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जैन न्याय.
रच्या
नंबर
नाम.
श्लोक
कर्ता.
क्यां छ?
नोर
वृत्ति A
मल्लवादि
वृत्ति
B
डेक्कन.
रेकन.
३
सर्वसिद्धिप्रकरण ও স্থবির वृजेसल,अ.२, डेकन ३२ सिद्धांतरत्न
१००० विनयचंद्र ३३, सिद्धांतरत्नावली E ८५० जिनोदयशिष्य
हेमसूरिनाशिष्य सुबोधमंजरीG
अ.२ वृत्ति
म.२ ३५ स्यावादमंजरी
मल्लिषेण १३४९. सुलभ्य. मुद्रित. स्याद्वादरत्नाकर म
१३००० वादिदेवसूरि वृ.पा.१.२, जे.अ.१
१२को डेकन. A आ वृत्ति वृहटिप्पनिकारे भोकसंख्या साथे नोधी छे, छतां ते दुर्लभ्य यई पड़ी छे, माटे एवा अपूर्व ग्रंथोनो पत्तो लगाडवा माटे आपणा मुनिमहाराजाओए खास लक्ष्य राखq घटे छे.
B आ त्रीजी वृत्ति माटे वृहटिप्पनिकामां आ राते उल्लेख छ:-" सम्मतिवृत्तिरन्यकर्तका." Cआ ग्रंथ न्यायनो छे के व्याकरणनो छे ते जाणवा माटे तेनी प्रत जोवानी खास जरूर छे. D विनयचंद्रसूरए सं. १३२५ मां कल्पनिरुक्त रचेल छे.
E आ ग्रंथना आद्यतनो उल्लेख पीटर्सनना चोथा रिपोर्टमां पाने १२४ मां आपेल छे. ___F जिनोदयसरि खरतरगच्छमा ५४ मां पाटे या छे. तेओ सं.१४१५मा आचार्यपदे आध्या अने स. १४३२ मां स्वर्गवासी थया. तेमना शिष्य हेमसूरि थया अने ते हेमसूरिना शिष्ये आ ग्रंथ करल छे.
G सुबोधमंजरी ए न्यायनो ग्रंथ छे के व्याकरणनो छे के औपदेशिक ग्रंथ छे ते चोकसपणे प्रय जोए मालम पड़े, पण त्यां लगण अमे एने इहां न्यायग्रंथमां नोध्यो छे.
H स्याद्वादरत्नाकर चौरासी हजार श्लोकनो हतो, एम परंपराधी सांभळेल छै, वहटिप्पनिकामां तेना श्लोक ३६००० नोध्या छे. परंतु हालमां तो ते तेर हमारनो अपूर्ण ग्रंथज मळे छे. आ एक खरेखर खेदनी बिना छ के आवा उत्तम ग्रंथ माटे जो पूरी काळजी राखवामां आवी होत तो तेनी आवी दुर्दशा नहि थात. पण ज्यारे अमूल्य ताडपत्रोना भंडार कोईने पण बताव्या वगर लांबा वखत लगण बंध बारणे रखाया हशे त्यारेज आवा उत्तम ग्रंथो नष्टप्राय जेवी स्थितिए पहोंच्या छे. विशेषमा ए जणाक्षु पडे छे के हजू पण जो आपणा लोको सुलभ्य ग्रंथोना उतारा पर उतारा करायता रही अपूर्व पुस्तकोना उद्धार माटे तदन वेदरकार रहेथे तो ए अपूर्व ग्रंथो टुक मुदतमां गुम थई जशे एमां जराए संशय नथी. 1. I वादिदेवसूरि ए नाममां वादि ए विशेषण छे अने देवमरि ए नाम छे. तेओ मुनिचंद्रसरिना पाटे थया छे. तओनो जन्म सं. ११४३ मां, दीक्षा ११५२ मां, सूरिपद ११७४ मां अने स्वर्ग ११२२६ मां थयो छे. एटले तेओ हेमसूरिना समकालीन हता. तेमणे सं. १९८१ मां सिद्धराजनी सभामा दिगंबर कुमुदचंद्रने हरायो हतो. वळी तेमणे सं. १२०४ मां फलोधीमा प्रतिष्ठा करेली छे.
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