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________________ कर्मविपाकमुक्ताय नमः यंत्रपूर्वक कर्मादिविचार. कर्मग्रंय पहेलो (कर्मविपाक) " माया _बाठ कर्मनां नाम. १ ज्ञानावरणीय २ दर्शनावरणीय ३ वेदनीय ४ मोहनीय ५ आयुष्य ६ नामकर्म ७ गोत्रकर्म ८ अंतरायकर्म. आठ कर्मना उत्तर नेद १५७ (१) ज्ञानावरणीयना ५ मेद ३ मिथ्यात्व मोहनीय १ मतिज्ञानावरणीय ४ अनंतानुबंधी क्रोध २ श्रुतज्ञानावरणीय " मान ३.अवधिज्ञानावरणीय ४ मनःपर्यवज्ञानावरणीय लोम ५ केवलज्ञानावरणीय ८ अप्रत्याख्यानी क्रोध (२) दर्शनावरणीय कर्मना ९ भेद , मान १ चक्षुर्दशनावरणीय " माया. २ अचक्षुर्दर्शनावरणीय लोभ ३ अवधिदर्शनावरणीय १२ प्रत्याख्यानी क्रोध ४ केवलदर्शनावरणीय १३ . मान ५ निद्रा । ६ निद्रानिद्रा १५ लोभ ७ प्रचला १६ संज्वलन क्रोध ८ प्रचलाप्रचला १७ , मान ९ थीणद्धी १८ , माया (३) वेदनीय कर्मना बे भेद १९ लोम १ सातावेदनीय २० हास्य मोहनीय २ असातावेदनीय २१ रति मोहनीय (४) मोहनीय कर्मना २८ भेद २२ शोक मोहनीय १ सम्यकत्व मोहनीय २३ अरति मोहनीय २ मिश्र मोहनीय २४ भय मोहनीय माया
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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