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___ [२२०] - इति उपशमश्रेणि स्वरूप. गाथा ६६. हवे क्षपकश्रेणिर्नु स्वरुप कहे छ.ओछामा ओछो आठ वर्षनो मनुष्य क्षपकश्रेणि मांडे, तेथी नानो न मांडे. क्षपक
श्रेणि मांडनार प्रथम अनंतानुबंधी चतुष्क खपावे ( पूर्ववत् ), पछी दर्शन मोहनी त्रिकने साथे खपावे, तेने खपावतो यथाप्रवृत्तादि त्रण करण करे, ते पूर्वे कहेल छे. तेमां विशेष एटलं के-अपूर्वकरणना प्रथम समये अनुदित मिथ्यात्वनां तथा मिश्रनां दळीयांने गुणसंक्रमवडे समकित मोहनीमां क्षेपवे.
उद्वल संक्रम पण ए बेनो ज आरंभे ते आ प्रमाणे.पहेलां मोटा स्थितिखंडनु उद्वलन करे. त्यार पछी समये समये विशेष हीन
विशेष हीन स्थितिखंडनी उद्वलना करे. एम अपूर्वकरणना चरम समय सुधी करे. एम करवाथी अपूर्वकरणना प्रथम समये जेटलो स्थितिसत्का होय, तेना करतां चरम समये संख्यातगुणहीन सत्कर्मा थाय. पछी अनिवृत्तिकरणमा प्रवेश करे. त्यां पण स्थितिघातादि अपूर्वकरणवत करे. तेना प्रथम समये दर्शनत्रिकनी देशोपशमना, निधत्ति अने निकाचना विच्छेद पामे. दर्शनमोहनी सत्कर्मा जीव अनिवृत्तिकरणना प्रथम समयथी. मांडीने स्थितिघातादिवडे हजारो स्थितिखंड नष्ट थवाथी असंज्ञी पंचेंद्रिय समान स्थितिकर्मा थाय. वळी बीजा हजारो स्थितिखंड गये सते चतुरिंद्रिय समान स्थिति सत्कर्मा थाय. ए प्रमाणे स्थितिखंड घटवाथी यावत् त्रींद्रिय,
द्वीन्द्रिय, एकेंद्रिय समान स्थितिसत्कमो थाय, वळी वीजा स्थितिखंड घटतां पल्योपमना असंख्यातमा भाग समान स्थिति रहे. पछी
त्रणेनो एक एक संख्यातमो भाग मूकीने बाकीनो सर्व खपावे (धात करे). वळी पड्या मूकेला संख्यातमा भागमांथी एक संख्यातमो भाग मूकीने बाकीनानो विनाश करे. एम हजारो स्थितिघात थाय. त्यार पछी मिथ्यात्वना असंख्यात भागोने खंडित करे अने समकित तथा मिश्रना संख्यात भागोने खंडित करे. एप्रमाणे घणा स्थितिखंड गये सते मिथ्यात्वना दळीयां आवलिका मात्र रहे अने समकित मिश्रना पल्योपमना असंख्यातमा भाग जेटला रहे. उपर प्रमाणे जे स्थितिखंड खंडित करे, तेमां मिथ्यात्वनां दळियां समकित ने मिश्रमां नांखे, मिश्रना समकीतमा नांखे अने समकितना तेनी नीचली स्थितिमां नांखे. पछी बाकी रहेला मिथ्यात्वना आवलिका मात्र दळने स्तिबुक संक्रमे समकितमां संक्रमावे. पछी समकित मिश्रना असंख्याता