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________________ .... ... ६२-६३ ६३-६४ ... , ८ ० ० ० ७५-७६ १८ आश्रवना ४२ भेद १९ संवरना ५७ भेद २. ध्रुवबंधी प्रकृति ४७, अध्रुवसबंधो ७३ २१ ध्रुवोदयी प्रकृति २७, अध्रुवोदयी ९५ २२ ध्रुवसत्ताक प्रकृति १३०, अध्रुवसत्ताक २८ ... २३ सर्वघाती २०, देशघाती २५ अघाती ७५ (बंध प्रकृतिओ। २४ परावर्तमान ९१, अपरावर्त्तमान २९ (बंध प्रकृति ) २५ क्षेत्रविपाकी ४, भवविपाकी ४, जीववीपाकी ७८, पुद्गलविपाकी ३६ उदयप्रकृतिओ) २६ बंध हेतु ५७ ___गत्यादि ६२ मार्गणाए प्रकृतिओन विवरण २७ सर्वघाती वंध प्रकृति २० नुं विवरण ( ६२ मार्गणाए) . २८ देशघाति बंध प्रकृति २५ नुं विवरण २९ अघाति बंध प्रकृति ७५ नुं विवरण ३० क्षेत्रविपाकी ४ प्रकृतिनो उदय ३१ भवविपाकी ४ आयुष्यनो उदय ३२ जीववीपाकी ७८ प्रकृतिनो उदग ३३ पुद्गल विपाकी ३६ प्रकृतिनो उदय ३४ आश्वना ४२ भेद ३५ संवग्तत्त्वना ५७ भेद ३६ चार ध्यान ना १६ भेद ३७ समुदघात ७ ३८ बंध हेतु ५७ ३९ पांच भावना ५३ भेद ४. पाप प्रकृति ८२ नो बंध ४१ पुण्य प्रकृति ४२ नो बंध ४२ ध्रुवबंधी ४७ प्रकृति ४३ अध्रवबंधी ७३ प्रकृति ४४ प्रवोदयी २७ प्रकृति ४५ अधुवोदयी ९५ प्रकृति ४६ अपरावर्त्तमान २९ प्रकृति ४७ परावर्त्तमान ९१ प्रकृति ।। ४८ वामठ मार्गणाए कुळकोटी ... ४९ योगस्थानना स्वामी आश्री अल्पवहुत्व ५० चौद प्रकारना जीवना स्थितिस्थानन अल्पबहुत्व ५१ एकेंद्रियादिक जीवोमां स्थितिबंध आश्री अल्पबहुत्व ५२ पुदगल वर्गणानो क्रम ५३ आठ कर्मनी उत्तर प्रकृतिनो उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थितिबंध ५४ आठे कर्मनो उत्कृष्ट अबाधाकाळ ७७-७८ 2vvvvv १०४ १०८
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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