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[२१० १ दशमाना चरम समये १६ प्रकृतिनो क्षय थवाथी १
साता वेदनी ज बांधे. ११-१२-१३ १ साता वेदनी नो बंध.
१४ ० बंधाभाव. बंध हेतु न रहेवाथी. गाथा ६३. उपर जे बंध भेद बताव्यो, ते बंधस्वामित्वना संबंधमां ओध समजवो. अने
तेमां पछी गत्यादि मार्गणा आश्री जे जे मार्गणामां जे जे प्रकारे घटे, ते
प्रकार कहेवो ते विशेषपणुं समजवु. गाथा ६४. पूर्वे बतावेली प्रकृतिओ सर्व गतिमां सर्वदा लाभे के केम ? तेनो उत्तर.
तीर्थंकर नाम तिर्यंच गति विना त्रण गतिमां लाभे. . देवायु नरक गति विना त्रण गतिमा लाभे. नरकायु देवगति विना त्रण गतिमा लाभे. .
आ प्रमाणे सत्ता आश्री लाभे. बाकी तो सर्व प्रकृतिओ चारे गतिमां लाभे. गाथा ६५. पूर्वे जे गुणस्थानकोमां बंध, उदय अने सत्तानो संवेध कह्यो, ते गुणस्थानको
प्राये उपशम श्रेणिमां अने क्षपक श्रेणिमा बन्नेमां संभवे माटे बन्ने श्रेणिनु स्वरुप जणावq जरूरनु छे. ते आ प्रमाणे:
उपशममां--४-५-६-७-८-९-१०-११. ए आठ गुणस्थान.
क्षपकमां-४-५-६-७-८-९-१०-१२. ए आठ गुणस्थान. उपशम श्रेणिनु स्वरूप.-- प्रथम ४ अनंतानुबंधी अने ३ समकितादि मोहनी, ए सात प्रकृतिनो उप
शम करनार चोथाथी आठमां गुणस्थान सुधी जाणवा. तेमां ४-५-६
७ वाळा यथायोग्य तेने उपशमावे छे. अने ८ मे तो निश्चये उपशमावेज छे. तेमां प्रथम अनंतानुबंधी चतुष्कनी उपशमना करे छ, तेथी ते कहे छ.-- ४-५-६-७ मा गुणस्थानमांथी कोइ पण स्थानके कोइ पण योगमा वर्ततो,
त्रण शुभ लेश्यामांयी कोइ पण लेश्या युक्त, कोटाकोटी सागरोपमनी अंदरनी स्थितिवाळा कर्मोनी सत्तावाळो जीव त्रण करण कयो अगाउ अंतमूहूर्त काळ सुधी चित्तवृत्तिना शांतपणे वर्ते. ते वखते परावर्तमान प्रकृति शुभ ज बांघे, अशुभ न बांधे. अशुभ प्रकृतिनो रस चोठाणीयो होय ते बेठाणीयो करे, अने शुभनो रस बेठाणीयो होय तेने चोठाणीयो करे. स्थितिबंध पण जेनो पूर्ण थाय तेनो नवो पल्योपमना संख्यात भाग जेटलो हीन करे. आ प्रमाणे एक अंतर्मुहूर्त सुधी हीनबंध करे.