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________________ [१८५] काययोग अपांतराल गतिमां होय अने वैक्रियमिश्र औदारिकमिश्र भवांतरमां प्रथम उत्पन्न थतां होय. अहीं वैक्रियमिश्र भवांतरे उत्पन्न थतां कह्यो, पण तिर्यंच मनुष्यने वैक्रिय करतां मध्यमां पण होय परंतु बाहुल्यता आश्री ए कथन सभजवू (नारकी अने देवता सर्वने उत्पन्न थतां होवाथी). मिथ्यादृष्टिने वैक्रियकाययोगे आठे चोवीशी होय. कुल पहेले गुणस्थाने चोवीशी २० होय. सासादने ९ योग आश्री तो उपर कहेल छे. बाकीना कार्मण काययोगे, वैक्रिय काययोगे, अने औदारिकमिश्रे चार चार चोवीशी होवाथी कुल चोवीशी १२ मिश्रे वैक्रिय काययोगे चोवीशी ४. अविरतने वैक्रिय काययोगमां चोवीशी ८. देशविरतने वैक्रिय अने वैक्रियमिश्रमां आठ आठ होवाथी कुल चोवीशी १६. प्रमत्तने वैक्रिय अने वैक्रियमिश्रमां आठ आठ होवाथी कुल चोवीशी १६. अप्रमत्तने वैक्रियमां चोवीशी ८. उपर प्रमाणे ९ योग विना बीजा योगमा ८४ चोवीशी होय. (२०-१२-४-८-१६-१६-८) ८४. आ ८४ ने २४ वडे गुणतां २०१६ थाय. ते पूर्वनी ११३८५ नी राशिमां नाख वाथी कुल १३४०१. हवे सासादने वैक्रियमिश्र योगमां नपुंसक वेदनो उदय न होय, तेने सातनो उदय एकविध, आठनो उदय द्विविध अने नवनो उदय एकविध छे, ते चारविधमां चोवीशीने बदले ४ कषाय, २ वेद अने २ युगल साथे गुणतां १६ भेद थाय. के. मके वैक्रियमिश्र काययोगी नपुंसक वेदीमा सासादननो अभाव छे तेथी.. अविरत सम्यग्दृष्टिने कार्मण काययोगमां तथा वैक्रियमिश्र योगमां स्त्रीवेदनो उदय न होय. वैक्रिय काययोगी स्त्रीवेदीमा अविरत सम्यग्दृष्टिने उपजवानो अभाव होवाथी आ वचन पण बाहुल्यता आश्री जाणवू. बाकी कदाजित् तो स्त्रीवेदीमां पण अविरत समकितदृष्टिने उपजवानो संभव छे. स्त्रीवेद विना चोथा गुणस्थानना आठे उदय प्रकारमा भंग १६-१६ थाय. प्रमत संयतने आहारक अने आहारकमिश्रमां तथा अप्रमत्तने आहारकमां स्त्रीवेदनो उदय न होय. कारणके आहारक शक्ति चौद पूर्वीने होय छे. अने स्त्रीने चौद पूर्वनो अभाव छे. अहीं पण भंग १६-१६ थाय छे. आ प्रमाणे ४४ (४-१६-१६-८) योगविकल्प एक एक वेद विना होवाथी १६-१६ भंग (षोडशक)वाळा थया. तेथी ४४ ने १६ साथे गुणतां ७०४
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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