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अपने जीवन में घर कर चुकी निराशा और उदासीनता के मकड़जालों को साफ कीजिए, अपनी संकल्प-शक्ति को जागृत कीजिए और आत्मविश्वास के बल पर निराशाओं को भी आशाओं में बदल दीजिए। इलियट जैसे लोग अपने जन्मदिन पर भी काले
और भद्दे कपड़े पहन कर शोक मनाया करते हैं। ऐसे निराश लोग ही कहा करते हैं कि अच्छा होता कि मुझे यह जीवन न मिलता, मैं दुनिया में न आता। जबकि मिल्टन जैसे लोग नेत्रों से वंचित । रहने के बावजूद उत्साह भाव से कहा करते हैं कि भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि उसने मुझे जीने का अनमोल अवसर और वरदान प्रदान किया है। निश्चय ही आदमी अपनी अच्छी मानसिकता के चलते ही जीवन को प्रभु का प्रसाद बना लेता है। कबीर जैसे लोग जुलाहे के घर में पैदा होकर भी दुनिया के महान संत बन जाते हैं और महात्मा गांधी जैसे लोग वैश्य कुल में जन्म लेकर भी राष्ट्रपिता का गौरव अर्जित कर लेते हैं । निश्चय ही उन लोगों को भी अपने जीवन में अनेकानेक संघर्षों का सामना करना पड़ा था, किन्तु वे तनावग्रस्त होकर जीवन से हारे नहीं। जीतना उनका लक्ष्य था और जो हर हाल में अपने लक्ष्य को अपनी आँखों में बसाए रखते हैं वे अपने धैर्य, बुद्धि, बल, संकल्प और श्रम की बदौलत अनायास ही सफलताओं के स्वामी बनते हैं।
प्रसिद्ध अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को कौन नहीं जानता? जिन्होंने न्याय और समानता की खातिर अपने प्राणों की आहूति दे दी थी। सच्चाई यह है कि लिंकन और असफलता दोनों एक-दूसरे के लिए पूरक थे। यदि लिंकन के जीवन के सभी कार्यों का हिसाब लगाया जाए तो उन्हें सौ में से निन्यानवें दफा असफलता का मुंह देखना पड़ा था। यह उनकी बदक़िस्मती ही समझिए कि उन्होंने जिस कार्य में हाथ डाला वे उस हर कार्य में असफल सिद्ध हुए। जीवन-निर्वाह हेतु एक दुकान में नौकरी की तो दुकान के मालिक का दिवाला निकल गया। आजीविका के लिए वकालत का काम शुरू किया तो
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