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श्री चन्द्रप्रभ
YOU CAN WIN
कैसे बनाएँ अपना
केरियर
कठिनाइयों से वही घबराते हैं जिन्हें दूध फटने पर रसगुल्ला बनाना नहीं आता।
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C
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पुरुषार्थ
वाह! जन्दगी
दिगो
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कैसे बनाएँ अपना केरियर,
श्री चन्द्रप्रभ
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कैसे बनाएँ अपना केरियर
श्री चन्द्रप्रभ
. जुलाई 2012, तीसरा संस्करण
प्रकाशक : श्री जितयशा फाउंडेशन बी-7 अनुकम्पा द्वितीय, एम.आई. रोड, जयपुर (राज.) आशीष : गणिवर श्री महिमाप्रभ सागर जी म. मुद्रक : बबलू ऑफसेट, जोधपुर
मूल्य : 30/
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केरियर की शुरुआत 0से होती है,
परसमापन...
आज हर व्यक्ति एक ही कोशिश में लगा हुआ है कि वह अपना केरियर बेहतर बनाए । व्यक्ति के केरियर पर ही उसके जीवन की सारी सफलताएँ और समृद्धियाँ टिकी हुई हैं । केरियर बनाना जीवन की किसी साधना से कम नहीं है । केरियर ही जीवन के लिए नींव का काम करता है और विकास की ज्योति का दायित्व निभाता है । जिसका केरियर परफेक्ट, उसकी ज़िंदगी परफेक्ट । चाहे आप युवा हों या प्रौढ़, आप अपने केरियर को अपने जीवन की सबसे बड़ी ताकत समझिए। ____ महान जीवन-द्रष्टा पूज्य श्री चन्द्रप्रभ हमें शानदार केरियर निर्माण के वे दमदार नुस्खे दे रहे हैं, जिनकी बदौलत एक साधारण-सा व्यक्ति भी असाधारण ऊंचाइयों को छू सकता है । जितने सीधेसादे और प्रभावी ढंग से इस पुस्तक में केरियर और व्यक्तित्व-निर्माण के तरीके
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बताए गए हैं उनसे यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि यह कोई चालू किताब नहीं, वरन् सफलता के ताले की जादुई चाबी है।
निश्चय ही इस पुस्तक का हर पन्ना, हर शब्द आपके लिए उतना ही बेशकीमती है जितना कि आपके लिए आपका केरियर । श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं कि इस बात को सदा याद रखिए कि जीवन में कामयाबी के निन्यानवे द्वार बंद हो जाएं, तब भी विश्वास रखिए आपके लिए कोईन-कोई एक द्वार अवश्य खुला हुआ है । बस, आप उस एक द्वार की तलाश कीजिए और फिर से पूरी ऊर्जा और उत्साह के साथ अपने कदम बढ़ा लीजिए। ___ श्री चन्द्रप्रभ का आपको संकेत है : हर केरियर की शुरुआत ० से होती है, पर उसका समापन शिखर पर होता है । संसार का हर शिखर-पुरुष एक दिन तलहटी पर ही था, पर अपनी लगातार कठिन मेहनत, धैर्य और विश्वास के बलबूते वह शिखर पुरुष बन पाए । आप उन शिखर-पुरुषों को देखें, उनसे प्रेरणा लें, अपने मन में प्रगति का दीप जलाएँ और पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने मज़बूत कदम बढ़ाएँ।
आलस्य त्यागें, सक्रियता अपनाएँ।
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अंदर क्या है...
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कैसे बनाएँ अपना करियर गुस्सा छोड़िए, इमेज़ बनाइए तनाव से रहिए नौ कदम दूर दिमाग को न बनने दें शैतान का घर 7 स्टेप्स में सीखिए बोलने की कला मानसिक विकास के 7 स्टेप्स सफलता का थर्मामीटर : सोच को बनाएँ बेहतर
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first step build career
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जीने की कला - 1
कैसे
बनाएँ
केरियर
अपना
मज़बूत इरादे, कैरियर का पहला पायदान
इरादों को बनाएँ महान केरियर का पहला पायदान
mantrange anaes
अपनी बात की शुरुआत एक छोटी-सी घटना से करूँगा। शैलेष नाम के एक युवक ने बी.कॉम की परीक्षा उत्तीर्ण की थी । उसके माता-पिता ने बहुत मुश्किलों का सामना करते हुए उसकी पढ़ाई की व्यवस्था की थी । इस उम्मीद के साथ कि पढ़-लिखकर उनका और उनके बच्चे का भविष्य सुखी और सुनहरा हो जाएगा। ग्रेजुएशन के बाद, कैरियर बनाने के उद्देश्य से उसने नौकरी की तलाश शुरू की। कई-कई सरकारी और गैर-सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने के बाद भी शैलेष नौकरी न पा सका। उसने कई छोटी-मोटी परीक्षाएँ भी दीं, लेकिन सफल न हो सका। उसने सिविल सर्विस के लिए परीक्षा दी, परीक्षा में अंक भी अच्छे आए, लेकिन उसे खाली हाथ वापस लौटना पड़ा, क्योंकि उसके पास परीक्षक को देने के लिए रकम नहीं थी ।
प्रतिदिन सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते और विभिन्न परीक्षाएँ देते हुए वह इतना निराश हो गया, वह आत्महत्या करने पर उतारू हो गया ।
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झील के किनारे पहुँचकर वह जैसे ही छलांग लगाने वाला था कि उसकी नज़र सामने वाली पहाड़ी पर गई जहाँ एक देवी का मंदिर था। उसने देखा कि उस पहाड़ी पर तरह-तरह के लोग देवी के दर्शन के लिए जा रहे हैं
और उन्हीं के बीच एक अपाहिज़ व्यक्ति, जिसके दोनों पाँव नहीं हैं, जैसे-तैसे मेहनत करते हुए एक-एक सीढ़ी चढ़ने की कोशिश कर रहा है। वह युवक सोचने लगा – क्या यह अपाहिज़ पहाड़ी मंदिर तक पहुँचने में सफल हो सकेगा?
उसने देखा कि वह अपाहिज़ अंततः मंदिर के अंदर तक जाने में सफल हो ही गया। यह देखकर शैलेष के अंदर नई उमंग, नई ऊर्जा, नई शक्ति जाग्रत हो गई। उसे लगा कि जब एक अपाहिज़ व्यक्ति भी मेहनत करता हुआ तो पहाड़ी पर चढ़-उतर सकता है, मैं तो ग्रेजुएट हूँ, मेरे हाथ-पाँव भी सलामत हैं फिर मैं क्या सफल नहीं हो सकता? क्या मैं अपने लिए आजीविका की व्यवस्था और अपने माँ-बाप की आशाओं को पूरा नहीं कर सकता? किसी एक असफलता का मतलब यह नहीं है कि अब पूरा जीवन ही निरर्थक हो गया। शैलेष वापस लौट आया। उसने ज्यूस की दुकान खोल ली। सौ रुपये की जमा पूँजी से उसने अपना व्यापार शुरू किया। आज उसके पास चार मंजिल की बिल्डिंग है और एक बड़ा ज्यूस सेंटर है।
किसी के लिए भी जीवन में केरियर की राह चुनना बहुत बड़ी चुनौती है। प्रकृति ने हमें जन्म तो दे दिया है, लेकिन इस जन्म का सार्थक उपयोग करते हुए बेहतर इन्सान बनना केरियर का महत्त्वपूर्ण पड़ाव है। कुदरत ने धरती पर मिट्टी तो दी है, लेकिन उसे आकार देकर दीपक बनाना ही केरियर का निर्माण है। अपनी प्रतिभा और योग्यता को उजागर करते हुए जीवन विकास के रास्ते खोलना केरियर की सही शुरुआत है।
समाज में किस तरह जीएँ, किस तरह समाज का नेतृत्व किया जाए, किस प्रकार अपनी आजीविका के संसाधन बटोरते हुए जीवन को
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विकास के आयाम देने चाहिए, यही है कैरियर-निर्माण का ताना-बाना। मिट्टी तो प्रकृति देती है, लेकिन मिट्टी से मंगल कलश बनाना इन्सान की ज़िंदगी की सफलता की कहानी है। माना कि गंदगी गंदगी है लेकिन उसका प्रयोग करने की कला आ जाए तो वही गंदगी खाद बनकर फूलों में सुवास बनकर उभरती है।
आज जो बेरोजगारी फैल रही है उसके लिए आप भले ही शासनप्रशासन और सरकार को दोष दें, लेकिन मेरा मानना है कि इसके लिए सरकार या प्रशासन नहीं बल्कि व्यक्ति को कैरियर बनाने का सही तरीक़ा न आना ही मुख्य कारण है। सरकारी दफ्तरों के हाल तो निरन्तर गिरते जा रहे हैं। जबकि दुनिया में विकास के रास्ते रोज़-ब-रोज़ खुलते जा रहे हैं। जीने का, शिक्षा का स्तर सुधर गया है। बड़ा परिवर्तन आया है। आप बढ़ते लोगों को देखिए और प्रेरणा लीजिए। ___ अगर आप कहीं परीक्षा देने जाते हैं और उसमें असफल हो जाते हैं तो इसके लिए हताश, निराश और उदास होने की ज़रूरत नहीं है। मोरारजी देसाई जब परीक्षा देने गए तो परीक्षकों ने पूछा – 'मोरारजी, अगर तुम परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गये तो क्या करोगे?' मोरारजी ने कहा - 'अगर मैं अनुत्तीर्ण हो गया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं असफल हो गया। विकास के और निन्यानवे द्वार खुले रहेंगे।' अगर मोरारजी देसाई तभी निराश हो जाते तो वे देश के प्रधानमंत्री नहीं बन पाते। आज भी देश के ईमानदार प्रधानमंत्रियों में मोरारजी देसाई का नाम आदरपूर्वक लिया जाता है।
जीवन में हार जाना गुनाह नहीं है। परीक्षा में फेल हो जाना या जीवन में विफल हो जाना कोई दोष नहीं है। असफलता का मतलब है देरी, न कि हार। जब भी असफल हो जाएँ, तो . सोचें, एक बेहतर रास्ता अवश्य है। तलाशना चाहिए उसे आखिर विश्व के महान् से महान् व्यक्तियों ने भी असफलताओं के द्वार से निकलकर ही सफलता की मंज़िल हासिल की है।
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आखिर दुनिया के किसी भी विश्वविद्यालय के कुलपति ने बचपन में तुतलाकर ही बोलना सीखा है।
एक दफ़ा बाबा आमटे की माँ एक जापानी गुड़िया लेकर आई और बाबा से कहा - 'बेटा, मैं तुम्हारे लिए बहुत अच्छा खिलौना लेकर आई हूँ।' बाबा उस जापानी गुड़िया को उलट-पलट कर देखने लगे कि इसमें क्या ख़ासियत है। गुड़िया को जैसे ही ज़मीन पर खड़ा किया तो वह चलने लगी। चलते-चलते अचानक वह गिर पड़ी। बाबा आमटे यह देखकर चकित हुए कि जैसे ही वह गुड़िया गिरती, तत्काल छलांग लगाकर वापस खड़ी हो जाती और फिर चलने लगती। बाबा दस मिनट तक यह खेल देखते रहे। तब माँ ने पूछा, 'बेटा, तुम इस गुड़िया के खेल को देख कर क्या कुछ समझे?' ___'नहीं, मैं कुछ भी नहीं समझा, बाबा ने कहा - 'बेटा यह गुड़िया हमें यह समझाना चाहती है कि जिंदगी में हर आदमी कभी-न-कभी गुड़कता ज़रूर है। गुड़कना दोष नहीं है, पर वापस न उठना ही दोष बन जाता है। 'हारना, लेकिन हार न मानना', इसी का नाम जिंदगी है। शतरंज के खेल में बाजी हारी या जीती जाती है, लेकिन एक बार हार जाने का यह मतलब नहीं होता कि आगे की बाजी जीती न जा सकेगी।'
क्या आप इस घटना से कुछ प्रेरणा लेंगे? यह घटना हमें सिखाती है कि भले ही हार जाओ, पर हार मत मानो। प्रयत्न ज़ारी रखो। आखिर हर दिन उगता सूरज हमें यही सिखाता है कि
target प्रयत्न फिर से करो।अंधेरे में डूबे सूरज को फिर से उगने में भले ही बारह घंटे क्यों न लगे हों, पर जो डूबकर भी गतिशील रहता है, वह कभी-न-कभी, किसी-नकिसी समय फिर से रोशन हो जाता है ।सरोवर में दिख रही बतख़ से प्रेरणा लो जो बाहर से शांत और मौन दिखती है, पर पानी के भीतर हर समय पाँव चलाती रहती है।
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याद रखो, कैरियर बनाना तो शतरंज और चौपड़ के खेल की तरह है जहाँ व्यक्ति एक चाल और फिर दूसरी चाल हारता है, पर वहीं हारने वाला जब धैर्य, बेहतर सोच और आत्मविश्वास के सहारे अगली चालें खेलता है तो अन्ततः जीत ही जाता है। केरियर बनाने के लिए भी हर किसी को संघर्ष करना होगा। संघर्ष ही सफलता की आत्मा है। आप जितनी अच्छाइयाँ आत्मसात करेंगे, आपका केरियर उतना ही बेहतर बनेगा। खाली बोरी को कभी खड़ा नहीं किया जा सकता, बोरी को खड़ा करने के लिए उसमें कुछ-न-कुछ भरना ही होगा।
'स' से 'स' तक सात सुर, सात सुरों में राग।
उतना ही संगीत है, जितनी तुझमें आग। जिसमें जितनी ललक होगी, जिसे जितना अभ्यास होगा, उसके द्वारा उतना ही संगीत पैदा हो पाएगा। जिसमें जीवन की गाड़ी को चलाने का जितना हौंसला, हिम्मत और जज़्बा होगा, वह जीवन में उतना ही विकास कर पाएगा। अगर हम ज़िंदगी में कुछ न कर पाए तो इसकी जिम्मेदारी हमारी ही है। हम अपनी मानसिक शाक्ति को जाग्रत करें। अपनी आत्मिक
और आध्यात्मिक शक्ति को उजागर करें। हृदय में घर कर चुकी तुच्छ दुर्बलता का त्याग करें। दुर्बलता नपुंसकता है और नपुंसकता हमें शोभा नहीं देती। दुनिया में वह असफल नहीं कहलाता जो मात खा बैठता है, वरन वह असफल है, जिसका ख़ुद पर से ही विश्वास उठ गया।
जब एक युवक ने बेरोज़गारी से तंग आकर खाई में गिरने की कोशिश की, तो मैंने उसे ऐसा करने से रोका और कहा कि तुम एक शिक्षित और युवा होकर मरने का पाप कर रहे हो? क्या तुम्हें नहीं पता कि जीवन प्रभु का प्रसाद है ? इसे स्वीकार किया जाए, न कि ठुकराया जाए। उसने कहा, 'मैं सोलह कक्षा तक पढ़ा हूँ, पर नौकरी न पा सका।' मैंने पूछा, 'तुम्हारी उम्र कितनी है ?' उसने कहा, 'इक्कीस साल।' मैंने कहा, 'तुम्हारी सोलह साल की पढ़ाई तुम्हारे काम न आई तो तुम मरने को
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उतारू हो गए, पर ज़रा यह सोचो कि तुम्हारे साथ तम्हारे माता-पिता ने भी तो तुम्हें पालने-पोषने में इक्कीस साल की मेहनत की है। क्या तुम उसे इस तरह निरर्थक कर दोगे? क्या तुम्हारे माता-पिता भी आत्महत्या कर बैठे? युवक की आँखें खुल गईं। वह वापस घर लौट गया। उसकी सोई हई आत्मा जग गई। वह अपनी आत्मिक शक्ति का मालिक बन गया। मैंने उसे शांति और सफलता का ध्यान सिखाया। वह आशा और विश्वास से फिर भर उठा और सफल भी हुआ।
आज अगर तुम उदास हो, असफल हो, तो हो सकता है, तुमने लक्ष्य को हासिल करने के लिए मेहनत ही न की हो, या अपने केरियर के प्रति गंभीर ही न हुए हो। कोई अगर परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाता है तो इसके लिए शिक्षक नहीं बल्कि विद्यार्थी स्वयं जिम्मेदार होता है। शिक्षक तो सभी बच्चों को एक ही भाव से, एक जैसा ही पढ़ाते हैं, पर जो छात्र आगे बढ़ जाता है, वह गुरु । द्वारा दिए गए ज्ञान से संतुष्ट नहीं होता अपितु उसमें और भी अधिक ज्ञान पाने की लालसा रहती है। छात्र की लालसा और जिज्ञासा ही उसे आगे बढ़ाती है। जो गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान से संतुष्ट हो जाते हैं वे जरासंध बनते हैं और जिन्हें अधिक ज्ञान-पिपासा रहती है, वे अर्जुन बन जाते हैं। गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान को आगे बढ़ाना ही अर्जुन की सफलता की मूल चाबी है।
गुरु द्रोण के पास दुःशासन, दुर्योधन और अर्जुन सभी शिक्षा पाते थे, फिर क्या कारण है कि एक तो दुर्योधन ही रह जाता है और दूसरा अर्जुन बन जाता है। कारण स्पष्ट है, दुःशासन, दुर्योधन और जरासंध तो वे प्रतीक हैं जिन्हें गुरु ने जो कुछ जितना सिखा दिया, उतने से ही संतुष्ट हो गए, पर अर्जुन और एकलव्य जैसे लोग जिन्हें यदि साक्षात् गुरु मिल जाएँ तो वे उनका उपयोग करते हैं और न भी मिल पाएँ तो उनकी मिट्टी की मूर्ति बनाकर भी गहन अभ्यास कर लेते हैं। सीखने की ललक हो तो मिट्टी के गुरु से भी सीखा जा सकता है। आखिर घिसाई के बिना तो
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किसी भी हीरे में चमक नहीं आ सकती।
केरियर और कामयाबी अलग-अलग नहीं हैं। अच्छे कैरियर का परिणाम ही कामयाबी है
और कामयाबी की नींव का नाम ही कैरियर है। हरेक को अपना कैरियर बनाने का अधिकार है। चाहे लडकी हो या लडका, जिसने भी उच्च शिक्षा प्राप्त की है, उन्हें अपना अच्छा कैरियर बनाना ही चाहिए। लड़कियाँ जो इंजीनियर, डॉक्टर, एम.बी.ए., सी.ए. कर चुकी हैं, उन्हें अपनी शिक्षा का सदुपयोग अवश्य करना चाहिए। अब वह जमाना बीत गया कि केवल पुरुष ही कमाएँगे। समृद्धि होनी चाहिए, यह देश ग़रीब नहीं रहना चाहिए। धर्म कभी ऐसी प्रेरणा नहीं देता कि हम ग़रीब रहें। धर्म अपरिग्रह की प्रेरणा देता है और अपरिग्रह की तभी सार्थकता है जब व्यक्ति समृद्ध होने के बाद परिग्रह का त्याग करता है।
ग़रीबी तो देश के लिए, समाज के लिए, परिवार के लिए, व्यक्तिगत जीवन के लिए ग़रीबी अभिशाप है। अब घर के सब पुरुषों और महिलाओं को आगे आना चाहिए, और अपने घर के खण्डप्रस्थ को इन्द्रप्रस्थ बनाने का ख़ास प्रयास करना चाहिए। अमीर पिता का पुत्र अगर अमीर है तो इसमें नाम क्या? हाँ, गरीब घर में जन्म लेकर भी जो युवा धनवान बनता है तो यह उसके सपनों का सच होना है, उसकी जिजीविषा और उसके पुरुषार्थ का सफल होना है। आपके हाथ में भाग्य की, जीवन की, हृदय और मस्तिष्क की रेखा होती है, लेकिन पुरुषार्थ की कोई रेखा नहीं होती। पुरुषार्थ ख़ुद को करना होता है तभी भाग्य और जीवन की रेखा सार्थक हो पाती है। भाग्य की रेखा भगवान् बनाते हैं, पर पुरुषार्थ की रेखा आप स्वयं बनाइए।
अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ग़रीब घर में पैदा हुए थे। हमारे राष्ट्रपति ए.पी.जे. कलाम भी गरीब घर में ही जन्मे थे और अपनी पाठ्य पुस्तकों की व्यवस्था करने के लिए इमली के बीजों को इकट्ठा करके
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अठन्नी-चवन्नी में बेचा करते थे। तब कहीं जाकर बमुश्किल अपने लिए किताबों की व्यवस्था कर पाते थे। यही तो है पुरुषार्थ कि जो बच्चा इमली के बीजों को बेचा करता था, उसने भी ऊँचे सपने देखे थे। उन सपनों को पूरा करने के लिए वह पूरी लगन से लगा रहा और एक दिन महान् वैज्ञानिक बना और देश का
सर्वोच्च पद भी हासिल किया। आज वे भारत के आदर्श बन गए हैं। मैं इसे ही कहता हूँ – 'केरियर'।
मैं एक ऐसे लड़के को जानता हूँ, जिसकी माँ चल बसी। वह लड़का हमारे पास आया। लड़का स्वाभिमानी था। उसने सौ-पचास रुपए की पूँजी से कपड़ों में लगने वाले बटन खरीदे और कुछ रंग भी। वह बाजार में जाता और ज़रूरत के मुताबिक रंगीन बटन के ऑर्डर ले आता। घर में ही वह बटन रंगता और सप्लाई कर देता। धीरे-धीरे व्यापार चल निकला, तो वह रंगीन बटन ही खरीदकर देने लगा। व्यवसाय बढ़ता गया और आज वह करोड़ों की सम्पत्ति का मालिक है।
मैं ऐसे ही एक अन्य लड़के को भी जानता हूँ, जिसे हिन्दी भाषा का बहुत अच्छा ज्ञान था। जब वह ग्यारहवीं में पढ़ता था तभी मेरे सम्पर्क में आ गया था। उसने मुझसे काफ़ी कुछ सीखा है। उसके पास एक अच्छी साहित्यिक प्रतिभा है। अब वह बी.ए.,बी.एड. कर चुका है। उसे काफ़ी मशक्कत के बाद सरकारी नौकरी मिली। हम उससे उसकी कुछ मदद करने की बात करते तो वह स्वाभिमानी काम की फरमाइश करता। वह मेरे प्रवचनों को ऑडियो कैसेट लिखा करता। इससे उसे जो पारिश्रमिक मिलता उससे वह आगे की पढ़ाई करता और जो राशि शेष बचती, वह उस अपनी बूढ़ी माँ को भेज देता। इसी बीच दीपावली आ गई। मैंने उससे कहा – 'दीपावली आ रही है, कुछ कपड़े बनवा लो, अगर चाहो तो हम दिलवा देते हैं।' लेकिन उसके स्वाभिमान को इस तरह लेना गँवारा न था।
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उसने कहा, मेरे पास जो पैसा आता है, मैं उससे या तो अपनी पढ़ाई करता हूँ या अपनी माँ की सेवा में खर्च करता हूँ। मैंने आपसे स्वाभिमान का गुण सीखा है इसलिए आप मुझे वही कहिए जिससे मेरा स्वाभिमान खंडित न हो। ___ आज उस बच्चे को सरकारी नौकरी भी मिल गई है, उसका विवाह भी हो गया है। वह खुद भी सरकारी नौकरी में है और उसकी पत्नी भी। अब उनकी जिंदगी रफ्तार से चल रही है। अगर आप भी अपने लिए सौ प्रतिशत प्रयास करते हैं तो एक-न-एक दिन अवश्य सफल हो सकते हैं। कार्य को कीजिए इस तरह कि असफलता असंभव हो जाए। सफलता के लिए संघर्ष कीजिए। संघर्ष सफलता की कसौटी है। वक़्त बीत जाता है, पर संघर्ष हमें सफलता के शिखर पर पहुँचा ही देता है।
हम अपना सफल केरियर बनाएँ, इसके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है : बेहतरीन शिक्षा। एक तो शिक्षा यह कि आप सदा अपने विचारों का अवलोकन करते रहिए, क्योंकि ये विचार ही बीज का काम करते हैं। इन्हीं से वाणी बनती है। अपनी वाणी पर निगरानी रखिए क्योंकि वाणी ही व्यवहार को आधार देती है। व्यवहार का सदा मूल्यांकन करते रहिए क्योंकि व्यवहार ही चरित्र को निर्मित करते हैं। चरित्र को अपने जीवन की पूंजी बनाइए। चरित्र तो वह ज्योति है जो सूर्यास्त हो जाने के बावजूद व्यक्ति को रोशन रखती है और अपने प्रकाश का अहसास करवाती रहती है।
शिक्षा विचारों की भी हो, जीवन जीने की हो और एज्युकेशन से जुड़ी हो। शिक्षा सफलता की बुनियाद है।
आज तो उच्च शिक्षित व्यक्ति के लिए कंपनी स्वयं ऑफर देती है। लड़का सी.ए. और एम.बी.ए. पास करके निकलता है और उसी के साथ उसके लिए पैकेज तैयार है। विकास की तेज रफ़्तार के चलते केरियर के नये रास्ते खले हैं। फिर भी प्रयास तो स्वयं को ही करना होता है। आज से
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तीस-पैंतीस वर्ष पूर्व कोई यह कम ही सोचता था कि कंपनीज़ कैम्पस सिलेक्शन करेंगी। लेकिन अब हालात बदले हैं, कम्पनियों को भी बेहतरीन उद्यमी चाहिए। इसलिए वे भी अच्छे लोगों की तलाश में रहती हैं और कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच लोग चयन किए जाते हैं। अगर आपके पास अच्छी प्रतिभा है तो उसका उपयोग करने वाले भी हैं।
आप केवल सरकार के भरोसे न रहें। वहाँ तो आरक्षण के नाम पर, जाति और वर्ग के नाम पर प्रतिभाओं को कुचल दिया जाता है। मैं चाहता हूँ कि देश का प्रधानमंत्री निम्न से निम्न तबके का बने, लेकिन जाति के आधार पर नहीं, अपनी योग्यता और प्रतिभा के आधार पर। प्रतिभा के आधार पर अगर विकास होगा तो देश का कल्याण होगा अन्यथा जाति के आधार पर अयोग्य व्यक्ति सुयोग्य को कैसे हैंडल कर पाएगा? शिक्षा को अनिवार्य किया ही जाना चाहिए। साक्षरता शिक्षा नहीं है, देश के संविधान में लिखा जाना चाहिए कि ग्रेजुएट ही एम.एल.ए. और एम.पी. का चुनाव लड़ने की पात्रता रखते हैं। अशिक्षित लोग देश का क्या विकास करेंगे? अंगूठा छाप लोगों से क्या तुम देश का विकास करवाओगे? __ अगर आप राकेश शर्मा, कल्पना चावला, किरण बेदी जैसे लोगों पर गर्व करते हैं तो यह गर्व उनकी शिक्षा और प्रतिभा पर है। कल्पना चावला अगर अंतरिक्ष में गई तो अपनी योग्यता के बल पर। नेता तो केवल बोलते हैं। इस देश का जितना भला नेताओं ने किया है उससे दस गुना बुरा भी नेताओं ने ही किया है। नेताओं को अपन लोगों से कुछ लेना-देना नहीं है। अगर ऐसी बस्ती जहाँ अवैध कब्जा है, लेकिन दो हजार वोट संगठित हैं तो उन्हीं की बात सुनी जाएगी। हाँ, याद रखना अगर आप भी संगठित न हुए तो आप भी नकार दिए जाएँगे।
जब तक इस देश में प्रतिभाओं का सम्मान नहीं होगा, विदेशी हमारी प्रतिभाओं को आर्थिक प्रलोभन के आधार पर।
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ले जाते रहेंगे, और हम अपने देश की प्रतिभाओं का पलायन होते देखते रह जाएँगे। यदि हमने जातिवाद को कम नहीं किया और प्रतिभाओं का उपयोग नहीं किया तो आने वाले वर्षों में देश कंगालियत की राह पर चला जाएगा। यहाँ लोग रहेंगे, करोड़ों इन्सान होंगे, ख़ूब जनसंख्या होगी पर प्रतिभा नहीं होगी। क्या आप ऐसे परिवार, समाज की कल्पना कर सकते हैं, जिसमें लोग तो बहुत हैं परन्तु प्रतिभा एक में भी नहीं है। याद रखिए, कौवों के झुंड के बजाय दो-चार हंस भी अच्छे होते हैं । इसलिए कि आप बेहतरीन शिक्षा पाएँ । अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलवाएँ । 'हम दो हमारे दो' के नारे ने भारत के लोगों का जीवन-स्तर जरूर ऊँचा किया है पर जो लोग इसे नहीं अपना रहे हैं वे भी इसे अपनाएँ ताकि उनके लिए भी विकास के नए द्वार खुल सकें। उनके ढेरों बच्चे सड़कों पर आवारागिर्दी न करें। बच्चे कम होंगे तो उनका पालन-पोषण भी ठीक ढंग से हो सकेगा। वे केवल पुड़ियाएँ न बाँधें, पतंगें ही न बनाएँ, पटाखों की फैक्ट्री में न लगे रहें बल्कि अच्छी शिक्षा प्राप्त कर समाज की मुख्य धारा से जुड़ें और इज्जत की ज़िंदगी जिएँ ।
शिक्षा का स्तर तभी ऊपर उठेगा जब परिवार सीमित होगा, खर्चा सीमित होगा। आप परिवार का स्तर ऊपर उठाकर अपने समाज और देश का भी स्तर ऊपर उठा सकते हैं । प्रतिभा का उपयोग करें। माना कि राजा, राजा होता है, पर योग्यता हो तो सामान्य कुल में जन्म लेकर भी आप कुशल प्रशासक हो सकते हों। पहले भी दीवान और मंत्री होते थे । किस कारण ? प्रतिभा के कारण ।
मैं युवापीढ़ी से अनुरोध करूँगा कि वह बेहतर शिक्षा पाने के लिए सदा सजग रहे। मैं अभिभावकों से भी कहूँगा कि शिक्षा के मामले में वे लड़के-लड़की में भेद न करें। लड़कियों को भी श्रेष्ठ शिक्षा दिलवाएँ । शादी के दहेज में स्वर्णाभूषण भले ही न दें लेकिन शिक्षा का आभूषण ज़रूर दें ताकि भविष्य में कभी ससुराल में दुर्व्यवहार हो या अन्य किसी
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भी प्रकार की विपदा आ पड़े तो वह अपने पैरों पर खड़ी होकर सम्मानित जीवन व्यतीत कर सके।
युवाओं और युवतियों से एक बात और कहना चाहता हूँ कि जब तक आपका कैरियर न बन जाए, शादी के झमेले में न पड़ें। शादी तो ज़िंदगी में जब चाहेंगे, हो जाएगी पर पहले कैरियर तो परफेक्ट हो। कैरियर बनाकर शादी करोगे, तो तुम्हें लड़की भी उतनी ही परफेक्ट मिलेगी। बिना कैरियर बनाए शादी करना तो बछड़े के कंधे पर गाड़ी जोतने के समान है।
कैरियर बनाने के लिए जो दूसरी बात ज़रूरी है वह है : कड़ी मेहनत। कभी भी मेहनत से जी न चुराएँ। जो मेहनत नहीं करना चाहते उन्हें निम्न दर्जे का जीवन जीने के लिए तैयार रहना चाहिए। भगवान ने हमें आलस्य
की ज़िन्दगी जीने के लिए मनुष्य का जीवन नहीं दिया है। आलस्य हमारा दुश्मन है। जब जीवन है तो कुछ करें और कुछ ऐसा करें कि जो हमें कुछ बनाए। इसलिए कभी किसी काम को छोटा न समझें। कार्य के लिए किसी पर निर्भर न रहें। आज हालात बहुत बदल चुके हैं। सरकार अगर सौ रिक्त । स्थानों की आवश्यकता छापती है तो हजारों लोग आवेदन करते हैं। अभी ऐसा ही हुआ। अख़बार में विज्ञापन छपा कि पुलिस में सौ लोगों की भर्ती की जाएगी। ट्रेन भर-भरकर लोग आए और जब उन्हें नौकरी न मिली तो वापस जाते समय उन्होंने बीच के गाँवों और स्टेशनों में लटपाट की, सरकारी बसों में आग लगाई, तोड़फोड़ मचाई। ज़रा सोचो जिस देश में युवक इस प्रकार का व्यवहार करते हैं वे पुलिस-सेवा में आकर लूट-खसोट नहीं करेंगे तो और क्या करेंगे? ऐसे लोग देश की क्या ख़ाक़ सेवा करेंगे? . इस देश की नसों में मेहनत का खून कम, सुस्ती का खून ज़्यादा है। लोग रातों रात करोड़पति होना चाहते हैं। यहाँ तो हर आदमी के नाम पर
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रोज लॉटरी खुलनी चाहिए। याद रखो, दुनिया में मुफ्त में कुछ नहीं मिलता। अरे, भीख माँगने के लिए भी आख़िर मेहनत करनी पड़ती है। मेहनती कभी भूखा नहीं मरता। मेहनत तो किसी भी क्षेत्र में करो, अपना रंग लाएगी। मेहंदी भी घिसने पर ही अपना रंग लाती है। ज़िंदगी तो खंडप्रस्थ की तरह है। जीना अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती है। मरने के लिए तो कुछ नहीं करना पड़ता, पर जीने के लिए सब कुछ करना पड़ता है। सारे इंतज़ाम, सारी मेहनत जीने के लिए है, सुखी, समृद्ध और सम्मानित जिंदगी जीने के लिए है।। __ आज बुश अगर खुश है तो इस खुशी के कैरियर तक पहुँचने के लिए उन्होंने किस-किस तरह की मेहनत न की होगी? सोनिया अगर शिखर पर है, तो इस कैरियर के पीछे कोई-न-कोई कारण तो अवश्य है। रविशंकर महाराज आज अगर युवाओं के चहेते बने हुए हैं और स्वामी रामदेव जी देश-विदेश में अपनी पहचान बनाने में सफल हुए हैं, तो निश्चय ही इसमें उनकी कठिन मेहनत, महान सोच, महान कार्य-शैली ही प्रमुख है। ____ मैं मेहनत में विश्वास रखता हूँ। मैं चाहता हूँ हर व्यक्ति हर रोज़ बारह घंटे अवश्य मेहनत करे, फिर चाहे वे बारह घंटे दिन के हों या रात या के, पर मेहनत अवश्य करें। बात चाहे व्यक्तिगत स्तर की हो या पारिवारिक स्तर की, मेहनत अपना रंग अवश्य लाती है। यह व्यक्ति को सफल अवश्य बनाती
है।
जिन लोगों की माँगने की आदत है, मेरा अनुरोध है कि माँगो मत। किसी भी प्रकार की चोरी भी मत करो। किसी के चम्मच या किसी के जूते मत चुराओ। आत्म-निर्भरता के छोटे-छोटे काम शुरू कर दो। इस बात को मन से निकाल दो कि लोग क्या कहेंगे? लोग समृद्धि की इज्जत करते हैं। वे ज्ञान और चरित्र पैसे की पूजा ज़्यादा करते हैं। आप त्याग भी कीजिए, दान भी दीजिए, सहयोग भी कीजिए। आपके पास धन है तो ऐसे
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लोगों को सहयोग भी दीजिए जो ग़रीबी की रेखा से नीचे हैं। योग्य बच्चों को पढ़ाइए। उनकी पढ़ाई को आप गोद लीजिए ताकि वे आत्मनिर्भर हो सकें। रोज-रोज पाँच किलो आटा दान करने के बजाय उस मूल्य का पैसा ख़ुद के पास इकट्ठा करके समाज के किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प कीजिए। उसे छोटा व्यापार करने करवा दीजिए। वह आपका कृतज्ञ होगा कि आपके कारण वह अपने बच्चों का पालन-पोषण करने में समर्थ हो सका। किसी को आत्मनिर्भर बनाना मानवता की बहुत बड़ी सेवा है। ___ आप अपने पैसे का सदुपयोग दूसरों का भविष्य बनाने में भी करें। अपनी सफलता का स्वाद दूसरों को भी चखाएँ। किसी प्रतिभावान ग़रीब छात्र को गोद ले लें, उसकी शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध करें। इस तरह सहयोग करते हुए एक-दूसरे के व्यक्तित्व-निर्माण में आप सहभागी हो सकते हैं।
तीसरी बात : जो भी कार्य करें, पूरी तन्मयता से करें। अपनी पूर्णता से करें। उस कार्य के सुधार और विकास के लिए सदा प्रयत्नशील रहें। लकीर के फ़क़ीर न बनें। कार्य और वस्तु की गुणवत्ता का पूरा-पूरा ध्यान रखें। अपने उत्पादन को श्रेष्ठतर बनाएँ। सुधार की ओर ध्यान दें। यंत्रवत् मशीन की तरह न चलें। क्या आपने कभी चाइनीज मार्केट को समझने की कोशिश की है? उसने सारे विश्व की व्यापार-व्यवस्था को नये सिरे से दुरुस्त करने के लिए मज़बूर-सा कर दिया है। हर चीज़ सस्ती से सस्ती, पर हर चीज में हर दिन नवीनता, हर क्षेत्र में हस्तक्षेप! आख़िर क्या कारण है? मशीनों का अपनी तरह छह-आठ घंटे नहीं, चौबीसों घंटे उपयोग, तीव्र उत्पादन करने वाली मशीनों का उपयोग करते हए 'उन्होंने पुराना सारा खराब माल हटा दिया, नया माल लगा लिया'। आज पूरे विश्व में चाइनीज़ चीज़ों का कब्जा हो गया है। मैं इसे चाइना देश का कैरियर कहता हूँ। एक देश का श्रेष्ठ और सफल केरियर। आप भी उनसे प्रेरणा लीजिए और अपने को, अपनी सोच को,
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अपनी कार्य-शैली को, अपने उत्पादन को, अपनी व्यवस्था को बेहतर बनाते रहिए। ___एक दफ़ा की बात है। मेरे साथ कुछ लोग चल रहे थे। वे कैरियर बनाने के गुर जानना चाहते थे। तभी हम वहीं निकट में बन रहे मंदिर के पास पहुँचे। कारीगर काम कर रहे थे। मैंने एक कारीगर से पूछा – 'क्यों भाई, क्या कर रहे हो' उसने कहा-'क्या करें, भाग्य में पत्थर फोड़ना लिखा है सो पत्थर फोड़ रहा हूँ।' थोड़ा-सा और चले तो पाया कि एक कारीगर और काम कर रहा था। उससे भी वही प्रश्न पूछा। उसने कहा - 'रोजी-रोटी की व्यवस्था कर रहे हैं, रोज आते हैं पत्थर की घड़ाई करते हैं
और चले जाते हैं।' मैं थोडा और आगे बढ़ा। वहाँ भी एक कारीगर से यही पूछा कि 'भाई क्या कर रहे हो'? उसने कहा – 'सा'ब, एक मंदिर बना रहे हैं। धंधा तो रोज करते हैं, पर सौभाग्य है कि इस बार मंदिर बनाने का काम मिला है। इसी बहाने श्रम की चार बूंदें प्रभु के काम तो आ जाएँगी।' मैंने अपने साथ चलने वाले लोगों से पूछा- 'क्या आप समझे, इनकी बातों का राज़?'
तीन व्यक्ति, तीनों एक ही काम कर रहे हैं, पर तीनों के जवाब अलग-अलग। पहला कहता है - पत्थर फोड़ रहा हूँ - अर्थात् वह मज़बूरीवश कार्य कर रहा है, पत्थर फोड़ना उसकी विवशता है। इसलिए वह मजदूर है। दूसरा कहता है – 'रोजीरोटी की व्यवस्था कर रहा हूँ।' अर्थात् वह मशीन की तरह काम कर रहा है, इसलिए वह कारीगर है। तीसरा इसे सौभाग्य मान रहा है, इसलिए लगन से, समर्पण से काम कर रहा है। कैरियर उन्हीं का बनता है जो मन लगाकर कार्य करते हैं। मन लगाकर किया हुआ काम कामयाबी का द्वार बन जाता है और बेमन से किया गया काम ही विफलता का आधार बनता है।
चौथी बात : कैरियर बनाने के लिए पर
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मन लगाकर निरन्तर अभ्यास करें। एक ही कक्षा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में एक / प्रथम आ जाता है और एक बमुश्किल पास होता है। क्यों'? क्योंकि एक निरंतर कड़ी मेहनत करते हुए पढ़ रहा है और एक अपनी अमीरी के मद में पढ़ाई की ओर ध्यान ही नहीं दे रहा है। आप सभी को कछुए और खरगोश की कहानी ज्ञात है। कछुआ जो कैसे भी नहीं जीत सकता था, लेकिन निरन्तर चलता रहा और जीत गया, वहीं कछुए को दीन और तुच्छ मानने वाला खरगोश हार गया। छोटी से छोटी घटना से भी प्रेरणा लीजिए। चींटी को देखो-वह अपने से चार गुना वजन के खाद्य पदार्थ को भी ढोने में समर्थ होती है। अगर अकेले नहीं ले जा पाती तो चार और चींटियाँ साझीदार बनकर उस पदार्थ को ले जाती हैं । संघर्ष और मेहनत करना चींटियों से सीखें।
विकास करने के लिए तरक़ीब कैसे लगाई जानी चाहिए - यह किसी बगुले से सीखो। भोजन पाने के लिए वह कितने प्रयत्न करता है, कभी एक टांग पर खड़ा हो जाता है, कभी चोंच ऊपर कर लेता है, यह है तरक़ीब कभी गर्दन मोड़ लेता है। कारीगरी सीखनी हो तो मकड़ी से सीखें कि वह किस तरह से अपना जाल बुनती है। सार बात इतनी सी है कि निरन्तर अभ्यास और प्रयत्न ही मंज़िल तक पहुँचता हैं।
रसरी आवत जात तैं, सिल पर पड़त निशान॥
करत-करत अभ्यास के, जड़ मति होत सुजान। पत्थर अगर लगातार गुड़कता रहे तो वह भी गोल हो जाता है। यदि पत्थर पर यत्नपूर्वक छेनी चलाते रहें तो प्रतिमा तराश ली जाती है। सामान्य व्यक्ति भी सतत प्रयत्न करता रहे तो बुद्धि की धार तीक्ष्ण हो सकती है। आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि मैं बचपन में कोई होशियार विद्यार्थी नहीं रहा था। यहाँ तक कि नौवीं कक्षा सप्लीमेंट्री में उत्तीर्ण की। तब मेरे टीचर ने मुझे रोककर कहा – 'तुम्हारा बड़ा भाई तुम्हारे लिए इतनी मेहनत कर इतना
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पैसा कमाता है कि तुम पढ़-लिख सको। पर क्या तुम उन्हें यह परीक्षाफल ले जाकर दिखाओगे' ? उस टीचर की कही हुई बात ने मेरे बाल-मन पर गहरा प्रभाव डाला। उस दिन का दिन है कि आज तक मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा । निरंतर गहन अध्ययन किया, खूब चिंतन-मनन किया, अपनी आध्यात्मिक शक्ति को जाग्रत किया और इस मुकाम पर पहुँचा । आज भी, आप देखते होंगे कि हम मेहनत करते हैं, पसीना बहाते हैं, तब कहीं रोटी खाते हैं । हम निठल्ले बैठे-बैठे समाज का अन्न नहीं खाते हैं। आज भी हम अपने-आप को समाज, परिवार तथा देश के कल्याण हेतु प्रस्तुत किए रहते हैं । अपना प्रत्येक कार्य अपने हाथ से करते हैं । हमारा स्वाध्याय, साधना, आराधना, चिंतन-लेखन सभी सही समय और व्यवस्थित रूप से प्रतिदिन जारी रहते हैं ।
तुम अगर मेहनत नहीं करोगे तो जियोगे कैसे? योग तो उन लोगों को करना पड़ता है जो शरीर से श्रम नहीं करते। मजदूर को सोने के लिए नींद की गोली नहीं लेनी पड़ती। सड़क के किनारे बिछाया अख़बार और सो गए गहरी नींद में। आप भी मेहनत और अभ्यास करो ।
जहाँ गुरु सोते हैं वहाँ छात्र जागकर अभ्यास किया करते हैं, तो ऐसे ही बच्चे आगे बढ़ते हैं और उनका विकास होता है ।
कैरियर बनाने का अगला बिन्दु है: स्वयं पर विश्वास रखें। जब आपको विश्वास है कि यह सही है तो उसे ही कीजिए। अपने विश्वास पर संदेह मत कीजिए । आख़िर सब लोगों में ईश्वरीय चेतना का अंश विद्यमान है । अपने मन को कभी कमज़ोर न होने दें। आत्म-विश्वास ही जीवन की शक्ति है और प्रगति की सीढ़ी है । आत्मविश्वास में कैरियर का राज़ छिपा है।
याद रखिए जो धनुष मुड़ने को तैयार नहीं होते, वे चटककर टूट जाया करते हैं और जो घड़े नदियों में झुकने को तैयार नहीं होते, वें सदा रीते के रीते रह जाया करते है । वैसे भी घमंडी का सिर नीचा ही होता है, उसे उसकी खुद की आत्मा भी नहीं
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चाहती। माउंट एवरेस्ट के शिखर को सबसे पहले छूने वाले एडमंड हिलेरी और तेनसिंह नोरके थे। आपको पता है हिलेरी तीन बार हिमालय
की सर्वोच्च चोटी पर पहुँचने में असफल रहा, फिर भी उसने हिम्मत न हारी और माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाला पहला व्यक्ति बना। एवरेस्ट पर चढने में तीन बार नाकामयाब रहने के बाद भी जब न्यूजीलैंड में उसके सम्मान में पार्टी आयोजित की गई तब पत्रकारों ने उससे पूछा - 'तुम लगातार तीन बार असफल रहे हो, इस बारे में तुम्हारी क्या प्रतिक्रिया है?' हिलेरी ने एवरेस्ट की चोटी की तस्वीर को देखते हुए कहा – 'ए एवरेस्ट, तुम्हारी यह मजबूरी है कि तुम एक इंच भी और नहीं बढ़ सकते। एक दिन मैं तुम्हें ज़रूर फतह कर लूँगा'। और हम सब जानते हैं कि उन्होंने ऐसा ही किया।
आप भी अपने विश्वास को न खोएँ। हर हालत में आत्म-विश्वास बरकरार रहना ही चाहिए। दुनिया की कोई ताक़त आपके बढ़ते हुए कदमों को नहीं रोक सकती। सभी अपनी-अपनी आत्म-शक्ति को पहचानें। धरती पर आए है तो कुछ फूल खिलाए, कुछ सृजन करें, आने वाले कल का इतिहास लिखो। निरर्थक जिंदगी मत जीयो। व्यर्थ के काम करते हुए समय मत गँवाओ। ध्यान, योग और प्राणायाम के सहारे अपनी हीनभावना की ग्रंथि को बाहर निकाल दो। निराशा से ऊपर उठें। हमें जीवन कुछ करने के लिए मिला है। बेहतर सपने देखकर बेहतर भविष्य बनाएँ।
जामवन्त ने हनुमान से कहा था - 'तुम अपनी सोई हुई शक्ति को पहचानो। तुम्हारे अंदर इतनी ताक़त है कि तुम सात समुद्र पार कर सकते हो, लंका पार कर सकते हो, फिर क्यों इस तरह उदास, निराश होकर बैठे हो? तुम राम का पवित्र कार्य करने जा रहे हो, सीता के सतीत्व का रक्षण करने निकले हो, फिर यह निराशा कैसी'?
तुम तो सबके संकटमोचक हो और जब भगवान का काम पड़ गया तो निराश होकर बैठ गए? और तब हनुमान हुए संकटमोचक। हनुमान यानी
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आत्मविश्वास । आप भी अपने हनुमान बनें और अपने आपको दें नई ज़िंदगी नई संजीवनी ।
आखिरी बात, कैरियर बनाने का पाँचवाँ मंत्र है, 'बेहतर प्रजेन्टेशन' । अपना प्रस्तुतीकरण बेहतरीन रखें। शांति, विश्वास, विनम्रता और विश्वास से भरा इंसान और उसका सद्व्यवहार किसी भी महान् कैरियर के बीज की तरह है। अच्छी सोच रखिए और अच्छा नज़रिया भी । स्फूर्ति, उमंग और ऊर्जा से भरपूर नज़र आइए। आपके रहन-सहन, तौर-तरीके, बोलचाल, वाणी-व्यवहार की स्पष्ट छाप सब पर पड़नी चाहिए। लोगों के दिलों को जीतने की कला जीवन में लाइए। बड़े लोगों को प्रणाम, नमस्कार अवश्य कीजिए। उनके पाँव छूएँ । हमेशा मुस्कुरा कर बात करें । आपका व्यवहार हर हमेशा प्रेमपूर्ण और मधुर होना चाहिए - सभी के साथ। सम्मानपूर्ण और आत्मीयतापूर्ण वातावरण बनाएँ । जीवन के चक्के में विनम्रता का तेल डालिए। कभी भी किसी से झगड़ा न करें। अगर आप शहद इकट्ठा करना चाहते हैं तो मधुमक्खी के छत्ते को डंडा न मारें । क्रोध को अपने काबू में रखिए अन्यथा कैरियर चौपट हो जाएगा। गलत सोहबत और गलत आदतें भी कैरियर को प्रभावित करते हैं, उनसे बचें । अच्छा साहित्य पढ़ें, दुर्व्यसनों को छोड़ें।
अपने जीवन की धाराओं को बदलें ऊँची सोच रखिए और ऊँचे सपने भी । सावधान, ऊँचे सपनों का मतलब शेख चिल्ली न बन बैठें। जो भी सपने देखें, उन्हें पूरा करने के लिए प्राणपण से कटिबद्ध रहें । सपने देखो यानी महान् लक्ष्य बनाओ और उसे पूरा करने के लिए लगन से मेहनत करो। आगे बढ़ते हुए लोगों से हमेशा प्रेरणा लो और ख़ुद आगे बढ़ो। चाँद के सपने देखने वाला अगर दिल से मेहनत करेगा, तो भले ही चाँद-सितारों तक न भी पहुँच पाए, पर किसी-न-किसी शिखर तक तो अवश्य पहुँच जाएगा, कुछ-न-कुछ फूल तो अवश्य ही खिला लेगा ।
Success
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जीने की कला -2
गुस्सा छोड़िए इमेज़ बनाइए
क्रोध का करें निरोध
मुस्कान की जलाएँ ज्योत
क्रोध हमारे स्वास्थ्य, शांति और कैरियर का शत्रु है। क्रोध प्रीति का नाश करता है, सेहत का शत्रु है और कैरियर को निगल जाने वाला राक्षस है। यह समुद्र की तरह बहरा होता है और आग की तरह उतावला। क्रोध हँसी की हत्या करता है और ख़ुशी को ख़त्म । सही समझ विकसित नहीं होने के कारण क्रोध की चिंगारियाँ जीवन पर्यन्त उठती रहती हैं। शायद ही कोई इन्सान होगा जिसने कभी स्वयं गुस्सा न किया हो या दूसरे के गुस्से का सामना न किया हो। जो चिंता और ईर्ष्या नहीं करता है उसे भी गुस्सा आ सकता है। पिता को भी क्रोध आता है और पुत्र को भी, सास भी कभी क्रुद्ध हो जाती है और बहू भी। विद्यार्थी, व्यापारी, अधिकारी, कर्मचारी - हर वर्ग के, हर तबके के व्यक्ति को क्रोध तो आता ही रहता है।
अपने जीवन का मूल्यांकन करने पर आपको अहसास होगा कि जब भी
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आपको जीवन में किसी प्रकार की हानि उठानी पड़ी है तब किसी-न-किसी रूप में क्रोध की जिम्मेदारी भी रही है। परिवार के विघटन में जितनी भूमिका धन, .. जायदाद या ज़मीन की होती है, उससे अधिक क्रोध की होती है। क्रोध में कही गई बातें टूटन का कारण बनती हैं । क्रोध हमारे व्यक्तिगत हानि का कारण है। क्रोध ही। व्यापारी और ग्राहक के मध्य दूरियाँ पैदा करता है, समाज में दरार डालता है, जातियाँ आपस में लड़ जाती हैं, दो देशों के मध्य दुश्मनी का कारण बन जाता है।
ओसामा बिन लादेन ने जो कृत्य किया, अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर ध्वस्त करवाया, वापस अमेरिका ने जो युद्ध किए, वह सब एक-दूसरे के गुस्से का ही तो परिणाम है। अगर तब अमेरिका थोड़ी शांति और धैर्य से काम लेता, लादेन की तरह उग्र न हुआ होता तो अफ़गानिस्तान और ईराक तबाह होने से बच जाते । शांति-प्रक्रिया के तहत, दुनिया को वह मंजर देखने को न मिलता, जो क्रुद्ध अमेरिका ने अफ़गानिस्तान और ईराक में मचाया। बड़े-से-बड़े दावानल को भी समय रहते शांत कर दिया जाए तो विनाश होने से बच जाता है ; अन्यथा कई समुद्रों का पानी पीकर भी दावानल को शांत नहीं किया जा सकता। समय रहते संभल जाएँ तो एक प्याले पानी से बड़े-से-बड़े दावानल को बुझाया जा सकता है। रावण, कंश, दुर्योधन, गौशालक, तैमूर लंग, चंगेज खाँ - ये सब क्रोध के ही अवतार हैं। राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, गाँधी, नोवेल ये सब शांति के अवतार है। आखिर दुनिया में वही पूजे जाते हैं जो शांतिमय होते हैं। दुत्कारा उन्हें जाता है जो खुद भी अशांत होते हैं और दूसरों को भी अशांत-उद्विग्न करते हैं। ___ क्रोध तो साफ़ तौर पर पागलपन है। अगर उसे समय रहते वश में कर लिया जाए तो ठीक है वरना हम क्रोध के वश में हो जाते हैं। क्रोध हमारा आका, हम क्रोध के गलाम। क्रोध तो अपने आप में भयंकर कैंसर है। क्रोध करना अपने पाँव पर कुल्हाड़ी चलाने जैसा है, क्रोध करना उस डाल को काटना है जिस पर व्यक्ति ख़ुद बैठा है। अग्नि तो उसे जलाती है जो उसके पास जाता है, पर क्रोध तो पूरे कुटुम्ब को, हर संबंध को जला डालता है।
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परिवार-परिवार के बीच, समाज और समाज के बीच, संसारी और संन्यासी के बीच हमारा बेलगाम गुस्सा ही दूरियां बनाता है। मेरे पास लोग आते हैं और कहते हैं उनके बच्चों को गुस्सा बहुत आता है। वे कहते हैं, बच्चों को प्रतिज्ञा दिलवा दूं कि वे गुस्सा नहीं करेंगे। हालांकि बच्चों पर मेरी बात का, मेरी शांति का असर पड़ता है, पर मेरा प्रश्न होता है कि कहीं माता-पिता में से तो किसी को गुस्सा नहीं आता? क्योंकि कोई-न-कोई तो गुस्सैल स्वभाव का होता ही है। ऐसी स्थिति में तब वे कैसे अपेक्षा रख सकते हैं कि बच्चा गुस्सा न करे। यह तो आनुवंशिक गुण हो गया। जन्मजात दुर्गुण हो गया है यह । हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे क्रोध से मुक्त हों, सबके प्रति प्रेम और सम्मान से भरे रहें, तो अच्छा होगा कि हम स्वयं को गुस्से और गाली-गलौच से मुक्त करें।
क्रोध दूसरों को ही नहीं स्वयं को भी हानि पहुँचाता है। हम अख़बारों में पढ़ते हैं - किसी ने आत्महत्या कर ली, कोई जलकर मर गया, कोई दुर्घटना हो गई। इनके पीछे क्या कारण है ? कहीं-न-कहीं क्रोध मूल में रहता है।
क्रोध ऐसी बीमारी है जो हर किसी के जीवन में छाई हुई है। हर किसी के घर में इसकी आग सुलगती रहती है। प्रत्येक समाज, जाति और धर्म के बीच में इसकी चिंगारियाँ सलगती रहती है। क्रोध इतना घातक है कि छोटे से छ: माह के बच्चे की बात को न सुना-समझा जाए तो वह भी गुस्से से हाथ-पाँव पटकने लगता है, रो-रोकर हल्का हो जाता है। दो वर्ष के बालक को मांगने पर चीज़ न दी जाए तो वह भी गुस्से से भरकर अपने खिलौने तोड़ डालता है या अन्य किसी प्रकार से अपना गुस्सा प्रकट करता है। दस वर्ष का बच्चा गुस्से में घर से भाग जाता है। अठारह साल का बच्चा अपने माता-पिता से गुस्से में दुर्व्यवहार करने लगता है, तीस वर्ष का युवक शादी हो जाने पर गुस्से में अपना अलग घर बसा लेता है। पिता क्रुद्ध हो जाए तो दो साल के बच्चे को भी चांटा मार सकता है। अठारह वर्ष के युवक को भी पीट डालता है।
क्रोध में पति अपनी लक्ष्मी-स्वरूपा धर्मपत्नी पर ही हाथ उठा बैठता है।
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गाली-गलौच तो अमुमन करता ही है। आखिर, सम्पूर्ण संसार को प्रेम, शांति और एकता की बात कहने वाला व्यक्ति खुद के ही दिल में रहने वाले क्रोध को क्यों नहीं जीत पाता? क्रोध के कारण अपने ही कुटुम्ब और कैरियर को दुःखी और चौपट क्यों कर
डालता है?
क्रोध तो वह कंश है जो हमारी बुद्धि, विवेक, घर-परिवार, श्रद्धा-भक्ति सबको गुलाम बना लेता है। जैसे ही क्रोध आया बुद्धि के दरवाजे बंद हो जाते हैं, विवेक बाहर चला जाता है। शायद शराबी भी शराब पीकर उतना नुकसान नहीं करता होगा जितना क्रोधी क्रोध करके नुकसान कर डालता है। __कर्म-बंधन की दृष्टि से देखेंगे तो क्रोध के कारण जितने कर्मों का बंधन होता है उतना अन्य किसी कारण से नहीं होता। सज्जन का क्रोध क्षण भर रहता है, साधारण आदमी का क्रोध दो घंटे रहता है । उग्र व्यक्ति का क्रोध एक दिन
और एक रात तक रहता है, पर निकृष्ट लोगों का क्रोध तो मरते दम तक नहीं मिटता। कई लोगों का क्रोध तो जन्म-जन्मांतर तक उनका पीछा नहीं छोड़ता। इसीलिए बुद्ध ने कहा था - 'वैर कभी वैर से शांत नहीं होता, वैर जब भी शांत होता है तो प्रेम से ही, क्षमा से ही शांत होता है। यदि किसी ने चोरी की है तो जन्म-जन्मांतर तक शायद यह पाप उदय में न आए पर क्रोध से मरकर किसी का बुरा कर डाला है, तो जन्मों तक वह कर्म आपका पीछा नहीं छोड़ेगा। याद कीजिए भगवान महावीर को जिन्हें एक जन्म में क्रोध करने के कारण कितने जन्म-जन्मांतर और करने पड़े।
बताते हैं - भगवान महावीर ने अपने पूर्व के किसी जन्म में अपने शैय्या पालक को आदेश दिया था कि जो नृत्यांगनाएँ नृत्य कर रही हैं, उन्हें देखते और संगीत सुनते हुए जब मुझे नींद आ जाए तो नृत्य-संगीत बंद करवा देना। आदेश देने के बाद थोड़ी देर में उन्हें नींद आ गई। आधी रात के बाद जब उनकी नींद खुली तो उन्होंने देखा कि संगीत अभी भी बज रहा है, नृत्य भी जारी है। तत्काल उन्होंने शैय्या पालक को तलब किया कि अभी तक नृत्य-संगीत क्यों चल रहा है, जबकि मेरा आदेश था कि मझे नींद आ जाने पर नृत्य-संगीत बंद कर दिया जाए। तुमने मेरे आदेश की अवहेलना कैसे की? शैय्यापालक ने कहा, 'राजन गुनाह माफ हो! मैं संगीत सुनने और नृत्य देखने में इतना तल्लीन
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हो गया था कि आपका आदेश विसरा बैठा। राजा ने कहा, 'राजाज्ञा की अवहेलना का दंड जानते हो? और इतना कहकर क्रोध में अपने अंगरक्षक से खौलता हुआ शीशा मंगवाया और उस शैय्यापालक के कानों में डलवा दिया।'
एक तीर्थंकर की आत्मा, एक अवतार पुरुष की । आत्मा भी अगर क्रोध कर ले तो वह उसके प्रगाढ़ अनुबंधों से छूट नहीं सकती। यही कारण रहा कि पूर्वभव में शैय्यापालक के कानों में शीशा डलवाने के कारण महावीर के कानों में कीलें ठोके गए। क्रोध का परिणाम क्रोध और शांति का परिणाम शांति होता है। प्रेम का परिणाम प्रेम और वैर का परिणाम वैर होता है। यदि महावीर भी क्रोध करते हैं तो उन्हें क्रोध का ख़ामियाजा भुगतना पड़ेगा। पार्श्वनाथ भी अगर कमठ को लताड़ेंगे तो कमठ भी मेघमाली बनकर पार्श्वनाथ पर पत्थर फेंकेगा। यह तो प्रकृति की व्यवस्था है कि जैसे बीज बोओगे, लौटकर वैसे ही फल मिलेंगे। आपने किसी का सम्मान किया तो आपको भी सम्मान मिलेगा और अपमान करोगे तो वापस अपमान ही हिस्से में आएगा। प्रकृति वही लौटाती है जो हम देते हैं । जीवन एक गूंज है जैसा कहोगे, वैसा ही गूंजेगा। प्रेम और सद्व्यवहार की वापसी के लिए कृपया क्रोध, गाली, उत्तेजना, आवेश, चिड़चिड़ापन जैसे बीज मत
बोइए।
याद रखिए क्रोध तो छिपी हुई मौत है । एक झौंका आता है और सब कुछ तहस-नहस कर जाता है। क्रोध आता है तो अंधा कर डालता है और जाता है तब तक सब कुछ तबाह कर जाता है। क्रोध तो चांडाल है जो छूता है और आदमी को अछूत-अपवित्र बना जाता है।
एक ब्राह्मण गंगा स्नान करके आ रहा था कि सामने से आते हुए चांडाल से टकरा गया। टकराते ही ब्राह्मण चिल्लाने लगा, 'ए चांडाल, हरामजादे ! तूने मुझे छू दिया, पता है अब मुझे क्या प्रायश्चित करना पड़ेगा?' चांडाल जाति के व्यक्ति ने कहा, 'गुनाह माफ हो महाराज, मुझसे गलती हो गई, कृपया माफ कर दें।' ब्राह्मण पंडित कहां मानने वाला था, उसने चांडाल को पीट डाला और चला गंगा में पुनः स्नान करने के लिए। इधर वह डुबकी लगा रहा था कि उसकी नज़र पड़ी उस चांडाल पर जो गंगा में डुबकी लगा रहा था। पंडित ने
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पूछा - 'तू क्यों गंगा में डूबकी लगा रहा है, मुझे तो तूने छू लिया था, इसलिए मैं तो डुबकी लगा रहा हूँ। चांडाल जाति के व्यक्ति ने कहा - । 'महाराज मुझे भी एक चांडाल ने छु लिया है, इसलिए डुबकी लगा रहा हूँ।' ब्राह्मण ने कहा, तुझे किसने छू लिया, मुझे आपने छू लिया - वह बोला। क्या, मुझे तूने चांडाल कहा, ब्राह्मण क्रोध से तमतमाया।व्यक्ति ने कहा 'महाराज, मैं तो जन्म का चांडाल हूँ पर आप तो स्वभाव से हैं। अरे, मैंने तो आपको केवल शरीर से छुआ, पर आपके चांडाल स्वभाव ने ही मुझे छूकर अपवित्र कर डाला।
याद रखें, जन्म से कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र नहीं होता। अगर व्यक्ति का स्वभाव गलत है तो ब्राह्मण कुल में पैदा होकर भी वह शूद्र है और अगर कोई शूद्र कुल में पैदा हुआ है लेकिन सबको प्रेम, आदर और सम्मान देता है तो वह गुणों से ब्राह्मण है। जन्म से जाति का संबंध नहीं है न वह हिन्दू है, न जैन है । अपने कर्मों से ही वह हिन्दू, जैन या मुसलमान होता है। ____ जैन वह नहीं, जो जैन कुल में पैदा हो गया है, जैन वह है जो स्वयं को जीत लेता है। आप किसी भी कल में क्यों न पैदा हुए हों, लेकिन यदि आप अहिंसाव्रती हैं, चोरी और शोषण से बचे हुए हैं, व्यसनमुक्त और शीलव्रत धारी हैं तो निश्चित रूप से आप जैन हैं। व्यक्ति की प्रकृति अच्छी होनी चाहिए। किसी के लिए त्यागी, वैरागी, संन्यासी बनना सरल हो सकता है, लेकिन क्रोध पर काबू रखना संतों के लिए भी मुश्किल होता है। तीस दिन का उपवास करके स्वयं को मासक्षमण का तपस्वी कहना आसान होता है, लेकिन अपने मन में सदा शांति और समरसता रखना यह मासक्षमण का तप करने से भी अधिक कठिन हैं।
एक पुरानी घटना है - एक व्यक्ति का तीस दिन का उपवास और तीसवें दिन वे महाशय हमारे पास तीसवें दिन का व्रत लेने आए। तभी किसी ने हमें बताया कि ये सज्जन दो भाई हैं और दोनों के आपस में कोर्ट में केस चल रहे हैं। आप कुछ ऐसा करें कि इस मौके पर दोनों भाई एक हो जाएँ। बात सहज और
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प्रासंगिक बन गई। हमने भी सोचा कि यह मासक्षमण करने वाला तपस्वी हम इसे समझाएँगे, झट से समझ में आ जाएगी। दूसरे भाई से पूछा, क्यों जी आपके भाई ने तीस उपवास किए हैं। इसके उपलक्ष में आपने क्या किया? उसने कहा, 'महाराज श्री क्षमा चाहता हूँ, मैं कुछ भी न कर पाया।' इतने दिनों से तो हम आपस में मिले भी नहीं हैं, पर मैं यह सोचकर आ गया है कि भाई ने तीस उपवास किये हैं तो मेरा जाना पारिवारिक कर्तव्य है। मैं केवल कर्त्तव्य निभाने आ गया हूँ। हमने कहा, ठीक है आपके बड़े भाई ने तीस उपवास किये हैं, आप कुछ और भले ही न कर पाएँ लेकिन इस तपोमय अवसर पर एक पुण्य कार्य अवश्य करें। आप लोगों के बीच जो कोर्ट केस चल रहे हैं उन्हें वापस ले लीजिए। छोटे भाई ने दो मिनट सोचा और बोला, ठीक है बापजी, आप कहते हैं तो मैं अन्य कुछ भले ही न कर पाया तो क्या इतना ज़रूर करूँगा, भले ही मुझे घाटा हो गया है, फिर भी कल कोर्ट जाकर अपना केस उठा लूँगा।
हम छोटे भाई को प्रेरित कर रहे थे कि जाकर बड़े भाई से माफी माँग लो और बता दो तुम अपना केस वापस ले रहे हो। छोटे भाई ने ऐसा ही किया, लेकिन बड़ा भाई जिसने मासक्षमण की तपस्या की थी धिक्कार है जिसने छोटे भाई के माफी मांगने पर भी मुँह फेर लिया। ऐसे तपस्वी को क्या तपस्वी कहेंगे! तपस्या करने का केवल इतना अर्थ नहीं है कि वह अपने तन को तपाए, तपस्या करने का अर्थ है मन को तपाए, मन को सुधारे। धर्म की शुरुआत मंदिरमस्जिद से नहीं होती, जीवन में अपनाई जाने वाली क्षमा, सरलता, कोमलता से ही धर्म की शुरुआत होती है। अगर क्षमा जैसे तत्त्वों को न अपनाया, तो करते रहो तपस्या पर तपस्या का कोई मतलब नहीं है। जिसने अपने मन को सुधारा उसकी तपस्या ही सार्थक है । जिसने अपने अन्तर्मन को शांत कर लिया उसने ही वास्तविक धर्म को प्राप्त किया है। संत बनना आसान है लेकिन शांत होना, संत बनने से भी कठिन है। नाम पूछो तो शांतिचंद जी और थोड़ासा छेड़ दो तो अशांतिचंद हो जाते हैं। सारी शांतिबाइयाँ एक मिनट में गुस्सैल बाइयाँ बन जाती
___ लोग धर्म स्थान पर जाकर एक घंटा सामायिक कर लेंगे, पर घर जाकर अगर टेढ़ी बात
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सुनने को मिल गई तो सारी समता धरी रह जाती है। एक महिला सामायिक करके घर पहुँची तो देखा कि एक भिखारी घर से बाहर निकल रहा है। उसने पूछा - क्यों भाई मेरे घर में किसलिये गए ? भिखारी ने कहा - मैया, भूखा हूँ कुछ माँगने गया था। उसने पूछा - कुछ मिला ? नहीं मिला 'क्यों?' क्योंकि आपकी बहू ने मना कर दिया कि हम लोग कुछ देते-लेते नहीं हैं - भिखारी ने कहा। बह ने मना कर दिया, उसे क्या हक है मना करने का - सास बड़बड़ाई - चल तू मेरे साथ आ। भिखारी ने सोचा - मांसा तो बहुत दयालु हैं। भिखारी सास के साथ वापस घर के दरवाजे पर पहुँचा। सास अंदर गई और बहू पर चिल्लाई - तुझे क्या अधिकार है भिखारी को मना करने का, अगर मना करना है तो मैं करूँगी और भिखारी की ओर मुड़कर बोली - ऐ चल जा।
सामायिक करना बहुत अच्छी बात है पर सामायिक की समता की साधना करना सामायिक से भी ज्यादा ज़रूरी है। यदि आप स्वयं को शांति और आनन्दमय बनाकर रखते हैं तो आप सच्चे संत हैं। घर-बार छोड़कर, कपड़े बदलकर अगर कोई संत बने तो सौभाग्य है, पर स्वभाव का संत तो प्रत्येक को होना ही चाहिए।
गुस्सा घर परिवार में ही ज्यादा होता है। पति-पत्नी, पिता-पुत्र, सास-बहू में अधिक गुस्सा होता है। बहू-ससुर कभी गुस्सा नहीं होते, बेटी और बाप के बीच में कभी गुस्से का निमित्त नहीं बनता। न जाने कितनी मन्नत-मनौतियों से आपने पति या पत्नी पाई है फिर लड़ने का क्या कारण है? अरे भाई, आपस में प्रेम से रहो, आपको साथ में जीना है, तो एक ने कहा और दूसरा मान ले तभी तो आपका संबंध शांति से चलेगा। अगर दोनों अपनी-अपनी चलाएँगे तो हालत उल्टी ही होती जाएगी। इसलिए अपने आपको प्रेममय और शांतिमय बनाएँ। अगर आप धर्म में और ईश्वर में आस्था रखते हैं तो गले में आए हुए कफ के समान ही अपने गुस्से को थूक दें।
गुस्सा गलती होने से पैदा होता है। हमारी अपेक्षाएँ जब-जब उपेक्षित होती हैं तब-तब हमें गुस्सा आता है। व्यक्ति को हमेशा दूसरों की गलती देखकर ही गुस्सा आता
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है। स्वयं के द्वारा गलती हो जाने पर किसी को भी गुस्सा नहीं आता। अगर आपको कोई टक्कर मारता है तो आपको गुस्सा आता है, लेकिन जब आप किसी को टक्कर मारते हैं तो गुस्सा आता है ? नहीं, कभी नहीं । हम हमेशा दूसरों की गलती देखते हैं पर अगर अपनी गलती पर ध्यान देना शुरू कर दें तो वहीं से सुधार की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। पुरुष लोग शैविंग करते हैं - जब कभी शेविंग करते हुए ब्लैड लग गई तो क्या आपको गुस्सा आया ? क्या कभी ब्लैड तोड़कर फैंकी कि उसने आपका गाल काट दिया' नहीं, बल्कि झट से डेटॉल लगाया और चले गए अपने काम पर। कभी खाना खाते वक्त दांतों से गाल कट जाता है क्या आपको गुस्सा आता है ? नहीं! आपको मच्छर ने काटा, खुजली आई, क्या गुस्सा आया, नहीं। आप चल रहे थे, चलते-चलते ठोकर खाकर गिर पड़े आपको अपने पांवों पर गुस्सा आया, नहीं आया, कभी भी व्यक्ति को अपनी गलती पर गुस्सा नहीं आता ? गुस्सा सदा दूसरों की गलती पर आता है ।
दूसरी बात गुस्सा हमेशा कमजोर पर आता है। बेटा बाप पर जल्दी से गुस्सा नहीं करता पर बाप बेटे पर हमेशा गुस्सा करता है। बहू सास पर कम गुस्सा करती है, अंदर ही अंदर गुस्सा पी जाती है पर सास झट से अपनी बहू पर कुपित हो जाती है। इसलिए गुस्सा नीचे की ओर बहता है और प्रेम ऊपर की ओर । पिता अपना गुस्सा बेटे
पर, बेटा पत्नी पर, पत्नी बच्चों पर और बच्चे खिलौनों पर अपना गुस्सा निकालते हैं । हरेक अपने से नीचे वाले पर अपना गुस्सा निकालता है । अगर मजबूत पर गुस्सा निकालें तो... ?
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ऐसा हुआ एक व्यक्ति रास्ते में जा रहा था कि किसी मकान से एक ईंट आकर उसके सिर पर लगी । उसे गुस्सा आया, उसने गाली भी बकी और बड़बड़ाया-यह तो अच्छा हुआ मैं बच गया, वरना मेरा सिर भी फट सकता था। उसने पत्थर उठाया और कहा- देखता हूँ किसने ईंट फेंकी। उसकी हड्डीपसली एक करके आता हूँ । वह उस घर में गया, जहाँ से ईंट आई थी, गुस्सा भी बहुत आ रहा था। घर में घुसा तो वहाँ देखा एक पहलवान दंड-बैठक लगा रहा था - मुद्गर चला रहा था, पहलवान ने कहा- क्या है बे ! उसने घिघियाते हुए
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कहा हें-हें, कुछ नहीं, आपकी ईंट बाहर गिर पड़ी थी, सोचा आपको लौटा दूँ।
महावीर वे होते हैं जो स्वयं पर क्रोध करते हैं और स्वयं को सुधारते हैं। क्रोध के बारे में एक और दिलचस्प बात है। क्रोध कभी अकेला नहीं आता। जब भी क्रोध आता है उसके साथ बहुत कुछ या कहें कि पूरा खानदान ही साथ आता है। घमंड क्रोध का पिता है। जब-जब घमंड को चोट लगती है तब-तब क्रोध पैदा होता है। उपेक्षा क्रोध की माँ है। जब भी हमारी अपेक्षाएँ उपेक्षित होती हैं क्रोध पैदा होता है। हिंसा और नफ़रत-क्रोध की पत्नियाँ है । हिंसा तो क्रोध के साथ हमेशा ही रहती है - ओरीजनल पत्नी की तरह और नफ़रत - प्रेमिका की तरह विद्यमान होती है। वैर, विरोध - क्रोध की जुड़वाँ संतानें हैं। निंदा और चुगली - क्रोध की सगी बहनों का काम करती हैं। क्रोध की एक लाडली बेटी भी है - जिद।
सावधान! क्रोध कभी अकेला नहीं आता, अपने साथ अपना पूरा खानदान लेकर आता है । यह जब भी आता है हमारे परिवार, समाज, संबंधों - सभी को तहस-नहस कर देता है। क्रोध से कितने दुष्परिणाम हो सकते हैं, लाभ तो शायद ही होता हो हानियाँ ही अधिक होती हैं। क्रोध में व्यक्ति स्वयं पर से नियंत्रण खो देता है। उसे भान ही नहीं रहता कि वह क्या कुछ बोल रहा है। अभद्र और बेहूदी भाषा में अनाप-शनाप बकता चला जाता है। सभ्य से सभ्य व्यक्ति भी अत्यन्त असभ्य हो जाता है। चेहरा तमतमा जाता है, शरीर काँपने लगता है। अगर शांति के क्षणों में गुस्से में अपनी कही हुई बातों को सुन लें तो चकित रह जाएँ। ___ मैं किसी घर में जा रहा था कि दरवाजे पर अंदर से लड़ाई-झगड़े की आवाज़ सुनाई दी। मैं वहीं रुक गया। भीतर उन लोगों को मालूम न पड़ा कि मैं बाहर ही खड़ा हूँ वे तो अपनी रौ में लड़े जा रहे हैं। कुछ क्षण मैंने सुना और घंटी बजवा दी। वे लोग चौंके कि अरे महाराज आ गए। एकदम माहौल बदल गया, सब एकदम शांत हो गए, हमारी पूछ परख करने लगे। अर्थात् अगर ध्यान बँट जाए तो कलुषित वातावरण शांत हो सकता है। वैसे ही जैसे उफनते दूध पर दो
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चार बूंद पानी छिटक दिया जाए तो दूध शांत हो जाता है। वैसे ही अगर अशांति का वातावरण बन जाए तो हम स्वयं को पानी के छींटे की तरह शांत कर लें तो हमारा क्रोध भी शांत हो सकता है।
हाँ, जब मैं उस घर में पहुँचा तो मैंने पूछा, और तो सब ठीक है, बस एक सवाल मेरे मन में उठ रहा है - जब मैं यहाँ पहुँचा था तो आप अपने बेटे को सूअर की औलाद कह रहे थे। मेरी बात सुनकर चौंके। मैंने कहा, जनाब! अगर वह सूअर की औलाद है तो आप क्या हैं ?' उस आदमी को काँटो तो खून नहीं। और उस सत्संग का उस व्यक्ति पर यह प्रभाव पड़ा कि वह आज तक कभी क्रोध नहीं करता और गाली नहीं निकालता। उसे समझ आ गया कि जब भी क्रोध आता है तो व्यक्ति कैसे आपा खो बैठता है, नियंत्रण चला जाता है। कंट्रोलिंगकैपेसिटी समाप्त हो जाती है। जिसका स्वयं पर नियंत्रण नहीं वह समिति और गुप्ति का पालन नहीं कर सकता और जो समिति और गुप्ति का पालन न कर पाए वह धार्मिक कैसे हो सकता है।
एक पति-पत्नी में झगड़ा हो गया। पति ऑफिस चला गया। दिन बीता, शाम होने आई तो सोचा बेकार ही पत्नी से झगड़ा किया, चलो अब उससे बात कर लेता है। यह सोचकर घर पर फोन लगाया। उसने कहा - हैलो, आज शाम को खाने में क्या बना रही हो? पत्नी तो अभी भी गुस्से में भरी हुई थी बोली - राख! पति ने कहा - आधी ही बनाना शाम को मैं बाहर खाने जा रहा हूँ। __ क्रोध में व्यक्ति होश खो बैठता है। दूसरा दुष्प्रभाव यह है कि - व्यक्ति का स्वास्थ्य बिगड़ता है। तनाव, चिंता अवसाद। ये सब क्रोध के दुष्परिणाम हैं। यदि आपको ब्लड प्रेशर है तो सावधान हो जाएँ। कभी क्रोध न करें, नहीं तो आपको कभी भी हार्ट अटैक हो सकता है। क्रोध करने से आपका ब्लड प्रेशर असंतुलित हो सकता है। कब्ज रह सकती है, स्मरणशक्ति कमजोर हो सकती है। बच्चों, सावधान हो जाओ। अधिक गुस्सा करोगे तो अपनी स्मरण-शक्ति और मानसिक एकाग्रता खो बैठोगे। क्रोध में बनाया गया भोजन भी जहर का काम करता है? इसलिये यह विवेक रखें कि जब आप गुस्से में हों तब न खाना बनाएँ और न ही खाएँ और न ही खिलाएँ। विज्ञान यह सिद्ध
ATTENTION! No angry
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कर चुका है कि क्रोध के समय जो रसायन उत्पन्न होते हैं वे घातक होते हैं और आपकी मनोदशा को प्रभावित करते हैं । विपरीत मन से किया गया कार्य, सकारात्मक प्रभाव डालने में असमर्थ होता है। आपकी नेगेटिव एनर्जी भोजन को भी नकारात्मक ऊर्जा से भर देती है । जो बच्चे क्रोध करते हैं, वे ध्यान रखें । क्रोध करने से मानसिक ऊर्जा जलती है, स्मरण शक्ति की प्रखरता के लिए जहाँ एकाग्रता आवश्यक है, वहीं क्रोध और चिंता से उबरना अनिवार्य है ।
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क्रोध का तीसरा दुष्परिणाम : आपसी संबंधों में खटास आती है। पलभर क्रोध आपका पूरा भविष्य बिगाड़ सकता है। जिन संबंधों को बनाने में आप जी जान लगा देते हैं, कृपया क्रोध करके उनमें दरार व खटास मत डालिए ।
चौथी बात: हत्या, आत्महत्या की प्रेरणा भी क्रोध से ही मिलती है । पांचवीं बात : क्रोध के कारण कैरियर भी प्रभावित होता है । आप देखते होंगे जब सीनियर अफसर अपने मातहत पर क्रोध करता है, और जाँच में सबूत मिल जाने पर उसे निलंबन तक का ख़तरा उठाना पड़ता है। उसका पूरा भविष्य बर्बाद हो जाता है । कल ही आपने अख़बारों में पढ़ा है कि पाली के कलेक्टर ने किसी पार्टी के अध्यक्ष के गाल पर चांटा मार दिया। पता है परिणाम क्या निकला ? कलेक्टर को लाइन हाज़िर होना पड़ा । आदमी का थोड़ा सा गुस्सा सचमुच आदमी के कैरियर को रौंद डालता है ।
यानी जो भी क्रोध कर रहा है उसका कैरियर, परिवार, समाज के साथ संबंध, स्वयं का स्वास्थ्य, स्वयं की शांति सब कुछ प्रभावित होता है, इसलिये अपनी श्रेष्ठ बुद्धि का, समझदारी का, शिक्षा का उपयोग कीजिए और सोचिए कि क्रोध क्या है, क्यों आता है, इसके क्या दुष्परिणाम हैं, और उनमें बचने के आप खुद उपाय कीजिए ।
जिन लोगों ने क्रोध के दुष्परिणाम देखे हैं वे अपने जीवन में प्रेम और शांति को तवज्जो देना शुरू कर दें तो क्रोध काफूर हो सकता है। सभी अपने घर के आँगन में एक तख़्ती लटका लें जिस पर लिखा हो - हे जीव, शांत रह । तू कब तक इस तरह गुस्सा करता रहेगा ।
silence
please!
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महावीर ने अपने साढ़े बारह वर्ष के साधना काल में केवल एक शब्द का प्रयोग किया था। वह शब्द था एक सर्प को दिया गया उपदेश कि - हे जीव, तू शांत रह । कब तक गुस्सा कर करके अपना पतन करता रहेगा। याद कर, तू क्या था? साँप सोचने लगता है, अपना पूर्व जन्म देखने लगता है - साँप और कोई नहीं पिछले जन्म का एक संत होता है। जो अपने शिष्य द्वारा यह कहे जाने पर कि गुरुजी आपके पांव से एक मेंढक मर गया, आप प्राचश्चित कर लीजिए, गुरुजी को गुस्सा आ गया। उन्हें शिष्य की बात स्वयं का अपमान महसूस हुई
और डंडा उठाकर शिष्य को मारने दौडे। शिष्य तो बच गया पर अंधेरे में खंभे से टकराकर स्वयं मर गए और सर्प-योनि में उत्पन्न हुए। ___ जब एक संत मरकर सांप बन सकता है, तब सोचिये हमारे क्या हाल होंगे। हम जो जरा सी बात पर गुस्सा कर बैठते हैं, गांठें बाँध लेते हैं, हमारा क्या होगा? आप जो कहते हैं कि - अहिंसा परमोधर्म - तो क्रोध करके किसी के दिल को ठेस पहुँचाना हिंसा है। वाणी की विनम्रता, वाणी की मधुरता अहिंसा की पहली सिखावन है। __क्रोध-मुक्ति के लिए आप एक काम कीजिए। हमारी किसी गलती के कारण किसी दूसरे को गुस्सा आ जाए तो तत्काल 'सॉरी' कहिए। अपने जीवन में दो शब्दों का अधिकतम प्रयोग कीजिए - अगर कोई हमारे काम आ जाए तो 'बैंक यू' कहिए और थोड़ी-सी भी गलती हो जाए तो 'सॉरी' कह दीजिए। ये दो शब्द 'सॉरी' और 'थै क्यू' बड़े चमत्कारिक शब्द हैं। सॉरी कहते ही जहाँ उलटा पड़ा मामला भी सीधा हो सकता है, वहीं बैंक्यू' कहने से सामने वाले ने हमारे लिए जो कुछ किया है, उसे उसका पुरस्कार मिल जाता है। इन दोनों शब्दों को आप अपने जेहन में डाल लीजिए। अपनी जबान के जेब में भर लीजिए और जब जी चाहे, इनका पूरे दिल से इस्तेमाल कीजिए। ऐसा करके आप सफलता, शांति और आनंद की तरफ चार कदम आगे बढ़ा चुके हैं।
ध्यान रहे - एक बार गलती करना मानवीय है और दूसरी बार उसी गलती को दोहराना बेवकूफी है। इसके बाद भी अगर
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सामने वाला गलती करता ही जाए, तो उसे स्वीकार न करें। अगर आपने किसी के अपशब्दों को स्वीकार कर लिया तो एक और एक ग्यारह हो जाएँगे। गालियाँ घूसों में और चूंसे लाठियों में बदल जाते हैं, पर जब आप स्वीकार नहीं करते तो वह उसी के पास लौट जाता है। जैसे कोई आपको भोजन कराए और आप न करें तो खाना उसी के पास रह जाएगा। इसलिये क्रोध को कहिए मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं है और क्रोध का कीजिए निरोध।
दूसरा अनुरोध : क्रोध का वातावरण बनने पर उस स्थान से हट जाएँ। कुछ देर के लिए वह स्थान छोड़कर अन्यत्र चले जाएँ। तब भी क्रोध शांत न हो तो ठंडा पानी पीएँ। जिस समय आपको क्रोध आए, आप तत्काल दो गिलास ठंडा पानी पीजिए। उबलता क्रोध शांत हो जाएगा। इस्तेमाल कीजिए, चमत्कारिक लाभ मिलेगा। आखिर आग तो तभी भड़केगी जब ईंधन मिलेगा। आप हट जाएं, सामने वाला अकेला कब तक गुस्सा करेगा। जिस वातावरण में हम हैं उससे ख़ुद को निरपेक्ष कर लें। सास-बहू आपस में झगड़ा न करें बल्कि मां-बेटी के रूप में प्रेम और सम्मान दें। पति-पत्नी समझौते की वृत्ति रखे।
Trust, talk & talerance ऐसे शब्द हैं जो पति-पत्नी के मध्य सही संबंध बनाते हैं। पत्नीपति ही क्यों सभी के बीच मधुर संबंध बनाते हैं। Time भी एक तथ्य हैं क्रोध को प्रगट करने में टाइम लगाइए, थोड़ी देर कीजिए। ज़िंदगी में कभी विलम्ब से मत चलिए, पर क्रोध को करने में जितना विलम्ब हो, उतना ही श्रेष्ठ। क्रोध करने के लिए पहले कोई अमृतसिद्धि योग देखिए, फिर क्रोध कीजिए। आप यह तो कहते हैं ट्रेन लेट, फ्लाइट लेट, फंक्शन लेट, क्या कभी यह भी कहते हैं क्रोध लेट । अरे भाई, क्रोध कोई मामूली चीज़ थोड़े ही है जो जब चाहें तब प्रगट कर दें। ____ यह तो परमाणु-बम है। इसका इस्तेमाल तभी कीजिए जब आपके पास रखे हुए अन्य सारे हथियार फेल हो जाएँ। क्रोध आग का शोला है, इसे बातबात में प्रगट मत कीजिए। अरे भाई, अगर किसी को मारना ही है तो चाकू से क्या मारा। मारना ही है तो शर्बत से मारो। अपनी मिठास से, अपने प्रेम से,
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अपनी विनम्रता से, अपने बड़प्पन से, उसका दिल जीतो। यही वास्तव में सच्ची विजय है, आत्म विजय है।
आजकल लोगों ने बोलना तो बहुत शुरू कर दिया है, दिनभर मोबाइल चलता रहता है। पर घर वालों के साथ बोलना कम कर दिया है। लोगों से तो प्यार से बोलना शुरू कर दिया, पर घर वालों से गुस्से में बोलना शुरू कर दिया है। सड़क चलती महिला से बात करनी हो तो क्या मुस्कुराकर बोलेंगे, पर घर वाली से बात करनी हो तो मुँह सूजाकर बोलेंगे! घर वाली के सामने आदमी ऐसे बोलता है जैसे शेर दहाड रहा हो. हाथी चिंघाड़ रहा हो। हाँ, अगर पति बेचारा सीधा है तो पत्नी उसके साथ ऐसा सलूक करती है कि देखने वालों का तरस आ जाए।अरे भाई, मिठास से बोलो न! गुस्सा करने से तो सेहत और सम्बन्ध, शांति और समरसता दोनों ही खतरे में पड़ जाते हैं।
ख़ुद की जबान पर मिठास की चासनी लगाइए और घर में पति-पत्नी, सास-बहू, बाप-बेटे के बीच में प्रेम और शांति को तवज्जो दीजिए। जिस घर में सास-बहू आपस में बोलती नहीं, मुँह सुजाए रहती हैं, बाप-बेटा एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते नहीं हैं, वह घर-घर नहीं शमशान है, कब्रिस्तान है। आपको पता है कि नहीं, कब्रिस्तान में भी लोग रहते हैं, पर वे आपस में बोलते नहीं हैं, मिलते नहीं हैं, बस वे वहाँ मुर्दा बनकर रहते हैं। कहीं आपके भी तो यही हालात नहीं हैं कि एक ही बिल्डिंग में दोनों भाई रहते हैं पर वे आपस में बोलते नहीं, मिलते नहीं, एक-दूसरे को देखकर कन्नी काट लेते हैं, अगर ऐसा हो तो मुझे यह कहने के लिए माफ कीजिएगा कि आपका घर, घर नहीं नफ़रत का नरक है। घर का स्वर्ग ही एक है। प्रेम, प्रसन्नता और समर्पण। ___ अरे, अगर कभी कोई एक आग बन जाए तो आप पानी बन जाइए। अगर कोई एक अंगारा बन जाए तो आप जलधारा बन जाइए। दो में से एक शांत होना सीख ले, मैटर वहीं फिनिश हो जाए वरना गुस्से का गणित बड़ा विचित्र है। गणित में तो एक और एक दो होते हैं पर गुस्से के गणित में एक और एक ग्यारह होते हैं। गुस्से में मुँह खुला रहता है, पर आँखें बंद हो जाती हैं । गुस्से में पहले गाली निकलती है, फिर हाथ उठता है, फिर रिश्ते टूटते हैं, यहां तक कि कभी
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कभी हत्या तक हो जाती है। वैसे भी आत्महत्या के पीछे तो एक ही पागल का हाथ होता है और वह है गुस्सा - क्रोध । इसलिए अपने गुस्से को छोड़ो और सब प्रेम से रहो, यही आपके लिए, मेरे लिए, सबके लिए जीवन की बुनियादी प्रेरणा है ।
अच्छी बातें आखिर उसी के लिए होती हैं, जो उन्हें ग्रहण करें । मेरे प्रिय, चार दिन की ज़िंदगी है । क्यों न इसे प्यार से जी जाओ। हो-हल्ला छोड़ो, और जीवन में प्रेम और मोहब्बत का चिराग़ जलाओ ।
कितना सुंदर शेर है -
फितरत को नापसंद थी कड़वी जबान में, तभी तो कुदरत ने ना दी हड्डी जुबान में ।
अपने मुँह में एक जीभ है और बत्तीस दाँत हैं - अगर जीभ का सावधानी से प्रयोग करें तो दाँत प्रहरियों का काम करते हैं अन्यथा यह एक जीभ बत्तीस दाँतों को तुड़वा देती है। केवल बोलें ही नहीं, समय आने पर चुप भी रहें ।
तीसरा सूत्र : क्रोध का वातावरण बन जाए तो ख़ुद पर संयम रखें और बड़ा सकारात्मक व्यवहार करें। हर रोज सुबह ध्यान करें। इससे आत्मनिरीक्षण होगा, आत्मभाव में स्थिति बनेगी और जीवन में
स्वतः शांति की सुवास फैलेगी । विपरीत स्थितियों में बहुत शांति से बोलें । शांति से बोलना जीवन की सबसे बड़ी विशेषता है, जो शांत है, वहीं संत है । एक महान संत हुए हैं तुकाराम । एक दिन तुकारामजी की पत्नी ने कहा- बहुत भूख लग रही है, खेत से गन्ने ले आइए। तुकाराम चले गए गन्ने लेने । पत्नी इंतजार करती रही कि अब आए, अब आए। सुबह के गए शाम को लौट कर आए। इधर पत्नी का भूख के मारे बुरा हाल, खूब गुस्सा चढ़ आया । पत्नी ने जब देखा कि तुकाराम के हाथ में केवल एक ही गन्ना है तो पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, पूछा- क्या खेत में गन्ने नहीं थे ? तुकाराम ने कहा भागवान, गन्ने तो बहुत थे पर क्या बताऊँ गांव की चौपाल पर छोटे-छोटे बच्चे मिल गए और तुम जानती हो जब बच्चे मांगें तो मैं मना नहीं कर सकता, मैंने सभी को एक-एक गन्ना दे दिया। पत्नी गुस्से में तो थी ही, उसने गन्ना उठाया
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और तुकाराम की पीठ पर दे मारा, गन्ने के दो टुकड़े हो गए । तुकाराम ने कहा, - अच्छा ही किया दो टुकड़े कर दिये, ला एक मैं चूस लेता हूँ, एक तू चूस ले! इसे कहते हैं विपरीत वातावरण में भी सकारात्मक व्यवहार।
एक घटना और लीजिए : तेरापंथ के आचार्य हुए हैं भीखणजी। वे एक सभा के मध्य प्रवचन कर रहे थे कि एक युवक आया और उन्हें धड़ाधड़ माथे पर चूंसे-ठोले मारने लगा। जनता के मध्य अज़ीब सी हकबकाहट, बेचैनी फ़ैल गई कि यह कौन है जिसने आचार्य पर ठोले मारे। लोगों ने उसे पकड़ा और पीटने लगे तभी आचार्य ने कहा - इसे छोड़ दो, मारो मत। लोगों ने कहा - यह आपको मार रहा है और आप कहते हैं कि इसे छोड़ दें? गुरु ने कहा - भाइयो, यह आदमी मुझे मारने नहीं, अपना गुरु बनाने आया है। अरे, जब हम बाजार में हंडी भी खरीदते हैं तो ठोक-बजाकर देखकर लेते हैं। तो यह भी मुझे बजाकर देख रहा है कि मैं इसका गुरु बनने लायक हूँ या नहीं।
विपरीत वातावरण में सकारात्मक व्यवहार ही आत्म-विजय है। वाकई में अगर आप क्रोध को छोड़ना चाहते हैं तो अधिक से अधिक शांतिमय और आनंदमय होने का संकल्प लें। हमारा मन मजबूत है तो हम बहुत जल्दी गुस्से को छोड़ सकते हैं । प्रतिदिन एक घंटे मौन के दौरान अच्छी-बुरी कोई भी घटना घट जाए आप प्रतिक्रिया नहीं करें। गलतियों की क्षमा माँग लें। क्षमा माँगने वाले क्षमा करने वाले से अधिक महान होता है।
याद रखिए : शांति वह दौलत है जिसे हर समय अपने पास रखना ही चाहिए, आप अपने ज्ञान का अपने परिवार, स्वास्थ्य और कैरियर के लिए उपयोग करें। माचिस की तीली के सिर तो होता है, पर दिमाग़ नहीं । वह छोटे से घर्षण से जल उठती है। प्रकृति ने हमें सिर भी दिया है और दिमाग़ भी. फिर हम क्रोध के क्षणिक आवेग से क्यों जल उठे। सोचिए क्या हमें माचिस की तीली बनना है या इन्सान बनकर शांत, सौम्य और बेहतर जीवन जीना है। कृपया स्वयं को माचिस की तीली न बनाएँ। स्वयं को इन्सान का दिमाग बनाइए, देवत्व का प्राणी बनाइए, समत्वशील व्यक्तित्व बनाइए। अधिक से अधिक मुस्कुराने की आदत डालिए और प्रसन्न रहिए। क्रोध आपसे कोसों दूर रहेगा।
शांति, सफलता और मुक्ति अगर पानी है तो इसका पहला मंत्र है : गुस्सा छोड़िए और हर हाल में मस्त रहिए।
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जीने की कला - 3
तनाव से रहिए नौ क़दम दूर
ख़ुशहाली की बात तनाव को दें मात
दुनिया में शायद ही ऐसा कोई इंसान हो, जिसने अपने जीवन में तनाव और मानसिक पीड़ा का कड़वा स्वाद न चखा हो । सच्चाई तो यह है कि हर किसी इंसान को हर रोज़ ही दो-चार ऐसे अवसरों और निमित्तों का सामना करने को मिल ही जाता है जो कि उसके लिए तनाव, पीड़ा अथवा आक्रोश का कारण बने । चाहे आप विद्यार्थी हों या व्यापारी, शिक्षक हों या राजनीतिज्ञ, अधिकारी हों या कर्मचारी, घरेलु महिला हों या कामकाजी तनाव से कोई बचा हुआ नहीं है। किसी को किसी का टेन्शन, मम्मी को पापा का टेन्शन और पापा को मम्मी का टेन्शन। यदि आप विद्यार्थी हैं तो आपको पढ़ाई और परीक्षा का टेन्शन, यदि आप युवक हैं तो कैरियर और नौकरी का टेन्शन, यदि आप नौकरी पेशेवर हैं तो सड़क पर चलती हुई कार को देखकर उसे पाने की तृष्णा
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का टेन्शन, कार खरीद ली तो लोन चुकाने का टेन्शन, बड़े हैं तो बच्चों की शादी का टेन्शन, बूढ़े हैं तो खुद को खुद का ही टेन्शन। ज़रा आप अपने
आप को टटोलिये कि आपको किस चीज का टेन्शन या तनाव है। किसी को बड़ी घटना भी प्रभावित नहीं करती वहीं किसी को छोटी-सी घटना या वज़ह भी चिंतित, क्रोधित या तनावग्रस्त कर देती है।
तनाव आदमी के जीवन का घुन है। जैसे घुन गेहूँ को खोखला कर देती है वैसे ही तनाव हमारी मानसिक शांति को नेस्तनाबूद कर देता है। चिंता, तनाव और अवसाद से घिरे हुए व्यक्ति की मनःस्थिति का नाम ही नरक है। जब भला हर आदमी अपने जीवन में स्वर्ग की सैर करना चाहता है, फिर वह तनाव-अवसाद के नारकीय धएँ से घिरा हआ क्यों रहे? यदि आप अपने जीवन में यह संकल्प कर लें कि जीवन में जो कुछ होगा उसे प्रकृति की व्यवस्था का एक हिस्सा भर मानूँगा, मैं अपने जीवन को सहज भाव में जीते हुए हर हाल में मस्त रहूँगा। आप निश्चय ही तनाव और अवसाद से सौ क़दम दूर रहने में सदा सफल रहेंगे।
दुनिया में ऐसा कौन व्यक्ति है जिसने कि अपने जीवन में उतार-चढ़ाव न देखे हों। राम को वनवास झेलना पड़ा था, तो महावीर को अपमान । बुद्ध को लांछनों का सामना करना पड़ा, तो जीसस को सलीब का। सच्चाई तो यह है कि जीवन में खट्टा-मीठा दोनों तरह का अनुभव हुए बिना जीवन के सही स्वाद का पता ही नहीं चल पाता। यह तय मानकर चलिए कि अमिताभ को भी विफलताएँ भोगनी पड़ती हैं और अंबानी को भी घरेलु समस्याओं का सामना करना पड़ता है। चाहे आप टाटा हों या बाटा आपके जीवन की बगिया में हरहमेश तो हरियाली नहीं रह सकती। जीवन को समझिए, जीवन और प्रकृति की व्यवस्थाओं को समझिए। सहजता के धरातल पर क़दम रखते हुए अपने आप को हर हाल में प्रसन्न और सकारात्मक रखिए।
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अपने जीवन में घर कर चुकी निराशा और उदासीनता के मकड़जालों को साफ कीजिए, अपनी संकल्प-शक्ति को जागृत कीजिए और आत्मविश्वास के बल पर निराशाओं को भी आशाओं में बदल दीजिए। इलियट जैसे लोग अपने जन्मदिन पर भी काले
और भद्दे कपड़े पहन कर शोक मनाया करते हैं। ऐसे निराश लोग ही कहा करते हैं कि अच्छा होता कि मुझे यह जीवन न मिलता, मैं दुनिया में न आता। जबकि मिल्टन जैसे लोग नेत्रों से वंचित । रहने के बावजूद उत्साह भाव से कहा करते हैं कि भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि उसने मुझे जीने का अनमोल अवसर और वरदान प्रदान किया है। निश्चय ही आदमी अपनी अच्छी मानसिकता के चलते ही जीवन को प्रभु का प्रसाद बना लेता है। कबीर जैसे लोग जुलाहे के घर में पैदा होकर भी दुनिया के महान संत बन जाते हैं और महात्मा गांधी जैसे लोग वैश्य कुल में जन्म लेकर भी राष्ट्रपिता का गौरव अर्जित कर लेते हैं । निश्चय ही उन लोगों को भी अपने जीवन में अनेकानेक संघर्षों का सामना करना पड़ा था, किन्तु वे तनावग्रस्त होकर जीवन से हारे नहीं। जीतना उनका लक्ष्य था और जो हर हाल में अपने लक्ष्य को अपनी आँखों में बसाए रखते हैं वे अपने धैर्य, बुद्धि, बल, संकल्प और श्रम की बदौलत अनायास ही सफलताओं के स्वामी बनते हैं।
प्रसिद्ध अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को कौन नहीं जानता? जिन्होंने न्याय और समानता की खातिर अपने प्राणों की आहूति दे दी थी। सच्चाई यह है कि लिंकन और असफलता दोनों एक-दूसरे के लिए पूरक थे। यदि लिंकन के जीवन के सभी कार्यों का हिसाब लगाया जाए तो उन्हें सौ में से निन्यानवें दफा असफलता का मुंह देखना पड़ा था। यह उनकी बदक़िस्मती ही समझिए कि उन्होंने जिस कार्य में हाथ डाला वे उस हर कार्य में असफल सिद्ध हुए। जीवन-निर्वाह हेतु एक दुकान में नौकरी की तो दुकान के मालिक का दिवाला निकल गया। आजीविका के लिए वकालत का काम शुरू किया तो
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मुकद्दमे ही नहीं मिलते थे। जिस औरत से शादी की उससे जिंदगीभर न निभ पाई। पर इसके बावजूद अपने बुलंद इरादों और कठोर हौसले के बलबूते लिंकन ने कभी हिम्मत का दामन नहीं छोड़ा। निश्चय ही जिसके मन में हिम्मत हो और दिल में प्रभु के प्रति विश्वास, वह हर कोई व्यक्ति एक-न-एक दिन अपने घर-आंगन में सूरज की रोशनी को उतार लाने में सफल हो ही जाता है। उनके लिए सबसे सुखद क्षण तो तब आया जब वे अमेरिका के राष्ट्रपति पद से सुशोभित हुए।
निश्चय ही आप जीवन के प्रति बेहतर नज़रिया अपनाइये, निराशा और उदासीनता के दलदल से बाहर निकल आइये। जीवन में गीत गुनगुनाइये – 'आशा ही जीवन है और जीवन ही आशा।' बुरे समय में भी हिम्मत मत हारिये, खुश रहकर संघर्षशील बनिये। मुसीबतों का मुकाबला कीजिए। मुसीबतें अपने आप हटेंगी और सफलताएँ मिलने लगेंगी। अपने विचारों को अपने जीवन का अंगरक्षक बनाइये। उन्हें
आपको बंदी बनाने वाले सिपाही मत बनने दीजिए। दूसरों के द्वारा किए जाने वाले व्यवहार को नेगलेक्ट कीजिए और अपनी ओर से सदा प्रेम, प्रसन्नता और मिठास भरा व्यवहार करते हुए दूसरों को सम्मान दीजिए। ___ तनाव से बचे हुए रहने से न केवल आपके पास आपकी मानसिक शांति सुरक्षित रहेगी अपितु जीवन-रक्षक ऊर्जा भी आपके जीवन में एक अच्छे सहायक और मित्र की भूमिका निभाएगी। याद रखिए, लगातार तनावग्रस्त रहना आपकी आय को घटाएगा और रोगों को बढ़ाएगा। आपके सुखों को खण्डित करेगा और आपकी शांति को भंग। तनाव की बढ़ोतरी से स्ट्रेस हार्मोन्स अधिक पैदा होते हैं जिससे हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अर्थात इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। इसी स्ट्रेस हार्मोन्स के कारण ही दमे की बीमारी पैदा होती है। चैन की नींद का हरण हो जाता है। पेट में अल्सर हो सकते हैं। स्मरण-शक्ति कमजोर हो सकती है और महिलाओं की प्रजननक्षमता दुर्बल हो जाती है। बी.पी. और हार्ट-अटैक की बीमारियों के पीछे यही
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तनाव और स्ट्रेस हार्मोन्स हमें अपना दुष्प्रभाव देते हैं। यदि आप सिरदर्द जैसी सामान्य बीमारियों से भी बचना चाहते हैं तो सबसे पहले आप अपने में घर कर चुकी निराशा, चिंता और तनाव को निकाल फैंकिये। मैं आपको अपने साथ केवल नौ क़दम लेकर चल रहा हूँ, ये नौ क़दम भी आपको स्वास्थ्य का सुकून दे सकते हैं, शांति का आनंद दे सकते हैं, मुस्कान की मिठास दे सकते हैं, जीने का ज़ायका दे सकते हैं। मेरी बातें बहुत सरल और आसान हैं। केवल उन पर थोड़ा-सा गौर करने की ज़रूरत है। मेरे साथ हमक़दम होने की आवश्यकता
तनाव से दूर रहने के लिए सबसे पहला और सबसे सरल उपाय यह है कि आप अपने जीवन में सदा हँसने और मुस्कुराने की आदत डालिए। हँसना और मुस्कुराना तनावमुक्त होने का सबसे अच्छा साधन है। हँसी उस किसान की तरह होती है जो जीवन के खेत से निराशा और कुंठा के काँटों और झाड़झंखाड़ों को उखाड़ फेंकता है। जीवन में विक्षिप्त वे ही होते हैं जो हँसना और मुस्कुराना नहीं जानते। यदि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार है, कुंठित और चिंतित है, मैं उस हर किसी व्यक्ति से अनुरोध करूँगा कि वह अपनी कुंठा और चिंता को भूल जाए और केवल सुबह उठते ही एक मिनट तक लगातार तबीयत से मुस्कुराने की आदत डाले। मुस्कान तो वह विटामिन-बी है जो ग्लूकोज के दो चम्मच की तरह सीधा ताज़गी देता है। . ___ कुछ दिन पहले की बात है। मेरे पास एक मरीज़ आया। उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। मैंने प्यार, मुस्कान और सम्मान के साथ उस रोगी से बातचीत की। मेरे मुस्कुराहट भरे व्यवहार से उस मरीज़ के चेहरे पर भी मुस्कान उभर आई। मैंने उसके साथ आए लोगों से कहा, 'चिंता की कोई बात नहीं है। मरीज़ ठीक हो जाएगा क्योंकि अभी तक इसमें मुस्कुराने की क्षमता बची हुई है।' निश्चय ही उस व्यक्ति के स्वस्थ होने में दवा ने भी भूमिका निभाई होगी पर जितना सच यह है उतना सच यह भी है कि उसकी हँसी और मुस्कान
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ने भी उसकी मानसिकता को स्वस्थ करने में भूमिका निभाई थी।
आप ज़िंदगी में घबराइये मत। केवल अपनी हँसी और मुस्कान को जीवित रखिए। प्रभु से प्रार्थना कीजिए कि अगर कभी जिंदगी की हरियाली सूख जाए, सूरज का प्रकाश बादलों की काली छाया में ढंक जाए, मित्र और आत्मीयजन भी मुझे असहाय छोड़ जाए और दुनिया का सारा दुर्भाग्य मेरे भाग्य पर बरसने को तत्पर हो जाए तो ऐसे समय में मेरे प्रभु! मुझ पर इतनी कृपा अवश्य करना कि मेरे होठों पर हंसी की उजली रेखा खिंच जाए। ___मैं तो सलाह दूंगा कि अपने घर में अपने पास चुटकुलों की दो-चार किताबें ज़रूर रखें ताकि जब भी मौका मिले आप उसे पढ़कर थोड़ा हँस-खिल सकें, स्वयं को गुलाब का फूल बनाने का जब भी अवसर मिले चूकना नहीं चाहिए। आजकल टीवी पर हँसने-हँसाने वाले चैनल भी खूब चलते हैं। हफ्ते में एकाध बार उन्हें देख लेना भी आनंददायी हो सकता है। हँसी और गुदगुदी तो जिससे भी. जहाँ से भी मिल जाए दिल के पॉकेट में डाल ही लेनी चाहिए। एक काम और कर सकते हैं कि लाफिंग बुद्धा या चार्ली चैपलिन का फोटो अपने ड्रेसिंग रूम की टेबल पर रखे हुए आईने के एक कोने में ज़रूर चिपका दें। आप जैसे ही आईने के सामने जाएँ अपने बुझे हुए चेहरे को बाद में देखें, पहले लॉफिंग बुद्धा पर एक नज़र डाल दें। लॉफिंग बुद्धा की तरह खुद भी मुस्कुरा लें और फिर अपना चेहरा आईने में देखें। सचमुच, आपको आपकी तरह ही आईना भी मुस्कुराता हुआ नज़र आएगा। हर समय फोटोग्राफर के इस संकेत को याद रखिए – 'स्माइल प्लीज!'
अगर आप हँसना और मुस्कुराना भूल गए हैं तो अपने घर और दफ्तर में काग़ज़ पर यह लिखकर चिपका दीजिए – 'पहले मुस्कुराइये।' सचमुच, आप हँसी-मुस्कान को अपने जीवन की सहेली बना लीजिए, यह आपको पर्याप्त सुख-सुकून देगी।
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तनाव से दूर रहने का दूसरा क़दम है : यदाकदा प्रेम, शांति और मिठास भरा संगीत सुनिये। मधुर संगीत आपकी बैचेनी को कम करेगा, चित्त को एकाग्रता और लयलीनता देगा, दिल और दिमाग़ के बोझ को कम करेगा, आपकी प्रतिरोधक क्षमता को मज़बूती प्रदान करेगा।
आपको जब भी लगे कि आप मानसिक रूप से बोझिल या थके हुए हैं तो आराम से किसी कुर्सी या सोफे पर बैठ जाइये। शरीर और दिमाग़ को ढीला छोड़ दीजिये। धीमी आवाज़ में कोई धीमा-सा संगीत चालू कर दीजिए। उसे सुनने में अपने आप को तत्पर कर लीजिए। शांति का भाव प्रगाढ़ करते जाइये, थोड़ी देर में आप पाएंगे कि आप स्वस्थ और रिलेक्स हो गए हैं।
संगीत का प्राकृतिक आनंद लेने के लिए कभी किसी झरने के पास जाकर बैठिये, कबूतरों की गुटर-गूं और चिड़ियाओं की चहचहाट सुनिये। कोयल की कुहुक और पपीहे की पीऊ-पीऊ सुनिये । प्रकृति की गोद में बैठकर आप इस तरह का प्राकृतिक संगीत सुनेंगे तो आप पाएंगे कि आपके पास सुख को जीने का आसान रास्ता है।
तनाव से बचने का तीसरा क़दम है : आइये, मेरे साथ हमक़दम बनिये। थोड़ा-सा पैदल चलने की आदत डालिये। कार और स्कूटर हमारे जीवन के साथ इस कदर जुड़ चुके हैं कि हम लोग धीरे-धीरे पैदल चलना ही भूलते जा रहे हैं। हर आदमी को हर रोज़ कम-से-कम दस मिनट ज़रूर पैदल चलना चाहिए। यदि आप बहुत ज्यादा व्यस्त हैं तो रविवार या छुट्टी के दिन एक घण्टा घूमने के लिए अवश्य जाइये। पैदल चलने से जहाँ शरीर का एक्यूप्रेशर हो जाता है वहीं शरीर की रासायनिक कार्य-प्रणाली भी दुरुस्त होती है। पैदल चलने से पसीना आता है और पसीने से शरीर के कई दूषित तत्त्वों का रेचन होता है। आपको नींद भी अच्छी आएगी, हृदय भी स्वस्थ रहेगा और शरीर में बढ़ रही चर्बी और कॉलेस्ट्रोल की मात्रा भी घटेगी। कहावत है : एक हवा-सौ दवा।' यानी थोड़ी देर घूमने की आदत डालिये, खुली हवा खाइये और इस तरह
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स्वस्थ और निरोगी होने का गुर अपनाइये।
चौथा क़दम है : प्रतिदिन दस से पन्द्रह मिनट योगासन अवश्य कीजिए। दस मिनट पैदल चलना और पन्द्रह मिनट योगासन करना स्वस्थ रहने की सबसे बेहतरीन कुंजी है। किसी समय साधना करने वाले लोग ही योगासन करते थे, पर ज्यों-ज्यों मानव-समाज को योग के लाभ ज्ञात होते जा रहे हैं त्योंत्यों हर आम इंसान भी योग को आत्मसात् करता जा रहा है। स्वामी रामदेव जी महाराज ने एक अकेले योगासनों के बल पर स्वास्थ्य-जगत में जो क्रान्ति मचाई है उसने योग को एक अन्तरराष्ट्रीय सत्य और उपचार के रूप में स्थापित कर दिया है। मैं पिछले कई वर्षों से कोई दवा नहीं लेता हूँ। रोग तो मेरे शरीर में भी आते हैं पर योग अगर साथ है तो रोग स्वत: खिसक जाते हैं। ___ एक व्यक्ति मेरे सम्पर्क में है : जेठमल जी धोबी। इस समय लगभग अस्सी वर्ष के होंगे। उन्हें देखकर कोई भी व्यक्ति उन्हें साठ-पैंसठ से ऊपर का नहीं कह सकता। ताज्जुब की बात है कि वे चश्मा भी नहीं लगाते और बत्तीसी भी नहीं लगाते। उनके अभी भी वही दाँत हैं जो बचपन में थे। इस उम्र में भी वे अपने दाँतों से अखरोट तोड़ सकते हैं। दस किलोमीटर पैदल चल सकते हैं। क्या आप जानते हैं कि इसका राज़ क्या है ? इस व्यक्ति ने मुझे बताया कि वह चौदह वर्ष की उम्र से ही नियमित सुबह योगासन करता आया है। यानी योग ने इंसान को रोगों से बचाया है, बूढापे को उससे दूर रखा है, स्वस्थ और लम्बी उम्र दी है। आप भी अपने जीवन में यह सूत्र ले लें – 'योग अपनाइये, रोग भगाइये।'
योग का विधिवत प्रशिक्षण पाने के लिए आप कभी संबोधि-साधना शिविर में आ जाएँ। सात दिन का प्रशिक्षण योग की कुंजी प्रदान कर देगा। वैसे आप तनावमुक्ति के लिए क़दमताल कर लें। योगमुद्रा और भुजंगासन का अभ्यास
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करें, आनंदासन और शवासन तनावमुक्ति का सबसे आसान तरीका है। प्राणायाम अवश्य करें। लगातार पाँच मिनट तक लम्बी-गहरी साँस लेने का अभ्यास करें। पर ध्यान रखें, कुत्ते जैसी जल्दी-जल्दी साँस न लें। कछुए की तरह धीरे-धीरे गहरी साँस लें और धीरे-धीरे गहरी साँस छोड़ें। शांत और लम्बी-गहरी साँस लेने से अवसाद, निराशा, हताशा, तनाव, क्रोध कम होते हैं । इस प्रयोग से प्रसवकाल की पीड़ा भी कम होती है। दीर्घ श्वसन प्राणायाम से ब्लड प्रेशर, पाचन क्रिया, अनिद्रा, उदासीनता और नशे की आदत में भी सुधार होता है और ऊर्जा-शक्ति बढ़ जाती है। साँसों के द्वारा अपनी सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए ही क्रियायोग' का प्रयोग है। यह एक ज़बरदस्त अद्भुत प्रक्रिया है । टेन्शनलेस और स्ट्रेसलेस होने के लिए इसे आप रामबाण औषधि समझिए। यह प्राणायाम का एक छोटा-सा प्रयोग है : 1. एक मिनट तक लगातार मुस्कुराइए, 2. ओम का पाँच बार उद्घोष कीजिए, 3. होंठ बन्द करके मस्तिष्क में पाँच बार ओंकार की अनुगूंज अर्थात वायब्रेशन कीजिए 4. नाक से लम्बा साँस लीजिए और मुंह के रास्ते उसका पूर्ण रेचन कीजिए। पेट और पेडू तक की दूषित वायु को भी बाहर उलीचिये। बीस दफा यह रेचन-क्रिया कीजिए, 5. मुंह बन्द कीजिए और नाक से लम्बी-गहरी साँस लीजिए और नाक से ही लम्बी-गहरी साँस छोड़िये। चालीस दफा दीर्घ श्वसन कीजिए, 6. शरीर और दिमाग़ को पूरी तरह ढीला छोड़ दीजिए। यानी कम्पलीटली रिलेक्सेशन।।
तनाव से दूर रहने का पाँचवा क़दम है : हमेशा अच्छी नींद लीजिए। नींद शरीर की बैटरी को रिचार्ज करती है। यह हमें आनंदमय, उत्साहित, स्फूर्त और सामाजिक प्राणी बनाती है। यदि आप रात भर ठीक से सो लेते हैं तो दूसरे दिन प्रसन्नचित्त और कार्य करने में सक्षम रहते हैं। जो लोग कम सोते हैं या अनिद्रा से पीड़ित रहते हैं वे सदैव चिड़चिड़े और क्रोधी रहते हैं । अनिद्रा एक मीठा ज़हर है जो व्यक्ति को धीमे-धीमे दोहरा व्यक्तित्व दे डालता है। वर्षों तक न सोने
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वाले अवसाद के शिकार हो जाते हैं । हमारे सोते ही मांसपेशियाँ ढीली और शांत हो जाती है । शरीर का तापमान और ब्लडप्रेशर भी संतुलित हो जाता है । शरीर की यह क्रिया ही बैटरी को रिचार्ज करने जैसी है । निश्चय ही आप वैसे हैं जैसी आपकी नींद है। रात और दिन दोनों एक-दूसरे के सहारे हैं। अच्छा दिन अच्छी रात का कारण है और अच्छी रात अच्छे दिन का आधार है । हमें छ:सात घंटे अच्छी प्यारी नींद लेनी चाहिए। जैसे ही आप बिस्तर पर जाएँ स्वयं को हर समस्या से मुक्त कर लें। नींद एक छोटी मौत है। जैसे मौत में हम सब चीजों से बेखबर हो जाते हैं ऐसे ही अच्छी प्यारी नींद लेने के लिए हम स्वयं को प्रकृति को समर्पित कर दें । निश्चय ही आपकी नींद जितनी लम्बी और मस्त होगी, आपकी प्रभात उतनी ही स्वस्थ, शुभ और स्फूर्त होगी। पर सावधान, यदि आप कुंभकर्णी नींद सोते हैं तो अलार्म घड़ी लगाकर सोइये, सूर्योदय से पहले जगिये, सुबह घूमने जाइये, दिन में मत सोइये, सदा मुस्कान और ताज़गी से भरे रहिये, आप धीरे-धीरे कुंभकर्णी निद्रा से मुक्ति पा लेंगे ।
छठा चरण है : 'एक घड़ी, आधी घड़ी, आधी में पुनि आध' ही सही, तनाव से दूर रहने के लिए थोड़ी देर ध्यान अवश्य कीजिए। ज़रूरी नहीं है कि आप सुबह ही ध्यान करें वरन् जब भी आप को समय मिले आप पन्द्रह से बीस मिनट के लिए ध्यान करने बैठ जाएँ । शरीर और दिमाग़ को पूरी तरह सहज और ढीला छोड़ दें। आलस्य और प्रमाद का त्याग करके केवल अपने दिमाग़ को, अपने अन्तर्मन को शांत करने की कोशिश करें। धैर्यपूर्वक अपने अन्तर्मन से मुलाकात करते रहें और यह बोध रखें कि मैं अपने दिमाग़ और अन्तर्मन को शांतिमय और आनंदमय बना रहा हूँ। शुरू में शांत होने की कोशिश थोड़ी कठिन लगेगी, पर धीरेधीरे हफ्ते-दस दिन में ही हम पाएँगे कि हमारे अन्तर्मन तक हमारी पहुँच होने लग गयी है, उसकी चंचलता कम हुई है। वह अपेक्षाकृत शांतिमय होने लगा है। ध्यान से जहाँ स्ट्रेस हार्मोन्स के निर्माण पर अंकुश लगता है वहीं दिमाग़ और हृदय अधिक स्वस्थ होता है । शरीर स्फूर्त और
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ऊर्जावान होता है। स्वयं की मानसिक शक्ति प्रखर और एकाग्र होती है। हम
आंतरिक सत्य, सौन्दर्य और आनंद के अधिक करीब होते हैं। ध्यान और कुछ नहीं है केवल धैर्यपूर्वक स्वयं में स्थिर होकर स्वयं का अवलोकन है । ध्यान के गर्भ से ही मुक्ति की अवस्था का सर्जन होता है और इसीलिए वह परम पवित्र और परम श्रद्धास्पद है।
स्वस्थ, सफल और तनावमुक्त जीवन जीने के लिए सातवाँ क़दम है : अपने निराशावादी विचारों का त्याग कीजिए और मन में आशा, उत्साह और उमंग का संचार कीजिए। निराशा अंधकार है और आशा प्रकाश है। निराशा नरक है और आशा स्वर्ग है। आशा और उत्साह ही जीवन का धर्म है, वहीं निराशा और हताशा ही जीवन का विधर्म है । सफलता का पहला और सीधासरल मंत्र है : हर वक़्त अपने आप को उत्साह और ऊर्जा से भरे हुए रखिए। निराश और हताश लोग रोम के बादशाह नीरो की तरह हुआ करते हैं, जो उदासीनता के जुनून में किसी पहाड़ी की चोटी पर बैठकर अपने खूबसूरत रोम को धूं-धूं कर जलते हुए देखते रहते हैं । ऊर्जा से भरे हुए लोग उस विवेकानंद की तरह होते हैं, जो साधारण वस्त्रों में रहकर भी असाधारण व्यक्तित्व की मुहर पूरे विश्व की मानवजाति पर लगा देते हैं।
मन में हिम्मत रखिये और दिल में प्रभु के प्रति विश्वास। भाग्य के चार दरवाज़े बन्द हो गए तो क्या हुआ? दीवार तोड़ कर अपने लिए रास्ता बनाइये। रात के अंधेरे में चाँद और तारे सहयोग करें तो अच्छी बात है, नहीं तो आप खुद ही अपने चिराग़ बन जाइये। आखिर हर प्रभात का जन्म रात के अंधेरे से ही होता है।
याद रखिए जब भी आप किसी से नाराज़ होते हैं अथवा नकारात्मक या निराशावादी सोच से घिर
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जाते हैं। तो आप अपना खुद का ही नुकसान कर रहे होते हैं ।
तनाव से दूर रहने का आठवाँ क़दम है : घर-दफ्तर में अकेले पड़े रहने की बजाय थोड़ा-सा मेल-मिलाप बढ़ाएँ । अकेले पड़े रहने से उदासीनता बढ़ती है वहीं अपनों से मिलना प्रसन्न रहने का सबसे अच्छा तरीका है । हो सकता है अब तक आप औरों से ही नहीं अपने घर वालों से भी कटे-कटे रहे हैं । आपका मुर्दानी चेहरा देखकर स्वयं आपके बच्चे ही आपसे दूर भागते आए हैं। आप प्रेम और आशावादी विचारों को अपनाइये । ये आपके लिए किसी संजीवनी का काम करेंगे। दूसरों को सदा प्रेम, सम्मान और इज़्ज़त देना किसी स्वर्ण पदक पाने से भी ज़्यादा कठिन हुआ करता है ।
आप सार्वजनिक कार्यक्रमों में अवश्य शरीक हों । पिकनिक या पार्टी में शरीक होने का मौका न चूकें। अच्छे संतों के सत्संग में सम्मिलित होकर उनके प्रभावी प्रवचनों का भी लाभ उठाएँ, इससे आपकी मानसिकता उज्ज्वल होगी और आपकी सामाजिकता का विस्तार होगा ।
आखिरी बात, तनाव से दूर रहने का नौवाँ
चरण : अपने हर कार्य को शांति और धैर्यपूर्वक संपादित कीजिए। उठाए गये काम को कभी अधूरा मत छोड़िए । स्वयं के जीवन का प्रबंधन करना एम.बी.ए. पास करने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है । अधीरता घाटे का सौदा है, वहीं धैर्य सफलता की ओर ले जाने वाली सीढ़ी है। धैर्य और मक्कमता ने ही इंसान को महावीर और बुद्ध बनाया है, कृष्ण और कबीर बनाया है, गाँधी और गोरबाच्योव बनाया है और इसी ने ही किसी को धोनी और अंबानी बनाया है । आप भी अपने भीतर अपने उत्साह और उमंग को जाग्रत कीजिए। सफलता का नया लक्ष्य बनाइये । जीवन को श्रेष्ठ और आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ प्रदान कीजिए ।
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जीने की कला
दिमाग को न बनने दें
शैतान का घर
हर समय व्यस्त
हर हाल में मस्त
अपनी बात की शुरुआत एक छोटी सी कहानी के साथ करूँगा। कहानी भले ही किसी बीते जमाने की हो किन्तु जब तक धरती पर मनुष्य रहेगा यह कहानी उस पर लागू होती रहेगी। कहते हैं किसी आदमी को अपने खेत पर काम करते हुए एक पुराना सा चिराग़ मिला। चिराग़ वह अपने घर ले आया। उस पर जमी हुई मिट्टी को धोने के लिए जैसे ही उसे साफ करने लगा कि अचानक उस चिराग़ में से एक जिन्न प्रकट हुआ और बोला बन्दा हाजिर है मेरे आका, आपने मुझे बुलाया और मैं हाजिर हो गया। मेरे आका आप मुझे जो भी हुक्म देंगे मैं उसे ताबड़तोड़ बज़ा लाऊँगा। मगर मालिक याद रहे, कि खाली बैठना मेरी आदत नहीं है अगर आप मुझे काम नहीं देंगे तो मैं उसे ही खा जाऊँगा जिसने मुझे चिराग़ को रगड़कर बुलाया है।
अपनी सेवा में जिन्न को उपस्थित देखकर आदमी बड़ा खुश हुआ। उसने
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पहला ही हुक्म दिया, जाओ और मेरे लिए शाही भोजन का इन्तजाम करो। आदमी के हुक्म देने की देर थी कि पलक झपकते ही उसके सामने बेहतरीन लज़ीज़ खाना तैयार था। जैसे ही खाने पर उसकी नजर पड़ी कि जिन्न ने कहा नया हुक्म दीजिए मेरे आका, खाली बैठना मेरी फितरत नहीं है। ___ आदमी ने कहा जाओ, मेरे और मेरे परिवार के लिए शाही कपड़े और ज़ेवरात ले आओ। जिन्न गायब हुआ। आदमी जैसे ही खाना खाने को तत्पर हुआ कि तभी जिन्न ने हाजिर होकर कहा, हो गया हुजूर आपका काम, नया हुक्म दीजिए।
जिन्न के चमत्कारों को देखकर आदमी आश्चर्यचकित हो गया उसने पहला कौर मुंह में डालते हुए कहा, जाओ और मेरे लिए शानदार शाही महल तैयार करो। हां, ध्यान रखना उसमें दास-दासियाँ भी हों, महल की सुरक्षा के लिए सैनिक भी हों, नक्काशी ऐसी हो कि मानों हैदराबाद के निज़ाम का महल हो, और विशाल इतना हो जैसे कि दिल्ली का लालकिला। ___आदमी अभी खाना पूरा भी न कर पाया था कि जिन्न दुबारा हाजिर हो गया और उसने कहा अब क्या करूँ हुजूर।
इस बार आदमी चकराया क्योंकि उसे पता था कि जिन्न को अगला काम न बताया गया तो यह मुझे खा जाएगा, जबकि यह हर काम चुटकियों में पूरा कर लेता है। आदमी ने कहा जाओ मेरे लिए आगरा के पैठे, जोधपुर की मावे की कचौरी, बम्बई की भेलपुरी और दिल्ली के परांठे ले आओ। आदमी ने सोचा मैंने इतने सारे शहरों के नाम बता दिए हैं कि वहाँ घूम कर आने में ही यह भूल-भूलैया में भटक जाएगा।
पर यह क्या, जिन्न सारी चीजें लेकर पलक झपकते ही हाजिर हो गया। उसने वापस नया हुक्म देने को कहा। हालांकि पहले तो आदमी घबराया मगर
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तभी उसने थोड़ा-सा दिमाग़ से काम लिया और जिन्न को नया काम बताया, महल के बाहर 500 फुट गहरी खाई खोदो, फिर उसे भर दो फिर खोदो फिर भरो और जब तक मैं नया काम न बताऊँ यही काम करते रहो ।
जिन्न समझ गया कि इस बार आका ने वह काम बताया है कि जो कि जिन्दगी भर करता रहूँ तो भी खत्म नहीं हो सकता । जिन्न को जीतना दुनिया में किसी के भी हाथ नहीं
है। आदमी को जिन्न से केवल इसलिए छुटकारा मिल पाया कि आदमी जानता था कि बैठे से बेगार भली । यानि निठल्ला बैठे रहने से तो जो भी मजदूरी हो जाए वही खुशकिस्मती ।
दुनिया में अधिकतर वे ही लोग शैतानी करने पर उतरा करते हैं जो खाली दिमाग़ के होते हैं । निश्चय ही, दिमाग खाली होगा तो खुराफात तो करेगा ही । खाली दिमाग़ ही शैतान का घर होता है । जो लोग अपने दिमाग़ का सदा रचनात्मक और सकारात्मक उपयोग किया करते हैं उनके लिए इंसान का दिमाग कुदरत की सबसे बड़ी नेमत, ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार है । जो लोग ऐसा नहीं पाते हैं उनका दिमाग़ भी इधर-उधर की सोचता रहता है, ऐसे लोग ही चोरी - जारी करते हैं, हत्या - बलात्कार करते हैं या हा-हा-ही-ही करते हुए छोरे-छोरियों को छेड़ते रहते हैं ।
दुनिया में काम करने को अनगिनत हैं। दुनिया में इतने सारे काम हैं कि धरती पर रहने वाले सारे इंसान भी उसके लिए कम पड़ते हैं । भगवान ने पेट अगर करोड़ों बनाए हैं तो हाथ उनसे दुगुने बनाए हैं। जो स्वयं काम करने में अपने आप को नहीं लगा पाते हैं वे लोग हाथों का उपयोग फिर कर्म के लिए नहीं कर पाते, शर्मसार होने के लिए करने लग जाते हैं ।
आपने कई दफ़ा गौर किया होगा कि जैसे ही आप अपना स्कूटर स्टार्ट करते हैं कि पीं-पीं की आवाज़ आनी शुरू हो जाती है, आप चौंक उठते हैं,
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सोचते हैं न जाने स्वीच कैसे खराब हो गया पर जब ध्यान देते हैं तो पाते हैं कि किसी उदंडी लड़के ने आपके हॉर्न के स्वीच में लकड़ी का एक तिनका फंसा दिया है। उस लड़के का तो कुछ न बिगड़ा पर आपका स्वीच जरूर खराब हो गया। तभी आपके मुंह से निकल पड़ा-खाली दिमाग़ शैतान का घर।
एक दफ़ा मैं किसी रास्ते पर खड़ा था, मैंने देखा कि एक महिला अपनी खरीददारी करके सामने की दुकान से निकलकर आई। उसने स्कूटर की डिक्की में अपना सामान रखा, स्कूटर पर बैठी और किक मारा। किक मारते ही स्कूटर जोर से उछल पड़ा और महिला गिर पड़ी। पांव में फेक्चर हो गया। क्या आप जानते हैं कि इसका कारण क्या है ? महिला के दुकान में चले जाने के बाद कोई सिरफिरा लड़का उधर से गुजरा होगा, चलते-चलते उसने खड़े स्कूटर का गियर बदल दिया होगा। लड़के ने तो ऐसे ही मटरगश्ती में गियर बदल दिया होगा पर उसकी मटरगश्ती वह लड़का नहीं जानता होगा कि उस महिला के लिए कितनी महँगी पड़ी। हालांकि मैंने उस महिला को हॉस्पिटल पहुँचवाया पर मुझे उस वक्त भी यही याद आया-- खाली दिमाग़ शैतान का घर।
जिस बात की ओर मैं आप लोगों का ध्यान केन्द्रित करना चाहूँगा वह बात तो मैंने देश के हर कोने में पाई है। पदयात्रा करते हुए हमें हर किलोमीटर पर मील का पत्थर देखने को मिलता है। आधे से अधिक मील के पत्थरों पर लिखे हुए किलोमीटर के अंक बच्चों के द्वारा या तो घिसे हुए या उनके बदरूप किए हुए रूप देखने को मिलते हैं। उन अंकों को देखकर मुसाफिरों को कई दफ़ा कन्फ्यूजन भी हो जाता है पर इन बच्चों को कौन समझाए। यह सब काम वही बच्चे करते हैं जो पढ़ाई-लिखाई में अपना मन नहीं लगा पाते।
आपने अपने स्कूटर की सीट कवर पर तो कई दफ़ा ब्लेड चली हुई देखी होगी। आपको कई दफ़ा इस चीज पर गुस्सा भी आया है। आप दूसरों के बच्चों
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की इस शैतानी पर जरूर खार खाए बैठे होंगे, पर सावधान देख लें कहीं आपका अपना बच्चा भी तो किसी और के स्कूटर के सीट कवर पर ब्लेड चलाने का आदी तो नहीं है। आखिर कहीं न कहीं अपने से ही शुरूआत करनी होगी। खाली दिमाग़ तो चाहे मेरा हो या आपका उम्मीद करते हैं वह खुराफाती ही होगा ।
एक दिन तो बड़ा गज़ब ही हुआ । मैं, ललितप्रभ जी और कुछ स्नेहीजन किसी के घर जा रहे थे। बात भीलवाड़ा की है । इतना अच्छा शहर, पर लंका में भी कोई दरिद्र मिल ही जाता है। भीलवाड़ा नाम से तो भीलों का लगता है पर भीलों में ही तो एकलव्य हुए हैं। भीलों में ही महावीर का पूर्वजन्म हुआ है। भीलवाड़ा तो महज भीलों की नहीं, भगवानों की नगरी है, पर क्या करें ? द्वारका में भी तो छेद करने वाले लोग तो बैठे ही हैं। तो हम उस भीलवाड़ा
एक रास्ते से गुजर रहे थे कि तभी हमारी नजर मार्गवर्ती एक बड़े विद्यालय पर गई। स्कूल के बाहर स्कूल के नाम का बोर्ड लगा हुआ था। बोर्ड के नीचे एक खास पंक्ति लिखी हुई थी -- समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा निर्मित । ललितप्रभ जी ने मेरा ध्यान उस ओर आकर्षित किया, क्योंकि उसी स्कूल के बच्चों ने अपनी खुराफाती करके अर्थ का अनर्थ कर डाला था। किसी खुराफाती ने मंत्रालय के म पर लिखे हुए बिन्दु पर तो रंग पोत डाला और अपनी कारीगरी दिखाते हुए म के नीचे लिख डाला। हमें यह सब देखपढ़कर हंसी तो खूब आई पर यह भी विचार आया कि न जाने इस देश की हालत कब सुधरेगी ? जब बच्चों से ही देश का निर्माण होता है तो उस देश का क्या निर्माण होगा जहां के बच्चे अपनी बुद्धि का उपयोग मंत्रालय को भी
मूत्रालय बनाने में करने लग चुके हैं। स्कूलों के मास्टर भी ऐसे जो इस तरह की चीजों को इग्नोर, नज़रअंदाज़ करते हैं ।
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मैं चाहता हूँ इस देश के लोग अपने दिमाग़ अपने मन, अपनी
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बुद्धि को सही सकारात्मक दिशा प्रदान करें हम अपने दिमाग़ को खाली न रहने दें। दिमाग़ को शैतान का घर न बनने दें। नेगेटिविटी हम पर हावी हों, नकारात्मकता आपको खा जाए, उससे पहले दिमाग़ को सक्रिय कीजिए और अपने दिमाग़ को
सकारात्मक मोड़ दीजिए। अपने दिमाग़ को काम में लगाइये । अपने जीवन में व्यस्त रहने की आदत डालिए। दिमाग़ हमेशा आलतू-फालतू सोचता रहता है । धैयपूर्वक आप अपने दिमाग को समझिये और देखिए कि वह क्या चीज है जिसे दिमाग़ में रखा जाना चाहिए और वह कौनसा कचरा है जिसे दिमाग़ के घर में से झाड़-पौंछ कर बाहर निकाल देना चाहिए ।
मेरे दिमाग को मैं ठीक करूँगा, आपके दिमाग को आप । मुझे सुधारने की ज़वाबदारी मुझ पर है और आपको सुधारने की जवाबदारी आप पर है। मेरे द्वारा आपको सम्बोधित करने के पीछे मेरा उद्देश्य आपको सुधारना नहीं है वरन् स्वयं प्रति स्वयं का ध्यान आकर्षित करना है । आखिर आदमी अपने जीवन में वही करेगा जैसी उसको उसके दिमाग़ की प्रेरणा होगी। दिमाग अगर दुरुस्त है तो जिन्दगी दुरुस्त है । दिमाग़ अगर गड़बड़ है तो सारी ज़िन्दगी ही गड़बड़ है ।
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ध्यान रखिये आपको मैं नहीं सुधारूँगा । व्यक्ति स्वयं ही स्वयं को सुधारता है। आत्म-सुधार ही प्रभावी होता है। प्रेरित सुधार कभी भी शिथिल हो सकता है पर अपने स्वयं के द्वारा होने वाला सुधार पहाड़ की तरह मजबूत होता है ।
दिमाग़ सदा सक्रिय, सचेतन और सकारात्मक रहे इसके लिए मेरा पहला फार्मुला है: अपने को व्यस्त रखिए, हर हाल में मस्त रहिए । स्वयं को व्यस्त रखना दिमाग़ को शैतान का घर न बनने देने का सबसे अच्छा तरीक़ा है । खाली बैठा दिमाग़ शेख चिल्ली न बनेगा तो और क्या करेगा । अगड़म - बगड़मबम्बे - बो, अस्सी नब्बे पूरे सौ । आलतू फालतू की सोचता रहेगा। होना-जाना उससे कुछ न होगा। उससे मोटी बातें भले ही ठुकवा लो, पर करने के नाम पर
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पानी पताशा फस्स।
खुद को व्यस्त कीजिए। दिन में तो व्यस्त रखिए ही, अगर रात में नींद न चढ़े तो आलतू-फालतू करवटें बदल कर बिस्तर को गूंदते रहने की बजाए अपने आप को किसी काम में लगा लीजिए। फिर अपने आप नींद आने लग जाएगी। दिमाग को रिलेक्स दिया जाना चाहिए, पर रिलेक्सेशन की इतनी भी आदत न पड़ जाए कि वह कोई काम का ही न रहे । दिमाग़ को स्वस्थ और तनावमुक्त रखिए। वह आलतू-फालतू की खाइयों में न गिर जाए इसलिए उसे व्यस्त भी रखिए।
कहते हैं महान वैज्ञानिक एडिसन को काम करने का नशा था। वह एक बार अपनी धुन में एक जब प्रयोगशाला में घुस जाते तो बाहर नहीं निकलते थे। उनकी इस फ़ितरत से उनकी पत्नी हमेशा उन पर चिढ़ी रहती थी।
एक बार एडिसन की पत्नी ने उनसे कहा, आप लगातार काम करते रहते हैं। कभी तो छुट्टी ले लिया करें।
एडिसन ने पूछा, आखिर छुट्टी लेकर जाऊँगा कहाँ ? पत्नी ने कहा, कहीं भी जहाँ आपका मन चाहे।
अच्छा, तो मैं वहीं जाता हूँ, कहकर एडिसन फिर से प्रयोगशाला में घुस गए।
तो यह हुई काम करने की धुन । भला जो लोग अपने आपको इस कदर व्यस्त और मसरूफ़ रखते हैं वे लोग न केवल अपने दिमाग़ को गलत राहों पर चले जाने से बचा लेते हैं अपितु ऐसे लोग ही सफलता के नये द्वार खोल पाने में भी समर्थ होते हैं। इन्हीं एडिसन से बल्ब का आविष्कार किए जाने पर जब पत्रकारों के द्वारा यह पूछा गया कि आपको इस आविष्कार में कितना वक्त लगा? तो उन्होंने सहज जवाब दिया, क्षमा करें मेरे काम करने के कमरे में कोई घड़ी नहीं थी।
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खुद को व्यस्त रखना अपने आप में कर्मयोग की साधना है। मैं स्वयं कर्मयोगी हूँ। कर्मयोग मेरी फितरत में है। मैंने गीता से कर्मयोग की प्रेरणा पाई है। चाहे आप हों अथवा आपका समाज या यह सारा देश, सबके विकास की धुरी कर्मयोग ही है।" कर्मयोग करो अर्थात मेहतन करो। मेहनत इस कदर करो कि मानो मेहनत पर ही आपका जीवन टिका हुआ हो। ___ जब मैं कह रहा हूँ कि स्वयं को व्यस्त रखो तो यह बात उन बच्चे और बच्चियों के लिए भी है जो अभी तक पढ़ रहे हैं अथवा जिन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी है। यह बात घरेलु महिलाओं के लिए भी है जिनके घर में काम करने के लिए दो-चार नौकर रहते हैं । जो काम नहीं करते उन्हीं लोगों को योगासनों की जरूरत पड़ती है। जो हर हाल में खुद को एक्टिव रखते हैं, स्वावलम्बी होते हैं उनका योगासन तो अपने आप ही हो जाता है । मैं बुजुर्गों से भी कहूँगा कि वे भी अपने आप को व्यस्त रखें। बच्चियों को चाहिए कि वे अपनी पढ़ाई के अलावा अपनी माँ अथवा भाभी के कार्यों में सहयोग करें और बुजुर्गों को चाहिए कि वे अपने घर के छोटे बच्चों को सम्हालें, उन्हें अच्छी कहानियाँ सुनाएँ इससे आपका समय भी आराम से पास होगा और आपके बच्चों में संस्कार भी अच्छे पड़ेंगे। और कोई काम न हो तो चिलम-बीड़ी फूंकते रहने की बजाए घर में कुछ पौधे लगा लो। उनकी बागवानी कर लो। ऐसा करने से वृक्ष देवता और प्रकृति देवी की सेवा भी हो जाएगी, घर का वायुमंडल भी स्वच्छ रहेगा। आप खुद को व्यस्त भी रख पाएँगे। आधे घंटा सुबह-शाम प्रभु का भजन कर लिया करें। इससे मन को सुकून भी मिलेगा, प्रभु की भक्ति भी हो जाएगी और समय का सही सदुपयोग भी हो जाएगा।
__ और कुछ नहीं तो किसी सरकारी अस्पताल में चले जाया करें । दो-चार घंटे वहाँ रहकर उन मरीज़ों की देखभाल कर आया करें जिनके कोई परिजन नहीं हैं। हो सकता है आपमें से किसी के पास अधिक मदद करने की गुंजाइश
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न हो पर आप किसी ज़रूरतमंद मरीज़ को एक कप चाय तो लाकर पिला सकते हैं। उसके बिस्तर और तकिये की खोली तो बदल सकते हैं। और कुछ नहीं तो किसी मरीज़ के पास बैठकर कोई अच्छी सी
किताब या अखबार तो पढ़कर सुना सकते हैं। स्वयं को व्यस्त रखने के हजार तरीक़े हैं। जो आपको सुटेबल हो आप उसका चयन कर लीजिए, बस काम ऐसा हो जो आपके मन को सुकून दे । जिसका परिणाम सकारात्मक और पुण्यमयी हो ।
अपने से ही जुड़े हुए एक अच्छे महानुभाव हैं - श्री आसुलाल जी वडेरा । बड़े मस्त आदमी हैं । उम्र होगी क़रीब अस्सी से पिचयासी वर्ष के बीच । पता है काम क्या करते हैं ? सुबह दस बजे अपनी कार लेकर निकल जाते हैं अपने परीचितों और मित्रों के पास | उन्हें समझाते हैं, उनसे सहयोग लेते हैं और गौशालाओं में घास भिजवा देते हैं या हॉस्पिटल में आने वाले मरीज़ों के लिए भोजन की व्यवस्था करते हैं । आप भी ऐसा कार्य चूज कर सकते हैं । करके देखिए तो सही आपको कितना मज़ा आएगा।
जब मैंने हॉस्पिटल में इसी तरह की सेवा करने वाले एक महानुभाव से कहा कि आप सचमुच महान हैं तो उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे जवाब दिया, नाना मैं महान वगैरह कुछ नहीं हूँ। मैं तो बस टाइम पास कर रहा हूँ। सच कहूँ तो मैं अपने खाली दिमाग़ को शैतान का घर बनने से रोक रहा हूँ ।
मेरे अपने आदरणीय भाईसाहब हैं - - प्रकाश जी । बड़े गज़ब के आदमी हैं । अद्भुत कर्मयोगी हैं। अपने आप में एक चलता फिरता मैनेजमेंट हैं । दस एमबीए वालों का काम अकेले निपटा लेते हैं । काया पचपन वर्ष की हो गई मगर सक्रियता दस जवानों से ज्यादा है। उनकी पत्नी जी और उनकी बेटी का
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एक साथ स्वर्गवास हो गया । उन्होंने दूसरी शादी भी नहीं की । जब लोगों ने बहुत ज्यादा दबाव डाला दूसरी शादी के लिए तो उन्होंने कहा, मेरे माता-पिता और मेरे दो छोटे भाइयों ने संन्यास का महान जीवन धारण कर रखा है। अब मैं दूसरी शादी नहीं वरन् दूसरी तरह की सेवाओं में अपने आप को समर्पित करूँगा। आप यह जानकर ताज्जुब करेंगे कि हमें संन्यास लिए सताईस वर्ष हो गए मगर इसके बावजूद वे अपना हर रविवार हमारे पास बिताते हैं । हमारी और जितयशा फाउंडेशन की सारी सेवा मुख्यतः वे ही सम्हालते हैं। उन्होंने अपने लाखों रुपये तो अब तक केवल ट्रेवलिंग में खर्च कर दिए हैं। उन्हें सौंपा गया काम बस समझ लो हो गया पूरा । निश्चय ही कर्म करना यदि योग है तो वे पक्के कर्मयोगी हैं।
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एक और आदरणीय महानुभाव का नाम उल्लेखित करना चाहूँगा -- श्रीमाणक जी संचेती। वे सी. ए. हैं। बड़े समाजसेवी और देव पुरुष हैं। रोजाना चार घंटे मानव सेवा और समाज सेवा के लिए समर्पित करते हैं। किसी समय उनकी पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया था । उन्होंने भी दूसरी शादी नहीं की । स्वयं को समाज के ज़रूरतमंद लोगों की सेवा में लगा दिया। लोगों में उनकी पैठ भी इतनी अच्छी है कि लोग उन्हें सेवाकार्य में लगाने के लिए गड्डियों की गड्डियाँ थमा जाते हैं। भला जब धरती पर ऐसे सेवा भावी लोग रहते हैं तो वहाँ स्वर्ग का सुकून तो अपने आप ही उपलब्ध हो जाता है ।
आप देखिए कि आपके पास कितना समय ऐसा है जिसे कि आप अपने लिए एक्स्ट्रा समय समझते हैं। आप अपने आप को तौलिए और अपने समय को सार्थक दिशा प्रदान कीजिए ।
जहाँ मैं स्वयं को व्यस्त रखने की बात कह रहा हूँ वहीं स्वयं को हर हाल में मस्त रहने की भी सलाह दे रहा हूँ । हर हाल में मस्त रहना जीवन को सुखमय बनाने का सीधा सा उपाय है। स्वयं को
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सदाबहार प्रसन्न रखना दिमाग को नकारात्मक भावों से बचाए रखने - का सबसे सरल तरीक़ा है। यदि कोई कहे कि मुझे चिंता बहुत सताती है तो मैं कहूँगा कि तुम चिंता की चिंता छोड़ो और हर हाल में
मस्त रहना सीखो। यदि कोई कहे कि उसे क्रोध बहुत आता है तो मैं कहूँगा कि तुम हर हाल में मुस्कुराते रहो। क्रोध स्वतः काफूर हो जाएगा।
__ मस्त और प्रसन्न रहना तो जीवन की सबसे बडी पॉजिटिवनेस है। सदा हंसमुख और मस्त रहने वाला आधी दिमागी समस्याओं से तो खुद ही मुक्त हो जाता है। अपने आप को बच्चा ही बना लो। जैसे बच्चा हर वक्त मस्त रहता है वैसे ही मस्त रहो। चाहे कोई जन्मे या मरे, घाटा लगे या मुनाफ़ा, अपना राम तो अपने में मस्त। __गाँधी जी से जब किसी ने कहा कि आप बकरी का दूध पीते हैं। पशु का दूध पीने से तो आदमी में पशुता आती है। गाँधी जी ने तपाक से कहा, दूर हट, नहीं तो अभी सींग मार दूंगा।
देखा मस्ती। तुम भी ऐसे ही मस्त रहो।खुद को लाफिंग बुद्धा बना लो। मैं भी लाफिंग बुद्धा हूँ आप भी लाफिंग बुद्धा बन जाओ। लाफिंग बुद्धा यानी हंसता-मुस्कुराता बोधपूर्वक जीने वाला इंसान।
यह सब तभी संभव है जब आप अपने नज़रिए को जीवन के प्रति बहुत अच्छा, बहुत उमंग भरा और बहुत सकारात्मक बनाएँगे। जीवन में नज़रिए की बड़ी अहमियत है। अच्छा नज़रिया आदमी के जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है और बुरा नज़रिया आदमी की सबसे बड़ी बदकिस्मती है। नज़रिया अच्छा हो तो जीवन हीरों की खान नजर आता है। नज़रिया अगर बेकार हो तो सड़क पर चलना भी बोझ बन जाता है। घटिया नज़रिये वाले लोग ही स्कूटर के सीट कवर पर ब्लेड चलाते हैं । अस्पतालों में भी दीवारों पर पीक थूकते हैं। अपने
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सामानों को अस्त-व्यस्त रखते हैं। उनकी जिंदगी बिना मक़सद की होती है। वे खुद तो तनावग्रस्त रहते ही हैं दूसरों को भी तनाव के रास्ते पर ले जाते हैं । आप अपना नज़रिया बदलिए। नज़रिये को अहमियत दीजिए। उसे सकारात्मक बनाईए। सकारात्मक नज़रिये के लोग ही मुश्किलें सुलझाते हैं । वे समाधान का हिस्सा बनते हैं। क्वालिटी को बेहतर बनाते हैं। बेहतर रिश्तों और अच्छी जीवन शैली में विश्वास रखते हैं । गलत नज़रिये वाले लोग ही हमेशा नुक्श निकालते हैं जबकि सही नज़रिये के लोग किसी चोर के भी बंसी वादन का आनंद उठा लेते हैं।
मेरे जीवन में तो मेरी शांति, मेरी सकारात्मकता, मेरी आनंददशा और मेरा नज़रिया ही मेरे जीवन की सबसे बड़ी दौलत है। आपको भी मैं अपनी उसी विरासत का हिस्सेदार बना रहा हूँ। अपने दिमाग को सदा स्वस्थ, सक्रिय, सकारात्मक और आनंदमय बनाए रखना जीवन की सबसे महान सफलता है।
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जीने की कला -5
7 स्टेप्स में सीखिए बोलने की कला
कमान का तीर वश में
पर वाणी का तीर कैसे वश में|
कुदरत ने हर किसी इंसान को एक बहुत बड़ी क्षमता दी है और वह है बोलने की क्षमता। वाणी वह आधार है जो कि हमें धरती के सब प्राणियों में सिरमौर बनाती है। वाणी से ही व्यापार होता है, वाणी से ही रिश्ते बनते हैं और वाणी से ही समाज का निर्माण होता है । पशु और इंसान के बीच अगर कोई फ़र्क करने वाला तत्त्व है तो उनमें पहला है इंसान की वाणी। ___ आदमी शिक्षित होने के लिए पूरे पच्चीस साल लगाता है और समृद्ध होने के लिए पचास साल। परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने को वह अपने जीवन की असफलता मानता है और व्यापार में होने वाले नुकसान को वह अपने लिए नाकामयाबी स्वीकार करता है, किंतु व्यक्ति यदि सबसे कम गौर किसी पर करता है तो वह अपने स्वयं के द्वारा बोली जाने वाली वाणी है । वाणी का मतलब यह नहीं है कि जो मुंह से निकल गया वही वाणी है । वाणी तो वह हुआ
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करती है जिसका उपयोग किया जाए तो वह व्यक्ति के दिल को भी शीतल किया करती है और औरों के दिलों को भी। इसीलिए तो कहते हैं -
वाणी ऐसी बोलिए मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय॥ भले ही कोई व्यक्ति खुद को सजाने के लिए गले में सोने की चेन पहने या हाथ में ब्रासलेट। चाहे कोई महिला हाथों में हीरों का कंगन पहने या नाक में सोने की नथनी, पर याद रखिए कि इंसान की शोभा इन बाहर के रूप- रूपायों से नहीं है, वरन् उसके द्वारा बोली जाने वाली मधुर और संस्कारित वाणी ही उसकी असली पहचान करवाती है । निश्चय ही जीवन में स्मार्टनेस का मूल्य है, पर याद रखिए स्मार्टनेस का मूल्य केवल 20 प्रतिशत है। 80 प्रतिशत मूल्य तो हमारे द्वारा बोली जाने वाली वाणी और व्यवहार से जडा हआ है। मीठी बोली ही व्यवहार को भी मीठा बनाती है और व्यक्ति का मीठा व्यवहार ही औरों के द्वारा मिठास भरा व्यवहार पाने का आधार निर्मित करता है। जो आदमी कभी कड़वा नहीं बोलता, सबके प्रति मीठी भाषा का उपयोग करता है, वह अनायास ही सबके दिलों पर राज किया करता है। मीठी वाणी तो उस गुलाबी गुलदस्ते की तरह है जिसे हर कोई व्यक्ति अपने हाथों में लेना चाहता है। काश, लेने वाला व्यक्ति दूसरों को देना भी सीख जाए तो घर-परिवार व समाज की आधी समस्याएँ तो ऐसे ही हल हो जाएँ। ___ हो सकता है कि किसी के पास सोना ज्यादा हो और किसी के पास जवाहरात ज़्यादा पर जिस व्यक्ति के पास उसकी शालीन भाषा है उसके पास तो सोना भी है और जवाहरात भी। उसकी तो जीभ ही हर समय सोना और जवाहरात पैदा करती रहती है। आप चाहें तो प्रयोग करके देख सकते हैं। यदि कोई सज्जन आपसे नाराज है या ग्राहकों के साथ आपका संतुलन नहीं है तो आप केवल इतना सा कष्ट उठाइये कि अपनी भाषा को मधुर और मुस्कान भरी बना लें। आखिर आपके
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सामने वाली दुकान पर ग्राहक ज्यादा पहुंचते हैं तो इसका कारण उस दुकानदार के माल की केवल बेहतरता नहीं है। सच्चाई तो यह है कि उसकी मुस्कान और उसकी सलीके वाली भाषा ग्राहक के दिलों में खुद-ब-खुद जगह बना लेती है। निश्चय ही आप अपनी भाषा को ठीक कीजिए और समस्याओं से निजात पाइये।
हमेशा इस बात को याद रखिए कि जो काम । सुई से निपट सकता है उसके लिए तलवार चलाना मूर्खता है और जो काम रूमाल से निपट सकता है, उसके लिए रिवॉल्वर चलाना बेवकूफी है।
कहते हैं : एक पुलिस इंसपेक्टर को किसी दंगे वाले इलाके में दौरा करना पड़ा। लोगों में इतनी उत्तेजना थी कि इंसपेक्टर को सामने देखते ही सबने उसे घेर लिया। सब आमने-सामने हो गए। किसी युवक को इतना गुस्सा आया हुआ था कि उसने इंसपेक्टर के मुंह पर जोर से थूक डाला। यह देखते ही हवलदार ने अपनी रिवॉल्वर निकाल ली और जैसे ही उस युवक को शूट करने लगा कि तभी इंसपेक्टर ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर उस हवलदार को रोका और पूछा, 'क्या तुम्हारी जेब में रूमाल है ?' हवलदार ने 'यश सर' कहते हुए झट से अपनी जेब से रूमाल निकाला और इंसपेक्टर को थमा दिया। इंसपेक्टर ने उस रूमाल से अपने गाल पर लगा हुआ पीक पौंछा और रूमाल को पास में ही बह रहे गंदे पानी की नाली में फेंक दिया। हवलदार ने पूछा, 'सर, यह क्या?' ___ इंसपेक्टर मुस्कुराया और कहने लगा, 'भई, जीवन भर याद रखो जो काम किसी रूमाल से निपट सकता है उसके लिए रिवॉल्वर चलाना बेवकूफी है।' ___ यह है आदमी की समझदारी । जिसके मुंह में मधुर वचन का अमृत है, हाथों में दान का अमृत है और हृदय में दया का अमृत है, वह इंसान तो सहज ही सबको प्रिय हआ करता है। बुद्धि की सार्थकता तभी है जब हम उससे तत्व-चिंतन करें, धन की सार्थकता तभी है जब हम उससे गरीबों की मदद करें और वाणी की धन्यता तभी है जब हम उसे प्रीतिकर
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ढंग से बोलें। बोलना आदमी की पहली विशेषता है, किंतु सत्य बोलना दूसरी विशेषता है । सत्य को भी यदि मिठास से बोला जाए तो यह तीसरी विशेषता है, पर उसे भी यदि धर्मसम्मत तरीके से बोला जाए तो यह आदमी की चौथी विशेषता कहलाएगी।
बोली बोल अमोल है जो कोई जाणे अमोल बोल ।
पहले अंदर सोचके, पीछे बाहर खोल ॥
पहले सोचिए, फिर बोलिए पहले तोलो, फिर बोलो। बिना विचारे मत बोलो। ढंग से बोलोगे तो वापस सामने वाला भी उतने ही सलीके ढंग से पेश आएगा। बेढंग से बोलोगे तो बेढ़ब ही लौटकर आएगा ।
एक दफा अभिषेक ने अपनी भाभी से कहा, 'काणी भाभी, पाणी पिला ।' यह सुनकर भाभी को बुरा लगा और भाभी ने वापस पलटकर कहा, 'कुत्ते को पिला दूंगी पर तुझे नहीं पिलाऊंगी।'
पांच मिनट बाद छोटा देवर नवरतन आया। उसने कहा, 'प्यारी भाभी, जरा पानी पिलाना।' भाभी ने हंसकर कहा, 'पानी नहीं, बादाम का शरबत पिलाऊंगी । '
क्या आप समझ गए कि आपकी भाषा औरों को आपके प्रति कैसा सलूक करने को प्रेरित करती है ? अपन लोग जनरल वे में कहा करते हैं, 'हे बाई बाडी, छाछ दीजे जाडी' तो वापस जवाब मिला 'जैसी थारी वाणी, वैसो छाछ में पाणी' यानि अच्छा बोलो अच्छा पाओ ।
अच्छा बोलना बीज बोने की तरह है । पाओगे आखिर वैसा ही जैसा बीज बोओगे। किसी से बोलना तो मिट्टी में से सोने को निकालने की तरह है । बोलना अपने आप में बहुत बड़ी कला है। इसमें आपकी सफलता का राज़ भी छिपा है और कैरियर का आधार भी । बोली से ही आदमी के कुल की पहचान होती है और बोली से ही व्यक्तित्व उजागर होता है। अच्छी और मधुर वाणी बोलना सुखी, सफल और मधुर जीवन का पहला और आखिरी मंत्र है ।
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आइए, हम अपनी वाणी को बेहतर बनाएँ, मधुर बनाएँ, प्रभावशाली बनाएँ।आखिर, लोहे का तीर जो काम नहीं कर सकता वचन का तीर वह काम कर जाया करता है। संतों के अमृत वचन से तो निर्दय और हत्यारे लोग भी दया के सागर बन जाया करते हैं। हर समय झूठ बोलने वाले लोग भी संत जनों के वचनों से प्रेरित होकर सत्यवादी हरिश्चन्द्र बन जाते हैं। कल तक जो लोग चोरी-डकैती करते थे, ऋषियों के वचनों से प्रभावित होकर वाल्मिकी ऋषि बन जाते हैं और लोभी, लालची तथा कंजूस कहलाने वाले लोग कभी-कभी निर्मल वाणी से ऐसे बदल जाते हैं कि वे दुनिया के लिए दूसरे भामाशाह बन जाते हैं। मधुर वचनों में तो वह ताक़त है कि लोहे की मोटी-मोटी जंजीरों से वश में न होने वाला हाथी महावत की मीठी पुचकार सुनकर उसकी अधीनता स्वीकार कर लेता है। आप भी अपनी वाणी को ठीक कीजिए और अपना करिश्माई प्रभाव देखिए।
इसके लिए मैं आपको केवल 7 हिन्ट्स दूंगा। आप उन पर गौर करें और दुनिया के सिरमौर बन जाएँ। ___ पहला अनुरोध : कटु और टोंट भरी वाणी न बोलें: अर्थात ऐसी वाणी बोलने से बचना चाहिए, जो दूसरों के दिलों को आघात पहुंचाएँ । दुनिया में आखिर कोई भी तलवार इतनी बेदर्दी से नहीं काटती जितनी कि इंसान की कटु वाणी लोगों के दिलों को काटा करती है। शरीर में गड़ी हुई बंदूक की गोली या चुभा हुआ कंटीला तीर कोशिश करके फिर भी निकाला जा सकता है, पर कड़वी ज़बान का काँटा अगर किसी के दिल को चुभ गया तो आदमी जब तक जीता है वह तब तक चुभता ही रहता है । न तो शत्रु किसी को इतना संतप्त करता है और न ही शस्त्र, न ही अग्नि किसी को इतना जलाती है और न ही विष, पर कड़वी भाषा शत्रु और शस्त्र से ज्यादा संतप्त करती है, अग्नि और विष से ज़्यादा जलाती है। ज़बान कड़वी हो तो सब दुश्मन हो जाते हैं, वहीं अगर ज़बान मीठी, मधुर हो तो सब वश में हो जाते हैं।
___ कड़वी जबान बोलने की बजाय न बोलना ज़्यादा अच्छा है। जो इंसान अपने मुंह में लगाम लगा लेता है और जीभ को वश में रखता है, उसे कभी
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मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता। मछली अगर अपना मुंह बंद रखना सीख जाए तो वह कभी भी मुसीबत में नहीं फँस सकती । भले ही कोई महाभारत का कारण जुए को बताता हो या चीर-हरण को, पर सच्चाई यह है कि द्रौपदी का यह एक वचन ही महाभारत का मूल बीज बनता है कि अंधे का बेटा भी आखिर अंधा ही होता है । अगर आपमें आत्मा है तो आप महाभारत की इस घटना से कुछ सबक लीजिए और अपने जीवन में संकल्प कीजिए कि मैं कभी भी कड़वी भाषा नहीं बोलूँगा, दिल को ठेस पहुँचाने वाले शब्द नहीं बोलूँगा, किसी का उपहास नहीं करूंगा, किसी के साथ गाली-गलौच करना पाप समझंगा ।
तन का हलका होना अच्छी बात है और मन का हल्का होना सुखकारी है, पर वाणी और व्यवहार का हल्का होना कभी भी अच्छी बात नहीं है। इसे आप यों समझिए ।
एक महिला ने अपने पति से पूछा, 'मेरी रसोई कैसी बनती है ?' पति ने कहा, 'रसोइया होता तो अभी तेरी छुट्टी कर देता ।' पति का इतना बोलना था कि पत्नी रुष्ट होकर पीहर चली गई ।
कृपया कड़वा मत बोलिए। एक पति ने अपनी पत्नी से कहा, 'क्या जायकेदार सब्जी
बनाई है ! दो रोटी और आने दो।' पत्नी ने झट से कहा, 'आठ तो खा चुके और कितनी खायेंगे ?
कृपया इस तरह की थर्ड ग्रेड की भाषा बोलने की बजाए थोड़ा सा प्यार से कह दीजिए ना, 'दो क्यों, चार और लीजिए न् ।' अब रोटी तो आपको और बनानी ही पड़ेगी। थोड़ा सा प्यार से जवाब दे दो तो खाने का जायका दुगुना हो जाएगा, नहीं तो जो खिलाया है वह भी गुड़ - गोबर हो जाएगा ।
दूसरा अनुरोध : न तो उपालम्भ दीजिए और न ही किसी की आलोचना कीजिए । कहने में तो हर कोई कह देगा कि आप मेरी कमी बता दीजिए, पर जितना सच यह है उतना ही सच यह भी है कि दुनिया में कोई भी इंसान अपनी कमी सुनना पसंद नहीं करता । पसंद हमेशा तारीफ़ की जाती है ।
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तारीफ़तोअगर गधे की भी कर दो वह भी घोड़े की तरह हिनहिनाने लग जाएगा।
अगर आपकी निंदा और आलोचना करने की आदत हो तो आप उसे केवल दस दिन के लिए छोड़ दीजिए और इसकी बजाय उसकी अच्छाईयों की तारीफ़ करने की आदत डाल लीजिए। आप चमत्कार देखेंगे कि जो लोग अब तक आपसे दूर खिसके रहते थे अब वे ही आपके क़रीब आने लग गए हैं। कल तक जो आपके आलोचक थे, आज उन्हीं के मख से आपके लिए तारीफ़ के शब्द निकल रहे हैं । तारीफ़ पाने का सीधा सरल रास्ता है : आप खुद दूसरों की तारीफ़ कीजिए।
किसी की निंदा या आलोचना करना तो उसके पापों को अपने मत्थे पर चढ़ाने के समान है। निंदक तो उस धोबी की तरह होता है जो बिन पानी और साबुन के भी हमारे जीवन का मैल खंगाल देता है। हाँ, यदि कोई हमारी आलोचना करे तो बुरा मत मानिए। हमारे धैर्य की कसौटी ही तब होती है जब कोई हमारे ख़िलाफ़ बोले। आखिर दुनिया में दूध का धुला कोई नहीं है। कमियाँ सबमें हैं। कमियों पर ध्यान देना कमीनापन है और ख़ासियत पर ध्यान देना इबादत।
मुझे अगर पता चल जाए कि अमुक व्यक्ति मेरा आलोचक है तो मेरा यह प्रयत्न रहेगा कि मैं उसकी मानसिकता को दुरुस्त करूं । मैं पहला काम तो यह करूंगा कि उसके समर्थकों के बीच उसके लिए सम्मान की भाषा का उपयोग करूंगा। प्रेमपूर्वक उसके घर भी जाऊंगा, भले ही मुझे बुलाने के लिए उसका न्यौता न आया हो। जीवन में सदा याद रखिए कि विनम्रता और मिठास तो दुश्मन को भी तुम्हारा मित्र बना देती है। प्रेम, माधुर्य और विनम्रता तो उस सेतु के समान है जिसके जरिये दुश्मन के दिलों में उतरा जाता है । अगर कोई तुम्हारा दुश्मन है तो निश्चित तौर पर तुम उसको मारो, पर ज़हर से नहीं, शरबत के प्याले से।
तीसरा अनुरोध : हमेशा मधुर और ।
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मुस्कुराते हुए बोलिए।अपनी भाषा को सम्मानपूर्ण बनाइये । सम्मानपूर्ण भाषा पाने के लिए सम्मानपूर्ण बोलने की आदत डालिए। 'तुम' को हटाइये और 'आप' को स्थान दीजिए। हंसकर अगर कोई भारी बात भी कह दी जाए तो भी वह दिल को चुभती नहीं है । मीठे बोलने से न तो जीभ का छेदन होता है और न ही तालू का भेदन और न ही कोई पैसा-टका खर्च होता है। फिर 'वचने का दरिद्रता' । बोलने में कैसी गरीबी! अगर हम मौके पर मीठा न बोल सके तो फिर गूंगापन अच्छा है।
मिठास से बोलना तो जीवन की बहुत बड़ी विशेषता है। अगर मिठास से बोलना नहीं आता तो जंगल में चले जाओ और गुफावास धारण कर लो, पर अगर इंसानों के बीच रहते हो तो वाणी पर लगाम लगाना जरूरी है। उसे मीठा बनाना निहायत आवश्यक है। दुकान पर ग्राहक आए तो आप उससे मीठा बोलिए। आपकी बोली उसे दुबारा आने को प्रेरित करेगी। दफ्तर में जाओ तो अपने ऑफिसर को अपनी मिठास का अहसास दो। कल ही सुशील जी भंसाली मुझे बता रहे थे। कह रहे थे कि मैं लगातार तीस साल से एक ही ऑफिस में सर्विस करता आ रहा हूं । सामान्य क्लर्क के रूप में नौकरी शुरू की थी और बढ़ते-बढते बिजली विभाग का अधीक्षक अभियन्ता बन गया. पर मेरी आज तक न तो कभी कोई शिकायत हई और न ही कभी बदली हई। क्या आप इसका कारण जानते हैं ? यह व्यक्ति कभी भी अपने बड़े ऑफिसर के खिलाफ नहीं बोला और बड़े ऑफिसर ने जो कहा उसे विनम्रता से पूरा कर डाला। बस, यही उनकी सफलता का राज़ है । आप भी इन्हीं की तरह मिठास और प्रेम से बोलिए और अपना सिक्का कायम कीजिए। ___ पति-पत्नी की नोक-झोंक तो दुनिया में प्रसिद्ध है। पति बेचारा सोया हुआ था। अचानक रात को 12 बजे पत्नी ने पति को जगाया और कहा 'जरा दूध पी लीजिए। पति चौंका कि आज भागवान को क्या हो गया है जो नींद से उठाकर दूध पिला रही है ? इसने तो आज तक सुबह भी ढंगसे दूध नहीं पिलाया।
पत्नी ने कहा, 'दरअसल क्या हुआ कि
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अभी-अभी पंचांग देखा तो पता चला कि आज नागपंचमी है।' __ कृपया अपने पति के साथ इस तरह पेश न आएँ, उस पर झल्लाएं नहीं हालांकि आपके पतिदेव अकेले कई लड़ाइयों का मुकाबला कर सकते हैं, पर आपकी रोज-रोज की खोड़लाई या रोज-रोज की टी-टीं से नहीं लड़ सकते। आखिर आपके पतिदेव दिनभर की मेहनत से थकहारकर आपके पास शांति का सुकून पाने के लिए आते हैं, दिनभर की आपकी टी-टीं सुनने के लिए नहीं। आप चाहें तो अपने आपको कैकेयी बना सकते हैं और चाहें तो उर्मिला। आप सोचिए कि आप अपने आपको क्या बनाना चाहती हैं ? अगर आपके दिमाग़ में कोई उबाल भरा हुआ भी है, तो अपने पति को वह बात उस समय मत कहिए, जब वह सांझ को घर लौटकर आए। वरना याद रखिए वह आपसे कटने लगेगा और आपके रिश्तों में दूरिया पैदा होंगी । __पत्नी है तो इसका मतलब यह थोड़े ही है कि आप समाधान नहीं निकाल सकतीं। अरे, मच्छर जैसी समस्याओं का हल तो आप खुद ही निकाल लीजिए। अपने पति के सामने तो केवल वही समस्याएं रखिए जो आपको शेरसिंह जैसी दिखाई देती हों। मैं तो सुझाव दूंगा कि आप अपने पति को बादशाह मानकर उसके साथ व्यवहार कीजिए, वो भी आपको नूरजहाँ मानने लगेंगे।
जीवन में अगर स्वर्ग चाहिए तो दिल में रखें रहम, आंखों में रखें शरम, जेब रखें गरम और ज़बान रखें नरम। सचमुच तब स्वर्ग वहीं होगा जहाँ आप खुद होंगे। ___ चौथा अनुरोध : अपनी भाषा में सॉरी, बैंक्यू और प्लीज जैसे शब्दों को पूरी उदारता से प्रयोग कीजिए। कोई अगर आपको बुलाए तो केवल हाँ मत कहिए। हाँ ' से पहले 'जी' कहने की आदत डालिए। मैं आपको एक शहर का नाम बताता हूं और वह है जोधपुर। जोधपुर की यह ख़ासियत है कि वहाँ पर
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लोग अगर ग़ाली भी निकालते हैं तो उसमें भी एक सलीक़ा होता है। इसलिए जोधपुर की ग़ाली कभी बुरी नहीं लगती।जोधपुर में अगर स्कूटर से साईकिल वाले को टक्कर लग जाए तो लोग किसी की कमीज नहीं फाड़ते। केवल इतना ही कहते हैं : देख'र चलाया करो सा।
याद रखिए : 'फितरत को नापसंद थी कड़वी जुबान में , कुदरत ने ना दी इसीलिए हड्डी जुबान में।' पूरे शरीर में एकमात्र जीभ ही ऐसी है जिसमें हड्डी नहीं है। हड्डी सख़्त होती है, पर जीभ लचीली है। कृपया जीभ को जीभ ही रहने दीजिए, उसको हड्डी मत बनाइये। ___ इंसान के जीभ एक है और दांत बत्तीस। पर सावधान रहना अगर जीभ का सही इस्तेमाल नहीं किया तो यह एक अकेली जीभ इन बत्तीस पहरेदारों को मुँह की सीमा से बाहर निकाल सकती है। जीभ पर तीन शब्दों को ख़ास तौर पर जोड़िए : 1. सॉरी (माफ करें) 2. बैंक्यू (शुक्रिया) और 3. प्लीज (कृपया)।
अगर कभी कोई गलती हो जाए तो सामने वाला चाहे बड़ा हो या छोटा, कहने में झिझक मत रखिए कि सॉरी। सॉरी कहते ही मामला बोझिल होने से बच जाता है । घर में लगी आग को बुझाने का अगर फायरब्रिगेड कनेक्शन कोई है तो वह है सॉरी । इस्तेमाल कीजिए और परिणाम देखिए।
ग़लती होना इंसान की फितरत है। गलती हर किसी से हो सकती है। ग़लती उन्हीं लोगों से हुआ करती है जो काम किया करते हैं । निकम्मे-बैठेठाले लोग भला क्या ग़लती करेंगे ? याद रखिए ग़लती होना ग़लत नहीं है, पर ग़लती का अहसास न करना, ग़लती को न सुधारना बहुत बड़ा जुर्म है। आप केवल अपरिचितों से ही थैक्यू न कहें। O
o अगर आपका छोटा भतीजा आपके कहने पर आपको एक गिलास पानी लाकर दे दे तो आप उसे भी मुस्कुराकर या बाँहों में भरकर प्यार से कहिए थैक्यू । सचमुच, आपके ऐसा कहने से बच्चे की थकावट दूर होगी।
बैंक्यू, सॉरी, प्लीज जैसे शब्दों को
THANK YOU
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कहने के लिए कोई हार्वर्ड युनिवर्सिटी से एम.बी.ए. पास करने की जरूरत नहीं होती।इसके लिए तो आपको विनम्रता के विश्वविद्यालय में दाखिला लेना होगा। बस फिर तो ये अनायास ही आपके होंठों पर आते रहेंगे।आपने अपनी जिंदगी में अब तक दस लाख दफा 'मैं' शब्द का प्रयोग किया होगा, पर ज़रा याद कीजिए कि आपने अपने होंठों से क्या एक हजार दफा भी 'शुक्रिया' कहा है ? जिस शब्द के इस्तेमाल में हमें कंजूस होना चाहिए थाउसके प्रति तो हमदरियादिली अपनाते हैं और जिस शब्द के प्रयोग के लिए हमें पूरी उदारता बरतनी चाहिए थी उसके लिए हम मक्खीचूस होबैठे हैं। __ कृपया शुक्रिया अदा कीजिए माता-पिता के प्रति जिन्होंने हमें जन्म दिया है। शुक्रिया अदा कीजिए अपने बड़े भाई और बहन के प्रति जिनकी बांहों में हमारा पालन हुआ है ।शुक्रिया अदा कीजिए अपनी धर्मपत्नी के प्रति जिसके प्रेम
और समर्पण की छाँव में हमें जीवन का सुकून मिला है और शुक्रिया अदा कीजिए उन ग्राहकों और कर्मचारियों के प्रति जिनकी बदौलत हमारे पास दौलत हुई है।
पाँचवाँ अनुरोध : जब भी बोलें, तो ध्यान रखें धीमे बोले और धीरज से बोलें । धीमी आवाज़ कोयल की मिठास देती है और तेज आवाज़ गधे का फूहड़पन। जो लोग ज्यादा बोलते हैं, बड़बोलेपन के आदी हैं, उनके लिए अकसर पीठ पीछे यही टिप्पणी सुनने को मिलती है : एकमाथाखाऊ आ गया।
धीरज रखने के लिए मैं इसलिए सलाह दे रहा हूँ क्योंकि विपरीत वातावरण बन जाने पर यही आपका संकटमोचक बनता है। तुलसीदासजी की चौपाई सदा याद रखने के काबिल है : 'धीरज धरम मित्र अरू नारी, आपत काल परखिए चारी।'
मेरी इस बात को अपने दिलो दिमाग पर उकेर लीजिए कि जो बात आपने तैश में आकर कही है काश वही बात आप प्रेम से कह देते तो इसमें आपका क्या बिगड़ जाता। न दो दिल टूटते और न ही इस तरह पछताना पड़ता।
छठा अनुरोध : जब भी बोलें, संक्षिप्त वाणी ही बोलें। मंत्रों का आखिर इसीलिए महत्व होता है क्योंकि
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वे संक्षिप्त होते हैं। जिस ख़त में बात कम शब्दों में कही जाती है, वो ख़त भी सीधा समझ में आ जाता है। जिस प्रार्थना में शब्द कम होते हैं, वो प्रार्थना भी जल्दी कंठस्थ हो जाती है। अपनी बात को कम शब्दों में धीरज से कहिए, मुस्कुराइये, और मुक्त हो जाइये। __ विशेष तौर पर भाषा को उस समय ज्यादा संक्षेप में कहा जाना चाहिए जब वातावरण बोझिल हो, गुस्से का माहौल हो। इतना भी मत बोलिए कि लोग कह उठे : बहुत हो गया आपका उपदेश । कबीर का दोहा याद रखिए : 'सार-सार को गहि रहे थोथा देइ उड़ाय।' सार की बात को पल्ले बांधिये, बेकार की बातों को छोड़िये। ___ आखिरी अनुरोध : कहे हुए शब्द और दिए हुए वचन को हर हालत में निभाइये। इसीलिए बुजुर्ग लोग कहा करते हैं: 'मर जावणो पण बात राखणी।' जो आदमी अपनी जबान हार गया वो अपनी ज़िंदगी हार गया। जो कुछ बोलो, सोचकर बोलो, पर अगर किसी को कुछ कह दिया है तो उस पर कायम रहो। जबान को कैंची मत बनाओ कि दर्जी की तरह चलती रहे। जबान को कसौटी बनाओ कि खरा-खोटा सब कुछ परखा जा सके। इस जबान में ही जीवन का स्वर्ग है और इसी में ही जीवन का नरक। यही अभिशाप बनती है और यही वरदान बना करती है। इसमें दुराशीषों के दानव भी छुपे हैं और आशीषों का अमृत भी। अगर आप किसी को गाली देते हैं तो इसका मतलब है कि आपमें इतनी भी अक्ल नहीं है किस तरह के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। मिठास दीजिए, मिठास लीजिए।
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जीने की कला -
मानसिक विकास । के टिप्स
न होना कभी निराश
करना है मानसिक विकास
कुदरत ने हर किसी इंसान को एक अनमोल और बेशकीमती उपहार प्रदान किया है। यह उपहार स्वयं मनुष्य की अपनी टोपी के नीचे है। यह उपहार है मनुष्य का मस्तिष्क। हालांकि मनुष्य के मस्तिष्क का वज़न केवल सवा किलो होता है, किन्तु एक अकेला मस्तिष्क मनुष्य की संपूर्ण गतिविधियों का संवाहक और व्यवस्थापक है। मनुष्य अपने जीवन में वही सब कुछ करता है जैसा करने के लिए मस्तिष्क का उसे निर्देश होता है। मनुष्य अपने जन्म से लेकर लगभग 25 वर्ष की उम्र तक शिक्षा, संस्कार और अनुभवों के द्वारा अपने मस्तिष्क तथा दिमाग़ का विकास करने का प्रयत्न करता है। यही वह आधारभूमि होती है जिस पर उसका सारा जीवन केन्द्रित होता है। आगे के जीवन में तो ज्ञान से ज्ञान बढ़ता है और धन से धन। जीवन की संपूर्ण नींव तो बचपन से यौवन प्रवेश तक निर्मित हो जाती है।
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मनुष्य का मस्तिष्क एक सुपर कम्प्यूटर है। दुनिया के सारे कम्प्यूटरों को ईज़ाद करने वाला मनुष्य का विकसित मस्तिष्क ही है । आज यदि सबके हाथों में मोबाइल है, सबकी आँखों में टीवी है, चलने के लिए वाहन और उड़ने के लिए हवाई जहाज हैं, तो इन सबके पीछे अगर किसी दैवीय शक्ति का हाथ है, तो वह हमारा यह अनोखा अनूठा मस्तिष्क ही है ।
हमारा यह मस्तिष्क मज़बूत खोपड़ी के घर में रहता है। इसका आकार अखरोट के भीतर निकलने वाली गिरी जैसा होता है। हम मशरूम के साथ भी इसके आकार की तुलना कर सकते हैं । मस्तिष्क से शरीर में इतने कनेक्शन आते हैं कि विश्व की सारी टेलीफोन लाइनें भी उसके सामने कम हैं। हमारे 35 वर्ष की आयु तक मस्तिष्क के विकास की संभावना बनी हुई रहती है। इसके बाद मस्तिष्क की क्षमता में धीरे-धीरे कटौती होने लग जाती है । यदि मस्तिष्क की पौष्टिकता और स्वस्थता पर ध्यान दिया जाए तो मस्तिष्क बुढ़ापे में भी पूरी तरह सकारात्मक और रचनात्मक काम करता रहता है। अगर हम दिमाग़ी तौर पर लापरवाही बरतेंगे तो इंसान के बुढ़ापे के साथ ही मस्तिष्क की क्षमता भी कमजोर पड़ती जाएगी है ।
जीवन को बनाए रखने के लिए हृदय की भूमिका जबरदस्त है, पर जीवन को चलाने के लिए मस्तिष्क सबका मालिक है। हमारे मस्तिष्क से ही हमारी आँखें देखती है, कान सुनते हैं, नाक सूंघती है, जबान चखती और बोलती है। शरीर के सुख-दुःख, शांति - उत्तेजना अथवा हर तरह की संवेदना को ग्रहण करने वाला भी हमारा यह मस्तिष्क ही है । मस्तिष्क को ही दूसरे शब्दों में दिमाग़ कहते है | विचार, विकल्प और कल्पना करने वाला हमारा मन इसी मस्तिष्क का एक हिस्सा है। दिमाग का निचला हिस्सा मनुष्य का मन कहलाता है । दिमाग़ का मध्य हिस्सा बुद्धि कहलाता है, जो कि स्मृति, ज्ञान और विवेक से अपना नाता रखता है । जिसे हम चित्त कहते हैं वह वास्तव में मन का छिपा हुआ सघन रूप है । चित्त के सक्रिय होने पर वह मन के रूप में प्रकट होता है और मन के शांत होने पर चित्त से हमारी मुलाकात होती है । जिसे मनोविज्ञान कॉनसियस माइंड कहता है वह वास्तव में हमारा चेतन मन है और
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अनकॉनसियस माइंड कहा जाता है। उसे ही हम अपनी भाषा में चित्त कहते हैं। ___ मस्तिष्क का ऊपरी हिस्सा जीवन का आध्यात्मिक क्षेत्र है। यह हमारा वह लोक है जिसमें जीवन का आध्यात्मिक सौंदर्य, आध्यात्मिक अनुभव और आध्यात्मिक आनंद व्याप्त रहता है । योग ने इस प्रदेश को सहस्रार चक्र कहा है।
मनुष्य के मस्तिष्क की अनंत संभावनाएँ हैं । सारा ज्ञान-विज्ञान, कल्पनाविचार, चिन्तन-अनुभव, संकोच-विस्तार, आचरण-दर्शन, शक्ति और साधना सब इसी के साथ जुड़े हुए पहलू हैं । एक सामान्य बुद्धि को लेकर जन्मा इन्सान अगर अपने जीवन के प्रति गंभीर हो जाए, लगन के साथ कड़ी मेहनत करे, एकाग्रता पूर्वक लक्ष्य को साधने का प्रयत्न करे तो केवल पांचवीं तक पढ़े घनश्यामदास बिड़ला देश के सबसे बड़े उद्योगपति बन सकते हैं, दसवीं तक पढ़े धीरूभाई अंबानी देश की बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था के मालिक बन सकते हैं
और चूरू जिले के एक छोटे से गांव में जन्मे लक्ष्मीविलास मित्तल विश्व के नं.1 आयरन किंग कहला सकते हैं। सिर पर हाथ धरकर बैठने वाले उदास
और निराशावादी लोगों पर गली के कुत्ते भी नज़र नहीं डालते, वहीं आशा, उत्साह, लगन और ऊर्जा के साथ मेहनत करने वालों की तो किस्मत भी दासी हो जाती है।
मुझे भली-भांति याद है कि किसी समय मैंने भी नौवीं कक्षा सप्लीमेंट्री से पास की थी, किन्तु जिस दिन जीवन में शिक्षा और ज्ञान का महत्व समझ में आया, मैं लगातार इतना आगे बढ़ता गया कि आज बड़े-बड़े आई.ए.एस. ऑफिसर और बड़े-बड़े संत मुझे चाव से पढ़ते और सुनते हैं । मैं इसे संतों और आचार्यों का अपने पर स्नेह और आशीष समझता हूँ। जीवन में व्यक्तित्व विकास और मानसिक विकास की कोई तय उम्र नहीं होती। जब जागे तभी सवेरा। अगर हम आज से ही अपने प्रति जागरूक हो जाएं तो हम आने वाले
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कल के लिए कोई नया चमत्कार कर सकते हैं, आने वाले इतिहास के लिए नया आलेख और शिलालेख बन सकते हैं।
विकासशील दिमाग़ जीवन की सफलता का सबसे प्रबल आधार है, वहीं निराशा, चिंता और तनाव से जकड़ा हुआ दिमाग़ आदमी की विफलता और दुःख का प्रमुख कारण है। एक श्रेष्ठ और स्वस्थ दिमाग आदमी के जीवन की सबसे बड़ी दौलत है । गधों के पूरे अस्तबल की बजाय अरब का एक दुबला पतला घोड़ा भी कहीं ज्यादा अच्छा होता है। हम अपने दिमाग़ को अरबी घोड़ा बनाएं, गधों का अस्तबल नहीं। ___ जो दिमाग़ सुख और दुःख, खेद और ख़ुशी दोनों का अनुभव करता है, क्यों न हम अपने दिमाग़ में सदा सुख, शांति और ख़ुशी का चैनल चलाएँ। आखिर जैसी मन और दिमाग़ की अवस्था रखेंगे, हमारे विचार, आचार और व्यवहार भी तद्नुरूप ही होंगे। मैंने कभी क्रोध किया था और उसके परिणाम भी देखे थे। मैंने प्रेम भी किया है और उसके परिणाम भी जाने हैं। जब भला प्रेम और शांति को अपनाकर जीवन को आनंद भरा कमल बनाया जा सकता है तो फिर हम क्रोध, चिन्ता और ईर्ष्या के कीचड़ में पड़कर अपने आपको दूषित और दुर्वासा क्यों बनायें। ___ यदि हम अपने दिमाग़ को दुरुस्त और बेहतर दिशा देने में थोड़ी-सी सावधानी बरतें तो जो दिमाग़ हमें नटवरलाल बना रहा है, वही हमें आइंस्टीन बना सकता है । जो दिमाग हमें आतंकी या उग्र बना रहा है वही हमें सचिन और सानिया बना सकता है । विनोबा भावे ने अपने प्रयासों से कई डाकुओं का दिल
बदलकर, उन्हें एक बेहतर नागरिक बनाया था। मदर टेरेसा ने सेवा की कई मिसालें कायम की। यानी एक हिंसक कहलाने वाले इंसान को भी परोपकारी बनाया जा सकता है । सदा पिछड़ने वाले छात्र को भी पढ़ाई में अव्वल बनाया जा सकता है। कभी गुरु द्रोण से
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जरासंध ने प्रश्न किया था कि अर्जुन भी आपका शिष्य है और जरासंध भी । फिर क्या कारण है कि जरासंध अर्जुन न बन पाया ? गुरु द्रोण का जवाब हम सबके लिए प्रेरणास्पद है कि जरासंध ! तुमने मेरे द्वारा दी गई शिक्षा में संतोष कर लिया था, पर अर्जुन मात्र मेरी शिक्षा से संतुष्ट नहीं हुआ। उसने प्राप्त की गई शिक्षा को और बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक मेहनत की, अधिक से अधिक अभ्यास किया, उसने दिव्यास्त्रों को प्राप्त करने के लिए भी तप और उपासना की। जीवन में सदा याद रखो कि गुरु के सौ शिष्यों में अगर कोई एक शिष्य विशेष आगे बढ़ता है तो उसमें विशेषता गुरु की नहीं वरन् स्वयं शिष्य के लगन और लक्ष्य की है ।
हम अपने बौद्धिक विकास के रास्ते पर अपने क़दम बढ़ाएँ । मनुष्य की एक बौद्धिक क्षमता तो वह होती है जो कम्बल में किए गए छिद्र की तरह नष्ट हो जाया करती है । दूसरी बौद्धिक क्षमता वह होती है जो मोती में किए गए छिद्र के समान सदा समान रूप से रहती है पर तीसरी बौद्धिक क्षमता वह होती है जो पानी में गिरे हुए तेल बिंदु की तरह सदा फैलती है । आप देखिए कि आपकी बौद्धिक क्षमता कैसी है ? सेवा बुद्धि वाले लोग पुण्य को मुख्यता देते हैं । कर्मठ बुद्धि वाले सफलता को प्रधानता देते हैं । कर्त्तव्य बुद्धि वाले जिम्मेदारी निभाते हैं । उपकार बुद्धि वाले लोगों का भला करते हैं पर स्वार्थ- बुद्धि वाले तो बिल्कुल ऐसे होते हैं कि जैसे : गंजेड़ी यार किसके, दम लगाया और खिसके ।
हम अपनी बुद्धि पर नज़र डालें और देखें कि कहीं हम स्वार्थ-बुद्धि के इंसान तो नहीं हैं ? अथवा कही हम कंबल में किए गए छेद की तरह नष्ट हो जाने वाली बुद्धि के मालिक तो नहीं हैं ? अगर हाँ तो अपनी मानसिकता अभी, इसी क्षण बदलिए और मेरे साथ अपने दिमाग़ में प्रवेश कीजिए और ब्रेन पॉवर तथा मानसिक शक्ति स्वस्थ और विकसित करने के लिए थोड़े गंभीर हो
जाइये।
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बुद्धि का कमाल देखिए कि एक फैक्ट्री की मशीनों में गड़बड़ी हो गई । फैक्ट्री में रहने वाले सारे मिस्त्रियों ने कोशिश कर ली पर वे सफल न हो पाए। तभी फैक्ट्री के बगल में रहने वाले एक मैकेनिक को बुलाया गया उसने मशीनों को एक बारीक नज़र से देखा और कहा ज़रा एक हथोड़ी दीजिए। उसने मशीन के किसी एक ठीक पॉइंट पर जोर से हथोड़ी मारी और उसी वक्त मशीन चालू हो गई। लोगों ने मैकेनिक की पीठ थपथपाई। जब फैक्ट्री के मालिक ने उससे चार्ज पूछा तो उसने कहा 10,000
रुपए। मालिक चौंका, उसने कहा एक हथोड़ी मारने के 10,000 रुपए ? मैकेनिक ने कहा सर, हथोड़ी मारने का तो केवल एक रुपया ही चार्ज ले रहा हूँ। पर हथोड़ी कहाँ मारी जाए इस बात के लिए बुद्धि लगाने का 9999 रुपए ले रहा हूँ ।
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इसे आप यों भी समझ सकते हैं कि नागौर के राजा वखतसिंह के पास जोधपुर के सिंघीजी दीवान थे और उनके अधीन एक और नायब थे । कुछ जागीरदारों ने राजा से नायबजी को दीवान बनाने का आग्रह किया। राजा ने सिंघी जी और नायब जी दोनों की बुद्धि की परीक्षा के लिए सोने की दो डिब्बियों में राख भरकर नायब जी को जयपुर नरेश के पास भेजा और सिंघी जी को उदयपुर नरेश के पास ।
नायब जी ने जयपुर नरेश को डिब्बी भेंट की । नरेश ने डिब्बी खोली तो राख देखकर जबर्दस्त क्रुध हुए। जयपुर नरेश ने राख नायब जी के ही सिर पर डालकर उन्हें राजसभा से बाहर भगा दिया। इधर उदयपुर नरेश के पास सिंघी जी पहुँचे। उन्होंने भी डिब्बी में राख देखी तो लाल-पीले होने लगे। तभी बुद्धिमान सिंघी जी ने हालात को बदलते हुए कहा हुजूर, यह राख नहीं, देवी हिंगलाद जी की रक्षा है । इसको खाने से निःसंतानों के संतान हो जाती है । उदयपुर नरेश निःसंतान थे ही। उन्होंने और रानी ने उसी वक्त वह राख आधीआधी पानी में घोलकर पी ली और नागौर नरेश को साधुवाद देने के लिए सवा लाख रुपए और सिंघी जी को ग्यारह हजार रुपए भेंट प्रदान किये। तय है दीवान तो सिंघी जी रहे होंगे। वह हर व्यक्ति अपने जीवन का दीवान ही होता है
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जो अपनी बुद्धि का श्रेष्ठ तरीके से श्रद्धापूर्वक इस्तेमाल करना जानता है। __ जिन्हें अपनी बुद्धि का बेहतर इस्तेमाल करना नहीं आता वे जड़बुद्धि लोग उल्टी पुल्टी बातें सोचते रहते हैं। ऐसे लोगों के लिए ही कहा जाता है खाली दिमाग़ शैतान का घर।मूर्ख लोग अधिकांशत: उल्टे-सुल्टे ही करते रहते है।
ऐसा हुआ : एक व्यक्ति अपने घर देर रात को पहुंचा, जैसे वह घर पहुंचा कि उसे खबर दी गई कि उसकी पत्नी ने दो बच्चियों को एक साथ जन्म दिया है। उसने घड़ी देखी। घड़ी में रात के 2 बजे थे। उसने झट से कहा मैं 2 बजे पहुँचा तो 2 लड़कियों के होने की खबर मिली। अच्छा हुआ मैं बारह बजे घर नहीं पहुंचा।
ऐसा नहीं है कि मूर्ख लोग ही मूर्खता करते है । कई दफा तो पढ़े-लिखे लोग भी मूर्खता भरी बात करने पर उतारू हो जाते है।
एक सज्जन किसी डॉक्टर के पास चैकअप करवाने के लिए पहुँचा उसने कहा डॉक्टर साहब मेरी कमर में अचानक दर्द उठ आता है। डॉक्टर ने कहा - चिंता की कोई बात नहीं है ये गोलियाँ अपने पास रख लीजिए। दर्द शुरू होने से बीस मिनट पहले एक गोली खा लें।
कई दफा मूर्ख लोग भी समझदारी की बात कर लेते हैं।
किसी लतीफे के माध्यम से ही सही थोड़ा सा हँस लेना दिमाग़ के लिए तनाव से छुटकारा पाने का सीधा सरल तरीका हो सकता है। हँसना केवल इंसान के ही हाथ की बात है। धरती पर रहने वाले और दूसरे प्राणी रो तो सकते हैं, पर हँसने का आनंद केवल इंसान ही ले सकता है । हँसो और हँसाओ दुनिया की पीड़ाओं को दूर करने का यह महामंत्र हैं। ___ आइये हम लोग अपनी बुद्धि को, अपने मस्तिष्क को बेहतर और प्रखर बनाने के लिए कुछ सरल उपायों से गजरते हैं। याद रखिए केवल मानसिक विकास की बातों को सुन लेने या पढ़ लेने से किसी का मानसिक विकास नहीं हो जाता। विकास कोई विटामिन की गोली
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नहीं है कि इधर खाई और उधर ताकत आई। विकास के लिए खुद को लगाना पड़ता है । स्वयं के मानसिक विकास और बौद्धिक प्रतिभा को उजागर करने के लिए खुद को खपना पड़ता है। हमारी दृढ़ इच्छाशक्ति लगनशीलता और सृजनशीलता ही विकास के द्वार खोल सकती हैं। लोग मेरे पास आते हैं और पूछते है कि दिमागी विकास के लिए कौनसी गोली ली जानी चाहिए। दरअसल लोग करना धरना कुछ चाहते नहीं फल ऊँचे से ऊँचा पाना चाहते हैं। इसे आप यों समझिए। ____ एक महिला किसी सौंदर्य विशेषज्ञ के पास पहुँची। उसने कहा आप मेरा चेहरा बड़ा सुंदर बना दीजिए पर ऐसा करने की फीस कितनी होगी। सौंदर्य विशेषज्ञ ने जवाब दिया - पाँच हजार रुपये। महिला ने कहा - कोई सस्ता नुस्खा नहीं है क्या? डॉक्टर ने जवाब दिया - है। आप धुंघट निकालना शुरू कर दीजिए।
अगर कुछ पाना है तो हमें कुछ न कुछ करना होगा। अगर मानसिक विकास भी करना है तो हमें अपने आपके प्रति गंभीर और रुचिशील होना होगा। आप अच्छी शिक्षा लीजिए, मन लगाकर एकाग्रता से पढ़ाई कीजिए। स्वयं को अर्जुन की आँख बना लीजिए। अच्छा और बेहतर चिंतन कीजिए। विपरीत वातावरण में भी धीरज रखिए और तनावमुक्त रहिए। यही वे बेशकिमती उपहार है जो कि हमारी मानसिक क्षमता को उत्तरोतर बढ़ाते हैं । मैं कुछ और बिन्दु भी निवेदन कर देता हूँ।
पहला उपाय : पौष्टिक भोजन लीजिए। कहावत है-तन सुखी तो मन सुखी। शरीर अगर स्वस्थ, प्रमादरहित, तनावमुक्त और जीवन-ऊर्जा से भरपूर है तो हमारे दिमाग़ की कार्यक्षमता स्वतः ही स्वस्थ और बेहतर रहेगी। मस्तिष्क की स्वस्थता शरीर की स्वस्थता पर टिकी है और शरीर की स्वस्थता मस्तिष्क की स्वस्थता पर । शरीर और मस्तिष्क दोनों वृक्ष की जड़ और तने की तरह दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए है। इसलिए हमें मस्तिष्क की स्वस्थता के लिए शरीर की स्वस्थता और पौष्टिकता पर भी ध्यान
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देना होगा ।
जब हम भोजन करते है तो हमारे लिए इतना काफी नहीं है कि हमें कितना खाना चाहिए वरन् इससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि हमें क्या खाना चाहिए। ज़्यादा गरिष्ठ भोजन घी, तेल की तली हुई चीजें अथवा बाजारू चाट पकौड़ी चाय, कचौरी, समोसों को खाने से परहेज़ रखना चाहिए। हमेशा ताजा भोजन, सात्विक भोजन पर ही ध्यान देना चाहिए। सुबह खाली पेट ब्रेड, खाखरा, परोठे या चाय जैसी चीजों को लेने की बजाय हमें रात को भिगोकर रखे हुए पन्द्रह बादाम खाने चाहिए। डेढ़ पाव गाय का दूध पीना चाहिए। और आहार की आवश्यकता हो तो हमें दूध दलिया जैसी चीजों का उपयोग करना चाहिए। समय पर भोजन लेना चाहिए। भोजन में रोटी, दाल सब्जी, चावल के अलावा सब्जी सलाद और दही का उपयोग करना चाहिए। दोपहर में एक वक्त फल अथवा फलों का रस भी लेना चाहिए। देर रात तक खाने की आदत से बचना चाहिए, अन्यथा गैस्टिक प्रॉब्लम हो सकती है जो कि मानसिक बीमारी का प्रमुख कारण है। हमें अपने घर में ऐसा चार्ट अवश्य रखना चाहिए जिसमें किस भोजन में कितना विटामिन प्रोटीन और खनिज पदार्थ होता है। इसके बारे में महत्वपूर्ण जानकारी हो ताकि हमें भोजन में जिन-जिन पोषक तत्वों को लेना चाहिए, हम ले सकें। मूंग, बादाम, पनीर, हरी सब्जियां, फलों का रस, ब्राह्मी पत्ती, शंखपुष्पी, गाय का दूध और सिर में गाय के घी की मसाज, मानसिक आरोग्य के लिए विशेष लाभदायी हैं ।
दूसरा उपाय : प्रतिदिन योग और व्यायाम कीजिए। योग और व्यायाम जीवन को गतिशील बनाते है । शरीर और दिमाग की जकड़न और तनाव को दूर करते है । रोगों पर अंकुश लगाते है। रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता का विकास करते है | हमारी ऊर्जा ओज और उत्साह को बढ़ाते है । सुबह टहलना, जॉगिंग करना, दौड़ लगाना, एक सीधा सरल सुलभ व्यायाम है। यदि आप सातों दिन प्रतिदिन आधे घंटा टहलने के
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लिए जाते है तो जीवन को क्रियाशील बनाने के लिए इसकी बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है। अगर आप बहुत ज्यादा व्यस्त जिंदगी जी रहे हैं तो रविवार जैसे अवकाश के दिन तो एक घंटा अवश्यमेव योग और व्यायाम करें। सप्ताह में एक दिन भी अगर आपने व्यायाम कर लिया तो यह छह दिन के शारीरिक दोषों को दूर करने में आपकी मदद कर सकता है । योग आजकल एक जनरल विषय हो गया है। आप घर बैठे टीवी के जरिये भी इसे सीख और कर सकते है। नहीं तो आप सात दिन के लिए किसी भी संबोधि-ध्यान-योग शिविर में सम्मिलित हो जाइये, आप सात दिन में ही योग स्टूडेंट और योग मास्टर हो जायेंगे। वैसे बौद्धिक विकास के लिए योग मुद्रा, भुजंगासन, धनुरासन, नौकासन, कदमताल और रिलेक्सेशन अर्थात शरीर और दिमाग़ का शिथिलीकरण विशेष उपयोगी
तीसरा उपायः गहरी श्वास का महत्त्व पहचानिये। गहरा श्वासोश्वास जहाँ प्राणायाम का एक महत्त्वपूर्ण चरण है, वहीं दिमाग की निष्क्रिय पड़ी कोशिकाओं को गतिशील बनाने के लिए भी यह एक वैज्ञानिक प्रयोग है। अनुलोम-विलोम, दीर्घश्वसन, कपालभाती और भ्रामरी प्राणायाम जैसे प्रयोग दिमागी कोशिकाओं को दुरुस्त करने के लिए रामबाण औषधि के समान है। गहरा श्वास लेने से शुद्ध प्राणवायु हमें अतिरिक्त रूप से मिलती है। यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि शरीर के सामने मस्तिष्क का आकार और वजन दोनों ही 2 प्रतिशत के बराबर है, परन्तु जितनी ऑक्सीजन लेते हैं। उसकी 20 प्रतिशत खपत तो अकेले मस्तिष्क को चाहिए। यदि हम दस मिनट तक गहरे श्वास पर श्वास लेकर छोड़ते है तो इससे हमारी मानसिक कोशिकाएं । अधिक सक्रिय हो जाती हैं । परिणामस्वरूप हमें रोग और नकारात्मक भावों से छुटकारा मिलता है। हम अधिक ऊर्जा और उत्साह से ओत-प्रोत होते हैं। हमारी छाती चौड़ी होती है। और हम आत्मविश्वास से ओत-प्रोत हो जाते है। ध्यान रखें जब भी गहरे श्वास लें तब हम पूरी तरह खुली हवा में हो। पेड़-पौधों के पास जाकर गहरे श्वास लेना प्रकृति की अतिरिक्त ऊर्जा को लेने का सीधा-सरल तरीका है।
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चौथा उपाय : गुस्सा छोड़िए मुस्कान अपनाइये। गुस्सा और चिन्ता आदमी के दिमाग़ को दीवालिया करने वाले पहले दुश्मन है । गुस्सा अंगीठी की आग है और चिंता धीमा जहर। जो आदमी गुस्सा करने की बजाय शांत रहता है और चिंता करने की बजाय मस्त रहता है, उस आदमी की मेधा, प्रज्ञा
और प्रतिभा सदा उजागर रहती है। एक बार क्रोध करने से, दिनभर में ग्रहण किए गए भोजन से जितनी ऊर्जा मिलती है। एक बार क्रोध करने से वह ऊर्जा नष्ट हो जाती है। क्रोध ही हमारी स्मरण शक्ति को नष्ट करता है, क्रोध ही आत्म नियंत्रण को काटता है। जब-जब क्रोध पैदा होता है, समझदारी को दिमाग़ से बाहर निकाल देता है, और हमारी सद्बुद्धि के दरवाजे पर चटकनी लगा देता है। क्रोध का अर्थ है मूर्खता और क्रोध के नतीजों का अर्थ है पश्चाताप। शायद ही दुनिया में ऐसा कोई इंसान हो, जिसने अपना सिर क्रोध की पटरी के नीचे न डाला हो। प्रश्न है क्या हम ऐसे ही सदा क्रोध करने की मूर्खता दोहराते रहेंगे या इसका सीधा-सरल समाधान ढूंढेंगे? मेरा अनुरोध है गुस्सा छोड़िए और अधिकतम मुस्कुराइये। हंसने और मुस्कुराने से जहाँ दिमाग़ तनाव मुक्त और ऊर्जावान बनता है। वही हमारे हृदय को भी ताजगी मिलती है । मुस्कान की ताकत निर्बल के लिए बल है। और बेसहारों के लिए सहारा है । गुस्सा आदमी के जीवन का दुश्मन है तो मुस्कान हमारे जीवन की पल-पल साथ निभाने वाली मित्र है। दिमाग़ को अगर सबसे ज्यादा किसी से ऊर्जा की किरण उपलब्ध होती है तो वह भीतर में उपजने वाली मुस्कान और प्रसन्नता ही है। ज्यों-ज्यों हमारे जीवन में मुस्कान का विस्तार होता जाएगा। क्रोध चिंता और तनाव जैसी मानवीय दुर्बलताएँ हमारे जीवन से स्वतः लुप्त होती जाएगी।
किसी ने मुझसे पूछा कि हमें मुस्कुराने के लिए क्या करना चाहिए? मैंने । कहा: अपने हर दिन की शुरुआत मुस्कान के साथ करनी चाहिए और हर दिन का समापन भी मुस्कान के साथ ही। उस हर शब्द और निमित्त का जायका लेना चाहिए जो हमें मुस्कान का तोहफा दे सके।मुस्कान तो एक ऐसा धर्म है जिसमें फिटकरी लगे न टक्का मुस्कुराने का धर्म पक्का। आप सुबह भी मुस्कुराइये,
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शाम को भी मुस्कुराइये। किसी से मिलते हुए भी मुस्कुराइये, किसी से बिछुड़ते हुए भी मुस्कुराइये। रात को करवट बदलते आँख खुल जाए तब भी मुस्कुराइये, अगर किसी कारण से दिमाग़ में टेंशन हो जाए तो प्रेशर कुकर बन जाइये और ठहाका लगाकर एक मिनट तक हँस लीजिए। बंद मुट्ठी में गुस्सा रखिए और खुली मुट्ठी में मुस्कान। दिमागी तौर पर सदा स्वस्थ और प्रसन्न रहने का यह एक उपयोगी कीमिया है ।
पाँचवा उपाय : दिमाग़ को विश्राम दीजिए और गहरी नींद भी लीजिए । जहाँ कुछ न करना दिमाग़ी दीवालियेपन की निशानी है वहीं हर समय कुछ न कुछ करते रहना, दिमागी क्षमता का अतिरिक्त उपयोग करने
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की निशानी है । अतिश्रम, अतिकाम, अतिसोचना, थकान और तनाव के कारण बनते हैं । इसलिए यह जरूरी है कि आप जहाँ दिमाग़ का अच्छा उपयोग करें वही इसे विश्राम भी दें। रात को जब सोएँ तो गहरी नींद लें। टीवी देखते हुए या मटरगश्ती करते हुए न सोएं वरना नींद उचाट भरी होगी। नींद में भी विचारों की उधेड़बुन जारी रहेगी। नींद तो हमारे शरीर और दिमाग़ की बैटरी को फिर से चार्ज करती है। छह घंटे की गहरी नींद व्यक्ति को 18 घंटे तक क्रियाशील रखती है ।
शरीर और दिमाग़ की थकावट को दूर करने के लिए हमें रिलेक्सेशन को प्राथमिकता देनी चाहिए। योग और ध्यान तो ऐसा जरीया है जो हमारे शरीर और दिमाग़ को पूरी तरह रिलेक्स करते हुए शांतिमय और आनंदमय बना देता है। विश्राम और नींद की उपेक्षा कर देने के कारण ही क्रोध, चिड़चिड़ापन और अनियंत्रित व्यवहार के शिकार हो जाते हैं। गहरी नींद के लिए जरूरी है। आप निश्चिंत होइये । प्रभु की व्यवस्थाओं में विश्वास कीजिए और परिस्थितियों के आगे घुटना टेकने की बजाय उनका सामना कीजिए ।
छठा उपाय : सोच को सकारात्मक बनाइये । याद रखिए मनुष्य केवल कर्म से निर्मित नहीं हुआ है वरन् जैसी उसकी सोच होती है, उसका व्यक्तित्व और उसका कैरियर भी वैसा ही निर्मित होता है। मैं कुछ नहीं कर सकता, जैसी निराशा भरी सोच को अपने दिमाग़ से हटाइये और मैं इसे क्यों नहीं कर सकता
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जैसी आशा और विश्वास भरी सोच को अपने दिलो-दिमाग़ में जगह दीजिए। निराशा भरी सोच आदमी के जीवन की मौत है। वही आशा और उत्साह भरी सोच आदमी के जीवन की जीवन्तता। जिनकी सोच नकारात्मक होती है वे हर काम को कल पर टालना चाहते हैं । वहीं सकारात्मक सोच के व्यक्ति कार्य को करने के लिए हर समय तैयार रहते है । नकारात्मक सोच के लोग ही हारने पर कहते है कि हम हार गए, हम जीत नहीं सकते, वही सकारात्मक सोच के व्यक्ति यह कहते हुए मिलेंगे कि हम फिर प्रयास करेंगे और जीत कर दिखाएंगे। नकारात्मक विचारधारा हमेशा मामूली चीजों से अपनी प्रतिस्पर्धा करती है, जबकि सकारात्मक विचारधारा सर्वोत्तम से प्रतिस्पर्धा में विश्वास रखती है। __ मनुष्य की मानसिक शांति, स्वस्थता और प्रसन्नता के लिए सकारात्मक सोच और बेहतर नज़रिया सर्वश्रेष्ठ उपाय है। अगर कोई आपसे पूछे कि आप कैसे है तो ऐसा मरियल ज़वाब न दे ठीक है, ज़िंदगी गुजर रही है। इसके बजाय आप बोले जी भला चंगा हूँ आपको देखकर खुशहाली और बढ़ गई है। सकारात्मक सोच के लिए अपना आत्मविश्वास बढ़ाए। छोटी सोच का त्याग करें। ऊंची सोच और विचारधारा का स्वागत करें। अपनी घिसी-पिटी दिनचर्या को बदलें और उसमें नए रचनात्मक आयाम जोड़े। मेरी मानसिक शांति और मेरी मानसिक ऊर्जा का अगर मैं किसी को श्रेय दूं तो वह सकारात्मक सोच है। आप भी सकारात्मक सोच को अपनाएं और जीवन में इसके बेहतरीन सुफल पाए।
सांतवा उपाय : एकाग्रता का अभ्यास करें और स्मरणशक्ति बनाए रखने वाले ट्रिक्स अपनाएं।एकाग्रता का अभ्यास करने के लिए आप किसी जलती हुई मोमबत्ती या लौ पर लगातार तीन मिनट तक देखते रहें अथवा घर या बगीचे में खिले हुए किसी गुलाब के फूल पर अपनी आंखों को केन्द्रित करें एकाग्रता के इस अभ्यास से आप किसी भी बिन्दु पर अपना ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं। अपने ललाट अर्थात अग्र मस्तिष्क पर पांच से दस मिनट के लिए ध्यान
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कीजिए । ललाट प्रदेश पर अपनी ज्ञान शक्ति को केन्द्रित करें और दिव्य प्रकाश का ध्यान करें । इससे आपके जीवन में एकाग्रता का अभ्यास होगा। स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए दस दफा भ्रामरी प्राणायाम करें। इसे करने के लिए सीधी कमर बैठे। कान में पहली अंगुली डालकर कर्णद्वार को बंद
कर दें और फिर लंबा श्वास लेकर
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भीतर में ॐ की अनुगुंज करें अर्थात ओमकार ध्वनि का वायब्रेशन करें । वैसे किसी भी चीज को याद रखने के लिए आप छोटे-छोटे ट्रिक्स अपना सकते है । जैसे साहित्य में नौ रसों के नाम 1. श्रृंगार रस 2. हास्य रस 3. करूण रस 4. रौद्र रस 5. वीभत्स रस 6. भयानक रस 7. वीर रस 8. अद्भुत रस और 9. शांत रस । अब इतने सारे नामों को सरलता से याद कैसे रखा जाए ? इसके लिए आप ट्रिक्स लीजिए । हर शब्द का पहला अक्षर निकाल लीजिए और उन्हें आपस में जोड़कर एक वाक्य बना लीजिए । वाक्य बनेगा - श्रृहा करौ वीभ वीअशा इन 9 अक्षरों अथवा चार शब्दों में पूरे 9 रसों के नाम समाहित हो गए आप इस तरह किसी भी चीज को याद करने के लिए जो आपको मनभावन लगे । आप वह नुस्खा अपनाकर अपनी स्मरण शक्ति को अधिक लंबी उम्र दे सकते हैं ।
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मानसिक विकास के लिए बताए गए इन सात उपायों को अपने जीवन से जोड़कर आप निश्चय ही अपनी मानसिक क्षमता को बढ़ा सकते है, और जीवन में सफलता के नए क्षितिज उपलब्ध कर सकते हैं । नैसर्गिक प्रतिभा, प्रशिक्षण, लगन और अन्तरदृष्टि इन चारों के बलबूते पर ही मानसिक शक्ति और बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। तीन करोड़ न्यूरोन से बने हमारे मस्तिष्क पर यदि हम केवल 30 मिनट भी पूरा ध्यान दे दें तो हमारा मस्तिष्क हमारे लिए कई-कई असंभवों को संभव बना सकता है। ऊंचाईयों पर ले जाने के सौ-सौ रास्ते खोल सकता है ।
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जीने की कला -70 सालता का थर्मामीटर
सोच को बनाइए बेहतर
इरादों को बनाएँ महान
केरियर का पहला पायदान
एक बच्चे ने गुब्बारे बेचने वाले से पूछा, अंकल, जिस तरह से आपके लाल, पीले, हरे, नीले रंग के गुब्बारे आसमान की ऊँचाइयों को छूते हैं, क्या उसी तरह से काले रंग के गुब्बारे भी आसमान का स्पर्श कर सकते हैं ? प्रश्न पूछने वाला लड़का काले रंग का था, कपड़े भी मैले-कुचेले थे। गुब्बारा बेचने वाले ने बच्चे के सर पर हाथ सहलाते हुए कहा – बेटा, जीवन में सदा याद रखना कि गुब्बारा अपने रंग के कारण नहीं, उसमें भरी जाने वाली गैस और विशेषताओं के कारण ही आसमान की ऊँचाइयों को उपलब्ध करता है। बेटा, तुम भी अपने जीवन में इतने महान् गुणों को हासिल करो कि तुम अपने रंग और रूप से भी दस क़दम आगे निकल सको।
ऐसे बच्चे कि जिनके इस तरह की घटनाएँ घटी हैं, उन्हीं में से कोई नेलसन मंडेला पैदा हुआ है, किसी मार्टिन लूधर का जन्म हुआ है, किसी
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गाँधी जैसे देव पुरुष प्रकट हुए हैं और ब्रूसली जैसे मार्शल आर्ट किंग हुए हैं। किसी समय जिनके पास अपने बेटे के मर जाने पर कफन के लिए भी पैसे नहीं थे, वही कार्ल मार्क्स साम्यवाद के संस्थापक कहलाए। केवल पाँचवीं तक पढ़ने वाले घनश्याम दास बिड़ला इतने बड़े उद्योगपति हुए कि पच्चीस करोड़ की संपत्ति के मालिक हो गए थे ।
जीवन का यह मर्म हम सब लोगों के दिलों में उतर जाना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति अपने रंग-रूप और जाति के कारण आसमान जैसी ऊँचाइयों को
नहीं छुआ करता। आसमान की ऊँचाइयों को छूने के लिए आदमी को अपने जीवन के गुब्बारे में श्रेष्ठ सद्गुणों और सिद्धान्तों का संचार करना होता है। दुनिया में कोई भी व्यक्ति किसी चमत्कार के रूप में सफलताओं को अर्जित नहीं किया करता । जीवन में अपनाए जाने वाले महान् उद्देश्यों, महान् विचारों और महान् संस्कारों के कारण ही व्यक्ति कामयाबी की ऊँची मीनारों का स्पर्श करता है ।
प्रत्येक व्यक्ति को अपनी नज़र हमेशा सूरज की ओर ही केन्द्रित रखनी चाहिए, ताकि उसे अपने प्रतिद्वन्द्वी की परछाई नज़र न आए। अगर व्यक्ति केवल रंग रूप के कारण ही अपना विकास चाहता है तो मैं कह देना चाहूँगा कि व्यक्ति के विकास में रंग रूप और स्मार्टनेस की भूमिका मात्र पंद्रह फीसदी है। पिच्यासी फीसदी प्रभाव तो व्यक्ति के सद्गुण और सिद्धांत डालते हैं। असली सुंदरता वही है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को सुंदर बनाए । कोई भी व्यक्ति अपने गोरे रंग पर गुमान न करे । गोरा तो चूना भी बहुत होता है। एक चम्मच जीभ पर रखो तो पता चले। रंग चार दिन सुहाता है, बाकी तो आदमी के गुण ही आदमी की अहमियत बनाते हैं ।
व्यक्ति के विकास में, जीवन के निर्माण में, मुसीबतों का सामना करने में, अपने संबंध और ख़ुशहाली को बरकरार रखने में अगर किसी
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की सबसे बड़ी भूमिका है तो वह आदमी की सकारात्मक सोच है। आप चाहे विद्यार्थी हों या व्यापारी, सम्पादक हों या राजनेता, महिला हों या पुरुष, जिंदगी में हर हाल में जिसे अहमियत दी जानी चाहिए वह सकारात्मक सोच ही है
अगर हममें से कोई व्यक्ति सफलता के गुर सीखना चाहे तो सफलता के सात कीमिया गुर हैं। पहला है – सकारात्मक सोच। दूसरा है - बेहतरीन नज़रिया। तीसरा है - उन्नत लक्ष्य। चौथा है – आत्मविश्वास। पाँचवाँ है -कार्य-योजना। छठा है – कड़ी मेहनत और सातवाँ है - धैर्य और आनन्दपूर्ण मनोदशा। ये वे उसूल हैं जो हर किसी व्यक्ति के केरियर निर्माण के लिए, कामयाबी की ऊँची मीनारों को छूने के लिए लाइफ मैनेजमेंट का काम करते हैं। सोच सकारात्मक इसलिए हो कि आदमी विपरीत हालातों में भी अपने अंतरमन की स्थिति को स्वस्थ और संतुलित रख सके। बेहतरीन नज़रिया इसलिए कि व्यक्ति हमेशा ऊँचे सपने देख सके और छोटे से छोटा काम करते हुए भी उसे पूर्णता प्रदान कर सके।
उन्नत लक्ष्य की ज़रूरत इसलिए है कि हम अपने पुरुषार्थ को सही सार्थक दिशा प्रदान कर सकें। कार्य योजना की दरकार इसलिए है कि हम अपने निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने का खाका तैयार कर सकें। यानी पहले लक्ष्य बनाओ और फिर उसे पूरा करने का नक्शा बनाओ। आत्मविश्वास की आवश्यकता इसलिए है कि जिंदगी में चाहे बाधाओं की सड़क पार करनी हो या रुकावटों की रेल की पटरी, हम पूरे दमखम के साथ उसे पार कर सकें। ___ कड़ी मेहनत इसलिए करें कि अपने निर्धारित लक्ष्य और कार्य-योजना को मूर्तरूप दे सकें। धैर्य और आनंदपूर्ण मनोदशा इसलिए चाहिए कि सफलता के मार्ग पर मिलने वाली विफलताओं से हम निराश न हों और हंसते-मुसकुराते हुए हम विपरीत हालातों पर विजय प्राप्त कर सकें।
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आख़िर हर सफलता के पीछे असफलताओं की एक पूरी फेहरिस्त हुआ करती है । कोई भी व्यक्ति माँ के पेट से सफल जीवन का मालिक बन कर नहीं आता और न ही कोई व्यक्ति मेहनत का पहला क़दम रखते ही सफलता का स्वाद चखता है। हर सफलता उतना ही आनंद देती है जितना हम उसे मेहनत से प्राप्त करते हैं । हैलिकॉप्टर से एवरेस्ट पर पहुँच कर झंडा लहराने का जो आनंद है उससे सौ गुना ज़्यादा आनंद पैदल एवरेस्ट पर चढ़कर झंडा लहराने में है । जितना श्रम, उतनी सफलता।
पिता यदि अमीर है तो हम भी अमीर हैं, पर इसमें खासियत हमारी नहीं, हमारे पुरखों की है । हमारी खासियत तब कहलाएगी जब हम खुद अपने बलबूते पर अमीर बनेंगे। एक अमीर आदमी कभी पैसे की कीमत नहीं समझता पर जो ग़रीबी से अमीर हुआ है वह जानता है कि उसके द्वारा कमाया गया हर पैसा उसके पसीने की एक बूँद है। मैं चाहूँगा कि आप अपने बच्चे को अमीर का बेटा नहीं वरन् खुद अमीर होना सिखाएँ । उसे गमले का पौधा न बनाएँ कि एक दिन भी आप पानी न दे पाए तो वह कुम्हला जाए। उसे जंगल का वह पौधा बनाएँ कि खुद अपने बल पर अपनै दाना-पानी की व्यवस्था कर सके । संयुक्त परिवार की प्रेरणा देने के बावजूद मैं यह बात कहूँगा कि हर पिता अपने बेटे को पाँच वर्ष के लिए अपने से अलग अवश्य करे । उसे किसी गुरुकुल, किसी छात्रावास में अवश्य भेजे ताकि उसे अपनी जिम्मेदारियों का अहसास हो ।
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आप केवल अपने बेटे को ही नहीं, अपनी बेटी को भी आत्मनिर्भर और स्वावलम्बी होने का सुख प्रदान करें। बेटी का विवाह बाद में करें उससे पहले उसे आत्मनिर्भर और स्वावलम्बी होने का रास्ता प्रदान करें। रिश्तों की डोर कब टूट जाए, कब मन में गाँठ पड़ जाए, इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं होती। इसलिए बेटी को खुदमुख्तार करना बहुत जरूरी है । हमारा दिया दहेज
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कोई जिंदगी भर काम नहीं आता । पर यदि हमने अपनी बेटी को पढ़ालिखा कर उसे अपने पैरों पर खड़ा कर दिया है, तो वह मुश्किलों और मुसीबतों में भी इज़्ज़त की ज़िंदगी जीने में कामयाब हो जाएगी। अपनी बेटी को पढ़ा-लिखा कर उसे अपने पांव पर खड़ा करना सबसे अच्छा दहेज है। बेटी को दी जाने वाली सबसे अच्छी विरासत है ।
ध्यान रखिए, व्यापार में करोड़ों कमा लेना ही जिंदगी की उपलब्धि नहीं है, वरन् विपरीत परिस्थितियों का सफलतापूर्वक सामना करना जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है । हालात आखिर किसके सामने विपरीत नहीं आते ! क्या अंबानी या अमिताभ परिवार को अथवा टाटा या बाटा को मुश्किले या मुसीबतें नहीं आतीं ? इस दुनिया में महावीर जैसे तीर्थंकर के कान में भी कीलें ठुकने जैसी कहानियां पढ़ने को मिलती है और जीसस जैसे ईश्वर पुत्र को भी सलीब का सामना करना पड़ता है। राम को वनवास झेलना पड़ता है तो राजघराने में पैदा होने वाली मीरा को कुलकलंकिनी का ज़हर पीने को मज़बूर होना पड़ता है । बचपन में आप सब ने गब्बरसिंह का यह डयलॉग सुना है कि जो डर गया सो मर गया। ये लोग अगर अपने जीवन में आने वाली मुसीबतों से घबरा जाते तो वे कभी भी इतिहास के अमर पन्ने न बन पाते। अगर नियति और कुदरत के घर से मिली विपदाओं और विफलताओं के बावजूद हमारे हृदय में धैर्य, साहस और आत्मविश्वास बना हुआ है तो विश्वास रखिए कि आपके पास सफल जीवन है ।
इस दुनिया में न जाने कब किसे हानि उठानी पड़ती है, कब किसे अपमान और मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। जिन क्षणों में लोग आँसू ढुलकाने के लिए मजबूर हो जाते हैं उन क्षणों में आप अपने आप पर कितना धैर्य, कितनी शांति रख पाने में सफल होते हैं, इसी में आपके जीवन की सारी सकारात्मकता और नकारात्मकता छिपी हुई है ।
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सोच का सकारात्मक होना जीवन की सबसे बड़ी सफलता है । सोच आदमी के जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है । सोच ही आदमी के जीवन की मूलभूत प्रेरणा है । सोच में ही शांति छिपी हुई है और सोच में ही प्रगति। सोच यदि सकारात्मक है तो वह अमृत है । सोच यदि नकारात्मक है तो वही ज़हर है। मनुष्य का मन ज़हर भी उगलता है और अमृत भी । पुरानी किताबों में सागर का मंथन कभी एक दफा हुआ होगा पर मनुष्य के मन में तो हर समय ही सागर मंथन चलता रहता है । यह कभी विष प्रकट करता है तो कभी अमृत । जो दूसरों की नकारात्मकताओं के ज़हर को हँसते-मुस्कुराते हुए पी जाते हैं वही घर-परिवार और समाज में नीलकंठ महादेव बना करते हैं। खुद को नकारात्मकताओं से बचाओ और दूसरों की नकारात्मकताओं को हँसते - मुस्कुराते हुए झेल जाओ। यही व्यक्ति की आत्म-विजय है ।
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मैं सकारात्मक सोच का संदेशवाहक हूँ । सकारात्मक सोच मेरा धर्म है, मेरा पुण्य है, मेरी सद्गति है, मेरी प्रतिष्ठा है, मेरा द्वीप है, मेरा व्रत है, मेरा संकल्प है, मेरा नज़रिया है । सोच अगर सकारात्मक है तो मैं और आप - हम सब सफल हैं। सोच अगर नकारात्मक है तो चाहे मैं हूँ या आप हम सब विफल हैं। इसलिए जीवन का मंत्र बनाइए मैं सकारात्मक सोचूँगा, सकारात्मक बोलूँगा, सकारात्मक व्यवहार करूँगा, सकारात्मक जीऊँगा । जिस दिन हम अपनी सकारात्मकता को
छोड़ बैठे उस दिन समझ लेना कि हमने अपनी आत्महत्या कर डाली है। स्वयं की ताकत है सकारात्मक सोच । परिवार की शक्ति है सकारात्मक सोच। समाज के संगठन का आधार है सकारात्मक सोच । देश की प्रगति का राज है सकारात्मक सोच । विश्व को शांति, समृद्धि और भाईचारे का वातावरण देने वाला है सकारात्मक सोच ।
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सकारात्मक सोच यह मंत्र भी है और तंत्र भी । यह शक्ति भी है और प्रगति भी । यह श्वास भी है और विश्वास भी । यह धर्म भी है और मोक्ष भी । यह राम भी है और रहमान भी । यह महावीर भी है और महादेव
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भी। यह जीसस भी है और जरथुस्त्र भी। यह कृष्ण भी है और कबीर भी। यह भरत भी है और भारत भी। यह वह मंत्र है जिसे आप भी अपनाइए और आपके मित्र भी। आपकी बेटी भी अपनाए और आपका जवांई भी। सास भी अपनाए और बहू भी। शिष्य भी अपनाए और गुरु भी। एक ही मंत्र एक ही धर्म, एक ही पंथ, एक ही ग्रंथ – और वह है सकारात्मक सोच। ___पोजिटिव थिकिंग इज दा बैकबोन ऑफ योर सक्सेसफुल लाइफ, सक्सेसफुल एनी प्रोडेक्ट्स। सकारात्मक सोच आपके सफल जीवन का मेरुदंड है। सकारात्मक सोच आपके हर सफल उत्पादन की आत्मा है। तो सोच को बनाइए बेहतर, सोच को बनाइए सम्मानजनक, सोच को बनाइए स्वीकारात्मक, सोच को बनाइए श्रेष्ठतर । सकारात्मकता का तानाबाना इन्हीं सब बातों से गुथा हुआ है। सकारात्मकता का मतलब है अपने हर उत्पादन को और बेहतर बनाने की कोशिश। सकारात्मकता का अर्थ है बड़ों की डाँट को सहजता से लेना और छोटो की ग़लती को माफ़ करने का बड़प्पन दिखाना। सकारात्मकता के मायने हैं गिलास को खाली नहीं, हमेशा आधा भरा हुआ देखना। किसी की कमी को देखना नकारात्मकता है और किसी की अच्छाइयों को देखना सकारात्मकता है। किसी ने आज हमारा अपमान किया उस पर गौर करना नकारात्मकता है वहीं अब तब उसने हमारा जो सम्मान किया उसे याद करना सकारात्मकता है। अपने मत, पंथ, परम्पराओं का आग्रह रखना नकारात्कता है वहीं 'रास्ते जुदे-जुदे हैं और मंज़िल सबकी एक' इस फिलोसॉफी में विश्वास रखना सकारात्मकता है।
जिसके हाथ में सकारात्मकता का यह प्रकाश है वह समाज और संसार की संजीवनी है। मेरा तो राम ही सकारात्मक सोच है। जबजब इंसान सकारात्मक सोच से फिसलता है तब-तब उसे छोटी
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छोटी बात पर भी कभी खीझ आती है तो कभी गुस्सा। कभी ईगो टक्कराता है तो कभी भाई-भाई और सास-बहू ही झगड़ पड़ते हैं। ईगो को कहिए 'गो' और सोच को बनाइए सकारात्मक, आप निश्चय ही सफल और सार्थक जीवन के मालिक बन चुके हैं। __ जैसे ही आपको लगे कि आपको किसी कठिन परिस्थिति का सामना करने को जाना है तो पहले, क्षण भर के लिए मुस्कुराइए, अपने मिजाज को ठीक कीजिए अर्थात् अपनी मानसिकता को पॉजिटिव बनाइए और फिर बगैर किसी झिझक के उस वातावरण में चले जाइए। विश्वास रखिए जीत आपकी होगी। चाहे आपको किसी मीटिंग में जाना हो या बॉस के पास, बस अपने पास एक ही हथियार रखिए – सकारात्मक सोच।
जिसकी मानसिकता सकारात्मक है, बेहतरीन है उसके सामने से अगर बिल्ली भी गुजर जाए तो उसे अपशकुन नहीं होता। सकारात्मकता तो खुद ही शकुन है। वहीं नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति को एक बहाना मिल जाता है काम को टालने का। सकारात्मक सोच का इंसान तो मज़बूत इरादे के साथ निकल पड़ता है।
नकारात्मक सोच के लोग ही शकुन और अपशकुन के बारे में सर पची करते रहते हैं। ऐसे लोग ही नाक के पास हाथ ले जाकर देखते हैं कि अभी सूर्य स्वर चल रहा है कि चन्द्र स्वर? मेरे भाई, स्वर तो जिंदगी में एक ही चलना चाहिए और वह है सकारात्मक सोच का स्वर। सोच अगर सकारात्मक है तो बायाँ स्वर भी शुभ होगा। सोच अगर नकारात्मक है तो दायाँ स्वर भी शुभ परिणाम न दे पाएगा। परिणाम के पीछे किस्मत काम करती है और किस्मत के पीछे आदमी की सोच, आदमी की विचारधारा, आदमी की मानसिकता। याद रखिए सकारात्मक सोच ही जीवन में समाधान का हिस्सा बनती है वहीं नकारात्मक सोच समस्या का हिस्सा। सकारात्मक सोच के लोग ही विजयी टीम के हिस्से होते हैं वहीं नकारात्मक सोच के लोग टीम के हिस्से किया करते हैं। सकारात्मक सोच
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के लोग छोटी से छोटी बात पर भी समझौता करने को तैयार हो जाते हैं जबकि नेगेटिव थिकिंग के लोग अड़ियल रुख अपनाते हैं।
आप अपने आप को पोजिटिव बनाइए, सकारात्मक बनाइए। आपकी समस्याएँ कम होंगी, आपके क़दम समाधान की ओर होंगे। अगर आपसे कोई गलती हो जाए और बॉस का बुलावा आ जाए तो आपको घबराने या कतराने की ज़रूरत नहीं है । आप बॉस के पास जाइए, पर जाने से पहले सकारात्मक सोच के मंत्र को दिमाग़ में बिठा लें, मुस्कुराएँ और बेझिझक बॉस के पास चले जाएँ । अगर हमारे सम्मुख कोई अप्रिय स्थिति बन जाए तो क्षणभर के लिए पहले मुस्कुराएँ, सकारात्मकता को दिमाग़ में लाएँ और फिर खुद को पेश करें। आप आश्चर्य करेंगे कि सामने वाला गाली निकाल रहा है, पर गाली आपको विचलित नहीं कर रही ।
कहते हैं दो ऑफिसर्स के बीच में किसी बात को लेकर कहासुनी हो गई। इस पर दूसरे ऑफिसर ने पहले ऑफिसर के मुंख पर थूक दिया। स्वाभाविक है कि कोई हम पर थूकेगा तो हमें गुस्सा आएगा पर पहला ऑफिसर अच्छी सोच और अच्छे नजरिए का आदमी था । वह पास में ही रखे हुए कोल्ड वाटर टंकी के पास गया, एक गिलास पानी निकाला, मुँह पौछा और वापस अपने ऑफिस में चला गया। उसके साथीदार ने पूछा, 'उसने तुम पर थूका, क्या तुम्हें गुस्सा नहीं आया ?' ऑफिसर ने कहा, 'बुरा तो ज़रूर लगा पर मेरे पोजेटिव थिंकिंग के मंत्र ने मुझे तत्काल प्रेरित किया कि जो काम पानी से निपट सकता है उसके लिए पत्थर क्यों उठाया जाए । '
यह है हर प्रोब्लम का सोल्यूशन । यानी हर समस्या का समाधान | आप भी सकारात्मक सोचिए और सकारात्मक देखिए | अगर हम ऐसा कर लेते हैं तो मैं कहना चाहूँगा कि हम अपने जीवन की नब्बे प्रतिशत समस्याओं का सामना करने में खुद समर्थ हो जाएँगे। लोगों पर जब
मुसीबतें आती हैं तो कोई हनुमानजी को याद करते हैं और कोई महावीर
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जी को। मेरा अनुरोध है कि आप आत्मविश्वास को अपना हनुमान बनाइए और सकारात्मक सोच को अपना महावीर। आप इन दो ताक़तों के जरिए अपनी प्रत्येक परिस्थिति का सामना कर सकेंगे और उसे अपने अनुकूल भी बना सकेंगे।
यों तो दुनिया में हर आदमी सोचता है। कोई भी ऐसा नहीं है, जो सोचता न हो। एक आदमी ठोकर लगने से पहले सोचता है, दूसरा ठोकर लगते वक़्त सोचता है
और तीसरा ठोकर लगने के बाद सोचता है पर चौथा आदमी ठोकर खाते हुए देखकर सोचता है, मगर सोचते सब हैं। आदमी सोचता है इसलिए वह आदमी है। मनुष्य में से अगर सोच को निकाल दिया जाए तो मनुष्य मनुष्य नहीं रह पाएगा। सोचना एक बहुत बडी कला है। हम अगर सोचने की कला से वाकिफ़ हो जाते हैं तो हम अपने जीवन के अनावश्यक, आवंछित, व्यर्थ के विचारों से मुक्त हो सकते हैं।
अच्छी सोच आदमी के जीवन का स्वर्ग है और बुरी सोच नरक है। अच्छी सोच आदमी के जीवन का सबसे बेहतरीन मित्र है, वहीं बुरी सोच आदमी के जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है। आप सोचें... सोच-सोच कर सोचें कि आपके भीतर कौन-सी सोच अच्छी है और कौन सी बुरी। ___ मैंने सुना है : एक पत्नी ने अपने पति से कहा - 'आजकल तो तुम बहुत गड़बड़ी करने लग गए हो। पति ने कहा - 'अरी भागवान, मैं इतना सीधा-साधा आदमी। मैं क्या गड़बड़ी कर सकता हूँ।' पत्नी ने कहा - 'कल रात को मैंने एक सपना देखा कि आप पड़ौसिनों से खूब मिलजुलकर बातें कर रहे थे, खूब हँसी-ठहाके लगा रहे थे।'
पति ने कहा - 'मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया।' पत्नी बोली - 'मैंने अपने सपने में देखा।' पति ने कहा - 'सपने में देखा, तो वह सपना तो तुम्हारा अपना था। मैंने अपने सपने में थोडे ही देखा।' पत्नी ने कहा - 'अरे, जब मेरे सपने में इतनी गड़बड़ियाँ करते हो तो तुम अपने सपने में
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तो न जाने क्या-क्या गड़बड़ियाँ करते होओगे।' ।
हम ही हमारी सोच से सन्देह पैदा करते हैं। हम ही हमारा सपना देखते हैं और हम ही इल्ज़ाम दूसरों पर मढ़ते हैं। इसलिए सोच के प्रति सावधान रहें। सोच ही सद्गति बनाती है और सोच ही दुर्गति के दरवाजे खोलती है। राजर्षि प्रसन्नचंद्र अपनी विचारधाराओं के दूषित और आक्रामक हो जाने पर नरक गति की ओर बढ़ने लग जाते हैं वहीं विचारधारा के संस्कारित और क्षमाशील हो जाने पर स्वर्गगति के पथिक बन जाते हैं।
सोच चाहिए सकारात्मक। जैसा सोचेंगे, वैसा बोलेंगे। जैसा बोलेंगे वैसा व्यवहार करेंगे। जैसा व्यवहार करेंगे वैसी ही हमारी आदतें बनेंगी। जैसी आदतें बनेंगी, व्यक्ति का वैसा ही चरित्र बनेगा और जैसा चरित्र होगा वैसी ही व्यक्ति की किस्मत बनेगी। किस्मत को सुधारना है तो चरित्र को सुधारें। चरित्र को सुधारना है तो व्यवहार को सुधारें। व्यवहार को सुधारना है तो वाणी को सुधारें। घूम-फिर कर कोल्हू का बैल वहीं आकर खड़ा होगा कि अगर व्यवहार और वाणी को सुधारना है तो सोच को सुधारें।
आदमी के भीतर दो तरह की सोच उठती है। एक है नकारात्मक और दूसरी है सकारात्मक। क्रोध और अहंकार क्या हैं? नकारात्मक सोच के परिणाम हैं। प्रेम और शांति सकारात्मक सोच के परिणाम हैं। आप अपने दिमाग़ को टटोलें। उसके भीतर नकारात्मकताएँ ज़्यादा उठती हैं या सकारात्मकताएँ। यदि हम निराशा, हताश, हीनभावना, चुगलखोरी, चिड़चिड़ापन, खीझ, अवसाद और अनिद्रा के शिकार हैं तो समझ लें कि हम पर नकारात्मक सोच हावी है।
जीवन में आनंद, शांति, प्रेम और भाईचारा है, स्मरण-शक्ति दुरुस्त है, जीवन के प्रति सजगता है तो मानकर चलें कि हमारे दिमाग में सकारात्मक सोच का पलड़ा भारी है। व्यक्ति विचारों का दामन थामे घूमता रहता है, भटकता रहता है, सोच के घेरे में घिरा हआ रहता है।
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किसी के प्रति नज़र में बुराई उठकर आई तो इसका कारण बुरी सोच रही । नकारात्मक सोच नकारात्मक कार्यों को अंजाम देती है, सार्थक सोच सार्थक कार्यों को ।
मेरे पास बैठे हैं संत राधाकृष्णजी। क्या हम समझ सकते हैं कि ये यहाँ क्यों आए ? ज़वाब है : सकारात्मक सोच के कारण। अगर नकारात्मक सोच होती तो व्यक्ति के भीतर अहम् भाव होता और जिसके चलते ये संत यहाँ नहीं आ पाते । सकारात्मक सोच थी । उसी सकारात्मक सोच के चलते निरहंकारिता, निरभिमानता का जीवन में विकास हुआ और उसी के चलते ये संत लोग हमें सुनने के लिए अपने व्यस्त कार्यक्रमों में से भी समय निकाल कर यहाँ पर उपस्थित होते हैं । यह हमारा सौभाग्य है कि हमें बड़े-बड़े संत और प्रबुद्ध लोग भी बड़े प्यार से सुनते और पढ़ते हैं । सोच अगर सकारात्मक है तो संत संत के करीब आता है । सोच अगर नकारात्मक है तो संत तो क्या, सास-बहू भी एक दूसरे से दूर हो जाते हैं ।
जीवन में सोच का मूल्य है, विचार का मूल्य है । हर विचार व्यक्ति के भविष्य का निर्माता होता है । अपने किसी भी विचार को निस्सार मत समझिए। हमारा प्रत्येक विचार आज नहीं तो कल ज़रूर प्रकट होगा । आज अगर किसी बात को लेकर आपके मन में किसी के प्रति गुस्सा आ गया है तो हो सकता है, आप उसे संकोच या श्रद्धावश प्रकट न कर पाएँ, लेकिन एक मौका, दूसरा मौका, तीसरा मौका आया कि पहले चरण में गुस्से की जो एक तरंग उठी थी, जो एक बीज आपने अपने भीतर बो डाला था, वह तीसरे चरण में निकलकर सामने आ ही जाएगा। गुस्सा पैदा न हो, यह श्रेष्ठ है पर अगर पैदा हो ही जाए तो उसे प्रकट कर दें । भीतर दबा हुआ गुस्सा दमन है और दमन स्प्रिंग की तरह होता है । स्प्रिंग को जितनी दबाएंगे उसकी ताकत उतनी ही ज़्यादा बढ़ेगी।
क्रोध भी एक विचार है, अहंकार भी एक विचार है, भोग भी एक विचार है । हमारे भीतर दूषित विचार पैदा ही न हो तो ज़्यादा श्रेष्ठ है पर अगर पैदा हो ही जाए तो
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हमें अपनी बेहतर बुद्धि का उपयोग करते हुए विचारों के साथ भी यह फार्मूला अपनाना चाहिए कि 'सार-सार को गहि रहे, थोथा देइ उड़ाय ।' क्योंकि मन में व्यर्थ के विचार लाओगे तो चिंतन भी व्यर्थ होगा। कार्य भी व्यर्थ होगा और परिणाम भी व्यर्थ निकलेंगे । व्यर्थ के विचारों से मुक्ति पायी जा सकती है। इसके लिए ज़रूरी है कि व्यक्ति अपने दिमाग़ में सार्थक विचारों का वपन करें। इंसानी दिमाग़ तो किसी ज़मीन की तरह होता है जिसमें जैसा बीज बोएंगे वैसी ही फसलें निकल कर आएँगी। कुदरत का कानून है : जैसा बोएँगेवैसा काटेंगे।
कहते हैं एक दफ़ा किसी जंगल में एक घोड़े और भैंस में कहासुनी हो गई। भैंस ने गुस्से में आकर घोड़े की सींग से पिटाई कर डाली । घोड़ा वहाँ से भाग खड़ा हुआ। वह पहुँचा मनुष्य के पास । उसने मनुष्य से अपनी समस्या कही पर मनुष्य ने कहा, भैंस के पास बड़े - बड़े सींग है, वह बलवान भी है मैं उससे कैसे जीत सकूँगा । घोड़े ने कहा, तुम एक मोटा डंडा ले लो और मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं ज़ल्दी-जल्दी दौड़ता रहूँगा और तुम भैंस को डंडे से मारकर अधमरी कर देना । फिर उसे रस्सी से बाँध लेना और अपने घर ले आना। भैंस दूध देती है, तुम भी दूध पीकर बलवान हो जाना।
मनुष्य ने घोड़े की बात मान ली। उसने भैंस की पिटाई भी की और रस्सी से बाँध कर घर भी ले आया । जब घोड़ा रवाना होने लगा तो मनुष्य ने उसे भी रस्से से बाँध दिया। अपने बंधनों को देखकर घोड़ा सकपका उठा । मनुष्य ने कहा, मैं नहीं जानता था कि तुम मेरे चढ़ने के काम आ सकते हो । अब मैं भैंस का दूध पिऊँगा और तुम्हारे ऊपर चढ़कर सहर किया करूँगा। हालांकि घोड़ा बहुत रोया, पछताया भी पर उसे यह बात समझ में आ गई। जैसा उसने भैंस के साथ किया वैसा फल उसे खुद भी भोगना पड़ा ।
जैसा करोगे वैसा पाओगे। अच्छा कीजिए अच्छा पाइए। दूसरों के प्रति अच्छा होकर आप.
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अपने लिए अच्छाई की व्यवस्था कर रहे हैं ।
हमें अपने जीवन में दो तरफा प्रयास करने पड़ते हैं : अच्छी फसलों के लिए मेहनत करनी पड़ती है और कुदरती तौर पर उगने वाली जंगली घास-फूस को चुन-चुनकर, काट-काटकर फैंकना भी पड़ता है।
सार्थक विचारों के लिए सदैव स्वाध्याय करें और अच्छे लोगों की सोहबत करें। जैसा संग, वैसा रंग । अच्छे लोगों की संगत में रहोंगे तो जीवन पर अच्छी रंगत चढ़ेगी, बुरे लोगों की सोहबत में रहोगे तो बुरी रंगत चढ़ेगी। सादा पानी अगर गंगा जी की संगत पा ले तो गंगोदक हो जाता है वहीं गंगा का पानी अगर गंदे नाले में उतर जाए तो गंगा भी मैली हो जाएगी। जीवन में अच्छे मित्र, अच्छी संगत जीवन को भी अच्छा बनाएँ रखते हैं और हमारे विचारों को भी। जैसे आप अच्छे लोगों की संगत करें वैसे ही हर रोज़ आधे घण्टा ही सही, अच्छी किताबें अवश्य पढ़ें। अच्छी क़िताबें इसलिए कि हम अपनी बुद्धि को ज्ञान की अच्छी खुराक दे सकें ।
एक अच्छी क़िताब जीवन का सबसे अच्छा मित्र है, जीवन का सबसे अच्छा शिक्षक है । अच्छी क़िताबें हमारे दिमाग़ में अच्छे बीज बोती
हैं। यदि हम अच्छे बीज नहीं बोएँगे तो सावधान
रहें क्योंकि तब हमारे मन का बगीचा, बगीचा नहीं रहेगा । वह एक जंगल बन जाएगा। उसमें जंगली घास-फूस उग आएगी। क्या हम अपने बगीचे को ऐसी जंगली शक्ल देना चाहते हैं ? अच्छे विचारों का आदान-प्रदान करें । मेरे अच्छे विचार आप लेकर जाएँ और आपके अच्छे विचार मुझे देकर जाएँ। इसे यूँ समझें अगर अपना एक सिक्का किसी दूसरे को देंगे और दूसरे का एक सिक्का हम लेंगे तो ज़रा सोचो कि दोनों के पास कितने सिक्के बचेंगे ? एक - एक । पर अगर किसी को अच्छा विचार देंगे और उससे उसका अच्छा विचार लेंगे तो दोनों के पास विचार कितने होंगे ? दो-दो । बस, यही जीवन की शिक्षा है और अगर ज़िंदगी में सिक्के
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की अदला-बदली करेंगे तो सिक्का एक का एक रहेगा पर विचार जितने लोगों को देंगे उतने ही विचार बढ़ते चले जाएँगे ।
अच्छे विचारवान लोगों को चाहिए कि वे सारी दुनिया में फैल जाएँ, अपने अच्छे विचारों को सारी दुनिया तक पहुँचाएँ । एक अच्छा विचार एक अच्छे चिराग़ की तरह है । उसे हम जहाँ भी रोशन करेंगे, वह अंधेरी रातों में भटकते लोगों के लिए सूरज का काम करेगा। अपने विचारों को बेहतर बनाना और अपने बेहतर विचारों की रोशनी दूसरों को प्रदान करना न केवल महान् व्यक्तित्व का आधार है, अपितु ईश्वर की सर्वोपरि पूजा है
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अच्छे विचार आदमी के जीवन की सबसे बड़ी पूँजी होते हैं । विचार जैसे होंगे वैसा ही जीवन का परिणाम निकलेगा। कहते हैं गाँधीजी हर सुबह नाश्ते में भीगे हुए खजूर और नींबू-पानी लेते। उनके लिए रात में खजूर भिगोने का काम मोरारजी देसाई का था । वे रोज़ाना उनके लिए दस खजूर भिगोते । एक दिन मोरारजी के मन में आया कि रोज़-रोज़ क्या दस खजूर भिगोना। इतनी बड़ी काया के लिए केवल दस खजूर? मोरारजी ने सोचा कि आज पन्द्रह खजूर भिगो देता हूँ । इसी बहाने पतली काया को थोड़ी तो और पौष्टिकता मिलेगी।
अगले दिन गाँधी जी ने सुबह नाश्ते में खजूर खाने शुरू किए। खाते-खाते तृप्त हो गए, फिर भी कुछ खजूर बच गए। उन्होंने सोचा, क्या बात है । क्या आज खजूर कुछ ज़्यादा हैं ? उन्होंने मोरारजी से पूछा, 'मोरारजी, एक बात तो बताओ कि तुमने खजूर ज्यादा तो नहीं भिगोए ?' मोरारजी ने कहा, 'बापू मैंने सोचा कि दस का क्या भिगोना, इसलिए पन्द्रह भिगो दिए । अब भला दस और पन्द्रह में क्या फ़र्क पड़ता है । गाँधीजी ने वापस जवाब दिया, भाई, एक बात सुनो। कल तुम मेरे लिए पाँच खजूर ही भिगोना । ' मोरारजी ने सोचा यह तो उल्टे लेने के देने पड़ गए ।
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पूछा क्यों क्या हो गया बापू ? बोले
तुमने मुझे
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जीवन का मंत्र दे दिया। तुमने कहा था कि दस और पन्द्रह में क्या फ़र्क पड़ता है। तो मैंने सोचा कि जब दस और पन्द्रह में कोई फ़र्क नहीं पड़ता तो पाँच और दस में भी कौनसा फ़र्क पड़ेगा। ___ यह बात वही सोच सकता है जो व्यक्ति अपरिग्रह पर निरन्तर चिंतन करता रहा हो, अपरिग्रहमूलक विचारों को अपने साथ निरन्तर जोड़ता रहा हो। इसलिए सावधान! अपने दिमाग़ में हमेशा अच्छे विचारों को डालें। अच्छी किताबें पढ़ें। अच्छे धारावाहिक देखें। अच्छे प्रवचन सुनें। अच्छा चिन्तन करते रहें ताकि हमारी मानसिकता, हमारा मन अच्छा रहे।
गाँधी जी ने तीन बंदरों के जरिये तीन संदेश दिए थे - बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो। आप चन्द्रप्रभ का चौथा बंदर जोड़िए जिसका संदेश है बुरा मत सोचो। जब तक हम बुरा सोचते रहेंगे तब तक बुरा देखेंगे भी, सुनेंगे भी और बोलेंगे भी। लेकिन अगर बुरा सोचना बंद कर दें तो तीनों चीज़ों पर अंकुश अपने आप लग जाएगा। आप अपने घर में चार बंदरों की कांस्य पट्टिका बनाकर लगवाएँ जिसमें गाँधी के तीन बंदर तो हो ही पर उन तीनों बंदरों से पहले चन्द्रप्रभ का चौथा बंदर ज़रूर हो। जिसकी अंगुली सर से सटी हुई हो। जिसे देखकर आपको भी और आपके घर में रहने वाले और आने वाले लोगों को इस बात का सदा संकेत मिलता रहे कि बुरा मत सोचिए।
अच्छे विचारों को लेने से बुरी सोच बदलेगी। अब तक सिक्कों की अदला-बदली बहुत हो गई। अब से अच्छे विचारों की अदला-बदली करें। किसी को शादी और जन्मदिवस पर फूलों का गुलदस्ता नहीं वरन् अच्छी किताबों का सेट दीजिए। फूलों का गुलदस्ता तो अगले दिन कूड़ेखाने में फेंक दिया जाएगा पर आपकी ओर से दी गई अच्छी क़िताबें उसके जीवन को जब-तब अच्छी रोशनी देती रहेगी। फूल क्षणिक ख़ुश्बू है पर किताब स्थायी रोशनी है। अब यह आप ही सोचिए कि आप अपने धन का क्षणिक फल चाहते हैं या स्थायी।
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सार्थक विचार दें, सार्थक विचार लें। सकारात्मक सोच रखें, सकारात्मक व्यवहार करें। अगर हम सकारात्मकता को मूल्य देते हैं तो दुश्मन ही क्यों न हो उसके प्रति भी अच्छा व्यवहार करने में सफल हो जाएँगे। बेहतरीन सोच दुश्मन के प्रति भी नतमस्तक करवा देती है जहाँ-जहाँ भी सोच सकारात्मक और सार्थक होगी, वहाँ-वहाँ हम सम्मान और आत्मविश्वास की शक्ति प्राप्त करते
रहेंगे । सकारात्मक सोच और बेहतर नज़रिया उसी का होता है जो रावण में भी राम को देख ले। मुझमें अगर संत का रूप देखा तो क्या देखा, जब तक एक गृहस्थ में साधुता नज़र न आई। कीमत व्यक्ति की सोच, नज़रिए और व्यवहार की हुआ करती है ।
जीवन में क्षणभर की भी सकारात्मकता अपना कैसा परिणाम दे सकती है, इसके लिए रामायण से प्रेरणा लीजिए। कहते हैं राम ने लंका पर चढ़ाई शुरू कर दी थी । समुद्र पर सेतु का निर्माण होने लगा । सेतु - निर्माण के कार्य से लंका में बेहिसाब दहशत फैल गई। लोग चर्चा करने लगे कि राम के नाम में भी कैसी ताकत है कि राम का नाम अगर पत्थर पर भी लिख दिया जाए तो वह तिरने लगता है । जब नाम में इतनी ताकत है तो उस आदमी में कितनी ताकत होगी। सारे सभासद रावण के पास पहुँचे और जाकर कहने लगे, सम्राट्, अगर आपने लंका की प्रजा के बीच फिर से अपना विश्वास कायम न किया तो प्रजा युद्ध शुरू होने से पहले ही लंका का त्याग कर देगी। आपको भी समुद्र-तट पर जाकर पत्थर तिराना होगा, वरना प्रजा का आक्रोश किस रूप में फूट पड़े।
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रावण ने पूछा- पत्थर कैसे तिर रहा है । तब बताया कि राम का नाम पत्थर पर लिखा जाता है और पत्थर को पानी में छोड़ा जाता है । उसी से सेतु का निर्माण हो रहा है । रावण सोचने लगा कि ताकत तो मेरे पास बहुत है, मगर मेरा नाम लिख दिया जाए और पत्थर तिरने लग जाए यह मुमकिन नहीं है । फिर उसने कुछ सोचा और कहा ठीक है, मैं भी
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लंका के समुद्र-तट पर पत्थर तिरा कर दिखाऊँगा। लंका में घोषणा हो गई कि महाराज रावण भी पत्थर तिरा कर दिखाएँगे। पूरी लंका की प्रजा समुद्र-तट के पास जमा हो गई। लोग रावण की जय-जयकार करने लगे। रावण के सामने परीक्षा की घड़ी थी। एक भारी भरकम पत्थर लाकर रावण के हाथ में थमाया गया। पत्थर के ऊपर लिख दिया गया - 'रावण'। और रावण ने वह पत्थर हाथों में थामकर आँखे बंद की, न जाने क्या बुदबुदाया और पत्थर को पानी में छोड़ दिया। आश्चर्य! पत्थर पानी में तैरने लग गया। रावण की जय-जयकार होने लग गई।
रात में मंदोदरी रावण के पास बैठी थी। मंदोदरी ने सवाल किया - 'महाराज, माफ़ी बख्शें, आपका पत्थर पानी में तिरा, यह बात समझ में नहीं आई। राम का पत्थर तिरा तो बात समझ में आती है कि राम के साथ तो राम की मर्यादा है, धर्म है, सीता का सतीत्व है।' रावण ने कहा, 'नाम तो पत्थर पर मैंने अपना ही लिखा था, पर जब सभासदों ने कहा कि राम का नाम पत्थर पर लिखने से पत्थर तिरने लग जाता है तो एक क्षण के लिए मेरी सोच राम के प्रति सकारात्मक हो गई। मैंने जब पत्थर को अथाह जलराशि पर छोड़ा तो मैंने कहा – 'हे पत्थर, तुम्हें राम की सौगंध है अगर तुम डूब गए तो।' बस, वह पत्थर पानी पर तिरने लग गया।
घटना केवल प्रतीकात्मक है। एक क्षण की सकारात्मकता अगर पत्थर को पानी में तिरवा सकती है तो क्या जीवनभर की सकारात्मकता इंसान की आन-बान नहीं बचा सकती? मेरे एक प्रिय आत्म सज्जन हैं : श्रीपालजी सिंघी। उन्होंने मेरे सकारात्मक सोच के संदेशों को हर कलेक्ट्रेट
ऑफिस में लगवाया। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में एक धार्मिक लक्ष्य बनाया कि मैं अपने गुरुजी के सकारात्मक सोच के संदेश को हर आई.ए.एस.
ऑफिसर तक पहुँचाऊँगा। मैं उन्हें साधुवाद भी देता हूँ और शुक्रिया भी अदा करता हूँ। उन्होंने वह किया जो आज
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की ज़रूरत है। हर बड़े अधिकारी को अपने शहर की रोज़ सौ समस्याएँ सुलझानी पड़ती हैं। हर अभिभावक को अपने घर की दस समस्याओं को सुलझाना पड़ता है। अगर उसके पास सकारात्मकता का मंत्र न होगा तो वह समस्याओं को पाकर झुंझलाएगा, सबके लिए तनाव का निमित्त बनेगा। बगैर सकारात्मकता के माता-पिता एक अच्छे माता-पिता नहीं हो सकते, एक गुरु सद्गुरु नहीं बन सकता, कर्मचारी अधिकारी होने तक का विकास नहीं कर सकता, विद्यार्थी कुलपति नहीं बन सकता और व्यापारी वैभवशाली नहीं बन सकता। शांति, समृद्धि, संतोष और सफलता का पहला और आखिरी मंत्र है : सकारात्मक सोच। ____ आप संकल्प लीजिए, सदा स्मरण रखिए – मैं सकारात्मक सोचूँगा, सकारात्मक बोलूँगा, सकारात्मक व्यवहार करूँगा। विशेष रूप से उस समय जब कोई मेरे सामने विपरीत परिस्थिति आ जाएगी। कोई भी व्यक्ति मात्र 99 दिन के लिए सकारात्मक सोच के मंत्र को अपना ले तो 100 वाँ दिन आपका इतना खुशनुमा होगा कि आप चमत्कृत हो उठेंगे। विद्यार्थी गुरुजनों के प्रति और गुरुजन विद्यार्थियों के प्रति, सास बहू के प्रति और बहू सास के प्रति, कर्मचारी अपने अधिकारी के प्रति और अधिकारी अपने कर्मचारियों के प्रति, यानी हम सब एक दूसरे के प्रति सकारात्मक सोच के जीवन मंत्र को अपनाएँ। अगर सकारात्मक सोच को हम अपना गुरुमंत्र बना लेते हैं तो मैं दावे के साथ कहता हूँ कि हमारे जीवन में, हमारे व्यवहार और रिश्तों में, परिवार और व्यापार में, समाज और संसार में मिठास बढ़ेगी, तनाव कटेंगे, प्रेम, सम्मान और भाईचारे में निश्चय ही ईजाफा होगा।
way of success
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लागत से भी कम मूल्य पर
जिएँ
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लक्ष्य
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ॐ अजा
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जीवन की जीने की
श्रेष्ठ साहित्य
बेहतर जीवन के बेहतर समाधान
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ऐसे जिएँ : श्री चन्द्रप्रभ
जीने की शैली और कला को उजागर करती विश्व-प्रसिद्ध पुस्तक। स्वस्थ, प्रसन्न और मधुर जीवन की राह दिखाने वाली प्रकाश-किरण । पुस्तक महल से भी प्रकाशित । पृष्ठ: 122, मूल्य 25/
लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ : श्री चन्द्रप्रभ जीवन में वही जीतेंगे जिनके भीतर जीतने का पूरा विश्वास है। सफलता के शिखर तक पहुँचाने वाली प्यारी पुस्तक । पुस्तक महल से भी प्रकाशित । पृष्ठ: 104, मूल्य 25/
बातें जीवन की, जीने की : श्री चन्द्रप्रभ युवा पीढ़ी की समसामयिक समस्याओं पर अत्यंत तार्किक एवं मनोवैज्ञानिक मार्गदर्शन ।
एक लोकप्रिय पुस्तक ।
पृष्ठ : 90, मूल्य 25/
बेहतर जीवन के बेहतर समाधान : श्री चन्द्रप्रभ जीवन की व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान देती एक लोकप्रिय पुस्तक ।
पृष्ठ: 130, मूल्य 25/
वाह ज़िंदगी ! : श्री चन्द्रप्रभ
सुखी और सफल जीवन जीने का रास्ता । जन-जन में लोकप्रिय एक चर्चित पुस्तक । पृष्ठ 120, मूल्य 25/
क्या स्वाद है ज़िंदगी का : श्री ललितप्रभ
जीवन के विभिन्न सार्थक और सकारात्मक पहलुओं को आत्मसात कराने वाली लोकप्रिय पुस्तक ।
पृष्ठ 146, मूल्य 25/
जागो मेरे पार्थ : श्री चन्द्रप्रभ
गीता की समय सापेक्ष जीवन्त विवेचना ।
भारतीय जीवन-दृष्टि को उजागर करता प्रसिद्ध ग्रन्थ । फुल सर्कल, दिल्ली से भी प्रकाशित ।
पृष्ठ: 230, मूल्य 40/
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पिरकोई मुबल
कैसेकर व्यक्तित्व विका
सवाधि
जीवनका तिवादी बात
फिर कोई मुक्त हो : श्री चन्द्रप्रभ अतीत के प्रेरक प्रसंगों पर दिए गए विशिष्ट प्रवचन। छोटे-बड़े सभी के लिए उपयोगी। पृष्ठ 100, मूल्य 25/कैसे करें व्यक्तित्व-विकास :श्री चन्द्रप्रभ जीवन और व्यक्तित्व-विकास पर बेहतरीन-बाल मनोवैज्ञानिक प्रकाशन। पृष्ठ 100, मूल्य 25/संबोधि : श्री चन्द्रप्रभ साधना के महत्वपूर्ण पहलुओं पर उद्बोधन। सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय। पृष्ठ 100, मूल्य 25/जीवन की बुनियादी बातें : महोपाध्याय ललितप्रभ सागर व्यावहारिक और आध्यात्मिक जीवन का मार्गदर्शन। जीवन की आध्यात्मिक समझ देने वाली पुस्तक। पृष्ठ 100, मूल्य 25/योगमय जीवन जीएँ : श्री चन्द्रप्रभ सफल और सार्थक जीवन की आध्यात्मिक दृष्टि । योग पर प्यारा प्रकाशन । पृष्ठ 100, मूल्य 25/आत्मदर्शन की साधना : श्री चन्द्रप्रभ आत्म-साधना के मार्ग को प्रशस्त करते विशिष्ट उद्बोधन। अष्टपाहुड़ के सूत्रों पर विश्लेषण।। पृष्ठ 112, मूल्य 25/महाजीवन की खोज : श्री चन्द्रप्रभ. अध्यात्म की बारीकियों का मार्गदर्शन करता सम्प्रदायातीत ग्रन्थ ।आचार्य कुंदकुंद, योगीराज आनंदघन एवं श्री मद् राजचन्द्र के सूत्रों एवं पदों पर प्रवचन। पृष्ठ : 176, मूल्य 30/कैसे करें आध्यात्मिक विकास और तनाव से बचाव : श्री चन्द्रप्रभा शरीर और मन के रोगों से छुटकारा दिलाते हुए. स्वास्थ्य,शांति और मुक्ति का आनंद प्रदान करने वाला बेहतरीन मार्गदर्शन। पृष्ठ 120, मूल्य 25/
योगमय जीवन जिएँ
गगनातन
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आध्यात्मिक विकास
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नई दिशा लटि
जीवन
शुकि
का विज्ञान)
अहसास
मधुगुल की
चेतना
ध्यान का विज्ञान
शांति
Paft besummen
नक्ष
भारतको जगना होगा
सरल रास्ता
नई दिशा, नई दृष्टि : श्री चन्द्रप्रभ शांति और बोधपूर्वक जीवन जीने की कला ; भगवान बुद्ध के विशिष्ट सूत्रों पर अमृत प्रवचन । पृष्ठ 216, मूल्य 35/
जीवन-शुद्धि का विज्ञान : श्री चन्द्रप्रभ
शरीर, विचार और भावों की उपयोगिता और विशुद्धि का मार्ग दर्शाता अभिनव प्रकाशन ।
पृष्ठ 102, मूल्य 25/
अहसास : श्री चन्द्रप्रभ
श्री चन्द्रप्रभ की चर्चित श्रेष्ठ कहानियों का पुनर्प्रकाशन । नई पीढ़ी के लिए विशेष पठनीय ।
पृष्ठ 100, मूल्य 25/
महागुहा की चेतना : महोपाध्याय ललितप्रभ सागर संबोधि का प्रकाश आत्मसात करने के लिए मुमुक्षुओं को दिया गया अमृत मार्गदर्शन ।
पृष्ठ 112, मूल्य 25/
ध्यान का विज्ञान : श्री चन्द्रप्रभ
ध्यान की सम्पूर्ण गहराइयों को प्रस्तुत करता एक समग्र ग्रन्थ । अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित । राजस्थान पत्रिका से भी प्रकाशित । पृष्ठ 124, मूल्य 30/
न जन्म, न मृत्यु : श्री चन्द्रप्रभ आत्मा से आत्मा की सार्थक वार्ता ;
अष्टावक्र गीता पर दिए गए अद्भुत प्रवचन । अध्यात्म-प्रेमियों के लिए विशेष उपयोगी। पृष्ठ 160, मूल्य 30/
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अब भारत को जगना होगा : श्री चन्द्रप्रभ भारत की मूल भावना और दृष्टि को समझाने वाली एक बेहतरीन पुस्तक । पृष्ठ 150, मूल्य 30/
शांति पाने का सरल रास्ता : श्री चन्द्रप्रभ
सच्ची शांति, सौन्दर्य और आनंद प्रदान करने वाली चर्चित पुस्तक ।
पृष्ठ 100, मूल्य 25/
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चन्द्रप्रभ
अंतर्यात्रा
कहानियों
ज़रा मेरी
आँखों
से देखो
प्रेरणा
कैसे बनाएँ
समय को बेहतर
ऐसी हो जीने की शैली
Philosopho
किसे पाएँ
मन की शान्ति
सो परम महारस चाखै : श्री चन्द्रप्रभ आनन्दघन के अध्यात्म-रसिक पदों पर बेहतरीन प्रवचन । पढ़िये, अंधेरे से प्रकाश में ले जाती इस पुस्तक को ।
पृष्ठ 134, मूल्य 25/
श्री चन्द्रप्रभ की श्रेष्ठ कहानियाँ : श्री ललितप्रभ श्री चन्द्रप्रभ की श्रेष्ठ कहानियों का प्यारा संकलन । पुस्तक जो संपूर्ण देश में पढ़ी जा रही है ।
पृष्ठ 102, मूल्य 25/
जरा मेरी आँखों से देखो : श्री ललितप्रभ सागर सर्वधर्म के अमृत संदेशों को उजागर करते हुए नैतिक मूल्यों से रू-ब-रू करवाती श्रेष्ठ पुस्तक । सबके लिए प्रेरक और पठनीय
पृष्ठ 100, मूल्य 25/
प्रेरणा : महोपाध्याय ललितप्रभ सागर
आध्यात्मिक संतों के जीवन से जुड़े प्रेरक प्रसंग | सहज में पाइए धर्म-अध्यात्म की दृष्टि । पृष्ठ 100, मूल्य 25/
कैसे बनाएँ समय को बेहतर : श्री चन्द्रप्रभ
समय का हर दृष्टि से मूल्यांकन करते हुए समयबद्ध जीवन जीने की प्रेरणा देने वाली पुस्तक ।
पृष्ठ : 110, मूल्य 25/
ऐसी हो जीने की शैली : श्री चन्द्रप्रभ
जीवन और धर्म-पथ को परिभाषित करते हुए जीने की साफ-स्वच्छ राह दिखाती अनूठी पुस्तक ।
पृष्ठ 160, मूल्य 30/
मैं कौन हूँ : श्री चन्द्रप्रभ
वे प्रवचन जो हमें दिखाते हैं
अध्यात्म और आत्म-रूपांतरण का रास्ता ।
पृष्ठ 100, मूल्य 25/
कैसे पाएँ मन की शांति : श्री चन्द्रप्रभ
चिंता, तनाव और क्रोध के अंधेरे से बाहर लाकर जीवन में शांति, विश्वास और आनंद का प्रकाश देने वाली
बेहतरीन जीवन-दृष्टि ।
पृष्ठ 116, मूल्य 25/
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योग अपना जन्दगीविनाय
आँगनम can
योग अपनाएँ, ज़िंदगी बनाएँ : श्री चन्द्रप्रभ ध्यान-योग में प्रवेश पाने के लिए पूँजी के रूप में सफल मार्गदर्शन। एक चर्चित पुस्तक। पृष्ठ 100, मूल्य 25/प्रेम की झील में ध्यान के फूल : श्री चन्द्रप्रभ प्रेम, विश्वास और ध्यान की आभा प्रदान करने वाली प्यारी पुस्तक। पृष्ठ 96, मूल्य 25/पर्युषण-प्रवचन : श्री चन्द्रप्रभ पर्युषण-पर्व के प्रवचनों को घर-घर पहुँचाने वाला एक प्यारा प्रकाशन । पढें, कल्पसूत्र को अपनी भाषा में। पृष्ठ 112, मूल्य 25/आंगन में प्रकाश : महोपाध्याय ललितप्रभ सागर तीस प्रवचनों का अनूठा आध्यात्मिक संकलन, जो आम आदमी को प्रबुद्ध करता है। और जोड़ता है उसे अस्तित्व की सत्यता से। पृष्ठ 200, मूल्य 35/स्वयं से साक्षात्कार : श्री चन्द्रप्रभ आत्म-ज्ञान और आत्म-विकास के लिए पढ़िए इस चर्चित पुस्तक को। पृष्ठ 136,मूल्य 25/जीने के उसूल : श्री चन्द्रप्रभ सफल और सार्थक जीवन जीने का अनमोल खजाना। जीने की दृष्टि, शक्ति और प्रेरणा देने वाली चर्चित पुस्तक। पृष्ठ 144,मूल्य 25/धर्म, आखिर क्या है : श्री ललितप्रभ सागर अमृत प्रवचन, जो हमें वर्तमान सन्दर्भो में जीवन जीने की कला प्रदान करते हैं। पुस्तक महल दिल्ली से भी प्रकाशित पृष्ठ 160, मूल्य 30/ज्योति कलश छलके : महोपाध्याय ललितप्रभ सागर जीवन-मूल्यों को ऊपर उठाने वाली एक प्यारी पुस्तक । भगवान महावीर के सूत्रों पर प्रवचन । पृष्ठ 160, मूल्य 30/
स्वयससाक्षात्कार
चन्द्रमा
जीनुसल
धर्म
आखिर भया है।
कलशछलक
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gledali
NONEEK
घरका
धर्म में प्रवेश : श्री चन्द्रप्रभ नित्य नये पंथों और उपासना-पद्धतियों के बीच धर्म के स्वच्छ मौलिक स्वरूप का निर्देशन। नई पीढ़ी के लोग अवश्य पढ़ें। पृष्ठ : 96, मूल्य 25/जागे सो महावीर : श्री चन्द्रप्रभ भगवान महावीर के विशिष्ट सूत्रों पर अमृत प्रवचन । अन्तर्मन में अध्यात्म की रोशनी पहुँचाता प्रकाश-स्तम्भ। ज्ञानवर्धन एवं मार्गदर्शन के लिए महावीर पर नई दृष्टि। पृष्ठ 252,मूल्य 25/जीवन, जगत और अध्यात्म : श्री ललितप्रभ सागर महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर जी के विशिष्ट प्रवचनों का संग्रह । जीवन, जगत,अध्यात्म और मोक्ष पर पावन मार्गदशन प्रदान करने वाली पुस्तक। पृष्ठ 168,मूल्य 30/घर को कैसे स्वर्ग बनाएँ : श्री ललितप्रभ, श्री चन्द्रप्रभ इस पुस्तक में है पूज्य श्री चन्द्रप्रभ का लोकप्रिय प्रवचन 'माँ की ममता हमें पुकारे' और पूज्य श्री ललितप्रभ का चर्चित प्रवचन परिवार की खुशहाली का राज़' ।घर-घर में पठनीय। पृष्ठ 168, मूल्य 10/सहज मिले अविनाशी : श्री चन्द्रप्रभ योग के कुछ महत्वपूर्ण सूत्रों के प्रसंग में दिए गए बेहतरीन एवं अनमोल प्रवचन। पृष्ठ : 100, मूल्य 25/आपकी सफलता आपके हाथ : श्री चन्द्रप्रभ सफलता हर किसी को चाहिए, पर उसे पाएँ कैसे, पढ़िये इस प्यारी पुस्तक को। पृष्ठ 110, मूल्य 25/शांति, सिद्धि और मुक्ति पाने का सरल रास्ता : श्री चन्द्रप्रभ अध्यात्म की सहज-सर्वोच्च स्थिति तक पहुंचाने वाला एक अभिनव ग्रन्थ । पृष्ठ : 200, मूल्य 30/ध्यानयोग : विधि और वचन : ललितप्रभ सागर ध्यान योग की वास्तविक समझ पाने के लिए विशेष उपयोगी। साथ ही ध्यान-योग की विस्तृत विधि । पुस्तक महल दिल्ली से भी प्रकाशित। पृष्ठ : 148, मूल्य 30/
आपकी सालता आपके हा
शांति मिति मार
मुक्ति पाल
ध्यानयोग विधि और नमन
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कामयावी
महान जनस्तोत्र -
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क्या करें कामयाबी के लिए : श्री चन्द्रप्रभ कामयाबी के लिए हर रोज नई प्रेरणा देने वाली एक सुप्रसिद्ध पुस्तक। पृष्ठ 100, मूल्य 25/सकारात्मक सोचिए, सफलता पाइये : श्री चन्द्रप्रभ स्वस्थ सोच और सफल जीवन का द्वार खोलती लोकप्रिय पुस्तक। पृष्ठ 120, मूल्य 25/फिर महावीर चाहिए : श्री चन्द्रप्रभ महावीर अतीत की नहीं वर्तमान की आवश्यकता है। फिर से समझिए महावीर को। पृष्ठ 96, मूल्य 25/महान जैन स्तोत्र : महोपाध्याय ललितप्रभ सागर महान चमत्कारी धार्मिक स्तोत्रों का अनुपम ख़ज़ाना। पृष्ठ 125, मूल्य 25/कैसे जिएँ मधुर जीवन : श्री चन्द्रप्रभ सुमधुर और सुव्यवस्थित जीवन जीने की कला सिखाने वाली बेहतरीन पुस्तक।
पृष्ठ 120, मूल्य 25/विशेष - अपने घर में अपना पुस्तकालय बनाने के लिए फाउंडेशन ने एक अभिनव योजना बनाई है। इसके अंतर्गत आपको सिर्फ एक बार ही फाउंडेशन को पच्चीस सौ रुपए देने होंगे, जिसके बदले में फाउंडेशन अपने यहाँ से प्रकाशित होने वाले प्रत्येक साहित्य को आपके पास आपके घर तक पहुंचाएगा और वह भी आजीवन । इस योजना के सदस्य बनते ही आपको फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित संपूर्ण 'उपलब्ध साहित्य'निःशुल्क प्राप्त होगा।ध्यान रहे, साहित्य वही भेजा जा सकेगा जो उस समय स्टॉक में उपलब्ध होगा। इस योजना के अन्तर्गत संबोधि टाइम्स पत्रिका भी आपको आजीवन निःशुल्क प्राप्त होगी। रजिस्ट्री चार्ज एक पुस्तक पर 20 रुपये, न्यूनतम दो सौ रुपये का साहित्य मंगाने पर डाक व्यय संस्था द्वारा देय । धनराशि SriJityasha Shree Foundation के नाम ड्राफ्ट बनाकर जयपुर के पते पर भेजें। वी.पी.पी. से साहित्य भेजना शक्य नहीं होगा।आज ही अपना ऑर्डर निम्न पते पर भेजें
श्री जितयशा श्री फाउंडेशन बी-7, अनुकम्पा द्वितीय, एम.आई. रोड़, जयपुर - 302 001 फोन : 2364737 |
कैसे जिए मधुरजीवन
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________________ दम... आज हर व्यक्ति एक ही कोशिश में लगा हुआ है कि वह अपना केरियर बेहतर बनाए। व्यक्ति के केरियर पर ही उसके जीवन की सारी सफलताएँ और समृदियाँ टिकी हई हैं। केरियर बनाना जीवन की किसी साधना से कम नहीं है। केरियर ही जीवन के लिए नींव का काम करता है और विकास की ज्योति का दायित्व निभाता है। जिसका केरियर परफेक्ट, उसकी जिंदगी परफेक्ट | चाहे आप युवा हों या प्रौढ़, आप अपने केरियर को अपने जीवन की सबसे बड़ी ताकत समझिए / महान जीवन-द्रष्टा पूज्य श्री चन्द्रप्रभ हमें शानदार केरियर निर्माण के वेदमदार नुस्खे दे रहे हैं, जिनकी बदौलत एक साधारण-सा व्यक्ति भी असाधारण ऊंचाइयों को छू सकता है। जितने सीधे-सादे और प्रभावी ढंग से इस पुस्तक में केरियर और व्यक्तित्व-निर्माण के तरीके बताए गए हैं उनसे यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि यह कोई चालू किताब नहीं, वरन् सफलता के ताले की जादुई चाबी है। निश्चय ही इस पुस्तक का हर पन्ना, हर शब्द आपके लिए उतना ही बेशकीमती है जितना कि आपके लिए आपका केरियर | श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं कि इस बात को सदा याद रखिए कि जीवन में कामयाबी के निन्यानवे द्वार बंद हो जाए, तब भी विश्वास रखिए आपके लिए कोई-न-कोई एक द्वार अवश्य खुला हुआ है। बस, आप उस एक द्वार की तलाश कीजिए और फिर से पूरी ऊर्जा और उत्साह के साथ अपने कदम बढ़ा लीजिए। Rs. 30/ COPL/9987 For Personal & Private Use Only