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________________ जैनन्याय. रख्यान नंबर नाम. (श्लोक. । कसा. क्यां छे! नोस. बृहत्षड्दर्शनसमुच्चय । टीका सप्तमंगीतरंगिणी ५३ संशयिवदनविदारण सुखबोधार्थमालापद्धति सिद्धसेन A गुणरत्न B विमलदास शुभचंद्रशिष्य मुद्रित. अ.२ मुं. भोइवाडो.. १०३१ पत्र १५ देवसेन + आ चिन्ह माटे दिगंबर न्यायनी शरुआतमां अध्याप्तिवाद उपरनी नोट जुओ. A आ सिद्धसेनसरि ते सिद्धसेन दिवाकर छे. सिद्धसेन दिवाकरने श्वेताम्बर तथा दिगंबर बन्ने माने छ. तेमर्नु अपरनाम कुमुदचन्द्र हतुं अने ते नामपरथीज दिगम्बरो तेमने दिगम्पर सरीके माने छे. }. B आ गुणरत्नसूरि श्वेताम्बर होवा जोइये. कारण के श्वेतांबराचार्य हरिभद्रसूरिकृत षड्दर्शन समुच्चयनी टीका पण गुणरत्नसूरियेज रचेल छे. श्वेताम्बराचार्य गुणरत्न के यया जाणवामां आव्या छे. एक माणिक्यसूरिना शिष्य हता. अने बीजा देवसुंदरसूरिना शिष्य के जेमणे हरिभद्रसूरिकृत षड्दर्शन समुञ्चयनी टीका वि. सं. १४६६ ना अरसामां रची छे. ते प्रमाणे आ सिद्धसेनकृत षडदर्शननी टीका पण तेज गुणरत्नसूरिये रची शेवी जोइये एम अमारुं अनुमान थाय छे. छतां आ टीका कोइ स्थले उपलब्ध थाय तो वे कया समयमा थई छे, अने आ गुणरत्न कोण हता तेनो तपास करी नक्की कर जोइथे.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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