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सार्थक विचार दें, सार्थक विचार लें। सकारात्मक सोच रखें, सकारात्मक व्यवहार करें। अगर हम सकारात्मकता को मूल्य देते हैं तो दुश्मन ही क्यों न हो उसके प्रति भी अच्छा व्यवहार करने में सफल हो जाएँगे। बेहतरीन सोच दुश्मन के प्रति भी नतमस्तक करवा देती है जहाँ-जहाँ भी सोच सकारात्मक और सार्थक होगी, वहाँ-वहाँ हम सम्मान और आत्मविश्वास की शक्ति प्राप्त करते
रहेंगे । सकारात्मक सोच और बेहतर नज़रिया उसी का होता है जो रावण में भी राम को देख ले। मुझमें अगर संत का रूप देखा तो क्या देखा, जब तक एक गृहस्थ में साधुता नज़र न आई। कीमत व्यक्ति की सोच, नज़रिए और व्यवहार की हुआ करती है ।
जीवन में क्षणभर की भी सकारात्मकता अपना कैसा परिणाम दे सकती है, इसके लिए रामायण से प्रेरणा लीजिए। कहते हैं राम ने लंका पर चढ़ाई शुरू कर दी थी । समुद्र पर सेतु का निर्माण होने लगा । सेतु - निर्माण के कार्य से लंका में बेहिसाब दहशत फैल गई। लोग चर्चा करने लगे कि राम के नाम में भी कैसी ताकत है कि राम का नाम अगर पत्थर पर भी लिख दिया जाए तो वह तिरने लगता है । जब नाम में इतनी ताकत है तो उस आदमी में कितनी ताकत होगी। सारे सभासद रावण के पास पहुँचे और जाकर कहने लगे, सम्राट्, अगर आपने लंका की प्रजा के बीच फिर से अपना विश्वास कायम न किया तो प्रजा युद्ध शुरू होने से पहले ही लंका का त्याग कर देगी। आपको भी समुद्र-तट पर जाकर पत्थर तिराना होगा, वरना प्रजा का आक्रोश किस रूप में फूट पड़े।
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रावण ने पूछा- पत्थर कैसे तिर रहा है । तब बताया कि राम का नाम पत्थर पर लिखा जाता है और पत्थर को पानी में छोड़ा जाता है । उसी से सेतु का निर्माण हो रहा है । रावण सोचने लगा कि ताकत तो मेरे पास बहुत है, मगर मेरा नाम लिख दिया जाए और पत्थर तिरने लग जाए यह मुमकिन नहीं है । फिर उसने कुछ सोचा और कहा ठीक है, मैं भी
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