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आखिर दुनिया के किसी भी विश्वविद्यालय के कुलपति ने बचपन में तुतलाकर ही बोलना सीखा है।
एक दफ़ा बाबा आमटे की माँ एक जापानी गुड़िया लेकर आई और बाबा से कहा - 'बेटा, मैं तुम्हारे लिए बहुत अच्छा खिलौना लेकर आई हूँ।' बाबा उस जापानी गुड़िया को उलट-पलट कर देखने लगे कि इसमें क्या ख़ासियत है। गुड़िया को जैसे ही ज़मीन पर खड़ा किया तो वह चलने लगी। चलते-चलते अचानक वह गिर पड़ी। बाबा आमटे यह देखकर चकित हुए कि जैसे ही वह गुड़िया गिरती, तत्काल छलांग लगाकर वापस खड़ी हो जाती और फिर चलने लगती। बाबा दस मिनट तक यह खेल देखते रहे। तब माँ ने पूछा, 'बेटा, तुम इस गुड़िया के खेल को देख कर क्या कुछ समझे?' ___'नहीं, मैं कुछ भी नहीं समझा, बाबा ने कहा - 'बेटा यह गुड़िया हमें यह समझाना चाहती है कि जिंदगी में हर आदमी कभी-न-कभी गुड़कता ज़रूर है। गुड़कना दोष नहीं है, पर वापस न उठना ही दोष बन जाता है। 'हारना, लेकिन हार न मानना', इसी का नाम जिंदगी है। शतरंज के खेल में बाजी हारी या जीती जाती है, लेकिन एक बार हार जाने का यह मतलब नहीं होता कि आगे की बाजी जीती न जा सकेगी।'
क्या आप इस घटना से कुछ प्रेरणा लेंगे? यह घटना हमें सिखाती है कि भले ही हार जाओ, पर हार मत मानो। प्रयत्न ज़ारी रखो। आखिर हर दिन उगता सूरज हमें यही सिखाता है कि
target प्रयत्न फिर से करो।अंधेरे में डूबे सूरज को फिर से उगने में भले ही बारह घंटे क्यों न लगे हों, पर जो डूबकर भी गतिशील रहता है, वह कभी-न-कभी, किसी-नकिसी समय फिर से रोशन हो जाता है ।सरोवर में दिख रही बतख़ से प्रेरणा लो जो बाहर से शांत और मौन दिखती है, पर पानी के भीतर हर समय पाँव चलाती रहती है।
mission
CHRISHAIRAT
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