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मन लगाकर निरन्तर अभ्यास करें। एक ही कक्षा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में एक / प्रथम आ जाता है और एक बमुश्किल पास होता है। क्यों'? क्योंकि एक निरंतर कड़ी मेहनत करते हुए पढ़ रहा है और एक अपनी अमीरी के मद में पढ़ाई की ओर ध्यान ही नहीं दे रहा है। आप सभी को कछुए और खरगोश की कहानी ज्ञात है। कछुआ जो कैसे भी नहीं जीत सकता था, लेकिन निरन्तर चलता रहा और जीत गया, वहीं कछुए को दीन और तुच्छ मानने वाला खरगोश हार गया। छोटी से छोटी घटना से भी प्रेरणा लीजिए। चींटी को देखो-वह अपने से चार गुना वजन के खाद्य पदार्थ को भी ढोने में समर्थ होती है। अगर अकेले नहीं ले जा पाती तो चार और चींटियाँ साझीदार बनकर उस पदार्थ को ले जाती हैं । संघर्ष और मेहनत करना चींटियों से सीखें।
विकास करने के लिए तरक़ीब कैसे लगाई जानी चाहिए - यह किसी बगुले से सीखो। भोजन पाने के लिए वह कितने प्रयत्न करता है, कभी एक टांग पर खड़ा हो जाता है, कभी चोंच ऊपर कर लेता है, यह है तरक़ीब कभी गर्दन मोड़ लेता है। कारीगरी सीखनी हो तो मकड़ी से सीखें कि वह किस तरह से अपना जाल बुनती है। सार बात इतनी सी है कि निरन्तर अभ्यास और प्रयत्न ही मंज़िल तक पहुँचता हैं।
रसरी आवत जात तैं, सिल पर पड़त निशान॥
करत-करत अभ्यास के, जड़ मति होत सुजान। पत्थर अगर लगातार गुड़कता रहे तो वह भी गोल हो जाता है। यदि पत्थर पर यत्नपूर्वक छेनी चलाते रहें तो प्रतिमा तराश ली जाती है। सामान्य व्यक्ति भी सतत प्रयत्न करता रहे तो बुद्धि की धार तीक्ष्ण हो सकती है। आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि मैं बचपन में कोई होशियार विद्यार्थी नहीं रहा था। यहाँ तक कि नौवीं कक्षा सप्लीमेंट्री में उत्तीर्ण की। तब मेरे टीचर ने मुझे रोककर कहा – 'तुम्हारा बड़ा भाई तुम्हारे लिए इतनी मेहनत कर इतना
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