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________________ [१८१] जे गुणस्थाने विकल्प १६० त्रीजे आयुबंध थतो नथी. तेथी आयुबंध काळना नरक आश्री २, तिर्यच आश्री ४, मनुष्य आश्री ४, देव आश्री २, आ १२ भंग त्यां न लाभे. चोथे गुणस्थाने विकल्प २०. चोथे वर्तता मनुष्य तथा तिर्येच देवायु ज बांधे. थी तेना बंधकाना अन्य गति आश्री त्रण त्रण भंग बाद करवा. अने नरक तथा देवता चोथे वर्तता मनुष्यायुज बांधे. तेथी तेना बंधकाळनो तिर्येच आश्री एक एक भंग बाद करवो. कुल ८ जतां बाकी भंग २०. पांच मे गुणस्थाने विकल्प १२ ( पांचमुं मनुष्य तिर्यचने ज होय. ) ते देवायु ज बांधे छे तेथी बंध अगाउ एक एक, बंध समये पण एक एक, अने बंधोतर काळे चार चार. कुल १२ भंग. चार गतिमांथी कोइ अन्य गतिनुं आयु बांध्या पछी देशविरति पामनारनी अपेक्षाए बंधोतरना चार चार भंग लाभे. छठे तथा सातमे गुणस्थाने विकल्प ६. ( ए गुणस्थान मनुष्य आश्री ज छे. ) तेथी बंध अगाउ १, बंध काळे १, बंधोत्तर काळे उपर कहेली युक्ति प्रमाणे ४, कुल भंग ६. ८- ९-१०-११ मे गुणस्थाने उपशमश्रेणि आश्री विकल्प २. मनुष्यायु उदय, देव मनुष्यायु सत्ता. (बंधोत्तर काळे). १ मनुष्यायु उदय, मनुष्यायु सत्ता. (बंधथी पूर्वे). आ चार गुणस्थाने तो आयुबंध नथी. पण पूर्व बद्धायु उपशमश्रेणि मांडे छे. ते पण देवायु बांधेल होय तो ज. तेथी उपर प्रमाणे वे भंग. अने पूर्वबद्धायुarot क्षपकश्रेणि मांडतो नथी. तेथी क्षपक आश्री ८-९-१०-११-१२१३-१४ ए सर्वे गुणस्थाने एकज भंग मनुष्यायुउदय, मनुष्यायु सचा. पछी सर्वथा क्षय. कुल भंग १२५ थया. (२७-२६-१६-२०-१२-१२-४-७) मोहनी कर्म. गाथा ४३. चं स्थान पहेलाथी आठमा सुधी एक एक. पहेले २२, बीजे २१, बीजे, चोथे, १७, पांचमे १३, छट्ठे, सातमे, आठमे ९. आनो विस्तार प्रथम करेलो छे, विशेष एटलं के प्रमत्त गुणस्थानके अरति शोकनो बंध विच्छेद थवाथी सातमे आठमे बंध तो नवनो होय. पण तेमां विकल्प एक ज. बे नहीं. नवमे गुणस्थाने बंधस्थान ५, ४, ३, २, १. तथा दशमा गुणस्थानथी बंधनो विच्छेद.
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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