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हो गया था कि आपका आदेश विसरा बैठा। राजा ने कहा, 'राजाज्ञा की अवहेलना का दंड जानते हो? और इतना कहकर क्रोध में अपने अंगरक्षक से खौलता हुआ शीशा मंगवाया और उस शैय्यापालक के कानों में डलवा दिया।'
एक तीर्थंकर की आत्मा, एक अवतार पुरुष की । आत्मा भी अगर क्रोध कर ले तो वह उसके प्रगाढ़ अनुबंधों से छूट नहीं सकती। यही कारण रहा कि पूर्वभव में शैय्यापालक के कानों में शीशा डलवाने के कारण महावीर के कानों में कीलें ठोके गए। क्रोध का परिणाम क्रोध और शांति का परिणाम शांति होता है। प्रेम का परिणाम प्रेम और वैर का परिणाम वैर होता है। यदि महावीर भी क्रोध करते हैं तो उन्हें क्रोध का ख़ामियाजा भुगतना पड़ेगा। पार्श्वनाथ भी अगर कमठ को लताड़ेंगे तो कमठ भी मेघमाली बनकर पार्श्वनाथ पर पत्थर फेंकेगा। यह तो प्रकृति की व्यवस्था है कि जैसे बीज बोओगे, लौटकर वैसे ही फल मिलेंगे। आपने किसी का सम्मान किया तो आपको भी सम्मान मिलेगा और अपमान करोगे तो वापस अपमान ही हिस्से में आएगा। प्रकृति वही लौटाती है जो हम देते हैं । जीवन एक गूंज है जैसा कहोगे, वैसा ही गूंजेगा। प्रेम और सद्व्यवहार की वापसी के लिए कृपया क्रोध, गाली, उत्तेजना, आवेश, चिड़चिड़ापन जैसे बीज मत
बोइए।
याद रखिए क्रोध तो छिपी हुई मौत है । एक झौंका आता है और सब कुछ तहस-नहस कर जाता है। क्रोध आता है तो अंधा कर डालता है और जाता है तब तक सब कुछ तबाह कर जाता है। क्रोध तो चांडाल है जो छूता है और आदमी को अछूत-अपवित्र बना जाता है।
एक ब्राह्मण गंगा स्नान करके आ रहा था कि सामने से आते हुए चांडाल से टकरा गया। टकराते ही ब्राह्मण चिल्लाने लगा, 'ए चांडाल, हरामजादे ! तूने मुझे छू दिया, पता है अब मुझे क्या प्रायश्चित करना पड़ेगा?' चांडाल जाति के व्यक्ति ने कहा, 'गुनाह माफ हो महाराज, मुझसे गलती हो गई, कृपया माफ कर दें।' ब्राह्मण पंडित कहां मानने वाला था, उसने चांडाल को पीट डाला और चला गंगा में पुनः स्नान करने के लिए। इधर वह डुबकी लगा रहा था कि उसकी नज़र पड़ी उस चांडाल पर जो गंगा में डुबकी लगा रहा था। पंडित ने
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