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________________ [१९६] हवे तेनो संवेध कहे छे. २८ बांधतां २ उदयस्थान- ३०-३१. २८ नो बंध देवगति विषय ज सासादनने लाभे. कारण के करण अपर्याप्त सासादनी तो देवगति प्रायोग्य बांधता नथी. तेथी अहीं बीजां उदयस्थान न लाभे. तेमां पण मनुष्यने आश्रीने ३० ना उदयमां बने सत्तास्थान. उपशमश्रेणिनो तिर्यचमां असंभव ज होवाथी ३१ ना उदयमां ८८ नुं सत्तास्थान छे. कारण के ३१ नो उदय मनुष्यने नथी. २९ तिर्यंच पंचेंद्रिय तथा मनुष्य आश्री बांधतां सासादने साते उदयस्थान: तेमां एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, तिर्येच पंचेंद्रिय, मनुष्य, देवता अने नारकी सासादनीने पोतपोताना उदयस्थाने वर्ततां एक ८८ नुं सत्तास्थान. फक्त मनुष्यने ३० ना उदयमां ९२ नुं सत्तास्थान होय. ३० ना बंधमां पण उपर प्रमाणे सात उदयस्थाने एक ८८ नुं ज सत्तास्थान जाण - बुं. कुल सर्व उदयस्थान आश्री १८ सत्तास्थान. ( टीकामां ८ लखे छे ). हवे त्रीजा गुणस्थाने बंध, उदय अने सत्तास्थान कहे छे. श्रीजा गुणस्थाने बंधस्थान २ ( २८-२९ ) २८ नो बंध मिश्रवाळा तिर्यंच अने मनुष्य देवगति प्रायोग्य बांधे छे. तेथी तेना भंग ८. २९ नो बंध मनुष्यगति प्रायोग्य देव नारकी बांधे छे. तेमां पण भंग ८. शुभा - शुभ स्थिरास्थिर यशअयश आश्री जाणवा, परावर्तमान प्रकृति बाकीनी मि श्रवाळाने शुभ ज आवे छे. मिश्र गुणस्थाने उदयस्थान ३. ( २९-३०-३१ ). २९ ना उदयमां देव आश्री भंग ८. अने नरक आश्री १. कुल भंग ९. ३० ना उदयमां तिर्यच पंचेंद्रिय आश्री १७२८. मनुष्य आश्री ११५२. कुल भंग २८८०. ३१ नो उदय तिर्यंच पंचेंद्रिय आश्री छे. तेना भंग ११५२. सर्व उदय भंग ४०४१. मिश्र गुणस्थाने सत्तास्थान २ ( ९२-८८ ). मिश्र गुणस्थाने संवेध कहे छे. २८ बांधतां २ उदयस्थान – ३०-३१. दरेक उदयमा बे वे सत्तास्थान. २९ बांघतां १ उदयस्थान - २९. अहीं पण बन्ने सत्तास्थान - ९२ ८८. ए प्रमाणे दरेक उदयस्थानमां वे वे सत्तास्थान होवाथी कुल सत्तास्थान ६०
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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