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________________ [१५३] अथवा शरीर पर्याप्ति पर्याप्तने उच्ासनो उदय न थाय अने उद्योत नामनो उदय थाय, तो पण २९. तेना पण यश अयश साथे भंग २. कुल २९ ना उदयमां भंग ४. २९ मां सुस्वर के दुःस्वर भेळवतां ३० नो उदय. तेना सुस्वर दुःस्वर तथा यश अयश साथे गुणतां भंग ४. अथवा स्वरनो उदय नहीं थतां उच्छ्वासवाळाने उद्योत नामनो उदय थतां पण ३०. तेना भंग यश अयश साथै गुणतां २. कुल ३० ना उदयमां भंग ६. भाषा पर्याप्तिए पर्याप्त स्वरना उदयवाळाने ३० मां उद्योतनाम भेळवतां ३१ थाय. तेना सुस्वर दुःस्वर अने यश अयश साथे गुणतां भंग ४. कुल द्वींद्रिय आश्री भंग ( ३-३-२-४-६-४) २२ थाय. त्रींद्रिय अने चतुरंद्रियने पण उपर प्रमाणे ज छ छ उदय स्थान तथा बावीश बावीश भंग होवाथी कुल विकलेंद्रियना भंग ६६. प्राकृत एटले वैक्रिय देह कर्या विनाना स्वाभाविक तिर्येच पंचेंद्रियने उदयस्थान ६ (.२१-२६–२८-२९-३०-३१ ) १ तिर्यग्गति, १ तिर्यगानुपूर्वी, १ पर्याप्त के अपर्याप्त, १२ ध्रुवोदयी, १ बादरनाम, १ त्रसनाम, १ दुर्भग के सुभग, १ आदेय के अनादेय. १ पंचेंद्रियजाति, १ यश के अयश, आ प्रमाणे २१ नो उदय अपांतरालगतिमां होय. तेना भंग ९. ८ पर्याप्तने यश अयश साथे, सुभग दुर्भग साथे, तथा आदेय अनादेय साथै मुणत ८ था. १ अपर्याप्तने अयश, दुर्भग अने अनादेय ज होवाथी १. अन्य कहे छे के सुभग तथा आदेय अने दुर्भग अनादेयनुं युगल साथै ज उदयमां होवाथी पर्याप्त आश्री ४ अने अपर्याप्त आश्री १ एम भंग ५ थाय छे. पूर्वोक्त २१ मांथी तिर्यंचनी अनुपूर्वी काढीने छ नांखवाथी २६ थाय. १ छ संस्थानमांथी एक, १ छ संघयणमांथी एक, १ औदारिक अंगोपांग, आ प्रमाणे २६ प्रकृति शरीरस्थने होय. तेना भंग २८९ नीचे प्रमाणे -- १ उपघात, २८८ पर्याप्तने छ संघयण, छ संस्थान, सुभग दुर्भग, आदेय अनादेय तथा यश अयश साथे गुणतां २८८ थाय, ते आ प्रमाणे -- १ औदारिक शरीर, १ प्रत्येक.
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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