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________________ ५/एकेंद्रिय ४ तिर्यंचगति ३ मनुष्यगति देवगति १)नरकगति २६ मतिज्ञान २५ लोभ २४ माया २३मान २२ क्रोध २१ नपुंसकवेद १०स्त्रीवेद २९ पुरुषवेद १८ काययोग वचनयोग १६मनोयोग १५त्रसकाय १३ वायुकाय १४ वनस्पतिकाय २० १२ तेजस्काय ११ अपकाय ९पंचेंद्रिय १० पृथ्वीकार्य ८ चतुरिन्द्रिय ७त्रीन्द्रिय ४० ४१ १८ - १८-१८ ६२ २०६२ morM । २१-२२ ६३ २०५८-६१ उदय ४२ उदय ८२ मार्गणा पुण्यप्रकृति पापप्रकृति ध्रुवोदयी प्रकृति उदय २७ ६५ Raw . ° °°°°°°°°° ११ प्रकृति ११. 4000444०००००००००० | प्रकृति उ उदय४ उदय ४ उदय ७८ | प्रकृति की प्रकृति भवविपाकी जीवविपा कृति उदय विपाकीनपुद्गल ६३-६९ १८ ५९-५६ १८ -24-MMMMmormmmmmm - . ० ०० . م . م م . م ت . ت . تکه تکه تکه تکه یک تکه ی که کم کم یک تم تکه تکه ज्ञानावरण प्रकृति | उदय उदय ५ दर्शनावरण प्रकृति २ मोहनीकर्म प्रकृति उदय २८ आयकर्म प्रकृति उदय ४ > > > ) . ܟ , ܟ ' ܟ ܟ ܩ ܩ ܣ ܩ ܩ ܟ ܩ ܩ ܣ ܩ ܩ उदय ५०-५२२ ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه ه प्रकृति "उदय २ उदय५ गोत्र- अंतरा تک नामकर्म | कर्म यकमे مد تک تک تند ت ند تند تند تند ت ند تند د ند. تله : تدندن تد تم تم प्रकृति प्रकृति [२७४]
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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