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कहा हें-हें, कुछ नहीं, आपकी ईंट बाहर गिर पड़ी थी, सोचा आपको लौटा दूँ।
महावीर वे होते हैं जो स्वयं पर क्रोध करते हैं और स्वयं को सुधारते हैं। क्रोध के बारे में एक और दिलचस्प बात है। क्रोध कभी अकेला नहीं आता। जब भी क्रोध आता है उसके साथ बहुत कुछ या कहें कि पूरा खानदान ही साथ आता है। घमंड क्रोध का पिता है। जब-जब घमंड को चोट लगती है तब-तब क्रोध पैदा होता है। उपेक्षा क्रोध की माँ है। जब भी हमारी अपेक्षाएँ उपेक्षित होती हैं क्रोध पैदा होता है। हिंसा और नफ़रत-क्रोध की पत्नियाँ है । हिंसा तो क्रोध के साथ हमेशा ही रहती है - ओरीजनल पत्नी की तरह और नफ़रत - प्रेमिका की तरह विद्यमान होती है। वैर, विरोध - क्रोध की जुड़वाँ संतानें हैं। निंदा और चुगली - क्रोध की सगी बहनों का काम करती हैं। क्रोध की एक लाडली बेटी भी है - जिद।
सावधान! क्रोध कभी अकेला नहीं आता, अपने साथ अपना पूरा खानदान लेकर आता है । यह जब भी आता है हमारे परिवार, समाज, संबंधों - सभी को तहस-नहस कर देता है। क्रोध से कितने दुष्परिणाम हो सकते हैं, लाभ तो शायद ही होता हो हानियाँ ही अधिक होती हैं। क्रोध में व्यक्ति स्वयं पर से नियंत्रण खो देता है। उसे भान ही नहीं रहता कि वह क्या कुछ बोल रहा है। अभद्र और बेहूदी भाषा में अनाप-शनाप बकता चला जाता है। सभ्य से सभ्य व्यक्ति भी अत्यन्त असभ्य हो जाता है। चेहरा तमतमा जाता है, शरीर काँपने लगता है। अगर शांति के क्षणों में गुस्से में अपनी कही हुई बातों को सुन लें तो चकित रह जाएँ। ___ मैं किसी घर में जा रहा था कि दरवाजे पर अंदर से लड़ाई-झगड़े की आवाज़ सुनाई दी। मैं वहीं रुक गया। भीतर उन लोगों को मालूम न पड़ा कि मैं बाहर ही खड़ा हूँ वे तो अपनी रौ में लड़े जा रहे हैं। कुछ क्षण मैंने सुना और घंटी बजवा दी। वे लोग चौंके कि अरे महाराज आ गए। एकदम माहौल बदल गया, सब एकदम शांत हो गए, हमारी पूछ परख करने लगे। अर्थात् अगर ध्यान बँट जाए तो कलुषित वातावरण शांत हो सकता है। वैसे ही जैसे उफनते दूध पर दो
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