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________________ [२९९] ४ चोथे गुणठाणे क्षायिक समकितीने दर्शन सप्तक अने नरकायु तथा मनुष्यायु विना १३८ होय. अने उपशम तथा क्षयोपशमवाळाने जिननाम विना १४७ सत्तामां होय. ५ पांच गुणठाणे उपर प्रमाणे समजवुं ८ एकेंद्रिय तथा विकलेंद्रियनी मार्गणाए ओघे, मिथ्यात्व गुणस्थाने तथा सास्वादन गुणस्थाने जिन नामकर्म १, अने आहारक द्विक २, ए ३ प्रकृति विना १४५ नी सत्ता होय. ९ पंचेंद्रियनी मार्गणाए मनुष्यनी मार्गणा प्रमाणे जाणवुं. १२ पृथ्वीकाय, अस्काय अने वनस्पतिकाय ए त्रण मार्गणाए एकेंद्रियनी मार्गणा प्रमाणे जाणं. १४ तेजस्काय अने वायुकायनी मार्गणाए ओघे तथा मिथ्यात्व गुणस्थाने तीर्थंकर नामकर्म १, आहारक द्विक २, मनुष्यायु १, ए ४ प्रकृति विना १४४ प्रकृतिनी सत्ता होय. १५. बस कायनी मार्गणाए मनुष्यगतिनी प्रमाणे जाणं. १८ मनयोगी, वचनयोगी अने काययोगी ए त्रण मार्गणाए मनुष्यनी मार्गणा प्रमाणे १३ गुणस्थानक सुधी जाणवुः २४ ऋण वेद अने त्रण कषाय, ( क्रोध, मान, माया ) ए छ मार्गणाए मनुष्यगतिनी मार्गणा प्रमाणे नव गुणस्थानक सुधी जाणवुं. २५ लोभनी मार्गणाए मनुष्य गतिनी मार्गणा प्रमाणे दश गुणस्थानक सुधी जाणवुं. २८ भतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान ए त्रण मार्गणाए मनुष्य गतिनी मार्गणा प्रमाणे चोथा गुणस्थानकथी मांडीने वारमा गुणस्थानक सुधी जाणवुं. २९ मनः पर्यवज्ञाननी मार्गणाए ओवे १४८ अथवा तिर्यगायु १ अने नरकायु १ ए वे विना १४६ प्रकृतिनी सत्ता होय. ते छट्टा गुणस्थानकथी बारमा गुणस्थानक सुधी मनुष्यगतिनी मार्गणा प्रमाणे जाणवुं. ३० केवळ ज्ञाननी मार्गणाए मनुष्य गतिनी मार्गणा प्रमाणे छेल्ला वे गुणस्थानक जाणवा. ३३ त्रण अज्ञाननी मार्गणाए ओधे १४८ अथवा १४५ प्रकृतिनी सत्ता होय. तथा पहेलेथी ऋण गुणस्थानक सुधी एकेंद्रियनी मार्गणा प्रमाणे १४५ नी सत्ता होय. ३५ सामायिक चारित्र अने छेदोपस्थापनीय ए वे मार्गणाए ओघे १४८ नी सत्ता अथवा तिर्यगायु अने नरकायु ए वे प्रकृति विना १४६ नी पण सत्ता होय. तेने
SR No.002417
Book TitleYantrapurvak Karmadi Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mahila Mandal
PublisherJain Mahila Mandal
Publication Year1932
Total Pages312
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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