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खुद को व्यस्त रखना अपने आप में कर्मयोग की साधना है। मैं स्वयं कर्मयोगी हूँ। कर्मयोग मेरी फितरत में है। मैंने गीता से कर्मयोग की प्रेरणा पाई है। चाहे आप हों अथवा आपका समाज या यह सारा देश, सबके विकास की धुरी कर्मयोग ही है।" कर्मयोग करो अर्थात मेहतन करो। मेहनत इस कदर करो कि मानो मेहनत पर ही आपका जीवन टिका हुआ हो। ___ जब मैं कह रहा हूँ कि स्वयं को व्यस्त रखो तो यह बात उन बच्चे और बच्चियों के लिए भी है जो अभी तक पढ़ रहे हैं अथवा जिन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी है। यह बात घरेलु महिलाओं के लिए भी है जिनके घर में काम करने के लिए दो-चार नौकर रहते हैं । जो काम नहीं करते उन्हीं लोगों को योगासनों की जरूरत पड़ती है। जो हर हाल में खुद को एक्टिव रखते हैं, स्वावलम्बी होते हैं उनका योगासन तो अपने आप ही हो जाता है । मैं बुजुर्गों से भी कहूँगा कि वे भी अपने आप को व्यस्त रखें। बच्चियों को चाहिए कि वे अपनी पढ़ाई के अलावा अपनी माँ अथवा भाभी के कार्यों में सहयोग करें और बुजुर्गों को चाहिए कि वे अपने घर के छोटे बच्चों को सम्हालें, उन्हें अच्छी कहानियाँ सुनाएँ इससे आपका समय भी आराम से पास होगा और आपके बच्चों में संस्कार भी अच्छे पड़ेंगे। और कोई काम न हो तो चिलम-बीड़ी फूंकते रहने की बजाए घर में कुछ पौधे लगा लो। उनकी बागवानी कर लो। ऐसा करने से वृक्ष देवता और प्रकृति देवी की सेवा भी हो जाएगी, घर का वायुमंडल भी स्वच्छ रहेगा। आप खुद को व्यस्त भी रख पाएँगे। आधे घंटा सुबह-शाम प्रभु का भजन कर लिया करें। इससे मन को सुकून भी मिलेगा, प्रभु की भक्ति भी हो जाएगी और समय का सही सदुपयोग भी हो जाएगा।
__ और कुछ नहीं तो किसी सरकारी अस्पताल में चले जाया करें । दो-चार घंटे वहाँ रहकर उन मरीज़ों की देखभाल कर आया करें जिनके कोई परिजन नहीं हैं। हो सकता है आपमें से किसी के पास अधिक मदद करने की गुंजाइश
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