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प्रासंगिक बन गई। हमने भी सोचा कि यह मासक्षमण करने वाला तपस्वी हम इसे समझाएँगे, झट से समझ में आ जाएगी। दूसरे भाई से पूछा, क्यों जी आपके भाई ने तीस उपवास किए हैं। इसके उपलक्ष में आपने क्या किया? उसने कहा, 'महाराज श्री क्षमा चाहता हूँ, मैं कुछ भी न कर पाया।' इतने दिनों से तो हम आपस में मिले भी नहीं हैं, पर मैं यह सोचकर आ गया है कि भाई ने तीस उपवास किये हैं तो मेरा जाना पारिवारिक कर्तव्य है। मैं केवल कर्त्तव्य निभाने आ गया हूँ। हमने कहा, ठीक है आपके बड़े भाई ने तीस उपवास किये हैं, आप कुछ और भले ही न कर पाएँ लेकिन इस तपोमय अवसर पर एक पुण्य कार्य अवश्य करें। आप लोगों के बीच जो कोर्ट केस चल रहे हैं उन्हें वापस ले लीजिए। छोटे भाई ने दो मिनट सोचा और बोला, ठीक है बापजी, आप कहते हैं तो मैं अन्य कुछ भले ही न कर पाया तो क्या इतना ज़रूर करूँगा, भले ही मुझे घाटा हो गया है, फिर भी कल कोर्ट जाकर अपना केस उठा लूँगा।
हम छोटे भाई को प्रेरित कर रहे थे कि जाकर बड़े भाई से माफी माँग लो और बता दो तुम अपना केस वापस ले रहे हो। छोटे भाई ने ऐसा ही किया, लेकिन बड़ा भाई जिसने मासक्षमण की तपस्या की थी धिक्कार है जिसने छोटे भाई के माफी मांगने पर भी मुँह फेर लिया। ऐसे तपस्वी को क्या तपस्वी कहेंगे! तपस्या करने का केवल इतना अर्थ नहीं है कि वह अपने तन को तपाए, तपस्या करने का अर्थ है मन को तपाए, मन को सुधारे। धर्म की शुरुआत मंदिरमस्जिद से नहीं होती, जीवन में अपनाई जाने वाली क्षमा, सरलता, कोमलता से ही धर्म की शुरुआत होती है। अगर क्षमा जैसे तत्त्वों को न अपनाया, तो करते रहो तपस्या पर तपस्या का कोई मतलब नहीं है। जिसने अपने मन को सुधारा उसकी तपस्या ही सार्थक है । जिसने अपने अन्तर्मन को शांत कर लिया उसने ही वास्तविक धर्म को प्राप्त किया है। संत बनना आसान है लेकिन शांत होना, संत बनने से भी कठिन है। नाम पूछो तो शांतिचंद जी और थोड़ासा छेड़ दो तो अशांतिचंद हो जाते हैं। सारी शांतिबाइयाँ एक मिनट में गुस्सैल बाइयाँ बन जाती
___ लोग धर्म स्थान पर जाकर एक घंटा सामायिक कर लेंगे, पर घर जाकर अगर टेढ़ी बात
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