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________________ [२१८] असंख्यातगुणा, त्री जे समये तेथी असंख्यातगुणा, एभ प्रथम स्थितिना चरम समय सुधी कहें. प्रथम स्थिति करवाना प्रथम समयथी ज संज्वलन, अप्रत्याख्यान अने प्रत्याख्यान मानने उपशमाववा मांडे. संज्वलन माननी प्रथम स्थिति समयोन आवलिका त्रिक शेष रहे त्यार पछी अप्रख्यान प्रत्याख्यान मानमांदळीयां संज्वलन मानमां न प्रक्षेपे. पण संज्वलन मायादिमां प्रक्षेपे पछी उपर संज्वलनादि क्रोध उपशमाववानी जे रीत कही छे तेज प्रमाणे त्रणे मानने उपशमावे. एटले कुल २२ प्रकृति उपशमे. संज्वलन मानना बंध, उदय अने उदीरणा व्यवच्छेद पामे त्यारथी त्रण प्रकारनी माया उपशमाववा मांडे ते उपरनी रीते उपशमावे. एटले कुल २५ प्रकृति उपशमी. संज्वलन मायाना बंध, उदय अने उदीरणा व्यवच्छेद पाम त्यारथी संज्वलनादि त्रणे लोभ उपशमाववा मांडे. तेना अनंतर समयथीज संज्वलन लीभनी बीजी स्थितिमांथी दळीयां आकर्षीने लोभ वेदवाना काळना भाग प्रमाणे पहेली स्थिति पूर्वोक्त प्रकारे करे अने वेदे. तेमां पहेलो त्रिभाग अश्वकर्णकरणाद्धा नामनो अने बीजो त्रिभाग किट्टीकरणाद्धा नामनो कहेवाय छे. तेमांना पहेला त्रिभागमां वर्ततो सतो पूर्व स्पर्धकमांथी दळीयां आकर्षीने अपूर्व स्पर्धक करे. ते स्पर्धक ते शुं ? ते कहे छे. - अनंतानंत परमाणुवडे निष्पन्न स्कंधोने जीव कर्मपणे ग्रहण करे छे, तेमांना एक एक स्कंधमां जे सर्व जवन्य रसवाळा परमाणु छे तेनो रसपण केवळीनी बुद्धिए विद्यमान कर्यो सतो सर्व जीवथी अनंतगुणा विभाग आपे. बीजा तेना करतां एक रसविभाग अधिकवाळा परमाणु, जा नाथ वे रसविभाग अधिकवाळा परमाणु, एम एक एकनी वृद्धिए त्यांसुधी जतुं के केटलाक परमाणु सिद्धना अनंत भाग जेटला अधिक रस विभाग आपे. हवे जे उपर कह्या प्रमाणे जवन्य रसवाळा परमाणुओ छे तेनो जे समुदाय तेनी एक वर्गणा, बीजा एक रसविभाग अधिकवाळा परमाणुओनी बीजी वर्गणा. एवि रीते सिद्धना अनंता भाग जेटली अने अभ व्यथी अनंतगुणी जे वर्गणाओ तेनो समुदाय ते स्पर्धक कहीए. त्यारपछी एक रसविभागे अधिक परमाणु न पामीए, पण सर्व जीवथी अनंत गुण रविभागे अधिक परमाणु पानीए. तेनी पाछी उपर प्रमाणे वर्गणाओ अने तेनो समूह ते बीजुं स्पर्धक. एम अनंता स्पर्धको थाय. ते पूर्वे कहला tar ने पूर्व स्पर्धक कहीए. तेमांथी प्रतिसमय दळीयां ग्रहण करीने अत्यंत हीन रसवाळा करी तेना स्पर्धक बनावे ते नवा होवाथी अपूर्व
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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