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________________ [१९८] त्यां गया पछी समकित पामतां ९२ नी सत्ता देव मनुष्यमां मिथ्यात्व नहीं पामेलने पण ९२ पामीए. देव, नारकी अने मनुष्य अविरतने ८९ नी सत्ता. ते त्रणे जिननाम बांघे छे. तिर्यंच बांधता नथी. ८८ नी सत्ता चारे गतिमां समकितीने होय. हवे संवेध कहे छे. - २८ ना बंधक तिर्यच मनुष्यने ८ उदयस्थान. तेमां वैक्रिय तिर्यच मनुष्य आश्री जाणवुं. एक एक स्थान ( ९२-८६ ). २९ नो बंध वे प्रकारे देवगति प्रायोग्य अने मनुष्यगति प्रायोग्य. तेमां देवगति प्रायोग्य ते जिननाम सहित अने मनुष्य ज बांधे छे. तेने उदयस्थान ३१ विना साते होय. तेमां दरेक उदये वे वे सत्तास्थान ९३-८९. मनुष्यगति प्रायोग्य २९ देवता अने नारकी बांधे छे तेमां नारकीने उदयस्थान पांच-२१-२५-२७-२८ - २९ तथा देवताने ए पांच उपरांत ३० नुं अधिक जाणं. ते उद्योत नाम वेदतां समजवुं. उत्तर वैक्रियपणामां ते छए उदयस्थानने बे बे सत्तास्थान – ९२ - ८८. मनुष्यगति प्रायोग्य ३० देवता अने नारकी जिननाम सहित बांधे छे. तेमां देवताने उदयस्थान ६ पूर्ववत् अने सत्तास्थान २ ( ९३ - ८९) तथा नारकीने उदयस्थान ५ पूर्ववत् अने सत्तास्थान १ (८९). सामान्ये २१ थी ३० सुधीना, ७ उदयस्थानमां सत्तास्थान चार चार -- ९३ ९२-८९-८८. ३१ ना उदयमां सत्तास्थान २ (९२-८८ ). २५-२७ नुं उदयस्थान उदयस्थाने वे वे सत्ता कुल सत्तास्थान ३०. वे देशविरति आश्री कहे छे. - देशविर तिने बंधस्थान २ (२८-२९ ). २८ नो बंध मनुष्य तिर्यंचने देवगति प्रायोग्य थाय. तेना भंग ८. तेज २८ तीर्थंकर नाम सहित २९ नो बंध मनुष्य ज करे. तेना पण भंग ८. देशविरति गुणस्थाने उदयस्थान ६ ( २५-२७-२८-२९-३०-३१). तेमां पहेला चार उदयस्थान वैक्रिय तिर्यंच मनुष्यने होय. तेनो मनुष्य आश्री एक ज भंग. सर्व पद प्रशस्त होवाथी तथा तिर्यच आश्री पहेला बेमां एक एक भंग अने बीजा बेमां वे बे भंग. (कुल (४ - ६ = १० भंग),
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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