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की इस शैतानी पर जरूर खार खाए बैठे होंगे, पर सावधान देख लें कहीं आपका अपना बच्चा भी तो किसी और के स्कूटर के सीट कवर पर ब्लेड चलाने का आदी तो नहीं है। आखिर कहीं न कहीं अपने से ही शुरूआत करनी होगी। खाली दिमाग़ तो चाहे मेरा हो या आपका उम्मीद करते हैं वह खुराफाती ही होगा ।
एक दिन तो बड़ा गज़ब ही हुआ । मैं, ललितप्रभ जी और कुछ स्नेहीजन किसी के घर जा रहे थे। बात भीलवाड़ा की है । इतना अच्छा शहर, पर लंका में भी कोई दरिद्र मिल ही जाता है। भीलवाड़ा नाम से तो भीलों का लगता है पर भीलों में ही तो एकलव्य हुए हैं। भीलों में ही महावीर का पूर्वजन्म हुआ है। भीलवाड़ा तो महज भीलों की नहीं, भगवानों की नगरी है, पर क्या करें ? द्वारका में भी तो छेद करने वाले लोग तो बैठे ही हैं। तो हम उस भीलवाड़ा
एक रास्ते से गुजर रहे थे कि तभी हमारी नजर मार्गवर्ती एक बड़े विद्यालय पर गई। स्कूल के बाहर स्कूल के नाम का बोर्ड लगा हुआ था। बोर्ड के नीचे एक खास पंक्ति लिखी हुई थी -- समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा निर्मित । ललितप्रभ जी ने मेरा ध्यान उस ओर आकर्षित किया, क्योंकि उसी स्कूल के बच्चों ने अपनी खुराफाती करके अर्थ का अनर्थ कर डाला था। किसी खुराफाती ने मंत्रालय के म पर लिखे हुए बिन्दु पर तो रंग पोत डाला और अपनी कारीगरी दिखाते हुए म के नीचे लिख डाला। हमें यह सब देखपढ़कर हंसी तो खूब आई पर यह भी विचार आया कि न जाने इस देश की हालत कब सुधरेगी ? जब बच्चों से ही देश का निर्माण होता है तो उस देश का क्या निर्माण होगा जहां के बच्चे अपनी बुद्धि का उपयोग मंत्रालय को भी
मूत्रालय बनाने में करने लग चुके हैं। स्कूलों के मास्टर भी ऐसे जो इस तरह की चीजों को इग्नोर, नज़रअंदाज़ करते हैं ।
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मैं चाहता हूँ इस देश के लोग अपने दिमाग़ अपने मन, अपनी
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