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बुद्धि का कमाल देखिए कि एक फैक्ट्री की मशीनों में गड़बड़ी हो गई । फैक्ट्री में रहने वाले सारे मिस्त्रियों ने कोशिश कर ली पर वे सफल न हो पाए। तभी फैक्ट्री के बगल में रहने वाले एक मैकेनिक को बुलाया गया उसने मशीनों को एक बारीक नज़र से देखा और कहा ज़रा एक हथोड़ी दीजिए। उसने मशीन के किसी एक ठीक पॉइंट पर जोर से हथोड़ी मारी और उसी वक्त मशीन चालू हो गई। लोगों ने मैकेनिक की पीठ थपथपाई। जब फैक्ट्री के मालिक ने उससे चार्ज पूछा तो उसने कहा 10,000
रुपए। मालिक चौंका, उसने कहा एक हथोड़ी मारने के 10,000 रुपए ? मैकेनिक ने कहा सर, हथोड़ी मारने का तो केवल एक रुपया ही चार्ज ले रहा हूँ। पर हथोड़ी कहाँ मारी जाए इस बात के लिए बुद्धि लगाने का 9999 रुपए ले रहा हूँ ।
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इसे आप यों भी समझ सकते हैं कि नागौर के राजा वखतसिंह के पास जोधपुर के सिंघीजी दीवान थे और उनके अधीन एक और नायब थे । कुछ जागीरदारों ने राजा से नायबजी को दीवान बनाने का आग्रह किया। राजा ने सिंघी जी और नायब जी दोनों की बुद्धि की परीक्षा के लिए सोने की दो डिब्बियों में राख भरकर नायब जी को जयपुर नरेश के पास भेजा और सिंघी जी को उदयपुर नरेश के पास ।
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नायब जी ने जयपुर नरेश को डिब्बी भेंट की । नरेश ने डिब्बी खोली तो राख देखकर जबर्दस्त क्रुध हुए। जयपुर नरेश ने राख नायब जी के ही सिर पर डालकर उन्हें राजसभा से बाहर भगा दिया। इधर उदयपुर नरेश के पास सिंघी जी पहुँचे। उन्होंने भी डिब्बी में राख देखी तो लाल-पीले होने लगे। तभी बुद्धिमान सिंघी जी ने हालात को बदलते हुए कहा हुजूर, यह राख नहीं, देवी हिंगलाद जी की रक्षा है । इसको खाने से निःसंतानों के संतान हो जाती है । उदयपुर नरेश निःसंतान थे ही। उन्होंने और रानी ने उसी वक्त वह राख आधीआधी पानी में घोलकर पी ली और नागौर नरेश को साधुवाद देने के लिए सवा लाख रुपए और सिंघी जी को ग्यारह हजार रुपए भेंट प्रदान किये। तय है दीवान तो सिंघी जी रहे होंगे। वह हर व्यक्ति अपने जीवन का दीवान ही होता है
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