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“અહો શ્રુતજ્ઞાન” ગ્રંથ જીર્ણોધ્ધાર ૧૯
જૈન ગ્રંથાવલી
: દ્રવ્ય સહાયક :
અધ્યાત્મયોગી આચાર્ય શ્રીમદ્ વિજયકલાપૂર્ણસૂરીશ્વરજીા.સા.ના શિષ્યરત્ન પ.પૂ. આ. શ્રી વિજયકલાપ્રભસૂરીશ્વરજીા.સા.નાં આજ્ઞાવર્તીની સા શ્રી મયુરકળાશ્રીજી મ.સા.ની પ્રેરણાથી શા. વિમળાબેન સરેમલ ઝવેરચંદજી બેડાવાળા આરાધના ભવનની બહેનોની જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી
: સંયોજક :
શાહ બાબુલાલ સરેમલ બેડાવાળા શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાનભંડાર
શા. વીમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન
હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-૩૮૦૦૦૫
(મો.) ૯૪૨૬૫૮૫૯૦૪ (ઓ.) ૨૨૧૩૨૫૪૩ (રહે.) ૨૭૫૦૫૭૨૦ સંવત ૨૦૬૫
ઈ.સ. ૨૦૦૯
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जैन ग्रंथावली.
-rear
प्रसिद्ध कर्ता. श्री जैन श्वेताम्बर कॉन्फरन्स.
मुंबई.
[प्रसिद्ध कर्ताए पुस्तकना सर्व हक्क पोताना स्वाधिनमा राख्या छे. ]
वीर संवत् २४३५
विक्रम संवत् १९६५
किंमत रु. ३.
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मुंबईम
( " इंदुप्रकाश स्टीम प्रेस " मां खपायुं छे.)
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अनुक्रमणिका.
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....
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CHNIRM
विषय.
लिष्ट नंबर. 1
जैमागम
जैन न्याय.
२
...
जैन फिलॉसोफि
....
.
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जैन औपदेशिक. जैन भाषासाहित्य जैन विज्ञान
A
..
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आ ग्रंथावलीमां जणावेला संक्षिप्त अक्षरोनी परिभाषा,
गृहपनिका
पाटणनो भंडार नं. १
पाटणनो भंडार नं. २
पाटणनो भंडार नं. ३
पाटणनो भंडार नं. ४
पाटणनो भंडार नं. ५
पाटणनो भंडार नं. ६
जेसलमेरनो भंडार.
जेसलमेरनी इंसविजयजीनी करेली तथा द्दीरालाले करेली बने दीपमां ए ग्रंथ
नोंघेल छे.
पै.
पा. १.
पा २.
पा. ३.
पा. ४.
पा. ५.
पा. ६. जे. जेसल
जेसल. बे.
लीं.
खं.
भा-भाव.
अ.
१
अ. २
$1.
मुं.
मुंबईनो दशा ओशवाळनो भंडार.
मुं. भोईवाडो - मुंबईना भोईवाडामांनो दीगंबरानो भंडार.
डे - डेक्कन. डेक्कन कोलेजनो भंडार.
राधन.
जाम.
लींबडीनो भंडार.
खंभातनी जैनशाळानो भंडार.
भावनगरनी भंडार.
अमदावादनो डेलानो भंडार. अमदावादनो चंचलबानो भंडार, कोडायनो भंडार
राधनपुरनो भंडार.
जामनगरनो भंडार.
सु.
सुरतनो भंडार.
प्रो. मणि. प्रोफेसर मणिलाल नभुभाईए पाटणना भंडारोनी करेली दीपमां आ ग्रंथ नोंघेल छे.
नगीनदास - S. K. खंबातना. श्री शांतिनाथजीनो भंडार.
रि. ६०
रॉयल एसियाटीक सोसायटीनो रिपोर्ट छछो. डेक्कन कोलेजनो भंडार.
Gov.
K. K.
Dec.
A.S.
रॉयल एसियाटीक सोसायटीना रिपोर्ट
A. S. 4 रॉयल एसियाटीक सोसायटीनो चोथो रिपोर्ट. A. S. D रॉयल एसियाटीक सोसायटीनो पांचमो रिपोर्ट. A. S. 6 रॉयल एसियाटीक सोसायटीनो छहो रिपोर्ट.
P. 3 पिटर्सनना त्रिजा रिपोर्टमां ए ग्रंथ नोवेल छे. P. 4 पिटर्सनना चोथा रिपोर्टमां ए ग्रंथ नोंधेल छे. P. 5 पिटर्सनना पांचमां रिपोर्टमा ए ग्रंथ नोंघेल छे. A. H.
पिटर्सने अमदावादमां करेला कलेक्शनमां ए ग्रंथ नोंघेल हे.
गव्हरमेन्ट ते रायल एसियाटिक सोसायटीनो रिपोर्ट.
पिटर्सननी शोधखोल दरम्यान कोटाना भंडारमां तेना जोवामां आवेला प्रथोमानो सदरहु पंथ छे.
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भंडारोना नाम तथा चोक्कस ठेकाणानी माहिती.
'नीचे जणावेला भंडारोनी टीपो अमारा तरफथी माणसो मोकलीने तैयार करावेली छे. सदरहू भंडारोना जुदा जुदा नामो देखाडवा खातर जैनागमलीस्टना सामेना पेजमां नीचे प्रमाणे सोळ कोलम आपेलां छे:
Hal
पेला कोलममा वृहत् टिप्पनिका केजे सं. १५५६ मां कोई आचार्ये संस्कृतम लखेल छे तेमां ते ग्रंथ नोवेल छे के केम ते जणावयुं छे.
बाकीना पंदर कोलममां नंबरवार नीचे मुजबना भंडारो नोंधी तेमां ते छे के केम ते जणान्युं छे.
१ पाटणनो भंडार नं. १ ते झवेरीवाडामां श्रीपार्श्वनाथजीना भंडारने नामे ओळखाय छे अने ते शेठ वाडीलाल हीराचंदनी देखरेखमा छे.
२ पाटणनो भंडार नं २ ते संघवी पाडामां लोढी पोशालना उपाश्रयनो भंडार छे अने ते पाटवानी देखरेखमा छे.
३ पाटणनो भंडार नं. ३ ते फोफलिया वाडानी आगळी शेरांनो भंडार छे अने ते शेठ हालाभाईनी देखरेखमा छे.
४ पाटणनो भंडार नं. ४ ते फोफळियावाडानी वखतजीनी शेरीमा संघनो जूनो भंडार छे अने ते संघनी देखरेखमा छे.
५ पाटणनो भंडार नं. ५ ते फोफलिया वाडानी वखतजीनी शेरीमां संघनो नवो भंडार छे अने ते पण संघानी देखरेखमा छे.
६ पाटणनो भंडार नं. ६ ते झवेरी वाडामां शा. चूनीलाल मूळचंदनो घरभंडार छे अने ते तेमनीज़ देखरेखमा छे.
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७ जेसलमेरनो भंडार ते त्यांना संघनी देखरेख नीचे छे.
८ लींबडीनो भंडार ते त्यांना संघनी देखरेख नीचे छे.
९ खंभातनी जैनशाळानो भंडार ते शेठ पोपट अमरचंदनी देखरेख मां छे.
१० भावनगरनो भंडार ते त्यांना संघनी देखरेखमा छे.
११ अमदावादनो डेलानो भंडार ते शेठ मंगलदास ताराचंदनी देखरेखमा छे. १२ अमदावादनो चंचलबानो भंडार ते शेठ उमाभाईना घरदाळा बाई चंचलबाईनी देखरेखमा छे. १३ कोडायनो भंडार ते त्यांना सदागम प्रवृत्ति खाताना त्रस्टीओनी देखरेखमा छे.
१४ मुंबईनो दशा ओशवाळोनो भंडार ते मुंबईमां वसता दशा ओशवाळभाईओनी ज्ञातिनी देखरेखमा छे अने ते मांडवी बंदरपर आवेला श्री अनंतनाथजीना देरासरमा रहेल छे.
१५ डेक्कन कॉलेजनो भंडार ते पुना शहरेमां खडकी उपर डेक्कन कॉलेजनो जे पुस्तकसंग्रह छे ते छे अने ते सरकारनी देखरेखमा छे.
श्री जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्स ओफीस पायधुनी, पोष्ट नं. ४ मुंबई.
}
उमेदचंद दोलत चंद बरोडीया. असिस्टन्ट सेक्रेटरि
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प्रस्तावना.
म स्तीर्ण आर्यावर्तना सुस्थित प्रदेशोमां ज्यारे पंचम महाज्ञानधारक चरम
तीर्थकर श्री महावीरस्वामी विचरता हता, अने अज्ञानरूपी अंधकारमा मूछित पडेला बालजीवोने ज्ञानरूपी जाज्वल्यमान सूर्यना प्रकाशवडे पदार्थ
सत्य स्वरूप दर्शावी तेनुं महात्म्य प्रत्यक्ष दाखला दलीलोथी सिद्ध करी बतावी. ..९१ तेमना उपर अनंत उपकार करता हता. ते समयना ते उच्चतम ज्ञानना महात्म्यनुं वर्णन करवू ते केवळ झगझगता अमि उपर हाथ मुकवाथी थनार भावी चमकारनो अनुभव करी अमिनी प्रखरतार्नु वर्णन करवा सरखंज कहेवाय. छतां कुदरती लियमे आवी प्रखर वस्तु पण केवी तेि काळना वहेवा साथे ओछापणने अंगीकार करे छे.
जणाववा खातर अत्रे थोड़ेक जणाववानी अगत्यता छे. जेम जेम समय वितवा मांड्यो इस तेम उपरोक्त महाज्ञाननी प्रखरताए कुदरती रीते समुद्रनी भरती ओट जेवू स्वरूप औरण कयु, अने ज्ञाननी न्युनता थती चाली. महाज्ञानी तीर्थकर महाराजे पण पोताना बागममां कालनु स्वरूप वर्णवतां उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी एवा चे प्रकारना काळ पर्यावी तेना छ भाग जणाव्या छे. ए छ भागने कोई काळ कहे छे, कोई युग कहे छे ने कोई आरा (आरक) कहे छे. उत्सर्पिणी काळमां प्रत्येक वस्तुनुं उत्कर्षपणुं होय छे, ने अवसर्पिणीकाळमां अवनतपणुं होय छे. ते कुदरती नियमने अनुसरीने सांप्रत. चालता जसर्पिणी काळे पोताना खभावनो प्रभाव देखाडवानी शरुआत करी.
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* श्री महावीरस्वामी मोक्षगत थया तेमनी साथे ते महाज्ञाने जाणे मोक्ष जेवा शुचिस्थानमा अचळवास करवानुं पसंद कयु होयनी! तेम धीमे धीमे ज्ञाननी न्युनता थवी शुरु थई. पूर्वे ते वखतना पुण्यवान प्राणीओ स्वात्मशक्तिने क्षणमा तेना कर्तव्य स्थानमा मुकी उपर जणावलं महाज्ञान प्राप्त करता हता, अने ते ज्ञानने के जे आत्मानो संपूर्ण पाट करेलो गुणज छे ते जागीने पोताना आत्मरूपी भंडारमा राखी अन्यना आत्मभंडारमा वा माटे अत्यंत सहेलाइथी टुंक महेनते सरळ मार्ग बताववाने शक्तिमान थता हता.
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प्रस्तावना. पण अफसोस! ए समय बदलायो अने आधुनिक अवसर्पिणी कालांतर्गत छ काळमांना पांचमा दुःषम काळना प्रभावे ज्ञानरूपी समुद्रमा ओटनी शरुआत थई.
शाशन नायक श्री महावीरस्वामी निर्वाणगत थया पछी गौतमस्वामी, सुधर्मस्वामी, जंबुम्वामी आदि पंचम महाज्ञानना धारक थया. पण तेमना मोक्षमां जवा साथे ज्ञान घटतुं चाल्यु. आधारविना जेवी आधेयनी स्थिति ते अनुसारे दिनप्रतिदिन आ ज्ञानना आधार न रह्या. छेवटे ते एटली हद सुधी गुप्त थयुं के वीरपरमात्माना निर्वाण पछी आशरे बसो वर्षना अंतरमां श्री भद्रबाहुस्वामी पछी तो श्रुत केवळीनी पण परिसीमा जेवू थयु. तेमज पूर्वो पण विच्छेद थता गया. भद्रबाहुस्वामीना वखतमां बार वर्षनो भयंकर दुष्काळ पडतां तीर्थकर महाराजथी सांभळेली त्रिपदीना आधारे गणधर भगवाने रचेला सूत्ररूप आगममांनुं बारमुं अंग नामे दृष्टीवाद जे अनेक विद्यावोथी भरपुर हतुं तेनो पण लोप थयो.
आम ज्ञानरूपी समुद्रनो ओट थतो जोई वीरप्रभुथी ९९३ वर्षे एटले विक्रम सं. ५२३ मां दीर्वदृष्टी सूरिवर्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण महाराजे भविष्यमां शनैः शनैः सर्वथैव थनार नाश तरफ पोतानी ज्ञानदृष्टी फेरवी आत्मशक्ति बळे पोताना तेमज बीजा आचार्य भगवानोना स्मरणमा रहेला ज्ञानने पुस्तकारूढ कयु. आवो उद्धार बे जग्याए थयो. एक मथुरामा अने बीजो वल्लभीपुरमां के जे माथुरी भने वल्लभिवांचना रूपे हालमां जणाय छे. आम आत्मशक्तिमा रहेनारा ज्ञानमाथी यत्किंचित् लखी शकाय तेटला शब्दो टुंकाणमां पुस्तकरूपमा लखाया. आ पूज्य महाशय आपणा उपर अगणित उपकार करी गया छे. एटलंज नहि पण तेओए अणीना वखते आपणा धर्मना ज्ञानरूपी स्थंभोने जमीनदोस्त थवाना भयंकर भयमाथी बचाव्या छे. समयनी स्थितिनो विचार करीए तो आपणने चौकस रीते मालम पडशे के जो आ महाशये समयसूचकता वापरीने ज्ञानने पुस्तकारुढ करवानी हिंमत नहीं करी होत तो हालमां प्रथमना प्रमाणमांजे स्वल्प साहित्य पण आपणी नजर आगळ देखाय छे तेनो शतांश के सहस्रांश पण जोवाने आपणा चक्षु भागशाळी थात नहीं. ए वात निर्विवाद छे. शास्त्रमा कहेली आगमोनी *पदसंख्याना प्रमाण तरफ जोतां हालमा जे आगमो दृष्टिगोचर थाय छे तेनी पदसंख्या घणीज ओछी छे, अने तेमां पण अमुक अमुक स्थळे एक बीजा आगममा केटलीक वातो फेरफार जणाय छे. आ कारणथी केटलाक आगमोपर अविश्वास लावे छे, तेने अमे एटलुंज
* आचारंगमा २६०० पद अने त्यार पछी दरेक अंगमा बमणा वमणा पद कथा छे. पदनुं प्रमाग पग मोटुं छे.
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प्रस्तावना. कहीए छीए के आगमोमां जगाता फेरफारो तथा पृथ्वी आदिकनी बाबतमा केटलाक सुलासाओ हालना समय प्रमाणे थइ शकता नथी ते मात्र आपणा असद् भाग्यने लीधे भागमोमां थएला मोटा घटाडाने तेमज आपणी अल्प समज शक्तिने आभारी छे, अने तेथी वेनापर अविश्वास न करता आप्तना वचनमा फेर होयज नहीं एम मानी कर्तव्य परायण यह बाकी रहेला ज्ञाननी बने तेटली रक्षा करी तेनाथी सत्यार्थ साधवा तरफ लक्ष राखवू एज उचित छे.
पूज्यवर्य देवर्धिगणि महाराजना पुस्कारूद करावेला आगमना ग्रंथोनी प्रतो पण हाल नजरे पडती नथी. एम कहेवं पडे छे, कारण के प्राचीनमा प्राचीन पुस्तक लख्यानी साल पण संवत् १००० नी अंदरनी मळती नथी. धारोके कागळ आटलो होबो वखत न रही शके, पण ताडपत्रने रहेवामां बांधो देखातो नथी छतां पण हाल जे ताडपत्रोनी नकलो मळे छे ते पण ते समयनी मळती नथी. जे साहित्यपर अनेक प्रकारनी आफतो पड़ी होय तेमां जो काइ पाठांतर देखाय अथवा अमुक बाबतनो समयने अनुसरीने खुलासो न देखाय तो पण पोताना भाग्यनो दोष गणीने वांचनारे शंकाथी लाभ नथी एम विचारी तत्वपर नजर करी हवे अवशेष रहेला साहित्यनी रक्षामां कटिबद्ध थq एज उचित लागे छे. अत्रे कहेवानी जरूर छे के कोन्फरन्से हजु तमाम साहित्यनो शोध पूरो कर्यो नथी. तो कोइ महाशयने संवत् ५२३ नी अगर ते अरसानी कोइपण प्रत उपलब्ध थाय तो ते जनसम्हनी जाण माटे कोन्फरन्स ओफीसने सवा कृपा करशे.
आगमो माटे आटली टुंक हकीकत लखी हवे आपणे आगमनी टीकाओ तथा बीजा प्रथो तरफ दृष्टी फेरवीए.
भगवानना निर्वाण बाद त्रण पाटसुधी कैवल्य ज्ञानी भगवंतो हता. त्यारपछी छ सुतकेवळी थया छे. त्यारपछी देवर्द्धिगणी महाराज सुधी पूर्वनुं ज्ञान हतुं परंतु आवा रंभर पूर्वाचार्योना करेला अंथो पण विशेष दृष्टिगोचर थता नथी. जे* ग्रंथो जणाय छे तेमां श्री भद्रबाहुस्वामीना, श्रीसिद्धसेन दीवाकरना, श्रीकाळीकाचार्थना अने एवा पांच सात आचार्योना करेला ग्रंथोज हालमां जणाय छे. पण स्थूळभद्रनी अने तेमना पछी बयेला वीजा आचार्योनी कृती समुळगी जणाती नथी. आवा महान धुरंधर पंडितो अने प्रेम शील केवळ परमार्थ करवानुंज हतुं तेवा महाशयो पोतानी आखी जीदगीमां छती
*महावीर स्वामीमा हस्तदीक्षीत शिष्य श्री धर्मदासगणिनी करेली उपदेशमाळा सौथी प्राचीन के.
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प्रस्तावना.
शक्तिए एकाद पंथ पण न लखे ए बनवू असंभवित छे पण वखतो वखत देशमा पडता दुष्काळथी राज्यक्रांतियोथी तथा धर्मना झगडाने लइने थतां तोफानोथी आपणा अपूर्व ज्ञानीओनां बनावेला ग्रंथो आपणने मळी शकता नथी.
आ विषयमा हजु शोध करवानो घणो बाकी छे अने हालमां मळता ग्रंथोनो बचाव करी कोन्फरन्स ते तरफ पण ध्यान आपका धारे छे प्रथम आ शोधनुं काम पूरु न करवानुं कारण आ प्रमाणे छे.
जनसमुहने तारवा तथा तेमने सत्यमार्ग बताववा जेमणे पोताना आयुष्यना छेडा. सुधी प्रयास करेलो अने जेमनुं ज्ञान अगाध हतुं, एवा महात्माओ ग्रंथो न लखे एम तो बनेज नहीं, पण ते वखते छापखाना विगेरेना अभावे लखेला ग्रंथनी एक अगर ये प्रतो कोइ स्थळे होय अने ते अमदावादमा हालमा जेम एक भंडारना गृहनो अमिथी नाश थतां तेमां सेंकडो कीमति अने जेनी बीजी नकल भाग्येज मळे तेवा ग्रंथोनो नाश थइ गयो तेम आवा पूर्वधर महाराजाओना बनावेला ग्रंथानो पण नाश थएलो होवो जोइए एवं अनुमान थाय छे. अने तेथी रहेलु साहित्य बचावी लेवानु पहेला धार्यु छे.
हालमा जे साहित्य मळ्युं छे अने मळे छे तेमां आगम शिवायना बीजा घणा ग्रंथो संवत् आठसें पछीनी सालमा लखाएला मळे छे, अने जो अमारूं अनुमान खरूं होय तो जे साहित्य आजे काळना, राजक्रांतिना अने रक्षकोना प्रभादना कारणथी नाश थतां बचेलं छे. ते तमाम साहित्य बार आनीथी चौद आनी जेटलं संवत् ८०० पछीना सैकामां लखाएलुं जोवामां आवे छे.
बौद्धनुं पण आ समयमा पुरजोर हतुं भगवानना समकालीन बुद्धदेवनो मत धीमे धीमे पुरजोरमां आवतो जतो हतो. संप्रति महाराजाना प्रपिताए तेने आ देश अने बीजा देशमा पोतानी राज्यसत्ताने नीचे सारी रीते स्थापित कर्यो हतो, परंतु आ देशमा आपणा धुरंधर पंडीतो विद्यमान होवाथी आपणा धर्मने ते लोको काइ नुकशान करी शक्या नहोता. ज्ञाननी न्यूनता थता ज्ञानना घारक महात्माओ कमती थता बौधोने पण आपणा धर्मपर हल्लो करवानुं मन थयु. आ समय संवत् ५२३ पछीनो गणवानो छे. आ समयमा शिलादित्य राजानी सभामा प्रतिज्ञापूर्वक वाद थयो वादमां एवं ठरेलु के हरनारने देशपार कहाडवा. एमां बौधो हारवाथी तेओ देशपार थया एवो संभव छ विक्रम पछी कोईपण जैन राजा थयो होय तेवो इतिहासिक लेख जणातो नथी, अने तेथी
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प्रस्तावना.
गुजराथमा शिलादित्य राजा थयो ते पहेलाना ग्रंथोनो वखते मतना द्वेषथी बौद्धोए पण नाश कर्यो होय एम अनुमान बांधवाने कारण छे.
उत्तरमाथी शंकराचार्य, दक्षिणमाथी कुमारिल भट्टे अने गुजरातमांथी मूळरिए बौद्धोने देशपार काढ्या त्यारपछीनू जैन साहित्य काइ कांइ दृष्टिगोचर थाय छे.
बौद्धोनो प्रथम विशेष जुलम होवानो संभव छे. कारणके तेम नहोत तो शंकराचार्य भने कुमारिल भट्टे बौद्धोनु नाम निशान पण आ देशमा रहेवा दीधुं नहि, अने तेमनी राजाओ पासे कतल करावी तेम करवाने तेमने कारण मळत नहीं.
शिलादित्यनी सभामां पण जैनोनो बौद्धोए प्रथम पराभव करी गुजरातमाथी जैनोने हांकी कहाड्या हता. आवे वखते बौधोना हाथमा जैन भंडार आवे तो तेनो नाश करवा तेओ चुके नहीं एम मानवु छेक कारण विनानुं नहीं गणाय.
देवर्द्धिगणी महाराज पछीथी छेक धनेश्वर सुधी शत्रुजय महात्म्यना कर्ता थया छे. तेमनी वञ्चना ४०० वर्षामां ते समयना कर्तानो करेलो तो एक पण ग्रंथ मळी आव्यो नथी. आ संबंधमां हमारी शोधखोळ चालु छे, अने जो कोई ग्रंथ मळशे तो ते अमे जाहेरमा मुकवा चुकीशुं नहीं.
प्रथम विवाद थइ गया पछी पाछो मूळसूरिए बौद्धो साथे वाद कर्यो अने तेमने हराव्या, अने आ देशमा तेमनुं नाम निशान पण रहेवा दीधुं नहीं. एक तरफथी वेदांतना आचार्य अने बीजा तरफथी जैनाचार्योए बौद्धनुं जोर तोडयुं, अने पोताने कृतकृत्य मानवा जेवो प्रसंग लाव्या, पण ते झाझो वखत चाल्युं नहीं. एक गइ अने वीजी आवी तेम आ देशमाथी एक आफत गइ अने तेने बदले मुसलमानो आवता थया. तेथी ग्रंथो पुस्तकारूढ करी तेना रक्षणरूप भंडारोमा व्यवस्थित रीते प्रतो राखयानो प्रचार शरु थयो. आम थवाथी पण अवशेष रहेला ज्ञाननो नाश सर्वथैव बंध थयो नहीं. केम के ठरी ठाम बेठाने थोडो वखत वित्यो नहीं एटलामा विक्रमना दशमा सैकामां एवो बारीक वखत आवी लाग्यो के मुसलमान लोको हिंदुस्तानमां आव्या. तेमणे सोमनाथ लुट्यु, अने देवालयोनो तथा तेमना पुस्तकोनो नाश कर्यो. लाखो माणसोनी कतल थइ, अने करोडोनो माल हिंदमांथी उपाडी गया. आम करवानुं कारण इस्लामी धर्म प्रवर्ताववा जोर जुलम करवो एज हतुं. हिंदुओना धर्मना चिन्होनो समुळगो विध्वंस थाय तो आ नवो धर्म प्रवर्ते. एम जाणी आर्य शास्त्रोनो नाश करवा लाग्या. तेमना भयथी रक्षणार्थे
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प्रस्तावना. भंडारोमा राखेखें जैन साहित्य सेंकडो वर्ष सुधी बंध बारणे रडं. तेथी परिणाम एवं भयकर आव्यु के पूर्वना धुरंधर आचार्योंए अपरिमित परिश्रम वेठी रचेला अद्भुत उपयोगी ग्रंथो उद्देहीआदि जंतुओना भक्षणथी तेमज शरदी विगैरे कारणोथी नाश पामी गया.
दाखला तरीके अत्रे अमारी जाणना दुर्लभ्य तथा अनुपलब्ध ग्रंथोनी टुंक नोंध लेवानी अगत्यता जोइए छीए. महानिशीथ जेवा अत्युपयोगी छेद सूत्रनी टीका हालमां क्यांय पण मळी शकती नथी. पंचकल्पना मूळनी स्थिति तेवीज जणाय छे, धरसेनाचार्य रचित विद्यानुं निधान योनीप्राभूत जेनां सतावीश पीठ छे, तेनी पण जीर्णशीर्ण हालत थवाथी नष्ट प्राय थयुं छे. हरिभद्राचार्य महाराजे रचेला १४४४ प्रकरणोमांथी हालमा गण्या गाव्यांज मळी आवे छे. उमास्वाती वाचके रचेला ५०० ग्रंथो पैकी पांच ग्रंथो पण पुरा मळी आवता नथी, अने श्रीमद् हेमचंद्राचार्यकृत साडात्रण क्रोड श्लोकनो पण घणो भाग मळतो नथी. मात्र बसो वर्ष अगाउज थएला उपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजे रचेला सो ग्रंथो पैकी पण जूज ग्रंथोज हाथ भावे छे. बाकी क्यां छे तेनो पत्तो पण लागतो नथी. कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्रसूरिकृत हैमवृहन्न्यास क्यांय पण संपूर्ण स्थितिमां ओवामा आवतो नथी. श्री हेमाचार्यना शिष्य श्रीमद् रामचंद्र सूरिए एकसो प्रबंधो रच्या हता. तेमांना एक दशक जेटला प्रबंधो पण जोवामां आवता नथी विगेरे विगेरे. अनेक विद्वान् आचार्योए रचेला तत्वाना ग्रंथो नाबुद थइ गया.
आवे समये ग्रंथोनो नाश अटकाववाने बाने मुखौमां जुना वखतनुं पिशाच पेठे ते ए के ज्यारे आपणा वडीलोए ग्रंथो प्रसिद्धिमां नहीं लावतां तेमनुं उत्तम रीते संरक्षण करवामांज श्रेय मान्यु. तो आपणे पण तेज मार्गर्नु अवलंबन करवु श्रेष्ट छे. आवी अत्यंत खेदजनक अंधपरंपराना चकडोळामां हिंचका खातुं जैन साहित्य वखत जतां नष्ट प्राय थशे एम जाणी हालमा राज्य कर्ती, दयाळु ब्रिटिश सरकारनी सत्ता तळेना शांत समयमां "श्री जैन श्वेतांबर कोन्फरन्स" ना उत्पादक अने नेता नररत्न शेठ फकीरचंद प्रेमचंद शेठ गुलाबचंदजी ढट्टा एम्. ए., आदि धर्मपरायण जैन कोमना आगेवानोए आपणा पूर्वाचार्योए अथाग महेनते रचेला भापणा जैन साहि. त्यना संग्रहस्थानो (भंडारो) क्या क्या छे अने तेमां क्या क्या ग्रंथो सुरक्षित रीते अवशेष रह्या छे. तथा ते ग्रंथो केवी स्थिति भोगवे छे. तेनो तपास करी एक टीप तरतमा प्रसिद्ध करवानी अत्यंत अगत्य छे एम जाणी कोन्फरन्स ओफीसना पुस्तकोद्धार खाता तरफथी प्रसिद्ध भंडारोनी जाणवा जोग माहिती सार्थनी उपयोगी टीपो करवा माटे विद्वान पंडितोने रोकी ते कार्यने माटे मोकलवामां आव्या. तेमना प्रयासथी
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प्रस्तावना.
पाटणना छ भंडार, जेसलमेरनो भंडार, लिंबडीनो भंडार, तथा खंभातनो भंडार एम नवभंडारोनी टीप तैयार करवामां आवी. अने बाकीना भंडारोनी टीपोनी नकलो उतरावी लीधी. ___आ रीते एकत्र करेली टीपो उपरथी ग्रंथोनी अकारादि अनुक्रमवार तारवणी करी विषयवार वर्गणी करवामां आवी छे. मोटा मोटा भागो पृथक् पृथक् देखाडवा माटे तेने लिस्ट नंबर आपी तेना अवयवाना अंगरूप एक नाम आपवामां आव्युं छे.
आ अंगरूपनामो साथै चडतो लिस्ट नंबर जोडवामां आव्यो छे. तदनुसार तेना अंग नव पाडेला होवाथी लिस्ट नंबर पण नवज थया छे. दरेक अंगना अवयवोमा पृथक्क देखाडवा माटे तेना वर्ग तथा क्लास पाडवामां आव्या छे. आ अनेक वर्ग तथा क्लासयुक्त विषयोथी भरपूर लीस्टरूप पुस्तकनुं " जैन ग्रंथावळी " एवं नाम आपवामां आव्युं छे आ पुस्तकना नंबर पहेलामां आगम ग्रंथोर्नु लस्टि छे. आ लीस्ट आपतां पृष्ठनी एक बाजुए प्रथy नाम, तेनी श्लोकसंख्या, ग्रंथना रचनारर्नु नाम तथा ते ग्रंथ विक्रमनी कइ सालमां रचायो छे. ते जणाव्यु छे. अने सामेनी बाजुपर ते ग्रंथ क्या भंडारमा मोजुद छे ते जणाववा माटे उपर जगावेला भंडारोना संक्षिप्त नाम जणाव्या छे. तेमना पूरा नामनी ओळखाण माटे तथा चोकस स्थळ माटेनी वीगत आगळ आपवामां आवशे. दरेक नाममा शक पडती बाबतोना विशेष खुलासा माटे जोईती फुटनोटस आपवामां आवी छे.
नंबर बीजामां जैन न्याय ग्रंथोनू लीस्ट छे. आ लीस्टथी मांडीने छेवट सुधीमा लोस्टोमां दाखल करेला ग्रंथोनी संपूर्ण माहितीनो एक पेजमांज सारी रीते समावेश थतो होवाशी भंडारोना नाम पण एकज पेजमां नोंध्या छे. नंबर बीजा, चोथा, पांचमामां जैन फिलोसोफीना ग्रंथोन लिस्ट आपवामां आव्युं छे.
नंबर छमां जैन औपदेशिक ग्रंथोनुं लीस्ट, नंबर ७ मां जैन महात्म्य ग्रंथोनू लीस्ट नंबर ८ मामां जैन भाषासाहित्यना ग्रंथोनू लीस्ट, अने नंबर ९ मामां जैन विज्ञानना ग्रंथोनुं लीस्ट आपवामां आव्यु छे.
आ रीते नव लीस्टोना नव नंबर पूरा थाय छे. आ नव नंबरोना नव लीस्टरूप ग्रंथावळी नामनुं पुस्तक तैयार थवाथी आपणा महान पूर्वाचार्योए धर्मनी रक्षाना साधनरूप तात्विक ग्रंथो रची आपणा हितमाटे केटलो बधो अपरिमित परिश्रम लीधो छे. ते प्रत्यक्ष रीते पुरवार थयु छे.
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मस्तावना. जैन साहित्यने झीलवाना शोखीनने आ एक उमदा मानस सरोवर हाथ लाग्यं छे. जैन साहित्य हालमां केटलं अने क्या क्या विद्यमान छे. तेनी जिज्ञासावाळा महाशयाने. आ ग्रंथावळी बनता लगण चोकस माहिती मेळवी आपवामां अद्वितीय साधन धयु छे. या ग्रंथावळीमा मात्र संस्कृत अने मागधी साहित्यज दाखल करवामां आव्यं छे. गुजराती लेखको पण जैन धर्मनी अंदर घणा थया छे, अने तेमांना केटलाक लेखको तो हालमा गजरातीना सारा गणाता लेखकोथी पण विशेष चडता छे. तेओना अलंकारभूत गणाता कादंबरीनी जेवा लेख कविताना रूपमां शुद्ध गुजरातीमां लखी गया छे. गुजराती साहित्य जो के १००० मा संवत् पहेलानुं मळतुं नथी तोपण एक हजार पछी, पणुं साहित्य मळे के. आ साहित्यमां संस्कृत कथाओ उपरथी रचाएला रासो, भगवाननी स्तवनाओ, सझायो, अने बालावबोध ( भाषांतरो ) नजरे पडे छे. अत्यार सुधीमा वेपारार्थे पुस्तको छपावनाराओए आवा रासो, स्तवनो, स्तुतिओ विगेरे जुदा जुदा रूपमा छपावी प्रसिद्ध करी पुस्तक प्रसिद्धिना कार्य साथे धन मेळववानुं पण कार्य साध्यं छे. पण बीजाओ करे छे तेम कोइपण कर्ताना समन लेखो अगर तेवा लखाण उपर सारी टीका अगर लेखकनो इतिहास विगरे आपी सारा टाइपथी अने सारा कागळोधी पुस्तक छपावी तेने प्रसिद्ध कर्यानु देखातुं नथी. भीमशी माणेके छापेला रासो विगेरे आमां अपवाद रूप छे. कारण के ते सारा टाइपने सारा कागळ उपर बनता सुधी शुद्ध करीने छापेला छे अने अत्यारे बहोळी संख्या हजु तेवीज बहार पडेली छे. आवा पुस्तको छपाववाना कार्य तरफ हालमां श्री जैनधर्मप्रसारक सभा, विद्याप्रसारकवर्ग, ज्ञान प्रसारक मंडळी विवो उधोग करे छे. अने ते ग्रंथो भाषामां होवाथी तेनी नकलो पण सारी खपे छे. तेथी कोन्फरन्से ते माटे प्रयास करवानो मुलतवी राख्यो छे. पण आ ठेकाणे कह्या विना चालतुं नथी के हालमा जेम श्री त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र मूळने भाषांतर सफाईदार कागळ उपर छपायु छ तेम बीजा रासा विगरे पण एकत्र करी विवरण साथे गुजरातीना काव्य दोहननी पेठे छपाववानी जरूर छे. पूर्वोक्त मंडळीओए गुजराती साहित्यनी जेम बने तेम ताकीदे शोध अने उद्धार करवानुं काम हाथमा लेवानी जरूर छे. हालमा जेम एकवार छपायेला रासो विगेरे पाछा फरीने छपाय छे तेम न करतां जुदा जुदा भंडा. रोमां शोध करावी गुजराती साहित्यनी नोंध करी तेमाथी जरूरी जे अनुकूळ अने जेमां तत्वनो समावेश होय तेवा ग्रंथो प्रथम प्रसिद्धिमा लाववानी जरूर छे. आम करवाथी धर्म अने अर्थ बने सधाशे. एकतो साहित्यनी शोध थशे अने तेम करतां कांइ अपूर्व ग्रंथो हाथ लाग्या तो तेनाथी द्रव्यपण मेळवाशे. आ मंडळोथी जुदो जुदो प्रयास न थाय तो फाळाप्रमाणे पैसा आपवानी व्यवस्था करी हालमां संस्कृत प्राकृतना उद्धारपर लक्ष आपती आ कोन्फरन्सने ए काम करवामां मदद आपवा कमर बांधशे एवी आशा
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प्रस्तावना. छे. अने तेम करतां मुनिवर्ग तरफथी पण तेमने सहायता मळी शकशे. गुजराती भाषामां रचायेलं साहित्य अमे आ लिस्टमा दाखल कर्यै नथी. ते बाद करता फक्त संस्कृत तथा मागधीमां रचाएलं जैनसाहित्य अमारी अटकळ मुजब लगभग साठ लाख श्लोक जेटलं थाय छे. जो के अत्यारे विद्यमान छे, ते पण सघळु भा लीस्टमां दाखल थइ शक्युं नथी. हजु लगभग आटलुंज बीजं साहित्य अमने नहीं मळेला भंडारोमा सेमज जुदाजुदा मुनिराजना भंडारोमा होवानो संभव छे. ते सिवाय विच्छेद गएल साहित्य विगेरे तरफ जोतां जैनसाहित्य पणुं बहोळ हतुं. अने तेनी बराबरी कोईपण मतवाळाए करी नथी. ते आ ग्रंथावळी तैयार थवाथी सिद्ध थय छे. उच्च श्रेणीना तत्वरुचिवाळा दरेक सज्जनोने आ ग्रंथावळी घणी उपयोगमा आवे तेवी छे.
आ जैन ग्रंथावळी नामनुं पुस्तक जैनमा प्रथमज उदयने पाम्युं छे, अने कोन्फरन्सनो पण आq एक उपयोगी पुस्तक बहार पाडवामा प्रथमज प्रयास छे. आ पुस्तक तैयार थतां दरमियान तेनी एक एक नकल हिंदुस्तानमांना तमाम साक्षर प्रोफेसरोने मोकलवामां आवी हती. जेमांना दरेक महाशयोए सदरहु पुस्तक माटे पोताना उच्च अभिप्राय आपी तेना उपयोगी पणानी कदर बुझी छे.
आ रीते जो के आपणे आवो एक साहित्यनो भोमियो (गाईड) मेळववामां फतेहमंद थया छीए. तो पण ए साधनधी आपणुं कर्तव्य समाप्त थयुं नथी. अमे पूर्व जणावी गया तेम मुसलमानोनी जुलमी राज्यपद्धतिनी यथास्थित रीते क्रांति थतां हालनी ब्रिटिश सरकारनी न्यायी राज्यनीतिना शांत अमलमा ज्यारे तमाम धर्मीओ पोताना धर्मने पुष्टी आपवाने माटे नानाप्रकारना शोधोमा तल्लीन थई दिनप्रतिदिन आगळने आगळ वधताज जाय छे त्यारे आपणे लोकालोक प्रकाशक श्री महावीर स्वामीना वंशजो दिनप्रतिदिन अधो स्थितिमांज अफळाता रहीए ए केटलुं शोचनीय कहेवाय. आपणी जाहो जलालीना समयमा
आंग्ल, अमेरिकन, जर्मन, इटालियन, जपानीझ, आफ्रिकन आदि मनुष्यो जेओ ज्ञान वस्तुनुं महात्म्य नहि समजता होवाथी जेमने आपणे (बारबेरीयन्स ) जंगली तरीके
ओळखता हता तेज आंग्ल आदि लोको तेमनी शोधक बुद्धिना बळे एटला सुधाराना शिखरपर चडी चुक्या छे के सायन्सआदि शोधोथी आपणा तत्ववेत्ताओना गुढ विचारोने पण मान आपबा सामर्थ्यवान थया छे. ज्ञाननी वृद्धि तथा ज्ञानरक्षा तेओ एवी उत्तम प्रकारे समजवा लाग्या छे के पोताना साहित्यनी रक्षा करवा उपरांत आपणा महात्मा, आचार्योए रचेला अमूल्य ग्रंथो जेनुं हालमां आपणे दर्शन तो शुं पण नाम पण सांभळवार्नु दुःशक्य थयुं छे. तेया अपूर्व ग्रंथी जर्मनीनी विशाळ लायनेमिां सुरक्षित रीते
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प्रस्तावना.
राखवामां आव्या छे, एम आपणे सांभळीए छीए. आपणा पवित्र ग्रंथो आदा. महदंतर उपर अन्यधर्मीओना हाथमां जवानुं कारण विचार करतां आपणी शिथिलता तथा आपमे शोधक वृत्तिथी वेगळा रह्या तेज जणाय छे. तेमज रोयल एशियाटिक सोसाइटीमां ते लोकोए बजावेली ज्ञाननी उत्तम सेवा जोइने एक बाजुथी अंतरात्मा एटलो शांत थाय छे के तेनुं वर्णन करवू शक्तिनी बहार छे अने बीजी बाजुए आपणी कोम तरफ दृष्टी फेरवतां एटलो अफसोस तथा लज्जा उत्पन्न थाय छे के शुं आर्यमातानोज आपणापर कोप थयो छे. के आपणा अंतःकरणमा तेवा सद्विचारोने स्थानज आपती नहीं होय ! आ उपरथी एक बीना अत्रे जणाववानी जरूर छे ते एके ज्ञान जेवी सर्वोत्कृष्ट वस्तुने तुच्छ गणनार अन्य भूमिवासीओए शोधक बुद्धिथी पोताना कुविचार फेरवी ज्ञाननी पुष्टी तथा रक्षा करवामां यावत् प्राणांत सुधीर्नु कष्ट सहन करवा तत्पर थएला आपणे प्रत्यक्ष जोईए छीए. तो आपणे जे असलथीज ज्ञाननी महत्वता जाणी तेनी यथायोग्य सेवा बजाववानुं व्रत धारण करनार छीए तेमांना दीर्धदृष्टीवाळा आचार्यो, विद्वान मुनिवरो, श्रेष्ट आगेवानो तथा गर्भ श्रीमतोए समग्र जैन साहित्यनी एक जगोए व्यवस्थित रीते रक्षा थई शके तेवा साधनरूप एक "धी सेंट्रल जैन लायब्ररी" स्थापन करवा माटे उदार विचारोने एकत्र करी तेने माटे मकान आदिनी योजना जेम बने तेम निताथी शा माटे करवी न जाइए ?
___ ज्ञाननी रक्षा एज संसाररूपी निबिडबंधनमांथी मुक्त थवानो सेहेलो मार्ग छे. मान एज मोक्षरूपी मंदिरमा प्रवेश करवानुं प्रथम द्वार छे. ज्ञाननी भक्ति करवाथीज खर्थिकर आदि महान पुरुषो भवसमुद्रने तरीने मुक्तिने पाम्या छे. ज्ञाननो महिमा जेटलो वर्णवीए तेटलो ओछो छे. ए बाबतनो विशेष विस्तार सूत्रोमां तथा ग्रंथोमा लखाएलो छे. ज्ञाननो आयो अगाध महिमा जाणी आपणा ज्ञानात्मा पूर्वाचार्योए ज्ञाननी रक्षारूप भक्ति करवा माटे वर्षमा खास करीने एक दिवस पण नीमी आप्यो छे ते दिवस कार्तिक शुक्ल पंचमीनो छे. अने जे ज्ञान पंचमीन! महापर्व नामे प्रसिद्ध छे. पूर्वना पुण्यवान प्राणीओ आ पवित्र दिवसे मुनिवरोनी माफक तेवुज पौषध आदि व्रत लइ ज्ञाननी भक्ति करवामां तल्लिन थता हता. तेओ भंडारमां बंद बारणे राखेली तमाम प्रतो दर्शन करवा माटे बहार काढता, अने तेमांनी जे जे प्रतने उद्देही तथा शरदीआदि नुकसान कारक चीजोथी भय पहोंचवानुं अथवा पहोंचेलं तेमना जाणवामां आवतुं तो तेनो तात्काळीक पुनरुद्धार करवानुं नक्की करी. ज्ञाननी रक्षा उत्तम प्रकारे थवाना साधनोनी तेज दिवसे विशेष योजना करी संपूर्ण प्रतोनुं पूजन, अर्चन, मार्जन आदिथी ज्ञाननी भक्ति करी महत्पूण्य उपार्जन करवामां लक्ष आपता हता. ते परंपरागत रूढीने मान आपीने हालमां पण ज्ञाननी रक्षा रूप भक्ति करवा माटे ज्ञान पंचमीने दिवसे ठेर ठेर महोत्सव थाय छे, पण आश्चर्य
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प्रस्तावना. ए छे के जेम जेम काळ बदलातो जाय छे तेम तेम मनुष्यो पण शुक्तिभासने रजता. भास मानवा लागता जणाय छे. पूर्वना वखते भंडारमा रहेला तमाम ग्रंथोने व्यवस्थित रीते तपासी जोइ तेमां पहोंचेला नाश तरफ पूर्ण लक्ष आपी ग्रंथोने दुरस्त तथा अपूर्ण ग्रंथोने पूर्ण बनाववानी अगत्यता विचारता; त्यारे हालमा ज्ञानना रक्षकपणानुं अभिमान धरावनार महाशयो फक्त जे उपाश्रयमां कोइ मुनिराज विराजता होय तो ते अगर ज्यां मुनिराजनो जोग न होय त्यां ते भंडारना मालिक पोते पोताना भंडारमाथी उत्तममा उत्तम सारा अक्षरोथी लखावेली अगर सोनेरी अक्षरोथी लखावेली पांच दश प्रतो दर्शन माटे बहार काढी तेना उपर चित्र विचित्र झीक अने चळकता कसबी भरेलां पाठां, चंदुआ, रुमाल आदि शणगारी तेनी बाह्य सुंदरतामांज पोतानी कृतकृत्यता मानी ज्ञानभक्तिनी साफल्यता माने छे पण आम बाह्य सुंदरतामां सार्थकता मानवाथी ज्ञाननी केटली हानी थई छे अने थाय छे, ते तरफ तेमनुं तिलमात्र पण ध्यान खेचायुं होय तेम जणातुं नथी. आम पूर्वना शुद्ध ज्ञानभक्तिना मार्गनो विपर्यास थवाथी आफ्णा ज्ञानना अभ्यासी मुनि महाशयोने जोईता ग्रंथो मेळववा माटे केवी अनिवार्य अगवडो भोगववी पडे छे. तेना घंटानाद शुं हजी तेमना कर्णरंध्र ऊपर पड्या नथी ! हवे शुभ वखत आवी लाग्यो छे. आ ग्रंथावळी तैयार थवाथी साहित्यना ग्रंथो मेळववा माटेनी चिंता दूर गई छे. ए निर्विवाद छे. हवे साध्य समीप छे, अने साधन मेळवामाटे अमे चतुर्विध संघने नम्रतापूर्वक विनंति करीए छीए तो आवो सर्वोपयोगी हेतु सिद्ध करवा शा माटे संघे तैयार थर्बु जोईए नहीं. ?
अमारी पूर्ण खात्री छे के जैन शासननी उन्नती इच्छनार महाशयो आ वात तेमनी जाणमां आव्यानी साथे एक वेळाए आ पुण्यनुं काम माथे उपाडी लेवा तैयार थशे, अने ते तेमने घटे पण छे.
अमे आ जमानाने अनुसरतुं कार्य आपनी सन्मुख भूक्युं छे. योग्य लागे तो स्वीकार करवो ते तमारुं काम छे. अने अयोग्य जणायतो जेम प्रथमथी थयु छ, थतुं आवे छे; अने थाय छ तेम थशे. एटलं ध्यानमा राखवानुं छे. . प्रस्तुत ग्रंथावळी तैयार करवामां जे जे मुनि महाशयोए तथा गृहस्थोए पोतार्थी बनती सहाय आपी आ कायेने उत्तेजन आप्यु छे ते बाबत तेमनो अंतःकरणपूर्वक उपकार मानीए छीए, आ कार्य खास विद्याविलासी मुनिवर्योनुज छे, अने पूर्वना प्रबुद्ध आचार्योर्नु अनुकरण कर ए तेमने उचित छे. अमे आशा राखीए छीए के हालमा विद्वाननी पंक्तिमा गणाता आपणा मुनिक्यों आ ग्रंथावळी माटे पोताने योग्य लागे ते सूचना आपवामां कोई पण प्रकारे ढील करशे नहीं. अने अमारा करेला परिश्रमने फलिभूत करशे. .
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प्रस्तावना आ ग्रंथावळीचें कार्य अमे अमारी अल्प मति मुजब तेमां जणावेला ग्रंथर्नु नाम, कानुं नाम, श्लोकसंख्या तथा रचना काळना संवतनी चोकसी करवा माटे अमाराथी बनती काळजी राखी पूर्ण लक्ष आप्यु छे. छतां भूल करवी ते मनुष्य मात्रनो स्वभाव छे. अने क्षमा करवीं ए सज्जनोतुं शील छे ए उक्ती मुजब अमारा अल्प ज्ञानना योगे मतिदोष अगर प्रुफ सुधारती वेळाए दृष्टीदोषथी ग्रंथना नामनां, श्लोकसंख्यामां, कर्ताना नाममां, रचना काळम, तथा पद्धति आदिमां जे कांई भूल चूक थइ होय तेनी कृपापर मुज्ञो हंसनी पेठे उदार बुद्धि वापरी क्षमा करशे अने अमने लखी जणाववा तस्दी लेशे एवी अमे नम्रतापूर्वक प्रार्थना करीए छीए.
विशेषमा विनंती करवानी के नीचे आपेली फुटनोटोमा अमे जे जे ग्रंथो दुर्लभ्य जणान्या छे. ते ते ग्रंथो माटे विद्वान मुनि महाराजाओए खास लक्ष राखी शोध खोळ करी ते ग्रंथो दृष्टीगोचर थतां तेमनी हकीकत तथा अमे जणावेला ग्रंथना नाममा, श्लोकसंख्यामां, कर्ताना नाममां अगर रचना काळमां जे काइ भूल तेमना जाणवामां आवे ते बाबतनी सूचना आ कोन्फरन्स ओफीसना सेक्रेटरीपर मोकली आपयामां आवशे तो तेनो महाउपकार साथे स्वीकार करी हेरल्ड पत्र मारफत ते प्रसिद्ध करवामां आवशे. ॐ शांतिः
पायधुनी मुंबई. । ता. १-३-०९ ।
श्री जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्स.
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लिस्ट नं.१ जैनागम,
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जैनागम लिस्ट.
नंबर.
नाम..
नाम.
श्लोक
कर्ता.
च्यानो
संवस्.
८३००
वृत्ति
१
अंग ११. आचारांग. मूळ
२५२५/ सुधर्मस्वामि नियुक्ति गा. ३६२
भद्रबाहुस्वामि चूर्णि
१२००० शीलाचार्य (चीळांक) । ९३३ दीपिका (प्र. श्रु.)
अजितदेव दीपिका
९२२५ खरतर जिनहंस १५८२ सूत्रकृतांग.
सुधर्मस्वामि नियुक्ति गा. २०८
भद्रबाहुस्वामि चर्णि वृत्ति
१२८५० शीलाचार्य दीपिका* ६६०० हर्षकुल
१५८३ दीपिका (सम्यक्त्व दीपिका) |१०००० | साधुरंग
(Gov5) स्थानांग.
३६००१ सुधर्मस्वामि १४२५० अभयदेव
| ११२० वृत्तिगत गाथावृत्ति १३६०४/ खर. सुमतिकल्लोल १७०५ दीपिका
२०५००। नगर्षि
२६५।
वृत्ति
* डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमा पाने ४९ मां दीपिकाना कर्ता रत्नशेखर लख्या छ, अने ते प्रत
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玛经
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संवत् १५८३ मां लखेली नोंधी छे.
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खंबात. भावनगर. अमदावाद.
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जैनागम लिस्ट.
| नंबर..
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
रस्यानो
cc
समवायाग.
मूळ
वृत्ति भगवती.
सुधर्मस्वामि अभयदेव
-
३५७४
११२०
मूळ
१५७५२ सुधर्मस्वामि
-
चूर्णि
३११४
-
-
वृत्ति
अभयदेव
११२८
-
२८.०
३७५०
अवचूर्णि द्वितीयशतकवृत्ति लघुवत्ति बीजक झातधर्मकथा.
२९२०
मलयागिरि दानशेखर हर्षकुळ
मृळ
५४००
सुधर्मस्वामि अभयदेव
१
वृत्ति
३८००
उपाशकदशा.*
मूळ वत्ति
सुधर्मस्वामि अभयदेव
अंतकृदशा.
८९९, सुधर्मस्वामि ४००, अभयदेव
वृत्ति
। 'जेसलमेरनी बे टीपमा उपासकदशानी चूर्णि श्लोक ७५० नी ताडपर छे, अम लख्यु छ, पण ते अमारा
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जैनागम लिस्ट.
टिप्पणि m| पाटण.
पाटण. पाटण.
पाटण. पाटण. | पारण. जसलमेर लींबडी. खंबात. भावनगर.
अमदावाद अमदावाद
कोडराया
डेक्कनका.
रिमार्क.
१ २ ३/४) ५) ६/७/८/९ १० ११ १२ १३/१४/१५
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जैनागम लिस्ट.
नंबर.
नाम.
श्लोक.
नाम.
रच्यानो
कर्ता.
संपत्.
मनुत्तरोपपातिक
मूळ
१९२ १००
सुधर्मस्वामि अभयदेव
वृत्ति प्रश्नव्याकरण.
१२५६
४६००
मूळ वृत्ति
वृत्ति (बीजी) विपाक.
सुधर्मस्वामि अभयदेव नयविमल
७५००
वृत्ति
१२१६ सुधर्मस्वामि
मभयदेव पत्र ११७ प्रद्युम्मसूरि
द्वादशांगी वृत्ति
|De.p.47
उपांग १२.
औपपातिक.
मूळ वृत्ति राजप्रश्रीय.
११६७/ सुधर्मस्वामि ३१२५ । अभयदेव
मूळ वृत्ति
सुधर्मस्वामि मलयगिरि
! * डेक्कन कॉलेजमांनी आ प्रत सं. १४७४ मां लखेली छे.
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जीवाभिगम. मूळ
सुधर्मस्वामि
वृत्ति
पत्र
De.p,62*
१
१६००० मलयगिरि लधुवृत्ति
१९९२
हरिभद्र
| देवमूरि प्रजापना. मूळ
| श्यामाचार्य वृत्ति
१४५००
मळयगिरि लघुवृत्ति
३७२८ हरिभद्र तृतीयपद संग्रहणी गा. १३३ अभयदेय " अवचूरि
कुलमंडन जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति. सूळ
४४५४ सुधर्मस्वामि चूर्णि
१८७९ वृत्ति (प्रमेयरत्नमंजूषा) १८००० शांतिचंद्र वृत्ति
१८३५२ धर्मसागर वृत्ति
१८२५२/
हीरविजय खरतर. पुण्यसागर ब्रह्मर्षि
१६५०
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श्लोक.
कर्ता.
रच्यानो संवत्
चंद्रप्रज्ञप्ति.
२२०० ] सुधर्मस्त्रामि
| मलयगिरि
९५...
वृत्ति सूर्यप्राप्ति
| १८
मळ
वृत्ति पंचोपांग.
सुधर्मस्वामि मलयगिरि
मूळ वृत्ति
सुधर्मस्वामि ७०० . श्रीचंद्र
२४| निशीथ.
मूळ
८२१ - सुधर्मस्वामि वृहदूमाध्य
१२००० माध्य. गा. ६५२९ ७५००
२८००० . जिनदासमहत्तर ,, विंशोद्देशक वृत्ति ! १६०० : श्रीचंद्र
यूर्णि
* आ श्रीचंद्रसूरि ते शीलभद्रसूरि तथा धनेश्वरसूरिना शिग्य हता.
5 आ श्रीचंद्रमारे ते मलधारि हेमचंद्रसूरिना शिष्य हता.
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श्लोक.
कर्ता.
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१००
११७३
पार्श्वदेव प्रद्यमशिष्य
De.p.471
निशीथ विशोद्देशक वृत्ति* अपचूर्णि पर्याय भाष्यविवेक.
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रत्नप्रमशिष्य
बृहत्कल्प.
मुळ
४७३ भद्रबाहुस्वामि
बृहद्भाग्य
१२०००
७६००
लघुभाष्य चूर्णिx
* आ वृत्ति बृहट्टिप्पनिकामां नोंधेली छे, पण ते कोई भंडारमा देखवामां आवी नथी, तेथी होवाथी अम अनुमान बंधाय छे के कदाच बहटिप्पनिकामां ते भूलथी नोंघाइ होवी जोहये. सिवाय सहाय करी छे तो ते प्रमाणे आ व्याख्यामां पण तेमनी सहायता संबंधे कई लखेलु हशे ते परथी
। अवचूणि डेक्कन कॉलेजमा ताइपत्रपर लखेली छे. तेना की प्रद्युम्नसूरिना शिष्य लखेल छे पण
अना कर्ता रत्नप्रभसूरिशिष्य लखेल छे पण ते कोण छे ते नक्की करवान छ,
$ डेकन कॉलेजना रिपोर्टमां पेज ८६ मा बृहत्भाष्यना श्लोक ८६०० आपेला छे.
* देक्कन कॉलेजना पेज ४९मा लत्युं छे के बृहत्कल्पनी चूर्णिना कर्ता प्रलंबसूरि छे. अने भाष्य
१ आ श्लोक संख्या एवी रीते छे के श्लो. ११७०० नी सामान्यचूर्णि छे अने श्लोक पनी एक टीप श्लो. १४७८० नो आंक मल्यो छे ते परथी ते संख्या कायम राखी छे. छतां
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जैनागम लिस्ट,
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ते कोण छे ते तपासी नकी करवानुं छे.
तथा चूर्णि बन्ने तेमा साउपत्रपर
खेली छे. लख्यान संवत् १३३४ छै.
|३१०० नी विशेषचूर्णि छ अम वे संख्या मेलवतां श्लोक १४८.. थाय छे अने ते प्रमाणेज पाट. शोधकजने ए बापत चोकस करवी नोहए.
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जैनागम लिस्ट.
नाम.
| श्लोक. |
कर्ता.
रच्यानो संवत्.
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१३३२
वृत्ति लघुटीका.. नियुक्ति.'
६२५ भद्रबाहुस्वामि
व्यवहार
मूळ
३७३ भद्रबाहुस्वामि
भाष्य गा. ४६२९
चूर्णि
वृत्ति
१०३६० ३३६२५, मलयगिरि पत्र १४२
अवचूरि+ (लघुवृत्ति) दशाश्रुतस्कंध.
मूळ नियुक्ति गा. १४४
भद्रबाहु भद्रबाहु
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चूर्णि
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वृत्ति
५१५० !
ब्रह्मर्षि
+ एमां आदिना श्लोक ४६०० मलयगिरिकृत छे अने पाकीना क्षेमकीर्तिकृत छे. + एना कर्ता कोण छे ते डेलावाली प्रत जोवाथी नक्की याय तेम छे.
मा दश नियुक्तिओनी गायामां कल्प तथा व्यवहारनी नियुक्ति गणावी छे, पण तेमांनी आ. हारनी नियुक्ति भाष्य भेगी होवो जोहये. ते शिवाय तेनी जूदी प्रत मली नथी, माटे शोधक जनोए
+ पाटणनी टीपमा अवचूरि लखेल छे ने हेलानी टीपमा लघुवृत्ति खेल छे, माटे ते एकज लोकसंख्या मेलवी जरूरनी छे.
कल्पसूत्र ए दशाश्रुतस्कंधनु आठमुं अध्ययन छे अने ते श्लोक १२१६ नुं गणाय छे, ते वामां आवनार होवाथी तेना श्लोक बाद करीने आ सूत्रनी श्लोक संख्या आपी छे.
ब्रह्मर्षि पार्श्वचंद्रना शिष्य हता अने तेणे विक्रम संवत् १६०० ना अरसामां आ टीका करी छे |
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* पंचकल्पनु मूल संवत् १६१२ सधी मोजुद हतुं, पण हालमां ते गुम थयुं छे. एना संबंधे एटलो पत्तो मल्यो छे के खंबातमा गोरजी देवचंदजीना पासे जे पुस्तको छे तेमां ते प्रत पाना १० तपाय करवी जोइये छोए,
सदरहू सूत्र गुम यतां हालमा ४५ आगमनी गणतीमां तेना बदले जीतकल्प नामना सूत्रनुं
पंचकल्पना की कोण हता ते संबंधे भाष्यकारे मंगलाचरणमां "वंदामि भद्दबाएं। अg पद | कुलमंहनसरिए तेना.कर्ती संघदास जणाव्या छ एम सांभल्यु छे. हवे बीजी रीते जोइये तो संघदास-1
ई डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां पेज ६२ मां चूर्णिकार आम्रदेव लखेल . तो ते शा प्रमाण |
बृहटिप्पनिकामां एनी लघुवाचना, मध्यमवाचना, अने बृहद्वाचना अम ऋण वाचना लब्ध थाय छे.
असलनी प्रत उद्देहीए बगाड्याथी 'तैमानो तूटतो भाग श्रीहरिभद्राचार्ये सांधीने ते प्रतनो देवद्धिगणिए सूत्रो पुस्तकारूढ कयी अने विक्रम संवत् ५८५मा हरिभद्रसूरि स्वर्गवासी थया तेथी पुस्त
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नाम गणवामां आवे छे.
लख्यं छे तेथी एम अटकल थाय छे के वे भद्रबाहुस्वामिए रचेतुं हशे-छतां विचारामतसंग्रहमा गणि तो एना भाष्यकर्ता छे, माटे ए बाबत वधु तपास थवाथी नकी याय तेम छे.
उपरथी लखे छे ते तपासवू जरूरनुं छे.
अनुक्रमे श्लो. ३५००-४२००-४५४८ नी नोंधी छे, पण हालमा एनी हाचमाज डा.
उद्धार करेलो छे. तेथी एना उद्धारकर्ता तरीके हरिभद्रसूरि नाम नोंध्युं छे. विक्रम संवत् ५२३ मा कारूदना समय अने हरिभद्रसूरिना स्वर्गवासमा समयना अंतरालमां आ सूत्रनो उद्धार थयो के.
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जैनागम लिस्ट
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सुधर्मस्वामि भद्रबाहुस्वामि
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नियुक्ति गा. २५५० भाष्य (विशेषावश्यक)
गा. ३६२५ चूर्णि वृहद्वृत्ति. वृप्ति लघुवृत्ति अवचूरि अवधूरि पत्र. १२६
जिनभद्रगणि १३६०० जिनदासमहत्तर २२००० हरिभद्र १८००० मळयगिरि १०६५०: तिलकाचार्य ७८८५' शानसागर
शुभवर्द्धन."
१४,
* आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन तथा पिंडनियुक्ति के ओघ नियुक्तिमांनी गमे ते एकने : सदलाई माटे ७ गणान्या छे. जेसलमेरनी टीपमा अना श्लोक १०००० लखेल छे.
बृटिप्पनिकामा एनी लोकसंख्या १३६०० तथा १८४७४ एम बे आपेली छे ते परथी वापत तपास करी नकी करमी.
* दर पत्रे अनुमाने ५० श्लोक गणिए तो ६३०० ना लगभग होवी जोहये,
शुभवईनगणि हेमविमलसरिना बारे हतो. हेमविमलसार से, १५७० मा थया छे.
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जैनागम लिस्ट.
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जैसलमेर लोंबडी.. खंबात. भावनगर.. अमदाबाद.) अमदावाद
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४६४० मलधारि हेमचंद्र २८००० । मलधारि हेमचंद्र ९२०० , मलरागिरि
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जीर्णवृत्ति दीपिका
११७०० माणिक्यशेखर
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* आ हेमचंद्रमूरि ते पेहेला हेमचंद्र जाणवा तेओ सिद्धराजना समकालीन इता. तेमना गुरुनु नाम भोलखाय छे.
1 आ वृत्ति टिप्पणिकामा नोंघायली छे, पण हजु उपर नौधेला भंडारोमा उपलब्ध यह नथी,
। आ जीर्णवृत्ति पाटणमां ताडपत्रपर छे पण ते तूटेली हालतभा छे, बाकी पीटर्सनना रिपोर्टमो माटे ते त्यांची मेलवी तेनो उद्धार करवी घटे छे.
+ माणिक्यशेखरन नाम पीटर्सनना रिपोर्टमा नथी मलतुं पण तेणे मूल सूत्रोपर दीपिकाओ करी चितामणिना कर्ता जयशेखरना संतानमा ते चालेली छे तो आ नाणिक्यशेखर ते शाखाना होवा जोहये
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अभयदेव छे. तेओए सं. ११६४ मा जीवसमासनी टीका रची छे. अने तेओ मलधारिनी अटक.थी
: तो शोधकजनीए ए माटे खास ध्यान राखी शोध करवी जोइये.
: खंबातमांना ताडपत्रना पुस्तकोनुं लिस्ट आपेल छे तेमां ते सं. १२९४ मां ताडपत्रपर लखायली नोधी छे,
, छे अम आ लिस्ट परयो देखाय छे. शेखरनी शाखा अंचलगच्छमां प्रसिद्ध छे. केमके उपदेश
अम अमाई अनुमान छे, छतां दीपिकाओनी प्रशस्ति जोर नकी निर्णय करवो जोइये,
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जनागम लिस्ट
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मूळावश्यकनी व्याख्याना
परचूरण ग्रंथो.
. ११२३
पविधावश्यकसूत्र वृत्ति: १५५० नमिसाधु ,, (वंदारुवृत्ति नाम्नी) २७२० देवेद्रसूरि षडावश्यक वृत्ति(अर्थ दीपिका) ६६४४ : रतशेखर षडावश्यक अवचूरि
। १४९६
* एमना गुरुर्नु नाम शालिमार छ. एणे रुद्रटकृत काव्यालंकारपर सं, ११२५ मा टीका रची छे.
+ वंदावृत्तिने हालमा वृदारवृत्ति कहे छे पण तेनु आदिपद वेदारु होवार्थी शुद्ध नाम वंदावत्ति छता पाटणनी टीपमा एकादजगे तेना कती तरीके देवेंद्रसूरिनुं नाम हाथ लाग्युं छे, पण डेक्कन कॉलेजना तना कर्ता सोमतिलक ... जणाव्या छे. छतां अमाग धारवा प्रमाणे एना कर्ता देवेंद्रसार एम कहेलं होवाथी एने " श्रावकानुष्टानविधि " एवा नामी पण कोर येला ओल. सनव्याख्यारूपं तपा श्रीदेवेंद्रसरिकृतं २७७० ॥ आ परथी असलम एनं नाम पडावश्यक हो एम |
षडावश्यकनी अवचूारे फक्त पाटणनी एक टीपमा श्रावेली देखाथ छे, तेथी मे अनुमान श्राद्धप्रतिक्रमणनी तिलकाचार्यकृत वृत्तिओ साये लखली हशे अगर तेमांथी अमुक भाग टांकी निर्णय थाय.
Page #43
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Hathaatge
20
पाटण.
पाटण. पाटण.
पाटण
पाटण.
पाटण.
जेसलमेर
लींबडी.
खंबात.
भावनगर)
48
०
जैनागम लिस्ट.
३/४ : ५/६ १७ ८ ९ १० ११/१२१३ | ४ |
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अमदावाद
अमदावाद. कोडाय. मुंबई. डेक्कनकॉ.
छे छे छे छे छे छे छे छे छे छे, छे! छे! छे
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३
छे. एनो कर्त्ता कोण छे ते बाबत तपास करतां तेनी घणी खरी प्रतोमां तो कंह नामज मलतुं नथी. रिपोर्टमां पेज ११७ मां तेना कत्ती देवकुशलसूरि लख्या छे तथा भरुचनी टपिमां होवा जोईये, एनी आदिना काव्यना चोथा चरणमां " वक्ष्याम्यनुष्टानविधि सुबोधां " वामां आवे छे. बृहद्विप्पणिकामां अना माटे आवो उल्लेख छे. पण जणाय छे अने कर्ता देवेंद्रसूरि छे एम वधु पूरवार थाय छे.
" Estaश्यकं चैत्यवंदनादिसर्व
श्लोक संख्यामां सहेज फेरे छे.
छे के इरियावदी चैत्यवंदन अने वंदनकनी यशोदेवसूरिकृत अवचूार तथा साधु प्रतिक्रमण अने ऊपर कोहए अवचूरि लखी होय तो तेम पण संभव छे. माटे पुस्तक जोथे
आवश्यक
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________________
जैनागम लिस्ट.
रच्यानो
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
संवत्
षडावश्यक विधि
२३७५ षडावश्यक लधुवृत्ति ललित विस्तरा
१२७० ,, हिप्पनक
१८०० चैत्यवंदना वृत्ति
४८२ , (बालाषबोधा). (जूनीगुर्जर) ७००० चैत्यवंदना महाभाष्य गा. ९२२ , भाष्यवृत्ति चैत्यवंदना विचार (गाथानद्ध)
आंच महीसागर* कुलप्रभ हरिभद्र मुनिचंद्र हरिभद्र खरतर तरुणप्रभ शांतिसूरि'
* आ महीसागर उपाध्याय आंचलिक जयकेशरिसरिना शिष्य इता.
+ अमनो रचेलो बीजो ग्रंथ आरामनासत्तरी छे.
* मुनिचंद्रसरिए सं. ११७४ मां उपदेशपदी टीका रची छे. एमना हाथै सं. ११८१ मा
. उत्तराध्ययन वृत्तिकर्ता थारापद्रगछमा वादि वेताल शांतिसरि सं. १०९६ मा स्वर्गस्वाती रवीकारिए तो पृथ्वीचंद्र चरित्रना कर्ता शांतिसार के जेमणे ते चरित्र सं. ११६१ मा स्स्यु छे ते वे शांतिपूरिमांथी आ महाभाष्य कोणे कर्यु छे ते तेवा विशेष उल्लेख शिवाय माणई मुस्केल छे. माटे
एना माटे वृहटिप्पणिकामां नीचे मुअब उल्लेख छे:--" चैत्यवंदनामहाभाष्य श्रीशांतीय
* आ चे ग्रंथ बृटिप्पणिकामां नौघायला छे पण त्या सेमना कर्ता तथा श्लोक संख्या नौधल माटे ते वाक्त कांह विशेष लखी शकातुं नथी, चैत्यवंदनाविचारमाटे बृहट्टिप्पणिकामां भावो
Page #45
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________________
जैनागम लिस्ट.
वृहटिप्पणि
*12210
पाटण..
पाटण.
पाटण.
जाय.
जेसलमेर. लौंबडा खंबात भावनगर. अमदावाद.) अमदावाद
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लखायली ओधनियुक्तिनी ताडनी प्रत पाटणना भंडारमा मोजुद छे.
थभेला छे एम वेबरे नोंधे करी छे तेने भांडारकर तथा पीटर्सने स्वीकारी छे. एटले आपणे पण जुदा ठरे छे. आ बीजा शांतिसरि पीपलिया गच्छना स्थापक तरीके ओळखायला छे. हवे ए ते बाबत आ भाष्यनी संघाचार नाम्नी वृत्तिमा कंद खुलासो होय तो ते जोवो जोइये,
सूत्रम्याल्याचरणादिवाभ्यं महामहपणमं तेतिपदं गाथा ९२२”
नथी. बधु दिलगीरी ए छे के ते थे ग्रंथ अमोने पथा इजुलगण कोई टीपमा जोयामा आब्या नथी उल्लेख छ:-" चैत्यवंदनाविचारो गायाबंधन सत्रम्याख्यारूप: "
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________________
२६
नवर.
1
चैत्यवंदन कुलक
वृत्ति
विपन
23
27
नाम.
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भाष्यत्रय (६३-४१-४१ )
चैत्यवंदना भाष्य वृत्ति ( संघाचार नाम्नी )
"
जैनागम लिस्ट.
लोक
४४००
९६५
१७५
अवचूरि
अवचूरि (बीजी )
४२५
चैत्यवंदना भाग्य ( गाथाबद्ध ) १०८
९.७५०
१०२७
कर्ता.
खरतर जिनदत्त
जिनकुशल
लब्धिनिधान ।
देवेंद्रसूरि +
धर्मघोष
सोमसुंदर
पार्श्वचंद्र |
रख्यानो
संवत्.
१३८३
Gov.
Gov.
* आ कुलक केटली गाथानुं छे ते नोंघायुं नथी पण ते कुलकना नामे छे पटले वीस
+ लब्धिनिधानगणिए टीकापर टिप्पन रचेल है मांटे से पंदरमी के सोलमी सदीम चोक्कस मुदत जांणी शकाशे.
4 त्रणे भाष्यनी गाथा १४५ छे तेना लो. १७५ नोध्या छे.
+ देवेंद्रसूरि संवत् १३२६ मां स्वर्गवासी थया छे. माटे ते समयना पूर्वे आ ग्रंथ रचायो छे.
ई धर्मघोषसूरि देवेंद्रसूरिना शिष्य हता. तेओ से. १३२७ मां गच्छाचार्य पदे आवेला छे. तेमणे आवृत्ति करेली छे तेपरथी केटलीक टीपोमां संघाचारवृत्तिना कर्त्ता तरीके धर्मकीर्तिनुं नाम
* सोमसुंदरसूरि सं. १४५७ थी १४९९ सूधी विद्यमान हता.
आ पार्श्वचंद्र ते जना थथा छे ते छे के सोलमी सदोमां थया ते छे ते ग्रंथ औये मालम
Page #47
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________________
जैनागम लिस्ट.
हटिप्पणि
IPI
nath | Lalbar ! Inel
पाटण..
| 1021
जैसलमो
लीबडी. खबात. भावनगर अमदावाद. अमदावाद. | कोडाय.
मुंबई. डेक्कनकॉ.
रिमाक.
२०/११/१२/१३/१४.१५
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पचीश गायानुं अथवा तेथी सहेज वधु हरो. चौकस प्रमाण टोका जोयाथी मली शकशे. रब्यु होवु जोहए. छतां ते मंयमां ते वखतना को आचार्य- नाम आप्यु से तो ते परयो
तेओ ज्यारे उपाध्याय पदे इता त्यारे तेंमनु नाम धर्मकीर्ति हेतुं अने ते पदमां हता स्वारेज पण आप्युं छे.
पडे. सदरहु ग्रंथ डेक्कन कॉलेजना संग्रहमा छे.
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________________
२८
नंबर.
नाम.
चेत्यवंदन चूर्णि
चैत्यवंदन विवरण
जनागम लिस्ट,
लोक.
ता. १७८
बृहच्चैत्यवंदन सटीक
चैत्यसाधुवंदन श्राद्धप्रतिक्रमण वृति
--
२०००
चैत्यवंदनादिसूत्र साधुश्राद्ध प्रतिक्रमण पदपर्याय मंजरीओ ५००
पथिकी अवचूर्णि
१५०
वेत्यवंदनावचूर्णि
वंदनकावचूर्णि
चैत्यवंदना वंदनक प्रत्याख्यान वृत्ति
५५०
चैत्यवंदनादिवृत्ति (कुलप्रदीप )! २४५८
८४०
ske
कर्ता.
सौभाग्य
रत्नप्रभः ।
हेमचंद्र
पार्श्वसृि
अकलंकदेव
यशोदेव
तिलकाचार्य x
[रच्यानी संवत्.
१९७४
Dec.
९५६
११७४
● आ प्रत फक्त पाटणना एक भंडारमां ताडपत्र उपर लखायली देखाय छे माटे एनो अवश्य आ नाम केइक अपूर्ण जेवु लागे छे तेम ए संबंधे कंद ऐतिहासिक बिना नोधार नथी. पण + आ नाम आपतां भूल करेली लागे छे केमके सं. ११७४मां तो मुनिचंद्रसूरिए उपदेशपदनी टीका छे के जेमणे सं. १२३६ मां उपदेशमालानी टीका रवी छे माटे जेसलमेरनी टीप करनारे कर्त्तीना रवी छे तेज ए ग्रंथ होवो जोइए.
!
आ प्रत डेक्कन कॉलेजना लिस्टमां नोंधी छे तो ते खास जोवी जोइए.
पाटणनी टीपमां आ प्रत केवल श्राद्धप्रतिक्रमण वृत्तिना नामे नोंघेली छे अने तेमी लोकसंख्या अकलंकदेवसरिनो इतिहास मला शक्यो नथी. दिगंबरम अकलंक आचार्य थया ते अने!
x तिलकाचार्ये सं. १२९६ मां आवश्यक लघुवृत्ति रची है.
आवृति इपिनिकामां नोपी हे पण कानोधायला भंडारोमा उपलब्ध यह नया.
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________________
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| लींबडी. 6 जे सलमेर.
ख बात.
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| आ अकलंक देव जदा छे.
०
भावनगर.
मैनागम लिस्ट.
अमदाबाद.
अमदावाद.
कोडाय.
० छे.
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११.१२ १३ १४ १५
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इक्कनका
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रिमार्क.
- १९
उद्धार थनो घटे छे.
ताडपत्री त होसाथी तेना कर्ता कोई प्राचीन आचार्य होवा जोइए.
रची छे तेमना शिष्य वादिदेवसूरि कुमारपालना वारे विद्यमान हता अने तेमना शिष्य ते रत्नप्रभु नाममां गोटो वाल्यो छे. अमारा अनुमान प्रमाणे शोदेवसूरिए सं. १९७४ म अक्चूर्णि
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________________
३०
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नंबर..
1
1
I
साधुभाद्ध प्रतिकमणचैत्य
गुरुवंदन अवचूरि
साधु प्रतिक्रमण वृत्ति
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श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
गा. ५२
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नाम.
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वृति
जैनागम लिए,
लघुवृत्ति
वृति
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लोक.
८००
२९६
५४८
६७२
१९५०
२००
१७७
कतो.
तिलकाचार्य
जिनप्रभ
पार्श्वदेव
•
विजयसिंह :
श्रीचंद्र
तिलकाचार्य
पार्श्वग
रचयानो संवत्.
६३६४
११८३
१२२२
● पार्श्वदेवगण सं. ११३१ थी. १९९० सूमी इता एवा पुत्रा मले के. एम. सं.! खती पाटणनी टीपमो एवं नौधायूँ के के यक्षदेवना शिष्य पार्श्वदेवे सं. ९५६ मां आ वृत्ति करी छे,
सुनवृत्तिनो ज एक भाग होवो जोइए एम वधु संभवे छे.
एने मंदितसूत्र पण कहे छे.
भा विजयसिंह ते पोपलिया गच्छना शांतिसूरिना शिष्य छे.
f
आवृत्ति ते पार्श्वरिनो प्रथम नोंघायली वे हजार लोकवाली वृत्तिनौ ककको छे
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________________
जैनागम लिस्ट.
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पाटण. | पाटण,
:02.
जसलमेर लीबडी खंबात. भावनगर.
दावाद. अमदावाद
रिमार्क.
रिनार्क.
५.६७/८९/१०/११ १२ १३१४१०
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११६९ मां न्यायप्रवेशनी पंजिका रची छे तथा उपसर्गहर स्तोत्रनी वृत्ति पण एमणे रची छे. तो तेना अनुसारे पावदेवकृत आवृत्ति ते बृहटिप्पनिकामा नोंधली पार्श्वकृत चैत्यसाधुवंदन श्रावक प्रतिक्रमण
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________________
३२
नयर.
I
I
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नाम.
33
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जैनागम लिस्ट.
* श्राद्ध सामायिक प्रतिक्रमण सूत्रव्याख्याप्रकरण गा. २९३.
प्रतिकमण वृत्ति
अवचूरि
प्रतिक्रमण वृत्ति +
प्रतिक्रमण क्रमविधि
९००
प्रतिक्रमण संग्रहणी (प्रा.) ११५
प्रत्याख्यान स्वरूप मा. ३६०
वृत्ति :
श्लोक.
३६५
७१८
१६२०
૪૦
५५०
:{
कर्ता
जिनदेव
जिमद
कुलमंडन +
(हुंबड गच्छीय) शिहद स
सूरि जयचंद्र X
यशोदेव
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संवत्.
१३८३
१५२५ । Gov. :
Gov..
१५०६
Gov.
१९८३
27
* आ ग्रंथ माटे वृइट्टिम्पनिकाम नीचे मुजब चोकस नोष :--
श्राद्धसामायिकप्रतिक्रमणसूत्रव्याख्याप्रकरणं ११८३ वर्षे जैनदेवं गा. २९३ श्लो.
- जिनदेवसूरि सोमतिलकसूरिना शिष्यहता तेमनो संक्षिप्त इतिहास जिनप्रभसूरिकृत तीर्थकल्पमांनानिकामां सं. १९८३ आपेरू छे त्यां लिखितदोषथी तगडाना बदले एकडो लखायो लागे छे.
* आ जिनइर्षगणि तपगच्छना सोमसुंदरसूरिना शिष्य जयचंद्रसूरिनां शिष्य के के जेमणे सं. नौथ्या छे.
+ कुलमंडनारे संवत् १४४२ थी १४४५ सधीमां हता.
+ बृटिप्पनिकामां एना माटे आ रीते उल्लेख है:-" प्रतिक्रमणसूत्रटीका दिगंबरी "
X जमचंद्रसूरि ते सोमसुंदरसूरिना शिष्य हता.
8 आ ग्रंथ डेक्कन कॉलेजमां छे, ते शिवाय बीजे मलतो नथी तो तेशुं छे तेनी तपास यशोदेवसूरिने कोई कोई जगोए यशोभद्रना नामथी पण लखेला छे, तेथी एम जणाय तिना कर्त्ता यशोभद्र लख्या छे.
! वृद्दि पनिकामां आवृत्ति नांधी के पण ते उपलब्ध थइ नथी,
1
Page #53
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________________
जैनागम लिस्ट
সুলাল।
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| पाटण.
पाटण.. पाटण. पाटण. जैसलमेर
लावडी.
-
खंबात. भावनगर
अमदावाद अमदावादा
कोडाय.
डक्वनकॉ.
रिमार्क.
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|३४५६७
९१०१११२/१३/१४१५/
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३६५ ॥ तेम छतां ते गुम थाय छे माटे तेनी खास लक्ष राखी शोध करवी जोहये. कात्यायनीय वीरकल्पमा आपेल छे, अने त्यो तेमना माटे सं. १३८३ नी नोंघ आपी छे. यहट्टिप्पा
|१५०२ मां विंशतिस्थान विचारामृतसंग्रह रच्यो छे. सरकारी रिपोर्टमां भूलथो तेमने खरतर तरीके
करवी जोइये. . छे के वखते ओना बे नाम पण हसे. दाखला तरीके लीवडीना भंडारमानी प्रत्याख्यान स्वरूपनी प्रतमां
Page #54
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________________
जैनागम लिस्ट.
नंबर.
नाम.
श्लोक. |
फर्ता.
न्यानो
सेषतः
( अजमेरमा छ)
प्रत्याख्यानचूर्णि प्रत्याख्यानविचारणामृत गा.२३७
।
I Gov
शालिसरि जयचंद्र
।
प्रत्याख्यानस्थान विवरण पंचपरमेष्ठिविवरण
(प्राकृतगाथामय) दशवकालिक.
२५०
मतिसागर
१९६८
७००
मूळ नियुक्ति गा. ४४५
सय्यभवस्वामी भद्रबाहुस्वामी
५५०
७०००
७०००
१३४६
बृहद्वृत्ति वृत्ति लघुवृत्ति लघुवृत्ति
हरिभद्रसूरि तिलकाचार्य सुमतिसूरि + आंच. विनयहंस
२६००
१५७२
* शालिसरि ते कदाच शालिभद्रवार हो के जे सं. १२०४ मां हता. , आ ग्रंथ माटे बृहट्टिप्पनिकामां नीचे मुजब उल्लेख छ:--" पंचपरमेष्ठिविवरणं प्रा. गाथामयं * हट्टियानिकाना नोंधप्रमाणे ए आचार्य सं. ११६८ मां हता. एटलं जणाय छे, ते शिवाय
" सुधर्मस्वामिना शिष्य जंबूस्वामि तेमना शिष्य प्रभवस्वामि अने तेमरा शिष्य ते ६ बृहटिप्पनिकामां एनुं प्रमाण ७५५• आपेल छे ते सूत्र साथे छे एम लागे छे.
__ + सुमतिसूरि वे थएला छे. एक देवभद्र तथा गुणचंद्रना गुरु अने प्रसन्नचंद्रसूरिना शिष्य अने सुमतिसूरिए ते करी छे एम लखेलं मले छे. परंतु बोधकाचार्य ते कोण इता ते संबंधे कांह जाणवामा
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
उदहिप्पणि
पाटण.
पाटण,
पाटण.
० पाटण.
पाटण.
पाटण.
७ जे सलमेर. ^ लींबडी. * खंबात.
भावनगर
अमदाबाद
अमदावाद
कोडाय
डेक्कनका मुंबई.
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| तेमना माटे वधु इतिहास मल्यो नथी.
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वर्षे मातिसागरं गा. २५० " ए ग्रंथ उपयोगी छतां क्यां पण उपलब्ध भयो नथी
बीजा लक्ष्मीसागरसूरिना शिष्य अने हेम विमलसूरिना गुरु पण खुद्द टीकामां तो बोधकाचार्यना शिष्य आव्युं नथी माटे आ बाबत शोधक जनोए इतिहास संबंधे वधु शोध करवी जोईये.
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________________
३६
नंबर.
1
GUYS
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अवचूरि
नाम.
( शब्दार्थवृत्ति )
निर्युक्त्यवचूरि वृत्तिदपिका
३२ उत्तराध्ययन.
मूळ
निर्युक्ति गा. ६०७
चूर्णि
वृहद्वृत्ति
लघुवृत्ति
वृत्ति
जैनागम लिस्ट,
लोक.
२०००
१८००
१२००
३०३३ समयसुंदर
पत्र ९
पत्र १११ माणिक्यशेखर
७००
५८५०
कर्ता.
१६०००
१२०००
| १४२५५
शांतिदेव *
सुधर्मस्वामी
भद्रबाहु स्वामी
गोवालिया महत्तर शिष्य
शांतिसूरि +
नेमिचंद्रसूरि
भावविजय
रच्यानो
संवत्.
अजमेर
११२९
१६७९
* शांतिदेव ने शांतिसूरि ते एकज छे के जुदा छे ते चोकस थयुं जोइए. अने जुदा साबित
+ जो के इहां गोवालिय महत्तरना शिष्य ते कोण ते संबंधे विशेष नाम आपेल नथी, पण अमारा छतां कोइ चोकस पुरावो मले तो वधु निर्णय थइ शके.
आ शांतिसार ते थारापद्रगच्छीय वादिवैतालशांतिसूर छे के जेमना माटे येरे एवी नोंध
एमनुं साधुपणामां देवेंद्रनाम हतुं पण तेओ सूरि थया त्यारे नेमिचंद्रना नामे ओलखाया छे. [ सैद्धांतिक शिरोमणि तरीके पंकाता हुता.
Page #57
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बृहाप्पणि पाटण पाटण. पाटण. | पाटण
पाटण ० सपाटण . ८ जेसलमेर
।
थाय तो ते क्यारे हता ते पण शोध, जोइये.
करी छे के तेओ संवत् १०९६ मा स्वर्गवासी थया छे.
. .
. .
० .
॥
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० .
खंबात.
• छ| छे! छे! छे छे छे..छे छे छे
छे छे छे छे• • छे छे .
०
०
०
०
०
भावनगर.
तेमणे आ वृति उपरांत आख्यानमणिकोश, लघुवीरचरित्र तथा रसनच्ड चरित्र रचेल छ अने तेओ
वाद.
धारवाप्रमाणे तेओ जिनदास महत्तर होय तो होय. कारणके बन्नेना नाममा महत्तरनी अटक रहेली छे.
___ _ - - _A __
e ar. & . । .. ___wara | Rea, a ___& & & & & & ___० ० . ch_a • & . बार & RAR
१२१३१४ादा
जैनागम लिस्ट.
रिमार्क.
Page #58
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________________
३८
नंबर.
वृत्ति
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दीपिका
दीपिका *
दीपिका
दीपिका
अवचूरि
अवचूरि
अवचूरि
अवचूरि
कथाओ
कथाओ
नाम.
जैनागम लिस्ट.
श्लोक.
कर्ता.
३६००
६११६
९२१०
२३५.
१२५५
१५०००
१४००० कमलसंयम
८२६५
८५००
१०७०७ ।
पत्र १९४ ) विनयहंस
हर्षकुल 1
अजितदेवसूर
खर० लक्ष्मीवल्लभ
आंच कीर्त्तिवल्लभ
आंच उदयसागर
ज्ञानसागर
पद्मसागर
तपा पुण्यनंदन +
रख्यानो
संवत्.
१५४४
Gov.
१५५२
१५४६
१६३७
एम सं. १४४० मां आवश्यकावचूरि रचेल छे.
+ पुण्यनंदन क्यारे हृता ते संवत् मल्यो नथी, माटे पुस्तक जोइ ते निर्णय थशे.
१४४१
१६५७
*
आ दीपिका रचायानुं संवत् नधायुं छे पण कर्तानुं नाम मल्युं नथी ते मेलवधुं जोइये.
आंचलिक विनयहंसे दशवैकालिकनी लघुवृत्ति अर्थात् दीपिका सं. १५७२ मां रचेली छे.
+ हर्षकुलगणिए सं. १५८३ मां सूत्रकृतांगनी दीपिका रची है.
•
8 अजितदेवसूरिए सं. १२७३ मां योगविधि रचेली छे तेमां ते पोताना गुरुनुं नाम ( भानु अवचूरि कोणे करेली छे ते खुद्द प्रत जोवाथी मालम पडे एम छे.
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पाटण. | जेसलमेर लोपडा. खंबात. भावनगर. अमदावाद अमदावाद,
रविप्रभ जणावे छे. पली बीजा अजितदेवसूरि ते मुनिचंद्रसूरिना पाटे थएला छे. माटे ए बेमांथी आ
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कर्ता.
रच्यानो सवत्
भद्रबाहुस्वामी
* ३१०० वीराचार्य ६७००१ मलयगिरि २८३२
माणिक्यशेखर
३३॥ पिंडनियुक्ति.
मूळ गा. ७०८ वृत्ति लघुवृत्ति बृहद्वत्ति अवचूरि ओघनियुक्ति. मूळ गा. ११६४ भाष्य गा. २५७० F चूर्णि वृत्ति वृत्ति दीपिका
१३५५ भद्रबाहुस्वामी
| ६८२५ द्रोणाचार्य
मलयगिरि माणिक्यशेखर
७५००
* एमां आदिना श्लोक १३५० हरिभद्र सस्कृित छे. अने बाकीना वीराचार्यकृत छे.
वीराचार्य माटे वृहटिप्पनिकामां एवो उल्लेख छ के " देवाचार्य शिष्य वीराचार्यांया. ' हवे छे. अम समयसुंदरकृत अष्टलक्षीनी प्रशस्तिमा छे. जुवो रिपोर्ट चोथो पेज ६९ माटे मे देवाचार्यना| लिखित दोप थयो मानिये तो सं. ११६२ मां जीवानुशासननी वृत्तिना कर्ता देवसूरि थया तेमना
॥ ससूत्र वृत्तिना श्लोक ७५०० छे.
चर्णि बृट्टिप्पनिकारने पण उपलब्ध थई नथी तेथी ते लोबा वखतपर गुम थएली लागे छे. + एमणे अभयदेवसूरिकृत नवांगावृत्तिओ शोधी छे. माटे ते स. ११२० मा हता. गु ससूत्र श्लोक संख्या ८९७० है.
Page #61
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________________
गुरु वीरचंद्र इता ते वीराचार्य होय तो तेम पण वखते होय. शिष्य वीराचार्य थया होय तो होय. ते शिवाय गृहट्टिप्पनिकामां जो गुरुना बदलें शिष्यपद लखवानी
देवाचार्यनुं नाम खरतर गच्छनी पट्टावलीमा ३६ मां पाटमां छे अने तेमना पाटे नेमिचंद्रसूरि थएला
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पाटण.
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लींबडी.
खबात.
भावनगर
अमदावाद
अमदावाद.
कोडाय. मुंबई. डेक्कन कॉ.
७/८ ९/१० ११ १२ १३ १४ १५
रिमार्क.
जैनागम लिस्ट..
४१
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४२
नंबर.
३५
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३६
अवचूरि
उद्वार
नंदि
मूळ
चूर्णि
नाम.
लघुवृत्ति
बृहद्वृति
लघुवृत्ति टिप्पनक
जैनागम लिस्ट.
(विषमपदपर्याय )
सर्वसिद्धांत विषमपद पर्याय
अवचूरि
अनुयोगद्वार.
मूळ
श्लोक.
कर्ता.
३२०० ज्ञानसागर
१११
७००
देवर्द्धिगणि
१५००
२३००
हरिभद्र
७७३२ | मलयगिरि
३३००
श्रीचंद्र
२५९५ श्रीचंद्र
१६०५ | देव्यावसूरि
१८९९ आर्यरक्षित
रख्यानो संवत्.
७३३
+ देवद्विगणिए वीरप्रभुथी ९९३ वर्षे एटलेके विक्रम सं. ५२३ मां सूत्रो पुस्तकारूट करता
# आ बने ग्रंथ जूदा जूदा छे के केम ते विषे विचार करतां तेना कर्त्ता बीजी संख्या सरखीजं थई रहे छे ते परथी ते एकज ग्रंथ होय तो पण होय माटे ए
एक होवाथी एम बाबत बन्ने ग्रंथना
* चंचलवाना मंडारमा रहेली आ अवचूरिना अंते तेना कर्त्ता देव्यावसूरेि लखेल छे. पण ए + नहि पण देवसूरि होवु जोईये.
ससूत्र
Page #63
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वृद्दहिष्पणि । पाटण.
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मंगलाचरण तरीके आ नंदिसूत्र रची लखेल छे.
लागे छे के पेली लोकसंख्या नंदिना सूत्रने साथै थई टांकी होय तो ते बाद करिए तो लगभग पेली तथा आद्यंत तपाश्याथी नक्की निर्णय थाय एम छे.
नाम विचित्र लागे छे तेथी वखते तेमां लिखितदोष होय तो होय अने तेम इथे तो एना कर्त्तानुं नाम
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जैनागम लिस्ट
नंबर.
नाम.
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श्लोक.
कर्ता.
रच्यानो संवत्
२२६५
लघुवृत्ति
३०००
जिनदासमहत्तर हरिभद्र मलधारि हेमचंद्र
बृहवृत्ति
पयन्ना १०.
चतु:शरण*
मूळ गा. ६४
वृत्ति अवचूरि
वीरभद्रणि । आंच० भुवनतुंग । गुणरत्न
आतुरप्रत्याख्यान.
४२०
मूळ गा. ८४ वृत्ति
अवचूरि भक्तपरिक्षा.
आंच भुवनतुंग गुणरत्न
मूळ गा. १७१ अवचूरि
गुणरत्न
* एनुं बीजु नाम " कुशलानुबंधि अध्ययन ॥ एवं पण छे.
+ आ वीरभद्र महावीर प्रभुना शिष्य हता एम तेनी टीकामां लखेलुं छे तेथी आराधनापताकाना
भुवनतुंगरि आंचलिक जयशेखरसूरिना वारे हता तेमणे बीजो ग्रंथ सीताचरित्र नामनो रचेल छे. * गुणरत्नसूरि सोमसुंदरसूरिना गुरुभाई इता. तेमणे षड्दर्शन समुच्चयनी टीका तथा सं. १४६६
Page #65
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________________
जैनागम लिस्ट
पाटण. पाटण. पाटण. पाटण, जसलमेर. पा
खंबात.
भावनगर. अमदावाद.
अमदावाद
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कर्ता वीरभद्र के जेणे ते सं. १०७८ मां रची छे दे अने आ वीरभद्र जदा छे..'
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________________
जैनागम लिस्ट.
नंबर.
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श्लोक.
कर्ता.
रच्यानो
संवत्
गुणरत्न
संस्तारक. मूळ गा. १२१
अवचूरि* तंदुलवैचारिक
मूळ गा. ४००
वृत्ति चंद्रवेध्यक
मुळ गा. ११४ देवेंद्रस्तव.
मूळ गा. ३०३ गणिविद्या.
पत्र ३८ विजयविमल 1
मूळ गा.
महाप्रत्याख्यान.
मूळ गा. १४३
| ४६/ वीरस्तव.
मूळ गा.४३
* चतुःशरण, आतुरप्रत्याख्यान, भक्तपरिज्ञा तथा संरतारक ए चारे पयन्नानी अवचूरिओ मलीने
+ एमणे सं. १६३४ मां गच्छाबार पयन्नानी वृत्ति रचेल छे.
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________________
जैनागम लिस्ट.
ट्रिप्पाण पाटण. पाटण.
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पाटण. पाटण.
जैसलमेर टोंबडी. खंबात. भावनगर.
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श्लोक ८०० नी छे.
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________________
उपसंहार.
आपणामां पिस्तालीश आगम कहेवाय छे तेना बदले उपला लिस्टमा ४६ नम्बर थया छे, ते सम्बन्धे जणाक्वान ए छे के, पिस्तालीश आगमनी गणतरीमा पिंडनियुक्ति अथवा ओघनियुक्ति ए बेमाथी गमे ते एक लईने गणाय छे, पण अमे आ लिस्टमां ते बन्ने गणी छे, तेथी एक नम्बर वध्यो छे. परंतु आपणा पिस्तालीश आगमो माहेलू एक सूत्र नामे पंचकल्प आजकाल उपलब्ध थतुं न होवाथी ते एक सूत्र ऊणुं पडे छे, एटले तेनी ऊणाइना बदलामा अहीं एक नम्बर वधतो देखाय छे ते पूरो थइ रहेता आपणी पिस्तालीश आगम हाल विद्यमान होवानी मान्यता कायम राखी शकाय एम छे. माटे आ लिस्टमां आपेला ४६ नम्बरोने ४५ तरीकेज गणवा एवी अमारी नम्र सूचना छे.
आ रीते अहीलगण आपणा पवित्र पिस्तालीश आगम तेमनी पंचांगी साथे हालमा जे प्रमाणे उपलब्ध थया छे, ते प्रमाणे नोंध्या छे.
प्रसिद्धकतो.
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अवशिष्ट आगमो.
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४८
अवशिष्ट आगमो. पूर्वप्रदर्शित पिस्ताळीश आगमना अंतर्भूत रहेला छतां
नंबर.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
रच्यानो संवत्
पर्युषणाकल्प
१२१६ भद्रबाहुस्वामी
नियुक्ति गा. ६८
निरुक्त
टिप्पन संदेह विषौषधी वृत्ति
| १५८ विनयचंद्र।
पृथ्वीचंद्र | ३०४१ | जिनप्रभा
१ आ दशे सूत्रो पिस्ताळीश आगमना पेटामांज समाय छे अने ते कया कया आगमना नामना विशेष स्मरणना अर्थे इहां तेमने नंबरवार नोंधवामां आव्या छे.
* आ सूत्र दशाश्रुतस्कंधना आठमा अध्ययन रूपे छे, छतां ते अलग लखातुं होवाथी वली ए बारसे श्लोक प्रमाण होवाथी एने “ बारसासूत्र " ना नामे पण ओलखवामां आवे छे. ए| ए सूत्र छेदनथ होवाथी प्रथम सभा समक्ष वंचातुं न हतुं पण विक्रम सं. ५२३ मां आनदपुर सभासमक्ष वंचाय छे.
* डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां एना श्लोक ४०० आप्या छे. पण वृहटिप्पनिकामा एना श्लोक + एमणे मलिचरित्र नामे महाकाव्य सं. १२८६ मा रचेल छे. तथा तेज वर्षमा उदय : पृथ्वीचन्द्रसूरिए. सदरहू टिप्पनना प्रांतमां आ प्रमाण प्रशस्ति आपी छे. शीलभद्रशिष्य धर्मघोष
एमां श्लोक २४६८ सूधी कल्पसूत्रनी व्याख्या छे अने त्यारकेडे श्लोक ५७३ कल्पसूत्रनी
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________________
४९
अवशिष्ट आगमो. हाल अलग ओळखवामां आवता दश अवशिष्ट सूत्रो.
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जेसलमेर लीबडी. खंबात. पावनगर. अमदावाद
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पटामा समाय छे ते दरेकना नाम. साथे जोडेली फूटनोटमां जणाववामां आवशे.. छतां तेमना
इहां ते जदुं गण्यु छे. एर्नु मूलनाम पर्युषणाकल्प छे, छतां हाल ते कल्पसूत्रना नामे वधु प्रसिद्ध छे. सूत्रनी आदिमां स्थविरावली छे ते देवर्द्धिगणिकृत छे, अने बाकीना भाग भद्रबाहुस्वामिकृत छे. ( वडनगर ) ना ध्रुवसेन राजानी समक्ष तेना पुत्रना मरणनो शोक निवारवा ते पंचायुं त्यारी. ते.
१५८ आप्या छे. सिंहकृत धर्मविधिवृत्ति पण. तेमणे सुधारी छे. तछिष्य यशोभद्र सछिध्य देवसेनगणि अने तेना शिष्य ते पृथ्वीचंद्र.. नयुक्तिनी व्याख्याना छे.
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________________
५०
नंबर.
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सुबोधिका
कल्पकल्पलता
कल्प मंजरी
प्रदीपिका
कल्पदुकलिका
कल्पदीपिका
कल्प लघुटीका
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श्लोक.
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३५३२ पं. जयविजय
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कर्ता.
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+ डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमा एना श्लोक ४५०० नोंध्या छे.
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समयसुंदर उपाध्याय विक्रमनी सतरमी सदीमा थएला छे.
5 डेकन कॉलेजना रिपोर्टमा पेज २७५ मा एना कत्ती सहजकाति लख्या छे. परंतु अजमेर नी
$ उदयसागर वे थया छे: - एक सं. १५५७ मां श्रीपालक थाना रचनार लब्धिसागरना गुरु रची छे. हवे आ वृत्तिकार ए बेमांथी कया हशे ते विषे अमारुं धारयुं एवं छे के ते बीजा उदयसागर
* आ अवचूरिलेश संदेहविषैौषधि ऊपरथी उद्धृत करेल छे.
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तथा बीजा अंचलगच्छना आचार्य पण उदयसागर थया छ के जेमणे सं. १८०४ मा स्नात्रपंचाशिका हशे. कारणके आ सूत्रपर दरेक गच्छवालानी जूदी भूदी टीका थई छे.
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कल्पसमर्थन कल्पचर्चा पत्र ३५ (प्रा.)
* चंचलनना भंडारनी टीपमा रत्नशेखरकृत तथा जिनहंसकृत कल्पांतर्वाच्य नौधेला छे.
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मूळ गा.१०५ चूर्णि टिप्पनक(विषमपव्याख्या) वृत्ति
जितभद्रगणि सिद्धसेन श्रीचंद्र तिलकाचार्य
१२२७१
१२७४।
विवरण
भाष्य
३१२५
सार
पत्र २१
मेरुतुग
* छ छेदमा पंचकल्प हालमां गुम थइ जतां तेना स्थले. आ जातकल्पने केटलारक गणजुई गायुं छे. बाकी परमार्थे तो ते पण छेदग्रंथमाथी उद्धृत करेलो होवाथी छेदग्रंथ तरीके
सिद्धसेन नामना पांच आचार्य नीचे प्रमाणे थया जाणवाा आव्या छे:--- १ सिद्धसेन दिवाकर ते वृद्धवादिसूरिना शिष्य हता. तेमनुं बीजें नाम कुमुदचंद्र हतुं २ सिद्धसेनगणि ते दिन्नगणिशिष्य-सिंहसूरितच्छिष्य भास्वामिना शिष्य हता अने तेमणे ३ सिद्धर्षि ते सूराचार्य शिष्य देलमहत्तर शिष्य दुर्गस्वामि शिष्य सहर्पिसूरिना शिष्य ४ सिद्धसेनरि ते देवभद्रसूरिना शिष्य अने यशोदेव सरिना गुरु हता एमणे सं. ११४२ ५ सिद्धसारे ते उवेश गच्छना देवगुतसूरिना शिष्य हता एमणे सं. ११९२ मां बृहत्
हवे आ जातकल्पनी चूर्णि ए पांच आचार्य माहेला कया आचार्य रची छे ते संबंधे विचार तो मूलकार जिनभद्रगणिनी पूर्वे थह गया छे एटले तेमनी ते रचेली संभवी शके ज नहि-बाकी
या आचार्य त रची छे ते संबंधी चोकस निर्णय सदरहू चूर्णिनी प्रत नजरे जोवाथी जा श्रीजा आचार्य सिद्धर्पिनी ते रचेल होवी संभवित लागे छे.
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अने तेमणे सम्मतिसूत्र तथा कल्याणमंदिरस्तव वगेरे रचेल छे. तत्वार्थनी टीका रची छे. हता तेमणे सं. ९६२ मां उपमितभवप्रपंच तथा उपदेशमालानी वृत्ति रची छे. मां प्रवचनसारोद्धारनी वृत्ति रची छे. क्षेत्रसमासनी वृत्ति रची छे. करता एम मालम पढे के के पेला आचार्य सिद्धसेनदिवाकर तथा बीजा आचार्य सिद्धसेनगणि वीजा चोथा तथा पांचमा आचार्यमांथी कोइए पण ते रची होवी जोइए. हवे ए व्रणेमाथी यह शके तेम छे तो जिज्ञासु जने ते प्रत जोई निर्णय करवानो छे. अमारा अनुमाने
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वृत्ति श्राद्धजीतकल्प * मूळ गा. २२५ वृत्ति अवचूरि लघुश्राद्धजीतकल्प मूळ गा. ३०१
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तिलकाचार्य तिलकाचार्य
वृत्ति
* यतिजीतकल्प तथा श्राद्धजीतकल्प ए जीतकल्पसूत्रना पेय पत्र जेवा होवाथी परमार्थे ते
सोमप्रभसूरि सं. १३१० थी १३७० सूधीना कालमा विद्यमान हता. । सोमतिलकसरि संवत् १३७३ मां सूरिपदे आव्या अने सं. १४२४ मां स्वर्गवासी थया सत्तरिसयठाण नामे प्रकरण पण एमणे ज रचेला छे.
कोदायनी टीपमा वृत्तिना कर्त्तानुं नाम पण धर्मघोष आप्यु छ पण ते भूल होवी) मा वृहटिप्पनिकामां आ बे ग्रंथ माटे नीचेमुजब उल्लेख छ:---
" सिरिवीरजिणं नमिउं-इतिश्राद्धजीतकल्पस्य सूत्रवृत्ती श्रीतिलकीये गा. ३० वृ. ११५ ॥ संबंधे वधु शोधखोल करवानी जरूर छे,
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________________
अवशिष्ट आगमो.
यहाहप्पाणि पाटण.
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पाटण. पाटण. पाटण. पाटण. जेसलमेर. लीबडी. खंबात. भावनगर अमदाबाद अमदावाद कोडाय.
रिमार्क
२/३/४/५/६/७/८/९/१०/११/१२/१३/१४/१५
......
३
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पण छेदग्रंथज छे.
. एममे सं. १३९४ मां शीलतरंगिणी नामे ग्रंथ रचेल छ, तथा वृहत्नव्यक्षेत्रसमास अने
जोईए कैमके वृहटिप्पनिकामा तथा पाटणनी टीपोमां सोमतिलकसूरिनु ज नाम आपेल छे.
परंतु आ ये ग्रंथ हाल संधी जोवामां आवेला भंडारोमा उपलब्ध थया नथी माटे ए
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________________
५०
अवशिष्ट आगमो.
नंबर..
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
रच्यानो
संवत्.
पाक्षिक सूत्र
यशोदेव
वृत्ति अवचूरि
चूर्णि।
अकलंकदेव
विषमपदपर्याय मंजरी क्षमण सूत्र
अवचूरि
पाक्षिकसूत्र ए आवश्यक सूत्रना पेठा विभागनुं सूत्र छे, कारणके तेमां पाक्षिक दिवस गणाय छे.
। जेसलमेरनी हंसविजय महाराजे करावेली टीपमां ताडपत्रना पहेला बंधनमा ज पाक्षिकमाटे ते चूर्णि छे के अवरि अथवा विवरण छे ते तपासी नक्की कर जोईये छीए वृहटिप्पनिकामां " प्र. ईपिथिकी १ चैत्यवंदना २ वंदनक ३ चूर्णयः ११७४ वर्षे यशोदेवकृताः केम ते पण तपासवानुं छे.
+ पदपर्यायमंजरी माटे वृहटिप्पनिकामां आ प्रमाणे उल्लेख छ " चैत्यवंदनादि सूत्र १ लागे छे के साधुप्रतिक्रमणमा पाक्षिकसूत्रनी पदपयोयमंजरी पण अंतर्गत आपा हशे.
क्षामणासूत्रने पाक्षिकक्षामणासूत्र पण कहे छे अने ए सूत्र पाक्षिक सूत्रना प्रांते आवर्नु होवाथी ते कोई कोई स्थले अलगुं पण लिखित मले छे. तेथी इहां तेने अमे विशेष स्मरणार्थे जदुं नोभ्यु छे.
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पाटण.
पाटण. पाटण. पाटण.
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पाटण.
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स्व बात.
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अवशिष्ट आगमो.
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भावनगर
अमदाबाद
अमदावाद
काडाय.
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१२,१३ |१४|१५|
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मुंबई डेक्कनका
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रिमार्क.
५९
करवाना प्रतिक्रमणनी विगत आपली छे, अने प्रतिक्रमण ए षडावश्यक मानुं चोथुं आवश्यक
प्रतिक्रमण चूर्णि नोंधी छे ते परथी इहां ते टांकी छे, छतां ते बरोजा भंडोरोमां उपलब्ध थई नथी
प्र. ई. १५० चे ८४०, वं. ७२७७ ए प्रमाणे उल्लेख छे तो तदंतर्गत आ चूर्णि छे के
साधु
२ श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र ३ पदपर्याय मंजर्यो कलंकदेवसूरीयाः " ए उल्लेखपरथी एम.
तिनी साथैज गणाय छे. अने तेनी अवचूरि पण पाक्षिक सूत्रनी अवचूरिना प्रां आवे छे. छतां
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________________
अवशिष्ट आगमो.
नाम.
श्लोक.
कर्ताः
रज्यानो
संपत्.
वंदितु सुत्र गा. ५४*
ऋषिभाषित
संसक्तनियुक्ति $ गा. ६४ , ८० विशेषावश्यकसूत्रागा. ३६२५, ४०००
भद्रबाहुस्वामी जिनभद्रगणि
* वंदित्तुसूत्र ते श्राद्धप्रतिक्रमण होवाथी आवश्यकसूत्रनुं पेटा सूत्रज छे तेना व्याख्याना ग्रंथो ते नोध्या नथी. इहां फक्त ते पण एक सूत्र तरीके गणाय छे एर्नु जणाववा खातर ते नंबरवार
* ऋषिभाषितना पिस्तालीश अध्ययन अथवा भाषित छे. नंदिसूत्रमा चोरासी आगमना नाम हती एम दशनियुक्तिना नामोनी गाथा ऊपरथी जणाय छे, पण ते नियुक्ति हाल उपलब्ध थती
* आ नियुक्ति कोई सूत्रपर नथी पण अळगी रहेल छे, ते चौदपूर्वधर भद्रबाहुस्वामिनी
आनुं बीजु नाम महाभाष्य पण छे सेना व्याख्याग्रंथो पूर्व आवश्यक सूचना पेटामां ते महामानवामां आवे छे एवं खास जणाववा खातर तेने नंबरवार आफी इशं नोंधवामां आव्युं छे.
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________________
अवशिष्ट आगमो.
रहहिप्पणि पाटण. पाटण.
021 MPA
पाटण. पाटण. जेसलमेर.!
खंयात. भावनगर. अमदाबाद अमदावाद कोडाय.
रिमार्क.
१०/११/१२/१३३१४१५
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पूर्वे आवश्यक सूत्रनी व्याख्याना परचूरण ग्रंथोनी व्याख्यामा नोंधवामां आव्या छे, तेथी इहां नोधवामां आव्युं छे.
आप्यां छे त्यां एनुं नाम कालिक सूत्रोमां गणाव्यु छे. एना ऊपर भद्रबाहुस्वामिए नियुक्ति करेली नयी, आ सूत्र उत्तराध्ययनना पेटामां गणी शकाय एवी रचनावालं छे.
स्वेल होवाथी पिंडनियुक्ति तथा ओघनियुक्तिना माफक सूत्रतरीके गाणये तो गणी शकाय तेम छे,
भाभ्यनु नौध लेतां त्यां नोध्या छे. आ स्थळे आ अंथने पण
आगमनना पेटामा सूत्र तरीके ज
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________________
अवशिष्ट बना.
अवशिष्ट पयन्ना.
***
*****
*
*****
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________________
अवशिष्ट पयमा.
--
नंबर!
नाम.
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लोक.
कर्ता.
रच्यानो सवत्
--
-
-
अवशिष्ट वीस पयन्ना.
-
-
१६३१
बीजी गणत्रीए १० पयन्ना. अजीवकल्प गा.४४ गच्छाचार गा. १३८
वृत्ति अवचूरि अवचूरि
अवचूरि मिरणसमाधि गा. ६५६ .
विजयविमल* वानरर्षि हर्षकुल
R.6
सिद्धप्राभृतो गा. १२.
__ वृत्ति
तीर्थोद्वार गा. १२३३
* विजयविमलगणि ते आनंदविमलसूरिना शिष्य हता.
डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां पेज १२३ मां आ वृत्तिना कती मलयगणि लखेला छे. ते भूलथी कोई ठेकाणे इतिहास पण जोवामां आव्यो नथी.
+ मरणसमाधिने मरणविधि अथवा मरणविभत्ति पण कहेवामां आवे छे. * एने प्राकृतमा सिद्धपाहुडो कहे छे.
एने प्राकृतमां तित्थोगालियपयन्नु कहे छे.
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________________
०००००
4
.
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यहाट्टप्पणि पाटण. पाटण. पाटण. पाटण. पाटण. पाटण, जेसलमेर.
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खंबात. भावनगर अमदावाद! अमदावाद
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८१९१०११/१२/१३/१४/१०
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खेला सेवा जोईये. कारण के ते नाम कोई टेकाणे जोवामां आव्यु नथी. तथा मलयगणिसंबंधी
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डाय.
अपशिष्ट पयन्ना
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CI मुंबई डिक्वनॉ
रिमार्क.
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________________
६४
नंबर,
८
आराधना पताका गा. ९९३
७ siverer प्रप्ति गा.२२३
१०
नाम.
ज्योतिष्करंडक
वृत्ति (ससूत्र )
अंगविद्या
अवशिष्ट पयन्ना.
तिथिप्रकीर्णक
त्रीजी गणत्रीए १० पयन्ना.
पिंडविशुद्धि गा. १०३
वृत्ति
श्लोक.
१२००
२८०
१८५०
५०००
९०००
१२५
४०००
२८००
वीरभद्र
५५०
कर्ता.
मलयगिरि
जिनवल्लभ $
श्रीचंद्र +
यशोदेव
रव्यामो
संवत्.
१०७८
A. S.
लघुवृत्ति
पिका (लघुवृत्तिरूपा )
वीरभद्र सम्बन्धी विशेष इतिहास मळ्यो नथी, परंतु संवत् मन्युं छे. वृहद्दिष्पनि काम
११८०
११७६
* जिनवल्लभगणि विक्रमनी बारमी सदीना मध्यमां हता.
+ श्रीचंद्रसूरि ते मलधारि हेमचंद्रसूरिया शिष्य छे. तेमणे संवत् ११९३मां मुनिसुव्रत स्वामिनुं चरित्र के तेमना गुरु हेमचंद्रसूरिनी संवत् १९६४ मा स्वहस्तलिखित पोथी पाटणमां मोजूद छे. एम फिलहार्ने |" एगवोससहस्से " भूलथी छपायुं छे ते परथी पिटर्सनसाहेब गोथो खाध लागे छे. आ वृत्ति माटे वृत्तिकार श्रीचंद्र ते मलधारि हेमचंद्रसूरिनांज शिष्य छे एम चोकस निर्णय थाय छे.
+ आ दीपिका बृहद्दिप्पनिका शिवाय उपर बतावेल कोईपण भंडारमां उपलब्ध यह नथी.
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________________
अवशिष्ट पपमा.
हट्टिप्पणि]
120
पाटण. पाटण
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| पाटण.
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जेसलमेर लीबडी. खंबात. भावनगर. अमदाबादअमदावाद
रिमार्क. .
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आराधनापताकाने माटे आवो उल्लेख छे. "आराधनाफ्ताका १०७८ वर्षे वीरभद्राचार्यकृता ९९३५.
रच्युं छे. पिटर्सनना पांचमा रिपोर्टमा मुनिसुव्रतचरित्र रच्यानुं संवत् ११२१ आपेल छे. ते भूल करी छ कारण नोध करी छे. रिपोर्टना सातमे पाने आ चरित्रनी प्रशस्ति आपेल छे त्यां " एगवाससहस्से " ना बदले पाटणनी एक टीपमा पार्श्वदेवनी सहाय्यताथी आ वृत्ति रची छे एम पण लखल छे. ते परथी आ
वृहटिप्पनिकामा एना माटे आवो उल्लेख छे. "दीपालिका लघुवृत्तिरूपा ५५० ॥
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अपशिष्ट पयभा
नंबर.
माम.
श्लोक.
रच्यानो
कर्ता.
संवत्.
६००
अजितदेव ए श्रीचंद्र उदयसिंह
७.३
दीपिका अवन्त्रि
" अवचूरि वृति (दीपिका) पंजिका सारावलि गा. ११६ पर्यताराधना गा. ६९ जीवविभक्ति मा. २५ कवच प्रकरण गा. १२३ योनिप्रभृत
TDec.
सोमसूरि + जिनचंद्र जिनचंद्र धरसेनाचार्य
है आ अवचूरि फक्त पाटणना एक भंडारमा जोवामां आवा छ. अने तेना कर्ता महेश्वर, आ अवचूरी केटला श्लोकनी छे ते पुस्तक जोये नक्की थाय तेम छे. ___ आ कर्त्तानु नाम शक पडतुं लागे छे. अने ते संबंधी बीजे कोईस्थळे पुरवो जोवामां करेली छ तेनो तपास करी नक्की करवू जोईये.
*आ उदयसिंहसरि ते माणिक्यचंद्रसूरिना शिष्य हता. उदयसिंहसरिए संवत् १२५३ मा १२८६ मां ते टीका पूर्ण करी. त्यार पछी आ वृत्ति रची छे.
+ आ पंजिका संबंधी ऐतिहासिक बिना. मळी नथी, । सारावलि पयन्नाने माटे डेकनकॉलेजना रीपोर्टमां पेज ४९ मां एम लख्यु छ के सरयावलि + सोमसूरि ते कोना शिष्य इता ते संबंधी विशेष हकीगत मळी नथी. * आ जिनचंद्रसूरि ते जिनेश्वरसूरिना शिष्य अने नवांगामयदेवतरिना गुरु हता, तेमणे संवेग
* आ ग्रंथ फक्त डेक्कन कॉलेजमा छे ते शिवाय बोजे कोई ठेकाणे उपलब्ध थतो नथी. तपास करी तेनी श्लोकसंख्या विगेरेनो निर्णय करवो जोईये.
एना माटे वृहट्टिप्पनिकामां आवो उल्लेख छ. “ योनिप्राभूत वीरात् ६०० धारसेनं
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________________
ग्रहहिप्पणि
पारण.
पाटण.
पाटण.
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________________
अवशिष्ट पयमा.
नंबर.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
रच्यानो संवत्
अंगचूलिया वंगचूलिया वृद्धचतुःशरण गा. ९. जंबुपयत्रो
देवेंद्रसूति
S. K.
पत्र ५५
आनी श्लोकसंख्या केटला प्रमाणनी छै ते चोकस निर्णय थयो नथी. कारणके पाटणनी परंतु कोडायनी टीपमा तेना श्लोक ८०० चोकस आपेला छे ते उपरथी ते प्रमाणे इहां आपेल छे.
वंगचूलियान खलं नाम तो वग्गचूलिया छ. एर्नु बोजु नाम “ सुयहीलुप्पत्ति अक्षयण" पण छे. बाना भंडारमा तेना कर्ता यशोभद्र जणावेल छे. परंतु ते संबंधी बीजो कोई विशेष पुरावो मल्यो नथी,
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________________
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छतां ए भावत चोकस
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रिमार्क.
६९
अन लींबडीनी टीपमां तेना १६४८ आपेला छे.
१७२८ आपेल छे. करबानी खास जरूर छे.
अंगचूलिया तथा बंगचूलिया कोणे रच्या छे, तेनी चोकस माहिती मली नथीं. परंतु अमदावादना चंचल
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________________
उपसंहार
आ रोते पिस्ताळांश आगम दश अवशिष्ट सूत्रो ग्रंथो तथा वोश अवशिष्ट पयन्ना मळी एकंदर आजकालमा कुले पंचोतेर आगम मळया छे. उपरांत चौदपूर्वधारीकृत जे ग्रंथ होय ते आगमरूपे ज गणाय एम नादसूत्रमा जे कहलं छे तेने अनुसार चौदपूर्वधारो श्रीभद्रबाहुस्वामिकृत तमाम नियुक्तिओ आगमरूपेज रहेली छे ते नियुक्तिओमांनी बे नियुक्तिओ नामे पिंडानयुक्ति तथा ओघानयुक्ति तो पिस्तालाश आगममां ज गणाई गई छे अने संसक्तानयुक्ति अवशिष्ट आगममा नांधी छे. उपरांत तेमणे रचेली नीचे मुजबनी दश नियुक्तिओ छः
१ आवश्यकनियुक्ति २ दशवकालिकनियुक्ति ३ उत्तराध्ययननियुक्ति ४ आचारांगानयुक्ति ५ सूत्रकृतांगीनयुक्ति ६ सूर्यप्रज्ञाप्तनियुक्ति ७ वृहत्कल्पनियुक्ति ८ व्यवहारनियुक्ति ९ दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति १० ऋषिभाषितनियुक्ति
आ दश नियुक्तिमांथी सूर्यप्रज्ञप्तिनी तथा ऋषिभाषितनी नियुक्ति मळी शकती नी एटले ते बाद करतां बाकीनी आठ नियुक्तिओ हमणा मळे छे तथा वधारामां कल्पसूत्रनी नियुक्ति पण मळी आवे छे एटले कुले नव सूत्रनी नियुक्तिओ ते ते सूत्रनी पंचांगीना नोधमा पूर्वे नोंधी छे. ते नवे नियुक्तिओने जो आगमरूपे गणिये तो कुले ८४ आगम थाय छे.
श्रीनंदिसूत्रमा पूर्वे ८४ आगम गणाव्या छे तेमां चोत्रीस सूत्र छे अने पचास पयन्ना छ, त्यारे हालमा मळी आवता ८४ आगममां एकताळीम सूत्र छे, त्रीश पयन्ना छ, बार नियुक्तिओ छे, अने एक महाभाष्य छे.
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अंग ११
१ आचार
२ सूत्रकृत्
३ स्थान
४ समवाय
५ भगवती
६ ज्ञात
७ उपासकदशा
८ अंतकृद् ९ अनुत्तरोपपातिक
१० प्रश्नव्याकरण ११ विपाक
लो०
( ७२ )
चोरासी आगमना संक्षिप्तनाम. एकताळीस सूत्र. छेद ५
१ निश
२ बृहत्कल्प
३ व्यवहार
१० ३५३३९ श्लो.
१ चतुःशरण
२ आतुरप्रत्याख्यान ३ भक्तपरिज्ञा
४ संस्तारक
५ तंदुल वैचारिक
६ चंद्रवेध्यक
उपांग १२
१ औपपातिक
२ राजप्रश्रीय
२ जीवाभिगम
४ प्रज्ञापना
५ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति ६ चद्रप्रज्ञप्ति
७ सूर्यप्रज्ञप्ति
८-१२ निरयावल
पहेली गणate.
७ देवेंद्रस्तव
८ गणिविद्या
९ महाप्रत्याख्यान १० वीरस्तव
व्यादि
( पंचोपांग )
२५८३३
श्लो. १९५५ )
४ दशाश्रुत
५ महानिशीथ
( छ छेदमानो
( पिंड नियुक्ति तथा 'ओघनियुक्तिने निर्युक्ति
कल्प हाल मळतो नथी ओ साथै टांकी छे )।
१ आवश्यक ४ आचारांग ६ वृहत्कल्प | २शवैकालिक/५ सूत्रकृदंग ७ व्यवहार |३ उत्तराध्ययन|
८ दशाश्रुत
श्रीस पयन्ना.
( श्लो. ७१०५ ) ( लो. ५४२९ )
बीजीगणत्री ए.
१ अजीवकल्प
२ गच्छाचार
३ मरणसमाधि
४ सिद्धप्राभृत
५ तीर्थोद्वार
६ आराधनापताका
७ द्वीपसागरप्रज्ञप्ति
८ ज्योतिष्करंडक
९ अंगविद्या
१० तिथिप्रकीर्णक
सूळ ५
१ आवश्यक
२ दशकालिक
३ उत्तराध्ययन
४ नंदि
५ अनुयोगद्वार
पंच.
(श्लो. १५५९२ )
बार नियुक्ति.
छूटक ८
१ कल्पसूत्र
२ जीतकल्प
श्यतिजीतकल्प
४ श्राद्धजीतकल्प
५ पाक्षिक
६ क्षामणा
७ वंदित्तु
८ ऋषिभाषित
लो. ३३४१ )
श्री जीगणत्रीए.
१ पिंडनियुक्ति
२ सारावली
३ पर्वताराधना
४ जीवविभाक्त
५ कवच
६ योनिप्राभृत
७ अंगचूलिया
८ बंगचूलिया
९ वृद्धचतुःशरण
एक महाभाष्य.
विशेषावश्यक ४००० | ( श्लो. कुल ११०४७५
१० जंबूपयन्नो
श्लो. २९२५ ) कुल २०६९२.
९ कल्पसूत्र | १० पिंडनियुक्ति | ( सूर्यप्रज्ञप्ति तथा (कुले श्लो. ११ ओघनियुक्ति ऋषिभाषितनी नि. ८७३५) १२ संसक्तनियुक्ति युक्ति मळती नथी.
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________________
(७३)
सूचना.
आ रीते आपणा पिस्तालीश आगम तथा श्रीश अवशिष्ट आगम तथा नव नियुक्तिओ मळीने एकंदर चोराशी आगमो आपणा जैनधर्मरूप महाप्रासादना स्तंभरूपे विराजमान रहेला छे..
ए चोराशी आगमोना मूळनी एकंदर श्लोकसंख्या सुमारे एक लाख दश हजार ना लगभग थाय छे. तेथी ए चोराशी आगमोनो उतारो लेवो होय तो दर हजारे पांच रुपिया लखामणी अने दश रुपिया शोधामणीना गणतां कुले रुपीया १६५० खरच आवे तथा कोई दुर्लभ्य आगमनी शोध खोल माटे रु. ३५० वधु खरचवा योग्य गणिये तो पण कुले बे हजार रुपियानी रकममाथी आ काम पार पाडी शकाय तेम छे. माटे आवा काममा पोताना द्रव्यनो सदुपयोग करवा कोई पण आगमभक्त श्रद्धालु सद्गृहस्थ खरी खतथी बहार पड़े तो थोडा खरचे मोटुं काम करी शके तेम छे.
___ अमे आशा राखिये छोये के अमारी आ नम्र सूचनाथी कोई पण महाशय जागृत थईन जाते अथवा बीजाने समजावीने आ टुका खरचर्नु उपयोगी काम अवश्य हाथ धरी संपूर्ण करी उत्तम पुण्यनो भागीदार थशेज.
विशेष सूचना.
शिवाय ए स्तंभरूपी आगमोना टेकारूपे रहेला भाष्य-चूर्णि-वृत्ति-अवचरि-दीपिकाटिप्पन वगेरे तेमनी व्याख्याना आप्तग्रंथो साथे गणिए तो आखा जिनप्रवचननी श्लोकसंख्या सुमारे चौदपंदर लाखना लगभग थवा जाय छे. आ आखा जिनप्रवचननो एक स्थळे संग्रह करवा माटे तेनी अतिशुद्ध एक नकल उतराववी हाये तो अपरना हिसाबे पंदरलाख श्लोकना रुपिया साडीबावीस हजार थाय छे अने ते साथे तेमाना दुर्लभ्य ग्रंथोनी शोध खोल करवा माटे जूदा जूदा स्थळे माणसो मोकलावी पत्तो मेळवी प्रतो मेळवता जे खरच लागे ते माई रुपिया सातआठ हजारनी रकम उमेरिए तो
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________________
(७४) कुले खरच रुपीया त्रीश हजार लागे छे. जो आटलुं काम कोई धनाढ्य शेठ अथवा गर्भश्रीमंत महाशय पार पाडवा इच्छे तो ते पण कोई रीते दुष्कर के दुस्साध्य नथी कारण के आपणी जैनकोममां द्रव्य खरचनार उदार पुरुषोनो कशो टोटो नथी, पण तेमचें लक्ष्य आवी बाबतोपर खेचावू जोईये. .
श्री जैन श्वेतांबर कॉन्फरन्स ऑफिस. । मोहनलाल चुनीलाल दलाल.
चंपागल्ली-मुंबई, ता. १-२-०७ ) आसिस्टंट सेक्रेटरी,
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________________
जैनन्याय.
नामा
श्लोक. कर्ता. रच्या- क्या छ ?
वर्ग १ लो.
मोटा ग्रंथो. अनेकांतजयपताका.
। ३५०० हरिभद्रसूरि
वृत्ति
८२५०
कृ., पा.४ खं, डेन. कृ., पा.१. वृ., पा. ३, को.
-
२०००
-
-
-
टिप्पन अनेकांतवादप्रवेश. A
मुनिचंद्र हरिभद्रसूरि
वृ., पा. ४-५भा. अ., १, अ.२. अ.२
अवचूरि
पत्र १७
-
-
उत्पादसिधिप्रकरण. B
चंद्रसेन C
२०७S. K.
A अमदावादनी चंचलवाना भंडारनी टीपमां " अनेकांतमतप्रवेशावचूरि". एम लख्युं छे तेथी वखते आ अंथने तेवा नामथी पण ओळखवामां आवतो हशे.
B आ ग्रंथ घणो सरस छतां ते दुर्लभ्य छे. ते फक्त खंबातमां शांतिनाथना ताड. पत्रषाला. जूना भंडारमा छे. परंतु ते भंडार हालमां नगीन कमाना दीकराओना कबजे
अने तेओ ते भंडार बनता लगण कोईने बतायता नथी ए घणी अफसोसनी वात छे. आवा. उत्तम योनी ताइपत्र पर रहेली दुर्लभ्य प्रतोना साथी पहेला उतारा करावी लेवानी आवश्यकता छे.
__ आ अंथ सटीक छे. तेना आदि तथा अंतना श्लोको पीटर्सनना त्रीजा रिपोर्टमां पेज २०९. मां मौजुद छे. मूळप्रथना आदिश्लोकनो अर्धभाग आ रीते त्यां आप्यो छ:-- यस्योत्पादव्यय-- भोव्य-युक्तवस्तूपदेशतः ....
C चंद्रसेनसार प्रद्युम्मसूरिना शिष्य हता तेमणे टीकामां ते गुरुना माटे आ रीते उल्लेख को छश्रीमांश्चंद्रकुलेभयद्गुणनिधि प्रद्युम्नसरिः प्रभु-बंधु यस्य स सिद्धहेमविधये श्रीहेमसूरिपिंधिः ॥ आ उपरथी समजाय छे के ए प्रद्युम्नसूरि हेमसूरिना भाई थता इता.
-
.
-
.-
..
-
""amanna
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७२
जैनन्याय.
रच्या
नाम.
श्लोक.
कती.
क्यां छ?
चंद्रसेन
वृत्ति तत्वार्थ सूत्र.A भाग्य B
उमास्वातिवा
१२०७ S. H. .
वृ., मुद्रित. वृ., पा. ३-४ को.
मुद्रित. वृ., पा. ३-४ ली.
-
-
वृत्ति
१८२८२
-
-
-
वृत्ति
D
२१४२
सिद्धर्षिक यशोभद्रा हरिभद्र G यशोविजय
-
लघुवृत्ति F
डेक्कन रिपोर्ट पेज
तर्कभाषा
पा. ४-५ खं.Gov.
6.
___A आ सूत्रने तत्वार्थाधिगम तथा मोक्षशास्त्र पण कडेवामां आवे छे. ए सूत्रो श्वेतांबर तथा दिगंबर बन्ने मान्य करे छ, तेथी एनाऊपर बन्ने पक्षोना आचार्योए जूदी जूदी व्याख्या करी छे. आ कारणथी आ जगोए एनी श्वेतांबराचार्यकृत व्याख्याओ नोंधी छे अने आना चोथा वर्गमा दिगंबरकृत व्याख्याओ नोंधवामां आवशे.
B आ भाष्यना कर्ता उमास्वातिवाचक पोतेज छे एम एनी टीकाना आयतनुं अवलोकन करतां जणाय छे. पाटणनी एक टीपमां तत्वार्थनी नागरवाचककृत एक वृत्ति श्लो. २८९० नी नोंधी छे, पण ते अमारा अनुमान प्रमाणे भाष्यज होवू जोईये. कारण के भाष्यनी प्रांते ते नागरवाचके रच्यु छ एम लख्यु छ अने नागरवाचक ते खुद्द उमारवातिनुं बीजू नामज छे. आ बाबतनी खातरी करवी होय तेणे पीटर्सनना श्रीजा रिपोर्टमां पेज ८३ थी ८४ मां नोंधेलो तत्वार्थ वृत्तिनो प्रांतनो उल्लेख यांची जोवो. ___C आ सिद्धर्षि ते दिनगणिशिष्य सिंहसूरि तच्छिध्य भास्वामिना शिष्य छे.
D आ वृत्ति फक्त पाटणनी पांचमी टीपमा नोंधाइ छ एटले ते दुर्लभ्य जेवी छे.
E आ यशोभद्रसरि ते धर्मघोषसूरिना शिष्य होवा जोईये एम अमारुं धारयु छे, अने पीटर्सनना पेला रिपोर्टना ७६ मां पेजमा प्रत्याख्यानस्वरूप नामना ग्रंथनी प्रांतगाथामां सं. ११८२ मां ते ग्रंथ यशोभद्रसूरिए रच्यो छे एम जणाव्यु छे ते यशोभद्र ते आज यशोभद्र छे एम अमाझं अनुमान छे पण चौकस निर्णय पुस्तक जोयायीज थई शके तेम छे.
F आ लघुवृत्ति फक्त डेक्कन कॉलेजमां मळी आवी छे अने ते डेक्कन कॉलेजना रिपोमां पेज १४५ मां नंबर ३६९ मां नोधेल छे. माटे ए ग्रंथनी पण नकल उतारवानी खास जरूर छे.
G आ हरिभद्रसूरि ते पहेला हरिभद्रसूरि छे के बीजा हरिभद्रसूरि छे ते नकी करवानी खास
I
damani
भगत्य छे.
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नंबर.
नाम.
६ द्रव्यानुयोगव्याख्या. A
द्रव्यालंकारतर्क C
の
८ नयचक्रवाल E
जैनन्याय.
श्लोक
कर्त्ता.
पत्र ४५ भोजपंडित B
पं. रामचंद्र गु
णचंद्र D मलवादि
४००
रख्यानो सं.
क्या छे ?
अ. १.
यू.
अ. १.
७३
A आ ग्रंथ अमदावादना डेलाना भंडारनी टीपमा नौघायलो छे माटे ते दुर्लभ्य होवाथी तेनी नकल करावी लेवानी खास जरूर छे.
B भोजपंडित वेतांबर छे के दिगंबर छे तेमज ते क्यारे रचेल छे ते वगेरे हकीकत ग्रंथ जोयाथी मालम पडे तेम छे.
C आ ग्रंथ बृहद्विष्पनिकामां नोंघेल छे छतां ते हजु सूधी अमने उपलब्ध थयो नथी. ग्रंथना नामपरथीज ते बहु उपयोगी अने सरस इसे एम जणाय छ माटे एवा ग्रंथनो विशेष पत्तो मेळववानी खास जरूरीयात छे.
D पं. रामचंद्र ते अमारा अनुमानप्रमाणे हेमाचार्यना शिष्य रामचंद्र गाणे होवा जोईये केमके तेमना रचेला जैन नाटक ग्रंथोमां तेमणे पं.ना इलकावथीज पोताने ओळखावेल हे तेथी वृहद्धिपनिकाकारे तेज इलका ओळखाव्या छे. अने तेमना साथै गुणचंद्र नाम छे ते गुणचंद्रनामना वे आचार्य थया छे तेमांना बीजा होवा जोईये, पहेला गुण चंद्रसूरिए सं. १९१९ मां प्राकृत वीरचरित्र रचेल छे, एट ते तो हेमाच नी पूर्वे थई गया छे, पण बीजा गुणचंद्रसूरि के जेमणे हैमविभ्रमकार टीका रची छे ते आ गुणचंद्र छे. अने ते रामचंद्रगणिना संघाती होवाथी वखते देमाचार्यना शिष्य होय तो पण होय, छतां चोकस निर्णय ग्रंथ जोयाथी थई शके.
E नयचक्रवालने हुंकामां नयचकना नामे पण ओळखत्रामां आवे छे. तेना बार विभाग दोवाथी तेने " द्वादशार " एटले चार आरकवालुं एवं विशेषण पण अपाय छे. ए ग्रंथनुं मूळ केटला श्लोक छे ते जाणवामां नथी आव्युं माटे जे कोई विद्वान् मुनिमहाराजना पास ते मंथ होय तेमणे ते हकीकत अमने अवश्य जणाववा कृपा करवी एवी तेमने नम्र विनंति करवामां आवे छे.
' मलवादि आचार्य धीरनिर्वाणथी ८८४ वर्षे एटले के विक्रम सं. ४१४ मां पद्मचरित्र रच्युं छे एम प्रभावक चरित्रमां कहे छे एवी नॉध पीटर्सनना चोथा रिपोर्टमां ते रिपोर्टना मध्य भागमां पेज त्रीजामां छे. मल्लवादिए सम्मतिसूत्रपर टीका रचेली छे एवो बृहटिप्पनिकामां उल्लेख छे पण ते टीका हाल उपलब्ध थती नथी. एमणे बौधाचार्य धर्मोत्तरकृत न्यायबिंदु ऊपर पण टीका एटले के टिप्पन रचेल छे. आ मलवादि आचार्ये राजसभामा बाद करी बौद्धोने इरावी जिनशासननी उन्नति करी तेथी तेओनं नाम आठ महाप्रभावकनी गणत्रीमां मशहूर छे.
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७४
जैनन्याय.
नंबर.
नाम.
श्लोक. १ कर्ता
क्यां
छ?
वृत्ति A
वृ. पा. ली. को. मुं. मुद्रित.
नयचक B
नयरहस्थ
सिद्धर्षि
देवचंद्र ५९१ यशोविजय
हरिभद्र ८८७
पा. ५.
१०८
न्यायप्रवेशकसूत्र.
वृत्ति टिप्पन D
वृ.पा. ४. घृ., पा. २५.
। श्रीचंद्र
A नयचक्रना टीकाकार कोण छे ते रोनी लीबंडीना मंडारमा रहेली प्रतमा जणाववामां आव्यु नयो तेमज वृहटिप्पनिकाकारे' पण तेना कर्मोनू नाम आप्यु नथी. छतां पाटणनी टीपमाथी एवी नोंध मळे छ के तेना का सिद्धर्षि छ. तो आ सिद्धर्षि पूर्वे जीतकल्पसूत्रनी फुटनोटमा जणावेला पांच सिद्धसेन नामना सूरिओमांथी क्या सिद्धर्षि छे ते शोधवानी जरूर छे, तेमाटे विद्वान् मुनिमहाशयोने, विनंति करवामां आवे छे के तेमना पासे जो सदरह टीका भोजुद होय तो तेना अंतमां तेना का माटे जे कंई प्रशस्ति लेख होय तेनी नकल कान्फरन्स ऊपर भोकलावी आपवा महेरबानी करवी.
B आ नयचक्र प्रकरणरत्नाकरना भाग पेलामां छपायल छे, अने ते सूत्ररूपे नहि पण विस्तारित गद्यमां गुजराती भाषामां रचायलुं छे..
C आ देवचंद्र ते खरतरगच्छना देवचंदजी महाराज छे के जेमणे चौविशी रची छे. तेश्रो विक्रमनी अढारमी सदीनी आखरमा विद्यमान हता एवू सांभळयामां आव्यु छे.
D आ टिप्पन फकत वृहटिप्पनिकामां नोधायलं देखाय छे; बीजे स्थळे उपलब्ध थयु नथी. बृहत् टिप्पनिकामां तेनामाटे आगो उल्लेख छ:---
" न्यायप्रवेशकटिप्पनं ११६८ वर्षे श्रीचंद्रीय लोकसंख्या कई आपी नथी. माटे आ ग्रंय .पण जे कोई मुनिमहाशयना जाणवामां के जोयामां आव्यो होय तो तेमणे ते विषे अमने माहिती आपली तथा तेनी लोकसंख्या सूचववी.
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जैनन्याय,
७५
नाम.
लोक.
कर्ता. रच्या
क्या छ ?
पंजिका A ११ न्यायालोक. १२ - न्यायावतार.
१७००
पार्श्वदेव १२०० यशोविजय
सिद्धसेन B १९०० हरिभद्र
सिद्धव्याख्या
११६९ . . ज.
पा, ४ डेक्कन. वृ., पा, १-२. वृ., पा., १., २.
वृत्ति
वृत्ति (बिजी )
वृ., .
.
निक D
टिप्पन
१३. स्थायखंडखाद्य.
९५३ देवभद्रमलधारिपा ., १.-४.-५., ५५०० यशोविजय १५१५ अ. २.S. K. मुद्रित.
यशोविजय पं. आणंदसागरजी.
बायामृततरंगिणी.
A पंजिकानी प्रत खंबातना शांतिनाथना भंडारमा छे. एम पीटर्सनना रिपोर्टमां ते भंडारनी नोंध आपेल छे तेमा देखायछे, तथा तेना आद्यतनो उल्लेख पेला रिपोटमा पेज ८१ मां नं. १२३ मां आपेल छे. जैसलमेरनी हिरालालकृत तथा हसविजयजीकृत टोपमा ए पंजिकानी नोंध छे.
Bआ सिद्धसेन ते सिद्धसेनदिवाकर. होवा जोइये एम अमारूं अनुमान छे. वृहतटिप्पनिकामा एनामाटे आवो उल्लेख छ:
"न्यायावतारसूत्रं सिद्धसेनीयं तद्वृत्तिहरिभद्री सू. ३२ वृ. २०७३"
ए उल्लेखमां तेना मूळना श्लो. ३२ लख्या छे, पण पाटणनी टीपमा तेना श्लोक ९२ आपेला छ तेप्रमाणे अभे इहां तेना ९२ श्लोक नोध्या छे.
C आ वृत्ति वहटिप्पनिकामा तेना कीना नामसाथे नोधी छे पण तेनी श्लोकसंख्या तेमां नोधी नथी, तेम एनी प्रत हजुलगण अमारा जोवामां आवी नथी माटे तेनी श्लोकसंख्या आपी नथी,
D आ सिद्धव्याख्यानिक ते सं ९६२ मां उपमितभवप्रपंचना रचनार तथा उपदेशमालानी टीकाना करनार सिपि छे. केमके उपदेशमालापर बीजी टीका रचनार रत्नप्रभसरिए तेगने " व्याख्यातचूदामणि ' एवं विशेषण आपेल छे. जुवो रिपोर्ट ३ पेज १६८.
मलधारि देवभद्रसरि ते मलधारि हेमचंद्रसारशिष्य श्रीचंद्रसूरिना शिष्य हता. तेमणे श्रीचंद्रसरिकृत लघुसंग्रहणीनी टीका रची छे. तेओ तेरमी सानी शरुआतमां थया होया नोइये.
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जैनन्याय.
-
an
-
नयर. ।
नाम.
श्लोक.
___ कता.
क्या
छ ?
-
--
डेक्कन रि. पेज ४१०
-
पत्र १९ पत्र १०८
उदयप्रभ B गुणरत्न D
डेक्कन. .
पंचविमर्शA १६ प्रमाणग्रंथ
प्रमाणप्रमेयन्याय E १८ प्रमाणमीमांसा F
वृत्ति
| ताडपत्र
जेसलमेर.
हेमाचार्य
वृ.जे..
२५००
वृने. पा. ५ डेक्कन.
A पंचविमर्श ए नाममा वच्चे हेतुपदनो अध्याहार करीए तो एनुं बीजं नाम पंचहेतुविमर्श एवं थइ शके, ए ग्रंथ पण दुर्लभ्य जेवो लागे छे. माटे अवश्य उतारवा योग्य छे.
B उदयप्रभसारै बे यया छे. एक द्वितीय हरिभद्रसूरिना शिष्य विजयसेनसूरिना शिष्य हता. तेमणे वस्तुपाळमंत्रिनी हकीकतनु संघपतिचरित्र अथवा धर्माभ्युदय महाकाव्य रचेल छे. वळी तेमना नामनो एक शिळालेख संवत् १२८७ मां कोतरेलो मळी आव्यो छे. एम विल्सन साहेबे पशियाटिक रीसर्चिसना १६ मां अंकमां पेज ३०९ मां नोध करी छे. बीजा उदयप्रभसार रविप्रभसरिना शिष्य अने मलिषेणसूरिना . गुरु हता. तेमणे प्रवचनसारोद्धारना विषमपद. पर्याय रचेल छे. ए बीजा उदयप्रभ पण चौदमी सदीनी शरुआतमां थएला होवा जोईए, केमके तेमना शिष्य मल्लिषणसूरिए सं. १३४९ मां स्याद्वादमंजरी रची छे.
हवे आ पंचविमर्श कया उदयप्रभे रचेल छे ते संबंधे अमारं अनुमान ए छे के ते मल्लिषे. सरिना गुरु बीजा उदयप्रभ होवा जोईए. छतां चौकस पुरवारी माटे ग्रंथ जोवानी जरूर छे.
C आ नाम अपूर्ण लागे छे. छतां ए पण दुर्लभ्य ग्रंथ छे माटे एमा शुं हकीकत छे ते जाणवा माटे तेनो उतारो लेवानी खास जरूर छे.
D गणरत्नसरि देवसुंदरसूरिना शिष्य हता, तेमणे सं. १४६६ मा क्रियारत्नसमुच्चय रचेल छे. तथा षड्दर्शनसमुच्चयनी टीका पण तेमणे रचेली छे.
E आ ग्रंथतुं नाम पण विचित्र लागे छे. छतां ते जैसलमेरनी बन्ने टीपमा तेज नामे नोंघेल छ, ते साथे तेना कीन नाम के श्लोकसंख्या आपी नथी. तेथी ते संबंधे बीजो कशो खुलासो भयो नथी. पण ए अपूर्व ग्रंथ होवाथी एनी पण नकल उतारवानी खास जरूर छे.
F प्रमाणमीमांसातुं मूळ केटला श्लोकनुं छे ते माटे तेनी प्रत जोवानी जरूर छे, ए ग्रंथ तेनी टीका सहित पन्यासजी श्रीनमिविजयजी महाराज पासे पण छे.
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जैनन्याय.
नाम.
श्लोक
का.
च्या
क्यां छ?
७१२
८०४
प्रमाणसंग्रह A प्रमाणसुंदर B
प्रमालक्ष्यालक्षण २२/ प्रमेयरत्नकोश
३३०० | १६८०
पद्मसुंदर C बुद्धिसागर । चंद्रप्रभF
पा. ४, अ.२ पा. ५. जेसलमेर. वृ पा.१-४-५अ.१
A आ ग्रंथनु नाम फक्त वृहटिप्पनिकामाथी मल्यु छे. एनामाटे त्यां आवो उल्लेख छे:
" प्रमाणसंग्रह प्रकरणं ९ प्रस्तावं जैनं ७१२"
आ उल्लेखपरथी देखाय छे के आ ग्रंथ पण घणो सरस होवो जोईये. तो आवा अपूर्व ग्रंथ माटे विशेष शोध खोल करवा आपणा मुनिमंडळने स्मस विनंति करवामां आवे छे.
B आ ग्रंथ जैनन्यायनो छे के परमतना न्यायपर जैनकृत व्याख्या ग्रंथ छे ए संबंधे निर्णय ते ग्रंथ जोयाथी थइ' शकशे.
Cपद्मसुंदरगाणि नागपुरीय तपागच्छमां थएला छे. तेओ सं. १६१२ थी १६६१ सूची अकबरनी सभामा विद्यमान रहेला छे. तेमना रचेला बीजा ग्रंथ आप्रमाणे छे.. तेमणे सं. १६१५ मां रायमल्लाभ्युदय महाकाव्य रचेल छे. तथा सं. १६२५ मां पार्श्वनाथकाव्य रचेल छे. तथा प्राकृतभाषामा तेमणे जंबूस्वामिकथानक रचेल छ, एम पीटर्सनना चोथा रिपार्टमां तेमना नाम साथे नोंध करी छे.
D आ ग्रंथ पण खास उतारवा योग्य छे. ते जेसलमेरनी बन्ने टीपमा नोंघायल छे.
बुद्धिसागरसरि नवांगवृत्तिकार अभयदेवसरिना गुरु जिनेश्वरसूरिना समकालीन हता, एमणे बुद्धिसागर व्याकरण विक्रम सं. १०८० मां रचेल छे.
F चंद्रप्रभसरि बे थया छे. एक प्रद्युम्नसूरिना शिष्य अने धनेश्वरसूरिना गुरु चंद्रप्रभसूरि थया छ एम उपदेशकंदलिना प्रशस्ति लेखपरथी जणाय छे. अने बीजा जयसिंहसूरिना शिष्य चंद्रप्रभसूरि थया छे के जेमणे सं. ११५८ मां पूर्णिमागच्छनी स्थापना करी. आ बीजा चंद्रप्रभसूरिए दर्शनशुद्धि प्रकरण रच्युं छे. आ प्रमेयरनकोश कया चंद्रप्रभसूरिए रच्यो हशे ते ए ग्रंथनो प्रशस्ति लेख जोयाथी मालम पड़ी शके तेम छे.
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जैनन्याय.
नंबर
नाम.
श्लोक.
का .
क्या है?
२३ युक्तिप्रकाश A २४ युक्तिप्रबोध.
पद्मसागर मेघविजय
| डेक्कन
वृत्ति
कन.
वृ. सुलभ्य
रत्नाकरावतारिका E टिप्पन
रत्नप्रभF
राजशेखरG २१०४ ज्ञानचंद्र H
(पा.१
पा.१
आद्यश्लोकशतार्थ
। पत्र ३१॥
अ. १
____A आ ग्रंथ एना रामपरथी तो न्यायनो हशे एम लागे छे, छतां वखते चर्चाग्रंथ होय तो पण होय ते माटे ते ग्रंथ कोई मुनिमहाशय पासे होय तो तेमणे तेमां शी हकीकत छे ते जणाववा अमारी नम्र विनंति छे.
Bपद्मसागरगणि ते धर्मसागर उपाध्यायना शिष्य हता. तेमणे सं. १६३३ मां नयप्रकाश तथा तेनी वृत्ति रची छे.
C आ ग्रंथ पण तेनी टीकासाथे खास उतारवा योग्य छे. D मेघविजयजी उपाध्याये सं. १७५७ मां हैमशब्दानुशासनपर चंद्रप्रभा नामनी टीका रचेली छे.
E रत्नाकर एटले स्याद्वादरत्नाकर तेमा प्रवेश करवा माटे अवतरण करावनार ते रत्नाकरावतारिका एम एनां नामनो अर्थ छे. | F रत्नप्रभसूरि वे वादिदेवसूरिना शिष्य हता. एमणे सं. १२३८ मा उपदेशमाळानी दोघडी नामनी टीका रची छे.
G राजशेखरसूरि मलधार गच्छना हता. अने ते सं. १४०५ मां हता. एम बुल्लरे नोंध करी छ. एम पीटर्सनना चोथा रिपोर्टमा जणावेल छे. एमणे चोवीश प्रबंध तथा कथाना चोराशी अथः रचेल छे. 1. H ज्ञानचंद्रगणि क्यारे हता ते माटे कंद इतिहास मळ्यो नथी तेथी. आ टिप्पनना अंते रहेला प्रशस्ति लेख जोवाथी ते मालम पड़ी शके तेम छ,
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________________
जैनन्याय.
नबर.
नाम.
श्लोक.
की .
क्यां
छ?
७०००
२६/ चादरत्नाकर A २७ वादिविजय
साधुविजयB २८ शास्त्रवासिमुश्चय
हरिभद्र वृति
स्वोपन्न वृत्ति (स्याद्वादकल्पलता) १३००० यशोविजय (१) षड्दर्शनसमुच्चय हरिभद्र वृत्ति
१२५२ गुणरत्न पृति (बीजी) वृत्ति (श्रीजी) पत्र:२८ विद्यातिलक D अवचरिः (२) षड्दर्शन समुशय २४. राजशेखर E सम्मतितर्क गा.१६८ २१० सिद्धसेनदिवाकर वृत्ति
२९००० प्रद्युम्नशिप्याभ
डेक्कन. पा. ४-५. को. पा. ५, को. डे. पे.२०९ पा.मा. | पा. ५, को.
वृ. बुलभ्य. मुद्रित.' वृपा.१-४.को.मुद्रित. (पा १-४
४२५२
अ.२
पा.३, ली, डेक्कन.
वृ. सुलभ्य.
वृ.
"
__यदेव F
A आ ग्रंथ कोनो रचेल छ, तथा तेमां शी हकीकत छे, ते माटे तेती प्रत जोवानी स्वास
___B साधुविजयगणि क्यारे थया छे ते संबंधे वधु हकीकत मळी नथी, पण तेओ हीरविजयसूरिना पछी थएला छे. एम तेमना नामपरथी जाणो शकाय छे.
C गुणरत्नसूरि माटे प्रमाणग्रंथनी नीचे नोट आपी छे ते जुवो.
D विद्यातिलक ए सोमतिलकसूरिनुं बीजं नाम छे. तेओए. सं. १३८९ मां तीर्थकल्पना अंते हेखें वीरकल्प रच्युं छे. जिनदेवसूरि एमना शिष्य हता.
E राजशेखरगरि माटे रत्नाकरावतारिकाना टिप्पननी लाईनमा तेमना नाम नीचे आपेली नोट जुवो.
F आ अभयदेवसार ते राजगच्छना प्रद्युम्नसूरिना शिष्य हता. आ अभयदेवसरि घणु करीने उत्तराध्ययन वृहदवत्तिकार वादिवेताळ शांतिसूरि के जेओ सं. १०९६ मां नवासी थ्या छ ने जेमणे ते टोकाना प्रांते पोताना बे गुरु नामे सर्वदेवसरि तथा अभयदेवसूरि जणा
छ तेमांना होगा जोईए. अने ए प्रमाणे तेओ विक्रमनी अगीयारमी सदीमां हता एम जणाय छे.
Page #110
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जैन न्याय.
रच्या
नंबर
नाम.
श्लोक
कर्ता.
क्यां छ?
नोर
वृत्ति A
मल्लवादि
वृत्ति
B
डेक्कन.
रेकन.
३
सर्वसिद्धिप्रकरण ও স্থবির वृजेसल,अ.२, डेकन ३२ सिद्धांतरत्न
१००० विनयचंद्र ३३, सिद्धांतरत्नावली E ८५० जिनोदयशिष्य
हेमसूरिनाशिष्य सुबोधमंजरीG
अ.२ वृत्ति
म.२ ३५ स्यावादमंजरी
मल्लिषेण १३४९. सुलभ्य. मुद्रित. स्याद्वादरत्नाकर म
१३००० वादिदेवसूरि वृ.पा.१.२, जे.अ.१
१२को डेकन. A आ वृत्ति वृहटिप्पनिकारे भोकसंख्या साथे नोधी छे, छतां ते दुर्लभ्य यई पड़ी छे, माटे एवा अपूर्व ग्रंथोनो पत्तो लगाडवा माटे आपणा मुनिमहाराजाओए खास लक्ष्य राखq घटे छे.
B आ त्रीजी वृत्ति माटे वृहटिप्पनिकामां आ राते उल्लेख छ:-" सम्मतिवृत्तिरन्यकर्तका." Cआ ग्रंथ न्यायनो छे के व्याकरणनो छे ते जाणवा माटे तेनी प्रत जोवानी खास जरूर छे. D विनयचंद्रसूरए सं. १३२५ मां कल्पनिरुक्त रचेल छे.
E आ ग्रंथना आद्यतनो उल्लेख पीटर्सनना चोथा रिपोर्टमां पाने १२४ मां आपेल छे. ___F जिनोदयसरि खरतरगच्छमा ५४ मां पाटे या छे. तेओ सं.१४१५मा आचार्यपदे आध्या अने स. १४३२ मां स्वर्गवासी थया. तेमना शिष्य हेमसूरि थया अने ते हेमसूरिना शिष्ये आ ग्रंथ करल छे.
G सुबोधमंजरी ए न्यायनो ग्रंथ छे के व्याकरणनो छे के औपदेशिक ग्रंथ छे ते चोकसपणे प्रय जोए मालम पड़े, पण त्यां लगण अमे एने इहां न्यायग्रंथमां नोध्यो छे.
H स्याद्वादरत्नाकर चौरासी हजार श्लोकनो हतो, एम परंपराधी सांभळेल छै, वहटिप्पनिकामां तेना श्लोक ३६००० नोध्या छे. परंतु हालमां तो ते तेर हमारनो अपूर्ण ग्रंथज मळे छे. आ एक खरेखर खेदनी बिना छ के आवा उत्तम ग्रंथ माटे जो पूरी काळजी राखवामां आवी होत तो तेनी आवी दुर्दशा नहि थात. पण ज्यारे अमूल्य ताडपत्रोना भंडार कोईने पण बताव्या वगर लांबा वखत लगण बंध बारणे रखाया हशे त्यारेज आवा उत्तम ग्रंथो नष्टप्राय जेवी स्थितिए पहोंच्या छे. विशेषमा ए जणाक्षु पडे छे के हजू पण जो आपणा लोको सुलभ्य ग्रंथोना उतारा पर उतारा करायता रही अपूर्व पुस्तकोना उद्धार माटे तदन वेदरकार रहेथे तो ए अपूर्व ग्रंथो टुक मुदतमां गुम थई जशे एमां जराए संशय नथी. 1. I वादिदेवसूरि ए नाममां वादि ए विशेषण छे अने देवमरि ए नाम छे. तेओ मुनिचंद्रसरिना पाटे थया छे. तओनो जन्म सं. ११४३ मां, दीक्षा ११५२ मां, सूरिपद ११७४ मां अने स्वर्ग ११२२६ मां थयो छे. एटले तेओ हेमसूरिना समकालीन हता. तेमणे सं. १९८१ मां सिद्धराजनी सभामा दिगंबर कुमुदचंद्रने हरायो हतो. वळी तेमणे सं. १२०४ मां फलोधीमा प्रतिष्ठा करेली छे.
J
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________________
जैनन्याय
नाम.
श्लोक. कर्ताः रच्या- क्या छ ?
वर्ग २ जो.
पा.४ परमानंदसूरिजेसलमेर.
३ ,
नाना ग्रंथो. कंटकोशार.A खंडनमंडन B
जैन न्याय / त्रैषधगोष्टी E
नयप्रकाशF
२५००
८९७
मुनिसुंदर पद्मसागरG
११४५५/ पा. ३. ४.५.म.२
को.
पा. ५ को.
___A कंटकोद्धार एकलो ४८० श्लोकनो छे के केम ते शक पडती बिना छे केमके कोडायना भंडारमा प्रमाणप्रमेयकलिकानी प्रतना अंते ते लखेल छे अने ते श्लोक १५ थी २० नो हशे एम प्रोफेसर,
वजीभाई जणावे छे. : Bआ नाम अचोकस जणाय छे, कारणके आ कई विशेषनाम नथी पण सामान्य नाम के अने ग्रंथर्नु नाम तो खास करीने विशेषनाम ज होवू जोईये.
C परमानंदसूर सं. १२२१ मां विद्यमान हता, ( जुवों पीटर्सनना श्रीजा रिपोर्टना पेज ६९ मा 'आपेलो प्रशस्तिलेख) एमणे गगर्षिकृत कर्मविपाक ग्रंथनी टीका तथा प्रव्रज्याविधान नामे ग्रंथ रचेल. छे. एमनी वंशावळी आ प्रमाणे छे:--
भद्रेश्वरसूरिना शिष्य शांतिसूरि तथा अभयदेवसूरि हता अने ए अभयदेवसरिना शिष्य परमानंदसरि थया. • Dआ नाम पण अचोकसज लखेल छ. जेसलमेरनी टीप करनार हीरालाले कोण जाणे शा कारणे
आवी अचौकस टीप करी छे ते मालम पडतुं नथी. माटे जेसलमेरनी टीप फरीने कोई शोधकना हाथे कराववानी जरूर छे, पण दिलगिरी ए छे के ए भंडारना रक्षको हवे फरीने टीप करवा आपे एम लागतुं नथी.
E आ अंथ न्याय तथा साहित्य बन्नेने लागु पडे तेवो छः F नयप्रकाशने नयप्रकाशस्तवन पण कडेवामां आवे छे, कारण के ते स्तुतिरूप छे. G पद्मसागर उपाध्याय धर्मसागरना शिष्य हता.
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________________
जैनन्याय.
नबर.
नाम.
. | श्लोक.
का.
या
क्या छ ?
पत्र ८
भा.
0
6
...
नयप्रदीप A न्यायतत्व B न्यायाष्टाध्यायी c प्रमाणसार D प्रमाणांतःस्तव F लिंगलिंगिविचार । विप्रवक्त्रमुद्गर श्वेतांबरदर्शनसिद्धि
पत्र २५/
३०० हर्षमुनि E १२०० यशोदेव G
ली.
जेसलमेर.
१५००
I
A नयप्रदीप कोणे रचेल छे ते माटे भावनगरथी खबर मेळववानी छे. B आ नाम पण हीरालाले नोंघेलं छ एटले शक पडतुं छे.
C न्यायाष्टाध्यायी पाटणनी टीपमा जैनकृत जणाी छे एटले तेना भरोसे अमे इहां तेने नोधी छे. छतां शक रहेछे के वखते ते गौतमप्रणीत न्यायसूत्र तो नहि होय, माटे आ पुस्तक जोवानी पण खास जरूर छे.
D प्रमाणसार जैनन्याय ग्रंथ छे के परमतना न्यायपर जैनकृत व्याख्याग्रंथ छे ते संबंधे कई नोधायु नथी एटले ते ग्रंथ जे मुनिमहाशये जोयो होय तेमणे ते हकीकत जणाववानी कृपा करवी.
E हर्षमुनि ए टुंकुं नाम छ माटे हर्षकीर्ति, हर्षभूषण के हर्षवर्द्धन ए त्रण पैका कयु नाम हशे ते तेनी विशेष माहिती मळ्याथी मालम पडे तेम छे.
F जेसलमेरनी बन्ने टीपमा आ नाम नौधेल छे.
G. H. आ नामोपण जेसलमरनी हीरालालनी टीपमां नोंधेला छे, एटले तेमना माटे तथा तिना कर्ताना नाम माटे अने श्लोकसंख्या माटे शक सखवो पडे छे. आ ग्रंथ खरी रीते तो खंडनमंडननो होवाथी ते वर्गमां गणवो घटित छे, पण अमे एमां न्यायनो विशेष भाग हशे एम मानीमे इहां नोध्यो छे.
I आ ग्रंथ पण ऊपरना ग्रंथ मुजब खंडनमंडननोज हशे पण तेमां पण न्यायनो मुख्य भाग हशे एम धारी इहां नो यो छे.
सदर ग्रंथ फक्त वृहट्टिप्पनिकामा नौलो देखाय छे. पण बीजे स्थले ते उपलब्ध थयो नथी.
-
-
a
Am
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________________
नंबर.
नाम.
जैनन्याय.
(श्लोक.
१४ षड्दर्शनदि मात्र विचार A
१५ षड्दर्शनस्वरूप B
१६
षण्मतनाटक C
१७ सप्तनयविवरण D
१८ सप्तभंगीप्रकरण E
१० सर्वज्ञपरीक्षा F
२० स्त्रीनिर्वाणसिद्धि G
२१ स्याद्वादकलिका
२२ स्याद्वादभाषा
२३ हेतुखंड पांडित्य
पत्र ३
पत्र ८
पत्र १०
पत्र ४
कर्त्ता.
४० राजशेखर
शुभ विजय
सुमति साधु
६००
रच्या
नो सं.
वृ. को
क्या छे ?
८३
पा. ३
अ. १
अ. १
जेसलमेर.
डेक्कन.
१२१४ पा. ४
[१६६७ पा. ५
H पं. आनंद सागरजी.
A. B. आबे नानकडा निबंध छे. पेलो निबंध बृटिप्पनिकामां नोंघेल छे. बीजो निबंध कोडायमा छे.
C आ ग्रंथ जैम इहां नोध्यो छे तेम तेने नाटकना विभागमां पण फरीने नोंधवामां आवशे
D. E. सप्तनयविवरण तथा सप्तभंगीप्रकरण कोना रचेल छे ते प्रत जोवाथी मालम पडे.
F सर्वज्ञपरीक्षानी जेसलमेरनी बन्ने टीपमां नोंध छे.
G आ ग्रंथ अने वृहटिप्पनिकामां नोंघेल केवलिभुक्तिस्त्रीमुक्ति प्रकरण के जे शब्दानुशासनकार | शाकटायने करेल छे ते एकज छे के केम ते माटे तेनी प्रत जोवानी जरूर छे.
H आ सुमतिसाधु ते सोमसुंदर सूरिना पाढे थयेल लक्ष्मीसागर सूरिना शिष्य हता. अने ओ विक्रमनी सोलमी सदीना मध्यमां भएला के.
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________________
जैनन्याय.
नंबर. |
श्लोक.
कती.
या
क्यां छ?
___ नाम.
वर्ग ३ जो.
वादस्थळो. अनेकांतव्यवस्थापन A अग्निशीतस्वस्थापनाबाद अपशब्दखंडन
१०० कीर्तिचंद्र B अपशब्दनिराकरण अपौरुषेयदेवनिराकरण D] ५११ यशोदेव ईश्वरनिराकरण एकसमयज्ञानदर्शनवाद F | पत्र ३ गणधरवाद G तमोवाद दृष्टांतदूषण
1 A. C. D. आ णे वादस्थळ वृहटिप्पनिकामा नोंधेला छे तेपरथी एमनी नोंध करी के बाकी उपलब्ध यया नथी. A B कीर्तिचंद्र क्यारे थया छ तेसंबंधी विशेष जाणवामां आव्युं नथी,
E आ यशोदेवसूरि ते सिद्धराजना वखतमा सं, ११८० मा जमणे पाक्षिकसूत्रनी वृत्तिः रची छे ते होवा जोइये, एम अमो धारिये छोये, छतां ग्रंथ मळ्याथी चौकस खातरी थई शके तेम छ.
F आ वाद विशेषावश्यकनी टीकामांथी छुटो ऊतारेल छ एम कोडायवाळा मो. खजीभाई कहे छे के मने याद छे.
G आ वाद पण वखते विशेषावश्यकनी टीकामांथी उद्धरेल होय तो होय.
I
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________________
नंबर
नाम.
जैनन्याय.
श्लोक.
११ नास्तिकनिराकरण
१२ परब्रह्मोत्थापनस्थळ
१३ परहेतुतमोभास्करस्थळ B | पत्र १५
१४ परिणामिवस्तुव्यवस्थापन
८०
१५ पंचदर्शन खंडन
१६ प्रत्यक्षानुमानाधिकप्रमाण निराकरण
११८
| १५ | वेदखंडन
२० वेदवाह्यतानिराकरण E
२१ शब्दनिराकरण F
१७
२४६ | भुवनसुंदर A
पत्र ३
कर्त्ता.
१७ यतिप्रतिष्ठास्थापनस्थळ C पत्र २६
पत्रव्यवस्थापनस्थळ
५१९ यशोदेव
रव्यानो सं
१०० कीर्तिचंद्र हरिभद्रसूरि
क्यां छे ?
लींबडी.
पा. ५ को.
अ. २
ह
वृ.
अजितदेव D ११८५ वृ.
खु.
पा. ५
| डेक्कन.
डेक्कन. जेसल.
८५
A भुवनसुंदरसूरि मुनिसुंदरसूरिना वारे हता.
B आ ग्रंथ जैनकृत छे के केम तेनो चोकस निर्णय ग्रंथ जोयाथी थई राके तेम छे.
C. E आबे स्थळ पण फक्त बृहत् टिप्पनिकामां नोंधायला छे तेपरथो इहां नौध्या के.
D अजितदेवसूरि मुनिचंद्र तथा मानदेवसूरिना शिष्य हृता.
E आ ग्रंथ खास उतारवा योग्य छे केमके ते अपूर्व ग्रंथ छे.
F आ ग्रंथ अने बृहत्टप्पानिकामां नोंधायलो अपशब्दनिराकरण ए एकज छे के केम ति प्रत जोयाथी जणाइ शके तेम छे
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________________
८६
नंबर.
नाम.
२२ षड्दर्शनखंडन
|२३| सर्वशबाद स्थळ. A
२४
| २५
सर्वज्ञव्यवस्थापनावाद B
सर्वज्ञव्यवस्थापनास्थळ
२६ सर्वस्थळ D
२७
१२८|
सर्वार्थनिराकरणस्थळ
संक्षेपेण सर्वसिद्धि F
जेनन्याय.
श्लोक.
पत्र २
कर्ता.
२५० रविप्रभ E
रच्या मो सं.
क्या हे ?
पा. ४
डेक्कन.
को. वृ.
डेक्कन.
| डेक्कन.
पा. ४-५, डेक्कन. सं.
डेक्कन, जे.
A. B. C. D. आ ग्रंथ एकज छे के जूदा जूदा छे ते जाणवा माटे तेमनी प्रतो जोवी
जोईये.
E रविप्रभसूरि उदयप्रम तथा विनयचंद्रना गुरु हता अने तेओ तेरमी सदीनां वचगाळे थया होवा जोइये.
F' आ ग्रंथ माटे जेसलमेरनी हंसविजयजीकृत टीपमां सर्वज्ञसिद्धि एटलुंज नाम लखेल अने ते ताडपत्र ८ नी छे एम नौभ्युं छे. भावनगरनी टीपमां पण तेज नामनी प्रत .
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________________
जैमन्यांच..
नाम.
श्लोक.
___ का.- रच्या
क्या छ ?
वर्ग ४ थो.
शुभचंद्र
वृ. पा.२
दिगम्बरकृत न्यायग्रंथो.
अध्यात्मतरंगिणी टीका २/ अव्याप्तिवाद आप्तमीमांसा A टीका
१२५
डेक्कन.
प्रभादेव समंतभद्र B वसुनंदि अकलंकदेव विद्यानंद
डेक्कन.
भाष्य
डे. मुं. मोरवाडो २.
वृत्ति ( अष्टसाहस्त्री) | ८००० आप्तपरीक्षा
वृत्ति आलापपद्धति
ली. डेक्कन. मुद्रित.
देवसेन
+ आवी निशानीवाला ग्रंथो सुरतना शेठ भगवानदास कल्याणदास के जेआ पिटर्सन साहेबने त्यां नोकरीमा हता, तेमना प्राइव्हेट रीपोर्टमा नोंध्या हता ते परथी मुंबईना दिगम्बर पडित पन्नालालजीये उतारो करेल हतो. ते उतारो अमने मळतां तेपरथी आ ग्रंथो अमे अत्रे नोंध्या छे. परंतु ते ग्रंथो क्या पण उपलब्ध थया नथी, माटे जे जे ग्रंथना नाम आगळ अने तेना स्थळना खानामा + आ चिन्द जोवामां आवे ते ते ग्रंथ दुर्लभ्य छ एम जाणवू, ग्रंथनी तथा कर्तानी माहिती माटे जूदी निशाणीओ करी छे. तो आवा दुर्लभ्य अपूर्व ग्रंथोनी शोधखोल करी दिगंबर सुजनो तेनो पुनरुद्धार करशे एवी अमारी तेमने खास करीने सूचना छे. I. A आतमीमांसा ते गंधहस्तिमहाभाष्यना मूळनी ११५ कारिकाओ छे. अने तेने देवागमस्तोत्र पण कहे छे.
B समंतभद्रस्वामिए तस्वार्थनी वृत्ति रची छे. ते शिवाय युक्त्यनुशासन, रलकरंडक, स्वयंभूस्तोत्र, अने जिनशतक पम तेमणेज स्चेला छे. रलकरंडकनुं अपरनाम उपासकाध्ययन छे.
.
13
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________________
८८
नंबर.
नाम.
६ जिनसत्तालंकार +
७ जीवास्तित्ववाद A
तत्त्वार्थनी टीका ओः
―
गंधहस्ति महाभाष्य B
टीका ( पहेली )
टीका ( बीजी )
(सर्वार्थसिद्धिनात्री)
टीका (त्रीजी )
टीका ( चोथी )
टीका ! (पांचमी ) t
टीका + (छठी )
टीका ( सातमी )
टीका + (आठमी )
टीका + (नवमी)
टीका 1 (दशमी)
जैनन्याय,
श्लोक.
१५०
कर्त्ता.
समंतभद्र
रच्या मोसं
८४००८
समंतभद्र
२४०० प्रभाचंद्र ( तत्वप्रकाशिका ) |
६००० पूज्यपादस्वामी
( देवनंदी)
११००० श्रुतसागर
८०००) धर्मभूषण (न्या
यदीपिका)
३२५० | विबुधसेन
लक्ष्मीदेव
शुभचंद्र
प्रभाचंद्र ( त प्रकाशिका)
योगींद्रदेव ( तत्वप्रकाशिका ) देवीदास
यां छे ?
+
डेक्कन
t
| डेक्कन.
डे. मुं. भोइवाडो २
डे. मथुरा.
डेकन. मुद्रित,
1 आ चिन्ह माटे पाछळपाने अव्यातिवाद उपरनी नोट जुओ.
A आ ग्रंथ डेक्कन कॉलेजना रीपोर्टमां नॉवेल होवाथी ते प्रमाणे तेने अमे इहां नोध्यो के परंतु ते न्यायनीज़ छे के खंडनमंडननो छे ते ग्रंथ जोई नकी करवु जोईये.
B गंधहस्त महाभाष्य ते तत्वार्थनी बृहत्वृत्ति छे अने ते चोराशी इजारनी हती एम परंपराथी सांभळेलुं छे. ते प्रमाणे तेने इहां टांकी छे. परंतु ते वृत्ति हालमां क्यां पण उपलब्ध थती नथी,
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________________
जैनन्याय.
माम.
स्टोक. कर्ता. रसा क्या ?
योगदेव रपिनदि मकलेक शिष्य
डेक्कन.
रीका (अग्यारमी) रीका (धरमी)
(सुखबोधिनी) राजबार्तिक বঙ্গবারানস্কাৰ तत्यानुशासन तस्वदीपक
१३०००
भट्टाकलंक
मुं. भोइवायो
"
५.००
तत्त्वसार
नागचंद्रमुनि ब्राह्मदेव देवसेन A सकलकीत BF बालचंद्र .
डेक्कन
टीका
दीपिका
६००
आ चिन माटे पेज ८७ मां अव्यातिवाद उपरनी नोट जुओ. A दिगम्बर देवसेन अण. यया छ:---
एक देवसेन ते वीरसेनना शिष्य अने अमितगतिना गुरु हता. आ. देवसेनने माटें अमितगतिनी रचेल धर्मपरीक्षाना प्रशस्तिलेखमां नोध छे.
बीजा देवसेन ते विमलसेननाः शिष्य हता अने तेमणे. भावसंग्रह. रचेल. छे. एम. पीटर्सनना पांचमा रिपोर्टमां नोभ्यु छे. । . श्रीजा देवसेन भद्दारक ते रामसैनना शिष्य हता. तेओनो जन्म संवत् ९५१ मां थयो के अने तेमणे सं. ९९. मां दर्शनसार रचेल छे. ते शिवाय तत्वसार अने अर्हत्सार ए अणे प्रय प्राकृतमा तेमणेज रचेला. छे. अने नयचक्र तथा आलापपद्धति संस्कृतमां. रची. छे. वळी तेमणे रचलो धर्मसंग्रह पण संस्कृतप्राकृत हतो एम पिटर्सने नोध्यु छे. । इवे आ ण आचार्यमांथी तत्वतारना करनार देवसेन. ते आ. त्रीजा देवसेन छे, एम चौकसः निर्णय थाय छे.
B आ सकलकीर्ति ते पद्मनंदिना, शिष्य हता. अन तेमणे. ऋषभनाथ चरित्र रचेल छे. एम पिटर्सन रिपोर्ट पाचमामां नोभ्यु छे. तेमना माटे वेबरे एवी. नोंध. करी छे के. तेओ वि. सं. १५२० मा विद्यमान इता.
Page #120
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________________
जैनन्याय.
नंबर,
नाम.
श्लोक.
का .
रख्या
क्या छ ?
नोसं.
डेक्कन
mran--
डेक्कम.
म.२
ताड ७
A
-
।
तत्त्वार्थसार
अमृतचंद्र
डे. को. मुं. भोइवाडोर दीपिका
सकलकीर्ति तत्त्वार्थालंकार
. विद्यानंद श्लोकवार्तिकोद्धतकारिका २५०
स्फोटकवृत्तिः तत्त्वानुशासन
समंतभद्र तर्कशास्त्र
शुभचंद्र तर्कभाषा c
यति मोक्षाकरतर्कदीपिका
वादिसिंह सर्कपरीक्षा
विद्यानंद तर्कवाद
प्रभादेव तकीमत
भाशाधर तत्त्वविनिश्चय
वर्धमानकवि दृष्टिवाद D
पत्र ४२ १८ द्रव्यगुणपर्यायनिरूपण
देवसेन
जेसलमेर. A आ अमृतचंद्रसारिये कुदकुंदाचार्यकृत समयसारपर आत्मख्याति नामनी टीका रची छे, वळी एक दिगम्बर पट्टावळीमां तेओ संवत् ९६२ मां विद्यमान हता, तेमणे प्रवचनसारटीका पचास्तिकायटीका, सत्वार्थसार, पुरुषार्थसिद्धयु अने तत्वदीपिका पण रचेलां छे एम. पीटर्सवना चोया रिपोर्टमा जणाव्युं छ. .
* आ चिन्ह माटे दिगम्बर न्यायनी शरुआतमा अव्यातिवाद उपरनी नोट जुओ.
B आ स्फोटकवृति अमदाया जा चंचलवाना भंडारनी टीपमा नोधाइ छे. ते प्रमाणे तेने अमे इदो नॉधी छे, तेसंबधी विशेष खुलासा पुस्तक जोये मळी शके तेम छे.
C आ तर्कभाषा पाटण नंबर बीजामा ताडपत्र उपर लखेली छ.
D आ ग्रंथ डेक्कन कॉलेजमा छे. ते शिवाय बीजे कोई ठेकाणे जोवामा आयो नयी. तो ते शुं छे. अने ते कोणे रचेल छे तेनी तपास करवी जोईये,
-
Page #121
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________________
जैनन्याय.
नंबर.
नाम.
श्लोक. कर्ताःच्या
क्या छ ?
टे, भा. मथुरा,
डेकन.
धर्मसागर
मुद्रित.
वृ. मुं. गुलालवाडी
१९ (१)मयचक
१८० देवसेन वृत्ति (२) नयचक नयवाद।
प्रभादेव न्यायदीपिका
धर्मभूषण न्यायकुमुदचंद्र A
अकलंकदेव ___ न्यायकुमुदचंद्रोदय
प्रमाचंद्र २४ न्यायविनिश्चयालंकार + ३०००० अकलंकदेव न्यायविनिश्चयवृत्ति
अनंतवीर्य न्यायसदर्थसंग्रह म्यायामृत ।
माशाधर परीक्षामुख | पत्र ४२, माणिक्यनंदि
वृत्ति (प्रमेयरत्नमाला) १५००/ अनंतवीर्य पत्रपरीक्षा प्रमाणप्रेमयकलिकाB
कोडाय.
पत्र५१३
डेक्कन
व. डेक्कन
मुद्रित.
+ आ चिन्ह माटे पेज ८७ मां अध्याप्तिवाद उपरनी नोट जुओ.
A आ ग्रंथ वृहटिप्पनिकामां तेनी वृत्तिसाथे नोंधायो छे. अने तेना माटे त्यां आवो उल्लेख है:न्यायकुमुदचंद्रसूत्रवृत्ती दिगंबरी अकलंकदेवप्रभाचंद्रकृते सू. वृ, १६०००।
B प्रमाणप्रमेय कलिकाना मूळकार कोण छे ते जाणवामां आव्यु नथी.
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________________
जैनन्याय.
नाम.
श्लोक.
कता.
क्यां छ?
वृत्ति
२०००
डे. को.
वृत्ति
नरेंद्रसेन शांतिसूरिA विद्यानंद
वृ. पा.२
३१ प्रमाणनिर्णय * ३२ प्रमाणमीमांसा *
प्रमाणविलास * ३४ प्रमाणदीपिका *
(१) प्रमाणनौका ३६ (२) प्रमाणनौका *
प्रमाणपरीक्षा प्रमितवाद * प्रमेयकमलमार्तण्ड भाषामंजरी
धर्मभूषण प्रमाचंद्र वादिसिंह धीरसेन विद्यानंद
प्रभादेव १२००० प्रभाचंद्र २४००
| महाकलंक
जयपुर
वृ.पा.२-७मुं. भो--
वाडो.
वृति
-
A आ शांतिसूरि तेमना नाम उपरथी ते श्वेताम्बर होवा जोइये. अने आ ग्रंथ सरस होवाया तेना उपर तेमणे आ टीका रची होती जोहये, कारण के श्वेताम्बर आचार्योए अन्यमतिना ग्रंथोपर पण, टीकाओ रचेली छे. आ वृत्तिनी प्रत ताडपत्र उपर लखायेली पाटणमां मोजूद छे. म्पटे तेनो खास करी. उतारो करी लेवानी जरूर छे.
*आ चिन्ह माटे पेज ८७ मां अव्यातिवाद उपरनी नोट जुओ.
Page #123
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________________
जैमन्याय.
नंबर
.
नाम.
श्लोक.
क".
ज्या
क्या है?
४१ युक्तिचिंतामणि ४२ युक्तिवाद ।
युक्त्यनुशासन
सोमदेव A प्रभादेव समंतभद्र विद्यानंद प्रभावंद्र
२७८२
पत्र२
पत्र ६७
ब.२
राजमार्तण्ड पाक्यप्रकारव्याख्या वागविलास B
पादमंजरी ४८ धादिकौशिकमार्तण्डा
विश्वतत्त्वप्रकाश
वादिराज प्रभावंद्र भावसेन धिद्यदेव
मुं. मोरवाडो २
५० पृहत्पचनमस्कार वृत्ति । ५००
लीबडी.
है आ चिन्ह माटे दिगंबरकृत न्यायनी शरुआतमा अव्याप्तिवाद उपरनी नोट जुओ.
| A आ सोमदेवे यशस्तिलक नामे काव्य शके ८८१ एटले विक्रम संवत् १०१६ मा रचेल छ, अने ते देकन कॉलेजमां मौजूद छे. पिटर्सन चोया रिपोर्टमा तेमनी आप्रमाणे वंशावळी लीधी छे. पेहेला देवसंघतिलक तेमना पाटे यशोदेव तेमना पाटे नेमिदेव अने नैमिदेवना पाटे सोमदेव थया छे.
B आ अंय अमदावादना चंचलबाना भंडारनी टीयमा नोध्यो छे. अने ते न्यायनो हशे एम घारीने तेने अमे इहाँ नोंथ्यो छे. परंतु वखते ते साहित्यनो पण होय माटे तेमा शं छे अने ते कोणे रचेल के ते नकी करवा माटे ते प्रत नजरोनजर जोवानी जरूर छे..
Page #124
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________________
जैनन्याय.
रख्यान
नंबर
नाम.
(श्लोक.
।
कसा.
क्यां छे!
नोस.
बृहत्षड्दर्शनसमुच्चय ।
टीका
सप्तमंगीतरंगिणी ५३ संशयिवदनविदारण
सुखबोधार्थमालापद्धति
सिद्धसेन A गुणरत्न B विमलदास शुभचंद्रशिष्य
मुद्रित. अ.२ मुं. भोइवाडो..
१०३१ पत्र १५
देवसेन
+ आ चिन्ह माटे दिगंबर न्यायनी शरुआतमां अध्याप्तिवाद उपरनी नोट जुओ.
A आ सिद्धसेनसरि ते सिद्धसेन दिवाकर छे. सिद्धसेन दिवाकरने श्वेताम्बर तथा दिगंबर बन्ने माने छ. तेमर्नु अपरनाम कुमुदचन्द्र हतुं अने ते नामपरथीज दिगम्बरो तेमने दिगम्पर सरीके माने छे.
}. B आ गुणरत्नसूरि श्वेताम्बर होवा जोइये. कारण के श्वेतांबराचार्य हरिभद्रसूरिकृत षड्दर्शन समुच्चयनी टीका पण गुणरत्नसूरियेज रचेल छे. श्वेताम्बराचार्य गुणरत्न के यया जाणवामां आव्या छे. एक माणिक्यसूरिना शिष्य हता. अने बीजा देवसुंदरसूरिना शिष्य के जेमणे हरिभद्रसूरिकृत षड्दर्शन समुञ्चयनी टीका वि. सं. १४६६ ना अरसामां रची छे. ते प्रमाणे आ सिद्धसेनकृत षडदर्शननी टीका पण तेज गुणरत्नसूरिये रची शेवी जोइये एम अमारुं अनुमान थाय छे. छतां आ टीका कोइ स्थले उपलब्ध थाय तो वे कया समयमा थई छे, अने आ गुणरत्न कोण हता तेनो तपास करी नक्की कर जोइथे.
Page #125
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________________
नंबर.
नाम.
वर्ग ५ मो.
परमतना न्यायग्रथो उपर जना
चार्योंए करेला व्याख्याग्रंथी.
अभावग्रंथव्याख्या A
कंलिटिप्पन
३ कंवलिपंजिका
४ तर्कफक्किका
५) तर्कभाषावार्त्तिक
६ तर्करहस्य दीपिका
स्याभिदु
८ न्यायसारवृत्ति
| श्लोक
जैनन्याय
पत्र १२
कर्त्ता.
मरचंद्रसूरि B
राजशेखर
क्षमाकल्याण C
१३०० शुभविजय
गुणरत्न D
१२९५ | मल्लवादि
२९००
आंचलिक जयसिंह E
C क्षमाकल्याण उपाध्याय ओगणीसमी सदीमां हता.
|रच्या!नो सं.
D गुणरत्नसूरि सं. १४६६ म हता.
E जयसिंहसूरए सं. १४३६ मां उपदेशचिंतामणि रचेल के.
14
क्यां छे ?
९५
डेक्कन रिपोर्ट पेज १२४
पा. १
वृ.
दक्कन.
१६६३ लींबडी.
A आ •याख्या कोणे रचेल छे ते चोकंस जाणवा माटे ग्रंथ जोवानी जरूर छे. '
B नरचंद्रसूरिना शिष्य उदयप्रभसूरिए सं. १२९९ मां उपदेशमाळानी कर्णिका वृत्ति रचीछे मादे
नर-चंद्रसूरि तेरमी सदीना वचगाळे होवा जोइये.
पा.
पा. ४ जे.
वृ] अ.२पा. १राधनपुर
Page #126
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________________
९६
नंबर.
नाम•
न्यायालंकार टिप्पन
महाविद्याविषनावृत्ति
टिप्पन
१११ लक्षणसंग्रह B
१२ सप्तपदार्थी
जैनन्याय
श्लोक,
१००००
२०७०
६५७
६९९
१९००
कर्ता.
अभय तिलक A
भुवनसुंदर
"
रत्नशेखर C
जिनवर्धन D
रव्या नो सं०
क्यांछे ?
'जेसलमेर.
पा. ४
पा. ४ लिंबडी, को.
डेक्कन.
पा. १, खं. अ. २
A. अभयतिलक उपाध्याये सं. १३३२ मां द्वयाश्रयनी टीका रचेली छे.
B आ मंथनुं नाम स्वतंत्र लागे छे, छतां अमे तेने इहां व्याख्याग्रंथमां नोध्यो छे, माटे पुस्तक जोवाथी ते जो स्वतंत्र जैनन्यायनो ग्रंथ जणाय तो तेने जैनन्यायना बीजा वर्गमां नाखवो जोइये.
C रत्नशेखरसूरि १५०२ थी सं. १५१७ सूधीमां हता.
D जिनवर्धनकृत आ ग्रंथ संभावना भंडारमां सं. १५११ मां लखेल छे माटे तेना अगाऊ जिनवर्धन गणि होवा जोईये.
Page #127
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________________
法式长达出七七出七出出出出出出出出出出出出出出出出出出出出出出出出出这
लीस्ट नंबर ३.
00
जैन फिलॉसोफि.
**
**TAXREATER
Page #128
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________________
जैन फिलॉसोफि.
हरिभद्रसूरिकृत ग्रंथो. नाम. श्लोक. कर्ता. गच्या क्या छ ?
नंबर..
१
८२५०
वृ., पा. १-४. वृ. पा. १.
अनेकान्तजयपताका A. वृत्ति , टिप्पन अष्टकसूत्र
कोडाय. जेसल.
२५६
हरिभद्र B स्वोपक्ष मुनिचंद्र हरिभद्र जिनेश्वर हरिभद्र मुनिचंद्र
३३७४॥
वृ. पा. सुसभ्य १०८० वृ.. पा. १-२,को.
इ. पा. २ को. ११७४/ कृ., पा.१-४.कोडाय
उपदेशपद
गा.१०४०
वृत्ति
१४०.
A आ ग्रंथ पूर्व जैन न्यायना पाडामा नोंधायो छे, परंतु आ पाडामां हरिभद्रसूरिए चेला ग्रंथो अनुक्रमवार नोंधवामां आवनार होवाथी एने इहां पण नोंधवामां आवेल छै.
B हरिभद्रसूरि विक्रम संवत् ५८५ मा स्वर्गवासी थया छे. तेओ याकिनी महत्तरा पासे बोध पामेल होवाथी पोवाना नाम साथे " धर्मतो याकिनीमहत्तरासनु , एवं विशेषण जोडे छ, एमणे १४४४ प्रकरणो रच्या हतां एम प्रशस्तिलेखो परथी मालम पडे छे, परंतु दिलगिरीनी बात छे के तेमांना हालमा अमोने मण्याने गांठ्या प्रकरणोज हाथ आव्या छे. हरिभद्रसूरिए तथा यशोविजयजी उपाध्याये रचेला केटलांक प्रकरणो अमदावादमा पंन्यास दयाविमळजी महाराजना भंडारमां मौजूद छे एम सांभळवामां आव्यु छ, हालमां ते भंडार पं. सौभाग्यविमळजी महाराजना हस्तगत छ अने श्रीमान् शेठ मनसुखभाईना भाई जमनाभाई भगुभाई जेबा धार्मिक पुरुषनी देखरेखमा छ, तो तेओ अथवा शेठ जमनाभाई ते भंडार उघडावी तेमांना पुस्तको देखाइवा बाबत अवश्य लक्ष आपशे एवी आशा छे.
___ आ स्त्रमा जूदा जूदा बत्रीश अष्टको छे.
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________________
जैन फिलॉसोफि.
नाम.
श्लोक
कर्ता.
क्या छ ?
वृत्ति ( बीजी) A
बर्द्धमानसूरि B जंबूद्वीप संग्रहणी C गा. ३० हरिभद्र झानादित्य प्रकरण D हरिभद्र दर्शनसत्तरी गा. १५. हरिभद्र अवचूरि
शिवमंडन ७) देवेंद्रनरकेंद्र प्रकरण E हरिभद्र
मुनिचंद्र हरिभद्र
मुनिचंद्र धर्मसंग्रहणी गा. १३९६ । १७५० हरिभद्र
जेसलमेर. सुलभ्य पा.२,P.4.. | पा. ३ कोडाय. पा. ३ डेक्कन पेज २०९
टीका
| डेक्कन.
धर्मबिंदु
घृ., पा., १-३-५.
वृत्ति
वृ., पा.१अ, सुलभ्य वृ.१ पा. मुं.
___A आ वृत्ति जैसलमेरनी बन्ने टीपोमां ताडपत्रपर लखेली तेना कतना नाम साथे नोंधाइ २. पण बाजा कोईपण भंडारमा जोवामां आवी नथी, माटे जरूर तेनो उतारो यवो जोइये. ____B आ वर्द्धमानसूरि ते जिनेश्वररिना गुरु हता ते छे के बीज छे ते पुस्तकनी प्रशस्ति मेळव्याधी मालम पडी शके तेम छे.
C केटलीक टीपोमां एनी ११२ गाथा नोंधाइ छ.
D आ प्रकरण- प्राकृतमा " नामाइस" एवं नाम छे ते परथी क्लेट, वेबर तथा पीटर्सने तेने संस्कृतमा नानाचित्रकना नामे पण नोध्यु छे. अने पाटर्सन रिपोर्ट चोथामां हरिभद्रसरिना नाम नीचे ते तेमणे रचेल छे एम जणाव्युं छे. । E आ प्रकरण डेकन कॉलेजना रिपोर्टमां पेज २०९ मां तेनी वत्ति साथे नोंधल छै.
आ प्रकरण तेना नाम उपरथी ते बहुज सरस लागे छे, पण रिपोर्टमां तेनी पत्रसंख्या के काइ हकीकत जणावेल नथी, फक्त ग्रंथतुं नाम अने कर्ताना नाम मात्र जणाव्या छे. माटे डेक्कन कॉलेजमां रहेला आ अपूर्व प्रकरणनी शोधखोल करी तेनो पतो मेळवी तुरत उतासे करावी लेवानी अत्यंत जरूर छे. हमणा खबर मली छे के ए ग्रंथ पं. आणंदसागरजी पासे पण छे.
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________________
१०.
.
जैन फिलॉसोफि.
नंबर.
नाम.
श्लोक
कर्मा.
रख्या
स्या छ ?
वृ., पा., २-३-४.
पा.४.
हरिभद्र
वृत्ति A ( सूत्रमिश्रा) ११००० मलयगिरि धूर्ताख्यान (प्रा.)
हरिभद्र न्यायप्रवेशकसूत्र. वृत्ति
स्वोपक्ष १२. पंचाशक B
हरिभद्र ___ वृत्ति
अभयदेव प्र. पंचाशक चूर्णि
यशोदेव पंचवस्तुक
हरिभद्र
वृ. पा... । पा. २-५
वृ.पा. २-३-४, को ११२४ वृ. सुखभ्यः १९७२ वृ. पा.१.५.
वृ. पा.२ वृ. पा. ४, कोडाय वृ. पा. २-३. वृ. पा. २-४-५.
वृत्ति
खोपड़
हरिभद्र
१४ पांच सूत्र D । वृत्ति
यतिदिनकृत्य ।
खोपक्ष
हरिभद्र
A.ST, अ. १.
A आ वृत्तिने माटे वृहटिप्पनिकामां आवो उल्लेख छ:-" धर्मसंग्रहणीवृत्तिर्मलयगिरीया सूत्रमिश्रा ११०००-१०५०० प्रत्यंतरे "
B पंचाशक १९ छ एम वृहटिप्पनिकामां नोभ्यु छे.
C आ चूर्णि माटे वृहटिप्पनिकामा “ आग्रपंचाशकचूर्णि: ११७२ वर्षे यशोदेवीया सभावाच्या ३२००" आवो उल्लेख छे.
D वृहटिप्पनिकामा एना माटे चौकस उल्लेख नीचे मुञ्जब छे:
" पांचसूत्रं प्राकृतमुख्यं वृत्तिश्च हारिभद्री स. २१. वृ. ८८. पापप्रतिघातगुणाबीजाधान १ साधुधर्मपरिभावना २ प्रव्रज्याग्रहणविधि ३ प्रव्रज्यापरिपालना ४ प्रव्रज्याफल ५ सूत्ररूपं."
E यतिदिनकृत्य केटला श्लोकनुं छे ते संबंधी निर्णय थयो नथी. अमदावादना खेलाना भंडारनी टीपमां तेना पत्र १५ छ एम नौधेल छे, माटे डेलाना भंडारमांनी प्रत नजरे जोयाधीज तेनी चोकस निर्णय यइ शके तेम छे.
-
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________________
नंबर.
नाम.
१६ योगबिंदु
वृति
१७ योगदृष्टिसमुच्चय
वृत्ति
अवचूरि
१८ योगशतक A गा. १०१
१९ लग्नशुद्धि गा. १२८ B
२० लोकतत्त्वनिर्णय
२१ वीरांगदकथा C
| २२ वेदबाह्यतानिराकरण D
२३ शास्त्रपातसमुचय
लघुवृति
जैन फिलॉसोफि.
श्लोक. कती.
५२० हरिभद्र
स्वोपज्ञ
हरिभद्र
स्वोपश
•
२२३
११७५
४५०. साधुराजगणि
हरिभद्र
१७०
पत्र ८
७०००
""
13
31
影
"
स्वोपज्ञ
रव्यानो सं
क्यों छे !
१०१
वृ. पा. १-४, को.
वृ. पा. १०४.५
पा. १-३, कोडाय
पा. १-३, कोडाय
A S. कोंडाय.
s. K.
पा. ३ S.K. कोडाय
वृ. कोडाय.
अ. २
भा.
(पा. ५ डेक्कन पेज
२०९
A आ शतक फक्त बातमां शांतिनाथजीना भंडारni arenaपर लखेल छे एम पीटर्सनना रिपोर्टमा नोभ्युं छे. से शिवाय बीजे कोइपण स्थळे उपलब्ध थयुं नथी. माटे तेनो उतारो करावी लेवानी जरूर छे.
B आनुं अपरनाम लग्नकुंडलिका पण छे. जुवो रिपोर्ट पेहेलो पेज ८८
C अमदावादना चंचलवाना भंडारमां आ कथा हरिभद्रसूरिए रचेल छे एम नथ्थुं छे. परंतु ते संबंधी बीजो कोई विशेष पुरावो जोवामां आव्यो नथी माटे ते कोण रचीछे ते बाबत नकी करवा साढे तेनी प्रत जोवानी जरूर छे.
D पीटर्सनना पेला रिपोर्टमां पैज १२६ माँ आ ग्रंथना कर्त्ता हरिभद्रसूरि जणान्या छे
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________________
१०२
जैन फिलॉसोफि.
नंबर.
नाम.
श्लोक. कर्ता..
क्यां छे ?
हरिभद्र
वृत्ति (स्याद्वादकल्पलता) १३००० यशोविजय २४ श्रावकधर्मतंत्र A
ভূমি वृत्ति
मानदेव २५ षड्दर्शनसमुञ्चय. ___वृत्ति
गुणरत्न २६ षोडशक
हरिभद्र __ वृत्ति
यशोदेव समरादित्यचरित्र (प्रा) १०००० हरिभद्र ,, टिप्पन
मतिवर्धन सर्वशसिद्धिप्रकरण B ७३० हरिभद्र संबोधप्रकरण
हरिभद्र साधुप्रवचनसारप्रकरण D पत्र ९
हरिभद्र
कोडाय. डेक्कन पेज २०९ डेकन पेज २०९ पा. १.३-४. पा. ३.४. वृ.पा १-३-४ को. वृ. सुलभ्य. पा. ४.५, A.S. A. S. जेसलमेर व. अ. १,GOV.6.
२०५४
अ. २
___A डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां पेज २०९ मां श्रावकधर्मतंत्र नामे प्रेथ तेनी वृत्ति साथै नोंघेल छे. पण ते अमोने अत्यार सूधी कोई पण जगोए उपलब्ध थयो नथी, अजायबनी वात ए छे के त्यां पण तेनी श्लोक संख्या पण लखी नथी. माटे शोधक जनोए गुम थता आवा उपयोगी ग्रंथनी डेक्कन कॉलेजमां शोध खोल करी अगर ते ज्यां होय त्यांथी तेनो पतो मेळवी उतारे करावी लेवो जोइये.
B आ प्रकरण फक्त जेसलमेरनी विजयजी महाराजनी टीपमां नोंघायुं छे, ते शिवाय बीजे कोइपण स्थळे उपलब्ध थयु नथी. माटे जेसलमेरना भंडारमांनी प्रत उपरथी तेनो खास उतारो लेवो जोइये. हमणा स्वबर मळी छे के ते भावनगरमां तथा पं. आनंदसागरजीना पासे पण छे.
C एजें अपरनाम तत्वप्रकाशक छ. डेलाना भंडारमा ते पत्र ८८ नुं छे एम नोंभ्यु छे परंतु ते केटला प्रमाणनुं छे तेनो चोकस निर्णय डेलाना भंडारमांनी प्रत नजरे जोयाथीज थइ शके.
___D आ नाम शक पडतुं लागे छे अने ते फक्त अमदावादना चंचलबाना भंडारनी टीपमा नों धायुं छे. ते शिवाय बीजो कोई विशेष पुरावो जोवामां आव्यो नथी. माटे तेनुं खरं नाम शं छे तेनो निर्णय करवो जोइये. । सूचना:--आ मंथो उपरांत हरिभद्रसूरिए जे सूत्रों उपर टीकाओ रची छे ते जैनागमना लिस्टमा नोधाइ छे.
Page #133
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________________
जैन फिलॉसोफि.
यशोविजयवाचककृत ग्रंथो.
च्या
नबर.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां छ?
ना सं.
अध्यात्मोपनिषत्
यशोविजय A
अध्यात्ममतदलन
छपाय छे. छपाय छ पा. ४. को.मुद्रित पा.५
अध्यात्मसार
....
मध्यात्ममत परीक्षा
वृत्ति
४०००
|पा. ५
यशोविजय स्वोपन्न यशोविजय स्वोपन यशोविजय
उपदेशरहस्य
वृत्ति कर्मप्रकृति टीका ७ गुरुतत्वनिर्णय
कोडाय.
पा. ३ को.
वृत्ति
६८७१
पा. ५, को. पा. ५, को. ঘাষ ৪.
मानबिंदु
A आ यशोविजयगणि ते नयविजयगणिना शिष्य हता अने तेमणे विक्रम सं. १७४२ मां श्रीपाल राजानो गस रचेल छे. तेमणे काशीमां पंडितोने जीतीने सभासमक्ष “न्यायविशारद " तथा " महामहोपाध्याय" मा पद मेळव्यां हता, अने तेमणे सो ग्रंथ रचतां तेओने न्यायाचार्य पद आपवामां आव्यु हतुं.
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________________
१०४
नवर.
नाम.
ज्ञानसार A
वृति
तर्कभाषा B
(११) देवधर्मपरीक्षा
१२ द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका
वृत्ति
१: धर्मपरीक्षा
वृत्ति
नयरहस्य C
नयोपदेश
टीका D
|१६| न्यायालोक
जैन फिलॉसोफि.
लोक.
४००
कर्त्ता.
यशोविजय
देवचंद्र
यशोविजय
""
"
स्वोपज्ञ
यशोविजय
स्वोपज्ञ
यशोविजय
यशोविजय
पत्र ११ स्वोपज्ञ
१२००
यशोविजय
रच्या नो सं.
क्या छ ?
मुद्रित.
अ. १
पा. ४-५, खं. Gov
मुद्रित.
म. १ को.
पा. ३-५
पा. ३ अ १.
पा. ३. अ. १
पा. ५
पा. ३, अ. १
अ. १
पा. ३, Gov
A एम वीस अष्टको छे.
B एने " जैनतर्क भाषा " पण कहे छे.
C आ ग्रंथ फक्त पाटणनी टीपमां नोंथायो छे. माटे आ दुर्लभ्य मंथनो उतारो करावी लेवानी खास जरूर छे.
D आ टीकार्नु नाम नयामृततरंगिणा के अने ते पं. आनंदसागरजी महाराज पाखे पण छे.
Page #135
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________________
जैन फिलॉसोफि.
१०५
नेवर
नाम.
श्लोक.
कता.
क्यां छ?
यशोविजय यशोविजय
का.१०४
स्वोपज्ञ
अ२ S K.मुद्रित मुद्रित. पा. ३ कोडाया खंबात.
न्यायखंखाद्य A प्रतिमाशतक
टीका B प्रतिमास्थापनन्याय भाषारहस्य C (प्रा.)
टीका D २१ मार्गपरिशुद्धि
मुक्ताशक्ति E यतिलक्षण समुश्चय वैराग्यकल्पलता षोडशक वृत्ति
पत्र १०
| कोडाय.
यशोविजय
यशोविजय | पत्र ३२ स्वोपन
यशोविजय यशोविजय
यशोविजय | ६७५० यशोविजय
यशोविजय
यशोविजय पत्र ३२ स्वोपक्ष
२६३
पा. ५, खंबात.
१२००
भावनगर.
सामाचारी प्रकरण F
भावनगर,
वृत्ति
भावनगर.
A एजें बीजं नाम महावीर स्तव पण छे. पीटर्सने खंबातना शान्तिनाथना भंडारनी नोंध लेतां पोताना श्रीजा रिपोर्टमां पेज १९४ मां सदरहू प्रत लख्यानो सं. १७३६ जणावेल छे.
Bपन्यास आमंदसागरजी जगावे छे के आ टीका उपरांत बीजी एक लघुरीका आसरे श्लोक १२०० नी पूनमिया गच्छना आचार्य रचेली छ एम तमना स्मरणमा छे.
C आ. प्रकरण, प्राकृत भाषामां रचायेलुं छे. अने ते खंबातना भंडारमा छे.
D अमदावादना डेलाना भंडारमा आ टीका पत्र ३२ नी नोंघाइ छे.
E आ ग्रंथ ते वैराग्यकल्पलताना प्रथमना वे स्तबक छ एम पं. आणंदसागरजी जणावे छे.. F आ.प्रकरण फक्त भावनगरनी टीपनां तेनी वृत्ति साथे नोवायुं छे.
Page #136
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________________
जैन फिलॉसोफि.
नंबर.
नाम.
नाम.
श्लोक.
कर्ता
क्यां छ?
२८
खंबात.
स्थाद्वादकल्पलता A. १३००० यशोविजय स्तोत्रत्रय B संखेश्वर स्तोत्रका .११२, यशोविजय गोडीपार्श्वस्तोत्र का.१०८ यशोविजय
समीकापार्श्वस्तोत्र का. ९ | यशोविजय २९ स्तोत्रावलि
पत्र ७ यशाविजय
खंबात.
खंषात
अ. १
A हरिभद्रसूरिकृत शामवार्ता समुच्चयना उपर आ टीका रचेली छे.
B आमांत्रण स्तोत्रो छे तेमना नीचे क्रमवार नाम नोध्या छे. आ त्रणे स्तोत्रना काव्य अपूर्व छे. माटे उतारवा लायक छ, आ स्तोत्रनी प्रत यशोविजयजीए स्वहस्तेज लखी होय एम लागे छे..
Page #137
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________________
जैन फिलॉसोफि.
१०७
नबर.
नाम.
श्लोक. कर्ता. ज्या
क्या छ ?
महो० श्रीयशोविजयजी कृत
न मळता दशग्रंथ. A २ छदश्चूडामणिटोका
शानार्णव त्रिसूत्र्यालोक पातंजलकैवल्यपावृत्ति मंगलवाद मार्गशुद्धि पूर्वार्ध
यशोविजय यशोविजय यशोविजय यशोविजय यशोविजय যৰিব यशोविजय यशोविजय यशोविजय यशोविजय
लताद्वय
विधिवाद सिद्धांत तर्क परिष्कार
स्याद्वादरहस्य
___A आ दश ग्रंथो कोन्फरन्स ऑफीस तरफथी प्रगट थता मासिक हरैल्डना सन १९०६ ना एप्रिल मासना अंकमा टाइटल पेजपर नोधाया छे, ते परथी तेमना नामो अमे इहां दर्शाव्या छे. परंतु अत्यंत दिलगिरीनी वात ए छे के, आ उपर जणावेला दश ग्रंथोना नाम जाणवामां आव्या छतां तमांनो एक पण ग्रंथ अत्यार सुधीमा हाथ लाग्यो नथी. तो सुज्ञ मुनि महाराजाओने अमारी नम्र सूचना ए छ के, एमांनो जे जे ग्रंथ तेओश्री पासे होय तो ते अगर ते क्या जगोए मळी शकशे ते जाणवामां आव्युं होय तो ते संबंधी माहिती अमने लखी जणाववा कृपा करवी. उपरांत आवा अत्युपयोगी गुम थता ग्रंथोने प्रकाशमा लाववा तेओए बनतो प्रयास करवो जोइये.
आ रीते अत्यार सुधीमां अमोने उपर अणाव्या मुजब यशोविजयजी उपाध्याये रचेला ग्रंथो कुल ओगणचालीसज हाथ आव्या छे, ते प्रमाणे आ लिस्टमा दाखल कर्या छे. ते शिवाय तेमना रचला केटलांक प्रकरणो विद्यमान होवा छतां हाथ लाग्या नथी. अजायबी ए थाय छे के, ते प्रकरणो घणीज टुक मुदतमां एटले सुमारे अढीसो वर्षना दरमियान गुम थइ गया लागे छे. छतां तेमांना फेटलांक प्रकरणो अमदावादना पंन्यास दयाविमलजी महाराजना भंडारमा छे एम सांभळवामां आव्युं छे तो ते मिहारना रक्षको आ गुम थता ग्रंथोनी पडेली मोटी खूटने कोइपण रीते पूरी पाडी सकल संघना आभारने पात्र थशे एवी अमारी तेमने नम्र प्रार्थना छे.
Page #138
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________________
जैन फिलॉसोफि. श्लोक कर्ता. नव्या क्या छ ? .
नंबर,
नाम.
नाम.
-
कोडायमा अवशेष रहेला
कटकाना नाम.
तत्वविवेक A
यशोविजय
स्याद्वादमंजूषा B ( कूपना दृष्टांत परग्रंथ )
यशोविजय यथोविजय
A तत्वविवेकनु फक्त प्रथम पत्र कोडायमां छे.
B मल्लियेणसूरि रचित स्याद्वादमंजरी उपर यशोविजयनीए आ स्याद्वादमंजूषा रची छे, तेना हाफ्टना थोडाक पाना कोडायमा छे.
C आ ग्रंथy फक्त प्रथम पत्र कोडायमा छे.
Page #139
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________________
जैन फिलॉसोफि. अध्यात्मना ग्रंथो.
का.
नाम.
श्लोक.
या
क्या छ ?
अध्यात्मकल्पद्रुम
वृत्ति
वृत्ति (बीजी) २) अध्यात्मबिंदु
टीका
अध्यात्मकमलमार्तड
४२२ मुनिसुंदर पा. ३-४ कोडाय. ३.०० धनविजय A पा.३.को. डेकन. २७८८ रत्नचंद्रगणि १६७४ पा. ३-४-५ का. ३२ हर्षवर्द्धन B P. 4 अ. २
हर्षवर्द्धन P. 4 अ. १-२, खं. राजमल्ल (दिग) A. S. यशोविजय .पा. ४. को मुद्रित.
अ.१ ७०० जिनदत्त
जेसलमेर. ता. ४९
पा २. । ५५० देवप्रभ (मलधारि)
अध्यात्मसार अध्यात्मदीपिका अध्यात्मगीता D आत्मज्ञान
मात्मावबोध F
A धनविजय गणि सत्तरमी सदीमा होवा जोइए. B आ इपवर्द्धन क्यारे थएला छे ते संबंधी ऐतिहासिक बीना मळी नथो.
C आ ग्रंथ अमदावादना डेलाना भंडारनी टपमा नांधेल छे. ते शिवाय बीज स्थळे उपलब्ध थयो नथी.
D आ ग्रंथ शक पडतो लागे छे. कारण के ते संबंधी कोई पुरावो जोवामां आवतो नथो, अने ते जेसलमेरनी हीरालालकृत टीपमा तेना कर्ताना नाम साथे नोंथल छ. हवे देवचंदजीए अध्यात्म. गीता भाषामा रचली छे अने ते फक्त श्लोक बावनथी त्रेपन जेटलीज छे. ते परथी वखते आ गीता पण भाषामा रचाई हशे एम अनुमान थाय छे. तो ते माषामां रचाई छ के केम ? तथा ते कोणे रची छे ते बारतनी चोकस स्त्रात्री जेसलमेरमांनी तेनी प्रत जोयाथीज थई शके. ___E आ ग्रंथ पाटणना बीजा भंडारमा नोधायो छे अने ते ताडपत्रपर लखेल छे माटे ते खास उतारवा लायक छे.
'आत्मावत्रोध वृहटिप्पनिकामां नोंधेल छ, पण जुलगी ते कोई भंडारमा मळ्यो नथी.
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________________
.
जैन फिलॉसोफि.
नबर.
नामा
श्लोक.. कर्ता.
क्यां छ?
नो सं.
७० | पार्श्वनाग१०४२ पा. २-३.
आत्मानुशासन टीका
ताड१४७
आत्मानुशासन
गुणभद्र A
३१००
400
आनंदसमुच्चय B उपदेशरत्नमाला चारित्रसार चित्तसमाधि प्रकरण D जिनप्रवचनरहस्यकोश शानप्रकाशE शानदीपिका F ज्ञानतरंगिणी
सकलभूषण १६२
(दिग) चामुंडराज C
(दिगं)
(त्रुटक) । ३०२/ अमृतचंद्र गा. ११३
पा. ३-५
पा. २.
पत्र ३६ (ज्ञानभूषण दिग) १५६० पा.५
• A गुणभद्रसरि त्रण थया जेमां बे दिगंवर थया अने एक श्वेतांबर छे. हवे आ ग्रंथकार कया गुणभद्र छे ते ग्रंथ तपाश्याथी मालम पडे छतां अमारा धारवा मुजब ते दिगंबर होषा संभव छ.
B एना माटे फक्त वृहटिप्पनिकामां नीचे मुजब उल्लेख छ:___ "आनंदसमुच्चयोऽध्यात्मशास्रं बहुपकरणमयं ते उपरांत कई माहिती मळी नथी.
Cचामंडराज सं. १०३५ मां इता एम श्रवण बेल्गोलाना लेखमा छ एम पीटर्सनना चौथा रिपोर्टमां नोध्यु छे.
D आ प्रकरण फक्त जेसलमेरनी हीरालाले करेली टीपमा नोंध्युं छे अने ते त्रुटक छे एम जणावल छे. पण ते संबंधी तपास करतां कई पण पुरावो मळतो नथी, ते कोणे रच्यु छ भने तेनुं खरं नाम शु छ ते बाबत नको करवा जैसलमेरना भंडारमांनी तेनी प्रत नजरे जोया बगर खात्री थवी मुश्केल छे. ___E आ ग्रंथ फक्त पाटणना बीजा भंडारनी टीपमा नौधायो छे, अने ते प्राकृतमां रचायेलो छ माटे उतारवा योग्य छे. । F ज्ञानदीपिकाने माटे वृहटिप्पनिकामां " ज्ञानदीपिका पिंडस्थादिभ्यानवाच्या" आ रीते उल्लेख छे, पण ते क्या पण उपलब्ध थई नथी. माटे शोधकजनोए ते कोणे रची छे अने स्यां छे ते बाबत शोधखोल करी तेनी प्रत मेळवी उतारी करावी लेवो जाइये.
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________________
जैन फिलोसोफि.
श्लोक.
कर्ता
ज्या
क्या छ ?
पत्र ३॥
सानार्णव
४००० शुभचंद्र (दिग) पा. ३-५०. २० हानांकुछ
का. २८ तत्वबिदु प्रकरण तत्वामृत
| अ.१ হয়ললাে
१९८६४ सिद्धांतसारB १५७०. पा. ३-४-५, खं. धर्मलक्षण
A.S. S. K. पा.२ धर्मोपदेशामृत १९९ (दिगं)पद्मनंदि। लीवडी. भ्यानसार D
पत्र ६ (जैन) ध्यानदीपिका E पत्र १६ (जैन) ध्यानाविचार निर्वाणकांड पर२
पा. ३ ३० मिश्रेियसाधिगम प्रकरण F| पत्र ३ चंद्रानंद जेसलमेर.
---
--
-
-
-
-
A. पाटणनी बन्ने टीपोमा एनी लोकसंख्या २४९९ आपो छे. B. सिद्धांतसारसूरि तपागच्छना सोमजयसूरिना शिष्य इंद्रनंदिसारिना शिष्य हता.
C धर्मलक्षणमाटे पीटर्सन रिपोर्ट चोथामां तेना आग्रमा "धर्मार्थ क्लिश्यते लोको नच धर्म परीक्षते । कृष्णं नीले सितं रक्तं कीदृशं धर्मलक्षणम् " आ रीते नोंध करी छे.
____D. E. आ बन्ने ग्रंथो अमदावादना डेलाना भंडारनी टीपमा नांधाया है. पण ते संबंधी कई पण ऐतिहासिक बीना जाणवामां आवी नथी. अमारा धारवा प्रमाणे ते जैनाचार्योएज रच्या होवा जोइये. छता ते संबंधी चौकस निर्णय देलाना भंडारमांनी प्रतो जोयाथीज थई शके. __F आ ग्रंथ तेना कऱ्यांना नाम साथै जेसलमेरनी बन्ने टीपमा नोंघायल छ, माटे ते ऊतारवा योग्य छे. परंतु तेना का चंद्रानंद ते कोण हता ते संबंधी कांद खुलासो जाणवामा अवयो उथी, पण तमना नाम उपरथी ते दिगंबर हशे एम लागे छे, छता ते संबंधी तेवो कोई विशेष पुगतो मळ्यों वगैरे निर्णय थवो मुस्केल छे.
16
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११२
नं.
नाम.
३१ परमात्मप्रकाश ( दूहा )
(३२ परमसुखद्वात्रिंशिका
टीकाA
३३ पद्मनंदिपंचविंशतिका
(३४) परमानंद पंचविंशतिका
१३५ प्रबोधसार
३६ पुरुषार्थसिध्युपाय
टीका B
| ३७ बुद्धिसागर
३ | मनःस्थिरीकरण विवरण
३९) योगप्रदीप
४० योगकल्पद्रुम
१४१ योगसार
जैन फिलॉसोफि.
लोक.
३४५
ro
ताड ६५/
पत्र १
४.२
कर्त्ता.
२३००
१२७०
४१५
२०६
योगींद्रदेव
जिनप्रभ
५००
(दिर्ग) यश: कीर्ति
२२७ (विगं ) मृत चंद्र
रिच्यानो सं
(fai.) पद्मनंदि)
संग्रामसिंह
महेंद्रसिंह C
शुभचंद्र
विरूपाक्ष
योगचंद्र D
क्या छे ?
डेक्कन. P. 5.
जेसलमेर.
पा. २
पा. १ लॉबडी.
अ. १
A. S.
पा. ३-५. A. S.
A. S P. 4
पा. ५ डेक्कन.
पा. २
पा. १-३-५.
सृ. पा. १-४
वृ. ३-४ लोंबडी.
A आ टीका फक्त पाटणना वीजा भंडारनी दीपमां नोधी छे पण ते करणे रची छे ते संबंधी हकीकत जाणवामां आवी नथी. छतां ते ताडपत्र पर लखेली होवाथी तेनी नकल करावी लेवानी जरूर छे.
B टीका तेना मूळ साथै पिटर्सनना रिपोर्ट चोथामा नोधी छे. पण ते केटला लोकनी छे, ते संबंधी कई हकीकत आपी नथी. तो ते कोणे रवी हशे अने केटला लोक प्रमाणनी छे त बाबत तपास करी नक्की करवी जोइये.
C आ महेंद्रसिंहसूर ते आंचलिक धर्मघोष सूरिना शिष्य के जेमणे शतपदिका नामनो ग्रंथ विक्रम सं. १२९४ मां रचेल छे, ते छे के भीजा छे त प्रशस्ति जोये मालम पडे तेम छे.
D आयोगचंद्र क्यारे यया हे ते जाणवामां आव्यु नथी.
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________________
24.
नाम.
३२ योगरत्नसमुच्चय A
४३ योगानुशासन B
४४ योगशतक C
४५ योगसंप्रहसार D
४६) लघुरत्नत्रय
टीकrE
४७ समाधि तंत्र
टीका
४८ समाधिशतक
४९ समभावशतक F
130
साम्यग्रतक
जैन फिलॉसोफि.
लोक.
पत्र १२
१५००
गा. १०१ हरिभद्र
गा. ४०
कर्त्ता.
साड६३
दि. कुंदकुंद
पत्र १५४ पर्वत धर्मार्थी
(दिगं) पूज्यपाद
१.२ धर्मघोष
१०४
विजयसिंह
रच्या
नो सं.
क्या छे ?
D एना माटे बृटिप्पनिकामां नीचे मुजब उल्लेख छै:
" योगसंग्रह साराध्यात्मशास्त्रं "
म. १
जेसलमेर
S. K.
वृ.
पा. २
पां २
A. S.
जेसलमेर.
A. S.
वृ.
वृ. पा. ३
११३
A आ ग्रंथ अमदावादना डेलाना भंडारनी दीपनां नोंघायो छे, ते परथी तेने टांक्यो छे. ते तेना नामपरथी योगनो इशे एम लागे छे, छतां वखते वैदकनो पण होइ शके. तो ते वैदकनो छे ते बाबत तपास करी नक्की कर
योगनो छे क
जोइये.
B आ ग्रंथ शक पडतो लागे छे कारण के ते फक्त जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोध्यो छे.
A
अने ते अटक छे एम जणावेल छे, तो ते कोण रच्यो छे तथा तेनो केटलो भाग तुटक छे ते तपासी नक्की करवानी जरूर छे.
C आ ग्रंथ हरिभद्रसूरिकृत ग्रंथोमा नोधायो छे तेज छे.
E आ टीका फक्त पाटणना बीजा भंडारमां ताडपत्रपर लखायेली छे ते अमारा धारवा मुजब दिगंबरकृत छे.
F एना माटे वृहत् टिप्पनिकामां "समभावशतं अंतरंगकथावाच्यं श्रीधर्मघोषसूरिकृतं १०२ आ रीते उल्लेख छे. पन अत्यारसुधी ते कोइपण भंडारमां ऊपलब्ध थयुं नथी.
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________________
प्रश्नपत्रप्रणय
लीस्ट नंबर ४.
-oodeko
जैन फिलॉसोफि.
kkathtakittikkkkkkkkkkkkkkkkksattraktishtikta
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________________
जैन फिलॉसोफि. प्रक्रियाग्रंथो. श्लोक कायाः है
.
नवर.
___ नाम.
क्या ?
वर्ग १ लो.
१९२०
कर्मप्रयो. A (१)कर्मप्रकृति B गा.४१५ ६०. शिवधर्म
चूर्णि D टिप्पनक
मुनिचंद्र वृत्ति( सस्त्र) ८... मलयगिरि
वृत्ति १३००० यथोविजय (२) पंचसंग्रहF
चंद्रर्षिमहत्तर वृत्ति
स्पोपह वृत्ति
मलयगिरि
व, पा. ३ सुलभ्य वृ. पा. २ जे.सं. घृ. जेसल E वृ. पा. ३-४सुलभ्य पा. ३ मु.को.
पा.१-२-३ ली.
A आ मथाळा नीचे कर्मसंबंधी वर्णनना पांच ग्रंथ नोध्या छ. __Bएने प्राकृतमा " कम्मपयडि । कहे छे. ए ग्रंथ कर्मप्रवाद नामना पूर्वमाथी उद्धृत करेल छे एम तेमा जणाव्युं छ. दिगबराम्नायमां नेमिचंद्रसैद्धांतिके रचेली बीजी कर्मप्रकृति आसरे श्लोक अढीसेनी छ अने ते पाटणना नं. ४ तथा ६ वाळा भंडारमा छे.
C शिवशर्मसरि देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणथी पूर्वे यह गया छे. केमके नंदिसूत्रनी स्थविरावळीमा कम्मपय. डिनुं नाम आपेल छे. तेथी ए ग्रंथ अत्यंत प्राचीन छे.
D एमां वेदनादि आठ करण दर्शावेलां छे. | Eजेसलमेरनी चे टीपमा एने विशेषवृत्ति तरीके नोंव्यु छे.
___F पंचसंग्रहमां शतक-सप्ततिका-कषायमाभृत-सत्कर्म अने कर्मप्रकृति ए नामना पांच विभागो छे. | G आ वृत्ति वृहटिप्पनिकामा नोंघी छे पण ते कोई भंडारमा उपलब्ध थइ नथी. एना मादे
ते टिप्पनिकामां नीचे मुजब उल्लेख छ:| "पंचसंग्रहस्य शतक १ सप्ततिका, २ कषायमाभूत, ३ सत्कर्म, ४ कर्मप्रकृति, ५ संग्रहात्मकस्य वृत्तिः सूत्रकारचंद्रर्षिकृता पत्तनविना न."
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________________
११६
नंबर.
नाम.
जैन फिलॉसोफि.
दीपक A
(३) पांच प्राचीनकर्म प्रथ
(१) कर्मविपाक
वृत्ति
टिप्पन
( २ ) कर्मस्तव
भाष्य प्र
वृत्ति
वृत्ति
टिप्पन
लोक.
२५००
गा. ५७/
पत्र १०
१०९०
कर्त्ता.
गा. १६८ गर्गर्षि C
१२२
४२०
२९२
जिनेश्वर शिष्य वामदेव
वच्या
नो सं.
परमानंद D
उदयप्रभ E
गोविंदाचार्य G
हरिभद्र II
उदयप्रभ
नगीनदास
क्योंछे ?
नगीनदास
वृ नगीन. डेक्कन
पा ६
वृ.अ. २
वृ. नगीनदास
पा. २५
वृ. पा. ५ डे. ली. को
पा. २
वृ.
G गोविंदाचार्यना गुरुनुं नाम देवनाग छे.
H पाटणनी टीपमां आ हरिभद्रने जिनदेवना शिष्य लख्या ले..
A आ दीपक ते कोइ दीपकनामनी वृत्ति होवी जोईए.
B आवामदेवसूरिनो वधु इतिहास जाणवा माटे प्रशस्ति जोवानी जरूर छे.
C गर्षिने उपमितिभवप्रपंचानी प्रशस्तिमां सिद्धर्षिए पोताना दीक्षादायक गुरु तरीके जणाव्याः
हवे सिद्धर्षिए ते कथा सं. ९६२ मां रची छे, माटं गर्मर्षि त समयना पूर्वे थया छे.
D परमानंद सूरिनी वंशावळी आप्रमाणे :
C
भद्रेश्वरसूरि - शांतिसूर - अभयदेवसूरि अने परमानंद तेओ कुमारपाळना राज्यमां सं. १२२१ म हता. एम खंबातना नगनिदासना भंडारमा रहेली तिलकसुंदरी अने रत्नचूडनी कथाना पुस्तकमा नष
छे. जुवो रिपोर्ट ३ पेज ६९.
E उदयप्रभसूरिए सं. १२९९ मां उपदेशमाळानी कर्णिकावृत्ति रचेली छे,
F आ भाष्य पाटणना भंडारमां ताडपत्र उपर लखेल छे.
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________________
जैन फिलॉसोफि.
११७
} नंबर,
नाम.
श्लोक
कर्ता. रच्या
क्या छ ? ।
(३) बंधस्वामित्व
वृत्ति (४) षडशीति A
| ५६० | हरिभद्र
जिनवल्लभ
भाष्य
१७२ वृ. जेसल.
वृ. सुलभ्य
पा. ३-५ ११७२ वृ. पा. १
वृ. जेसल. वृ. पा. २-४-५
८५०
वृत्ति वृत्ति (प्रा.)
हरिभद्र रामदेव B मलयगिरि यशोदेव
वृत्ति वृत्ति
१६३०
विवरण
पत्र ३२
मेरुवाचक
अ. २
अवचुरि
उद्धार
| १६००
(५) शतक
डेकन.
भाष्य
|गा. ११९ शिवशर्म | गा. १५
२३८०
चूर्णि वृत्ति
डे. पा. ३ वृ. पा. २-३ जे.अ.२ वृ. पा. ४-५.रे.
३७४०
मलधारि हेमचंद्र
टिप्पन
९७४
उदयप्रभ
अवचरि
पत्र २५ ।
गुणरत्न
पा.४
A पडशीतिनुं बीजं नाम आगमिकवस्तुविचारसार छे.
B रामदेवगणि जिगवल्लभसूरिना शिष्य हता.
Page #148
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________________
जैन फिलॉसोफि.
लोक,
कता.
क्यां छ?
बिनवल्लभ
सार्द्धशतक A भाग्य
५. सुळम्य. पा. ३-५
पत्र ६९
मुनिचंद्र
८५०
चर्णि वृत्ति वृत्ति वृत्ति B
--
ताड१५१
-
टिप्पनक (४) पार नव्यकर्मग्रंथ D ५२२
११७१ वृ. पा. १-३-६ वं. বঙ্গম 0 वृ.पा ३ अ,२
पृ.असल. देवेद्रवरि ॥ मुद्रित. सुलभ्य. स्वोपच कु. पा. १.१.४ को.
सुलभ्य.
वृत्ति F
___A आ सार्द्धशतकनु अपरनाम " सूक्ष्मार्थविचारसार ॥ छे. आ ग्रंथ अमे शतकना पेटामांज नाध्यो छे. तेनु कारण ए के तेना प्रांतमा शतक शब्द जोडायलोज छे एटले तेनो आ पेटा ग्रंथन छ,
B वृहटिप्पनिकामा सार्द्धशतकनी प्राकृतवृत्ति नोंधी छे. ते आ वृति कदाच होय तो होय पण चौकश निर्णय प्रत जीवाथी थह शके.
चक्रेश्वरसूरि बे थया छे. एक सं. ११८७ मां इता. ते बर्द्धमानसूरिना शिष्य इता. अने बाजा चक्रेश्वरसूरि ते तिलकाचार्थना गुरु शिवप्रभसरिना गुरु हता. तेमना गुरुनु नाम धर्मघोषसरि हतु. माटे आ वृत्तिना करनार चक्रेश्वरसूरि माथी कया छे ते प्रतनी प्रशस्ति जोयाथी मालम पडे तिम छ,
D आ पांच नवा कर्मथना नाम कर्मविपाक-कर्मस्तव-बंधस्वामित्व-पडशीति अने शतक छे. आजकाल आ नवा कर्भग्रंथनो प्रचार चालु छे.
E देवेंद्रसूरि सं. १३२६ मा स्वर्गवासी थया छे. F वृत्तिना पांच विभागनी श्लोक संख्या नीचे मुजय छ:--
१ कर्मविपाकवृत्ति १८८२ | २ कर्मस्तववृत्ति ८३० ३ बंध स्वा. भवचार ३८५ ४ षडशीतिवृत्ति २८०० | ५ शतकवृत्ति ४२४० ।
I
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________________
जैन फिलॉसोफि.
नाम.
श्लोक. कर्ता. नव्या
क्या छ ?
२९५८
मुनिशेखर A गुणरत्न कमलसंयम चंद्रषिमहत्तर अभयदेव
पा. ५-६ १४५९ जेसलमेर.
अवचूरि अपचूरि B
कर्मस्तधविवरण | १५० (५) सत्तरि c गा. ९१
भाष्य D चर्णि पत्र९३२ वृत्ति (प्रा.)E | २३०० वृत्ति | ३७८० वृत्ति
| ४१५० टिप्पनक
गा.५४७ अषचूरि F
वृ.पा.४ वृ.अ. २ जेसल..
धृ.पा. २.३.४.५.
चंद्रर्षिमहतर मलयगिरि मुनिशेखर खरतर रामदेव
भावनगर. वृ. जेसलमेर.
गुणरत्न
पा.५-६
A मुनिशेखरसूरिए पनप्रभसूरिकत पार्श्वस्तव उपर अवचरि रचेल छे. एटली हकीकत जाणवामां आवी छे. माटे तेमना संबंधे वधु इतिहास जाणवा माटे आ ग्रंथनो प्रशस्ति लेख जोवानी
__B आ अवचरिनी श्लोकसंख्या पाच कर्मग्रंथ तथा छठी सत्तरिनी अवचूार मेळवीने नोंधी छे.
Cसत्तरि ए प्राकृत नाम छे. संस्कृतमां सप्ततिका नाम छे, एने साये गणतीमा लईए तो छ जूना कर्मग्रंथ थाय छे, अने नवा साथे पण तेज चालु रोल होवाथी नवा कर्मग्रंय पण छ गणाई शके. तेथी सत्तरिने छछो कर्मग्रंथ गणे छे.
D पाटणनी टीपमा आ माध्यमा कर्चा अमयदेव नोध्या छ तो ते कया अभयदेव छे ते जाणवी माटे तेनी प्रत जोवी जोईये.
E आ वृत्ति टिप्पनिकाा नोंधी छे पण ते क्या पण उपलब्ध थती नथी, माटे भावा राचीन ग्रंथनो शोध करवा माटे देरेक जैने ध्यान आप घटे छे. ___F अवचूरिनी लोकसंख्या नवा कर्मग्रंथनी अवचूरिना साये गणाई छ.
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________________
जैन फिलॉसोफि.
नंबर. |
नाम.
श्लोक. कर्ता.
च्या
क्या छ ?
३०००
वृत्ति
-
क्षेत्रसमास. (१) नमिऊण' क्षेत्रसमास गा.. ३७, जिनभद्रगणि पा.२-४ ली. डेक्कन. वृत्ति
सिद्धसूरि ११९२
इ. पा. १-२-५ (देवगुप्तशिष्य)
७८८७ मलयगिरि । वृ. पा. ३. हे. को. (२) नमिऊणसजल'क्षेत्र गा. १२७/ जिनभद्रगणि पा. ३. भा.अ.२ली.खं.
वृत्ति ३२५६ विजयसिंह १२१५ पा. ४.५भाष. वृत्ति
२००० मानंदसरि . पा.५ली.
(जिनेश्वर शिष्य) ३३३. देवानंद १४५५/ पा.५ अ.२
(पद्मप्रभारण्य) वृत्ति
हरिभद्रसूरि व.पा.१.३म.२. जे.डे. (३) नमित्तुधीर क्षेत्रस.DITI. ३४१ श्रीचंद्र
नगीनदास. वृत्ति E १००० देवभद्र
'वृत्ति
1
A आ क्षेत्रसमासने साधारण रीते बृहत् क्षेत्रसमासना नामथी ओळखवामां आवे छ. तेनी आदिमा " नामऊण सनल जलहर" ए प्रथमपद होवाथी अमे तेनी विशेष ओळख करावया नोटे ते नामे इहां नोध्यो छे.
B आ क्षेत्रसमासने लघु क्षेत्रसमासना नामे ओलस्त्रवामां आवे छे. तेना का जिनभद्रगणि छ एम पीटर्सनना पेला रिपोर्टमां पाने २६ मे नोध्यु छे. छतां ते संबंधे तेनी टोकापरथी चोकस निर्णय थई शकसे. आ क्षेत्रसमासनी गाथाओ कोई प्रतमां थोडी वधु तो कोईमां थोडी कमी मळे छ माटे टोकापरथी ते नक्की करवी जोईये, एर्नु आदिपद पण “ नमिऊण सजलजलहर " छे. वली आ ग्रंथने जंबूद्वीपप्रकरण तरीके पण ओलखवामां आवे छे.
C.आ हरिभद्रसूरि याकिनीसूनु छ के बीजा छे ते प्रत जोयाथी जाणीशकाय तेम छे. D एनु आदिपद नमित्त वीर रायलस्थसाहगे".
E आ वृत्ति वृहतीटप्पनिकाकारे वृहतुक्षेत्रसमासनी वृत्ति तरीके. मोधी छ, पण अमाप अनुमाने ते आ क्षेत्रसमासनी होवी जोईये. कारणके मूळकार श्रीचंद्रसरि आ वृत्तिकारना गुरु थाप छे माटे गुरूना अंथपर शिष्ये टीका करी होवी जोईये. छतां चोकस निर्णय ग्रंथ जोये थई शके पण ते ग्रंथ हजुझगण अमने कोई भंडारमा ाथ लाग्यो नथी.
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________________
जैन फिलॉसोफि.
-
नवर.
नाम.
श्लोक.. ___ कर्ताःम्म
क्या ?
(४)पद्मदेवीय क्षेत्रस० A/गा. ६५६ पनदेव B (५) वीरंजय क्षेत्रस०८ २६२, रत्नशेखर D
वृत्ति १६०० स्वोपज्ञ (६) संस्कृत क्षेत्रस. F ५०७/ उमास्वातिवाचक
। २८००
पा.१-३ मुद्रित. पा.१-३-४ सुलभ्यः वृ.पा. ४ अ.१-२ अ.१
___A आ क्षेत्रसमासन आदिपद जणायुं नथी एटले तेने करीना नामे ओळखाववो पड्यो छे. एनी गा. ६५६ छे के श्लोक ६५६ छे ते माटे ग्रंथ तपासवानी जरूर छे.
B पद्मदेवसूरि वे थया छे त्यां एक पद्मदेव मानतुंगसूरिना पाटे विराजनार हता अने बीजा मलधारि नरचंद्रसूरिना वंशमां थया जे श्रीतिलक उपाध्यायना गुरु हता. आ बोजा पद्मदेवसरि सं. १२६१ थी १२९६ ना समयमा हता अने पेला पद्मदेव सं. १२९२ मां हयात इता माटे समकालीन गणी शकाय. ते शिवाय पीटसने पांचमा रिपोर्टमां त्रीजा पद्मदेवसरि लक्ष्मचंद्रगणिना गुरु तरीके जुदा जणाव्या छे, पण अमारा धारवा मुजब तेओ ऊपरना बे पद्मसूरिमांना एक होवा जोईये, कारणके फक्त शिष्यना नामपरथी त्रीजा पद्मदेवसूरि थया होय एम मानी शंकवं मुश्केल छे.
हवे आ ये पद्मदेवमाथी कया पद्मदेवसरिए आ ग्रंथ रच्यो छे ते ते ग्रंथनी प्रशस्ति जोयाधी जणाय तेम छे, माटे ए अंथनो आद्यंत तपासवानी जरूर छे.
Cआ क्षेत्रसमासनु आदिपद " वीरजयसेहरपय ॥ एवं छे. आ क्षेत्रसमास आजकाल लोकोमा विशेष प्रचलित छे.
___D रत्नशेखरसूरिए सं. १४९६ मा अर्थदीपिका नामे षडावश्यकनी वृत्ति रची छे. ___E आ संस्कृत क्षेत्रसमास चार आन्हिकनो छे. पाटणनी टीपमां तेना श्लोक ५०७ लखेला छे, अमदावादनी चंचलयाना भंडारनी टीपमा श्लोक १३२१ आपेला छे अने डेलानी टीपमा ते सटीक जणावीने तेना पत्र ४४ नोंध्यां छे, ते माटे डेलानी प्रत तपाशी चौकशी करवी जोईये छौये. आ क्षेत्रसमासने जंबूद्वीपसमास पण कहे छे.
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जैन फिलोसोफि.
1
--
नबर.
नाम.
श्लोक.
का. ज्या
क्या छ ?
-
.खे.
(७) "सिरिनिलयं " गा.४८९| सोमतिलकB क्षेत्रस.A
वृत्तिल लघुवृत्ति D अवचूरि ३८८ अषचूरि
पानसागर (4)" सिरिवारजिणं"
क्षेत्रस. E गा . ७७
--
पा.४खं.
जीवविचारना ग्रंथो. (१)जीवविचार
वृत्ति
गा. ५१, शांतिसूरि F
रत्नाकरसूरित
मुद्रित. डेक्कन
I
__A आ क्षेत्रसमासर्नु आदिपद " सिरिनिलयं वीरजीणं " एवं छे. आने खंबातनी टीपमा नवो इतक्षेत्रसमास तरीके ओळखवामां आव्यु छ. वृहटिप्पनिकामा एनी गा. ३८९ लखी छे, पण खंबातनी टीपमा ४८९ छे.
B सोमतिलकसरिए सं. १९९४ मां शीलतरंगिणी रची छ. (जैनागम लिस्ट पेज ५६ मांनी नोट जुओ.) | Cआ वृत्ति कोणे रचेल छे ते माटे तेनी प्रत जोवी जोईये ते प्रत कया भंडारमा छे ते तारवणी करतां नोंधतां रही गई छ.
D आ लघुवृत्ति भने अवचरि एकज के के जुदी छे ते तपाशी नक्की करवातुं छे. श्लोकसंख्या जोतां जूदी जणायाथी अमे तेने जूदी नाँधी छे.
E आ क्षेत्रसमासन आदिपद " सिरिवीरजीणं वंदिय" एषु छे. तेनी टीका मळी नथी, पण ते क्या पण होवी जोईये. माटे तेनी शोध करवी जोईये.
F शांतिसूरि माठे जैनागम लिस्ट पेज २४ मां आपेली तेमना नाम नीचेनी नोट जुवो.
G रत्नाकरसूरि सं. १३७० मा हता एम आपणे जाणिये छीये पण डेकनकॉलेजना रिपोर्टमा तमना नाम साथे वाचक पद जाइधुं छे, ते भुलथी जोडायुं लागे छे.
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जैन फिलॉसोफि
१२३
नाम.
लोक.
कता.
क्यां छ?
वृत्ति
डेकन.
ईश्वराचार्य A पा.४ अ.१
मेघनंदB अ.१ वृास
क्षमाकल्याण १८५० म.१ (२)जीवविचार(चीजो) गा. २८ (३)जीवसमास D गा. २६७
पा.३ खं. ली. | ६६२७ परि हेमचंद्रा११६४ पृ.पा.१-४नगीनदास. वृत्ति पत्र २२ शैलाचार्य F अ.२ दंडकना ग्रंथो. देशक G
गा. ३६, गजसा H}
वृत्ति E
मुद्रित
A. ईश्वराचार्य क्यारे थया छे ते जाणवा माटे आ वृत्तिनी प्रशस्ति जोवी जोईये. कारण कि तेमनासंबंधी बीजो कई इतिहास अमने मळी शक्यो नी. वृत्तिनी श्लोकसंख्या पाटणनी टीपमा ३३५ मापेली छे.
B मेघनंद ए नाम शक पडतुं लागे छे, माटे प्रत तपासवानी जरूर रहे छः
C भा जीवविचार कनकॉलेजमा ताडपत्रपर लखेलो छे एम पीटर्सनना पांचमा रिपोर्टपरथी जणायुं छे. ___D जीवसमास प्राचीन ग्रंथ छे तेना का कोण छे ते जणायुं नथी.
आ वृत्ति खंबातना नगीनदासशेठना भंडारमा ताडपत्र ऊपर खुद मलधारि हेमचंद्रसरिना हायनी लखेली मोजूद छ.
F डेलानी चैपमां शैलाचार्य एवं नाम लखेल छे पण अमारा धारवा मुजब ते शीलाचार्य डोवा जोईये. अने जो तेम होय तो ए टीका खास उतारवा योग्य छे.
Gमा ग्रंथने आजकाल दंडक तरीके ओळखवामां आवे छे पण असलमा ए नाम चालु होय एम लागतुं नथी. असलम एन नाम विचारषत्रिंशिका छे. ते उपरांत एने दंडकगर्भित जिनस्तव तरीके पण ओळखवामां आवे छे, परंतु हालमा तेने दंडक तरीकेज ओळखाय छे तथा प्रमे पण दंडक तरीके सेनी नोंध करी छे.
H गजसारमुनि स्यारे.हता ते अणायुं नथी.
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१२४
जैन फिलॉसोफि.
नंबर..
नाम.
लोक. ।
कता.
क्यां छ?
वृत्ति
पत्र १९ रूपचंद्र A
अ.१
अवचूरि महादंडक (अवचूरि) नवतत्वना ग्रंथो. (१)नवतत्व B
वृत्ति
|गा. ५३
ताड.५४
वृत्ति
मुद्रित. अंबप्रसाद C १२२० पा.१-२. कुळमंडन देवेंद्र समयसुंदर अ.२
वृत्ति
वृत्ति
१००
लोंबडी
डेक्कन.
अ.२
विवरण | १३.० अवचूरि
अवचूरि (२) मवतत्वविचार E १२८
हर्षवर्धन साधुरत्नसूरिन
| पा. १-३-४
पा.४ अ.१
A रूपचंद्रमुनि गई सदीमां थया के ते छे के बोजा कोई छे ते प्रत जोयाथी माला परे
तेम छे.
B नवतत्व कोण रच्युं छे ते जाणवामां आव्यु नयी केमके तेना प्रांत कानुं नाम मळतं नथी,
C अंबप्रसाद ए नामना माटे पाटणमा रहेली ताडपंत्रनी प्रत फरी तपाशवी घटे छे. D साधुरत्नसूरिए सं. १४५६ मा यतिजीतकरुपनी टीका रची छे.
E आ ग्रंथ संस्कृतमा छे. अमदावादना डेलाना भंडारनी टीपमा तेनुं नाम नवतत्वविचारसार अ.प्यु छ अने ते पत्र ८ नु नोभ्यु छे.
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जैन फिलॉसोफि.
१२५
नबर.
नाम.
श्लोक. कती.
या
क्या छ ?
सारोद्धार Aगा .८
डेक्कन. (३)नवतत्वगाथा B
देवगुप्त भाग्य .गा.१५३, नवांगीकार अ. वृ. डेक्कन.
भयदेव वृत्ति
यशोदेव ११७४/ वृ. डेक्कन. पा. ३-४ (४)वहनवतत्व D
डेक्कन. संग्रहणीना ग्रंथो. (१)जिनभद्रीय बृहत् ना. ५२० जिनभद्रगणि पा.४ खं.
संग्रहणी E वृत्ति
शालिभद्र F ११३९/ वृ. पा. ३-४.५डेक्कन. वृत्ति
५०००, मलयगिरि वृ. सुलभ्य. वृत्ति G पत्र ४७| जिनवल्लभ जेसलमेर बे.
२५००
A आ नवंतत्वविचारसारोद्धारनी आठ गाथा के अने तेनुं आदिपद " अरहंता भगवता " एवं छे. ते डेकनकॉलेजमा ताडपत्र ऊपर छे.
B" एगविहं सम्मरूई " इत्यादि नवतत्वनी गाथाओ छे.
C देवगुप्तसूरिनु अपरनाम जिनचंद्र छे तेओ उकेशगच्छना हता अने तेमणे सं १०७३ मां पोते रचेला नवपदप्रकरणऊपर " श्रावकानंदी " नामनी वत्ति रची छे,
Dवृहतूनवतत्व फेटली गाथार्नु छे तथा कोणे रचेलु छे ते संबंधी कई पण हकीकत मळती नयी. माटे ए संबंधी डेक्कन कॉलेजमांनी तेनी प्रत तपासवी जोइये छोये.
E आ संग्रहणान आदिपद " निठविय अकम्म" एवं छे.
F शालिभद्रना बदले पीटर्सनना रिपोर्टमां शीलभद्र नोंध्या छ, पण वृहत् टिप्पनिकामां तथा पाटणनी टीपोमां तथा डेलानी टीपमा शालिभद्र नाम मले छे, माटे रिपोर्टमा नामफेर थयुं लागे छ अथवा कदाच तेमना बे नाम पण होय तो होय.
G जिनवल्लभसूरिए करेला स्वतंत्र ग्रंथ मले थे, पण तेमणे करेली वृत्ति कोई पण जाणवामा आवी नथी, माटे आ वस्ति तेमणेज करली छे के केम ते माटे तेनी प्रत फरीने नजरे जोवानी जरूर रहे 2.
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१२६
जैन फिलोसोफि.
श्लोक.
कर्सा.
रच्या
क्यां छ?
-
(२)प्रतिक्रमण संग्रहणी गा. १६९ (३)श्रीचंद्रीय संग्रहणी A/गा. ३१३ श्रीचंद्र
३५०० मलधारि देवभद्र सुलभ्य. अवचूरि १६०० ,
पा. १-३-४ (४)संस्कृत संग्रहणी B पत्र१६ |
भ. २ (५)हारिभद्री जंबूद्वीप गा. १९२ हरिभद्रसूरि | मुद्रित. संग्रहणी
। ६६७ प्रभानंद १३९० पा. २-१-५ (६)हारिभद्री लघुसंग्रहणी गा.३३ हरिभद्र
-
-
मुद्रित.
A आ संग्रहणीनु आदिपद् " नमिडं अरिहंताई " एवं छे. B आ संस्कृत संग्रहणी कोणे रचेली छे ते माटे तेनी प्रत जोवानी जरूर छे.
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जैन फिलॉसोफि.
१२७
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां छे
।
पा. २
गा.२५०
वृ. पा.२-६
वर्ग २ जो.
मोटा ग्रंथो. धम्मसुयप्रकरण A ३२७० प्रवचनसंदोह B
वृत्ति प्रवचनसारोद्धार गा. १६०६ २००० नेमिचंद्र D वृत्ति
१६५०० सिद्धसेन विषमपदपर्याय ३२०२ उदयप्रभE लघुप्रवचनसारोद्धार F पत्र. ४ श्रीचंद्र
३
मुद्रित. १२४२ वृ. पा.१.२-४ को.सु.
वृ. पा. १-२ खं.
भरूच.
A आ नाम प्राकृत छे तेनुं संस्कृत रूप धर्मश्रुत यई शके–पण पाटणनी टीपमा "धमासुयप्रकरण। ना नामे नोध्यु छ माटे तेनु संस्कृतरूप केवु थाय ते ग्रंथ तथा तेनी अंदर हकीकत जोई निर्णय थई शके तेम छे ते कारणे अमे इहां तेने प्राकृत नामथी नोंध्यु छे. | B वहटिप्पनिकामा एने "पवयणसंदोह ॥ एवा प्राकृतनामथीज नोध्यु छे. परंतु तेने अमे इहां संस्कृत नामथी नोंध्युं .
__C प्रवचनसंदोहनी वृत्ति फक्त वृहटिप्पनिकामां लखेली जणाय छे, पण ते अमाय जोवामां हजूलगण. आवी नथी, माटे जे मुनिमहाराज पासे ते ग्रंथ होय तेमणे तेनी लोकसंख्या लखा जणाववी..
____D नेमिचंद्रसूरि त्रण थया छे. एक सर्वदेवसरिना शिष्य अने पृथ्वीचंद्र चरित्रना कर्ता शांतिसूरिना गुरु, बीजा खरतरगच्छनी पट्टावळीमां नोंधेला उद्योतनसरिना गुरु, अने त्रीजा सं. ११२९ मां उत्तराध्ययननी लघुवृत्ति रचनार नेमिचंद्रसरि के जेओ सैद्धांतिकशिरोमणि तरीके ओळखायला छे. आ त्रणेगाथी कथा नेमिचंद्रसरिए आ ग्रंथ रच्यो छे ते माटे एनी टीकामांथी खुलासो मेळववो जोइये.
E उदयप्रभरिए सं. १२९९ मा उपदेशमालानी कर्णिकावृत्ति रची छे. F आ ग्रंथ पं. आनंदसागरजी महाराज पासे पण छे..
I
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________________
जैन फिलॉसोफि.
नाम.
लोक.
कर्ता.
पयां छे?
नो सं.
0
लोकप्रकाश विचारसार A
शास्त्रवार्तासंग्रह ७ स्थानप्रतिद्वार
१७६११ विनयविजय १७०८ सुलभ्य. गा.८९७ प्रद्युम्नसरि B वृ. नगीनदास. पत्र ५४ | शात्याचार्य
भाव.
पा.२
A. विचारसार माटे वृहटिप्पनिकामां आवो उल्लेख छ:--" विचारसारप्रकरणं प्रद्युम्नसूरिकृतं सोपयोगिबहुसंग्रहं गा. ८९७.४ माटे बहु थोडे ठेकाणे हाल मळे छे.
B प्रद्युम्नसार आठ थया छे:--
१ प्रद्युम्नसूरि-ते यशोदेवसूरिना शिष्य अने मानदेवसरिना गुरु हता, मानदेवसूरिना शिष्य विमलचंद्र थया अने तेमना शिष्य उद्योतनसूरि थया. एमणे सर्वदेवसूरिना मार्फत वहगच्छनी स्थापना सं. ९९४ मां करावी माटे उद्योतनसूरिथी पूर्वे चौथी पेहेडीए थएला तेमना दादागुरु प्रद्युम्नसरि सं. ९०० ना लगभग थया होय एम मानीए तो मानी शकाय तेम छे. । २ प्रद्युम्नसूरि--सर्वदेवसूरिना शिष्य. सर्वदेवसरिए सं. ९९४ मां वडगच्छनी स्थापना करी माटे तेमना शिष्य आ प्रद्युम्नहरि सं.१००० ना अरसामा थया गणी शकाय. । ३ प्रद्युम्नसूरि-एओ राजगच्छना हता अने तेओना शिष्य अभयदेवसरि थया के जैमणे सम्मतितर्कनी टीका रची छे. ए अभयदेवसूरिना शिष्य शांतिसूरि थया अने ते संवत् १.९६ मा स्वर्गवासी थया तेपरथी एम अनुमान बांधी शकाय के तेमना दादागुरु सं. २०५० ना अरसामां होवा जोइये.
४ प्रद्युम्नसूरि-ते यशोभद्रसूरिना शिष्य हता. तेमना शिष्य गुणसेन थया, तेमना शिष्य देवचंद्रसार थया अने तेमना शिष्य ते हेमसूरि थया. हेमसूरिना गुरु देवचंद्रसूरिए सं. ११६० मां प्राकृत शांतिचरित्र रचेल छे तो तेमनी चौथी पेहेडीए थराला प्रद्युम्नसूरि सं. ११०० ना लगभग थया मानी शकाय. आ प्रद्युम्नरिए मूळशुद्धिप्रकरण रचलं छे. के जेनुं बीजु नाम स्थानकप्रकरण छ अने तेना ऊपर हेमसूरिना गुरु देवचंद्रसूरिए वृत्ति रचेली छे.
५ प्रद्युम्नसूरि-ते सं. ११५९ मां पूर्णिमापक्षना स्थापनार चंद्रप्रभसूरिना गुरु थया छे. ६ प्रद्युम्नसूरि-ते बुद्धिसागरसरिना शिष्य अने देवचंद्रमरिना गुरु सं. १२९२ मां थएला छे.
७ प्रद्युम् भरि ते सं. १२९४ मां यएला धर्मघोषसरिना शिष्य देवप्रभसरिना शिष्य इता. एटले तेओ सं. १३२५ ना अरसामा थया गणी शकाय. । ८ प्रद्युम्नसूरि ते कनकप्रभसूरिना शिष्य हता तेओए सं. १३२२ मां विवेकमंजर्रानी टीका शोधी छे तथा सं. १३३४ मां शालिभद्र चरित्र शोधेल छे.
आ रीते आ आठ प्रद्युम्नसरिओमांना सातमा देवप्रभसूरिना शिष्य प्रधुम्नसूरिए आ विचारसार प्रकरण रचलु छे. ( जुवो पीटर्सनना रिपोर्ट त्रीजानो पेज २७०)
Cआ ग्रंथy नाम पण अपूर्व जेवू लागे छे छतां तेमांशी बिना छे ते ग्रंय जोयाथी जाणी शकाय माटे पाटणमां ताडपत्रपर रहेला आ ग्रंथनी नकल उतराववी जोइये.
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नंबर.
माम.
३ कर्मादिविचारसार
४ गाथाविचार
वर्ग ३ जो.
संग्रह ग्रंथो.
अनेकशास्त्रलारसमुच्चय A ११-०
अनेकथविचारसंग्रह
पत्र ३९
गाथासहस्री Bi
ग्रंथसारसमुच्चय
जैन फिलॉसोफि.
९) नानाविचारसंग्रह
श्लोक.
निःशेषसिद्धांतविचार D
७०७
कर्त्ता.
समयसुंदर
३४० | कुलभद्र
रच्या नो सं
१२९
क्या छे ?
१६८५ डेक्कन:
अ. १
डेक्कन पेज १७२
जीवा जीवविचारविवरण C ३००० |
पर्यायस्वरूप C
६००
पत्र २०
३६७० | विमलसूरिशप्य चंद्रकीर्ति
A डेक्कन कॉलेजमां ए अंथनी प्रत सं. १४६१ मां लखायली मोजुद छे.
B आ ग्रंथ पीटर्सनना त्रीजा रिपोर्टमां अमदावादना पुस्तकोना आद्यंतना उतारा लेता त्या
नौमो छे
पा. ४
पीटर्सन रिपोर्ट ३मां म.
डेक्कन.
जेसलमेर.
जेसलमेर.
अ. १
नगीनदास.
C.C आ वे ग्रंथ जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोध्या छे अने ते तूटक छे एम जणान्युं छे. अमारा धारवा सुजन पेलो. ग्रंथ जीवविचारनुं ज विवरण होय तो होय माटे तेनी मत जोई नक्की कर जोइये छीये.
D एना ने खंड छे, पेला खंडमां श्लोक २००० छे अने बीजामां श्लोक १६७० छे. आ ग्रंथनी मत सं. १९१२ मां लखेली संत्रातना नगीनदासशेठना भंडारमां मोजुद छे एना अपरनाम “सिद्धांतविचार " तथा सिद्धांतोद्धार एवां. छे. ( जुबा पेलो रिपोर्ट पेज ३२-३३ )
Page #160
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________________
जैनफिलॉसोफि.
नाम. .
श्लोक. }
की.
क्यां छ?
-
-
Anema
११ प्रवचनविचारसार A.
नयकुंजर B पा.१-३ को. पंचसप्तत्यधिकार पत्र ४६
डेक्कन रिपोर्ट पेज ३० पंचास्तिप्रबोधसंबंध
शुभशील डेक्कन. १५) विचाररत्नसंग्रह १४००० जयसोम १६५७/ पीटर्सन रिपोर्ट मां
__ अमदावाद विचाररत्नसार पत्र २३
म. १ विचाररत्नाकर | ९६१० कीर्तिविजयगणि पा. २-३.४.५ को.
विचारसारसंग्रह । ७११३ १८ विचारसारसंग्रह (बीजो) पत्र १८ १९ विचारशतक प त्र ४५| समयसुंदर अ.१
विशेषशतक पत्र ५७ समयसुंदर विविधरत्नाकर
कोडाय. शास्त्रसारसमुद्धार
जेसलमेर. श्रुतविचार D
पा.५
अ..
पत्र
A आ ग्रंथमा जूदा जूदा आळावा संघरी नोंधेला छे.
B नयकुंजर उपाध्याय अढारमी सदीमां इता एम सांभब्युं छे.
C जैसलमेरनी टीपमां हीरालाले आ ग्रंथ "संस्कृतगद्य-तुटक " करीने नोंधेल छे. माटे ते शोर ग्रंथ छे तेनी तपास करवी जाइये.
D आ श्रुतविचार प्राकृतमा छ एम पाटणनी टीपमा नोभ्यु छे.
Page #161
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________________
नबर.
नाम.
२४ षकायस्थितिविचार A
२५ सारसमुपाय
२६| सिद्धांत विचार
२७ सिद्धांतविचार संग्रह
२८ सिद्धांतहुंडी
जैन फिलॉसोफि.
लोक.
२०००
कर्त्ता.
पत्र ८
७२२ समयमाणिक्य
पत्र १६५
| पत्र १२१
रच्या नो सं.
क्यां छे
१११
जेसलमेर
डेक्कच पेज ६५
पा ४
अ. १
पा. ४
A जेसलमेरनी दीपमां शेरालाले आ मंथ नोबेल छे, पण ते कोई मनी वृत्ति छे के केम ते
शक पडती बिना के.
Page #162
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन फिलासोफि.
माम.
श्लोकः कां. च्या. क्या छ ?
पा. ३-४ जे. पा.३ पा. २ जेसलमेर.
म.१
वर्ग ४ थो.
-wesons नाना प्रकरणो. सल्पबहुत्वप्रकरण A ___ अपचूरि २ आनुपूर्वीप्रकरण ३) कर्मसंवैधप्रकरण B
राजहंसशिष्य
देखचद्र कर्मसंवेधभंगप्रकरण क्षुल्लकभवावलीप्रकरणः १०० धर्मशेखरगणि
अवचूरि |६ गुणस्थानकमारोह १३४ रत्नशेखर वृत्ति
१२५०, स्वोपक्ष गंगेयप्रकरण
अवचूरि 10 चरणकरणसूलोत्सरगुणप्रः १९ चतुर्विंशतिजिनपूर्वभवसंख्या पत्र १
जिनेश्वरनामप्रकरण
पा.३
पा.४ सुलभ्य
पा.१-३-४ सुलभ्य
अ.१ डे. पेज २८६ डेक्कन पेज २८७
वृत्ति
A हीरालाले एना कर्ता, अभयदेवसारे लख्या छे, माटे तपाशी नकी करवं जोइये.
B हीरालाले आ ग्रंथ नोध्यो छे, पण तेना नाममा तथा कीना नाममा मजबूत संशय लागे , माटे एनो निर्णय करवा फरीने ते पुस्तक नजरे जोवानी जरूर छे.
Page #163
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________________
जैन फिलॉसोफि.
नाम.
श्लोक.
का .
क्यां छ?
एन४
राधनपुर. मुं.
अ१
वृ. पा. ३-४
क्षानतरंगिणीप्रकरण तस्वविचारप्रकरण A । १२५/ श्रुतसाधु तत्त्वार्थबोधप्रकरण | पत्र १२ दूसमदंडिकाप्रकरण B गा. ९२ विमलप्रभ
अपचूरि दूसमदंडिका (बीजी) Cगा . ११२| योगसारगणि दूसमवुच्छेयदंडिका गा. २०४ दूसमच्छेयदंडिका(पीजी) गा. १७३ देवोत्पत्तिस्वरूपप्रकरण
पा.३
लीबडी.
A आ अंथ शेरालाले नोध्यो छे. करीना नाममां शक पडे छे माटे ते तपासवानी जरूर छे.
B दूसमदंडिकानुं बीजु नाम दूसमगंडिका पण लागे छे केमके केटलीक टीपमां ते नाम नायुं छे. वळी चंचळवाईना भंडारनी टीपमा तो तेनुं नाम " दूसमोद्धार " करीने पण लख्यु छ अने तेना कता विमलप्रभ लख्या छ पण तेनी गा. ४७ जणावेली छे. वृहटिप्पनिकामा एनी गाथा ९२ आपी छे.
C वृहटिप्पनिकामां बे दूसमदंडिका अने बे दूसमविच्छेददंडिका नोंधीने नोंच्यु छे के "द्वितीयास्तु योगसारगणिकृताः ” एटलुज नहीं पण दरेकनी गाथाओ पण जूदी जूदी नोंधी छे ते परथी एम अटकळ बांधी शकाय छे के ते ग्रंथो डबल रचाया होवा जोइये. माटे आ बाबतसर विद्वान् मुनिओए
ध्यान राखी शोध करवी जरूरनी छे.
Page #164
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________________
नाम.
२० पुगलभंगप्रकरण
अवचूरि C
२१ पंचानथीप्रकरण
अवचूरि
पंचनिथप्रकरण E ( बीजुं)
२२ पंचलिंगीप्रकरण F
वृत्ति
लघुवृप्ति
जैन फिलॉसोफि
लोक.
[१७] द्रव्यप्रकाशप्रकरण
A
१८ पदार्थस्थापनासंग्रह प्रकरणमा ११९ वर्द्धमानसूरि B शिष्य चक्रेश्वर
१९ पुगलपरावर्त्तस्वरूप प्रकरण
अवचूरि
कर्त्ता.
पत्र २
पत्र ७ नयविजय D
गा. १०५ | अभयदेव
२६०
यशोविजय
(रच्यानो सं.
गा. १०१ जिनेश्वर
६६०० जिनपति
१३४८ सर्वराज
क्या हे ?
अ. १
लींबडी.
म. १
अ. १
अ. १
अ. १ डेक्कन पेज २१५
पा. २-३-४ सुलभ्य.
पा. ३-५
डेक्कन
पा. ४ लीं.
| पा. १-४ जेसल
पा. ४
A आ ग्रंथ संग्रहणीना सरखो छे.
B आ चक्रेश्वरसूरिना माटे सं. १९८७ मां दश पुस्तक लखवामां आव्या छे. जुवो रिपोर्ट ५ मांनो पेज ५८.
C डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां एने " विवृत्ति" तरीके नोंधी छे.
D आ नयविजयगणी ते यशोविजयजी उपाध्यायना गुरु छे के केम ते प्रत जोयाथी जाणी शकाय तेम छे.
E डेक्कनकॉलेजना रिपोर्टमा पेज ३० मां आ प्रकरण नोंघेल छे, पण कर्त्तना नाममां शक रहे छे माटे तेनी प्रत नजरे तपासवानी जरूर छे.
F' लबडीनी टीपमां एनी गाथा ५२ नोंधी छे.
Page #165
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________________
जैन फिलॉसोफि.
१३५
रच्या
नाम.
श्लोक
|
क्या छ ?
नोस.
अवचूरि
वृत्ति
टिप्पन A
जिनपाल B. पा.१ अ.२ रे. २३ प्रवचनसारप्रकरण C
जसल. २४ बंधोदयप्रकरण
म.१
म.१ २५/ बंधहेतूदयत्रिभंगीप्रकरण हर्षकुल
अ. १ डेकन.
मानंदविजयD . १ डेक्कन. २६ भाषप्रकरण
गा. ३० विजयविमल १६२३ पा. ३ ली. __ अपरि
पत्र ७ स्वोपन मोहनीयबंधप्रकरण पत्र २ मंडलप्रकरण . गा. ९९ विनयकुशल
वृत्ति रलसंचय
पा.३ को. ३० विचारमंजरीप्रकरण पत्र ७ नर्षि
अ. २ राधणपुर ३५ विद्याररसायनप्रकरण E | गा. ८७ महेश्वरसूरि १५७३ नगीनदास. अवचूरि
अ.१
२०
A आ टिप्पन चंचळबाईनी टीपमा पत्र १५९ नु नोंभ्यु छ, पण अमारा धारवा मुजब तेनी आदिमां कोई बीजो ग्रंथ हशे. अने प्रांतमां आ टिप्पन हशे.
B जिनपालगणिए सं. १२९४ मां चर्चरीनी वृत्ति रची छे.
हीरालाले आ ग्रंथ तूटक तरीके नोंधेल छे, माटे ते. तपाशी नक्की करवू जोइये के ते कोणे रचेल छे.
D अमदावादना डेलानी टीपमा एना कर्ता वानरर्षि लख्या छे. F डेलानी टीपमा एनुं नाम " विचारप्रकरण-महेश्वरसूरिकृत " एम करीने नोंभ्यु छ, 19
Page #166
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________________
जैन फिलॉसोफि.
नाम.
श्लोक. कर्ता.
या
क्या छ ?
रसारप्रकरण
अ.१भाव.
पत्र ५, देवचंदजी पत्र ४२] स्वोपन
वृत्ति
अ.१
भरुच.
पत्र ५
भरुच.
गा.१०३
श्रावकप्रतिमाप्रकरण
अवचूरि ३४ श्रावकवक्तव्यताप्रकरण ३५ श्रावकवतभंगप्रकरण
अवचूरि षद्रव्यप्रकरण
लीबडी. पा. ३ जेसल.
समवसरणप्रकरण
। १९५/ धर्मघोष
पत्र
अवचूरि ३८ संवरद्वारप्रकरण ३९ साधुप्रतिमाप्रकरण A
सिद्धदंडिकाप्रकरण
सिद्धांतसारप्रकरण ४२ सिद्धांतोद्धारप्रकरण
पा ३ अ.१ पा. ३-४ पा. ३-४ अ १ जेसलमेर. भाव. अ. १. डे. जेसलमेर. लोंबडी.
देवेंद्रमूरि । १०० प्रद्युम्नसूरि BI गा. १२३वईमानसूरिशिष्य
महेश्वर
A आ प्रकरण हंसविजयजीए करेली जेसलमेरनी टीपमा नाघ्यु छे.
B आ नाम हीरालाले नोभ्यु छ माटे ते तपाशी नक्की करवान छे.
Page #167
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________________
जैन फिलॉसोफि.
नसर
नाम.
श्लोक.
नोसं.
क्या है?
M
गनीनदास. लीवडी. लीवटी, जेसलमेर
..M.
a
पा.३
वर्ग ५ मो. नाना प्रकरणो-क्लास बीजो. महत्प्रवचनव्याख्या A आगमोद्धारगाथा गा. ७१ कालचऋविचार गा. ८५ गुणस्थानकविवरणगाथा गा. १७ चत्तारिअदसगाथाविवरण पत्र ३, देवेंद्रसूरि जंबूद्रीपजीवागणितपद पत्र ८ तत्त्वसारगाथा तिरिनरयसूत्रगाथा नरक्षेत्रविचार पत्र १४ पुद्गलपरावर्तगाथाविचार पंचनिग्रंथविचार भूयस्कारादिविचार श्रावकभंगकादिविचारगाथा ५५७ विजयदेव
दिवृत्ति B सम्मतगुणा
गा. ११ सूक्ष्मविचारगाथा वृत्ति स्कंधकविचार पत्र ११
जेसलमेर बे.
पा. ३
e
पा.४
o
पत्र
डेक्कन.. पा.४
A खंबातना खेठ नानद्रासनाः भंडारमा ते ताडपत्रपर तूटक छे..
B आ वृत्ति वृहटिप्पनिकामा नोंधी छे पण उपलब्ध थई नथी.
Page #168
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________________
१३८
नंबर.
नाम.
वर्ग ६ ठो.
स्थानपदोपलक्षित ग्रंथो.
तीर्थकर स्थानप्रकरण A
षटूस्थानकप्रकरण
वृत्ति
एकवीसठाणप्रकरण
वृति
४ विहरमान एकवीसठाण०
अवचूारे
अट्ठावनठाणप्रकरण
सत्तरिसयठाणप्रकरण
जैन फिलॉसोफि.
लोक. कर्त्ता.
मा. १५० जिनवल्लभ
गा. १०२
१६३८ नवांगी वृत्तिकार) अभयदेव
गा. ६४ | सिद्धसेन
ताड ५८
शीलदेव
रव्या
नो सं.
गा. २०६
[गा. ३५५ सोमतिलक
क्या छे ?
जेसलमेर
नगीनदास.
पा. ४
पा. १-२-४ सुलभ्य.
पा. २
पा. ३
पा. ३
ख.
१३२७ पा. १-३-४ सुलभ्यः B
होवी जोइये - केमके दोदसो
A हीरालाले नोंघेल छे, तेथी शक रहे छे के तेना नाम्ना भूल गाथापरथी ते जिनवल्लभसूरिकृत सार्द्धशतक के जे कर्मग्रथना पेटामा नोधायुं छे ते होवु जोइये-माटे ते संबंधे तपाश करवानी जरूर छे.
B खंभातनी टीपमां सं. १३८७ नोभ्युं छे, माटे प्रत तपाशी नक्की करवानुं छे.
Page #169
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________________
जैन फिलॉसोफि.
श्लोक. की. नव्या
क्या छ ?
वर्ग ७ मो A
अ.१
संख्यापदोपलाक्षित प्रकरणो.
विशिका. सिद्धसुखविंशिका B
पंचविंशिका. सम्यकत्वपंचविंशतिका अवचूरि
द्वात्रिंशिका. जीवभेदद्वात्रिंशिका लोकनालद्वात्रिंशिका अवतरि |
पदिशिका. इरियावही षट्त्रिंशिकाः
वृत्ति २, रियावही षटनिशिका
अ.१
सुलभ्य.
१७५| धर्मनंदन
पा. १ डेकन
१०३५ जयसोम
धर्मसागर स्वोपन
१६४४ प. ४
अ.१ डेकनः
वृत्ति
अ. १ कन.
| A आ वर्गमा प्रक्रियाने लगती वीसीओ, पचीसीओ-बत्रीसीओ-छत्रीसीओ-पंचाशिकाओ-अने सताओ एकत्रित करीने क्रमवार नोंधी छे.
B डेकनकॉलेजमा सिद्धसुखविंशिका पत्र १० नी नोंधी छे. तो ते सटीक होवी जोहये.
Page #170
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________________
जैन फिलॉसोफि.
नाम.
श्लोक. कर्ता.
त्या
क्या छ ?
वज्रसेन A. १२९७, रत्नशेखर
सुलभ्य. पा. ३-४ भावः.
पा.३
| ३ गुरुगुणपत्रिंशिका
वृत्ति दानषद्विशिका वृत्ति B
अवतार निगोषट्त्रिंशिका
वृत्ति परमाणुविचारषद्विशिका
विनयरल धर्मघोष रत्नसिंह धर्मघोष रत्नसिंह धर्मघोष रत्नसिंह
जेसलमेर पा. ३ वृ. पा. २-३ खे.. वृ. पा. २-३ वृ.पा. २-३ वृ. पा. २-३ वृ. पा. २-३ खं.. दृ. पा. २-३
वृत्ति
पुद्गलषत्रिंशिका वृत्ति
-
-
-
____A वज्रसेनसूरि त्रण थया छे. पेला वज्रसेन ते वहरस्वामिना शिष्य हता. बीजा वज्ररोन ते विजय चंद्रसूरिना शिष्य हता अने श्रीजा वज्रसेन ते रत्नशेखरना गुरु हेमतिलकरिना गुरु हता. आ त्रीजा वज्रसेनसूरिने अलाउद्दीन बादशाहे कीमती पोषाक तथा फरमानो आप्यो हतो एम वेबरे नोंध करी छ. आ ऋणमाथी अमारा धारवा मुजब त्रीजा वज्रसेनरिए आ पत्रिंशिका रची होवी जोईये, केमके तमना प्रशिष्ये ते ग्रंथपर टीका रची छे एम लागे छे.
B जेसलमेरनी टीपमा आ वृत्ति नोंधी छे. पण कदाच ते. अवचरिज हो एम लागे छे. छतां चोकस निर्णय करवा माटे तेनी प्रत जोवानी जरूर छे.
C रत्नसिंहसूरि विनयचंद्रसूरिना शिष्य इता. विनयचंद्रसरिए सं. १३२५ मां. कल्पसूत्रनुं टिप्पन्न रच्युं छे. माटे रत्नसिंहसरि स. १३५० ना अरसामा होवा जोइये. ____D एनुं बीजं नाम खंडषट्त्रिंशिका छे..
Page #171
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________________
जैन फिलॉसोफि.
. ... नाम.
का.
क्यां छे। .
पौषधषट्त्रिंशिका
पा.४
जयसोम धर्मघोष रत्नसिंह
१६४५ पा.४
वृ. पा. २ खं
वृ. पा. २
बंधषट्विंशिका । वृत्ति १० भावषीशिकाA
अवचूरि सिद्धांतषट्त्रिंशिका
वृत्ति
७२७
पा. ३ अ.१
A भावषट्रात्रीशकातुं बीजु नाम रहस्यपट्रात्रंशिका छे.
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________________
जैन फिलॉसोफि.
नंबर
नाम.
श्लोक.
कतो.
नो सं.
क्यां छ?
पंचाशिकाओ.
म.१
अ.१
डेक्कन
भाव.
१) त्रिषष्ठिशलाका पंचाशिका २ पूजापंचाशिका (सावचूरि) पत्र १६ ३| विचारपंचाशिका(सावरि पत्र 4 विजयविमल ४, शतपचाशिका ५ समवसरणपंचाशिका ६ सिद्धपंचाशिका A
देवेंद्रसूरि वृत्ति
स्वोपक्ष अपचूरि
अ.२
वृ. पा.३.४ रेकन
A डेकनकॉलेजना रिपोर्टमां सिद्धपंचाशिकाना कर्ता विद्यासागर जणाव्या छे. ( जुवो नं. ३२३ ॥ परंतु ते अमारा धारवा मुजब अवचूरिना कर्ती होवा जोइये.
Page #173
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________________
जन फिलॉसोफि
१४३
रच्या .
नाम.
श्लोक.
का .
क्यां
छ?
सत्तारिओ.
Non
मुनिचंद्र
| वृ. पा३
पा.३
जेसलमेर
भाव.
मुनिचंद्र १०४. महेश्वर
पा.४.माव.
जेसल.
अंगुलसत्तरि
अवचूरि आगमोद्धारसत्तार आवश्यकसत्तरि A
वृत्ति करणसरि
वृत्ति B कालसत्तरि गुरुगुणसत्तार दर्शनसत्तरि दानसत्चरि द्रव्यसत्तरि
वृत्ति ko| यात्रासरि ११ वनस्पतिसप्तरि
धर्मघोष सोमवंद्र हरिभद्र
जेसल. पा.३-४ जेसलमेर वृ. पा.३
लावण्याचक
अ.१
पत्र २८ स्वोपक्ष
अ.१ भरुन
अ.१
मुनिचंद्र
A एनुं बीजु नाम " पाखीसत्तरि" छे. B हीरालाले नोंधी छे तेथी तेनी श्लोकसंख्यापर शक रहे छे.
C वृहटिप्पनिकामां दर्शनसत्तरिनी गाथा १२० लखी छे. आ मंथनु अपरनाम सम्यत्क्व वसतिका छ अने ते नामे तेने औपदेशिक ग्रंथोमा टीका तथा अवचूरि साथे नोंधी छे इहां सत्तरिओनो स होवाथी तेनुं फता मूलनु नामज नोभ्यु छे.
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________________
जैन फिलॉसोफि.
नंबर.
श्लोक. कर्ता. रच्या -- क्या छ ?
विचारसत्तरि
पा.३ भवच
महेंद्रसूरि A ४३१६, विनयकुशल
अ.२
वृत्तिB
अवचूरि विनयसचरि सुयणासत्तरि c
वृत्ति खूस्मार्थसत्तरि टिप्पन
असल.
चश्वरलारे
जेसल. लीबडी. लीबडी.
A महेंद्रसार हेमसरिना शिष्य हता एम सोमप्रभसरिए कुमारपालप्रतिबोधना प्रांते जणाव्यु छे जुवो रि. ५ पेज ३९
B डेक्कन कॉलेजना लीस्टमा पेज १४७ मा विचारसत्तारना कर्ता विनयकुशल लखेल छे ते भूल छे
C जेसलमेरनी बे टीपमा आ नाम लखेल छे. माटे तेनुं संस्कृतरूप सुजन-स्वप्न-के सूचन करवू ते अनिश्चित थई पडे छे, माटे ग्रंथ जोयाथी तेनो निर्णय यह शके तेम छे.
श्रीजैनश्वेतांबर कॉन्फरन्स ऑफिस । न्यालचंद लक्ष्मीचंद सोनी. . गिरगांव पोष्ट नं. ४ मुंबई,
ऑसिस्टंट सेक्रेटरी,
Page #175
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________________
नंबर.
नाम.
वर्ग ८ मो.
प्रक्रियाने लगता स्तवस्तोत्र.
स्तव
काय स्थितिस्तव A
वृष्ति
चैत्यप्रतिकृतिस्तव (साव)
जैन फिलोसोफि
शाश्वतबिंबसंख्यास्तव (साथ)
लोक.
पत्र १०
गा- २४/
३. देहस्थितिस्तष
वृत्ति
४ पुगलपरावर्त्तस्तव B (साव) का. ११)
भवस्थितिस्तव (सावचूरि)
योनिस्तष
७ लब्धिस्तव ( सावचूरि)
८ लोकांतिकस्तव
कर्त्ता.
कुलमंडन
रत्नसिंह
देवेंद्रसूरि
कुलमंडन
देवेंद्रसूरि
१० समवसरण स्तव
गा. २४
११ सम्यक्त्व स्वरूपस्तव ( साव) मा. २५) देवेंद्रसूरि
|रच्या· नो सं.
१४५
क्यां छे १
वृ.पा. २. अ.१.२
पा. २ अ. २.
कोडाय.
पा. २ नं.
पा. २.
डेक्कन.
पा. २
पा. २-३
पा. २-३, अ. १
पा. २
पा. ३ भाव.
लींबडी.
पा. २ - ३ली. डे. भाव.
A चंचलबाईना भंडारनी टीपमां कार्यस्थितिस्तवना कर्त्ता कुलमंडनसूरि लखेला छे.
B आ पुगलपरावर्त्तस्तव संस्कृतमां छे एम डेक्कन कॉलेजना लिस्टमां जणावेल छे.
Page #176
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________________
१४६
नंबर.
नाम.
जैन फिलॉसोफि.
लोक.
स्तोत्र
A
दुःषमाकालश्रमण संघस्तोत्र पत्र
३) सम्यक्त्वरहस्यस्तोत्र
युगप्रधानस्तो (साव ) पत्र १४
कर्त्ता.
विजयानंद धर्म कीर्ति
पत्र ३ सिद्धसूरि
रव्यानो सं
क्यां छे ?
अ. १
अ+
पा. ३
i
A आ स्तोत्रना प्रांत एवं पद छे के सिरिविजयानंदधम्मकित्तिपयं 'ए परथी एम लागे छे
विजयानंद सूरिनुं अपरनाम धर्मकीर्तिरे हो.
Page #177
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________________
t.kottest sakekat.kakhabartikataktasakakakakichikits
3DDDDDDI--
लीस्ट नंबर ५.
जैन फिलॉसोफि.
-
-
-
-
-
-
REETITIXXXXREERSITY
Page #178
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४८
नंबर.
नाम.
वर्ग १ लो.
प्रकरण ग्रंथो.
अज्ञातच्छप्रकरण A
वृत्ति
२ अभक्ष्यद्वात्रिंशिका
३ आधारदिनकर
७
४ आचारप्रदीप
आचारविधि (प्रा.)
"
आचारोपदेश
जैन फिलॉसोफि.
क्रियाविधिना ग्रंथो.
श्लोक. कती.
( संस्कृत )
आलोचनारत्नाकर C आलोचनाविधान
२९६ आनंद विजय
पत्र ३
१२५०० जयानंदशिष्य
वर्द्धमान B रत्नशेखर
४०६०
पत्र १७
पत्र १९ चारित्रसुंदर
पत्र ४ विजयगणि
गा. ८४
रच्या नो सं
क्यां छे !
पा. ४
पा. ४
अ. १
पा. २-३-४
१५१६ पा. ३-४
भाच.
नगीनदास.
पा. ३
डेक्कन पेज २७
डेक्कन.
A आ प्रकरण पाणमां छे, अने ते कोई आलावारूप छे के स्वतंत्र गाथाबद्ध छे ते प्रकरणम प्रित नजरे तपाश्याथी मालम पडे तेम छे.
B आ वर्द्धमानसूरि ते उद्योतनसूरिना शिष्य वर्द्धमानसूर एला छे ते नहि पण त्यारकेडे विक्रमसंवतनी चौदमी सदीमां ते नामना आचार्य थरला छे तेमणे आ आचारदिनकर रचेल छे. सदरहु ग्रंथना प्रांते चौकश संवत् आपेल छे, पण ते टीपमां नोघायलं नथी माटे जिज्ञासुजनोए ते ग्रंथनी प्रशस्ति जोई लेवी.
C डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां एनं नाम " आलोकनरत्नाकरपंचमी " एवं आपेल छे, पण अमार अनुमानप्रमाणे ते मंथनी पांचमी लहरी पूर्ण थई हशे ते परथी ते नाम साथै जोडी दीधी लागे छे.
Page #179
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________________
जैन फिलॉसोफि.
नाम,
श्लोक.
कती.
नो सं.
क्यां
छ?
डेक्कन
इरियावही प्रकरण
जीतसारसमुच्चय ११ दानविधिप्रकरण १२| धर्मविधि (पहेली)
वृत्ति वृत्ति धर्मविधि (बीजी) B धर्मसंग्रह धूमावलिका
वृत्ति E पर्वपंजिका F
বুসান্ধ १७ पौषधप्रकरण
लीबडी. সৰ A
भाव. उदयसिंह १२८६ वृ. भावनगर १११४२
जयसिंह ६९४० নম্বৰ c जैसल बे.
मानविजय सुलभ्य-छपाय छे. जयभूषण D जेसल. समुद्राचार्य
शीलाचार्य १९ उमास्थाति G पा.४ जयसोम
भाव.
A श्रीप्रभसूरिनी स्वोपज्ञटीका सं. १२५३ मां नाश पामी. श्रीप्रभसूरि उदयसिंहसरिना दादागुरू हता एटले तेओ संवत् १२०० ना पछी थया होवा जोईये.
B जेसलमेरनी बे टीपमां आ ग्रंथ नौधेल छे अने ते ताडपत्र उपर लखेल छे.
बप्पमट्टिसूरिना चरित्रमा नायुं छे के बप्पभाट्टिसरि सं. ८९५ म दिवंगत थया तेमना बे शिष्य इता, एक ननसार अने बीजा गोविंदगणि. ते शिवाय सं. १३६८ मां बीजा नन्नसूरि पण थएला के के जेओ कृष्णपिना शिष्य इता. माटे ए बेमाथी कोणे आ ग्रंथ रच्यो छे ते प्रशस्ति जोयाथी मालम पहे.
Dहीरालाले आ ग्रंथ नोध्यो छे,माटे तेना कर्ता वगेरेनो चोकस निर्णय करवा माटे प्रत जोवानी जरूर छे.
E वृत्तिमाटे वृहताटप्पनिकामां आ प्रमाणे उल्लेख छ:--" धूमावस्यादिवृत्तिः कुसुमांजल्यादिवाच्या समुद्राचार्यकृता २५०० परंतु आ ग्रंथ हजुलगी उपलब्ध थयो नथी.
___F वृहटिप्पनिकामा एनामाटे एवो उल्लेख छ के " श्रीशांतिवेतालीयपर्वपंजिका सपनाविध्यादि. वाच्या श्रीशीलाचार्याया" आ ग्रंथ पण अमने उपलब्ध थयो नथी.
G कर्तानुं नाम प्रसिद्धिने अनुसरी आप्युं छे.
P
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________________
१५०
नंबर.
वृत्ति
पौषधविधिप्रकरण
वृत्ति
१९) प्रतिक्रमणक्रमविधि +
२० प्रतिष्ठाकल्पोः --*
कल्प पहेलो (प्रतिष्ठाप
22
नाम.
"2
"त्री जो (प्रतिष्ठा विधि
चोथो (प्रतिष्ठाविधि)
पांचमो E
छठो F
सातमो G
"
"2
A
را
जैन फिलॉसोफि.
लोक.
D
बीजो (प्रतिष्ठाविधि ) पत्र १८
कर्ता.
जयसोम
२३३ जिनवल्लभ
३५५५/ जिनचंद्र
८११ जयचंद्र
११९२ पादलिप्तसूरि H
तिलकाचार्य
पत्र १३ नरेश्वर
रच्यानो सं.
४८०
गुणरत्न
११००० सकलचंद्र
४९५
•
f आ ग्रंथ जैनागमना लिस्टमां पेज ३२ मां नोधायलो छे, छतां तेमां क्रियानी विधि बतावेली, होवाथी आ स्थले पण तेनुं नाम नोभ्युं छे.
क्या छ ?
भाव.
पा. १-४-५
१६१७ पा. १-४-५
| १५०६ पा. ३-४
पा. ४ भाव.
अ. १
अ. १
डेक्कन.
ली. डेक्कन.
पा. ३-४
ST.
* प्रतिष्ठाकल्प अनेक छे, तेओमांना जे जे कल्पो टीपमां नोंघाया छे ते इहां नीचे टांक्या छे. बळी एवं संभळाय छे के हरिभद्रसूरि तथा समुद्राचार्यना रचेल प्रतिष्ठाकल्प पण छे, पण ते क्यां हे ते.. अमारा जाणवामां नहेि आव्याथी अमे तेमनां नाम इहां टांक्यां नथी. माटे जे मुनिमहाशयोने ते कल्पो क्या छे तेनी खबर होय तेमणे अमने ते बाबत लखी जणाववी.
अने ते संस्कृतमां छे.
A आ प्रतिष्ठा कल्पने । प्रतिष्ठापद्धति ' पण कहे B आ प्रतिष्ठा कल्पने 'विभध्वजदंड प्रतिष्ठाविधि
एवा नामथी टोपमां नोधयामां आयो छे. C. D आ ने प्रतिष्ठाकल्पोने 'प्रतिष्ठाविधिना नामथी ओळखावेल छे.
एवा सादा न्यमधोज टीपोमां ओळखाव्या. छे तेमांन
E. F, G आ त्रणेने ' प्रतिष्ठाकल्प सातमो प्रतिष्ठाकल्प जरा मिश्र संस्कृतमां लखायलो छे.
H पादलिप्तसूरिए शत्रुंजयकल्प तथा तरंगवतकथा नामे ग्रंथ रचेल छे, तेओ क्यारे थया ते. वाचतनी चौकस साल जाणवामां आवी नथी. परंतु तेओ श्रीधनपाल तथा श्रहेमचंद्रसूरिथी घणा पहेला थिएला छे तेमने प्राकृत भाषामा ' पालित्त तथा पालित्तय एवा नामे ओळखवामां आवे छे, अने | पालिताणाना शहरनुं नाम तेमना नाम परश्रीज पडेलु कहेवाथ छे.
Page #181
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________________
नंबर.
२५
A
कल्प आठमो (प्रतिष्ठावि धान ) » नवमो (जिनप्रतिष्ठा) B
नाम.
दशमो (बिंबप्रवेशविधि ) C प्रत्याख्यानविचारणा D
"
२१
२२ मुक्ति युक्तियोगविधि
२३ यतिआहारषण्णवति
२४ | यति दिनचर्या
??
वृत्ति
वृति
विधिप्रपा
E
जैन फिलॉसोफि.
लोक.
३६०
कर्त्ता.
२९२ |
गा. २३७ शालिसूरि
पत्र १८
हर्षकुल
गा. ३९६ देवसूरि
३५०० मतिसागर
पत्र ५९ | भावदेव
३५७४ जिनप्रभ
३३०० उदयंकर F
|रच्या
नो सं.
B नवमा कल्पने वृहटिप्पनिकामां ' जिनप्रतिष्ठा ' पाटणनी टीपमां ' जिनबिंबप्रतिष्ठाविधि । एवा नामथी नोंधेल है.
A आ आठमा कल्पने ' प्रतिष्ठाविधान ' ना नामथी ओळखावेल छे.
डेक्कन.
वृ. पा. ३
पा. ५
डेक्कन•
अ. २
क्यां छे ?
अ. १
१५१
पा. ३-४
पा. ४. अ. २ भाव.
भाव.
|१३६३ पा. १-३-४ रिपोर्ट ६
एटला उल्लेखथोज नोंघेल हे अने
C दशमा कल्पने पाटणनी टीपमां विप्रवेशविधि ' ना नामे नोवेल छे ए कदाच प्रतिष्ठाकल्प नाह होय तोपण तेनो विभागरूप गणीने अमे इहां तेने प्रतिष्ठाकल्पना पैटामां गण्यो छे.
1
D आ ग्रंथ पूर्वे जैनागमना लिस्टमां पेज ३४ मां " प्रत्याख्यानाविचारणामृत " एवा नाम थी नोघायल छे, छतां तेमां क्रियानुष्ठाननी विधि वर्णवेल होवाथी इहां पण नोध्यो छे,
E. F' आ मंथनुं नाम रिपोर्टमां ' विधिप्रपाक एवं आपल छे. ते जैनाचार्यकृत छे के केम ते शक पडती बिना छे केमके तेना कर्त्तानुं नाम उदयंकर नौच्युं छे ते नामना कोई जैनाचार्य थया जाणवामां आन्या नथी, माटे तेनी प्रत तपाशवानी जरूर छे.
Page #182
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________________
१५२
जैन फिलॉसोफि.
नंबर.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां छ?
विवेकविलास
१३८५ जिनदत्त A सुलभ्य. वृत्ति
भानुचंद्र १६७१ पा.३ अ.१ २७ श्राद्धदिनकृत्य
गा. ३४४ देवेंद्रसूरि सुलभ्य. वृत्ति १२८२०
१४११ वृ. पा. २-३-४ अवचूरि श्राद्धविधि
|पा. ३-४ को.
रत्नशेखर १५०६ सुलभ्य. श्राद्धविधिविनिश्चय
पा. ४.२ श्रावकधर्मप्रकरण
पा.१ ___ वृत्ति
| १५१३१ लक्ष्मीतिलक १३१७ पा. १ ली. श्रावकधर्माधिकार B १०० गुणशील c जेसलमेर. श्रावकधर्मविचार D
जेसलमेर. श्रावकविधि :
धनपाळ
डेशन पेज १७१
संघचंद्र श्रावकविधि (बीजी) Gगा. २२/
लीबडी.
हर्षभूषण
वृत्ति
F
A आ जिनदत्तसरि ते वायडगच्छना छे, तेओ स. १२७७मां वस्तुपालना वखतमा विद्यमान हता.
B. C मूलग्रंथ तथा कानुं नाम हीरालाले नोधेल होवाथी शक पड़ता लागे छ माटे तेनी प्रत तपासवानी जरूर छे.
आ प्रकरण पण हीरालालनाज नोधमा छे, पण ते केटला श्लोकन छ वगेरे हकीकत नौंधी नथी माटे तेनी पण प्रत तपाशवानी जरूर छे.
E आ श्रावकविधि अने धर्मविधि ते एकज ग्रंथ छे के जूदाजूदा छे ते माटे प्रतो तपाशवी जोइये. F आ वृत्ति पं. आनंदसागरजीना जोवामां आवेली छ एम तेमणे जणाव्याथी इहां नोंधी छे. G आ बीजी श्रावकविधि गा.२२नी छे ते कदाच श्राद्धविधिनुं मूळज हो, एम अमाएं अनुमान छ,
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________________
नवर.
नाम.
वर्ग २ जो.
विधि ग्रंथो.
अनुष्ठान विधि
२ अर्हदभिषेक विधि*
३) अष्टप्रकार पूजाविधि
४ श्राराधनाविधि*
आलोचनापदसंग्रह A
६ ऊनोदरिकादितप
उपधानविधि
उपधानपौषधविशेषविधि
उपघानस्वरूप B
(१०) उपासकपाठ C
(११) उपासकप्रतिभाविवरण
| १२ जिनस्नात्रविधि *
१३) तपोयोगविधि टीका *
१४ दृष्टविधि D
जैन फिलॉसोफि.
श्लोक.
१०४६
१००
ताड७१
कर्त्ता.
वादिवेताळ
चक्रेश्वर
देवसूरि
६० वादिवेताळ
१००० ( श्रूटक )
पत्र ३
|रच्या· नो सं.
क्यां छे ?
पा. २ नगीनदास.
जेसलमेर.
पा. २
जेसलमेर.
वृ.
डेक्कन.
पा. २.
लोंबडी.
बृ.
डेक्कन.
१५३
जामनगर.
जेसलमेर.
'जेसलमेर.
जेसलमेर वे.
* आ निशानीवाला ग्रंथों हीरालाले करेली टीपमांथी मळ्या छे तेथी तेमनी खरी खातरी माटे तेमनी प्रतो जोवानी जरूर छे.
A B आ ग्रंथ वृहत् टिप्पनिकामां नोंघेला छे, पण ते उपलब्ध थया नथी.
C आनुं नाम उपासकपाठ छे के उपासकपथ छे ते इंग्रेजी स्पेलिंगपरथी नक्की थई शक्युं नथी माटे तेनी प्रत जावानी जरूर छे.
D दृष्टविधि ते सी बालतनो ग्रंथ छे ते जणायुं नथी, कदाच ते ज्योतिषनो ग्रंथ होय तोपण | होय माटे तेनी प्रत जोई नक्की करवानुं छे.
22
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________________
१५४
नंबर.
नाम.
१५ नंदिविधि ( प्राकृतपद्य ) *
| १६ पल्योपमोपवासविधिA
१५ पूजाविधि
१८ पौषधविधि
|१९|
२० प्रत्याख्यानस्थानविधि ( सटीक )
२१) मुखचरित्रकाप्रतिलेखनाधि
२९
*
प्रत्याख्यानस्थानविवरण B
कार
२२ मुद्राविधि
२३ | यतिप्रतिक्रमणविधि
२४ यतियोग विधान
२५ | वंदनस्थानविवरण
२६) शांतिपर्वविधि
२७ श्रावकप्रतिक्रमणविधि
(२८) षडावश्यकविधि C
स्थापनाकल्पविधि
जैन फिलॉसोफि.
लोक
५०० | ( त्रूटक )
६००
१५०
१५००
२४०
पत्र ४८
कर्त्ता.
जिनप्रभ
चक्रेश्वरसूरि
जिनप्रभ
१५० जिनप्रभ
२६९ | जिनप्रभ
पत्र ४
रच्यानो सं.
क्यां छे ?
जैसलमेर.
| १२६० नगीनदास.
जेसलमेर.
लीं.
जेसलमेर बे
जेसलमेर.
पा. ४.
पा. ३.
पा. २.
जेसलमेर वे.
जेसलमेर बे.
जेसलमेर.
ताड८९
पा. २
२३७५ आंचलिक मही- १३९४ पा. ४
सागर
पा. ३
A आ ग्रंथ सं. १२६० मां ताडपत्रपर लखेलो खंबातना शेठ नगीनदासना भंडारमा छे एम रिपोर्टमां नोंध्युं छे.
B अगाऊ जैनागमना लीस्टमां पेज ३४ मां प्रत्याख्यानस्थानविवरण श्लोक ७०० नुं जयचंद्रसूरिकृत नोंघेल छे ते अने आ ग्रंथ जूदा छे एम लागे छे.
C आ ग्रंथ पूर्वे जैनागम लीस्टमां पेज २४ मां नोंधायलो छे, छतां ते विधिदर्शक ग्रंथ होवाथी तिने इहा पण नोंव्यो छे.
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________________
जैन फिलॉसोफि.
१५५
रगा.
नबर
श्लोक.
का .
क्यां छ?
A
लाइन
TCH
वर्ग ३ जो.
-rse~
सामाचारीना ग्रंथो. १. अभयदेवसूरिकृतसामाचारी, १५०० नवांगीकार अ. पा.३
भयदेव २| आचारविधिनाम्नीसामाचारी १०५०
पा. ४ डेकन, मांचलिकधाद्धसामाचारी पत्र ५३
अ.१ भोघसामाचारी B . १५००
डेकन. कुलमंडनसूरिकृतविचारामृतः २२००
२४४३, पा.१.३-४ सुलभ्य. संग्रह गच्छसामाचारी D
जेसलमेर हसविजय. जिनचंद्रसूरिकृतसामाचारी ता.२८१ जिनचंद्र
पा. २. जिनसूरिकृतसाधुसामाचा० १५१२ जिनसूरि पा. २.५ ९ जिनवल्लभखूरिकृतप्रतिक्रमण| गा.४ | जिनवल्लभ
सामाचारीG
A एनुं अपरनाम साधुसामाचारी पण छे. ए ग्रंथ पूर्वे आचारविधिना नामे नोधायो छे तेज होवो जोइये. छतां इहां सामाचारीना वर्गनो प्रक्रम होवाथी इहां पण तेनुं नाम नोंड्युं छे.
B ओघसामाचारी ते वखते ओधनियुक्तिना नाम फेरथी नोंधाई होय तोपण होय माटे तपाश. करवी जोइये,
C आ विचारामृतसंग्रहनामनी सामाचारी माटे वृहटिप्पनिकामां नीचे मुजब उल्लेख छ:---
" प्रवचनपाक्षिकादिपंचविंशत्यधिकारप्रतिबद्धा आलापकाः १४४३ वर्षे श्रीकुलमंडनसरियाः । ___D जेसलमेरनी हंसविजयजीए लखेली टीपमा गच्छसामाचारी एवं मोघम नाम छ पण ते कया गच्छनी छे ते नकी करवा माटे तेनी प्रत तपाशवी जोइये..
___E. F आबे सामाचारीओ कदाच एक पण होय. केमके तैमना काना. नाममा लगभग मळता. पणुं छे, माटे तेनी प्रतो तपाशवी जोहये.
G भा सामाचारी फकत चालीस मायाना कुलक जेवी के.
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________________
१५६
जैन फिलॉसोफि.
रच्या
नंबर.
श्लोक. कर्ता.
___ क्यां छ?
राधन. जेसलमेर.
देवगुप्त
वृ. अ. २
१२०० DI
तपासामाचारी A तिलकाचार्यकृतपूनमिया । २५.. तिलकाचार्य _सामाचारी B देवगुप्तसूरिकृतश्रावकसा पत्र ५ मावारी वृत्ति
देवगुप्त देवप्रभमलधारीकृतसामा- | देवप्रभमलधारि
चारी नरेश्वरसूरिकृत सामाचारी ४०४२, नरेश्वरसूरि F| भाषदेवसरिकृतयतिसामा- गा.१५४ भावदेव
चारी वृत्ति
मतिसागर * यशोविजयवाचककृतसामा- यशोविजय चारी
पत्र ३२ स्वोपक्ष
पा. ५. ली.
पत्र ५०
भाव.
वृत्ति
भाव.
A वृहटिप्पनिकामां आ सामाचारी नोधी छ पण अमारा जोवामां इजु नथी आवी, माटे में कोई मुनि महाशय पासे ते होय तेमणे अमने तेनी हकीकत जणाववा कृपा करवी.
B जेसलमेरनी टीपमा हीरालाले एनी श्लोकसंख्या २५०० नी नोंधी छे.
देवगुप्तसूरिकृत श्रावकसामाचारिनी वृत्ति उपलब्ध थई नी माटे ते पण जेमनापासे होय तेमणे अमने खबर आपवी.
D आ सामाचारी माटे बृहतटिप्पनिकामां नीचे मुजब उल्लेख छः___ " सामाचारी १३६ अधिकारा मलधारि देवप्रभसूरिया" E आ सामाचारीनु अपरनाम सूरिवल्लभसामाचारी पण छ.
F पाटणनी टीपमां कुलप्रभशिष्य नरेश्वर लख्या छे त्यारे लींबडानी टीपमा कुलप्रभशिष्य धनेश्वर सरिए रची एवं लख्युं छे, माटे ते नरेश्वरसरिकृत छे के धनेश्वरसूरिकृत छे ते माटे पाटणनी प्रत तपाशवी जोइये. तेमज पाटणमां एनी श्लोकसंख्या ४०४२ लखेल छ क्यारे लीबडीमा ३७०० छे छतां ग्रंथ तेनो तेज छे केमके लीवहीनी टीपमां पण तेनुं अपरनाम सूरिवल्लभ आपेल छे.
. * पूर्वे यतिदिनचर्यानी वृत्ति मतिसागरकृत नोंधाई छे तो ते अने आ एकज लागे छे.
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________________
जैन फिलॉसोफि.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्या छ ?
नो सं.
A
पा. १-२-४-५ वृ. पा. १
१७ श्रावकसामाचारी १८ श्रीचंद्रसरिकृतसुबोधासा- १३११, धनेश्वरशिष्य माचारी
श्रीचंद्र सामाचारी
|पत्र ११ सामाचारी ( योजी) २००० २१/ हरिप्रभसूरिकृतसाधुसामा ५२७ | हरिप्रभ B
__ चारी २२ हरिभद्रसरिकृतश्रावकसा- १२०० । हरिभद्र
माचारा
पा. ५ | पा. ३-५ अ.१
जेसलमेर.
A एनामाटे वृहटिप्पनिकामां आ प्रमाणे उल्लेख छ:-" सामाचारी सुबोधा सर्वानुष्ठानगोचरा धनेश्वरशिष्य श्रीचंद्रीया १४५०-१२२१" आ प्रमाणे त्यां तेनी लोकसंख्या पण भिन्न भिन्न नौधली छ. थी अमे यहां पाटणनी टीपमा नोंधायली श्लोकसंख्या नोंधी छे.
- B डेलानी टीपमा हरिप्रभना बदले हरिभद्रनाम लखेल छे.
हीरालाले कर्त्तानु नाम हरिभद्र लख्यु छ पण ते शक पडती पिना छे कदाच ते द्वितीय हरिभद्र होय तो होय छतां चोकश निर्णय माटे प्रत तपाशी जोवानी जरूर रहे छे.
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जैन फिलॉसोफि. खंडनमंडनना ग्रंथो. श्लोक. कर्ता.
या
नंबर
नबर
नाम.
क्यां छ?
अंचलमतदलन
.d_m_
। १००० हर्षभूषण
१४८० पा.३-४-५
-
अंचलमतस्थापन A
४००
एत्रा
माचरणाशतक B ४ आचरणोपन्यास c ५ उपधाननिराकरणसांधD
भौष्ट्रिकमतोत्सूत्रदीपिका ७१६ धर्मसागर १६१७ पा. ३-५. औट्रिकमतोत्सूत्रोधाटन
पा.४ कुळक कालस्वरूपद्वात्रिंशिका E
जिनदत्त F
पा.१ जेसल. वृति
जिनपालG पा.१ A आ ग्रंथ फक्त अमदावादना चंचलबाइना भंडारनी टीपमा नोंधेल होवाथो तेने इहां नोध्यो छे पण ते संबंधी ऐतिहासिक बिना मळी नथी.
B वृहटिप्पनिकामां “आचरणाशतकं चरणसहस्रोदधिसत्कं शतपदीपूर्वपक्षरूपं आवो उल्लेख छे. Cआ प्रथ फक्त एसिआटिक सोसायटीमा नौधायो छे, माटे ते दुर्लभ्य छे. Dआ ग्रंथ पण चंचलबाइना भंडारनी टीपमां नोध्यो छे ते शिवाय बीजे स्थळे उपलब्ध थयो नयी.. E जेसलमेरनी टीपमा एy नाम कालस्वरूपकुलक नोंव्यु छे. F जिनदत्त नामना त्रण आचार्य थया जाणवामां आव्या छे:(१)जिनदत्तसूरि ते वायडगच्छीय जीवदेवसूरिना शिष्य हता. तेमणे विवेकविलास नामनो
ग्रंथ रचेल छ, अने तेओ वस्तुपालनी वारे सं. १२७७ मा विद्यमान इता. (२) जिनदत्तरि ते खरतर जिनवल्लभगणिना शिष्य अने जिनचंद्रसारिना गुरु हता. ते
ओनो जन्म सं. ११३२मां दीक्षा सं. ११४१ मां सूरिपद सं. ११६९ मां अने
स्वर्गवास सं.१२११मा थयो इतो. एमणे संदेहदोलावलि प्रकरण विगैरे ग्रंथो रच्या छे. (३)जिनदत्तसूरि ते देवसूरिकृत जीवानुशासनना शोधनार अने सप्तगह नामना स्थळे रेहनार
इता तेओपण सं. ११६२ ना अरसामा थएला छे. हवे आ कालद्वात्रिंशिका आ उपर जणावेल ऋष आचार्य माहेला कया जिनदत्ताचार्य रची छे ते बाबत विचार करतां एम मालम पडे छे के ते खरतर जिनदत्तरिएज रची होवो विशेष संभवित लागे छे. छतां चोक्कस निर्णय ग्रंथ जोयाथी थई शके तेम छे..
G आ जिनपालसूरि ते जिनपतिसूरिना शिष्य इता. एमणे सं. १२९३मां द्वादशकुलकनी टीका रची छे.
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________________
जैन फिलॉसोफि.
नंबर,
नाम.
श्लोक. ___ कर्ता.
या
क्या छ ?
कुपक्षकौशिकसहस्रकिरण १७८८२, धर्मसागर पा. ३, ४-५ जे. कुमताहिविषजांगुली ५१८ रत्नचंद्र १६७७| पा. ३, लीबडी.
अपरनाम( हितोपदेश) ११ केवलिप्रकरणB ( ताड)
| P. 5. डे. ___ १२ केवलिभुक्तिस्त्रीमुक्तिप्रकरण ९००
वृ. पा. २ , संग्रहश्लोक १३) खरतरमतनिरूपण शाख- पत्र ६७
विधि गणधरसार्धशतक ___२८५ जिनदत्त D
पा.१-२. सुमतिगणि E |१२९५/ पा. १-३ म. जे.सु.
रण
व.पा. २
वृत्ति
A एनुं बीजू नाम प्रवचनपरीक्षा छे. ! B आ केवलिप्रकरण डेक्कन कॉलेजमा छे. ते संस्कृतमा रचायलं छे अने ताडपत्रपर लखेलं है. माटे ते केवलिप्रकरण छे के केवलिभुक्तिस्त्रीमुक्ति नामर्नु प्रकरण छे ते नक्की करवा माटे तेनी प्रत जोवानी जरूर छे. | c आ नाम शक पडतुं लागे छ अने ते अमदावादना चंचलबाइना भंडारनी टीपमा नोंघेल छे, तो
तेनुं खरूं नाम शुं छे अने ते कोणे रचेल छे ते बाबत नक्की करवा तेनी प्रत जोवानी जरूर छे. 1 D आ जिनदत्तसूरि माटे पाछळ पाने कालद्वात्रिंशिका उपरनी नोट जुओ.
F समतिगणि बे थया छे. पेला समतिवाचक ते कथारत्नकोशना करनार देवभद्रसूरिना गुरु हता. देवभद्रसुरिए ते ग्रंथ सं. ११५८ मां रचेल छे. वळी महावारचरित्रना कर्ता गुणचंद्रगणिना गुरु पण तेज हता. गुणचंद्रगणिए वीरचरित्र सं. ११३९ मां रचेल छे. बीजा सुमतिगणिने माटे पाटण तया जेसलमेरनी टीपोमा ते जिनपतिसूरिनां शिष्य हता एम नोंघेल छे. जिनपतिसरि सं.१२७७ सुघी विद्यमान इता
हवे आ वृत्ति रच्यानो संवत् १२९५ आपेल छे ते परथी आ वृत्ति बीजा सुमतिगणिएज रची ठे एम चोकस निर्णय थाय छे..
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________________
१६०
नाम.
लघुवृत्ति
१५ गणधर दूढशतक B
६६) गुरुतत्वप्रदीप D
चर्चरी
वृत्ति
१८ चर्चामंथ E
१९) चार्चिक H
| २०१
जैन फिलॉसोफि.
चलप्रतिष्ठाप्रकरण G (ताड)
|२१| तपोटमतकुट्टन
श्लोक.
२४५
कर्त्ता.
૪૮૦
सर्वराजगाणे A
सोमचंद्र C
जिनदत्त
३३५ जिनपाल
१७००
११० जिनप्रभ H
रच्यानो सं.
क्यां छे ?
पा. १
अ. २
पा. १
पा. १
१२९४ पा. १ को.
लवडी.
पा. ५
P. 5
पा. ३, जेसल.
A एमणे पंचलिंगीनी लघुवृत्ति पण रवी छे.
B आ ग्रंथ अमदावादना चंचलबाइना भंडारनी टीपमां नोंघेल होवाथी इहां नोध्यो छे. पण वखते गणधर सार्द्धशतकनुं बीजुं नाम तो नहीं होय ते बाबत तेनी प्रत जोई नक्की करवु जोईये.
C आ सोमचंद्रसूरि ते रत्नशेखरसूरिना शिष्य हता. एमणे सं. १९०४ मां कथामहोदधि नामे ग्रंथ रचेल छे.
D एनुं बीजुं नाम "उत्सूत्रकंदकुद्दाल" छे.
E आ ग्रंथ लींबडीना भंडारनी टीपमां नोंघायो छे पण ते संबंधी ऐतिहासिक बीना तेमज तेनुंखरू नाम शुं छे ते जाणवामां आव्युं नथी. ते कोई खरतर आचार्ये रच्यो होवो जोइये.
F सदरहू ग्रंथ पण विशिष्टनाम जाणवामां आव्यु नथी.
G आ प्रकरण फक्त पिटर्सना पांचमां रिपोर्टमां नोंघेल हे माटे ते उतारवा योग्य है.
H जिनप्रभसूरिए विक्रमसंवत् १३६४ मां साधु प्रतिक्रमणनी वृत्ति रवी छे. ( जुवो पेज ३० ) जैसलमेरनी टीपमां हीरालाले ते श्लोक ८०० नुं छे अने जिनप्रभशिष्य गुणप्रभसूरिए रच्युं छे एम नोभ्युं छे. परंतु अमारा जाणवा प्रमाणे तो जिनप्रभरिएज रचेल छे अने ते श्लोक ११० जेटलाज प्रमाणनुं छे. विखते गुणप्रभसूरिए तेनी प्रत लखावी होय तो होय ए बाबतनी खात्री करवा माटे जेसलमेरना भंडारमांनी तेनी प्रत नजरोनजर जोवानी अगत्य छे.
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________________
नंबर.
२२ द्वादशजल्प
२३) दिगंबरखंडन B
२४ | द्विजवदनचपेटा C
17
नाम.
२५ द्विजवदनवज्रसूत्री
२६ धर्मपरीक्षा
जैन फिलॉसोफि.
लोक.
आ रोते उल्लेख छे.
पत्र १९ | हीरसूरि A
१५८
१७३९
कर्त्ता
पत्र ४ हरिभद्र
हेमचंद्र D
C द्विजवदनचपेटाने माटे बृटिप्पनिकामां
|रच्यानो सं.
(बौद्धाचार्यकृत)
अमितगति E दिगंबर
2
क्यां छे !
अ. १
पा. ५
A आ हारसूरि ते हरिविजयसूरि छे तेओ स. १५८३ थी सं. १६२५ सुधीमां हता.
वृ. पा. ३
को.
B आ नाम पण सामान्य लागे छे माटे तेनुं खरूं नाम शुं छे ते पाटणना भंडारमांनी तेनी प्रत जोई नक्की कर जोइये.
१६१
वृ.अ. २, पा. ४
वृ.पा. ४.
द्विजवदनचपटा विप्रजात्यादिनिराकरणवाच्या "
D आ नाम पाटणनी टीपमां नोंघेल छे, कोडायनी टीपमां ते हरिभद्रसूरिए रचेल छे अने पत्र चारनी छि एम जणान्युं छे. ए परभी एम जणाय छे के वखते ए बन्ने आचार्योए जूदी जूदी चपेटा रची हो.
आ अमितगति ते दिगंबर माधवसेनना शिष्य हता. भांडारकर रिपोर्ट १८८२-८३ मां पेज पिस्तालिसमां एमणे सुभाषितरत्नसंदोह नामे ग्रंथ सं. १०५० मां रचेल छे एम जणान्युं छे. वृहत् टिप्पनिकामां एना माटे " धर्मपरीक्षा परसमयासंबंधतावाच्या दिगंबरामितगतिकृता " आवो उल्लेख छे.
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________________
जैन फिलॉसोफि.
नंबर.
नामा
श्लोक.
क्यां छे?
१८५०
धर्मपरीक्षा A धूर्ताख्यान(प्रा.) निजतीर्थिककल्पितकुमत
निरास C पर्वरत्नावली पर्वविचार पयुषणस्थिति पर्युषणशतकप्रकरण
जिनमंडन B पा. २ বিজুৰি द्वि.हरिभद्र वृ.म.१ जयसागर D १४७८ . २ दयावर्द्धन | A.S. हर्षभूषण
१५८६, पा.५ धर्मसागर
भावनगर.
२५८
वृत्ति
भाव जामनगर
२२००
वारविजय
१८६८
वं.
प्रश्नचिंतामणि प्रश्नोत्तरपंचाशिका प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक
प्रतिमाहुंडी ३७ पूर्णिमागच्छीयविचार
o
A आ ग्रंथ खास उतारवा योग्य छे. B जिनमंडनगणि सोमसुंदरसूरिना शिष्य हता. एमणे कुमारपालप्रबंध सं. १४९२ मां रचेल छे.
C आनु बाजु नाम तत्वबोधप्रकरण छे. वृहटिम्पनिकामां तेना माटे आवो उल्लेख छ:-"निज तीर्थककल्पितकुमतनिरासापरनामक तत्त्यबोधप्रकरणं हरिभद्रीय आंचलिकपौर्णमतछिद्रं ५०४०',
D आ जयसागर उपाध्याय ते खरतर जिनराजमारना शिष्य इता. एमणे सं.१४९५ मां संदेहदोलावली उपर विधिरत्नकरंडिका नामनी लघुटीका रची छे.
E दयावद्धनगणि विक्रमनी सोळमी सदीना अंतमां थएला छे.
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________________
नवर.
नाम.
३८ | बौद्धमीमांसादलन A
(३९ भविष्योत्तरोद्धार B
1०० मिध्यात्वमधनखर्चरीप्रकरण C
१४१
* वादिविचार (सं.)
* वासोतिकप्रकरणE
|४३
* विचारश्रेणि
४४ विनयभुजंगमयूरी
४५ विसंवादशतक H
४२
जैन फिलॉसोफि.
श्लोक. कर्त्ता.
२०००
यशोदेव
१३० जिनवल्लभ D
५००
गुणरत्न F
पत्र ७ मेरुतुंग
१२२
समय सुंदर
रच्या· नो सं.
क्यां छे ?
जेसलमेर.
वृ.
डे. पेज २०८
डे. पेज ३१
डेक्कन.
डेक्कन.
पा. ५
१६८५ रिपोर्ट. ३..
E एनुं बीजं नाम मुखखिका प्रकरण छे.
F गुणरत्नसूरिए सं. १४६६ मां क्रियारत्नसमुच्चयनामे ग्रंथ रचेल छे..
१६३
A आ ग्रंथ हीरालाले नोध्यो छे ते जो एज नामे अने एज कर्त्ता रचेलो होय तो ते खास उतारवा योग्य छे, पण अमने ते वाचत शक रहे छे, माटे जेसलमेर मां तेनी प्रतनी तपाशकरवानी जरूर छे.
B भविष्योत्तरोद्धारमा वृहतुटिप्पनिकामां नीचे मुजब उल्लेख छे:-- “भविष्योत्तरोद्धारः परसमय बहुस्वरूपवाच्योजेनकृतः परसमयज्ञानाय " आ उल्लेख परथी जणाय छे के ते बहु उपयोगी ग्रंथ इशे पण तेनी प्रत हजुलगण क्यापण उपलब्ध थई नथी.
C. D आ ग्रंथ अमाग धारवाप्रमाणे तो जिनदत्तसूरिकृत चर्चरीज होवो जोइये. छतां डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां तेना कर्त्ता जिनवल्लभ जणाव्या छे माटे तेनी प्रत नजरे जोवानी जरूर छे.
G आ ग्रंथ धर्मसागर उपाध्यायना शिष्य पद्मसागरे विनयविजयजी उपाध्यायना उपर आक्षेपरूपे रवेल छे एम सांभळवामां आव्युं छे.
H विवादशतकमां सूत्रोमां परस्पर जे विरोध आवे छे ते बताव्यो छे.
आ निशानीवाळा ऋणे ग्रंथ डेक्कन कॉलेजमां छे ते उतारखा योग्य छे.
Page #194
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जैन फिलॉसोफि.
नबर
श्लोक. ।
कतो.
क्यां छ?
४६
ग .
शतपदी
महेंद्रसिंह १२९४ पृ. पा. १-२-५ लघुशतपदी
१५७० मेरुतुंग भावकप्रतिष्ठानिषेधविचार गा. १२९
चक्रेश्वर
अ. २. षत्रिंशजल्पनिर्णय
भावविजय भाष. को. डेक्कन. षोडशीवृत्ति A
धर्मसागर डेकन. पेज १४७ सचिसाचित्तस्वरूपनिर्णय ६०
जैसल. सर्वमतनिर्णय
जेसल. सनप्रश्न ४३८७ शुभविजय
पा. ५. वं. संघपट्टको
जिनवल्लभ पा. १. कोडाय, वृत्ति
जिनपति पा. १. को. डेक्कनः वृत्ति
हर्षराज
डेकन. लधुवृत्ति
लक्ष्मीसेन१३३३ अवचरि
पा.४
૨૨
PAAR
'A ए वृत्तिनुं नाम गुरुतत्वप्रदीपिका छे.
B हीरालालनी टीपमा आ ग्रंथ नोध्यो छे.
C आ ग्रंथ पण हीरालालेज नोध्यो छे. जो नाम प्रमाणे ग्रंथ मोजुद होय तो ते स्वास उपयोगी छे-पण तेनुं तेवू नाम हशे के नहि ते शक मेरेल बात छे.
___D संघपट्टकने लघुसंधपढ़क करीने लखेलु घणी प्रतोमा जणाय छे, छतां वृहतसंघपटक जुलगण क्यां होय एम जाणवामां ना आव्यु तेथी एम लागे छे के लघुशब्द त्यां वृहत्नी अपेक्षा राख्यावगरज लागु पाडवामां आव्यो होवो जोइये,
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________________
जैन फिलोसोफि.
नाम.
श्लोक
कर्ताःच्या
क्या छ ?
संदेहदोलावलि
वृत्ति लघुवृत्ति
४७५०
जिनदत
पा.१ प्रबोधचंद्रगणि १३२० पा.१-४-५को. जयसागर ४९५ पा. १ कोडाय.
पा.२-४
उपाध्याय
संदेहविौषधि A
झानकलश
पा.४
.१-२
| P.5
संदेहसमुन्थय ख्रीनिर्वाणप्रकरण B बीमाक्षविवाद हीरप्रश्न
ताड २५ १४.. कीर्तिविजय
नगीनदास. पा.३, वं.
A कल्पसूत्रनी वृत्तिन नाम पण संदेहविषौषधि छे, छतां पाटणनी टीपोना नोध प्रमाणे आ ग्रंथ कोई जूदोज लागे छे, माटे अमे ते टीपोनां भरोसे ए ग्रंथने इहां नोध्यो छे छतां तेनी प्रतो तपाशी चोकश निर्णय करवानी खास जरूर छे.
श्रीनिर्वाण
B आ ग्रंथ अमारा धारवा प्रमाणे पूर्व न्यायना लिस्टमां तेना बीजा वर्गमा जे सद्धि' नामे ग्रंथ नोंधेल छ तेज होवो जोइये.
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*
*tokakkakkartistk
h akikatekest.tt.kitsaathokathshots
लिस्ट नंबर ६.
जैन औपदेशिक
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*
*
**
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***
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जैन औपदेशिक.
श्लोक कर्ता.
नाम.
या
क्या छ ?
वर्ग १ लो.
--000मकरण ग्रंथो.
| पा. ४.
अंतरंगप्रबोध (प्रा.) A अंतरंगसंधि (प्रा.)
२०६
रत्नप्रभ B
१३९२ पा. २. डेक्कन.
A आ अंतरंगप्रबोध प्राकृतमा रचायलो छे, पण ते उद्देही भक्षित छे. 1B रत्नप्रभ नामना पांव आचार्य थया जाणवामां आव्या छ:-- (१) रत्नप्रभसूरि--ते वादिदेवसूरिना शिष्य अने सं. १२३८ मां उपदेशमालानी दोषी
वृत्तिना करनार हता. (२) रत्नप्रभसूरि-ते प्रद्युम्नसूरिना वंशमा देवानंदसूरि थया, तेमना बे शिष्य एक
परमानंद अने वीजा रत्नप्रभसूरि थया. आ रत्नप्रभसूरि पण तेरमी सदीना आस्वरीमा ___ होवा जोईये. (३) रत्नप्रभसूरि-ते यशोदेवस्निा शिष्य मानदेव अने तेमना शिष्य ते रत्नप्रभसूरि थया.
तेओ सं. १३०८ मां विद्यमान हता. (४) रत्नप्रभसूरि-ते आ अंतरंगसंधिना करनार छे, एम पिटर्सनना रिपोर्ट पांचमांमा
जणाव्यु छे. (५) रत्नप्रभसूरि-ते नरचंद्रसरिना शिष्य हता. एभणे बोबा गाममा भ्रात पंडित गुणभद्र
तथा श्रावक. श्राविकाना सहार पर्थी सं. १४१८ मां धर्मविधिप्रकरण तथा तेन वृत्ति लखावी हती. एटले अंतरंगसंधिना करनार र सूरिना समयमां अने] एमना सन थोर्द्धक अंतर रहे छे. ते परथी आ सांधना करनार आ पांचा
रत्नप्रभसूरि होय तो होय. आ रीते आ पांच रत्नप्रभसूरिमांना कया रत्नप्रभसूरिए आ अंतरंग संधि रच्यो छे, ते बाबत चोकस निर्णय तो नथी. कारण के रिपोर्ट पांचमांना पेज १२७ मां आ ग्रंथनी प्रशस्ति लता प्रान्ते |' श्रीधर्मप्रभसूर रत्नप्रभकृतिरियम् ॥ एवी नोंध करेल छे. ते परथी आ रत्नप्रभसूरि धर्मप्रभरिना शिष्य हता के आ जणा मळीने आ संधि रचायलो छ, अथवा तो उपर जगावेला पांच आचार्यमांना कया आचार्ये ते रचेल छे ते बाबत शक रहे छे. माटे ए बापतनो निर्णय तेओ कोइ विशेष पुरावो मळ्या वगर यवो मुश्केल छे.
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जैन औपदेशिक
१६२
नंबर.
नाम.
नाम.
श्लोक. कर्ता. रच्या
क्या छ ?
आ.
आगमअष्टोत्तरी
अभयदेव पत्र १२ चंद्रमुनि A
वृति
पा. ३-४ को. | अ.२
पा. ३ ८३ ली. को. सुलभ्य.
६३००
जिनलाभ
अ.२
खं. भाव.
मात्मनिंदाष्टक आत्मप्रबोध मात्मशिक्षा आत्मोपदेशमाला मादिनाथदेशना
वृत्ति आराधना
" (बीजी.) आराधनापंचक आराधनासत्तरी
१६३६ पत्र ५१ | गा. ८५/
अ.१
अभयदेव अजितदेव B
नगीनदास, जेसल. पा.३ नगीनदास.
गा. ३३९ | गा. ७०
कुलप्रम C
नगीनदास.
___A आ चंद्रमुनि ते श्रीचंद्रसूरि हशे. अने तेओ अभयद्रेयसूरिना प्रशिष्य होवाथी पोताना दादागुरुना.
प्रथ उपर तेमणे आ वृत्ति रची होवी जोईये..
B पाटणनी. टीपमां. आ अजितदेव. महेश्वरमूरिना शिष्य हता एम जगाव्युं छे. संवत् आपेल नथी.
C कुलप्रभसूरिने माटे जैनागम लिस्ट पेज २४ मा तेमना नाम नीचेनी नोट जुओ.
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१७०
जैन औपदेशिक
नाम.
श्लोक. कर्ता. न्याः
क्यां छे।
१२, इष्टोपदेश
५१
दिगं.विद्यानंद
वृ. पा. ३. रेकन.
उपदेशकल्पद्रुम A उपदेशकंदलि गा. १२०
वृत्ति
(अपूर्ण) नगीनदास. । १५२ आसड B पा.२.३.४.५सुलभ्य. ७५०० बालचंद्र
वृ.पा.३.४.५ सुलभ्य. गा.४५०
पा. ३-४ अ.१ | १२०६४, आंच.जयशेखर १४३६ वृ.पा.१-३-४सुलभ्य. मेरुतुंग
अ.२ | ४३०५/ जयशेखर १४३६ पा. ३-४ अ. २
उपदेशचिंतामणि
वृत्ति वृत्ति ( बीजी) अपयूरि अवचूरि (बीजी) उपदेशतरंगिणी उपदेशपद
पत्र २६०
३३०० रत्नमंदिर गा.१०४० हरिभद्र
जेसलमेर. को. वृ. पा. २ को.डेक्कन.
१७
-and
A आ उपदेशकल्पद्रुम खंबातना शेठ नगीनदासना भंडारमा छे एम पिटर्सन रिपोर्ट त्रीजामां नोभ्यु छे, पण त्यांपण ते अपूर्ण छे.
___B आ आसडकविए विवेकमंजरी विक्रम संवत् १२४८ मां रची छे. तेओ मिलमाल कुलना कटुकराजना पुत्र हता.
C बालचंद्रकवि ते हरिभद्रसूरिना शिष्य हता, तेओने कविनी अटकथी विशेष ओळखवामां आवे छे माटे अमे पण तेमने तेज अटकथी ओळखाव्या छे. तेमणे आ वृत्ति रच्यानो संवत् चोकस जणावेल नथी. पण मूळकार आसडकवि सं. १२४८ मा विद्यमान हता, एटले आ वृति संवत् १२७८ ना लगभगमां थई होवी जोईए. पिटर्सन रिपोर्ट पांचमामा तेमनी वंशावळी आ रीते आपी छे:
चंद्रगच्छमां पहेला प्रद्युम्नसूरि तेमना पाटे चंद्रप्रभसूरि तेमना पाटे धनेश्वरसूरि थया. धनेश्वरसरिना चार शिष्य हता. वीरभद्र, देवसरि, देवभद्र अने देवेंद्रसूरि, देवेंद्रसूरिना पाटे भद्रेश्वरसूरि थया. तेमना पाटे अभयदेवसूरि थया के जेओ आसडकविना गुरु हता. आसडकविना पाटे हरिभद्रसूरि अने हरिभद्रसरिना पाटे आ बालचंद्रकवि थया छे.
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जैन औपदेशिक.
नाम.
रच्या
श्लोक
कर्ता.
क्या
छ ?
वृत्ति
वृत्ति (बीजी) उपदेशप्रासाद
वृत्ति उपदेशमाला धूत्ति (प्राकृत) वृत्ति ( हेयोपादेया) वृत्ति (कर्णिका ) वृत्ति ( दोघट्टी) वृत्ति विवरण
१४.०० मुनिचंद्र ११७४ वृ.पा. १-४ को. ६४१३/ वर्धमान
जेसलमेर. पत्र ३१
भाव. डेक्कन १०००० विजयलक्ष्मी A डेकन. गा.५४४ धर्मदास BFपा .१२.३-५ सुलभ्य.
जयसिंह सिद्धर्षि वृ. पा. २-५
उदयप्रभ १२९९ वृ. पा. २ ११७६४ रत्नप्रभ १२३८ वृ. पा.१-२-५ डेकन.
७६०० रामविजय १७८१ जेसल. लींबडी. | पत्र१२४) सर्वानंद | अ. २ ४१७० सिद्धर्षि
वृ. पा.१ भाव.
लघुवृत्ति
A आ विजयलक्ष्मीसूरि ते पिटर्सन रिपोर्ट त्रीजाना पेज २१३ मा जणावेला ढुंढकोत्पत्ति ग्रंथना करनार तेज ए छे के, कोई बीजा छे ते बाबत खरी खातरी आ वृत्तिनो प्रशस्तिलेख जोयाथीज थई शके तेम छे.
B आ धर्मदासगणि गृहस्थावासमां विजयविजयपुरना विजयसेन नामना राजा हता. तेसने वैराग्य थवाथी एमणे श्रीमहावीर स्वामी पासे दीक्षा ग्रहण करी. तेमने उग्र तपोबलथी अवधिज्ञान उत्पन्न थयु. एमनी धर्मदासगणि आ नामथी प्रसिद्धि छे. एमणे स्वपुत्र रणसिंहने प्रतिबोधवाने माटेज आ उपदेशमाला रची हती. एनुं आदिपद “नमिऊण जाणवरिंदे इंदनरिंदचिए तिलोय गुरु " एवं छे.
0 आ वृत्ति फक्त वृहटिप्पनिकामा नोंधायली छे, पण ते हजुसुधी क्या पण उपलब्ध थई नथी. । वृहटिप्पनिकामा एना माटे " उपदेशमालावृत्तिः प्रा. कृष्णषिशिष्य जयसिंहसरिकृता ९१३ वर्षे " आ रीते नोध करी छे, श्लोकसंख्या आपी नथी.
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जैन औपदेशिक.
-
-
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां छ?
-
-
कथा
अवचूरि
धर्मनंदन पा.४ डेकन. भाव. अवचूरि
जयशेखर पा.. अवचूरि
अमरचंद्र १५१८ पीटर्सन रिपोर्ट ५ ব্যথারাই
अ.१
जिनभद्र A १२.४ नगीनदास. उपदेशमाला B (बीजी) गा.५४२
नगीनदास. उपदेशमाला (त्रीजी) गा.३० पासागर जेसलमेर. उपदेशमणिमाला
पा.२ उपदेशरत्नकोश गा. ६२ जिनेश्वर C पा. ३-४ भाव. __ वृत्ति
२५०० देवभद् D नगीनदास. उपदेशरत्नमाला गा. २५
ली. उपदेशरत्नाकर पत्र १२ मुनिसुंदर पा. ३, को.भाव. पृत्ति ७६७५/ स्वोपज्ञ
पा. ३-४ को. भाव.
A आ जिनभद्रसूरि शालिभद्रसरिना शिष्य हता. तेमना माटे पिटसन रिपोर्ट त्रीजाना पेज. ८३ मां आ ग्रंथनी नोंध लेतां प्रांते " सालिभद्दरीण सिरसेहिं ३ सिरिजिणभद्दमुणिदेहिं " आ रीते नोंध्यु छे.
Bआ उपदेशमालानी गाथाओ पण पहेली उपदेशमालाने मळतीज छे, पण तेनो आयंत तपासतां ते तद्दन जुदीज लागे छे. तेनुं आदिपद "सुयदेवयं च वंदे यासुपशाएण सिख्खियं नाम आq छे ते परथी आ उपदेशमाला तद्दन जुदीज ठरे छे.
C आ जिनेश्वरसूरि ते कया जिनेश्वरसूरि छे ते बाबत तेवो कोई विशेष पुरावो जाणवामां. आव्यो नथी.
D आ देवभद्रसूरि संबंधी पण ऐतिहासिक बीना मळी शकती नथी. पण पं. आणंदसागरजी महाराजना जणाववा मुजब आ. देवभद्रसूरि ते संग्रहणीनो वृत्तिनाः करनार मलधारि देवभद्रसरि होवा जाइए.
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नंबर
नाम.
२४ उपदेशरसायन A
वृत्ति
२५ उपदेशरहस्य
वृत्ति
उपदेशरहस्य B ( बीजा )
| २६ | उपदेशशतक C
उपदेशशतक 1) (बीज)
वृत्ति
२७ उपदेशसप्ततिका
२८ उपदेशसत्तरी
वृत्ति
जैन औपदेशिक.
श्लोक.
कर्त्ता.
जिनदत्त
२७९० जिनपाळ २७९०
यशोविजय
३७०० | स्वोपज्ञ
५०.
मेरुतुंग D
विमल
| पत्र ४८
२८०० F सांमधर्म
७१.७९ क्षेमराज
23
रच्या नो सं
क्यां छे ?
पा. १ डेक्कन पेज११४
पा. १
अ. १ को.
अ. १ को.
जेसलमेर,
डेक्कन पेज ३३
९३ पा. ४-५
अ. २
|९६०३ पा. १-४ को.
पा. ३ भाव.
१७३
पा. ३ भाव.
A आ मंथने केटलीक प्रतोमां उपदेश रसायनना नामे ओळखावेल छे, त्यारे केटलीक प्रतोमां तिनुं नाम उपदेशरसाळ आप्युं छे. परंतु तपास करतां तेनुं खरं नाम उपदेशरसाळज छे.
B आ ग्रंथ हीरालाले नोंघेल होवाथी शक पडतो छे, माटे तेनी प्रत जोवानी जरूर छे,
C एनुं अपरनाम ८६ महापुरुष चरित्र छे. ते संस्कृतमां रचायलं छे एम डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां जणाव्युं छे ते परथी एम लगे छे के वखते ते टीका हशे छतां चोकस निर्णय माटे तेनी प्रत तपासवानी जरूर छे.
D आ मेरुतुंगसूरि चंद्रप्रभसूरिना शिष्य हता. एमणे प्रबंधचिंतामणि संवत् १३६७ मां रच्यो छे.
E आ शतक आगळ शतकना वर्गमां नोंषवामां आवशे पण तेमां उपदेशनो विषय होवाथी इहां पण नोभ्युं छे.
H आ श्लोकसंख्या कोडायनी टीपमां नोंघेल होवाथी इहां टांकी छे, पाटणनी टीपमां तेनी | लोकसंख्या साथे थोडोक तफावत छे. ए वाचत तेनुं चोकस प्रमाण जे मुनिमहाशयने खबर होय. तिमने ते अमोने लखी जणावत्रा कृपा करवी.
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जैन औपदेशिक.
नंबर.:
नामा
लोक.
कर्ता.
क्यां छे?
नासा
अ.१
उपदेशसंग्रह যম ও
अ.२ उपदेशसार A (गद्य) ताड३०६
पा.२ भाव.भरुच. ,, B (बीजो) पत्र ३३) उपमितिभवप्रपंचा (कथा) १६०० सिद्धर्षि ९६२ पा. २-३ » उद्धार C
देवसूरि D व.पा.२ " सारसमुश्चय १४६० वर्द्धमान वृ. नगीनदास. , सारोद्धार
देवेंद्र E १२८९ वृ. पा. १-२५ , सारोद्धार पत्र ९३, रत्नसूरि F राधनपूर.
-
-
-
-
-
-
-
A, B, आ बन्ने ग्रंथ एकज छे के जुदा जुदा छे ते नक्की करवा माटे तेनी प्रतो जोवी जोईए. C उपमितिभवप्रपंचोद्धार माटे वृहटिप्पनिकामां नीचे मुजब उल्लेख छै:--
" उपमितभवप्रपंचोद्धारः सं. देवसरिकृतः २३७० अनु." D देवसरि नामना चार आचार्य थया जाणवामां आव्या छे:-~
एक देवसरि जीवानुशासनना करनार वीरचंद्रसूरिना शिष्य हता. ____बीजा देवसूरि मुनिचंद्र अने मानदेवसूरिना शिष्य हता, ने जीजा देवसरि ते धनेश्वरसरिना चार शिष्य. वीरभद्र, देवसूरि, देवभद्र अने देवेंद्रसूरि एमांना बीजा अने चोथा देवसरि ते विजयसिंहसूरि शिष्य अभयदेव तच्छिष्य श्रीचंद्र अने तेना शिष्य देवसरि थया अने तेमणेज आ उद्धार रच्यो छे.
E आ देवेंद्रसूरि अमारा धारवा प्रमाणे धनेश्वरसरिना उपर जणावेल चार शिध्यमांनाज होवा जोईर. छतां चोकस पुरावा माटे प्रत जोवी जोईए. एमणे चंद्रप्रभचरित्र संवत् १२६४ मां रचेल छे.
F आ नाम अपूर्ण छ माटे तेनुं खरं नाम शुं छे ते नक्की करवा माटे राधनपुरना भंडारमांनी तेनी प्रत तपासवानी जरूर छ.
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जैन औपदेशिक.
१७५
नाम.
नाम.
श्लोक.
का. रच्या
नो सं.
क्यां छ?
वृ. पा.३-४ अ. २ डेक्कन.
४२०
डेक्कन.
३२ ऋषिमंडळसूत्र
A गा . २१० धर्मघोष वृत्ति (पेली)
पद्ममंदिर वृत्ति (बीजी)
शुभवर्द्धन B वृत्ति (श्रीत्री)
हर्षनंदन C वृत्ति (चोथी) D
आंच. भुवनतुंग वृत्ति ( पांचमी) | प. ३६१) स्वर. जिनसागर वृत्ति (छठी) प. १३५ कीर्तिरत्न
अवचूरी ऋषिमंडळस्तव E
वृत्ति ३४ ऋषिमंडलस्तोत्र (सं.)F ७० मेस्तुंग
अ.१
A एना माटे वृहटिप्पनिकामां " भत्तिभरेतिऋषिमंडलसूत्र गा. २१. " आ रीते नोंध छे. एजें अपरनाम महर्षिकुल पण छे.
B आ शुभवर्द्धनगणि ते सोमसुंदरसूरिना संतानमांना साधुविजयगणिना शिष्य हता, एटले तेओ विक्रमनी सोलमी सदाना मध्यमां थया होवा जोईए.
C आ हर्षनंदन उपाध्याय अढारमी सदीना शरुआतमा थया छे तेज होवा जोईए.
D आ वृत्ति फक्त लींबदीना भंडारनी टीपमा नोंघी छे, पण ते त्यां श्लोक ४००० सुधीनी एटले दशार्णभद्रनी कथा लगी छे. बाकीनो थोडौक भाग अपूर्ण छे.
E ऋषिमंडल स्तवने प्राकृतमा इसिमंडलस्तव एम कहेयाय छे. वृहटिप्पनिकामा एना माटे " इसिमंडलेल्यादि ऋषिमंडलस्तव गा. २७१, आवो नोध छे. एने महर्षिस्तव पण कहे छ. आ स्तव तेनी वृत्ति साथे वृहटिप्पनिकामां नोध्यो छ, पण हजुसुधी अमोने ते क्या पण उपलब्ध थयो नधी माटे सदरहु अंथनो तेनी वृत्ति साथे ज्यां होय त्यांची पत्तो मेळववो जोईए. | F आ स्तोत्र संस्कृतमां रचायलुं छे अने तेनी ७० कारिकाओ छे. वृहटिप्पनिकामां तेना माटे “ऋषिमंडलस्तवः सं. मेरुतुंगसरिकृतः कारिका ७० " आवो उल्लेख छे.
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________________
१७६
जैन औपदेशिक
नाम.
लोक. | कर्ता।
रच्या नोसं.
क्यां छ? .
-
३५, एकोनत्रिंशत्भावना
म.१ को.
मुद्रित. पा. १-२ को:
३६ कथानककोश
गा. ३० जिनेश्वर कर्पूरप्रकरण
हरिसाधु वृत्ति
१७६८ अवचूरि
जिनसागर ३८ कस्तूरीप्रकरण का. १८२ हेमविजय A वृत्ति
पत्र २६ कृष्णयुधिष्ठिरधर्मगोष्ठी B! ४६८ कामघट C क्षपकशिक्षाप्रकरण
पा.३ खं.
भाव. डेकन पेज ११४ डेक्कन पेज ३३
.
म.१
A आ हेमविजयगणि सेनसूरिनी वारे थएला छे.
B आ ग्रंथ डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां पेज ११४ मां नोंधीने नोंध्यु छ के ते संस्कृत, प्राकृत अने गुर्जर भाषामां रचायलो छे. पण ते कोणे रचेल छे ते संबंधी कशी बीना जाणवामां आवी नथी, तेथी शक रहे छे के वखते ते अन्यमतिना पण होई शके, माटे ए बाबतनी चोकस, खातरी करवा माटे तेनी प्रत तपासवानी जरूर छे.
____C सदरहु ग्रंथ पण डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां ते प्राकृत अने गुर्जर भाषामां रचायलो छे एम जणाव्युं छे. पण तेना नाम उपरथी शक पडे छ माटे तेनी पण प्रत जोवाथी निर्णय थई शके.
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22
नाम.
ग.
४२ गाथाकोश A
४३) गुणमालाप्रकरण
वृत्ति
४४) गुरुतत्वव्यवस्था B
गुरुतश्वसिद्धि C
गौतमपृच्छा
वृत्ति
वृत्ति (बीजी )
७ गौतमभाषित D (प्रा.)
चतुरंगी भावना संधि,
चारित्रमनोरथमाला
जैन औपदेशिक.
लोक.
गा. ६४
राम विजय
२५०० ( खोपश )
४४८१
३७४]
मा. ६४ |
५६०० |
३८०० मतिवर्धन
का. ४२
कर्त्ता.
गा. ७५
गा. ३७
खर. श्रीतिलक
[रच्यानो सं.
क्या छे ?
| डेक्कन. पीटर्सन रि.५:
पा. ५.अ. १ डेक्कन:
पा. ५ अ. १ डेक्कन.
पा. ५
पा. ५
१७७
पा. ३ सुलभ्य.
वृ. पा. १-३
पा. ३. डेक्कन.
डेक्कन.
पा. १-४
A आ गाथाकोश ताडपत्रपर लखेल छे एम पिटर्सन रिपोर्ट पांचमामां जगाच्युं छे, तेज रिपोर्टना पंजे १५१ मां तेना आद्यन्तनो उतारो लेतां प्रतिज्ञामां एनी गाथा ५६ जणावी छे; त्यारे प्रान्ते १५१ नो अंक लखेल छे. खंत्रातना शेठ नगीनदासना भंडारमां ते ६४ गाथानो छे एम जणान्युं
आ रीते तेनी ओछी वधु गाथाओ टांकवानुं कारण शुं छे, तेमज ते चोकस केटली गाथानो ते बाबतनी खातरी तेनी प्रत जोया वगर थवी मुइकेल छे.
छताप
B, C. आ बने ग्रंथ पाटणनी टोपमां नौवेला छे. अने तेमनी लोकसंख्यामां तथा नाममां होवाथी वखते एकज अँथना के नाम पण होय तो होय माटे तेनी खातरी करवा प्रत मानी जरूर छे.
D आ भाषितो वृहत टिप्पनिकामां नोवेला छे बाकी क्या पण उपलब्ध थया नथी.
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________________
१७८
जैन औपदेशिक.
. श्लोक. । कता.
क्यां छे?
ज.
मानतुंग
मलयप्रभ
घृ. डेक्कन १२६० वृ. डेक्कम.
नगीनदास.
-
गा.११७
-
-
डेकन.
जयंतीप्रश्नोत्तरसंग्रह
वृत्ति A जीवदयाप्रकरण जीवसंबोध जीचानुशासन
वृत्ति जीवोपदेशपंचाशिका जीवोपालंभप्रकरण
देवसूरि B (स्वोपक्ष)
पा.४ ११६२/ पा. १-४
२२००
गा. २५/
नगीनदास.
डेक्कनपेज ३४
ज्ञानचतुर्विंशतिका (सं.)। बानीपिका C
ज्ञानविजय. ज्ञानपंचाशिका D सानादित्यप्रकरण
E गा . ८३, हरिभद्र.
| डेक्कन. जेसल.
A आ वृत्ति माटे धृहटिप्पनिकामां नीचे मुजब उल्लेख छ:-~" भगवती १२ श. उद्देशगतजयंतीप्रश्नोत्तरसंग्रहप्रकरणस्य मानतुंगीयस्य वृत्तियंति
चरित्रवाच्या प्रा. मु. १२६० वर्षे मालयप्रभी ६६००" आ. उपरथी आ वृत्ति फक्त
डेक्कन कॉलेजमां छे. तेथी ते उतारो करवा योग्य छे. B आ देवतरि वीरचंद्रसूरिना शिष्य हता एटली हकीकत जाणवामां आवी छे. C ज्ञानदीपिका प्राकृतमां रचाएली छे अने ते टबा साथे छे.
D आ ज्ञानपंचाशिका जेसलमेरनी टीपमा हीरालाले नोंधी छे, पण ते जैनाचार्यकृत छे के अन्यमतिनी करेली छे ते बाबत शक रहे छे माटे तेनी प्रत फरी तपाशवी जोईए.
आ प्रकरण हरिभद्रसरिकृत ग्रंथोना वर्गमां नोध्यु छे. परंतु तेमां उपदेशनो विषय होवार्थी इहां पण नोंधवामां आव्यु छे.
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________________
जैन औपदोशक.
१७९
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां छे ?
शानांकुश A
का. २८
वृ. भ.१
तत्त्वबिंदु B ६२ तीर्थमालाप्रकरण
पत्र
अ.१
७००
दर्शनमाला C (सं.) दर्शनशुद्धिप्रकरण D
वृत्ति
जेसल. गा.२२६ चंद्रप्रभ
वृ. ली. पत्र ८६. विमलगणि E १९८४ पा. १ ३८०० देवभद्र F वृ.पा. १.२-४.५ ली.
डेछन. पत्र ४ सोमविमल G
वृत्ति
६४०
अपचूरि दशदृष्टांतगीता (प्रा.)
डेक्कन.
A आ ज्ञानांकुश कुलक जेवू लागे छे छतां तेना नाम उपरथी ते ग्रंथ पण होई शके माटे हाल अमे तेने अंथ धारीने इहां नोध्यो छे, ___B आ तस्वबिंदु सूक्तरूपे छे.
C आ नामज शक पहतुं लागे छे कारण के ते संबंधी कोई बीजो पुरावो जोवामां आवतो नथी अने ते जेसलमेरनी रीपमां हीरालाले नोध्युं छे. तो ते शा बाबतनो ग्रंथ छे अने तेनुं खरू नाम शंके ते बाक्तनी चौकस खातरी करवा माटे तेनी प्रत फरीथी तपासवानी जरूर छे.
____D आ दर्शनशुद्धिनुं नाम संदेहविषौषधि छे. पिटर्सन रिपोर्ट त्रीजाना पेज १४५ मां एनु अपरनाम सम्यकप्रकरण छे एम जगावेल छ, सम्यक प्रकरणना करनार पण पोर्णमिक चंद्रप्रभसूरि होवायी आ बन्ने ग्रंथो एकज छे के जुदा जुदा छे ते बाबत शक रहे छ. माटे हालमां अमे तेमना नाम नीच नोट आपा जुदा जुदा नोंध्या छ. हमणा पंन्यासजी आणंदसागरजी महाराज तरफथी खबर मळी छे के, दर्शनशुद्धिना करनार पौर्णमिक चंद्रप्रभसूरि नथी पण चंद्रसूरि छे. __E आ विमलगणि धर्मघोषसरिना शिष्य इता.
F आ देवभद्रसूरिनी वधु हकीकत जाणवा माटे आ वृत्तिनी प्रशस्ति जोवानी जरूर छे.
G आ सोमविमलसूरि हेमसोमसूरिना गुरु हता, तेओ तपगच्छना नायक तरीके सं. १६४६ मां विद्यमान हता,
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________________
जैन औपदेशिक.
नाम.
.
श्लोक
का .
सं.
क्या छ ?
दानप्रकाश
कनककुशल १६५६ पा. ३-४ अ.१ चारित्ररत्न A पा. ४-५
दानप्रदीप दानोपदेशमाला B
वृत्ति दृष्टांतमाला देवतत्त्वपकरण D द्वात्रिंशद्वात्रिशिका द्वादशभावना ( सं.)
अरिमल्ल
पत्र १४ हेमचंद्र
।
ध.
। ४८१४ आगमिकउदयधर्मपा .३.ख.अ.२ डेकन
धर्मकल्पद्रुम धर्मतत्त्व :
पा.३
वृत्ति
म.१
____A आ चारित्ररत्नगणि ते न्यायार्थमंजूषाना करनार हेमहंसगाणना विद्यागुरु तरीके ओळखावेल छे. एटले तेओ विक्रमनी सोळमी सदीनी शरूआतमां यएला छे.
A B दानोपदेशमाला लेनी वृत्ति साथे वृहटिप्पनिकामा नोधी छ, पण अमोने हजुसुधी ते क्या पण उपलब्ध थई नथी. | Cआ अरिमल ते कोण हता ते संबंधीनी हकीकत जाणवा माटे ग्रंथनी प्रशस्ति जोवानी जरूर छे.
D आ प्रकरण प्राकृतमा रचायलु छ, पण ते संबंधी विशेष माहिती जाणवामां आवी नथी.
___E आ धर्मतत्त्वप्रकरण तेना नाम उपरथी बहु सरस. लागे छे, माटे पाटणना भंडारमाथी तय अमदावादना डेलाना भंडारमाथी तेनी प्रतो मेळवी वृत्ति साथे तैनो उतारो करवानी जरूर छे.
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________________
जैन औपदेशिक
१८१
नाम.
नाम.
श्लोक.
का. रव्या
क्यां छे! ..
७५ धर्मबिंदु A
वृत्ति धर्मरत्न B वृत्ति D
लघुवृत्ति धर्मरत्नकरंडक धर्मधिलास धर्मविशेष धर्मशिक्षा
२७३/ हरिभद्र
वृ.पा.१-३-५सुलभ्य. ३.०० मुनिचंद्र वृ.पा.१भाष:सुलभ्य. गा.१८१
शांतिसूरि , पा. २ मुद्रित.
देवेंद्ररि वृ. पा. ३ मुद्रित. ता. १७१ शांतिसूरि
| पा. २ ९५००० बर्द्धमान १९७२ पा. ५. जेसल. १३३० खरतर मतिनंदन
पा. ४-५ गा. ८२
डेक्कन ताड, ली. का. ४४ जिनवल्लभ ली. प. १२८| सकलचंद्र अ. १-२
वृत्ति
&
आशाधरE
धर्मामृत
"(बीजुं)
&
A आ धर्मबिंदु हरिभद्रसूरिकृत ग्रंथाना वर्गमा नोध्यो छे, छतां ते उपदेशनी ग्रंथ होवाथी इहां पण नोंध्यो छे,
B एर्नु आदिपद “ नमिऊण सयलगुणगणरयणकुलहरं विमलकेवलं वीरम् ॥ एवं छे. ___C थारापद्रगच्छना वादिवेताल शांतिसूरि थएला छे ते आ छे के पीपलिया गच्छना स्थापक तरीके ओळखायला शांतिसूरि ते छे ते घाबत चौकस निर्णय थतो नथी. माटे सुज्ञ मुनिमहाशयोने विनंति करवामां आवे छे के जमणे ए संबंधिनी माहिती होय तेमणे तं अमने लखी जणाववा कृपा करवी.
D वृहटिप्पनिकामां एना माटे आवा उल्लेख छ:-"धर्मरत्नवृत्तिः तपाश्रीदेवेंद्रिया श्राद्ध २१ गणादिवाच्या ९७००-९६८२"
E आ आशाधर दिगंबर हो एमणे तकांमृत नामनो न्यायनो ग्रंथ रचेल छे. (जुओ आ पुस्तकना वेज ९. मां ) तेज आशाधर,आ होवा जाईए. छतां चौकस खातरी माटे प्रत जोवानी जरूर छ.
H
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१८२
नंबर.
नाम+
८२ धर्मोपदेश
धर्मोपदेश A ( बीजो. )
लघुवृत्ति
धर्मोपदेश (त्रीजी )
धर्मोपदेश ( चोथो. )
८३ धर्मोपदेशमाला B
वृत्ति
वृत्ति
जैन औपदेशिक.
लोक.
८३३२ यशोदेव
सा. २२४
प. ८५
७००
गा० १०२
६६५०
| १३०००
धर्मोपदेशमाला (बीजी.) Eगा. १०४
कर्ता.
कृष्णर्षिशिष्य जयसिंह.
मेरुतुंग.
जयसिंह
जयसिंह C
विजयसिंह D
यशोदेव
रच्यानो सं.
११३०५ वृ.
क्यां छे ?
९९५ वृ. पा. २. छीं.
| डेक्कन पे. १९५
डेक्कन.
पा. २-४ पी. रि. ५
वृ. पा. २-५
वृ. पा. २
पीटर्सन रि. १ पेज.
२५-४७
A आ धर्मोपदेशप्रकरण इहां नोध्युं छे. पण ते क्या पण उपलब्ध थयुं नथी.
B आ धर्मोपदेशमालाना आद्यन्तना उतारा नीचे मुजब छे:--
आयमां " सिक्क्ष मज्झ बि सुर्यदेवी तुज्न भरणाउ सुंदरा ज्झत्ति । धम्मो समाला विमलगुणा जय | पढाइव्व ।" आ गाथा आपीने प्रान्तमां " इयजयपायडकन्हमुणिसीस जयसिंहसूरिणा रहया | धम्मोवएसमाला कम्मरयमिच्छ्रमाणेण ।" आ उपरथी आ धर्मोपदेशमालाना करनार जयसिंहसूरि ते सं. ९१५ मां धर्मोपदेशनी लघुवृत्तिना करनार कृष्णर्षिशिष्य जयसिंहसूरज छे. जेसलमेरनी हीरालाले करेली टीपमा एना कती गोविंदगणि जणाव्या छे, पण ते बाबत तेवुं कोई प्रमाण न मळवाथी ए नाम तदन अप्रमाणिक गणि शकाय तेम छे.
C आ जयसिंहसूरि मूळकारज छे के हर्षपुरीय गच्छमां थएला छे ते छे ते बाबतनो चोकस निर्णय आ वृत्तिनो प्रशस्तिलेख जोया वगर थई शके तेम नथी.
D आ विजयसिंहसूरि मलधारी हेमचंद्रसूरिना शिष्य हता. एटले आवृत्ति तेमणे विक्रमनी बारमी सदीना आखरोमां रवी होवी जोईए.
E आ धर्मोपदेशमालानी आदिनी गाथा पण “ सिज्झउ मज्ज्ञ वि" एवोज छे, पण तेना प्रान्तनी गाथा जयसिंहसूरिकृत धर्मोपदेशमालाथी तदन जुदी छे, ए बाबतनी खातरी करवी होयतो पिटर्सनना रिपोर्ट पहेलाना पेज २५ मां जुओ. शिवाय तेज रिपोर्टना पेज४७ मां कतना नाम वगरनी एक त्रीजी पण धर्मोपदेशमाला नोंघेली छे. अने तेनी प्रांतनी गाथा उपर जपावेल वे धर्मोपदेशमाला करतां भिन्न छे. छतां ते जुदी जुदी छे के एकज छे ते बाबतनी खातरी करवा तेनी प्रतो परस्पर मेळवी जोवो जोईए.
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________________
जैन औपदेशिक.
१४३
नाम.
श्लोक.
कर्ता,
क्यां छ?
नरभवटांतोपनय
पा.१
नवकारप्रकरण
नषपदप्रकरण वृत्ति (पेली) वृत्ति (बीजी) वृत्ति (पीजी) वृत्ति (चोथी)
वृत्ति ( पांचमी) C नवविधभावना नारीबोध (प्रा.) D न्यायधर्मोपदेश
नयविमल गा. २७ गा. १४० जिनचंद्र A २२१० जिनचंद्र
देवगुप्त B
कुलचंद्र १५०० यशोदेव
ली. नगीनदास.
पा. १-२-४ खं. २०७३) वृ. पा. २ १०७३ वृ.
वृ. पा.२ वृ. पा. १-४-५
देवेंद्र
२२६
पा.४
३००
जेसल.
७८३ (अपूर्ण)
डेक्कन.
पंचनमस्कारफल
गा. ११८ जिनचंद्र
ली. जेसल.
-
----
.
.. -....-.
_A आ जिनचंद्रसरि उकेशगच्छना हता, एमर्नु अपरनाम देवगुससूरि छे. तेमनी वंशावळी आ रीते छ:-देवगुप्तसूरि तेमना शिष्य कक्कसूरि तेमना शिष्य सिद्धसूरि तेमना शिष्य देवगुतपूरि अने तेमना शिष्य यशोदेवसरि थया. __B देवगुप्तसूरि ते फक्कसूरिशिष्य सिद्धसरिना शिष्य छ. .
C आ वृत्ति माटे वृहटिप्पनिकामा “ अभिनवपदवृत्तिः ११८२ वर्षे सूत्रकारदेवेंद्रीया ९००." आवी नोध छ,
D आ ग्रंथ जैसलमेरनी टीपमा हीरालाले नाच्यो छे तेथी शक रहे छे, माटे तेनी प्रत फरीथा तपासवानी जरूर छे.
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________________
१८४
जैन औपदेशिक
नाम.
श्लोक. की. च्याः क्या छ ?
पंचप्रमाणीपंचाशिका
ककुदसूरि A पीटर्सन रि.५ परिग्रहप्रमाण गा. ८४, धर्मघोष B११८६ पा. २ पीटर्सन ५ परिग्रहप्रमाण C (बीजु) गा. ६४) मानतुंग
खं. नगीनदास पर्यताराधना गा. ८७ सोमसूरि पा. ३-४ अ.१ पर्यंतोपदेश D | २४५ जिनवल्लभ
लीबडी. पुंडरीकस्तव
ख. नगीनदास. पुष्पमाला E
६२५ मलधारिहेमचंद्र . सुलभ्य.
स्वोपन ११७५ वृ. पा. १-२-३-५ वृत्ति
२००० साधुसोम F१५१२ पा. ३-४ जेसल. हे. लधुवृत्ति २३२०
भाव. अवचूरि G
१९०० आंच. जयशेखर १४६२ पा. १ ली.
वृत्ति
____A आ ककुदसूरि ते उक्केशगन्छना देवगुप्तसूरिना शिष्य ककसरि थया छे तेज छे. एमनुं प्राकृतमां ककुयसूरि ए, नाम हतुं. ककुयर्नु संस्कृतरूप ककुद एवं थाय छे. कक्क आ नाम अपभ्रंशथी थयुं होय एम लागे छे. छतां तेज नामथी तेमने वधु ओळखवामां आवे छे. | B आ धर्मघोषसूरि शीलभद्रसूरिना शिष्य हता, एमणे धवलश्रेष्ठिने माटेज आ परिग्रहप्रमाण रच्यु हतुं.
C एजें बीजं नाम " द्वादशव्रतनिरूपण " एवं छे. D आ पर्वतोपदेश जूनी गुर्जर भाषामां रचाएलो छे. F पुष्पमालाने उपदेशमाला पण कहे छे. एनी मूळनी गाथा ५०५ छे.
F डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमा एना कर्ता सोमणि नोंध्या छ पण अमारा धारवाप्रमाणे रिपोर्टकार तेमनुं अरधुं नाम भूलथी साधुपद ते सोमगणितुं विशेषण छ एम धारीने छोडी दीधु लागे छे. छतां सोमगणिए कोई जूदी वृत्ति करी होय तो पण होय माटे डेक्कन कॉलेजमानी प्रत तपाशी जोवानी जरूर रहे छे. | G आ अवचूरि संक्षिप्तवृत्ति रूपे छे.
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नंबर.
नाम.
पूजाप्रक्रम A
प्रतिलेखनाप्रकरण
९८
९९ प्रबोधर्षितामणि
१००
१०१ प्रवज्याविधान
वृत्ति
वृत्ति C
१०२ प्रश्नोत्तररत्नमाला
प्रवचनमाताप्रकरण
११००
वृत्ति
वृत्ति
अवचूरि
| १०३ बोधप्रदीपिका D.
१०४ बोधषट्त्रिंशिका
भ.
जैन औपदेशिक.
भवभावना.
श्लोक.
ताड १९
कर्त्ता.
पत्र १
गा. २५ घरमानंदसूरB
४५००| प्रद्युम्नसुरि
२४८ जिनप्रभ
गा. २९
ताड ६८
| पत्र १९१
४९६
पा. २
पा. ४
२०३२ आंच. जयशेखर १४६२ पा. १-३-४
अ. १
बृ. पीटर्सन ५
| १३३८/ वृ. लीं. डेक्कन.
का. ५२
रच्या· नो सं.
विमलसुरे
देवेंद्रसूरि
मुनिभद्र
क्यां छे ?
१८५
वृ.
पा. १-२-३-४मुद्रित.
१४२९ वृ. पा. २-३
अ. २
पा. १-३-४-५.
बृ.
| डेक्कन पेज ३१
गा. ५३१ मलधारिहेमचंद्र ११७० वृ. पा. १-२ लीं. सु.
A आ पूजाप्रक्रम पाटणना बीजा नंबरना भंडारमा ताडपत्रपर लखेलो छे, पण ते बीजे स्थळे उपलब्ध थयो नधी,
B आ परमानंदसूरि माटे आ पुस्तकना पेज ८१ मां तेमना नाम नीचेनी नोट जुओ.
C बृहत् टिप्पनिकामां आवृत्ति माटे “ पवजाविज्ञाणवृत्तिः जैनप्रभी २४८ " आवो नोध छे. पण ते अमोने हजुसुधी उपलब्ध भई नथी.
D आ बोधप्रदीपिका- सूक्तरूपे छे.
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________________
जैन औपदोशिक.
रच्या
नाम.
श्लोक.
का .
क्या
?
नो सं.
वृत्ति
१२९९०
स्वोपक्ष
१९७० वृ. पा. १-२ सुलभ्य
पा. ४
पत्र २० अल्ल
अ.१
अवचूरि भावना A भावनाद्वात्रिंशिका भावनाप्रकरण B भावनासंघि
डेक्कन.
डेछनताड
पा.३
देवसूरिशिष्य शिवदव
मार्गतत्त्वप्रकरण १११ मूलशुद्धि D(स्थानप्रकरण गा.२१२ प्रद्युम्नसरि E
१३००० देवचंद्र ११२ मेगापुत्रसंधिF
वृत्ति
| वृ. पा. २-४-५ वृ. पा. १-२-४-५ पीटर्सन ५
गा. ६०
A आ भावना कदाच गुजराथीमां रचायली होय तो होय. वळी कत्तार्नु नाम पण विचित्र जेवू लागे छे माटे तेनी प्रत जोवानी जरूर रहे छे.
B आ प्रकरण डेक्कन कॉलेजमा ताडपत्रपर छे अने ते संस्कृतमा छे.
C आ भावनासंघि प्राकृतमा छे पण तेनी चौकस गाथा केटली छे ते जाणवामां आवी नथी. ___D आ मूळशुद्धिनुं बीजं नाम स्थानक प्रकरण छे. वृहत् टप्पनिकामा एना माटे “ ठाणावृत्तिहेमसरिगुरुदेवचंद्रीया तत्सूत्रं प्रद्युम्नसरिकृतं १३०००" आवी नोध छे.
E प्रद्युम्नसूरि माटे आ पुस्तकना पेज १२८ मां तेमना नाम उपरनी नोटमां जणावेला चोथ्य प्रद्युम्नसरिनो इतिहास जुओ.
___F आ संधि जुनी गुर्जरमा रचायलो छे.
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________________
जैन औपदेशिक.
नाम.
नाम.
श्लोक. __कर्ता.
च्या
क्या छ ?
पृथ्वीचंद्र A
११३ यतिशिक्षापंचाशिका (प्रा.) ११४ यदर्थमाला B
योगशाल
वृत्ति अवचूरि मांतरचैत्यवंदनवृत्ति आंतरश्लोक
हेमसूरि स्त्रोपन्न
| डेकन. रिपोर्ट ५ वृ. पा. सुलभ्य. वृ.पा. सुलभ्य.. पा. १५ पा.२
१०११/ स्वोपक्ष
पा.२ ली.
११६,
रत्नावली D
जसल.
डेकन.
रूपकमाला
वृत्ति
पुण्यनंदन समयसुंदर
११८ वर्धमानदेशना
५५००
शुभवर्धन
१५५२, पा. ३-४ खं.
A. पृथ्वीचंद्रसूरि बे थया छे एक पृथ्वीचंद्रसरि पर्युषणा कल्पटिप्पनना करनार अने देवसेनगणिना शिष्य हता. बीजा राजगच्छना पद्मचंद्रना वंशमां थएला अने प्रभानंदना गुरु हता. हवे आ चे पृथ्वीचंद्र सरिमांना आ पृथ्वीचंद्रसूरि कया छे ते नक्की करवा माटे डेक्कन कॉलेजमांना तेनी प्रत जोवी जोईए,
B यदर्थमालानुं रिपोर्टमां जदर्थमाला एबुं नाम आप्युं छे. आ ग्रंथ वखते व्याकरण विषयनो पण होई शके माटे ते शी बाबतनो ग्रंथ छे तेनी खरी खातरी माटे प्रत जोवानी जरूर रहे छे.
C योगशाम्रना बार प्रकाश छे. तेना प्रथमना चार प्रकाश ठेर ठेर मळे छे, बाकीना आठ प्रकाश थोडे ठेकाणे मळे छे. 1 D आ ग्रंथ जैसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोध्यो छे, अने तेना श्लोक ४००० नोधीने ते ऋटक के एम जणाव्युं छे. पण तेना नाममा तथा श्लोकसंख्यामां शक रहे थे, तो तेनुं खरं नाम शुं छे अने ते शा बाबतनो ग्रंथ छे ते जाणवा माटे तेनी प्रत फरीथी तपासवी जोई.ए छीए,
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________________
१८८
नंबर.
नाम.
वर्धमान देशना (बीजी )
वर्धमानदेशना (श्रीजी )
| ११९ | विबुद्धप्रकरण A
| १२० विवेकमंजरी B
वृत्ति
वृत्ति D (बोजी )
१२१ विषयपंच्चाशिका
| १२२ वीतरागविज्ञप्ति
१२३ वीरचतुर्मासिकप्रकरण
वृत्ति
| १२४ ) वैराग्यकल्पलता
श.
जैन भोपदेशिक
१२५ शांतसुधारसभावना
लोक.
कर्त्ता.
४३०० राजकीर्ति
३४०० |
सर्वविजय
पत्र ६३
गा. १४५
८०००
आसड
बालचंद्र C
अकलंक E
१८४८ देवेंद्रसूरि
पत्र ७
६७५० | यशोविजय
रच्या
नो सं.
क्यां छे ?
डेकन.
पा. ४
असल.
| १२४८ पा. १-२-३ भाव
१२७८ पा. १-२-५ लीं..
कृ.
पा. ४
सं.
पा. ३
पा. ३
पा. ५. भा. खं.
३५७ विनयावजथ
पा. ३
A आ प्रकरण तेना नाम उपरथी बहुत सरस लागे छे, अने ते जेसलमेरनी बन्ने टीपोम
नधायुं छे.
B आखडे पोताना गुरू अभयदेवसूरिना वचनो सांभळी तेना अनुसारे आ विवेकमंजरी:
रची छे.
C आवृत्ति करतां कनकप्रभशिष्य प्रद्युम्नसूरि बालचंद्रसूरिना मददगार हता.
D आ वृत्तिमा वृहत् टिप्पनिकामां "माणुसस्त्रित्तेति विवेकमंजरी वृत्तिः १२३ वर्षेऽकलंकदेवीया " आवो नोंध छे. आ नोंधमां रचायाना संवतनो अंक नोंघता छेवटनो अंक भूलथी रहीं गयो . एटले ते सं. १२२९ थी ते सं. १२४० ना अंदर स्त्री होवी जोइये.
E आ अकलंकदेव अमारा धारवामुजब चैत्यवंदनादिसूत्रसाधुश्राद्धप्रतिक्रमण पदपर्यायमंजरीओना करनार तेज होवा जोईए. ( जुओ जैनागम लिस्ट पेज २८ मांनी तेमना नाम नीचेनी (नोट) छतां वखते दिगंबर अकलंकदेवे पण आ वृत्ति रची होय तो होय पण ते अनुपलब्ध होवाथी निर्णय थवो मुश्केल छे.
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________________
जैन औपदेशिक
नवर.
नाम.
श्लोक.
___ को.
च्या
क्या छ ?
४४०
डेक्कन
.
1१२६
२५
पद्मसागर
अ.२
वृत्ति A शीलप्रकाश शीलभावना
वृत्ति १२८| शीलसंधि
शीलोपदेशमाला वृत्ति वृत्ति (बीजी)
वृत्ति D( श्रीजी) ___ १३० श्रृंगारवैराग्यतरंगिणी
वृत्ति भ्राद्धगुणविवरण श्रावकधर्मप्रकरणE
वृत्ति
डेक्कन.
रविप्रभ जयशेखर शिष्य पा. ४
ईश्वरगणिB जयकीर्ति
पा. ३-४ सुलभ्य विद्यातिलक पा. ३-४ अ.१ पुण्यकीर्ति सोमतिलक १२९४, वृ. अ.२ सोमप्रभ मुद्रित.
म. १ को. २२२५ जिनमंडन १४८९ पा. ३-४-५ हरिभद्र
पा. २-५ १५१३१/ अभयतिलक १३७७ पा. २-५
१३१
A डेकन कॉलेजना रिपोर्टमां आ ग्रंथने वृत्ति तरीके नोध्यो छ पण बन्नेना श्लोक मळता होवाथी आपण मूळज हशे एम मालम पडे छे. छतां चौकस निर्णय ग्रंथ जोये थई शके..
B जयशेखरसरि बे थया छे. एक तपागच्छना नागपुरीय शाखामां थएला छे. तेओ हम्मारना वखतमा एटले सं. १३०१ थी ते १३६५ सुधीमा विद्यमान हता. बोजा अंचलगच्छना जयशेखरसरि थया, एमणे जैन कुमारसभवकाव्य सं. १४३६ मां रच्युं छे. हवे आ ईश्वरगणि उपर जणावेला बे जयशेखरसूरिमांना कया जयशेखरसरिना शिष्य हता ते जाणवा माटे आ प्रतनी प्रशस्ति तपासवी जोईए.
C जयकीर्तिरि जयसिंहसूरिना शिष्य हता, एटली हकीकत जाणवामां आवी छे.
D आ वृत्तिनुं नाम शीलतरंगिणी छे, वृहटिप्पनिकामां एना माटे " शालोपदेशमालावृत्तिः १२९४ वर्षे रुद्रपल्लीयश्रीसोमतिलकीया " आवो नोध छे.
E आ श्रावकधर्मप्रकरण विरहांक छे.
Page #220
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________________
जैन औपदेशिक
नाम.
श्लोक.
कत्ता
क्यां छ?
डेकन.
श्रावकप्रबोध पत्र ३६६ शुभवर्द्धन श्रावकलक्षणसप्तदशक A| १५५५ প্রবন্ধৰিনাৰ B श्रुतास्वादशिक्षा |गा.१६० सहजकुशल
| पा. ४ खं. नगीनदास
पा.४
षष्ठिशतक
गा.१६० नेमिचंद्र श्रावक
मुद्रित.
वृत्ति
अवचूरि
पा. ४ को.
भा.को.
का. ५२ विमलाचार्य
सजनचित्तवल्लभ सवृत्तपंचाशिका सम्यक्त्वकलिका D सम्यक्त्वपरीक्षा :
पत्र३१४ विमलसूरि
चंद्रप्रभ F
डेक्कन पेज ३२ वृ. पा. २
सम्यक्त्वप्रकरण
A आ अथ संस्कृत प्राकृतमां रचायलो छ.
B आ श्रावकविचार खंबातना शेठ नगीनदासना भंडारमा छे, त्यां पण ते अपूर्ण स्थितीमां छे. ___C आ वृत्ति फक्त कोडायना भंडारमा छे.
D आ सम्यक्त्वकालिका शेरालाले नोंधी छे माटे शक पडती छे.
E आ ग्रंथ डेकन कॉलेजना रिपोर्टमा पेज ३२ मां पत्र ३१४ नो नोध्यो छे पण बीजे कोई पण स्थळे उपलब्ध थयो नथी.
F आ सम्यक्त्व प्रकरणना करनार चंद्रप्रभसूरि ते पौर्णमिक चंद्रप्रभसूरि छे,
I
Page #221
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________________
जैन औपदेशिक
| नंबर
नाम.
लोक. की. ज्या
क्या छ ।
८०००
स्वर.श्रीतिलक १२७७ यु. पा. ४ जेसल.
१२००
वृत्ति A
वृति B (पीजी) १४३ सम्यक्त्वप्रकाश
सम्यक्त्वरत्नमहोदधि सम्यक्त्वसप्ततिका
वृति
डेक्कन पेज ११८
पा.१ हरिभद्र
पा.५ ७७११ संघतिलक D १४२२. पा.३-४ जे. राधन, ३५७, शिवमंडन
पा.६ पत्र ३३० विवेकसमुद्र जेसल. बे.
जेसल. २०५४ हरिभद्र
अ. १ डे.
अधचूरि सम्यक्त्यालंकार : सम्यक्त्वोद्धार F संबोधप्रकरण G
____A आ वृत्ति माटे वृहटिप्पनिकामां “ सम्यक्त्ववृत्ति: सूत्रकार चंद्रप्रभसरिसंतानीयश्रीतिलकीया १२७७ वार्षिका ८००० " आवी रीते नोंध छे.
B सदरहु वृत्ति पण फक्त वृहटिप्पनिकामा नोंधेली छे, ते टिप्पनिकामां तेना माटे " सम्यक्त्व. वृत्तिः प्रावतकथागर्भा १२००० " आवो नोध छे, कर्त्तानुं नाम आप्यु नथी. पण ते हजुसुधी अमोने कोईपण भंडारमा उपलब्ध थई नयी.
0 एनुं अपरनाम " दर्शनसत्तरी " छे. ___D आ संघतिलकाचार्य रुद्रपल्लीय गुणशेखरसूरिना शिष्य अने प्रश्नोत्तररत्नमालानी वृत्तिना करनार देवेंद्रसरिना गुरु हता.
E आ ग्रंथ जैसलमेरनी बन्ने टीपोमां नोंधेलो छ, पण त्यां सम्यक्त्वालंकारादि आवी रीते आदिपद ओडेल होवाथी बीजा कया कया ग्रंथो छे ते जाणवा माटे प्रत जोवानी जरूर रहे छे.
____F आ सम्यक्त्वोद्धार जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोच्यो छे, पण तेनी श्लोकसंख्या के कांह इकीकत आपी नथी. ___G एनुं बीजं नाम " तत्वप्रकाशक " छे. आ ग्रंथ पूर्वे हरिभद्रसूरिना वर्गमां नोध्यो छे, छतां ते उपदेशनो होवाथी पुनरपि इहां पण नोधवामां आव्यो छे.
27
Page #222
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________________
१९२
नंबर.
नाम.
१४९ संशेधरसायनपंचाशिका
१५० संबोधसप्तरी
वृष्टि
१५१ संयममंजरी
वृष्टि
१५६ संवेगचूडामणि
१५३ संवेगदुम कंवलि
१५४ संवेगममंजरी
संवेगमंजरी D
| १५६) संवेगमाला
१५७ संवेगरंगशाला
११५८
साश्रुतत्वप्रकरण F
जैन औपदेशिक.
लोक.
गा. ५२
मा. ३५
महेश्वरसूरि
१३०० | हेमहंसशिष्य B
का. ५२
कर्ता.
पत्र १
नश्चंद्र A
जयशेखर
विमलाचार्य
संयमकवि C
देवभद्र
का. २५ दिगं. ब्रह्म
| १००५३
नो सं.
अभयदेववृद्ध- ११२५ भ्रातृजिनचंद्र. E
क्यां छे १
लीं. म. १
पा. १-३ मुद्रित.
को.
पा. ४ लीं.
डेक्कन.
डेकन.
बृ. पा. १-५
डेक्कन पेज ६४
डेक्कन.
खं. नगीनदास.
वू. पा. ५ अ. १ डे.
पा. ३ अ. २
A नरचंद्रसूरि मे थया छे. एक नरचंद्रसूरि मलधारि गच्छना देवप्रभसूरिना शिष्य हता. बीजा निरश्चंद्रसूरि रत्नप्रभसूरिना गुरु सं. १४१८ मां विद्यमान हता. पण आ नरचंद्रसूरि माटे लींबडीनी दीपमां तेओ कृष्णगच्छना हता, एम जणावेल होवाथी उपर जणावेल बे नरचंद्रसूरिथी जूदाज ठरे छे. पण तेमना संबंध वधु इतिहास मळी शकतो नथी.
B आ हेमहंसशिष्य ते कोण हता ते जाणवा माटे डेक्कन कॉलेजमांनी वृत्तिनो प्रशस्ति लेख जोवो जोईए.
C संयमविवखते अन्यमति तो नहि होय माटे तेनी प्रत तपासवानी जरूर रहे छे. D आ संवेगमंजरी प्राकृतमां रचायली छे.
E आ जिनचंद्रसूरि ते जिनेश्वरसूरिना शिष्य अने नवांगाभयदेवसूरिना वृद्धभ्रातृ थता हता. पिटर्सने पोताना पांच मां रिपोर्टमां तेओ अभयदेवसूरिना गुरु छे एम नोबेल होवाथी तेना भरोसे अमे पण जैनागम लिस्ट पेज ६६ मां तेमना नाम नीचेनी नोटमां भूलथी तेमने नवांगाभयदेवना गुरु तरीके जणाव्या छे. पण आ ग्रंथनो प्रशस्ति लेख तपासतां तेओ अभयदेवसूरिना वडील सहोदरज छे एम चोकस निर्णय थाय छे. F आ प्रकरण वखते हरिभद्रसूरिए रच्युं होय तो होय, पण तेनी खरी खातरी तेना प्रतिमां कई उल्लेख होय तो थई शके. माटे तेनी प्रत जोवी जोईए
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________________
जैन औपदेशिक
-
नाम.
श्लोक. कर्ता. ज्या
क्या छ ?
पत्र १०
का. ९८
खेछन. मुद्रित. भाष.
पत्र१२५
सामान्यधर्मोपदेश सिद्धांतरलावली सिंदूरप्रकरण
सूचि . वृत्ति (बोजी) पुति (श्रीजी) मषचूरि
सुजनसप्ततिका A १६३| सूक्तिवार्षिशिका
हेमसूरिशिष्य सोमप्रभ আবিসঙ্কর हर्षकीर्ति खर.जिनतिलक
पा. ३-४ पीटर्सन ५ पीटर्सन १
१६
हिताचरण (प्रा.)
A मा सुजनसततिका दे अमारा धारवा मुजब आ पुस्तकना पृष्ठ १४४ मां. सुयणासत्तरीना नामे जणावेली तेज हो
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________________
१९४
नं.
वृति
नाम.
१६५ हितोपदेशमाला
वृति A
जैन औपदेशिक.
लोक. कर्त्ता.
१२४३९ सकलचंद्र
मा. ५२६ प्रभानंद
९५०० परमानंद
हितोपदेशामृत B ( प्र . ) | ३१००
परमानंद
|रच्यानो सं.
क्या छे!
| १६३० पा. ४-५
व.रि.
१३०४ कृ. जेसल.
जेसक.
A आवृति माटे बृहत्टिप्पनिकार्मा “ हितोपदेशमालावृतिः सूत्र कारप्रभानंदभ्रातृ पं. परमानंदीयाः | ११०४ वर्षे ९५०० " आवो नोध छे.
B जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले आ ग्रंथ ताडपत्रपर लखेलो हे एम नोध्युं छे. पण तेना कर्त्तान नाममों शक रहे छे के वखते ते परमानंदसूरिकृत हितोपदेशमालानी वृत्ति तो नहि होय, माहे ते. शुं तिनी चोकस खातरी करवा तेनी प्रत तपासवानी अगत्य छे
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________________
नबट
२
५
६
●
नाम.
८
वर्ग २ जो.
कुलको. *
४ अनित्यताकुलक B
ST.
भज्ञातोंच्छग्रहणकुलक
अवचूरि
अढारपापस्थानककुलक अनित्यकुलक A
अनर्थदंडपरिहार कुलक
अभयकुलक
अभव्यकुलक
अवस्थाकुलक
अन्यायच्छेद कुलक
-जैन औपदेशिक
श्लोक.
पत्र
गा. २२
कर्त्ता.
७५ जिनदत्त
आनंद विजय
रच्या नो सं.
अ. १
भ.
क्यां छे १
खंबात.
P.3.
डेक्कन.
भ. २
राधनपुर.
म. १
जेसलमेर.
१९९
अ. २
* पूर्वाचार्यो उपदेशपर नाना नाना कुलको अनेक रचेला छे, पण हालमां अमोने जे ज उपलब्ध थया छे ते ते अनुक्रमवार आ वर्गमां दाखल कर्या छे. शिवाय मुनिचंद्रसूरिकृत कुलको देवसूरिकृत कुलको तथा धर्मसूरिशिष्य रत्नसिंहरिकृत कुलकोने एकत्रित करी जुदां जुदां पण नोध्यां छे.
A, B आ बने कुलको अमारा समजवा प्रमाणे एकज हशे एम लागे छे, छतां चोकस निर्णय तेनी प्रतो जोयाथीज थई बाके तेम है,
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________________
१९६
जैन औपदेशिक
नाम.
नाम.
श्लोक. कर्ता.
ज्या
क्या छ ?
/१०/
पिटसन रि.५ | जेसलमेर. पीटर्सन रिपोर्ट ५
मा. आत्मबोधकुलक A आत्मशुद्धिकुलक मात्मसंबोधकुलक B मात्महितकुलक आत्मानुशासन (प्रा.)।
आराधनाकुलक ।
E (बी ) १६ आराधनाविधिकुलक
वृत्ति मालोचनाकुलक F
मा. ८६ मभयदेव D
नगीनदास. पा. ३ नगीनदास पिटर्सन रि.५ पा.२
पा. २
जेसलमेर
१८ इरियावहीकुलक
अ.
१
A एना आद्यमां " संसारमि असारे नस्थिसुई, वाहिवेपणापउरे " आवी रीते पिटर्सन रिपोर्ट पांचमांना पेज १११ मां नोध करी छे. | Bएजें आदिपद " उवसग्गा कह हुता ॥ एवं छे.
C आ आत्मानुशासन प्राकृतमा रचायलं खंबातना शेठ नगीनवासना भंडारमा छ, पण ते स्या अपूर्ण स्थितिमा छे.
D आ अभयदेवसूरि ते जिनेश्वरसूरि शिष्य नांगी टीकाकार अभयदेवधरि छ, E एर्नु आदिपद " संघभंते । एवं छे. F मा कुलक जैसलमेरनी हंसविजयजी महाराजनी टीपमा नभ्यु के.
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________________
नवर::
ड.
नाम.
| १९ उत्तमपुरुष कुलक
|२०| उत्साहकुलक A
२१ उपदेशकुलक
उपदेशकुलक B (बीजुं)
(२२) उपदेशमणिमालाकुलक
क.
२३ कर्मविपाककुलक
|२४|
२५ क्षान्तिकुलक
१२६
काल स्वरूप कुलक
सामणाकुल क D
JT.
गुरुगुण पर्थिशिकाकुलक
दीपिका
जैन औपदेशिक.
लोक.
गा. १४
२५
गा. २२ देवेंद्रसूरि -
जिनदत्त
जिनेश्वर
४०
कर्त्ता.
गा. ३६
जिनवल्लभ
रत्नसूरि C
गा. ४
वज्रसेन
पत्र २१ रत्नशेखर E
रिच्यानो सं.
क्या छ ?
लींबडी.
जेसलमेर.
नगीनदास.
जेसलमेर.
A. S.
१९७
पा. ३
डेक्कन पेज २०८
डेक्कन.
खं. पिटर्सन रि. ५
खंबात.
खंबात.
A आ कुलक जैसलमेरनी टीपमां हीरालाले नौच्युं छे.
B सदरहू कुलक हीरालाले तेना कर्त्ताना नाम साथै नध्युं छे, पण कर्त्ताना नामम शक रहे छे.
C आ नाम कांईक अपूर्ण लागे छे माटे तेनुं पूर्ण नाम शुं छे ते नक्की करवा माटे डेकन कॉलेजमांनी तेनी प्रत जोबी जोईए.
D एनुं आदिपद " जो कोई मए जीवो " एयुं छे.
ET आ रत्नशेखरसूरि नागपुरीय शाखाना हेमतिलकसूरिना शिष्य भने वज्रसेनसूरिना प्रशिष्य इवा. एमणे श्रीपालचरित्र प्राकृतमां सं. १४२८ मां रचुं छे.
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________________
जैन औपदेशिका
नाम.
रच्या
कर्ताः
क्यां छ?
२८
पत्र
गुर्घावलिकुलक २९| गृहस्थधर्मप्रतिपत्तिकुलक गा. ६० , (बाजु)
A गा . ४२ गौतमकुलक लघुवृत्ति
१२०० ज्ञानतिलक
नगीनदास. २८७ नगीनदास.
पा. ३ १६६० भाष. जेसल.
जेसल.
३१| चतुर्गतिस्वरूपकुलक B | २० ३२| चिंताकुलक
गा. १२ ३३, चोचीशप्रबंधनिबंधनकुलक | पत्र १५
लीबडी.
अ.१
३४ छोतीकुलक
जेसल.के.
नेमिचंद्र
A. S.
गा. २५
जीवकुलक जीवानुशिष्टिकुलक जीवोपदेशकुलक जीवस्थापनाकुलक जीवसंख्याकुलक
नगीनदास. | A. S.
| पा. १
नेमिचंद्र
___A एमां लखमसी श्रावके लीधलां व्रतो, निरूपण छे.
B आ कुलक जेसलमेरनी टीपमा हीरालाले नोभ्यु छ.
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________________
जैन औपदेशिक
नवर.
___ नाम.
नाम.
श्लोक. कर्ता. रच्या क्या छ ?
क्यां छ?
गा. ५० १२०१६
जेसल.
पशधावकऋद्धिकुलक
भाव. ४१ दानादिकुलक चार
देवेंद्रसरि
नगीनदास. वृत्ति
लाभकुशल. A. S. 5 ४२ दानादिकुलक चार
अशोकमुनि A पा. ३-४ रि.5 देवविजय १६६६, पा.३
लाभकुशल दानमहिमाकुलक B दानशीलतपोभावनाकुलक गा. २४
| P. . दिनकृत्यकुलक
लोंबडी. दीक्षाकुलक
रिपोर्ट ६ देववंदनकुलक
लीबडी. द्वादशकुलक C
जिनवल्लभ धृत्ति
३३६३ जिनपाल ९३ पा. १.५ जेसल बे. द्वादशभावनाकुलफ. D
पा.४
A आ अशोकमुनि ते अमारा धारवा मुजब पिटसैनना रिपोर्ट पांचमांना पेज ओगणत्रीशमा जणावेला अने सं. ११५४ मां ओपनियुक्ति सूत्रनी प्रत लखावनार उदयचंद्रगणिना गुरु अशोकचंद्र थया छे तेज होवा जोईए. ते शिवाय आ नामना बीजा कोई आचार्य थया जाणवामां आव्या नथी.
B आ कुलक हीरालाले नोंध्युं छे.
C, D. आ द्वादशकुलक अने द्वादश भावनाकुलक ते एकज छे के जुदां जुदां छे ते नक्की करवा माटे पाटणना भंडारमांनी तेनी प्रतो तपासवी जोईए.
28
Page #230
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________________
जैन औपदेशिक.
नाम.
श्लोक
कर्ता.
रच्यानो सं.
क्यां छ?
जेसल.
द्वादशव्रतकुलक A द्वादशांगीनामग्रंथमानकुलक पत्र १
जेसल. पिटर्सन रि.५
गा. १८ जिनप्रभ
धर्मकुलक धर्माधर्मकुलक B धर्मोपदेशामृतकुलक धर्मभावनाकुलक
अ.१
गा. ३० जयघोष
नगीनदास.
नवकारफलकुलक
नवतत्वकुलक
४२ जयशेखर
निशाविरामकुलक
नगीनदास.
पंचाचारकुलक पंडितमृत्युकुलक C परिभोगपरिहारकुलक D
जसल.
जेसल.
A जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले आ कुलक संस्कृत पद्यमा छ एम जणाव्युं छे. पण अमारा धारवा मुजब प्राये एमां कोईए लीधेला व्रतोतुं निरूपण शे.
B एर्नु आदिचरण " अहजण निसुणिजउ कन्नु धरिजउ धम्माधम्मविचारपुडु' एवं छे.
C. D आ बने कुलको जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोंध्यां छे.
Page #231
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________________
जैन औपदेशिक.
नबर.
नामः
नाम.
श्लोक. का. मन्या क्या छ ।
पर्यताराधमाकुलक पुण्यकुलक सटीक पुण्यपापकुलक
गा. १६
जिनकीर्ति. पुण्यलाभकुलक |गा. १० पूजादिवशाष्टक (सं.) A . . पद्मदेवशिष्य
लक्ष्मचंद्र प्रणिधानकुलक B - गा. ९० देवेंद्रसूरि ६८ प्रतिलेखनाकुलकगा .१२५ विजयविमल
प्रतिलेखनाकुलक (बी ) गा. ३६ प्रत्याख्यानादिस्वरूपकुलक
प्रमादपरिहारकुलक गा.३३ ७१/ प्रमादस्थानप्रकरण
A. S. पा. ३-४ रि.६ लींबद्धी. लीबडी. पिटर्सन रि. ५ नगीनदास. पा. ३, डेक्कन. लोंबडी.
अ.२
खंबात.
भाव.
भ.
जेसल.
मषस्वरूपकुलक भावनाकुलक
२५/ सोमदेव गा.२०२
जेसल. खंबात.
भावनाकुलक (बीजु)
| A रमा पूजाष्टक, विवाष्टक, गुर्वष्टक, उपदेशाष्टक, श्रावकाष्टक, घमीष्टकद्वय, पापाष्टक, दानाष्टक, शीलाष्टक अने तपोष्टक आवी रीते दश अष्टको छे. । B एन अपरनाम " वृद्धचतुःशरण " छ, जैनागम लिस्ट पेज. ६८ मां पयन्नाना नामें नोंघेलु तेज ए छे.
C विजयविमलसूरिए भावप्रकरण सं. १६२३ मां रचेल छे. D आ भावनाकुलक, जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोध्यु छे.
I
Page #232
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________________
जैन औपदेशिक
नाम.
श्लोक. कर्ता. च्या- क्या छ ?
|७४ भावविशुद्धिकुलक A
३० शिवदेषसरि
जेसल.
पिटर्सन रि.५
A. S.
पा.४ पिटर्सन रि. ५
मंगलकुलक B | का. १४ धर्मनि मनोनिप्रहभावनाकुलक महासतीकुलक मिथ्यात्वकुलक मिथ्यात्वपरिहारकुलकगा .२ मिथ्यादुष्कृतकुलक मुनिवंदनकुलकD मृगावतीकुलक
लीवरी..
जेसळ. जेसल.
डेवन.
घ.
८३. वंदनकुलक
वृत्ति
४३७५ जिनकुशलमूरि
A आ कुलक जेसलमेरनी हीरालाले करेली टीपमां नोधायलुं छे.
B मंगल कुलकने " मंगलाष्टक " आ सादा नामथी विशेष ओळखवामां आवे छे. एना काव्य चौद जणाव्या छे ते प्रशस्तिना काव्यो साथे गणवाथी थाय छे.
C एजें आदिपद " जो कोइय पाणिगणो " ए, छे.
D सदरहू कुलक जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोध्यु छे. पण शक रहे छ के बखते ते पृहत. टिप्पनिकामा नोंधेलं चंदनकुलक तो नहीं होय माटे तेनी प्रत जोवानी जरूर छे.
E वृहटिप्पनिकामां आ वृत्ति माटे 4 वंदनकुलकवृत्तिः श्रीजिनकुशलसूरिकृता ४३७५ ॥ आवी रीते नोंघ छे.
F आ जिनकुशलसरि खरतर गच्छ ना जिनचंद्रसूरिना पाटे थएला छे. एमनाज उपदेशी तिजपाल मंत्रिए " खरतरवसति" नामर्नु चैत्य करावी तेमां शांतिनाथ महाराजना बिकनी प्रतिष्ठा करावी हती. आ जिनकुशलसरिने क्लॉटे खरतरगच्छमा पचासमे नंबरे नोंध्या छे. एटले तेओ विक्रम सं. १२७. ना अरसामा विद्यमान हता.
I
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________________
जैन औपदेशिक
नाम.
श्लोक. कर्ता.न्या- क्या छ ?
श्लोक.
राधनपूर. लीवही.
गा.१०
विचारकुलक विधधाकुलक विषयविनिप्रहकुलक A
वृति वीरचरित्रकुलक वैराग्यकुलक
" (पीजुं)
१०००८ मलचंद्र
जिनपल्लभ
पा.३
पा.३ रेकन वं. जेसल
गा. २३ .
__
।
राधनपर.
गा.२०
लीबडी.
शिषकुलक शीलकुलक
भाषककुलक ९२ श्रावकदिनकरयकुलक
अ.१
पा.३
पा.४, अ.१
संघकुलक संहाकुलक
अ.१
सविज्ञनियमकुलक
वि
.
१
संसारकुलक संसारभावनाकुलक संसारघोरस्वरूपकुलकB
अ.१
२५
जैसल.
A आ कुलक वृहटिप्पनिकामां तेनी वृत्ति साये नोध्यु छे. ते टिप्पनिकामा तेना माटे "विषयविनिप्रहकुलकवृत्तिः १३३७ वर्षे मालचंद्री १०००८" आवो नोध छे. पण ते क्या पप उपलब्ध. यई नथी
B सदरहू कुलक जेसलमेरनी हीरालाले करेली टीपमा नोंघायुं छे.
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________________
जैन औपदेशिक.
नंबर.
.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्या छ?
नो
भाव. पि.रि.५
जेसल. लीवरी
पा.४
जेसल.
सम्यक्त्वकुलक | गा.३५/ अमरचंद्र समताकुलक * साधर्मीकुलक | गा. २६, अभयदेव साधुधर्मपरिभावना साधुपरीक्षाकुलक*
साधुयोग्यनियमकुलक गा.४७ १०५ साधुसामाचारीकुलक गा.४६: सोमसूरि १०६, सामान्यगुणोपदेशकुलक
सिद्धिगतिकुलक * सुजनभावनाकुलक
विजयसिंह
राधनपुर. | लींबडी.
A. S. 5. जेसल. A. S. जेसल. पिटर्सन रि.५
१०८
११०
सुलसाराधनाकुलक* स्वजीवानुशासनकुलक A गा. २१ स्थापनाकुलक
पत्र
भ.१
हितोपदेशकुलक हितोपदेशकुलक (बीजु)
* आ निशाणीवाला कुलको हीरालाले करेली जेसलमेरनी टीपमा नौधेला छे.
A आ कुलक पिटर्सनना रिपोर्ट पांचमामां ताइपत्र उपर लखेलुं छे एम तेमा जणाव्युं छे. एर्नु आदिपद “निसा विरामे' एवं छे. ते उपरथी एम लागे छेके निसाविराम कुलकने आ एकज होवू जोईये.
Page #235
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________________
जैन औपदेशिक श्लोकः कर्ता. नव्या क्या छ ?
नाम-
नाम
श्लोक.
का .
रच्या नो सं.
क्यां छ?
२१३
लींबडी. लीबडी. लीबडी. लीबडी.
देवसूरिकृतकुलको* प्रभातस्मरणकुलक मुनिचंद्रगुरुस्तुति
, (प्रा.) । ११५ श्रावकधर्मकुलक (प्रा.) मुनिचंद्रसरिकृतकुलको अनुशासनांकुशकुलक गा. २५/ मुनिचंद्र उपदेशामृतकुलक
, (बीजुं) ||११० उपदेशपंचाशिका ११९ धर्मोपदेशकुलक
, (बीजं) १२०| प्राभातिकस्तुति (सं.) | का. ९ १२५. मोक्षोपदेशपंचाशत् (सं.) १२२ रत्नत्रयकुलक गा .३१
शोकहरउपदेशकुलक
लींबडी. लीबडी. लीबडी. लीबडी. लीबडी. लीबडी. लीबडी. लीबडी. लीबडी. A. S.
-PvArimurn
R
* आ भयाळा नीचे देवसरिए रचेला कुलको नोंधवामां आव्या छे.
A आ देवसूरि मुनिचंद्रसूरिना शिष्य हता, मुनिचंद्रसरिए सं. ११४४ मा उपदेशपदनी टीका छे. एटले तेओ सिद्धराजना वखतमा हता. + आ मथाळा नीचे मुनिचंद्रसूरिए रचेलां कुलकोने अनुक्रमवार नोंध्यां छे.
Page #236
--------------------------------------------------------------------------
________________
२०६
नंबर.
नाम.
जैन औपदेशिक.
रत्न सिंह सूरिकृतकुलकों
लोक
| १२४ सम्यक्त्वोत्पाद विधि
| १२५ | सामान्यगुणोपदेशकुलक गा. २५
१२६ हितोपदेश कुळक
गा. २५
गा. २९ मुनिचंद्र
(१२७ मात्महितकुलक
| १२८) आत्मानुशास्तिकुलक (सं.) २५
१२९
आत्मानुशासन कुलक
गा. ५६
| १३०
उपदेश कुलक
गा. २६
| १३१ गुर्वाराधनाकुलक
१३२ जिनेंद्र विशप्तिकुलक
| १३३ | धर्माचार्यबहुमान कुलक
कर्त्ता.
गा. ३०
गा. ३४
""
"
गा. ३२ रत्नसिंह A
*
33
35
כי
"
"
"
रच्या नो सं.
क्या छे १
[ आ मथाळा नीचे रत्नसिंहरिकृत कुलको एकत्र करी क्रमवार नोध्यां छे. A रत्नसिंह नामना ऋण आचार्य थया जाणवामां आव्या छेः-
लींबडी.
लींबडी.
लोंबडी.
| १२४८ लींबडी.
लींबडी.
छींबडी.
लीपडी.
A.S.
लींबडी.
लींबडी.
एक रत्नसिंहरि सैद्धांतिक श्रीमुनिचंद्रसूरिना शिष्य अने सं. १३२५ मां कल्पनिक्क्तना करनार विनयचंद्रसूरिना गुरु हता एटले तेओ विक्रमनी चौदमी सदीमां थयेला छे.
बीजा रत्न सिंहसूरि जयतिलकसूरिना शिष्य अने उदयवल्लभसूरिना गुरु हता. तेमना प्रशिष्य लब्धिसागरसूरिए सं. १५५७ मां श्रीपालकथा रची छे. एटले तेमना दादा गुरु आ बोजा रत्न सिंहसूर विक्रमनी सोळभी सदीना शरुआतमां थया होवा जोईए.
श्रीजा रत्नसिंहरि के जेमणे तपागच्छमां नायक तरीके पंकाता हेमसोमसूरिना वारे सं. १६७१ मो प्रद्युम्नचरित्र नामे महाकाव्य रचेल छे.
हवे आ कुलकोने करनार रत्नसिंहरि माटे लींबडीना भंडारनी टीपमां तेओ धर्मसूरिना शिष्य हता, अने तेमणे आ कुलको सं. १२४८ मां रच्यां छे, एम चोकस जणावेल होवाथी तेना अनुसार तिमनो समय उपर जणावेल ऋण आचार्यांना समयथी भिन्न होवाथी आ रत्नसिंहसूरि तदन जूदा ठरे छे,
Page #237
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________________
जैन औपदेशिक.
२०७.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां छ?
रत्नसिंह
परमसुखद्वात्रिंशिकाकुलक १३५ पर्यताराधमाकुलक | गा.१६ १३६ मनोनिग्रहभावनाकुलक गा.४४ १३७ श्रावकवर्षाभिग्रहकुलक(गद्य) १३८, संवेगामृतपद्धति (प्रा.) गा.११२ १३९/ , (सं.) १५० संवेगरंगमाला
लीबडी. लीबडो. लोंबडी. लीवडो. लीबडी. लीबडी. लीवडी.
गा.
Page #238
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________________
२०८
जैन औपदेशिक
नाम.
श्लोक. कर्ताः च्या क्या छ ?
वर्ग ३ जो.
so----- शतको *
पा. ४. भाव.
पा.३
पा.१.१
पा. १-३ १०९ विजयविमल १७९३) पा. ४-५ पत्र ४९
अ.२
आत्मशिक्षाशतक. आदिनाथदेशनाशतक आभाणशतक A इंद्रियपराजयशतक उपदेशशतक B
वृत्ति उपदेशशतक (बीजें) সুমহান कालशतक (प्रा.) कालविचारशतक নিৰিঙ্গবন্ধন दृष्टांतशतक दृष्टांतशतकD ( योजु)
मेरुतुंग
डेकन.
का. १२६/ हेमविजयगणि १६५६ खं. मुनिचंद्र पा. ३
डेक्कन पेज १७२
अ.२
वृ. पा. ३
तेजसिंह
डेक्कन.
* सोनी संख्याने शत कहेवाय छे अने शत जेमा छे ते शतक कहेवाय ते मुजब आ शतको सो श्लोकथी ग्रथित करेला होवाथी शतकना नामे ओळखाय छे.
A आ शतक स्तुतिको छे.
B उपदेशशतक खास उपदेशनो ग्रंथ होवाथी पूर्वे औपदेशिक प्रकरणोना वर्गमां नोभ्यु छ छतां ते शतकना नामथी ओळखावेल होवाथी इहां पण नोंच्युं छे. ___C, D. आ बन्ने दृष्टांतशतको एकज छे के जूदा जूदा छे ते माटे बन्नेना आयत तपासवा जोईये.
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________________
नंबर.
नाम.
शतक A (श्रीजुं)
अवचूरी
११ धनदत्रिशती B
११२ ध्यानशतक.
वृत्ति
११३
नागराज शतक
१४ पद्मानंदशरक
१५ पर्वविशतिशतक
१६ भर्तृहरिशतकत्रय
वृत्ति
वृति (बीजी) C
tel भावशतक
जैन औपदेशिक.
श्लोक,
पत्र ३८
कर्ता.
नरेंद्रसूरि
धनदराज ( संघपति )
पद्मानंद ;
भर्तृहरि
२३००
धनसार
५०० | जिनसमुद्र
१०१ समय सुंदर
पत्र ८ हेमवियज D
|रच्यानो सं.
१६४१
क्यां छे १
रिपोर्ट ६
रिपोर्ट ६
पा. १-५.
अ. १
अ. १
अ. १
पा. ५ भाव.
२०९
अ. २.
सुद्रित.
A.S.
जेसल - बे.
खंबात.
डेक्कन, पेज. १९१
जेसल.
भावातक (बीजुं)
भावशतक E (प्रा.)(त्रीजुं)
A आ त्रिजा दृष्टांत शतकने छट्टा रिपोर्टमां अवचूरि साथे नोंच्युं छे, पण कर्त्ताना नाम परथी शक रहे छे के वखते आ शतककार नरेंद्रसूरि ते कोइ दिगम्बराचार्य तो होय नहीं माटे तेना प्रांतनो (प्रशस्ति लेख तपाशी जोवानी जरूर रहे छे.
B एमां धनदराज कविए रचेलां शृंगार, वैराग्य अने नीतिपर ऋण शतको छे, अने ते भर्तृहरिना शतको जेवा बहु सरस छे.
C आवृत्ति जेसलमेरनी बन्ने टीपोमां नोंधेली छे. पण अन्यस्थळे उपलब्ध थई नथी.
D डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां आ हेमविजयसूरिने दिगम्बरकृत ग्रंथोनी नोंध लेतां तेमने दिगम्बर तरीके जणान्या छे, तो ते दिगम्बर हता के श्वेतांचरज छे ते बाबत निर्णय करवा डेक्कन कॉलेजमांनी प्रत नजरे तपासवी जोइये.
E आ भावशतक जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले ते प्राकृतमां नाम अन्यदर्शनी जेवुं लागे छे. माटे तेनी प्रत फरांथी तपासवानी जरूर छे
एम जणान्युं छे पण टीकाकारनु,
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________________
जैन औपदेशिक.
नाम.
श्लोक
कस.
च्या
क्या छ ?
वृत्ति
मल्लनागकवि
जेसल.
-
आ.१
अ.२
भावार्थशतक भावनाशतक मूर्खशतक योगशतक A विचारशतक विद्वच्छतक विनयहितशतक
नगीनदास
गा. १०१, हरिभद्र
समयसुंदर
अ.१
-
-
-
-
वृत्ति
mum-
समयसुंदर
A. H.
विशेषशतक
विसंवादशतक B २७ विहारशतक
वृत्ति २८ वैराग्यशतक
वृत्ति
पा.१-३
। पत्र १९
गुणविनय
अ.१
A. योगशतक पूर्वे हरिभद्सरिकृत ग्रंथोना वर्गमां नोध्यु छे, छतां ते शतकना नामे ओळखातुं होवार्थी इहां पण नोध्यु छे.
B आ शतकमां स्त्रोमा जे परस्पर विरोध आवे छे ते देखाडेल होवाथी पूर्वे खंदन मंडननाः ग्रंथोना वर्गमा दाखल थयु छे.
c आ गुणविनयसरि जयसोमसूरिना शिष्य हता. एमणे दमयंती कथानी टीका सं. १६४६ मा रची अने विचाररत्नसंग्रह सं. १६५७ मां रच्यो एटले एज समयमा लगभगमां आ धूति रची होवी
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________________
जैन औपदोशिक
२११
नाम.
श्लोक.
का. राज्या- क्या छ ?
२९/ व्याख्यानविधियतक
कोडाय.
वृत्ति
| पत्र २०
-
पत्र
अ.१
-
---
संदेहशतक A ३१ संवादशतक
संवेगशतक B ३३, साधुगुणशतक
सोमशतक जूदाजदा विषयोमा नोधायला शतको..
डेकन.
-
-
-
ऋषभशतक कुमारविहारशतक जिनशतक नेमिशतक प्रश्नषष्ठिशतक D
___A आ संदेहशतक अमदावादना डेलाना भंडारनी टीपमा पत्र आठन नोंभ्यु छे ते परथी शक रहे छ के ते त्यां वृत्ति साये तो नहीं होय माटे तेनी प्रत जोई नक्की कर जोइये.
B आ संवेगशतक ते कदाच वैराग्यशतकनुं बीजु नाम होय तो पण होय माटे तेली खरी खातरी तेनी प्रत जोया वगर थई शके तेम नथी.
* आ मयाला नीचे नोंधेला शतको आगळ ते ते वर्गमा विशेष माहिती साये नोंघवामां आवशे. इहां फक्त तेमना नाम मात्र दर्शाववामां आव्या छे.
आ निशाणीवाळा शतको स्तुतिरूपमां रचाएलां होषायी ते स्तुतिग्रंथोना वर्गमा दाखल करवामां शावनार छे.
C आ शतक काव्य रूपे रचेल होवाथी आगळ काव्यना वर्गमां नोंधवामां आवशे. D सदरहू शतक निमित्तना ग्रंथोना वर्गमा विशेष हकीकत साथे नोंधवामां आवनार छे.
Page #242
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________________
जैन औपदेशिक.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां छ?
वीतरागशतक शृंगारशतक অষ্টিবদ্ধ A सर्वशतक B सूर्यशतक
A आ शतकमां उपदेशनो विषय होवाथी पूर्वे औपदेशिकना प्रकरण प्रथोमा नोधायुं छे.
B एमां सर्वज्ञना लक्षणतुं स्वरूप देखाइयुं छे.
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________________
जैन औपदेशिक.
नाम.
श्लोक.
कता.
__ क्यां
छ?
१
पत्र
पा.३
वर्ग ४ थो..
--marअनेक प्रबंध A (गद्य) अभयदेवप्रबंध इतिहाससमुपय B उपदेशतरंगिणी | ३३०० कीर्तिकल्लोलिनी पत्र १३ कुमारपालचरित्र (प्रा.) | ९५० कुमारपालचरित्र (बीलु)। ६.३० कुमारपालचरित्र (श्रीगँ) | पत्र ३६ कुमारपालप्रतिबोध (सं.) D| २५७५ कुमारपालप्रतिबोध E
रत्नमंदिरगणि हेमविजय हरिश्चंद्र जयसिंह चारित्रसुंदर
पा. १-४ डेक्कन. पेज ६६
पा.२ १३१३ पा.४-५भाव. रि.६
| 4८००
सोमप्रभ
१२४१ पीटर्सन रि.५
• आ वर्गमां अमारा जाणवामां आवेला इतिहासना ग्रंथोन एकत्र करी क्रमवार नोंध्या छे. इतिहासना ग्रंथो प्राये औपदेशिकनेज लगता होय छे, तेथी खास तेमने आ औपदेशिकना पेटामा दाखल करवामां आव्या छे.
A अमदावादना देलाना भंडारनी टीपमा सदरहू नाम टांकेल छे, तो तेमां कया कया प्रबंधो छे ते जाणवा माटे तेनी प्रत नजरे जोवानी अवश्यकता छे. | B एमां स्वमतीय इतिहासिक बिना छे के अन्यमति बाबतज छे ते बाबत शक रहे छे, माटे तेनी पण प्रत जोवी जोइये.
C आ इरिश्चंद्र ते अमारा धारवा मुबज धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्यना करनार दिगम्बर हरिश्चंद्रसूरि होवा जोइये.
D एना माटे वृहत् टिप्पनिकामा " कुमारपालप्रतिबोधः संकृतः २५७५ ॥ आवी नोंध छे, पण ते अमोने हजुसूधी क्या पण उपलब्ध थयो नथी.
E वृहत् टिप्पनिकामा एना माटे नीचे मुजब नौध छे. " कुमारपालप्रतिबोधक बहुप्राकृत शतार्थिसोमप्रभसूरिभिः १२४१ वर्षे कृतः ८८००"
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________________
जैन औपदेशिक
नंबर..
नाम.
श्लोक.
कल
की.
क्यां छे!
0
१४९१ पा. २-३-४ डेकन.
अ..१ डेकन पेज ३४१
डेकन. १५६६ पा. ३-४ लीबडी. १६४८/ पा. ३-४
पा. ३-४ कीबडी.
वृत्ति
कुमारपालप्रबंध २४५६ जिनमडंन कुमारदेवप्रबंध समर्षिप्रबंध(सं.) गुरुगुणरत्नाकरकाव्य A] पत्र १२ गुर्वावली B
७५८ मुनिसुंदर गुर्वावली (बीजी)
धर्मसागर
स्वोपक्ष गुर्वावली (श्रीजी) गुर्वावलीविशुद्धि
गुरुस्तुति १५/ चतुर्विंशतिप्रबंध D ४००० राजशेखर १६ चित्रोडमहावीरविहारप्रशस्ति का.१०४ चारित्ररत्न १७ जगप्रबंध
जयसिंहप्रबंध (गद्य) । पत्र ५/ जिनचंद्रचतुःसप्ततिका |गा. ७४ जिनकुशल जिनप्रभप्रबंध
|पा.४
| पिटर्सन रि. ५ १४०५ वृ. पा. १-३-४ १९५/ खंबात.
लीबडी.
पत्र २
अ.१
लीबडी
१२०/
पा.४
A एर्नु अपरनाम “ सोमचरित्र , छे. B एन बीजु नाम “ त्रिदशतरंगिणी " एवं छे.
C आ गुर्वावलीविशुद्धि ते वखते धर्मसागरसूरि कृत गुर्वावलोनी वृत्ति तो नहि होय माटे तेनी प्रत फरिथी तपासवानी जरूर रहे छे. ____D वृहत् टिप्पनिकामा एनामाटे " १४ प्रबंधः ८४ कथाश्रराजशेखरसूरिकृतः॥ आपो उल्लेख के,
Page #245
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________________
जैन औपदेशिक
श्लोक.
नाम.
का .
रच्या
क्यां छ?
अ.२ जेसल.
अ.१
डेक्कन.
१७१२
प्रांझणप्रबंध A पत्र ८८ रत्नमंडन B २२ देवर्सिकथा
नंदोपाख्यान C नाभिनंदनोद्धारप्रबंध पट्टावली
पत्र १२ पट्टावली D
जिनदत्त पट्टावली सारोद्धार
रविवर्द्धन पूर्षपुरुषप्रबंध ( गद्य) पृथ्वीधरचरित्र
रत्नमंडन पृथ्वीराजविजय सटीक E ) जोनराज प्रबंधकोश
चंद्रशेखर F
म.१
डेक्कन.
डेक्कन
अ.२ डेकन.
A एनुं अपरनाम “ सुकृतसागर " एवं छे.
B आ नाम अमदावादना चंचलबाईना भंडारनी टीपमां नोंध्यु छे. जेसलमेरनी टीपमां हंसविजयजी महाराजे कानुं नाम आप्यु नथी. पण चंचलबाईना भंडारनी टीपमां तेना पत्र २७ नोंच्या छे, माटे ते एकज छे के जूदा जूदा छे ते बाबत नक्की करवा तेनी बन्ने प्रतो तपासवी जोहये.
C आ नंदोपाख्यान अमारा धारवा मुजब अन्यमतिए करेलु होवू जोइये.
D आ पट्टावली जेसलमेरनी चैपमां हीरालाले नोंधी छे.
E आ ग्रंथ तेनी टीका साथे डक्कन कॉलेजना लिस्टमा नोंचायो छे, पण कत्ता नाम उपरथी ते अत्यमतिकृत होय तेम विशेष संभवे छे. ___F आ चंद्रशेखरसूरि विक्रमनी पदरभी सदीमा थया होवा जोईये.
30
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________________
जैन औपदशिक
कर्ताःच्या क्या छ ?
___ नाम.
नाम.
श्लोक.
१-४भाव.
प्रबंधचिंतामणि A
मेरुतुंग B कृ. पा.४ प्रबंधपंचक
रिपोर्ट ६. प्रभावकचरित्र ५७८०, प्रभाद्र १३३४ बप्पभट्टीचरित्र ६६०
ली. डेक्कन. बौद्धमतोत्पत्तिप्रकरण D ! ४००
जेसल. भोजप्रबंध ३७००
लीबडी. भोजप्रबंध (पीजी)
बल्लाळ
पा.४ खंबात. भोजप्रबंध (त्रीजो)
मेस्तुंग
डेक्कन भोजप्रबंध (चोथो)
रत्नमंदिर अ. २ भोजप्रबंध (पांचमी)
सत्यराजगणि
शुभशील
-
-
A वृहटिप्पनिकामां एने प्रबंधचूडामणिना नाम नोंध्यु छे. तेना माटे ते टिप्पनिकामां "प्रबंध चूडामणिमस्तुंगसूरिय: ३५०४ " आवो नीध छे.
B आ मेरुतुंगसूरि ते चंद्रप्रभसूरिना शिष्य इता. पिटर्सन रिपोर्ट चौथामा तेमना माटे बुरे एवी नोंध करी छे के, तेमणे आ ग्रंथ वि. सं. १३६७ मां रच्यो छे एम तेमां जणाव्युं छ.
C एमां पांच पूर्वाचार्योना प्रबंधो छ. भद्रबाहुप्रबंध, जीवेदेवप्रबंध, आयमंगुप्रबंध, आर्यखपुटप्रबंध अने पादलिप्तप्रबंध मळी पांच प्रबंधो छे.
D आ प्रकरण जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोंध्यु छ तेथी शक पडतुं छै माटे तेनी प्रत नजरे तपासवानी जरूर छे, अने जो ते एज नामयी त्यां मळी आवे तो स्वास तेनी नकल उतरावी लेवी अगत्यनी छे.
Page #247
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________________
जैन औपदेशिक.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां छ?
.
पत्र १७
मेरुतुंग दलपतिराय
डेक्कन
पत्र४
अ. १ जेसल..
| डेकन.
पत्र ३८६ पत्र ४७
मंडपीयसंघप्रशस्ति मुंजराजाविप्रबंध A यवनपरिपाट्यनुक्रम रत्नश्रावकप्रबंध राजतरंगिणी " * बीजी) " * (श्रीजी) . * संग्रह জাবীবান্ধা लघुपोशालिकपडावली पस्तुपालचरित्र B वस्तुपालचरित्र (बीलु)
कल्हण ভাবলে श्रीधर
डेक्कन..
पत्र ६५
देवम.
पत्र १
शाहाब्राम
पत्र ४८
प्राज्यभट्ट
डेकन.
५००
पा. ५ वर्द्धमानसूरि रिपोर्ट.६ जयचंद्र शिष्य जिनहर्ष १४९७ पा. ५. डेक्कन.
A आ प्रबंध ते मेरुतुंगमरिकृत प्रबंधचिंतामणिनो कटको होय तो पण होय माटे तेनी प्रत फरी थी तसासवी जाईये.
1 . आ. निशाणीवाला पांचे ग्रंथ अन्यमतिकृत छ, पण ते खास इतिहासना होवाथी इहां दाखल कर्या छे.
___B आ वस्तुपालचरित्र फक्त एसिऑटिक सोसायटीना छठा रिपोर्टमा नोभ्यु छे, पण हजी सुधी अमोने ते कोईपण भंडारमा उपलब्ध थयुं नथी.
Page #248
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________________
जैन औपदेशिक.
नाम.
नाम.
. श्लोक.
कता.
ज्या
क्यां छे!
२७५
४७ पख
४८
हेछन
प. १३
M
वस्तुपालप्रबंध । ७१० राजशेखर ।
" (बीजो) वस्तुपालतेजपालप्रबंध(गद्य) पत्र ६
, (श्लोकबद्ध) | पत्र५ वस्तुपालप्रशस्ति
पा.१ जेसल. के, विक्रमादित्यचरित्र A पत्र ७५ रामचंद्र विक्रमप्रबंध
डेशन. विक्रमादित्यप्रबंध
विद्यापतिभट्ट अ. २. विमलचरित्र B
अ. १ विमलप्रासादप्रबंध
पा.४-५ विविधतीर्थकल्प
বিনম
पा.१ डेसन, बृहत्पोशालिकपट्टावली टीका
धनरत्नसरिशि
यहर्षकुल शालिवाहनचरित्र
शुभशील १५४० पा.५ सद्गुरुपद्धति (ताड)
पीटर्सन रि.५
पत्र४२
५२
गा.
A आ चरित्र फक्त डेक्कन कॉलेजमा छे.
B विमलचरित्र अमदावादना डेलाना भंडारमा छ, अन्य स्थळे चितज मळी शके छे.
Page #249
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन औपदेशिक.
नंबर.
नाम.
श्लोक.
का .
__ क्या छ?
पत्र ४७, क्षेमेंद्र
डेक्कन.
१४००) पा. ३
समयमातृका A, सोल्लकप्रबंध B स्तंभनपार्श्वप्रबंध हरिभद्रकथा हरिभद्रप्रबंध हरिवंश
पत्र ९३ मेरुतुंग पत्र४८
डेक्कन
पत्र १२
अ.
२
| पत्र३३७
डेकन.
A, B आ बन्ने ग्रंथो डेक्कन कॉलेजना लिस्टमा नोंधेला छ, पण तेमांनी चोकस माहिती जाणवा
माटे डेक्कन कॉलेजमांनी तेना प्रतो तपासी जोवानी जरूर छे.
C सदरहू ग्रंथ पण डेक्कन कॉलेजमांज छे. पण ते अमारा धारवा मुजब कोई दिगम्बर आचार्य
रच्यो होवो जोईये. छतां चौकस निर्णय माटे तेनी पण प्रत जोवी जोहये.
Page #250
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन औपदेशिक चरित्रना ग्रंथो. श्लोक. कर्ता.
नबर.
नाम.
याः क्या छ ?
वर्ग २ जो.
६५०
मुनिरत्न चंद्रतिलक D
रिपोर्ट ६, जेसल पा. ३-४.५ सं. . पा.५ जेसल.
अतिमुक्तचरित्र A अंबडचरित्र B (सं.) अभयकुमारचरित्र
___" E ( बीजुं) ४ अमरतेजचरित्र(श्लोकवद्ध ) ५ अमरसेनवयरसेनचरित्र
जेसल.
भरुच.
खर. मतिनंदन ।
___ * आ वर्गमां जैनाचार्योए संस्कृत प्राकृतमा रचला तमाम चरित्रना प्रथा अनुक्रमवार नोध्या छे. क्लॉस बीजामा तीर्थंकरचरित्रो नोंधवामां आवशे.
A जेसलमेरनी टीपमा हीरालाले सदरहू चरित्र में, १४२८ मां रचाएल छ एम जणाव्युं छे. पण ते शक भरेलं लागे छे कारण के एसियाटिक सोसायटीना रिपोर्ट छठामां आ चरित्र नोंच्यु छे पण त्यां ते संबंधी को उल्लेख जोवामां आवतो नथी. अमारा अनुमान मुजब आ चरित्र रचायानो समय: प्राचीन होवो जोईये.
B एमां अंबडक्षत्रिय तथा तेनी बत्रीश पुत्रिओनी उत्पत्ति केम थई ते वात छे.
C मुनिरत्नसूरि ते समुद्रघोषसूरिना शिष्य अने जिनसिंहसूरिना गुरु हता. तेमनी वंशावळी आ रीते छ:-कोटिकगणनी वञशाखाना चंद्रगच्छमां पहेला चंद्रप्रभसूरि थया के जेओ पूर्णिमा गच्छना स्थापक हता. तेमना पाटे धर्मघोषसूरि थया. धर्मघोषना पाटे समुद्रघोषसूरि थया. तेमना ऋण शिष्य सूरप्रभ, मुनिरत्न अने तिलकचंद्र आ ऋणमांना बोजा मुनिरत्नसूरिए आ चरित्र रच्युं छे. शिवाय भावी तीर्थकर श्री अममस्वामिनुं चरित्र जगद्दव प्रधान के जेने हेमचंद्राचार्थे “बालकवि" नु विरुद आप्युं तुं तेनी विनंतिथि वि. सं. १२५२ मा एमणेज रच्युं छे. . D आ चंद्रतिलक उपाध्याय क्यारे थया छे ते संबंधी चोकस माहिती मिळी नथी.
E आ चरित्रन हीराराले महाकाव्य तरीके नोध्यु छे, कान नाम आप्युं ना तेथी शक रहे के के वखते चंद्रतिलककृत तेज तो आ होय नहीं माटे तेनी प्रत तपासवी जोईए.
Page #251
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________________
जैन औपदेशिक
नबर.
नाम,
लोक कर्त्ता. नव्याः क्या छ ?
६ आरामशोमचरित्र(श्लोकबद्ध) पत्र २२| स्वर. जिनहर्ष ।
राधनपुर
হুমতি
२७५ उत्तमकुमारचरित्र ३३०, चारुचंद्रीय ९ उदायनराजचरित्र(श्लोकबद्ध) पत्र ४१
पा.३-४ डेक्कन. अ. २ डेकन.
अ.१
१० ऋषिदत्ताचरित्र A (प्रा.)| १५५०
गुणपाल
१२६४/ वृ. डेक्कन पेज १६४
যক্ষাঘষি B
| ६५०० देवमत्युपाध्याय
पत्र ६७०
कनकरथचरित्र १३| कनकावतीचरित्र
| अ.१
डेक्कन पेज ३६
पत्र ३५ जिनसूरि
__A आ चरित्र फक्त डेक्कन कॉलेजमां छे, वृटिप्पनिकाकारे नोध्यु छ पण तेने उपलब्ध थयु नथी. डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमा संवतमा विकल्प जणावेल होवाथी अमे पण बन्ने अंकोथी रचना समय दाव्यो छे.
B आ चरित्र वृहटिप्पनिकामा नोभ्युं छे. बाकी क्या पण उपलब्ध थयुं नथी. एना माटे ते टिप्पनिकामां " ११ गणधरच. सं. खरतरदेवमत्युपाध्यायीयं ६५०. " आवो नोध छे. एमां श्रीमहावीरस्वामिना गणधरोना चरित्र छे.
C आ कनकावती चरित्र प्राकृत तथा संस्कृत भाषामां रचायलुं छे. एम डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमा जणाव्युं छे, पण कतर्नुि नाम अपूर्ण लागे छ माटे तेमनुं पुरं नाम शुं छे ते जाणवा माटे तेनी प्रत तपांशी जोवानी जरूर रहे छे.
Page #252
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन औपदेशिक
नाम.
. श्लोक.
कर्ता. रयाः क्या छ ?
-
पा.२
१२५
१४) कलावतीचरित्र (श्लोकबद्ध) पत्र ८
__ " A (बीजु) कुर्मापुत्रचरित्र (सं.) कुवलयमाला (प्रा.) कुवलयमाला C (सं.) कृतपुण्यचरित्र १६५० कृष्णचरित्र D (प्रा.)
१००००
काज
जेसल. उद्योतनसुरि B ८३५ वृ. डेकन रत्नप्रभ पूर्णभद्र १२८५ जेसल.
| ३८९७
| १४००
डेक्कन,
गुणवर्मचरित्र गुणसुंदरीचरित्र
१९४८ मांच.माणिक्य
सुंदर पत्र १२
पा. ४-५-६ डे. जेसल.
A आ चरित्र पाटणना भंडार नंबर बीजामां ताइपत्रपर लखेलुं छे, पण ते कोणे रचेलं छे ते तपासवानी अगत्य छे.
B आ उद्योतनसूरि ते प्रथम देवसूरिना शिष्य नेमिचंद्रसरिना शिष्य हता. आ उद्योतनसूरिनी छठी पेहेडीए देवसूरिना शिष्य उद्योतनसूरि विक्रमनी बारमी सदीनी शरुआतमा थया, ते परथी तेमनी पहेली पेहेडीए यएला उद्योतनसूरि विक्रमनी नवमी सदीनी शरुआतमा विद्यमान इता. अने तेमणेज आ चरित्र रच्यु छ एम चोकस निर्णय थाय छे. आ उपरथी सदरहू चरित्र बहुज प्राचीन होवा साथे तेनी रचना पण रम्य होवी जोइये, तेनी खरी खात्री माटे डेक्कन कॉलेजमांनी प्रत नजरे तपासवी जोइये.
C आ संस्कृत कुवलयमाला वृहटिप्पनिकामां नोंधी छे पण अमोने इजी सुधी क्या पण उपलब्ध थह नथी.
D डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां आ चरित्र नोंध्यु छ पण ते स्वमतिकृत छे के अन्यमतिकृत छे ते जाणवा माटे तेनी प्रत जोवानी जरूर छे. पंन्यास श्री आणंदसागरजी जणावे छे के आ चरित्र तेमना धारवा मुजब श्राद्धदिनकरमाथी उद्धरेलुं होय एम संभव छे.
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________________
जैन औपदोशिक.
नाम.
नामा
श्लोक. श्लोक.
का .
क्यां छ?
पं. सागरदच १०७६, वृ.
भुवनकी पनसुंदर
राधनपूर. पा. ३-४.
| जंबूस्वामीचरित्र A गा -१६४४
" B (बीलु) (प्रा.) | २६०० टिप्पन अंबूस्वामीचरित्र (पी) प्रा. पत्र५३
" D (चोj ) (प्रा.) ७५० " (पांच) (सं.) पत्र १४
(छ) (गध) ८९७ (सातk) पत्र ११ (आठमुं)
१३०० " (नवk)
पत्र ५०
पा.५ भाव. पा.१-४.
सकलहर्ष मानसिंह
डेक्कन.
अ.१
A सदरहू चरित्रने माटे वृहटिप्पनिकामां “ जंबूस्वामीचरित्रं प्रा. ८२ वर्षे गा. १६४४" आवो नोंघ छे. आ नोधमा रच्यानो संवत् नोंधतां अंतनो एक अंक लखता रही गयो लागे छे अने तेम होय तो मा चरित्र वि. सं. ८३० ना लगभगमा रच्यु होय तेम विशेष संभवित छे, पण ते क्या पण जोवामां भाव्यु नथी.
B आ चरित्र तेना टिप्पन साथे वृहटिप्पनिकामा नोध्यु छ, तेना माटे त्यां आ रीते नोंध छे. " जंबूस्वामि च. प्रा. संध्यादिबंधे १०७६ वर्षे पं. सागरदत्तेन कृतं २६०० तस्य टिप्पनं ११००"
C भुवनकीर्तिसरि ते सकलचंद्रना शिष्य इता. वेबरे पोताना नोंधमां सकलचंद्र सं. १५२० मा हता एम जणाव्युं छे. ते उपरथी तेमना शिष्य भुवनकीर्तिए आ चरित्र विक्रमनी सोळमी सदीना मध्यमां रच्यु हो जोइये. भुवनकीर्तिसरि दिगम्बर तथा श्वेताम्बर बन्ने आम्नायमां थएला छे, तो आ चरित्रना करनार भुवनकीर्तिरि ते कोण हता ते बाबत तेनी प्रत नजरे तपासवाथी निर्णय थइ शके.
D आ चरित्र कथानकरूपे छे भांडारकरे तेने " जंबुअध्ययन " तरीके नोंध्यु छे.
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________________
जैन औपदेशिक.
नंबर.
नाम,
श्लोक.
कर्ता.
नो सं.
क्यां छे?
पा.५ अ.१
जयानंदचरित्र " (वीजु ) ( गद्य)
मुनिसुंदर पत्र २१३ पद्मविजय A
पा. ३ अ.१
BI
त्रिभुवनसिंहचरित्र (गद्य) त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र २४००० हेमचंद्र ___ " C ( बीजु)
सुलभ्य. छपाय छे.
जेसल-बे.
ताड१२६
पत्र ५०
२५ दमयंतीचरित्र २६ दमयंतीप्रबंध (गद्य)
" (श्लोकबद्ध) दशश्रावकचरित्र
" (प्रा.) २८, दृढमहारिचरित्र D २९ देवकीचरित्र (प्रा.)
शुभवर्द्धन
पा. ३ जेसल. १५४६/ पा. ३ वं.
जेसल. नगीनदास.
गा.१०१
A पद्मविजयसूरि माटे यशोविजयजी उपाध्याये रचेला ज्ञानबिंदु प्रकरणना प्रान्ते प्रशस्तिमा तेओ यशोविजयजीना गुरुभाई हता एम जणाव्यु छे.
Bएमां वेसठ शलाका पुरुषोना चरित्रो छे. हेमचंद्राचार्यजीए एनी रचना गंभीर आशय साथे घणाज सुगम काव्योमा करी छे.
C आ बीजं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र जेसलमेरनी बन्ने टीपोमा ते संस्कृत गद्यमां रचायलं भने मलधार गच्छना आचार्ये करेलु ताडपत्र पर लखेलुं छे एम जणाव्युं छे.
D आ चरित्र हीरालाले नोंध्यु छे अने ते तुटक छ एम जणाव्युं छे, पण अमारा धारवा मुजब आ दृढप्रहारिनी कथा उद्धरेली होची जोइये.
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________________
नंवर.
नाम.
ध.
३० धन्नाचरित्र
जैन औपदेशिक.
लोक.
१३००
१४६०
धन्यशालिचरित्र B
धन्यचरित्र (गद्य)
धन्यचरित्र
१०००
(३१) धम्मिलचरित्र (श्लोकबद्ध ) ३५००
धम्मिलचरित्र ( सं . )
४७८
९०००
न.
३२ नरब्रह्मचरित्र (सं.)
३३ नरवर्मचरित्र *
३४ नवनंदचरित्र *
| ३५ नागकुमारचरित्र
५००
३६ नागदत्तचरित्र (प्रा.) १०००
पत्र ९२
५००
१०००
कर्ता.
मुनिसुंदर
रच्या
नो सं.
रत्न योगींद्र D
क्यां छे ?
जिनकीर्ति A
पा. ४-५-६ लीं.
सुलभ्य.
पूर्णभद्र C | १२८५/ वृ. जेसल - बे.
ज्ञानसागर
भाव.
दिगं. गुणभद्र
ली. खं.
आंच.जयशेखर १४६२ लीं. खं.
पा. ४,
ली.
२२५
अ. १
जेसल.
जेसल.
नगीनदास.
जेसल.
A. आ जिनकीर्तिसूरि ते सोमसुंदरसूरिना पांच शिष्यमांना एक हता. एमणे पोताना नवकारस्तव उपर सं. १४९४ मां टीका रची छे, वेबरे आ चरित्र रच्यानो चोकस संवत् १४९७ आप्यो छे. शिवाय चंपक श्रेष्ठिकथा, श्रीपालगोपालकथा तथा दानकल्पद्रुम विगेरेना करनार पण आज जिनकी सूरि छे.
B आ चरित्र माठे बृहत्टिष्पनिकामां “ धन्यशालिभद्रचरित्रं पूर्णभद्रगणिना १२८५ वर्षे कृतं. श्लोक १४६ " आवो नोंध छे.
C ईरालाले करेली टीपमां आ चरित्रना कर्त्ता देवगुप्तशिष्य भद्रगुप्त रुद्रपल्लीय छे एम नोंधीने ते रच्यानो संवत् १४२८ नोध्यो छे. पण आ बिना तदन शक पडती लागे छे. कारण के वृहत् टिप्पनिकामां एना कर्ता पूर्णभद्र नोध्या छे, अने हंसविजयजी महाराजनी टीपमां पण तेज नाम आपल छे. माटे एना कर्त्ता पूर्णभद्रज ठरे छे.
* आ निशाणीवाळा त्रणे चरित्रो जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोध्या छे तेथी तेमना नाममां तथा कर्ताना नाममां शक रहे छे, माटे तेनी प्रतो फरीथी नजरे जोवानी जरूर रहे छे. D आ रत्नयोगींद्र अमारा धारवा मुजब कोई दिगंबर होवा जोइये, छतां ते कोण हता तथा आ चरित्र तेमणे क्यारे रच्युं छे ते बाबतनो निर्णय संवातना शेठ नगीनदासना भंडारमांनी तेनी प्रत नजर जोया वगर थवो मुइकेलं छे..
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________________
जैन औपदेशिक.
रच्या
नाम.
श्लोक.
का .
क्यां
छ?
नोसं
२२००
३७ पनचरित्र A (प्रा.) ।। " (सं.) १३८ पद्मावतीचरित्र (प्रा.) पत्र १४४
पांडवचरित्र (सं.) ___ , बीजु (गद्य)
, उद्धार पत्र ३३ पुंडरीकचरित्र
३३०० पूर्वर्षिचरित्र ४२ पृथ्वीचंद्रचरित्र C (प्रा.) ७५००
विमलसूरि । ६० वृ. पा. १-२-३-४ देवविजय अ.१ डेक्कम.
डेक्कन पेज ३७ मल. देवप्रभ B . सुलभ्य. देषविजय १६६० पा.३ अयानंद
राधनपूर. कमलप्रम
१३७२/. पा. ४-५ प्रधुन्न १३०४/ पा.४ शांतिसरि १९६१ वृ. पा.१-४
५७७४
A एनु अपरनाम रामचरित्र छे. एने जैन रामायण पण कडेवामां आवे छे. आ चरित्र गाय बद्ध होवा साथे वैराग्यरसथी परित छे. नादिल वंशना विमलाचार्य महावीरस्वामिना निर्वाणथी ५३० मे वर्षे एटले विक्रम सं. ६० मां आ चरित्रनी रचना करी. तेथी आ चरित्र अत्यंत प्राचीन समयमा थएल छे. एम चोकस साबीत थाय छे. कारण के देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणे विक्रम सं. ५२३ मां सूत्रो पुस्तकारूढ कर्या तो ते समयथी पण ४६३ वर्ष पहेलां आ चरित्र रचायलं छे. पण दिलगिरी के के आवां प्राचीन चरित्र तेनी गेर संभाळ अने ज्ञाननी ओछासने लीधे कचितज जोवामां आवे छे.
B आ मलधारि देवप्रभसूरि कोना शिष्य हता ते बाबत चोकस निर्णय यतो नथी. कारण के पिटर्सन रिपोर्ट चोथामा तेमनी वंशावळी आ रीते आपी छ:--कोटीकगणनी मध्यमशाखा, श्रीप्रभवाइनकुल, इर्षपुरीयगच्छमां (१) अभयदेवसूरि थया तेमना पाटे हेमसूरि के जेओ सिद्धराजना समकालीन हता, तेमना पाटे विजयसिंहसरि तेमना पाटे चंद्रसरि तेमना पाटे मुनिचंद्रसूरि थया. आ मुनिचंद्रसूरिना शिष्य ते आ पांडवचरित्रना करनार देवप्रभरि छ एम जणाव्यु छे. पण रिपोर्ट त्रीजाना पेज २७५ मां न्यायकंदलिनी प्रशस्तिमां आ देवप्रभसूरि मुनिचंद्रसरिना " क्रमिक " इता एम जणाव्युं छे. ते उपरथी तेओ मुनिचंद्रसूरिना धर्मसहोदर हता अगर तेमना पाटे थएला हता ते बाबत शक रहे थे. वळी एज रिपोर्टना पेज १३२ मां पांडवचरित्रना प्रांते प्रशस्तिमा आ देवप्रभसरि देवानंदना शिष्य हता आवी नोंघ करेली छे. माटे आ देवप्रभसरि कोना शिष्य इता ते वावत चोकस पुरावो जे मुनि महाशयना जाणवामां होय तेमने ते अमोने लखी मोकलवा कृपा करवी, एवी अमारी तेमने नम्र प्रार्थना छे.
C एना माटे वृटिप्पनिकामां “पृथ्वीचंद्रचरित्रं प्रा. मु. गाथादिमयं ११६१ वर्षे शांतिरिभिः कृतं ७५.. आवो नोध छे.
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________________
जैन औपदेशिका
HT
नाम..
श्लोक.
__ का .
क्यां
छ?
११००
कनकचंद्र
१२२६ वृ.
रत्नप्रभ
पा. ४ जेसल.
कपविजय
| अ.
१
टिप्पनक A संकेत (विषमपद
व्याख्या )B पृथ्वीचंद्रचरित्र (बी)
" (श्रीजु) गद्य , (चोथु) , (पांच) " (छई) प्रत्येकबुद्धचरिष(प्रा.) प्रदेशिचरित्र (प्रा.) प्रधुम्नचरित्र , (पीलु) , (प्रा.) (जीलु) , (सं.) (चो) )
माणिक्यसुंदर पा.३ पत्र १५५ । लब्धिसागर भ.१ पत्र २१
अ. २ भरुच. ६०५०| श्रीतिलक १२६१ इ. पा.१-४ मुलभ्य
जसल. रत्नसिंह १७६१ अ. १ ली. पी. रि.५ ७००२ रविसागर १२०७ पा. ४
पा. ४ सोमकीर्ति
अ.१-२ भाव.
३०/
A, B आ बने ग्रंथो वृहाटप्पनिकामा नोंध्या छ, पण अमोने क्यां पण उपलब्ध थया नथी.
C अमदाबादमा डेलाना भंडारनी टीपमा कानुं नाम रलचंद्र आप्यु छ, माटे त्यांनी प्रत तपाशी जोवानी जरूर छे,
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________________
जैन औपदेशिक.
नंबर.
नाम.
श्लोक कर्ताः नया क्या छ।
अ.
२.
प्रद्युम्नचरित्र (पांचमुं) ४६ प्रभावतीचरित्र B
पत्र १.७ महसेन A २२००
जसल.
बाहुबळिचरित्र C (सं
असल.
सेकन.
/c/
मरतचरित्र D (प्रा.)
भरताष्टक
अ. १
पत्र ४८ २००० महेश्वरस्ि
भविष्यदत्ताख्यान भव्यकुटुंबचरित्र भुवनमानुचरित्र ( गद्य) भुवनसुंदरीचरित्र
१८५०/ इंद्रहंस १०३५० विजयसिंह
पा.४ १५५४/ पा.४ ली. खं. ९७५ वृ. नगीनदास भाव.
___A महसेन आ नाम फक्त अनुयोगद्वारचर्णिना प्रांते जोवामां आव्युं छे ते शिवाय बीजा कोइ महसेनाचार्य थया जाणवामां आव्या नथी. पण कदाच अनुयोगद्वारना चर्णिकार महसेनगणि एटले जिनदासगणि महत्तर जो आ चरित्रना करनार होय तो ते विशेष संभवे तेम छे. कारण के जिनदास गणिना गुरुनु नाम पण प्रद्युम्नक्षमाश्रमणज हतुं. तो ते मुजब आ चरित्र तेमना शिष्ये रच्यु हो जाइये. जिनदासगणि याकिनीसूनु हरिभद्रसूरिथी पण अगाऊ यह गएला छ माटे आ चरित्र तेमणेज रच्युं छे के बीजा कोइ महसेन नामना आचार्य रच्युं छे ते बाबत चोकस खात्री करवा चंचलबाईना भंडारमांनी एनी प्रत नजरे तपासवानी आवश्यकता छे. पं. आणंदसागरजी माराज जणावे छे के प्राये आ ग्रंथ दिगंबरकृत होय तेम तेना काना नाम उपरथी जणाय छे. वळी भावनगरना विद्याप्रसारक वर्ग. छपाव्युं पण छ एम तेमनी स्मृतीमां छे.
B,C आ चरित्रो जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोध्यां छे तेथी शक पद्धता छे. D आ भरतचरित्र फक्त डेक्कन कॉलेजमा छ, माटे उतारवा योग्य छे. E एना माटे वृहटिप्पनिकामां नीचे मुजब नौध छ:" भुवनसुंदरी च. प्रा. गाथाबद्धं नइनकुलीयश्रीविजयसिंहाचार्यः ९७५ वर्षे कृतं
गा. ८९११॥
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________________
जैन औपदेशिक.
२२९
न
नाम.
नाम.
श्लोक. कर्ता. नव्याः क्या छ ?
मुनिपतिचरित्र (प्रा.) गा.६४४ (वि.) हरिभद्र ११७२ पा. ३-४
, (सं.) ३२००० जंबूनाग १००५ . पा.४ खं. डे.
मनोरमाचरित्र A (प्रा.) १५००० बर्द्धमान २१४० . ५६, मलयसुंदरीचरित्र (प्रा.) २४३० आगमिक पा४-६भाव.सुलभ्य
जयतिलक " (मा.) ५७ महानरेंद्रकेवलिचरित्र पत्र ३१
अ. २ महापुरुषचरित्र B(प्रा.) | ११४८० शीलाचार्य ९२५ वृ. पा.४ जे.-बे.
, C (प्रा.)बीलु गा८७९० आम्रसूरि " (सं.) श्रीजु २३३६ मेरुतुंग
पा. ४-५अ. १ महीपालचरित्र २७०० वीरदेवगणि D वृ. पा. ३-४ " गा. ५९९
चारित्रसुंदर
पा. ५ स्वं.
A सदरहू चरित्रने माटे वृहाटप्पनिकामां " मनोरमाचरित्रं प्रा. मु. गाथामयं च ११४० वर्षे श्रीअभयदेवसरिशिष्यवर्द्धमानसूरीयं १५०००। आवो नोध छे. पण ते अमोने हजी सुधी क्या पण उपलब्ध थयु नयी.
Bएना माटे वृहटिप्पनिकामां " महापुरुषचरित्रं प्रा.मु. शलाकापुरुषवृत्तवाच्यं ९२५ वर्षे शीलाचायः कृतं १००००" आवो नोध छे.
Cआ बीजं महापुरुषचरित्र फक्त वृहटिप्पनिकामां नोंभ्यु छे, बाकी क्या पण उपलब्ध थयु नथी. तेना माटे ते टिप्पनिकामां आवो नोध छे. " महापुरुषचरित्रं प्रा. ६३ शलाकापुरुषवृत्तवाच्य आम्रकृतं गा. ८७९० श्लोक १००५०" पण अमारा धारवा मुजर आ बन्ने एकज हशे.
___D आ वीरदेवगणिए मलधारि अभयदेवसूरिने मंत्रविद्या शिखवाडी हती. अभयदेवसरिने मलधारि आ विरुद गुजरातना कर्णराजाए आप्यु हतुं. कर्णराजा सं. ११२० थी ११५० सुधी इतो. ते उपरथी आ वीरदेवगणि अभयदेवसरिना समकालिन हता. एम चोकस निर्णय थाय छे.
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जैन औपदेशिक
नंबर.
नाम.
नाम.
श्लोक.
कता
क्यां छ?
पभकुमार
ली.
.
मृगध्वजचरित्र मृगापुत्रचरित्र (प्रा.) मृगावतीचरित्र
पा.४
मल. देवप्रभ
पा.४.१-२
पा.४ पिटर्सन रि.५ अ.२ रेकम.
২ মিহি
हेमकुंजर , (बोर्जु) वादिराज A
(श्रीजुं) माणिक्यसूरिः (चोथु) देवसूरि (पांच) १३५० क्षमाकल्याण
(छर्छ) पत्र ३५ सोमकीर्ति ", . (सातमुं) ८६० (दिग)सकलकीर्ति युगप्रधानचरित्र
डेक्कन. ली. डेकन.
डेक्कन
| पा.४. जैसल.
रत्नचूडचरित्र रसमंजरीचरित्र
| पत्र ५३, राजवर्द्धन पत्र २१५ माणिक्यचंद्र
अ.२
A आ वादिराज दिगम्बराचार्य इता. एमनो रचेलो बीजो ग्रंथ श्रीपार्श्वनाथकाकुस्थ चरित्र छ.
B आ माणिक्यसरि ते खरतर जिनहंसमरिना शिष्य अने गुणरत्नसूरिना गुरु हता. पिटर्सने तेमने खरतरगच्छनी पट्टावलीमा ६० में नंबरे नोंच्या छे.
C आ चरित्र जेसलमेरनी टीपा हसविजयजी महाराजे नोंध्यु छ. एमां श्रुतकेवलि स्यूलिभद्र पर्यंत युगप्रधानोना चरित्रो संस्कृत प्राकृतमां रचायला छे, एम सेमा जणाव्युं छे.
D माणिक्यचंद्रसूरि ते राजगच्छना प्रद्युम्नसरिथी नवमे पाटे थएला सागरचंद्रसूरिना शिष्य इता. एमणे सं. १२७६ मां दीव बंदरमा रही श्रीपार्श्वनाथचरित्र रच्यु छ. शिवाय काव्यप्रकाशसंकेत तथा कुबेरपुराण पण तेमणेज रचेलां छे.
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________________
जैन औपदेशिक.
___ नाम.
श्लोक. फर्ता.
च्या- क्या छ ?
। ५०००
राजहंसचरित्र (श्लोकबद्ध) पत्र २७ মঙ্গি (নয়)।
, (बीजुं) रूपसेनचरित्र
" (बी) रोहणीचरित्र B (प्रा.) | १०.३
दवाघजयगणि १६५२ पा. ३. अ. १. विजयसेन 4 रविसागर १६३६/ पा.३-४-५. जिनसरि पा.४ खं.हे.
नगीनदास.
७०
७१, ललितांगनरेश्वरचरित्र
पश
डेक्कन.
व.
पा.२ नगीनदास.
७२ घनचरित्र (प्रा.)
परदत्तचरित्र C ( गद्य)
जेसल.
A आ विजयसेनसूरि नागेंद्रगच्छना कलिकालगौतम हरिभद्रसूरिना शिष्य हता. आ विजयसेनसरिए भासडे करेली विवेकमंजरीने शुद्ध करवामां तेमने मदत करी छे. एटले तेओ सं. १२६० ना गभगमा विद्यमान इता.
B आ चरित्र फक्त खंबातना शेठ नगीनदासना भंडारमा छे, बाकी क्षां पण उपलब्ध थयु थी. माटे ते उतारो फरवा लायक छे.
C आ चरित्र संस्कृत गधमा छ एम हीरालाले नोभ्यं छे.
29
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________________
२३२
जैन औपदेशिक.
नंबर.
नाम.
श्लोक
रच्यानोसं.
क्या छ ?
वसुदेवहिंड A ( प्र. खंड) १७०००
, B (द्वि. खंड) | ११०. ७५ विक्रमचरित्र | ६.२०
वृ. पा.१-४-६.१ वृ.पा. १-५-६ अ.१
१४९० पा.३ ख.
संघदास धर्मसेन रामचंद्र देवमूर्ति वीरदेव आमसूरिक
७६ विजयचंद्रकेवलिचरित्र
___ , (बीजं)
१०५० पत्र ६०
११८७ वृ. पा. ३-५
राधनपुर.
___A, B वसुदेवहिंडि माटे वृहटिप्पनिकामां वसुदेवहिंडि प्रथमखंड संघदासवाचककृत ११००० वसु. द्वितीयखंडं अपराचार्यकृतं ६६०० वसु. मध्यमखंडं संग्रहणीकं ९००० आ रीते नोध छे." आ नोधमां द्वितीयखंड पछी मध्यमखंड नोंधेल होवाथी आ नोधमा नोंच्या शिवायना बोजा खंडो होय तेम संभव थाय छे. पण ते वृहटिप्पनिकाकारने पण उपलब्ध यया नयी एम मालम पढे छे. वृहत्टिप्पनिकाकारे द्वितीयखंड पछी मध्यमखंड नोंध्यु छे, त्यारे पाटण, अमदावाद आदिनी टीपोमां प्रथमखंड, मध्यमखंड अने द्वितीयखंड आवी रीते मध्यमखंडने प्रथमखंड साथे नोध्यु छे. पिटसने वसुदेवाहिनी नोंध लेतां पोताना त्रीजा रिपोर्टना पेज १९६ मां तेना प्रथमखंड, द्वितीयखंड अने तृतीयखंड एम ऋण स्त्रंडो जणाव्या छे. द्वितीयखंडने शरुआतमा द्वितीयखंड तरीके नोंधीने प्रतिमां मध्यमखंडना नामे ओळ. खावी प्रथम तथा द्वितीयखंडनी श्लोकसंख्या १७८.. जणाधी छे. तेमज तृतीयखंडना प्रारंभमां तृतीयखंड तरीके नोधी प्रांतमा मध्यमखंडनुं नाम आप्युं छे. श्लोकसंख्या नापी नथी.
आ रीते जुदा जुदा नोंघो उपरथी वसुदेवहिंडिना चोकस खंड तथा तेनी श्लोकसंख्या माटे जबर शक रहे छ. अमारा धारवा मुजब एना एकोत्तर लंभको छे. तेमाथी चुमालीस लभकोमा प्रथमखंड अने द्वितीयखंड (मध्यमखंड ) समाप्त थाय छे. आ बन्ने श्लोक १७... प्रमाणना छे. आ प्रथम अने मध्यमखंडने प्रथमखंड तरीकेज मानीए तो मानी शकाय तेम छे. पिटर्सने जेनी ततीयखंड तरीके मान्यता करी छे ते ततीयखंड नहि पण श्लोक ११००० बाळु धर्मसेनगणि महसरे रचेलं द्वितीयखंड होवु जोइये. अने जो तेमज होय तो अमदावादना डलाना भंडारमा बन्ने खंडो मोजुद छे तो त्यांनी प्रत नजरे तपासी जोयाथी चोकस खुलासो थह शके तेम छे. छतां आ बाबत सुज्ञ मुनिवर्ग महाशयोने विनंति करवामां आवे छे के जे महाशय पासे आ संपूर्ण ग्रंथ मोजुद होय अगर जेमने आ संबंधी नोकस माहिती जाणवामां आवी होय तेओभीए ते अमोने लखी जणाक्वा कृपा करवी एवी अमारी तेमने नम्र प्रार्थना छे.
C आ नाम शक पडतुं लागे छ, कारण के आ नामना कोइ आचार्य यया जाणवामां आव्या नथी. वखते महापुरुषचरित्रना करनार आम्रसूरिए आ चरित्र रच्युं होय तो होय, छतां चोकस निर्णय राधनपुरना भंडारमांनी तेनी प्रत जोया वगर थई शके तेम नथी.
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जैन औपदेशिक.
२
नाम.
श्लोक । कर्ता. नव्याः क्या छ ?
पा. २.
विनयधर चरित्र (प्रा.) विंशतिस्थानचरित्र
७८
२८००
जिनहर्ष
१५०२ पा. २-४.
शोधचरित्र A (स.) शालिचरित्र
। १२२४
धर्मकुमार
१३३४/ वृ. पा. १-३
___ अवचूरि
पत्र ११
३ खंबात.
८५ शालिचरित्र (प्रा.)
नगीनदास.
"
पत्र ३०
विनयसागर प्रभाचंद्र सोमप्रभ মহাত
पत्र २४
पत्र २० হাকিম্বানুনায় ৪ भावकचारित्र भीचंद्रकेवलिश्चरित्र(प्रा.)ता. ८७
| ३२९६
१५४० पा.५
जेसल-थे.
पा. २.
-
३७००
डेक्कन.
पा. ३-४५. शीलसिंह शीलसिंह माणिक्यसुंदर १४६३ पा. ४.
डेकन.
प्रशस्ति #ীমঙ্গ
A वृहटिप्पनिकामां आ चरित्र नोंध्यं छे पण अमोने उपलब्ध थयु नथी.
B आ चरित्र पूर्व ऐतिहासिक ग्रंथोना वर्गमा नोंधायुं छे. छतां आ चरित्रनो वर्ग होवाथी इहां पण नोंध्यु छे. । C आ चरित्र फक्त पाटणना भंडार नंबर बीजामा ते प्राकृतमा रचायलं. छे एम. जणाव्युं छे, बाकी क्या पण जोवामां आव्युं नधी माटे ते उतारो करवा योग्य छे.
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जैन औपदेशिक
नाम.
| नंबर
श्लोक. कत्ती. नव्याः क्या छ ?
--
-
श्रीपार्श्व१०गणधर चरित्रो ४३५० श्रीपालचरित्र (प्रा.) १३४१, रत्नशेश्वर १४२८, पा.१-३भा सुलाय टीका
४५.. क्षमाकल्याण १५५४/ डेक्कन. श्रीपालचरित्र (स.) सत्यराजगणि
पा. ३ जेसल-हे. , (श्लोकवस) पत्र ५१ सोमकीर्ति अ.१
१५५० क्षमाकल्याण मागोर. * २००० पंडित राइधु B रिपोर्ट ६
पत्र २४ सोमचंद्र , (गध)
जयकीर्ति
डेकन. __, (गद्य) पत्र ५३ शानविमल
अ.१ श्रेणिकचरित्र (गध )D १०००, धर्मपर्खन
डेखन.
८८
'A सदरहू चरित्र वृहत् टिप्पनिकामां नोध्युं छे. एना माटे ते टिप्पनिकामा " श्रीपार्श्व १. गणघरचरित्राणि प्रा. मु. ४३५०॥ आवो नाँध छ.
* आ चरित्र नागोरना भंडारनी टीपमा नोंभ्यु छे. पण तेनी लोकसंख्या उपरथी शक हे छै. कारण के टीका सहित एना श्लोक ४५.. छे, अने टीकाकार क्षमाकल्याण छे. नागोरनी टीपमा १५५० नो आंक नोध्यो छे ते मूळ अंथना हिंसाबे लख्यो होवो जोइये, अने मूळकार रत्नशेखरसूरि होवा जोइये एम विशेष संभव छै.
B आ राइधु पंडित अन्यमति होय तेम लागे छे, अने तेमने आ चरित्र रच्यं छे.
C सोमचंद्रसरिए गुरुगुणसत्तरि रची छे.
D आ श्रेणिकचरित्र फक्त डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां नोभ्युं छे.
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मैन औपदेशिक
-
नंबर.
नाम.
GIR
श्लोक. कर्ता. रयाः क्या छ ?
तोस
षट्पुरुषचरित्र
६८८
क्षेमंकर A
पा.४-५
सगरचकिचरित्र B ७००
जेसल. सनत्कुमारचरित्र (प्रा.) | ८१२७ श्रीचंद्र १२१४ पा. ३-५
, C(महाकाव्य) २२०३ जिनपतिशिष्य जेसल-थे. संजनाख्यान
जेसल-चे. सप्तक्षेत्री D
७२०० गुणाकर ११७८ वृ. समरादित्यचरित्र (प्रा.) १०००० हरिभद्रसूरि वृ. पा. ४-५३. टिप्पन
मतिवर्द्धन समरादित्यचरित्र ५८७४E प्रद्युम्नसूरि १३२४ वृ.पा.४-५खं.
डेशन.
__A क्षमकर ते कोण हता अने तेमणे आ चरित्र क्यारे रच्युं छे ते बाबत चोकस खातरी करवा माटे तेनी प्रत फरीथी जोवा जोइये. ___B आ चरित्र होरालालना नोधमा छे माटे शक पडतुं छे.
Cआ चरित्र महाकाव्यना नामे ओळखाय छ. तेने आगळ काव्यना वर्गमा नाघवामां आवशे. छता एक चरित्रनो वर्ग होवाथी चरित्रना नामे पण नोंध्यु छे. जेसलमेरनी बन्ने टीपोमां आ चरित्र नोध्यु छ, पण कर्तार्नु नाम जिनपतिशिष्य एषु संदिग्धज आप्युं छे. तो जिनपतिशिष्य ते कोण जिनेश्वरमरि हता के कोई बीजा आचार्य हता ते बाबत चोकस निर्णय तेनी प्रत नजरे जोया वगर यह शके तेम नथी.
D एना माटे वृहटिप्पनिकामां " सप्तक्षेत्री नामक ११७८ वर्षे गुणाकरीयं ७२०. वो नोध छे. पण ते अमोने इजी सुधी क्या पण उपलब्ध थयु नथी. पं. आणंदसागरजीना जाणवा मुजब
मा सप्तक्षेत्री ते दर्शनशुद्धि नामना प्रकरणनी वृत्ति इशे एम तेओ जणावे छे. .. E आलोकसंख्या पाटण तथा खंबातनी टीपोमा नोंधेली होवाधी तेना भरोंसे अभे इहां टांकी छे. वृहटिप्पनिकामा एना श्लोक ४८७४ जणाच्या छे.
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जैन औपदेशिक.
नाम.
लोक.
का .
रच्यानो सं.
क्यां छे?
वृ. पा. ५.
डेछन.
समरादित्यचरित्र A पत्र २८१ धर्मरत्नसूरि , B
पत्र २०१ गुणरत्नसूरि सिरसेनचरित्र ( ता.१०४ माणिक्यचंद्र सीतासरित्र (प्रा.)| ३१००
, D प्रा. (बाजु) | ३४००
" (त्रीजु) गा.४६५, भुवनतुंग
सुप्रीवचरित्र E (प्रा.) ६०० ९८ सुदर्शनाचरित्र (प्रा.) १८८७ | मल. देवप्रभ
___ (बीजु) ८५२ देवेंद्रसरि सुनक्षचरित्र सुबाहुचरित्र
गा. २२८ सुभद्राचरित्र F
जेसल.
पा. २-५ जेसल-घे. जेसल. नगीनदास.. जेसल.
A, B आ बन्ने चरित्रो अमारा धारवा मुजब एकज हशे. कारण के आ चरित्रना करनार बन्ने आचार्यों एकज वखतमा हता. तो तेमने बे जणा मळीने आ चरित्र रब्युं होय तेम विशेष संभवित छे. छतां ते एकज छ के भिन्न छे ते बाबत चौकस निर्णय करवा बन्नेनी प्रतो तपासवानी जरूर रहे छे.
Cआ सिद्धसेनचरित्र फक्त पाटणना बीजा भंडारमा छे.
D एना माटे वृहटिप्पनिकामां " सीताचरित्रं धर्माधर्मशास्त्र गतं प्राकृतं ३४००" आवो नोध छे. पण ते क्यां पण उपलब्ध थयुं नथी.
E आ चरित्र जेसलमेरनी टीपमा हीरालाले नोंव्यु छ, भने ते कागळ उपर लखेलुं छे एम जणाव्युं छे. पण आ नामज शक पहतुं लागे छे तेथी आ चरित्र त्यां छे के नहीं ते बावत खातरी करवा माटे तेनी प्रत नजरे तपासी जोवानी अगत्य छे.
सदरहू चरित्र पण हीरालाले करेली टीपमा नोधायलं के तेथी तेना माटे शक राखवो
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जैन औपदेशिक.
२३७
नाम.
नाम.
लोक
कती. नव्या क्या छ ।
१०२/
सुमित्रचरित्र (लोकबद्ध) पत्र १६ १०३, सुरसुंदरीचरित्र (प्रा.) पत्र ७६ सुलसाचरित्र (सं.)
जयतिलक पा. ३-४. १.५/ सुप्रतऋषिचरित्र | गा. ५९ १०६ स्थूलिभद्रचरित्र A
__ जयानंद
वृ. पा. ३-४ स्थूलिभद्रवारत्र(शीलप्रकाश) ३१०० धर्मसागर शिष्य १६३४/ ली.
पन्नसागर
१.५० राजकीर्तिवाचका
डेक्कन.
१०७ हंसराजवत्सराजचरित्र
(गद्य) हरिबलचरित्र B (प्रा.) हरिवंशचरित्र (स.)
, D (सं.) ११. हरिविक्रमचरित्र
९०००
बंदिककवि
५३५०
आर्गामक जयतिलक
वृ.पा.४.५खं.सुलभ्य
A एना माटे वृहटिप्पनिकामां " स्थूलिभद्रचरित्रं तपाजयानंदसरिकृतं श्लोक ६८४" आवो नोध छे.
___B आ चरित्र अमारा धारवा मुजब अपभ्रंशमा रचायलं होवू जोइये.
C, D आ बन्ने चरित्रो माटे वृहटिप्पनिकामां जुदा जुदा नोंध नीचे मुजब छ:---
" इरिवंशचरित्रं सं. नेम्यादिबहुवृत्तवाच्यं आयंतर श्लोक ९.००। हरिवंशचरित्रं सं. बंदिककविकृतं पुराणभाषानिबद्धं नेम्यादिवृत्तवाच्यं ९०..॥ आ बन्ने चरित्रोनी श्लोकसंख्या विगेरे मळतीज छे. पण ते क्या पण उपलब्ध थया नथी.
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२३८
जैन औपदेशिक.
नंबर,
नाम.
लोक.
कर्ता.
क्यां
छे?
तीर्थकरचरित्रो*
क्लॉस बीजो.
(३)
(१)मादिनाथचरित्रA(प्रा.), ११००० चढ़मानसूरिः११६० वृ. पा. १-२-४-५ - (२) , (प्रा.) पत्र३३
अ.१ (प्रा.) पत्र ७६, अमरचंद्र (प्रा.) पत्र ७५
विनयचद्र (१)अजितनाथचारित्र (प्रा.) (२) . (सं.) (१)संभवनाथचरित्रा(सं.) (२) , (स.) (१)अभिनंदनस्वामीच.प्रा. (२) , (सं.)
* एमां श्रीऋषभदेवयी ते महावीरस्वामि सुधीना चोवीस तीर्थकरोना चरित्रो एकत्र करी क्रमर्नु उल्लंघन यवाना भययी तेमने अकारादि क्रमथी नहीं नोंधता जेम जेम एक पछी एक तीर्थकये थया के तेम तेम क्रमवार तेमना चरित्रो नोंध्यां छे. ___A आदिनाथ चरित्रने ऋषभदेवचरित्र पण कहे छे. ____B आ वर्द्धमानसूरि ते शालिभद्रसरिना शिष्य अने चक्रेश्वरसरिना गुरु हता. तेमणे आ ऋषभनाथ चरित्र गुर्जर भूपति जयसिंहना राज्यमा रचेलु छे.
आ निशाणीवाळा चरित्रो फक्त वृहटिप्पनिकामां नोधाया छ, पण दिलगीर थवा जेवं छे के वृहटिप्पनिकाकारने पण ते उपलब्ध यया नथी. ते उपरथी एम मालम पढे छ के ए घणा बखत उपर गुम थया होवा जोइये, एम छे छतां आ चरित्रमांना जे जे पण मळी शके तेम होय अगर जेमनी पासे एवा चरित्रो मोजुद होय ते मुनिमहाशयाने अमारी नम्र प्रार्थना पूर्वक विनंती ए के के तेओभीयं ते ते चरित्रोना नाम ठाम सायनी हकीकत अमारा उपर लखी मोकलमा कृपा करवी.
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जैन औपदेशिक.
m
ama
-
नाम.
लोक.
कर्ता.
क्यां छ?
(१)सुमतिनाथचरित्र A(मा.) ९८२१ विजयसिंहशिष्य । वृ. पा.३-४ली. म.१
सोमप्रम (२) , (स) पनप्रभस्वामीचरित्रB(प्रा.), ८४०. देवसूरि कृ. पा.२ (१) सुपार्श्वनाथचरित्र(प्रा.)गा८७०० लक्ष्मणगणि वृ. पा. ३-४राधण.
(२) * (सं.) 1८ (१) चंद्रप्रभस्वामीचरित्र पति
साधुसोम (२)चंद्रप्रभस्वामीचरित्र (प्रा.) ६४०० यशोदेव बु.जेसल-के. (३) , (प्रा.) ८.३२ हरिभद्र (४) , (सं.प्रा.) ५३२५ देवेंद्रसूरि
१२६४ वृ.पा ४ (५) , (सं.)। ६१४१, सर्वानंद १३.२ ३. पा.४ (६) , D
आंचलिक जामनगर. , विषमपनवृत्ति जिनपतिशिष्य
जिनेश्वर
A एना माटे चूहटिप्पनिकामा " मुमतिचरित्रं प्राकृतमुख्यं सोमप्रभीयं कुमारपालराज्ये कृतं १९६२१॥ आयो नोध छे.
* आ निशाणीओ माटे पाछळ पाने श्रीअजितनाथचरित्र उपरनी नोट जुओ. B आ चरित्र वहटिप्पनिकाकारने उपलब्ध थयु नथी.
C एना माठे वहटिप्पनिकामां " चंद्रप्रभचरित्रं प्रा. श्रीकुमारपालराज्ये हारिभद्रं ८.३२॥ आषो नोध छे.
D आ चंद्रप्रभस्वामीचरित्र जामनगरनी हरजी पाठशळानी टीपमा नोंध्यु छ, अने ते कोर अंचलगच्छना आचार्य रचलु के एम तेमा जणाव्यु छे.
33
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२४०
नाम.
(१) सुविधिनाथचरित्र * |
( २ )
(प्रा.) * (सं.)
( १ ) शीतलनाथचरित्र *
( प्रा. )
१२
( २ )
* (सं.)
| ११ | ( १ ) श्रेयांसनाथचरित्र
(प्रा.)
( २ )
"
}}
73
११०००
* (प्रा.) गा६५८४
( ३ )
(सं.) | ५१२४
(१) वासुपूज्य स्वामीचरित्र ८००० C (प्रा.)
(२)
D(.') पत्र ९४
( ३ )
२२००
१३ (१) विमलनाथचरित्र* (प्रा.)
(२)
(३)
27
59
"
"
जैन औपदेशिक.
* (et.)
श्लोक
५६५०
कर्ता.
भद्रेश्वर शिष्य अजितसिंह A हरिभद्र B
मानतुंग
चंद्रप्रभ
वर्द्धमान
ज्ञानसागर
रच्या नो सं.
to tow to
वृ.
क्या छे !
सृ. पा. २
१३३२ यू. पा. २ नं.
वृ. पा. २
१२९९ वृ. भाव.
दं
A. S.
वृ.
वृ.
१५१२ पा. ४. भाव.
* आ निशानीओ माटे तीर्थकर चरित्रोनी शरुआतमां अजितनाथचरित्र उपर आपेली नोट जुओ. A बृहत् टिप्पनिकामां एना कर्त्ता देवभद्रसूरि जणान्या छे. पण पाटणनी टीपमा आ नाम अपेक होवाथी तेज नाम दाखल कर्तुं छे. छतां आ चरित्र आ वे आचार्यमांथी कया आचार्ये रक्युं छे ते बाबत चोकस खात्री करवा पाटणना भंडारमांनी प्रत फरीथी तपासवानी जरूर रहे छे.
B वृटिप्पनिकामां एना माटे " श्रेयांसच. प्रा. जयसिंहदेवराज्ये हरिभद्राचार्यकृतं गा. ६५८४ " आवो नोंध के. पण ते क्यां पण उपलब्ध थयुं नथी.
C आ चरित्र हेमचंद्राचार्यादिए शोभ्युं छे.
D बृहत् टिप्पनिकाकारे आ चरित्र रचायानो संवत् ११९९ आप्यो छे. पण भावनगरनी टीपमां सं. १२९९ नो आंक नोंघेलो होवाथी ते संवत् इहां नौच्युं छे. अमारा धारवा मुजब सं. १९६० मां ऋषभदेव चरित्रना करनार वर्धमानसूरज जो आ चरित्रना करनार होय तो वृहटिप्पनिकाम नौलो संवत् बरावर होवो जोइये. छतां चोकस निर्णय भावनगरना भंडारमांनी प्रतना प्रान्तनो प्रचास्ति लेख तपासवाथीज यह शके.
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नैन औपदोंशकः
नाम..
नाम.
श्लोक.
का.
क्यां छे ?
गा.
१५ (१) अनंतनाथचरित्रA(प्रा.), १२००० नेमिचंद्र १२१६
(२) , * (सं.)
(१)धर्मनाथचरित्र * (प्रा.) । (२) , B (सं.) धर्मचंद्र (१) शांतिनाथचरित्र (प्रा.) १२१.० हेमसूरिगुरु
वृ. पा. २-४.५. देवचंद्र माणिक्यचंद्र वृ. पा.२-४
मुनिदेव १३२२ तू. पा.१-४ ली. (सं.) ४९२८ पौ. अजितप्रभ १३१७ वृ. पा. ३-४-५ ली.
मुनिभद्र १४१० पृ.पा.४ खं. भाष, (सं.) पत्र १६३ देवानंद शिष्य | पा.२ भावचंद्र
अ. २ जेसल, (गद्य) २७०० आंच.उदयसागर खंबात.
) ५५७४
कनकप्रभ
A एना. माटें पृटिप्पनिकामां "अनन्तच. प्राकृतगाथाबद्ध १२१६ वर्षे श्रीनेमिचंद्रसूरीयं गा. १२०००" आवो नोध. छे, पण ते अमोने हजी सुधी उपलब्ध थयु नथी..
. आ. निशाणीओ माटे तीर्थकर चरित्रोनी. शरुआतमां अजितनाथ चरित्र उपर आपेली नोट जुओ.. B सदरहू चरित्र पण तेना करीम नाम साथे फक्त वृहटिप्पनिकामा नोंघेलुं छे.
C आ धर्मचंद्रगणिए जयंतीचरित्रनी टीकाना प्रशस्ति लेखमां मूळकार मानतुंगरिने पोताना गुरु तरीके. जणाव्या छे, तेज ए होवा जोइये. छतां तेज धर्मचंद्रगणिए आ चरित्र रच्युं छे. कें कोई वीजा आचार्य रचेल छे ते बावत चोकस माहिती जे मुनिमहानयना जाणवामा शेय तेमणे. ते. अमोने, लखी जणानका कपाः करवी एजी. अमारी तेमने नम्र सूचना छे.
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जैन औपदेशिक
नाम.
श्लोक
कर्ता. रमा
क्या है ?
-
खंबात.
-
११७
१७ (१) कुंथुनाथचरित्र * (प्रा.)
(२) , (सं.) ५५५५ । विबुधप्रम A १८ (१) अरनाथचरित्र * (प्रा.)
(२) , * (सं.) (१) मल्लिनाथचरित्र प्रा.B ५५५५ जिनेश्वर (२) , (प्रा.) | ९००० हरिभद्र (३) , D (प्रा.) भुवनतुंग (४) , (सं.) | ४२५० विनयचंद्र (१) मुनिसुव्रतस्वामी श्रीचंद्र
चरित्र (प्रा.) (२) ,E ४५५२ विनयचंद्र (३) ,
५५५५, पद्मप्रभसूति
जेसल.
वृ.पा.५ खयात११९३ वृ पा. ४-५.
वृ.अ.१ १२९४ पा.१-५ जैसल.
१०९९४॥
* आ निशाणीओ माटे तीर्थकर चरित्रोनी शरुआतमा अजितनाथचारित्र उपरनी नोट जुओ.
A आ नाम वृहटिप्पनिकामां नोंध्यु छे. लींबडीनी टीपमा विबुधप्रभाशिष्य पद्मप्रभसरिए आ चरित्र रच्यु छ एम जणाव्युं छे, माटे लीरडीना भंडारमांनी प्रत फरीथी तपासी जोनाथी चोकस खुलासो यई शके.
B, C वृहटिप्पनिकामां आ बन्ने चरित्रो माटे जुदा जुदा नोंघो नीचे मुजब छ:
" मल्लिच, प्रा. ११७५ वर्षे जैनेश्वरं ५५५५ ॥ मलिच. " बहुप्राकृतं हरिभद्रीय कुमारपालराज्यकृतं गाथाकाव्यमयं ९०... पण दिलगिरीनी वात छे के एमानुं एक पण चरित्र क्या पण जोवामां आवतुं नथी. ___D आ चरित्र जेसलमेरनी हीरालाले करेली टीपमा नोंधायुं छे, तेथी करीना नाममा शक रहे छे. माटे तेनी प्रत फरीथी तपासी जोवानी जरूर छे.
E एमां नवभवनो वृतांत होवा साथै वे वह कथाओथी भरपूर छे.
I
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जैन औपदेशिक
२४
नबर.
नाम.
श्लोक.
का .
क्या छ ?
नोसं.
पौ. मुनिरल
वृ.अ. १ नगीनदास
-
-
(४) , A (सं.) पत्र६२ (१) नमिनाथचरित्र *(प्रा.) (२) " * (सं..) (१) नेमिनाथचरित्रB(प्रा.) ५१०० (२) , C (प्रा.) १२६०० (३) , (प्रा.) (४) ,
मळ. हेमचंद्र
-
वृजेसल-बे.
नगीनदास
कृ. पा. २ १२९६ वू जेसल-चे.
|R.6.
रत्नप्रम हरिभद्र तिलकाचार्य उदयप्रभ गुणविजय विक्रम
पा. ४ १६६८/पा. २-३ जेसल.
(६) (७)
, (सं.) , (सं.)
A एना माटे वृस्तुटिप्पनिकामां " मुनिसुव्रतच. सं. पौर्णमिकमुनिरलसूरिकृतं ९० स्थानककथा..
कलितं ५१८५ " आयो नोध छे.
B, C आ पन्ने चरित्रो माटे वृहटिप्पनिकामां अनुक्रमे आवा नोंध छ:
"नेमिच. प्रा. भवभावनावृत्यन्तर्गतमन्तरवक्तभ्यतामिश्र ५१०१॥ " नेमिचरित्रं प्राकृत
मद्यपद्यमय १२३५ वर्षे देवसरिशिध्य रलप्रभीयं १२६.." छसा मलधारी हेमचंद्रसूरिकृत नेमिनाथचरित्र
वि भवभावनानो भाग तो नहीं होय माटे तेनी प्रत तपासी जोवानी आवश्यकता छे.
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नंबर.
नाम.
जैन औपदेशिक,
लोक.
२३ (१) पार्श्वनाथचरित्र (प्रा.) ९०००
कर्त्ता.
देषभद्र A
रच्यानो सं.
क्यों छे !
| ११६५. पा. २ जेसल.
A देवभद्र नामना आठ आचार्य भया जाणवामां भाव्या छे:
(१) देवभद्रसूरि - भोजराजाना वखतमां थएला छे.
(२) देवभद्रसूरि-ते नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरिना शिष्य प्रसन्नचंद्रसूरिना शिष्य हता.
(३) देवभद्रसूरि - तेओ धनेश्वरसूरिना चार शिष्य वीरभद्र, देषसूरि, देवभद्र अने देवेंद्रसूरि एमांना त्रीजा.
(४) देवभद्रसूरि -- ते चंद्रगच्छना भद्रेश्वरसूरिना शिष्य अने प्रवचनसारोद्धारनी टीकाना करनार सिद्धसेन सूरिना गुरु हता. सिद्धसेनसूरिए ले. टीका सं. १२४२ मां रची छे
(५) देवभद्रसूरि - ते रुद्रपल्लीयगच्छना अभयदेवसूरिना शिष्य हता. तेओ सं. १२९२ मां थएला छे. पिटर्सने तेमणे तपा देवभद्रगणिना नामथी ओळखाव्या छे.
( ६ ) देवभद्रसूरि - ते चैत्रगच्छम थएला है. तैमना गुरुनुं नामः भुवनेंद्रसूरि हतुं, अने तेओ जयचंद्रसूरिना गुरु थता हता.
(७) देवभद्रसूरि - ते पिप्पलियागच्छना विजयसिंहसूरिना शिष्य अने धर्मघोषसूरिना गुरु
हता.
(८) देवभद्रसूरि - ते मलघारी श्रीचंद्रसूरिना शिष्य हता.
आ रीते उपर जणान्या मुजब आठ देवभद्रसूरिमांना कया देवभद्रसूरिए आ चरित्र रच्युं छे ते बात तपास करतां एम मालम पड़े छे के ते बीजा देवभद्रसूरि के जेओ प्रसन्नचंद्रनाः शिष्य हता, तेमणेज आ चरित्र रच्युं छे. वृहत्टिप्पनिकामां आ देवभद्रसूरिने नवांगीकार अभयदेवना प्रथम शिष्य तरीके जाव्या छे. पण पिटर्सन रिपोर्ट त्रोजाना: पेज ६६ मां आ चरित्रनी नोंध लेतां प्रशस्ति लेखना प्रांत " इतिश्री प्रसन्नचंद्रसूरिपादसेवक श्रीदेवभद्राचार्यविरचितं पार्श्वचरित्रं " आवो उल्लेख छे, बळी एज़ प्रशस्ति लेखमां आ देवभद्रसूरि सुमतिवाचकने पोताना गुरु तरीके जणावे छे, पण अमास धारवा मुजब सुमतिवाचक कांतो देवभद्रसूरिना वृद्ध सहोदर होवा जोइये, अगर विद्यागुरु होय. तो. पण होय ते मुजब आ देवभद्रसूरि नवांगीकार अभयदेवसूरिनाः शिष्य कोइ पण रीते संभवी शके तेम नथी. ते उपरथी टिप्पनिकाकारे सखत भूल खाधी लागे छे.
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________________
जैन औपदेशिक.
२५५
नाम.
| श्लोक. कर्ता.
ज्या
क्या छ ?
R
___ , A (प्रा.) गा२५६४
पा.२ (३) , (सं.) । ६४०० भावदेव १४१२ वृ. सुलक्या
, (सं.) ५२७८ माणिक्यचंद्र १२७७ वृ. नगीनदास. , (सं.) ताड३४५ सर्वानंद वृ. पा. २. " (गधबद्ध) ५५०० उद्ववीर पा. ३ अ. १रि.६ , (सं.) वियनचंद्र
पा.४-५ रविप्रभशिष्य
हेमविजय १६३२ पा.४ (९) , (सं.) १०२४ पासुंदर ११३९ रि. ६. २४ (१) महावीरस्वामीचरित्र १२०२५ गुणचंद्रगणि
(२) , (प्रा.) १८१० नेमिचंद्र (३) , (प्रा.) ४१००
घू. पा.५ (") , (प्रा.) | ३०००
जेसल. नगीनदास. (५) , (अपघ) जिनेश्वरसूरिशिष्य नगीनदास.
असग (दिगंबर), पिटर्सन रि.४ .
A. एना माटे वृहटिप्पनिकामां "पार्श्वचरित्रं प्रा. दशभाववाच्यं. गा. २५६४॥ आवो नोष के.
B आ संवत् कारक भूल भरेलो लागे छे. आ चरित्रना कर्ता भावदेवरि कालिकाचार्यना संतानमां थएला के. बहटिप्पनिकामां तेनो रच्यानो सं. १२१४ जणाव्यो छे, त्यारे बीजी टीपोमा ११४१२ नो मांक नोध्यो छे. तो आ भिन्नभिन्न समयमाथी चोकस संवद्र कयो छे ते बाबत कोड तेवो विशेष पुरावो मळ्या कार निर्णय थवो मुश्केल छे.
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________________
जैन औपदेशिक.
ALA
रच्या
नबर.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां छ?
शेष चरित्रो.
अममस्वामीचरित्र . २. चतुर्विंशतिजिनचरित्र
१२००० मुनिरल B_१२५२ वृ. नगीनदास.
जेसल.
चोषीस तीर्थंकरोना चरित्र ग्रंथो गत पेजमा समाप्त थया छे. बाकी रहेला आ बैं चरित्र ग्रंथोने
ते खास तीर्थकरोनांज चरित्रो होवाथी आ वर्गमा दाखल कर्या छ,
A आ चरित्र ते आवती चोवीसीमां थनार तीर्थकर श्री अममस्वामीन चरित्र छे.
B आ मुनिरनसरिने माटे गत पृष्ठ २२१ मां अंबडचरित्र उपर तेमना नाम नीचेनी नोट जुओ.
- त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र पहेला सामान्य चरित्रोमा नोधायुं छे तेथी अत्रे नोध्यु नथी.
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________________
नंबर.
नाम.
वर्ग ६ डो.*
अघटकथा
जैन औपदेशिक.
कथाना ग्रंथी.
श्लोक. कर्त्ता.
२ अशंकारिभट्टिकाकथा
३१ अन्तरङ्गकथा ( मा. )
४ अंजनासुंदीकथा A (प्रा.)
अनंगसिंहादिकथा
६ अनंतकीर्तिकथा (प्रा.)
७ अंबुसराजकथा
८ अभयसिंहकथा
मवती सुकमालसंधि
अष्टप्रकार पूजाकथा
८३१
५००
पत्र १२
पत्र १३
पत्र ४
१३८
१०६०
रच्या·
नो सं.
क्यां छे !
पा. ४ डेक्कन.
पा. ३
लींबडी.
जेसल.
पा. ३
अ. १-२
अ. २
खंबात.
२४७
पा. २
वृ. पा. ३-४
अनुक्रमवार नोंधवामां आवी छे. आवशे अने क्लॉस श्रीजामां संग्रह
* आ वर्गमां पूर्वाचार्योंए संस्कृत तथा प्राकृत भाषामां रचेली तमाम कथाओने एकत्र करी आगळ क्लॉस बीजामां तिथिना नामथी ओळखाती कथाओ नोंघवामां कथाओ नोधयामां आवनार छे.
A आ कथा जेसलमेरनी हीरालाले करेली टीपमां नोंधाइ छे, अने ते सं. १४७७ मां जिनचंद्रसुरिनी शिष्यणी समृद्धि महत्तराए जेस रमां रची हे एम तेमां जणान्युं छे. पण कर्त्तना नाम बाबत शक राखवो पड़े छे. आ बाबतनो चोकत निर्णय जेसलमेरनी तेनी प्रत नजरे जोया वगर थवो मुश्केल छे. छतां सुज्ञ मुनिवर्ग महाशयोने अमारी नम्र प्रार्थना ए छे के जेओ पासे आ कथा मोजूद होय तिओभीए आ संबंधी चोकस माहिती अमोने लखी जणाववा कृपा करवी.
Page #278
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________________
२४८
जैन औपदेशिक.
नाम.
श्लोक. का.
स. क्या छ ?
पा.६
मलयहस A,
पा. ४.६ ली.
लीबडी
आरामनंदनकथा आरामशोभाकथा २८१ आरामसुतकथा (सं.) आर्द्रकुमारकथा (प्रा.)
, (गद्य) आर्याषाढकथानक (श्लो- पत्र १९ कबद्ध)
बावश्यककथा
इलाचीपुत्रकथा B
लोंबडी.
सोलकवि
पा. १ खंबात.
पत्र १
जिनसूरि
उत्तमकुमारकथा उदयसुंदरीकथा उदायनराजकथा उपसर्गहरप्रभावकथा ऋषिदत्ताकथा
, बीजी (सं.) कनकरथकथा कंचनश्रेष्ठयादिकथा
२८२७
पा. ४ पा.४ की. वं.
।
४५७
पत्र ११
पा
.
A मल्ल्यहंसगणि विक्रमनी सोळमी सदीना आखरीमा हता एम सांभळ्यु छे.
B आ इलाचीपुत्रकया प्राकृतमां रचाएली पाटणना भंडार नंबर बीजामा ताडपत्र उपर लखेली मोजुद छे.
C आ सोडलकवि अन्यधर्मि छे एम पाटणनी टीपमा जणान्धुं छे,
Page #279
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________________
जैन औपदोशक
१४९
नाम.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां
छे?
२५ कर्मसारकथा पत्र १३/ (बीजी)
|पा.४ २६ कलावतीकथा (श्लोकबद्ध) पत्र ११ कालिकाचार्यकथा
लीबडी. " (प्रा.)
पा. १ नगीनदास. , वृत्ति
नगीनदास. कालिकाचार्यकथा (प्रा.) १९५/ विनयचंद्र पा.१ ली. (प्रा.)
पा. २ गा.१०० भावदेव
पा. ३-५, ली. सु. (प्रा.)
गा.११९
जयानंदमूरि लीबडी. 74 (प्रा.)
नगीनदास.. (प्रा.) गा. ५५, धर्मप्रभ
लींबडी. * (प्रा.)
गा.१०७ देवकल्लोल B १५६६/ खंबात. " (प्रा.). गा.१२०
| खंवात. (प्रा.) " (सं.)
कीर्तिचंद्र
पा.१हे.
खंशात.
A आ कथा पिटर्सने खंबातना शेठ नगीनदासना भंडारनी नोंध लेता पोताना बोजा रिपोर्टना, ज. १७. मा. नोधी छे. एना. मंगलाचरणमा " हयपडिणीऊ कइतित्थउन्नई जयर्ड कालगायरियम् । विजाणंद रिसीणय देविंदोधम्मकित्तिधरो ॥” आवी गाथा छे,
Bभा देवकोलसरि उपकेश गच्छना हताः .
Page #280
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________________
२५०
नंबर.
३१
"
३२
ފ
नाम.
ور
(प्रा.)
( सं. )
२८ कुंतलदेवीकथा (श्लोकबद्ध) पत्र ८
२९ कुरुचंद्रकथा (सं.)
३० कूर्मापुत्रचरित्र
कूर्मापुत्रकथा (प्रा.)
(प्रा.)
३३
कुलध्वज कथा
कुवलयमालाकथा B
C (सं.)
जैन औपदेशिक.
कुवलयमाला D
श्लोक
गा. ५२ महेश्वर A
समय सुंदर
कर्त्ता.
प ३
पत्र ४३
गा. १९२
मा. १९९ अनंत हंस
पत्र ७९
विद्यारल
जिनमाणिक्य
१३००० उद्योतनसूरि
३८९४
रख्या
नो सं.
क्यां छे ?
नगीनदास.
पा. २
अ. १
पा. ३
भावनगर
पा. २-३-४
पा. रेखं.
पा. ३.
८३५ वृ डे कांतिविजयजी.
रत्नप्रभ (परमा- १४८७ वृ. खं. नंद शिष्य
अ. १
A आ महेश्वरसूरि ते कोना शिष्य हता ते बाबत कंइ चोकस पुराबी मळी शकतो नथी पण ते प्राचीन वखतमां थएला होवा जोइये. तेमना माटे पिटर्सनना बीजा रिपोर्टना पेज २९ मां सदरहू कथानी नांध लेतां प्रान्ते " इति श्रीपल्लीलगच्छे महेश्वरसूरिभिर्विरचिते कालिकाचार्यकथा समाप्ता आवो " उल्लेख छे. संवत्मा १३६५ नो अंक नोंध्यो छे पष अमारा धारवा सुजन ते प्रत लख्यानो होवो जोईए. आ बाबत संयममंजरीमां पण विशेष खुलासो जोवामां आवतो नथी. तो आ संबंधी तवो कोई चोकस पुरावो मळ्या वगर निर्णय थवो मुश्केल छे.
B, C आ बन्ने कथाओ पूर्वे चरित्रना वर्गमां विशेष हकीकत साथै नाँधी छे. ते कथाना नामथी पण ओळखाती होवाथी वहां पण नोंधी छे.
D रत्नप्रभसूरिकृत कुवलयमाला कथा अने आ एकज हो एम अनुमान थाय छे, छतां चोकस निर्णय माटे अमदावादमांनी वेनी प्रत जोवानी जरूर छे.
Page #281
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________________
जैन औपदेशिक.
नवर.
रच्या
नाम.
श्लोक.
की .
क्यां छ?
at
पिटर्सन रि.५
इंद्रसूरि नेमिचंद्र
। १७००
कुवलयमाला A कुसुमसारकथा B कृतकर्मकथा खापरियाकया गगनधूलिकाकथा
पत्र ५ पत्र १८
पत्र २२ पत्र ५
गंडरायकथा गांधारकथा गुर्जरमाक्षणकथा चतुर्विधधर्मविषयेकथा
चंद्रोदयकथा ४२ चंद्रलेखाकथा
पत्र ३०
पा. २-३
गा.२८६
लीबडी.
४३. चंपकष्ठिकथा
(बीजी) (त्रीजी)
पा. ३-४ अ.२
जयसोम विमलगणि
अ.२
A आ कयाने पिटर्सन रिपोर्ट पांचमाना पेज ७३ मां शांतिनाथ चरित्रनी नोंध लेतां प्रान्त लखमा महाकुवलयमालाकथाना नामथी ओळखावाने ते पहेला हरिभद्रसरि पछी थएला इंद्रसरीए रची है एम तेमा जणाव्यु छ. पण ते हाल क्या पण उपलब्ध थती नथी आवा प्राचीन ग्रंथो तेना शोधखोलना अभावे नष्ट थाय ते अत्यन्त खेदजनक छे. आवा प्राचीन ग्रंथो ज्यां होय त्यांथी पत्तो मेळवी तेनो पुनरुद्धार करवो शोधक सुजनोने घटे छे. हमणा पं. आणंदसागरजीए जणान्युं छे के एनी प्रत पालिताणाना शेठ अंबालालना भंडारमा मोजुद छे.
B आ कथा फक्त वृहटिप्पनिकामां नोंधाई छे, तेना माटे त्यां " कुसुमसारकथा नेमिचंद्राचार्यः १०९९ वर्षे कृता गा. १७००, आवो नोध छे.
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________________
२६२
नंबर.
नाम.
१४४ / चंपकमालाकथा
३६
चंपकमालादिकथाषट्क
चामर हारकथा
४७ चामरसेनवर सेनकथा
४८ जंबूस्वामीकथा A (प्रा.)
| ४९ | जयविजयकथा
५० जयसुंदरीकथा B (प्रा.)
५२ जिनदत्तकथा C
जिनदत्ताख्यान D (प्रा.)
जिनदत्तकथासमुश्चय
जैन औपदेशिक.
श्लोक.
९००
पत्र १८
पत्र ५
१२००/
कर्त्ता.
भावविषय
पत्र १०३ | भद्राचार्य E
रच्यानो सं
क्याँ छे !
रिपोर्ट ६०
पा. ३
अ. १
पा. ४
जेसल.
डेकन
कृ.
वू. जेसल
पिटर्सन रि० ५
डे. पेज ११५
A एमां जंबूस्वामीना पांच भवनो वृतान्त छे.
B आ कथा वृद्दत्टिप्पनिकारे नोंधी छे, पण तेने उपलब्ध भई नथी.
C जेसलमेरनी इंसविजयजी महाराजनी टीपमां एना कर्ता सुमतिसूरि जणान्या छे.
D पिटर्सने आ ग्रंथनी नोंध लेतां पोताना रिपोर्ट पांचमांना पेज ६३ मां प्रान्त लेखनो तउ-काऊण महातवं आराहिऊण मरणयालं गओ सुरलोयं तउ पारंपरेण निव्वाणं ति जिणयत्तो " आवी. ते नोंध करीने सदरहू कथानी प्रत चित्रकूटमां सं. १९८६ मां लखावेली के एम तेमां जणान्युं छे. E भद्राचार्य नामना के आचार्य थवेला जाणवामां आव्या छे:
(१) भद्रेश्वरसूरि-ते मुनिचंद्रसूरिना शिष्य देवसूरिना पाढे थएला अने जयसिंहदेव राजाना • बखतमा थला छे.
(२) भद्रेश्वरसूरि - ते चंद्रगच्छना घनेश्वरसूरिना च्यार शिष्यमांना चोथा देवेंद्रसूरिना शिष्य अने आख कविना गुरु अभयदेवसूरिना गुरु हता. एटले तेओ विक्रमनी तेरमी सदीनाः शरुआतमां विद्यमान हता. ते उपरथी आ बन्ने आचार्यो समकालिन यएला छे एम चोकस पुरावाथी सिद्ध थाय छे, हवे आ बे आचार्यमांथी कया आचायें आ ग्रंथ रच्यो छे ते बाबत तपास करता तेओ कोई पुरावो मळी शकतो नथी; अमारा धारवा मुजब ते देवेंद्रसूरिना शिष्य वीजा भद्रेश्वरसूरिए रच्यो होवो जोइये, छतां चोकस निर्णय माटे डेक्कन कॉलेजांनी प्रतनो प्रास्ति लेख जोवानी जरूर रहे छे.
Page #283
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________________
जैन औपदेशिक.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां छ?
-
-
१२
थावापुत्रकथा (श्लोक-पत्र ११
बद्ध) दानादिकथा
५३
शुभशील
विजयचंद्र
दानचतुष्टयकथा दृढप्रहारिकथा
देवकुमारकथा
, (पाजी) द्वादशभाषनाकथा
पा. ४-५
द्वादशवतकथा
(बीजी) ताड२०० चारित्रकीर्ति पा. ३-४ धनदत्तकथा
ता.१५४ अमरचंद्र धनपतिकथा
पा. ३-४-५ धनाकथा
दयावर्द्धन १४६३. पा.४ खं. धमाकाकदीकथा पत्र ४ धर्मदत्तकथा (श्लोकबद्ध ) पत्र २४ , (गध) पत्र १०
अ.१ . (सं.) पत्र १७ माणिक्यसुंदर.
|पा. ३-५ रि.६ ६३, धर्मपरीक्षाकथा
(दिगं.) रामचंद्र
डेक्कन.
|AS.
A आ चारित्रकीर्तिसूरि क्यारे थया छे । जाणवामां आव्यु नथी.
-
-
Page #284
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________________
.
जैन औपदेशिक.
नंबर.
रच्या
नाम.
लोक.
कर्ता.
क्यां
छ?
नो
&
पा.४
धर्ममाहात्म्यकथा धम्मिलकथा
२.५ धव्यसुंदरीकथा A (प्रा.) पत्र११५ धूर्तचरित्रकथा B पत्र १९ नंदयतिकथा नंदोपाख्यान नमस्कारहष्टांत नर्मदासुंदरीकथा C १७००
. (बीजी) गा.२४९
,,(श्लोकबद्ध) (त्रीजी) पत्र ८ नरदेवकथा (प्रा.) ४३० नरवर्मकथा । ८० विनयप्रभ नलकथा नागधीकथा
पत्र १८ ब्रह्मनेमिदत्त
लीबडी. अ.१
पा. ४ नगीनदास १५१२ पा १-४
७२
-
अ. २
-
नाभाककथा
४२१
पा.४भाव.
A एजें खरं नाम धन्यसुंदरीकथा एवं हशे ए बावत तपास करी नकी कर जोइये.
B आ धूर्तचरित्र कथा ते वखते हरिभद्रसूरि रचित धूर्ताख्यान होय तो होय तेनी खरी खात्री अमदावादना चंचलबाईना भंडारनी ते प्रत जोयाथी थइ शके तेम छे.
सदरहू कथा फकत वृहटिप्पनिकामां नोधाई छे, बाकी क्यां पण उपलब्ध यई नथी.
D आ दिगम्बर आचार्य मल्लिभूषणसरिना शिष्य हता. एमणे धन्यकुमारचरित्र तथा सुदर्शना चरित्र रच्यु छे.
Page #285
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________________
जैन औपदेशिक.. श्लोक. का. रयाः क्या छ?
नंबर
नाम
३१८
७७ पालोचनाकथा ७८ पमधीकथा (प्रा.) पंचास्यान A
, सारोद्धार पुण्यधनकथा (सं.)
(श्लोकवख) पुण्यपापकथा
धनरत्नसूरि
पा.४ भाव.
खं.
Latin-army
अ.१ पा. ४-६ पि.रि..
पुण्यसारकथा
शुभशील
पा.४.
३५० विवेकसमुद्र B पत्र २ ताड ५५
वृ.पा. ३-४
पुग्नडकथा पुण्यक्तीकथा पूजाष्टककथा (प्रा.)
* C(सं.) १८६ पृथ्वीचंद्रकथा (प्रा.)
" (सं.) ८७, प्रत्येकवुनचतुष्टयकथा Jee प्रत्येकबुद्धकथा (प्रा.)
पत्र२१५/ तिलकाचार्य
डेक्कन.
पा. ६ जेसल.
A एना माटे हटिम्पनि कामां " पंचाख्यानकं पूर्णभद्राचार्यैः १२५५ वर्षे शोधितं ४६.." आवो नोध छे.
___B आ विवेकसमुद्रगणि तपागच्छीय सोमसुंदरसरिना शिष्य हता. तेओ विक्रमनी सोळमी सदानी शरुआतमा विद्यमान हता.
C आ कथा वृहटिप्पनिकामां नोधी छ पण टिप्पनिकाकारने पण ते उपलब्ध थई नथी.
35
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________________
जैन औषदेशिक
नाम.
श्लोक. । कर्ता.
क्यां छ?
प्रत्येकबुद्धकथा
१९९
१४००
पत्र २६
पत्र १३/
१७१६॥
८९ प्रभावतीकथा
प्रियंकरकथा बलभद्रकथा बलिनरेंद्रकथा ब्रह्मदत्ताकथा (प्रा.) ब्रह्मदत्तादिकथा भद्रबाहुकथा भरटकद्वात्रिंशिकाकथा भरतनटादिकथाओ भरतेश्वरबाहुबलिवृत्ति. भविष्यदत्ताख्यान A मत्स्योदरकथा मदनापलिकथा मदनरेखाकथा (गद्य) मंगलकलशकथा
१०२८२ शुभशील | २००० महेंद्ररि
असल.ली.नगीनदास
पत्र ५
पत्र १९
अ.२
पत्र २६
पा. ३, अ.१
A आ कथा पंचमीमाहात्म्य उपर रचेली छे ते पूर्व चरित्रना वर्गमा नौधाई छे, छतां कथाना नामथी विशेष ओळखाती होवाथी इहांपण नोंधी छे. जेसलमेरनी हीरालाले करेली पोतानी टीपमा तथा लींचंडीनी टीपमां एना की महेश्वरसूरि लख्या छे, खंबातना शेठ नगीनदासना भंडारमा महेंद्रसरि नाम आपीने सदरहू प्रत लख्यानो संवत् १२१४ नोधैलो छे. हालमां पं. श्री आणंदसागरजी जणावे छे के आ शिवाय बीजी एक धनपालकृत पण छे पण ते अमोने उपलब्ध थई नथी.
Page #287
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________________
जैन औपदेशिक श्लोक. कर्ता.
नाम.
नाम.
च्या क्या छ ?
१०८
खंबात
मंग्याचार्यकथा १०५ मंत्रिवासीकथा (श्लोकबद्ध) पत्र ७
पा. ३, अ.१ मनोवेगकथा (गद्य)
अ.१ १०७ मलयंध्रीकृष्णकथा A पत्र १२ (श्लोकबद्ध) अ.१ मलयसुंदरीकथा
माणिक्यसुंदर पा.४, A.S. , (बीजी ) (गद्य) | १२०० , (पीजी)
धर्मचंद्र B महाशालकया
पत्र ८ महीपालकथा २२०० वीरदेवगणि
A.S.5 मित्रचतुष्ककथा
मुनिसुंदर १४८४ पा. ४-५ मुंजकथा मूळदेवकथा (श्लोकबद्ध) [पत्र ७ मूळवेवादिकथा (प्रा.सं.)
मृगांककुमारकथा पत्र ५ ११६ मृगांकादिकथासप्तक
A आ कथा अन्यमतिकृत होय तेमा लागे छे, छतां तेनो चोकस निर्णय ग्रंथ जोयाथी थई शके स्यांसूधी अमे तेने इहां नोधी छे.
. Bधर्मचंद्रगणि ते धर्मदेवगणिना शिष्य अने धर्मरत्नसूरिना गुरु हता, तेओ पिप्पलगच्छीय शांतिसूरिना वंशमा थएला छ..
Page #288
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________________
जैन औपदेशिक
नाम.
| श्लोकः कर्ता. ज्या क्या छ ?
--
११७ मृगसुंदरीकथा
-
पा. ४, म. १-२ पा.३
-
-
-
-
-
-
पा. ३, म, १ A S, .
-
कथा A
"
मेघनादकथा ( गघ) ७६० सोममंडन ११९ मोदकादिकथा पत्र ६
यवराजर्षिकथा यशोभद्रसूरिकृतचरित्रादि रणशूरकथा B
अतिसुंदरीकथा १२४ रलचूडकथा | ३५०० नेमिचंद्र ,D (बीजी)
जिनवल्लभ (त्रीजी)
पत्र १९ रलशेखरकथा (प्रा.) ८०० जिनहीं
___, (गद्यपद्य) ४३० दयावर्द्धन १२७ राजसिंहरत्नवतीकथा(गद्य) पत्र १७
राजहंसकथा
३००
पानसागर
नगीनदास. वृ.पा.३-४नगीनदास जेसल. रिपोर्ट ६. अ. २.
पा.१-३, खंबात. १५६३, लीबड़ी, खंबात.
रत्नपालकथा
पा., अ.१
३७७
पा.४
A एमां कोनी कोनी कथाओ छे ते जाणवा माटे डेक्कन कॉलेजभांनी प्रत तपासवी जोईये. B आ नानकड़ी कथा छे. Cइटिप्पनिकामां कान नाम " नेमप्लभाचार्य " ए नोंधेल छे.
D आ बीजी रत्नचूडकथा जेसलमेरेनी टीपमा हीरालाले नौधेल होवाथी तेना मादे शक राखको पड़े छ,
Page #289
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________________
जैन औपदेशिक.
२५९
नंबर.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां छे ?
१३१
Bરૂર
रोहककथा १३० रोहगुप्तकथा रोहिणीकथा
कनककुशल रौहिणेयकथा
५५० देवमूर्ति A ललितांगकथा
पत्र १३ १३४/ लीलावतीकथा , B
गा१४३८ लोकापवादकथा(श्लोकबद्ध) पत्र ९ १३६ वज्रस्वामीकथा पत्र ७ (श्लोकबद्ध)
वायुधकथा (सं.) पत्र १९ वत्सराअकथा (प्रा.)
" (सं.) पंक-चूलकथा वरसेनकथा
पत्र १६ (श्लोकबद्ध) घसुराजादिप्रकीर्णकया
(त्रुटक.) १४२ धमुभूतिकथा १४३ विक्रमचरित्र
४२५
पा. ६, भ.२
इंद्रसूरि
पिटर्सन रि.५
A आ देवमूर्तिसूरि ते विक्रम सं. १४९६ मा विक्रमचरित्रना करनार छ तेज छे.
B आ कथा वृहटिप्पनिकामां नोधी छे तेना भाटे त्यां " लीलावतीकथा भूषणभट्टसुतकृताद्यरश्रितेच परसमय पता गा, १४३९ । आयो नोध छे.
Page #290
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________________
जैन औपदेशिक
नंबर.
नाम.
नामा
श्लोक. कर्ताः ख्याः क्या छ ?
३९१०
ર૧૦
डेशन.
विक्रमनृपकथा
२२५ (श्लोकबख) खंघात. विक्रमपंचदंडप्रबंध
पूर्णचंद्र
पा. ४ विजयचंद्रकेवलिकथा (प्रा.) गाथा. चंद्रप्रभमहत्तरः ११२७ पा. ३-४ लौं विद्यासागरप्रेष्ठिकथा
गुणाकर B विश्वसेनकुमारकथा (प्रा.) ३५३३ वीरभद्रकथा (श्लोकबद्ध) पत्र५
| अ.१ धीरसेनकथा
पा.४-६ वीरांगदकथा पत्र ८ हरिभद्र वैश्रवणकथा
पत्र २] शझुंजयकल्पकथा ११८७५ शुभशील शंखकलावतीकथा (प्रा.), ३७२ शांतिमतीकथा शामदेववामदेवकथा पत्र ७
A आ चंद्रप्रभसूरि ते धर्मघोषसरिना गुरु हता. धर्मघोषसुरिना शिष्य चक्रेश्वरसरि तच्छिष्य शिवप्रभसरि अने तेमना शिष्य श्रीतिलकसरि थया, के जेमणे दशवकालिक टीका विगेरे ग्रंथो स्च्या छ. आ चंद्रप्रभसूरिने तेमनी विद्वत्ताना बळथी बे ऋण युगप्रधान, महत्तर वादीभसिंह, एवी महान अटकोथी ओळखवामां आवता हता.
B गुणाकरसूरि बे थया छे. एक गुणाकरसूरि आम्रदेवसूरिना संघात जयसिंह राजाना वखतमां थएल छ. एमणे सप्तक्षेत्री नामक प्रकरण सं. ११७८ मां रच्युं छे. (जुओं आ पुस्तकनो पेज २३५) वीजा गुणाकरसरिए नागार्जुनसरिकृत योगरत्नमालानी वृत्ति सं. १२९६ मां रची छे, आ शेते आदे आचार्यमाथी आ कथाना करनार कोण छे ते बाबतनो निर्णय ग्रंथ जोये थई शके..
C आ हरिभद्रसूरि याकिनीसूनु छे के अन्य छे ते जाणवा माटे तेनी प्रत नजरे जोवी जोइये.
Page #291
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________________
जैन औपदेशिक
नाम.
श्लोक. । कर्त्ता.
!
क्या छ ?
१५८
१५९
शीलकथा शीलवतीकथा (प्रा.) __ (सं.)
शुभशील शुकराजकथा
माणिक्यसुंदर (गद्य) । ५००
पा.४ अ.२ शुकसंवादकथा (श्लोकबद्ध) पत्र ६
अ.१ भीपालकथा
५७५ लन्धिसागर १५५७ नगीमदाल. ___. उदार (प्रा.) पत्र १५ श्रीमतीकथा श्रेणिककथा श्रीपेणकुमागविक्रया ।
पत्र ४ सदयवस्सकथा
। ९००
हर्षवर्द्धन संकाशकथा (श्लोकवच) । १७१ संगमविप्रकथा सर्वांगसुंदरीकथा (स.) A २६७५ सवनकथा
पत्र ११३ विजयचंद्रसूरि सहस्नमलचौरकथा (प्रा.) पत्र १४
A वृहटिप्पनिकारे एना संबंधी काई विशेष हकीकत नोंधी नथी. अने ते अमोने क्या प्रण
उपलब्ध थई नथी.
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________________
जैन औपदेशिक.
नाम.
श्लोक. कर्ता.नया
क्या छे !
१२७२/
पत्र३
अ. २
१७
सांबप्रद्युम्नप्रबंध A पत्र २९ सुंदरसूरि सांबप्रद्युम्नादिकथा B
पा, ३ सिद्धदत्तकथा , (सं. गद्य)
मुनिसुंदरशिष्य खंबात. सिद्धसेनदिवाकरकथा(प्रा.) पत्र २९
पा. २ सिंहासनद्वात्रिशिकाकथा । ६२६६, देवमूर्ति १४९६ पा.१-४ जेसल. सिंहासनद्वात्रिंशिकाकथा
। ११०० मंकर C पा. १-३ डेक्कन. सुकोशलाख्यान
ली. नगीनदास. सुगुणकुमारकथानक १५० सुंदरनृपकथा ( श्लोकबद्ध सुंदरराजकथा सुरप्रियकथा सुरसुंदरनृपकथा (प्रा.) सुरसुंदरीकथा D (प्रा.), ४६०० धनेश्वर १९९५/ वृ. पा. ५ सुव्रतकथा (प्रा.) २२२
डेक्कन.
१८०
૨૮૨
१९८३
A.B आ बन्ने ग्रंथो एकज छ के जूदा जूदा आचार्योए रचेला छे तेनी चोकस माहिती । मेळववा माटे तेनी प्रतो तपासवी जोईये,
C आ क्षेमंकरगणि श्वेताम्बराचार्य हता. षटपुरुषचरित्र पण एमणेज रचेलु छे.
D आ कथा माटे वृहटिप्पनिकामां नीचे मुजब नोंध छे:-- | "सुरसुदरीकथा १६ परिच्छेदा धनेश्वरमुनिकृता सं. १०९५ वर्षे गा. ४०००"
E वृष्टिप्पनिकामां आ कथा रचायानो सं. १०९५ नोध्यो छे पण पाटणनी टीपमां तेनी रचनानो चोकस सं. ११९५ बतान्यो छे. ए बाबत तपास करतां एम मालम पड़े छ के वृहतटिप्पनिकारे संवत्नो अंक नोंधतां भूल खाधी होती जोईये अगर लेखकनो दोष पण संभवी शके.
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________________
जैन औपदेशिक
नबर.
श्लोककर्ताः
क्या छ ?
mana
पा. ४-६ पा. ३-४ खं.
डेक्कन पेज ४९
पत्र ५
पा.३
वृ.पा.४
१८५ सुव्रतऋषिकथा (प्रा.)
, (प्रा.) १८६/ सुसढकथा A (प्रा.)
देवद्रसूरि __, (प्रा.) गा. ३५० सुसमाकथा (प्रा.) | पत्र ११, देवेंद्रसूरि सोमश्रीकथा (प्रा) पत्र ३३ सोमभीमादिकथा सौभाग्यसुंदरीकथा नामपंचाशिकाकथा
उदयसागर
शुभशील हंसकथा हरिबलकथा हरियलादिकथा हरिवाहनकथा B हरिषेणकथा हरिश्चंद्रकथानक (प्रा.) पत्र २७ हुताशिनीकथा
जिनसुंदर
१८०४ भाव.
नगीनदास.
पा.
३
पा.४
खं.
.
डे. पेज ५१ | पा. ३ डेक्कन
भावप्रभ
७१२/ पा.३
A सदरहू कथा देवेंद्रसूरिए छेदग्रंथमाथी उद्धरेली छे.
B आ कथा स्वमति कृत छे के अन्यमतिए करेली छे ते जाणवामां आव्युं नथी.
37
Page #294
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________________
२६४
नंबर.
क्लास २ जो.*
तिथि कथाओ.
अक्षय तृतीयाकथा
२) अठ्ठाईव्याख्या
नाम.
चातुर्मासिकपर्वकथा
ज्ञानपंचमी कथा
"
"
29
(सं.) बीजी
( त्रीजी )
पर्युषणाअठ्ठाईव्याख्या (गद्य) पत्र ६
पौषदशमीकथा
मेरुत्रयोदशीकथा
मौनएकादशीकथा (प्रा.)
महात्म्य (सं.)
(सं.)
27
जैन औपदेशिक.
रजपर्वकथा
रोहिणी कथा
श्लोक.
ता. २१३ सौंदर्यगणि A
१५०
२००
कर्त्ता.
૨૦
कनककुशल
रच्या
! नो सं.
भावप्रभ
| १६५५
रविसागर
१६५४ सौभाग्यनंदि | १५१६
क्यां छे ?
भ. १
म. १
अ. १
..
पा. २
पा. २ लीं.
अ. १
अ. १
अ. १
अ. १
म. १
पा. ४-५ ली.
पा. ४ लीं.
अ. १
अ. १
* आ क्लासमां तिथिओना नामथी ओळखाती कथाओ जे जे अमोने मळी अनुक्रमवार इहां नोंधी छे.
तेते अकारादि
A. आ नाम शक पडतुं लागे छे कारणके आ नामना कोई आचार्य थया जाणवामां आव्या निथी. तो सौंदर्यगणि ते कोण हता अने ते क्यारे थएला छे ते बाबतनी चोकस माहिती जाणवा माटे पाटणना भंडारमांनी प्रत नजरे तपासवानी अगत्य छे.
Page #295
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________________
जैन औपदेशिक
२६५
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
च्या.. क्या छे ?
क्लास ३ जो.*
पत्र ३३
ली.
संग्रहकथाओ. भडतालीशकथा A अन्तर्कथासंग्रह अष्टप्रवचनमाताकथा B आख्यानमणिकोश
अ.२
जेसल.
नेमिचंद्र आम्रदेव
वृ. नगीनदाल, ७. नगीनदास.
वृत्ति
.
३३००
सर्वविजय
८
आठनानीकथाओ आनंदसुंदर D उपदेशरहस्य E (सं.) कथानुक्रमणिका कथोद्धार
धर्मशेखर
रि.६
• सूदी जूदी कथाओनो एकत्र संग्रह करीने रचना करेली होवाथी तेने खास करीने सामान्य कियामां नहीं नोंधतां संग्रहकथाना नामयी आ श्रीजा क्लासमां जूदीज नोंधी छे.
A एमां जूदी जदी अडतालीश कथाओ छे अने ते साधारण संस्कृतमा छे. B सदरहू कथा जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोंधी छे.
एमां पापबुद्धी, प्रशाकर, नागदत्त, सुमनगोपाळ, जिनसुंदरी, शाळ, जिनदत्त अने धृष्टक ची रीते आठ नानी नानी कथाओ छे.
D एमां आनंदादि दशश्रायकोनी कथा छे.. E नानी नानी कथाओ के.
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________________
जैन औपदेशिक.
नवर,
नाम.
श्लोक. । कर्ता.
रच्यानासा
क्यां
छे ?
कथाकोश
गा.२३९, जिनेश्वर ११०८ __, वृत्ति (प्रा.) ६०००
वृ. पा.४ कथाकोश (बीजो)
शुभशील १५०९ पि. रिपोर्ट ४ कथानककोश (श्रीजो) ४१४० कथाग्रंथ A
ता.३०६ कथाप्रबंध
पत्र ३० कथामहोदधि
८००
सोमचंद्र १५०४ पा. ३, डे. कथारनकोश B
देवभद्र १५८ बृ. नगीनदास. कथारत्नाकर
हेमविजयगणि अ. २, मुंबई कथारत्नाकरोद्धार c ५५०० उत्तमर्षि D
डेक्कन. कथारत्नसागर : ता. ३८ मल. नरचंद्रसूरि वृ.पा. २-५ कधारत्नसागर २०९१
खं. कथावली F २३८०० भद्रेश्वरसूरि वृ.पा.२
A सदरहू ग्रंथनी पाटणना भंडार नंबर पांचमामा अपूर्व तरीके नोंध करी छे. छतां तेमां कई कई कथाओ छ ते नकी करवा तेनी प्रत फरीथी तपासवी जोईये.
B वृटिप्पनिकामां एना माटे " कथानकोशः सम्यकादि ५० अधिकारः ११५८ वर्षे देवभद्रसूरीयः १२३०० " आवो नोध छे.
C एजें बीजं नाम “ धर्मकथारत्नाकरोद्धार " एवं पण छे.
D आ उत्तमर्षि क्यारे थया छे ते बाबत कांइ छकीकत मळी शकी नथी, पण तेमना नाम उपरथी तेओ बहुज प्राचीन वखतमा थएला होवा जोइए एम अटकल करी शकाय छे.
E एमां पंदर कथाओ छे. F एना माटे वृहटिप्पनिकामां नीचे मुजब नोंध छ:--
"कथावली प्रथमपरिच्छेदः प्रा. मु. २४ जिन १२ चक्रयादि हरिभद्रसूरिपर्यंत सत्पुरुषचरित्र वाच्योभाद्रेश्वरः २३८०० ॥ पण ते अमोने क्या पण उपलब्ध थई नथी.
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________________
जैन औपदेशिक.
२६७
नाम.
श्लोक.
| नंबर
कर्ता.
रच्या
__ क्या छ ? नो सं.
पा.४
आनंदसुंदर
आग.जयतिलक
पा.४
जेसल.
कथासंग्रह
१६५३ " (बीजो) , (श्रीजो) १२५५ " (चोथो) कथासंचय कल्पमंजरीकथाकोश
गंडयस्सकहा (प्रा.) २२/ तरंगलोळा
त्रिषष्ठिमहापुरुषगुणालंकार ७१०० दृष्टांतरलाकर
पत्र २८ द्वादशभावनाविषयेकथा ८७५
धर्माख्यानककोश (प्रा.) । वृत्ति (प्रा.)
धर्मपरीक्षाकथा २८ पार्श्वचरित्रसंबद्धदशदृष्टांत ९५७ ,
कथा
भाव. अ.२
नेमिचंद्रशिष्य
यशःसेन A पुष्पदन्त B
डेक्कन
अ.२
१५००
पद्मसागर
रि.६
रत्नप्रम
A अमदावादना चंचलबाईना भंडारनी टीपमा एना कर्ता नेमिचंद्रसूरि छ एम जणाव्युं छे. पण, भावनगरनी टीप उपरथी प्राये आ ग्रंथ दिगंबर यश; सेनरिएज रच्यो होवो जोईये.
B आ पुष्पदन्ताचार्य ते योनिप्राभूतना करनार धरसेनाचार्यना वखतमां थएला छ, एटले तेओ | विक्रमनी बीजी सदीना मध्यमा विद्यमान हता. डेक्कन कॉलेजना लीस्टमा एमर्नु नाम पुषदत्त एवं नोध्युं छे | पण ते भूलथी नोंघायु छ एम पुरावा उपरथी सिद्ध थाय छे.
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________________
जैन औपदशिक.
नवर
नाम.
श्लोक.
.कर्ता,
क्यां छ?
रि.६ जेसल. जेसल. बे.
सेकन.
५०..
डेसन.
भकामरमहात्म्य | १७०० शुभशील भद्रनंदिकुमारकथा A १५० मंगलमालाकथा (प्रा.)
ताड३२६ मित्रानंदामरदत्तकथा (प्रा.) ३३, रामायण
देवविजयगणि लघुत्रिषष्ठिचरित्र
मेघविजय ३५/ विविधकथा (सं.)
(गद्य) ३६ शीलोपदेशमालाकथा सम्यस्ककौमुदी २८५७ मिनहर्ष १४५७ (बीजी)
जयचंद्र , (श्रीजी) पत्र ५९ गुणाकरसूरि ,, (चोथी)
धर्मकीर्ति १४६२ सातव्यसनकथासमुच्चय .. | दि.सकलकति
पा.४
पा. १-४-५ सुलभ्य.
खं.
ली.
३९
रत्नमंडनगणि
सुकृतसागर स्मरनरेंद्रादिकथा
पत्र १२८
हास्यकथा
म्हस्वकथासंग्रह
१०००
मल.श्रीतिलक १४१३ शिष्य
A आ कथा जेसलमेरनी टीपमा हीरालालना नोधमा छे. B अमदावादना डेलाना भंडारनी टीपमा एना कर्ता सोमकीर्ति जणाव्या छे. C आ ग्रंथ एसिऑटिक सोसायटीना रिपोर्टमां कतना नाम साथे नोंघेल के.
Page #299
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________________
-
-
लीस्ट नंबर ७. जैन माहात्म्य.
dhakshokkkkkkkakkadkikas tarah kat
karkeletoki
Page #300
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________________
२७०
नंबर.
23
माहात्म्यना ग्रंथो.*
गिरनारकल्प
दीपालिकाकल्प
३१
"
"
नाम.
"
वर्ग १ को.
( बीजो )
( श्रीजो ) A
प्रा. ( चोथो)
प्रा. ( पांचमो )
अवचूरि
जैन औपदेशिक.
३ रावणऋद्धिस्वरूप
४ वैभारगिरिकल्प
श्लोक.
पत्र २
૧૮
५१३
ताड
४२५
दीपालिकाकल्प B (छठ्ठी) २७५
१२३
पत्र ३
कर्त्ता.
जिनसुंदर
सर्वानंद
कनक कुशल
जिनप्रभ
विनयचंद्र
.
रच्यानो सं.
१३२५
| १४२३
१३८७
१३८५
क्यां छे !
म. १
पा. ४
पा. १-३ प्रो. मणि
पिपं. रि. ५
अ. १
पा. ४ भाव.
भाव.
व पा. ३
पा ४
राधण+
* एमां तीर्थ, पर्व आदिना महात्मना वर्णनना ग्रंथाने एकत्रित करी तेमने क्रमवार नोंध्या छे उपरांत स्तोतना ग्रंथो पण महात्म्यने लगता होवाथी तेमनो पण आज वर्गमां समावेश करवामां आग्यो छे.
प्रोफेसर मणिलाल नभुभाई पोतानुं लीस्ट के जेमां सन १८८२ मां पाटणना बारभंडारना पुस्तकोनी हकीकत साथे नोंध करी छे तेमां आ ग्रंथ रचायानो १४५३ जणावे छे.
A पिटर्सन रिपोर्ट पांचमांना पेज ५४ मां आ कल्पनी नोंध करी छे. त्यां एनी प्रान्स माथानुं उत्तरार्ध " तस्प्रावर्ततपर्व सर्वजगति भातृद्वितीयाभिधम् ” आवी रोते आपोने छेवटमां इत्याचार्य श्रीसवीनंद विरचितो दीपोत्सव कल्पः समाप्तः एवी नोंघ करी छे.
B एने लघुदीपालिका कल्पना नामथी विशेष ओळखवामां आवे छे.
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________________
नंबर.
शत्रुंजयकल्प
वृत्ति
नाम.
७ शत्रुंजयमाहात्म्य C
(गद्य)
भुंजयषोडशोद्धारवर्णन
संमेतशिखरमाहात्म्य
सिद्धचक्रस्तव
जैन औपदेशिक.
शत्रुंजयकल्प A
B
शत्रुंजयादित्रेसठतीर्थकल्प | ३५०३
१००२४
लोक.
गा.४७
6
१२५००
38
पत्र २९८ हंसराज
पत्र१६
२००० दि. दीक्षित देवद च
१२३७
११ स्वामिवात्सल्यमाहात्म्य E २०००
कर्ता.
धर्मघोष
शुभशील
पालित्तयसूरि
जिनप्रभसूरि १३८५)
धनेश्वरसूरि
B एना माटे वृइटिप्पनिकामां नीचे मुजब नोंष छे:
शत्रुंजयादि ६३ तीर्थकल्पाः सं. प्रा. १३८५
रच्या
नो सं.
क्यां छे १
पा. ३. ४.
| १५१८ पा. ५
वृ.
वृ.
पा. ३. ४. लीं.
भरूच.
भाव.
A. S.
A सदरहू कल्पो भद्रबाहुस्वामी रख्या वज्रस्वामी उधृत कर्या अने पादलिप्स सूरिए संक्षिप्त कर्या छे.
पा. ४
जेसल.
२७१
वर्षादौ जिनप्रभसूरिकृताः प्रसिद्ध
| तीर्थेतिवाच्याः ३५०३ "
C एना छ सर्ग छे. लॉबडनी ठीपमां तेना लोक बार हजार छे एम जणाव्युं छे.
D आदिगंबर दीक्षित देवदत्ताचार्य क्यारे थएला छे ते संबंधी कं वधु हकीकत मळी नथी,
E सदरहू मंथ जेसलमेरनी हीरालाले करेली टीपमां नोबेल होवाथी तेना माढेशक रहे छे.
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________________
जैन औपदेशिक.
नर
नाम.
नामः
श्लोक. कर्ता.
या
क्या छ ?
वर्ग २ जो. स्तुति-स्तोत्रो..
अजितशांतिस्तव गा. ३८, मंदिषण
५. पा.१-३ सुलभ्य. वृत्ति
जिनप्रभ
घू.पा. १ सुलभ्य. वृत्ति A (बीजी) अवचूरि | ३२०
पा.३ A. S. अजितशांतिस्तव (बीजो) जयशेखर IAS. अजितशांतिस्तवः (त्रीजो) ३९ शांतिचंद्र १६५१ नगीनदास. अठ्ठोत्तरीस्तोत्रगा . १९२ आंच. महेंद्रप्रभ लींबडी, अतिशय पंचाशिकास्तोत्र अनैकैः स्तुति
(अपूर्ण) अयोगान्ययोगव्यवच्छेदद्धा हेमाचार्य पा. कोडाय. त्रिशिका D
खंबात.
A आ वृत्ति वृहटिप्पनिकामां नोंधी छे, पण त्या कर्ता नाम आप्यु नयी. B आ अजितशांतिस्तवनु आदिपद 'सकलार्थसिद्धिसाधनहरिचंदनचारुचरणपरिचरणे' एवं छे.
C आ स्तुति खंबातनी टीपमाथी मळी छे, तेनी रचना उपरथी ते यशोविजयजी उपाध्याए रची होय तेम विशेष संभव थह शके तेम छे.. ! D आ बे बत्रीशीओ जूदी जूदी छे. तेमा स्याद्वादमंजरीचें मूळ अन्ययोगव्यवच्छेदिका बत्रीशी छे अने बीजी अयोगव्यवच्छेद बत्रीशी छे.
Page #303
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________________
जैन औपदेशिक
नंबर.
नाम.
२२०
मरनाथस्तव
डेक्कन. पत्ति
वल्लभगणि ७ भईरस्तष (सं. गद्य)
सिद्धसेन महत्सहस्रनामसमुश्चय पत्र ६ वृति
पत्र ५७ ९ महत्सहस्रनामस्तोत्रपत्र ८ | देवविजयगणि १० अष्टादशस्तोत्र
सोमसुंदर ___ अवधि |पत्र ४, सोमदेव १४९७ पा.४ प्रो. मणिलाल मष्टपंचाशस्तुति वृति
सोमतिलक पा. ३-५ १२ भएप्रवचनमाला A (प्रा.) पत्र ६
प्रो. मणिलाल. आविजिनादिस्तोत्र ।
जयकेसरी मादिजिनस्तुति
नगीनदास. आविदेवस्तवन (मंत्रजंत्र
A.S. वृत्ति मादिनाथजगन्नाथस्तुति লী
१५०० नरसिंह B . पा.४.
कलित)
पा.४
. A आ स्तोत्रनुं नाम ' अष्ठप्रवचन माता' एवं होय तो होय. प्रोफेसर मणिभाइए पोताना कोस्टमा अष्टप्रवचनमालाना नामथी तेनी नोंध करेली होवाथी तेज नामे तेने इहा नोंध्यु छे. F B आ नाम अन्यधर्मी जेवू लागे छे ते उपरथी मूळना कर्ता पण अन्यमतिज विशेष संभवी
के. छतां नरसिंह ते कोण हता ते बाबत चोकस निर्णय आ वृत्तिनो प्रशस्ति लेख तपासवाथीज थी शके.
Page #304
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________________
२७४
नवर
१५ उपसर्गहर स्तोत्र
वृत्ति
वृत्ति (बीजी )
वृत्ति (त्रीजी )
लघुवृत्ति
उपसर्ग हर स्तोत्र
नाम.
११६ उल्लासक्रम
वृत्ति
१७ ऋषभचतक
ऋषभस्तव
अवचूरि
ऋषभस्तव ( बीजो )
अवचूरि
ऋषभस्तुति
ऋषभस्तोत्र B
ऋषिमंडलस्तव C
"
"
(सं.) D
( सं . )
जैन औपदेशिक.
लोक.
१०००
१९४
४०
३००
ca
३०
गा. २७१
७०
९८
कर्त्ता.
भद्रबाहुस्वामी
जिनप्रभ
जयसागर
पार्श्वदेव
समूर A
धर्मतिळक
हेमविजय
खर विजय
तिलक
चंद्रधर्म
जिनसेन
जिनवल्लभ
मेरुतुंग
गौतम
रच्या· नो सं.
क्यां छे ?
वृ. पा. १ मुद्रित.
वृ. पा. २-३
A.S.
पि.रि. ४
A, S.
डे. पेज ६
दि. ६
रि. ६
भ. २
पा. ४
लींबडी.
पा. ५.
A. S.
जेसल.
घृ.
| ली. डेक्कन पेज: २७३
A आ नाम कंइक विचित्र लागे छे, डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां पण सेना संबंधे कशो खुलासो जणान्यो नथी. अमारा अनुमान प्रमाणे प्राये आ कोई अन्यदर्शनी होवा जोइये.
B आ ऋषभस्तोत्र जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नौंध्युं छे.
C. D एना माटे पाछळ पाने एकसो पंचोत्तेरमा तेमना नाम नीचेनी नोट जुओ.
Page #305
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन आपदेशिक.
नंबर. ।
नाम.
श्लोक.
का .
क्यां छे ?
N
२१
सन
वृत्ति
वृत्ति
२० एकीभावस्तोत्र
२४० वादिराज कर्मस्तवन (प्रा.) कल्याणमंदिरस्तोत्र
सिद्धसेन
पा. १ मुद्रितवृषि
हर्षकीर्ति १६६८ पा. १ माणिक्यचंद्रपा . ३
जिनविजय १७१० पा. ३ वृत्ति
उपकेशगच्छीय पा. ३ जे.
देवतिलक
गुणसागर अपचूरि
४८० गुणसेन A पा.१-३ अ.२ डे.. कल्याणमंदिरस्तोत्र (बीजुं)
९. भाष. स्वोपक्ष
पा.३-४.भाव. कल्याणमंदिरछायास्तयन
A.S. कल्याणमंदिर B (अभिनव) कल्याणिकस्तव क्रियाकलापस्तुति वृत्ति
पत्र ५ प्रभाचंद्र
वृत्ति
भावप्रभ
वृत्ति
| २०६२
___A आ नाम पाटणनी टीपोमांथी मळ्यु छ तेना भरोसे अमे इहां नोंध्युं छे. अमदावादना चंचलबाईना भंडारनी टीपमां तथा डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां करीना नाममा गुणरत्नसूरिनुज नाम आप्युं छे. आ ये आचार्यमांथी कया आचार्य आ अवचूरि रची छे ते बाबत तेवो पुरावो मळ्या वगर निर्णय थवो मुश्केल छे. | Bएने अभिनव कल्याणमंदिरस्तोत्रना नामे वधु ओळखवामां आवे छे.
Page #306
--------------------------------------------------------------------------
________________
২৩
जैन औपदेशिक. श्लोक. कर्ता...या:
नाम.
क्या छ ।
-
२८
क्रिवागुप्तस्तोत्र A ५. , भावजयशेखर असल. कुरुकुल्लादेवीस्तष
A.S. गणधरस्तवन (प्रा.) पत्र ७
प्रो. मणिलाल. गुरुपादुकास्तोत्र
लीबडी. २९ गुरुपारतंत्र्यस्तव
जिनदत्त पा.१-३ वृत्ति
जयसागर १३६८ पा.१-५A.S. गुरुयमककान्याष्टक (सं.) पत्र १
प्रो. मणिलाल. गौडीपार्श्वस्तोत्र B का.१०८ यशोविजय गौतमस्तोत्र
पा.३
अ. १ मुद्रित. वृत्ति चतुर्विंशतिजिनस्तव
मल.देवप्रभ चतुर्विशतिजिनस्तवन (प्रा.) १५५
|पा.५ जेसल. चतुर्विंशतिजिनपूर्वभवोत्की का.२७ रत्नसागरगणि खंबात.
र्तनसंबद्धस्तवन चतुर्विशतिजिनस्तुति २०२ | बप्पभट्टि
वृ.पा. ३-४ अवचूरि
पा.३
-
चउकसाय
१
-
A स्तोत्र जेसलमेरनी हीरालाले करेली टीपमा नोंधायलं छे. अने पं. आणंद सागरजी जणावे छ के आ नामनु स्तोत्र तेमना जोवामां आवेलुं छे.
Bआ स्तोत्र पूर्वे यशोविजयजीकृत ग्रंथोना वर्गमा नोंघेलु छे छतां आ स्तोत्रनो वर्ग होवाथी स्वास करीने इहां पण नोंध्यु छे.
C संदरहू स्तव वृटिप्पनिकामां नोंघेल छे बाकी क्यांपण उपलब्ध ययु नथी. तेना माटे त्या ! " २४ जिनस्तवाः २४४८८ गाथा श्ववनादि ३९ वाच्या एको नोध छे. एमां. अनुक्रमे दरेके दरेक स्तवनी आठ आठ गाथाओ छे. ते मुजब एनी कुलगाथाओ १९२ होवी जोईये.
Page #307
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________________
जैन औपदेशिक
नबर ।
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
ज्या
क्या छ ?
पत्र २
चतुर्विशतिजिनस्तुति __, A
दृति B चतुर्विशतिजिनस्तुति
धर्मघोष समंतभद्र वृ.पा.३ दि. प्रभाचंद्र सिद्धांतसागर १५४१ पा.४ जिनेश्वर
पा.४ जेसल.
,,
पत्र २
। ५११ जिनविजयशि
प्यपद्मविजय
অৰি चतुर्विधतिजिनस्तुति
अवधि चतुर्विंशतिस्तुति
वृत्ति चतुर्विंशतिस्तुति
सोमदेव
पत्र
अघरि
-
| सोमप्रभ
मेरुविजय स्वोपक्ष हेमविजय स्वोपक्ष जिनप्रम कनककुशल १६५२ पा. ३-५
-
चतुविशतिस्तुति
अवचूरि चतुर्विंशतिजिनस्तोत्र वृत्ति
-
५०१
A, B एना माटे हटिप्पनिकामां " समंतभद्रकृतस्वयंभुवाभूतहितेनभूतले समंजसमित्यादि २४ । जिनस्तवाः २४ दृत्ति दिगंबर प्रभाचंद्रीया १५४१" आवो नोध छे.
Page #308
--------------------------------------------------------------------------
________________
२७८
जैन औपदेशिक
नंबर.
नाम.
नाम
श्लोक.
कर्ता.
रच्या नो सं.]
क्यां छ?
५७५, मुनिसुंदर
नरचंद्र सागरचंद्र
पा. ३-५ पा. ३-५ पिटर्सन रि.५ A.S A.S. नगीनदास.
विलमविजय
भूपाल तथा पद्मनंदि
चतुर्विंशतिजिनस्तोत्र
अवचूरि चतुर्विंशतिजिनस्तोत्र
" (गुप्तक्रिय) A वृत्ति . चतुर्विंशतिजिनस्तोत्र चतुर्विशतिकास्तोत्र चतुःषष्ठियोगिनीस्तुति चित्रस्तोत्र
__वृत्ति ३७ चित्रस्तोत्र (बीजु)
वृत्ति चित्रषद्धपार्श्वस्तोत्र चिंतामाणे चिंतामण्यटक जनेनयेनस्तुति
वृत्ति
देवसुंदर शिष्य | साधुराज
प्रो.मणिलाल.
A जेसलमेरनी टीपमा हीरालाले क्रियागुप्त एवा अचोकस नामथी जेनी नोध करी छे अने तेज नामयी आ वर्गनी शरुआतमा जेने अमे नाध्युं छे तेज आ स्तोत्र नहि होय? ते बाबतनी खरी खात्री जेसल|मेरना भंडारमांनी प्रत फरीथी तपासवाथी यई शके.
Page #309
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________________
जैन औपदेशिक.
२७९
नबर
___ नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां छ?
नास.
--
-
मभयदेव
व, पा.१
२५१
गा. १७
पा.४
सोमसुंदर विल्हणकवि सोमसुंदर
पि.रिपोर्ट ५.
४२. जयतिहुयणस्तोत्र
वृत्ति जयपयरपयावस्तोत्र जिनकल्याणिकस्तोत्र जिनपतिस्तोत्र जिनभवस्तोत्र
अवचरि जिनराजस्तव (प्रा.) जिनविक्षति A ভিনব
पंजिका जिनस्तुति B (सं.)
जिनप्रभाचार्य
जेसल.
१५५०
जंबूमुनि शांबसाधु चंद्रगुप्त सोमप्रभ जयाभिनंदि
वृ. पा. ४ सुलभ्य. व.पा.१ सुलभ्य. नगीनदास. पा. ३ भाव.
५१ जिनसहस्त्रनामस्तोत्र
आसधर
जिनसेन
वृति
३०००
A आ जिनविज्ञप्ति जेसलमेरनी टीपमां हीरालालना नोंधमां छे.
Bएन आदिपद " संसारसिन्धूत्तमजाणवतं " एवं छे. पिटर्मन रिपोर्ट पेहेलाना पेज ९४ मां । एनी नोंध लेतां प्रान्तमा " इति वर्णमान नामा माथुरंकपितृमातृकीर्तनाजिनपाः । श्रीचंद्रगुप्तसूरिभिरभिष्टुताः |शिवसुखं दा" आवो उल्लेख को छे.
Page #310
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________________
૨૮૦
नाम.
५२ जिनेश्वरस्तोत्र
१५३
जिन स्तोत्र
अवचूरि
५४ जीरावल्लिस्तव
जीरावल्लिस्तवन
जीराव द्विस्तोत्र
अवचूरि
जैनधर्म वरस्तोत्र
वृत्ति
५६ विजयपहुत्त
वृत्ति
५७
तीर्थस्तव ( यमकबद्ध )
५८ तीर्थमालास्तवन (प्रा.)
५९ तीर्थमालास्तोत्र
६० | देवागमस्तोत्र A
६१) देवाः प्रभोस्तोत्र
अवचूरि
६२ द्र्वक्षरनेमिस्तव
जैन औपदेशिक.
लोक.
२७
मा. १४
का. ४५ आंच. महेंद्रप्रभु
गा. १११
११५
२००
कर्त्ता.
५०
हर्षवर्द्धन
भावप्रभ
भावप्रभ
हर्षकीर्ति
सोमप्रभ
रच्या· नो सं.
चंद्रसूरि
दिगं. समंतभद्र)
जयानंद
वानरर्षि
जिनप्रभ
क्या छ ?
नगीनदास.
पा. ३,
पा. ३
A. S.
ཐ ཟ ༣
पा. ३
पा. ३
१७९१ पि. रि. ५
१७९१ पि. रि. ५
पा. १ मुद्रित.
पा. १-२
पा. १.
पा. ४ नगीनदास.
A. S.
पि. रिपोर्ट ४
पा. ३
पा. ३AS.
जेसल.
A आ देवागमस्तोत्र ते गंघइस्तिमहाभाष्यनुं मूळ छे अने तेनी ११५ कारिकाओ छे.
Page #311
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________________
नंबर.
नाम.
A
६३ द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका (ताड ) ८३०
६४ द्विवर्णरस्नमालिका
वृति
धनपाल पंचाशिका
वृति
वृति ( संक्षिप्त )
अवचूरि
अवचूरि (बीजी )
६६ | धरणोरद्रस्तव
७०
वृत्ति
नंदिस्तुति व्याख्या
नमस्कार द्वात्रिंशिका B
| ६९ नमस्कारस्तव (प्रा.)
वृत्ति
नवग्रहस्तोत्र
नमिजण
"
जैन औपदेशिक.
लोक.
पत्र ११
११००
३३६
ताख
२५०
११
२५
कर्त्ता.
सिद्धसेन
पुण्यरत्न
रामर्षि
पत्र ३ गुणसौभाग्य
(जैन)
जिनकीर्ति
गा. २४
धनपाल
देवभद्र शिष्य प्रमानंद
धर्मशेखरोपाध्याय
नेमिचंद्र
रच्या
नो सं.
"
भद्रबाहु
क्या छे ?
२८१
| डेक्कन पेज १६७
पा. ३
पा. ३
वृ.
वृ. पा. २-३-४-५
वृ.
पा. ३
पा. ४
पि. रि. ५
पि. रि०.५
पा. ५
| डेक्कन.
AS.
A.S.
नगीनदास. मुद्रित.
पा. ३ पि.रि. ५ मुद्रित. ली. जेसल.
A सदरहू बीशीमांनी वीस बत्रीशी मळे छे. डेक्कन कॉलेजमां जो बत्रीशे वत्रीशी संपूर्ण होय तो त्यांची तेनो उताये करावी लेवानी अत्यंत अगत्य छे. हमण तपास करतां मालम पड्युं छे के डेक्कनमा पण वीराज बत्रीशी के.
B आ नमस्कार द्वात्रिंशिका डेक्कन कॉलेजना लॲस्टमां नोंघेली छे अने तेमां वे कोई जैनाचार्यों करेली छे एम जणाव्युं छे
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________________
૨૪૨
नंबर.
(७२ नमिरसुरस्तव
७३ | नाभेयजिनस्तुति
७४ नाभेयस्तोत्र
७५ निरंजनपरमात्मत्रिशतिका
७६ नोमिस्तोत्र
">
नाम.
७७ नेमिचरित्र स्तोत्र (प्रा.)
७८) नेमिस्तवन
७९ नेमिगद्यावली
१८० नेमिशतक
८१ नमोस्तु वर्धमानाय स्तुति
८२ पठितसिद्ध सारस्वतस्तोत्र
१८३
|८४ पंच परमेष्ठिस्तव
वृत्ति
पंचपरमेष्ठिस्तव
B
"
जैन ओपदेशिक.
श्लोक.
मा. २५/
गा. १४
१५
११४
२४
११७
११
पंचजिनस्तव ( षड्भाषा ) ८०
S
१००
कर्त्ता.
विश्वसेन A
जिनवल्लभ
विजयसिंह
जिनकीर्ति
जिनकोति
"
जिनप्रभ
अभयदेव
रव्यानो सं.
क्यां छे ?
पा. ४
A. S.
लींबडी.
A. S
लोंबडी,
जेसल.
पा.
पा. ४
पा. २
पा. ५ अ. रे
अ. १ मुद्रित.
नगीनदास.
पा. ३
| १४९४ पा. ३
| १४९४ पा. ३
A.S.
जेसल.
A आ कोई दिगंबर आचार्य होवा जोईये एम तेमना नाम उपरथी जणाय छे.
B आ पंचपरमेष्ठिस्तव जेसलमेरनी हीरालाले करेली टीपमां नोंघेलो होवाथी तेना कर्त्ताना नाम
मांशक रहे छे. कदाच ते जिनप्रभसूरिकृत तेज ए. होय तो पण होय.
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________________
जैन औपदशिक.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां छे ?
पंचपरमेष्ठिस्तोत्र पंचत्रिंशदतिशयस्तव पंचमीस्तोत्र परमेष्ठिस्तव (प्रा.) परमानंदस्तोत्र
| का. ८. हर्षमुनि
पद्मावत्यष्टक
A.S.
पद्मावतीस्तोत्र
पा.१ भाव.
पृथ्वीभूषण
A.S.
पा.१
भाव.
पभावतीसहस्रनाम प्राकृतवीरस्तुति (प्रा.) पार्श्वनाथाष्टक
वृत्ति पार्श्वस्तोत्र
डेक्कन.
इंद्रनंदि श्रुतकीर्ति
डेक्कन.
पा.१
पत्र १ गा. १५ १२५
जिनवल्लभ पार्श्वदेव महेंद्रसूरि
जेसल.
A.S.
G
पार्श्वनाथस्तोत्र पार्श्वनाथादिस्तोत्र पार्श्वस्तव
पद्मप्रभ
नगीनदास. नगीनदास
वृत्ति
१०० मुनिशेखर :
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________________
जैन औपदेशिक.
रच्या
नाम.
श्लोक.
सागर
२०१
१०
नामदास. प्रो. मणिलाल.
पार्श्वस्तवन ( सटीक) पत्र १ माणिक्यसुंदर पार्थस्तवन
जिनभद्र पार्श्वनामावली ११३| यांच. कल्याण पार्श्वभक्तप्रसादप्रशस्ति । १५० पुद्गलपराबविचारस्तव पत्र१ . पूंडरीकस्तव (प्रा.) A गा. ११८ प्रणम्यस्तोत्र B (प्रा.) प्रभावकस्तोत्र
वृत्ति D फलवर्द्धिपावस्तवन
क्षमारत्नोपाध्याय विनाति
दयासागर बटुकभैरवस्तोत्र बप्पहटिस्तुति : वृत्ति
७३५, सहदेव
असल. असल
A.S.
A.S.
-
-
-
वृ. सुलभ्य. वृ. पि.रि.५
A एनुं आदिपद " आरंभे सुनियत्ता " एवं छे.
B आ स्तोत्र प्रणम्य आ पदथी शरु थयेलं होवाथी तेवा नामीज ओळखाववामां आव्युं छे. | पण ते अमोने हजीसूधी उपलब्ध थयुं नथी.
C आ नाम शक पडतुं लागे छे कारण के हीरालाले तेनी सामान्य नामथीज नोध करी होय तेम जणाय छे. तो तेनुं खरं नाम शुं छे ते जाणवा माटे ते प्रत फरीथी तपासवानी जरूर छे.
D एर्नु नाम " मंत्रमहाभाष्य ॥ एवं छे.
E एना माटे वृहटिप्पनिकामां “नमेंद्रमौलि इत्यादि बप्पट्टिस्तुति: ९६ वृत्तिः सहदेवकृता ७३५ " आवो नोध छे.
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________________
जैन औपदेशिक.
नाम.
नाम.
श्लोक. का. रच्या क्या छ ?
A. S.
बालभारतीयस्तुति भक्तामरस्तोत्र
| मानतुंग
गुणाकर
वृत्ति
१५७२
पा. १ मुद्रित. १४९६ वृ. पा. १ सुलभ्य.
ली.नगीनदास.
अमरप्रम
रत्नचंद्र कनककुशल
१६५२/ पि.रि.५ गुणसुंदर शांतिसूरि डि- नगीनदास.
लगच्छीय पद्मविजय
अ. १ देवसुंदर
४००
थ.२
(बभिनव ) भक्तामर A
A.S.
भक्तामरछायास्तवन भयहस्तष
वृत्ति
स्थूलिभद्र
डे. पेज १३४ डे. पेज १३४
पा. १-२ सुलभ्य. १३६५ पा. १-३ A. S.
गा.२२
भयहरस्तोत्र B
वृत्ति
मानतुंग ডিনমঃ
A अमदावादना डेलाना भंडारनी टीपमा एनुं नाम अभिनव भक्कामर एवं लख्युं छे, B आ स्तोत्र नमिऊणना नामथी विशेष ओळखाय छे.
Page #316
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________________
जैन औपदेशिक.
नाम.
कर्ताःच्या क्या छ ?
१९४, भयहरस्तोत्र
जिनसिंह
वृत्ति
डे. पे. ३४.
भरतक्षेत्रीयजिनस्तुति १६ भवानीसहस्त्रनाम । २०५ भारती १०८ नाम स्तवन भूपालचतुर्विंशतिका
दिगंबर मंगळादीश्वरस्तोत्र A का . १४ | धर्मसूरि मंत्रस्तव
वृत्ति मंत्रबीजकोश महायमकमयपार्श्वस्तोत्र B| ४० । पद्मप्रभ महादेवद्वात्रिंशिका महादेवस्तोत्र महावीरस्तोत्र
पार्श्वचंद्र वृत्ति
भाव.
पा. ५ पा.५
भावप्रभ
A आ नाम काइक शक पडतुं लागे छ कारणके तपास करतां एम मालम पडे छ के पिटर्सन रिपोर्ट पांचमामां जणावलं अने आ पुस्तकमां कुलकोना वर्गमां नौधेलु नामे मंगलकुलक तेज ए होवू जोईये. ( जुओ आ पुस्तकना पेज २०२ मां )
B सदरहू स्तोत्र जेसलमेरनी हीरालालनी करेली टीपमा नोंधेलु होवाथी शक पडतुं छे. cा पार्श्वचंद्र ते कोण हता ते जाणवा माटे तेनी प्रत तपासी नक्की करवं जोईये.
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________________
जैन औपदेशिक.
२८७
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
याः
क्या छ ?
नगीनदास.
१२७
.
भाव.
१२६ महावीरस्तोत्र ( अपभ्रंश) गा. ३० महावीरस्तुति
जिनपति
जिनेश्वर १२८ महाधीरचरित्र गा. ४४ जिनवल्लभ १२९/ महीनस्तोत्र
जयचंद्रशिष्य
सत्यशेखर अवचूति १३० महेश्वरीसहस्रनाम १३१| यमकस्तुति A
धर्मघोष वृत्ति
सोमतिलक १३२, यमकस्तुति . वृत्ति
ताड ५७ सोमप्रभ यशोभद्रसूरिकृतस्तुति B युगादिस्तव युगादिदेवस्तोत्र
पृति ( मंत्रयंत्रगर्भित) २०० १३६ युगादिदेवस्तुति
सोमसुंदर
पा.५ पा.१ A. H.
A, F.
पा. २-५
A एन आदिपद ' जयवृषभ ' एवं छे. __B एनुं अपर नाम : कुसुमावली' छे.
Page #318
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________________
२८८
जैन औपदेशिक.
नंबर.
नाम.
श्लोक. कारच्या
क्यां
छ?
A.S.
सोमसुदर मुनिसुंदर
११५०
युष्मदसदस्तव रत्नकोश A रत्नाकरपंचविंशतिका
वृत्ति
वृत्ति (बीजी) राणपुरस्तवन (सं.) लघुस्तव
पा. ३ अ. १ नगीनदास.
१३०८ वाघजी
कोडाय. प्रो. मणिलाल.
पत्र ४
राजमुकुट B
डेसन.
भाष्य
डेक्कन.
जेसल.
जेसल. वृ.पा. १ जेसल.
१४२ लघुस्तोत्र
वृत्ति लघुअजितशांति C
वृत्ति
वृत्ति (बीजी) (१४४ लघुअजितशांतिस्तव E
४७४, सोमतिलक का. १७ जिनवल्लभ
धर्मतिलक D जयसोमशिष्य
गुण विजय वीरगणी
पा. १ अ.२.
पा.५
नगीनदास.
A एमां अनेक स्तोत्रोनो संग्रह करवामां आव्यो छ. B आ राजमुकुट ते कोई अन्यमति आचार्य होवा जोईये एम तेमना नाम उपरथी जणाय छे. C एजें अपर नाम “ उल्लासिकमनखनिम्गयपहा दंडछलेणंगिणं " ए, छे. D धमतिलक सरिनी वंशावळी आ रीते छः
पहेला विजयसेनसार तच्छिष्य धर्मदेव तच्छिष्य धर्मचंद्र तच्छिष्य धर्मरत्न अने तेना शिष्य ते आ धर्मतिलकसरि छे. अमदावादना चंचलबाईनी टीपमा कर्त्ताना नाममां धर्मतिलकसरिना गुरु धर्मरत्ननु नाम आप्यु छे. तेथी चंचलबाईना भंडारमांनी प्रत तपासी जोवानी जरूर रहे छे.
E एजें प्रथम चरण " गम्भअवयारि मंगलकरा ॥ एवं छे.
Page #319
--------------------------------------------------------------------------
________________
नंबर.
नाम.
| १४५ लघुशांति
अवचूरि
| १४६ वर्द्धमानद्वात्रिंशिका
जैन औपदेशिक.
१५२ विहारशतक A
| १५३ बिल्हणपंचाशिका
१५४ विविधस्तव
१५५ विशाललोचन
वृत्ति
१५६ विषापहारस्तोत्र
टिप्पन
श्लोक.
कर्त्ता.
मानदेव
वृत्ति
अवचूरि
२४७ वर्द्धमानषदर्शिशिका
(२४८ वरकाणापार्श्वविशप्ति
| १४९
विचारसारस्तवन
| १५० / विज्ञप्तित्रिवेणी
१०१२ भोजश्रावक
१५१ विहरमानजिन स्तोत्र ( प्रा. ) ३२५. लब्धिसागर
रामचंद्रगणि
विल्हण
२२
सिद्धसेन
पत्र ९
२०३ आंच. उदयसागर |
नयवर्द्धन
माणिक्यसुंदर
रच्या नो सं.
का. ४० दिगं. धनंजय
क्यां छे!
२८९
पा. ३ मुद्रित.
पा. ३ A. S.
पा. १-३
पा. ५ भाव.
पा. ५
पा. ३
A. S.
पा. ४
पा. १
पा. ३
पा. ३-४ कोडाय.डे.
A. S.
A. S.
अ. १ मुद्रित.
अ. १ मुद्रित.
लों. A. S.
ली.
A आ शतक पूर्वे पेज २१० मां शतकोना वर्गमां नोधवामां आव्युं छे, पण त्यां भूलथी कर्तानुं,
नाम नोंचतां रक्षी गयुं छे.
Page #320
--------------------------------------------------------------------------
________________
२९०
जैन औपदेशिक.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
त्या
क्या छ ?
वीतरागस्तोत्र
वृत्ति
४७४। हेमाचार्य રરર प्रभानंद A
नंदिसागर प्रभानंद विशाळराज सोमोदयगणि महेंद्रशिष्य मेघराज
पा.१ सुलभ्य. . वृ. पा. २-४-५ अ. २ पा. १-३
पत्र१८
पंजिका अवचूरि B अवधि (बीजी) अवचूरि (पीजी)
अवचूरि (चोथी) वीतरामस्तुति वीतरागनमस्कारस्तव वीतरागशतक .
___ वृत्ति १६१ वीरचरित्रस्तव (प्रा.)
वृत्ति १६२) वीरस्तव
htho
३८
जिनवल्लभ समयसुंदर
धनपाल
A आ प्रभानंदसूरि ते रुद्रपल्लीय देवभद्रसूरिना शिष्य अने चंद्रसूरि तथा विमल सूरिना गुरु हता.
B आ अवचूरि ते वखते प्रभानंदसूरिकृत वृत्तिज तो नहि होय ते माटे पाटणना भंडारमानी प्रत फरीथी तपासी जोवानी जरूर रहे छे.
___C आ वीरस्तव तेनी वृत्तिसाथै वृहटिप्पनिकामां नोध्यो छे, तेना मात्रै ते टिप्पनिकामां आकी रीते नोध छ " निम्मलनदेवि इति वीरस्तवस्य पं. धनपालकृतस्य वृत्तिः सूराचार्यकता २२५५
Page #321
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन औपदेशिक.
-
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्या
छ ?
२२५, सूराचार्य A.
पा. ३भाव.
र
भाव.
धीरस्तव
अवचूरि धीरस्तवन (प्रा.)
वृत्ति वारस्तवन वीरजिनादिस्तोत्र धीरस्तोत्र धीसविहरमाणस्तवन वृहच्छांति
१०
जसल.
पा.३
विमलहर्षशिष्य
मुनिविमळ कल्याणविजय जिनपल्लभ मेरुनंदन शांतिसूरि
जेसल.
पा. २ मुद्रित. डेक्कन
वृत्ति
पत्र
हर्षकीर्ति
अवचूरि १९७) बैरुटपास्तोत्र
गा. ३०
आर्यनंदिल
A.H
| A सूराचार्य ते देला महत्तरना गुरुहता. देल्ल महत्तरना शिष्य दुर्गस्वामि अने दुर्गस्थमिना शिष्य उपमित भवप्रपंचादिना करनार सिद्धर्षिसरि थया. प्रभावक चरित्रमा निवृत्ति गच्छना सूराचार्यने गर्गर्षिना शिक्षागुरु तरीके जणाव्या छे, अने तेओ मीम अने भोजराजाना वखतमां इता एम तेमा जणाव्यु छे. ते मुजब आ सूराचार्य आशरे विक्रमनी नवमी सदीनी शरुआतमा यया होय तैम मानी शकाय छे. हवे जो तेज आ सूराचार्य होय तो सं० १२२९ मां पायलच्छि नाममालाना करनार धनपाल अने आ सूराचार्थना वखतमां थयेला धनपाल जुदाज ठरी शके, अगर तेरमी सदीना वचगाळे कोई बीजा सराचार्य यया होय तो तेमपण होय. आरीते चौकस पुरावाना अभावे बन्ने की भी माटे शक राखवो पड़े छे. अमारा धारवा मुजब वीरस्तवना करनार धनपाल पहेला सूराचार्यना समयमांज थयला हौवा जोईये, छतां आ संबंधमा सुज्ञ मुनिवर्य महाशयोने अमारी नम्र विनंती के के जेआओने आ बाबतनी चौकस माहिती जाणवामां आवी होय तेओए ते अमारा उपर लखी मोकलया कृपा करवी.
Page #322
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________________
२९१
नंबर.
नाम.
१६८ शत्रुंजयचेत्यपरिपाठी
१६९/ शत्रुंजयमाहात्म्यस्तवन A
११७०
शंखेश्वरपार्श्वस्तव
95
१७१ शांतिकर
B
अवचूरि
११७२ शांतिस्तोत्र C
(१७३ शांतिनाथचरित्र
११७४ शांतियमकस्तव
१७५ शारदास्तव
१७६ शाश्वता जेनस्तव (प्रा.)
शोभनस्तुति
वृत्ति
जैन औपदेशिक.
वृत्ति (बीजी )
वृत्ति (त्रीजी )
श्लोक. कर्त्ता.
का. ११२ यशोविजय
गा. १३ मुनिसुंदर
३५ जिनवल्लभ
मा. ३३ | जिनवल्लभ
अवचूरि
१७७ शाश्वतजिनस्तुति (प्रा.) गा. ३४
११७८)
૧૪ देवद्रेमुनि
सिद्धसेन
शोभन
२३५०
जयविजय
२२०० सिद्धचंद्रगणि
१००० धनपाल
रच्याः नो सं
B आस्तव यशोविजयजी उपाध्यायकृत ग्रंथोना वर्गमां नोंधायेलुं छे.
C आ स्तोत्र हीरालालना नोधमांथी मळयुं छे.
क्यां छे ?
A.S.
A. S.
A. S..
ོ
खं.
पा. २ लीं. A.
रि. ६
जेसल.
ली.
पा. १
A. S.
पा. ३-४.
पा. ३-४:
नगीमदास.
पा. ३-४ मुद्रित
पा. ३
रि. ६
वृ. प. ३.४.
A आ स्तवन सारावली पयन्नामाथी उद्धृत करेल छे एम एसीऑटिक सोसायटीना रिपोर्टमां
जणाव्युं छे.
Page #323
--------------------------------------------------------------------------
________________
नंबर.
नाम.
वृत्ति ( चोथी )
वृत्ति (पांचमी)
वृत्ति (छठ्ठी)
अवचूरि
श्रीमतीर्थकराणांस्तवन
१७२
१८० श्रीनेमि: पंचरूपादिस्तुति
वृद्धि
जैन औपदेशिक.
श्लोक. कर्त्ता.
पत्र ५८ देवचंद्र
पत्र ६८
४९५
का. ७
१८१ श्रेयः श्रियंस्तवन A
| १८२ षद्भाषागर्भितवीरस्तोत्र
१८३ षण्णवतिजिनस्तोत्र B
१८४ सकलाईत्
१८५ सत्सूक्त ( सं . )
पत्र ८|
१८६ सत्तावीशभवस्तवन (प्रा.) पत्र ६
१८७ सनत्कुमारचक्रवर्तिस्तवन
पत्र १७
(प्रा.) १८८ सप्तशतिजिनस्तोत्र (प्रा.)
१८९ संसारदावानलस्तुति
समवसरण स्तोत्र
पत्र २
का. ४
१००
रच्या
नो सं.
सौभाग्यसूरि
भानुचंद्र
धर्मचंद्रशिष्य ११५१
राजमुनि
ज्ञानविलास
दिगं. विष्णुसेन
क्यां छे ?
अ. १
२९३
म. १
अ. १
पा. ३-४-५.
नगीनदास.
अ. १ मुद्रित.
| अ. १ मुद्रित.
प्रो. मणिलाल.
पा. ३
जेसल.
पा. ३ मुद्रित.
प्रो. मणिलाल.
प्रो. मणिलाल.
प्रो. मणिलाल.
लीं. A. S.
ली. मुद्रित.
A.S.
A आ स्तोत्र " श्रेयः श्रियां " एवा पदथी शरु थएल होवाथी तेज नामथी ओळखाय छे एम मो० मणिलाल नभुमाइए पोताना लिस्टमां जणान्युं छे.
B. सदरहू स्तोत्र जैसलमेरनी टीपमां हीरालालना नघमां होवाथी तेना संबंधांशक राखवो पढे छे,
Page #324
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन औपदेशिक.
नाम.
.श्लोक.
का .
क्यां छ?
यघोषिजय
hi
सोमतिलक विनयप्रम
१२५
A.S. नगीनदास.
बप्पभट्टिखूरि सोमप्रभ
समीनपार्श्वस्तोत्र सर्वजिनस्तुति सर्वचस्तव
सर्वशस्तोत्र A १९५ सर्वतीर्थावलिस्तवन B १९६सरस्वतीस्तव (महामंत्रगर्मित) १९७ सरस्वतीस्तोत्र
साधारणजिनस्तव
अवचूरि साधारणजिनस्तव
भवचूरि सार्वशाष्टक सारस्वतोद्धारस्तोत्र सिद्धचक्रस्तवन (प्रा.) सिद्धांतस्तव
अवचूरि
जयानंद
पा.१
नंदिरनशिष्य
| नगीनदास.
पा.४
जिनप्रम सोमोदय विशालराजायली .
A. B आ बन्ने स्तोत्रो पण जेसलमेरनी हीरालाले करेली नोधमाज छे.
C लींबडीना भंडारनी टीपमा सिद्धांतस्तवनी अवचरि आदिगुप्तना शिष्ये करेली छे जणाव्युं छे. पण ते टीप करनारे सखत भूल खाधी छे. एम प्रशस्ति लेख उपरथी मालम पढे छे.
Page #325
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन औपदेशिक.
नाम..
श्लोक.
का .
क्यां छ?
सिदिमियस्तोत्र
(दिगंबर) A.S. १५ सीमधरस्तुति पत्र मुनिसुंदर रे. पेज ६६ जेसल. __ भवरी
डेछन. २०॥ सुपार्श्वनाथस्तोत्र (सं.) पत्र ५
प्रो. मणिलाल. श्रिमंत्रगर्भित लब्धिस्तोत्र पत्र
पा.४ खं. सेनपुरीकृतस्तोत्र स्तपनकोय
पत्र विजयसेन स्तोत्रकोण
पत्र विजयपालसूरिशि१६५१) पा.
न्यजगमालगणि स्तोत्रमाला
पत्र १४ स्तोत्रविषिपंचविंशति |३४०० तेजसिंह
anti
Page #326
--------------------------------------------------------------------------
________________
लीस्ट नंबर ८. जैन भाषासाहित्या.
***kadashtakkakakakakshetatahsikmation
Page #327
--------------------------------------------------------------------------
________________
३९७
जैन भाषासाहित्य.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
नो सं.
क्यां छ?
व्याकरणना ग्रंथो.
७.. A
जेसल.A.S
| २२२३
आंच. प्रेमलाभ |१२१ जेसल.
वर्ग १ लो.* जैनेंद्रव्याकरण
जैनीव्याकरण B २| प्रेमलाभव्याकरण बालबोधण्याकरण मूळ. (अष्टाध्यायी), वृत्ति वृत्ति चतुष्काटिप्पन
२७५/
मेरुतुंग
१३.
पा.४ जे. अ.२ पा. ३-४ पा. ३ पा. ३-५
२११८
* आ वर्गमां जैनाचार्योए करेला जे अमारा जाणवामां आव्या छे ते तमाम व्याकरणना ग्रंथो अनुक्रमवार नोंच्या छे. एना बीजा क्लासमां परमतना व्याकरण ग्रंथो उपर जैनाचायोंए रचेला व्याख्या. प्रथा नोंधवामां आवशे, अने त्रीजा क्लासमा व्याकरणना परचूरण ग्रंथो नोंधवामां आवशे. ___A जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले आ व्याकरण ४५०० नुं छे एम जणाव्युं छे. ते वखते दियंबरो जेने. जैनेंद्र कहे छे ते हशे. A B आ नाम सामान्य छे तेनुं खरं नाम शुं छे तथा ते कोणे रचेलुं छे ते नक्की करवा
साटे अमदावादना खेलाना भंडारनी प्रत नजरे तपासी जोवानी ज़रूर छे. पं. आणंदसागरजी जणावे. 1छे के प्राये ते न्यासनो भाग हशे.
___C आ वृत्ति छ पाद सुधीनी छे.
Page #328
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________________
१९८
नंबर.
नाम.
प्राकृतवृत्ति
४ बालशिक्षाव्याकरण B
कद्वृत्तिटिप्पन
आख्यातवृत्तिढुंढिका A १७३४
२२९
बालशिक्षा व्याकरण (बीज) C
ލ
बुद्धिसागरव्याकरण
भोजव्याकरण
मुष्ठिव्याकरण
वृत्ति E
विषमपद विवरण
जैन भाषासाहित्य.
श्लोक.
शब्दभूषणव्याकरण
शब्दार्णव F
सिद्धसारखत G
७६७ मेरुतुंग
१८५०
७०००
२०००
४३००
पत्र २८
कर्त्ता.
३००
"
"7
संग्रामसिंह
भक्तिलाभ
बुद्धिसागर D
आंच. विनय
मलयगिरि
"
सागर
दानविजयोपा
ध्याय
सहजकीर्ति
देवानंद
रच्या नो सं.
क्या छ ?
पा. ४
पा. ४-५
पा. ३
जेसल-बे.
जेसल.
पा. १ जेसल
लीं.
वृ.
पा. १-५ डे.
अ. १
डे. पेज २७७
A. S. डेक्कन.
A. आठ पादसुदी संपूर्ण छे.
B आ व्याकरण जेसलमेरनी बन्ने टीपोमां नोधायेलुं छे, पण होरालाले पोताना नोंथमां एना कर्ता विजयसिंहसूर छे एम जणावीने ग्रंथ रचायानी साल १३३६ नी नोंकी छे. तेथी शक राखवो पड़े छे.
C आ बीजं बालशिक्षा व्याकरण हीरालालना नोधमांथीज मळी आव्युं छे.
D आ बुद्धिसागरसूरि ते वर्धमानसूरिना शिष्य जिनेश्वरसूरिना गुरुबंधु हता. एटले तेओ विक्रमनी अग्वारमी सदीनी आखरमा विद्यमान हता. बुद्धिसागरसूरिए सदरहू व्याकरण अन्यमतिओना आक्षेपथीज रच्युं छे. अने तेनी रचना तेमणे जावालीपुरमां करी छे.
E डेक्कन कॉलेजना लिस्टमां आ वृत्तिने ' शब्दानुशासनवृत्ति एवा सादा नामथीज नोंकी छे. अने ते त्यां तुटक छे.
R डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां एनी लोकसंख्या १३०० नोंधीने तेनुं नाम 'सिद्धशब्दार्णव' एवं नोच्युछे.
G सिद्धसारस्वत व्याकरण कनकप्रभना गुरु देवानंदसूरिए रच्युं इतुं एम आपणे सांभाळए छोए पण ते अमोने अस्यारसुधी क्यांइपण उपलब्ध थयुं नथी. पं० आनंदसागरजी जणावे छे के देवानंद सूरिए व्याकरण रच्युं नहि होय अने वखते सरस्वतीनो मंत्र सिद्ध क्यों हशे तेथी तेम कद्देवातुं इशे.
Page #329
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________________
जैन भाषासाहित्य.
नाम. .
श्लोक.
की .
रच्यानोसं.
क्यां छे!
-
-
-
हेमाचार्य
हैमव्याकरण. * भूळ (सूत्रो) उणादि लिंगानुशासन हैमवृहत्वृत्ति A ,, वृहम्न्यास B
वृ. पा. १-१ ली. वृ. पा. १-४ ली. ५ मुद्रित. पा. १-४ सधण.
» लघुम्यास C
रामचंद्रगणि धर्मघोष
वृ.पा. १-५ डे.
১, মুখ ,, परिभाष्यवृत्ति , न्यासोद्धार D ,, कक्षापट्ट (वृहत्वृत्ति
विषमपदव्याख्या)| ४८१८
कनकप्रभ
वृ. मुद्रित
वृ. था. ६
पत्र३१
"दशपादविशेष , दशपादविशेषार्थ
*एने सिद्धहेम, सिद्धहेमशब्दानुशासन, हैमव्याकरण एवा नामोथी ओळस्त्रवामां आवे छे. A आ वृत्तिनी श्लोकसंख्या चतुष्क, आख्यात, तद्धित तथा कृदंतनी मळी १८००० थाय छे.
B आ न्यास पाद १-३-४-५-६-७-८-१२ तथा २७ नो छे. तेनी ग्रंथसंख्या वृहट्टिप्पनिकामां आपी नथी अने ते हालमां कांइपण अखंड मळी शकतो नथी. पाटणनी टीपमां पत्र १५६ नो छे अने राधणपुरमा पत्र १३२ नो छे पण राधणपुरमानो न्यास वृहत् छे के लघुन्यास छे ते तपासी नकी करवान छ. आ स्थळे जणावेली लोकसंख्या दंतकथाथी लखी छे,
C एजें अपरनाम ' शब्दमहार्णव । एq छे. D आ अठावीस पादनों लघुन्यास छे.
Page #330
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________________
जैन भाषासाहित्य.
नाम.
श्लोकः कर्ता. च्या क्या छ?
--
-
-
-
-
| पा १
हमवृहद्वृत्ति (दुढिका )A
» दुढिका (धृहत् ) B८००० सौभाग्यसागर १५९१ पा. ३३. , दुढिका (लघु) २३०००
भाव.म.२ ,, वृत्ति पत्र २१४ उदयसौभाग्य भाव. " बृहद्वृत्तिसारोद्धार पर ४१ , लघुवृत्ति
स्वोपड़ पाः १. , लघुवृत्ति
काफलकायस्थ । कृपा. १-२ खं हेमलघुवृत्ति दुढिका D३२०० मुनिशेखर
वृ. पा. १-३ » , अवचूरि E २२१३ "" अवचूरि पत्र ६५ धनचंद्र
पा.१-२-४-५
हेमाचार्य वृपा.१ ., प्राकृतपादवृत्ति २४८५ स्वोपन्न " दीपिका
(वि.) हरिभद्र
कृ. पा.१ " ॥ अवचूरि
हरिप्रभसूरि पा.१
, प्राकृतव्याकरण
-
-
--
-
-
-
A आ हुँढिका चतुष्क, आख्यात अने कृद् उपर छे.
B आ लघुवृत्ति चतुष्क, आख्यात, कृद् अने तद्धित उपर छे. पाटणनी टीपोमा एनी लोकसंख्य १५००. नी आपी छ,
C एजें अपर नाम "व्युप्तचिदीपिका एवं छे. डेक्कन कॉलेजना लिस्टमा एना कर्ता उदयसौभाग्या जणाव्या छ, अने भावनगरनी टीपमा लघुढंढिकानी वृत्तिने करनारना नाममा तेमनी नोंध करी छे, ते उपरथी एम मालम पडे छे के भावनगरमां जगावेली लघुटुंढिकावृत्ति अने आ ग्रंथ एकज हो, छतां चोकस खात्री माटे तेमनी प्रतो तपासवी जोइये,
अमदावादना चंचलबाईनी टीपमा हर्षकुलकृत लघुटुंढिका पत्र ११३ नी छ एम जणाव्ये के D ढुंढिकाने दीपिका पण कहेवाय छे. E आ अवचूरि चतुष्क वृत्तिना उपर करेली छे. F आ प्राकृत व्याकरण ते सिद्धहेम शब्दानुशासननो आठमो अध्याय छे.
Page #331
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________________
नंबर.
"
हैम चतुर्थपादवृत्ति
उदाहरणवृत्ति
दोधका
प्राकृतरूपसिद्धि A
दीपिका
हैमव्याकरणदीपिका
उणादिवृत्ति B
लघुवृत्ति
लिंगानुशासनवृत्ति ३६८४
वृत्ति ( बीजी )
१२११
अवचूरि
१०७५
दुर्गपदप्रबोध
१९५०
५६००
33
23
33
"3
$9
37
""
"
""
नाम.
"
मधातुपारायण
” धातुपाठ ( स्वरवर्णा
नुक्रम १६)
" धातुपाठ
धातुवृत्ति
जैन भाषासाहित्य.
क्रियारत्नसमुच्चय ( सबीजक
लोक.
६७५०
३२५०
कर्त्ता.
पत्र ६
पत्र १३
१५०० मल. नरचंद्र
७६०
३२५
पत्र ३७६
जिनसागर
स्वोपन
हृदय सौभाग्य १५९१ पा. १
पा. १
पा. १
वृ. पा. २ - ४ A. S.
डेक्कन.
डेक्कन.
"7
>>
जयानंद
रत्नशेखर
रच्या नो सं.
ज्ञानविमलशि. | १६६१ |
यवल्लभ
हेमचंद्र
पुण्यसुंदर
क्यां छे ?
३०१
वृ. पा. १-४ लीं. मुद्रित.
पा. १
बृ. ली. मुद्रित,
पा. १-४
अ. १
पा. ५
घृ. सुलभ्य.
A.S.
पा. ३
भाव.
५७७८ गुणरत्न
| १४६६ पा. १-२-३-४ मु.
A एना माटे वृहद्दिपनिकामां " प्राकृतरूपसिद्धिर्हेमप्राकृतवृहद्वृत्य वचूरिरूपा मलधारि पं० नरचंद्रकृता प्राकृतप्रबोधवाच्या १६०० " आवी नोंध छे.
B C उणादिनं मूळ तथा लिंगानुशासननुं मूळ प्रथम नोंवेलुं होवाथी इहां नोभ्यु नथी.
Page #332
--------------------------------------------------------------------------
________________
. जैन भाषासाहित्य.
नवर. |
रख्या
नाम.
.
श्लोक.
कती.
क्यां
छ?
हैमसमासतचितसारप्र
करण
कृ. पा.४
वृ. पा. ३-४
.
१२८..
"समासप्रकरणतथाकः
त्प्रत्यय " विनमस्त्र
गुणचंद्र वृात
१९६
जिनप्रभ अवचूरि
गुणचंद्र " कारकसमुश्चय A
प्रोप्रभसूहि धृत्ति B हेमन्याय
पत्र ३ हैमव्याकरणस्थन्याय " न्यायवृत्ति » लघुन्यायप्रशस्तिमवचूरि
पत्र ३७ उदयचंद्र न्यायमंजूषान्यास ३१४५ हेमहंस , बलाबलसूत्र वृत्ति
पत्र १० स्वोपक्ष
.४
१५१५ पा.१-३-४भाष.को.
हेमचंद्र
डेशन.
A एना प्रण अधिकार छे. अने प्राथमिक शिखनारने शीखवा योग्य छे. B आ वृत्ति बे अधिकार उपर छे,
Page #333
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन भाषासाहित्य.
.. ३०३ ल्या. क्या छ ?
माम.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
३५००
| भाव.
हैमकौमुदी A पिन ८७ मेघविजय १७५८/ भाव. A. H
" प्रक्रिया (बृहत्) , प्रक्रिया पत्र ७५, महेंद्रसुतवीरसी .. , लघुप्रक्रिया २५०० विनयविनय १७३७ पा. ३ खं. रि. ६
, लघुर्नाद्र हेमशब्दसंचय
अमरचंद्र
पा.३-४ हैमप्रक्रियाशब्दसमुच्चय | १५००
भाव.
___A एन बीज नाम ' चंद्रप्रभा । एवं छे. भावनगरनी टीपमा एने चंद्रिका एवा नामथी ओळखावी छे. | Bआ संवत्नो अंक पाटणना टीप उपरथी इहां नोध्यो छे. पण खंबातनी टीपमा सदरहू प्रक्रिया सं. १७०१ मां रचाई छ एम जणाव्युं छे.
Page #334
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________________
जैन भाषासाहित्य
नंबर. ।
रच्या
नाम.
श्लोक.
कर्ता
क्या
छ ?
नोस.
क्लास २ जो.
परमतना व्याकरण ग्रंथो उपर जैनाचार्योए करेला व्याख्या
ग्रंथो.
जेसल.
असल.
कलापव्याकरण A
कलापकमुनि , पतुष्काख्यातकृवृत्ति १००० दुर्गसिंह , वौसिंहीवृधि । पृथ्वीचंद्रसरि ,,,
অর্থ
यमुनिशेखर फौमारसारसमुश्चय ) ३१०० ,, उणादिवाति E , आख्यातवृत्ति । ५८०४ | मोक्षेश्वर F , आल्यातकवृत्ति ४६०५ , आख्यातकृदविवरण
toue
पा.१ | पा. जेसल.
A एनु अपरनाम ' कातंत्र' एबुं छे. B आ वृत्ति जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नौवी छे अने ते त्रुटक छे एम जगाव्युं छे.
C आ वृत्ति ते कदाच वृहट्टिप्पनिकामां जणावेलु कातंत्रवृत्ति टिपरन होय तो होय, छतां आ वृत्ति हीरालालना नोंधमां होवाथी तेना काना नाम माटे शक रहे छे. आ बाबतनी खरी खात्री जेसलमेरमांनी प्रत नजरे तपासी जोयाथी थइ शके.
D वृट्टिप्पनिकामा एना माटे नीचे मुजब नोंध छे:" उक्तिक वृत्तित्रयोद्धारसूत्रं कौमारसारसमुच्चयः श्लोकरूपोवृत्तित्रयोद्धारसंग्रहात्मकः ३१०." Fथा वृत्ति पांच पादना.
F आ नाम कोइ दिगंबर आचार्य- होय तेम संभव छे. Gएना माटे वृद्दिष्पनिकामां "प्रभेयरत्नभांडागारे विशेषविवरणं कलापकाख्यातकृतिपयं आधी नोधछे,
Page #335
--------------------------------------------------------------------------
________________
नंबर.
कळापनाम्नाण्यातवृत्ति A मायातावचूरि
कदवृत्तिटिप्पन
39
"3
कातंश्रदीपिका
33
""
विभ्रमवृत्ति B
संभ्रम
कांतत्रदुर्ग पदप्रबोध
कातंत्रोत्तर C
सारस्वत वृति D
( बीजी )
"
नाम.
"
79
" (refr)
20
27.
( श्रीजी ) E
( पांचमी ) F
ढुंढिका
सारदीपिकावृत्ति
सारस्वतमंडण
जैन भाषासाहित्य
श्लोक
દા
पत्र ३६
८०००
४०००
५००
कर्ता.
७००
वीरसिंहोपाध्यायशिष्य गौतम जिनप्रभ
ता. २२५
३१६१ प्रबोधमूर्तिगणि
विजयानंद
चंद्रकीर्ति
सहजकीर्ति
७५००
१५७५
पत्र ४१७ नयसुंदर
२१५० भानुचंद्र
१३००.
४५००
२२००
३५००
दयारत्न
मेघरल
रच्या नो सं.
यतीश G
मंडण H
E आवृत्तिनुं बीजुं नाम ' रूपरत्नमाला एवं छे.
,
F आवृत्ति ' न्यायरत्नावली एवा नामे प्रसिद्ध छे.
वृ.
वृ.
क्या छे ?
वृ.
जेसल - बे.
३०५
जेसल.
जेसल - बे.
| जेसल - बे..
वृ. जेसल.
पा. ३
A. S.
अ. १.
पा. ५
अजमेर.
रि. ६
भांडारकर.
जे. नगीनदास.
A आ वृत्ति लक्षण तथा केटलाक पद्यसंग्रह रूपे छे..
B जिनमभसूरिकृत आ वृत्ति हीरालाले नोंधी छे.
C एनुं अपरनाम ' विजयानंद एवं छे भने ते समास सुधी छे. वृहद्विप्पनिकाकारे तेनुं अपरनाम विद्यानंद एवं नध्युं छे ते भूल छे.
D पने चंद्रकीर्तिना नामथी विशेष ओळखवामां आवे छे.
G आ यतीश ते कोण हता ते बाबत कंद्र खुलासो जाणवामां आव्यो नथी.
H पिटर्सने बाना शेठ नगीनदासना भंडारनी टीप लेतां पोताना रिपोर्टमा कर्तानुं नाम नोंचतां भूल खाधी छे. पण जेसलमेरनी टीपर्मा सारस्वत मंडणना करनार बाहडत मंडण लख्युं छे ते बराबर छे.
Page #336
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन भाषासाहित्य
नंबर..
नाम.
श्लोक.
का.रच्या
नो सं.
क्यां छ?
न
क्लास ३ जो.
पत्र ४२
व्याकरणना परचूरण ग्रंथो. अंतर्गणदीपिका
अन्वयदीपिका ३, मनिट्कारिकाविवरण
उक्तिक
१६६३
जेसल.
वृ.पा.४ ४५० पा. ४ ली.
„B उकिरलाकर उक्तिप्रत्यय कविकल्पद्रुमवृत्ति
অনূৰি कासिकान्यास क्रियाकलाप
, (बीजो) " (श्रीजो)
देवदत्त क्षमामाणिक्य हर्षकीर्ति जिनचंद्र A सोमप्रभ कुलमंडन साधुसुंदर
धीरसुंदर १७५४
विजयविमल पत्र ५१ जिनेंद्रबुद्धि पत्र ४६ गुणसमुद्र पत्र ५१ जिनदेव
विजयानंद
डे. पेज ८९
A आ नाम हीरालाले नोंच्युं छे. B आ उक्तिकनु आलुं नाम " मुग्धावबोध औक्तिक " एवं के.
Page #337
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन भाषासाहित्य
नंबर.
नाम.
श्लोक.
की .
रच्या नो सं.
क्यां छे!
बर्द्धमान
११९७ वृ. A. S.
A.S.
गणरतमहोदधि
वृत्ति स्वादिसमुघय धातुतरंगिणी A धातुमंजरी धातुरत्नाकर पदव्यवस्था (कारिका)
२०.०॥
पादगणसंग्रहगणधिवेक
३३.० पर १८ १२००
प्राकृतव्याकरण
हर्षकीर्ति पा.२.१-२. देकन. सिद्धिचंद्र ली.
खर.साधुसंदर१६८० पा.१-४-५ विमलकीर्ति उदयकीर्ति मंदिरलगणि समंतभद्र धनप्रभ देवसुंदर कल्याणमूरि म.१ उदयधर्म १५.७ ली. डेक्कन, हर्षकुल
पा.४-५ ली. भाक. रनसूरि
अ.२
पत्र ९३
पत्र ९ पत्र ११
चतुष्कव्यवहार मारुतयुक्ति मिभलिंगनिर्णय पाक्यप्रकाश वृत्ति पृति (बीजी) पृत्ति (श्रीजी)
७३३
पत्र ३११
म. २
A. अमदावादनी बन्ने टीपमा एने धातुपाठविवरण एका सादा नामथीज नोंधी छे.
Page #338
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन भाषासाहित्य.
नंबर.
नाम.
श्लोक.
कर्ता. कर्ता.
च्या
क्या छ ?
विभक्तिविचार
खर.जिनपति साधुसुंदर
जेसल. A. S.
शब्दरत्नाकर
१०००
शब्दरुपावली অত্যা सिद्धांतचंद्रिका
विनयभूषण
६५०
प्रानतिलक सदानंदि B जिनचंद्र जयानंदसूरि अमरचंद्र
सिद्धांतरत्न स्यादिशब्ददीपिका स्यादिसमुख्य
| A.S.
ली.
व.पा. ३-४-५
A आ विनयभूषण सरि तेमना नाम उपरथी कोई दिगंबर आचार्य होय तेम लागे छे.
B अमदावादनी टीपमाथी आ सदानंदि जैन हता एटली हकीकत जाणवामां आवी छे. बार्कः तमना माटे कोई विशेष पुरावो मळी शक्यो नथी.
Page #339
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन भाषासाहित्य.
नंबर.
नाम.
श्लोक.
कता.
रच्यानोसं.
क्यां छ?
वर्ग २ जो. *
६०३०
वृ.पा. १सुलभ्य. पा. ४ वृ. पा.१-३ पा. ५
जे. डेक्कन.
शब्दकोशना ग्रंथो. अनेकार्थनाममाला (सशेष) १८२६ हेमचंद्रसूरि वृति
स्वोपन्न वृत्ति A (बीजी)
हेमसूरि शिष्य
महेंद्रसूरि वृत्ति (श्रीजी)
सिद्धिचंद्र अनेकार्थतिलक
महीप B अनेकार्थध्वनिमंजरी अनेकार्थमंजरी अनेकार्थरत्नकोश
अंचलगच्छीय २ अपवर्गनामामाला अभिधानचिंतामणिनाममाला १५९१ / हेमाचार्य वृत्ति
१०.०० स्वोपक्ष
पा. ३-४. A. S.
डेशन.
अ.१
वृ. पा.१-२ मुद्रित. वृ. पा. ३-४
*आ वर्गमा जैनाचार्योए रचेला शब्दकोशना ग्रंथोने एकत्रित करी अनुक्रमवार नोंधवामां आव्या छे.
A सोमप्रभाचार्यकृत कुमारपाल प्रतिबोधने प्रथम वेळाए सांभळनार आ महेंद्रसूरि छे, एटले तेओ विक्रम सं० १२४१ मां विद्यमान इता. | देशीनाममाला, शेषनाममाला, निघंटुशेष अने शिलोंछ आ चारे नाममालाओ आ नाममालाने लगती होवायी अने अकारादि अनुक्रमथी नोंधतां ते छुटी थई जवाना भयथी खास करीने अभिधानचिंतामणिना पेटा भागमा दाखल करी छे.
B आ वृत्तिनुं नाम " व्युत्पत्तिरत्नाकर ॥ एयुं छे.
Page #340
--------------------------------------------------------------------------
________________
३१०
नबर.
नाम.
वृति (बीजी) A
सारोवार
अवचूरि
(१) देशीनाममाला
वृद्धि (रत्नावली )
उद्धार
(२) शेषनाममाला
वृति
(३) निघंटुशेष
(४) शिलोछनाममाला
वृत्ति
उणादिनाममाला
एकाक्षरीनाममाका
"
औषधीनाममाला
गुजराती संस्कृत कोच B
७ द्वपक्षरनाममाला
जैन भाषासाहित्य.
श्लोक.
१८०००
१००००
४५००
८५०
३५००
१२००
२२५
पत्र ३३
पत्र ४
पत्र ९
कर्त्ता.
पत्र ५
माचार्य
देवसागर
A. S.
खर. श्रीवल्लभ १६६७ पा. ३-४
पा. ३-४
"
विमल
हेमाचार्य
रच्यामो सं.
हेमचंद्र
१३०० श्रीवल्लभ
८१८ | शुभशील
સૂર
पत्र ३ | सुधाकळशमुनि
पत्र ४
क्या छे ?
वृ. पा. ४
बृ. पा. १-२ सुलभ्य
पा. ४
पा. ३-४
अ. २
पि. रि. ५ मुद्रित
पा. ४ मुद्रित
१६५४ पा. ४-५
२०५
A.S.
अ. १
य. १
डेकन
म. १
A. जेसलमेरनी दीपमां हीरालाले आ कोशना करनार सोमपुत्र महीपाल छे एम जणान्युं छे.
B आ कोश डेकन कॉलेजना लिस्टमां नोघायो छे अने तेमां आदिमां कारक विचार छे एम
जणायुं छे.
Page #341
--------------------------------------------------------------------------
________________
नंबर.
.
नाम.
धनंजयनाममाला A
पद्मकोश
पंचवर्गपरिहारनाममाला
११ पंचवर्गसंग्रह नाममाला
१२ पायलच्छी नाममाला
|१३ पारसीनाममाला C
१४ बीजनिघंटु
१५ भानुचंद्र कृतनाममाला
| १६ | मनोरथनाममाला
१७ | मातृकानिघंट
(१८) मिश्रलिंगकोश
| १९| मुग्धमेधाकरालंकार वृत्ति
२० रत्नमाला अनेकार्थ
२१ रत्नकोव्याख्या
रससार
जैन भाषासाहित्य.
श्लोक.
३२० धनंजय
पत्र ९
१५८ B खर. जिनभद्र
कर्त्ता.
७००
शुभशील
३६० धनपाल
६००
२००
पत्र ११३ भानुचंद्र
पत्र ४५|
५००
सलक्षमंत्रि
पत्र ६९
८० महीदास
पत्र ९ | कल्याणसागर D
पत्र ९
पत्र ४१
!रच्या
नो सं.
गोविंदाचार्य
| १४२२ खं.
क्यां छे ?
पा. ३
जेसल - बे.
खं. जेसल.
रि. ६
पा. ३ A. S.
डेक्कन.
अ. १
जेसल - बे.
डेक्कन.
पा. ३
अ. १
अ. २
१९७६ लों.
३११
अ. २
A एने निर्घटनाममाला पण कई छे.
B जैसलमेरनी टीपमां एना श्लोक ४०० छे एम जणायुं छे.
C एमुं अपरनाम " शब्दविलास " एवं छे.
•
Dआ कल्याणसागरसूरि देवमूर्तिसूरिना शिष्य हता. देवमूर्तिसूरिए, विक्रमचरित्र सं. १४९६मां रच्यं के.
Page #342
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन भाषासाहित्य.
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
रच्या
क्यां
छ?
३९५० ताड४६ १००
नमिकवि श्वेताम्बरभिक्षु
रूपचंद्र
महेश्वर
२२ रुद्रटालंकार वृत्ति २३ टिप्पन A २४ रूपकमंजरी B लिंगभेदनाममाला
वृत्ति
लोकसंव्यवहार २७ वक्रोक्ति पंचाशिका २८ वस्तुकोश २९ वस्तुविज्ञान रत्नकोश
वाग्भट्टालंकार D
पा. १ मुद्रित. जेसल. डेक्कन. जेसल-बे. A. S. A. S. नगीनदास. A.S. हेकन. पा. ३-५ A.S.
रविगुप्त c
रत्नाकर
वाग्भट्ट
वृत्ति
वृत्ति
वृत्ति
ज्ञानप्रमोद १६२१ पा.४म.१ प्रो.मणि जिनवर्द्धन
A. S. १२०० राजहंसोपाध्याय डेक्कन. पत्र १८ कुमुदचंद्र
अ.१ पत्र१८ वर्धमानसूरि
म.१ सिंहदेव
पा. १-३-४
धात
वृत्ति
अवचूरि
१३००
A आ टिप्पन जेसलमेरनी टीपमा नोंधायलुं होवार्थी इहां नोभ्यु छ पण ते टीपमा ग्रंथ रचनारनाम श्वेताम्बर भिक्षु एधु संदिग्धज आपलं छे, माटे श्वेताम्बरभिक्षु कोण हता अने ते क्यारे यएला छ ते जाणवा माटे ते प्रत फरीथी तपासयी जोइये.
B मा रूपकमंजरी नाममाला गोपाळना पुत्र रूपचंदें अकवरना वखतमा सं० १६४४मा रची छे. C चंद्रप्रभविजय नामक काव्यनो ग्रंथ पण आ विगुताचार्ये रच्यो इतो. D एना छ अध्याय छे.
Page #343
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________________
जैन भाषासाहित्य.
नं.
नाम.
नाम.
श्लोक.
नो सं.
क्यां छे?
महेश्वर दिगंबर
A.S. पि.रि.५
३८००
मानविमल
पा. ३ A.S.
सुंदरगणिA
३१ विश्वकोश ३२/ विश्वलोचनकोश
शब्दभेदनाममाला __ वृत्ति शब्दरत्नाकर
शब्दसंदोहसंग्रह ३६ शारदीनाममाला
शेषनाममाला
शृंगारमंडन ३९/ संगीतमंडन
ता.४७९
४५०
| पत्र४१
हर्षकीर्ति B साधुकीर्ति मंडनमंत्रि
डेक्कन. पा.१
पा.१
A आ नाम एसिआटिक सोसायटीना रिपोर्टमाथी मळ्यु छ पण सुंदरगणि ते कोण हता ते संबंधी कशी हकीकत मळी शकती नथी.
B आ हर्षकीर्तिसूरि तपागच्छमां यएला छे.
Page #344
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________________
२१४
जैन भाषासाहित्य.
नबर.
नाम.
श्लोक.
का .
क्यां छे?
नोस
वर्ग ३ जो.
वृ.पा.१-३ ली.मु.
अलंकारना ग्रंथो. * अर्थालंकारवर्णन
पत्र ३९] नरेद्रप्रभ A २. अलंकारचूडामणि वृत्ति B२८... हेमाचार्य
(काव्यानुशासन )
, वृत्तिविवेक ४००० ३. अलंकारतिलक C
वाग्भट्ट ४ अलंकारदर्पण (प्रा.) अलंकारमहोदधि
पत्र १३, मल. नरेंद्रप्रभ वृत्ति
४५०० अलंकारमंडन
मंडन मंत्रि D ७ अलंकारशेखर
१००० माणिक्यचंद्रा
१९५२
डेकन.
जेसल-बे.
अ.१
पा.३
पा.१ A.S.५
*जैनाचार्योए रचेला अलंकारना तमाम ग्रंथोने एकत्रित करी अकारादि अनुक्रमवार आ वर्गमां दाखल कर्या छे.
A आ नरेंद्रप्रभसूरि मलधारि नरचंद्रसूरिना शिष्य इता. नरचंद्रसरे विक्रमनी तेरमी सदीना वचगाळे थएला छे एटले नरेंद्रप्रभसूरि तेरमी सदीना भारतरमा यएला होवा जोइये. एमणे रचेला बीजा ग्रंथ अलंकारमहोदधि तथा काकुस्थकली छे.
B एना माटे वृहटिप्पनिकामा नीचे मुजब नोध छ:---- ___" काव्यानुशासननामालंकारचूडामणिवृत्ति: श्रीहेमसूरीया ८ अध्याया २८०० । ४२००" ।
C आ अलंकारतिलक ते काव्यालंकारनी अलंकारतिलका नानी वृत्ति तो नया; ते माटे बेकन कॉलेजमांनी प्रत नजरे तपासी जोवानी जरूर छे.
D आ मंडनमंत्रिए व्याकरण,काव्य,अलंकार तथा संगीत ए चारे विषय उपर एक एक ग्रंथ रच्यो छे.
E आ कीना नामना छेडे देव एवु पद जोडेलु होवाथी प्राये आ आचार्य दिगंबर होय तेम विशेष संभव थाय छे.
Page #345
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन भाषासाहित्य.
नबर
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
रच्या नो सं.
क्यां छ?
.
ता.३०६
पत्र ५ भावदेव
| १८००
अलंकारसंग्रह अलंकारग्रंथ उद्भटालंकारसारसंग्रह कंदर्पचूडामणि
कर्णालंकारमंजरी १३ कविशिक्षा
कविशिक्षा (बीजी)
कषितामदपरिहारवृत्ति १६ काव्यानुशासन
वीरभद्र A त्रिमल्ल विनयचंद्र B जयमंगलाचार्य
नगीनदास.
। ३.. पत्र १
भाव.
वाग्भट्ट
वृत्ति
वाग्भट्ट
अ. २ A.S. A. S. पा. २-५
२१७४
काव्यालंकार वृत्ति काव्याम्नाय
वाग्भट्ट पत्र २०, अमरचंद्र
काव्यकल्पलता D
............. .....
___A आ वीरभद्र वाघेलाना वंशमां थएला छे. अने तेमणे आ ग्रंथ सं. १६३३ मां रच्यो छे, एम पिटर्सने पोताना रिपोर्टमां नोध करी छे.
B आ विनयचंद्रसूरि बप्पट्टिसूरिना शिष्य इता, तेओ विक्रमनी नवमी सदीना आखरमा विद्यमान हता. सदरहू ग्रंथ पाटणना भंडार नगर बाजामा ताडपत्र उपर लखेलो मोजुद छ माटे तेनी नक्कल करावी लेवानी जरूर छे.
C भा वृत्ति “ अलंकारतिलका " एवा नामथी ओळखवामां आवे छे.
D एनुं नाम “ कविशिक्षा " ए छ. अरिसिंह तथा अमरचंद्र ए बन्ने सहाध्यायी होवा साथे परस्पर मित्र इता. तेथी आ ग्रंथ बन्ने जणाए मळीने को हतो.
Page #346
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________________
३१६
नवर.
नाम.
वृत्ति
परिमल
विवेक B
काव्यप्रकाशसंकेत
२१. काव्यमीमांसा D
२२ काव्यलक्षण
| २३ | नाट्यदपर्णसूत्र
२४
२५ भावछत्रीशी
२६ भावशतक
.
प्रकांतालंकार वृत्ति
जैन भाषासाहित्य.
श्लोक.
कर्त्ता.
३३५७ | अमरचंद्रकवि A
वृ पा. १-२ सुलभ्य
११२२
वृ. पा. ३-४
१००००| विबुधमदिरगणि
जेसल बे
३२४४ माणिक्यचंद्र १२६६ वृ. पा. १-२ जेसल.
१४००
राजशेखर
२५००
""
रच्या
नो सं.
पत्र ८
रामचंद्र गुणचंद्र
ता. ३०५ जिनहशिष्य
जिनइंस
नागराज
D एनुं अपरनाम ' कविरहस्य एवं छे.
,
क्यां छे ?
पा. १ जेसल.
जेसल - बे.
पा. ३
पा १०
भाव.
पा. ४
A आ अमरचंद्रसूरि विक्रमनी तेरमी सदीना आखरमा थएला छे कारण के, तेमना गुरु वायडगच्छीय जिनदत्तसूरि मंत्रि वस्तुपालन वखतमां संवत् १२७७ मां विद्यमान हता. शिवाय परमानंदकाव्यना करनार पण एज अमरचंद्रसूरि के.
B आ ग्रंथनुं नाम जैसलमेरनी बन्ने टीपोमां नोधायुं छे पण कर्तानुं नाम फकत हीरालालनी टीपमां नांधेलु होवाथी ते बाबत चोकस निर्णय करवानी जरूर रहे छे.
C केटलीक टीपो आ संकेत रचायानो संवत् १२१६ जणाव्यो छे पण ते टीप करनाराओनी | भूलथी नोंघायो छे एम मालम पडे छे. कारण के आ माणिक्यचंद्रसूरि सागरचंद्रसूरिना शिष्य हता अने एमणे पार्श्वनाथचरित्र सं० १२७६ मां रच्युं छे, ते मुजब आ संकेतनो रचनाकाल पण आ समय दरम्यान ज होवो जोइये ते उपरथी १२१६ नो संवत् तद्दन भूल भरेलो छे. एम चोकस निर्णय थाय छे. छतां पंन्यास आणंदसागरजीना जणवावा भुजब वादिदेवसूरिजीना शिष्य माणिक्यचंद्रसूरि थया छे अने तेमणे जो आ संकेत रच्यो होय तो सं. १२१६ नो रचनाकाल संभवी शके, कारण के बाददेवसूरि सं. १२२६ सुधी विद्यमान हता.
Page #347
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________________
जैन भाषासाहित्यः श्लोक. कर्ता. रयाः क्या छ ?
नंबर.
नाम.
वर्ग ४ थो. *
سعید
ग
पत्र ३
पा.४
छंदःशास्त्रना ग्रंथो. प्रजितशांतिछंदोविवरण
क्षेपक विज्जाहला ३. गाथारतकोश A
गाथारस्नाकर
(अपूर्ण)
पा.४
गाथालक्षण (प्रा. )
पा. १-४ म. २ A.S.
छेदः कोश (प्रा.)
वृत्ति
रत्नशेखर चंद्रकीर्ति हेमचंद्राचार्य
A.S. पा. ४ म.२
स्वोपन्न
पा.१-२-४-
५
२
छंदोनुशासन
वृत्ति B पर्याय छंदोरत्नावली छंदरूपक
पा.४
अमरचंद्रकवि
९
• आ वर्गमा छंदना जे जे ग्रंथो अमारा जाणवामां आव्या छे ते ते अकारादि अनुक्रमवार नोध्या छे.
A एना माटे वृहट्टिप्पनिकामा " गाथारत्नकोस: गाथालक्षणादिवाच्यः ७३ " आवो नोंघ छे. B एनं नाम " छंदशहामणि ॥ एवं छे.
Page #348
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन भाषासाहित्य.
नाम.
श्लोक
कर्ता.
रख्या . नोसं.
क्या छ ? या
छंदशेखर जयदेवछंदःशास्त्रवृत्ति A
जेसल-धे. जेसल-बे.
ताड ८१
पर्द्धमान श्रीचंद्र रत्नचंद्र 3
हिप्पन
पा. जेसल-बे. पा. ४ जेसल-के.
१२ नंदितात्य
___ वृत्ति १३ पिंगलसारोबार १४ वृत्तरत्नाकरवृत्ति
१३२९/ पा. ३-४ A. S.
सोमचंद्र समयसुंदर हर्षकीर्ति
अ.१
१६ भुतबोधवृत्ति
भाव.
हंसराज
ली. A. S.
संगीतसहपिंगल
ली.
A आ वत्ति जेसलमेरनी बन्ने टीपोमां नोंघायेली छे बाकी क्या पण ऊपलब्ध थई नथी माटे ते उतारो करवा योग्य छे.
___B आ रत्नचंद्रगणि मांडव्यपुरगच्छना देवाचार्यना शिष्य हता. तेओए, १०८ प्रकरणले रण्या हता, तेथी तेमने प्रकरणस्थकारी एवू बिरुद आपवामां आव्यु हतुं.
C आ हर्षकीर्ति ते स्वमति छे के अन्यमति के ते बाबतनी चोकस निर्णय भाषनगरना प्रतनो प्रगस्ति लेख तपासवाथी थई शके.
Page #349
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________________
नंबर.
नाम.
वर्ग ५ मो. *
काव्यना ग्रंथो.
१) ऋषभोल्लास काव्य
२ कविगुहाकाव्य A
वृति
७
३ कुमारविहारप्रशस्तिकाव्य
४ गुरुगुणरत्नाकर काव्य B
चंद्रदूत काव्य
चंद्रलेखाविजयप्रकरण
चंपूमंडन (द्रौपदीकथामय )
जैन भाषासाहित्य.
लोक.
पत्र ८
कर्त्ता.
रविधर्म
33
८७ हेमशिष्यवर्धमान
८०० सोमचारित्रगणि
रिच्यानो सं.
का. २३ | जंबुकवि C
२२०० हेमसूरिगुरुदेवचंद्र
मंडनकवि D
३२९
क्या छ ?
अ. १
जेसल.
जेसल.
A, S
डेक्कन.
पा. १ जे. A. H.
| जेसल - बे.
पा. १.
* आ वर्गमां श्वेतांबर ने दिगंबर जैनाचार्योंए रचेला काव्यना ग्रंथो अक्षरानुक्रमवार नोध्या छे, उपरांत आ वर्गना क्लास बीजामां अन्यमतिए करेला काव्य ग्रंथो उपर जैनाचार्योए रचेली ब्याख्यवाळा ग्रंथो नांच्या छे.
A आ काव्य तेनी टीका साथे जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोंध्यु छे.
B एनुं अपरनाम " सोमचरित्र " एवं छे.
C जेसलमेरनी टीपमां इंसविजयजी महाराजे आ काव्यना करनार जंबूनाग कवि जणान्या छे. त्यारे होरालाले एना कर्ता चंद्रकीर्ति नोध्या छे, ते चोकस भूल छे, पण हीरालाले आवा खोटा नाम शा कारणथी लख्या इशे ते कल्पनातीत थइ पडयुं छे.
D आ मंडनकवि स्वमति छे के कोइ अन्य छे ते बाबत कोइ चोकस पुरावा जाणवाम आव्यो नथी.
44
Page #350
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन भाषासाहित्य
नंबर.
नाम.
श्लोक.
___ कर्ता.
रच्या
नो सं.
क्यां छ?
वृत्ति
जयंतकाव्य
२२२० अभयदेवसूरि A १२७८ पा.१-४-५ मुद्रित. जैनकुमारसंभव १२२६, সহী
पा. ४-५ मुद्रित. वृत्ति
पत्र ५२, धर्मशेखर डेक्कन जैन मेघदूत ४१८ मेरुतुंग
K. K.
K. K. ११ तिलकमंजरी | ८७१३ धनपालकवि पा.१-५ मुद्रित. टिप्पनक | १०५० शांत्याचार्य B पृ. पा.५
(पूर्णतल्लीय) , सारोद्धार १२२३ | (लघु) धनपाल
पृ. पा. १-३ त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र ३४००० हेमचंद्र सुलभ्य. मुद्रित.
काव्य C याश्रय (सं.) २८२८ हेमाचार्य
पा.१-२-३-४ वृत्ति D
२७५७४ अभयतिलक १३३२ वृ. पा. १-२-४
___A आ अभयदेवसूरिने केटलीक टीपोमा प्रभाचंद्रना शिष्य जगाव्या छे त्यारे पिटर्सने पोताना चोथा रिपोर्टमां तेओ विजयचंद्र सूरिना शिष्य हता एम जणाव्यु छे. प्रशस्ति उपरथी तपास करतां पण चोकस पुरावो मळी शकतो नथी. अमारा घारवा मुजब आ अभय देवसरि सं. १२०४ मा रुद्रपल्लीय खरतर शाखाना स्थापक रलशेखर सरिना श्रीजे पाटे थएला होवा जोइये अगर रत्नशेखर सूरिना श्रीजा शिष्य होय तो तेम पण होय. ___B वृहत् टिप्पनिकामां आ शांत्याचार्य कोह सांख्याचार्य हता एम जणाव्युं छे.
त्रिषष्ठिशलकापुरुषचरित्र एक लघु छे ते बीकानेर जोवामां आव्यु छे. मागधीमा पण आ नामर्नु चरित्र छे. तथा एक चोपनशलाकापुरुषचरित्र मुनिराजश्री इसविजयजी पासे छे. एम भावनगरना शेठ कुंवरजीभाई जणावे छे.
D आ वृत्ति अहावीस पादवाळी छे.
H
Page #351
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन भाषासाहित्य.
नाम.
श्लोक.
कता.
रच्यानोसं.
क्यां छे!
४७२४
धाश्रय (प्रा.)
१५०० हेमाचार्य
भाव. मुद्रित. वृत्ति
पत्र ८१ , A A. H.राधण. वृत्ति (बीजी)
खर. पूर्णकलश १३०७ वृ. मुद्रित. द्विसंधान (राधधपांडवीय) धनंजय (दिग.) पा. १-३ धर्माभ्युद्य काव्य B ५०४०
उद्यप्रभ
वृ. पा. २-३ १६ धर्मशर्माभ्युदय
दिगं. हरिचंद्र | पा. २-४ मुद्रित. नरनारायणानंदकाव्य १६००] मंत्रि वस्तुपाल वृ. पा. ४ डेकन. नलायन महाकाव्य
माणिक्यसूरी kot. नलोदयकान्य २५० रविदेव
डेकन. नाभेयनेमिद्विसंधान
पा.१ नेमिदूत
का. १३६ सांगणसुत विक्रम नेमिनिर्वाण (सर्ग १५) । १४०० घाग्भट
वृ.पा. १ मुद्रित. नेमिचरित्र महाकाव्य
सूराचार्य १०९० टिप्पनक पद्मानंदकाव्य
अमरचंद्रकवि घृ.पा.१ सुलभ्य. वृत्ति દ૨૮૨
पा.४
---
--
--
हेमचंद्र
-
-
-
-
-
-
१४००
A राधणपुरनी टीपमां आ वृत्ति जिनेश्वरशिष्य लक्ष्मीतिलके करी छ एम मोध्यु छ माटे राधण पुरना भंडारमानी प्रत तपाशी नकी करवू जोइये, _B आ धर्माभ्युदयकाव्य वस्तुपालचरित्र वाव्य छे.
C सदरहू चरित्र तेना टिप्पन साथै वृहत् टिप्पनिकामा नों, छे पण हजी सुधी अमोने ते क्यां पण उपलब्ध थयुं नथी.
Page #352
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________________
३३२
नंबर.
नाम.
२५ पाणिनीयद्याश्रय काव्य
૨૬ बालभारत (चंपू )
( अंक २ )
२७ भावनामृतमहाकाव्य A
२८ मनोदूत B
२९ मेघदूत
३०
25
यशस्तिलक ( चंपू ) C
पंजिका
३१ यशोधर काव्य
३२ राघवपांडवीथ
३३ रायमल्लाभ्युदय
३४ लीलावतीसारकथा
वस्तुपालकाव्य D
३५
१३६) वासवदत्ता
वृत्ति
जैन भाषासाहित्य.
लोक.
१८० | विजयरत्न शिष्य
६७७५ अमरचंद्र
५००
राजशेखर
१४००
३००
कर्त्ता.
५०००
रच्या नो सं
क्यां छे?
१६००
बालचंद्र
पत्र १२ सुबंधुकवि
३२००
सिद्धिचंद्र
A.S.
वू. पा. ४-५ मुद्रित.
A.S.
रि ६
पा. ५
( मंत्रि ) विक्रम
अजमेर.
सोमदेव (दिगं) १०१६ A. S. मुद्रित.
श्रीदेव
A. S.
दिगं. माणिक्यसूरि
दिगं. नेमिचंद्र
दिगं. पद्मसुंदर १६१५ मुद्रित.
( जैन )
जेसल.
पा. ३
डेक्कन, मुद्रित.
पा. १
भाव. मुद्रित.
A.S.
A, B आ बन्ने काव्यो जैनाचार्य रच्यां छे के ते कोइ अन्यभीतनांज करेला छे ते बाबतनी खत्री तिनी प्रतो नजरे जोवाथी थई शके.
C एनुं अपरनाम " यशोधरकाव्य " छे. आ काव्य श्रुतसागरसूरिकृत टीका सहित चे भागमां छिपायेल छे.
D एवं बीजं नाम " वसंतविलास " एवं है.
Page #353
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन भाषासाहित्य.
३
नाम.
_ नंबर. ।
श्लोक.
कर्ता.
रच्यामोसं.
क्यां छ?
_
.००
विक्रमांकाभ्युदय विजयप्रशस्तिकाव्य
वृत्ति घिल्हणचरित्र शशांकसंकीर्तन A হলিসিন্ধান্য
शीलदूतकाव्य ४३, सुकृतसंकीर्तन काव्य ४. सुवृत्ततिलक B
सोमसौभाग्य हरिविक्रमकान्य
विल्हण
वृ. पा. १ जेसल. घल्लभगणि पा. ४ डे. प्रो. मणि. गुणविजय १६८८ पा.४ विल्हण
A.S. ताड१६६
| पा.२ । १२२४
पं. धर्मकुमार १३३४ वृ. मुद्रित. सुंदरगणि डेक्कन. सुलभ्य,
अरिसिंह पा. ५ डेक्कन. ३०० क्षेमेंद्र
A. S. १२३० प्रतिष्ठासोम १५५४ पा. ४-५ मुद्रित.
माग. जयातलक पा. ४-५ मुद्रित. १२०९३ स्वोपज्ञ १४७६ पा. ४-५
पत्र १३ | २३३ : पद्मसागरगणिपा . ३-४, मुद्रित. ९७४५: देवविमल पा. ५A.S मुद्रित.
९७६
। वृत्ति
४८
हीरविलासकाव्य हीरसौभाग्यकाव्य वृत्ति
___A सदरहू ग्रंथ फक्त पाटणना भंडार नंबर बोनामां नोपलो छ बाकी क्या पण उपलब्ध थयो नयी माटे तेना कर्ता कोण छे तेनी खात्री करी नकल उतारी लेवानी जरूर छे.
आ क्षेमेंद्र ते कोण इता ते बारतनी चोकस निर्णय एसियाटिक सोसायटीना संग्रहमांनी प्रत नजरे रापासवाथी यह शके.
Page #354
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________________
३३४
नंबर.
क्लास बीजो
अन्यमतीए करेला काव्य ग्रंथो उपर जैनाचार्यो रचेला व्याख्यावाला ग्रंथो
कादंबरी टीका
कादंबरी दर्पण
३ किरातार्जुनवृत्ति
नाम.
"
"
सिद्धिचंद्र
मंडण मंत्रि
७५००
विनय सुंदर
किरातार्जुनीयदीपिका पत्र २०२ धर्मविजय
कुमारसंभववृत्ति
पत्र ८०
विजयगणि
खंडप्रशस्ति वृत्ति
विजयगणि A
वृत्ति
गुणविजय
ܕܕ
घरवृत्ति
दमयंती चंपू वृत्ति
चंपू वृत्ति
टिप्पन
जैन भाषासाहित्य.
श्लोक.
पत्र ४६
पत्र ४१
वृत्ति (त्रीजी ) पत्र २१
१०००
८८००
कर्त्ता.
१९००
शांतिसूरि
प्रवोधमाणिक्य
गुणविजयगणि
चंडपाल
च्या. नो सं.
क्या छ ?
डे. मुद्रित.
पा. १
भांडारकर.
अ. १
अ. २
डेक्कन
अ. २
पा. ४
जेसल.
पा. १-२-३-४
पा. ३ A. S.
वृ. पा. १- जेसल:
A. आ नाम कांइक अपूर्ण लागे छे. तेनुं खरं नाम शुं छे ते जाणवा माटे डेक्कन कॉलेजवाळी मत नजरे तपासवानी जरूर छे.
Page #355
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________________
नंबर.
. मलोदय टीका
१० भट्टिकाव्य टीका
११ माघकाव्यवृत्ति
वृति
| १२ मेघदूतवृत्ति
>>
23
भाष्य
अवचूरि
१३ रघुवंशवृत्ति
$2
नाम.
"
"
"
बालावबोध वृत्ति
वृत्ति (बीजी )
वृत्ति ( श्रीजी )
वृत्ति ( चोथी )
१४ राक्षसकाव्यवृत्ति
१५ विषमकाव्यवृत्ति C
१६
वृंदावनटीका
| १७ शिवभट्टीका
| १८ शिशुपालवधटीका
जैन भाषासाहित्य
श्लोक
१४००
कर्ता.
आदित्यसूरि
जयमंगलाचार्य
१००००) वल्लभदेव A
चारित्रवर्द्धन
क्षेमहंस B
महीमेरु
११५०
१४४४
पत्र ३९
१५०० सुमतिविजय
गुणविजय
सुमतिविजय
धर्ममेरु
पत्र ७
पत्र १४५ समयसुंदर
शांतिसूरि
शांतिसूरि
33
चारित्रवर्धन
रच्यानो सं.
क्यां छे ?
Gi.
डे. मुद्रित.
वृ.पा. २ - ३A. S..
डेक्कन.
A. S.
पा. ४.
अ. २
A. S.
भाव. म. २
A. S.
P
खं.
अ. १
जेसल.
३३५
वृ. पा. ४
जेसल - बे.
जेसल - बे.
डेक्कन.
A B आ निशाणीवाळा बन्ने आचार्यो माटे तेमना नाम उपरथी शक रहे छ.
C एक विषमकाव्यवृत्ति श्लोक ६७७४ नी जणावी छे, पण ते क्यां पण उपलब्ध यह निथी. पाटणमां पत्र सातनी जणावी छे एमां पण कर्तानुं नाम विगेरे विशेष माहिती आपली जणाती नथी. तो ते कोण स्वेली छे तथा ते संबंध विशेष हकीकत शुं छे ते जाणवा माटे पाटणना भंडारमांनी प्रत फरीथी तपासवानी अगत्य छे.
Page #356
--------------------------------------------------------------------------
________________
३३६
जैन भाषासाहित्य.
नाम.
श्लोकः कर्तान्याः क्या छ ?
वर्ग ६ हो.
नाटकना ग्रंथो.
पा.४
वृ. पा. १ जेसल थे.
पत्र २८
२ अनर्घ्यराघव A
, टिप्पन " टिप्पन कर्पूरचरित्र (सं.) कर्पूरमंजरी टीका , लघुटीका B करुणावज्रायुधनाटक
कुमुदचंद्रनाटक ६ कौमुदीनाटक
चंद्रलेखाविजयनाटक ज्ञानचंद्रोयनाटक ज्ञानसूर्योदयनाटक धर्माभ्युदनाटक नलविलासनाटक
जिनहर्ष नरचंद्रसूरि देवप्रभसूरिः वत्सराज যাহাৰৰ प्रेमराज बालचंद्र यशश्चंद्रगणि रामचंद्रगणि
अ.१ प्रो. मणि. पा.४ मुद्रित. पा. १ डेकन. अ.२ पा. १ ली.डे. मुद्रित.. पा.१
४८०
५३५
वृपा. १
6 PG
पा. ५
८००
A. S.
पद्मसुंदर दिगं. वादिचंद्र मेघप्रभ रामचंद्र
पि.रि. ५
A अनयराघवने मुरारि नाटक एवा नामा विशेष ओळखवामां आवे छे. B डेक्कन कॉलेजना लीस्टम एनी भाष्य तरीके नोध करी छे.
Page #357
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन भाषासाहित्य
___नाम.
नाम.
श्लोक.
का.च्या- क्या छ ?
हर्षदेव
रामचंद्रगाणि
पा.१ पा. १-४ ख. वृ.पा.१-४
ता. ५६
पा. २
डछन.
DU
|१२| नागानंदनाटक १७ निर्भयभीमनाटक १९६
प्रबंधरौहिणेय १५/ प्रबोधचंद्रोदयवृत्ति
" वृत्ति (बीजी) १६ मानमुद्राभंजननाटक B
मोहपराजयनाटक C रघुविलापनाटक D पत्र ११८ रत्नावलीनाटिका रत्नालिस्थप्राकृत व्याख्या ३०० रंभामंजरी
टिप्पन २२ राजीमतीनाटक. २६४
रत्नशेखर कामदास A देवचंद्रगणि यशःपालमंत्रि रामचंद्र हर्षदेव
वृ.नगीनदास पि.रि.५डे. वृ. पा. १-४ मुद्रित.. A.S.
नयचंद्र
मुद्रित.
यशश्चंद्र
पा.४
__A आ कामदास ते कोण हता ते जाणवा माटे डेकन कॉलेजनी प्रत नजरे तपासी जोवानी जरूर रहे छे. | Bएना माटे वृहटिप्पनिकामां " मानमुद्राभंजननाटकं सनत्कुमारचक्रिीवलासवतीसंबंधप्रतिबद्धं देवचंद्रगणिकृतं १८००७ आवो नोंध छे पण ते अमोने अत्यार सुधी क्या पण उपलब्ध थयु नथी.
C वृट्टिप्पनिकामां एना माटे " मोहपराजयनाटकं सं. यशःपालकृतं श्रीकुमारपालनूपप्रतिबद्धः पायोंतरंगवाच्यं १३२० । आवो नोध छे. | D सदरहू नाटकनो ग्रंथ डेकन कॉलेजना संग्रहालयमा छे तेनी सादा कागळ उपर नक्कल करेली. छ, अने जोके त्यां पण सेनो प्रांतनो थोडोक भाग अपूर्ण छे छत्ता ते जरूर नकल कराववा लायक छे.
45
Page #358
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________________
३३८
नंबर.
नाम,
२३| रामनाटक
२४) राघवाभ्युदयनाटक (मं. १०)
१२५/
वनमाला नाटिका
२६ विद्धशालभंजिकानाटक
२७ श्री पालनाटकगत रसवती वर्णन
२८ हम्मीरमर्दन
जैन भाषासाहित्य.
लोक.
कर्त्ता.
|रच्यानो सं.
रामचंद्र
पं. अमरचंद A
१००० राजशेखर
३५०
धर्मसुंदर B १५३१ खं.
२०० जयसिंहसूरि C
क्यां छे १
जेसल.
बृ.
बृ.
| डेक्कन.
पा. १ जेसल.
A. आ अमरचंद वखते अन्यमति होय तो पण होय.
B आ घर्मसुंदरसूरिनुं अपरनाम सिद्धसूरि एवं हवं.
C जेसलमेरनी टीपमां हम्मीरमर्दन नाटकना कर्ता हीरालाले नर चंद्रसूरि छे एम जणान्युं छे प सप्रमाण मानवाने तेवों पुरावो मळवो मुश्केल है.
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________________
नंबर.
नाम.
८
वर्ग ७ मो.*
नीतिना ग्रंथो.
मईनीति
चतुर्वर्गसंग्रह
3) चारुचर्याशतक
४) जिनसंहिता
नीतिकल्पतरू
नीतिवाक्यामृत D
नीतिसार
प्रस्तावरस्ताकर
रत्नकोश
राजनीति (प्रा.)
जैन भाषासाहित्य.
लोक.
१४००
पत्र १५
१००
४००
११.
९५
१३०
१७५
२५०
४५०
कर्त्ता.
माचार्य A
क्षेर्मेंद्र B
95
दिगं. (अपूर्ण)
क्षेमेंद्र C
सोमदेवरि
इंद्रनंदि
हरीदास D
देवीदास E
रिच्यानो सं.
क्यां छे ?
पा. ५ मुद्रित.
A. S.
A.S
A.S.
डेक्कन.
पा. १-२ डे.
A. S.
भांडारकर.
जेसल - बे.
डेक्कन.
३.३९
* आ वर्गमा नीतिने लगता ग्रंथो अकारादि अनुक्रमवार नोंध्या छे. आपणा पूर्वाचार्योंए रचेला ग्रंथो पैकी नीतिना ग्रंथो बहुत थोडा गण्या गांठ्यांज मळी आव्या छे.
A अर्हनीतीमां जणावेली केटलीक वातोना लखाण उपरथी कर्ता माटे शंका रहे छे.
B, C आ बने क्षेमेंद्र स्वछे के अन्य छे तेना माटे शक राखवो पड़े छे.
D, E हरीदास तथा देवीदास ते कोई दिगंबर हता के अन्य हता तेना माटे पण संशय राखवो पडे छे.
Page #360
--------------------------------------------------------------------------
________________
४
.
जैन भाषासाहित्य.
तंबर.
नाम.
श्लोक.
का .
क्यां छ?
वर्ग ८ मो.
सुभाषितना ग्रंथो. अन्योक्तिमुक्तावली
हेसविजय २) गाथाकोश
| ३८५ मुनिचंद्र गाथाकोश A (बीजो) गा. ७२
कोडाय. A. 1.
उद्वार
३३१
शातवाहन B
गाथासप्तशती
वृत्ति वृत्ति (बीजी) वृत्ति (पीजी)
वृत्ति (चोथी) মাথালেকী G दानादि प्रकरण H पुराणहुंडी
অাৰ C जव्हणदेव D प्रेमराज E भुवनपाल F
।
सूराचार्य
३ ली.
A एमां कलिकालनु स्वरूप छे. ____BC, D, E, F' आ पांचे कर्ताओना नान अन्यमति जेवालागे छे. ते वायतनी चौकस खात्री तेनी प्रतो नजरे जोषाथी थई सके.
G जुदा जुदा अडतालीश विषयोपर गाथामा रचायलो छ.
H एना माटे वृट्टिपनिकामां " दानादिप्रकरणं सं. सूराचार्यकृतं सप्तावसर काव्यादिबंध पत्र ३४" आवो नोध छे, पण ते अमोने हजी सुधी क्या पण उपलब्ध थयो नथी.
Page #361
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन भाषासाहित्य
नाम.
| नंबर.
श्लोक.
कर्त्ता.
क्यां छे?
zi
(दिग.)
पत्र ६
गा. ४२१
७ प्रस्ताविक श्लोक
भव्यकुमुदचंद्रिका टीका भौतिक रत्नकोश A
रसालय (प्रा.) १२ रसाउलो (प्रा.) १३ विजाहलवृत्ति
विद्यालय (प्रा.)
मुनिचंद्र रत्नदेय
पा.३
राधणपुर. 3 मांडारकर.
पा.१-३-४-५
२०
३३००
___.......
वृत्ति
पत्र ८०
धर्मचंद्र
अ.१
उदार
पा. ४
(दिगं.)
A.S.
पि.रि.५ नगीनदास
१५ सद्भाषितावली
४८० १६ साहित्यश्लोक B (प्रा.) गा. १७६
सुभाषित (प्रा.) गा. ४० सुभाषितार्णव
सुभाषितसार उद्धार २० सुभाषितसमुद्र
१२.०
A. S.
धर्मकुमार
A एमां उपयोगी गाथाओ छे. आ रनकोश तथा उपर जणावेला गाथारत्नकोशना श्लोक मळताज छे तेथी ते जुदा जुदा छ के बन्ने एकज छे ते बाबत तेनी प्रतो मेळवी नकी करवं जोइये.
B एमुं आदि चरण " इह ते जयंति कहणोग एवं छे.
Page #362
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________________
३४२
नंबर.
नाम.
२१ सुभाषितकोश
२२ सुभाषितावली
२३) सुभाषितरत्नसंदोह
२४ सुभाषित रत्नावली
२५ सुभाषित षट्रिशिका
अवचूरि
२६ सूक्तावली
१२८
सूक्तावली (बीजी )
२७ सूक्तिमुक्तावली
सूक्तिमुक्तावली (बीजी )
सूक्तिमुक्तावली (त्रीजी )
सूक्तरत्नाकर
सूक्तरत्नाकर ( बीजो )
सूक्तरत्नाकर (श्रीजो )
२९ सुक्तिसंग्रह
(30) स्मृतिपुराणश्लोक
जैन भाषासाहित्य,
श्लोक.
पत्र ४
पत्र १५
६००
२३३२
१९००
४२४०
कती.
पत्र ८३ अमितगति (दिगं.)
૪૮૦
सकलकीर्ति B
१०४०
१०००
रामचंद्र A
सोमेश्वरदेव
दिगं.
रच्यानो सं.
जल्हण
मेघप्रभ
रत्नसिंह
धर्मकुमार
मासिंह (वि) द्यासिंहसुत ) दिगं. आसाधर
A आ रामचंद्रसूरि ते हेमचंद्रसूरि शिष्य तेज होवा जोइये.
B आ सकलकीर्ति दिगंबराचार्य होवानो संभव छे.
क्यां छे !
डेक्कन.
डेक्कन मुद्रित.
A. S.
अ. १
म. १.
वृ. पा. ३-४
A. S.
पा. ४
A. S.
पिरि. ५
पा. २
Pric
वृ.
A. S.
A. S.
पा. ४.
Page #363
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन भाषासाहित्य.
नबर.
___ नाम.
नाम.
श्लोक.
श्लोक. कर्ताः रच्या
रच्यानोसं.
क्या छ ?
-
-
वर्ग ९ मो.
पद्धतिदर्शक ग्रंथो.
१७४६ पा. ५..
१७४९
१२३
अटलक्षी A
१२५५, समयसुंदर उपाश्रयादिवर्णन | पत्र ४ गोत्रोछार ( शतार्थवृत्ति) पत्र ५१ चातुर्मासी व्याख्यान
धर्ममंदिर चातुरीसूत्र नरसंवादसुंदर B पत्र१. पत्रपरीक्षा
पत्र ९ वर्णनसागर (प्रा.) विज्ञप्तिपत्री
१४२ मेरुविजय विद्वद्गोष्टी
पत्र १
डे. पेज ११५.
अ. २.
विद्वजनालाप
A. एनुं अपरनाम " अर्थरत्नावली " एवं छे.
B डेक्कन कॉलेजना लिस्टमां आ रीते तेनी नोंध करी छ, पछा अमारा, धारवा. मुजब तेनुं नाम, " नवसंवादसुंदर " हो.
Page #364
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन भाषासाहित्य
नामा
श्लोक.
निंबर.
कर्ता.
क्यां
छ?
नो सं.
। अ.२.
ली.
१२व्यवहारलेख्यपद्धति(तत्वासन) पत्र २ १७ व्याख्यानकथनपद्धति १४ शतार्थी
विवरण A १५/ शुकदेवसंवाद
संवादसुंदर सभागार
पत्र ११
उदयधर्मगणि १६.६/ पा. 3-५. मानसागर
पा.५ ली. खं.
पा. 3.
समयसुंदर
पा. ३-४ अ. २..
पा. 3.
A एन आदिचरण " परिमहारंभममा " एवं छे.
Page #365
--------------------------------------------------------------------------
________________
**************
*******kt.k.k****
लीस्ट नंबर ९ जैन विज्ञान.
**
*
Page #366
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४६
जैन विज्ञान
रच्या
नाम.
श्लोक.
कता.
नो सं.
क्यां छ?
वर्ग १ लो.
-
-
-
-
-
-
-
-
ज्योतिष्ना ग्रंथो. अर्थकांड
अर्थकांड (बीजु) अष्टांगहृदयसंहिता मायनानतिलकवृत्ति
नगीनदास
देवेद्रसूरि शिष्य हेमप्रभसूरि A
दुर्गदेव पत्र ३३९ वाग्भट १८०० दिर्ग. दामनेदि
शिष्य
ल
आयप्रक्ष
5
उदयप्रभ
मायसद्भाव
वृत्ति आरंभसिद्धि
वृश्चि ७ गणिततिलकवृत्ति
লুৰি ९, जन्मकुंडलीविचार
१५१४: पा. 3.५.
हेमहंस सिंहतिलक
-
---
२६.
--
पा. ४.
पा. १.
A एसियाटिक सोसायटीना रिपोर्टमां आ हेमरमसरिना गुरुर्नु नाम देवेंद्रसरि जपाव्युं छे पण अमारा धारवा मुजब वि. सं. १३२७ मां चैत्यवंदननी संघाचार नानी वृत्तिना करनार धर्मघोषसरि थया अने तेमना शिष्य हेमप्रभसूरि हता तेओएज आ ग्रंथ रच्यो होवो जोइये भने रिपोर्टकारे गुरुन नाम नोंधतां भूलयी दादागुरुनु नाम नोभ्यु होय तेम जणाय छे.
Page #367
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन विज्ञान
३४७
नाम.
___ नामः
नबर.
श्लोकः कर्ता. नव्याः क्या छ ?
श्लोक.
कर्ता.
रच्या
क्यां
छ?
नोस.
जे. डेसन.
लब्धिचंद्र नरचंद्र
डेक्कन.
१० जन्मपत्रीविचार
जन्मपत्रीपद्धति A जन्मांभोधि ( बेडा) वृति जातकाभिधान जातकदीपिका
डेक्कन.
A..
सिंहमल्ल B हवाब
वृत्ति
पत्र८
(जैनी)
-
ताड२९२
विनयकुशल
१५ जातकपद्धति
ज्योतिष् ज्योतिष्चक्रविचार (प्रा.) ज्योतिषसारसंग्रह ताजिकसारवृत्ति
तिथ्यादिसारणी २६) द्वादशभावजन्मप्रदीप
पा. 3. भाव.
५४०
सुमतिहर्ष
ली A.S.
पत्र ८
भद्रबाहु
.
A जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले एना श्लोक २५०० नोंधीने एना कर्ता हर्षकीर्तिरि अणाव्या छे. आ बाबतनो निर्णय जेसलमेरवाली प्रत नजरे तपासवाथी यई शके.
B आ सिंहमल्ल ते कोई दिगंबर होय तेम तेमना नाम उपरथी अटकळ करी शकाय छे.
C आ ज्यातिष् ते शं छे ते बाबत पाटणनो भंडार नंबर बीजावाळी प्रत फरीथी तपासीने नक्की करवातुं छे.
Page #368
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन विज्ञान
22
नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां छ?
वृ.भाव. A. S.
पा. 3.
नरनंद्र
पा.१-४-५
नरपतिजयचर्या नवग्रहराशिविचार नारचंद्र
टिप्पन निधानादिपरीक्षाशास्त्र A पत्र 3 पंचांगतिथिविवरण B प्रश्नप्रकाश
सागरचंद्र
अ. १.
नरचंद्रसूरि. गरचंद्र.
সপ্নহার
डेक्कन.
भांडारकर.
भद्रबाहु
A. S.
३२
पद्मप्रभ
फत्तेशाहप्रकाश भद्रबाहुसंहिता * भावसागर भुवनदीपक
ढुंढिका अवचरि वृत्ति वृत्ति (बीजी)
पा. १-३ ली.
पा. १
वृ. अ. १ राधण.
सिंहतिलक हेमतिलक
A एनुं अपरनाम “ अहिचक्र " एवं छे. B एना माटे दृट्टिपनिकामां " पंचाङ्गतिथिविवरण करणशेपवृत्तिनामकं १९०" आवो नोध छे. C एना वीश प्रकाश छे.
* आ भद्रबाहुसंहिता नानी मोटी थे देखयामां आवे छे, तेमा नानीने भाषांतर छपायु छ. एना कर्ता भद्रबाहु ते चौदपूर्वी होवानो धणी रीते संभव थतो नी.
Page #369
--------------------------------------------------------------------------
________________
नवर.
नाम.
१३३ मणितथाताजिक
३४ मंडलपद्धती
३५ यंत्रराज
(३६ यंत्रराजागम
वृत्ति
यंत्रराजरचनाप्रकार A
(३७
३८ यंत्ररत्नावली
वृत्ति
३९ योगायोगप्रकरण
४० रनकोष
४१ रत्नदीपक D
४२ लअशुद्धि C
४३ वराहसंहिता
वृत्ति
४४ व्यवहारप्रकार
जैन विज्ञान.
श्लोक.
१२१
४८६
६००
३७०
१३३३
पत्र ७
पत्र ६
४०००
कर्त्ता.
( कोई जैन )
हेमप्रभ
महेंद्रसूरि
मलयचंद्र
सवाई जयसिंह
पद्मनाग
स्वोपज्ञ
|रच्यानो सं.
हरिभद्रसूरि
वराहमिहिर
क्या छे ?
डेक्कन.
पा. ३.
A. S.
पा. ४ A. S.
पा. ४
A. S.
A. S.
A. S.
अ. १
वृ.
लीं.
पा. ३
वृ. पा. २
वू. पा. २
१४९
भाव.
A. एने " जयसिंहकारिका " पण कहे छे.
B एमां बारभावपर फलादेश छे.
C सदरहू ग्रंथ पूर्वे हरिभद्रसूरिकृत ग्रंथोना वर्गमां नोधायो छे, छतां इहां ज्योतिषना प्रथोनो वर्ग 'दो पाडेल होवाथी हां खास नोध्यो छे.
Page #370
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन विज्ञान
नाम.
नाम.
लोक. कर्ता. च्या क्या छ ?
। क्षेमकीर्ति B
.सा.
पत्र ८
मि .१
पष्ठिसंवत्सरी A ___ वृति सेतुदीपिका हर्षप्रकाश
पत्र १६९
| जामनगर
हर्षदेवगणि
UM
A मा षष्ठिसंवत्सरी ते आ वर्गनी शरुआतमा जणावेला अर्थकांडनो भाग छे.
B आं नाम जैसलमेरनी पमा हीरालाले नाध्यु छ तेथी एना माटे शक राखको पडे छे. हटिप्पनिकामां का नाम आप्यु नथी.
Page #371
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन विज्ञान
रच्या
नंबर
नाम.
श्लोक
का .
क्या छ ?
सं.
क्लास बीजो.
श्री हंसविजय जीए नोंधेला ज्योतिष्ना ग्रंथो. *
मक्षप्रभा
जेसल.
अष्टकवर्गरेखा ३) कामधेनु १४ कुंडकेशर
प्रहदीपिका प्रहरत्नाकर कोष्टक. झानप्रदीप शानमंजरी धीणोपचारसार ध्वजधूम नवप्रवृत्ति
नौयोगादि १३) पंचांगदीपिका
६
* जेसलमेरमा ज्यारे श्रीमद् हंसविजयजी महाराज पधार्या हता त्यारे तेओए पोतानी करेली टीपमा नाघेला ज्योतिषना ग्रंथोना नाम इहां तेनो एक जुदो क्लास करी अनुक्रमबार नोध्या छे..
Page #372
--------------------------------------------------------------------------
________________
३५२
जैन विज्ञान.
नाम.
श्लोक. कर्ता.
या
क्या छ ?
जेसल
पत्र ३८ पत्र ७ पत्र १३ पत्र ३२
महादेवीटीका महादेवी उपराग मूलविधान यंत्रराजवृत्ति योगमुहूर्त रत्नप्रदीप वक्रमार्गी शतांकी षभूषण
पत्र ७
पत्र १९
Page #373
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन विज्ञान
नाम.
श्लोक. कर्ता.नच्याः क्या छ ?
का .
क्लास ३ जो.
1
जेसल.
जेसलमेरमांना शक पडता
ग्रंथो. * कर्णशार्दूल ज्योतिष्फलदर्पण पंचांगतत्व। सिद्धियोगयंत्र सूत्रेश्वरमंडल
19.०
SC
* आ मथाळा नीचे फक्त हीरालालनी करेली टीपमा नोंधेला शक पडता पांच ग्रंथो नोध्या छ, सदरहू ग्रंथो श्रीहंसविजयजीनी टीपमां नजरे अवता नथी तेथी आ ग्रंथो त्यां छेके नहि तेना माटे शक. राखवो परे छे.
आ निशाणीवाळा ऋणे ग्रंथ बबे पानाना छे एम हीरालाले पोतानी टीपमा नोंध्यु छे..
Page #374
--------------------------------------------------------------------------
________________
३५४
नंबर.
नाम.
वर्ग २ जो.
G
निमित्तना ग्रंथो.
अचेष्टा विद्या
२) मङ्गस्फुरणविचार
अ अंजनविचार
४ अर्धकाण्ड A
अष्टस्वप्रभाष्य B
६ उपदेवा मालाशकुनावली
काकरुत
कालज्ञान (सं.)
खरस्वरविचार C
खेळवाडी
|११ चित्रवर्णसंग्रह
जैन विज्ञान,
लोक.
पत्र १
१४७ दुर्गदेव
१००
पत्र ६
२६४१
कर्त्ता.
४१
जिनपाल
गा१३९७ माझ्या D
रच्या
नो सं.
.
क्यां छे ?
पा. ३
लॉ.
वृ.
जेसल.
ली.
पा. ३ लीं.
पा. ४
पा. ३.
वृ.
A. एना दस अध्याय छे.
B आ ग्रंथ जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोध्यो छे बाकी ते क्यापण ओवामां आव्यो नथी माटे जो तेनी प्रत त्यां मोजूद होय तो तेनो उतारो करावको जोइये.
C गुर्जर भाषामा छे.
D आ माहूना ते कोण दला ते जाणवामां आव्या नथी कारण तेना माटे तेवो कोइ पुरावो मळी
शकतो नथी.
Page #375
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन विज्ञान
नाम.
लोक. कर्ता.
च्या
क्या छ ?
--
--
----
पत्र ३
अजमेर
२२ चिन्हचतुर्विशतिका
छींकविचार
खं.
अयपाहुडप्रश्नव्याकरण,
२२८
नगीनदास.
नरपति
पा.४
२५
दुर्गाशकुन धातुवादप्रकरण A
नाडीसंचारशान १८ नाथपुस्तिका B
नारदोक्तस्त्रीलक्षण पल्लीविचार
पल्लीशरदशांति २२ पासाकेवलि
पिपीलिकाझान (प्रा.) पुस्तकेंद्रग्रंथ प्रश्नव्याकरणवृत्ति
वृद्धगर्गमुनि | गर्षिक
पा.१-२-३ ली.
२३००
वृ. पा. २ जे.
प्रश्नोत्तरसूत्र
२७ मातृकाकेवलि (सं.)
A एमां सोनारूपानी सिद्धिनी वात छे. B एना माटे वृटिप्पनिकामां " नाथ पुस्तिकायोगिनामाम्नाय ग्रंथसक्ता " आवो नोध छे.
C आ गर्षि ते सिद्धर्षिना गुरु दुर्गस्वामीना पण गुरु थता इता एटले तेओ लगभग विक्रमनी नवमी सदीनी शरुआतमा विद्यमान हता.
Page #376
--------------------------------------------------------------------------
________________
३५६
नंबर.
२८) मेघमाळा ( मोटी )
२९ मेघमाला ( नानी )
३०
नाम.
रत्नलक्षण
३१ रघुशकुनावली
३२ रिष्टसमुच्चयशास्त्र
३३ रुतज्ञान A
३४ वसंतराजशकुनवृत्ति B
३५ शकुनशास्त्र C
| ३६ शकुनसारोद्धार D
३७ शकुनविचार
4 mm ॐ
૩૮ शकुनावली
३९ शकुनरत्नावळी
४० शतसंवत्सरिका
४१ शिवालिखित
४२ सामुद्रिकशास्त्र
जैन विज्ञान.
लोक.
४००
१०० हेमप्रभ
3०० दुर्गदेव
२१५
३७५०
भानुचंद्रगणि
पत्र १९ माणिक्यसूरि
५०८
पत्र 3
कर्चा.
ताड१३०
११००
पत्र ३५
पत्र २
१८७
"
वसंतराय
रच्या नो सं.
लीं.
t.
सं.
क्या छे ?
भाव.
डेक्कन.
वृ.
जेसल,
अ. १
१३३८| वृ.
पा. ३.
पा. २
नगीनदास.
पा. ३
अ. १.
पा. ३-४,
A. आ रुतज्ञान ते पासाकेवलि विशेषरूप छे.
B हीरालाले सदरहू वृत्ति जेसलमेरमा टक छे एम वगान्युं छे.
C, D आ बन्ने ग्रंथो एकज होवा जोइए, कारण के तेनी लोकसंख्या तथा कर्तानुं नाम मळतंज
( छे. फक्त नाममां सहेज फेर छे, ते वसते लेखकनो दोष पण संभवी शके.
Page #377
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन विज्ञान
नैदर.
नाम.
श्लोक.
की
क्यां छ?
सामुद्रिकशास
दुर्लभराज (जैनकृत)
१०.. A, दुर्लभतनुज
जगहेव
A. S. डेक्कन.
सामुद्रिक सामुद्रिक सामुद्रिकतिलक নাৰীৰমঙ্কায়। सिखायापति वानसत्तरी ঘনবস্ব श्वानशकुनविचार स्वमचिंतामणि
२००
सल-बे. अ.१
पत्र
नरपति
पत्र
जामनगर.
स्वपलक्षण
८७५
जिनपाल
स्वमविचार (प्रा.) स्वमाष्टकषिचार स्वासप्ततिका
A एनी ८.. आर्या होवा साये ते सरस ग्रंथ छे. पण कर्ता स्व छे के अन्य छै देनो तपास करी नकी करवानी जरूर छे.
Page #378
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन विज्ञान
नामा
श्लोक.
कर्ता.
रच्या नो सं.
क्यां छ?
८००
सर्वदेवसूरि
१२८७ पा. ३-५
स्वप्नसप्ततिका वृत्ति
वृत्ति (बीजी) स्वरोदय हस्तकाण्ड A हरिमेखला B
७९
९९| चंद्रशिष्य
पावचंद्र
वृ
A आ ग्रंथ खास लखावका लायक छे.
B वृट्टिप्पनिकामां एना माटे " जनाश्चर्यकरांजनसिद्भयादियोगादिवाच्या " आवो नोध छे.
Page #379
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन विज्ञान,
३५९
नबार
___नाम.
श्लोक.
कर्ता.
क्यां छ?
वर्ग ३ जो ---- --
वैद्यकना ग्रंथो. आयुर्वेदमहोदधि २ चिकित्सोत्सव
द्रव्यावली (निघंटु) प्रतापकल्पद्रुम माघराजपति योगरत्नाकर योगरत्नसमुच्चय योगशतक
যাহার १० योगचितामणि
११०० सुषेण १७०० हंसराज
महेंद्र
प्रतापसिंहदेव १००००/माघचंद्रदेव(त्रु.) ९.०० पांच, नयनशेखर १७३६
viiiiiii
२५०
पत्र २४
पा. ३-४
| २१..
हर्षकीर्ति
जेसल-मे. A.S.
* आ वर्गमा वैद्यकना जे जे ग्रंथो अमारा जाणवामां आध्या छे ते ते अनुक्रमवार माझ्या छे. विचार करवा जेवी वात छ के आपणा विद्वान् दूरदशी पूर्वाचार्योंए अन्य साहित्यने खीलववा माटे करेला प्रयासनी सरखामणि करतां वैद्यक जेवा असाधारण उपयोगी विषयनी खीलवणी करवामां पोताना उच्च ज्ञानना उपयोग कयों होय तेम अमोने मळेला ग्रंथो उपरथी जगातुं नथी. शिवाय अमे उपर जणावेला मंथोपैकी केटलाएक ग्रंथो तेमना कर्ताना नामपरथी प्राये अन्य मतिना पण करेला इशे तेम संशय रहे छे. आम होवानुं कारण ए जणाय छ के वैद्यकनो विषय केटलाक आरंभ संरंभ, वनसत्यादिक- उपमर्दन, अभि विगेरेनो विनाशादि करावनार छे तेथी त्रिविधे त्रिविध जीवहिंसानो त्याग करनार मुनिराज ए कार्यमां प्रवृत्ति न करी शके तेवु छे.
Page #380
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन विज्ञान.
नंबर,
नाम.
लोक
का.च्याः क्या छ ?
| A. S.
९००
| A.S.
१८.. (अपूर्ण)
मनंतदेवसूरी ६०० मल्लराजमहीपति ४००० वीरसिंहदेव २१०(तपा)हस्तिरुचि
A.S.
-
रत्नसागर रसचिंतामणि रसरत्नदीपिका वीरसिंहावलोक वैद्यवल्लभ
वैद्यकसारोवार १७ वैद्यकसारसंग्रह
सिद्धयोगमाला सिद्धसार A
-
-
ली. A.S. A. S.
हर्षको गणि
हर्षकीर्ति सिवर्षि
प४७९
A सिद्धसारना करनार कोइ जैन होवा जोइये एम अमदावादना डेलाना. भंडारनी टीपमा नध. छ. पण कदाच आ ग्रंथ वैद्यकना बदलामां धर्मग्रंथ पण होय तो होय.
Page #381
--------------------------------------------------------------------------
________________
नाम.
वर्ग ४ थो.
काविज्ञाना ग्रंथो.
१ अपराजित पृच्छा
भ्वादिगुण
3 कंदर्पचूडामणि
४ कामप्रदीप
कामानुशासन
६कोकमंजी
कौतुक रत्नाची
गजपरीक्षा
गोधूलिकार्य B
१०) चतुरंगविलासमणिमंजरी
११ जगत्सुंदरी योगमाला C
जैन विज्ञान.
श्लोक.
कर्त्ता.
१३०० भावदेवाचार्य
६०
१८०० वीरभद्र A
पत्र ५
पत्र ३
१०००/
१५००
१४५
१२००
(अपूर्ण)
हरिषेण
रख्या
नो सं.
क्यां छे ?
भांडारकर.
AS.
| १६३३/ A. S.
अ. १.
अ. १०
ली.
A.S.
AS.
पा. ५
डेक्कन.
A.S.
३६१
A ग्रंथना नाम उपरथी कर्ता स्व छे के अन्य तेना माटे शक राखवो पड़े छे.
B एमां स्वस्तिक करवानी रीत नणावी छे.
C आ जगत्सुंदरी योगमाला ते योनिप्राभृतनो एक भाग छे अने ते उपयोगी छे, पण दिलगि
रीनी वात छे के एसियाटिक सोसायटीना रिपोर्टमां पण त्रुटक छे एस जणान्युं छे.
48
Page #382
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन विज्ञान
नाम.
। नंबर.
श्लोक.
का.
क्यां छ?
नोसं.
स
धनुर्विद्या
वृत्ति
-
+-
नागार्जुन
गुणाकर
A. H.
१३) धनुर्वेद |१४| नागार्जुनविद्या
पाद्यलब्धि (सं.) भरतशास्त्र . योगरत्नमालाA
पृत्ति योगरत्नावली (लघु) लेखनप्रकार वास्तुशास विज्ञानार्णव शाईनीकृति B যাতিষী 0
पत्र १३७ भोजदेव
पत्र८६
A एने रत्नावली तथा आश्चर्ययोगमाला पण कहेवाय छे.
B एमां ताड तथा कागळपर लखवानी शाई बनाववानी रीत दर्शायी है.
C एमां घोडा पारखवानी विद्या कही छे.
Page #383
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन विज्ञान
नंबर.
श्लोक.
का .
क्या छ ?
गा. ३०२ दामोदरगुप्त
नगीनदास.
A.S.
शुंभलीमत समंतसामंतचक्रविधि समस्तरस्नपरीक्षा
समरांगणसूत्रधार २८) संगीतदीपक
संगीतरत्नावली
सिनशान A ३१ हीरकपरीक्षा
| १५६. मोजदेव पत्र ३० पत्र २५ पत्र २१ मेधविजय
(दिग.)
-
A.S.
-
A आ सिद्ज्ञान हस्तसंजीवन नामक ग्रंथमाथी उद्धृत करेलु के अने ते गुर्जर भाषामा छ,
Page #384
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६४
जैन विज्ञान.
नाम.
नंबर,
वर्ग ५ मो.
कल्पना ग्रंथो.
अकालदंतकल्प (प्रा.) आसुरीकल्प
२
उलूककल्प
गर्षिद A
पत्र १
जेलल.
उलूककल्प (सं.) कल्परत्नावली B
वृत्ति काकरुततथाकाकनिलय घंटाकर्णकला
-
जेसल. रि.६ पा. ३ A.S
-
-
-
धातुकल्प
--
नानाकल्प
पत्र५८
नालघरावतविधि पद्मावतीकल्प
३२ जीतनशिष्य
मलिषण
A आ गोविंद कोण हता ते जाणवामां आव्यु नथी पण प्राये ते अन्यभति होवा जोइये.
B आ ग्रंथ तेनी वृत्ति साथै जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोंधल होवाथी तेना माटे । खवो पडे छे.
C आ नाम सामान्य छे. अने ते अमदावादना डेलानी टीपमां नौघेल होवायी इहां नोध्यु, एमां लगभग बैंतालीस कल्पो छ एम अमारा जाणवामां आव्युं छे, पण तेना शुं शं विशिष्टनामो छ। .तेनी प्रत नजरे जोया वगर जाणवू मुश्केल छे.
Page #385
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन विज्ञान
___ नाम.
श्लोक.
का.
ज्या
क्या छ ।
ली. रि.६. रि.६ | पा.३डेकन. पा.१
Re
सिंहतिलकसूरि
डेक्कन.
पमावतीचतुष्पदी मणिपरीक्षाकल्प वंध्याकल्प पर्द्धमानविद्याकल्प विजयपताककल्प विजययंत्रविधि A वृक्षविनोद
श्लोककल्प १९ संवित्पटल B २० सुवर्णसिवि
वृत्ति सूरिमंत्रकल्प स्थापनाकल्प (सं.)
A.S.
पादलित
डेकन.
पत्र २
३२०
डेक्कन. रि.६ प्रो. मणि.
.
A एने विजयपताका यंत्र पण कहेवाय छे.
B आ संवित्पटल विजयाकल्पमाथी उद्धृत करेल छे.
C एना पांच पीठ छे अने ते आचार्यपदधारक मुनिवर्यने खास उपयोगी छे.
Page #386
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन विज्ञान श्लोक. कर्ता. रयाः क्या छ ?
श्लोक
वर्ग ६ हो.
मंत्रना ग्रंथो. १ अक्षरचूडामणि
पत्र३१ २ अनुभवसिद्धमंत्रद्वात्रिंशिका पत्र ६
उड्डामरतंत्र कक्षपुट A
७०० नागार्जुन कच्छपुट B पत्र ८१ नागार्जुन गौतमीमंत्र
२५:० जिनदत्तीयविद्या
पत्र १ ज्वालामालिनीविद्या तृतीयज्वराष्टक C
मल्लदेव मंत्रशास्त्र
पत्र मलिश्रेण
देकन.
A, B आ बन्ने ग्रंथो एकज छे के जुदा जुदा छ तेना माटे शक रहे छे, अमारा धारवा मुजब ते पन्ने एकज हशे पण फरक एटलो के डेक्कन कॉलेजमांनी वृत्ति हशे अने एसियाटिक सोसायटीमांनु मूळ हशे, छतां चोकस निर्णय माटे बन्ने प्रतो तपासवी जोइये.
Cआ मंथ वखते वैद्यकनो पण होयतो होय छतां ते मंत्राष्टक हो एम धारीने यहां नोभ्यो के.
Page #387
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन विज्ञान
श्लोक. का. रयाः क्या छ ?
की
वृ. A.S.
। ८०० सिंहतिलकसरि
।
११] मंत्रमहोदधि A १२ मंत्रराजरहस्य १३| यंत्रचिंतामाण
वृत्ति यक्षिणीवेतालसाधन वसुधारा B सिद्धविजाचक (सं.) सूरिमंत्रकल्प
, सारोद्धार ,, दुर्गपदविवरण ,, प्रदेशविवरण
पत्र १२
(जैन)
५५८,
आंच. मेरुतुंग
| A. H.
A आ वसुधारा बौद्धाचार्ये करी छ एम जाणवामां छे.
B एना माटे वृइटिप्पनिकामां " मंत्रमहोदधि प्रा. दिगंबर श्रीदुर्गदेवकृतः गा. ३६॥ ,
Page #388
--------------------------------------------------------------------------
Page #389
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
२३८
अजितनाथचरित्र (प्रा.) ....
, , (सं.) ...
अकालदंतकल्प (प्रा.)
अक्षयतृतीयाकथा
अजीवकल्प
अक्षरचूडामणि
अज्ञातोंछग्रहणकुलक
अक्षप्रभा
.
१९५
अवचूरि अज्ञातोंच्छप्रकरण
अग्निशीतत्वस्थापनावाद
१४८
अंगचेष्टा
वृत्ति
१४८
अंगस्फुरणविचार
अठाइव्याख्या
अघटकथा
२४७
अहोत्तरी स्तोत्र
२७२
अञ्चकारिभटिकाकथा
१४७
अडताळीसकथा
अजितशांतिस्तव
अढारपापस्थानकुलक
१९५
अजितशांतिछंदोविवरण
अमितशांतिस्तव
बीजो
अतिमुक्तचरित्र अतिशयपंचाशिकास्तोत्र अध्यात्मकमलमार्तड
तीजो
२७२
॥
अध्यात्मकल्पद्रुम
वृत्ति
, वृत्ति , (२) वृत्ति , अवचूरि
गृत्ति (बीजी)
. अध्यात्मगीता
Page #390
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार अंथोना नाम,
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अध्यात्मतरंगिणी टीका
१६८
0
अध्यात्ममतदलन
अध्यात्ममतपरीक्षा
०
.
, वृत्ति अध्यात्मबिन्दु
५
"
वृत्ति
अध्यात्मसार
अंतरंगसंधि अंतरंगकथा (प्रा.) अंतरकथा संग्रह अंतरगणदीपिका अंबडकथा अंबुसराजकथा अन्वयदीपिका अनंगसिंहादिककथा अनंतकीर्तिकथा (प्रा.) अनंतनाथचरित्र (प्रा.)
, , (सं.) अन्यायछेदकुलक अनिट्कारिकाविवरण
अध्यात्मसार
..
अध्यात्मोपनिषत् अंगचूलिया
अंगविद्या
अंगुलसत्तरी
, अवचूरि अंचलनतस्थापन
अंचलमतदलन
अनित्यकुलक
अनित्यताकुलक
अंजगविचार अंजमासुंदरीकथा
রহানুত
अनर्थदंडपरिहारकुलक अनुत्तरोपपातिकमूल
, , वृत्ति १६८ | अनुभवसिद्धमंत्रद्वात्रिंशिका ...!
वृत्ति
अतरंग प्रबोध
Page #391
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अराक्षनुकमभार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार प्रधोना नाम.
पृष्ठांक.
अनुयागद्वार मूळ
चूर्णि
लघुकृत्ति
वृत्ति
अनुशासनांकुशकुलक
अनुष्टानविधि
अनेकार्थ मंजरी अनेकार्थ रत्नकोश अन्योक्ति मुक्तावली अपशब्दखंडन
अपशब्दनिराकरण .... १५३ अपवर्गनाममाला .../७१-९८
अपौरुषेयदेव निराकरण ७१-९८ अभयकुलक
अभयकुमारचरित्र
, (बीजु) ७१ । अभयदेव प्रबंध
अनेकांतजयपताका
" ,
वृत्ति टिप्पन
अनेकांतवादप्रवेश
"
अवचूरि
अनेकांतव्यवस्थापन
अभयदेवसूरिकृत सामाचारी ...
अनेकथविचारसंग्रह
अभक्ष्यद्वात्रिंशिका
अनेकशास्त्रसारसमुच्चय
अभयसिंहकथा
अनेकैः स्तुति
अभयकुलक
अनेकार्थतिलक
अनेकार्थध्वनिमंजरी अनेकार्थनाममाला सशेष
अभावग्रंथव्याख्या अभिधानचिंतामणिनाममाला ... ___ , , वृत्ति ...
, (बीजी) मारोद्धार
,
युत्ति
" अनेकप्रबंध
... १११
Page #392
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक,
अक्ष
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अर्हदभिषेकविधि
अर्हनीति
अभिधानचिंतामणिनाममाला
अवचूरि , , (१)देशीनाममाला
, वृत्ति (रत्नावली) __ उद्धार
, (२) शेषनाममाला
अर्हत्सहस्रनामसमुच्चय
०
३१०
२७३
___" , वृत्ति अर्हत्सहस्रनामस्तोत्र अर्हत्स्तव (सं. गद्य) अहत्प्रवचनव्याख्या
"
वृत्ति
"
___, (३) निघंटुशेष ,(४) शिलोंछनाम
माला
अरनाथस्तव
३७३
वृत्ति
२४२
अभिनंदनस्वामीच
३१४
३१४
" , वृत्ति अरनाथचरित्र (प्रा.)
" , (सं.) अलंकारग्रंथ अलंकारचूडामणि वृत्ति
(काव्यानुशासन) ...
वृत्तिविवेक अलंकारतिलक अलंकारदर्पण (प्रा.) अलंकारमहोदधि .
" " वृत्ति ...
" " , (सं.)... अममस्वामी चरित्र ... अमरतेजचरित्र (श्लोकबद्ध) .... अमरसेनवयरसेन चरित्र ... अयोगान्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका. अर्थकांड अर्थालंकारवर्णन अनयराघव
" टिप्पन
३१४
३५४
३१४
२६
३१४
Page #393
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार प्रेथोना नाम,
पृष्टांक,
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम,
पृष्टांक.
अलंकारमंडन
अस्वाभाष्य
अलंकारशेखर
अष्टांगहृदयसंहिता
३४६
अलंकारसंग्रह
आ.
अल्पबहुत्वप्रकरण
आख्यानमणिकोश
"
,
अवचूरि
...)
"
"
"त्ति
.......
अवस्थाकुलक
आगमअष्टोत्तरी
अवंतिसुकुमालसंधि
वृत्ति
.
अव्याप्तिवाद
" , आगमोद्धारगाथा आगमोद्धारसित्तरि
.
अष्टप्रकारपूजा कथा
, विधि
आचरणाशतक
...
भष्टप्रवचनमाताकथा
आचारदिनकर
अष्टप्रवचनमाला (प्रा.)
आचारांगमूळ
:
अष्टपंचाशतूस्तुति
:
अष्टकसूत्र
:
:
" , वृत्ति अष्टकवर्गरेखा
" नियुक्ति __, चूर्णि ___, वृत्ति
,, दीपिका ,, प्र. श्रु. दीपिका आचारविधि (प्रा.)
:
अष्टलक्षी
:
अष्टादशस्तोत्र
:
"
अवचूरि
...
२७३
०४८
:
Page #394
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
ggie
अक्षरानुक्रम
पृष्टांक.
आचारविधिनानीसामाचारी ...
१५५
आत्ममीमांसा
आचारोपदेश
१४८
टीका
आचरणोपन्यास
भाष्य
आठ नानी कथाओ
,, वृत्ति (अष्टसहस्री)
आतुरप्रत्याख्यान मूळ
आत्मशिक्षाशतक
आत्मशुद्धिकुलक
"
, अवचूरि
आत्मबोधकुलक
आत्मज्ञान
आत्मसंबोध कुलक
आत्मनिंदाष्टक
आत्मशिक्षा
आत्मावबोध
. :: :: :: :
आत्महितकुलक
आत्मानुशासन
टीका
:: :: :: :: :: :: :: : :
आत्मानुशासन
आत्मानुशास्ती कुलक
आत्मोपदेशमाला आदिजिन स्तुति आदिजिनादि स्तोत्र आदिनाथदेशना
, , वृत्ति .... आदिनाथदेशनाशतक .. आदिनाथचरित्र (चार) आदिनाथ जगन्नाथ स्तुति ... आदिदेव स्तवन आंचलिक श्राद्धसामाचारी ....
आत्मानुशासनकुलक
आत्मपरीक्षा
...
आत्मप्रबोध
आत्मबोध
Page #395
--------------------------------------------------------------------------
________________
अक्षरानुक्रमवार प्रथोना नाम.
आनंदलहरी
""
आनंदसमुच्चय
आनंदसुंदर
अनुपूर्वीकरण
आभाणशतक
आयप्रश्न
आयज्ञानतिलकवृत्ति
आय सद्भाव
در
:)
93
आयुर्वेदमहोदधि
आर्द्रकुमारकथा (प्रा.)
15
" ( गद्य. )
आषाढकथानक (श्लोकबद्ध )
आरंभसिद्धि
आराधना
33
वृत्ति
23
वृत्ति
ति
आराधना कुलक
( बीजी
"
वृति
D+
L
236
col
अनुक्रमणिका.
पृष्ठांक
२७३
२७३
११०
२६५
१३२
२०८
૪૨
३४६
३४६
३४६
३५९
२४८
२४८
२४८
३४६
३४६
१६९
१६९
१३९
१६९
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
आराधना विधिकुलक
वृत्ति
"
आराधनापंचक
आराधनापताका
आराधनासप्तरी
आराधनाविधि
आरामनंदनकथा
आराममुतकथा ( सं . )
आरामशोभाकथा
आरामशोभचरित्र (श्लोकबद्ध)
आलापद्धति
आलोचनाकुलक
आलोचना पदसंग्रह
आलोचनारत्नाकर
आलोचनाविधान
आवश्यककथा
आवश्यक सत्तरी
>>
33
आवश्यक मूळ
वृत्ति
3
**3
433
:
***
..
...
...
www
450
:
:
पृष्ठांक
१९६
१९६
१६९
૬૪
१६९
१५३
२४८
२४८
**
२२१
८७
१९३
१५३
१४८
१४८
१४८
१४३
१४३
૧૮
Page #396
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम..
पृष्टांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम,
पृष्ठांक.
आवश्यक नियुक्ति
आवश्यक चैत्यवंदनावृत्ति , , बालावबोधा (
नर)
माध्य
,, चूर्णि
,, चैत्यवंदनामाहाभाष्य
बृहद्वृत्ति , वृत्ति
" ,, भाग्यवृत्ति ,,चैत्यवंदन विचार( गाथाबद्ध) , चैत्यवंदनकुलक
लघुति
, अवचरि
वृत्ति
...
अवचूरि
टिप्पन
टिम्पनक
भाष्यत्रयम्
-
-
.:
%---
विशेषावश्यक वृत्ति , जीर्णवृत्ति , ... , दीपिका , ,, षड्विधावश्यकसूत्रवृत्ति , (वंदारुवृत्तिनानी) ,,षडावश्यकवृत्ति(अर्थदीपिका) , घडावश्यक अवचूरि ,
षडावश्यक विधि , षडावश्यक लघुत्ति , ललितविस्तरा
, चैत्यवंदनाभाष्यवृत्ति ।
(संघाचारनाम्नी).... चैत्यवंदना अवचरि ... , ,, (बीजी) , ...
चैत्यवंदनाभाष्य(गाथायद्ध) , चैत्यवंदन चूर्णि
,, विवरण
, वृहतचैत्यवंदन सटीक. ,, चैत्यसाधूवंदन श्राद्ध ।
प्रतिक्रमण
-
२८
"
त्ति
...!
,,
, टिप्पनक
,
Page #397
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
मारानुक्रमवार अंघोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
आवश्यक संग्रहणी
आसुरीकल्प
२०७
२१३
इतिहास समुच्चय इंद्रियपराजयशतक इरियावद्दीकुलक इरियावहीप्रकरण
आवश्यक चैत्यवंदनादिसूत्र साधुश्रा
प्रतिक्रमणपदपर्यायमंजरी , इपिथिकी अवचूर्णि ...| , चैत्यवंदनावचूर्णि ... , वंदनकावचूर्णि .. चैत्यवंदनकप्रत्याख्यानवृत्ति , चैत्यवंदनादिवृत्ति
(कुलप्रदीप) भावश्यक साधूधाद्धप्रतिक्रमणचैत्य
गुरुवंदनावचूरि " साधुप्रतिक्रमणवृति ... श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र ...
, चूर्णि " , गृत्ति ...
, लघुवृत्ति
इरियावहीषट्त्रिंशिका
१३९
१३५
... ...
___ " " वृत्ति इरियावहषिट्त्रिंशिका
, , वृत्ति इलाचीपुत्रकथा इष्टोपदेश
१३९
१७०
,
वृत्ति
ईश्वरनिराकरण
श्राद्धसामायिकप्रतिक्रमणसूत्र व्याख्या प्रकरण
उहामरतंत्र
प्रतिकमणवृत्ति ,, अवचूरि
,
उतिक
वृति
३०६
क्रमनिधि १ अनु,
Page #398
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्टांक,
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
उणादिनाममाला
उत्तराध्ययन अवचूरि
उकिप्रत्यय
उकिरत्नाकर
उत्तमकुमारकथा
उत्तमकुमारचरित्र
कथाओ
उत्तमचरित्र
उत्तमपुरुषकुलक
उत्पादसिद्धिप्रकरण
उतराध्ययनमूळ
___,
वृत्ति
नियुक्ति
चूर्णि
वृहदृत्ति
उदयसुंदरीकथा उदायनराजकथा उदायनराज चरित्र(श्लोकबद्ध)... उद्भटालंकारसार संग्रह उपदेशकुलक
लघुवृत्ति वृत्ति
उत्तराध्ययन वृत्ति
उपदेशकंदली
दीपिका,
___, वृत्ति उपदेशकल्पद्रुम
उपदेशचिंतामणि
"
वृत्ति
Page #399
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार प्रयोना नाम.
।
पृष्ठांक.
उपदेशचिंतामणि वृत्ति
उपदेशमाला लधुवृत्ति
, अवचूरि
__,
अवचूरि
...
१७०
उपदेशतरंगिणी
१७२
" गाथाशतार्थ
१७२
उपदेशपद
, कथा
१७२
,
वृत्ति
१७२
उपदेशपंचाशिका
२०५
उपदेशप्रासाद
" वृत्ति उपदेशमणिमाला
२०५
उपदेशमाला (बीजी)
, (त्रीजी) उपदेशमालाशकुनावलि उपदेशामृतकुलक
, (बीजूं) उपदेशरत्नकोष ___, दृत्ति उपदेशरत्नमाला उपदेशरत्नाकर
, वृत्ति उपदेशरसायन
११०
१७२
" इलक उपदेशमाला
, वृत्ति (प्राकृत) , वृत्ति (हेयोपादेय) ....
वृत्ति (फर्णिका) , वृत्ति (दोघटी)
वृत्ति
१७२
१७३
उपदेशरहस्य
विवरण
उपदेशरहस्य
१७३
Page #400
--------------------------------------------------------------------------
________________
अक्षरानुक्रमवार मंथोना नाम:
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार अंभोना नाम.
ठाक.
:..
उपमितिभवप्रपंच
उपदेशरहस्य वृत्ति उपदेशरहस्य (सं.)
उद्धार
उपदेशरहस्य
सारसमुच्चय
१७४
पारोद्धार
उपाश्रयादिवर्णन
३४३
" वृत्ति उपदेशशतक
" (बीजु)
, वृत्ति उपदेशशतक
उलूक्रकल्प
उपसर्गहरस्तोत्र
२७४
वृत्ति
२७४
"
वृत्ति
२७४
२७४
२७४
२४
उपदेशशतक (बाजु) उपदेशसप्तरी
, वृत्ति उपदेशसप्ततिका उपदेशसंग्रह उपदेशसार
, (बीजो) उपधाननिराकरणसंधि उपधानपौषधविशेषविधि
(बीजी)
(त्रीजी) , लघुवृत्ति उपसर्गहरस्तोत्र उपसर्गहरप्रभावकथा उपासकदशांगमूळ
वृत्ति उपाशकदशांग सूत्र
२४
१५३
उपासक प्रतिमाविवरण
उत्साहकुलक
उनोदरिकादितप
१५३
उपधानविधि
उल्लासिक्रम
२७४
उपधानस्वरूप
Page #401
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुमालिका
अक्षरानुक्रमवार प्रधोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार पंधोमा नाम.
पृष्ठांक.
अधिमंडलस्तोत्र ऋषिमंडलस्तव
ऋषभशतक
२७४
१७४
__"
(सं.)
,
(सं.)
२७४
"
अवचूरि
१३८
ऋषभस्तव (बीजो)
एकविसठाणप्रकरण एकसमयज्ञानदर्शनषाद एकादशगणधरचरित्र
"
अवरि
:
२२१
ऋषभस्तुति
एकादशगणधरस्तव
:
ऋषभस्तोत्र
एकाक्षरीनाममाला
३१०
:
एकीभावस्तोत्र
कपभोक्लासकाव्य भिदत्ताकया
:
__, वृत्ति एकोमत्रिंशत्भावना
:
" (बीजी वं.)...! ऋषिदत्ताचरित्र
ओ.
ओधनियुक्तिमूल
:
:
अधिभाषितमूळ ऋषिमंडलसूत्र
, वृत्ति ( १ थी ६)... , अवचूरि
:
भाष्य
:
ऋषिमंडलस्तव
चूर्णि
:
,
वृत्ति
दीपिका
:
Page #402
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार प्रयोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार अंधोमा नाम.
पृष्ठांक.
भोपनियुक्ति अवरि
कथानुक्रमणिका
wr
कथाप्रबंध
, उदार ओघसामाचारी
औ.
कथामहोदधि
कथारलकोश
औपपातिकमूळ
कधारत्नाकर
"
वृत्ति
:::
कधारलाकरोद्धार
कथारत्नसागर
औषधिनाममाला औष्ट्रिकमतोत्सुत्रोधाटनकुलक ... औष्ट्रिकमतोत्सूत्रदीपिका ...
कधावली
कक्षपुट
::
कथासंग्रह ___,
, ,
कच्छपुट
(बीजो) (त्रीजो) (बोथो)
कथापंथ
कथोद्धार कथाकोश
:::
कथासंचय
कंचनश्रेष्टयादिकथा
कंटकोद्धार
, वृत्ति (प्रा.)
, वृत्त (बीजी.) ... कभाकोश (बीजो) कथाकोश (जीजो) कथानककोश
कंदली टिप्पन कंदली पंजिका
:
कंदर्पचूडामणि
::
कनकरथकथा
Page #403
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुकमवार ग्रंथोना नाम,
पृष्ठांक,
(१) कर्मविपाक
११६ ११६
१२१
टिप्पन
कनकरथ चरित्र कनकावती चरित्र
___... कनकावती चरित्र (लोकबद्ध).... कनकावती चरित्र
(२) कर्मस्तव
भाष्य
११६
, वृत्ति " वृत्ति " टिप्पन
११६
३५३
कर्णालंकार मंजरी
३१५
बंधस्वामित्व
वृत्ति षडशीति
११७
करणसत्तरी
"
भाष्य
पति (प्रा.)...
११७
१७६
OTuuuNR
विवरण अवचरि
११७
" वृत्ति कर्पूरप्रकर
, वृत्ति
, अवचूरि कर्पूरचरित्र (सं.) कर्पूरमंजरी टीका
, लघुटीका कर्मादिविचारसार (१) कर्मप्रकृति
शतक
भाष्य
११७
वृत्ति टिप्पन अवचूरि साद्धशतक भाष्य
११८
११५
११८
,
चूर्णि
"
वृत्ति
११५ ११५ ११५
११८
वृत्ति वृत्ति वृत्ति
टिप्पनक पांचनव्यकर्मग्रंथ
११८
(२) पंचसंग्रह
११५
११८
वृत्ति
" वृत्ति " वृत्ति
११५ ११५
अवचूरि अवरि
, दीपक
११८
Page #404
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार प्रभोना नाम:
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार प्रयोना नाम.
पृष्ठांक.
कर्मस्तवविवरण (५) सत्तरी
१९
३०४
३०४
३०४
११९ ११९
३०४
टिप्पनक अवचूरि
कलाप कौमारसारसमुच्चय,, ...
, उणादि वृत्ति , ... A ,, आख्यात कृवृत्ति ,, .... ,, आख्यात वृत्ति , ... , आख्यातकृविवरण,, .... ,, कलापनानाख्यात वृत्ति ... ,आख्यातावचूरि
" तिटिप्पन .... कलावतीकथा
" (लोकबद) कल्याणमंदिरस्तोत्र
कर्मप्रकृति टीका
३०५
कर्मवेय प्रकरण
३०५
२४९
२४९
कर्मसंवेयभंग प्रकरण कर्मसार कथा कर्मसार कथा ( बीमो) कर्मस्तवन (प्रा.) कर्मविपाक कुलक
२७५
वृत्ति वृत्ति
धात्त वात्त
२७५ २७५
करुणावनायुध नाटक
वृत्ति अवचूरि
२७५
कल्पमंजरीकथाकोश
२७५
कल्याणमंदिरस्तोत्र
कल्परत्नावली वृत्ति
३६८
"
वृत्ति
२७५
कलाप व्याकरण
३०४
२७५
___" (बीजु) __ " वृत्ति कल्याणमंदिरछायास्तवन
३०४
२७५
, चतुष्काख्यातहतवत्ति .... ,, दौर्मसिंही वृत्ति , ...
३०४
कल्याणमंदिर (अभिनव)
कल्याणिक स्तव
३०४
Page #405
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम. !
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार पंथोना नाम.
पृष्टांक.
---
-
-
कवच प्रकरण
कालचऋविचार
६
कालज्ञान
(सं.)
कविकल्पद्रुमवृत्ति
, अवचूरि कविगुखकान्य
कालशतक
कालसत्तरि
१४३
"
वृत्ति
कवितामदपरिहारवृत्ति
कालविचारशतक
२८८
कविशिक्षा
कालस्वरूपकुलक
१९७
कविशिक्षा (बीजी)
कालस्वरूपद्वात्रिंशिका
१५८
१७६
कस्तुरीप्रकरण
" वृत्ति
कालिकाचार्यकथा
काकरत
»
(प्रा.)
काकरुत तथा काकनिलय
वृत्ति (प्रा.)
३०५
३०५
कातंत्रदीपिका , विभ्रमवृत्ति
संभ्रम कातंत्रदुर्गपदप्रबोध
२४९ २४९ २४९ २४९ २४९ २४९ २४९ २४९ २४९ २४९ ૨૪૬ २५० २५०
३
कातंत्रोत्तर
कादंबरी टीका
३३४
कादंबरी दर्पण
काव्यकल्पलता
३१५
कामघट
७६
वृत्ति परिमल विवेक
३११
३१६
कामधेनु
३५१
काव्यप्रकाशसंकेत
३१६
कायस्थितिस्तव
"
वृत्त
१४५ ॥ काव्यमीमांसा
। अनु,
Page #406
--------------------------------------------------------------------------
________________
१८
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार प्रशोना नाम.
पृष्ठांक,
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्टांक
काव्यलक्षण
कुमारपालप्रबंध
२१४
काव्यान्नाय
२२
काव्यालंकारवृत्ति
३१५
३१५
२११
काव्यानुशासन
" वृत्ति
काशिकान्यास
३०६
कुमारपालप्रतिबोध (सं.) ... कुमारविहारप्रशस्ति काव्य कुमारविहार शतक कुमारसंभववृत्ति कुमुदचंद्रनाटक कुर्मापुत्रचरित्र कुरुचंद्रकथा (सं.) कुरुकुलादेवीस्तवन
किरातार्जुनवृत्ति
किरातार्जुनीयदीपिका
क्रियाकलाप
क्रियाकलापस्तुति
" वृत्ति
१३
कुलध्वजकथा
कुलमंडनसूरिकृतविवारामृतसंग्रह !
कुवलयमाला
२५५
कुवलयमाला
२२२
क्रियागुप्तस्तोत्र कीर्तिकल्लोलिनी कुंडकेशर कुंतलदेवी कथा (श्लोकबद्ध )...! कुंभुनाथ चरित्र (प्रा.)
" (सं.) ... कुपक्षकौशिकसहस्रकिरण ...
२५०
कुवलयमाला कथा (प्रा.) ... कुवलयमाला (सं.
२४३
२४२
कुसुमसारकथा
१५२
कूपनादृष्टांतपर ग्रंथ
१०८
२५०
कूर्मापुत्रकथा __" (प्रा.)
२५०
कुमताहिविषजांगुली (अपर
नाम हितोपदेश) कुमारदेव प्रबंध कुमारपालचरित्र
(बीजुं)
२५०
कूर्मापुत्रचरित्र कृतकर्मकथा
"
rmy mr
(त्रीज)
Page #407
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक
१२१
पद्मदेवीय क्षेत्रसमास वीरंजय क्षेत्रसमास
» वृत्ति संस्कृत क्षेत्रसमास
१२१
कृतपुण्यचरित्र कृष्णचरित्र कृष्णयुधिष्टिर धर्मगोष्टी केवली प्रकरण (ताड) केवलिमुक्तिस्त्रीमुक्तिप्रकरण
" संग्रह श्लोक
१२१
"
वृत्ति
सिरिनिलय क्षेत्रसमास
वृत्ति लघुवृत्ति अवचूरि
१२२ १२२ १२२ १२२ १२२
कौमुदी नाटक ,
क्षपकशिक्षा प्रकरण
सिरिवीरजिणं क्षेत्रसमास
१२२
क्षमणसूत्र मूळ
___ अवचूरि
खरतरमतनिरूपणशास्त्र निधि ...
क्षमर्षि प्रबंध (सं.)
खरस्वर विचार
॥
क्षान्तिकुलक
२५१
क्षामणाकुलक
खापरिया कथा, खंडनमंडन खंडप्रशनि वृत्ति
८१
क्षुल्लक भवावलि प्रकरण
" अवचूरि
"
वृत्ति
___ ,
वृत्ति (त्रीजी) ...
१२०
खेलवाडी .
३१४
१२० १२० १२०
क्षेत्रसमास
नमिउणक्षेत्रसमास... वृत्ति वृत्ति नमिउण सजल क्षेत्र समास वृत्ति वृत्ति वृत्ति
वृत्ति नमित्तवीर क्षेत्रसमास
१२०
गगनधूलिका कथा गच्छसामाचारी गुच्छाचार
.
६२
%
०
१२०
अवचूरि
Mer''
4
१२.
वृत्ति
१२०
Page #408
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
गणधर दूतशतक
गाथा सहस्त्री
१२९
गणधरवाद
गांगेयप्रकरण
__,
अवचुरि
९
गणधरसार्धशतक
वृत्ति
गांधारकथा
"
लघुकृत्ति
गिरनारकल्प
गणधर स्तवन
गुजराती संस्कृत कोश
गणरत्न महोदधि
वृत्ति
गुणमालाप्रकरण
१७७ १७७
"
वृत्ति
गणिततिलकवृत्ति
गुणरत्नाकरकाव्य
गंडस्य कहा (प्रा.)
..:..
गुणवर्मचरित्र
गंडूराय कथा
गुणस्थानक्रमारोह
वृत्ति
गणितविद्या मूळ
१३२
गुणस्थानक विवरण
गाथाकोश गाथाकोश (बीजो)
उद्धार
:::..:
३४० ३४०
गुणसुंदरी चरित्र
गुर्जरब्राह्मणकया
गाभारस्नकोश
:
गुरुगुणरत्नाकरकाव्य
१४-३२९
गाधारत्नाकर
:
३१७.-.३४०
१४०
गाधालक्षण (प्रा.)
:
१४०
:
गुरुगुणषत्रिंशिका __, वृत्ति गुरुगुणपत्रिंशिकाकुलक
, दीपिका
गाथाविचार
:
२९
गाथा सप्तशती
....
३४०
::
वृत्ति
गुरुगुणसत्तरी
....
१४
वृत्ति
::::
KUNWAN
गुरुतत्वप्रदीप
:
वृत्ति
Page #409
--------------------------------------------------------------------------
________________
अक्षरानुक्रमवार प्रथोना नाम.
गुरुतत्मनिर्णय
""
""
गुरुतत्व व्यवस्था
गुरुतत्वसिद्धि
गुरूपारतंत्र्यस्तव वृत्ति
"
गुरुपादुकास्तोत्र
गुरुयमककाव्याष्टक (सं.)
गुरुस्तुति
गुर्वाराधना कुलक
गुर्वावलीकुलक
गुर्वावलीविशुद्धि
39
वृति
वृति ( ज्ञानबिंदु )...
गुर्वावली गुर्वावली (बीजी )
वृत्ति
गोडीपार्श्वस्तोत्र
गोत्रोद्धार (शतार्थवृति)
गौतम कुलक लघुवृत्ति
33
गीतमपृच्छा
वृति
गौतमभाषित
गौतमस्तोत्र
!
-
464
543
***
JAB
अनुक्रमणिका.
पृष्ठांक.
१०३
१०३
१०३
१७७
१७७
१७७
१७७
२७६
२७६
२१४
२०६
१९८
२१४
૨૧૪
२१४
२१४
१०३-१७३
३४३
१९८
१७७
१७७
१७७
२७६
*****
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
गौतमीयमंत्र
गृहस्थधर्म प्रतिपत्तfकुलक
( बीजुं )
१३
ग्रंथसारसमुच्चय
प्रहदीपिका
प्रहरत्नाकरकोष्टक
घटखर्परवृत्ति
घंटाकर्णकल्प
चतुर्गतिस्वरूप कुलक
चतुर्मासपर्वकथा
चतुसंग्रह
चतुर्विधधर्मविषये कथा
चतुर्विंशति जिनचरित्र
चतुर्विंशति जिनस्तवन
(प्रा.)
"
घ.
चतुर्विंशतिस्तुति
अवचूरि
चतुर्विंशति जिनस्तुति अवचूरि
33
33
चतुर्विंशति जिनस्तुति वृत्ति
22
400
:
:
:
est
::
:::
T
२१
पृष्ठांक
३६६
१९८
१२९
३५१
३५.१
३३४
३६४
१९८
२६४
३२५
२५१
२४६
२७६ २७६
२९७७ २७७
२५७
२.७७
55:
÷७५
Page #410
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.'
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्टांक.
२७७
चंद्रवृत काव्य
चतुर्विशति जिनस्तुति
,, अक्चूरि चतुर्विंशति जिनस्तुति
___ अवचूरि
२७७
::
चंद्रप्रज्ञप्ति मूळ
" वृत्ति चंद्रप्रभस्वामी चरित्र (प्रा.) ...:
वृत्ति ... चरित्र (प्रा.) ....
...
(सं. प्रा.) (सं.)
२३९ २३९
२७८
(विषमपद वृत्ति ... चंद्रर गुचविवरण
:
चंद्रलेखा कथा
::
७८
चतुर्विशति स्तुति
वृत्ति
अवचूरि चतुर्विशति जिनस्तोत्र चतुर्विंशति जिनस्तोत्र
" अवचूरि चतुर्विशति जिनस्तोत्र
" (गुप्तक्रिय) चतुविशति जिनस्तोत्र वृत्ति ... चतुर्विशतिजिन स्तोत्र .... २८
... चतुर्विंशतिका स्तोत्र .... २७८ चतुर्विंशतिकाजिनपूर्वभव संख्या. यतुर्विशतिका पूर्वभवोत्कीर्तन
संबद्ध स्तवन
२७८
चंद्रलेखाविजय नाटक
:
३३६
२७८
चंद्रलेखाचिजयप्रकरण
चंद्रवेध्यक मूळ
चंद्रोदयकथा
:
चंपकमालाकथा
:
२५२
चंपकमालादि कथा षटक
:
चतुर्विंशति प्रबंध
१५२
चतुरंगी भावनासंधि
१७७
चंपकष्टिकथा
(वीजी)
"
वाजा )
"
(नीजी)
२
चतुः शरण मूळ
वृत्ति , अवचूरि
चर्चरी
,
वृत्ति
::
चतुःषष्टियोगिनी स्तुति
२७८ । वपूर्णन (द्रौपदीकथामय) ...
३२९
Page #411
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अराक्षनुक्रमवार ग्रंथोना नाम.: पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.....
चरणकरणमूलोत्तरगुण (प्रा.).... चर्चाग्रंथ
चिन्हचतुर्विंशतिका चेलप्रतिष्टाप्रकरण चैत्यप्रतिकृतिस्तव ( साव.) ... चोवीस प्रबंध निबंधनकुलक ...
चत्तारिअदसगाधा विवरण
चार्चिक
चातुर्मासी थ्याख्यान चातुरी सूत्र बामरसेन वरसेन कथा
छंदः कोष (प्रा.) ___ , ( वृत्ति ) छंदरूपक
चामरहारिकथा
: :: :::
३१७
चारित्रमनोरथमाला
छंदशूडामणि टीका
चारित्रसार
छंदःशेखर
चारुचर्याशतक
छंदोनुशासन
, वृत्ति , पर्याय
३१७
चिकित्सोत्सव
चिंताकुलक
छंदोरत्नावली
चिंतामणि
छींक विचार
चिंतामण्यष्टक
:: ::
छोतीकुलक
चित्तसमाधि प्रकरण
ज.
चित्रोडमहावीर विहारप्रशस्ति ... चित्रवर्णसंग्रह
२१४
चित्रबद्ध पार्श्वस्तोत्र
जगडु प्रबंध जनेनयेन स्तुति
, वृत्ति २७८ , जंबूद्वीप जीवागणितपद
२७८
चित्रस्तोत्र __,
वृत्ति
...
१३७
Page #412
--------------------------------------------------------------------------
________________
२४
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार प्रयोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार प्रंथोना नाम..
पृष्ठांक.
जंबूद्वीपप्राप्ति मूळ
जयंतीप्रश्नोत्तर संग्रह __ , वृत्ति जयपाइपयाव स्तोत्र
१७८
२७५
जयपाहुप्रश्नभ्याकरण
जयविजय कथा
जयसिंहप्रबंध (गद्य)
२१४
अयसुंदरी कथा
जंबूद्वीपसंग्रहणी जंबूपयन्नु जंबूस्वामी कथा जंबूस्वामी चरित्र
, (बीजु) (प्रा.)..
जयानंदचरित्र ___" (बीजूं) गद्यबद्ध ......
जातकपद्धती
जातकदीपिका
"
टिप्पन
»
वृति
जन्मकुंडलीविचार
जन्मपत्री पद्धति
जन्मपत्री विचार
". MmmmmmMan
११ ११MM
जातकाभिमान जिमकल्याणिकस्तोत्र जिनचंद्रचतुःसप्ततिका जिनचंद्रसूरिकृतसामाचारी
जिनदत्त कथा
जिनदत्तकथा समुच्चय
२५२
जन्मांमोधि
" वृत्ति जंबूस्वामी चरित्र
" (४ थी.९सुधी)... जयतिहुयणस्तोत्र " वृत्ति जयदेव छंदः शास्त्र वृत्ति
" टिप्पन
जिनदसाख्यान
जिनदत्तीय विद्या
३१८
जिनपतिस्तोत्र
३७९
जयंतकाव्य
जिनप्रभ प्रबंध
१५४
Page #413
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
भक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक,
जिनसहस्रनामस्तोत्र
वृत्ति
२७९
जिनप्रवचनरहस्य कोश जिनभवस्तोत्र
" अवचूरि
...
१३२
१३२
जिनराजस्तवन (प्रा.) जिनवल्लभसूरिकृत प्रतिक्रमण
सामाचारी
जिनेश्वरसहस्त्रनामस्तोत्र
, वृत्ति जिनेश्वरस्तोत्र जीतकल्पमूळ
वृत्ति विवरण भाष्य सार चूर्णि
टिप्पनक (विषमपदव्याख्या )
जिनविज्ञप्ति
जिनशतक
जिनशतक
पंजिका
जीतसारसमुच्चय
१४९
जिनसत्तालंकार
जीरावलीस्तव
जिनसहस्रनामस्तोत्र
जीरावलीस्तवन
२८०
२८.
जीरावल्लीस्तोत्र
" अवचूरि
जिनसंहिता जिनसूरिकृतसाधुसामाचारी जिनस्तुति (सं.)
जीव कुलक
१९८
-
जीवदयाप्रकरण
१७८
-
-
i
जीवभेदद्वात्रिंशिका जीवविचार
-
१२२
जिनस्तोत्र
"
वृत्ति वृत्ति
१२२
" अवचूरि जिनस्तोत्र विधि
१२३
१२३
जिनेंद्रविज्ञप्ति कुलक
अनु.४
। जीवविचार
१२३
Page #414
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार प्रधोना नाम..
पृष्ठांक.
जीवसमास
"
वृत्ति
...
जैनन्याय जैनमेघदूत
१२३
१२३
१२३
"
वृत्ति
जीवविभाक्ति
जैनी व्याकरण
२९७
जीवसंबोध
जैनेंद्र व्याकरण
२९७
जीवसंख्या कुलक
जीवस्थापनाकुलक
जीवाजीव विचार विवरण
जीवानुशासन
जीवानुशिष्टि कुलक
ज्वालामालिनी विद्या ज्योतिष्करंडक
" वृत्ति( ससूत्र ) ज्योतिष ज्योतिष्चक्र विचार (प्रा. ज्योतिष्फलदर्पण ज्योष्सारसंग्रह ज्ञातधर्मकथामूळ
वृत्ति ज्ञानचंद्रोदयनाटक
३५३
जीवाभिगममूळ __. चूर्णि " वृत्ति
लघुवृत्ति जीवास्तित्ववाद जीवोपदेशकुलक जीवोपदेश पंचाशिका जीवोपालंभ प्रकरण जैनकुमारसंभव
" वृत्ति जैनधर्मवरस्तोत्र ,, वृत्ति
ज्ञानचतुर्विशतिका
ज्ञानतरंगिणी
११०
१७८
ज्ञानतरंगिणी प्रकरण
ज्ञानदीपिका
ज्ञानदीपिका
Page #415
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
तपासामाचारी
तपोटमतकुटन
-
ज्ञानपंचमी कथा
, (सं.) (बीजी) ...
" , (त्रीजी).... ज्ञानपंचाशिका
तपोयोगविधि टीका
तमोवाद
ज्ञानप्रकाश
तरंगलोला
ज्ञानप्रदीप
तत्त्वबिंदु
ज्ञानमंजरी
तत्वबिंदु प्रकरण
वानसार
तत्त्वविचार प्रकरण
वृत्ति
तरवावनिश्चय
झानसूर्योदय नाटक
तत्वविवेक
ज्ञानकोश
तत्त्वसार गाथा
ज्ञानार्णव
तत्वानुशासन
জানা
तत्त्वामृत
ज्ञानादित्य प्रकरण
७८
तत्त्वार्थसूत्र
ज्ञानांकुश
A
भाष्य
" "
वृत्ति वृत्ति
झांझण प्रबंध
....
२१५
लघुवृत्ति
तदुलवैचारिक मूळ
, वृत्ति
तत्त्वार्थनी टीकाओ
, गंधहस्तिमहाभाष्य ...! , टीका (पहेली) ...
Page #416
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार प्रयोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार प्रथोना नाम.
पृष्ठांक.
तर्कफकिका
तर्कभाषा
९०
१०४
तर्कभाषावार्तिक
तर्करहस्य दीपिका
तर्कशास्त्र
टीका ( बीजी) ,, टीका (त्रीजी) ...
टीका ( चोथी) टीका ( पांचमी) टीका (छठी)
टीका ( सातमी) , टीका ( आठमी)
टीका ( नवमी)
टीका ( दशमी) , ( अग्यास्मी) ,, (बारमी)
राजवार्तिक राजवार्तिकालंकार तत्त्वानुशासन तत्त्वदीपक तत्त्वसार
तत्त्वसार टीका " , दीपिका " तत्त्वार्थसार
___ , दीपिका " तत्वार्थालंकार , श्लोफवातिकोतकारिका ! , स्फोटक वृत्ति तत्त्वार्थबोधप्रकरण तर्कदीपिका
तर्कवाद तर्कामृत ताजिकसार वृत्ति तिजयपहुत्त
, वृत्ति तिथ्यादिसारिणी तिथिप्रकीर्णक
२८०
२८०
तिरिनरयसूत्र
१३७
३३०
३३०
शत्त
तिलकमंजरी ___, टिप्पनक ___ , सारोद्धार तिलकाचार्यकृतपुनमिया
सामाचारी तृतीयज्वराष्टक त्रिभुवनसिंह चरित्र
" (बीजु)
२२४
तर्कपरीक्षा
Page #417
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठीक.
अक्षरानुक्रमवार अंथोना नाम..
पृष्ठांक.
-
त्रिविक्रम शत
२०८
३३४
दमयंतीचंपूवृत्ति
, चंपवृत्ति
___, टिप्पन
२२४
दमयंतीप्रबंध (गद्य)
, (श्लोकबद्ध) दर्शनमाला दर्शनरत्नाकर दर्शनशुद्धिप्रकरण
१७९
त्रिषष्टिशलाका पंचाशिका .... त्रिषष्टिशलाकापुरूषचरित्र काव्य. त्रिषष्टिमहापुरुषगुणालंकार ... त्रिसूत्र्यालोक तीर्थकरस्थानप्रकरण तीर्थमालाप्रकरण तीर्थमालास्तोत्र(त्यादिसमुपाय)... तीर्थमाला स्तवन (प्रा.) .... तीर्थस्तव ( यमकवद्ध) तीर्थोद्गार अवेयगोष्टी
१११
वृत्ति
, वृत्ति
, अवचूरि : दर्शन सत्तरी
, अवधुरि दर्शन सत्तरी दशकालिक मूळ
थावचापत्रकथा
चूर्णि वृहद्वृत्ति वृत्ति लघुवृत्ति
दंडक , पत्ति
अवचूरि महादंडक (अवचूरि)
अवचुरि अवचूरि
दमयंती चरित्र
,,(शब्दार्यत्ति....
Page #418
--------------------------------------------------------------------------
________________
अक्षरानुक्रमवार प्रथोना नाम.
दशवैकालिक नियुक्त्यवचूरि
वृत्ति दीपिका
33
दशाश्रुतस्कंध मूळ
18
33
१७
दशदृष्टांतगीता
दशश्रावक चरित्र
"J
नियुक्ति
चूर्णि
वृत्ति
दशश्रावकऋद्धिकुलक
दानोपदेशमाला
33
वृत्ति
दानचतुष्टय कथा
दानप्रकाश
दानप्रदीप
दानादि प्रकरण
दानमहिमा कुलक
दानविधिप्रकरण
दानशीलतपोभावना कुलक
दान शिका
23
(प्रा.)
""
वृत्ति
अवचूरि
Per
अनुक्रमणिका.
पृष्ठांक
३६
३६
१४
१४
१४
१४
१७९
२२४
२२४
१९९
૧૮૦
१८०
२५३
१८०
१८०
३४०
१९९
१४९
१९९
१४०
१४०
१४०
अक्षरानुक्रमवार प्रथोना नाम.
दानसत्तरी
दानादिकथा
दानादिकुलक चार
वृत्ति
>>
36
दानादिकुलक चार
"s
दिगंबरखंडन
""
37
दिनकृत्य कुलक
दीपालिका कल्प
""
**
"
"
32
33
F
वृत्ति
दुसमदंडिका
दीक्षा कुलक
दुर्गाशकुन
दुसमददिकाकरण
( बाजो )
( त्री जो )
(प्रा.) ( चोथो)
( प्रा. ) ( पांचमी )...
अवचूरि
( छत्रो
431
अवचूरि
:
दुसमव्यवच्छेद दंडिका
दुसमन्यवच्छेद दंडिका (बीजी)...
19.
पृष्ठांक
૧૪૨
२५३
१९९
१९९
१९९
१९९
१९९
१६१
१९९
२७०
२७०
२७०
२७०
२७०
२७०
२७०
१९९
३५५
१३३
१३३
१३३
१३३
१३३
Page #419
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार मंथोना नाम..... पृष्ठांक.
दुषमाकालश्रमणसंघ स्तोत्र ...
दृष्टांतमाला
१४६ । २५३
देवकुमारकथा
दृष्टांतरत्नाकर
(बीजी)
२०८
देवतत्वप्रकरण
२०८
दृष्टांतशतक
" (बीजुं) __" (श्रीजु)
, अवतरि
२०८
दृष्टिवाद
दृष्टिविधि
द्रव्यगुणपर्यायनिरूपण द्रव्यपर्यायस्वरूप
देवधर्मपरीक्षा देवर्द्धि कथा देवप्रभ मलधारीकृत सामाचारी... देववंदनकुलक देवकीचरित्र (प्रा.) देवगुप्तसूरिकृत श्रावक सामाचारी : देवागम स्तोत्र देवाः प्रभो स्तोत्र . , अवचूरि देवेंद्रनरकेंद्र प्रकरण
, टीका देवेंद्रस्तव
द्रव्यप्रकाश प्रकरण
द्रव्यसत्तरी
१४३
"
वृत्ति
१४३
द्रव्यानुयोगव्याख्या द्रव्यालंकारतर्क
द्रव्यावली ( निघटुं)
द्वयक्षरनाममाला
देवोत्पत्तिस्वरूप प्रकरण देवस्थितिस्तव
, वृत्ति
द्वयक्षरनेमिस्तव
९९
दृढप्रहारि कथा
द्वादशकुलक
वृत्ति
१९९
दृढप्रहारि चरित्र
द्वादशजल्प
दृष्टांतदूषण
द्वादशभाषजन्म प्रदीप
Page #420
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक,
द्वादशभावना
धनपालपंचाशिका
२८१
वृत्ति
२८१
द्वादशभावना कुलक
२८१
द्वादशभावनाविषये कथा
वृत्ति ( संक्षिप्त)... अवचूरि अवचूरि
२५३
२८१
द्वादशव्रत कथा
, (बीजी)
धनाकथा
२५३
द्वादशव्रत कुलक
धन्नाकाकदी कथा
धनाचरित्र
द्वादशांगीनामग्रंथमान कुलक द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका
धनुर्विद्या
३३२ ३३२
धनुर्वेद" वृत्ति
"
वृत्ति
धन्यशालिचरित्र
द्विजवदनचपेटा
धन्यचरित्र
२२५
द्विजवदनवज्रसूत्री
२८१
५
द्विवर्णरत्नमालिका
" वृत्ति द्विसंधान ( राघवपांडवीय ) ... द्विपसागरप्रहप्ति.
धरणारगेंद्र स्तव
" वृत्ति धर्मकल्पद्रुम धर्मशर्माभ्युदय
१८०
धम्मसुयप्रकरण
१२७
ध.
२००
धनंजयनाममाला धनदत्रिशति
धर्मकुलक धर्मदत्तकथा ___ , (गद्य)
(सं.)
२५३
धनदत्तकथा
२५३
धनपतिकथा
Page #421
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार प्रयोना नाम.
- पृष्टांक.
धर्मविधि
धर्मतत्व
, वृत्ति धर्मनाथ चरित्र
" (सं.) धर्मपरीक्षा
" शृत्ति धर्मपरीक्षा धर्मपरीक्षा कथा
, वृत्ति ___, वृत्ति धर्मविधि ( बीजी) धर्मविलास
१८१
धर्मावशेष
धर्माशेक्षा
१
धर्मपरीक्षा कथा
धर्मसंग्रह
धर्मबिंदु
" वृत्ति धर्मबिंदु __, वृत्ति धर्मभावना कुलक
धर्मसंग्रहणी
" वृत्ति धर्माख्यानक कोश (प्रा.) ... ___ , वृत्ति (प्रा.) ... भर्माचार्यबहुमान कुलक . .... धर्माधर्म कुलक धर्माभ्युदय काव्य धर्माभ्युदय नाटक धर्मामृत
, (बीजु)
:: :: :: :: :: :: ::...: :: :: :
२०६
धर्ममाहात्म्यकथा
धर्मरत्नकरंडक
धर्मरत्न
" वृत्ति धर्मरत्न लघुवृत्ति
१८१
धर्मलक्षण
धम्मिल कथा
Page #422
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना माम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम. | पृष्ठांक.
धातुरत्नाकर
३०७
धातुवाद प्रकरण
धीषणोपचारसार
ध्यानदीपिका
१११
ध्यानविचार
१११
ध्यानशतक
२०९
धम्मिलचरित्र ( श्लोकबद्ध) ...
" (सं.) धर्मोपदेश
" (बीजो)
" लघुवृत्ति धर्मोपदेश (बीजो)
, (चोथो) धर्मोपदेश कुलक
, (बीजूं) धर्मोपदेशमाला
... १८२ , वृति
..... १८२
"
वृत्ति
ध्यानसार
१४
धूर्तचरित्र कथा धूर्ताख्यान (प्रा.) धूमावलिका
००-१६९
"
वृत्ति
१४९
ध्वजधूम
३५१
धर्मोपदेशमाला ( बीजी)
धर्मोपदेशामृत
२५४
नंदयति कथा नंदितान्य
धर्मोपदेशामृत कुलक
३१८
धन्यसुंदरी कथा
धातुकल्प
नंदिसूत्र मूळ
धातुतरंगिणी
___,
चूर्णि
धातुमंजरी
, लघुवृत्ति
Page #423
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका
अराक्षनुकमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक
नयचक
नयप्रकाश
"
वृत्ति
नंदि बृहद्वृत्ति , लघुवृत्ति टिप्पनक
(विषमपदपर्याय) ,,सर्वसिद्धांतविषमपदपाय....
, अवरि नंदिस्तुतिव्याख्या नदिविधि (प्रा. पद्य)
नयचक्रवाळ
,
वृत्ति
नयप्रदीप
नयरहस्य
नंदोपाख्यान
१०४
नयवाद
नमस्कार दृष्टांत
२५४
नमस्कारद्वात्रिंशिका
नर्मदासुंदरी कथा ___, (बीजी)
, (त्रीजी) नयोपदेश
, टीका
२५४
नमस्कार स्व (प्रा.)
वृत्ति ... नमिनाथ चरित्र (प्रा.) .... ___" (सं.)
१०४
१०४
:: :: :: :: :: ::........
नरक्षेत्र विचार
नमिमुण
नरदेव कथा
"
नमिरसुरस्तव नमोस्तुवर्द्धमानाय स्तुति
नरनारायणानंद काव्य नरपतिजयचर्या
३४८
१२५
नयचक्र
१८३
"
गृत्ति
नरब्रह्मचरित्र नरभवदृष्टांतोपनम नरवर्मकथा नरवर्मचरित्र
२५४
नयचक
२२५
Page #424
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्टांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्टांक.
...
नरसंवादसुंदर नेरश्वरसूरिकृत सामाचारी
(२) नवतत्त्वविचार
, सारोद्धार
नलकथा
२५४
(३) नवतत्त्वगाथा
नलविलास नाटक
" "
भाष्य वृत्ति
...
१२५
नलायनमहाकाव्य
३३१
वृत्ति (४) बृहन्नवतत्त्व नवनंदचरित्र
नलोदय काव्य
नलोपाख्यान
नवपदप्रकरण
१८३
नवकार प्रकरण
"
वृत्ति
:::
नवकारफल कुलक
००
नवविधभावना
१८३
नवग्रहस्तोत्र
नागकुमारचरित्र
५
नवप्रवृत्ति
१
नागदत्तचरित्र
२२५
नवग्रहराशिविचार
नागराज शतक
नवतत्त्व कुलक
नागश्रीकथा
२५४
नवतत्वनाप्रयो
नागानंदनाटक
(१) नवतत्त्व
नागार्जुनविद्या
१३४
नाट्यदर्पणसूत्र नाडीसंचारज्ञान
:::::::
१२४
वृत्ति
१२४
नाथपुस्तिका -
विवरण
१२४
नानाकल्प
अवघूरि
नानाविचार संग्रह
Page #425
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिकाः
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक:
नाभाक कथा
निशीथ वृहद्भाध्य
नाभिनंदनोद्धार प्रबंध
भाष्य
नाभेयजिनस्तुति नामेयस्तोत्र नाभेयनेमि द्विसंधान
,, विंशोद्देशक वृत्ति
विशोद्देशक वृत्ति
र विशा"
नारचंद्र
, अवचूर्णि
टिप्पन
" भाष्य विवेक
नारदोक्तस्त्रिलक्षण
निःशेषसिद्धांतविचार
नालपरावर्तविधि
निश्रेयसाधिगम प्रकरण
नारीबोध
नीतिकल्पतरू
नास्तिकनिराकरण निगोदषट्त्रिंशिका
, वृत्ति निजतीर्थिककल्पितकुमत निरास. निधानादिपरीक्षाशास्त्र निरंजनपरमात्मत्रिंशतिका ... निर्भयभीम नाटक
नीतिवाक्यामृत नीतिसार नेमिगद्यावली नेमिचरित्रस्तोत्र (प्रा.)
नेमिशतक
नेमिशतक
नेमिस्तवन
निर्वाणकांड
नेमिस्तोत्र
निशाविराम कुलक
निशीथ मूल
नेभिदूत
Page #426
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम..
पृष्टांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
नेमिनिर्वाण नेमिनाथ चरित्र (प्रा.) ....
(प्रा.) (प्रा.) (प्रा.) (सं.)
न्यायबिंदु न्यायविनिश्चयालंकार न्यायसदर्थसंग्रह न्यायसार वृत्ति
न्यायामृत
न्यायामृत तरंगिणी
न्यायालोक
(सं.)
३
न्यायालंकार टिप्पन
न्यायावतार
नामचरित्र महाकाव्य
टिप्पनक
वृत्ति
नौयोगादि
,
वृत्ति
न्यायकुमुदचंद्र न्यायकुमुद चंद्रोदय
टिपन
न्यायाटाध्यायी
न्यायखंडखाब
...
७५--१०५
न्यायतत्त्व
पंचकल्प मूळ
न्यायदीपिका
भाष्य
न्यायधर्मोपदेश
न्यायप्रवेशक सूत्र
वृत्ति
, चूर्णि पंचजिनस्तव (षदभाषा) पंचत्रिंशदतिशय स्तव पंचदर्शनखंडन
टिप्पन
पंजिका
Page #427
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुकमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
माक्षरानुक्रमवार अंथोना नाम. ।
पृष्ठांक
१८३
पंचनमस्कारफल पंचनियविचार पंचनिधी प्रकरण
पंचविमर्श पंचसप्तत्यधिकार पंचाख्यान ( सारोद्धार) पंचांगतत्त्व
...
२५५
,
अवचूरि
पंचपरमेष्टिस्तव
पंचांगतिथिविवरण
३४८
पंचांगदीपिका
" वृत्ति पंचपरमेष्टिस्तव
पंचाचार कुरुक
२
पंचाशक
१००
" वृत्ति पंचपरमेष्टिस्तोत्र
वृत्ति
पंचपरमेष्टि विवरण
प्र. पंचाशकधूर्णि .... पंचास्तिप्रबोध संबध पंचोपांगमूळ
, वृत्ति
पंचप्रमाणिपंचाशिका
पंचलिंगीप्रकरण
वृत्ति
प्रज्ञापना
लघुवृत्ति
,
वृत्ति
___ ,
टिप्पन
लधुवृत्ति
पंचवर्गपरिहार नाममाला
पंचवस्तुक
तृतीयपदसंग्रहणी .... , अवचूरि पठितसिद्धसारस्वतस्तोत्र
"
वृत्ति
पंचवर्गसंग्रह नाममाला
पंडितमृत्यु कुलक
Page #428
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम. | पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठाक.
पावली
२१५
पद्मावत्यष्टक
२८३
AAJ
... ....
२१५ २१५
पावली सारोद्धार
पत्रपरीक्षा
पद्मावती सहस्रनाम पदार्थस्थापनाप्रकरणसंग्रह पर्यंताराधना पर्युषणस्थिति पर्युषणशतक प्रकरण
,
वृत्ति
पदव्यवस्था (कारिका)
, वृत्ति মৗহঃ पद्मचरित्र (प्रा.)
,, (सं.) पद्मनंदिपंचविंशतिका
पर्युषणाअठ्ठाइझ्याख्या (गद्य)... पर्युषणाकल्प
नियुक्ति
पद्मप्रभस्वामि चरित्र
निरुक्त
पद्मलोचना कथा
टिप्पन
पद्मश्री कथा
संदेहविषौषधि
पद्मानंदशतक
,, कल्पकिरणावली
पद्मावतीकल्प
कल्पसुबोधिका
पद्मावतीचतुष्पदी
कल्पकल्पलता
पद्मानंदकाव्य
कल्पमंजरी
"
वृत्ति
...
३३१
कल्पप्रदीपिका
पद्मावती चरित्र
, कल्पद्रुकलिका पर्युषणाकल्पदीपिका
पद्मावतीस्तोत्र
Page #429
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
पर्युषणा कल्पलधुटीका
" अवरिरूपवृति " अवचूरिलेश
अवरि कल्पांतर्वाच्य
परमात्मप्रकाश (दूहा) ... परमानंद स्तोत्र परमानंदपंचविंशतिका परमेष्टिस्तव (प्रा.) परहेतुतमोभास्कर स्थल परिणामिवस्तुव्यवस्थापना परिप्रहपरिमाण
, (बाजु) ... परिप्रहपरिभोगपरिहार कुलक .... परीक्षामुख
, वृत्ति (प्रमेवरत्नमाला) पपंजिका पर्वरत्नावली
पर्युषणा कल्पसमर्थन
, कल्पचर्चा पर्यंताराधना कुलक पर्यताराबना कुलक पर्यताराधना पर्यतोपदेश
पर्वविचार
परब्रह्मोत्था पन स्थल
पर्वविज्ञप्ति पातक
पल्ली विचार
परमसुख हात्रिंशिका परमसुख द्वात्रिंशिका
यल्लीसरटशान्ति पल्योपमोपवासविधि
::::::
, टीका परमाणुविचार षट्त्रिंशिका
पाक्षिकसूत्र मूळ
___,
थप्ति
"
वृत्ति
६ अनु.
Page #430
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम..
पृष्ठांक.
पार्श्वनाथचरित्र (सं.)
पाक्षिकसूत्र अवचूरि ...
, चूर्णि
, विषमपदपर्यायमंजरी ... पाणिनीय द्वयाश्रयकाव्य पादगणसंग्रहगणविवेक
पार्श्वस्तोत्र
२८३
.
२८३
पायलब्धि
पार्श्वनाथाष्टक
८
पायलच्छीनाममाला
पारसीनाममाला
, वृत्ति पार्श्वनाथ स्तोत्र पार्श्वनाथादि स्तोत्र
२८३
२८३
पार्श्वनाथावली
२८४
पार्श्वभक्तप्रसादप्रशस्ति
२८४
पार्श्वचरित्रसंबद्धदशदृष्टांत कथा... पार्श्वस्तव
" वृत्ति पार्श्वस्तवन (सटीक) पार्श्वस्तवन पार्श्वनाथचरित्र (प्रा.)
पासाकेवलि
१००
(सं.)
पांचसूत्र
, वृत्ति पांडवचरित्र (सं.)
, वीजु (गद्य) ... ., उद्धार पातंजलकैवल्यपादपत्ति पिंगल सारोद्धार
२२६
...
३१८
(गयबद्ध ) (सं.)
पिंडनियुक्ति मूळ
४०
Page #431
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार अंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम,
पृष्ठांक
पिंडनियुक्ति वृत्ति
पुण्यवतीकथा
लधुवृत्ति
पुण्यसार कथा
यहवत्ति
अवचूरि
पिंडविशुद्धि
"
वृत्ति
लघुवृत्ति दीपिका (लघुगृत्तिरूपा). अवचूरि ...
वृत्ति (दीपिका) ....
पुद्रलपरावर्तविचार स्तव ... पुद्गलपरावर्तगाथाविचार पुद्गलपरावर्तस्तव ( साव.) ... पुद्गलपरावर्तस्वरूप प्रकरण
, अवचूरि पुद्गलभंगप्रकरण
, अवचूरि पुद्गलषट्त्रिंशिका __, वृत्ति पुन्नडकथा पुराणहुंडि पुरुषार्थसिद्धयुपाय पुरुषार्थसिद्धयुपाय टीका पुण्यकुलक ( सटीक)
पंजिका
पिपीलिकाज्ञान (प्रा.)
पुंडरीक चरित्र पुंडरीकस्तव
,
वीजु (प्रा.)
पुरधधन कथा
पुण्यपाप कथा
पुण्यपाप कुलक
पुष्पमाला
पुण्यलाभ कुलक
पुष्पमाला वृत्ति
Page #432
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार अंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार अंथोना नाम.
पृष्ठाका
पुष्पमाला वृत्ति
लमुवृत्ति
पौषध वृति प्रक्रांतालंकार वृत्ति प्रणम्य स्तोत्र (प्रा.)
....
३१६
,
अवचूरि
पुस्तकेंद्रग्रंथ
प्रणिधान कुलक
२०१
प्रतापकल्पद्रुम
पूजाष्टक कथा (प्रा.)
" (सं.) पूजादिदशाष्टक
प्रतिक्रमण क्रमविधि
..... ३२-१५
प्रतिलेखना कुलक
पूजाप्रकरण
" (बौर्जु) प्रतिलेखना प्रकरण
पूजाप्रक्रम
प्रतिष्ठा कल्प (१ यी १० सुधी). १५०-१५
प्रतिमास्थापन न्याय
पूजापंचाशिका ( सावचूरि) पूजाविधि पूर्णिमागच्छीयविचार पूर्वपुरुषप्रबंध (गया) पौषदशमी कथा पौषधप्रकरण
प्रतिमाहुडि प्रत्याख्यान चूर्णि
प्रत्याख्यान विचारणा
प्रत्याख्यान विचारणामृत
"
वृत्ति
प्रत्याख्यान स्वरूप
-
-
,
वृत्ति
पौषधविधि पौषधनिधि प्रकरण
प्रत्यक्षानुमानाधिक प्रमाण
"
वृत्ति
निराकरण
पौषध षट्त्रिंशिका
प्रत्याख्यान स्थानविधि (सटीक)
Page #433
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुकमवार अंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
प्रभावक युत्ति
२८४
प्रत्याख्यानादि स्वरूप कुलक .... २०१ । प्रत्याख्यान विवरण प्रत्येकबुद्ध कथा (प्रा.)
प्रमातस्मरणकुलक
प्रद्युम्नचरित्र
प्रत्येक मुद्ध चतुष्टय कथा प्रत्येक बुद्ध चरित्र (प्रा.) .... प्रदेशि चरित्र (प्रा.) प्रबंधकोश
बी® , (प्रा.) श्रीशं , (सं.) थोडं , पांच
प्रमाणाग्रंथ
प्रबंधचिंतामणि
प्रमाण' दीपिका
प्रबंधपंचक
प्रमाण नौका
प्रमाण निर्णय
प्रबंधरोहिणेय प्रबोधचिंतामणि प्रबोधचंद्रोदयवृत्ति
" वृत्ति (बीसी)
प्रमादपरिहार कुलक
प्रमादस्थान प्रकरण
प्रमोषसार
प्रमाणपरीक्षा
प्रभावतीकपा
प्रमाणप्रमेयकलिका
प्रभावतीचरित्र
___ ,
वृत्ति
प्रभावक चरित्र
प्रभातिक स्तुति
प्रमाणप्रमेय न्याय
प्रभावक स्तोत्र
प्रमाणमीमांसा
Page #434
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
MUAR
अक्षरानुकमबार प्रयोमा नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
प्रमाणमीमांसा वृत्ति
प्रवचनसंदोह
प्रमालक्ष्यालक्षण
, वृत्ति प्रश्नचिंतामाणि .
प्रमाणविलास
प्रभागांतःस्तव
:
प्रश्नप्रकाश
प्रमाणसार
:
प्रश्नव्याकरण मूळ
प्रमाणसुंदर
,
वृत्ति
:
प्रमाणसंग्रह
:
वृत्ति (बीजी) प्रश्नव्याकरण वृत्ति
प्रमितवाद
:
:
प्रश्नशत
प्रमेयकमलमार्ते प्रमेयरत्नकोश
:
प्रवचनमाता प्रकरण.
प्रश्नषष्टिशतक प्रश्नोत्तरपंचाशिका प्रश्नोत्तररत्नमाला
:
प्रवज्याविधान
:
"
वृत्ति
"
:
वृत्ति
:
प्रवचनविचार सार
:
, अवधूरि प्रश्नोत्तरसार्धशतक
प्रवचनसार प्रकरण
:
:
प्रश्नोत्तर सूत्र
..... १२५
प्रस्तावरत्नाकर
प्रवचनसारोद्धार प्रवचनसारोद्धार वृत्ति
, विषमपदपर्याय सधु प्रपननसारोदार
प्रस्ताविक श्लोक
प्राकृतवीरस्तुति
Page #435
--------------------------------------------------------------------------
________________
अक्षरानुक्रमवार प्रभोना नाम.
प्राकृत युक्ति
प्राकृतव्याकरण
#3
38
"3
प्रियंकरकथा
प्रेमलाभ व्याकरण
पृथ्वीचंद्रचरित्र ( प्रा. )
टिप्पनक
संकेत (विषमपदव्याख्या)
पृथ्वीचंद्र चरित्र
33
"
33
"3
चतुष्कव्याकरण
"
(aisi)
( त्रीजुं )
( चोथुं )
( पांचमुं )
(B)
पृथ्वीधर चरित्र
पृथ्वीराजविजय ( सटीक )
23
फलवर्द्धिपार्श्वस्तव
विज्ञापन
:
फतशाह प्रकाश
...
444
D
...
अनुक्रमणिका.
qgis.
३०७
३०७
३०७
२५६
२९७
२२७
२२७
२२७
२२६
२२७
२२७
२२७
२२७
२२७
२१५
२१५
२८४
२८४
३०८
-
अक्षरानुक्रमवार प्रथोना नाम.
ब.
बटुकभैरव स्तोत्र
बंधषट्त्रिंशिका
वृत्ति
बंधयत्रिभंगी प्रकरण
23
वृति
बंधोदय प्रकरण
23
"
बपट्टी स्तुति
$$
बलभद्रकथा
3:
बलिनरेंद्र कथा
बालबोध व्याकरण
"
""
23
"
अवचूरि
"2
33
वृति
...
sel
...
मूळ (अष्टाध्यायी)...
वृत्ति
:.
वृत्ति
चतुष्क टिप्पन
कृवृत्ति टिप्पन
आख्यातवृत्तिढिका
प्राकृत वृति
***
पृष्ठांक
१७
२८४
१४१
१४२
१३५
१३५
१३५
१३५
२८४
२८४
१५६
२५६
२९७
૨૨૦
२९७
२९७
૨૭
२९८
२९८
२९८
Page #436
--------------------------------------------------------------------------
________________
**
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
बालभारत
39
बालभारतीय स्तुति
बालशिक्षा व्याकरण
बालशिक्षा व्याकरण ( बीजं ) .
-3>
बाहुबलिचरित्र
बीजनिघंट
बुद्धिसागर
बुद्धिसागर व्याकरण
बोधप्रदीपिका
बोधषट्त्रिंशिका
बौद्धमतोत्पत्ति प्रकरण
बौद्धमीमांसा दलन
दत्ता कथा (प्रा.)
ब्रह्मदत्तादि कथा
भ.
भगवती मूळ
( चंपू )
( अंक बीजो )
22
ور
23
चूर्णि
0.1
इति
अवचूर्णि
DOR
मनुक्रमणिका.
पृष्ठांक.
३३२
३३२
२८५
२९८
२२८
३११
११२
२९८
१८५
१८५
२१६
१९३
२५६
२५६
अक्षरानुक्रमवार थोना नाम.
भगवती द्वि. शतक वृत्ति
लघुवृत्ति
बीजक
"
23
भट्टीकाव्य ठीका
भद्रबाहुसंहिता
भयहरस्तवन
भयहरस्तवन वृत्ति
भयहरस्तोत्र
33
भयहरस्तोत्र
"3
भरताष्टक
भरटकद्वात्रिंशिका कथा
भरतचरित्र
भरतनयादि कथा
भरतक्षेत्रीय जिनस्तुति
वृप्ति
वृत्ति
भवभावना
"
वृत्ति
भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति
वृत्ति
:
201
.........
TT
पृष्ठोक.
*
३३५
૨૪૮
२८५
२८५
२८५
२८५
૨૮૧
२८६
२८६
२५६
२२८
२५६
२८६
२२८
२५६
१८५
૧૮
Page #437
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार अंथोना नाम.
पृष्ठांक,
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृक्षांक
भवभावना भवचूरि
९८५ ।
२५१
भवस्वरूप कुलक
भवस्थितिस्तवन
भावशतक (बीजुं) ___, (त्रीजु)
, वृत्ति भावट्विंशिका
, अवचूरि
भवानीसहस्रनाम
भविष्यदत्ताख्यान
:
१४९
भावसागर
:
४८
भविष्योत्तरोदार
भावना
भव्यफुटुंब चरित्र
भावना कुलक
:
भध्यकुमुदचंद्रिका टीका
"
(बीजं)
२०१
भानुचंद्रकृत नाममाला
भावनाद्वात्रिंशिका
:
१८३
भारतशास्त्र
भावना प्रकरण
:
१८७
भारती १०८ नाम स्तवन
भावनावृत्त महाकाव्य
:
३३२
भाव छत्रीशी
भावना शतक
:
भायदेवसूरिकृत यतिसामाचारी....
भावनासंधि
:
"
वृत्ति
भावार्थ शतक
:
भावप्रकरण
भाषामंजरी
:
अवचूरि
"
वृत्ति
भावविशुद्धि कुलक
भाषारहस्य
:
भावशतक
टीका
:
-
" भुवनदीपक
भावशतक
:
३४८
Page #438
--------------------------------------------------------------------------
________________
५०
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
भुवनदीपक ढुंढिका
अवचूरि
वृत्ति
वृत्ति (बीजी )
"
"
भुवनभानु चरित्र ( गद्य )
भुवनसुंदरी चरित्र
भूपालचतुर्विंशतिका
भूयस्कारादिविचार
भक्तपरिज्ञा मूळ
भक्तामरछाया स्तवन
भक्तामरमाहात्म्य
भामरस्तोत्र
"
"
33
">
"
""
अवचूरि
""
"
वृत्ति
"
">
23
>>
23
33
"
( अभिनव ) भक्तामर
भर्तृहरिशतक श्रय
eas
***
...
...
...
www
अनुक्रमणिका
पृष्टांक.
३४८
३४८
३४८
૪૮
२२८
२२८
२८६
१३७
४४
४४
२८५
२६८
२८५
२८५
२८५
२८५
२८५
२८५
२८५
२८५
२८५
२८५
२०९
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
"
""
भद्रनंदिकुमार कथा
भद्रबाहु कथा
भोजप्रबंध
,, ( १ थी ५ )
वृति
( बीजी )
भोजव्याकरण
म.
मणि तथा ताजिक
मंगलकलश कथा
मंगल कुलक
मंग्वाचार्य कथा
मंगलमाला
मंगलवाद
मंगलादीश्वरस्तोत्र
मंडपीय संघप्रशस्ति
मंडल पद्धति
मंडलप्रकरण
""
:
मंत्रस्तवन
$3
वृत्ति
वृत्ति
...
D
पृष्ठांक.
२०१
२०९
२६८
२५६
२१६
२१६
२९८
३४९
२५६
२०२
२५७
२६८
१०७
२८६
२१७
३४९
१३५
१३५
२८६
... २८६.
Page #439
--------------------------------------------------------------------------
________________
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
मंत्रtrate
मंत्रीदासीकथा ( श्लोकबद्ध )
मंत्रमहोदधि
राजरहस्य
मंत्रशास्त्र
मत्स्योदर कथा
मदनरेखा कथा ( गद्य )
मदनावली कथा
मनःस्थिरिकरण विवरण
मनोदूत
मनोनिग्रहभावना कुलक
मनोनिग्रहभावना कुलक
मनोरथ नाममाला
मनोवेग कथा
मनोरमा चरित्र
मरणसमाधि
मलयसुंदरी कथा ( गद्य )
( बीजी )
""
मलयसुंदरी चरित्र (प्रा.)
( प्रा. )
""
मल्लिनाथ चरित्र
(SIT.)
0.0
DOT
ORS
.**
***
054
D.
...
ܐ
...
अनुक्रमणिका.
पृष्ठांक
२८६
२५७
३६७
३६७
३६६
२५६
२५६
२५६
११२
३३२
२०७
२०१
३११
२५७
२२९
६२
२५७
२५७
अक्षरानुक्रमवार प्रथोना नाम.
*૪૬
मल्लिनाथ चरित्र (प्रा.)
33
33
महादेवस्तोत्र
महादेवद्वात्रिंशिका
महादेवी उपराग
महादेवी टीका
महानरेंद्रकेवली चरित्र
महानिशीथ मूळ
महापुरुषचरित्र
38
(प्रा.)
( सं . )
महाप्रत्याख्यान मूळ
महावीर चरित्र
महावीरस्वामी चरित्र
(प्रा.)
33
>>
33
"
"
رد
(सं.)
13
"
33
"
अपभ्रंश
33
२२९ महावीर स्तोत्र
२२९
वृत्ति
"
...
***
Dur
***
***
५१
पृष्ठांक.
२४२
२४२
२४२
२८६
२८६
३५१
३५१
२१९
१६
२२९
२२९
२२९
४६
२८७
२४५
२४५
*
२४५
२४५
२४५
२८६
२८६
Page #440
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुकमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
महावीर स्तोत्र ( अपभ्रंश)... महावीरस्तुति
महीनस्तोत्र
मित्रचतुष्क कथा मित्रानंदामरदत्त कथा (प्रा.)... मिथ्यादुष्कृत कुलक मिथ्यात्वपरिहार कुलक मिथ्यात्वममनपर्चरी प्रकरण
"
अवचूरि
१३
महाशाल कथा
मिश्रलिंगकोश
मिश्रलिंगनिर्णय
३०७
महासती कुलक महायमझमयपार्श्व स्तवन महाविद्याविहंबना वृत्ति
टिप्पन महीपाल कथा
मुखपत्रिकाप्रतिलेखमाधिकार ...| मुक्तियुक्तियोगविधि
मुक्ताशुक्ति
महीपाल चरित्र
मुंजकथा
२५७
२०५
१२९
मुंजराजादि प्रबंध मुनिचंद्र गुरूस्तुति
" (प्रा.) मुनिपतिचरित्र. (प्रा.)
. (सं.) ... मुनिवंदन कुलक मुनिसुव्रतस्वामी चरित्र (प्रा.)...
मार्गतत्व प्रकरण मार्गपरिशुद्धि मार्गशुद्धि पूर्वाद्ध माघकान्यवृत्ति
" वृत्ति माघराजपद्धति .... ३५९ मातृका निघंट
३११ मातृकावलि (स.) ... ३५५ मानमुद्राभनन नाटक ...)
२२९
२४२
१४५
२४३
मुद्राविधि
Page #441
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमाणका.
अराक्षयुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्टांक.
मोक्षोपदेशपंचाशत् मौनएकादशीमाहात्म्य कथा(सं.)
१६४
मौक्तिक
०
मृगसुंदरी कथा
२५८
०
मृगावती कुलक
मुग्धमेधाकरालंकार मुष्टिव्याकरण
" वृत्ति
, (विषमपदविवरण) मूर्खशतक मूळविधान मूळदेवादिकथा (प्रा. सं.).... मूलदेवकथा मूळशुद्धि
" वृत्ति
५२
२३०
मृगध्वज चरित्र मृगापुत्र चरित्र
०
मृगापुत्रसंधि
मृगावति चरित्र
०
मृगांककुमार कथा
२५७
८
मेघदत्त
-
२
.
मृगांकादिकथासप्तक
८
वृत्ति बालाबबोध वृत्ति ...!
भाष्य
३३५ :
यक्षणिवैतालसाधन
अवचूरि
यंत्रचिंतामणि
भेघनाद कथा ( गद्य)
वृत्ति
मेघमाला मोटी
यंत्ररत्नावली
"
नानी
३५६
"
वृत्ति
यंत्रराज
भेस्त्रयोदशी कथा (गद्य) मोदकादि कथा
मंत्रराज वृत्ति
मोहनीयभंग प्रकरण
यंत्रराजरचना प्रकार
मोहपराजय नाटक
... ....
३३५ .
यंत्रराजागम
Page #442
--------------------------------------------------------------------------
________________
५४
अक्षरानुक्रमवार प्रथोना नाम.
यंत्रराजागम वृत्ति
यतिआहार षण्णवति
यतिजीतकल्प मूळ
वृत्ति
"
यतिदिनकृत्य
यतिदिनचर्या
29
"3
वृत्ति
यति प्रतिक्रमणविधि
,"
यतिप्रतिष्ठास्थापन स्थल
यति योगविधान
यतिलक्षणसमुच्चय
यतिशिक्षापंचाशिका
32
यात्रासत्तरी
यशोभद्रसूरिकृत चरित्रादि कथा.
यशोभद्रसूरिकृत स्तुति
यशोविजयवाचककृत सामाचारी,
वृत्ति
...
युगप्रधान चरित्र
युगप्रधान स्तोत्र ( साव. )
गादिदेवस्तुति
100
अनुक्रमणिका.
पृष्ठांक
३४९
१५१
५६
५६
१००
१५१
१५१
१५१
9 7
१५४
१०५
१८७
२५८
२८७
१४३
अक्षरानुक्रमवार प्रथोना नाम.
२८७
युगादिदेव स्तोत्र
""
गादिस्व
युक्तिचिंतामणि
युक्तिप्रकाश
युक्तिप्रबोध
33
23
युक्त्यनुशासन
वृत्ति (यंत्र मंत्रगर्भित )...
१५६
योगप्रदीप
१५६ | योगविंषु
"
१४३
૨૨
"
युष्मदस्मद्स्तव
युक्तिवाद
योगकल्पद्रुम
योगदृष्टि समुचय
"
33
23
वृत्ति
यदर्थमाला
वृत्ति
वृत्ति
अवचूरि
वृति
यवनपरिपाटयनुक्रम
मकस्तुति
.91
यत्ति
493
***
::
DP.
040
...
200
9.0
...
पृष्ठांक०
२८७
२८७
૩૮૦
९३
७८
७८
७८
९३
९३
૩૮
९२
११२
१०१
१०१ १०१
११२
१०१
१०१
૧૮૭
२७०
२८७
२८७
Page #443
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुकमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुनमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
योगशास्त्र वृत्ति
यवराजर्षि कथा यशस्तिलक ( चम्पू)
...
२३२
१८७
पंजिका
" अपरि ... __, (आंतचैत्यवंदनावृत्ति)....
, आंतश्लोक
१८७
यशोधर काव्य
२
यशोधरचरित्र
योगसंग्रहसार
११३
योगसार
११२
योगानुशासन
११३
योनिप्राभूत
...
योनिस्तव
रघुवंश वृत्ति
योगमुहूर्त योगरत्नमाला योगरत्नावली (लघु) योगचिंतामणि
३३५
, वृत्ति (बीजी) ... " वृत्ति (श्रीजी) ...
वृत्ति (चोथी) ... रघुविलाप नाटक
योगरलसमुख्य
२७
योगरत्नाकर
रघुशकुनावली
योगातक
रजर्व कथा
रत्नकोश .
८८
योगशतक
रत्नकोश
योगरत्नसमुषय
योगशाम
Page #444
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका
अक्षरानुकमवार अंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार थोना नाम.
पृष्ठांक
रत्नकोश व्याख्या
रंभामंजरी
रत्नमाला अनेकार्थ
रसमंजरी चरित्र
रत्नत्रय कुलक
रसचिंतामणि
रत्नदीपक
४९
रससार
रसाउलो रसालय
(प्रा.) (प्रा.)
रत्नप्रदीप
रत्नलक्षण
राक्षसकाव्यवृत्ति
रत्नधावक प्रबंध
राघवपांडवीय
रत्नसागर
रामवाभ्युदय नाटक(अंक१०)...
रत्नसंचय
राजतरंगिणी
२१७
रत्नचूड चरित्र
राजतरंगिणी
(वीजी) (त्रीजी) ...
२१७ २१७
२८८
संग्रह
२१७
राजनीति
(प्रा.)
रत्नाकर पंचविंशतिका
वृत्ति " वृत्ति ( वांजी) रत्नाकरावतारिका
टिप्पन
...
राजप्रश्नीय मूळ
___"
वृत्ति
राजमार्तड
७८
,
आद्यश्लोकशतार्थ
७८
राजहंस चरित्र
रत्नावली
राजावलि पताका
२१७
रत्नावली नाटिका
राजीमती नाटक
रत्नालिस्थ प्राकृतव्याख्या
३३७
राणपुर स्तवन (सं.) ...
२
Page #445
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
-
अक्षरानुक्रमवार प्रभोना नाम.
पृष्ठांक.
भक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक
रामचरित्र
लघुअजितशांति स्तव
(गद्य) ... (बीजु) ...
२३१ २३१
लघुस्तव
२८८
रामनाटक
लधुस्तव भाष्य
रायमल्लाभ्युदय
रामायण
रावण ऋद्धिस्वरूप
२८८
लधु रत्नत्रय __, टीका लघुस्तोत्र
, वृत्ति लघुत्रिषष्ठि चरित्र लघु पोषालिक पावली
२८८
रिष्टसमुच्चयशास्त्र रुद्रटालंकारवृत्ति
टिप्पन
१६८
२१७
रुतज्ञान
लघुशतपदी
रूपमंजरी
३१२
लघुशांति
रूपकमाला
२८९
" अवचूरि लब्धिस्तव ( साव)
रूपसेनचरित्र
३१
लताद्वय
::::::::::::::
ललितांग कथा
रोहिणी कथा
ललितांगनरेश्वरचरित्र
२३१
रोहिणी चरित्र
लक्षणसंग्रह
लिंगभेद नाममाला
...१०१-३४
लपशुद्धि लघु अजितशांति
____
वृत्ति
३१२
२८८ २८८
"
वृति
लिंगलिंगोविचार
२८८
लीलावती कथा
२५९
भन.
...
Page #446
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्टांक.
अक्षरानुक्रमघार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
लीलावतीसार कथा
वनमालानाटिका
३३८
लेखनप्रकार
वनस्पती सत्तरी
१४३
वरकाणापार्श्व विज्ञप्ति
२८९
२३१
लोकतत्त्वनिर्णय लोकांतिकस्तव लोकनालि द्वात्रिंशिका
, अवचारे लोकापवाद कथा (श्लोकबद्ध) .... लोकप्रकाश
१८७
१८८
१८८
३४३
लोकसंव्यवहार
वरदत्त चरित्र ( गद्य ) वरसेन कथा बर्द्धमानदेशना
, (बीजी)
, (श्रीजी) ... वर्णनसागर (प्रा.) वर्द्धमानविद्या कल्प वर्धमान षट्त्रिंशिका वर्द्धमान द्वात्रिंशिका ,, वृत्ति
. अवचूरि वसुदेवहिंड (प्र, खंड ) ...
(द्वि. खंड )...
वक्रमार्गी
वज्रचरित्र
२८९
वज्रस्वामी कथा
२८९
वज्रायुध कथा
२३२
वंकचूल कथा वंगचूलिया वत्कोक्ति पंचाशिका
वसुभूति कथा
...
वसुराजकथा (सं.) वमुराजादि प्रकीर्ण कथा
:
वंदनकुलक वृत्ति वंदनस्थान विवरण
५४
वसव्यवस्थापन स्थल
वंदितु सूत्र
वसंतराजशकुन वृत्ति
३
६
:
.
वंध्याकल्प
वमुधारा
३६७
Page #447
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार प्रथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुकमवार अंयोना नाम.
पृष्ठांक.
वस्तुकोश
वादिकौशिक मार्तड
वारिविचार
AN
वादिविजय
वाराहिसंहिता
यस्तुपाल काव्य वस्तुपाल चरित्र
" (बीजु) वस्तुपालतेजपाल प्रबंध (गद्य)....
" (श्लोकबद्ध) .. वस्तुपाल प्रबंध
" (बीजो)
___"
वृत्ति
३४९
वासवदत्ता
३३२
१८
,
वृत्ति
२१८
वस्तुपालप्रशस्ति
वासुपूज्य स्वामी चरित्र
, , (सं.) , , (सं.)
२४०
वाक्यप्रकार व्याख्या
२४०
वाक्यप्रकाश
वास्तुशास्त्र
»
वृत्ति
वासोंतिक प्रकरण
३३२
वाग्भटालंकार
" वृत्ति
३१२
३३२
विक्रमचरित्र
M (बीजं)
, (त्री) विक्रमनृप कथा विक्रमपंचदंड प्रबंध विक्रम प्रबंध विक्रमादित्य चरित्र विक्रमादित्यप्रबंध
३१२
२१८
अवचूरि
वागविलास वादमंजरी वादरत्नाकर
विक्रमांकाभ्युदय
Page #448
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
-
-
--
अक्षरानुक्रमवार प्रयोना नाम.
|
पृष्टांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
विचार कुलक
२३३
विचारपंचाशिका ( साव.) ... विचारमंजरी प्रकरण
१३५
विजयचंद्रकेवलि चरित्र ...
, (बीजु) .. विजयचंद्रकवलि कथा (प्रा.)... विद्वद्गोष्टि विद्वद्जनालाप
विचाररत्नसंग्रह
१३०
विचाररत्नसागर
विचार रत्नाकर
विजययंत्रविधि
विचार रसायन प्रकरण
३३३
विजयप्रशस्तिकाव्य
, वृत्ति
अवचूरि
, विचारश्रेणि
१३५ १६३
विजाहल वृत्ति
:
३४१
.
:
विज्ञप्तिपत्री विज्ञानार्णव विद्यालय (प्रा.)
:
विचार शतक .
, (बीजु) विचार सत्तरी
" वृति , अवचुरि
३६२
र
वृत्ति उद्धार
विद्धशालभंजिका नाटक
विचारसार
विधवा कुलक
२०३
विचारसार प्रकरण
विधिप्रया
"
वृत्ति
१५१
विचारसार स्तवन
१०७
विचारसारसंग्रह
विधिवाद विनयधर चरित्र विनयभुजंगमयुरी
___
(बीजो)
Page #449
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार प्रयोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
विवेकमंजरी
,
वृत्ति
१८८
विनयसत्तरी विनेयहित शतक
, वृत्ति विप्रवकमुद्र विपाक मुळ
१८८
विवेकविलास
,
वृत्ति
" वृत्ति द्वादशांगी वृत्ति
विंशतिस्थान चरित्र विश्वकोश
विबुद्ध प्रकरण
विभक्तिविचार
विश्वतत्वप्रकाश विश्वलोचन कोश विश्वसेनकुमार कथा विशाललोचन
विमल चरित्र
विमलनाथ चरित्र
, (सं.) विमलनाथ चरित्र
, वृत्ति विषापहार स्तोत्र
विमलप्रासाद प्रबंध
विल्हण चरित्र
विशेषशतक
विल्हणपंचाशिका
विविधकया
,, (बीजु ) विशेषावश्यक सूत्र विषमकान्य वृत्ति
विषिषतीर्थकल्प
विविधरत्नाकर
विषयपंचाशिका
विविधस्तव
विषयविनिग्रह कुलक
Page #450
--------------------------------------------------------------------------
________________
६२
अक्षरानुक्रमवार थोना नाम.
विसंवाद शतक
विसंवाद शतक
विमान एकवीस ठाण
अवचूरि
विहरमान निनस्तोत्र (प्रा.)
विहार शतक
33
29
"
विज्ञसित्रिवेणी
वीतरागनमस्कार स्तव
"
वीतराग विज्ञप्ति
वीतराग शतक
33
वीतराग स्तुति
वीतराग स्तोत्र
"""
رو
در
""
वृत्ति
»
""
वृत्ति
पंजिका
अवचूरि
33
23
वृत्ति
33
...
::
500
... १६३
at
shi
अनुक्रमणिका,
r
पृष्ठांक.
२१०
१३८
१३८
२८९
२१०
२१०
२८९
२८९
२९०
१८८
२१२
२९०
२९०
२९०
२९०
२९०
२९०
२९०
२९०
२९०
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
वीरस्तव
अवचूरि
वीरचातुर्मासिक प्रकरण
वृत्ति
"2
वीरचरित्र कुलक
वीरचरित्र स्तव ( प्रा. )
वृति
वीरजिनादि स्तोत्र
वीरभद्र कथा ( श्लोकबद्ध )
वीरस्तव
28
वृत्ति
वीरस्तव (प्रा.)
वृत्ति
59
"
वीरस्तव मूळ
वीरस्तवन
नीर सिंहावलोकन
वीरस्तोत्र
वीरसेन कथा
वीरांगद कथा
बीसविहरमान स्तवन
वेदखंडन
ww
804
...
***
**
907
***
पृष्ठांक.
४६-१९०
२९१
૧૮૮
૧૮
२०३
२९०
२९०
२९०
२६०
२९१
२९१
२९१
२९१
२९१
१९१
३६०
२९१
२६०
२६०
२९१
शु
Page #451
--------------------------------------------------------------------------
________________
अक्षरानुक्रमवार प्रथोना नाम.
वेदबाह्यता निराकरण
"
वैद्यवल्लभ
बैद्य सार संग्रह
वैकसारोद्धार
वैश्रवण कथा
वैभारगिरि कल्प
वैराग्यकल्पलता
वैराग्य शतक
""
वैराग्य कुलक
वैराग्य कल्पलता
वैरुमा स्तोत्र
व्यवहार प्रकार
"
33
व्यवहार मूळ
23
"
वृत्ति
"
"
भाष्य
चूर्णि
वृत्ति
अवचूरि
( लघुवृत्ति )
:
330
:
C
अनुक्रमणिका.
पृष्ठांक
८५
१०१
३६०
३६०
३६०
२६०.
२७०
१८८
२१०
२१०
२०३
१०५
२९१
३४९
૧૪
१४
૧૪
१४
१४
Ex
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
व्यवहार लेख्यपद्धति
व्याख्यानकथनपद्धति
व्याख्यान विधि शतक
वृत्ति
33
वृक्षविनोद
बृहत्पौषालिक पहावली
टीका
वृहत्षट्दर्शनसमुच्चय
"
""
बृहत् पंचनमस्कार वृत्ति
वृहच्छांति
33
"3
73
वृत्ति
अवचूरि
वृंदावन टीका
श.
शकुनरत्नावली
शकुन विचार
...
200
Aww
97
100
...
P
:
::
शकुनशास्त्र
शकुनावकी
शंखकलावती कथा ( प्रा० ) .
...
६३
पुष्टांक.
३४४
३४४
२११
२११
३६५
२१८
९४
९४
९३
२९१
२९१
२९१
३३५
३५६
३५६
३५६
३५६
•
Page #452
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रममिका.
भक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुभमवार अंथोना नाम.
पृष्ठांक.
शंखेश्वर पार्श्वस्तव
शब्दरत्नाकर
शब्दरूपावली
३०८
कातसंवत्सरिका शतार्थी
शब्दसंख्या शब्दसंदोहसंग्रह
शब्दार्णव
शशांकसंकीर्तन
शाईनी कृति
३६१
शांतसुधारसभावना
वृत्ति
१८
" विवरण शधुंजयकल्प कथा शत्रुजय कल्प
" वृत्ति
, वृत्ति शश्रृंजयवैत्यपरिपाठी पाश्रृंजयमाहात्म्यस्तवन शर्बुजयादि त्रेसठ तीर्थकल्प .... शगुंजयमाहात्म्य
" (गय) • शत्रुजय षोडशोद्धार वर्णन शतपदी
शांतिकर
" अवचूरि शांतिनाथ चरित्र
(प्रा.)
ML
१४१
,
(सं)
२४१
মানবাহিতা
२४१
शतांकी
२४१
शब्दनिराकरण
"
(गद्य)
शन्दभूषण व्याकरण
२४१
सन्दभेद नाममाला
शांतिमती कथा
६०
शांतिपर्वविधि
१५४
Page #453
--------------------------------------------------------------------------
________________
अक्षरानुक्रमवार थोना नाम.
शांतिस्तोत्र
शांबचरित्र (सं.)
शामदेव वामदेव कथा
शारदा नाममाला
शारदा स्तव
शालिचरित्र ( ( सं . )
अवचूरि
शालिचरित्र (प्रा.)
शालिचरित्र
"
3)
"
शालिरित्र काव्य
शालिवाहन चरित्र
>>
"
>>
शालिहोत्र
शाश्वतजिमस्तव ( प्रा. )
अवचूरि
शाश्वतजिन स्तुति (प्रा.)
शाश्वतजिनबिंब संख्या स्तव
शास्त्रार्तासंग्रह
९ अनु.
39
...
:
:
१००
...
..
054
9.
:
अनुक्रमणिका.
पृष्ठांक
२९२
९३३
२६०
३१३
९९२
२३३
२३३
२३३
२३३
२३३
३३३
२१८
२९२
२९२
१४५
T
१२८
-
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
33
शास्त्रवार्तासमुच्चय
लघुवृत्ति
वृत्ति ( स्याद्वाद कल्पलता ) ७९ - १०१
"}
૨૩૨ शीलप्रकाश
३६२
शीलभावना
२९३
शास्त्रसार समुद्धार
शिवकुलक
शिवभद्र टीका
शिवालिखित
शिशुपालवध टीका
शीतलनाथ चरित्र
""
शीलकथा
शीलकुलक
शीलदृत काव्य
( सं . )
वृत्ति
शीलवती कथा (प्रा.)
"9
शीलसंधि
शीलोपदेशमाला
( सं . )
...l
...
980
945
***
:
:
पृष्ठांक
:
६५
७९ १० १
७९-१०१
१.३०
२०३
३३९
३५६
३३५
૨૪.
२४०
२६१
२०३
३३३
१८९
१८९
१८९
२६१
२६१
१८९
२६४
Page #454
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम. | पृष्टांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
-
-
-
-
-
-
२६८
शंगारवैराग्यतरंगिणी
__,
वृत्ति
शृंगारशतक
शीलोपदेशमाला वृत्ति ...
, वृत्ति (बीजी)...
, वृत्ति (त्रीजी ).... शीलोपदेशमाला कथा . .... शुकदेवसंवाद . ... शुकराज कथा ( गद्य ) ...
श्राद्धगुण विवरण
.
श्राद्धजीतकल्प मूळ
"
वृत्ति
.
शुकसंवाद कथा
,
अवरि
शुभलीमत
(लघु) श्राद्धजीतकल्प मूळ ...
, वृत्ति श्राद्धदिनकृत्य
१५२
..
१५२
..
..
शेषनाममाला शोकहर उपदेश कुलक शोभन स्तुति
" वृत्ति शोभनस्तुति वृत्ति , (बीजी)
(जिा)
१५२
..
, वृत्ति
, अवचरि भाद्धविधि
, वृत्ति धाविधिविनिश्चय
५५२
.
.
.
.
५५२
W
(चोथी)
धावक कुलक
श्रावक चरित्र
( पांचमी)
(छठी)
श्रावक दिनकृत्य कुलक
अवचूरि
..... २९३
श्रावधर्म कुलक
२०५
शृंगारमंडन
३१३ । श्रावकधर्मतंत्र
Page #455
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
.--.-...-
..
'.-
-
.----.. -
-
-
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रममार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक
श्रावकधर्मतंत्र वृत्ति
१०२
२३३ २३३
श्रावकधर्मविचार श्रावधर्माधिकार श्रावकधर्म प्रकरण
श्रीचंद्रकेवली चरित्र
, (प्रशस्ति) ... श्रीचंद्रसूरिकृत सुवोधसामाचारी... श्रीधर चरित्र
१५२-~~१८९
श्रीनेमिःपंचरुपादि स्तुति
:..
१९३
श्रावकप्रतिक्रमणविधि
श्रावकप्रतिमा प्रकरण
"
अवचूरि
श्रीपाल कथा (उद्धारप्राकृत )... श्रीपाल चरिन्न श्रीपालचरित्र टीका
धाक्कप्रबोध
धावप्रतिष्टानिषेध विचार ...
श्रीपाल चरित्र
धावकमगंकादिविचारगाथादि
वृत्ति
,,
(श्लोकबद्ध)
२३
श्रावकलक्षण सप्तदशक
२३४
श्रावकवर्षामिमह कुलक
गद्य
*
धावकविचार
२३४ .२३४
श्रावकविधि
श्रीपालनाटकगतरसवती वर्णन
"
वृत्ति
श्रीमतीकथा
श्रावकविधि
श्रावकसामाचारी
१७
२९३
श्रीमत्तीर्थकराणाम् स्तवन
, वृत्ति श्रीपार्थदशगणधर चरित्र श्रीषेणकुमारादिकथा
श्रीचंद्रकेवलि चरित्र
२३३
Page #456
--------------------------------------------------------------------------
________________
६८
अक्षरानुक्रमवार थोना नाम.
श्रुतबोधवृत्ति
""
3)
23
33
श्रुतविचार
श्रुतास्वादशिक्षा
श्रेणिककथा
श्रेणिक चरित्र
श्रेयः श्रियांस्तवन
श्रेयांसनाथ चरित्र
""
"
(गंध)
( प्रा. )
( सं . )
श्लोककल्प
श्वानरुतविश्वार
श्वानसत्तरी
श्वानशकुन विचार
श्वेताम्बरदर्शन सिद्धि
षट्पुरुष चरित्र
षट्कार्यस्थितिविचार
पदर्निश जल्पनिर्णय
÷
:
B
OP.
:
***
अनुक्रमणिका.
पृष्टांक.
३१८
३१८
૩૧૮
१३०
१९०
२६१
२३४
२९३
२४०
२४०
२४०
३६५
३५७
३५७
३५७
८२
२३५
१३१
१६४
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
षद्रव्य प्रकरण
पदस्थान प्रकरण
वृति
"
षटभाषागर्भित वीरस्तोत्र
षभूषण
षड्दर्शनदिमात्र विवर
षडदर्शनखंडन
दर्शनस्वरूप
षडदर्शनसमुचय
"
षडदर्शनसमुचय
33
"
वृत्ति
27
वृत्ति
ގ
अवचूरि
षड्दर्शनसमुच्चय
षडावश्यक विधि
षण्मतनाटक
षण्णवतिजिनस्तोत्र
षष्टिशतक
...
पृष्ठक
१३६
૧૨૮
१३८
२९३
३५२
८३
८६
८३
१०२
$ %
७९.
७९
७९
७९
७९
७९
१५४
८३
२९३
२१२
Page #457
--------------------------------------------------------------------------
________________
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पष्टिशतक
"
">
षष्टिसंवत्सरि
رو
षोडशक
3)
वृत्ति
अवचूरि
वृत्ति
>>
वृत्ति
स.
सकलान्
सगरचकि चरित्र
सचित्ताचित्तस्वरूप निर्णय
सप्तरीसयठाण प्रकरण
सत्सू ( सं . )
सत्तावीशभव स्तवन (प्रा.)
सदयवत्स कथा
सद्गुरुपद्धति
सद्भाषितावली
सद्वृत्त पंचाशिका
सनत्कुमार चरित्र ( प्रा. )
महाकाव्य
:
:
:
:
***
**1
***
अनुक्रमणिका.
पृष्ठांक.
१९.०
१९०
१९०
ᄒ
३५०
१०२
२३५
१६४
१३८
२९३
२९३
२६१
૨૧૮
३४१
१९०
२३५
२३५
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
संकाश कथा ( श्लोकबद्ध )
संक्षेपेण सर्वज्ञसिद्धि
संखेश्वर स्तोत्र
संगीत दीपक
संगीतसह पिंगल
संगीत मंडन
संगीतरत्नावली
संग्रहणीना ग्रंथो
जिनभद्रियवृहत् संग्रहणी
वृत्ति
वृत्ति
वृत्ति
प्रतिक्रमणसंग्रहणी
श्रीचंद्रीय संग्रहणी
33
"
"
अमचूर
संस्कृत संग्रहणी
हारिभद्रीजंबूद्वीप संग्रहणी
वृत्ति
"
वृत्ति
हारिभद्री लघु संग्रहणी
...
...
...
...
:
पृष्ठांक
२६१
८६
१०६
३६९
३१८
३१३
३६३
६९
१९५
१२५
१२५
१२५
१२६
१२६
१२६
१२३
१२६
१९६
१२६
१२६
Page #458
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमबार प्रथोना नाम..
पृष्ठांक.
संघकुलक
...
२०३
३४४
सभाशृंगार संयममंजरी
संघपत्रक
....
१६४
,
वृत्ति
"
वृत्ति
१९२
संवरद्वार प्रकरण
१३६
लघुवृत्ति
संवाद शतक
अवचूरि
संवादसुंदर
संजनाख्यान
संज्ञा कुलक
१९२
संदेह शतक
१९२
संवित्पटल संवेगचूडामणि संवेगद्रुमकरली संवेगरंगमाला संवेगामृतपद्धति
, (सं.)
संदेहमिषौषधि
२०७
२०७
संदेहसमुच्चय संदेहदोलावली
: :: :: :: :: :: :: :: :
__
संवेगमंजरी
वृत्ति अवचूरि
,
संवेगमाला
संबोध प्रकरण
संवेगरंगशाला
५९.२
संबोधरसायन पंचाशिका
संविलियम कुलक
संबोधससरी
संवेग शतक
"
वृत्ति
संशयीवदनविदारण संसक्तनियुक्ति
संबोष प्रकरण संभवनाथ चरित्र
, (सं.)
संस्तारक मूळ
Y
Page #459
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमाणिका.
अराक्षनुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्टांक.
संस्तारक अवचरि
समवसरण पंचाशिका
संसार कुलक
...
२०३
समारण स्तव
...
१४५
संसारभावना कुलक
समवसरण प्रकरण
संसारघोरस्वरूप कुलक
, संमतितर्क
अवचूरि
सप्तक्षेत्री
सप्तभंगी प्रकरण
सप्तभंगी तरंगिणी
सप्तनय विवरण
सप्तपदार्थी
समभाव शतक
समयमातृका
समरादित्य चरित्र
सप्तशती जिन स्तोत्र (प्रा.) .... सम्यक्त्वकौमुदी
" (बीजी) , (बीजी)
, (चोथी) समवसरण स्तोत्र
,
, टिप्पन
सम्मत्तगुण
समता कुलक
सम्यरक कुलक
समंतसामंतचक्रविधि
सम्यस्ककलिका
समस्तरत्नपरीक्षा
सम्यकपरीक्षा
समरांगण सूत्रधार समवायांग मूळ
सम्यत्त्क्रप्रकाश
सम्यक प्रकरण
"
वृत्ति
Page #460
--------------------------------------------------------------------------
________________
७२
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.. पृष्ठांक,
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक,
सम्यकप्रकरण वृत्ति
सर्वजिनस्तुति
"
वृत्ति
___... १९१
सम्यक पंचविंशतिका
" अवचूरि
सर्वज्ञपरीक्षा सर्वज्ञवादस्थळ सर्वज्ञव्यवस्थापनावाद सर्वज्ञ स्तव सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण
समत्त्करत्नमहोदधि
....
१९१
सम्यत्करहस्य स्तोत्र
१४६
८०-१०२
समत्कसप्ततिका
सर्वज्ञस्तोत्र
२९४
-
... ...
१९१ १९१
-
"
वृत्त
सर्वतीर्थावली स्तव
,
अवचूरि
१९१
सर्वमनिर्णय
सम्यकस्वरूप स्तव (साव )...
१४५ .
सम्यक्त्कालंकार
सर्वस्थल सर्वांगसुंदरी कथा (प्रा.) ... सर्वार्थनिराकरण स्थल
२६१
सम्यत्कोत्पादनिधि
सम्यकोद्धार
...
१९१
सवन कथा
समाथितंत्र
सहस्रमल्लचोर कथा
:::::::
" टीका
११३
सातव्यसनकथासमुच्चय
समाधिशतक
साधर्मा कुलक
२०४
समीकापार्श्व स्तोत्र
साधारणजिनस्तव
२२४
,
अवचूरि
समीनपार्श्व स्तोत्र सरस्वती स्तव (महामंत्रगर्भित).
साधारणजिनस्तव
२४
सरस्वती स्तोत्र
...
२९४ २९४ ।
,
अवचूरि
:
Page #461
--------------------------------------------------------------------------
________________
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
साधुगुण शतक
साधुतत्व प्रकरण
वृत्ति
साधुप्रवचनसार प्रकरण
साधुप्रतिमा प्रकरण
साधुधर्मपरिभावना
साधुयोग्यनियम कुलक
साधुसामाचारी कुलक
प्रबंध
साम्यवासक
सामाचारी
""
""
"
नादि कथा
सामाचारी प्रकरण
वृति
79
सामान्यगुणोपदेश कुलक
( बीजं )
23
( बीजी )
१० अनु.
सामान्यधर्मोपदेश
सामुद्रिक
>>
201
...
„
अनुक्रमणिका.
पृष्ठांक
२११
१९२
१९२
१०२
१३७
२०४
२०४
- २०४
२६२
२६२
११३
१५७
१५७
१०५
१०५
२०४
२०६
१९३
३५७
३५७
-
अक्षरानुक्रमवार प्रथोना नाम.
सामुद्रिकतिलक
सामुद्रिकशास्त्र
23
सारसमुच्चय
सारस्वतमंडण
सारस्वतोद्धार स्तोत्र
सारस्वत वृत्ति
,,
1)
22
( बीजुं )
"
"
"
"
सारावली
सार्वज्ञाष्टक
सारोद्धारशकुन
साहित्यश्लोक (प्रा.)
सिद्धचक्र स्तवन (प्रा.)
सिद्धचक्र स्तव
सिद्धज्ञान
सिद्धदंडिका प्रकरण
सिद्धदत्त कथा ( सं. गद्य )
...
***
...
920
:
:
:
19
:
:
:
७३
पृष्ठांक.
३५७
३५६
३५६
१३१
३०५
२९४
३०५
३०५
३०५
३०५
३०५
६६
२९४
३५७
३४१
२९४
२७१
३६३.
१३६
२६२
Page #462
--------------------------------------------------------------------------
________________
७४
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार अंथोना नाम,
पृष्ठांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम. | पृष्टांक.
सिद्धपंचाशिका
सिद्धांतविचार
९३१.
वृत्ति
सिद्धांतविचारसंग्रह सिद्धांतषट्त्रिंशिका
, वृत्ति
१४१
१४१
सिद्धांत स्तव
:
सिद्धपंचाशिका अवचरि বিসার
, वृत्ति सिद्धयोगमंत्र सिद्धयोगमाला सिद्धविजाचक (सं)
__
:
२९४
अवचुरि
सिद्धांतसार प्रकरण
सिद्धांतहुंडि सिद्धांतोद्धार प्रकरण
सिद्धसार
सिद्धसारस्वत
सिद्धिगति कुलक
सिद्धसेनदिवाकर कथा
सिद्धिप्रिय स्तोत्र
२९५
१९३
सिंदूरप्रकरण
" वृत्ति
१३
" (प्रा.) सिद्धसेन चरित्र सिद्धाज्ञापद्धति सिद्धान्तचन्द्रिका सिद्धान्ततर्कपरिष्कार
१९३
सिद्धांतरत्न
अवचुरि सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा
" (बीजी)
२६२
सीताचरित्र (प्रा.)
सिद्धांतरत्नावली
" (योजी)
२३६
Page #463
--------------------------------------------------------------------------
________________
अक्षरानुक्रमवार अंधोना नाम.
सीताचरित्र
सीमंधरस्तुति
ޑ
सुकोषलाख्यान
सुकृतसागर
अवचूरि
सुकृतसंकीर्तन काव्य
सुगुणकुमार कथानक
सुग्रीव चरित्र
सुजनभावना कुलक
सुजनसप्ततिका
सुदर्शना चरित्र
"
( बीजं )
सुनक्षत्र चरित्र
सुंदरनृपकथा
28
( श्लोकबद्ध )
सुंदरराजकथा
सुपार्श्वनाथ चरित्र ( प्रा. )
( सं . )
सुपार्श्वनाथ स्तोत्र (सं.)
..
अनुक्रमणिका.
पृष्ठांक
२३६
२९५
२९५
२६२
२६८
३३३
w
२०४
१९३
२३६
२३६
२६२
२६२
२३९
१९५
11
NARVES V
-
:
अक्षरानुक्रमवार थोना नाम.
सुबाहु चरित्र
सुबोध मंजरी
सुभद्रा चरित्र
सुभाषित (प्रा.)
सुभाषितकोश
सुभाषित रत्नसंदोह
सुभाषित रत्नावली
सुभाषित षट्त्रिंशिका
” अवचूरि
सुभाषित सारोद्धार
सुभाषितार्णव
सुभाषितसमुद्र सुभाषितावली
सुमतिनाथ चरित्र (प्रा.)
(सं.)
33
"
सुमित्र चरित्र
सुयणासत्तरी
वृत्ति
सुरप्रिय कथा
सुरसुंदरनृपकथा (प्रा.)
37
(श्लोकबद्ध)
4:
::
७५
पृष्ठांक,
२३६
८०
२३६
३४१
३८२
३४२
૪૩
३४२
३४२
३४१
३४१
३४१
३४२
२३९
२३९
२३७
१४४
१४४
२६२
२६२
Page #464
--------------------------------------------------------------------------
________________
७३
अक्षरानुक्रमवार प्रथोना नाम,
सुरसुंदरी कथा (आ.)
(SIT.)
33
सुलसा चरित्र (सं.)
सुलसाराधना कुलक
सुवर्णसिद्धि
वृत्ति
सुविधिनाथ चरित्र
(सं.)
सुव्रत कथा (प्रा.)
सुत्रतऋषि कथा
(प्रा.)
सुव्रतऋषि चरित्र
सुवृत्ततिलक
सुसढ कथा (प्रा.)
"
22
३
13
15
सुसमा कथा (प्रा.)
सूक्ष्मविचारगाथा वृत्ति
सूक्ष्मार्थसत्तरी
33
टिप्पन
सूक्तरत्नाकर
1
***
1
अनुक्रमणिका,
पृष्ठांक.
२३७
२३७
२३७
२०८
३६५
३६५
२४०
१४०
२६२
२६३
२६३
२३७
३३३
२६३
२६३
२६३
१३७
૪૪
१४४
३४२
अक्षरानुक्रमवार प्रधोना नाम.
सूकरत्नाकर ( बीजो )
(त्रीजी)
"3
सूक्तावली
सूक्तिमुक्तावली
35
"
"
सूक्तिसंग्रह
सूक्ति द्वात्रिंशिका
वृत्ति
23
सूत्रकृतांग मूळ
"}
"3
19
6
( बीजी )
32
( बीजी )
( त्रीजी )
13
"
सूत्रेश्वरमंडळ
सूरमंत्रकल्प
निर्युक्ति
चूर्णि
वृत्ति
दीपिका
सारोद्धार
दुर्गपदविवरण
प्रदेशविवरण
TOL
...
...
本作出
...
पृष्ठांक
...
३४२
३४२
३४२
३४२
३४२
३४२
૪ર્
३४२
१९३
૧૬,
२
४
३५३
३६५ – ३६७
३६५--३६७
३६५३६७
| ३६५–३६७
२
Page #465
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिकाः
७७
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम..
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम. .
पृष्ठांक.
स्तोत्रमाला
स्तोत्रविधिपंचविंशति
सूरिमंत्रगर्भित लब्धिस्तोत्र ... सूर्यप्रज्ञप्ति मूळ
" वृत्ति मूर्यशतक सेतुदीपिका
स्तोत्रावली
स्थानांग मूळ
वृत्ति
सेनप्रश्न
वृत्तिगतगाथा वृत्ति... दीपिका
सेनसूरिकृत स्तोत्र सोमभीमादि कथा
स्थापनाकल्प (सं.)
सोमशतक
स्थापनाकल्पविधि
स्थानप्रतिद्वार
स्थापना कुलक
सोमसौभाग्य सोकप्रबंध सोमश्रीकथा (प्रा.) सौभाग्यसुंदरी कथा स्कंधक विचार
स्थूलिभद्र चरित्र (शीलप्रकाश)... मात्रपंचाधिका
स्मरनरेंद्रादि कथा
स्तंभनपाचप्रबंध
स्मृतिपुराणश्लोक
स्तवनकोश
स्याद्वादकलिका
स्यादिशब्ददीपिका
स्यादिसमुच्चय
स्त्रीनिर्वाण प्रकरण स्त्रीनिर्वाणसिद्धि स्त्रीमोक्षविवाद स्तोत्रकोश
स्थाद्वादकल्पलता
स्याद्वादभाषा
Page #466
--------------------------------------------------------------------------
________________
७८
अक्षरानुकमवार ग्रंथोना नाम.
स्याद्वादमंजरी
स्याद्वादमंजूषा
स्याद्वादरत्नाकर
स्याद्वादरहस्य
स्वजीवानुशासन कुलक
स्वतचिंतामणि
स्वनलक्षण
स्वप्नविचार (प्रा.)
नाटक विचार
सप्ततिका
स्वप्नसप्ततिका वृत्ति
か
वृत्ति (बीजी)
स्वरोदय
स्वामिवात्सल्य माहात्म्य
:.
F
:
041
हंसकथा
हंसराजवत्सराज चरित्र (गद्य) .
***
हम्मीरमर्दन
इरिप्रभसूरिकृत साधुसामाचारी...
हरिबल कथा
***
***
अनुक्रमणिका.
पृष्ठांक
८०
१०८
८०
१०७
१०४
३५७
३५७
३५७
३५७
३५७
३५८
३५८
३५८
२७१
२६३
२३७
३३८
१५७
२६३
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम,
हरिबल चरित्र (प्रा.)
( सं . )
33
हरिबलादि कथा
हरिभद्र कथा
हरिभद्रसूरिकृत श्रावकसामाचारी.
हरिमेखला
हरिवाहन कथा
हरिविक्रम काव्य
वृत्ति
हरिविक्रम चरित्र
हरिवंश
हरिषेण कथा
हरिश्चंद्र कशामक ( प्रा. )
हर्ष प्रकाश
??
हस्तकाण्ड
हास्य कथा
हास्यकथासंग्रह
हिताचरण
"
वृत्ति
VOD
द्वितोपदेश कुलक
***
663
121
:
:
:
::
क.
२३७
२३७
२६३
२१९
१५७
३५८
२६३
३३३
३३३
२३७
२१९
२६३
२६३
३५०
३५८
२६८
२६८
१९३
१९३
००० २०४-१०६
Page #467
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्टांक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
हितोपदेशमाला
हैमन्याय
" वृत्ति
३०१
हितोपदेशामृत
हैमधातुपारायण ., धातुपाठ (खरवर्णानुक्रम) , धालुपाट
हीरकपरीक्षा
३०१
हीरप्रश्न
, धातुवृत्ति
हीरविलास कान्य
क्रियारत्नसमुच्चय (सबीजक).
३०१
हरिसौभाग्य काव्य
, वृत्ति
हैमप्रक्रिया शब्दसमुच्चय हैमलवुवृत्ति टुटिका
३००
हुताशिनी कथा
" अवचूरि
हेतुखंडनपांडित्य हैमकौमुदी ,, प्रक्रिया (वृहत् ) ,, प्रक्रिया
" प्राकृत व्याकरण
....
प्राकृतपादवृत्ति
दीपिका
, लघु प्रक्रिया
३००
, लघु चांद्र हैमचतुर्थपादवृत्ति , उदाहरणवृत्ति
दोधकार्य
, अवचूरि हैमवृहद्वृत्ति ( टुंढिका ) ... , टुंढिका (बृहत्) ...
टुंढिका (लघु) ... ,, , वृत्ति ...
वहवृत्तिसारोद्धार ...! लघुवृत्ति
३००
, प्राकृतरूपसिद्धि
....
दीपिका
Page #468
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठोक.
अक्षरानुक्रमवार ग्रंथोना नाम.
पृष्ठांक.
३०१
हैमेलघुत्ति हैमवृहद्वृत्ति
वृहन्न्यास
३०१
लघुन्यास
लघुन्यास
....
२९९
परिभाष्य वृत्ति .... न्यासोद्धार
हैमव्याकरण दीपिका
, उणादिवृत्ति " लघुवृत्ति , लिंगानुशासनवृत्ति , वृत्ति (बीजी ) ... , अवधूरि
,, दुर्गपदप्रयोध . हैमव्याकरण मूळ (सूत्रो) ...
उणादि , लिंगानुशासन हैमव्याकरणस्थ न्याय
कक्षापह
२९०
९९
(वृहतूवृत्ति विषमपदव्याख्या).
दशपादविशेष " दशपादविशेषार्थ ....
हैमशब्दसंचय ...) हैमसमासतद्धितसार प्रकरण ...
३०२
, न्यायवृत्ति
२
लघुन्यायप्रशस्ति अवचूरि।
समासप्रकरण तथा
न्यायमंजूषान्यास ...
कृत् प्रत्यय
बलाबलसूत्र
बिभ्रम सूत्र
वृत्ति
3
वृत्ति
अवचूरि
कारकसमुच्चय
.. वृत्ति
Page #469
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
ग्रंथकर्ताओनी अक्षरानुक्रमवार अनुक्रमणिका.
कर्तानुं नाम.
११ अनु.
अकलंक
अकलंकदेव
अकलंकशिष्य
अजितदेव
अजितदेवसूरि
अजितप्रभ ( प. )
अजितसिंह
अनंतदेवसूरि
अनंतवीर्य
अनंतहंस
अनलगच्छीय
अंबप्रसाद
अभयतिलक
अभयदेव २,४,६,८,७९,१००,११९,१२५,
१३४, १३८, १५५, १६९, १९६,
५०४, २.१९, २८२, ३३०
...
404
...
440
अ.
...
***
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184
पृष्ठांक
...२८,५८,८७,९१
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..२,६६,८५,१६८
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...
૧૮૮
८९
...
••• २४१
:
P
... २४०
३६०
९१
२५०
३८९
१२४
...९६,१८९,३३०
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"
2235
कर्तानुं नाम.
अमरचंद
अमरचंद्र
अमरचंद्रकवि
अमरप्रभ
अल्लु
अशोकमुनि
असग
आंचलिक
अमितगति
अमृतचंद्र
अरिमल
अरिसिंह
अलराजमहीपति
आजड
.......
३३८
१७२, २०४,६३८,२५३, ३०३
३०८,३१५
३१६,३१७,३३१
544
...
...
...
*NG
...
...
आदित्यसूरि..
***
499
DOG
44.
"3"
...
::
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430
:
...
आ.
:
पृष्टांक.
१९४
...
...
१६१,३४२
९०,११०, ११२
***
...
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...
२८५
324
***
१६०
३३३
३६०
१८६
१८९
२४७
... २३९
३४०
३३५
Page #470
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
कतानुं नाम.
पृष्ठांक.
फर्तानुं नाम.
पृष्ठांक,
आनंदविजय...
... १३५,१४८,१९५
उत्तमर्षि
आनंदसूरि ... आनंदसुंदर ... आमसूरि
उदयंकर
आम्रदेव
उदयचंद्र
आम्रसूरि आर्यनंदिल ...
उदयकीर्ति ... उदयचंद्र ...... ... ( ग) उदयधर्म उदयधर्म ... उदयधर्मगणि ... ... ३४॥ उदयप्रभ ७६,११६,११७,१२५,१७१,२४३,
आर्यरक्षित ...
आशाधर
आसड
आसधर
आसाधर
उदयवीर ... ... उदयसागर ... ... ( आंच.) उदयसागर
... २४५ ...५०,२६३ ३८,२४१,२८९
इंद्रनंदि
उदयसिंह ...
...
इंद्रसूरि इंद्रईस
... ... ... २५१,२५५ ... ... २२८
उदयसौभाग्य
उद्योतनसूरि
२२२,२५०
उमास्वातिवाचक
७२,१२१,१४९
ईश्वरगाण (जयशेखरशिष्य,) ईश्वराचार्य ... ... ...
१८९ १२३
ककुदसूरि ...
...
...
१८
Page #471
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
कर्ता नाम.
पृष्ठांक.
कर्तानुं नाम.
पृष्ठांक.
कनककुशळ
१८०,२५९,२६४,२७०,
२७७,२८५
... ... ...
कुलप्रभ
कनकचंद्र ... कनकप्रभ ...
... २२७ २४१,२९९
कुलभद्र
कमलप्रभ
कमलसंयम ...
कलापकमुनि
कुमुदचंद्र ___ ... ... ... ३१२ कुलचंद्र
... ... १८३
... २४,१६९
... ... ... १२९ कुलमंडन ८,३२,५२,१२४,१४५,१५५,३०६
क्षमाकल्याण ९५,१२३,२३०,३३४ क्षमामाणिक्य ... ... ३०६ क्षमारत्नोपाध्याय
... २८४ क्षेमंकर ... ... २३५,२६२ . . क्षेमकीर्ति
१४,३५० क्षेमेंद्र ... ... २१९,३३३,३३९ क्षेमराज ...
... १७३ क्षेमहंस ... ... ३३५
.
०६
कल्याणविजय
10.
कल्याणसूरि
कल्याणसागर
(आंच.) कल्याणसागर
कल्हण
काकलकायस्थ
गजसार
...
...
...
१२३
गर्षि
कामदास ... कीर्तिचंद्र ... कीर्तिरत्न ... (आंच ) कीर्तिवल्लभ कीर्तिविजय ... कीर्तिविजय गणि (दिगं.) कुंकुंद
गुणचंद
गुणचंद्रमणि ...
गुणपाल
गुणसत्र
Page #472
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
फर्तानुं नाम.
पृष्ठांक.
कर्ता नाम.
पृष्ठांक.
(दिगं.) गुणभद्र ... ... २२५ गुणरत्न ४४,४५,७६,७९,९४,९५,१०२,
११७,११९,१२२,१५०,१६३,३०१
चक्रेश्वर ११८,१३४,१४४,१५३,१५४,१६५
चंद्रकीर्ति
गुणरत्नसूरि
२४३,२८८,३३३,३३४
गुणविजय ... गुणविजयगणि
चंडपाल ...
__... चंद्रगुप्त ... चंद्रतिलक ... चंद्रधर्म ... चंद्रप्रभ
... ... ३३४
१२९,३०५,३६७ ... ... २५५ ... ... २२० ... ... २४ ७७,१७९,१९०,२४०
गुणविनय ...
गुणशील
चंद्रप्रभमहत्तर
___... २६०
गुणसमुद्र
चंद्रमुनि
गुणसागर
चंद्रर्षिमहत्तर ...
गुणसुंदर
गुणसेन · ...
चंद्रशेखर चंद्रसूरि चंद्रसेन
गुणसौभाग्य गुणाकर
२३५,२६०,२८५,३६२ गुणांकरसूरि गोवालियमहत्तर शिष्य ... ...
बंद्रानंद
चामुंडराज ...
गोविंद
...
...
... ३६४
१८०,२१४
चारित्रकीर्ति ... चारित्ररत्न ... चारित्रवर्धन चारित्रवर्धन ..,
गोविंदाचार्य ... गौतम .. ...
... ...
११६,३११ १५४,३०५
१९३,३३५ ... १३५
Page #473
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
कर्तार्नु नाम.
पृष्ठांक,
कर्ताई नाम.
पृष्ठांक.
जयसोम १३०,१३९,१४१,१४९,१५०,२५१
चारित्रसुंदर .... चारुचंद्रिय ___ ...
१४८,२१३,२२९ ... ... २२१
जगदेव
...
जगमालगणि
जंयूकवि जंबूनाग ... जंवूमुनि जयकीर्ति जयकेशरी ...
०८
जयघोष
जयानंद २२६,२३७,२४९,२८०,२९४,
... ...२९५,३०१,३०८ जयाभिनंदि ... ... ... २७९ जल्हण ... ... ... ३४२ जल्हणदेव ... ... ... ३४० जिनकीर्ति ... २०१,२२५,२८१,२४२ जिनकुशळ ... ... २६,२०२,२१४ जिनचंद्र ६६,१५०,१५५,१८३,१९२
... ... ३०६,३०८ जिनतिलक ... ... ... १९३ जिनदत्त २६,१०९,१५२,१५,१५९,१६०,
१६५,१७३,१९५,१९७,२१५,२९६ जिनदासमहत्तर
... १०,१८,४४ जिनदेव ... ... ३२,३०६ जिनपति ... १३४,१६४,२८७,३०८ जिनपतिशिष्य... ... ... २३५ जिनपाळ १३५,१५८,१६०,१७१,१९९,
... ... ३५४,३५७ जिनप्रभ ३०,४८,११२,१५१,१५४,१६०,
१८५,२००,२१८,२७०,२७१,३७१, २७४,२७७,२७९,२८०,२८२,२९५,
... २९४,३०२,३०५,३६१
जयचंद्र
३२,३४,१५०,२६८ जयतिलक ... १२९,२३७,२६७,३३३ जयभषण ... ... ... १४९ जयमंगलाचार्य... ... ... जयविजय ... ... २९२,३३५ जयशेखर १७०,१७२,१८४,९८५,१९२,
२०१,२२५,२७२,२४६,३१८,३३०
जयसागर
...
१६२,१६५,२७४,२.१६
जयसिंह ९५,१४९,१७१,१८२,२१३,३३८
Page #474
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
___ का नाम.
पृष्ठांक.
कर्तानुं नाम.
पृष्ठांक,
जिनभद्र १८,५४,६०,१२०,१२५,१७२,२८४,
जिनमंडन ... ...१६२,१७९,२१४ जिनमाणिक्य ... ... ... २५० जिनलाभ ... ... ... १६९ जिनघालभ ६४,११७,११८,१५,१३८,१५०
जिनेंदबुद्धि ... ... ... ३०६ जिनेश्वर ९८,१३४,१७२,१७६,१९७,२३९,
२४२,२६६,२७७,२८७ जिनोदय शिष्य
२१५,२१७
जोनराज
...
..
ज्ञामकलश
१५५,१६३,१६४,१८१,१८४,१९७,
शानचंद्र
१९९,२०३,२५८,२७४,२७६,२८२,
ज्ञानतिलक ...
१९८,३०८
ज्ञानप्रमोद
... ३१२
२८३,२८७,२८८,२९०,२९१,२९२ जिनवर्धन ...
९६,३१२
ज्ञानभूषण
जिनविजय
... २७५
ज्ञानविजय
... १७८
ज्ञानविमल
२३४,३१३
... ... २०९ ...१७५,१७६,३०१
ज्ञानविलास ...
...
... २९३
जिनसमुद्र ... जिनसागर ... जिनसिंह जिनसुंदर ... जिनसूरि
...
... २८६
ज्ञानसागर... १८,३८,४२,१३२,२२५,२४०,
... २६३,२७० १५५,२२१,२३१,२४८
जिनसेन
...
...
२७४,२७९
जिनहंस जिनहर्ष २१७,२२१,२३३,२५८,२६८,३३६ जिनहर्षशिष्य ... ... .. ३१६
तरुणप्रभ ... ... ... २४ तिलकाचार्य १८,२८,३०,३४,५४,५६,१५६,
२४३,२५५ तेजसिंह
२०८,२९५ त्रिमल ... ... ... ३१५
Page #475
--------------------------------------------------------------------------
________________
कर्तानुं नाम.
दयारतन
दयावर्द्धन
620
दयासागर
दलपतिराय
दान विजयोपाध्याय
दानशेखर
दामनंदिशिष्य..
दामोदरगुप्त
दिगंबर २८६,२९५
...
***
दीक्षित देवदत्त
दुर्गव
दुर्गसिंह
दुर्लभदास
देवलाल
देवगुप्त
देवचंद्र
देवचंद्रजी
देवतिलक
...
:
:
49
... ३०५
...१६२,१५३,२५८
...
...
***
...
...
...
...
:
:
900
***
E
पृष्ठोक.
...
अनुकमणिका.
...
... ३४६
३६३
४१,३४२,
...
२८४
३÷३
... २७१
...
२१७
४६, ३५४,३५६
"
૨૮
४
...१२५, १५३, १८३
७८, १०४, १३२,२९३
३०४
३५७
२४९
१३६
२४५
कर्त्तार्नु नाम.
...
देवदत्त
३०६
देवेन्द्र २१, २६, ६८, ११८, १२४, १३६, १३७,
१४२, १४५,१५२,१७४, १८१, १८३,
१८५,१८६,१८८, १९७, १९९,
देवचंद्रगणि
देवेन्द्रमुनि
देवप्रभ
देवप्रभ मलधारी
देवभद्र
देव्यावसूरि
देवविजय
देवविजयगणि
देवविमल
देवसागर
...
...
देवभद्र मलधारी
देवमत्युपाध्याय
देवमूर्ति
देवगिणि
...
२०१,२३६,२३९,२४१,२६३
***
444
...
..
oto
***
***
...
पृष्ठकि,
*.
***
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८७
voc ३३७
... २९२
१२०,१७२,१७९,१९२,
१०९,३३६
... १२१
...१३३,२५९,२६२
२४४,२६६
*** ७५
041
१५६
૪
.. १९९, ३२६,२२७
...
tas
२३१,१६८,२७३
...
३३३
३१०
Page #476
--------------------------------------------------------------------------
________________
८८
अनुक्रमाणिका.
फर्तानुं नाम.
पृष्ठांक.
कर्तीनुं नाम.
पृष्ठांक.
धर्मचंद्र .... ... २४१,२५७ धर्मघोष २६,५६,१३,१३६, १४०,१४१,
१४३,१७५,२७१,२७७,२८७,२९९
धर्मतिलक
देवसुंधर ... ... २८५,३०७ देवसूरि ८,१५१,१५३,१७४,१७८,२०५,
२३०,२३९ देवसेन... ... ८७,८९,९०,९१,९४ देवानंद ... ... १२०,२९८ देवीदास ... ... ८८,३३९ द्रोणाचार्य ... ... ... ४०
... ...
... ...
धर्मदास धर्मनंदन
२७४,२८८
.. १७१ १३९, ४२ ... २४९
धर्मप्रभ धर्मभूषण धर्ममेरु
...
८८,९१,९२
धनचंद्र ... ... ... ३०० धनंजय ... ...२८९,३११,३३१
... ... ... ३०७ धनपाल १५१,१८१,२९०,२९१,३११,३३०
धनप्रभ
धर्मरत्नसूरि धर्मवर्द्धन ... धर्मविजय ... धर्मशेखर ... धर्मशेखरगणि ... धर्मशेखरोपाध्याय
धनपालकवि
... ३३०
१३२,२६५
... २८१
धनविजय
धर्मसागर ८,५०,९१,१३९,१५८,१५९,१५२,
१६४,२९८
धनरत्नसूरि ... धनराज ... ... ... २०९ धनविजय ... ... ... १०९ धनसागर ... ... ... २०९ धनेश्वर ... ...११८,२६३,२७१ धर्मकीर्ति ... ... ... २६८ धर्मकुमार २३३,३३३,३४१,३४२,३४३
धर्मसुंदर ... धर्मसूरि ... धरसेनाचार्य ... धीरसुंदर ...
... ... ...
... ३३८ २०२,२८६ ... ६ ... ३६
Page #477
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
कानुं नाम.
पृष्ठांक.
कानुं नाम.
पृष्ठांक.
नगर्षि
...
..
२,१३५
नमिकवि
नमिसाधु
नयचंद्र
नयवर्धन
-
4
नयकुंजर
नयनशेखर ...
-
D
I
नयविमल
A
नयसुंदर नागचंद्रमुनि
-
नयविजय
n.in.-
नमसूरि
नागार्जुन
--
नागराज
-.
-
-
.
.-
..
..-1
.
नरचंद्रसूरि ... नरेश्वर नरेश्वरसूरि ... नरचंद्र ... १९२,२७८,३४७,३४८ नरचंद्रसूरि ...२६६,३४८,३५६ मरपति मरपति ... ... नरसिंह ... नंदिरत्नशिष्य ... नरचंद्र ( मल्लवादी) नरेंद्रसेन .... नरेंद्रसूरि .. नरेंद्रप्रभ ... नरेंद्रप्रभ ( मल्लवादी) ...
नारचंद्रज्योतिष नंदिरत्नगणि ... नंदिसागर ... ... ... २९० मंदिषेण ... ... ... २७२ नेमिचंद्र ३६,१२७,१९८,१४१,१४५,२५१,
- २५८,२६५,२८१,३३५ नेमिचंद्र (श्रावक) ... ... १९०
परमानंद .... ८१,११६,१८५,१९४ यशकुमार ..... ... ... २३० पद्मदेव ... ... ... १२१ पद्मनंदि ... १११,११२,२७८
१२ अनु.
Page #478
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
कानुं नाम.
पृष्ठांक.
कत्र्तानुं नाम.
पृष्ठांक.
पद्मनाग
...
पुष्पदंत
...
२६७
... ... ३४९ २४२,२८३,२८६,३४८
पद्मप्रभ
...
पूज्यपाद
...
पूज्यपादस्वामी
२२२,२२५
पूर्णकलश पूर्णचंद्र ... पूर्णभद्र प्रतापसिंहदेव ... प्रतिष्ठासोम ... प्रद्युम्नशिप्य ...
प्रद्युम्मसूरि ६,१२८,६३६, १८५,१८६,२२६,
पद्ममंदिर ... ... ... १७५ पद्मविजय __... ...२४४,२७७,२८५ पनसागर३८,७८,८१,१७१,१८९,२३७,२६७ पद्मसागरगणि ... ... ... ३३३ पद्मसुंदर ... ७७,२२३,२४५,३३६ पद्मसूरि ... ... ... ३३२ पद्मानंद ... ... ... २०९ पर्वतधर्मार्थी ... पादलिप्तसूरि ... पोलित्तयसूरि ... पावचंद्र
२६,२८६,३५८ पार्श्वदेव
३०,७५,२७४,२८३ पावनाग
... ११० पार्श्वसूरि ... पुण्यनंदन ... ... ३८,१८५ पुण्यरत. ... ... ... २८१ पुण्यसुंदर पुण्यसागर ... पुण्यसागर ...
प्रबोधचंद्रगणि ...
... ...
प्रबोधमूर्तिगणि...
प्रबोधमाणिक्य...
प्रभाचंद्र ८८,९१,९२,९३,२१६,२३३,२७५
प्रभानंद ...
१२६,१९४,२८१,२९०
प्रभादेव
...
८७,९०,९९,९२,९३ ... ... २१७
प्राज्यभट्ट
...
श्वचिद्रं
...
. ... ४८,१८७,३०४
Page #479
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
कर्तानुं नाम.
पृष्ठांक.
कर्ता नाम.
पृष्ठांक,
पृथ्वीभूषण ... प्रेमराज ... प्रेमलाम
... २८३ ___ ३३६,३४० ... ... २९७
२७६,२९४
... २३७
___... २१६
बप्पभदि ... २७६,१९४ बंदिककवि ... बल्लाळ ... ... बालचंद्र ...८९,१७०,१८८,३३२,३३६ बुद्धिसागर ... ___७७,२९० ब्रह्म ब्रह्मदेव ब्रह्मनेमिदत्त ...
भद्रावार्य ... ... ... २५२ भद्रेश्वरसूरि ... ... ... २६६ भानुचंद्र ...१५२,२९३,३०५,३११ भानुचंद्रगणि ... ... ... ३५६ भावचंद्र .. ... ... ... २४१ भावदेव १५१,१५६,२४५,२४९,३१५ भावदेवाचार्य ... ... ... ३६१ भावप्रभ २६३,२६४,२७५,२८०,२८६ भावविजय ... ... ३६,१६४,२५२ भावसेन त्रैविद्यदेवं ... ... ९१ भुवनकीर्ति ... ... ... २३३ भुवनतुंग ... ४४,१७५,२३६,२४२ भुवनपाल
... ... ३४० भुवनसुंदर भूपाल ... ... ... २७८ भोजदेव ... ३६२,३६३ भोजपंडित ...
... ७३ भोजश्रावक ...
... २८९
म. . मतिनंदन ... ... १८१,२२०
ब्रह्मर्षि
भक्तिलाभ ... ... भष्टाकलंक ... ... ८९,९२ भर्तृहरि ... ... ... २०९ भद्रगुप्त ... ... भगवाहु२,१२,१४,१८,३४,३६,४०,४८,६०,
२७४,२८१,३४५,३४८
Page #480
--------------------------------------------------------------------------
________________
९२
अनुक्रमणिका
कर्ता नाम.
. पृष्ठांक.
कर्ता नाम.
पृष्ठोक.
मतिवर्धन
...
...१०२,१४७,२३५
१५१,१५६
मतिसागर
मंडण
... ३०५
महीमेरु
५०,३३५
मंडनकवि ... मंडनमंत्रि
महसेन ... महीदास महीप ... ... ... ३०९ महीमेरु ... ... ५०,३३५ महीसागर ... ... २४,१५४ महेंद्रप्रभ ....... २७२,२८० महेंद्रसिंह ... ११२,१४४,१६४ महेंद्रसूरि ... २५६,२८३,३०९,३४९,३५९ महेश्वर ... १३५,१३६,१४३,१९२,२२८,
मंत्रि वस्तुपाल... ' ... मलचंद्र ... ... मल्लदेव .... ... ... ३६६ मलधारी देवप्रभ १२६,२३०,२३६,२७६ मलधारीहेमचंद्र २०,४४,११७,१८४,१८५,
... ... १८६,२४३ मल्लनागकवि ... ... ... २१० मालवादि ... ... ५३,८०,९५ मलयगिरि ४,६,८,१०,१४,१८,२०,४०,४२
२५०,३१२,३१३
माघचंद्रदेव ...
...
... ३५९ ... ३४२
माघसिंह
...
...
माणिक्यचंद्र ...
२३०,२३६,२४१,२४५
१४,१००,११५,११७,११९,१२०,
२७५,३१४,३१६ माणिक्यनंदि ... ... ... ९१ माणिक्यशेखर ... २०,३६,४० माणिक्यसुंदर २०९,२२२,२२७,२३३,२५३
२५७,२६५,२०४
मलयचंद्र
...
...
... ३४९ ___... १७८
मलयप्रभ
मलयहस
माणिक्यसूरि
२३०,३१,३४२,३५६
मल्लिषण
मानतुंग
१७८,१८४,२४०,२८५
Page #481
--------------------------------------------------------------------------
________________
कर्त्तानुं नाम.
मानदेव
मानविजय
...
मानसागर
मानसिंह
मुनिचंद्र
843
... १४९
'... ३४४
२२३
२४,९८,९९,११५, ११८, १४३,
१७१,१८१,२०५,२०६,२०८,३४०,३४१
...
...
***
...
336
मुनिदेव
मुनिभद्र
मुनिरत्न
मुनिविमल
मुनिशेखर
... ११९,३००,३०४
मुनिसुंदर ८१, १०९,१७२,२१४,१२४,२२५,०
२५७,२७८,२८८, २९२,२९५
400
...
144
601
304
पृष्ठांक.
१०२,२८९
***
747
अनुक्रमणिका.
844
१८५,२४१
...२२०,२४३,२४६
***
मुनिसुंदर शिष्य
... २६२
मेघनंद
__१५३
मेघप्रभ
३३६,३४३
मेघराज
२९०, ३०५
मेघविजय
७८, २६८, ३०३, ३६३
मेरुतुंग ५४, १६३, १६४,१७०,१७२,१७५
२४१
***
२९१
१८२,२०८,२१६,२१७,२१९,२७४
- २९७,२९८,३६७
कर्ता नाम.
मेरुनंदम
मेरुवाचक
विजय
मोक्षाकर गुप्त
मोक्षेश्वर
...
***
4.
...
dve
यशःकीर्ति
यशःपाल मंत्रि
यशः सेन
योगचंद्र
योगदेव
460
घ.
६.
**
...
108
036
...
यतीश
यशचंद्र
यशचंद्रगणि
यशोदेव २८,३२,५८,६४,८२,८४,८५,१००
OCT
100
पृष्ठांक
... २९१
33.
429
२७७,३४३
TP+
145
444
६०
१०२, ११७, १२५,१६३, १८२,१८३,२३९
यशोभद्र
यशोविजय
ތ
११७
७२,७४,७५,७९,१०२, १०३
१०४,१०५, १०६५१०७,१०८, १०९, १९५
१३४,१५६,१७३,१८८, २७६,२९२,२९४
... ११२
३३७
२६७
t
***
९०
;
...
३०४
३०५
३३७
३३६
.७२
११२
८९
Page #482
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुकमाणिका.
कर्ताचं नाम.
पृष्ठोक.
कर्तार्नु नाम.
पृष्ठांक,
रविनंदि
योगसागरगणि... योगद्रिदेव ...
... ...
८८,११२ ।।
रविप्रभ
...
रविवर्द्धन
... २१५ ....२२७,२३१,२६४
रविसागर
रत्नचंद्र
...
१०९,१५९,२८५,३१८
राइधु
राजकीर्ति
राजकीर्ति वाचक
राजमल्ल
रस्नदेव ... ... ... ३४१ रत्नप्रभ १२,२८,७८,१६८,१७१,२२२,२२७
२४३,२५०,२६७, रत्नमंडन ... . ... २१५,२६८ रत्नमदिरगणि ... ...१७०,२१३,२१६ रत्नयोगींद्र ... ... ... २२५ रत्नशेखर २१,९६,१२१,९३२,१४०,१४८
१५२,१९७,२३४,३०१,३१५,३३७
राजमुकुट
रत्नसागर
...
...
५०,२७६
रत्नसिंह १४०,१४१,०४६,२०३,२०५,२२७
राजमुनि ... राजवर्द्धन ... ___ ... ... २३० राजशेखर ७८,७९,८३,९५,२१४,२१८,३१६
३३२,३३६,३३० राजहंसोपाध्याय ... ... ३१२ रामचंद्र २१८,२३२,२५३,२८९,२९९,३३६
३३७,३३८,३४२ रामचंद्रगणि ... ... ३३६,३३५ रामचंद्र गुणचंद्र ... .७३,३१६ रामदेव ... ... ११५,११९ रामविजय ... ...
रत्नसूरि
...
१७४,१९५,३०५ |
१२२,३१२
रत्नाकर
रविगुप्त
रविंदेव
. रविधर्म
..
जिय
Page #483
--------------------------------------------------------------------------
________________
भानुक्रमणिका.
कर्ता नाम.
पृष्ठांक.
कर्ता नाम. .
पृष्ठांक.
रामर्षि रूपचंद्र रूपविजय
... ... ...
... ... ...
... २८१ १२४,३१२ ... १२७
वर्धमानकवि ... ... ... .. वराहमिहिर ... ... ... ३४९ बल्लभगणि ....२७३,३०१,३३३ वालभदेव ... ... ..... ३३५ वसंतराय ... ... ३४९ वसुनंदि वाग्भट्ट ....
३१२,३१४,३१५,३३१
...
लब्धिचंद्र .. लब्धिनिधान लब्धिसागर ...
....२२७,२६१,२८९
वाग्भट्ट
लक्ष्मचंद्र
वाघजी
२८८
वादिचंद्र
....... ३३६
लक्ष्मणगणि ... लक्ष्मीदेव ...
लक्ष्मीवल्लभ ...
लक्ष्मीतिलक ...
लक्ष्मीसेन
लाभकुशल ..
वादिदेवसूरि ... • वादिराज वादिविजय वादिवेताल वादिसिंह वानरर्षि ... वामदेव विक्रम विजयगणि विजयचंद्र ...
लावण्यवाचक...
६५.२८.
... . ६९,२८०
... ११६
१४८,३३४
वनसेन ... . ... १४०,१९५ वत्सराज
... ३४६ वर्धमान ९९,१७१,१८१,२१७,२२९,२३८,
२४०,३०७,३१२,३१८,३२९ ।
...
२५३,२६१
विजयतिलक ...
... २७४
Page #484
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
कानुं नाम.
पृष्ठांक.
फर्तानु नाम,
पृष्ठांक.
‘विनयविजय ...
५०,१२८1८८,३०३
२३३,२९०
विजयदेव ... ... ... १३७ विजयरत्नशिष्य ... ... ... ३३२ विजयलक्ष्मी ... ... .. १७॥ विजयविमल४६,६२,१३५,१४३,२०१,२०८,
विनयसागर ... विनयसुंदर
विनयहंस विबुधप्रभ ... विबुधमंदिरगणि विबुधसेन ...
विजयसिंह ३०,३८,११३,१२०,१८१,२०४,
विमल
१७३,३१०
विमलगणि
१४३
२९८,२८२ विजयसेन ... ... २३१,१९५ विजयानंद ... ... ३०५,३०६ विजयानंदधर्मकीर्ति विद्यातिलक .... ... ... ७५ विद्यानंद ... ८५,९०,९१,९३,१७० विद्यापतिभट्ट ... ... ... २१८ विद्यारत्न ... ... विनयकुशल .... १३५,१४४,३४७ विनयचंद्र ४८,८०,१३८,२४२,२४५,२४९
२७०,३१५ विनयप्रभ ... .. २५४,२९४ विनयभुषण ... ...
विमलगणि ... .... ११९,२५१ विमलदास विमलप्रभ ...
... १३३ विमलसूरि
....१८५,१९०,१९६ विमलाचार्य ... १९०,१९२ विरूपाक्ष
... ११२ विमलविजय ..
___ ... ... २७८ ...
२८९,३३३ विल्हणकवि
... २७९
विल्हण
विवेकसमुद्र ....
१९१,२५५
विशाळराज ...
... २९०
विनयरन
...
.
লিহাতলখি
२९४
Page #485
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका
फर्ता नाम.
प्रकि.
कर्तानु नाम.
पृष्ठोक.
सातवाहन
विश्वसेन विष्णुसेन
... ...
___... २९१
शालिभद्र
वीरगगि
...
...
शालिमूरि
शामिसूरि
वीरदेव वीरमणि ... वीरभागणि
शाइनाम
४४.६४,३१५
शिवदेव
१८६,१८२
:: :: :: :: : :
वीरभद्र
शिवमंडन
बीरविजय
वीरसी
... ११८
वीरसेन वीराचार्य वीरसिंहदेव ...
शिवाम
११५,११४ शीलदेव शीलसिंह
... २३ शीलाचार्य
... २,१४९,२२९ श्यामाचार्य श्रीचंद्र १०,३०,४२,५४,६४,६६,४४,१२०,
१२६,१९५,२३५,२४१,३९८
श्रीतिलक
...१७७,१९१,२२७
शय्यंभवस्वामी... शास्याचार्य ... ... १२८,३३० शातिर ... ... ८,२७२ शांतिदेव .... ... ... ३६ शांतिसूरि २४,३६,९२,१२२,१८१,२२६,
... २८५,२९१,३३५,१४० ... ... ... २७९
... ३३
श्रीतिलकशिष्य... श्रीदेव ... श्रीधर ... श्रीप्रभ
... ...
.१४९,१०२
चविसाधु
श्रीवल्लम
Page #486
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
कानं नाम.
पृष्ठांक..
कर्तानुं नाम.
पृष्ठांक,
शुभचंद्र ... ८७,८८,९०,१११, १२ शुभचंद्रशिष्य ... ... ..... ९४
शुभवर्द्धन ...१८,१७५,१८५,१९०,२२४ • शुभविजय ... ... ८३,९५,१६४ ! कुमशील
१३०,२१६,२१८,२३३,३५३, २५५,२५६,२६०,२६,२६३,
२६६,२३८,२७१,३१०,३११ श्रुतकीर्ति ... ... ... २८३
सदानंदि ... ... ... ३०८ संग्रामसिंह ... ... ... २९८ समंतभद्र ८७,८८,९०,९३,२७७,२८०,३०७ समयमाणिक्य ..... ... १३१ समयसुंदर ३६,५०.१२४,१२९,१३०,६३,
१८७,२०९,२१०,२५८,२९० .... ३१८,३३५,३: ३,६४४
समुद्राचाय
...
...१४९
श्रुतसागर
...
सर्वदेवसूरि
...
श्रुतसाधु . ... श्वेताम्बरभिक्षु ...
ससक्षमंत्रि
सर्वराज
' शैलाचार्य ...
सर्वराजगणि ...
शोभनं . ...
.
सर्वविजय
१८८,२६१
___... २५९
सर्वसुंदर ... सर्वानंद .. सवाइजयसिंह ...
१७९,२३९,२४५,२५०
सकलकीर्ति ... ८९,९०,२३०,९६८,३४२ , सकलचंद्र ... ...१५०,
सकलभूषण ... सकलहरे सत्यराजगणि .... सत्यशेखर ... सदर ... ...
सहजकीर्ति सहजकुशल ... सहदेव सागरचंद्र ...
Page #487
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
.:फर्तानुं नाम. .
पृष्टांक.
____ कर्ता नाम.
पृष्टांक.
सागरदत्त
।
... ३१३,३३३ ... .... २६२ २,४,६,८,१०,१८,३६
साधुराज
सुंदरगणि ... सुंदरसूरि ... सुधर्मस्वामी ... मुधाकलशमुनि सुबंधुकवि ... सुमतिकल्लोल ... सुमतिविजय ... मुमतिसूरि ... सुमतिहर्ष ...
... ...... ३३२
......३३२
सुषेण
साधुकीर्ति ... ... ... ३१३ । साधुरत्न ... ... ५६,१२४ साधुरंग
१०१,२७८ साधुविजय साधुसुंदर ... ...३०६,३०७,३०८ साधुसोम ... ... १८४,२३९ सिद्धचंद्रगणि ... सिद्धचंद्रगणि ... ... ... २९२ सिव्याख्यानिक ... ... ७५ सिद्धर्षि ... ७२,७४,१७१,१५४,३६० सिद्धसूरि ... ... १२०,१४६ सिद्धसेन५४,५५,९४,१२७,१३८,२७३,२७५,
.... ...२८१,२८९,९९२ सिद्धसेनदिवाकर ... ... ... ७९ सिद्धोतसागर ... १११,२७७,३३२,३३४ सिद्धिचंद्र .. .. ३०५,१८९ सिंहतिलक ... ३४६,३४८,३६५,३६७ सिंहदेव ... ... ... ३१२ सिंहमाल ... ... .... ३४७
सूराचार्य
स्थूलिभद्र
...२९१,३३१,३४० सोलकवि ... ... ... २४८ सोमकीर्ति ... ...२२७,२३०,२३४ सोमचंद्र १४३,१६०,२३४,२६६,३१८ सोमचारित्रगणि ... ... ३२९ सोमतिलक५६,१२२,१३८,१८९,७३,२८५,
. २८८२९४ सोमदेव ९३,१०१,२७३,२७५,३३२,३३९,
.
Page #488
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
कानुं नाम.
पूक.
कर्तानं ना
सोमर्म ... ... ... १५३ सोमप्रभ ५६,१८९,१९३,२१३,२३३,१३९,
२५४,२७९,२८०,२८७,२९४,३०६ सोममंडन .. ... ... २५८ सोमविमल ... ... ... सोमसुंदर ...२६,५२,२७३, २७९,२८७,
२८८
६६,१०४
सोमसूरि ... सोमोदय ... सौदर्यगणि सौभाग्य सौभाग्यनंदि ... सौभाग्यसागर... सौभाग्यसूरि ... संधचंद्र
हंसराज ... ...१०१,३१४,३५९ हंसविनय ... ... ... .. हरिप्रेम ... ...१००,१५५,३.. हरिभई ८,१८,२४,३४,४१,४,५,७४/७५
७९,८०,८५,९८,१७,1..1.1,१.१ ११३,111,10,114,1१०,११, १४३, १५७, १०,११,१७.४८, १८१, १८९,११,११०,२१५,१११,
१४०, १४२, २४३,१०,१..,३४५ हरिया ... ... ... " हरिश्चंद्र ... ... ... २११ हरिदास ... ... ..॥ हरिषेण ... ... ... ३६८ हरियाऽ ... ... ... 1m हर्षकार्ति १५१,२७५,१८०,२९१,३०६,३..
३१३,३१८,३५९,११ हर्षस १४,३८,६२,१५,१५१,161..
वंदे .... ... ... ३० हर्षदेवगणि ... ... ... ३५. हर्षनंदन
संपतिलक
...
संघदास
संघविजय
संयमकवि संग्रामसिंह ...
Page #489
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
कर्मानुं नाम.
पृष्ठांक.
कानु नाम.
पृष्टक.
----------
--
-
हेमचंद्राचार्य ...
...
... ३१
हेमतिलर्क
... ३४८
... १६४
हेमप्रभ हेमविजय
... ... ... ....४६,३४९,३५६ १४६,२०९,२१३,२४५,२६६,
...
...
२७४,२७४
हर्षभूषण ... ...१५२,१५८,१६२ हर्षमुनि ... ... ८२,२८३ हर्षराज ... ... हर्षवर्द्धन ...
१०९,१२४,२६१,२८. हर्षविजय ... हस्तिविगणि... हीरविजय ... हौरसूरि ... हृदयनीभान्य ... हेमकुंजर ... ... हेमचंद्र १६१,१८०,२२४,३०२,३०९,३१०
... ... ३३०,३३॥
हेममूरि
१०७,३२९
हेमसूरिशिष्ण ...
१९३
हेमहंस
३०२,३४६
हेमहंसशिष्य ... ... ... १९२ हेमाचार्य ७६,२७२,२९०,२९९,३००,३०१,
३.९,३१०,३१४,३३०,३३१,३३९
Page #490
--------------------------------------------------------------------------
Page #491
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
रच्याना सालनी ग्रंथना नाम साथेनी अनुक्रमणिका.
रच्यानो संवत्
ग्रंथर्नु नाम
रच्यानो संवत्.
अंथनुं नाम.
पद्मचरित्र (प्रा.)
१०७३
नवपद प्रकरण वृत्ति
, वृत्ति
१२५
आप्तमीमांसा
१०७३
१०७३
प्रति
...
१३.
१०७३
१०७३
१०७६
जंबूस्वामी चरित्र (बीजु)
योनिप्राभूत ओघनियुक्ति चूर्णि कुवलयमाला उपदेशमाला वृत्ति (प्रा.) धर्मोपदेश लघुवृत्ति महापुरुष चरित्र
९१३
१०७८
आराधनापताका
१०८०
अष्टकसूत्र वृत्ति
११०८
कथाकोश
९२५ ९३३
आचारांग यत्ति
१२०
स्थानांग वृत्ति
९५६
११२०
समवायांग वृत्ति ज्ञातधमकथा वृत्ति
विधावश्यकसूत्र वृत्ति पंचाशक वृत्ति
११२३
११२४
१००५
चैत्यसाधुवंदनश्राद्धप्रतिक्रमण वृत्ति श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र वृत्ति ... उपमितिभवप्रपंचा ( कथा ) ... भुवनसुंदरी चरित्र मुनिपति चरित्र (सं) यशस्तिलक (पू) जिनशतक पंजिका अध्मात्मकल्पद्रुम वृत्ति (बीजी )...
११२५
संवेगरंगशाला
१.१६
विजयचंद्रकेवलिकथा (प्रा.)
११२७ १११८
१.१५
भगवती वृत्ति
१०४२
११२९
उत्तराध्ययन लघुवृत्ति
Page #492
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०४
अनुक्रमणिका.
रच्यानो संवत्
ग्रंथर्नु नाम..
रच्यानो संवत्. . ग्रंथतुं नाम.
११३९
११७२ ११४१
प्र. पंचाशकचूर्णि परीति वृत्ति
११३९
सार्धशतक वृत्ति
११७३
११५४
१९७४
१९६०
पार्श्वनाथ चरित्र (सं.) ... महावीरस्वामी चरित्र (प्रा.)... जिनमत्रीयवृहत्संग्रहणी वृत्ति ... मनोरमा चरित्र (प्रा.) ... शोभनस्तुति अवचूरि कथारत्नकोश आदिनाथ चरित्र शांतिनाथ चरित्र (प्रा.) पृथ्वीचंद्र चरित्र (प्रा) जीवानुशासन वृत्ति जीवसमास वृत्ति नवपदप्रकरण वृत्ति ( चोथी) বানাথ বৰ (সা.) न्यायप्रवेशकसूत्र टिप्पन न्यायप्रवेशकसूत्र पंजिका
11४
१९६२
. 30 - -
-
बंधस्वामित्व वृत्ति निशीथविंशोदेशक वृत्ति उपदेशपद वृत्ति नवतस्वगाथा वृत्ति चैत्यवंदनाचूर्णि चैत्यवंदन विवरण मल्लिनाथ चरित्र (प्रा.) पुष्पमाला वृत्ति पिंडविशुद्धि लघुवृत्ति रस्नकोशव्याख्या सप्तक्षेत्री पिंडविशुद्धि वृत्ति पाक्षिकसूत्र वृत्ति नवपदप्रकरण वृत्ति (पांचमी)... श्रावकातिकमणसूत्र चूमि ...
११६५
११७६
११६५
११७६
११८०
भवभावना
१८.
११७०
भवभावना वृत्ति
१९८२
सार्द्धशतक वृत्ति धर्मरत्नकरंडक मुनिपति चरित्र (प्रा.)
११८३
प्रत्याख्यानखरूप
११७२
११८३
,
वृत्ति
Page #493
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
१०५
रच्यानो संवत्.
प्रथनं नाम.
रच्यानो संवत्.
अंथतुं नाम.
११८४
दर्शनशुद्धिप्रकरण पत्ति
१२२२
११८५
पतिप्रतिष्टास्थापनस्पल
१२२४
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र वृत्ति ... प्रश्नप्रभस्वामी चरित्र (प्रा.) ... पृथ्वीचंद्रचरित्र टिप्पनक
११८६
परिप्रहप्रमाण
११८७
१२२७
जीतकल्प टिप्पनक
१९.
विनयचंद्रकेवाल चरित्र भाल्यानमणिकोश वृत्ति मणिऊणक्षेत्रसमास वृति मुनिसुव्रतस्वामी चरित्र (प्रा.)... सुरसुंदरी कया
११९९ ११९३
१२२८
१२२९
१२३३
गणरत्नमहोदधि सुपार्श्वनाथ चरित्र (प्रा.
११९९
१२३८
१२०४
उपदेशमाला कथा
१९४१
१२४२
प्रशुमचरित्र (बीजु) অবধিৱি সকগে
(मिषमपदव्याख्या) पंचोपांग वृत्ति . शीलभावना वृत्ति नेमिनाथ चरित्र (प्रा.) नमितुवीरक्षेत्रसमान वृत्ति उपदेप्रमाला बृत्ति (दोषी) कुमारपालप्रतिबोध प्रवचनसारोदार वृत्ति . आत्माहत कुलक . विवेकमंजरी अममस्वामी चरित्र फ्ल्योपमोपयासविधि जयंतीप्रश्नोत्तरसंग्रह वृत्ति प्रत्येकबुद्ध चरित्र (प्रा.) ... ऋषिदत्ता परित्र (प्रा.) ... चंद्रप्रभस्वामी चरित्र (सं.प्रा.) ...
१२०७
२४०
१२.४
१.५२
१२१४
१२६.
१२६.
१९१४ सनरकुमार चरित्र (प्रा.)
स्याद्वादकलिका १२१५ नमिऊणसजलक्षेत्रसमास ति ... १२९६ भन्तनाथ चरित्र (प्रा.) ...
नेमिनाथ परिभ (प्रा.) १२२० मबतत्व वृत्ति
१४ अनु,
१२६
१२६४
२६४
Page #494
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०६
अनुक्रमणिका
रच्यानो संवत्.
ग्रंथy नाम.
रच्यानो संवत्.
प्रथy नाम.
.....
काव्यप्रकाशसंकेत
१२९५
गणधरसार्द्धशतक वृत्ति
- १२७४
.... ne
१२९५
पिंडविशुद्धि वृत्ति दीपिका
जीतकल्प वृत्ति पार्श्वनाथ चरित्र (प्रा.)
i
१२७७
१२९६
आवश्यक लघुवृत्ति
१२७७
१२९९
वाम
%
सम्यकप्रकरण वृत्ति . विवेकमंजरी वृत्ति
D
१२७८
१२९९
१२७८
जयंतकाव्य
१३०२
१२८०
१३०४
हैमसमासतद्धितसार प्रकरण वृत्ति... प्रेमलाभ व्याकरण
१२८१
१३०४ १३०४
१३०५
१३०७
१३१३
वासुपूज्यस्वामी चरित्र उपदेशमाला वृत्ति ( कर्णिका ) ... चंद्रप्रभस्वामी चरित्र (सं.) ... पूर्वर्षि चरित्र हितोपदेशमाला वृत्ति बालबोधव्याकरण मूळ धर्मरत्न करंडक याश्रय (प्रा.) वृत्ति(वीजी) ... कुमारपाल चरित्र (बीजुं) ... शांतिनाथ चरित्र (सं.) श्रावकधर्मप्रकरण वृत्ति संदेहदोलावली वृत्ति शांतिनाथ चरित्र (प्रा.) समरादित्य चरित्र दीपालिकाकल्प वृत्तरत्नाकर वृत्ति श्रेयांसनाथ चरित्र(सं.) ...
१३१७
१२८८
१२८५ कृतपुण्य चरित्र १२८५ धन्यशालि चरित्र १२८६ धर्मविधि वृत्ति १२८७ स्वप्रसप्ततिका वृत्ति (बीजी)... १२८७ . गृहस्थधर्मप्रतिपत्ती कुलक(बीजु)...
ऋषिदत्ता चरित्र ... १२८९ उपमितिभवप्रपंचासारोद्धार ... १९९३ द्वादशकुलक वृत्ति
मुनिसुव्रतस्वामी चरित्र (प्रा) ...
चरी वृत्ति . १९९४ शीलोपदेशमाला वृत्ति (श्रीजी )...
शतपदी
१३१७
१३२०
१३२२
१३२५
१३३१
Page #495
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुकमणिका.
रच्यानो संक्त्,
ग्रंथन नाम.
रच्यानो संवत. . ग्रंथ नाम.
----
१३३२
याश्रय (सं.) वृत्ति
१३.०५
वृहत्कल्प वृत्ति
१३८५
संघपट्टक लधुवृत्ति
१३३४
शालि चरित्र
१३९० .
१३३४
प्रभावक चरित्र
१३९२
शालिचरित्र काध्य
१३९३
१३३७
विषयविनिग्रह कुलक वृत्ति
१३९४
शकुनसारोद्धार
१४००
प्रवज्याविधान वृत्ति
दीपालिकाकल्प ( छो) ... शत्रुजयादित्रेषष्ठतीर्थकल्प ... दीपालिकाकल्प हरिभदीजंबूद्वीपसंग्रहणी वृत्ति ... अंतरंगसंधि (प्रा.) विजाहल वृत्ति पडावश्यकविधि स्तंभनपार्श्वप्रबंध चतावशति प्रबंध शांतिनाथ चरित्र (सं.) कुमारपाल प्रबंध श्राद्धदिनकृत्य वृत्ति चैत्यवंदना वृत्ति बालावबोधा ( जूनीगुर्जर) पार्श्वनाथ चरित्र (प्रा.) नरवर्मकथा -हस्वकथासंग्रह पारसीनाममाला
५३४९
स्याद्वादमंजरी ।
१४१०
१३६३
१४११
विधिप्रपा साधुप्रतिक्रमण वृत्ति
५३६४
१४११
१३६५
१४११
भयहरस्तोत्र वृत्ति अजितशांतिस्तव वृत्ति
१४१२
१४१२
१३६८ गुरुपारतंत्र्यस्तव वृत्ति १३७२ पुंररीकचरित्र
श्रामकधर्मप्रकरण वृत्ति १३८३ । चैत्यवंदनकुलक
श्राद्धसामायिक प्रतिक्रमणसूत्र
१४.२२
१४२२
%3ARNE
सम्यकसप्ततिका वृत्ति दीपालिकाकल्प ( बीजो)
व्याख्याप्रकरण
१४२३
Page #496
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०८
अनुक्रमणिका.
रच्यांनो संवत्:
प्रप® नाम.
रच्यानो संवत्
अंभई नाम.
१४२६
१४६३
___भक्तामरस्तोत्र वृत्ति १४२८ श्रीपाल चरित्र
प्रश्नोत्तररत्नमाला वृत्ति १४३६ हरिविक्रमकाव्य वृत्ति
उपदेशचिंतामणि वृत्ति उपदेशचिंतामणि अपचूरि
धमाकपा श्रीधर चरित्र सिरिनित्यक्षेत्रसमास अवपरि ... गुविली हैमधातुपारायण क्रियारत्नसमुचय (अगोजक)
१४६६
१४६६
१४४०
वाशिविचार
१४४१
पर्वरत्नावली
1४४२
१४८०
अंचलमतदलन
१४४७
१४८४
१४८६
आवश्यक अवचूरि उत्तराध्ययन अवचूरि कुलमंडनसूरिकृतविचारामृतसंग्रह गुणस्थानकमारोह त्रैवेधनोटा नमिळणजलक्षेत्रममास वृत्ति यतिजीतकरूप वृत्ति सम्यकाकौमुदी ... कर्मस्तव विवरण सम्यक्तकौमुदी (चोथी) धम्मिलचरित्र (लोकवर) ... पुष्पमाला भवति प्रबोधचितामगि रत्नपोखर कथा ( गधपय ) ...
मित्रचतुष्णकथा पर्युषणस्थिति श्रावगुण विवरण पंचदंडकाप्रबंध विक्रमचरित्र
१४९.
४५९
पंचपरमेष्टिस्तव
१४९० १४९४ १४९४ १४९५
१४६२
१४६२
१४९५
चित्रोडमहावीरविहारप्रशस्ति संदेहदोलावली लवृत्ति ... विक्रम चरित्र (बीन) ... षडावश्यक कृत्ति (मर्थदीपिका)..
Page #497
--------------------------------------------------------------------------
________________
रख्यानो संगत.
अंथन नाम.
रच्यानो संवत.
प्रबलु नाम.
...
१४९६ १४९.
सिंहासनद्वात्रिंशिका कमा वस्तुपानं चरित्र (बाई) अधादशस्तोत्र भरपूरि
१५३
१४९८
१५१० रायकपकया १५२५ प्रतिकमण वृत्ति
श्रीपालनाटकमतरसक्ती वर्णन १५४०
शालिवाहन चरित्र १५४१ বৰিয়ারি জিবি
उत्तराध्ययन वृति उत्तराध्ययन दीपिका दशश्रावक चरित्र (प्रा.) कपूरप्रकरण भवचूरि वईमानदेशना उत्तराध्ययन वृत्ति
१५४४
...
विशतिस्थान परि
चामहोदधि प्रतिक्मणकमविधि श्रावविधि पत्ति बाक्यकांच बवाको वीतरागस्तोत्र भरि (चोथी)... पुलमान पति विमलनाय पीत्र भारंभासी वृत्ति न्यायमंजूषान्यास म्यापमंडलाय
१५५१
१५५४
भुवनमा परित्र (गद) श्रीपालयरित्र का
सोमसौभाग्य
श्रीपालकथा
१५१०
ज्ञानतरंगिणी १५.. दर्शनरत्नाकर १५.३ विचाररसायन प्रकरण
१५१८
मौनएकापसी का (प.) बजयकरूप वृत्ति उपदेशमाछा भवर
१५.२ आचासंग दीपिका १५८३ . सूत्रकृतांग दीपिया
१५१.
...
।
Page #498
--------------------------------------------------------------------------
________________
• अनुक्रमणिका.
रच्यानो संवत. . . ग्रंथ नाम. . . . .
रच्यानो संवत्
ग्रंथर्नु नाम.
...
१६३९
जंबूद्वीप वृत्ति
१६४१ -
भावशतक
५५९, भरतेवर बाहुबलि वृत्ति ५५९१ हैमवृहत्वृत्ति टुंढिका (वृहत् ) ७५९१ हैमचतुर्थपाद वृत्ति १६०३ उपदेशसप्ततिका
१६४४
१६४५
१६०६ शतार्थी
१६१५ रायमल्लाभ्युदय
१६४८
१६५०
१६१७ पौषधविधि प्रकरण वृत्ति १६१७ औष्ट्रिकमतोत्सूत्र दीपिका १६२१ वाग्भट्टालंकार वृत्ति
इरियावहीषट्त्रिंशिका वृत्ति जंबूद्वीप वृत्ति पौषधनिशिका इत्ति ... गुर्वावली ( बीजी) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति वृत्ति(प्रमेयरत्नमंजूषा) स्तोत्रकोश अजितशांतिस्तव ( बीजो ) .... भक्तामरस्तोत्र वृत्ति रामचरित्र ( गद्य) चतुर्विंशतिजिनस्तोत्र कृत्ति मंडलप्रकरण वृत्ति .. मौनएकादशीकथामहात्म्य
१६५१
भावप्रकरण
१६५२
पिंडविशुद्धि दीपिका अवचूरि
१६५९
उपदेशरत्नमाला
१६५२
१६२८
कल्पकिरणावली
१६५३
१६५४
१६५४
शब्दभेदनाममाला वृत्ति
१६५४
शिलोंछनाममाला वृत्ति
हिताचरण प्राकृतवृत्ति
पार्श्वनाथ चरित्र (सं.) ... १६३३ नयप्रकाश सटीक १२३४ स्थूलिभद्रचरित्र ( शीलप्रकाश )...
गच्छावार वृत्ति . १६३६ रूपसेन चरित्र
... १६३७ । साधयन शिकार
ज्ञानपंचमीकथा
- दानप्रकाश
१६५६
ऋषभशतक
१६५०
विचाररत्नसंग्रह
Page #499
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
१११
रच्यानो संवत्.
ग्रंथy नाम.
रच्यानो संवत्. .. प्रधनुं नाम.
१६८५
१६६०
१६८८
१६९६
उत्तराध्ययनकथाओ गौतमकुलक लघुवृत्ति ... पांडवचरित्र ( बाजु) गद्य ... हैमव्याकरण दीपिका दुर्गपदप्रबोध
अनिट् कारिका विवरण রমাদ্বাৰাৱিক
१६६०
अनेकशास्त्रसारसमुच्चय विजयप्रशस्तिकाव्य वृत्ति ... कल्पमुबोधिका उपसर्गहरस्तोत्र वृत्ति (त्रीजी)... स्थानागवृत्तिगतगाथा वृत्ति लोकप्रकाश कल्याणमंदिर स्तोत्र वृत्ति जैनधर्मवर स्तोत्र
१६६३
१७०५
१६६३
१७०८
पानादि कुलक चार वृत्ति
१७१०
अधिधानचिंतामणि नाममाला
१७११
सारोद्धार
१७११
.
,
वृत्ति
स्याद्वादभाषा
१७१२
पावळी
१७३६
कल्याणमंदिरस्तोत्र वृत्ति नेमिनाथ चरित्र (सं.) विवेकविलास वृत्ति
... ...
योगरत्नाकर हैमकौमुदीलघुप्रक्रिया
१६६८
१७३७
१६७१
१७४६
अष्टलक्षी
१६७४
कल्पप्रदीपिका
१६७४.
अध्यात्मकल्पद्रुम वृत्ति (बीजी)...
१६७७
कुमताहिविषजांगुली
१६७७
कल्पदीपिका
१७६५
चातुर्मासीपाख्यान हैमकौमुदी प्रद्युम्न चरित्र जातकदीपिका वृत्ति उपदेशमाला वृत्ति कल्याणमंदिर स्तोत्र (मोजु) ... हुताशिनी कथा
उत्तराध्यन वृत्ति
१७८१
१६.
धातुरत्नाकर
१७९५
Page #500
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका.
रच्यानो संवत्.
अंथर्नु नाम.
रच्यानो संवत्.
ग्रंथ, नाम,
-,
-....--
१८५०
उपदेश शतक (बीजु) उपदेश शतक
जीवविवार वृत्ति प्रश्नर्षितामणि
१८६८
१४.४
मात्रपंचाशिका मा
१८८३
आत्मप्रबोध
Page #501
--------------------------------------------------------------------------
________________
पृष्ठांक.
"
3
८
१०
१२
"
૧૪
१२
31
२८
"
93
३२
४८
५०
५१
५४
६६
255
७६
22
પત્ર
"
७९
22
८०
"
૧
.
44
पंक्ति,
१४
२
१२
१९
१३
अशुद्ध
वर्णि
समवायाग
घुवति
पति
द्वादशांगीवृत्ति
१६०००
७००
१००
अवन
शुद्धिपत्र.
च्यानो संवत् ८९०
अवचूर्णि
पर्याय
वेत्यवंदनावचूर्णि बृहचैत्यवंदनसटीक.
प्रतिक्रमणसंप्रहणी
पूर्व
रत्नसागर
कल्पसमर्थम
श्लोक १८००
1 Dec.
योनिप्राभृत S. H.
पंचविमर्श
प्रमाणग्रंथ
प्रबोध
#
"
वृत्ति
वादरत्नाकर
श्लो. ७००० सिद्धांतरत्न
सिद्धांत रत्नावली
सुमतिसाधु
: अपौरुषेय देवनिराकमण : जिवास्तित्ववाद
शुरू.
चूर्णि.
समवायांग
लघुवृत्ति
वृत्ति.
प्रवज्याविधान वृत्ति.
-१४०००
१७४६
41.0
प्रद्युत्र. श्लोक ८९०
विशेषचूर्णि
सर्वसिद्धांतविषमपदपर्याय.
चैत्यवंदनावचूर्णि
सकलाईन् टीका.
आवश्यक नियुक्ति
पूर्व
रत्नसागर तथा सहजकीर्ति
कल्पांतराश्रितवृत्ति.
श्लोक १७००
अनेक पत्र छे.
कनमा अपूर्ण.
S.K.
भारंभसिद्धि
डेक्कनमा नथी
डेकनमा नथी बेनमां नथी
स्यादवादरत्नाकर
हो. ३००० डेक्कनमा नथी
डेक्कनमां नथी
साधुविजय
अपौरुषेय वेदनिराकरण
- डेक्कनमां नथी
Page #502
--------------------------------------------------------------------------
________________
पृष्ठांक
१०
S„
14
१००
**
११७
"
१२३
"
११५
१२९
27
१३०
१३२
13
१४८
१५३
१५५
१५९
13
"
"
१६४
१७६
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१७८
>>
>>
૧૩
१६
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150
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१६
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૧૪
१५
५
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५
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१४
१४
59
१३
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ર
१३
४
93
१५.
अशुरू
efere
न्याय सदर्थ संप्रह
erreiroयाख्या
हरिभद्र
मुक्ताशुकि
शतक
भाष्य
जीवविचार (बीजो )
चार्य
वृहद्भवतत्व शास्त्रवातीसंग्रह अनेक शास्त्रसारसमुच्चय
ग्रंथसारसमुचय पंचास्तिप्रबोधसंबंध
जिनेश्वरनाम प्रकरण
सिद्धसुखविंशिका
आलोचना रत्नाकर
उपासकपाठ
ओसामाचारी
केवली प्रकरण मिथ्यात्वमथनचर्चरी प्रकरण
वादिविचार विचारश्रेणि
वृति उपदेशशतक कृष्णयुधिष्ठिरधर्मगोष्टी
कामघट
जयंती प्रश्नोत्तरसंह
वृत्ति
ज्ञानचतुर्विंशतिका धर्मोपदेश
भावना प्रकरण
रुपकमाला
श्रावकप्रबोध सम्यकपरीक्षा
शुद्ध,
षट्दर्शन लघुवृति
अन्यमतीय
अन्यमती
हरिप्रभ
प्रथमना वेस्तबकविनानी
ठेक्कनमा नथी.
डेक्कनमां नथी
डेक्कनमा नथी.
शैलाचार्य
मूलनो गुजराति भाषार्थ के. शास्त्रार्थसंग्रह.
चारभावनादिक अनेक प्रकरणो
तुटक छे. डेकनमा नथी.
डेक्कनमा नथी.
जिनेश्वर सहस्त्रनामस्तोत्र.
हरिभद्रसूरिनी वीशमी पीशी. रत्नाकरपचीशी.
उपासक दशांगसूत्र. ओनियुक्ति.
डेक्कनमां नथी.
काळस्परुप कुलक.
वारिविचार ( मेरुतुंगकृत ). महावीरस्वामीनी काळरात्रीसंबंधी
चर्चा.
डेकनमा नथी.
१०० सो दृष्टांत.
जैननोज छे.
कामघटकथा.
डेक्कनमा नथी.
'डेक्कनमा नथी.
नारचंद्रज्योतिष.
उपदेशशतक.
भावना कुलक. कर्ता अन्यमती. वर्धमानदेशना. सम्यक्कपरीक्षा बालावरोध
Page #503
--------------------------------------------------------------------------
________________
पृष्ठाक.
अशुद्ध.
१०५
विमलसूरि वृत्ति संवेगचूडामणि. संवेगद्रुममंजरी संयमकवि संवेगमंजरी सिद्धांतरत्नावली दवसूरि हेमविजय क्षमर्षिप्रबंध नंदोपाख्यान भोजप्रबंध विक्रमादित्य चरित्र रामचंद्र
११८
शुद्ध विबुधावमलसूरि. हेक्कनमा नथी. डेनमां नथी. संवेगद्रुममंजरोनी चोपाई. कुशलसंयमकवि डेक्कनमां नयी. डेक्कनमा नथी. देवसूरि. (दीगं.) हेमविजय अनेक प्रबंधो छे. नवनंदकथा. डेक्कनमा नथी. विक्रमादित्य पंचदंड छत्रप्ररंक. क्षभवचंद्रना शिष्य रामचंद्र. (रच्यानो संवत् १४९०) कुमारपाळप्रवंधमांनो छे. कर्ता अन्यमति व्यास. रूपसेन कनकावती चरित्र डेक्कनमा नथी. पप्रचरित्र (विमलसूरिकृत) डेक्कनमा नथी. देवविजय गणि. डेक्कनमा नथी डेकना नयी जयकीर्वि (प्रा.) (प्रा.)
५
२२२
सोलकप्रबंध हरिवंश कनकावती चरित्र. कृष्णचरित्र पद्मावती चरित्र भरत चरित्र दवविजयगणि श्रीचंद्रकेवली चरित्र
३
"" प्रशस्ति
२३४
अयकार्ति (सं.)
Page #504
--------------------------------------------------------------------------
_