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________________ [१७२] सत्तास्थान.८ जीवस्थाने सत्तास्थान ३ (२८-२७-२६). ५ जीवस्थाने पण तेज ३ सत्तास्थान. १ जीवस्थाने १५ सत्तास्थान पूर्ववत्. हवे संवेध कहे छे.८ जीवस्थाने २२ ना बंधस्थानमा उदयस्थान ३ (८-९-१०) ते दरेकमां त्रण त्रण सत्तास्थान. तेथी तेना कुल भंग ९. ५ जीवस्थाने बे बंधस्थान (२२-२१) तेमां २२ ना बंधे त्रण उदयस्थान (८-९-१०) ते त्रणेमां उपर प्रमाणे त्रण त्रण सत्तास्थान (२८-२७२६) तेथी तेना भंग ९. तथा २१ ना बंधमां त्रण उदयस्थान (७-८-९) ते त्रणमां सत्तास्थान १ (२८ नुं ज) तेना भंग ३. कुल ५ जीवस्थाने दरेकने सत्तास्थान भंग १२. १ पर्याप्त संज्ञी पंचेंद्रिय जीवस्थाने संवेध पूर्ववत्. गाथा ३८-३९. नामकर्म जीवस्थाने कहे छ ७ अपर्याप्त जीवस्थाने ५ बंध स्थान, २ उदय स्थान, ५ सत्तास्थान. ५ बंधस्थान आ प्रमाते-२३-२५-२६-२९-३०. अपर्याप्त जीवो तिर्यंच मनुष्य गति आश्री ज बंध करे छे. त्यां एक एक अपर्याप्तने विषे १३९१७ भंग तथा देव नारकी आश्रीने बंध न करे, तेथी तेने आ पांच पांज जे बंध स्थान होय. तेनी व्याख्या पूर्ववत् करी लेवी. २ उदय स्थान-ए ज सात जीवस्थानमां अपर्याप्त बादर सूक्ष्म एकेंद्रियने उदय स्थान २ (२१-२४) तेमां २१ मां बादर अने सूक्ष्म बन्नेने एक एक भंग अने २४ मां प्रत्येक तथा साधारण साथे बे बे भंग. कुल बन्न जीवस्थानमां उदय आश्री ३-३ भंग. ५विकलेंद्रिय तथा संज्ञी असंज्ञी पंचेंद्रिय ए पांच अपर्याप्ताने उदयस्थान२(२१२६) पूर्ववत' तेमां विकलेंद्रिय तथा असंज्ञी अपर्याप्तने बेबे उदय स्थान आश्री बेबे भंग, अने संज्ञी अपर्यायाने चार भंग-बे तिर्यच आश्री, बे मनुष्य आश्री. ५ सत्तास्थान-साते अपर्याप्ताने सत्तास्थान ५. __(९२-८८-८६-८०-७९) पूर्ववत्.. १ सूक्ष्म पर्याप्ताने बंधस्थान ५ (२३-२५-२६-२९-३०). .
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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