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________________ ६१ मधुर रस ६२ गुरु स्पर्श ६३ लघु स्पर्श ६४ मृदु ६५ खर स्पर्श ६६ शीस स्पर्श ६७ उष्ण स्पर्श ६८ स्निग्ध स्पर्श. ६९ रुक्ष स्पर्श ७० देवानुपूर्वी ७१ मनुष्यानुपूर्वी ७२ तिर्यचानुपूर्वी ७३ नरकानुपूर्वी ७४ शुभ विहायोगति ७५ अशुभ विहायोगति ७६ पाशात नामकर्म ७७ श्वासोच्छास नामकर्म ७८ आतप नामकर्म ७९ उद्योत नामकर्म ८० अगुरुलघु नामकर्म ८१ तीर्थकर नामकर्म ८२ निर्माण नामकर्म ८३ उपघात नामकर्म ८४ स नामकर्म ८५ बादूर नामकर्म ८६ पर्याप्त नामकर्म [३] ८ प्रत्येक नामकर्म ८८ स्थिर नामकर्म ८९ शुभ नामकर्म ९० साभाग्य नामकर्म ९१ सुस्वर नामकर्म ९२ आदेय नामकर्म ९.३ यशः कीर्ति नामकर्म !! ९४ स्थावर नामकर्म ९५ सूक्ष्म नामकर्म ९६ अपर्याप्त नामकर्म ९७ साधारण नामकर्म ९८ अस्थिर नामकर्म ९९ अशुभ नामकर्म ०० दुर्भाग्य नामकर्म १०१ दुःस्वर नामकर्म ०२० अनादेय नामकर्म १०३ अपयश नामकर्म ( ७ ) गोत्रकर्मना वे मेद १ उच्च गोत्र २ नीच गोत्र (८) अंतरायकर्मना पांच मेद १ दानांतराय २ लाभांतराव ३ भोगांतराय ४ उपभोगांतराय ५ वीर्या राय प्रकृति आश्रयी टुंक वर्णन: उपर प्रमाणे ज्ञानावरणीयनी ५, दर्शनावरणीयनी ९, वेदनीयनी २, मोनीयनी २८, आयुष्यनी ४, नामकर्मनी १०३, गोत्रकर्मनी २ अने अंतराय कर्मनी ५-एवी रीतें आठ कर्मनी मली १५८ प्रकृति थाय छे.
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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