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________________ जैन फिलॉसोफि. नंबर. नामा श्लोक. क्यां छे? १८५० धर्मपरीक्षा A धूर्ताख्यान(प्रा.) निजतीर्थिककल्पितकुमत निरास C पर्वरत्नावली पर्वविचार पयुषणस्थिति पर्युषणशतकप्रकरण जिनमंडन B पा. २ বিজুৰি द्वि.हरिभद्र वृ.म.१ जयसागर D १४७८ . २ दयावर्द्धन | A.S. हर्षभूषण १५८६, पा.५ धर्मसागर भावनगर. २५८ वृत्ति भाव जामनगर २२०० वारविजय १८६८ वं. प्रश्नचिंतामणि प्रश्नोत्तरपंचाशिका प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक प्रतिमाहुंडी ३७ पूर्णिमागच्छीयविचार o A आ ग्रंथ खास उतारवा योग्य छे. B जिनमंडनगणि सोमसुंदरसूरिना शिष्य हता. एमणे कुमारपालप्रबंध सं. १४९२ मां रचेल छे. C आनु बाजु नाम तत्वबोधप्रकरण छे. वृहटिम्पनिकामां तेना माटे आवो उल्लेख छ:-"निज तीर्थककल्पितकुमतनिरासापरनामक तत्त्यबोधप्रकरणं हरिभद्रीय आंचलिकपौर्णमतछिद्रं ५०४०', D आ जयसागर उपाध्याय ते खरतर जिनराजमारना शिष्य इता. एमणे सं.१४९५ मां संदेहदोलावली उपर विधिरत्नकरंडिका नामनी लघुटीका रची छे. E दयावद्धनगणि विक्रमनी सोळमी सदीना अंतमां थएला छे.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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