२. ५ जीवभेदे २२-२१ ना बंधमां उदयस्थान ४ (६-८-९-१०) २१ ना बंधमां सासादने ७-८-९. २२ ना बंधमां मिथ्यात्वे ८-९-१०. सासादने मिथ्यात्व उदयमां न होवाथी ७ नो उदयतेना पण ७-८-९ मां भंग उपर प्रमाणे ३२ (८-१६-८). २२ ना बंधमां प्रण उदय स्थाने भंग उपर प्रमाणे ३२. असंज्ञी एवा लब्धि पर्याप्त पंचेंद्रियने चूर्णिकार त्रणे वेदनो उदय माने छे.तेथी २२ ना बंधमां अने २१ ना बंधमां बधा उदयस्थानमां त्रण त्रण वेद आश्री गुणतां २४-२४ भंग थाय. १ संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्ता आश्री नवे उदयस्थान पूर्ववत्. Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७२] सत्तास्थान.८ जीवस्थाने सत्तास्थान ३ (२८-२७-२६). ५ जीवस्थाने पण तेज ३ सत्तास्थान. १ जीवस्थाने १५ सत्तास्थान पूर्ववत्. हवे संवेध कहे छे.८ जीवस्थाने २२ ना बंधस्थानमा उदयस्थान ३ (८-९-१०) ते दरेकमां त्रण त्रण सत्तास्थान. तेथी तेना कुल भंग ९. ५ जीवस्थाने बे बंधस्थान (२२-२१) तेमां २२ ना बंधे त्रण उदयस्थान (८-९-१०) ते त्रणेमां उपर प्रमाणे त्रण त्रण सत्तास्थान (२८-२७२६) तेथी तेना भंग ९. तथा २१ ना बंधमां त्रण उदयस्थान (७-८-९) ते त्रणमां सत्तास्थान १ (२८ नुं ज) तेना भंग ३. कुल ५ जीवस्थाने दरेकने सत्तास्थान भंग १२. १ पर्याप्त संज्ञी पंचेंद्रिय जीवस्थाने संवेध पूर्ववत्. गाथा ३८-३९. नामकर्म जीवस्थाने कहे छ ७ अपर्याप्त जीवस्थाने ५ बंध स्थान, २ उदय स्थान, ५ सत्तास्थान. ५ बंधस्थान आ प्रमाते-२३-२५-२६-२९-३०. अपर्याप्त जीवो तिर्यंच मनुष्य गति आश्री ज बंध करे छे. त्यां एक एक अपर्याप्तने विषे १३९१७ भंग तथा देव नारकी आश्रीने बंध न करे, तेथी तेने आ पांच पांज जे बंध स्थान होय. तेनी व्याख्या पूर्ववत् करी लेवी. २ उदय स्थान-ए ज सात जीवस्थानमां अपर्याप्त बादर सूक्ष्म एकेंद्रियने उदय स्थान २ (२१-२४) तेमां २१ मां बादर अने सूक्ष्म बन्नेने एक एक भंग अने २४ मां प्रत्येक तथा साधारण साथे बे बे भंग. कुल बन्न जीवस्थानमां उदय आश्री ३-३ भंग. ५विकलेंद्रिय तथा संज्ञी असंज्ञी पंचेंद्रिय ए पांच अपर्याप्ताने उदयस्थान२(२१२६) पूर्ववत' तेमां विकलेंद्रिय तथा असंज्ञी अपर्याप्तने बेबे उदय स्थान आश्री बेबे भंग, अने संज्ञी अपर्यायाने चार भंग-बे तिर्यच आश्री, बे मनुष्य आश्री. ५ सत्तास्थान-साते अपर्याप्ताने सत्तास्थान ५. __(९२-८८-८६-८०-७९) पूर्ववत्.. १ सूक्ष्म पर्याप्ताने बंधस्थान ५ (२३-२५-२६-२९-३०). . Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७३] तेनुं स्वरूप पूर्ववत्. आ पांचे बंधस्थान तिर्यग्मनुष्यगति आश्री छे. अहीं बंधना भांगा १३९१७. ४ उदयस्थान ( २१-२४-२५-२६ ). २१ अपांतराल गतिमां २४ शरीरस्थ थतां. २५ पराघात क्षेपवतां, २६ उच्छवास भळतां. प्रथम २१ मां एक ज भंग. बाकीना त्रणमां प्रत्येक अने साधारण आश्री बेबे भंग कुल भंग ७. ५ सत्ता स्थान ( ९२-८८-८६-८०-७८). मां केवळ २५-२६ ना उदयमां साधारण पद साथे भंग छे तेमां ७८ नु सत्तास्थान नहीं. कारण के शरीर पर्याप्तिए पर्याप्त तेउ वायु विना बीजा सर्वे मनुष्यगति बांधी शके छे. प्रत्येक पदमां ते वायु भळवाथी पांचे सत्तास्थान होय, तेथी २५–२६ वाळा साधारणमां ने भांगे ४ सत्तास्थान अने बीजा पांच भांगे ५ सत्तास्थान. १ पर्याप्त बादर एकेंद्रियने बंधस्थान ५ ( २३-२५ २६ - २९-३० ) पूर्ववत्. आ पांचे बंधस्थान मनुष्य तिर्यक् प्रायोग्य ज होय, ५ उदयस्थान ( २१–२४–२५-२६-२७ ), अपांतराल गतिमां पूर्ववत् २१ पण तेमां यश अयशमांथी एक ज उदयमां होवाथी तेना मंग २. २१ मां पूर्ववत् ३ वधवाथी २४ ना उदयमां प्रत्येक साधारण यश अयश साथे गुणतां भंग ४. तेमां पण वायुकाय आश्री वैक्रिय करतां एक भंग वधे, तेने यशनो उदय न होवाथी, वळी प्रत्येकपणुं ज होवाथी कुळ २४ ना उदयमां भंग ५. २४ मां पराघात नाखवाथी २५ ना उदयमां पण पूर्ववत् भंग ५. २५ मां उच्छास क्षेपवतां २६ ना उदयमां भंग ५. अथवा उच्चासना उदय अगाउ आतप के उद्योतक्षेपवतां २६, तेमां आतप प्रत्येक पृथ्वीकायने ज होवाथी तेना यश अयश साथे भंग २. उद्योतना प्रत्येक साधारण बन्ने आश्री यश अयश साथै गुणतां भंग ४. वैक्रिय करतां वायुने आतप उद्योत कांई पण न होवाथी तेनो भंग नहीं. कुल २६ मां भंग ११. उच्छ्वास युक्त २६ मां आतप के उद्योत भळवाथी २७ नो उदय. तेना भंग उपर प्रमाणे आतप साथै २ अने उद्योत साथे ४. कुल भंग ६. कुल बादर पर्याप्त उदय आश्री भंग २९ (२-५-५-११-६). ५ सत्तास्थान (९२-८८-८६-८०-७८) उदयस्थान कुल २९ मांथी २५-२६ ने उदये प्रत्येक अन्यशकीर्ति सानो Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७४] एक एक भंग. २१ ना उदयमां बे भंग. अने वैक्रिय वायु विनाना २४ना उदये भंग ४. कुल भंग ८ ने विषे पांचे सत्तास्थान. बाकीना २१ भंगमां ७८ विना चार चार सत्तास्थान. ३ विकलेंद्रिय पर्याप्ताने बंधस्थान ५ (२३-२५-२६-२९-३०). तिर्यग्मनुष्य प्रायोग्य. पूर्ववत. अहीं भंग १३९१७. ६ उदयस्थान-२१-२६-२८-२९-३०-३१. २१ नो उदय पूर्ववत् तेने यश अयश साथे गुणतां भंग २. २१ मां औदारिक द्विक, हुंडक संस्थान, सेवात संघयण, प्रत्येक तथा उपघात भळतां अने आनुपूर्वी जतां २६. तेना पण भंग २. २६ मां पराघात अने अप्रशस्तगति भळतां २८ तेना पण भंग २. . २८ मां उच्छ्वास नाम भळतां २९. तेना पण भंग २. अथवा २८ मां उच्चास विना उद्योत भेळवतां २९. तेना पण भंग २. कुल २९ ना उदयमां भंग ४. उच्छ्वास सहित २९ मां भाषापर्याप्तिए पर्याप्त थतां सुस्वर के दुःस्वर भळवाथी ३०. .. तेना वे स्वर अने यश अयश साथे गुणतां भंग ४. अथवा २९ मां उद्योत भळतां २०. तेमां यश अयश साथे भंग २. कुल ३० ना उदयमां भंग ६. स्वर सहित ३० मां उद्योत भळतां ३१. तेमां बे स्वर तथा यश अयश साथें गुणतां मंग ४. कुल विकलेंद्रियने उदय आश्री भंग २०. ५ सत्तास्थान-९२-८८-८६-८०-७८. तेमां २१-२६ ना उदयवाळाने तेजो वायुमांथी आवेलाने केटलोक वखत मनुष्य द्विक सत्तामा न होवाथी ७८ नुं सत्तास्थान लाभे. तेथी ते बे उदयना चार भंगे पांच सत्तास्थान. बाकीना १६ उदयने भांगे चार सत्तास्थानक. केम के तेजो वायु विना शरीर पर्याप्ति थया पछी सर्व जीवने मनुष्यद्विक बांध वानो संभव छ, तेथी २७ विगेरे उदयस्थानमा ७८ नी सत्ता न लाभे. १ असंज्ञी पर्याप्ता तिर्यंच पंचेंद्रियने बंधस्थान ६ (२३-२५-२६-२८-२९-३०). आ जीवो नरकगतिनो पण बंध करे छे. तेथी २८ नुं बंधस्थान तेने लाभे अहीं बंधना भंग १३९२६. ६ उदयस्थान-२१-२६-२८-२९-३०-३१. तेमां २१ नो उदय आ प्रमाणे.२ तैजस कार्मण, १ अगुरुलघु, २ स्थिर अस्थिर, २ शुभाशुभ, ४ वर्णचतुष्क, १ निर्माण, २ तिर्यग्द्विक, १ पंचेंद्रिय जाति, Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७५] १ त्रसनाम, १ बादरनाम, १ पर्याप्तनाम, १ सुभग के दुर्भग, १ आदेय के अनादेय, १ यश के अयश. आ २१ अपांतराल गतिमा होय. तेना सुभग दुर्भग, आदेय अनादेय, यश अयश साथे गुणतां भंग ८. उपरना २१ मां २ औदारिकद्विक, १ छमांथी एक संस्थान, १ छमाथी एक संघ यण, १ उपघात, १ प्रत्येक, आ ६ भळतां अने तिर्यंचानुपूर्वी जतां २६ नो उदय. तेना भंग ६ संघयण, ६ संस्थान, सुभग, दुर्भग, आदेय अनादेय, यश अयश साथे गुणतां २८८. २६ मां पराघात तथा बेभांथी एक विहायोगति भळतां २८. तेना भंग पूर्ववत २८८ ने बे गति साथे गुणतां ५७६. २८ मां उच्छास नाम भळतां २९. तेना भंग पण पूर्ववत् ५७६. अथवा २८ मां . उद्योतनाम भळतां २९. तेना पण भंग ५७६. कुल २९ मां भंग ११५२. उच्छ्वास युक्त २९ मां भाषापर्याप्पिए पर्याप्त थतां सुस्वर के दुःस्वर भळवाथी ३०. तेना भंग पूर्ववत् ५७६ ने बे स्वरे गुणतां ११५२. अथवा स्वर न वधे अने उद्योत नाम वधे तो ३०. तेना भंग पूर्ववत् ५७६. कुल ३० मां भंग १७२८. स्वरसहित ३० मां उद्योतनाम भळवाथी ३१- तेना भंग पूर्ववत् ११५२. कुल उदय आश्री भंग ४९०४.(८-२८८-५७६-११५२-१७२८-११५२) असंज्ञी पंचेंद्रिय वैक्रिय करता नथी. तेथी ते आश्री भंग नहीं. ५ सत्तास्थान-९२-८८-८६-८०-७८. तेमां २१-२६ ना उदयवाळा ८-२८८ कुल २९६ भंगमां सत्तास्थान ५. बाकीना भांगामां सत्तास्थान ४. युक्ति पूर्ववत्. १ संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्ताने बंधस्थान ८ छे. ते बधा होय. अहीं बंधना भांगा १३९४५ थाय. उदयस्थान १२ मांथी २०-२४-८-९ ए चार जतां बाकीना ८ उदयस्थान होय. तेमां २०-८-९ आ त्रण उदयस्थान केवळी आश्री छे. तेने अहीं संज्ञीमां गण्या नथी. तेथी ते बाद करवा. अने २४ नो उदय एकेंद्रियने होय छे. तेथी ते बाद करतां बाकी ८ उदयस्थान होय. सत्तास्थान १२ मांथी केवळी आश्री ८-९ ए वे सत्तास्यान जतां बाकी १० सत्तास्थान होय. २१ ना उदयमां भंग ८. अहीं पांच सत्तास्थान. २६ ना उदयमां भंग २८८, अहीं ४ सत्तास्थान. Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७६] बाळावबोधवाळा उदयना ७७९१ कुल भांगामाथी २८ ने आ प्रमाण बाद करे छे. २१ ना उदयभाथी ७ अपर्याप्ता, १ संज्ञी असंज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंच, १ मनुष्य अपर्याप्त, कुल ९. २६ ना उदयमांथी ३ विकलेंद्रिय, २ असंज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंच तथा मनुष्य कुल ५. २४ नो उदय ज न होवाथी तेना भंग ११. २०-८-९ ना उदयना एक एक मळी भंग ३. कुल २८ जतां ७७६३ संज्ञी पर्याप्त पंचेंद्रियमां पामीए, एम खे छे. पण ७७९१ मां तो विकलेंद्रिय, एकेंद्रिय विगेरे बीजा घणा उदयभंग बाद करवा जेवा लागे छे, तेथी ते विचारवा योग्य छे. टीकामां आ बाबत बिलकुल नथी. वळी बाळावबोधमा २१ ना उदयना ४० अने २६ ना उदयना ५९५ कुल ६३५ उदय भंगे पांच सत्तास्थान. बाकीना भंगे चार सत्तास्थान लखे छे. ते पण चिंतववा योग्य छे. कारण के २१ ना उदयमा ४२ भंग छे. तेमांथी उपर काइ बाद करेल नथी, तो ४० केम ? अने बाद करवा योग्य जोईए तो घणा छे. २६ ना उदयना कुल भंग ६०० छे. तेमां उपर पांच बाद कर्या छे. तेथी ५९५ तो बराबर थाय. पण उदय आश्री तेमांथी बाद करवा जोईए तेथी ते पण विचारवा योग्य छे. हवे संवेध कहे छे.१ सूक्ष्म एकेंद्रिय अपर्याप्ताने २३ ना बंधमां २१ तथा २४ ए वे उदयस्थान. अने सत्तास्थान ९२-८८-८६-८०-७८ ए पांच पांच होवाथी भंग १०. तेज प्रमाणे २५-२६-२९-३० ना बंधमां पण वे बे उदयस्थाने पांच पांच सत्ता स्थानना दश दश भंग होवाथी कुल भंग ५०. २ थी ७. एज प्रमाणे बीजा ६ अपर्याप्तने पण ५०-५० भंग समजवा. यळी उदय स्थान पण पोतपोताना होय ते बेबे समजवा. कुल भंग ३००. ८ सूक्ष्म एकेंद्रिय. पर्याप्ताने २३ ना बंधे चार उदयस्थान. अने दरेक उदयस्थाने पांच पांच सत्तास्थान कुल भंग २०. एज प्रमाणे २५-२६-२९-३० ना बंधमां पण २०-२० भंग. कुल भंग १००. ९ बादर एकेंद्रिय पर्याप्ताने २३ ना बंधमां २१-२४-२५-२६ना उदयमां पांच पांच सत्तास्थान होवाथी भंग २०, अने २७ ना उदयमां चार सत्तास्थान मळी भंग २४. ए प्रमाणे पांचे बंधस्थानना मळीने भंग १२०. Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७७] १० द्वींद्रिय पर्याप्ताने २३ ना बंधमा २१-२६ ना उदये पांच पांच सत्तास्थान, अने २८-२९-३०-३१ ना उदये चार चार सत्तास्थान होवाथी कुल भंग २६ ए प्रमाणे पांचे बंधस्थानना मळी कुल भंग १३०. ११-१२ त्रींद्रिय अने चतुरिंद्रिय पर्याप्ताने पण द्वींद्रिय प्रमाणे ज १३०-१३० सत्ता स्थानना भंग होवाथी कुल भंग २६०. १३ असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्ताने २३ ना बंधमां २१-२६ ना उदये पांच पांच सत्तास्थान तथा २८-२९-३०-३१ ना उदये चार चार सत्तास्थान कुल भंग २६. एज प्रमाणे २५-२६-२९-३० ना बंधमां पण २६-२६ भंग जाणवा. २८ ना बंधमां बे ज उदयस्थान (३०-३१). तेमांत्रण त्रण सत्तास्थान९२-८८-८६. तेना कुल भंग ६. ते प्रथमना पांच बंधस्थानना कुल भंग १३० मां भेळवतां सर्व भंग १३६. १४ संज्ञी पर्याप्तने २३ ना बंधमां उपर प्रमाणे २६ सत्तास्थान ते आ प्रमाणे--२१-२६ . ना उदये पांच पांच सत्तास्थान. तथा २८-२९-३०-३१ ना उदये चार चार सत्तास्थान. तेथी भंग २६. एज प्रमाणे २५ ना बंधमां सत्तास्थानना भंग २६. पण २५ ना बंधक देवताने २५-२७ ना उदयमां ९२-८८ आ बे सत्तास्थान होवाथी चार भंग वधे. एटले २५ ना बंधमां कुल भंग ३०. एज प्रमाणे २६ ना बंधमां पण सत्तास्थानना भंग ३०... २८ ना बंधमां ८ उदयस्थान-२१-२५-२६-२७-२८-२९-३०-३१ तेमां २१ ना उदये तेमज २५-२६-२७-२८-२९ ना उदये ९२-८८ आ बे सत्तास्थान, ३० ना उदये चार सत्तास्थान-९२-८९-८८-८६ तेनी व्याख्या पूर्वे संवेधमां विस्तारथी करी छे. तथा ३१ ना उदये त्रण सत्तास्थान ९२-८८-८६. एकंदर २८ ना बंधमा १९ सत्तास्थान. २९ ना बंधमां २५ ना बंध प्रमाणे सत्तास्थानना भंग ३०. पण एटलुं विशेष छे के चोथा गुणस्थानवाळाने देवगति प्रायोग्य २९ बांधतां २१-२६-२८-२९३० ना उदयमां प्रत्येके बेबे सत्तास्थान-९३-८९. अने २५-२७ ना उदयमां वैक्रिय संयत अने असंयतने आश्रीने तेज बे सत्तास्थान. अथवा आहारक संयत आश्री २५-२७ ना उदयमां ९३ नुं सत्तास्थान तथा नारकी तीर्थकर सत्कर्मा मिथ्यात्वी आश्री ८९ नुं सत्तास्थान. कुल १४ वधतां २९ ना बंधमां एकंदर ४४ भंग थाय. Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७८] ३० ना बंधमां २५ ना बंध प्रमाणे सत्तास्थानना भंग ३०. तेमां एटलुं विशेष के - देवताने मनुष्यगति प्रायोग्य तीर्थकर नाम सहित ३० बांधतां २१-२५ २७-२८-२९-३०ना उदयमां प्रत्येके ९३ अने ८९ ए बे सत्तास्थान. तेथी कुल १२ वधतां ३० ना बंघमां कुल सत्तास्थान ४२ थाय. २१ ना बंधमां एक ९३ नुं सत्तास्थान. कारण के ३१ नो बंध तीर्थंकर नामकर्म अने आहारक सहित ज करे. तेथी सत्तास्थान १.। १ एकविध बंधने सत्तास्थान ८ (९३-९२-८९-८८-८०-७९-७६-७५) तेमां पहेला चार सत्नास्थान उपशमश्रेणिवाळाने अथवा क्षपकने ज्यांसुधी नामकर्मनी १३ प्रकृति खपावी न होय त्यासुधी. १३ प्रकृति खपावे त्यारे पाछला चार सत्तास्थान. कुल सत्तास्थान ८. अबंधक संज्ञी पर्याप्तने सत्तास्थान ८ उपर कह्या ते ज. तेमां पहेला चार अग्यारमे गुणस्थाने अने पाछला चार बारमे गुणस्थाने. कुल ८. कुल संज्ञी पर्याप्ताने सत्तास्थान २०८ (२६-३०-३०-१९-४४-४२-१-८-८) द्रव्यमनने लइने केवळीने पण संज्ञी गणीए तो केवळी आश्री २६ सत्तास्थान वधे. - ते आ प्रमाणे.केवळीने १० उदयस्थान–२०--२१-२६-२७-२८-२९-३०--३१-९-८. २०-२६-२८ ना उदयमां सत्तास्थान बब्बे-७९--७५. २१-.२७ ना उदयमां बे बे सत्तास्थान ८०-७६. २९ ना उदयमा ४ सत्तास्थान-८०-७६-७९-७५. कारण के २९ नो उदय तीर्थकर अतीर्थकर बन्नेने होवाथी बन्नेना बेबे सत्तास्थान. तेथी कुल ४. ३० ना उदयमां पण उपर प्रमाणे ४. ३१ ना उदयमां सत्तास्थान २ (८०-७६). ९ ना उदयमां सत्तास्थान ३ (८०-७६-९). तेमां पहेला बे तीर्थकर अयोगी . केवळीने द्विचरम समय सुधी. चरम समये ९. ८ ना उदयमांत्रण सत्तास्थान (७९--७५-८). ते अतीर्थंकर आश्री उपर प्रमाणे समजवा. कुल केवळी आश्री सत्तास्थानना भंग २६. (२-२-२--२-२-४-४-२--३-३). केवळीने संज्ञी गणतां कुल संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त आश्री सत्तास्थानना भंग २३४. जीवस्थान आश्री संवेध संपूर्ण. Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१७९] गाथा ४० गुणस्थाने कर्म प्रकृतिना भंग. ज्ञानावरणीय तथा अंतराय आश्री पहेलाथी दशमा गुणस्थान सुधी पांच विध बंध, पांच विध उदय, पांच विध सत्ता. त्यार पछी ११-१२ मे बंधनो विच्छेद होवाथी पांचविध ऊदय, पांचविध सत्ता, त्यार पछी ऊदय अने सत्तानो पण छेद जाणवो. दर्शनावरणीय कर्म. - पहेले बीजे गुणस्थाने— ९ विधबंध, ४ - ५ विध उदय, ९नी सत्ता. तेना भंग २. गाथा ४१. त्रीजाथी सातमा सुधी बंधमांथी त्रण निद्रानो क्षय. तेथी ६ विध बंध, ४-५ विध ऊदय, ९ विध सत्ता. अपूर्वकरणनो प्रथमनो संख्यातमो भाग गये छते रहेली बे निद्रानो पण बंधमांथी विच्छेद थाय. तेथी ८- ९-१० मे गुणस्थाने ४ विध बंध, ४-५ विध उदय, ९ विध सत्ता. आ उपशमश्रेणि आश्री समजवुं क्षपकश्रेणि आश्री ८- ९-१० मे गुणस्थाने ५ विध उदय नहीं, अने दशमे ९ विध सत्ता नहीं. क्षपकाळाने अनिवृत्तिबादरनो घणो भाग गये छते अने संख्यातमो भाग रहे छते स्त्यानर्द्धि त्रिकनो सत्तामांथी क्षय थाय छे. तेथी नवमाने अंते तथा दशमे गुणस्थाने छ विध सत्ता होय. अने क्षपकने अत्यंत विशुद्धि होवाथी निद्रानो उदय न होय. जेथी ४ विध उदय होय. गाथा ४२ . अग्यार मे बंधाभाव होवाथी ४-५ विश्व उदय, ९ विध संत्ता. उपशांतमोहवाळा अत्यंत विशुद्ध न होवाथी तेने निद्राद्विकना उदयनो संभव छे. बारमे ( क्षपकमोहे ) ४ विध उदय, ६ विध सत्ता. आ विकल्प बारमाना द्विचरम समये सुधी. चरम समये वे निद्रानो पण सत्तामाथी क्षय थवाथी ४ विध उदय, ४ विध सत्ता. पछी उदय अने सत्तामांथी तद्दन क्षय थाय. वेदनीयकर्म पहेलाथी छट्टा गुणस्थान सुधी ४ विकल्प. - १ असातानो बंध, असातानी उदय, २ असातानो बंध, सातानी उदय, असातानो उदय, ३ सातानो बंध, ४ सातानो बंध, सातानो उदय, सातमाथी तेरमा सुधी बीजो अने चोथो वे विकल्प तेमने असातानो बंध न होय. बनी सत्ता. बन्नेनी सत्ता. बनेनी सत्ता. बन्नेनी सत्ता. Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८०] चौदमे गुणस्थाने ४ भंग. ( त्यां बंधनो अभाव छे.) १ असातानो उदय, बन्नेनी सत्ता. १ सात्तानो उदय, बन्नेनी सत्ता. आ बे भंग द्विचरम समय सुधी अने द्विचरम समये जो सातानो क्षय करे तो३ असातानो उदय, असातानी सत्ता. अने असातानो क्षय करे तो४ सातानो उदय, सातानी सत्ता. पछी सर्वथा क्षय. गोत्र कर्म पहेले गुणस्थाने ५ भंग.~ १ नीचनो बंध, नीचनो उदय, नीचनी सत्ता. आ भंग तेजो वायुमां तथा त्यांथी नीकळ्या पछी थोडा काळ सुधी होय. २ नीचनो बंध, नीचनो उदय, बन्नेनी सत्ता. ३ नीचनो बंध, उंचनो उदय, बन्नेनी सत्ता. ४ उंचनो बंध, नीचनो उदय, बन्नेनी सत्ता. ५ उंचनो बंध, उंचनो उदय, बन्नेनी सत्ता. बीजे गुणस्थाने पाछला ४ भंग. (तेजो वायुने आ गुणस्थाननो अभाव होवाथी). श्रीजे, चोथे, पांचमे गुणस्थाने चोथो अने पांचमो ए बे भंग. केमके तेमने नीच गोत्रना बंधनो अभाव छे. कोइ आचार्य पांचमे गुणस्थाने पांचमो एक ज विकल्प कहे छे. ६-७-८-९-१० मे गुणस्थाने केवळ पांचमो भंग. ११-१२-१३ मे बंधाभाव होवाथी छटो विकल्प. ६ उच्चनो उदय, बनेनी सत्ता. १४ मे गुणस्थाने उपरनो विकल्प द्विचरम समय सुधी. द्विचरमे सत्तामाथी नीचनो क्षय थाय तेथी त्यां ७ मो विकल्प ७ उच्चनो उदय, उच्चनी सत्ता. आयु कर्मना भंग २८. (५ नारकी आश्री, ९ तिर्यच आश्री, ९ मनुष्य आश्री, ५ देव आश्री. आर्नु विव रण अगाउ आवेल छे.) मिथ्यात्वी चारे गतिमा होवाथी ते गुणस्थाने विकल्प २८. बीजे गुणस्थाने विकल्प २६. सासादने रहेलो मनुष्य तथा तियच नरकायु न बांधे तेथी आयुबंध काळे ते वे गतिमां बे भंग ओछा थाय. Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८१] जे गुणस्थाने विकल्प १६० त्रीजे आयुबंध थतो नथी. तेथी आयुबंध काळना नरक आश्री २, तिर्यच आश्री ४, मनुष्य आश्री ४, देव आश्री २, आ १२ भंग त्यां न लाभे. चोथे गुणस्थाने विकल्प २०. चोथे वर्तता मनुष्य तथा तिर्येच देवायु ज बांधे. थी तेना बंधकाना अन्य गति आश्री त्रण त्रण भंग बाद करवा. अने नरक तथा देवता चोथे वर्तता मनुष्यायुज बांधे. तेथी तेना बंधकाळनो तिर्येच आश्री एक एक भंग बाद करवो. कुल ८ जतां बाकी भंग २०. पांच मे गुणस्थाने विकल्प १२ ( पांचमुं मनुष्य तिर्यचने ज होय. ) ते देवायु ज बांधे छे तेथी बंध अगाउ एक एक, बंध समये पण एक एक, अने बंधोतर काळे चार चार. कुल १२ भंग. चार गतिमांथी कोइ अन्य गतिनुं आयु बांध्या पछी देशविरति पामनारनी अपेक्षाए बंधोतरना चार चार भंग लाभे. छठे तथा सातमे गुणस्थाने विकल्प ६. ( ए गुणस्थान मनुष्य आश्री ज छे. ) तेथी बंध अगाउ १, बंध काळे १, बंधोत्तर काळे उपर कहेली युक्ति प्रमाणे ४, कुल भंग ६. ८- ९-१०-११ मे गुणस्थाने उपशमश्रेणि आश्री विकल्प २. मनुष्यायु उदय, देव मनुष्यायु सत्ता. (बंधोत्तर काळे). १ मनुष्यायु उदय, मनुष्यायु सत्ता. (बंधथी पूर्वे). आ चार गुणस्थाने तो आयुबंध नथी. पण पूर्व बद्धायु उपशमश्रेणि मांडे छे. ते पण देवायु बांधेल होय तो ज. तेथी उपर प्रमाणे वे भंग. अने पूर्वबद्धायुarot क्षपकश्रेणि मांडतो नथी. तेथी क्षपक आश्री ८-९-१०-११-१२१३-१४ ए सर्वे गुणस्थाने एकज भंग मनुष्यायुउदय, मनुष्यायु सचा. पछी सर्वथा क्षय. कुल भंग १२५ थया. (२७-२६-१६-२०-१२-१२-४-७) मोहनी कर्म. गाथा ४३. चं स्थान पहेलाथी आठमा सुधी एक एक. पहेले २२, बीजे २१, बीजे, चोथे, १७, पांचमे १३, छट्ठे, सातमे, आठमे ९. आनो विस्तार प्रथम करेलो छे, विशेष एटलं के प्रमत्त गुणस्थानके अरति शोकनो बंध विच्छेद थवाथी सातमे आठमे बंध तो नवनो होय. पण तेमां विकल्प एक ज. बे नहीं. नवमे गुणस्थाने बंधस्थान ५, ४, ३, २, १. तथा दशमा गुणस्थानथी बंधनो विच्छेद. Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८२] उदयस्थान. २२ ना बंधवाळा मिथ्यात्वीने उदयस्थान ४ (७-८- ९-१० ). १ मिथ्यात्व, ३ अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान अने संज्वलन ए त्रण जातिनो कषाय, १ त्रणमांथी १ वेद, २ युगलमांथी एक युगल. गाथा ४४. आ सातना उदयमां ४ कषाय अने त्रण वेदे गुणतां १२. तेने २ युगले गुणतां चोवीशी १ थाय. ७ मां अनंतानुबंधी कषाय, अथवा भय, अथवा जुगुप्सा नाखतां उदय ८ नो, तेन चोवीशी ३. ७ मां अनंतानुबंधी अने भय, अनंतानुबंधी अने जुगुप्सा, अथवा भय अने जुगुप्सा नांखतां ९ नो उदय. तेनी चोवीशी ३. ७ मां ते त्रणे नाखतां १० नो उदय. तेनी चोवीशी १. कुल पहेले गुणस्थाने चोवीशी ८ थाय. गुणस्थाने उदयस्थान ३. (७-८-९). ४ चार जातिनो एक एक कषाय, १ माथी एक वेद ७ ना उदयमां कुल चोवीशी १. ७ मां भय के जुगुप्सा नाखतां ८ नो उदय तेनी चोवीशी २. २ एक युगल. ७ मां भय अने जुगुप्सा नाखतां ९ नो उदय तेनी चोवीशी १. कुल बीजे गुणस्थाने चोवीशी ४. जे गुणस्थाने उदयस्थान ३ (७-८-९). ३ त्रण जातिनो एक एक कषाय, १ त्रणमांथी एक वेद, २ युगल, १ मिश्रमोहनी. ७ ना उदयमां चोवीशी १. ७ मां भय के जुगुप्सा नाखतां ८ ना उदयभां चोवीशी २. ७ मां भय जुगुप्सा बन्ने नाखतां ९ ना उदयमां चोवीशी १. कुल बीजे गुणस्थाने चोवीशी ४. चोथे गुणस्थाने उदयस्थान ४ (६-७-८-९), ३ त्रण जातिनो एक एक कषाय, १ त्रणमांथी एक वेद, २ बेमांधी एक युगल. आ ६ नो उदय क्षायिक के उपशमिकने होय. तेनी चोवीशी १. ६ मां भय के जुगुप्सा के समकितमोहनी नाखतां ७ ना उदयमां चोवीशी ३. ६ मां भय जुगुप्सा, के भय समकित मोहनी, के जुगुप्सा समकितमोहनी नाखतां ८ ना उदयमां चोवीशी ३. ६ मां भय, जुगुप्सा अने चोवीशी १. समकित मोहनी ए त्रणे नाखतां ९ ना उदयमां Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८३] ___ कुल चोथे गुणस्थाने चोवीशी ८. पांचमे गुणस्थाने उदयस्थान ४ (५-६-७-८). २ बे जातिना कषाय, १ वेद, २ युगल एक. आ ५ नो उदय क्षायिक के उपशम समकितवाळा देशविरतिने होय. तेनी चोवीशी १. ५ मां भय, जुगुप्सा के वेदक (समकित मोहनी) नाखतां ६. तेनी चोवीशी ३. ५ मां त्रणमांथी बे नाखतां ७. तेनी चोवीशी ३. ५मांत्रणे नाखतां ८. तेनी चोवीशी १. ___ कुल पांचमे गुणस्थाने चोवीशी ८. गाथा ४५. छठे सातमे गुणस्थाने ४-४ उदयस्थान (४-५-६-७). श्रेणि न मांडे त्यांसुधी क्षयोपशम भावनी ज विरति होवाथी छठा सातमावाळा क्षयोपशम विरति कहेवाय छे. . १ एक जातिनो कषाय, १ एक वेद, २ एक युगल. आ ४ ना उदयमां चोवीशी १. क्षायिक ने उपशम समकितीने होय. ४ ना उदयमां भय, जुगुप्सा के वेदक नाखतां पांचमां चोवीशी ३. ४ मां त्रणमांथी बब्बे नाखतां ६. तेनी चोवीशी ३. ४ मांत्रणे नाखतां ७ तेनी चोवीशी १. __ कुल छठे अने सातमे गुणस्थाने चोवीशी ८-८. आठमे गुणस्थाने उदयस्थान ३ (४-५-६). १ एक जातिनो कषाय, १ वेद, २ एक युगल. आ ४ ना उदयमां चोवीशी १. ४ मां भय के जुगुप्सा नाखतां ५. तेनी चोवीशी २. ४ मां भय जुगुप्सा बन्ने नाखतां ६ तेनी चोवीशी १. कुल आठमे गुणस्थाने चोवीशी ४ । नवमे गुणस्थाने उदयस्थान २ (२-१). १ कषायोदय, १ वेदोदय होय त्यांसुधी एक वेद. तेमां चार कषायने त्रण वेद साथे गुणतां भंग १२ वेदनो क्षय थये कषायनो ज उदय तेना भेद ४-३-२-१ एम १० भेद थाय बंधस्थान ४ आश्री. गाथा ४६. दशमे गुणस्थाने बंधविच्छेदे किट्टीकृत लोभनो उदय होय. तेथी १ना उदय मां भंग १. कुल १ ना उदयमां भंग ५. ११-१२-१३-१४ गुणस्थानवाळा मोहनीना उदय रहित छे. आ उदयस्थानना भंग पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवा. Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८४] गाथा ४७ अहीं मिथ्यादृष्टयादिने आश्रीने १० थी १ सुधीना उदयस्थानना भंगनी संख्या कहे छे१ दशना उदयमां पहेले ज गुणस्थाने. ६ नवना उदयमा पहेले ३, बीजे, त्रीजे अने चोथे एक एक ११ आठना उदयमां पहेले चोथे त्रण त्रण, बीजे त्रीजे बब्बे, पांचमे एक. ११ सातना उदयमां १-२-३-६-७ मे एक एक, ४-५ मे त्रण त्रण. ११ छना उदयमां १-८ मे एक एक, ५-६-७ मे त्रण त्रण. ९ पांचना उदयमां ५ मे एक, ६-७ मे त्रण त्रण, ८ मे बे. ३ चारना उदयमां ६-७-८ मे एक एक. बेना उदयमां भांगा १२. एकना उदयमां भांगा ५. गाथा ४८. उपर प्रमाणे ५२ चोवीशी थवाथी तेने चोवीशे गुणतां १२४८ मां द्विकोदयना १२ तथा एकोदयना ५ मळी १७ भेळवतां १२६५ भंग थाय. उपर कहेली चोवीशी विगेरे भंगमां जेटली जेटली प्रकृतिओ उदयमां आवे तेने पद कहीए. तेनी संख्या कहे छे.१०x१=१० ८x११=८८ ६४११=६६ ४ ३=१२ ९४६=५४ ७४११=७७ ५४ ९=४५ ३५२ आ ३५२ ने चोवीशे गुणतां ८४४८ तेमां १२ द्विकोदयना पद २४, अने पांच एकोदयनां पद ५ कुल २९ नाखता ८४७७ थाय. आटली प्रकृतिए मोह पामेलो प्राणी संसारमा परिभ्रमण कर्या करे छे. गुणस्थान आश्री उदय चोवीशी नीचे प्रमाणे८ मिथ्यादृष्टि गुणस्थाने, ४ सास्वादने, ४ मिश्रे, ८ अविरते, ८ देशविरते, ८ प्रमत्ते, ८ अप्रमत्ते, ४ अपूर्वकरणे, अनिवृत्तिबादरे द्विकोदय भांगा १२, एकोदयना भांगा ४, सूक्ष्म संपराये मांगो १. गाथा ४९. उपर जणावेला उदयस्थाने योग कहे छे. ४ मनोयोग, ४ वचनयोग, १ औदारिक काययोग, कुल ९ योगमां १२६५ भंग __ लाभे.(पहेला गुणस्थानथी दशमा सुधी.)तेथी १२६५ ने नवे गुणतां ११३८५. वैक्रियमिश्र, औदारिकमिश्र अने कार्मण काययोगमा आठना उदयनी १, ९ ना उदयनी २, १० ना उदयनी १, मळी चार चार चोवीशी (कुल. १२) पहेले गुणस्थाने लाभे. अनंतानुबंधीना उदय विनानी चार न लाभे. अनंतानुबंधीना उदय विना मिथ्यादृष्टि काळ करता न होवाथी. कार्मण Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८५] काययोग अपांतराल गतिमां होय अने वैक्रियमिश्र औदारिकमिश्र भवांतरमां प्रथम उत्पन्न थतां होय. अहीं वैक्रियमिश्र भवांतरे उत्पन्न थतां कह्यो, पण तिर्यंच मनुष्यने वैक्रिय करतां मध्यमां पण होय परंतु बाहुल्यता आश्री ए कथन सभजवू (नारकी अने देवता सर्वने उत्पन्न थतां होवाथी). मिथ्यादृष्टिने वैक्रियकाययोगे आठे चोवीशी होय. कुल पहेले गुणस्थाने चोवीशी २० होय. सासादने ९ योग आश्री तो उपर कहेल छे. बाकीना कार्मण काययोगे, वैक्रिय काययोगे, अने औदारिकमिश्रे चार चार चोवीशी होवाथी कुल चोवीशी १२ मिश्रे वैक्रिय काययोगे चोवीशी ४. अविरतने वैक्रिय काययोगमां चोवीशी ८. देशविरतने वैक्रिय अने वैक्रियमिश्रमां आठ आठ होवाथी कुल चोवीशी १६. प्रमत्तने वैक्रिय अने वैक्रियमिश्रमां आठ आठ होवाथी कुल चोवीशी १६. अप्रमत्तने वैक्रियमां चोवीशी ८. उपर प्रमाणे ९ योग विना बीजा योगमा ८४ चोवीशी होय. (२०-१२-४-८-१६-१६-८) ८४. आ ८४ ने २४ वडे गुणतां २०१६ थाय. ते पूर्वनी ११३८५ नी राशिमां नाख वाथी कुल १३४०१. हवे सासादने वैक्रियमिश्र योगमां नपुंसक वेदनो उदय न होय, तेने सातनो उदय एकविध, आठनो उदय द्विविध अने नवनो उदय एकविध छे, ते चारविधमां चोवीशीने बदले ४ कषाय, २ वेद अने २ युगल साथे गुणतां १६ भेद थाय. के. मके वैक्रियमिश्र काययोगी नपुंसक वेदीमा सासादननो अभाव छे तेथी.. अविरत सम्यग्दृष्टिने कार्मण काययोगमां तथा वैक्रियमिश्र योगमां स्त्रीवेदनो उदय न होय. वैक्रिय काययोगी स्त्रीवेदीमा अविरत सम्यग्दृष्टिने उपजवानो अभाव होवाथी आ वचन पण बाहुल्यता आश्री जाणवू. बाकी कदाजित् तो स्त्रीवेदीमां पण अविरत समकितदृष्टिने उपजवानो संभव छे. स्त्रीवेद विना चोथा गुणस्थानना आठे उदय प्रकारमा भंग १६-१६ थाय. प्रमत संयतने आहारक अने आहारकमिश्रमां तथा अप्रमत्तने आहारकमां स्त्रीवेदनो उदय न होय. कारणके आहारक शक्ति चौद पूर्वीने होय छे. अने स्त्रीने चौद पूर्वनो अभाव छे. अहीं पण भंग १६-१६ थाय छे. आ प्रमाणे ४४ (४-१६-१६-८) योगविकल्प एक एक वेद विना होवाथी १६-१६ भंग (षोडशक)वाळा थया. तेथी ४४ ने १६ साथे गुणतां ७०४ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८६] थाय ते पूर्वनी (१३४०१ ) राशिमां नाखवाथी कुल १४१०५ भंग थया. ed अविरत समकित ने औदारिकमिश्रमां पुंवेदनो उदय ज होय. केमके स्त्रीवेदमां अने नपुंसक वेदमां उपजवानो तेने अभाव छे. ( आ वचन पण बहुलता श्री जाणवुं. केमके मल्लीनाथ विगेरेने स्त्रीवेदमां उत्पादनो संभव छे ) तेथी औदारिकमिश्रे एक ज वेद गणतां ४ कषाय अने २ युगलसाथे आठ आठ भंग (अष्टक) अष्टविध उदय प्रकारे होय. तेना भंग ६४ थाय. ते पूर्वनी (१४१०५) राशिमां नाखवाथी कुल भंग १४१६९ (११३८६-२०-१६ ७०४ - ६४) योग आश्री भंग थाय. हवे उदय आश्री पद संख्या कहे छे पूर्वे जे पद संख्या करी छे तेमां १०-९-८ विगेरेना उदयने एकंदर करी गुण्या छे, तेम आ दरेक गुणस्थाने गुणवा, एटले पहेले गुणस्थाने ६८ नीचे प्रमाणे १०×१=१०, ९×३=२७, ८×३= २४, ७×१=७. एज प्रमाणे बीजे गुणस्थाने ३२– ९×१=९, ८x२=१६, ७×१=७ एज प्रमाणे त्रीजे ३२, चोथे ६०, पांचमे ५२, छट्ठे ४४, सातमे ४४, आठमे २० कुल ३५२ ने २४ साथै गुणतां ८४४८ तेमां नवमाना द्विकोदयना १२x२= २४, अने नवमा दशमाना एकोदयना ५, कुल २९ नाखतां ८४७७ थया. तेने ४ मनयोग, ४ वचनयोग, १ औदारिक काययोग, ए९ साथे गुणतां कुल ७६२९३. वैक्रिय काययोगमां मिथ्यादृष्टिने उपर प्रमाणे ६८ अने वैक्रियमिश्र, औदारिकमिश्र, अने कार्मण काययोगमां प्रत्येके ३६- ३६ थाय कुल १०८, ( १०×१==१०, ९×२=१८, ८x१=८,=३६. ) अनंतानुबंधी रहित चोवीशीओ न पामवाथी. सासादनने कार्मण काययोग, वैक्रिय काययोग अने औदारिक मिश्रमां उपर प्रमाणे ३२ - ३२ होवाथी कुल ९६. मिश्र ने वैयि काययोगमां पूर्ववत् ३२. अविरतने वैक्रिय काययोगमां पूर्ववत् ६० देशविरतने वैक्रिय अने वैक्रियमिश्रमां पूर्ववत् ५२-५२ कुल १०४. प्रमत्तने वैक्रिय अने वैक्रियमिश्रमां पूर्ववत् ४४-४४-कुल ८८. अप्रमतने वैक्रियमां पूर्ववत् ४४. कुल ६८-१०८- ९६-३२-६०-१०४-८८ - ४४ सर्व मळी ६००. Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ह [१८७] आ ६०० ने २४ वडे गुणतां १४४०० ते पूर्वराशिमां नाखवा. सासादनने वैक्रियमिश्रमां ३२ पद. नपुंसकवेद विना. अविरतने कार्मण अने वैक्रियमिश्रमा ६०-६० पद. स्त्रीवेद विना. प्रमत्त संयतने आहारक अने आहारक मिश्रमां ४४-४४ पद. स्त्रीवेद विना, अप्रमत्तने आहारकमां ४४ पद. स्त्रीवेद विना. ' कुल ३२-१२०-८८-४४ मळी २८४ तेने एक एक वेद विना १६ - १६ प्रकृतिए Mai ४५४४ थाय ते पूर्वराशिमां नाखवा. अविरतने औदारिक मिश्रमा ६० पद मात्र पुंवेदे होवाथी ८-८ प्रकृतिवडे गुणतां ४८० थाय. ते पण पूर्वराशिमां नाखवा. कुल ७६२९३-१४४००-४५४४-४८० मळी ९५७१७. आटलां उदय आश्री योग विचारतां पदो थाय. sa मोहनी कर्मना उदयना भंग उपयोग साथे गणावे छे.पहेले, बीजे गुणस्थाने उपयोग ५ तेमां ३ अज्ञान, २ दर्शन. त्रीजे, चोथे, पांचमे उपयोग ६ तेमां ३ ज्ञान, ३ दर्शन. ६-७-८-९-१० ए गुणस्थाने उपयोग ७ तेमां ४ ज्ञान ३ दर्शन.. उदयस्थानना विकल्प साथे तेने गुणवा पहेले गुणस्थाने उदयस्थाननी ८ चोवीशी अने बीजे गुणस्थाने उदयस्थाननी ४ चोवीशी तेने पांचे गुणतां कुल उदय भांगानी चोवीशी ६० : थाय. त्री गुणस्थाने ४, चोथे ८, पांचमे ८, कुल २० तेने ६ साथे गुणतां १२० छडे ८, सातमे ८, आठमे ४, कुल २० तेने ७ वडे गुणतां १४०. कुल आठे गुणस्थाने थईने ३२० तेमां प्रत्येके चोवीशी लभ्य होवाथी तेने २४ वडे गुणतां ७६८०. द्विकोदय भांगा १२ अने एकोदयना भंग ५ कुल १७ ने ७ उपयोगे गुणतां ११९ पूर्वराशिमां नाखतां ७७९९. कोई आचार्य मिश्रमा ५ उपयोग कहे छे. तेने मते ४ भंग घटे एटले तेनी चोवीशी करतां ९६ घटे जेथी मूळ भंग ३१६ चोवीशीवाळा ७५८४ थाय अने कुल ७७०३ थाय. हवे तेनी पद संख्या कहे छे. - पलाना ६८, बीजाना ३२, मळी कुल १०० तेने पांचे गुण्या, एटले ५०० थया. बीजाना ३२, चोथाना ६०, पांचमाना ५२ कुल १४४ गुण्या ६ - थया ८६४, Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८८] छठाना ४४, सातमाना ४४, आठमाना २०, कुल १०८ गुण्या ७-थया ७५६. कुल पद संख्या २१२० तेने चोवीशे गुणतां ५०८८० तेमां द्विकोदयना २४, ___एकोदयना ५ कुल २९ तेने साते गुण्या एटले थया २०३ कुल ५१०८३. मतांतरे त्रीजे पांच उपयोग गुणतां मूळ पदना ३२ ने २४ वडे गुणतां ७६८ घटे एटले ५०३१५ थाय. हवे लेश्या आश्री उदयस्थान कहे छे.१-२-३-४ गुणस्थाने छ छ लेश्या होय. ५-६-७ ए गुणस्थाने त्रण त्रण लेश्या (शुभ). ८ मा गुणस्थानथी एक शुक्ल लेश्या ज होय. हवे उदयस्थानना प्रकार साथे गुणवा. पहेले ८, बीजे ४, त्रीजे ४, चोथे ८ कुल २४ चोवीशी, तेने ६ साथे गुणतां १४४ चोवीशी थई. पांचमे ८, छठे ८, सातमे ८ कुल २४ चोवीशी तेने गुण्या ३ थया ७२. आठमे ४ चोवीशी तेने गुण्या १ थया ४. कुल उदयस्थाने लेश्याना प्रकार २२० तेने २४ वडे गुणतां ५२८० थया. तेमां द्विकोदयना १२ अने एकोदयना ५ कुल १७ भेळवतां ५२९७. हवे लेश्यागुणित पदवृंद कहे छे.पहेले ६८, बीजे ३२, त्रीजे ३२, चोथे ६०, कुल १९२ तेने छए गुणतां ११५२. पांचमे ५२, छठे ४४, सातमे ४४, कुल १४० तेने गुण्या ३ थया ४२०. आठमे २० तेने गुण्या १ थया २०. कुल पदवृंद १५९२ तेने चोवीशे गुणतां ३८२०८ थया. तेमां द्विकोदयना २४ अने एकोदयना ५ कुल २९ नाखवाथी ३८२३७ थया. गाथा ५०. उदयस्थान योग, उपयोग, लेश्या, सहित कह्या. हवे सत्तास्थान कहे छे. पहेले गुणस्थाने सत्तास्थान ३ (२८-२७-२६). बीजे सत्तास्थान १ (२८). त्रीजे सत्तास्थान ३ (२८-२७-२४). ४-५-६-७ ए सत्तास्थान ५ (२८-२४--२३-२२-२१). ८ मे सत्तास्थान ३ (२८-२४-२१) तेमां पहेला २ उपशमश्रेणिमां अने त्रीर्जु क्षायिक समकित दृष्टिने बंने श्रेणिमां. Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१८९] ९ मे सत्तास्थान १४(२८-२४-२१-१३-१२-११-५-४-३-२-१) तेमा पहेला बे उपशमश्रेणिमां. २१ नुं सत्तास्थान क्षायिक समकिती उपशमशेणिगतने अथवा कषायाष्टक क्षय न करता सुधी क्षपक वाळाने. कपायाष्टक क्षय करतां १३ नुं सत्तास्थान. नपुंसक वेदनो क्षय करतां १२ नु. स्त्रीवेदना क्षये हास्यादि छना क्षये पुरुषवेद क्षये संज्वलन क्रोध क्षये ३ संज्वलन मान क्षये संज्वलन माया क्षये १र्नु. १० मे सत्तास्थान ४ (२८-२४-२१-१) तेमां पहेला त्रण उपशममा अने छेल्लु क्षपकमां. ११ मे सत्तास्थान ३ (२८-२४-२१) उपशमश्रेणिवाळाने. ه م مه سه له 6.61 61 6.64.6 हवे मोहनी कर्मना बंध, उदय अने सत्तास्थाननो संवेध कहे छे.__ पहेले गुणस्थाने २२ ना बंधमां उदयस्थान ४ (७-८-९-१०). ७ ना उदयमा १ सत्तास्थान-२८ नु. ९-९-१. ना उदयमांत्रण त्रण सत्तास्थान-२८-२७-२६. कुल सचास्थान १०. बीजे ११ ना बंधमां ३ उदयस्थान-७-८-९. . तेमां प्रत्येके एक सत्तास्थान-२८ नु. कुल ३ सत्तास्थान. बीजे १७ ना बंधमां ३ उदयस्थान-७-८-९. प्रत्येक उदये त्रण त्रण सत्तास्थान-२८-२७-२४ कुल ९ सत्तास्थान. चोथे १७ ना बंधमां ४ उदयस्थान--६-७-८-९. ६ ना उदयमा ३ सचास्थान-२८-२४-२१. ७-८ ना उदयमा ५ सत्तास्थान-२८-२४-२३-२२-२१. ९ ना उदयमा ४ सचास्थान-२८-२४-२३-२२. कुल सत्तास्थान १७, पांचमे १३ ना बंधमां ४ उदयस्थान-५-६-७-८, ५ ना उदयमा ३ सचास्थान--२८-२४-२१. ६-७ ना उदयमा ५ सचास्थान-२८-२४-२३-२२-२१. Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ ना उदयमा ४ सत्तास्थान-२८-२४-२३-२२. कुल सत्तास्थान १७. छट्टे गुणरथाने ९ ना बंधमां ४ उदयस्थान-४-५--६--७. ४ ना उदयमा ३ सत्तास्थान-२८-२४-२१. ५-६ ना उदयमा ५ सत्तास्थान-२८-२४--२३-२२-२१. ७ ना उदयमा ४ सत्तास्थान-२८-२४-२३-२२. कुल सत्तास्थान १७. सातमे छठा प्रमाणे बंध, उदय होवाथी सत्तास्थान १७ जाणवां. आठमे ९ ना बंधमां ३ उदयस्थान,-४-५-६. दरेकमा ३ सत्तास्थान-२८-२४-२१. कुल सत्तास्थान ९, नवमे ५ बंधस्थान-५-४-३-२-१. ५ना बंधमां बेना उदयमां ६ सत्तास्थान-२८-२४-२१-१३-१२-११. ४ ना बंधमां १ ना उदयमां ६ सत्तास्थान-२८-२४-२१-११-५--४. ३ ना बंधमां १ ना उदयमा ५ सत्तास्थान-२८-२४-२१-४-३. २ ना बंधमां १ ना उदयमा ५ सत्तास्थान-२८--२४-२१--३-.२. १ ना बंधमां १ ना उदया ५ सत्तास्थान-२८-२४-२१-२-१. कुल सत्तास्थान २७. दशमे अबंधकपणामां १ ना उदयमा ४ सत्तास्थान-२८-२४-२१-१. अग्यारमे बंध तथा उदय नथी. ३ सत्तास्थान-२८-२४-२१.. सर्व मळी सत्तास्थान, १३३.. आनी विशेष व्याख्या पूर्वे कहेली छे ते समजवी. हवे चौद गुणस्थाने नामकर्म. गाथा ५१. पहेले गुणस्थाने ६ बंधस्थान–२३-२५-२६-२८-२९-३०. अपर्याप्त एकेंद्रिय प्रायोग्य बांधतां २३ नो बंध. तेमां बादर, सूक्ष्म, प्रत्येक अने साधारण रूप ४ भंग. .. पर्याप्त एकेंद्रिय तथा अपर्याप्त विकलेंद्रिय, तिर्यच पंचेंद्रिय अने मनुष्य योग्य बांधतां २५ नो बंध. तेमां पर्याप्त एकेंद्रिय आश्री बंधना भंग २०. बाकीना पांचमां एक एक भंग कुल भंग २५. पर्याप्त एकेंद्रिय प्रायोग्य बांधतां २६ नो बंध तेमां भंग १६. Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९१] देव नरकगति प्रायोग्य बांधतां २८ नो बंध तेमां देवगति आश्री भंग ८, अने नरकगति आश्री १ कुल भंग ९. गर्याप्त विकलेंद्रिय, तिर्यक् पंचेंद्रिय, तथा मनुष्य आश्री बांधतां २९ नो बंध, तेमां विकलेंद्रिय आश्री बांधतां ८-८-८, तिर्यच ने मनुष्य पंचेंद्रिय आश्री बांधतां ४६०८-४६०८ भंग. कुल भंग ९२४० देवगति प्रायोग्य तीर्थंकर नाम सहित २९ बांधे छे, पण ते पहेले गुणस्थाने न होय. पर्याप्त विकलेंद्रियने तिर्यंच पंचें द्रय प्रायोग्य बांधता ३० नो बंध तेमां विकलेंद्रिय आश्री ८-८-८ भंग, तिर्यंच पंचेंद्रिय आश्री ४६०८ कुल ४६३२. कुल छ बंधस्थाने थईने मिथ्यात्व गुणस्थाने भंग १३९२६. (बंने प्रकारे ३० नो बंध छे ते अहीं न लाभे.) पहेले गुणस्थाने ९ उदयस्थाने २१-२४-२५-२६-२७-२८-२९-३०-३१. उदयस्थान विवरण पूर्व प्रमाणे जाणवू. तेमां फक्त आहारक वैक्रिय संयतना ने ... केवळीना उदय भंग न गणवा. बाकी पहेले गुणस्थाने उदय भंग ७७७३. २१ ना उदयमा ४१ ते पूर्वे कहेला ४२ मांथी एक तीर्थकर संबंधी बाद करतां ४१. २४ ना उदयमां ११ ते एकेंद्रिय आश्री ज छे. २५ ना उदयमा ३२ ते पूर्वे कहेला ३३ मांथी आहारक आश्री १ बाद करतां ३२. २६ ना उदयमां ६०० पूर्ववत.. . २७ ना उदयमा ३१ ते पूर्वे कहेला ३३ मांथी आहारक आश्री संयत तथा केवळी आश्री एक एक जतां बाकी ३१. २८ ना उदयभां ११९९ ते पूर्व कहेला १२०२ मांथी वैक्रिय संयतनो १, आहा रकना २, कुल ३ जतां ११९९. २९ ना उदये १७८१ ते पूर्वे कहेला १७८५ मांथी वैक्रिय संयतनो १, आहारक ना २, तीर्थकरनो १, कुल ४ जतां १७८१. ३० ना उदयमा २९१४ ते पूर्वे कहेला २९१७ मांथी वैक्रियसंयत, आहारक तथा केवळीनो एक एक-कुल ३ जतां २९१४. ३१ ना उदयमा ११६४ ते पूर्वे कहेला ११६५ मांथी तीर्थकर आश्री १ जतां ११६४. प्रथम गणावेला ७७९१ मांथी उपर प्रमाणे १५ अने २०-८-९ ना उदयनो एक एक कुल १८ जतां कुल उदय भंग ७७७३. पहेले गुणस्थाने ६ सत्तास्थान-९२-८९-८८-८६-८०-७८. ९२ नुं सत्तास्थान चारे गतिमा होय. ....... . . Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९२] ८९ नुं सत्तास्थान पूर्व नरक बद्धायु तीर्थकरने अंतर्मुहूर्त मात्र होय. ८८ नुं सत्तास्थान चारे गतिना मिथ्यात्वीने होय. ८६-८० नुं सत्तास्थान एकेंद्रियमां लाभे. देवगति नरकगति प्रायोग्य वैक्रिय षट्क उद्वलित कयु होय त्यारे, अने एकेंद्रियमांथी नीकळ्या पछी विकलेंद्रियमां तथा तिथंच पंचेंद्रिय मनुष्यमां उपजतां पण सर्व पर्याप्तिए पर्याप्त थया पछी अंतर्मुहूर्त सुधी लाभे. पछी तो जरुर वैक्रिय शरीरादिना बंधनो संभव होवाथी न पामे. ७८ नुं सत्तास्थान तेजो वायुने मनुष्यद्विक उद्वलित कर्या पछी लाभे. अने तेजो वायुमांथी विकलेंद्रियमां तथा तिर्यंच पंचेंद्रियमा उपज्या पछीपण अंत मुहूर्त सुधी लाभे. पछी तो जरूर मनुष्यद्विकना बंधनो संभव छे. पहेले गुणस्थाने बंध, उदय अने सत्तास्थान कयां हवे तेनो संवेध कहे छे.२३ बांधतां ९ उदयस्थान. पण तेमां २१-२५-२७-२८-२९-३० ए छ उदय स्थानमां देवगति अने नरकगति आश्री जे भंग छे ते न संभवे, कारणके २३ नो बंध अपर्याप्त एकेंद्रिय आश्री छे ने देवता अपर्याप्त एकेंद्रियमां उपजता नथी, अने नारकी तो बिलकुल एकेंद्रियमां जता ज नथी. तेथी ते आश्री ६० भंग न लाभे. बाकी ७७१३ लाभे. २३ ना बंधमां सत्तास्थान ५. ९२-८८-८६-८०--७८. २१-२४०-२५-२६ ना उदयमां पांचे सत्तास्थान. पण एटलं विशेष के २५ ना उदयमां तेजो वायुने आश्रीने ७८ नुं सत्तास्थान लाभे अने २६ ना उदयमां तेजो वायुने तथा तेजो वायुमाथी नीकळी विकलेंद्रियमां अने तियेच पंचेंद्रियमा तरतना उपजेला आश्री लाभे. २७-२८-२९-३०-३१ आ पांच उदयमा ७८ विना चार चार सत्तास्थान. कुल २३ ना बंधमां सत्तास्थान ४०. २५-२६ ना बंधमां ए ज प्रमाणे. मात्र तेमां देवता संबंधी उदयस्थानमां वर्ततां पर्याप्त एकेंद्रिय आश्री २५-२६ बांधतां उपर प्रमाणे सत्तास्थान कहेवां. तेमां पण २५ ना बंधमां बादर पर्याप्त प्रत्येकने स्थिरास्थिर, शुभाशुभ, दुर्भग, अनादेय, यश अयशपदे ८ भंग थाय. बाकीना भंग थाय नहीं. कारणके सूक्ष्म साधारण तथा अपर्याप्तमां देवताने उपजवानो अभाव छे. २५-२६ ना बंधमां सत्तास्थान उपर प्रमाणे ४०-४० जाणवा. २८ ना बंधमां बे उदयस्थान-३०-३१. तेमां-- ३० तिर्यंच पंचेंद्रिय तथा मनुष्य आश्री. Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९३] ३१ तिर्यंच पचेंद्रिय आश्री. २८ ना बंधमां सत्तास्थान ४ ( ९२-८९-८८-८६ ). तेमां ३० ना उदयमां चारे सत्तास्थान. तेनी अंदर पूर्वबद्ध नरकायु तीर्थकर नामवाळा आश्री ८९ नुं सत्तास्थान, मनुष्यमां ज. अने बाकीनां त्रण तिर्यंच अने मनुष्य बन्नेमां. ३१ ना उदयमा ८९ विना ३ सत्तास्थान कारण के तीर्थकर नामवाळा तिथंच गतिमां जता नथी. कुल २८ ना बंधमां सत्तास्थान ७. २९ नो बंध देवगति प्रायोग्य छे. ते सिवाय विकलेंद्रिय, तिर्यंच पंचेंद्रिय तथा मनुष्य आश्री २९ बांधतां सामान्ये ९ उदयस्थान अने ६ सत्तास्थान-- (९२-८९-८८-८६-८०-७८) २१ ना उदयमा आ बधां सत्तास्थान पामीए. तेमा ८९ नुं तो तीर्थकर नाम बांधेल पूर्वबद्धायुपणाथी नरकमां जतां अंतर्मुहूर्त मिथ्यात्वे रहे, ते आश्री लाभे. ९२ अने ८८ देव, नारकी, मनुष्य, विकलेंद्रिय, तिर्यच पंचेंद्रिय तथा एकेंद्रिय आश्री लामे. ८६ अने ८० विकलेंद्रिय, तिर्यंच पंचेद्रिय, मनुष्य तथा एकेंद्रिय आश्री लाभे. ७८ एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय तथा तिर्यंच पंचेंद्रिय आश्री लाभे. २४ ना उदयमा ८९ विना पांच सत्तास्थान. ते एकेंद्रिय आश्री ज लाभे. २५ ना उदयमा ६ सत्तास्थान २१ ना उदयवत्. २६ ना उदयमा ७८ विना पांच सत्तास्थान. केमके ८९ नुं सत्तास्थान उपर कह्या प्रमाणे नारकीमा लाभे. अने नारकीने २६ नु उदयस्थान नथी. २७ ना उदयमा ७८ विना पांच सत्तास्थान. तेमां ८९ नुं उपर कह्या प्रमाणे नारकीमां. ९२-८८ देव, नारकी, मनुष्य, तिर्यंच पंचेंद्रिय, एकेंद्रिय अने विकलेंद्रिय आश्री. ८६-८० एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, तिर्यंच पंचेंद्रिय अने मनुष्य आश्री. ७८ नुं सत्तास्थान अहीं न लाभे. कारण के २७ नो उदय तेजो वायु विनाना एकेंद्रिय आतपोद्योतवाळाने तथा नारकीने छे. तेने मनुष्यद्विकनो संभव छे. २८ ना उदयमा उपर प्रमाणे ज पांच सत्तास्थान. तेमा ८९-९२-८८ तो पूर्ववत्. अने ८६-८० विकलेंद्रिय, तिर्यंच पंचेंद्रिय अने मनुष्य आश्री. २९ ना उदयमा ए ज पांच सत्तास्थान... Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९४] ३० ना उदयमां चार सत्तास्थान - ९२-८८-८६-८०. ते विकलेंद्रिय, तिर्यच पंचेंद्रिय तथा मनुष्य आश्री. ८९ नुं सतास्थान नारकीयां लाभे छे. ते ने ३० नु उदयस्थान नथी. तेथी अहीं ते बाद कर्षे छे. ३१ ना उदये पण तेज चार सत्तास्थान. विकलेंद्रिय, तिर्यच पंचेंद्रिय, श्री. सर्व मळी २९ ना बंधमां मिथ्यात्वी आश्री सत्तास्थान ४५. देवगति आश्री २९ नुं बंधस्थान छे. ते आ गुणस्थाने न लाभे. कारण के तीर्थंकर नाम युक्त होय छे, मिध्यात्वे तीर्थंकर नामनो बंध थतो नथी. ३० नो बंध मनुष्य अने देवगति विना बाकी विकलेंद्रिय तिर्यंच पंचेंद्रिय आश्री छे. त्यां ९ उदयस्थान अने ८९ विना पांच सत्तास्थान छे. ८९ नुं अहीं संभवतुं नथी. तेनुं कारण उपर कधुं छे. ८९ नी सत्तावाळाने तिर्यग्गति प्रायोग्य बंधनोज असंभव छे. २१-२४-२५-२६ ना उदयमां पांचे सत्तास्थान पूर्ववत् जाणवां. २७२८-२९-३०-३१ ना उदयमां ७८ सिवाय चार चार सत्तास्थान छे. ७८ वर्जबानुं कारण उपर जणायुं छे. ३० बांधतां मिथ्यादृष्टिने कुल सत्तास्थान ४० थाय. मनुष्य गति प्रायोग्य ३० ना बंधमां तीर्थंकर नाम होवाथी अने देवगति प्रायोग्य ३० मां आहारक ने तीर्थकर नाभ होवाथी ते अहीं न लाभे. कुल २१२ सत्तास्थान थया. वे बीजा गुणस्थान आश्री कहे छे. सासादने बंधस्थान ३ (२८-२९-३०). २८ नो बंध वे प्रकारे छे. - देवगति प्रायोग्य अने नरकगति प्रायोग्य तेमां नरकगति प्रायोग्य अहीं न लाभे. देवगति प्रायोग्य बांधनार तिर्यंच पंचेंद्रियने तथा मनुष्यने आ २८ बांधतां भंग ८. २९ नो बंध एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, तिर्यक् पंचेंद्रिय, मनुष्य, देवता अने नारकीने सासादने वर्ततां तिर्यक् पंचेंद्रिय अने मनुष्य प्रायोग्य थाय. पण ते हुंडक संस्थान अने छेवडुं सघयण न बांधे. तेथी पूर्वे गणाव्या प्रमाणे तिर्यक् पंचेंद्रिय अने मनुष्य बने आश्री ३२०० - ३२०० एटले कुल भंग ६४००. ३० नो बंध एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, तिर्यक् पंचेंद्रिय, मनुष्य, देवता अने नारकी सासादने वर्ततां करे तो तिर्यक् पंचेंद्रिय प्रायोग्य उद्योत नाम सहित ज करे. तेना भंग पूर्ववत् ३२०० थाय. सासादने उदयस्थान ७ (२१-२४-२५-२६-२९-३०-३१), Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९५] २१ नो उदय एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, तिर्यंच पंचेंद्रिय, मनुष्य, तथा देवता आश्री जाणवो. नारकीमा सासादनी उपजतो नथी. तेमां पण एकेंद्रियमा बादर पर्याप्तना यश अयश साथेना २ भंग ज लाभे, बीजा नहीं केमके सूक्ष्म ने अपर्याप्तमां सासादने वर्ततां उपजवान होय नहीं. विकलेंद्रिय, तिथंच पंचेंद्रिय अने मनुष्य आश्री पण अपर्याप्त संबंधी एक एक भंग छे ते न लाभे. एटले विकलेंद्रियना ६, तिथंच पंचेंद्रियनां ८, मनुष्यना ८, देवताना ८, तथा एकद्रियना २, कुल ३२ भेद लाभे. २४ ना उदयमां एकेंद्रिय वादर पर्याप्तना यश अयश साथे २ भंग लाभे, बाकीना नहीं. सूक्ष्ममां, साधारणमां अने तेजो वायुमां सासादनीने उपजवानो अ... भाव छे तेथी. २५ नो उदय देवगतिमां उत्पन्न थवा आश्री ज लाभे. तेना भंग ८. २७ नो उदय विकलेंद्रिय, तिर्यंच पंचेंद्रिय. तथा मनुष्यमां उपजतां लाभे. तेमां पण अपर्याप्त साथेनो एक एक भंग छे ते न लाभे. बाकीना विकलेंद्रियना ६, तियेचना २८८ तथा मनुष्यना २८८. कुल ५८२ भंग लामे. .(२७-२८ नो उदय तो उत्पत्ति पछी अंतर्मुहूर्त जाय त्यारे लाभे छे. सासादन भावतो उत्पत्ति पछी छ आवलिका सुधीज होय छे. तेथी ते बे उदयस्थान अहीं न लाभे.) २९ नो उदय देवता नारकीने पोताना स्थानमा रह्या छता पर्यासपणामां समकित थी प्रच्युत थतां लाभे. तेना देवता आश्री ८, अने नारकी आश्री १. कुल भंग ९ लाभे. ३० नो उदय तिर्यंच अने मनुष्य पर्याप्ताने प्रथम समकितथी प्रच्युत थतां लाभे. तेम ज उत्तर वैक्रिय करतां देवताने लामे, तेना भंग तियच अने मनुष्य ___ आश्री ११५२-११५२, अने देवता आश्री ८. कुल २३१२ भंग लामे. ३१ नो उदय पर्याप्त तिर्यंच पंचेंद्रियने समकितथी पडतां लाभे. तेना भंग ११५२ थाय. कुल सासादने ७ उदयस्थाने भंग ४०९७ (३२-२-८-५८२-९-२३१२-११५२). सासादने सत्तास्थान २ (९२-८८). . ९२ नुं सत्तास्थान आहारक सत्कर्माने उपशमश्रेणिथी पडतां सासादने आवनार आश्री लाभे. ८८ नुं सत्तास्थान चारे गतिमा लाभे. Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९६] हवे तेनो संवेध कहे छे. २८ बांधतां २ उदयस्थान- ३०-३१. २८ नो बंध देवगति विषय ज सासादनने लाभे. कारण के करण अपर्याप्त सासादनी तो देवगति प्रायोग्य बांधता नथी. तेथी अहीं बीजां उदयस्थान न लाभे. तेमां पण मनुष्यने आश्रीने ३० ना उदयमां बने सत्तास्थान. उपशमश्रेणिनो तिर्यचमां असंभव ज होवाथी ३१ ना उदयमां ८८ नुं सत्तास्थान छे. कारण के ३१ नो उदय मनुष्यने नथी. २९ तिर्यंच पंचेंद्रिय तथा मनुष्य आश्री बांधतां सासादने साते उदयस्थान: तेमां एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, तिर्येच पंचेंद्रिय, मनुष्य, देवता अने नारकी सासादनीने पोतपोताना उदयस्थाने वर्ततां एक ८८ नुं सत्तास्थान. फक्त मनुष्यने ३० ना उदयमां ९२ नुं सत्तास्थान होय. ३० ना बंधमां पण उपर प्रमाणे सात उदयस्थाने एक ८८ नुं ज सत्तास्थान जाण - बुं. कुल सर्व उदयस्थान आश्री १८ सत्तास्थान. ( टीकामां ८ लखे छे ). हवे त्रीजा गुणस्थाने बंध, उदय अने सत्तास्थान कहे छे. श्रीजा गुणस्थाने बंधस्थान २ ( २८-२९ ) २८ नो बंध मिश्रवाळा तिर्यंच अने मनुष्य देवगति प्रायोग्य बांधे छे. तेथी तेना भंग ८. २९ नो बंध मनुष्यगति प्रायोग्य देव नारकी बांधे छे. तेमां पण भंग ८. शुभा - शुभ स्थिरास्थिर यशअयश आश्री जाणवा, परावर्तमान प्रकृति बाकीनी मि श्रवाळाने शुभ ज आवे छे. मिश्र गुणस्थाने उदयस्थान ३. ( २९-३०-३१ ). २९ ना उदयमां देव आश्री भंग ८. अने नरक आश्री १. कुल भंग ९. ३० ना उदयमां तिर्यच पंचेंद्रिय आश्री १७२८. मनुष्य आश्री ११५२. कुल भंग २८८०. ३१ नो उदय तिर्यंच पंचेंद्रिय आश्री छे. तेना भंग ११५२. सर्व उदय भंग ४०४१. मिश्र गुणस्थाने सत्तास्थान २ ( ९२-८८ ). मिश्र गुणस्थाने संवेध कहे छे. २८ बांधतां २ उदयस्थान – ३०-३१. दरेक उदयमा बे वे सत्तास्थान. २९ बांघतां १ उदयस्थान - २९. अहीं पण बन्ने सत्तास्थान - ९२ ८८. ए प्रमाणे दरेक उदयस्थानमां वे वे सत्तास्थान होवाथी कुल सत्तास्थान ६० Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९७] हवे चोथे गुणस्थाने कहे छ - बंधस्थान ३ (२८-२९-३०), २८ नो बंध देवगति प्रायोग्य तिर्यच तथा मनुष्यने होय छे. तेना भंग ८. ( नरकगति प्रायोग्य बांधता नथी) २९ मनुष्य ने देवगति प्रायोग्य तीर्थकर नाम रहित बांधतां २९. तेना पण भंग ८. २९ देवता नारकी जे मनुष्यगति प्रायोग्य बांधे. तेना पण भंग ८. (तिर्यंच प्रायोग्य बांधता नथी). ३० देवता नारकीने मनुष्यगति प्रायोग्य तीर्थकर नाम सहित बांधतां ३०.. तेना भंग ८. कुल भंग ३२. चोथे गुणस्थाने उदयस्थान ८ (२१-२५-२६-२७-२८-२९-३०-३१). २१ नो उदय नारकी, विर्यच पंचेंद्रिय, देवता अने मनुष्य आश्री जाणवो. केमके __ पूर्व बद्धायु क्षायिक समकितीने ते चधामा उपजवानो संभव छे. पण तेमां अपर्यासाना भंग न लेवा. कारण के अपर्याप्तमां समकिती जीव उपजता नथी. तेथी कुल भंग २५ (८ देवताना, ८ तिर्यच पंचेंद्रियना, ८ मनु ध्यना अने १ नारकीनो), २५-२७ नो उदय देवता, नारकी वैक्रिय तिर्यंच अने मनुष्य आश्री जाणवो. तेमां देवता त्रिविध समकिती जाणवा. नारकी वेदक अने क्षायिकवाळा जाणवा. तेना उदय भंग पोतपोताने आधी समजी लेवा. नारकीमां उप शमवाळा होता नथी. २६ नो उदय क्षायिक अने वेदक समकिती तिर्यंच तथा मनुष्यने जाणवो. उप शम समकिती तिर्यच मनुष्यमा उपजता नथी. तियंचनुं वेदक समकिती पणुं मोहनीनी २२ प्रकृतिवाडं जाणचुं. २८-२९ नो उदय नारकी, तिर्यंच, मनुष्य, तथा देवताने जाणवो. ३० नो उदय तिर्यंच, मनुष्य अने देवताने जाणवो. ३१ नो उदय तिर्यंच पंचेंद्रियने होय. __ आ सर्वना उदय भंग पोतपोता आधी समजवा. चोथे गुणस्थाने सत्तास्थान ४. (९३-९२-८५-८८.) अप्रमत्त संयती के अपूर्वकरणी तीर्थकर अने आहारक सहित ३१ बांधीने पछी देवता थाय, त्यां सत्ता ९३ नी होय. आहारक बांधीने परिणामना परावर्तनथी मिथ्यात्वे जइ चारे गतिमां उपजे, तेने Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९८] त्यां गया पछी समकित पामतां ९२ नी सत्ता देव मनुष्यमां मिथ्यात्व नहीं पामेलने पण ९२ पामीए. देव, नारकी अने मनुष्य अविरतने ८९ नी सत्ता. ते त्रणे जिननाम बांघे छे. तिर्यंच बांधता नथी. ८८ नी सत्ता चारे गतिमां समकितीने होय. हवे संवेध कहे छे. - २८ ना बंधक तिर्यच मनुष्यने ८ उदयस्थान. तेमां वैक्रिय तिर्यच मनुष्य आश्री जाणवुं. एक एक स्थान ( ९२-८६ ). २९ नो बंध वे प्रकारे देवगति प्रायोग्य अने मनुष्यगति प्रायोग्य. तेमां देवगति प्रायोग्य ते जिननाम सहित अने मनुष्य ज बांधे छे. तेने उदयस्थान ३१ विना साते होय. तेमां दरेक उदये वे वे सत्तास्थान ९३-८९. मनुष्यगति प्रायोग्य २९ देवता अने नारकी बांधे छे तेमां नारकीने उदयस्थान पांच-२१-२५-२७-२८ - २९ तथा देवताने ए पांच उपरांत ३० नुं अधिक जाणं. ते उद्योत नाम वेदतां समजवुं. उत्तर वैक्रियपणामां ते छए उदयस्थानने बे बे सत्तास्थान – ९२ - ८८. मनुष्यगति प्रायोग्य ३० देवता अने नारकी जिननाम सहित बांधे छे. तेमां देवताने उदयस्थान ६ पूर्ववत् अने सत्तास्थान २ ( ९३ - ८९) तथा नारकीने उदयस्थान ५ पूर्ववत् अने सत्तास्थान १ (८९). सामान्ये २१ थी ३० सुधीना, ७ उदयस्थानमां सत्तास्थान चार चार -- ९३ ९२-८९-८८. ३१ ना उदयमां सत्तास्थान २ (९२-८८ ). २५-२७ नुं उदयस्थान उदयस्थाने वे वे सत्ता कुल सत्तास्थान ३०. वे देशविरति आश्री कहे छे. - देशविर तिने बंधस्थान २ (२८-२९ ). २८ नो बंध मनुष्य तिर्यंचने देवगति प्रायोग्य थाय. तेना भंग ८. तेज २८ तीर्थंकर नाम सहित २९ नो बंध मनुष्य ज करे. तेना पण भंग ८. देशविरति गुणस्थाने उदयस्थान ६ ( २५-२७-२८-२९-३०-३१). तेमां पहेला चार उदयस्थान वैक्रिय तिर्यंच मनुष्यने होय. तेनो मनुष्य आश्री एक ज भंग. सर्व पद प्रशस्त होवाथी तथा तिर्यच आश्री पहेला बेमां एक एक भंग अने बीजा बेमां वे बे भंग. (कुल (४ - ६ = १० भंग), Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१९९] ३० नो उदय स्वभावस्थ तिर्यंच मनुष्यने होय. तेना भंग १४४ - १४४. आ भंग ६ संघयण, ६ संस्थान, २ सुखरदुःखर, तथा २ प्रशस्ताप्रशस्त गति वडे थाय छे. दुर्भग, अनादेय, अने अयशनो उदय अहीं नथी. वैक्रिय तिर्यंच श्री भंग १. कुल भंग २८९. ३१ नो उदय तिर्यंचने होय. तेना उदयस्थान पूर्ववत् ५ तथा भंग १४४. सर्व मळी भंग ४४३ (४-६-२८९-१४४). देशविरति गुणस्थाने सत्तास्थान ४ (९३ - ९२ - ८९-८८). मां अप्रमत्त अने अपूर्वकरणी परिणामना हासथी देशविरति थाय, ते आश्री ९३ नी सत्ता पामीए. बाकी चोथा प्रमाणे. ed देशविरति संवेध कहे छे. - देशविरति मनुष्य २८ ना बंधकने पांच उदयस्थान - २५-२७ - २८-२९-३०. मां प्रत्येके वे बे सत्तास्थान - ९२ - ८८. तिर्यंचने उदयस्थान ६. तथा सत्तास्थान २ (९२–८८). २९ नो बंध मनुष्यने ज होय. तेने पांच उदयस्थान, तथा वे बे सत्तास्थान ९३-८९. आ प्रमाणे देशविर तिने पांच उदयस्थानमां ४-४ सत्तास्थान तथा ३१ ना - उदयमां वे सत्तास्थान. कुल सत्तास्थान २२. हवे प्रमत्त संयत गुणस्थान आश्री कहे छे. - प्रमत्त संयतने बंधस्थान २ (२८ - २९) उपर प्रमाणे. प्रमत्त संयतने उदयस्थान ५ (२५-२७ - २८-२९-३०). तिर्यंचने आ गुणस्थान न होवाथी ३१ नुं उदग्रस्थान नथी. आ पांचे उदयस्थान आहारक अने वैक्रिय संयती आश्री जाणवा. तेमां ३० नुं उदयस्थान स्वाभाविक संयतीने पण होय. २५- २७ ना उदये भंग एक एक. कुल ४. २८-२९ ना उदये भंग बे बे. कुल ८. ३० ना उदये एक एक. कुल २. २० ना उदये स्वाभाविक संयती आश्री देशविश्तीवत् भंग १४४. कुल भंग १५८. प्रमत्त संयतने सत्तास्थान ४ (९३ - ९२ - ८९-८८). प्रमत्त संयत गुणस्थाने संवेध कहे छे. - -- २८ ना बंधकने पांच उदयस्थानमां वे वे सत्तास्थान - ९२ - ८८. तेमां आहारक संयतीने ९२ नुंज सत्तास्थान. वैक्रियने बन्ने, तीर्थंकर नाम सत्कर्मा २८ बांधतो नथी. तेथी ९३ नुं सत्तास्थान न होय. Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२००] २९ ना बंधकने पांचे उदयस्थाने वे वे सत्तास्थान–९३-८९. तेमा आहारकने एक ९३ मुंज. कुल पांचे उदयस्थाने चार चार सत्तास्थान होवाथी २०. हवे अप्रमत्त संयत गुणस्थान आश्री कहे छे.-. अप्रमत्त संयत गुणस्थाने बंधस्थान ४ (२८-२९-३०-३१). २८-२९ उपर प्रमाणे. २८ ने आहारक द्विक युक्त करतां ३०. २८ ने आहारक द्विक अने जिननाम युक्त करतां ३१. चारेमा भंग एक एक. केमके अप्रमत्त संयतने अस्थिर, अशुभ अने अयशना बंधनो अभाव छे. उदयस्थान २ (२९-३०). जे प्रमत्तपणामां आहारक के वैक्रिय करीने पछी अप्रमत्ते जाय, ते आश्री २९. तेना आहारक अने वैक्रियना मळीने बे भंग. तथा ३० ना उदयमां पण आहारक अने वैक्रियना वे भंग. स्वभावस्थ संयतीने पण ३० नो उदय होय. तेना भंग १४४ पूर्ववत्. कुल भंग १४८. सत्तास्थान ४ (९३-९२-८९-८८). हवे संवेध कहे छे. २८ ना बंधकने बन्ने उदयस्थाने ८८ नी सत्ता. २९ ना बंधकने बन्ने उदयस्थाने ८९ नी सत्ता. '३० ना बंधकने बन्ने उदयस्थाने ९२ नी सत्ता. ३१ ना बंधकने बन्ने उदयस्थाने ९३ नी सत्ता. आहारक अने तीर्थंकर नामनी सत्तावाळा जरूर तेनो बंध करे छे. तेथी एक एक बंधे एक एक सत्तास्थान पामीए. कुल ४ उदये सत्तास्थान ८. हवे अपूर्वकरणे बंधादिक कहे छे.-- अपूर्वकरणे बंधस्थान ५ (२८-२९-३०-३१-१). प्रथमना चार उपर प्रमाणे. देवगति प्रायोग्य बंधव्यवच्छेदे एक यशकीर्तिनो ज बंध छ. उदयस्थान १ (३०). तेर्मा वज्रर्षभनाराच, छ संस्थान, सुखरदुःस्वर अने प्रशस्ताप्रशस्त गति आश्री भंग २४. ४. . . Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०१] केटलाक आचार्य त्रण संघयणे उपशमश्रेणि माने छे. ते आश्री भंग ७२. ते ज प्रमाणे ९-१०-११ गुणस्थाने पण भंग ७२ समजवा. सत्तास्थान ४ (९३-९२-८९-८८). हवे संवेध कहे छे.२८-२९-३०-३१ ना बंधकने ३० ना उदयमां यथाक्रमे ८८-८९-९२-९३ नु एक एक सत्तास्थान. १ विध बंधकने चारे सत्तास्थान. कारण के २८-२९-३०-३१ बंधक देवगति प्रायोग्य बंधव्यवच्छेदे एक विध बंधक थाय. तेथी ते चारेना चार सत्ता स्थान पामीए. गाथा ५२ हवे अनिवृत्ति बादर गुणस्थान आश्री कहे छे. बंधस्थान १ एकविध. उदयस्थान १ (३०). सत्तास्थान ८ (९३-९२-८९-८८-८०-७९-७६-७५ ). पहेला चार उपशमश्रेणिमां अथवा क्षपकश्रेणिमां नामकर्मनी १३ प्रकृति खपाव्या अगाउ. अने नामनी १३ खपाव्या पछी पाछला ४ सत्तास्थान. ते उपर कह्या प्रमाणे ज जाणवा. अहीं बंध अने उदयमा एक एक ज स्थान होवाथी संवेध नथी. हवे सूक्ष्मसंपराय आश्री कहे छे.बंधस्थान १ एकविध. उदयस्थान १ (३०). सत्तास्थान ८ उपर प्रमाणे. छद्मस्थ जिन १.१-१२ मा गुणस्थानवाळा कहेव य. तेमां उपशांत मोहे बंधस्थान नथी. उदयस्थान १ (३०). सत्तास्थान ४ (९३-९२-८९-८८). क्षीणमोहे. उदयस्थान १ (३० ). तेना भंग २४. केमके क्षपकश्रेणि पहेला संघयणवाळा ज मांडे छे. अने तीर्थकर नामनी सत्तावाला क्षीणमोहीने तो एक ज भंग. केमके तेने सर्व प्रकृति शुभ ज होय छे. सत्तास्थान ४ (८०-७९-७६-७५). तेमा पहेलं अने त्रीजु ए बे सत्तास्थान तीर्थकर सत्कर्माने होय. Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०२] तथा बीजं अने चोथु सामान्य जिनने होय. हवे सयोगी केवळी आश्री कहे छे.उदयस्थान ८ (२०-२१-२६-२७-२८-२९-३०-३१ ). आनुं विवरण सामान्य नाम कर्मना उदय भंग वखते सविस्तर आव्युं छे. सत्तास्थान ४ (८०-७९-७६-७५) संवेध संज्ञी पर्याप्त जीवद्वारमा कर्या प्रमाणे अहीं पण जाणवो हवे अयोगी केवळी आश्री कहे छे.उदयस्थान २ (८-९). ८ नुं अतीर्थंकर केवळीने. ९ नु तीर्थंकर केवळीने. सत्तास्थान ६ (८०-७९-७६-७५-९-८) ८ ना उदयमांत्रण सत्तास्थान--७९-७५-८. पहेला बे द्विचरम समय सुधी, अने आठy चरम समये ( अतीर्थकरने). ९ ना उदयमांत्रण सत्तास्थान-८०-७६-९. पहेला वे द्विचरम समय सुधी, अने नवनुं चरम समये ( तीर्थकरने ), इति गुणस्थाने बंधोदय सत्ता सवेध. गाथा ५३. हवे गत्यादि मार्गणाए बंधादिक कहे छे. प्रथम गतिमार्गणा आश्री कहे छे.नरकगतिने बंधस्थान २ ( २९-३०). २९ तिर्यंच अने मनुष्य गति प्रायोग्य. ३० तिर्यंच पंचेंद्रिय प्रायोग्य उद्योत सहित, मनुष्य गति प्रायोग्य तीर्थंकर नाम सहित. तिर्यंच गतिने बंधस्थान ६ (२३-२५-२६-२८-२९-३० ) पूर्ववत. विशेष एउटु के-२९-३० तीर्थकर आहारक सहित छे, ते अहीं न जाणवा. मनुष्य गतिमां बंधस्थान ८ (२३-२५-२६-२८-२९-३०-३१-१). देवगतिमां बंधस्थान ४ ( २५-२६-२९-३० ). २५-२६ एकेंद्रिय पर्याप्त बादर प्रत्येक आश्री समजवा. तेना भंग स्थिरा स्थिर, शुभाशुभ, यश अयश आश्री ८ थाय. तेमां २६ आतप उद्योत सहित थाय, तेथी आठने बमणा करतां १६ भंग थाय. २९ मनुष्य अने तिर्यंच पंचेंद्रिय प्रायोग्य थाय. Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०३] ३० तिर्यंच पंचेंद्रिय प्रायोग्य उद्योत सहित थाय. तेना भंग ४६०८ थाय. __ तथा मनुष्य गति प्रायोग्य तीर्थकर नाम सहित थाय. तेना स्थिरास्थिर, शुगाशुभ, यश अयश वडे भंग ८ थाय. हवे चार गति आश्री उदयस्थान कहे छे. नारकीने उदयस्थान ५ (२१-२५-२७-२८-२९). नियंचने उदयस्थान ९ (२१-२४-२५-२६-२७-२८-२९-३०-३१). ते एके द्रिय, विकलेंद्रिय, सवैक्रियअवैक्रियतिथंचपंचेंद्रिय आश्री समजी लेवा. मनुष्यने उदयस्थान ११ (२०-२१-२५-२६-२७-२८-२९-३०-३१-९-८). ते स्वभावस्थ मनुष्य, वैक्रिय मनुष्य, आहारक संयत, तीर्थंकर अतीर्थंकर सयोगी अयोगी केवली आश्री समजवा. देवताने उदयस्थान ६ (२१-२५-२७-२८-२९-३०). हवे चारे गतिना सत्तास्थान कहे छे.नारकीने सतास्थान ३ (९२-८९-८८). तेमां ८९ नुं तीर्थंकर नामकर्मयुक्त जीव मिथ्यात्वे गयेल होय तेने आश्रीने - समजबु. ९३ नुं तो अहीं होय ज नहीं. कारण के आहारक अने तीर्थकर ए बननी सत्तावाळा नारकीमां जता ज नथी. तिर्यंच गतिमां सत्तास्थान ५ (९२-८८-८६-८०-७८). तीर्थकर नामवाळा तथा क्षपकवाळा सत्तास्थान न होय. मनुष्यने सत्तास्थान ११ (९३-९२-८९-८८-८६-८०-७९-७६-७५-९-८). ७८ वाळू १ सत्तास्थान होय नहीं. कारण के मनुष्य द्विक अहीं तो नियमा सत्तामा होय. ... देवगतिमां सत्तास्थान ४ (९३-९२-८९-८८) बाकीनां सत्तास्थान अहीं न संभवे. हवे चारे गतिमां संवेध कहे छे.नारकीने तिर्यक् गति प्रायोग्य २९ बांधतां पांचे उदयस्थाने सत्तास्थान २ (९२ ___-८८). तीर्थंकर सत्कर्मावाळु ८९ नुं सत्तास्थान न संभवे. नारकीने मनुष्य गति प्रायोग्य २९ बांधतां पांचे उदयस्थाने त्रणे सत्तास्थान (९२-८९-८८). तीर्थकर सत्कर्मा ज्यांसुधी मिथ्यादृष्ट होय त्यांसुधी २९ बांधे. पछी समकिती थये सते तीर्थकर नाम सहित ३० बांधे. तिर्यंच गति प्रायोग्य उद्योत सहित ३० बांधतां पांचे उदयस्थाने बे बे सत्तास्थान ९२-८८. Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०४] मनुष्य गति प्रायोग्य तीर्थकर नाम सहित ३० बांधतां पांचे उदयस्थाने एक सत्तास्थान ८९ नु. सर्वे मळी सत्तास्थान ४०. हवे तिर्यंच गतिनो संवेध कहे छे.२३ ना बंधमां नवे उदयस्थान. तेमां प्रथमना चार उदयस्थाने पांच पांच सत्ता स्थान. ते तेजोवायु आश्री अने तेमांथी तरतना नीकळेसा आश्री जाणवा पाछळना पांच उदयस्थाने चार चार सत्तास्थान. ७८ विना. तेमने मनु प्याद्विकनी सत्तानो सदभाव होवायी आ प्रमाणे २५-२६-२९-३० ना बंधमां पण समजवू. फक्त भनुष्य गति प्रा योग्य २९ ना बंधमां नवे उदयस्थाने चार चार सत्तास्थान जाणवां. २८ ना बंधमां ८ उदयस्थान, २४ विना. तेमां २१-२६-२८-२९-३० आ पांच उदयस्थान क्षायिक समकितीने तथा २२ मोहनीनी सत्तावाळा वेदक समकिती जे पूर्वबद्धायु होय तेने होय. तेने सत्तास्थान २ (९२-८८). २५-२७ नो उदय वैक्रिक तिर्यंचआश्री जाणवो.तेने पण बेबे सत्तास्थान ९२-८८. ३०-३१ नो उदय सर्व पर्याप्तिए पर्याप्त समकिती वा मिथ्यात्वी आश्री. जाणवो. ते बन्ने उदयस्थाने त्रण त्रण सत्तास्थान-९२-८८-८६. तेमां ८६ नु मिथ्यात्वी आश्रीने ज समजवु, समकितीने तो अवश्य देवायुना बंधनो संभव होवाथी तेने आश्रीने नहीं. ( पांच बंधस्थाने ४०-४० ने २८ ना बंधमां १८ मळी कुल सत्तास्थान २१८). हवे मनुष्य गतिनो संवेध लहे छ.२३ ना बंधमां उदयस्थान ७ (२१-२५-२६-२७-२८-२९-३०). बाकीना केवळी आश्री चार उदयस्थान न होय. तेमां २५-२७ नो उदय वैक्रियवाळाने समजवो. तेथी २५-२७ विनाना पांच उदयस्थाने चार चार सत्तास्थाने-९२-८८-८६-८०. २५-२७ ना उदयमां बे बे सत्तास्थान ९२-८८. बाकीनां सत्तास्थान न संभवे. २३ ना बंधमां कुल सत्तास्थान २४. २५-२६ ना बंधमां उपर प्रमाणे समजवू. २९-३० मनुष्य अने तिर्यक गति प्रायोग्य बांधतां पण ए प्रमाणे. २८ ना बंधमां सात उदयस्थान उपर प्रमाणे. तेमां २१-२६ नो उदय अविरति करण अपर्याप्ताने, २५-२७ नो उदय वैक्रिय आहारक संयतिने, २८-२९ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०५] नो उदय अविरतिने तथा वैक्रियने आहारक संयतिने, ३० नो उदय समविती वा मिथ्यात्वीने, ३० विनाना ६ उदयस्थानमां बे बे सत्तास्थान ९२-८८. तेमां आहारकने तो एक ज ९२ नु. तथा ३० ना उदयमां चार सत्तास्थान ९२-८९-८८-८६. तेमां ८९ नु नरकगति प्रायोग्य २८ बांधतां मिथ्याद्रष्टिने समजq. कुल २८ ना बंधमां सत्तास्थान १६. २९ देवगति प्रायोग्य तीर्थकर नाम सहित बांधतां ७ उदयस्थान २८ ना बंध प्रमाणे समजवां. तेमां ३० नो उदय समकित द्रष्टिने ज जाणवो. कारण के आ २९ ना बंधमां तीर्थकर नामकर्मनो बंध होय छे. ते साते उदयस्थाने बेबे सत्तास्थान ९३-८९. अने आहारकने ९३ नुं एक ज. सर्व मळीने सत्तास्थान १४. आहारक सहित ३० बांधतांबे उदयस्थान-२९-३०. तेमां जे आहारक संयती अंतिमकाळे अप्रमत्त होय तेने आश्रीने २९, प्रमत्त आश्रीने ३०. आहारक बंध हेतु सिवाय वीजा २९ ना उदयमां विशिष्ट संयमनो अभाव होवाथी बन्ने उदयस्थानमा सत्तास्थान ९२ मुं. ३१ ना बंधमां एक ज उदयस्थान ३० मुं. तेमां १ सत्तास्थान ९३ नं. एकविध बंधमां एक उदयस्थान ३० मुं. तेमां सत्तास्थान ८ छे(९३-९२-८९-८८ -८०-७९-७६-७५). सर्व चंधस्थाने मळीने सत्तास्थान १५९. (२३-२५-२६-२९-३० मा २४-२४, २८ मां १६, देवगतिप्रायोग्य जिननाम युक्त २९ मां १४, ३१ मां १, १ मां ८, कुल १५९. चंध अभावे उदय अने सत्तास्थाननो संवेध पूर्वे सामान्य संवेधमां कह्या प्रमाणे समजवो. हवे देवगति आश्री संवेध कहे छे. २५ ना बंधमां ६ उदयस्थाने २ सत्तास्थान-९२-८८. २६-२९ ना बंधमां पण ए ज प्रमाणे. उद्योत सहित तिर्यक् गति प्रायोग्य ३० बांधतां पण ए ज प्रमाणे ९२-८८. तीर्थकर नाम सहित मनुष्य गति प्रायोग्य ३० बांधतां छए उदयस्थाने बेबे सत्तास्थान-९३-८९. सर्व मली सत्तास्थान ६०. गाथा ५४. हवे इंद्रिय आश्री कहेतां प्रथम बंध कहे छ.-- एकेंद्रियने ५ बंधस्थान--२३-२५-२६-२९-३०. .... Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०६] मां देवगति प्रायोग्य २९ - ३० विना बाकी सर्व गति प्रायोग्य सर्व भेद जाणवा. विकलेंद्रियने ते ज ५ बंधस्थान. पंचेंद्रियने आठे बंधस्थान. हवे उदयस्थान कहे छे. एकेंद्रिय उदयस्थान ५ ( २१-२४-२५-२६-२७ ). विकलेंद्रियने उदयस्थान ६ ( २१-२६- २८-२९-३०-३१ ). पंचेंद्रियने उदयस्थान ११ (२०-२१-२५-२६-२७-२८-२९-३०-३१-९-८), हवे सत्तास्थान कहे छे. एकेंद्रियने सत्तास्थान ५ ( ९२-८८-८६-८०–७८ ), विकलेंद्रियने ए ज पांच सत्तास्थान. पंचेंद्रियने बारे सत्तास्थान. हवे संवेध कहे छे. एकेंद्रिय आश्री संवेध. २३ ना बंधमा पहेला चार उदयस्थानमां पांचे सत्तास्थान. २७ ना उदयमा ७८ विनाना ४ सत्तास्थान. २५-२६-२९-३० ना बंधमां पण ए ज प्रमाणे. - कुल सत्तास्थान १२०. विकलेंद्रिय आश्री. - २३ ना धर्मा २१ - २६ ना उदयमां पांच पांच सत्तास्थान. बाकीनां चार उदमां ७८ विना चार चार सत्तास्थान. २५-२६-२९-३० ना बंधमां पण ए ज प्रमाणे. कुल सत्तास्थान १३०. पंचेंद्रिय आश्री/ २३ ना बंधमां ६ उदयस्थान - - २१-२६-२८ - २९-३०-३१ तिर्यच पंचेंद्रिय अने मनुष्य आश्री समजवा. तेमां २१ - २६ ना उदयमां पांच पांच सत्तास्थान. बाकीना चार उदयमां ४-४ सत्तास्थान. कुल २६. २५ बंधमां ८ उदयस्थान --- २१-२५-२६-२७-२८-२९-३०-३१. तेम २१२६ ना उदयमां पूर्वोक्त ५ सत्तास्थान. २५-२७ ना उदयमां वे बे सत्तास्थान--९२-८८, बाकीना ४ उदयमां ७८ विना चार चार सत्तास्थान. कुल सत्तास्थान ३०. 1 Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०७] २६ ना बंधमां ए ज प्रमाणे ३० सत्तास्थान. तिर्यच २८ ना बंधमां ८ उदयस्थान - - २१ - २५-२६--२७-२८--२९--३०--३१. पंचेंद्रिय अने मनुष्य आश्री समजवा. तेमां २१ थी २९ सुधीना ६ उदयस्थानमां वे वे सत्तास्थान - ९२ -८८. ३० ना उदयमां ४ सत्तास्थान -- ९२ --८९--८८--८६. तेमां ८९ तीर्थंकर सत्कर्मा मिथ्यादृष्टिने नरकगति प्रायोग्य बांधतां होय. बाकीनां सत्तास्थान सामान्ये तिर्येच पंचेंद्रिय आश्री जाणवां. ३१ ना उदयमां त्रण सत्तास्थान -- ९२ -- ८८--८६. तिर्थंच पंचेंद्रिय आश्री जाणवां. बीजा पंचेंद्रियने ३१ ना उदयनो अभाव छे. तेमां ८६ नुं मिथ्यादृष्टि तिर्यचपंचेंद्रियने जांणव. समकितदृष्टिने तो देवद्विकना बंधनो ज संभव होवाथी तेने ८८ नुं ज होय. कुल सत्तास्थान १९. २९ ना बंधमां उपर प्रमाणे ८ उदयस्थान तेमां २९ - २६ ना उदयमां ७-७ सत्तास्थान – ९२--८८--८६--८०--७८--९३--८९. तिर्यंच गति प्रायोग्य २९ Saini प्रथमना ५. मनुष्यगति प्रायोग्य २९ बांधतां प्रथमना ४. देवगति प्रायोग्य २९ बांधतां छेल्लां २. २८--२९-३० ना उदयमां ७८ वर्जीने ६ सत्तास्थान. ३१ ना उदयमां प्रथमनां ४ सत्तास्थान. २५- २७ ना उदयमां ९२--८८--९३--८९ आ चार सत्तास्थान. कुल सत्तास्थान ४४. ३० ना बंधभां ते ज ८ उदयस्थान अने उपर प्रमाणे ज सत्तास्थान. तेमां २१ ना उदयमां तिर्यंच गति प्रायोग्य ३० बांधतां ९२-८८-८६-८०-७८. आ ५ सत्तास्थान. मनुष्य गति प्रायोग्यमां तो तीर्थंकर नाम होय तेथी सत्तास्थान नब छे. देवगति प्रायोग्यमां आहारक द्विक होय. ते २१ ना उदयमां संभवे नहीं. ९३ - ८९ नुं सत्तास्थान मनुष्य गति प्रायोग्य ३० बांधतां देवताने होय. २६ ना उदयमां पण ते ज पांच सत्तास्थान. २६ नो उदय तिर्यंच मनुष्य अपर्याप्त अवस्थामां होय, ते वखते देवगति के मनुष्यगति प्रायोग्य ३० नो बंध न होय. तेथी ९३ - ८९ सत्तास्थान न लाभे. बाकी उपर प्रमाणे होवाथी सत्तास्थान कुल ४२. केमके २६ ना उदयमां उपर करतांबे घट्यां तेथी. ३१ ना तथा १ ना बंधमां पूर्वे मनुष्य गति आश्री संवेध कह्या प्रमाणे समजवा. गाथा ५५. आ प्रमाणे गत्यादि १४ मार्गणावडे सत्पदप्ररूपणा विगेरे ८ अनुयोगद्वारमां समजी लेवु. तेमां सत्पदप्ररूपणावडे संवेध सामान्ये गुणस्थानकमां कह्यो, विशेषे गति इंद्रियमां कह्यो. एज प्रमाणे काययोग विगेरे मार्गणामां पण Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०८] समजवो. बाकी द्रव्य प्रमाणादि ७ अनुयोगद्वार कर्मप्रकृतिप्राभ्रत विगेरे ग्रंथोथी जाणवां. ते ग्रंथ अधुना लभ्य न होवाथी लेशथी पण ते अमे बतादी शकता नथी. परंतु सांप्रत काळमां पण जे कोई सम्यक् प्रकारे ते अनुयोग द्वारना जाणनार होय, तेमणे अवश्य ते द्वार बताववां. कारण के बुद्धिनी विशिष्टता अत्यारे पण तीव्र तीव्रतर क्षयोपशमथी असीम जणाय छे. वळी अमारा लखाणमां कांइ भूलवाळु होय, ते पण तेवा विद्वाने दर करीने समी चीन बतावq. केमके सज्जनो तो परोपकारमा ज रसिक होय छे. ते अनुयोग द्वारमा बंधोदयसत्तास्थान, प्रकृति, स्थिति, अनुभाग ने प्रदेश रूप जाणवा. तेमां प्रकृति बंध संबंधी तो प्राये अहीं कहेल छे. बाकीना त्रण बंध संबंधी तदनुसार कहेवू अहीं बधोदय सत्तास्थाननो संवेध कह्यो छे, तेमां उदयनी साथे उदीरणा पण ग्रहण करी छे एम समजवू. केमके उदय सते उदीरणा अवश्य होय छे. ते विष कहे छे के.गाथा ५६. ज्यां उदय त्यां उदीरणा. अने ज्यां उदीरणा त्यां उदय. ते बन्नेना स्वामि त्वमां भेद नथी. गाथा ५७. तेमां पण अपवाद बतावे छे.-नीचेनी ४१ प्रकृतिमा उदीरणा विना पण उदय होय. १४ ज्ञानावरणीय ५, अंतराय ५, दर्शनावरण ४, तेनी उदीरणा बारमुं गुणस्थाननी आवळिका शेष होय त्यां सुधी पछी मात्र उदय. . ५ शरीर पर्याप्ति पूरी कर्या पछी ज्यां सुधी इंद्रिय पर्याप्ति पूरी न करे. त्यां सुधी पांच निद्रानो उदय होय, पण उदीरणा न होय. पछी बन्ने साथे प्रवर्ते, अने साथे निवते. २ सातासात वेदनीनो उदय अने उदीरणा प्रमत्त गुणस्थान सुधी. पछी मात्र उदय ज. १ प्रथम समकित प्राप्त करतां अंतकरणमा प्रथमनी स्थिति आवलिका शेष रहे त्यारपछी मिथ्यात्वनो उदय ज होय, उदीरणा न होय. १ क्षयोपशम समकितीने क्षायिक समकित उपार्जन करतां मिथ्यात्वमोहनी अने मिश्रमोहनी खपाव्या पछी समकितमोहनीने सर्व अपवर्तनाए अपवर्ती अंतर्मुहूर्त स्थितिनी करे. पछी उदय उदीरणावडे तेने अनुभवतां आवलिका शेष रहे त्यारे उदय ज होय, उदीरणा न होय. अथवा उपशमश्रेणी अंगीकार करनारने अंतरकरण करतां प्रथमनी स्थिति आवलिका शेष रहे त्यारे समकित मोहनीनो उदय ज होय उदीरणा न होय. Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०९] १ संज्वलन लोभनो उदय अने उदीरणा सुक्ष्मसंपराय आवलिका शेष रहे त्यां सुधी. पछी उदय ज होय, उदीरणा नहीं. ३ त्रण वेदमांथी जे वेदे श्रेणि मांडी होय, ते वेदनी प्रथम स्थिति आवलिका शेष रहे त्यारे उदय ज होय, उदीरणा नहीं. ४ आयुमां पोतपोताना भवना पर्यंत भागे आवलिका शेष रहे त्यारे उदय ज होय. उदीरणा नहीं. तेमां पण मनुष्यायुनी प्रमत्त गुणस्थान पछी उ दीरणा न होय, मात्र उदय ज होय. गाथा ५८. ९ मनुष्य गति, पंचेंद्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यश: कीर्ति, अने तीर्थकर ए ९ प्रकृतिनो सयोगी गुणस्थान सुधी उदय अने उदीरणा बन्न होय. अयोगीमां मात्र उदय ज होय. १ उच्च गोत्रनो पण अयोगीमां उदय ज होय. गाथा ५९. हवें १४ गुणस्थाने केटली केटली प्रकृति बंधमां होय ? ते कहे छे... आनो विस्तार बीजा कर्मग्रंथमां तथा तेना यंत्रमा होवाथी अहीं कर्यो नथी. मात्र दरेक गुणस्थाने संख्या ज बतावी छे.गुणस्थान प्रकृति १ ११७ तीर्थकर अने आहारक द्विक विना. २ १०१ मिथ्यात्व आश्री १६ विना. गाथा ६०. ७४ अनंतानुबंधी आश्री २५ तथा २ आयु बाद. ७७ तीर्थकर नाम तथा देव मनुज आयु वधे. ६७ अविरति संबंधी १० बाद. गाथा ६१. ६ ६३ प्रत्याख्यानावरणी ४ बाद. ५९६ घटे तथा आहारक द्विक वधे. ५८ देवायु बाद करतां. ते पण अपूर्वकरणनो संख्यातमो भाग जतां सुधी. ५६ निद्रा प्रचला बाद करतां. ते पण एक संख्यातमो भाग रहे त्यां सुधी. २६ त्रीश प्रकृतिनो क्षय थवाथी अपूर्वकरण चरमसमये. गाथा ६२. ९ २२ ४ नो क्षय थवाथी. ते नवमाना संख्यात भाग जतां सुधी. १८ अनुक्रमे पुरुष वेद तथा संज्वलन क्रोध, मान अने माया एक एक नो क्षय थवाथी १८ रहे. १७ संज्वलन लोभ घटवाथी. ते दशमाना चरम समय सुधी. Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१० १ दशमाना चरम समये १६ प्रकृतिनो क्षय थवाथी १ साता वेदनी ज बांधे. ११-१२-१३ १ साता वेदनी नो बंध. १४ ० बंधाभाव. बंध हेतु न रहेवाथी. गाथा ६३. उपर जे बंध भेद बताव्यो, ते बंधस्वामित्वना संबंधमां ओध समजवो. अने तेमां पछी गत्यादि मार्गणा आश्री जे जे मार्गणामां जे जे प्रकारे घटे, ते प्रकार कहेवो ते विशेषपणुं समजवु. गाथा ६४. पूर्वे बतावेली प्रकृतिओ सर्व गतिमां सर्वदा लाभे के केम ? तेनो उत्तर. तीर्थंकर नाम तिर्यंच गति विना त्रण गतिमां लाभे. . देवायु नरक गति विना त्रण गतिमा लाभे. नरकायु देवगति विना त्रण गतिमा लाभे. . आ प्रमाणे सत्ता आश्री लाभे. बाकी तो सर्व प्रकृतिओ चारे गतिमां लाभे. गाथा ६५. पूर्वे जे गुणस्थानकोमां बंध, उदय अने सत्तानो संवेध कह्यो, ते गुणस्थानको प्राये उपशम श्रेणिमां अने क्षपक श्रेणिमा बन्नेमां संभवे माटे बन्ने श्रेणिनु स्वरुप जणावq जरूरनु छे. ते आ प्रमाणे: उपशममां--४-५-६-७-८-९-१०-११. ए आठ गुणस्थान. क्षपकमां-४-५-६-७-८-९-१०-१२. ए आठ गुणस्थान. उपशम श्रेणिनु स्वरूप.-- प्रथम ४ अनंतानुबंधी अने ३ समकितादि मोहनी, ए सात प्रकृतिनो उप शम करनार चोथाथी आठमां गुणस्थान सुधी जाणवा. तेमां ४-५-६ ७ वाळा यथायोग्य तेने उपशमावे छे. अने ८ मे तो निश्चये उपशमावेज छे. तेमां प्रथम अनंतानुबंधी चतुष्कनी उपशमना करे छ, तेथी ते कहे छ.-- ४-५-६-७ मा गुणस्थानमांथी कोइ पण स्थानके कोइ पण योगमा वर्ततो, त्रण शुभ लेश्यामांयी कोइ पण लेश्या युक्त, कोटाकोटी सागरोपमनी अंदरनी स्थितिवाळा कर्मोनी सत्तावाळो जीव त्रण करण कयो अगाउ अंतमूहूर्त काळ सुधी चित्तवृत्तिना शांतपणे वर्ते. ते वखते परावर्तमान प्रकृति शुभ ज बांघे, अशुभ न बांधे. अशुभ प्रकृतिनो रस चोठाणीयो होय ते बेठाणीयो करे, अने शुभनो रस बेठाणीयो होय तेने चोठाणीयो करे. स्थितिबंध पण जेनो पूर्ण थाय तेनो नवो पल्योपमना संख्यात भाग जेटलो हीन करे. आ प्रमाणे एक अंतर्मुहूर्त सुधी हीनबंध करे. Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२११] पछी त्रण करण दरेक अंतर्मुहूर्त प्रमाणना करे. १ यथाप्रवृत्ति करण, २ अपूर्व करण, ३ अनिवृत्ति करण. पछी ४ थो उपशांत काळ. तेमां प्रथम यथाप्रवृत्ति करणमा प्रतिसमये अनंतगुण वृद्धि पामती विशुद्धि युक्त प्रवेश करे. अने उपर प्रमाणे शुभ प्रकृतिना बंधादिक करे. परंतु स्थितिघात, रसवातादिक तथाप्रकारनी विशुद्धि न होवाथी न करे. प्रतिसमय घणा जीवनी अपेक्षाए असंख्येय लोकाकाशना प्रदेश प्रमाण अध्यवसाय स्थानक लाभे. ते दरेक स्थानकमां पण छठाणवडीया होय. वळी पहेला समयना अध्यवसाय स्थानक करतां बीजा समयना अध्यवसाय स्थानक विशेषाधिक होय. एमां त्यां सुधी समजवू के ज्यां सुधी यथाप्रवृत्ति करणनो चरम समय आवे. तेमां पण प्रथम समये जघन्य विशुद्धि सौथी थोडी. बीजे समये जधन्य विशुद्धि अनंतगुणी. त्रीजे समये जघन्य विशुद्धि तेथी अनंतगुणी. ए प्रमाणे यथाप्रवृत्ति करणना काळनो संख्यातमो भाग जतां सुधी समजवं. त्या र पछी तेना करतां पहेले समये उत्कृष्ट विशुद्धि अनंतगुणी. तेनाथी पूर्वे निवर्तेली जवन्य विशुद्धिनी पछीनी जघन्य विशुद्धि अनंतगुणी. तेनाथी बीजा समयनी उत्कृष्ट विशुद्धि. अनंतगुणी. तेथी वळी उपली पछीनी जघन्य विशुद्धि अनंतगुणी. एम यथाप्रवृत्ति करणना चरम समये जघन्य विशुद्धि अनंतगुणी कहेवो. पछी जेटला उत्कृष्ट विशुद्धि स्थान रह्या, त्यां अनंत अनंतगुणी विशुद्धि प्रतिसमये कहेवी. ते यथाप्रवृतिना चरम समय सुधी. आ प्रमाणे पहेलु करण समजवू हवे बीजुं अपूर्वकरण कहे छे.तेमां प्रत्तिसमये असंख्य लोकाकाशना प्रदेशप्रमाण अध्यवसाय स्थान जाणवां. तेमां पण प्रतिसमये छठाणवडीया जाणवा. तेमां प्रथम समये जघन्य विशुद्धि सर्वथी थोडी. पण यथाप्रवृत्ति करणना चरम समयना उत्कृष्ट विशुद्धि सर्वथी थोडी. पण यथाप्रवृत्ति करणना चरम समयना उत्कृष्ट विशुद्धि स्थानथी अनंतगुणी. ते पहेला समयनी जघन्य विशुद्धिथी पहेला समयनी उत्कृष्ट विशुद्धि अनंतगुणी. तेनाथी बीजा समयनी जघन्य विशुद्धि अनंतगुणी. तेनाथी बीजा समयनी उत्कृष्ट विशुद्धि अनंतगुणी. एम प्रतिसमये जघन्य अने उत्कृष्ट विशुद्धि अनंतगुणी अपूर्वकरण ना चरम समय सुधी जाणवी. आ अपूर्वकरणना प्रथम समयथी १ स्थितिघात, २ रसघात, ३ गुणश्रेणि, Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१२] ४ गुणसंक्रम अने ५ अन्य स्थितिबंध, आ पांच शरु थाय छ. स्थितिघातमां स्थितिसंबंधी कर्मना अग्रभागमांथी उत्कृष्ट घणा सागरोपमना सेंकडा प्रमाण अने जघन्य पल्यापमना संख्यातमा भाग मात्र स्थितिखंडनी उत्कीर्णना करे. अने तेने जे नीचेनी स्थिति अंतर्मुहूर्तमा उत्कीर्णना करवा जेटली होय तेमां नांखे, अने तेना भेळी उकेरी नांखे. वळी उपली स्थितिमांथी पल्योपभना असंख्यातमा भाग जेटली ले, अने नीचेभां नांखे. एम अपूर्वकरणना काळमां घणा हजारो स्थितिखंडने नीचे लावी लावीने खपावी दे. तेथी अपूर्वकरणना पहेला समय करतां छेल्ले समये संख्यातगुणहीन स्थितिसत्कर्मा थाय. रसघातमां अशुभ प्रकृतिनो जेटलो अनुभाग होय, तेनो अनंतमो भाग मूकीने बाकी बधो अंतर्मुहूर्तमां विनाश पमाडे. वळी पूर्वे मृकेला अनंतमा भागमांथी अनंतमो भाग मूकीने बाकीना अनुभागना अनंत भाग अंतर्मुहूर्तमां खपावे. एम हजारो अनुभागना खंड एक स्थितिखंडे व्यतिक्रमावे, तेवा अनेक हजारो स्थितिखंड व्यतिक्रमावतां अपूर्वकरण पूर्ण करे गुगश्रेणि-अंतर्मुहूर्त प्रमाण स्थितिनी उपर जे स्थिति वर्ते छे, तेमांथी दळीयां लईने उदयावळीकानी उपली स्थितिमा प्रतिसमये असंख्यातगुण वधतां क्षेपन करे ते प्रमाणे अंतर्मुहूर्तना चरम समय सुधी करे. आ अंतर्मुहूर्त अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरणना अंतर्मुहूर्तथी लाइक मोटुं जाणवू. आ प्रमाणे पहेले समये लीधेला दळ माटे करे तेज प्रमाणे प्रतिसमये ग्रहण करे अने समये समये असंख्यातगुण वधतो उपली स्थितिमां क्षेपन करे. जेटला जेटला समय शेष रहेता जाय तेटला समयमा एम करे. आ प्रमाणे अपूर्वकरण अने अनिवृत्तिकरण ए बन्नेमां समजवु. गुणसंक्रम-अनंतानुबंध्यादि अशुभ प्रकृतिना दळ परप्रकृतिमा संक्रमाववा रूप समजवो. तेवो संक्रम प्रथम समय करतां समये समये असंख्यातगुणो समजवो. अन्यस्थितिबंध-अपूर्वकरणना प्रथम समयथी ज प्रथम कोइवार नहीं करेलो एवो ओछो स्थितिबंध करे. आवो स्थितिबंध अने स्थितिघात साथेज शरु करे, अने साथे ज पूर्ण करे. आ पांचे अपूर्वकरणमां तेमज अनिवृत्तिकरणमां पण प्रवर्ते. हवे त्रीजुं अनिवृत्ति करण कहे छे. अनिवृत्तिकरणमा प्रतिसमये वर्तता जीवनां अध्यवसाय स्थानक सरखां ज होय. Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१३] फक्त प्रथम समय करतां बीजे समये विशुदि अनंतगुणी होय. ए प्रमाणे प्रतिसमये अनिवृत्तिकरणना चरम समय सुधी अनंतगुण वृद्धि समजवी. तेना अंतर्मुहूर्तना जेटला समय छे, तेटला ज तेना अध्यवसायनां स्थान जाणवां. अनिवृत्तिकरणनो संख्यातमो भाग गया पछी एक भाग रहे त्यारे अनंतानुबंधीनी नीचेनी स्थितिमांथी आवलिका मात्र स्थितिने मूकीने अंतर्मुहूर्तप्रमाण काळy अंतरकरण करे. पछी अंतरकरण संबंधी दळने उकेरी बध्यमान प्रकृतिमां क्षेपन करे. अने पहेळी स्थितिमाथी उकेरेल आवलिका मात्र दळ वेधमान परप्रकृतिमां स्तिबुक संक्रमे पाणीना परपोटानी जेम संक्रभावे. अंतरकरण कर्या पछी बीजे ज समये उपली अनंतानुबंधीनी स्थितिने उपशमाववा मांडे छे तेमां पण समये समये असंख्यातगुण वधता वधता स्थितिदळने उपशमावे छे. यावत् अंतर्मुहूर्त काळमां सर्व अनंतानुबंधीना दळने उपशमावी नांखे छे. जेम धूळ उपर पाणी छांटी छांटीने घणवडे करी न उडे तेवी करे, तेम कर्मरूप रेणुने परिणामविशुद्धिरूप जळवडे सिंची अनिवृत्तिकरणरूप घणवडे उदय, उदीरणा, निधत्त अने निकाचनाने अयोग्य करी दे, तेनुं नाम उपशमना समजवी. आ प्रमाणे अनंतानुबंधीने उपशमावे अन्य आचार्य कहे छ के-अनंतानुबंधीनी तो विसंयोजना एटले क्षपणा ज थाय. पण उपशमना न थाय. ते आ प्रमाणे-चोथा गुणस्थानवाळा वेदक समकिती चारे गतिमां, पांचमा गुणठाणावाला बे गतिमां. छठा सातमावाळा मनुष्यगतिमां पर्याप्तावस्थामां अनंतानुबंधी खपाववा माटे प्रथम यथाप्रवृत्ति विगैरे त्रण करण करे. करणनी वक्तव्यता उपर प्रमाणे जाणवी. विशेष एटलो के अनिवृत्तिकरणमां अंतरकरण न करे, अने अनंतानुबंधीने उपशमावे नहीं. पण कम्मपयडी ग्रंथमां कह्या प्रमाणे उद्वलना संक्रमणवडे नीचेनी स्थितिमांथी आवलिकामात्र मूकीने बाकीना सर्व अनंतानुबंधीने खपावे, अने आवलिकाने स्तिबुक संक्रमे अन्य वेदाती प्रकृतिमां संक्रभावे. त्यार पछी अंतर्मुहुर्त पूर्ण थये अनिवृत्तिकरणने अंते शेष कर्मना स्थितिघात, रसघात अने गुणश्रेणि न होय, जीव स्वभावस्थ ज होय. आ प्रमाणे अनंतानु बंधीनी विसयोजना जाणवी. हचे दर्शन त्रिकनी उपशमना कहे छे.-तेमां मिथ्यात्व मोहनीनी उपशमना मिथ्या दृष्टिने अने वेदक समकितीने होय. अने मिश्रमोहनी तथा समकित Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१४] मोहनीनी उपशमना वेदक समकितीनेज होय. मिथ्याद्रष्टिने मिथ्यात्वनी उपशमना प्रथम सनकित प्राप्त करतां होय ते आ प्रमाणे-संज्ञी पंचेंद्रिय पाप करणकाळनी अगाउ अंतर्मुहूर्त काळ सुधी प्रतिसमय अनंतगुण वधती विशुद्धिए वधतो अभव्यथी अनंतगुण विशुदिवाळो त्रण अज्ञानमाथी कोइ पण अज्ञानना साकार उपयोगमां वर्ततो, कोइ पण योगमा वर्ततो, जवन्य परिणामे तेजोलेश्यामां, मध्यम परिणामे पद्मलेश्यामां अने उत्कृष्ट परिणामे शुक्ललेश्यामां वर्ततो, चारे गतिमा रहेल अंत सागरोपम कोटाकोटी सत्कर्मा यथाप्रवृत्ति विगेरे त्रण करण करे. तेमां प्रथमना बे करणनी वक्तव्यता उपर प्रमाणे समजवी, पण अपूर्वकरणमां गुणसंक्रम न होय, बाकी स्थितिघात, रसघात, अपूर्व स्थितिबंध अने गुणश्रेणि पूर्ववत् होय. गुणश्रेणिना दळिकनी रचना पण उदय समयथी मांडीने कहेवी अनिवृत्तिकरणमां एज प्रमाणे समजबु. अनिवृत्तिकरणना काळनो संख्यातमो भाग गया पछी एक भाग रहे त्यारे अंतर्मुहूर्तमात्र नीचे मूकीने मिथ्यात्वनुं अंतर्मुहूर्त स्थितिनुं अंतरकरण करे. अंतरकरण संबंधी दळीयां उकेरीने पहेली तथा बीजी स्थितिमा क्षेपवे. पहेली स्थितिमां वर्ततो सतो उदीरणा प्रयोगवडे प्रथम स्थितिगत दळने आकर्षीने उदयमा क्षेपवे, तेने उदीरणा कहीए. अने बीजी स्थितिमांथी उदीरणा प्रयोगवडे दळ आकपीने उदयमा क्षेपवे अने तेने आगाल कहीए. उदीरणा अने आगाल ए बंने एकार्थ वाची ज छे. उदय अने उदीरणावडे पहेली स्थितिने अनुभवतो अनुभवतो बे आवळीका शेष रहे, त्यारपछी आगाल विच्छेद पामे. मात्र उदीरणा प्रवर्ते. आवळीका शेष रहे त्यारे उदीरणा पण विच्छेद पामे, मात्र उदयवडे आवळीका वेदे. तेना चरम समये बीजी स्थितिमा रहेला दळीयांने अनुभाग भेदवडे विधा करे, एटले तेना रसभेदवडे त्रण पुंज करे. तेना अनंतर समये मिथ्यादळिकना उदयनो अभाव होवाथी उपशम समकित पामे. आ प्रथम समकितनो लाभ मिथ्यात्वनी सर्व उपशमनाथी थाय. ते समकितनी साथे ज कोई जीव देशविरतिपणुं पामे, अने कोई जीव सर्वविरतिपणुं पण पामे, तेथी ४-५-६-७ मा गुणस्थान सुधी मिथ्यात्वनी उपशमना होय. हवे क्षयोपशम समकिति त्रणे भोहनीनी उपशमना करे, ते आ प्रमाणे-वेदक समकिति संयममां वर्ततो सतो अंतर्मुहूर्त काळवडे दर्शनत्रिकने उपशमावे, ते उपशमावतां त्रण करण करे छे तेनी विधी पूर्ववत्. अनिवृत्तिकरण Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१५] अद्वानो संख्यातमो भाग जाय त्यारे अंतरकरण करे छे. अंतरकरण करतो संतो समकित ओहनीनी प्रथम स्थिति अंतर्मुहूर्तनी स्थापे अने मिथ्यात्व मिश्रनी आवलिका मात्र स्थापे, अने उकेरेला दळीयां त्रणेनां समकित मोहनीनी पहेली स्थितिमां क्षेपवे. मिथ्यात्व ने मिश्रनां प्रथम स्थितिनां दलिक स्तिबुक संक्रमे सम्यक्त्वनी प्रथमनी स्थितिमां संक्रमावे. सम्यक्त्नी प्रथम स्थिति विपाकवडे अनुभवी क्षीण करे, त्यारे उपशम समकित थाय. पछी उपली स्थितिना दळनी उपशमना त्रणे प्रकृतिनी अनंतानुबंधीना उपरना दळनी जेम जाणवी. आप्रमाणे दर्शन त्रिकने उपशमाव्या पछी चारित्र मोहनीने उपशमावमा इच्छनार फरीने पाछा ते संबंधी त्रण करण करे. करणनुं स्वरूप तो पूर्ववत् समजवुं. अहीं विशेष एटलं के पहेलुं करण सातमे, वीजुं करण आठमे अने त्रीजुं करण नवमे गुणस्थाने जाणवुं. तेमां अपूर्वकरणमां स्थितिघातादि पूर्ववत् जाणवुं. फक्त सर्व अशुभ प्रकृतिना अवध्यमान पणामां गुणसंक्रम प्रवर्ते. अपूर्वकरणनो संख्यातमो भाग गये सते निद्रा प्रचलाना बंधनो विच्छेद थाय. पछी घणा स्थितिखंड व्यतिक्रमे सते अपूर्वकरणना संख्यात भाग जाय, मात्र एक भाग रहे ते वखते ३० प्रकृतिओ अगाउ कहेवायेल छे तेनो बंध विच्छेद थाय. पछी अपूर्वकरणना चरम समये हास्य, रति, भय अने जुगुप्सानो बंध विच्छेद थाय. ते साथे हास्यादि षट्कनो उदयमांथी पण विच्छेद था, अने सर्व कर्मनी देश उपशमना, निधत्ति अने निकाचना करण पण विच्छेद थाय. पछी अनंतर समये अनिवृत्तिकरणमां प्रवेश करे. त्यांषण स्थितिघातादि पूर्ववत् करे. त्रीजा करणनो संख्यातमो भाग गया पछी दर्शन सप्तक विना बाकी रहेली २१ चारित्र मोहनीनुं अंतरकरण करे. मां वेदाता संज्वलन ४ कषायमांथी जे कषाय होय तेनी तथा त्रण वेदमांथी वेदाता वेदनी प्रथम स्थिति स्वउदय काळ प्रमाणे अने बाकीना ११ कषाय, २ वेद तथा ६ हास्यादिकनी प्रथम स्थिति आवलिका मात्र ज़दी पाडे. स्वउदयकाळ आ प्रमाणे. - स्त्रीवेद अने नपुंसक वेदनो उदयकाळ सर्व स्तोक स्वस्थाने तुल्य. तेथी पुरुष वेदनो संख्यात गुणो. तेथी संज्वलन क्रोधनो विशेषाधिक. तेथी संज्वलन माननो विशेषाधिक. तेथी संज्वलन मायानो विशेषाधिक. Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१६] तेथी संज्वलन लोभनो विशेषाधिक. तेमां संज्वलन क्रोधे उपशमश्रेणि मांडी होय तेने ज्यां सुधी अप्रत्याख्यानी तथा प्रत्याख्यानी क्रोधनो उपशम न थाय त्यांसुधी संज्वलन क्रोधनो उदय समजवो. ए प्रमाणे जे कषायना उदयमां श्रेणी मांडी होय ते जातिना अप्रत्याख्यानी अने प्रत्याख्यानी कषायनो उपशम थतां सुधी ते जातिना संज्वलन कषायनो उदय समजवो. ए प्रमाणे अंतरकरणना उपला भागनी अपेक्षाए सम अने नीचेना भागनी अपेक्षाए विषम स्थिति होय, ते जेटलो काळ स्थितिखंडनो घात करे अथवा जेटला काळनो अन्य स्थितिबंध करे, तेटलाज काळy अंतरकरण करे. त्रणे समकाळे आरंभे अने समकाळे पूर्ण करे. अंतरकरण संबंधी दळीयांनो प्रक्षेप विधि आ प्रमाणे.-जे जे कर्मनो ते वखते बंध अने उदय वर्ततो होय, तेना अंतरकरण संबंधी दळीयां पहेली अने बीजी बन्ने स्थितिमा नांखे. जेम पुरुषवेदे श्रेणि मांडनार पुरुषवेदनां दळीयां माटे करे तेम. अने जे कर्मनो उदय होय, बंध न होय, तेना अंतरकरण. संबंधी दळीयां प्रशम स्थितिमां नांखे, बीजी मां नहीं, जेम स्त्री वेदारुह होय ते स्त्रीवेद मांटे करे तेम. स्त्रीवेदनो बंध टळी गयेल होवाथी. तथा जे कर्मनो बंध होय, पण उदय न होय, तेनां अंतरकरण संबंधी दळीयां उपली स्थिति मां नांखे, पहेलीमां नहीं. जेम संज्वलन क्रोधोदये श्रेणि आरुह थयेल संज्वलन मान विगेरेनां नांखे तेम. तथा जे कर्मनो बंध अने उदय बन्ने न होय, तेना अंतरकरण संबंधी दळियां परप्रकृतिमा क्षेपवे. जेम अप्रत्याख्या नी प्रत्याख्यानी कपायनां दळीक संज्वलनमां नांखे तेम अहीं अनिवृत्तिकरणविषे घणु कहेवा जेतुं छे, पण ग्रंथ वधी जवाना भयथी कहेता नथी. विशेषार्थीए कमप्रकृतिनी टीका विगेरेथी जाणी लेवं. हवे अंतरकरण कर्या पछी प्रथम नपुंसक वेद उपशमावे. ते प्रथम समये थोडां दळ उपशमावे, बीजे समये असंख्यात गुणा, जीजे समये तेथी असंख्यातगुणा, एम चरम समय सुधी उपशमावे. तेमां पण उपशमाववा करतां परप्रकृतिमां क्षेपवाना असंख्यात गुणा प्रतिसमये समजवा. ए प्रमाणे क्षेपन द्विचरम समय सुधी करे, अने चरम समये क्षेपन करतां असंख्यात गुग उपशमावे. आ प्रमाणे अंतर्मुहूर्तमां नपुंसकवेद उपशमावे. एटले कुल आठ प्रकृति उपशमावी. पछी पूर्वोक्त प्रकारे अंतर्मुहूर्तकाळे स्त्रीवेद उपशमावे. एटले ९ उपशमावी. त्यार पछी उक्त प्रकारे अंतर्मुहर्ते हास्यादि षट्क उदशमावे. एटले कुल १५ प्रकृति उपशमावी. हास्यादि षट्क उपशमे तेजसमये Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१७] पुरुषवेदना बंध, उदय, उदीरणा अने प्रथम स्थिति विच्छेद पामे. प्रथम स्थिति बे आवलिका शेष रहे एटले पूर्व कह्या प्रमाणे उपली स्थितिमांथी उदीरणा करवा रूप आगाल न थाय. अने ते समयथी आरंभीने छ नोकषायनां दळ पण पुरुषवेदमां न क्षेपवे, पण संज्वलन क्रोधादिकमां क्षेपवे. हास्यादि षटक उपशमाव्या पछी समयोन बे आवलिका मात्रे पुरुषवेद उपशमे, ते पण प्रथम समये रतोक, बीजे समये असंख्यात गुण, त्रीजे समये तेथी असंख्यात गुण, एम वे समय ऊन आवलिका द्विकना चरम समय सुधी उपशमावे. अने तेटला ज काळ सुधी प्रतिसमये परप्रकृतिमां संक्रमावे. पण ते प्रथम समये बहु संक्रमावे, बीजे समये तेथी ओछा, त्रीजे समये तेथी ओछा, एम चरम समय सुधी जाणवू. आ प्रमाणे पुरुषवेद उपशमावे सते मोहनीनी १६ प्रकृति उपशमी. हास्यादि षट्क उपशमाव्या, अने पुरुषवेदनी प्रथम स्थिति क्षीण थई, तेना बीजा समयथी ज अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान अने संज्वलन क्रोधने समकाळे उपशमाववा मांडे, तेने पूर्वनी पेठे उपशमावतां ज्यारे संज्वलन क्रोधनी प्रथम स्थिति एक समय ऊणी त्रण आवलिका रहे, त्यारे अप्रत्याख्यान अने प्रत्याख्यान ए बन्ने क्रोधनां दळ संज्वलन मानमां क्षेपवे. संज्वलन क्रोधमां क्षेपवा बंध करे. संज्वलन क्रोधनी प्रथम स्थिति बे आवलिका शेष रहे त्यारपछी आगाल विच्छेद थाय, उदीरणा ज रहे. अने एक आवलिका रहे त्यारे उदीरणानो पण विच्छेद थाय. आवलिका शेषे संज्वलन क्रोधना बंध, उदय अने उदीरणानो विच्छेद थाय. अने अप्रत्याख्यान तथा प्रत्याख्यान क्रोध उपशमी जाय, एटले कुल १८ प्रकृतिनो उपशम थाय. ते वखते संज्वलन क्रोधनी प्रथम स्थितिगत एक आवलिका अने समयोन आवलिकाद्विकबद्ध उपली स्थितिगत दळीयां ज होय. तेमांथी प्रथम स्थितिगत आवलिकाने तो स्तिबुक संक्रमे संज्वलन मानमा संक्रमावे. अने समयोन आवलिकाद्विकबद्ध दलिक पुरुषवेदां उपर कह्याप्रमाणे उपशमावे अने संक्रमावे. एटले समयोन आवलिकाद्विक काळे संज्वलन क्रोध उपशमी 'जाय त्यारे कुल १९ प्रकृतिनो उपशम थाय जे समये संज्वलन क्रोधना बंध, उदय अने उदीरणा व्यवच्छेद थाय तेना अनंतर समयथी ज संज्वलन माननी बीजी स्थितिमांथी दळीयां आकर्षाने प्रथम स्थिति करे अने वेदे. तेमां उदय समये थोडा प्रक्षेपे, बीजे समये तेथी Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१८] असंख्यातगुणा, त्री जे समये तेथी असंख्यातगुणा, एभ प्रथम स्थितिना चरम समय सुधी कहें. प्रथम स्थिति करवाना प्रथम समयथी ज संज्वलन, अप्रत्याख्यान अने प्रत्याख्यान मानने उपशमाववा मांडे. संज्वलन माननी प्रथम स्थिति समयोन आवलिका त्रिक शेष रहे त्यार पछी अप्रख्यान प्रत्याख्यान मानमांदळीयां संज्वलन मानमां न प्रक्षेपे. पण संज्वलन मायादिमां प्रक्षेपे पछी उपर संज्वलनादि क्रोध उपशमाववानी जे रीत कही छे तेज प्रमाणे त्रणे मानने उपशमावे. एटले कुल २२ प्रकृति उपशमे. संज्वलन मानना बंध, उदय अने उदीरणा व्यवच्छेद पामे त्यारथी त्रण प्रकारनी माया उपशमाववा मांडे ते उपरनी रीते उपशमावे. एटले कुल २५ प्रकृति उपशमी. संज्वलन मायाना बंध, उदय अने उदीरणा व्यवच्छेद पाम त्यारथी संज्वलनादि त्रणे लोभ उपशमाववा मांडे. तेना अनंतर समयथीज संज्वलन लीभनी बीजी स्थितिमांथी दळीयां आकर्षीने लोभ वेदवाना काळना भाग प्रमाणे पहेली स्थिति पूर्वोक्त प्रकारे करे अने वेदे. तेमां पहेलो त्रिभाग अश्वकर्णकरणाद्धा नामनो अने बीजो त्रिभाग किट्टीकरणाद्धा नामनो कहेवाय छे. तेमांना पहेला त्रिभागमां वर्ततो सतो पूर्व स्पर्धकमांथी दळीयां आकर्षीने अपूर्व स्पर्धक करे. ते स्पर्धक ते शुं ? ते कहे छे. - अनंतानंत परमाणुवडे निष्पन्न स्कंधोने जीव कर्मपणे ग्रहण करे छे, तेमांना एक एक स्कंधमां जे सर्व जवन्य रसवाळा परमाणु छे तेनो रसपण केवळीनी बुद्धिए विद्यमान कर्यो सतो सर्व जीवथी अनंतगुणा विभाग आपे. बीजा तेना करतां एक रसविभाग अधिकवाळा परमाणु, जा नाथ वे रसविभाग अधिकवाळा परमाणु, एम एक एकनी वृद्धिए त्यांसुधी जतुं के केटलाक परमाणु सिद्धना अनंत भाग जेटला अधिक रस विभाग आपे. हवे जे उपर कह्या प्रमाणे जवन्य रसवाळा परमाणुओ छे तेनो जे समुदाय तेनी एक वर्गणा, बीजा एक रसविभाग अधिकवाळा परमाणुओनी बीजी वर्गणा. एवि रीते सिद्धना अनंता भाग जेटली अने अभ व्यथी अनंतगुणी जे वर्गणाओ तेनो समुदाय ते स्पर्धक कहीए. त्यारपछी एक रसविभागे अधिक परमाणु न पामीए, पण सर्व जीवथी अनंत गुण रविभागे अधिक परमाणु पानीए. तेनी पाछी उपर प्रमाणे वर्गणाओ अने तेनो समूह ते बीजुं स्पर्धक. एम अनंता स्पर्धको थाय. ते पूर्वे कहला tar ने पूर्व स्पर्धक कहीए. तेमांथी प्रतिसमय दळीयां ग्रहण करीने अत्यंत हीन रसवाळा करी तेना स्पर्धक बनावे ते नवा होवाथी अपूर्व Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१९] स्पर्धक कहेवाय संसारमा भमतां आ जीवे पूर्वे कदी पण बंध आश्री आवा स्पधक करेला न होवाथी अपूर्व कहेवाय छे. अश्वकर्ण करणाद्धा वीत्या पछी किट्टीकरणाद्धामा प्रवेश करे, तेमां पूर्व स्पर्धक अने अपूर्व स्पर्धकमांथी दळीयां लईने प्रति समय तेनी अनंती किट्टी करे कीट्टी एटले बन्ने प्रकारना स्पर्धकमांथी लीघेला दळने अनंतगुण हीन रसवाळा करी मोटे मोटे आंतरे स्थापे ते. दृष्टांत तरिके १००-१०१-१०२ रसविभा गवाळा परमाणु होय, तेना ५-१५-२५ रसविभागवाळा करी नांखवा ते. किट्टी करणाद्धाने चरम समये अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान लोम समकाळे उप शमे. ते समये संज्वलन लोभनो बंध विच्छेद थाय अने बादर संज्वलन लोभना उदय उदीरणा पण विच्छेद थाय. तेमज नवमुं गुणस्थान पण समाप्त थाय. आ प्रमाणे नवमामां ७ थी मांडीने कुल २५ प्रकृति उपशांत थाय. २७ नी उपशांतावस्था दशमा गुणस्थानना प्रारंभमां पामीए. दशमा गुणस्थाननी स्थिति अंतर्मुहूर्त प्रमाण छे. तेमां प्रवेश करतां उपली स्थितिमांथी केटलीक किट्टी आकर्षीने प्रथम स्थिति ते गुणस्थानना काळतुल्य करे अने वेदे. बाकीनां सूक्ष्म किट्टीकृत दळीयां समयोन बे आवलिका बद्ध रहे, तेने उपशमावे. दशमाने चरम समये संज्वलन लोभ उपशमी जाय. ते समये ज ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ४, अंतराय ५, उच्चगोत्र १, यशकीर्ती १, आ १६ प्रकृतिनो बंध विच्छेद थाय. तेना अनंतर समये उपशम कषायी कहेवाय. अर्थात् अग्यारसुं गुणस्थान पाभे. त्यां मोहनीनी २८ प्रकृति उपशांत थई कहेवाय, आ गुणस्थान जघन्य एक समय अने उत्कृष्ट अंतमुहूर्त सुधी रहे. त्यारपछी जरुर त्यांथी पडे ते पडवू बे प्रकारे छेआयु क्षये तथा गुणस्थाननो काळ पूर्ण थये. तेमां जे आयुक्षये पडे ते पहेले ज समये उपशम करेला सर्व बंध उदयादि प्रवावे, अने अनुत्तर विमाने जाय. ते जीव चोथे गुणस्थाने टके. जे जीव गुणस्थानना काळ क्षये पडे ते जेम श्रेण्यारुढ थयो होय तेम पडे. एटले ज्यां ज्यां जेना जेना बंध, उदय अने उदीरणा उपशमाव्या, विच्छेद प माड्या, त्यां त्यां शरु करतो छठे, पांचमे, चोथे अथवा बीजे गुणस्थाने जाय. आ प्रमाणेनी उपशम श्रेणि एक भवमां बे वार मांडी शके. जे बे वार मांडे तेने ते भवमा क्षपकश्रेणि न होय. एकवारवाळो क्षपकश्रेणि करे तो करे. सिद्धांतकार कहे छे के-एक भवमां बे प्रकारनी श्रेणि न होय. तत्त्व केवळी गम्य, Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ [२२०] - इति उपशमश्रेणि स्वरूप. गाथा ६६. हवे क्षपकश्रेणिर्नु स्वरुप कहे छ.ओछामा ओछो आठ वर्षनो मनुष्य क्षपकश्रेणि मांडे, तेथी नानो न मांडे. क्षपक श्रेणि मांडनार प्रथम अनंतानुबंधी चतुष्क खपावे ( पूर्ववत् ), पछी दर्शन मोहनी त्रिकने साथे खपावे, तेने खपावतो यथाप्रवृत्तादि त्रण करण करे, ते पूर्वे कहेल छे. तेमां विशेष एटलं के-अपूर्वकरणना प्रथम समये अनुदित मिथ्यात्वनां तथा मिश्रनां दळीयांने गुणसंक्रमवडे समकित मोहनीमां क्षेपवे. उद्वल संक्रम पण ए बेनो ज आरंभे ते आ प्रमाणे.पहेलां मोटा स्थितिखंडनु उद्वलन करे. त्यार पछी समये समये विशेष हीन विशेष हीन स्थितिखंडनी उद्वलना करे. एम अपूर्वकरणना चरम समय सुधी करे. एम करवाथी अपूर्वकरणना प्रथम समये जेटलो स्थितिसत्का होय, तेना करतां चरम समये संख्यातगुणहीन सत्कर्मा थाय. पछी अनिवृत्तिकरणमा प्रवेश करे. त्यां पण स्थितिघातादि अपूर्वकरणवत करे. तेना प्रथम समये दर्शनत्रिकनी देशोपशमना, निधत्ति अने निकाचना विच्छेद पामे. दर्शनमोहनी सत्कर्मा जीव अनिवृत्तिकरणना प्रथम समयथी. मांडीने स्थितिघातादिवडे हजारो स्थितिखंड नष्ट थवाथी असंज्ञी पंचेंद्रिय समान स्थितिकर्मा थाय. वळी बीजा हजारो स्थितिखंड गये सते चतुरिंद्रिय समान स्थिति सत्कर्मा थाय. ए प्रमाणे स्थितिखंड घटवाथी यावत् त्रींद्रिय, द्वीन्द्रिय, एकेंद्रिय समान स्थितिसत्कमो थाय, वळी वीजा स्थितिखंड घटतां पल्योपमना असंख्यातमा भाग समान स्थिति रहे. पछी त्रणेनो एक एक संख्यातमो भाग मूकीने बाकीनो सर्व खपावे (धात करे). वळी पड्या मूकेला संख्यातमा भागमांथी एक संख्यातमो भाग मूकीने बाकीनानो विनाश करे. एम हजारो स्थितिघात थाय. त्यार पछी मिथ्यात्वना असंख्यात भागोने खंडित करे अने समकित तथा मिश्रना संख्यात भागोने खंडित करे. एप्रमाणे घणा स्थितिखंड गये सते मिथ्यात्वना दळीयां आवलिका मात्र रहे अने समकित मिश्रना पल्योपमना असंख्यातमा भाग जेटला रहे. उपर प्रमाणे जे स्थितिखंड खंडित करे, तेमां मिथ्यात्वनां दळियां समकित ने मिश्रमां नांखे, मिश्रना समकीतमा नांखे अने समकितना तेनी नीचली स्थितिमां नांखे. पछी बाकी रहेला मिथ्यात्वना आवलिका मात्र दळने स्तिबुक संक्रमे समकितमां संक्रमावे. पछी समकित मिश्रना असंख्याता Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२१] भागनी खंडना करे,ज्यारे एक भाग रहे त्यारे तेना असंख्याता भाग करी तेने खंडे, अने एक राखे. एम घणा स्थितिखंड गये सते मिश्र आवलिका मात्र रहे. ते वखते समकितमोहनीनी स्थिति आठ वर्ष प्रमाण होय. ते वखते सर्व संकट दूर थवाथी निश्चय नयने मते ते जीवने दर्शनमोहनीनो क्षपक कहीए. त्यारपछी समकितना स्थितिखंडमांथी अंतर्मुहूर्त प्रमाणे उकेरे, अने तेनां दळीयांने उदय समयथी मांडीने प्रक्षेप करवा मांडे, ते उदय समये थोडा, बीजे समये तेनाथी असंख्यातगुणा, एम गुणश्रेणिना शिर (छेडा) सुधी प्रक्षेप करे. त्यारपछी विशेष विशेष हीन प्रतिसमये प्रक्षेपे, ते चरम समय सुधी. ए प्रमाणे अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्तना अनेक स्थितिखंड उकेरे अने क्षेपन करे. ते छल्ला बे स्थितिखंड रहे त्यांसुधी करे. तेमां पहेला चरमखंड करतां बीजो चरमखंड असंख्यातगुणो होय. ज्यारे छेल्लो स्थितिखंड उकेरे त्यारे ते क्षपक कृतकरण कहेवाय. ते कृतकरण अद्धामां वर्ततो कोइ जीव काळ करीने चारे गतिमांथी कोई पण गतिमां उपजे. लेश्या पण प्रथम तो शुक्ल होय पछी तो गमे ते लेश्या थाय. एटले क्षायिकनो प्रस्थापक तो .मनुष्य ज होय, पण निष्ठापक चारे गतिमा होय. जो पूर्वबद्धायु क्षपकश्रेणि मांडे तो ते अनंतानुबंधीना क्षय पछी कदी मरण पामे तो मिथ्यात्वना उदयथी पाछो अनंतानुबंधी बांधे. केमके तेना बीजरूप मिथ्यात्व रहेल छे. पण जो मिथ्यात्व क्षय थयेल होय तो अनंतानुबंधी फरीने न बांधेवीज जवाथी. क्षीण सप्तकवाळो अप्रतिपतित परिणामे अवश्य देवगतिमा उपजे, अने प्रतिपतित . परिणामी तो जेवा परिणाम तेवी गतिमां उपजे. पूर्वबद्धायुष्फ कदी ते वखते काळ न करे, तो पण सप्तक क्षीण कर्या पछी आगळ चारित्रमोह खपाववानो उद्यम न करे. प्रश्न-क्षीण सप्तक कदी ते भवमा मोक्षे न जाय अने अन्यगतिमां जाय तो केटला भवे मोक्षे जाय ? उत्तर-त्रीजे चोथे भवे जाय. एटले देवता नारकी थाय तो त्यांथी नीकळी मनुष्य थइ मोक्षे जाय ते त्रीजे भवे, ने जो मनुष्य तिर्यंच थाय तो जुगलीयामां ज जाय, त्यांथी देवता थई, चबी, मनुष्य थई, मोक्षे जाय, तो चोथे मवे. ए प्रमाणे समज. सात प्रकृतिना क्षपक ५-५-६-७ मे गुणस्थाने पामीए. अबद्ध पूर्व आयुवाको जीव परिणामथी पतित थया विना चारित्रमोहनी खपाववा मांडे एटले तेने Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२२] माटे त्रण करण करे, तेनु स्वरूप पूर्ववत्. ते करणमा पहेलु सातमे, बीजु आठमे अने त्रीजु नवमे गुणस्थाने होय. अपूर्वकर गमां स्थितिवातादिवडे अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यानावरण (८) कषायने एवा खपावे के अनिवृत्तिकरणना पहेले समये पल्योपमना असंख्यातमा भाग जेटला रहे. अनिवृत्तिकरणनो संख्यातमो भाग गये सते स्त्यानद्धि त्रिक, नरकद्विक, तिर्यग्द्विक, जातिचतुष्क (पंचेंद्रिय विना), स्थावर, आतप, उद्योत, सूक्ष्म अने साधारण ए १६ प्रकृतिओने उद्वलनासंक्रमवडे उद्वल्यमान करी सती पल्योपमना असंख्यातमा भाग जेटली करे. पछी बध्यमान परप्रकृतिमा गुणसंक्रमवडे प्रतिसमये क्षेपवतां क्षेपवतां सर्वथा क्षय करे. कषायाष्टकने क्षीण करवा मांडेला तेना अंतराळे आ १६ प्रकृति तो खपावी दे, पछी कषायाष्टक खपावे. कोइ कहे छे के-'पहेला १६ प्रकृति खपाववा मांडे, तेना अंतराळे कषायाष्टक खपावे अने पछी १६ खपावे.' पछी नव नोकषाय अने चार संज्वलन खपाववा अंतरकरण करे. ते करीने प्रथम नपुंसक वेदनां दळीयां उपली स्थितिना उद्रलन विधिए सप.ववा भांडे. अंतर्मुहूर्तमां पल्योपमना असंख्यातमा भाग जेटला राखे. पछी बध्यमान शुभ प्रकृतिमा गुणसंक्रमवडे तेनां दळीयां क्षेपवे, अंतर्मुहर्ते बधां क्षीण करे. पछी नीचेनी आवलिका मात्र रहे, ते दळिकने नपुंसकवेदे श्रेणि मांडी होय तो अनुभव थकी वेदीने खपावे. अन्य वेदे श्रेणी मांडी होय तो वेद्यमान प्रकृतिमां स्तिबुक संक्रमे संक्रमावे. ए प्रमाणे नपुंसकवेद खपावे. पछी अंतर्मुहूर्तमां स्त्रीवेद पण एज प्रमाणे खपावे. पछी हास्यादि षट्क खपाववा मांडे. त्यारथी तेनां उपली स्थितिनां दळीयां पुरुषवेदमां न क्षेपवे, पण संज्वलन क्रोधमां क्षेपवे. पूर्वोक्त विधिवडे तेने संज्वलन क्रोधमां क्षेपवतां अंतर्मुहर्तमां निःशेष करे (खपावे). ते ज समये पुरुषवेदना बंध, उदय अने उदीरणा विच्छेद पामे. अने समयोन आवलिकाद्विक बद्ध सिवाय बीजां दळीयां विच्छेद जाय ते वखतथी ते अवेदी कहेवाय. पुरुषवेदे श्रेणि मांडनार माटे आ प्रमाणे समज. जो नपुंसकवेदे श्रेणि मांडी होय तो स्त्रीवेद अने नपुंसकवेद समकाळे खपावे. अने तेना खपाववानी साथे पुरुषवेदना बंधनो क्षय थाय. एटले ते अवेदी थाय. अने पछी पुरुषवेद तथा हास्यादि षट्क समकाळे खपावे. . जो स्त्रीवेद श्रेणि मांडे तो पहेलां नपुंसकवेद खपावे. पछी स्त्रीवेद खपावे. Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२३] स्त्रीवेदना क्षय काळे ज पुरुषवेदनो बंध खपावे. एटले अवेदी थाय पछी समकाळे पुरुषवेद अने हास्यादि षट्क समकाळे खपावे. - हवे अहीं पुरुषवेदीने अधिकृत करीने प्रस्तुत बात कहे छे. — संज्वलन क्रोध वेदातां ते कोधनी स्थितिना त्रण विभाग करे. - १ अश्वकर्णकरणाद्धा, २ किट्टीकरणाद्धा, ३ किट्टी वेदनाद्धा. तेमां अश्वकर्ण करणाद्वामां वर्ततां चार संज्वलनना अंतरकरणथी उपली स्थितिमां अनंता अपूर्व स्पर्धको करे. तेमज पुरुषवेद पण समयोन बे आवलिका काळे गुणसंक्रमवडे क्रोधमां संक्रमावतां चरम समये सर्व संक्रमावी दे, एटले पुरुषवेद समग्र क्षीण थइ जाय. अश्वकर्णकरणाद्धा संपूर्ण थये किट्टीकरणाद्वामां प्रवेश करे, एटले चार संज्वलननी उपली स्थितिगतदलिकनी किट्टी करे. ते किड्ट्टी परमार्थे तो अनंती होवा छतां स्थूळ जाति अपेक्षाए तेने १२ कल्पीए. चार कषायनी त्रण त्रण - पहेली, बीजी, त्रीजी. आ प्रमाणे क्रोधना उदयमां वर्ततां क्षपक श्रेणि मांडनार माटे समजवुं. जो माने श्रेणि मांडी होय तो उद्बलन विधिवडे क्रोध खपावी पछी नव किट्टी करे. माया श्रेणि मांडी होय तो उद्ववलन विधिवडे क्रोध, मान खपावी छ किट्टी करे. लोभे श्रेणि मांडी होय तो क्रोध, मान, माया उद्बलन विधिए खपावी मात्र लोभनी त्रण किट्टी करे. वे को श्रेणि मांडनार पहेली किट्टीनां दलीयां जे बीजी स्थितिगत होय ते पहेली स्थितिगत करे अने वेदे. समयाधिक आवलिका शेष रहे त्यां सुधी. पछी तेना अनन्तर समये ज बीजी कीट्टीनां दळीयां बीजी स्थितिगत होय ने पहेली स्थितिगत करे अने वेदे. ते पण समयाधिक आवलिका . शेष रहे त्यां सुधी. पछी त्रीजी किटीनां दळीयां बीजी स्थितिगत होय पहेली स्थितिगत करे अने वेदे. ते पण समयाधिक आवलिका शेष सुधी. पछी त्रणे प्रकारनी किट्टीना वेदनाद्वामां प्रवेश करी उपली स्थितिगत दलिकने गुणसंक्रमवडे प्रति समय असंख्यात गुण वधतां संज्वलन मानमां क्षेपवे. त्रीजी किट्टीना वेदनाद्धाने चरम समये संज्वलन क्रोधना बंध, उदय, अने उदीरणा व्यवच्छेद पामे. एता पण समयोन आवलिकाद्विक मूकीने बीजी न रहे. बध्यमानमां क्षेपवी दीधेली होवाथी, पछी तेना अनंतर समये मानना प्रथम कीट्टीना बीजी स्थितिगत दलिकने प्रथम स्थितिगत करे अने वेदे . ते अंतर्मुहूर्त सुधी. क्रोधना बंध. दि व्यवच्छेद तां तेना सत्तागत रहेल दलिकने समयोन आवलिक द्विक मात्र काळे गुणसंक्रमवडे संक्रमावतां चरम समये सर्व संक्रमवडे संक्रमाची दे. Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२४] मानना पण पहेली किट्टीना प्रथम स्थितिगत करेलां दलिकने वेदतां समयाधिक आवलिका मात्र शेष रहे एटले बीजी किट्टीना बीजी स्थितिगत दलिकने पहेली स्थितिगत करे अने वेदे. ते समयाधिक आवलिका शेष रहे त्यांसुधी. आ प्रमाणे मान मायाना त्रणे किटीनां दलिकने बीजी स्थितिगतमांथी पहेली स्थितिगत करवानुं अने वेदवानुं पण जाणवू. मान मायाना बंधादिकनो क्षय उपर प्रमाणे ज समजवो. लोभना संबंधमां एटलं विशेष के-बीजी किट्टीनां दळीयां बीजी स्थितिगतने पहेली स्थितिगत करीने वेदता सत्ता त्रीजी किट्टीना दलिकने ग्रहण करीने तेनी सूक्ष्म किट्टी करे. ते बीजी किटीना प्रथम स्थितिगत दळीयांने वेदतां समयाधिक आवलिका शेष रहे त्यां सुधी. ते वखते ज संज्वलन . लोभनो बंध विच्छेद थाय. अने बादर कषायना उदय अने उदीरणानो विच्छेद थाय. अनिवृत्तिबादर गुणस्थाननो काळ पूर्ण थाय. पछी त्रीजी किट्टीना सूक्ष्मकिट्टी करेलां बीजी स्थितिगत दलीयांने पहेली स्थितिगत करे अने वेदे. ते वखते तेने सूक्ष्मसंपराय कीए. त्रीजी किट्टीने वेदा आवलिका शेष रहेल होय ते स्तिबुकसंक्रमे बीजी वेद्यमान प्रकृतिमा संक्रमावे. प्रथम बीजी किट्टीने वेदतां जे आव.लेका शेष रहेल होय ते तो बीजी त्रीजी किट्टीनी अंतर्गत वेदाई जाय. सूक्ष्मसंपराये वर्ततो जीव लोभनी सूक्ष्म किट्टीने वेदतो सतो समयोन आवलिकाद्धिक बद्ध सूक्ष्म किट्टीनां दळीयांने प्रतिसमय स्थितिघातादिवडे सूक्ष्मसंपरायना काळमां संख्याता भाग जतां सुधी खपावे. पछी एक संख्यातो भाग रहे. ते संख्याता भागमां संज्वलन लोभने सर्व अपवर्तनावडे अपवर्ती सूक्ष्मसंपरायना काळ जेटलो बाकी राखे. ते वखते पण सूक्ष्मसंपायनो काळ अंतर्मुहूर्त होय पछी तेना स्थितिघातादि निवर्ते-शेष कर्मप्रकृतिना प्रवर्ते. लोभनी अपवर्तित करेली स्थितिने उदय उदीरणावडे वेदतां समयाधिक आवलिका मात्र शेष रहे, एटले उदीरणा बंध थाय. पछी मात्र उदयवडे चरम समय सुधी वेदे. चरम समये ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ४, उच्चगोत्र यशकीर्ति. अने अंतराय ५, कुल १६ प्रकृतिनो बंध विच्छेद थाय. अने मोहनी कर्मनी तो उदय अने सत्ता बन्ने विच्छेद थाय. गाथा ६७. आ वात संक्षेपथी फरीने कहे छे.पुरुषवेदना बंधादि क्षय थये सते शेष रहे ते संज्वलन क्रोधमा संक्रमावे. संज्वलन क्रोधना बंधादि क्षय थये शेष रहे ते संज्वलन मानमां गुणसंक्रमवडे Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२५] संक्रमावे. संज्वलन मानने मायामां संक्रमावे, मायाने लोभमां संक्रमावे, लोभना बंधादि विच्छेद थये सते सूक्ष्म रहेला लोभने पण स्थितिघातादि वडे हणे. लोभनो सर्वथा क्षय थये सते क्षीणकषायी (बारमा) गुणस्थारगत थाय. क्षीणकषायीपणामां मोहनी सिवाय बीजा कर्मोना स्थितिवातादि पूर्ववत् प्रवर्ते, ते क्षीणकषाय काळना संख्याता भाग जाय अने एक भाग रहे त्यां सुधी. ते संख्याता भागमां ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ४, अंतराय ५, अने निद्रा २, कुल १६ प्रकृतिनी सत्ताने सर्व अपवर्तनाए अपवर्ती क्षीणकषायना काळसमान करे. स्वरुपनी अपेक्षाए निद्राद्विकने समयनून्य स्थितिवाळी करे. क्षीणकषायनो काळ अद्यापि पण अंतर्मुहूर्त होय. पछी ते १६ प्रकतिना स्थितिघातदि बंध पडे, बीजी प्रकृतिओना प्रवर्ते. पछी ते १६ प्रकृतिमाथी निद्रा २ सिवाय १४ ने उदय उदीरणावडे वेदतां समयाधिक आवलिका मात्र रहे त्यारे उदीरणा बंध पडे. पछी उदय मात्रवडे वेदे. ते क्षीणकषायना द्विचरम समय सुधी. द्विचरम समये वे निद्रानो सत्तामांथी क्षय थाय. अने चरम समये बाकीनी १४ प्रकृतिनो सत्तामांथी क्षय थाय. पंछी अनंतर समये केवळज्ञान पामे. सयोगी केवळी लोक अलोक सर्व सर्वात्मवडे परिपूर्ण देखे. एवं त्रण काळमां कांइ पण नथी के जे केवळी भगवान न देखे. आ सयोगी केवळी जघन्य अंतर्मुहूर्त अने उत्कृष्ट देशोनपूर्व कोटी विहार करे. पछी जेने वेदनीयादि कर्म आयुकर्म करतां अधिक होय ते तेने सरखा करवामाटे केवळी समुद्घात करे, बीजा न करे. समुद्गात करीने पछी भवोपनाही कर्मनो क्षय करवा माटे लेश्यातीत, अत्यंत अप्रकंप अने परम निर्जराना कारणभूत ध्यानने अंगीकार करवा माटे योगनिरोध करवा उपक्रम करे. ते आ प्रमाणे.प्रथम बादर काययोगवडे बादर मनयोगने रुंधे, पछी वादर वाग्मोगने लंबे. पछी सूक्ष्म काययोगवडे बादर काययोगने रुंधे. पछी तेनावडे ज सूक्ष्म मनयोगने रुंधे, पछी मूक्ष्म वाग्योगने रुंधे, छेवटे सूक्ष्म काययोगने रुंधतां सूक्ष्मक्रियाअप्रतिपाती ध्याने आरोहण करे. तेना सामर्थ्यथी वदनोदरादि विवर पूरीने त्रिभागोनवर्ती आत्मप्रदेशवाळो थाय. ते ध्यानमां ( शुक्लध्यानना त्रीजा पायामां) वर्ततां स्थितिघातादिवडे आयु विनाना त्रण कर्मनी सयोगी अवस्थाना चरम समय सुधी अपवर्तना करे अने सयोगी अवस्थानी स्थितिजेटली स्थितिवाळा राखे. तेमां पण जे प्रकृतिनो अयोगीमां Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२६] उदय नथी ते एक समय उण स्थितिनी राखे सयोगी अवस्थाने चरम समये एक वेदनी, औदारिक तैजस कार्मण शरीर, संस्थान ६, पहेलुं संवयण, वर्णादि चतुष्क, औदारिक अंगोपांग, अगुरुलघु, उपघात, पराघात, उच्चास, शुभाशुभविहायोगति, प्रत्येक. स्थिरास्थिर, शुभाशुभ, सुस्वरदुःस्वर, अने निर्माण, आ ३० प्रकृतिना उदय उदीरणा व्यवच्छेद पामे. तेने अनंतर समये अयोगी केवली थाय. तेनी भवस्थपणामां अंतहूर्तनी स्थिति छे. ते अवस्थामां वर्ततां भवोपग्राही कोंने खपाचवा माटे व्युपरतक्रियअप्रतिपाति ध्यान ( शुक्लना चोथा पाया ) मां आरोहण करे. त्यां स्थितिवातादि विना उदयवती प्रकृतिओने स्थिति क्षये अनुभवीने खपावे. अने अनुदयवतीने उदयवतीमां स्तिबुक संक्रमे संक्रमावीने भेळी वेदे. ए प्रमाणे अयोगीना द्विचरम संयम सुधी वर्ते. गाथा ६८ द्विचरम समये ५७ प्रकृतिने सत्तामाथी खपावे. २ आहारक वैक्रिय शरीर. १० देवगति सहगत ( उदय विनानी ) १० प्रकृति आ प्रमाणे२ आहारक- वैकिय बंधन, २ आहारक वेक्रिय अंगोपाग, १ देवानुपूर्वी. २ आहारक वैक्रिय संघातन, १ देवगति, ४७ विपाक उदय विनानी ३ औदारिक तैजस कार्मण शरीर, ३ औदारिक तैजस कार्मण संवातन, ६ संस्थान, ६ संघयण, १ अगुरुलघु. १ प्रत्येक, गाथा ६९-७०० १ उपघात, १ अपर्याप्त, २ सुस्वरदुःस्वर, १ निर्माण. १ मनुष्यायु, १ त्रस, ३ औदारिक तैजस कार्मण बंधन, १ औदारिक अंगोपांग. ४] वर्णादि, १ पराघात, १ उच्छवास, १ दुभंग, २ शुभाशुम, १ अयश, आ ४५ नामनी, तथा १ नीचगोत्र, अने १ अनुदित वेदनी कुल ४७, पछी चरम समये बाकीनी ११ उदयवती स्वपावे. १ उच्चगोत्र. १ बादर, १ सुभग, १ यशःकीर्ति, अ ११ अने तीर्थकर होय ते तीर्थकर नाम सहित १२ खपावे. १ मनुजानुपूर्वी, २ शुभाशुभगति, २ स्थिरास्थिर, १ अनादेय, १ मनुजगति, १ पर्याप्त, १ वेदनी. १ पंचेंद्रिय जाति, १ आदेय, Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२५] गाथा ७१-७२. अहीं कोई आचार्य कहे छे के-मनुजानुपूर्वी चरम समये खपावे, ते प्रमाणे गगतां १२ नी १३ थाय. आ बाबतमा प्रथम मतवाळा आचाय कहे छे के उदयवती प्रकृति ज चरेम समये खपावे, मनुजानुपूर्वी उदय वती नथी, तेथी ते विचरम समवे खरे. पछी सर्व प्रकृति बंध उदय उदीरणा सत्ताथी क्षय पामतां अनंतर समये कोश बंधमोक्षलक्षण सहकारी स्वभाववडे जीव ते ज समये बीजा समयने स्पयर्या विना सिद्धिस्थानमा जाय. अने जेटला आकाशप्रदेशने अहीं फरस्या होय तेटलाने ज फरसीने त्यां शाश्वतपणे रहे गाथा ६३. सिद्धिनुं सुख अवर्णनीय छे. तो पण कर्ताए टीकामां विस्तारथी वर्णव्युं छे. १ ते सुख एकांत शुद्ध छे, रागद्वेष व्यामिश्रित न होवाथी तथा संपूर्ण छे तेथी. २ जगतना सर्व सुखमां शिखरभूत छे.-जगतनां सुख आधि व्याधि सहित होवाथी. अहीं व्याधि के आधि कांइ नथी. ३ निरूपम छे.---तेनी उपमा आपीए तेवू सुख संसारमा छ ज नहीं. ४ बाभाविक छे.--संसारनां सुखनी जेम कृत्रिम नथी. ५ ते सुख अनं न छे.- कारण के तेने बाधा थई शके तेम नथी. बाधा करवाने समर्थ रागादि छ, ते क्षीण थया छे. वळी क्षीण थया छतां पण फरी उभा थाय, पण तेनां कारणभूत कर्मपुद्गलो पण नथी. पुद्गलो फरीने कदाच बंधाय, पण तेना कारणभुत संकेशनो अभाव छे. तेथी ते सुख शाश्वत (अविनाशी) छे. ६ ज्ञान, दर्शन, चारित्र,-रत्नत्रयीना सारभृत छे.-ज्ञानादि ज कर्मक्षयना कारण भूत होवाथी आवा अप्रतिम सुखने तेश्रो अनुभवे छे. आ कर्मग्रंथमां बंधोदय मत्तानो संवेध सामान्यथी कह्यो छे. विशेष जाणवानी इच्छा वाळाए दृष्टिवादथी जाणवो. आमां जे जे खामी होय ते बहुत गीतार्थोए पूरी करीने मारापर तथा शिष्यवर्गपर उपकार करवो. ॥ इति शम् ॥ ****************** * छठ्ठा कर्म ग्रंथर्नु संक्षिप्त विवरण समाप्त.* *********** ********* Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ६२ मार्गणासु मोहनीयकर्मणो बन्धोदयसत्तास्थानानि तद्भगाश्च पदानि पदवृन्दानि च ज्ञेयानि ॥ (षष्ठकर्मग्रन्थान्तर्वर्ती) भंगा; २१ [२२८] बंधनेआश्री उदयमार्गणासु बंधस्थानानि १० उदयस्थ नानि ९ उदय चोवीशी तझंगा स्थान सत्तास्थानानि १५ ९८३ पदानि| ४० | |६९४७ १/नरकगति ३२२।२१।१७ ५१०१९४८1७६. अष्टक २४ | १९२ १९२१५३६/६२८।२७१२६।२४।२२।२१। २ तिर्यंचगति |४२२१२१११७१३॥ १४६१०।९।८।७।६५। चोवीशी ३२ ७६८ २४४/५८५६६२८॥२७॥२६॥२४॥२२॥२१॥ ३ मनुष्यगति १०२२।२१।१७।१३।९।५।२१/९ १०।९।८।७६५।४।२।१चोवीशी ४० ९८३ २८८६९४७/१५२८।२७।२६।२४।२३।२२।२१।१३।१२।११ ४।३।२।१ भांगा २३-१२/ ९९५ २९०६९७१| ५।४।३।२।१।। ४ देवगति | ३२२।२१।१७॥ ५१०।१८।७।६। षोडशक २४ | ३८४ १९२३०७२/ ६२८२७॥२६॥२४॥२२॥२१॥ ५/एकेद्रिय २२२।२१। ४ १०।९८।। अष्टक ८ ६४/६८५४४३२८।२७१२५। द्वीद्रिय २२२।२१। १०४ १०।९८। अष्टक ८ ६४६८५४३२८॥२॥२६॥ .७त्रीद्रिय १०४१०।९।८। अष्टक ८ ३२८॥२७॥२६॥ ८ चतुरिंद्रिय | २२२२१॥ १०४ १०।९।८।। अटक ८ ६४६८५४४/३२८२७॥२८॥ ९पद्रिय १०२२१२१११७१६९५ २१९१०।९।८।७६५४॥२१ चोवीशी ४० ९८३ २८८६९४७/१५२८२७॥२६॥२४।२३।२२।२१।१३।१२।११] ४।३।२। भांगा २३.१२ ९९५ २९०६९७१] ५।४।३।२।१। १. पृथ्वीकाय २२२॥२॥ १०४ १०।९।८।। अष्टक८ ६४ ६८ ५४४ ३२८१२७२६। ११ अपाय २२२१२॥ १०४ १०।९८।। अष्टक ३२८॥२७॥२६॥ १२ तेजस्काय | ६|३१०।९।८। अष्टक ४ ३२ ३६] २८८ ३२८१२२६ १३ वायुकाय | ६३ १०।९।८। अष्टक ४ ३२/३६ २८८३२८॥२॥२६॥ १४ वनस्पतिकाय | २२२१॥ 10४ १०।९।८।। अटक |६४/६८५४४३२८१२७॥२६॥ १५ त्रसकाय १०२।२१।१७११३१९।५ २१९1०11८1५।४।२।१चावीशी ४०] ९८३२८८६९४०/१५२८२७॥२६॥२४॥२३१२२१२१।१३।१२।११ ४।३।२।१ मांगा २३.१२ ९९५२९०६९७१/ ५।४।३।२।१। १६ मनोयोगी १०२२।२१।१७।१३।९।५ २१९१०१९।८।७।६।५।४।२।१चोवीशी ४० ९८३२८८६९४७१५२८२७॥२६॥२४॥२३।२२।२१।१३।१२।११) ४।३।२।१ भांगा २३ । ९९५/२९०९६९७१ । ५४।३।२।१। । १७ वचनयोगी १०२।२१।१७।१३।९।५ २१/९ १०।९।८। ५।४।२।१चोषीशी ४०९८३ २८८६९४५१५२८॥२७॥२६॥२४॥२३।२२।२१।१३।१२।११] ४। २। iगा २३.१२, ९९. २९०६९७१ ५।४।३।२।। Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ काय योगी | १० २२।२१।१७।१३।९।५/४ २१९ १० | ९१८/७/६/५/४/२२ चोवीशी ४० ३।२।१। १। मांगा २३-१२ ६ २२।२१।१७।१३।९१५ १७८१०|९|८१७|६|५|४|११ अष्टक ४० भांगा ४ ६ २२।२१।१७।१३।९।५ १७८१०|९|८|७|६|५|४|२| अष्टक ४० भांगा ४ २१ नपुंसक वेदी ६२२।२१।१७।१३।९।५ १७८१० | ९|८|७|६|५|४|२| अष्टक ४० २२ क्रोध कषायी भांगा ४ ७२२।२१।१७।१३।९ १५४ १८९१०/९/८ | ७|६|५|४|२| छष्ट ४० १ भांगा ४ ८२२।२१।१७।१३/९/५ |१९ ९ १० | ९|८|७|६|५|४|२| ४।३। २३ मानकषायी छष्ट ४० १1 २४ मायाकषायी २४७ २८८१७३८ भांगा ५ ९ २२।२१।१७।१३/९/५ २० ९ १० | ९|८|७/६/५/४/२ छष्ट ४० ४।३।२। १ भांगा ६ २५ लोभकषायी १० २२।२१।१७।१३।९।५ २१९ १०/९/८/७/६/५/४/२ । छष्ट ४० ४।३।२।१| १। भांगा ७ २६ मतिज्ञानी ८१७।१३।९।५।४।३।२।१ । ११ ८ ९ ८|७|६|५|४|२|१| चोवीशी २४ ५९९ १५६३७७९ ३।२।१। भांना २३ चोवीशी २४५९९ भांगा २३ चोवीशी २४ भांगा २३ चोवीशी ८ भांगा २३ ८/१७|१३|९|५| ४ | ३ | २|१| ११ ८ ९ ८|७|६|५|४|२|१| ८१७।१३।९।५।४।३।२।१।११ ८९ ८|७|६|५|४|२|१| ७६ ७ ६ |५|४|२|१| १९ पुरुषवेदी २० स्त्रीवेदी २७ श्रुतज्ञानी २८ अवधिज्ञानी २९ मनः पर्यवज्ञानी ६९/५/४/३/२|१| ३० केवलज्ञानी ३१ प्रति अज्ञानी ३२ श्रुतअज्ञानी ३३ विभागज्ञानी ३४ सामायिक ३२२|२१|१७| ३२२।२१।१७१ ३२२।२१।१७१ ६/९/५/४३।२।१| ० १२ ४१० १९/८ाजा १२ ४१०/३/८/७ १२ ४१० | ९|८|| ७६७१६५४२११ ० ९८३ ९९५ ३२४ २८।२७।२६।२४।२३।२२।२१।१३।१२।११| २८।२७।२६।२४।२३।२२।२१।१३।१२ | ११२८।२७।२६।२४।२३।२२।२१।१३।१२ २८८ ६९४७१५ २९० ६९७१ २८८ २३१२ ११| ११।५। २१५) ३२४ २८८ २३१२ | ११२८।२७।२६।२४।२३।२२।२१।१३।१२ ३२४ २८८२३१२ |११२८।२७।२६।२४।२३।२२।२१।१३।१२ २४४ २८८१७३५ | १३२८।२७।२६।२४।२३।२२।२१।१३।१२।११ २४५ २८८१७३६| ५।४।३। | १४२८।२७।२६।२४।२३।२२।२१।१३।१२ २४६ २८८,१७३७ ५४।६।२। | १५२८।२७।२६।२४।२३।२२।२१।१३।१२।११ |१३ २८।२४।२३।२२।२१।१३।१२।११/५/४ | १३२८।२४।२३।२२।२१।१३।१२।११/५/४ १५६-३७७९ ३1२1१1 |१३ २८।२४।२३।२२।२१।१३।१२।११/५/४ | १३२८।२४।२३।२२।२१।१३।१२।११।५।४ ४४,१०९१ ५।४।३।२।१। ० ० ११।५। ११।५। ५९९ १५६३७७९] ३।२।१। ११।५। ५।४।३।२।११ ३।२।१। २८/२७/२६|२४| ० ० चोवीशी १६ ३८४ १३२३१६८४२८।२७।२६।२४८ चोवीशी १६ ३८४ १३२३१६८४२८/२७/२६|२४| चोवीशी १६ ३८४ १३२३१६८८२८।२४।२३।२२।२१।१३।१२।११।५।४ चोवीशी ८ २१४) ४४ १०९०.१३ | ३।२।१४ भांगा २२ [२२९] Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० ३. छेदोपस्थाप- | ६९।५।४।३।२।। | ७६६।५।४।२।१। चोवीशी ८ 1४ ४४१०९०१३२८।२४।२३।२२।२१।१३।१२।११।५।४।३ नीय भांगा २२ ५।१। ३ः परिहारविशुद्धि १ ४७६५॥४॥ षोडशक ८ .४ ५२८।२४।२३॥२२॥२१॥ ३७ सूक्ष्मसंश्राय १] ४२८।२४।२१।। ३८ यथाख्यात . . ३२८।२४।२१।। ३५ देशविति |१ २४८७।६।५। चोवीशी ८ | १९२ ५२/१२४८ ५२८२४॥२३॥२२॥२१॥ ४० अविरति ३२२।२१।१७ १२/५१०।९।८। । चोवीशी २४] ५७६ १९२४६०८७२८२७॥२६॥२४॥२३॥२२॥२१॥ ४१ चक्षुर्दर्शन १०२२।२१।१४१३१९।५। २१९१०१९1८1७६।५।४।२।१॥चावीशी ४० ९८३/ २८८६९४७१५२८।२७।२६।२४।२३।२२।२१।१३।१२।११ ४।३।२।१ भांगा २३-१२, ९९५/ २९०६९७१ ५।४।३।२।१। ४२ अचक्षुर्दर्शन १०२२।२१।१।१३।९।५ २१/९१०।९।८।७।६।५।४।२।१।चोवीशी ४० ९८३/ २८८६९४११५२८।२७।२६।२४।२३।२२।२१।१३।१२।११ ४।३।२।१ भांगा २३-१२ ९९५ २९०६९७१ ५।४।३।२।१। ४३ अवधिदर्शन | ८१४१३।९।५।४।३।२।१११/ ८९।८।७।६।५।४।२।१। चोवीशी २४ ५९९) १५६/३७७९/१३२८।२४।२३।२२।२१।१३।१२।११।५।४। भांगा २३-१२ ३।२।१ ४४ केवळदर्शन १० ४५ कृष्णलेश्या | ५२२१२११४३१९। ७१०।९।८।७।६।५।४।। चोवीशी ४ ६९१२/ ७२८।२ ॥२६।२४।२३।२२।२१। ४६नीललेझ्या ५२२।२१।१७।१३।९। ७१०।९।८।७।६।५।४। चोवीशी ४० ६९१२/ ७२८।२७।२६।२४।२३।२२।२१। ४७ कपोतलेश्या | ५२२।२१।१७।१।९। ७१०।९।८।६।५।४। चोवीशी ४० ९६० २८८६९१२/ ७२८।२७॥२६॥२४॥२३॥२२॥२१॥ ४८ ते नोलेश्या । ५/२२।२१।१७।१३।९। १६/७१०।९।८६।५।४। चोवीशी ४० ९६० २८८६९१२/ ७२८१२१२६।२४।२३।२२।२१। ४९ पद्मलेश्या ५२२।२१।१७४१३।९। १६/७१०१९४८७६।५।४। चोवीशी ४० ९६०२८८/६९१२/ ७२८२७॥२६॥२४॥२३॥२२॥२१॥ ५० शुकलेश्या १०२२१२१११४१३३९४५ २१ ९१०।९।८। ५।४।२।१३ चोवीशी ४० ९८३ २८८/६९४७१५२८।२७॥२६॥२४॥२३१२२।२१।१३।१२।११ ४।३।२।१। भांगा २३-१२/ ९९५२९०६९७१ ५।४।३।२।१। । ५१ भवसिद्रिक १०२२।२१।१७।३।९।५ २१/ ९/१०।९।८।६।५।४।२।१।चोवीशी ४० ९८३/ २८८६९४४१५२८।२७॥२६॥२४॥२३१२२।२१।१३।१२।११। ४।३।२।१। भांगा २३-१२ ९९५ २९०६९७१/ ५।४।३।२।१। ५२ अभवसिद्धिक १ |६|३१०।९।८। पोशी ४ । ९६ ३६ ८६४ १२६॥ ५३ औपशमिकस-[८१७११३।९।५।४।३।२।१।११७८७६५।४।२।१। चोवीशी १२| ३११/ ७२/१७६३२२८२४॥ म्यक्त्व भांगा २३-१२ ५४ क्षायिकसम्य-८१७४१३।९।५।४।३।२।१।११] ७८1५।४।२।१। चोवीशी १२ ३११ ७२१७६३/ ९२१।१३।१२।११।५।४।३।२।१। भांगा २३-१२ ५५क्षायोपशमस-|३१७११३।९। चोवीशी १२ | २८८ ८४२०१६ ४२८।२४।२३।२२। म्यक्त्व ५६ मिश्रद्रष्टि | १७ |२| ३९८७ चोवीशी ४ / ९६ ३२ ७६८ ३।२८।२७।२४। [२३०] क्व Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1५७ सास्वादनस म्यक्त्व ५८ मिथ्याद्रष्टि ५९ संज्ञी | २१ ४ ३९८ चोवीशी ४ । ९६) ३.७६८/१/२८॥ १०१९/८ ६ ४१०९।८६५/४।२। चोवीशी ८ | १९२) ६८१६३२/ ३२८१२७०२६। १०२२।२१।१७। ३।९।२१ ९ १। चोवीशी ४० | १८३ २८८६९४७१५२८॥२४॥२६॥२४॥२३।१२।२१।१३।१२। ४।३२।१ १०१९/८/ भांगा २३.१२ ९९५ २९८६९७१ ११।५।४।३।२।१।। | २२२२२१॥ ४१०१९/ ८ ६५/४/२ अष्टक ८ । ६४.६८५४४ ३२८१२७२६।। १०२२१२१/१७/१३।९।५।२ चविशी ४०/९८३/ २८८६९४५१५२८१२७१२६।२४।२३।२२।२१।१३।१२। |- ४/३२।। भांगा २४-१२/ ९९० २९०६९७१ - ११॥५॥४३।२।१। ३/२२१२१।१७। २५१०९।८।६। चोवीशी १६ | ३८४ १२८/३०७२/ ६२८।२७।२६।२४।२२।२१। ६. असंज्ञी ६१ आहारी ६२ अनाहारी ६२ मार्गणागतगुणस्थानेषु मोहनीयकर्मणोबंधोदयस्थानानि तद्भगाश्च पदानि पदवृन्दानि च लिख्यन्ते ॥ अधः - उदयस्थान उदय चोवीशी कुल उदयभंग | कुल उदयपद - कुल उदयपदवृंद मार्गगा. १नरकगति [२३१] तिर्यचगति २४ अ. 1१९२ मिथ्यात्व २२ ६८।९।१०१।३।३।१ अष्टक ८८।२४।२४। ८ ६४ ।२४।२७।१०६८ ५६।१९२१२१६१८० ५४४ साखादन २१ - ४७८९ ।।२।१ अ. ४८।१६८ ३२७११६९ ३२ ५६।१२८१७२ मिश्र १७ ।। ७८९ १।२।१ अ. . ४८।१६। ८ ३२।१६९ ५६।१२८७२ अविरत १७६ ८९ १।३।३।१ अ. ८८।२४।२४। ८६४ ६४६।२१।२४।९ ४८।१६८।१९२१७२४८० ५८५६ मिथ्यात्व ६७८९।१०१1३।३।१चोवीशी८ चो. २४/७२।७२।२४ १९२ ७।२४।२७।१० ६८ १६८१५७६२६४८१२४० १६३२ सा-वादन २१ । ४८९१।२। चो. ९६७।१६९ १६८१३८४/२१६ ..७८९२ . चो ४- २४॥४८॥२४ ९६ ७१६९ ३२ १६८।३८४।२१६ अविरत १७ ७ ८९ १।३।३।१ चो. |८ २४।७२।७२।२४ १९२ ६।२१।२४।९ १४४।५०४।५७६।२१६ १४४० देशविरति १३ । २५।६।७८ १।३३।१ चो. | ८ २४।७२।७२।२४ १९२ ५।१८।२१।८ | ५२ १२०॥४३२।५०४।१९२ १२४८ १० २१९ ४०चो. ९८३क २८८ख ६९४७ ग. मिश्र ३मनुष्यगति क. चारना बंधमां असंक्रमणकाळना चार उदय भांगा अहीं गणेला छे. तेमा संकमण काळना बार भांगा बीजा उभेरीए त्यारे उदयभांगा सर्व मळी ९९५ थाय. ख. मतांतरे बेना उदयनी एक चोवीशीना बे पह नोखीए त्यारे २९० पद थाय छे. ग. मतांतरे वेना उदयनी एक चोवीज्ञी नांखीए त्यारे ६९७१ थाय छे. Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ चो.२४।७२१२४ १९२ ७।२४।२७।१०६८१६८।५७६।६४८१२४० १६३२ २४|४८।२४९६ ७।१६। ९ ३२ १६८।३८४॥२१६ ७६८ २४|४८।२४९६७।१६९ १६८।३८४।२१६ २४/७२।७२।२४ १९२६।२१।२४।९ १४४०५०४।५७६।२१६ १४४० २४।७२।७२।२४ १९२५।१८।२१।८ ५२ १२०१४३२।५०४।१९२ १२४८ मिथ्यात्व २२ । १९१०१।३।३।१ चो. सास्वादन २१ । ४७८९ १२।१चो. मिश्र १७ .७८९ ११२।१ अविरत १७ ६।१६।९ १।३।३।१ देशविरत १३ २५।६।७८ १।३।३।१ प्रमत्त-अप्रमत्त-निवृत्ति ९ २४।५।६७ ११३।३।१ अनिवृत्ति - १२ १२ भांगा ४ भां. ३ भां. २ भां. १ भां. २४।७२।७२।२४ १९२ ४।१५।१८।७ ४४ १२भां. .5 ९६।३६०।४३२।१६८ १०५६ २४ १२ 0 ११ ० १ भां. 0.00 ११ ३०७२ २१ [२३२] ८ १६.४८।८।। ६४ ४देवगति १२ ५ २४ षो. १९२ मिथ्यात्व ६७८।९।१०१।३।३।१ षोडश १६।४८।४८।१६ १२८ ७२४।२७११०६८ ११२॥३८४।४३२।१७० १०८८ सास्वादन । ४७८९१२।१ १६।३२।१६६४१६९ ३२ ११२।२५६।१४४५१२ मिश्र १७ . ८९ १२।१ १६०३२।१६६४ १६ ९ ३२ ११२।२५६।१४४५१२ अविरत १७ ८ ९ १।३।३।१ १६१४८।४८।१६ १२८ ६।२१।२४।९ ६० ९६३३६३८४।१४४ ९६० ५ एकेन्द्रिय ८ अ. मिथ्यात्व २२ क. ६८।९।१०१२।१ अ. ४ ८।१८।१० ६४।१४४१८० २८८ ४७८९१२११ .४ ८1१६८... ३२१६१९३२ ५६।१२८१७२ . २५६ ६८ विकलेंद्रिय एकेंद्रियप्रमाणे ९पंचेंद्रिय मनुध्वगतिप्रमाणे १० पृथ्वीकाय एकेद्रियप्रमाणे ११ अपकाय एकेंद्रियप्रमाणे १२ तेजस्काय ४ अष्टक मिथ्यात्व २२ २८९/१० १२११ अ.४ ८11८ ८।१८।१० - ३ ६४।१४४६८० १३ वायुकाय तेजस्झाय प्रमाणे १४ वनस्पतिकाय एकेंद्रियप्रमाणे क. २२ ना बंधस्थानमा सातवें टदयस्थानक छछ। कर्मग्रंथमा ८४५५ मे मे कहेलूं छे. परंतु एकद्रियने ते उदय थान असंभवित छे कारण के ते अनंतानुबंधि विना तथा श्रेणिथी पडताने होय छे. अने एकेंद्रियने श्रेणि नथी. तत्त्व केवळी जाणे. २८८ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 047 - ३५२ १५त्रसकाय मनुष्यगतिप्रमाणे १६मन्योग मनुष्यगतिप्रमाणे १७वचनयोग मनुष्यगतिप्रमाणे |१८ काययोग १९ पुरुषवेद २० स्त्रीवेद २१ नपुंसकवेद १७८ ४ भां. २८८ २३१२ मिथ्यात्व २२ ६ ८।९।१०१ ।३।३।१ अ. ८ ८।२४।२४३८६४२४।२७४१०६८५६।१९२।२१६१८० ५४४ सास्वादन ७८९१।२१ ४ ८।१६८३२ १६१९३२ ५६।१२८।७२ २५६ मिश्र.अ. विरत १७२ ६७८९ १।४।५।२ ८।३२।४०।१६ ४८।२२४।३२०।१४४ ७३६ देशविरत १३२५।६।७८१ ।३।३।१ ८।२४।२४।८ ६४५।१८।२१।८ ५२ ४०11४४।१६८१६४४१६ प्रमत्त अ ग्मत्त-निवृत्ति २ ४।५।६७ १०३।३।१ ८ ८२४।२४।८ ६४४।१५।२८१७४४२११२०११४४:५६ भनिवृत्ति ५ भांगा ४ . भांगा ४ ४ ४० षष्टक २२ क्रोध ४ भां. २८८ मिथ्यात्व २२ ७८९।१०१।३।३।१ षष्टक ८ ६।१८।१८१६४८ ७/२४।२७४१०६८ . ४२११४४/१६२।६०४०८ सास्वादन २१ ७८९ १।२।१ ६।१२।६ २४ ।१६। ९ ३२ ४२१९६१५४ १९२ मिश्र-अविरत १७२ ६७८९ १।४।५।२ ६।२४।३०।१२ २ ६२८१४०1१८९२३६१६८२४०1१०८५१२ देशविरत १३२ ५।६।७८ १।३।३।१ દા૧૮૧૮૬ ४८ ५।१८।२१।८ ५२ ३०।१०८।१२६।४८ ३१२ प्रमत्त-अ ४।५।६।७ १।३।३।१ ६।१८।१८। ६ ४८४।१५।१८१७४४२४१९०११०८१४२२६४ प्रमत-निवृत्ति वात्त ९२ अनिवृत्ति ५ ३ भांगा भां. ३ अनिवृत्ति ४११ १ भां. १ भां. २२मान क्रोधमार्गणाप्रमाणे. विशेष ए के अनिवृत्ति गुणस्थानना श्रीजा भागे त्रण- बंधस्थान होय. तेनो भांगो एक. उदयस्थान एक तेनो भांगो एक. ! उदयभंग एक, उदयपद एक भने पदवृंद एक होय छे तेथी करीने कुल बंधस्थान विगैरे नीचेप्रमाणे जाणधुं. ८ १९ ९ ४. ष. १७३६॥ . .. ५ भां.. [२३३] / . Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ माया | मानानी मार्गणाप्रमाणे जाणवं. विशेष ए के अनिवृत्ति गुणस्थानने चोथे भागे बेनुं बधस्थानक होय. तेमा उपरप्रमाणे एक एक भांगो, उदय स्थान विगेरे वधारवा तेथी करीने कुल वंधस्थानक विगेरे नीचे प्रमाणे जाणवू. ४. प. २८८ २५लोभ २६ मतिज्ञान ८ १५६ मायानी मार्गणाप्रमाणे. विशेष ए के अनिवृति गुणस्थानकने पांचभे भागे एकनु बंधस्थान होय. तेमां उपर प्रमाणे एक एक भांगो, उदय स्थान विगेरे वधवाथी नीचे प्रमाणे कुल बंध स्थानक विगेरे जाणवा. ४०. १७१० ७ भांगा. २४ चो. २३ भां. अविरत १७२ ६७८९ १।३।३।१चोवीशी ८ २४॥७२।७२।२४ १९२ ६।२१।२४।९६० १४४५०४।५.७६।२१६१४४० देशविरत १३.२ ५।६७८१३।३।१।। २४/७२।७२।२४ १९२ ५।१८।२१८५२ १२०१४३२१५०४।१९२१२४८ प्रमत्त, अप्रमत्त, नि वृत्ति ४५।६७ १।३।३।१ ८ २ ४।७२।७२।२४ १९२ ४।१५।१८।७४४ ९६।३६०।४३२।१६८ १०५६ अनिवृत्ति भाग १ ५ १२ १२ भागा ११ [२३४] - 02 सूक्ष्मसंप ८चो. २७ श्रुतज्ञान मतिज्ञान प्रमाणे. २८अवधिज्ञान मतिज्ञाननी मार्गणाप्रमाणे २९मनाःपर्यवज्ञान २३ भां. १५ प्रमत्त, अप्रमत्त, निवृति ९.२ ४॥५॥ ६। ०१ ।३।३।१ चो. ८ २४।७२।७२।२४ २४।७२७२।२४ १९२३।१५।१८।७४४ ९६.३६०१४३२११६८१०५६ 11 चा. - Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनिवृत्ति भां. १५१२१२ भां. १२१२ » ܩ ܩ ००००० m ܩ ar .." ܩ . - ० . ܘ - ० ..... १६ चो. ८ १३२ ३१६८ २४।७२।७२।२४ १९२ ॥२४॥२७॥१०६८ १६८१५७६१६४८१२४० १६३२ २४॥४८॥२४९६१६९ ३२ १६८।३८४।२१६ २४॥४८॥२४ ९६ ॥१६९३२ १६८।३८४।२१६ । मिश्र . . अबंध ३. केवळ ज्ञान ३३ मत्यज्ञान, श्रुतज्ञान विभंगज्ञान मिथ्यात्व २२ ६ ८९/१० १।३।३।१ चो. सास्वादन ७८९ १।२।१ १७२७८९१२१४ ३५ सामायिक चारित्र, छेदोपस्थाप नीय चारित्र प्रमत्त, अप्रमत्त,निवृत्ति ९, २४।५।६। ७ १।३।३।१ चो. अनिवृत्ति भां. १ ५ १ २ १२ भांगा ८ चो. १२ मी. [२३५] ९६।३६०।४३२।१६८ ८ चो.. २४।७२।७२।२४ १९२ ४।१५।१८७ ४४ १२ भां. १२ १२ mNG १ ३६परिहारवि शुद्धि पो. १२८ ४४ .. प्रमत्त, अप्रमत्त ९ | २ ४।५।६। ७ १।३।३।१ षो.. ८ .१६४८/४८।१६ १२८ ४।१५।१८।७ ४४ ६४।२४०।२८८।११२ ३७ सूक्ष्मसंप Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . . | यथाख्यात ३८ देशविरति देशविरत १३ ३९ अविरति मिथ्यात्व २२ सास्वादन २१ मिश्र १७ अविरत १५ ५७६ ८ चो. १९२ ५२ १२४८ ५।६।७८१३१३।१चो.८ - २४।७२।७२।२४ १९२ ५।१८।२१।८ ५२ १२०१४३२१५०४।१९२ १२४८ १२५ २४ चो. ६७1८1९1१. १।३।३।१चो .८ २४/७२।७२।२४ १९२ ७२४/२७४१०६८ १६८१५७६१६४८२४० १६३२॥ ४ ८९ ११२।१ २४।४८।२४९६७ ।१६। ९ ३२ १६८१३८४१२१६ ७६८ ७८९१/२।१ २४।४८।२४ ९६ १६९३२ १६८१३८४२१६ ६७१८९१३१३१ ८ २ ४१७२१७२१२४ १९२६।२१।२४॥९६० १४४५०४।५७६।११६ १४४० ४२ चक्षुदर्शन अचक्षुदर्शन मनुष्यगतिप्रमाणे |४३ अवधिदर्शन अवधिज्ञानप्रमाणे ४४ केवळदर्शन ४९ कृष्ण,नील, कापोत, ते जो, पद्म लेझ्या मिथ्यात्व २२ ४. चो. २८८ २४/७२७२।२४ १९२४२४१२४१०६८ (६९१२/ [२३६] ६७८1९/१० ११३१३११ १६८1५१६६४८१२४० १६३२॥ चो. सात १७ साग्वादन २१ । ४७८९ १।२।१ २४|४८।२४९६ १६९ ३२ १६८।३८४।२१६ मिश्र १७ १।२।१ २४/४८।२४९६ १६९ १६८।३८४१२१६ अविरत ६७८९ ११३१३११ २४/७२।७२।२४ १९२६।२१।२४।९ १४४/५०४।५७६।२१६ १४४० देशविरत् १३ २ ५।६।७८ १।३।३.१ २४।७२१७२१२४ १९२ ५।१८।२१।८ (१२०१४३२।५०४।१९२ १२४८ प्रमत्त । २४।५।६७१।३।३।१ २४।७२।७२।२४ १९२।१५।२८७ ९६।३६०१४३२।१६८ १०५६ ५१ शुमलेश्य भव्यमनुष्यगतिप्रमाणे ५२ अभव्य मिथ्यात्व २२ ६८।९।१०१२। १ ४ २४॥४८।२४ . ९६८१८१०३६ १९२१४३२।२४० ५४ उपशम स म्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व २३ भां. ३११ । ७२ अविरत १७ २६८१२११ चो. ४ चो. २४॥४८॥२४९६६।१४। ८ २८ (१४४।३३६।१९२६७२ । १२ चो. Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५ क्षयोपशम सम्यकत्व ५७ सास्वादन ५८ मिथ्यात्व ५९ संज्ञी ६० असंज्ञी देशविरत १३ प्रमत्त-अ प्रमत्त-नि ६१ आहारी Fi अनिवृत्ति भाग १ ५ १ सूक्ष्मसंपराय. अबंध ० ५६ मिश्र सभ्य क्त्व अविरत १७ देशविरत् १३ प्रमत्त-अ प्रमत्त ९ मिश्र १ २ १७ २ १ ४ सास्वादन २१ ४ ६ १ मिथ्यात्व २२ मनुष्यगति प्रमाणे २ २ मिथ्यात्व २२ सास्वादन २१ मनुष्यगति प्रमाणे २ १० wz ४ ५६७ ४५६ ७१८४९ ६।७१८ ५/६/७ ७८९ ७१८१९ ४ ७/८/९/१० 91219 १।२।१ १।२।१ १।२।१ १।२।१ १२ भां. १२ भांगा. १२ १।२1१ |१।२।१ ४ ४ ८।९।१० अ. १1२1१ ७/८/९ १।२।१ १२ चो. ४ ४ ४ ४ ४ ४ चो... ४. १।३।३।१ ८ ८ अ. | २४|४८१२४ * २४।४८।२४ २२।४८।२४ २४|४८|२४ | २४|४८|२४ | २४|४८।२४ ९६ |८|१६|८ ८/१६/८ १२ Exorc ४ २८८ ९६ ९६ ९६ ५।१२।७ |४|१०|६ |७|१६१९ ६! १४१८ ५।१२।७ १९६ ९६ ९६. २४।४८।२४ ९६ १९२ २४।७२।७२।२४ १९२ ७।२४।२७।१०६८ ७।१६।९ ७।१६।९ RY ६४ ३२ ८/१८/१० ३२ ७।१६।९ ८४ ३२ २८ २४ ३२ ३२ ३२ ३२ ६८ ६८ ३६ ३२ १२०/२८८।१६८ १५७६ ९६।२४०११४४ ૨૪ ४ १६८|३८४।२१६ १४४।३३६।१९२ | १२०/२८८।१६८ ६४|१४४ |८० ५६।१२८।७२ २४ २ १ ૮. १ २०१६ ७६८ ५७२ ५७६ ७६८ | १६८।३८४।२१६ ७६८ ७६८ | १६८।३८४।२१६ ७६८ १६३२ | १६८।५७६।६४८।२४ ० १६३२ ५४४ २८८ | २५६ -[२३७] Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ अनाहारी क० मार्गणासु ४ देवगति ५ एकेंद्रिय ६ द्वीद्रिय ७ त्रीद्रिय ८ चतुरंद्रिय ९ पंचेंद्रिय ८।९।१० ३ १२ मिथ्यात्व २२ सास्वादन २१ ४ ७१८१९ अविरत १७ २ ६१७१८१९ १ क गति २|२९|३०| २ तिर्यचगति ६ २३।२५।२६।२८|२९|३०| ३ मनुष्यगति ८ २३।२५/२६|२८|२९|३०|३१|१| १० पृथ्वी काय ११ अप्काय १२ तेजस्काय नाम्नो बंधस्थानानि ८ ४/२५।२६।२९।३०| ५२३।२५।२६।२९|३०| ५२३।२५/२६|२९|३०| ५२३/२५/२६।२९|३०| ५२३।२५।२६।२९/३०| ८२३।२५।२६।२८|२९|३०|३१|१| ५२३।२५|२६|२९|३०| ५२३।२५|२६|२९|३०| ५२३।२५।२६।२९/३०| | १६ चो. ४ ४ १८ १।२।१ चो. |१।२1१ | १।३।३।१ ॥ ६२ मार्गणासु नामकर्मणो बंधोदय सत्तास्थानानि तद्भगाश्च ज्ञेयाः ॥ ( षष्ठकर्मग्रन्थान्तर्वर्ती ) उदयन्थानानि १२ तसंगः १३९४५ | ३८४ ९६ |८|१८|१० ९६ ७।१६/९ ३२ | २४|७२|७२।२४ | १९२ | ६|२१|२४|९ ६० २४।४८।२४ २४।४८।२४ १३८३२ ५ २१।२५।२७|२८|२९| १३९२६ ९२१।२४/२५।२६।२७|२८|२९|३०|३१| १३९३७ ११ २१।२४।२५।२६।२७/२८|२९|३०|३१| ९टा १२८ नहूंगा: ७७९१ | घटा १३९१७ ५२१।२४।२५।२६।२७। १३९१७ ५२१/२४/२५।२६।२७। ९३०८ ४२१।२४।२५|२६| ३०७२ ८६४ ७६८ | १४४|५०४|५७६।२१६ | १४४० | १९९।४३२।२४० १६८।३८४।२१६ ५ ३ ९२।८९।८टा ५०७० ५९२।८८८६८०१७८ २६५२११ ९३ ।९२।८९१८८।८६।८०।७९।७६ । ७५ । डाटा १३८५६ ६२१।२५।२७।२८।२९।३० १३९१७ ५२१।२४।२५।२६।२७ १३९१७ ६ २१।२६।२८|२९|३०|३१| १३९१७ ६ २१:२६ |२८|२९|३०|३१| १३९१७ ६ २१।२६।२८|२९|३०|३१| ६४ ४९३ ।९२।८९।८८ ४२ ५ ९२।८८।८६८०२७८ २२ ५ ९२।८८।८६१८०८७८। २२ ५ ९२।८८।८६८०१७८ २२ ५ ९२।८८।८६१८०१७८ १३९४५ ११ २०।२१।२५।२६।२७।२८।२९६|३०|३१| ७६८३ १२९३ । ९२१८९१८८१८६१८० ७९१७८१७६।७५ ९ शा सत्तास्थानानि १२ २४ ५ ९२।८८।८६८०७८टा २० ५९२।८८१८६८०८७८२ १२ ५९२।८८१८६८०८७८| क० बावीशना बंधे उदय स्थानक चार छे ७ ८ ९ १०. ए चार उदयव स्थानक मध्ये अनाहारीनी मार्गणाए त्रण उदयस्थानक संभवे. सातनुं उदयस्थानक अनंतानुबंधी रहित छे ने अनाहारीनी मार्गणा अनंतानुबंधी वीना सभवे नही तेथी सातनुं उदयस्थान काढी नांख्यूं छे अने त्रण उदय स्थानक यंत्रमां लख्यां छे. सतरना धंधे उदय स्थ नक यंत्रमां ४ लख्या छे. तेनी चोवीशी ८ लखी छे. ते मध्ये ४ चोवीशी क्षायिक आश्री संभवे छे. अने चार क्षयोपशम आश्री संभवेछे. अनाहारीनी मार्गणामां जीव वाटे वहेतां होय छे. तेथी तेमां क्षायिक अने क्षायोपशमिक ए बन्नेनो संभव छे. [२३८] Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० स्त्रीवेदी ||३|गयुकाय २३।२५।२६।२९।३०॥ | ९३०८४२१॥२४॥२५॥२६॥ १५/५/५२१८८।८६।८०।७८। वनस्पति काय २३।२५।२६।२९।३०। १३९१२१॥२४॥२५॥२६॥२७॥ ३७५१२१८८१८६८०७८। उसकाय ८२३१२५।२६।२८।२९।३०।३१।१।१३९४५। २०२१।२५।२६।२७॥२८॥२९/३०१३।७७४९१२१३१९२१८९४८८।८६१८०।७९१७८१७६।७५॥ ९।८। १६ नोयोगी ८२३१२५२६॥२८॥२१॥३०॥३/ १ ३९४५/६२५।२७।२८।२९।३०1३१॥ ३५७४१०२३१९२८९।८८८६०८०७९१७८१७६७५॥ चनी ८२३१२५/२६।२८।२९।३०।३१। १ ३९४.६२५२७॥२८२९३०॥३१॥ (३१३५८२१०१३।९२१८९४८८1८६१८०१७९/७८१७३।७५॥ १८ काययोगी ८२३।२५।२६।२८।२९।३०।३१।११३९४५१०२०।२१।२४।२५।२६।२७१२८।२९।३०। ७७८९/१०१३।९२१८९।८८।८६१८०१७९१७८१७६१७५|| १९ पुरुषवेदी ८२३।२५।२६।२८।२९।३०।३१।१।१३९४५८२१।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१। ७६७०१०१३।९२१८९४८८।८६०८०७९७८।७६।७५॥ ८२३।२५।२६।२८।२९।३०।३१।१।१३९४५८२१।२५।२६।२२८।२९/३०।३१। ७६६३१०१३।९२१८९/८८।८६८०७९१७८१७६१७५॥ २१नपंसकवेदी ८२३१२५२६।२८।२९३०३१।१।१३९४५ ९२१।२४।२५।२६।२७१२८।२९।३०।३१। ७७१९१०९३१९२१८९।८८१८६८०1७९७८१७६७५॥ २२ कोधकषायी ८२३१२५।२६।२८।२९/३०।३१। १३९४५९२१२४॥२४॥२६॥२७॥२८॥२९॥३०॥३१॥ ७७८३१०२३१९२१८९५८८1८६१८०1७९७८१७६।७५। २३मानकषायी ८२३।२५।२६।२८।२९।३०।३१।१।१३९४५ ९२१।२४।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१।७७८३१०९३।९२१८९४८८।८६१८०७९/७८१७६१७५। २४ मायाकषायी ८२३१२५।२६।२८।२९।३०।३१।१।१३९४५९२१।२४।२५।२६।२७२८।२९।३०।३१।७७८३१०९३१९२१८९८८१८६१८०७९/७८१७६७५। २५ लोभभकषायी ८२३।२५।२६।२८।२९।३०।३१।१।१३९४५ ९२१।२४।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१।७७८३१०९३।९।८९।८८१८६१८०७९/७८१७६।७५। २६ मतिज्ञानी ५२८।२९।३०।३१।१। ३५८२१।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१। ७६७१/ ८९३१९२।८९।८८८०७९/७६।७५। २७श्रतज्ञानी ५२८।२९।३०।३१।१। ३५/८२१।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१। ७६७१/ ८९३१९२१८९४८८१८०७९/७६।७५। २८ अवधिज्ञानी ५२८१२९/३०।३१।१। १९/८/२१।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१। ७६७१/ ८९३।९२१८९।८८।८०1७९७६७५। २९ मनःपर्यवज्ञानी ५२८।२९।३०।३१।१। १९] ५२५।२७२८॥२९॥३०॥ | १५८८९३।९२।८९।८८१८०७९/७६।७५। ३० केवलज्ञानी . १०२०।२१।२६।२७/२८।२९।३०।३१।९। ८ ६२/६८०७९/७६।७५।९।८। ३१मतिअज्ञानी ६२३।२५।२६।२८।२९।३०। १३९२६/ ९२१।२४।२४॥२६॥२७॥२८।२९।३०।३१। ७७७३] ६९२१८९।८८।८६८०1७८। ३२ श्रुतअज्ञानी ६२३।२५।२६।२८।२९।३०। १३९२६/ ९/२१/२४।२५।२६।२७॥२८।२९।३०।३१।७७७३/६९२१८९४८८१८६८०७८॥ ३३ विभंगज्ञानी ६२३।२५।२६।२८।२९।३०। १३९२६ ८२१।२५।२६।२७१२८।२९।३०।३१। ७६६१| ३९२१८९४८८। ३४ सामायिक ५२८।२९।३०।३१।१। १९ ५/२५।२७१२८।२९।३०। १५८८९३१९२१८९५८८१८०१७९७६७५ ३५छिदोपस्थापनीय ५२८।२९।३०।३१।१। १९५२५।२७।२८।२९।३०। १५८८९३।९२०८९४८८५८०७९/७६/७५॥ ३६परिहारविशुद्धि ४२८।२९॥३०॥३१॥ १८ १३० २४ ४९३१९२१८९८८ ३७सूक्ष्मसंपराय १] १३० ७२/८९३१९२१८९४८८५८०७९/७६७५। ३८ यथाख्यात ० १०२०।२१।२६।२७॥२८।२९।३०।३१।९।८।। ११०१०९३१९२।८९।८८।८०७९/७६/७५।९।८। ३९ देशविगति २२८।२९। १६ ६२५।२७।२८।२९।३०।३१। ४४३/ ४९९२१८९४८८ ४० अविरति ६२३।२५।२६।२८।२९।३०। १३९४२/ ९२१।२४।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१। ७७७३/ ७९३३९२१८९/८८।८६।८०७८। ४१चक्षुदर्शनी ८२३१२५/२६।२८।२९।३०।३१।१।१३९४५/८२११२५।२६।२७॥२८॥२९॥३०॥३१॥ ३५७८८९३१९२१८९।८८१८०७९/७६।७५॥ ८२३।२५।२६।२८।२९।३०।३१।१।१३९४५ ९२११२४।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१। ७८३|१०९३।९२।८९/८८1८६१८०७९।७८। ४३ अवधिदर्शनी ५२८।२९।३०।३१।१। ३५/८२१।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१. ७६७१/८/९३१९२१८९/८८1८०1७९।७६१७५॥ [२३९] 10 ४२ अचक्ष की Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४किवलदशनी . ४५ कृष्णलेश्यावंत . ..... २३।२५।२६।२८।२९।३०। ४६ नीललेश्यावंत २३।२५।२६।२८।२९।३० | . १०२०।२१।२६।२७।२८।२९।३०।३१।९।८ ६२/६८०1७९/७६।७५।९।८। १३९३४ ९२११२४।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१॥ ७७७३/६९२१८९।८८१८६१८०७८ ७७८३ १३९४ः| ९२१।२४।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१।७७७३ ६९२।८९।८८१८६।८०।७८। ७७८३] १३९४२/ ९२१।२४।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१।७७७३/६९२८९।८८१८६।८।७८। ४५ कापोतलेल्यावंत ६२३।२५।२६।२८।२९।३०। ४८ तेजोलेश्यावंत २५।२६।२८।२९।३०।३१। १३८७४ ९२११२४।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१।७६७ | ४९३१९२।८९.८८ ४९ पद्मलेश्यावंत ४२८।२९॥३०॥३१॥ १३८५०८२१।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१। ७६६६ ४९३१९२१८९४८८ ५० शुक्ललेश्यावंत ५२८।२९।३०।३१।१ | ४६३५/ ९२०२१।२५।२६।२७।२८।२९।३०॥३१॥ ७६७२ ८९३१९२१८९।८८८०७९४७६।७५। ५१भवसिद्धिक ८२३।२५।२६।२८।२९।३०।३१।१।१३९४५/१२२१०२४।२५।२६।२७॥२८॥२९॥३०॥३१॥ ७७९११२९३१९२१८९।८८८६१८०१७९१७८१७६। २०१८।। ७५।९।८। ५२ अभवसिद्धिक ६२३।२५।२६।२८।२९।३०। ३९२६/ ९२११२४।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१॥ ७७७३/ ४८८1८६८०७८। ५३ औपशमिक ५२८।२९।३०।३१।१। ३५/८२१।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१। १७६९/ ४९।९२१८९।८८। ५४ क्षायिकसम्यक्त्व ५२८।२९।३०।३१।१। ३५/११/२०१२।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१।। ६२३१०९३१९२१८९।८८१८००७९/७६।७५।९।८ ९५८ ५५क्षायोपशमसम्यक्ष ४२८।२९।३०॥३१॥ ३४ ८२१।२ ।२६।२७।२८।२९।३०।३१ ७६७१ ४९३४८२१८९८८। ५६ मिश्रदृष्टि २२८।२९। १६३२९।३०।३।। ३४६५ २९२।८८। ५५ गस्वादनसम्यक्त्व ३२८।२९।३०। ९६०८७२१२४॥२५२६२९३०॥३१॥ ४०९/२९२१८८।। ५८ मिथ्यादृष्टि ६२३।२५।२६।२८।२९।३०। १३९२६ ९२११२४॥२५॥२६॥२७॥२८।२९।३०।३१।७७७३] ६९२१८९।८८1८६।८०७८।। ५९/संज्ञी २३।२५।२६।२८।२९।३०।३१।१।१३९४५ ८२१।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१। ७६७५/१२९३१९२१८९/८८८६।८०।७९/७८१७६। ७६८३/ ७५/९/८। ६० असंज्ञौ २३।२५।२६।२८।२९।३०। १३९२६ ९२१।२४।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१।। १३२/५९२१८८।८६।८०७८ ५०१६/१० ६१ आहारी ८२३।२५।२६।२८।२९।३०।३१।१।१३९४५ ९२१।२४।२५।२६।२७।२८।२९।३०।३१।७७४६ ९३।९२१८९।८८।८६।८०।७९।७८।७६।। ६२'अनाहारी ६२३।२५।२६।२८।२९।३०। १३९४१४२०१२१९/७ | ४५१२.९३१९२१८९।८८१८६१८०।७९/७८१७६। | ७५/९/८ [08:]. ११ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुणस्थानकेषु जीवस्थानादि विवरण. १ जीवस्थान १४ योग १५ उपयोग १२ लेश्या३ मूळबंधहेतु ४ | मिथ्यात्व ५ अविरति १२ कषाय २५ १ मिथ्यात्व १३ अहारकद्विकविना ५अज्ञान ३शन२ . ४ २/मास्वादन . एकेंद्रिय १, विकले. १३ , ५ पूर्वोक्त ६३ मि यात्वविना . ३, असंज्ञी 1,ए पांच अपार्या० संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याता तथा अपर्याप्ता २ मिश्र संज्ञी पर्याप्ता १० मनोयोग४, वचनयोग४, ६ अज्ञान मिश्रित | ६ ३ , . १२ २१ अनंतानुबंधी औदारिक तथा चैक्रिय योग२. शान ३ दर्शन ३ ४ विना ४ अविरति २ संज्ञी पंचेंद्यि पर्या १३ आहारकद्विक विना ज्ञान ३, दर्शन३ ६३ , |प्ता तथा अपर्याप्त ५/देशविरति १ संज्ञी पंचेंद्रिय ११ मनोयोग ४, वचनयोग ६ पूर्वोक्त ११५सकायनी १७ पहेला तथा बीजा पर्याप्तां ४, औदारिक काययोग अविरतिविना कषायनी चोकडी १, वैक्रिययोग २ विना ६ मत १ १ ३ पूर्वना ११, तथा आ-७ ज्ञान,दर्शन ३ ६ २ कषाय १ योग१ . १३ पहेला, बीजाने हारक द्विक २ । त्रीजा कषायनी | चोकडी बिना ७ अप्रमत्त ११ मिश्रमां कह्या प्रमाणे १०७ तथा आहारक काययोग १ ८ अपूर्वकरण १ मनोयोग ४, वचनयोग४७ | ओहारिक काययोग १ अनिवृत्तिकरण१ ९ पूर्वोक्त १ ,, २ ,, संज्वलन ४ वेद.३ मुश्मसंपाय ,२ , ११ उपशांतमोह १२क्षोणमोह १ १३ योगी केवी ७ मनोयोग पहेला छे ल्ला २,व-२ केवल द्विक १ ,, १ ,, चनयोग पहेला छेला २,औदा रिकद्विक २,कार्मण काययोग १४ अयोगी केवळी १ [२४१] १३ " १३ १शुक्ल- २ लेल्या , ܗ ܩ लोभ १,१ योग १ , १ " Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ मिथ्यात्व १३ २ सास्वादन ३ मिश्र ४ अविरति ५. देशविर ति १.० योग १५ उत्तरबंधहेतु ५७ ६ प्रमत्त १३ १० १३ १३ ५५ ७ अप्रमत्त ११ ८ अपूर्वकरण S ९) अनिवृत्तिकरण (९ १० सूक्ष्म संपराय ९ ११ उपशांत मोह ९ १२ क्षीणमोह.. 13. १३ सयोगी केवळी ७ १४ अयोगी केवळी ० ५० | ४ ३ 19 ३९ ४६ २६ २४. २२ १६ 1.0 ११ अल्पबहुत्व अयोगी करतां अनंत ३ गुण १४ देशबिरतिथी असं- ३ ख्य त गुण १० सास्वादनथी अस- ३ ख्यात गुण, ११ १२ १३ १४ मूळभाव ५ उपशम २ क्षायिक ९ मिश्रथी असंख्यात ५/४/४/३ ० १उपशम ०-१ क्षायिक गुण १२ सनकित समकित प्रमत्तथी असंख्यात ५।४।४।३ ०-१ ०-१ संख्यात ५ |४| ४ | ३ ०-१ संख्यात ५/४१४१३ ०-१ गुण ९ अप्रमत्तथी गुण ८ संयोगीथी गुण ७ क्षीण भोथी विशेषा ५|४|४ धिक ५ क्षीणमोहथी विशेषा- ५४ धिक ४ क्षीणमोहथी विशेषा- ५१४ धिक ३ सर्वथी थोडा १ ५/४ उपशांतथी संख्यात ४ गुणा २. अपूर्वचरणथी संख्यात ३ गुणा ६ अविरतिथी अनंत गुण ३. १३ (सिद्धसहित) ०-१ २ २ २ ०-१ ०-१ ०-१ १-० १-० 9-0 २ समकित तथा चारित्र १५ क्षयोपशम १८ १० दानादिक लधि ५, अज्ञान २१ . ३, दर्शन २ १० पूर्वोत २० मिथ्यात्वविना १२ दानादिलब्धि ५, अज्ञानमि- १९ मियथत्व तथा अज्ञानविना श्रित ज्ञान ३, दर्शन ३, मिश्रसमकित १ १२ दानादिलब्धि ५, ज्ञान ३, द- १९ र्शन ३, क्षयोपशम समकित १ १३ पूर्वोक्त १२ तथा देशविरति १ १४ पूर्वोक्त १२ तथा सर्वविरति १, मनः पयवज्ञान १ १४ १६ औदयिक २१ " "" १७ पूर्वोक्त १९ सांथी देवगति तथा नरकगतिविना १५ पूर्वोक्त १७ मांथी असंयम तथा तिर्यग्गतिविना १२ पूर्वोक्त १५ मांथी पहेली त्रण लेग्याविना १३ पूर्वोक्त १४ मांथी क्षयोपशम १० पूर्वोक्त १२ मांथी तेजो तथा समतिविन १३ पूर्वोक्त पद्मलेश्याविना १० पूर्वोक्त "" १३ ४ पूर्वोक्त १० मांथी वेद ३, कषाय ३ विना १२ पूर्वोक्त १३ मांथी क्षयोपशम ३ मनुष्यगति १, शुक्ललेश्या १, चारित्रविना असिद्धत्व १ ३ पुर्वोक्त १२ पूर्वोक्त २ पुर्वोक्त ३ मांथी शुललेश्या - विना [૨૨] Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १मिथ्यात्व . :: :: १८ १९ २० २१ । २२ । २३ । २४ २५ पारिणामिक ३ उत्तरभाव ५३ सांनिपातिक द्विकसयोगी त्रिकसंयोगी त्रिकसयोगी द-चतुःसंयोगी चतुःसंयोगी पंचसंयोगी सांनिपातिक मुळ६ सातमो भंग नवमो भंग शमो भंग चोथो भंग पांचमो भंग 1 उत्तर १५ ३ भव्यत्व, ३४ गति आश्री ? अभव्यत्व जीवत्व २ अभव्यत्व ३२ २ सास्यादन Kha विना मिश्र ४अविरति ३५॥३४॥३४॥३३ ३ ५देशविरति १, ३४।३३।३३।३२ ३ ३३॥३२॥३२॥३१ ३ - •••• ६प्रमत्त ३ मनुष्यतियच १ आश्री १ मनुष्यगति १ आश्री ७अप्रमत्त ३०।२९।२९।२८३ [२४३] २७४२६१२६ अपूर्वकरण २ , ९ अनिवृत्तिकरण २ , १० सूक्ष्मसंपराय २ , - २२॥२. १ ३ २०११९३ उपशांतमोह २ , १२ क्षीणमोह २,१९१ १३ सयोगी केवळी १ जीवत्व १३ १४ अयोगी केवळी १ जीवत्व १२ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परीसर २२ । समक्ति ६ १ मिथ्यात्व १ सास्वादन ३ मिश्र , १ मिश्र २८ २९ ३० जीवायोनी कुल कोटी समुपात दंडक २४ ध्यान १६ चरित्र ७ चोराशीलाख १९७५०००० १ मिथ्यात्व ८४००००० १९७५००००५केवळी तथा आ.२४. ८ आर्तध्यान ४, तथा । अविरति हारक वर्जीने | रौद्रध्यान ४ २सास्वादन ५६००००.१८७५००००५ , २२ तेजस्काय तथा ८ , __ वायुकायविना २६०००००११६५००००२ वेदनी तथा १६ पांच स्थावर तथा ८ , कषाय त्रण विकलेंद्रियविना अधिरति २६०००००११६५००००५मीथ्यात्व प्रमाणे १६ ८ ९ धर्मध्यानना पहेला १ , | पाया सहित ५ देशविरति १८००००० ६५५०००० ५ , मनुष्य तथा तिर्यच ८१० धर्मध्यानना बे१ देशविरति पाया सहित ६प्रमत |१४०००००१२००००० ६ केवलीविना १ मनुष्य धर्मध्यानना ४ निदा-३ पहेला त्रण नात विना आर्तध्या नना पाया ३ ७अप्रमत १४०००००१२००००० ५।३।१ ४ धर्मध्यानना ४ ८अपूर्वकरण १४०००००१२००००० ३।1 ५ धर्मध्यानना ४ अथवा २ पहेला बे शुक्लध्याननो १ ९ अनिवृत्तिकरण १४०००००१२००००० ३१ १ शुक्लध्याननो पहेलो २ ३ उपशम. क्षयोपशम क्षायिक ३ [२४४] २२ २उपशम, क्षायिक पायो १० सूक्ष्मसंपराय ०००००१२००००० २।१ , ५सूक्ष्मसंपराय १४ क्षुधादि ५,चयो २ शय्या,वध,अलाभ,गेग तृण,मल,प्रज्ञा भज्ञान, - १ उपशांतमोह १४०००००१२०००.०२१ १२क्षीणमोह १४०००००१२०००.०० १३ सयोगी केवळी १४०.०००१२०००००१ केवळी - - १ यथाख्यात १४ " १ उपशम १शुक्ल याननो बी जो पायो १ . , १४ १ क्षायिक १ शुक्लध्याननो त्रीजो१ , ११ पूर्वोक्त १४माथी १ . पायो १३ माने अंते . अलाभ,अज्ञान,प्रज्ञा, रहीत २ शुक्लध्यानना छेल्ला बे१ , ११ पाया १४ अयोगी केवळी १४०००००१२०००००१ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ मिथ्यात्व २ सास्वादन शमित्र ४ अविरति ५ देश विरति ६ प्रमत्त ७ अप्रमत्त ३५ दृष्टि ३ १ मिथ्या 19 सम्यक्त्व (४१ १ 1 १ निश्र ४१ १ सम्यग्दृष्टि ४० इर्यावही अने मि- १२ भावना बार थ्यात्व विना अपूर्वकरण ९ अनिवृत्तिकरण १ १० सूक्ष्मसंपराय १ १ 27 ११ उपशांत मोह १ १२ क्षीणमोह | १ १३ सयोगी केवळी १ " १४ अयोगी केवळी १ 27 " " ४१ इयवहीनी क्रियाविना "" ३६ आश्रव ४२ ३७ संबर ५७ ४ २९ इर्यावही मिथ्यात्व १२ तथा अपच्चख्खागविना २५।२० कषाय ४, योग ५५ सूक्ष्मसंपराय तथा १२-१ ३, क्रिया १३, इंद्रिय ५सहित करीए तो : ५ चारित्र १२-१ यथाख्यात विना १९ पूर्वोक्त २० मांथी ५५ आरंभिक विना १८ पूर्वोक्त १९ मांथी ५४सूक्ष्मसराययथाख्यात १२-१ मायाप्रत्ययिकी विना परिहारविशुद्धि विना "" "" "3 "" ३८ निजंग २ अथवा १२ १ अकाम १८ ५४ "" "" |१२-१ १७ पूर्वोक्त १८ मांथी ५३ सामायिक, छेदोप- १२-१ द्वेष प्रत्ययिकी विना स्थापनीय, परिहार, १ यथाख्यातविना ४योग ३तथा इर्यावही १५३ सामायिक, छेदोप १२-१ रथापनीय, परिहार, सूक्ष्म संपरायविना " १ सकाम १ यथाख्यात 9 "" | ३९ आहारक द्विक तथा जि-८२ ननाम विना ३८ पूर्वोक्त ३९ मांथी आ- ६७ तप विना ३४ पूर्वोक्त ३८ मांधी ४४ आयु तथा उद्योत विना ३७ पूर्वोक्त ३४ मां जिननाम ४४ तथा वे आयु सहित ३१ मनुष्यत्रिक, औदारिक ४० द्विक, वज्रऋषभसंघयण विना ३१ ३६ ३ ३९ , पुष्य बंध ४२ | ३२-३३ आहारकद्विक वध. ३० तां ३३. देवायुजतां ३२. | ३२-३ १२-१ १ १ शुक्लध्यानको १ त्री जो पायो "" (२शुक्लध्यानना ० छेला बे पाया। ४१ ४२ पापबंध ८२ आठकमा आठ कमना बंध उदय | १ साता ( यश नाम उच्च गोत्र ० विना ). "" 39 १९ १४ ४० 0 ८१७ आधु "विना ८/७ ७ ७८ ७१८ ३०-२८-२३७ ७/८ ७/८ "" ८ 5 ८ ८ . ७ ८ ६ आयु अने मोहनी विना ८ 6 वेदनी ८ ७ मोहनी विना ७ ४ अघाती ४ "" [२४५ ] Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ मिथ्यात्व २ सास्वादन ३ मिश्र ४ अविरति ५ देशविर ति ६ प्रमत्तः ७ अप्रमत्त ४३ ४४ ४५ ૪૬ ४७ ४८ ४९ उदारणा आठ कर्म- देवताना भेद १९८ नार ना भेद मनुष्यना भेद तिर्यचना जीवन नी ८ १४ ३०३ भेद ४८ ५६३ ४८ ८1७ ८/७ ८ ८७ ८1७ ८।७ ६ ८ ८ ८ ८ अपृवकरण ६ ९ अनिवृत्तिकरण ६ १० सूक्ष्मसंपराय ६५ ११ उपशांतमोह ५ १२ क्षीणमोह ५१२ ७ १३ सयोगी केवळी २ १४ अयोगी केवळी सत्ता १७० (९ लोकांती १४ क, ५ अनुत्तर=१४ पयाप्त, १४ अप योप्त = २८ विना ) १७० ८५ पयाप्ता १९८ ० ० पर्याप्ता ३०३ २०२ समूर्छिम २१ १०१ विना १३ सात मीना २०२ समूर्छिम १० अपर्याप्ता विना विना १०१ पर्याप्ता ५ पयाप्ता १९८ जळचर १५ कर्मभूमिना ५ पयाप्ता १५ १५ १५ १५ १५ १५ 19'3 १५ 19's ५३५ " ४०० ४२३ २० १५ १५ 2 2 2 2 2 2 2 |१५ १५ १५ | १५ १५ १.५ ४७ | ४६ मिथ्यात्व विना | ३९म्यानर्द्वित्रिक ३ तथा अनतानुबंधी ४ विना ३१ ५५ जाति ४, स्थावर ४, नरक ३, संघयण १, संस्थान १, आताप १, नपुंसक वेद १, बिना ३५ संघयण ४, संस्थान ४, नीचगोत्र १, : द्योत १, अशुभ विहायोगति १, स्त्रीवेद १, दुर्भग ३, तिर्यच ३, आयु २, विना ३८ जिननाम तथा देव अने मनुष्य आयु सहित ३९ ३५ उपरमाथी बीजा ३२ वज्रऋषभनागच १, मनुष्य कषायनी चोकडी विनात्रीक ३, औदारिक द्विक २, विना ३१ त्रीजा कषायनी ३२ चोकडी विना | १४ ५० ध्रुवबंधी ४७ 。 ० ० 0 ५१ अध्रुवबंधी ७३ " ३१।२९।२९२९/२९ २९.१२० | १८|१८| १७|१६|१५ ४|३|३|३|३ ७० जिननाम तथा आहारक द्विक बिना "" २६ शोक, अति, अस्थिर द्विक २, अयश, अशाता विना २६, देवासहित २७. आहारक द्विक सहितग २७/२७/२७/२७/२७/२७/३ ३ १ साता 1 १. [२४६] Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध्रुवोदयी२७ अध्रुवोदयी ९५ ध्रुवसत्ता १२६ अध्रुवसत्ता २२. पगवर्तमान बंध ९१ अपर वर्तमान बंध २९ १मिथ्यात्व २७ ९. आहारकद्विक २, जिननाम, १२६ ८९ आहारक द्विक विना २८ जिननाम विना समकित मोहनी,मिश्रमोहनीविना २ सास्वादन २७८५ सूक्ष्मत्रि ३, आतप, नरका-१२६ २१ जिननाम विना ७४ पंदर विना २७ मिथ्यात्व विना नु पूर्वी, विना ३ मिश्र २६ मिथ्या-७४ वारहित तथा मिश्र सहित १२६ 1 , ४७ सत्तावीश विना त्व विना करवाथी ४ अविति ६. ७८ समकितमोहनी १,तथा अनु- १२६।१२६।१२१।१२१ २२।१९।२०।१७४९ सुर अने मनुष्य आयूमहित २८ जिननाम सहित पूर्वी ४, सहित तथा मिश्र मो हनी रहित ५ देशविरति २६६१ सतर विना १२६१२६।१२१।१२१ २२।१९।२०।१७३९ मनुष्य त्रिक ३, अनंतानु-२८ , बंधी ४, औदारिक द्विक २, संघयण १, विना प्रमत्त ६ ५५ आठ रहित तथा आहारक १२६।१२६।१२१।१२१ २२।१९।२०।१७ ३५ अप्रत्याख्यान ५ विना २८ , । द्विक सहित करवाथी ७ अप्रमत्त २६ ५ ०स्त्यानदि त्रिक ३, आहारक १२६।१२६।१२१।१२१ २२।१९।२०।१७ २९।२८।३१।३० आहारक द्विक २८ , । द्विक २, विना ८ अपूर्वकरण ४६ छेना संघयण ३, समकित १२६।१२६।१२१।१२१ २२।२०।१८।१७ पहेले भांगे ३० पांच भांगे २८ २८।२८।१६ मोहनी १, विना सातभे भांगे १० ९)अनिवृत्तिारण २६ ४० हास्यादि छ विना पहेले भागे उपर प्रमाणे पहेले भागे उपर -प्र ८७।६।५।४ १४।१४।१४।१४।१४ छेल्ले भागे ८८माणे छेल्ले भागे १५ १० सूक्ष्म संपराय २६ ३४ वेद ३, संज्वलन ३, विना १२६।१२२।१२१।८७ २२।२०।१८।१५३ लोभ विना ११ उपशांतमोह २६ ३३ लोभ विना १२६।१२२।१२११८६ २२।२०।१८।१५ १ साता १२क्षीणमोह २६ ३१ वे संघयण विना अथवा २९८६०८४ १५/१५ । बे निद्रा विना १३ सयोगी केवळी १२ ज्ञान'व-३० जिननाम स हत करवाथी ७४ रण५,दर्शना वरण ५,अंत गय४, विना १४ अयोगी केवळी १ सुभ ११ ओगणीश विना ७४।८ ११।५।४ [२४७] सहित ___ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ ५९ ६२६३ सर्वघाती बंध २० देशघाती बंध २५ | अघाती बंध ७५ दर्शनावरणीना बंधस्थान उदय मोहनीय कर्मना बंध मोहनीय कर्मना स्थान अने सत्तास्थान | स्थान उदय स्थान १मिथ्यात्व ७२ जिननाम तथा आहरक९ बंध,४।५ उदय, ९ सत्ता २२ समकित तथा ७८।९।१०। द्विक विना . | मिश्र मोहनी विना २ सास्यादन १९ मिथ्यात्व विना २४ नपुंसकवेद विना ५८ चौंद विना ९ बंध, ४।५ उदय, ९ सत्ता २१ मिथ्यात्व विना ८९ ३ मिश्र १२ अनंतानुबंधी ४,२३ स्त्रीवेद विना ३९ नाम कर्मनी १५, वायू ३, ६ बंध, ४।५ उदय, ९ सत्ता १७ अनंतानुबंधी चार ८९ स्त्यानधि ३, विना नीच गोत्र विना विना ४ अविरति १२ , २३ , ४२ जिननाम, देवायु, मनुजायु ६ बंध, ४५ उदय, ९ सत्ता १७ ६७८९ सहित ५ देशविरति ८ बीजा कषायनी चो-२३ , ३६ वज्रर्षभनागच, मनुष्य त्रिक ६ बंध, ४।५ उदय, ९ सत्ता १३ अप्रत्याख्यानी ५।६।१८ कडी बिना ३, औदारिक द्विक २, विना चार विना ६ बंध, ४५ उदय, ९ सत्ता९ प्रत्यारूयानी चार ४।५।६।७ ६प्रमत्त ४त्रीजा कषायनी चो विना कडी विना ७ अप्रमत्त ४ . २१ शोक ने अरति विना ३२ ४ विना ३१ पांच विना ६ बंध, ४।५ उदय, ९ सत्ता ९ , ४।५।६७ ३२॥३३ आहारकद्धिक सहित ८ अपूर्वकरण ४।२।२।२।२।२।२ २१।२१।२१।२१।२१। ३३३३३३३३३३३३३३३।३ ।४ बंध, ४।५ उदय ९सत्ता९ ,, ४।५।६ निद्राद्विक विना २१।२१। ९ अनिवृत्तिकरण २।२।२।२।२ १४।१६।१५।१४।१३ ३।३।३।३।३ ४ बंध, ४।५ उदय,९।६ सत्ता ५ हास्य, रति, कुत्स २।१ भय ४।३।२।१ १० सूक्ष्मसंपराय १२ लोभयिना ४ बंध, ४।५ उदप,९।६ सत्ता. [२४८] ११ उपशांतमोह ४५ उदय ९ सत्ता १२ क्षीणमोह ४ उदय, ६।४ सत्ता १३ सयोगी केवळी. १४ अयोगी केवळी. Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोहनीयकर्मना सत्तास्थान | नाम कर्मना बंधस्थान नाम कर्मना उदयस्थान ६८ आत्मा नाम कर्मना सत्तास्थान ८ मिथ्यात्व २८॥२७॥२६ २३।२५।२६।२८।२९। २१।२४।२५।२६।२७।२८।२९। ९२१८९।८८।८६।८०७८ ३०:३१ ६ज्ञानात्मा तथा चारित्रात्मा विना २ पास्वादन ३ मिश्र ४ अविरति २८ २८।२९।३० ૨૮૨ ૨૪ २८।२९ २८।२४।२३।२२।२१२८२९।३० २१।२४।२५।२६।२९।३०।३१ ८८९२ २९।३०१३ ८८१९२ २१।२५।२६।२७।२८।२५।३०। ९३१९२१८९।८८ ७ ज्ञानात्मा सहित ६ मिथ्यात्व प्रमाणे ७ सास्तदा प्रमाणे ७ दे.थी चारित्र छे २६।२७।२८।२९।३०।३१। २५।२७।२८।२९।३० २९/३० ५देशविरति २८।२४।२३।२२।२१ २८।२९ ६प्रमत्त २८।२४।२३।२२।२१ २८।२९ अप्रमत्त २८।२४।२३।२२।२१ २८॥२९॥३०॥३१ ८ भपूर्वकरण २८॥२४॥२१ । २८।२९।३०।३१।१ ९ अनिबृतिकरण २८।२४।२१।१३।१२।११।१ ५।४।३।२।१ १० सूक्ष्मसंफगय २८।२४।२१।१ ११ उपशांतमोह २८।२४।२१ १२क्षीणमोह १३ सयोगी केवळी ० ९३।९२१८९।८। ९३।९।८९४८८ ९३१९२।८९४८८ ९३१९२१८९४८८ ९३१९२१८९८८८०७९/७६.७५ [२४९] ७ कषायात्मा विना ९३१९२१८९४८८५८०७९१७६।७५। ९३१९२१८९४८८ ८०७९/७६/७५ २०।२।२६।२७।२८।२९।३०। ८०।७९।७६७५ १४ अयोगी केवळी. ९।८ ८००७९१७६।७५।९।८ योगात्मा विना आठ आत्माना नाम १द्रव्यात्मा २ कषायान्मा ३ योगात्मा ४ उपयोगात्मा ५ ज्ञानात्मा ६ दर्शनात्मा ७ चारित्रात्मा ८ बीर्वात्मा Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ मिथ्यात्व २ सास्वादन ३ मिश्र ४ अविरति ५ देश विर ति ६ प्रमत्त ७ अप्रमत्त ८ अपूर्वकरण ६९ मोहनीयनी उदयआश्री चोवीशी ४०।४१ * ४ ८ ९ अनिवृत्तिकरण २ मां. ४/३/२/१ १० सूक्ष्म संपराव १.१ उपशांत मोह १.२ क्षीण मोह १३ सयोगी केवळी. १४ अयोगी केवळी ० ७० नाम कर्मना बंधना भांगा १३९४५ १३९२६ देवगती ७७७३ प्रायोग १८, नरकगति १ विना ९६०८ १६ ३२ ७१ ७२ नाम कर्मना उदय- वेदनीयना ना भांगा ७७९१ भगं ८ १६ १६ ४०९७ ४०४१ ७६६१ ४४३।५९१ | १५८।३१६ | १४८/५९२ उ. क्ष. ७२/२४ ३६०१२० उ. क्ष. ७२।२४ ७२।२४ ७२ २४ ७३ મ ७५ गोत्रना आयुना भंग नाम कर्मसत्ता भंग ७ २८ भांगा K v २६ १६ २० १२ २१२ १९ ६ ५४ ७६ मोहनीना पद ६८ ३२ ३२ 0 ५२ ४४ २० २८ ७७ ७८ योग संबंधी योग पद वर्ण उदय भांगा २२०८ १२१६ ९६० २२४० २११२. २३६८ २०४८ ८६४ १४४ १८९१२ १९७२८ ७६८० | १६८०० १३७२८ १३०२४ ११२६४ ४३२० २५२ [२५०] Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ७९ ८. ८१८२ ८३ ८८ उपयोग उदय उपयोग लेश्या उदय लेश्या योगनी चोवीशी ५५२ अने योगना पद उपयोगनी उपयोगना पद लेश्यानी लेश्याना पद भांना पदवर्ण भांगा पदवर्ण घोडशक तथा अष्टक ४१४१ चोवीशी ३२० २१४९ चोवीशी २२० १६२१ ४०८ । १९२ १९२ १मिथ्यात्व ९६०८१६०११५२ ९७९२ ९२ ८ ८ .४०३४०४८ २ सास्वादन ४८०३८४० ५७६ ४६०८३४ ४१६५० १६० ३ मिश्र. ५७६ ४६०८५७६ ४६०८.४० ४ अविरति ११५२ ८६४० ११५२८६४०८० चोवीशी १६-षोडशक ७८० ८ अष्टक ५देशविरति ११५२ - ७४८८५७६ ३७४४८८ ६प्रमत्त १३४४ | ७३९२५७६ . ३१६८८८ चोवीशी १६-षोडशक ५७२ ७ अप्रमत्त १३४४७३९२५७६३१६७२ है ८ अपूर्वकरण ६७२ ३३६०९६ ९ अनिवृत्तिकरण ११२१९६ १६२८ १-षोउशक [२५१] १० सूक्ष्मसंपराय १ उपशांतमोह १२ श्रीणमोह १३ सयोगी केवळी . . १४ योगी केवळी. Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१६ . ४ ५ ६ ७ ८ | । १० । ११ १२ १३ गुणस्थान योग चोबीशी योगे गुणतांबन्न चोबीज्ञा-चोवीशे गुण- पद योगे कुल चोवीशे गुणतां उदय । | उदय पद कुल नोसरवाळो तां उदय भंग गुणतां पद पद वृंद - चोवींशी १ मिथ्यात्व १० मन ४, वच०४, ८ ८० ९२ २२०८६८६८०७८८ १८९१२१०९४८७१।३।३।११०॥२७॥२४१७६८ | औ. १, वै. १. ३. वै. मि. १,औ. मि. ४ १२ । ३६१०८ ८।९।१०१२। १८।१८।१०३६ । १, कर्मण १.. २सास्वादन १२मन४,वच०४,ौं.४ ४८ ११५२ ३२३८४४१६ ९२१६ ९८७१२।१९।१६७३२ | २, वै. १, का. १. ६४ भग ६४ ५१२ १. वै. मि. १. ४ षो. ६४ भंग ३ मिश्र १० मन ४,व.४,औ.४ ९६० ३२३२० ३२० ७६८० ९।८। ७१।२।१ ९।१६। ७ ३२ १. वै.१ ४ अविरति १० म. ४, व.४, औ. ८ ८० १९२० . १४४०० ९.८१७१६ १।३।३१ ९।२४।२१६६० २.वै. मि. १,कर्मण१.१६ षो. २५६ भंग २५६ १९२० . १. औ. मि. १. ८ अष्टक. ६४ भग ४८० २२४० १६८०० ५ देशविरति ११ मन ४, व.४, औ. ८ ८८८८ २११२ ५२५७२ ५७२ १३७२८ ८1७।६।५ १।३३।१८।२१।१८।५ १, वै. २. ६प्रमत्त. ११ मन४, व. ४. औ.८ ८८ २११२ ४८४ ५७२ ११६१६ ॥६।५।४ १।३।३।१।१८।१५।४ ४४ १, वै. २. २. आहा २. १६ षो. २५६ भंग २५६ १४०८ २३६८ १३०२४ ७अप्रमत्त १० मन ४,व.४, औ. ८ ८ . ८० १९२० १०५६. ६.५।४ १।३।३।१ १८१५॥४ १, वै. १. १. आहा. १. २ अष्टक १६ भंग १२८ १ २८ ७०४ | २०४८ ११२६४ ८अपूर्वकरण ९मन ४,व.४,औ.1. ४ ३६३६ ८६४.२०१८.१८.४३२० .६५।४ १।२। १६।१०४ २० ९ अनिवृत्तिकरण ९ मन ४,व.४,औ. १.१६ षो. १४४१४४१४४२८२५२ २५२ २५२ उपयोगे । गुणतां । १० सूक्ष्मसंपगय ९ मन ४, ५४,औ. १.१ षो. ९ . ९ . कुल सम्वासो ४१४१९५७१७ [२५२] 10 Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७ ८ ९ १० ११ १२ १३ गुणस्थाम उपयोग| चोवीशी उपयोगे चोवीशे गुण तां पद उपयोगे गुणतां चोवोशे गुणतां लेश्या चोवीशी. लेश्याए चोवीशे गुणतां पदने लेश्याए चोवीशे गुणतां गुणतां उदय भंग पद भंग पद वृंद । गुणता उदय भंग । गुणता । पद वृंद १ मिथ्यात्व५८४० ९६.६८३४०८१६०८ ४८११५२४०८९७९२ माम्वादन २०४८. ३२१६०३८४०६४ २४५७६ १९२४६०८ ३२१९२ ४६.८ 1४ प्रविरति ८ ४८ ११५२६०३६० ८६४० १1५२ ८६४० देशविरति ६८४८११५२५२३१२ ७४८८ १५६ ६मत्त८ ५६ १३४४ ४४३०८ ७३८२ [२५३] अप्रमत्त८ १३२३१६८ ५६१३४४४४३०८ ८ अपूर्वकरण ४ २८६७२ २०१४० ९ अनिवृतिकरण ७१ षो. ११२२८२८ उपयोगे गुणतां १ १९६ २८२८ । मूक्षसंपगय कुल सरबाळो ३२० ७७९९ २ १४९ ५२९७१६२१ . Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण स्थान क ५ ७ ८ ९ १० ११ बंधस्थान १० २२ २१ १७ १७ १३ ९ ० ९ ९ ५/४/३/२/१ बंध भांगा २५ ६ ७ ८ ९ १० * २ १ उदयस्थान ९३५ २ ६ ७ ८ ९ १ ७/८/९ २ ५/६ ७ ८ २ ४/५/६/७ ४/५/६/७ ७१८१९ ० ४/५/६ ५ २1१1१1१1१ ११ गुणठाणे मोहनी कर्मनाबंध स्थानादिनुं यंत्र. १ ४ ३ ४ ४ ३१।२।१ ४ उदयभग चोवी ५२ |१।३।३।१ ३ १।२1१ १।३।३।१ १।३।३।१ | १।३।३।१. ४ १।३।३।१ १।२।१ ४ उदय भांगा १२६५ ८ २४।७२।७२/२४ १९२७।२४।२७।१० ६८ १६८/५७६।६४८।२४० ३२ १६८।३८४।२१६ ३६८।३८४।२१६ ८ २४।४८।२४ ४ २४।४८।२४ ९६ ७ १६९ ९६ 17918 २४।७२।७२/२४ १९२ ६।२१।२४/९ ४ उदयस्थानपद ३५२ ८ २४।७२।७२।२४ १९२ ५।१८।२११८ ८ २४।७२।७२।२४ १९२ ४।१५।१८।७ ८ २४।७२।७२।२४ १९२ ४/१५/१८/७ २४।४८।२४ ९६ ४|१०|६ | १२।१।१।१।१ १६ ३२ ६० १४४|५०४।५७६।२१७ ५२ १२०/४३२/५०४।१९२ ४४ ९६।३६०।४३२।१६८ ४४ ९६।३६०।४३२।१६८ २० ० पदवृंद ८४७७ ९६।२४०।१४४ २४।१।१।१।१ १ १ ६३२ ७६८ ७६८ १४४० |२४८ | १०५६ | १०५६ ८४० २८ १ [२५४] Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोहनी कर्मना बंधस्थानके उदयस्थानादिनुं यंत्र. बंध उदय भंग संख्या उदय स्थान पद उदय स्थान पद वृंद मोहस्यबंध भांगा उदय स्थानक स्थानक उदय चोवीसी ४० मोहस्य सत्तास्थानक २८८ २१ २ १३२ |७1८९।१०४ १।३।३।१ |८ २४।७२।७२।२४ /१९२ ४।२४।२७।१० ६८ १६८।५७६।६४८।२४० ११३२/२८।२८।२७।२६।२८।२७।२६। २८।२७।२६ ઇ૮૬ ३ १।२। १४ २४।४८।२४९६ १६ ९ ३२ १६८।३८४/२१६७६८ २८।२८।२८ ६७८९ ४ १।४।५।२ १२२४।९६।१२०१४८२८८ ६२८१४०।१८ ९२ १४४।६७२।९६०।४३२ २२०८२८।२४।२१।२८।२७॥२४॥२३॥ २२।२१।२८।२७।२४।२३।। २२२१॥२८॥२७॥२४॥२३॥२२॥ ५।६।७८४ १।३३।१ ८ २४।७२।७२।२४ १९२ ५।१८।२१।८५२ १२०।४३२।५.०४।१९२ १२४८/२८।२४।२१।२८।२७।२४।२३। २२१२१२७॥२७॥२४॥२३॥ । २२।२१।२८।२७२४॥२३१२२ ।५।६। ७ ४ १।३।३।१८०४।७२।७२।२४ १९२ ४।१५।१८।७ ४४ ९६।३६०।४३२।१६८ १०५६२४।२४।२१।२८।२४।२३।२२। २११२८।२४।२३।२२।२१ २८।२४/२३१२२ २८।२४।२१।१३।१२।११ ९ ४ [२५५] __. . २८।२४।२१।११।५।४ २८।२४।२१।४।३ . ._. २ २८।२४।२१।३।२ . २८।२४।२१।२।१ १ २८।२४।२१।१ ० २८।२४।२१ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२५६] ६२ मार्गणाए गतिजाति ५ | काय ६ , योग ३ / वेद ३ कषाय ४ शान ५, अज्ञान मार्गणा गति ४ १नरकगति १ १ पंचेंद्रिय १ नपुसक ३ ३ ज्ञान, ३ अज्ञान १ पंचेंद्रिय १ पंचेंद्रिय २ देवगति ३मनुष्यगति ४तिर्यचगति १ त्रस ३ १ त्रस | WWW २ स्त्री पुरुष ४ १ १ ३ ज्ञान, ३ अज्ञान ५ ज्ञान, ३ अज्ञान ३ज्ञान, ३ अज्ञान ५एकेंद्रिय १ तिर्यच १ ५त्रसविना १ कायायोग २ अज्ञान ६द्रिय १ तिर्यंच १ १ त्रस २ वचन तथा १ २ ज्ञान, २ अज्ञान | काय ७त्रीन्द्रिय तिर्यच ८ चतुरिन्द्रिय१तियंच ९पंचेंद्रिय १०पृथ्वीकाय १तियच १ एकेंद्रिय १ त्रस १ त्रस १ त्रस १ पृ. २ ज्ञान, २ अज्ञान २ ज्ञान, २ अज्ञाना ५ ज्ञान, ३ अज्ञान २ अज्ञाम १ काययोग १ अपकाय १तियच १ १२ तेजरकाय तिर्यच ॥ ३ वायुकाय तिर्यच १४ वनस्पतिकाय तिर्यच १ ते. १ वा. १ व. २ अज्ञान २ अज्ञान २ अज्ञान २अज्ञान १५/त्रसकाय १६)मनोयोग १७वचनयोग १८ काययोग १९ पुरुषवेद ४ एकेद्रियविना १ त्र. १ पंचेंद्रिय १ प्रस ४एकेंद्रियविना १ त्रस ५ जान, ३ अज्ञान ५ ज्ञान, ३ अज्ञान ५ ज्ञान, ३ अज्ञान ५ ज्ञान, ३ अज्ञान ५ ज्ञान, ३ अज्ञान १ त्रस ३ नारकी १ पंचेंद्रिय विना ३ नागकी १:पंचेंद्रिय | विना ३ देवता ५ २०खीवेद २१/नपुंसकवेद ५ ज्ञान, ३ अज्ञान ५ ज्ञान, ३ अज्ञाना | विना २२ क्रोध ४ ज्ञान, ३ अज्ञान WWWWWWWWWWWWWWW ४-३ २३|मान २४माया २५/लोभ -३ ४ ज्ञान. २६ मतिज्ञान १पंचेंद्रिय बा १ त्रस ४एकेंद्रियबिना २७श्रतज्ञान , ४ २८ अवधिज्ञान ४ १ पंचें २९ मनःपर्यवज्ञान १ मनुष्य १ पंचें. ४-० ४-० ४ संज्वलन ४-. ३० केवलज्ञान १ , १ , Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाति विगेरेनुं यंत्र. संयम ७ १ अविरति ११ अविरति રૂ * ४ २ देशविति, अ- ३ केवदर्शनं विरति विना १ अविरति १ अचक्षु १ अविरति १ अविरति १ अविरति 2 १ अविरति ૭ ७ RAAA दर्शन - ४ ३ केवळ दर्शन २ बिना 19 ५ सूक्ष्म संपाय४ व्यथाख्यात विना १ २ चक्षु, अचक्षु ४ १ अचक्षु "" * 29 ५ अविरति देश ३ विरति विना १ यथाख्यात " ४ परिहार विशु-४ द्धि विना ५ पुरुष वेद प्रमाणे ५ सूक्ष्मसंप्राय ३ केवळ विना २ थाख्यात विना " " ३ " " ३ ६ यथाख्यात ३ विता "" भव्य अभव्य २ " "" 2 २ २ २ १ १ १ १ केवळ दर्शन १ " 22 22 सम्यकत्व ६ 92 [२५७] "" " २ सास्वादन, १ असंज्ञी २ मिथ्यात्व 22 १ मिथ्यात्व १ सज्ञी अ- आहारी असंज्ञी २ ना हारी २ १ संज्ञा R १. १ € २ २ साम्वादन, १ असंज्ञी २ मिथ्यात्व, १ , | ३ ३ १ क्षायिक ૨ १ भव्य ३ उपशम, क्षयो १ संज्ञी पशम, क्षायिक १ |१ "" २ सास्वादन, १ मिथ्यात्व, " " १ " १२ २ १ संज्ञी " २० "" शरीर ५ | ३ वैक्रिय, तेजस ६ " पर्याती ६ 1's ४ आहारकविना ६ ४ आहारक विना ४ ३ वैक्रिय विना ३ औदारिक जस, कार्मण. ते-५ "" ३ औदारिक. तै- ४ जस, कार्मण " ३ "" ४ आहारक विना ३. औदारिक, तै- ४ जस, कार्मण ४ आहारक विना ६ कार्मण शरीर ३ विना ३ औदारिक, तै- ६, जस कामण प्राण १० १० १० १० १० ७ . १० ४ १०. : : १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० १० Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२५८] ६२ मार्गणाए जाति - गति जाति ५ । काय ६ | योग ३ | वेद ३ कषाय ४ ज्ञान ५, अज्ञान ३, मार्गणा ३१ मतिअज्ञान ०-३ ३२ श्रुतअज्ञान ३३ विभंगज्ञान ३४ सामायिक चारित्र १ मनुष्य ३ ४संज्वलन ४-० ३५ छेदोपस्थापनीय , ३६ परिहारविशुद्धि २ वीवेद ४ , विना ल ३७ सूक्ष्मसंपराय ३८ यथाख्यात |३९ देशविरति , , २ मनुष्य १ तियच , ४० अविति ४१ चक्षुदर्शन ४२ अचक्षुदर्शन ४३ अवधिदर्शन XWAN WWW.. २ चतु. १,०१ त्रस १ पंचेंद्रिय १ ४४ केबलदर्शन १ मनुष्य , , . १ , ३ rmmarma..mmmmm _.mmmmmmmmmmmmmmm ४५ कृष्णलेश्या ४६ नीललेश्या कायोतलेश्या ४८ तेजोलेश्या WWWWWWWWWW WWW ANM WW WWWWWWWWWWWWW WAR ३ नम्कग-२ एके. पं०४ तेजस्का तिविना यविना १ पंचे १ त्रस पद्मलेश्या ५० शुक्ललेश्या ५१ भव्य ५२ अभव्य ५३ उपशम सम्यक्त्व 0005.. m Mmmm त्रस ५४क्षायोपशमसम्यक्त्व ४ ५-० ३ ज्ञान मिश्र ५५क्षायिकसम्यक्त्व ५६ मिश्रसम्यक्त्व ५७ सास्वादनसम्यक्त्व ५८ मिथ्यात्व ५९ संज्ञी ६० असंज्ञी KAKKA mm मनुष्य १ नपुंसक तियच ६१ आहारी ६२ अनाहारी Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाति विगेरेनु यंत्र. [२५९] । सज्ञी २ हा शरीर५पयोप्ति प्राण संज्ञी अ- आहारी अना| भव्य अ-. संयम ७ | दर्शन ४ | भव्य २ सम्यकत्व १ अविरति २ चक्षु,अचक्षुर ३ मिथ्यात्व,२ ४ आहारक विना६ सास्वादन,मिश्र ३२ ३ सामायिक,छे-३ केवळ विना १ दोपस्थापनीय प ३ , रिहार०३ ,, १ भव्य ३उपशम क्षयो १ संज्ञी १ आहारी पशम, क्षायिक कामणविना । १ ३ औदारिक, त जस, कार्मण २ उपशम क्षा०१ २ , १ ३ उपशम,क्ष-१ योपशम क्षा० ३ केवळ विना १ , , , आहारी ३ ३ " " w ४ आहारकविना ६ १ आहारी w w w ३ केवळविना १ भव्य २ ३ उपशम,क्ष-१ संज्ञी | योपशम, १ क्षायिक १ , १ केवळ १ , २ ३ आहारक, तै-६ । जस, कामण ५ सूक्ष्म, यथा-३ केवळविना २ | ख्यातविना و مه سه له مه » ४ आहारकविना ६ १ अविरत २ चक्ष, अचक्षु १ भव्य १ मिथ्यात्व ६ परिहारविशु-३ केवळविना १ अभव्य १ द्विविना ५ सूक्ष्म, यथा-३ , १ भव्य ख्यातविना - ४ . १ आहारी १ अविरति३ केवळविना १ २ चक्षु, अचक्षु १ १ , ४ आहारकविना ६ . --rrr . . १ अविरति २ चक्षु, अचक्षु २ मिथ्यात्व, साम्वादन ४ आहार कविना ६ २ अबिरति, य-३ चक्षुविना थाख्यात. उपशम, मिश्रविना १ कार्मण Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ na ३ पहेली लेश्या ६ । ४०००० वगाहना समुद्यात संस्थान . जीवाजोनी कुल कोटी | | जीव- गुणस्थान उपयोमार्गणा ध्यान १६ " दृष्टि अवगाहना ८४०००००१९७६०००० स्थान१४ १४ ग १२ अल्पाबहुत्व १ नरकगति ८-९:४४ । ४०००० २५०००००५०० धनुषना अ. २ ४ ११९ असंख्यातगुणा ९ धर्मध्यानना पहेला पायासहित २ देवगति ८-९, ४ ५ आहाक १ सम-० ३ १३, ४००००० २६०००००सात हाथनी केवळविना चतुरस्त्र ३ मनुष्यगति ६६३११४००००० १२०००००त्रण गाउनी ३ १४ १५१२६ सर्वथी स्तोक १ ४ तिर्यचगति ८ ३ .४ ५ आहारक ६६ | ९ ६२००००० १३४५०००० हजार योजननी १४५१३९६ १० धर्म-४ केवळविना ध्यानना पहेला बे पायासहित अनंतगुणा ४] ५ एकेंद्रिय - ० ४ ४ अहारक १हुडक • १ मिथ्या५ ५२००००० ५७ ०००० हजार योजनथी ४२५३४ केवळ, तै अधिक जसविना ६ द्वीन्द्रिय ३वेदनी,क- १ १ १-२ २००००० ७००००० बार योजननी - षाय,मरण। विशेषाधिक ४ ७ त्रीन्द्रिय १ १-२ १ २००००० ८०००००त्रण गाउनी ८ चतुरिन्द्रिय १ १ १-२ १ २००००० ९०००००चार गाउनी ९ पंचेंद्रिय १६२६०००००११६५०००० हजार योजननी ४ १ १५१२६ सर्वथी स्तोक१ १० पृथ्वीकाय ८-० ०१ मिथ्या १ - ७००००० १२००००० अंगुलनो असंख्या ४ त भाग विशेषाधिक ११ अप्काय ८ ७०००००-७००००० अंगुलनो अ० भाग ४ , २ ३ ३ ४ तेजस्काय ३००००० अंगुलनो अ० भाग ४ १ ३ ३ ३ असं० गुणा २ १३ वायुकाय ८-० १०. १ ७००००० . ७००००० अंगुलनो अ० भाग ४ ३ विशेषाधिक ५ १४ नस्पतिकाय ८- ०४३ .१ १ २४००००० २८००००० हजार यो० अधिक ४ ४ अनंतगुणा ६ १५ सय १९३२००००.१४०५०००० हजार योजन १० १२ सर्वथी स्तोक१ १. मनोयोग १४-१५४७ ६३ १६२६०००००११६५०००० हजार योजन १३ १२६ १. वनयोग १४-१५४ ७ 1९३२०००००१४०५००० हजार योजन १३/१२ ६ असं० गुणा २] [२६०] _mmmm 20S0 ---mmm Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1१८ काययोग १९ पुरुषवेद १४-१५४७ ६६३ १३ शुक्लना ४६ केवली ६६३ पहे. स विना . २४८४०००००१९७५०००० हजार यो० अधिक १४१३ १५२२००००० ९१५०००० हजार योजन४ ९ १५/१२६ अनंतगुणा ३ १०१२ सर्वथी रतो.१] - ९ १५१० २० स्ववेद २१ नपुंसकवेद २२ क्रोध २३ मान २४ माया २५ लोभ २६ मतिज्ञान - - - my My my my my - - mmmmmmm १५२२००००० ९१५०००० हजार योजन ११८००००००१७१५०००० हजार यो. अधिक १४ २४८४०००००१९७५०००० हजार यो. अधिक 1४ २४८४०००००१९७५०००० हजार यो. अधिक १४ २४८४०००००१९७५०००० हजार यो. अधिक १४ २४८४०००००१९७५०००० हजार यो. अधिक १४ ।। सम १६२६०००००११६५००००१००० योजन २ कित ३२००००० १३१२ संख्यातगुण २ १५/१२ अनंतगुण ३ बिशेषाधिक १५१० ६ सस्तोक १ १५१० ६ विशेषाधिक ३|| १५१०६ १० ६६१ १४ शुक्लन। ४६ त्रीगचोथा पायाविना २७ श्रुतज्ञान १६२६०००००११६५००००१००० योजन [२६१] २८ अवधिज्ञान १६२६०००००११६५००००१००० योजन ७. असं० गुण २ २९ मनःपयवज्ञान धर्मना४४ ६ १ १४००००० १२०००००५०० धनुष्य १३७६ सर्वस्तोक १ शुक्लना २, ९ आना ३ सहित ३.केवलज्ञान २शुक्लन १ केवळी ६१वज्र १,११४००००० १२०००००५०० धनुष्य- १ २ ७२१ अनंतगणा ८ ३१ मतिज्ञान (छेल्दा ४५कवकी६ २ २४८४००००० १९७५०००० हजार यो.अ २४८४००००० १९७५०००० हजार यो० अधिक 1४३- २१३५ तथा आ हारकधिना ३२ श्रुतअज्ञान ८ ४ ५ ,६६२ २४/८४०००००१९७५०००० हजार यो० अधिक १४ ३३/वभंगज्ञान ८ . ४ ५ ,६६२ २४२६०००००११६५००००हजार योजन ३-४ १३५६ असं० गुणा५ ४पामायिक धर्मना४४ केवळी ६६१ सम-११४००००० १२०००००५०० धनुष १ १३७ संख्यात गुण ५ चारित्र शुक्ल १, विना कित ८ आता ३ सहित ३५ छेदोपस्थाप.५-८ ,, ४६ ६ ६ १ ०० १२ ००५०० धनुष्य । नीय -: Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समुद्घात सस्थान lor कित मार्गणा ध्यान १६ जीवाजोनी कुल कोटी जीव- गुणस्थान - उपयो अवगाहना.. ८४००००० १९७६०००० स्थान १४ १४ अल्पाबहुत्व ३६ परिहारविशुद्धि ४ धर्मना ४ १ सम-११४०८००० १२०००००५०० धनुष ६ संख्यात गुणा२] ७ आतना ३ सहित ३७ सूक्ष्मसंपरायः १शुक्लध्या ४३- २६३ १,११४०००००.१२००००० ५०० धनुष १ १... ९ ७१ सर्वस्तोक ननो पहेलो पायो ३८ यथाख्यात ४शुक्लध्या , १ १४००००० १२०००००५०० धनुष १ १ ४ ११९ १ संख्यात गणा३) ३९ देश विरति ८ आत,४ ६ १,, - २ १८००००० ६५५०००० हजार योजन .१ १ ११६ - ६ असं० गुगा ६ नना गेंद्र १० धर्मना पहेला २ ५० अविरति ..८ .४५ ६६.३। २४८४०००००/१९७५०००० हजार. यो० अधिक १४.४ १३९, ६ अनतगुणा [२६२ ९ धमनो २००० १२५५०००० हजार योजन ६-३ १२ १३१०६ असं० गुणा २/ ४१ चक्षुदर्शन १४ छेल्ला ४६ बे विना ४२ अचक्षुदर्शन १४ ,,४६ ४३ अबधिदशेन १४४ ६ ६ ६३ २४८४००००० १९७५०००० हजार यो० अधिक १४ ६६.१ सम-१६२६०००००११६५०००० हजार योजन . २ १२ १५१०६ अनंतगणा ।। १५७६ सर्वस्तोक १] ९ १,११४००००० १२०००००/५०० धनुष. १ ०००००/१९७५०००० हजार योजन अ०१४ २ ७ २ १ अनंतगगा | .१ विशेषाधिका ६-४ ४४ केबलदर्शन २ १ केवळी ६ ॥ ४५ कृष्णलेश्या १२ शुक्ल-४ ६ विना ४६ नीललेल्या १२,४६ ४७ कागेतलेश्या १२, ४८ तेजोलेश्या १२, ४६ ४९ पद्मलेश्या १२.,,४६६ ५० शुक्ललेश्या १४-१५ WWWW AM ८४०००००१९७५००००हजार योजन अ०१४ २२८४०००००१९७५००००हजार योजन अ०१४ १८४६०००००१३८५००००हजार योजन -३ ३२२००००० ९१५०००० हजार योजन ९१५०००० हजार योजन १५१०१ १५१० अनंतगुणा १५१० १ असं० गुणा ३ १५१० १ असं० गुणा २ १ सर्वस्तोक ॥ १५/१० Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१ भव्य ५२ अभव्य ५३ उपशम सम्यक्त्व ५४ क्षायोपशमस म्यक्त्व ५५ क्षायिकस ५७ सास्वादन सम्यक्त्व | १६-१४ ४ ५८. मिथ्यात्व ५९ संज्ञी ६० असंज्ञी ६१ आहारी ६२ अनाहारी १६ म्यक्त्व ५६ मिश्रसम्यक्त्व ८ या सुधी १२ १३ शुलना ४ ३. पहेला पा ४ ५ ८ ४ ७ ४ ४ २ ४ ५-३ ६ ४ १६- १४ ४ ६-७ ६ ६ ४ ४ १४-१५ ४ ७ १०-८-२४ २ ६ ३ २४ ८४००००० १९७५०००० हजार योजन अ० १४ १ मिथ्या २४ ८४००००० १९७५०००० हजार योजन अ० १४ १६ २६.००००० ११६५०००० हजार योजन ६ 9 १ १ १ | १६ २६००००० ११६५०००० हजार योजन 19 ४ २६००००० ७३०००००छ गाउ | १६ २६००००० ११६५०००० हजार योजन २२५६००००० १८७५०००० हजार योजन ३२०००००| २४ ८४००००० १९७५०००० हजार योजन अ० १४ | १६ | २६००००० ११६५०००० हजार योजन २ १ हुंडक १ छेवटुं १ मिय्या १० ७६००००० १४६५०००० हजार योजन अ० १२ २४८४००००० १९७५०००० हजार योजन अ० १४ R १वज्र० २ सम- २४८४००००० १९७५०००० लोक प्रमाण कित, मिथ्या २ २ १ १४ 9 ८ ४ ११ 19 १. १ १४ R १३ |१५ १२ | १३५ १३ ७ १५ ७ १५९ १०६ १३ ५ १३ ५ | १५ १२ १५ १२ १ १० ६ अनंतगुणा २ ६ सर्व तोक १ ६. संख्यातगुणा २ ६ असं० गुणा ४ ६ अनंतगुणा ५ ६ सख्यात गुणा ३ ६ सर्वस्तोक १ ६ अनंतगुणा ६ ६ सर्वस्तोक บ ४ अनंतगुणा २ ६ असं० गुणा રા ६ सर्वरतोक १ [२६३] Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कबधा मार्गणा धह अविरति १२ कषाय २५ उत्तर-मध्यात्व अविरात योग १५ मूळ भाव ५ उत्तर भाव ५३ हेतु ४ पातिकमा क्षायिक भाव द्विकस- त्रीक- चतुः पंचसं. जोगी संजोगी संजोगी जोगी भांगो भांगो भांगो भांगो ७ मो ९-१० ४-५ सन्निपातिक १५ ०-११-१ . -११-१. १२ १नरकगति २३ बे वेद २३१ १ १५ विना २ देवगति ४५२ ५ १२ २४ नपुंसक १ १५ । बेदविना ३ मनुष्यगति ४५७५ १५५ ५०२ ९ १८ १८ ४ तिर्यचगति १३५ ३९१ १ १६ १८ ५ एकेंद्रिय १ अना-७ चार इंद्रिय २३ ८ १४ ३१ भोग तथा एक मन विना ६ द्वीन्द्रिय ४३६१,८त्रण इंद्रिय २३ ४ ३ २४०० ८१३ ३१ तथा एक मन विना ७त्रीन्द्रिय ४३७१ , ९ बे इंद्रिय २३ तथा मन विना ८ चतुरिन्द्रिय ४ ८ १ , १० एक इंद्रिय २३ तथा एक मन __. . ._. ८-१०-०० [२६४] . ०-१ ० -० ० ____ ९ पंचेंद्रिय १० पृथ्वीकाय FA , .__. ९ १८ २१ ३ ५ ४- ४ १ ३ ३ २५० ०-१०-०० -_. mmmmm ११ अपकाय १२ तेजस्काय १३ वायुकाय १४ वनस्पतिकाय ४ १५त्रसकाय १६ मनोयोग Sr mmm rmy - , , , , ५३.२४ - . . . . . ५५ ५३२ 344 5.5 २१ ३५ २५ -४ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-४ ४-४१ १-४४-४१ ०-३३-३ १ 1१७ वचनयोग १८ कायंयोग १९ पुरुषवेद २० स्त्रीवेद २१ नसकवेद २२क्रोध x 355 mar mmmmmmm ४ x २३ मान .४ -४ x १२-११ मन २५ १३५ २ ९ १८ २१ १२ विना २५ १५५ ५३ ९ १८२१ १२२३ १ १८ १८ १ १८१८ १५५४२ ११८१८ १३ क्रोध चार १५५ ४२ १८ १८३ नवनोकषाय १३ मानचार १५५ नवनोकषाय १३ माया चार १५५ नवनोक्षाय १३ लोभ चार १५५ नवनोकषाय २१ अनंतानु-१५५ बंधीविना १५ १९२४. ४०२२ १५ १५ १९ २४० १३ संज्वलन १३५ नवनोकषाय -४४-४१ । २५ लोभ : ४ २६ मतिज्ञान ३ ४५ ५ ४८ ० र -४४-४ १ २७ श्रुतज्ञान ३ (२८ अवधिज्ञान ३ २९मनःपर्यवज्ञान २ ४८. ४८. २६ . • • . २१ ०-४४-४१ .-४४-३१ ०-११-११ [२६५] ।। ० . ० www. ____mormms - AWWWW ० ३० के.वरज्ञान १ ७ . ३१ मतिज्ञान. ४ ३२ श्रुतअज्ञान ४ ५५५ ३३ विभंगज्ञान ४ ५५ ५ ३४ मामायिक २२६ चारित्र ३५ छेदोपस्थापः २. २६ . नीय , ३६ परिहारविशुद्धि २ २१ . -०३० - ० -० ०-१-११ - ११--११३ ३-२ ० -१ १-१ ० १२ संज्वलन४९ ५-४३२- १-०१ १४ १४२ आठ नोकषाय १ संज्वलन ९५ २२.२.११३ ४...... २ ३७ सूक्ष्मपराय २ १० .. ३ . .३८ यथाख्यात ११० ११५ २८ २९ १२ ३२. ४-५ 12/1-०१-११५ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्गणा मूळबध हेतु ४ |३९| देश विरति ४० अविरति ४ ४१ चक्षुदर्शन ४२ अचक्षुदशन ४३ अवधिदर्शन ३ ४४ केबल दर्शन १ ४५ कृष्ण लेश्या ४६ नीललेश्या ४७ कापोतलेश्या ४८ तेजोलेश्या ४९ पद्मलेश्या ५० शुकुलश्या ५१ भव्य ३ મ ४ ५५ ४ ५५ ५७ ४८ ४ ४ ४ ५२ अभव्य ५३ उपशम स० ५४ क्षायोपशमस० ३ ५५ क्षायिकस० ५६ मिश्रसम्यक्त्व ५७ सास्वादन स० ३ ५८ मिथ्यात्व ५९ संज्ञी ६० असंज्ञी ६१ आहारी १६२ अनाहारी उत्तर बंध है तु ५७ ४ ३९ ४. 3 3 3 3 3 3 3 F*** Z ५७ ५७ ५७ ५७ ५७ ५७ ४ ५५ ५७ ४६ . ४८ ४३ ५० ५५ ५७ ४१ ५७ ४३-३३ मीथ्यात्व ५ ० 5 25 5 5 ५ 100 y G ७ अविरति १२ कषाय २५ ५ १२ १ १२ १२ १२ १२ |११ त्रसनी अ- १७ पहेली वे ११५ ३४/१ विरतिविना चोकडीविना ० १२ १२ १२ १२ |१२ १२ . . . . . . 22 १२ १२ १२ १२ १२ १२ ५. १२ ५ १२ २५ २५ २५ २१ ५. १२ ५-१ १२-६ २५ २५ २५ २५ २५ २५ २५ २५ २१ २१ २१ |२१ २५ २५ ११ मननी अ- २३ विरतिबिना योग १५ मूळ भाव ५ उत्तर भाव ५३ २५ २५ उपशम भाव १५५ ३९१ १५५ ३९१ १५५ ३९१ १५५ ३८१ १५५ ३८१ | १५५ ४७२ १५५ ५२२ ह १३५ ४११ १ १५ १३५ ४६२ २ १८ १५५ ४६२ २ १८ १५५ ४०२ २ १५ ७३ १३० ९ १५३ ३६० १५५ ४५१ १०३ ०३० | १३३ ३२० | १३३ | ३४ ० १५५ ५३२ शायिक भाव ९ १५५ ५३२ १५ ४८ १ च.प. आद शम रिक भाव भाव १८ २१ |१ |१३ ० १३३ ३३० ० १० १३५ ३८२ १ १४ १८ १ १८ १ १८ १ १८ १ १८ ९ १८ ९ १८ ९ १४ १२ ० १० | १७ ९ २१ २१ २१ १९ २१ १९ १५ १९ ९ १८ ९. १४ ३ १६ १६ १६ १९ १९ २० ० १० २१ ९ १८ २१ १५ | १५ १५ २१ १५ २१ |२१ परिणा- सांनि मिक पातिक भाव ३ ६ २ www ३ ३ ४ ४. द्विक्स- त्रीक चतुः पंचसं जोगी संजोगी संजोगी जोगी भांगो भांगो भांगो भांगो ७ मो ९-१० ४-५ १ ०-१२-१ 0 ० ० ० ० १ ० ० ० ० ० ५ ० ५-४ १ ४-४ ४-४ ० ४-४ ४-४ १ ४-४ ४-४ १ ०-४४-३ १ ० १-० 010 ०-४ ४-२ ०-४ ४ ३ ०-४ ४ ३ ०.३ ३-३ ० ०-३३-२० १-३ ३-२ १ १-४ ४-४ १ ०-४ ४-४ |१ ०-४ ०-० 010 ४-० ० ०--४ 0-0 9-0 ०-४ 1 ०-४ ०-० ०-४ ०-० ०-४ १-४४-४ ०-४ ४-४ १ ० -२ ०-० 0-0 ० ० O ० ० ० ० 0 |१-४४-४ १ १-४१-४ ० १२ १३ | १३ १२ R सन्निपतिक १५ १० ११ ११ ८ १० १ ) १३ ४ ४ ४ ४ * १४ १३ २ १४ ११ [२६६] Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्रुव- पगवते बंध प्रकृति प्रकृति बंध प्रकृतिबंध प्रकृतिबंध शनावग्णी वेदनीय प्र- माहनीय आयुकाः पुण्यबंध पापबंध ध्रुवबंध प्रकृति प्रकृति प्रकृति नामक अपरावर्त ज्ञ नावरणी दर्शनावग्णी वेदनीय प्र प्रकृतिबंध प्रकृतिबंध पक्रतिबंध प्रकृतिबंध ९ कृतिबंध २ मार्गणा अंतराय कृतिबंध २ | बंध ५ गोत्रकर्म प्र-कर्मप्रकृति ४२८२ ७३ १ नरकगति २ देवगति ३ मनुष्यगति ४तियचगति ५एकेंद्रिय :. . . . . . . م . م .00 0.00 0.00 0. [२६७] 00000000000$$$$50550065 . مه مه کمک ७त्रीन्द्रिय ८ चतुरिन्द्रिय ३४ ९ पंचेंद्रिय १० पृथ्वीकाय ३४ ११ अप्काय १२ तेजस्काय १३ वायुकाय १४ वनस्पतिकाय १५ त्रसकाय १६ मनोयोग १७वचनयोग १८ काययोग १९ पुरुषवेद २० स्त्रीवेद २१ नपुंसकवेद २२ क्रोध २३मान २४ माया २५ लोभ 0 0.00 ۔ تمہ تمہ تمہ ت :. کلمہ کی کہ .00 0 ४ Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकांत पुण्यबंध पापबंधधवबंध मार्गणा प्रकृति प्रकृति प्रकृति ४२ ८२ ४७ परावर्त | वेदनीय | मोहनीय आयुकम नामकमसीन। अतराय अपरावते ज्ञानावरणा दर्शनावरणीप्रकृतिबंध प्रकृतिबंध नारणा प्रकतिबंध प्रति प्रकृतिबंध ९ प्रकृति " प्रकृतिबंध प्रकृतिबंध प्रकृतिबंध प्रकृतिबंध | HD कर्मप्रकृति बंध ५ कृतिबंध २ का ६७ A و و و و و .00.00 २६ मतिज्ञान २७ श्रुतज्ञान २८ अवधिज्ञान ३९४४ ३९ २९ मनःपर्यवज्ञान ३३ ३० केवळज्ञान ३१ मतिअज्ञान ३२ श्रुतअज्ञान ३९ ३३ विभंगज्ञान ३९ ३४ सामायिक ३३ चारित्र ३५छेदोपस्थाप-३३ و و و 0 م नीय [२६८] ३६ परिहारवि- ३३ م शुद्धि - ४० ३७ सूक्ष्मसंपाय ,,३ ३८ यथाख्यात १ ३९ देशविरति ४० अविरति ४१ चक्षुदर्शन ४२ अचक्षुदर्शन ४३ अवधिदर्शन ४४ केवल दर्शन ४५ कृष्णलेश्या ४६ नीललेश्या ४७ कापोतलेश्या ४८ तेजोलेश्या و و و و و و و و و و و م 00.00 000 0.0 á á • vn :: १ १ . ४० Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९ पद्मलेश्या ४१ ७१ ५० शुक्ललेझ्या ३९६९ ५१ भव्य ४२८२ ५२ अभव्य ३९८२ ५:उपशम स० ३७ ५ शायोपशमस०३९ ४४ ५५/क्षायिकस०३९ -______ ५६ मिश्रसम्यक्त्व ३४ ___ ५७ सास्व दन स.३८ ५८ मिथ्यात्व ३९८२ ___ ५९ संज्ञी ४२८२ _ -६० असंज्ञी _ ६१ आहारी ४२८२ ४७ ३.७९ ४७६५ ८३ २९५ _ ६२'अनाहारी ९ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मागणा १ / नरकंगति २ देवगति ३ मनुष्यगति बंधविच्छेद बंधनी ओघ प्रकृति प्रकृति १२० १९ १०१ १६ मनोयोग १७ वचनयोग १८ काययोग १९ पुरुषवेद १६ ० ४ तियैचगति एकेंद्रिय ६ द्वन्द्रिय ७ त्रीन्द्रिय ८ चतुरिन्द्रिय ११ पंचेंद्रिय १० पृथ्वीकाय ११ अप्काय १२ तेजरुकाय १३ वायुकाय १५ १४ वनस्पतिकाय ११ १५ त्रसकाय FFFFFFFFF. |११ ११ ११ ११ ११ १५ | १०४ • १२० ११७ १०९ १०९ १०९ १०९ | १२० १०९ १०९ १०५ १०५ | १०९ १२० | १२० १२० १२० १२० मिथ्यात्व १०० जिन | ९६ नाम विना १०३ जिन ९६ नाम विना ११७ जिन १०१ नाम, आहारक | विना ११७ १०९ १०९ १०९ १०९ ११७ १०९ १.९ १०५ १०५ १०९ ११७ ११७ ११७. ११७ ११७ सास्वादन ० ९६-९४ १०१ | १०१ ६९ ७० ६६ ९६-९४ ० ० |९६ - ९४० |९६-९४ ९६-९४ १०१ १०१ १०१ मिश्र अविरति देशविरति प्रमत्त अप्रमत्त १०१ |७० ७२ ० १०१ ७० ७२ ० ९६-९४ o ० |९६-९४ ० ६९ ७१ ६७ ६३ ५९ ५८/५६५६/५६| २२।२१।२० | १७ ५८ ५६/५६।२६। १९|१८| ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० . ० ७४ ७७ ६७ ६३ ५९ ५८/५६/५६/५६ । २२।२१।२०। १७ ५८ ५६।५६।२६ १९।१८ ० ० ० ० ० • O ० 0 ० ० ० ० O मुक्ष्मसं-उपशां क्षीण सयोगी अयोगी पराय तमोह मोह केवळी केवळी अपूव करण अनिवृत्तिकरण | ० 0 ० ० ० ० ० ७४ ७७ ६७ ६३ ५९ ५८/५६।५६।५६| २२|२१|२०| १७ ५६।५६।२६ १९।१८ ५८ ७४ ७७ ६७ ६३ ५९ ५८/५६।५६/५६ । २२/२१/२० । १७ ५८ ५६/५६।२६ १९।१८ ७४ ७७ ६७ ६३ ५९ ५८/५६/५६।५६ । २२/२१।२० । १७ ५८ ५६/५६/२६ १९/१८ ७४ ७७ ६७ ६३ ५९ ५८/५६।५६/५६। २२/२१।२०। १७ ५६।५६।२६ १९.१८ ५८/५६/५६।५६ | २२|२१|२०| ५६।५६।२६ १९।१८ ५८ ७४ ७७ ६७ ६३ ५९ ५८ ० ० O จ १ १ [२७०] Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. स्त्रीवेद २१ नपुंसकवेद ५८ ७४/७७६७६३५९ है ? ? ? ५८ क्रोध २२ क्रोध . १२० २३ मान मान ५८/५६१५६१५६२२।२१।२०।० ५६१५६२६ १९/१८ ५८१५६१५६५६।२२।२१।२०१० ५६०५६।२६ १९१८ ५८५६५६॥५६॥२२।२१।२०। . ५६२५६१२६ १९।१८ ५८५६५६॥५६॥२२॥२१।२०।० . ५६५६१२६ १९४१८ ५८१५६३५६३५६।२२।२१।२०।० । - ५६५६२६ १९।१८ ५८१५६॥५६॥५६॥२२।२१।२०। १७ । ५६।५६।२६ १९।१८ ५८५६॥५६॥५६॥२२॥२१२०१७ ५८ ७४/७७६७६३५९ २४ माया . २५लोभ लोभ . ७४/७७६७६३५९ ५८ मतिज्ञान . ५८ श्रुतज्ञान ४१ ? . . . . . ५८ .. . . . . . अवधिज्ञान १ २९ मनःपर्यवज्ञान ५५ ५८१५६५६५६।२२।२।२०१७ । ५६।५६।२६ १९१८ ५८१५६१५६०५६२२।२१।२०१७ ५६१५६।२६ - १९६१८ ५८१५६५६॥५६॥ २२।२१।२०१७ ५६२५६।२६ १९।१८ [१६] . . . . . . ११७ ३० केवलज्ञान ३१ मतिज्ञान २२ श्रुतअज्ञान ३३ विभंगज्ञान ३४ सामायिक ५५ .. .चारित्र ३५ छेदोपस्थापः ५५ | मीय , ३६ परिहारविशुद्धि ५५ ३७ सूक्ष्मसंपराय १०३ ३८ यथाख्यात ११९ ३९ देशविरति ३ . ००००० ५८।५६१५६५६।२२।२१।२010 ५६१५६१२६ १९/१८ ।। ५८॥५६॥५६॥५६।२२।२१।२०० ५६०५६।२६ । १९/१८ ०६३५९-५८० . . . . . १ ६७ . . .६७० Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्गणा बंधविच्छेद बंधनी ओघ मिथ्यात्व | प्रकृति प्रकृति १२० मिश्र अविरति देशविरति पमत्त. अपमत्त भपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसं सूक्ष्मसं-उपशां- क्षीण मयोगी अयोगी पराय तमोह मोह केवळी केवी ४० अविरति ११८ ११७१०१ ७४७७ ४१ चक्षुदर्शन ७४७७६७ ६३ ५९ ५८।५६।५६।५६।२२।२१।२०। १७१ ५८ ५६।५६।२६ १९।१८ १ ४२ अचक्षुदर्शन ६३ ५९ ५८।५६।५६०५६।२२।२१।२०। १७ ५६.५६।२६ १९।१८ १ . 1५८ ४३ अवधिदर्शन . ७७६७ ६३ ५९ ५८।५६।५६।५६।२२।२१।२०। १७ १ । ५६५६२६ १९।१८ १ ____ . ४४ केवळदर्शन ११९१ ४५ कृष्णलेश्या २ ११८ . ४६/नीललेश्या [२७२] . ७७६७ . ४७ कापोतलेश्या . ४८ तेजोलेझ्या ७४ ७७६७ . ४९ पंगलेशा १२ १०८ ५० शुक्ललेश्या १६१०४ . . . ५८।५६।५६।५६।२२।२१।२०। १७ ५६५६२६ . १९।१८। ७४ ७७६७ ६३ ५९ ५८।५६॥५६॥५६॥ २२।२१।२०। १७१ | ५६५६।२६ १९१८ ५१ भव्य १ . ५२ अभव्य३ ११७ . Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ उपशम म्यकत्व ५४ क्षयोपशमस- ४१ म्यकत्व स- ४३ ५५ क्षायिकस म्यकत्व ५६ मिश्रसम्यकत्व ४६ ५७ सास्वादनसम्यकत्व ५८ मिथ्यात्व ६० असंज्ञी sebis ६१ आहारी ६२ अनाहारी ४१ ९७ ७४ १०१ ११७ १२० ११७ १२० ११२ ११७ |११७ ११७ ११७ ११७ १०१ १०१ १०१ १.०१ ९४ ० ७७६७ ६३ ५९-० ५८ ० ७५६५ ६२ ५९ ५८/५६५६।५६ २२।२१।२० | १७ ५८ ५६।५६।२६ १९।१८ ७७ ६७ ६३ ५९ ५८/५६।५६।५६ । २२।२१।२०१७ ५८ ५६।५६।२६ १९।१८ ७४० 0 ७४७७६७ ६३ ५९ ५८/५६/५६/५६ । २२|२१|२०१ १७ ५८ ५६/५६।२६ १९।१८ ० ७४७७६७ ६३ ५९ ५८/५६ ५६ ५६।२२।२१।२० १७ ५६/५६/२६ १९।१८ ५८ ७५ १ १ ० १ ० [२७३] Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५/एकेंद्रिय ४ तिर्यंचगति ३ मनुष्यगति देवगति १)नरकगति २६ मतिज्ञान २५ लोभ २४ माया २३मान २२ क्रोध २१ नपुंसकवेद १०स्त्रीवेद २९ पुरुषवेद १८ काययोग वचनयोग १६मनोयोग १५त्रसकाय १३ वायुकाय १४ वनस्पतिकाय २० १२ तेजस्काय ११ अपकाय ९पंचेंद्रिय १० पृथ्वीकार्य ८ चतुरिन्द्रिय ७त्रीन्द्रिय ४० ४१ १८ - १८-१८ ६२ २०६२ morM । २१-२२ ६३ २०५८-६१ उदय ४२ उदय ८२ मार्गणा पुण्यप्रकृति पापप्रकृति ध्रुवोदयी प्रकृति उदय २७ ६५ Raw . ° °°°°°°°°° ११ प्रकृति ११. 4000444०००००००००० | प्रकृति उ उदय४ उदय ४ उदय ७८ | प्रकृति की प्रकृति भवविपाकी जीवविपा कृति उदय विपाकीनपुद्गल ६३-६९ १८ ५९-५६ १८ -24-MMMMmormmmmmm - . ० ०० . م . م م . م ت . ت . تکه تکه تکه تکه یک تکه ی که کم کم یک تم تکه تکه ज्ञानावरण प्रकृति | उदय उदय ५ दर्शनावरण प्रकृति २ मोहनीकर्म प्रकृति उदय २८ आयकर्म प्रकृति उदय ४ > > > ) . ܟ , ܟ ' ܟ ܟ ܩ ܩ ܣ ܩ ܩ ܟ ܩ ܩ ܣ ܩ ܩ उदय ५०-५२२ ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه प्रकृति "उदय २ उदय५ गोत्र- अंतरा تک नामकर्म | कर्म यकमे مد تک تک تند ت ند تند تند تند ت ند تند د ند. تله : تدندن تد تم تم प्रकृति प्रकृति [२७४] Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७ श्रुतज्ञान २८ अवधिज्ञान ४० ४० २९ मनः पयेवज्ञान ३२ ३० केवळ ज्ञान ३१ ३१ मतिअज्ञान ३९ ३२ श्रुतअज्ञान २३ विभंगज्ञान ३४ सामायिक चारित्र ३५ छेदोपस्थाप- ३२ नीय " ३६ परिहारवि ३० ३९ ३७ ३२ शुद्धि: " ३७ सूक्ष्मसंपगय, ३० ३१ ३८ यथाख्यात ३९ देश विरति ३२ ४० अविरति ३९ | ३८ ४१ ४१ चक्षुदर्शन ४२ अचक्षुदर्शन ४३ अवधिदर्शन ४४ केवलदर्शन ४५ कृष्ण लेश्या ४० ३१ ४१ "" ४९ पद्मलेश्या ५० शुक्लेश्या ५१ भव्य ४३ नीललेश्या ४१ ४७ कापोतलेश्या ४१ ४८ तेजोलेश्या ४० ૪. ४१ ४२ ३९ ५२ अभव्य ५३ उपशम स० ५४ क्षायोपशमस ० ४० ५२ १५ ८२ ८२ ७३ ६९ |६९-६८ २६ ५२ ३४ ३३ ५८ ८२ | १५ ८२ ८२ ८२ ७३ ७१ ७१ ८२ ८२ ३६-३७ |६७ ७३ ८२ ****232 २६ ८० ६९ १२ |५१-४६ २६ २७ २७ २७ ४ |८०-७९ ४-३ ३० ९० ९०. ८२-८० ४७-५२ २६ २६ २६ ६१ २७ ९२ २६ ३४ |३४ २७ ६९-६८ २६ १२ २७ २७ २७ २७ ८४ २७ ८२ २७ ८३ २७ ९५ २७ ९० २३ |७३ ० ० 3 ४-२ ४ ० 0 ० ० ४ १ २७ ८२ ४ ९४ ४ ८०-७९ ३-४ ४ | ३० १ ९२-९४ ४ ४ |९२-९४ ४ |९२-९४ ४ ० ० |४ . १ १ २ | ४ ६४ ६४ ४९ १७ ७५ ७५ ६९ ४९ ४९ ४८ ३३ ३३ 3353 ५५ ७७ ७१ ७७ ६४ १७ ७७ ७७ ७७ 33355 ७१ ६९ ७८ ७५ ६३ ६४ |३४ ३४ ३१ २४ ३४ ३२ ३१ ३१ २४ ३० |३४ ३४ ३४ २४ a m ३४ ३४ ३२ ३४ 55. 19. Vo २ २ |२ 1 २२ १४ • २७ १४ १४ १३ १ ० १८ २८ २८ २८ २२ २८ २८ २८ २८ २८ 2 2 ૮ | ४ ४ १ 19 ४ ४ ४ १ १ २२ १ १ १ २ ४ ४ १ ४ ४ ४ ३ २८ ४ २६ ४ २१. ४ 1४ ५७ ५७ ४४ ३८ ६४ ६४ ५५-५३ ४४ ४४ ४२-३७ | ३९ ४० ४४ ६४ ५४ ५६-५७ ३८ ६४-६६ ६४-६६ ६४-६६ ५७ ५५ ६७ ६४ ५१-५२ 1५७ १२ 9 3 [२७५] Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मागणा ५५ क्षायिकस ० पुण्यप्रकृति पापप्रकृति उदय ४२ उदय ८२. * m (५६ मिश्रसम्यक्त्व ३६ ५७ सास्वादन स० ३८ पूर्व ५८ मिथ्यात्व ३९. ५९ संज्ञी ६० असंज्ञी ६१ आहारी ६२ अनाहारी : ४१. २८ ४० २७ ६४ ७७ ८२ ७५ ६.९. ८० ७३ उदय २७ ध्रुवोदयी प्रकृति २६ २७ २६ ७५ २६ ८५. २७ २७. अध्रुवोदयी। प्रकृति उदय ९५ ७५. २७ ९० ६६. २७ ९१ क्षेत्रवि पाकी प्रकृति उदय४ | ७६-८७ ४ ६० ४ २ ४ भवविपाकी जीवविपा प्रकृति की प्रकृति उदय ४ उदय ७८ ४ ४ २ ४ ६४ ६४ ७२ ७५ ७२ ६७ ७८ ७२ पुद्गलविपाकी प्र कृति उदय २९ ३२ ३२ ३४ | ३४ २२ | ३६ १२ مو ޅ 다 यकमे प्रकृति उदय २ २ २ २१ २२ ४ २१ २८ २४ ४ २८ २८ ४ २७ ४ ४ २ ४ नामकर्म गोत्र- अंतरा कम यकम प्रकृति उदय ६७ प्रकृति प्रकृति उदय २ उदय५ ५३ ५१ ५९ ६४ ५९ ४५ ६३ ३८ 19 9 [२७६] Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मागणा १] नरकगति २ | देवगति ३ मनुष्यगति ४ तिर्यंचगति ५ एकेंद्रिय ६ द्रीन्द्रिय ७ त्रीन्द्रिय ८ चतुरिन्द्रिय ९. पंचेंद्रिय १० पृथ्वीकार्य ११ अपकाय १२ तेजस्काय उदयवि च्छेदक प्रकृति 50 30 |७२-६९ ७३-७० ४३-४६ ७९-७६ ७७-७४ ३९-४२ ७३ - ८० ७५- ७२ १८०-७७ ८१-७८ ७६-७३ ७७-७४ २०१८ १०२-१०४९७-९९ ९५-९७ ९१-९३ ९२-९४ ८४ | १५-१३ १०७-१०९ १०५-१०७१००-१०२९१-९३ ९२-९४ ८४-८६ ४२-४१ ८०-८१ ८०-८१ ७२ ८२ ४० ७४ ૮ ७४ ८२ ७४ १०९ १०६ ७९ ७२ ७८ ७२ ७६ |७६-७७ ७९ १३ वायुकाय १४ वनस्पतिकाय ४३ | १५ त्रसकाय १६ मनोयोग ५ १३ १७ वचनयोग १० १८ काययोग | १९ पुरुषवेद २० स्त्रीवेद २१ नपुंसक वेद २२ क्रोध २३ नान २४ माया २५ लोभ २६ मतिज्ञान २७ तज्ञान उदय प्रकृति मिथ्यात्व ओघ १२२ ११७ ८ ४३ ४४ ४६ ४६-४५ ७६-७७ ७९ ११७ १०९ ११२ १२२ १४ १६ १३ |१३ १३ १३ १६ १६ ८२ ८२ ८२ ११४ ७९ ७८ १०८ १०६ ११६ १०९ १०९ | १०९ 10९ १०६ १०६ ११२ १०४ १०७ ११७ १०४ १०४ ११२ १०५ १०५ १०५ १०५ सास्वादन १११ ० ० О ७२ १०९ १०३ | १०३ | १११ १०२ १०२ १०५ ९९ ० ० 0 मिश्र १०० १०० C 0 Q 0 0 १०० १०० १०० १०० ९.६ ९१ ९१ ९.१ ११ अविरति | देश१०४ | विरति . ८.७ ० O 10 ० १०४ • O ० ० ७ १०४ १०० १०० १०४ ९९ ९६ ९५ १५ ९.५ ९५ १०४ १०४ ० o ० ० ० ८७ O ० O ० ८७ ८७ ८७ ८७ ८५ ८५ ८५ ८१ ८ १ 33333333 ८१ ८७ ८७ प्रमत्त ८१. अप्रमत ७६ अपूर्वकरण ७२ अनिवृत्तिकरण ० ० ० ८१७६७२६६ - O ० O ० ० ० ० ० ० ० १ 0 ० 0 ० ० ० ० ८१,७६७२६६ ० ७ 0 ० ० ० ५ ० ० ० ० ० 1 ० ० ८१७६७२६६ ८१७६७२६६ ८१७६७२.६६ ७९ ७४७०६४ ८७७४७०६४ ७९७४७०६४ ७८ ७३६९६३ | ७८ ७३,६९६३ 33 ७८ ७३,६९६३ ७८ ७३६५६३ ८१७६७२६६ ८१७६७२६ सूक्ष्मसं- उपशां पराय तमोह ६० ० 2 ६० O ० ० ० O ६० ० ६० १८१/७६ ७२६६ ६० २० ६० ० ० ६० ६० ६० O ५९ ० ० ० O ० ५९ ५९ ५९ ५९ D ० ० ० क्षीण सयोगी अयोगी मोह केवळी केवळी ५९ ५७-५५ ४२ १२ ० ० ० ५९ ० ५५-५७४२ ० O ० ० ० O ० ० ० ० ५५-५७४२ ० ० ० 0 ८ O ० ० 0 ० ० O ५५-५७४२ ५५-५७४२ ५५-५७४२ |५५-५७ ४२ ० ० ० 0 ० O ० ० ५७-५७ ० ७७७० ० ० १२ ० O ० ० ० १२ O ० ० ० ० १२ 0 ० ० 0 0 O 0 O प ० ० [२७७] Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नया प्रमत्त अप्रमत्त मार्गणा उदयवि उदय प्रकृति मिथ्यात्व | सास्वादन | मिश्र | अविरति च्छेदक ओघ १२२ ११७ १११ १०० १०४ प्रकृति देशविरति ८५ अपूर्वकरण ७२ अनिवृत्तिकरण सूक्मसंपराय ६. मयोगी अयोगी तमाह । ७ ५५ कवळ GATE क्षीणमोह केवळी केवळी ४२ - १२ । १०४-१०३८७ . * . . २८ अवधिज्ञान १६-१७१०६-१०५० २९ मनःपर्यवज्ञान ४१ ३० केवलज्ञान ८. ४२-१२० ३१ मतिज्ञान ११७ ११७ १११ १०० ३२ श्रुतअज्ञान ११७११७ १११ १०० ३६ विभंगज्ञान १३-१५१०९-१०७१०८-१०६/१०६-१०४१०० ३४सामायिक ४१ ८१ चारित्र ३५)छेदोपस्थाप• ४१ ८१ , , , , , . . . . . . ... . . . . , . . . नीय , , , , [२७८] ५७-५५/४२ . . . . . . . १२ ५७-५५० ३६परिहारविशुद्धि ४९ -४४७३-७८ ३७ सूक्ष्मसंपराय ६२६० ३८ यथाख्यात ३९ देश विरति ४० अविरति३ ११९ ११७११११००१०४ .. ४१ चक्षुदर्शन १३१०९ ४२ अचक्षुदर्शन १ १२१ ११७ ११११०० १०४८७/८१ ४२ अवधिदर्शन १६-१७१०६-१०५० १०४ - १०३८७८१ ४३ केवळदर्शन ८०४२-१२ . . ४५ कृष्णलेश्या३-१ ११९-१२१११७-११५१११-१०९१००-९८१०४-१०२८७८१ ४६ नीललेश्या ३-१ ११९-१२१११७-११५१११-१०९१००-९८१०४-१०२८७ ४७ कापोतलेश्या ३-१ ११९-१२१११७-११५/१११-१०५१००-९८१०४-१०२८७/८१ ४८ तेजोलेश्या ११ ११११०७ १०६ , ९८१०१८७ ४९ पद्मलेश्या १०९ १०५ - १०४९ १०१. ८७८१ ५० शुक्ललेश्या ११० १०५ ५१ भव्य १११ ५२ अभव्य ११७ . . . . . . . ८१ ७६ १०४ १०१ ५७-५५४२ ११७ . Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९९-१००८६७८७५ १०४८७८१ - ७६ ० 1५३ उपशम स-२३-२२९९-१००० भ्यकत्व ५४क्षयोपशमस- १६१०६० | म्यकत्व ५५क्षायिकस-२१ म्यकत्व ५६ मिश्रसम्यकत्व २२ . . . . . . . १११ ५७ सास्वादनस म्यकत्व ५८ मिथ्यात्व ११७ ५९संज्ञी ६० असंज्ञी ८-९ ११४-११३१०९ ८७८१ २९५३ ९३७९ ४. ११८ ११३१०८१०० १००८७८१७६२६६ ६० ५९ ५७-५५४२ १२ [२७९] ६१ आहारी ३५-३०८७-९२८५-९० ६२ अनाहारी ७४-७९० ७९-८४० Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्गणा उदीरणा ओघ प्रकति मिथ्यात्व सास्वादन अविरति देशवि-5 ११७ मिश्र १०० ११२ १११ । १०४ रति ८७ अनमत्त ७३ सूक्ष्मसंप अपूर्वकरण अनिवृतिकरण उपशांतमोह सयोगी अयोगी केवळी केवळी . ० ० । ० ० ० ० ० ० ० ० . . . . . . . . . . . ० ० ८२ ० ० ० ० ७४ ० ० ८२ ० ० १०६ 6८० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ०6० ० ० ० ० ० ० [२८०] . . . . . . . . ० ० ० ० ० ० uruPurur . . . . . . . . . . . . . ११६४६.53 १नरकगति ७९-७६ ७७-७४ ५७-७२ ७२-६९ ७३-५०० २ देवगति ८३-८० ८१-७८८०-७७ ७६-७३ ७७-७४० ३ मनुष्यगति १०२-१०४/९७-९९ ९५-९७ ९१-९३ ९२-९४ ४तियंचगति १०७-१०९/१०५-१०७१००-१०२९१-९३ ९२-९४ ५एकेंद्रिय ८०-८१ ८०-८१ ७२ ६द्वौद्रिय ८२ ७त्रींद्रिय ८ चतुरिंद्रिय | पंचेंद्रिय ११४ ८७८१ ७३६९ ६३ ५७५६५४-५२ १० पृथ्वीकाय ११ अप्काय |१२ तेजस्काय १३ वायुकाय १४ वनस्पतिकाय ७९ १५त्रसकाय ११७ ५४--५२ ३९ १६ मनयोग १०९ ८१७३ ७ वचनयोग ११२ १०३ १०० १०० ८१ ५४-५२३९ १८ काययोग १२२ ११७ १११ १०४ ८१७३ १९ पुरुषवेद १०८ १०४ १०२ ७१ २० स्त्रीवेद १०६ १०१ २१ नपुंसकवेद ११६ १०५ ७१ २२ क्रोध १०९ २३मान १०९ २४ माया १०९ २५लोभ १०९ ९१ , ९५८१ १२६ मतिज्ञान १०६ १०४८७ . ० . . ७३ .. .. ० in ७७ ७१ ० ० ९. ९ ९१ ० ०००००० D do००० ००० ' ० u rrrr ' ० ० ४-५२ - Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४८७/८१७३ १०४-१०३८७८१ ५४-५२ . २७ श्रुतज्ञ न २८ अवधिज्ञान १०६-१०५० २९ मनःपर्यवज्ञान ८१ ३० केवळज्ञान ४२-१२० ३१मतिअज्ञान ११७११७ ११११०० ३२ श्रुतअज्ञान ११७११७ १११ -१०० ३३ विभंगज्ञान १०९-१०७१०८-१०६१०६.१०४१०० ३४ सामायिक ८१० चारित्र ३५छेदोपरथाप-८१ " . . . . नीय ०७३-७८६७-७२० ३६ परिहारवि- ७३-७८ शुद्धि, ३७ सूक्ष्मसंपाय ,,६० ३८ यथाख्यात ,६० ० .. ० ३९ देश विरति • 1 ० [२८१] ११७ . १०४ १११ ५४-५२ ५४-५२ ५४-५२ ४० अविरति ११९ १११ ४१ चक्षुदर्शन १०९ १०५ १००८७ अचक्षदर्शन १२१११७ १०४८७ ४३ अवचिदर्शन १०६-१०५० १०४-१०३८७८१ ४४ केबलदर्शन ४२-१२ ४५कृष्णलेश्या १२१-११९११७-११५१११ १०९१००-९८१०४-१०२८७८१ ४६ नीललेश्या १२१-११९११७-११५१११-१०९१००-९८१०४-१०२८७८१ ४७ कापतिलेश्या १२१-११९११७ - ११५११-१०९१००-९८१०४-१०२८७८१ ८ तेजोवेश्या १११ १०७ १०६ ४९ पद्मलेश्या १०९ १०१ .५० शुक्ललेल्या ११० 10' ....५१ भव्य . १२२ ५२ अभव्य ११७१ ५३ उपशम स. २९-१००० ५४क्षायोपशमस० १०६ १०५ १०४ 101 . १.. . . . . १०४ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूक्ष्मसंप. उपशां उदीरणा । मिथ्याख मार्गणा ओघ प्रकृति | सास्वादन ११७ १११ अविरति देशवि. १०४ रति ८७ अप्रमत्त ७३ मिश्र धमत ८१ अपूर्वकरण सयोगी अयोगी केवळी केवळी| अनिवृतिकरण पा राय ५७ ५४-५२ ५५क्षायिकस. १० ५६ मिश्रसम्यक्त्व १०० ५७ सास्वादन स०१११ 1५८ मिथ्यात्व ११७११७ ५९ संज्ञी ११४-११३१०९ १०६ १०० ११४७ ८१ ५३ ६९६३ ५७ . ५६५४-५२ ३९ ६० असंज्ञी ९३९३७९ ० [२८२] ६१ आहारी ६२ अनाहारी८७-९२ ८५-९० ७९-८४ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आश्रव तत्त्व सघाती बंध २० देशघाती बंध २५ अघाती बंध निजरा तत्त्वबंध तत्त्व मोक्ष तत्त्व अजीव तत्त्व ४ ९ | १४ संवर तत्त्व ཤinཀt भग २४, चोवीशी भांगा । मोहनीय कमेना उदयना बासठ मार्गानी भवस्थिति ३३ गिरोपम १/नरकगति ४१ ईर्यावही-१२ नी क्रियाविना |११त्रण स्कंध. २४ अष्टक विना . १ कायक्लेश . xorror . . - در M . - .. . देवति ३ मनुष्यगति ४तियंचगति ५एकेंद्रिय ६द्वोद्रिय ७त्रीद्रिय ८ चतुरिंद्रिय ९पंचेंद्रिय १० पृथ्वीकाय ११अप्काय १२ तेजस्काय १३वायुकाय १४ वनस्पतिकाय १५त्रमकाय १६मनयोग १७ वचनयोग १८ काययोग . urarur . [२८३] . ANA . . FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF ५२ चोवीशी, भंग १४ । ३ पल्योपम' २२ चोवीशी ८ अष्टक २२००० वरस १२ वरप ४९ दिवस ६ मास चोवीशी, भंग १७३३ सागरोपम ८ अष्टक २२००० वरस ७००० वरस ३ अहोगत्री ३००० वरस १०००० बरस चोवीशी, भंग १७ ३३ सागरोपम ५२ चोवींशी, भंग १७३३ ५२ चोवीशी, भंग १७ ३३ ५२ चोवीशी, भंग १७ ३३ ५२ चोबीशी, भंग १७३३ •५२ चोवीशी, भंग १७५५ पल्योपम ५२ चोवीशी, भंग १७ ३३ सागरोपम ५२ चोवीशी, भंग १७ ५२ चोवीशी, भंग १७ ५२ चोवीज्ञी, भंग १७ ५२ चोवशी, भंग १७ ३६ चोवीशी, भंग १७. .. 2. २० ७५1 १९ पुरुषवेद २० स्त्रीवेद २१/नपुंसकवेद २२ कोध २३मान २४/पायों २५/लोभ २६ मतिज्ञान ४१ २३ ४४ ४१ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्गणा सर्वधाती देशघाती बंध २५ अघाती बंध आश्रव तत्त्व ४२ निर्जग तत्त्व | बंध तत्त्व मोक्ष तत्त्व संवर तत्त्व अजीव तत्त्व मोहनीय कर्मन। उदयना - भंग २४, चोवीशी भांगा बासठ मार्गणानी भव स्थिति १२ 4A ३६ चोवीशी, मग १७३३ सागगेपम ३४ चोवीशी, भंग १७ २० चोवीशी, भंग १७. देशे उन पूर्वकोटी देशे उन पूर्वकोटी ३० केवलज्ञान - १६ चोवीशी ३३ सागरोपम 355 ३३ २७ श्रुतज्ञान ५७ १२ २८ अवधिज्ञान ५७.१२ २९ मनःपर्यवज्ञान ४ २३ ३०-३१२ अनशनने ध्यान १ ३१ मतिज्ञान २०२५ ३२ श्रुतअज्ञान २०२५ ३३ विभंगज्ञान २० २५ २४१ ६ ३४/मामायिक चारित्र ४२३ ३८ २७५३ ३५छेदोपस्थाप. नीय ,४२३३८ २७५३१२ ३६ परिहार विशुद्धि ४२३३८ २७५३१२ ३७ मूक्ष्मसंपराय ३८ यथाख्यात ३९ दिशविरति ४०.-३९ १२ १२ ४० अविति ४१ चक्षुदर्शन ४२५७१२ ४२ अचक्षुदर्शन ५७१२ ४३ अवधिदर्शन ५७ १२ ४४ केवलदर्शन ३०-३१२ ४कृष्णलेश्या २० १४६ नीललेश्या 1४७ कापोतलेश्या ४८ तेजोलेश्या ४। ५५ १२ ४९पनलेश्या . २० ५०शतलेल्या [&ze] " २० चोवीशी, भंग १६ देशे उन पूर्वकोटी २० चोवीशी, भंग १६ देशे उन पूर्वकोटी १६ अष्टक १८ माम १ भंग अंतर्महर्त देशे उन पूर्वकोटी ८ चोवीशी देशे जन पूर्वकोटी २४ चोवीशी ३३ सागरोपम ५२ चोवीशी, भंग १७ ३३ । ५२ चोवीशी, भंग १७.३३ , ३४ चोवीशी, भंग १७ देशे उन पूर्वकोटी चोवीशी ३३ सागरोपम 6 o ११ 2 ० . ११ ४१. ० ० ० SKAKKA ४ १० १० ५२ चोवीशी, भंग १७३३ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१ भव्य २० २५ ७५ ४२ ५७ ५२ अभव्य २०.२५ ७२ १४१ ५३, उपशम स- १२ २३ ४२४१ "म्यकत्व ५४क्षयोपशमस- १२ म्यकत्व ५५क्षायिकस- १२ २३४४४ म्यकत्व ५६ मिश्रसम्यकत्व १२ ५२ चोवीशी, भंग १७ ३३ सागरोपम | ८ चोवीशी २० चोवीशी, भंग १७ अंतर्मुहूर्त २० चोवीशी, भंग १७ ६६ सागरोपम साधिक १६ चोवीशी अंतर्मुहूर्त ४ , आवळीका ३३ , , ५७ सास्वादनस- १९२४.५८१४१ म्यकत्व । ५८ मिथ्यात्व.२०२५:२४१ ५६ संझी- २०१५ ७५४२ ६. असंही २०२५ .. ७२or ६१ आहारी ६२ अनाहारी २० : २५०-६७३३ १२ अनंतकाळ चोवीशी, भंग १७३३ सागरोपम १२ अष्टक पूर्वकोटी ५२ चोवीशी, भंग १७३३ सागरोपम ४. चोवीशी ३ समय [२८५] १२ १२ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्गणा कायस्थिति ज्ञानवग्णी दर्शनावरणीयना भंग २ भंग ११ -१३ "वेदनीयना भंग ८ आयुना भंग २८ गोत्रकर्मना अंतराय कर्मना भांगा ७ मांगा २ जघन्य उत्कृष्ट ४ १)नरंकंगति २/देवगति ३ मनुष्यगति تم م م ११-१३ ४ तिर्यचगति ५/एकेंद्रिय ६द्वन्द्रिय ७त्रीन्द्रिय ८ चतुरिन्द्रिय | ९पंचेंद्रिय १०पृथ्वीकार्य ११ अपकाय १२ तेजस्काय १३ वायुवाय १४ वनस्पतिकाय १५त्रसकाय ००००००००००० १०००० वर्ष-३३ सागपम १०००० वर्ष-३३ सागगेपम अंतर्मुहूर्त-त्रण पल्योपम पूर्वकोटी पृथक्त्व २ अधिक अंतहत - अनंतकाळ, अनंता पुद्गल परावर्त १ अंत हर्त-अनंत पुद्गल पागवत भत हर्त संख्याता हजार वर्ष अंत हत-संख्याता हजार वर्ष अंत दर्त-संख्याता हजार वर्ष अंतमहत-हजार सागगेपम साधिक अंतर्महूर्त-असंख्गात काळ अंतर्भहत असंख्यात काळ अंतर्भरत-असंख्यात काळ अंत हर्त-असंख्यात काळ अंत हर्त-अनंत पुल पगवर्त अंतर्मुहर्त-बे हजार सागगेपम असंख्याता वर्ष २ अधिक एक समय अंतर्महर्त एक समय-अंतमहतं अंतर्महूर्त-अनंतोकाळ महत-पृथक्त्व १०० सागगेपम एक समय-एकसो दश पल्योपम पूर्वकोटी पृ. १ . थकव अधिक एक समय अनंतकाळ ११-१३ ०००००००००० 500 am Gav waw र र م م م م م م م م ه ه م م ११-१३ ة १६मनोयोग १७/वचनयोग १८ काययोग १९ पुरुषवेद २०स्त्रीवेद ११-१३ ११-१३ ११-१३ ७ -८ ة २१ नपुंसकवेद ة Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ पान -00 ७-८ .... ७-८ .. २ . ९-११ ९-११ ९-११ . अंतर्मुहूर्त-अंतर्महूर्त अंत-हूर्त-अंतर्भहर्तृ अंतर्मुहूर्त-अंतमुहूर्त एक समय-अंतर्मुहूर्त अंतर्महर्त-६६ सागगेपम साधिक - अंतर्मुहूर्त -६६ सागरोपम ,, एक समय-६६ सागरोपम एक समय-देशे ऊन पूर्वकोटी सादि अनंत काळ-अनादि अनंत काळ अंत हुर्त अनंतकाळ अंतर्मुहूर्त-अनंतकाळ एक समय-३३ सागगेपम अधिक अंतर्मुहूर्त देशे ऊन पूर्वकोटी अंतर्मुहूर्त-देशे ऊन पूर्वकोटी ९-११ .. २४ गया २५ नोभ R६ मतिज्ञान २७ श्रुतज्ञान २८ अवधिज्ञान २९ मनःपर्यवज्ञान ३० केवळज्ञान ३१मतिअज्ञान ३२ श्रुतअज्ञान ३३ विभंगज्ञान ३४ सामायिक चारित्र ३५ छेदोपस्थाप . ------- 0000 . [९८७] नीय, . . . mmon 0 -१३ 5 ३६)परिहारवि- १८ मास ३७..... शुद्धि ,, एक समय३८ सूक्ष्मसंपगय ,, एक समय देशे ऊन पूर्वकोटी ३९ यथाख्यात , अतर्मुहूर्त-देशे ऊन पूर्वकोटी ४.देशविरति अंतर्मुहूर्व-अनंतकाळ ४१ अविरति अंतर्मुहूर्त-हजार सागगेपम साधिक ४२ चक्षुदर्शन अभव्य आश्री अनादि अनंत तथा भव्य आश्री२ | अचक्षुदर्शन अनादि सांत ४३ अवधिदर्शन एक समय-६६ सागगेषम साधिक २ ४४ केबलदर्शन एक जीव आश्री सादि अनंत सर्व जीव आश्री, अनादि अनंत ४५)कृष्णलेश्या अंतर्महर्त-३३ सागरोपम अंतर्मुहूर्त अधिक १ ४६नीललेश्या अंतर्महर्त-१० सागरोपम, पल्योपमनो असं-१ ख्यातमो भाग अधिक ११-१३ ९-११ .. -- Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मागेणा कायश्थिति ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीवना वेदनीयना भंग ८ आयुना भंग २८ गोत्रकर्मना अंतराय कर्मना M ait : भग २ भंग ११-११ : भांगा : भांगा २ T जन्यः-: उत्कृष्ट ११-१३ ११.१३ ४७ कापोतलेश्या अंतर्मुहर्त-१० सामसेकम, पल्योपमनो असं-१ ख्यातमो भाग अधिक: - ४८ तेजोलेश्या अंतमेहर्त-२ सागपम, पल्योपमनो असंख्या-१ तमो भाग अधिक... ४९पछलेझ्या ... अंतर्महर्त-१० सागगेपम अंतर्मुहूर्त अधिक १ ५० शुक्ललेश्या । अंतर्मुहूर्त-३३ सागरोपम साधिक अनादि अनंत, अनादि सांत ५२ अभव्य अनादि अनंत ५३ उपशम सम्यक्त्व अंतमहूते-अंतमुहते ... ५४क्षयोपशम स० अंतर्मुहूर्त -६६ सागरोपम साधिक २५/क्षायिक स. सादि अनंत...... ५६ मिश्र सम्यक्त्व अंतहूर्त-अंतमुहूते । ५७ सास्वादनस० एक समय छ. आवली ५८ मिथ्यात्व अंतर्मुहूत-अभव्य आश्री अनादि अनंत, भव्य १ आश्री अनादि मांत.... ५९ संजी... अंतर्मुहूर्त-१०० पृथक्त्व सागरोपम साधिक २ ६. असंज्ञी... अंतमहस-अनंत काळ वनस्पति आश्री। ६. आहाशी अंतमुईत असंख्यात काळ . ६२ अनाहारी एक समय-अनंत काक, एक सिद्ध आश्री १. सादि अनंत Firrao r. འ འོ ་ ཏེ ཀོ ན བ ན བ ན ་ ་ ་ [२८] rma xxx.mar ११-१३ ११-१३ ४ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२८९] सत्तागत प्रकृतिनी समजुती. प्रथम ध्रुवसत्ताक १३० ने अध्रुवसत्ताक २८ प्रकृतिओ मळीने १५८ प्रकृतिओ सत्तागत पृष्ठ ६० अने ६१ मे बतावेली छे. परंतु आ साथेना यंत्रमा वंधन १५ ने बदले पांच गणवाथी १४८ प्रकृतिनुं गुणस्थानके अने मार्गणाए विवरण लखेल होवाथी अहीं ते प्रमाणे समजुती लखी छे. ध्रुवसत्ताक प्रकृति १२६-६२ मार्गणा आश्री. १३० मांथी तैजस कार्मण बंधन १, औदारिक तैजस बंधन १, औदारिक कार्मण बंधन १, औदारिक तैजस कार्मण बंधन १, ( आ चार बंधन जतां १२६ प्रकृति रहे छे) (५७) गति ४, इंद्रिय ५, काय ६, योग ३, वेद ३, कषाय ४, केवळ ज्ञान विना ४ ज्ञान, अज्ञान ३, सूक्ष्म संपराय अने यथाख्यात चारित्र विना ५ चारित्र, केवळ दर्शन विना ३ दर्शन, लेश्या ६, भव्य १, अभव्य १, क्षायिक सम्यकत्व विना सम्यकत्व ५, संज्ञी १, असंज्ञी १, आहारी १, अनाहारी १, आ ५७ मार्गणाए ध्रव सत्ता १२६ प्रकृतिनी होय. (२) केवळज्ञान १, केवळ दर्शन १, आ बे मार्गणाए ध्रुव सत्ता ७० प्रकृतिनी होय, ते आ प्रमाणे-खगति द्विक २, वर्णादि २०, औदारिक शरिर १, तेजस शरीर १, कार्मण शरीर १, तेना ज संघातन ३; तेना ज बंधन ३, निर्माण १, संघयण ६, अस्थिर पटक ६, संस्थान ६, अगुरुलघु १, उपघात १, पराधात १, उच्चास १, वेदनीय द्विक २, औदारिक अंगोपांग १, नीचगोत्र १, सुखर १, अपर्याप्त १, प्रत्येक १, स्थिर १, शुभ १, त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, यश १, आदेय १, सुभग १, पंचेंद्रिय जाति १, कुल ७०. (२) सूक्ष्मसंपराय चारित्र अने यथाख्यात चारित्र आबे मार्गणाए अनंतानुबंधि ४ कषाय विना १२२ प्रकृतिनी ध्रुव सत्ता क्षपकने होय. अने १२६ नी उपशामकने होय. (१) क्षा.यक सम्यकत्वनी मार्गणाए अनंतानुबंधी कषाय ४, मिथ्यात्व मोहनी १, ए पांच विना १२१ प्रकृतिनी ध्रुव सत्ता होय. अध्रुव सत्ताक प्रकृति २२-६२ मार्गणा आश्री. २८ मांथी वैक्रिय तैजस बंधन १, वैक्रिय कार्मण बंधन १, वैक्रिय तैजस कार्मण बंधन १, आहारक तैजस बंधन १, आहारक कार्मण बंधन १, आहारक तेजस कार्मण बंधन १, (ए ६ बंधन विना २२ प्रकृति रहे छे.) Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२९० ] (३४) मनुष्य गति १, पंचेंद्रिय जाति १, त्रस काय १, योग ३, वेद ३, कषाय ४, पहेला ज्ञान ३, देशविरति चारित्र १, अविरति चारित्र १, पहेला दर्शन ३, लेश्या ६. भव्य १, उपशम समकित १, क्षयोपशम समकित १, मिथ्यात्व १, संज्ञी १, आहारी १, अनाहारी १, आ ३४ मार्गणाए २२ प्रकृतिनीं अध्रुव सत्ता होय. ( ७ ) एकेंद्रिय १, विकलेंद्रिय ३, पृथ्वीकाय १, अप्काय १, वनस्पतिकाय १, आ ७ मार्गणाए तीर्थंकर नाम कर्म १, आहारक द्विक २, आ ३ प्रकृति विना १९ प्रकृतिनी अध्रुव सत्ता होय. ( २ ) तेजस्काय १, वायुकाय १, आ वे मार्गणाए तीर्थंकर नाम कर्म १, आहारक द्विक २, मनुष्यायु १, आ चार प्रकृति विना १८ प्रकृतिनी अध्रुव सत्ता होय. ( १ ) मनः पर्यव ज्ञाननी मार्गणाए तिर्यगायु १, नरकायु १, ए वे प्रकृतिविना २० प्रकृतिनी अध्रुव सत्ता होय. अथवा २२ पण होय. ( २ ) केवळ ज्ञान अने केवळ दर्शननी मार्गणाए देवद्विक २, वैक्रिय शरीर १, आहारक शरीर १, तेना बंधन २, तेना संघातन २, तेना ज अंगोपांग २, मनुज त्रिक ३, जिन नाम कर्म १, उच्च गोत्र १, आ १५ प्रकृतिनी अव सत्ता होय. ( ३ ) त्रण अज्ञाननी मार्गणाए तीर्थकर नाम कर्म १, आहारक द्विक २, ए त्रण प्रकृति विना १९ प्रकृतिनी अध्रुव सत्ता होय. ( ५ ) पहेला पांच चारित्रनी मार्गणाए तिर्यगायु १, नरकायु १, ए वे प्रकृति विना २० प्रकृतिनी अव सत्ता होय. अथवा २२ पण होय. ( १ ) अभव्यनी मार्गणाए तीर्थकर नाम कर्म १, अने आहारक द्विक २, ए ३ विना १९ नी सत्ता होय. ( १ ) क्षायिक समकितनी मार्गणाए समकित मोहनी १, अने मिश्र मोहनी १, अने मिश्र मोहनी १, ए वे प्रकृति विना २० प्रकृतिनी अध्रुव सत्ता होय. ( ३ ) सास्वादन समकित, मित्र अने असंज्ञि ए त्रण मार्गणाए तीर्थकर नाम कर्म विना २१ प्रकृतिनी अध्रुव सत्ता होय. ( ३ ) देवगति १, नरकगति १ अने तिर्यंचगति १ ए त्रण मार्गणाए तीर्थकर नाम कर्मनी प्रकृति विना २१ प्रकृतिनी अध्रुव सत्ता होय. अथवा २२ पण होय. Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्गणा १ नरकगति २. देवगति ३ मनुष्यगति X तिर्यचगति ५ एकेंद्रिय ६ द्रोद्रिय ७ त्रींद्रिय ८ चतुरिंद्रिय ९. पंचेंद्रिय |१० • पृथ्वीकाय ११ अप्काय १२ तेजस्काय १६ मनयोग १७ वचनयोग १८ काययोग १९ पुरुषवेद २० स्त्रीवेद २१ नपुंसक वेद २२ क्रोध ध्रुवसत्ता अध्रुवस प्रकृति त्ताप्रकृति सत्ता प्रकृति ओघ १४८ १२६ २२ २३ मान २४ मायो २५ लोभ २६ मतिज्ञान २७ श्रुतज्ञान १२६ १२६ १२६ | १२६ १२६ १२६ १३ वायुकाय १४ वनस्पतिकाय १२६ १५ त्रसकाय १२६ १२६ १२.६ १२६ १२६ १२६ | १२६ |१२६ १२६ |१२६ |१२६ १२६ १२६ | १२६ १२६ १२३ १२६ | १२६ |१२६ २२ १९ १९ १९ १९ २२ | २२।२१ | १४८।१४७ १४८।१४७/१४७ १४७ उ क्ष. १४७/० क्षा. १३९ २२।२१ १४८।१४७ १४८।१४७ १४७ १४७ उ क्ष. १४७० क्षा. १३९ १९ १९ 192 १८ १९ २२ २२ २२ | १४८ | १४८।१४७ १४७ १४७ न. १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५।१३८. १४५।१३८ २२।२१ १४८।१४७ १४८।१४७ १४७ १४७ ९. क्ष. १४७ उ क्ष. १४७ क्षा. १३८ क्षा. १३८ ૐર્ २२ २२ २२ २२ | १२६ २२ २२ २२ २२ १४५ १४५ १०५ १४५ | १४८ | १४५ | १४५ | १४४ | १४४ १४५ १४८ १४८ | १४८ १४८ १४८ | १४८ | १४८ | १४८ १४८ १४८ १४८ [२९१] | १४८ मिथ्यात्व | १४८ सास्वादन | १४५ | १४५ | १४५ १४५ | १४४ १४५० १४५० १४५० मिश्र १४५० १४५० ० ० ० ० ० ० o १४५ | १४५ १४५० | १४८।१४७ १४७ १४७८. १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५ । १३८. १४५।१३८ ० ० О ० ० の अविरत ० ० ० 10 ० 0 देशविरत ० ० १४८ । १४७ १४७ १४७ उ. १४१ उ. १४१ 0 ० 9 ० | १४४ | १४५ १४५० १४८ । १४७ १४७ १४७. १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५।१३८. १४५।१३८ उ. १४१ | १४८ । १४७ १४७१४७उ. १४१ उ. १४१ ० ० ० ० ० क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५।१३८ डं. १४१ श्र. १४५ । १३८क्ष. १४५ । १३८क्ष. १४५।१३८ । | १४८।१४७ १४७ १४७ उ १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५।१३८ . १४५।१३८ । उ. १४१ उ. १४१ | १४८ । १४७ १४७ १४७ उ. १४१ क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५ । १३८ . १४५।१३८ | १४८।१४७ १४७ १४७ उ. १४१ उ. १४१ १४८।१४७ १४७ १४७उ. १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४५ १३८क्ष. १४५ । १३८क्ष. १४५।१३८ | १४८।१४७१४७१४७ उ. १४१ उ. १४१ ४. १४१ क्ष. १४५।१३१क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५।१३८ १४८ । १४७ १४७१४७ उ. १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४५ १३८क्ष. १४५ । १३८क्ष. १४५ ।१३८ उ. १४१ क्ष. १४५।१३८ क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५।१३८ उ. १४१ | १४८ । १४७ १४७१४७ उ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५।१३८ क्ष. १४५।१३८ १४८ । १४७ १४७१४० उ. १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५ । १३८५.१४५।१३८ उ. १४१ उ. १४१ उ. १४१ अ. १४५।१३८क्ष. १४५ १३८३.१४५ /१३८ उ. १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४५ । १३८ क्ष. १४५/१३८ . १४५।१३८ प्रमत्त ० ० Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२९२] | अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसंपराय | उपशांतमोह क्षीणमोह अप्रमत्त सयोगी अयोगी केवळी केवळी ___ . . १ उ.१४२११३९/उ.१४२११३९/उ.१४२११३९ उ.१४२११३९क्ष. १०१।९९क्ष.८५१८५क्ष.८५/१३/१२ क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ ० ००० ० ००००० १४१ उ.१४२११३९/उ.१४२११३९ उ.१४२११३९ उ.१४२।१३९क्ष. १०१।९९ क्ष.८५४८५क्ष.८५।१३।१२ क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ ० . ० . . ० ० . . ० । उ. १४१ उ.१४२।। ३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२११३९ उ.१४२।१३९क्ष. १०१।९९क्ष.८५।८५क्ष.८५।१३।१२/ क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष.. १०२ उ.,१४१ . उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९/९.१४२११३९क्ष. १.१॥९९क्ष.८५।८५० क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ .१३८1१०३क्ष. १०२ 13. १४१ उ.१४२११३९/उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२११३९क्ष. १०१।९९.८५४८५० क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ .क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ उ. १४१ .१४२११३९/उ.१४२४१३९ऊ.१४२११३९/उ.१४२११३९क्ष. १०१।९९/२.८५१८५/० क्ष.1४५११३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ । उ. १४१ उ.१४२११३९ उ.१४२११३९० क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३ उ. १४१ उ.१४२११३९ उ.१४२११३९० क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ .१३८।१०३ उ. १४१ । .१४२।१३९ उ.१४२११३९० क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३ ऊ. १४१ उ.१४२११३९३.१४२।१३९० क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ .१३८:१०३ ऊ. १४१ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९० क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३ उ. १४१.उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९० क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३ उ. १४१ उ.१४२।१३९३.१४२४१३९ऊ.१४२११३९० क्ष.१४५/१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ ऊ. १४१ उ.१४२११३९ उ.1४२११३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९क्ष. १०१।९९० क्ष.१४५।१३८क्ष १८ क्ष.१३८११०३/क्ष. १०२ उ १४१ . उ.१४२।१३९ उ.१४२११३९.१४२११३९ उ.१४२११३९क्ष. १०१।९९० क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ . Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्गेणा २८ अवधिज्ञान २९ मनः पयवज्ञान १२६ ३० केवलज्ञान | ३१ मतिज्ञान ३२ श्रुतअज्ञान ३३ विभंगज्ञान ३४ सामायिक ३८ यथाख्यात ३९. दिशविरति ४० अविरति चारित्र) ३५ छेदोपस्थाप. १२६ नीय ६परिहारविशुद्धि | १२६ ४४ केवळ दर्शन ४५ कृष्ण लेश्या ३७ सूक्ष्मसंपराय १२६। ५० ध्रुवसत्ता अध्रुवसप्रकृति त्ताप्रकृति १२६ २२ ५१ भव्य ܢ ܕܕ | १२६ ५२ अभव्य ५३ उपशम १२६ | १२६ १२६ १२६ म्यकत्व ४१ चक्षुदर्शन १२६ ४२ अचक्षुदर्शन १२६ ४३ अवधिदर्शन १२६ १२६| १२२ १२२ x १२६ १२६ १२६ १२६ २२ १२६ २२ | १२६ १२६ २२ | १४८ | १२६ स- १२६ | २२।२० | १४८।१४६० ४६ नीललेश्या १२६ २२ ४७ कापोतलेश्या १२६ २२ ४८ तेजोलेश्या ४९ पद्मलेश्या > शुक्ललेश्या २१ ४५ २२।१९ १४८।१४५ १४५ | २२।१९ | १४८।१४५ १४५ २२।१९ १४८।१४५ १४५ २२।२० १४८।१४६ ० २२।२० १४८।१४६० २२।२० १४८।१४२० २२।२० १४८।१४२० २२ २२/२०१४८।१४२० २२ શ્ર્ - सत्ता प्रकृति ओघ १४८ २२ २२ २२ २२ २२ २२ १९ २२ १४८ १४८ १४८ १४८ | १४८ ८५ १४८ १४८ १० १४८ १४८ १४८ १४८ O १४८ | १४५ १४८ मिथ्यात्व ० [२९३] 0 १४५ ० ० ० ० सास्वादन ० ० ० O १४५१४७० १४५१४७० | १४५ १४७० ० 。 मिश्र ० ० ० ० उ. १४१ ० ० ० ० ० उ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५ । १३८क्ष. १४५।१३८ ० 0 ० | १४८ | १४७ १४७१४७६ ० अविरत 19 O | १४८ | १४७ १४७१४७. १४१ ३. १४५।१३८ | १४८ । १४७ १४७१४७ उ १४१ ऊ. १४१ उ. १५१ क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५।१३८ क्ष. १४५/१३८ | | १४८। १४७ १४७१४७. १४१ ङ. १४१ उ. १४१ उ. १४५।१३८क्ष. १४५ । १३८५.१४५ ११३८ । क्ष. १४१ ऊ. १४१ उ. १४१ उ ० ० देशविर प्रमत्त उ. १४१ क्ष. १४५।१३८ ० ० | १४८।१४७ १४७१४७३. १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४९११३८ . १४५।१३८५.१४५ /१३८ | १४८ । १४७ १४७१४७ उ. १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५ । १३८ १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५ । १३८. १४५ । १३८ | १४८ । १४७ १४७१४७ उ. १४१ ऊ. १४१ उ. १४१ क्षे. १४५।१३८३.१४५।१३८.१४५ ।१३८ उ. १४१ क्षं. १४५।१३८ ० ० | १४८।१४७ १४७१४७७. १४१ ऊ. १४१ उ. १८१ क्ष. १४५।१३८. १४५।१३८ . १४५ । १३८ | १४८ । १४७ १४७१४७ उ. १४१ ऊ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४५।१३८. १४५।१३८क्ष. १४५।१३८ । | १४८।१४७ १४७१४७७ १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५।१३८क्ष. १४५।१३८ ० ० उ. १४१ क्ष. १४५/१३८ उ. १४१ क्ष. १४५/१३८ उ. १४१ क्ष. १४५/१३८ o क्ष. १४५।१३८ . १४५।१३८ क्ष. १४५ । १३८ О १० ० ० उ. १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष. १४५।१३८. १४५।१३८ क्ष. १४५।१३८ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२९४] अप्रमत्त । अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसंपगय उपशांतमोह क्षीणमोह सयोगी केवळी अयोगी केवळी न. १४१ उ.१४२।१३९ऊ.१४२११३९/उ.१४२११३९ उ.१४२।१३९क्ष. १०१।९९० क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ उ. १४१ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२११३९ उ.१४२।१३९क्ष. १०१।९९० क्ष.१४५४१३८क्ष. १३८क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ क्ष. ८५ ० क्ष.८५।१३।१२ ० ० ० द. १४१ उ.१४२११३९ उ.१४२११३९ स.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३ इ. १४१ उ.१४२।१३९/उ.१४२११३९ १.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८१०३ 3. १४१० श्र.१४५।१३८ उ.१४२११३९. क्ष. १०२ उ.१४२११३९क्ष. १०११९९क्ष.८५ ००००००० . क्ष:८५।१३।१२ . ००० . ऊ. १४१ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२११३९क्ष. १०१।९९० क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ उ. १४१ उ.१४२११३९ उ.१४२११३९ उ.१४२११३९ उ.१४२११३९क्ष. १.११९९० क्ष.१४-११३०क्ष. १३८क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ उ. १४१ उ.१४२११३९ उ.१४२।१३९/उ.१४२।१३९उ.१४२११३९क्ष. १०१।९९. क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ . क्ष.८५।१३।१२ उ. १४१ क्ष.१४५।१३८ ऊ. १४१ क्ष.१४५।१३८ ऊ. १४१ .१४२११३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९क्ष. १०१।९९क्ष. ८५ . क्ष.1४५११३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ उ. १४१ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९क्ष. १०१।९९क्ष. ८५ क्ष ८५।१३।१२ क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ उ. १४१ उ.1४२११३८ उ.१४२११३९ उ.१४२११३०ऊ.१४२११३९० । क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२९५] मार्गणा ध्रुवसत्ता अध्रुव सत्ता प्रकृति प्रकृति सत्ता प्रकृति ओघ १४८ मिथ्यात्व मिश्र सास्वादन अविरत देशविरत प्रमत्त १२६ ५४क्षयोपशमस- १२६ २२ । म्यकत्व ऊ. १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष.१४५।१३८क्ष.१४५।१३८क्ष.१४५११३८ ५५/क्षायिकस-.१२१ म्यकत्व उ. १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष.१४५११३८क्षा४५।१३८ क्ष.१४५।१३८ ५६ मिश्रसम्यकत्व १२६ २१ . १४७० १४७०० ५७ सास्वादनस- १२६ २११४७ . म्यकत्व ५८ मिथ्यात्व १२६ २२ १४८ १४८।१४७० : . ५९ संज्ञी १२६२२ १४८ १४८।१४७१४७ १४७ उ. १४१ . १४१ उ. १४१ क्ष.१४५।१३८क्ष.१४५।१३८श्न.१४५/१३८ ६० असंज्ञी १४७० १ आहारी १२६ २२ १४८ १४८।१४७१४७ १४७ उ. १४१ उ. १४१ उ. १४१ क्ष.१४५।१३८क्ष.१४५।१३८क्ष.१४५।१३८ ६२ भनाहारी १२६ २२ १४८ 1४८।१४७१४७० उ. १४१ क्ष.१४५।१३८ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२९६] | अप्रमत्त । अपूर्वकरण अनिवृतिकरण सूक्ष्मसंपराय | उपशांतमोह क्षीणमोह मयोगी | अयोगी केवळी केवळी उ. १४१ क्ष.१४५/१३८ उ. १४१ उ.१४२११३९ऊ.१४२११३९ उ.१४२११३९ उ.१४२४१३९क्ष. १०११९९क्ष. ८५ क्ष.८५।१३।१२ क्ष.१४५११३८ क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ उ. १४१ उ.१४२।१३९ उ.१४२।१३९ उ.१४२११३९ उ.१४२।१३९क्ष. १०१।९९क्ष. ८५ क्ष.८५।१३।१२ व.१४५।१३८ क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष. १०२ उ. १४१ .१४२११३९ उ.१४२११३९ उ.१४२११३९ उ.१४२११३९क्ष. १.११९९क्ष. क्ष.१४५।१३८क्ष. १३८ क्ष.१३८।१०३क्ष.१०२ क्ष. ८५ क्ष.८५1१३.१२ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२९७] ६२ मार्गणाए गुणस्थानने आश्री सत्तार्नु विवरण. ध्रुव अध्रुवमा जे १० बंधन बाद कर्या छे, ते दश विना १४८ प्रकृतिनी सत्ता गुणस्थानने आश्रीने नीचे प्रमाणे. २ नरकगति अने देवगति ए बे मार्गणाए ओघे १४८ प्रकृतिनी सत्ता होय. १ मिथ्यात्व गुणस्थाने १४८ नी सत्ता. तथा तीर्थंकर नाम कर्म विना १४७ नी पण सत्ता होय. ३ बीजे अने त्रीजे गुणस्थाने जिन नाम कर्म विना १४७ नी सत्ता होय. ४ अविरति गुणस्थाने क्षायिक समकितीने अनंतानुबंधि ४, समकित मोहनी १, मिश्र मोहनी १, मिथ्यात्व भोहनी १, ए ७ प्रकृति विना १४१ नी तेमज बे आयु विना १३९ नी सत्ता होय. अने उपशम तथा क्षयोपशम समकितीने एक आयु विना १४७ नी सत्ता होय. नारकीने देवतार्नु अने देवताने नारकीर्नु आयु न होय केमके तेनो त्यां बंधज नथी. क्षायिक आश्री तिर्यगायु पण न होय. ३ मनुष्य गति मार्गणाए ओघे १४८ प्रकृतिनी सत्ता होय. ३ पहेलेथी त्रण गुणस्थानक सुधी देवगतिनी मार्गणा प्रमाणे जाणवू. ४ अविरति गुणस्थाने क्षायिक समकिती, अचरम शरीरी, उपशम श्रेणिवाळाने अनंतानुबंधी ४, दर्शन मोहनी ३, ए ७ प्रकृति विना १४१ नी सत्ता होय. तथा क्षपक श्रेणिवाळा चरम शरीरीने नरकायु, तिर्यगायु अने देवायु ए ३ विना १४५ नी होय. अने अनंतानुबंधी ४ तथा दर्शन मोहनी ३ कुल ७ खपावे त्यारे १३८ नी सत्ता होय. उपशम समकिती उपशम श्रेणिवाळाने १४८ नी सत्ता होय. ७ देशविरति, त्रमत्त, अप्रमत्त ए ३ गुणस्थाने उपशमश्रेणि अने क्षपकश्रेणि ___ आश्री चोथा गुणस्थानक प्रमाणे जाणवू. ८ अपूर्वकरण गुणस्थाने ओघे उपशम समकिती उपशमश्रेणिवाळा आश्री अनंतानुबंधी ४, तिर्यगायु १, नरकायु १, ए छ विना १४२ होय. क्षायिक समकितीने उपशमश्रेणि आश्री दर्शन सप्तक विना १४१ मांथी तिर्यगायु १, नर कायु १, ए बे विना १३९ होय. क्षपकश्रेणि आश्री पूर्वे कह्या प्रमाणे १३८ होय. ९ अनिवृत्तिबादर गुणस्थानके प्रथम भागे अपूर्वकरण गुणस्थान प्रमाणे जाणवू. बीजे भागे क्षपकश्रेणिए स्थावर द्विक २, तिथंच द्विक २, नरकद्विक २, आतप Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२९८] द्विक २, स्त्यानार्द्धि त्रिक ३, एकेंद्रिय जाति १, विकलेंद्रिय त्रिक ३, साधारण नाम १, ए सोळ प्रकृति विना १२२ नी सत्ता होय. त्रीजे भागे अप्रत्याख्यान चतुष्क ४, प्रत्याख्यान चतुष्क ४, ए ८ प्रकृति विना ११४ नी सत्ता होय. चोथे भागे नपुंसक वेद विना ११३ प्रकृतिनी सत्ता होय. पांचमे भागे स्त्रीवेद विना ११२ नी सत्ता होय. छठे भागे हास्यादि षटक ६ विना १०६ नी सत्ता होय. सातमे भागे पुरुषवेद विना १०५ नी होय. आठमे भागे संज्वलन क्रोध विना १०४ नी होय. नवमे भागे संज्वलन मान विना १०३ प्रकृतिनी सत्ता होय. उपशमश्रेणिवाळाने १४२ अथवा १३९ होय. १० सूक्ष्मपराय गुणस्थाने नवमा गुणस्थानना पहेला भाग प्रमाणे. परंतु क्षपक श्रेणि बाळाने १०३ प्रकृतिमांथी संज्वलन माया विना १०२ प्रकृतिनी सत्ता होय. उपशम श्रेणिवाळाने १४२ अथवा १३९ होय. ११ उपशांतमोह गुणस्थाने उपशमश्रेणिवाळाने सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान प्रमाणे जाणवू. क्षपकश्रेणिवाळा आ गुणठाणे आवताज नथी. १२ क्षीणमोह गुणस्थाने क्षपकणिवाळाने संज्वलन लोभ विना ओघे १०१ प्रक्रति होय, तेमांथी निद्रा तथा प्रचला ए बे प्रकृति द्विचरम समये जवाथी ९९ नी सत्ता होय. १३ सयोगी गुणस्थाने ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ४, अंतराय ५, ए. १४ प्रकृति विना क्षपकश्रेणिए सत्ताए ८५ प्रकृति होय. १४ अयोगी गुणस्थानके उपर प्रमाणे ८५ प्रकृति सत्ताए होय. तेमांथी देवद्विक २, खगति द्विक २, गंध २. स्पश ८, वर्ण ५, रस ५, शरीर ५, बंधन ५, संघातन ५, निर्माण नाम कर्म १, संधयण ६, अस्थिर पटक ६, संस्थान ६, अगुरुलघु चतुष्क ४, अपर्याप्तक नाम १, बेमांथी एक वेदनीय १, प्रत्येक त्रिक ३, उपांग त्रिक ३, सुस्वर नाम १, नीचगोत्र १, ए ७२ प्रकृति विना बाकीनी १३ प्रकृतिनी सत्ता छेल्लानी अगाउना समये होय. जो मनुष्यानुपूर्वी खपावे तो १२ नी सत्ता होय. त्यार पछी छेल्ल समये मनुष्यत्रिक ३, बस त्रिक ३, जश नाम १, आदेय नाम १, सौभाग्य नाम १, जिन नाम १, उच्चगोत्र १, पंचेंद्रिय जाति १, वेद नीय १, ए १३ अथवा मनुष्यानुपूर्वी शिवाय १२ प्रकृति खयावी मोझे जाय. ४ तिर्यंच गतिनी मार्गणाए ओबे ने त्रण गुणस्थाने जिन नाम विना १४७ प्रकृतिनी सत्ता जाणवी. Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२९९] ४ चोथे गुणठाणे क्षायिक समकितीने दर्शन सप्तक अने नरकायु तथा मनुष्यायु विना १३८ होय. अने उपशम तथा क्षयोपशमवाळाने जिननाम विना १४७ सत्तामां होय. ५ पांच गुणठाणे उपर प्रमाणे समजवुं ८ एकेंद्रिय तथा विकलेंद्रियनी मार्गणाए ओघे, मिथ्यात्व गुणस्थाने तथा सास्वादन गुणस्थाने जिन नामकर्म १, अने आहारक द्विक २, ए ३ प्रकृति विना १४५ नी सत्ता होय. ९ पंचेंद्रियनी मार्गणाए मनुष्यनी मार्गणा प्रमाणे जाणवुं. १२ पृथ्वीकाय, अस्काय अने वनस्पतिकाय ए त्रण मार्गणाए एकेंद्रियनी मार्गणा प्रमाणे जाणं. १४ तेजस्काय अने वायुकायनी मार्गणाए ओघे तथा मिथ्यात्व गुणस्थाने तीर्थंकर नामकर्म १, आहारक द्विक २, मनुष्यायु १, ए ४ प्रकृति विना १४४ प्रकृतिनी सत्ता होय. १५. बस कायनी मार्गणाए मनुष्यगतिनी प्रमाणे जाणं. १८ मनयोगी, वचनयोगी अने काययोगी ए त्रण मार्गणाए मनुष्यनी मार्गणा प्रमाणे १३ गुणस्थानक सुधी जाणवुः २४ ऋण वेद अने त्रण कषाय, ( क्रोध, मान, माया ) ए छ मार्गणाए मनुष्यगतिनी मार्गणा प्रमाणे नव गुणस्थानक सुधी जाणवुं. २५ लोभनी मार्गणाए मनुष्य गतिनी मार्गणा प्रमाणे दश गुणस्थानक सुधी जाणवुं. २८ भतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान ए त्रण मार्गणाए मनुष्य गतिनी मार्गणा प्रमाणे चोथा गुणस्थानकथी मांडीने वारमा गुणस्थानक सुधी जाणवुं. २९ मनः पर्यवज्ञाननी मार्गणाए ओवे १४८ अथवा तिर्यगायु १ अने नरकायु १ ए वे विना १४६ प्रकृतिनी सत्ता होय. ते छट्टा गुणस्थानकथी बारमा गुणस्थानक सुधी मनुष्यगतिनी मार्गणा प्रमाणे जाणवुं. ३० केवळ ज्ञाननी मार्गणाए मनुष्य गतिनी मार्गणा प्रमाणे छेल्ला वे गुणस्थानक जाणवा. ३३ त्रण अज्ञाननी मार्गणाए ओधे १४८ अथवा १४५ प्रकृतिनी सत्ता होय. तथा पहेलेथी ऋण गुणस्थानक सुधी एकेंद्रियनी मार्गणा प्रमाणे १४५ नी सत्ता होय. ३५ सामायिक चारित्र अने छेदोपस्थापनीय ए वे मार्गणाए ओघे १४८ नी सत्ता अथवा तिर्यगायु अने नरकायु ए वे प्रकृति विना १४६ नी पण सत्ता होय. तेने Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठेथी मांडीने नवमा गुणस्थानक सुधी मनःपर्यव ज्ञानावरणनी मार्गण - प्रमाणे जाणवू. . ३६ परिहारविशुद्धि चारित्रनी मार्गणाए ओघे उपर प्रमाणे. तथा छटुं अने सातम गुणस्थानज होवाथी तेने माटे उपर प्रमाणे जाणवू. ३७ सूक्ष्मसंपरायनी मार्गणाए ओघे १४८ नी सत्ता होय. अथवा अनंतानुबंधी ४, तिर्यगायु १, नरकायु १, ए ६ प्रकृति विना १४२ नी सत्ता होय. तेने एक दशमुंज गुणस्थानक होय. ते मनुष्य गतिनी मार्गणा प्रमाणे जाणवू. ३८ यथाख्यात चारित्रनी मार्गणाए ओघे दशमा गुणस्थानक प्रमाणे. अग्यारमाथी ___ मांडीने चौदमा गुणस्थानक सुधी मनुष्य गतिनी मार्गणा प्रमाणे जाणवू. ३९ देशविरति मार्गणाए ओधे १४८ नी सत्ता होय. तेने एक पांचमुंज गुणस्थान . मनुष्य गति प्रमाणे होय. . ४० अविरति मार्गणाए ओघे तथा पहेलेथी गुणस्थान चार सुधी मनुष्यगतिनी मार्गणा प्रमाणे होय. ४२ चक्षु अने अचक्षु दर्शननी मार्गणाए ओधे तथा पहेलेथी बारमा गुणस्थान सुधी । मनुष्यगति प्रमाणे जाणवू. ४३ अवधि दर्शन मार्गणाए अवधि ज्ञान प्रमाणे जाणवं. ४४ केवळ दर्शन मार्गणाए केवळ ज्ञान प्रमाणे जाणवू. ४७ कृष्णलेश्या अने कपोतलेश्या ए त्रण मार्गणाए ओघे तथा पहेलेथी छटा गुणस्थान सुधी मनुष्य गतिनी मार्गणा प्रमाणे जाणवू. ४८ तेजोलेश्या अने पद्मलेश्यानी मार्गणाए ओघे तथा पहेलेथी सात गुणस्थानक सुधी मनुष्य गतिनी मार्गणा प्रमाणे जाणवू ५० शुक्ललेश्यानी मार्गणाए ओघे तथा पहेलेथी तेरमा गुणस्थान सुधी मनुष्य ___ गतिनी मार्गणा प्रमाणे जाणवू. ५१ भव्य मार्गणाए ओघे तथा पहेलेथी चौदे गुणस्थानके मनुष्य गति प्रमाण जाणवू. ५२ अभव्य मार्गणाए ओघे तथा मिथ्यात्व गुणस्थाने जिन नाम १ अने आहारक द्विक २ ए त्रण प्रकृति विना १४५ नी सत्ता होय. ५३ उपशम समकितनी मार्गणाए ओघे तथा चोथेथी अग्यारमा गुणस्थानक सुधी भनुष्य गतिनी मार्गणा प्रमाणे जाणवू. जाणवं Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३०१] ५४ क्षयोपशम समकितनी मार्गणाए ओघे तथा चोथेथी सातमा गुणस्थानक सुधी मनुष्य गति प्रमाणे जाणवू. ५५ क्षायिक समकितनी मार्गणाए ओघे अनंतानुबंधी ४ त्रण मोहनी ३ ए ७ प्र कृति विना १४१ प्रकृतिनी सत्ता होय. तेने चोथा गुणस्थानथी मांडीने चौ. दमा गुणस्थान सुधी मनुष्य गति प्रमाणे जाणवू. ५६ मिश्रनी मार्गणाए ओघे तथा त्रीजे गुणस्थाने जिन नाम विना १४७नी सना होय. ५७ सास्वादन समकित मार्गणाए ओघे तथा बीजे गुणस्थाने जिन नाम विना - १४७ नी सत्ता होय. ५८ मिथ्यात्वनी मार्गणाए ओघे तथा मिथ्यात्वे १४८ नी सत्ता होय. ५९ संज्ञी मार्गणाए ओघे तथा पहेलेथी चौदे गुणस्थान मनुष्यगति प्रमाणे जाणवा. ६० असंज्ञी मार्गणाए ओघे तथा पहेले अने बीजे गुणस्थाने जिननाम विना १४७ नी सत्ता होय. ६१ आहारीनी मार्गणाए ओघे तथा पहेलेथी तेर गुणस्थानक सुधी मनुष्य गतिनी मार्गणा प्रमाणे जाणवू. ६२ अनाहारीनी मागणाए ओघे तथा पहेले, बीजे, चोथे, तेरमे अने चौदमे ए पांच गुणस्थाने मनुष्यगतिनी मार्गणा प्रमाणे जाणवू. 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