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________________ [५] ५ देशविरति गुणस्थाने-६७ प्रकृतिनो बंध होय छे. वज्रऋषभ नाराच १, मनुष्य त्रिक ३, अप्रत्याख्यान चतुष्क ४, औदारिक द्विक २, ए दश प्रकृति विना. ६ प्रमत्त गुणस्थाने-६३ प्रकृतिनो बंध होय छे. प्रत्याख्यान चतुष्क ४ विना.. ७ अप्रमत्त गुणस्थाने-५९ अथवा ५८ प्रकृतिनो बंध होय छे. शोक,१, अरति १, अस्थिर १, अशुभ १, अयश १, असाता १, ए ६ विना ५७ प्रकृति रहे, तेमां आहारक द्विक २, अहीं बंधाय छे, तेथी एबे मेळवतां ५९ थाय. तेमांथी देवायु १, जतां ५८ रहे. कारणके अहीं कोईने देवायुनो बंध होय छे, अने कोईने नथी होतो. तेथी छठेथी बांधतां बांधतां अहीं आवे तेने होय. अहीं शरु तो करेज नही. ८ निवृत्ति गुणस्थान-आना सात भाग छ, तेमां पहेले भागे ५८ (उपर प्रमाणे) बीजे भागे निद्राद्विक विना ५६, त्रीजे पण ५६, चोथे ५६, पांचमे ५६, - छठे ५६, अने सातमे भागे सुरद्विक २, पंचेंद्रिय जाति १, शुभ विहायोगति १, सनवक ९, औदारिक विना शरीर चतुष्क ४,अंगोपांगद्विक २, समचतुरस्र संस्थान १, निर्माण १, जिननाम कर्म १, वर्णादि चतुष्क ४, अगुरुलधु चतुष्क ४, ए ३० विना बाकीनी २६ प्रकृतिनो बंध रहे. ९ अनिवृत्ति गुणस्थान-आना पांच भाग छ. तेमां पहेले भागे उपरनी २६ माथी हास्य १, रति १, दुगंछा १, अने भय १, ए चार प्रकृति जतां २२ रहे. बीजे भागे पुरुषवेद जवाथी २१, त्रीजे भागे संज्वलन क्रोध जतां २०, चोथे भागे मान जवाथी १९, अने पांचमे भागे माया जवाथी १८ रहे. १० सूक्ष्म संपराय गुणस्थाने—उपरनी १८मांथी संज्वलन लोभ जतां १७ प्रकृतिनो बंध रहे छ ११ उपशांत मोह गुणस्थाने-उपरनी १७ प्रकृतिमांथी दर्शनावरणीय ४, उच्चगोत्र १, यशनामकर्म १, ज्ञानावरणीय ५, अने अंतराय ५, ए१६ प्रकृति जवाथी बाकी एक ज सातावेदनी प्रकृतिनो बंध रहे छे. १२ क्षीणमोह गुणस्थाने-एक साता वेदनीनो ज बंध छे. १३ सयोगी केवली गुणस्थाने--एक साता वेदनीनो ज बंध होय छे. १४ अयोगी केवली गुणस्थाने-एके प्रकृतिनो बंध न होय. आगुणस्थान अबंधक छे २ गुणस्थाने उदय विचार ओधे प्रकृति १२२ (उपर जणावेली १२०मां समकित मोहनी ने मिश्रमोहनी उमेरवाथी) १ मिथ्यात्व गुणस्थाने–मिश्रमोहनी १, समकित मोहनी १, आहारक द्विक २, जिन नाम कर्म १, ए पांच प्रकृति विना बाकीनी ११७ प्रकृतिनो उदय होय छे.
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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