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जरासंध ने प्रश्न किया था कि अर्जुन भी आपका शिष्य है और जरासंध भी । फिर क्या कारण है कि जरासंध अर्जुन न बन पाया ? गुरु द्रोण का जवाब हम सबके लिए प्रेरणास्पद है कि जरासंध ! तुमने मेरे द्वारा दी गई शिक्षा में संतोष कर लिया था, पर अर्जुन मात्र मेरी शिक्षा से संतुष्ट नहीं हुआ। उसने प्राप्त की गई शिक्षा को और बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक मेहनत की, अधिक से अधिक अभ्यास किया, उसने दिव्यास्त्रों को प्राप्त करने के लिए भी तप और उपासना की। जीवन में सदा याद रखो कि गुरु के सौ शिष्यों में अगर कोई एक शिष्य विशेष आगे बढ़ता है तो उसमें विशेषता गुरु की नहीं वरन् स्वयं शिष्य के लगन और लक्ष्य की है ।
हम अपने बौद्धिक विकास के रास्ते पर अपने क़दम बढ़ाएँ । मनुष्य की एक बौद्धिक क्षमता तो वह होती है जो कम्बल में किए गए छिद्र की तरह नष्ट हो जाया करती है । दूसरी बौद्धिक क्षमता वह होती है जो मोती में किए गए छिद्र के समान सदा समान रूप से रहती है पर तीसरी बौद्धिक क्षमता वह होती है जो पानी में गिरे हुए तेल बिंदु की तरह सदा फैलती है । आप देखिए कि आपकी बौद्धिक क्षमता कैसी है ? सेवा बुद्धि वाले लोग पुण्य को मुख्यता देते हैं । कर्मठ बुद्धि वाले सफलता को प्रधानता देते हैं । कर्त्तव्य बुद्धि वाले जिम्मेदारी निभाते हैं । उपकार बुद्धि वाले लोगों का भला करते हैं पर स्वार्थ- बुद्धि वाले तो बिल्कुल ऐसे होते हैं कि जैसे : गंजेड़ी यार किसके, दम लगाया और खिसके ।
हम अपनी बुद्धि पर नज़र डालें और देखें कि कहीं हम स्वार्थ-बुद्धि के इंसान तो नहीं हैं ? अथवा कही हम कंबल में किए गए छेद की तरह नष्ट हो जाने वाली बुद्धि के मालिक तो नहीं हैं ? अगर हाँ तो अपनी मानसिकता अभी, इसी क्षण बदलिए और मेरे साथ अपने दिमाग़ में प्रवेश कीजिए और ब्रेन पॉवर तथा मानसिक शक्ति स्वस्थ और विकसित करने के लिए थोड़े गंभीर हो
जाइये।
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