SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२१५] अद्वानो संख्यातमो भाग जाय त्यारे अंतरकरण करे छे. अंतरकरण करतो संतो समकित ओहनीनी प्रथम स्थिति अंतर्मुहूर्तनी स्थापे अने मिथ्यात्व मिश्रनी आवलिका मात्र स्थापे, अने उकेरेला दळीयां त्रणेनां समकित मोहनीनी पहेली स्थितिमां क्षेपवे. मिथ्यात्व ने मिश्रनां प्रथम स्थितिनां दलिक स्तिबुक संक्रमे सम्यक्त्वनी प्रथमनी स्थितिमां संक्रमावे. सम्यक्त्नी प्रथम स्थिति विपाकवडे अनुभवी क्षीण करे, त्यारे उपशम समकित थाय. पछी उपली स्थितिना दळनी उपशमना त्रणे प्रकृतिनी अनंतानुबंधीना उपरना दळनी जेम जाणवी. आप्रमाणे दर्शन त्रिकने उपशमाव्या पछी चारित्र मोहनीने उपशमावमा इच्छनार फरीने पाछा ते संबंधी त्रण करण करे. करणनुं स्वरूप तो पूर्ववत् समजवुं. अहीं विशेष एटलं के पहेलुं करण सातमे, वीजुं करण आठमे अने त्रीजुं करण नवमे गुणस्थाने जाणवुं. तेमां अपूर्वकरणमां स्थितिघातादि पूर्ववत् जाणवुं. फक्त सर्व अशुभ प्रकृतिना अवध्यमान पणामां गुणसंक्रम प्रवर्ते. अपूर्वकरणनो संख्यातमो भाग गये सते निद्रा प्रचलाना बंधनो विच्छेद थाय. पछी घणा स्थितिखंड व्यतिक्रमे सते अपूर्वकरणना संख्यात भाग जाय, मात्र एक भाग रहे ते वखते ३० प्रकृतिओ अगाउ कहेवायेल छे तेनो बंध विच्छेद थाय. पछी अपूर्वकरणना चरम समये हास्य, रति, भय अने जुगुप्सानो बंध विच्छेद थाय. ते साथे हास्यादि षट्कनो उदयमांथी पण विच्छेद था, अने सर्व कर्मनी देश उपशमना, निधत्ति अने निकाचना करण पण विच्छेद थाय. पछी अनंतर समये अनिवृत्तिकरणमां प्रवेश करे. त्यांषण स्थितिघातादि पूर्ववत् करे. त्रीजा करणनो संख्यातमो भाग गया पछी दर्शन सप्तक विना बाकी रहेली २१ चारित्र मोहनीनुं अंतरकरण करे. मां वेदाता संज्वलन ४ कषायमांथी जे कषाय होय तेनी तथा त्रण वेदमांथी वेदाता वेदनी प्रथम स्थिति स्वउदय काळ प्रमाणे अने बाकीना ११ कषाय, २ वेद तथा ६ हास्यादिकनी प्रथम स्थिति आवलिका मात्र ज़दी पाडे. स्वउदयकाळ आ प्रमाणे. - स्त्रीवेद अने नपुंसक वेदनो उदयकाळ सर्व स्तोक स्वस्थाने तुल्य. तेथी पुरुष वेदनो संख्यात गुणो. तेथी संज्वलन क्रोधनो विशेषाधिक. तेथी संज्वलन माननो विशेषाधिक. तेथी संज्वलन मायानो विशेषाधिक.
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy