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________________ जैन औपदेशिक. १७५ नाम. नाम. श्लोक. का. रच्या नो सं. क्यां छ? वृ. पा.३-४ अ. २ डेक्कन. ४२० डेक्कन. ३२ ऋषिमंडळसूत्र A गा . २१० धर्मघोष वृत्ति (पेली) पद्ममंदिर वृत्ति (बीजी) शुभवर्द्धन B वृत्ति (श्रीत्री) हर्षनंदन C वृत्ति (चोथी) D आंच. भुवनतुंग वृत्ति ( पांचमी) | प. ३६१) स्वर. जिनसागर वृत्ति (छठी) प. १३५ कीर्तिरत्न अवचूरी ऋषिमंडळस्तव E वृत्ति ३४ ऋषिमंडलस्तोत्र (सं.)F ७० मेस्तुंग अ.१ A एना माटे वृहटिप्पनिकामां " भत्तिभरेतिऋषिमंडलसूत्र गा. २१. " आ रीते नोंध छे. एजें अपरनाम महर्षिकुल पण छे. B आ शुभवर्द्धनगणि ते सोमसुंदरसूरिना संतानमांना साधुविजयगणिना शिष्य हता, एटले तेओ विक्रमनी सोलमी सदाना मध्यमां थया होवा जोईए. C आ हर्षनंदन उपाध्याय अढारमी सदीना शरुआतमा थया छे तेज होवा जोईए. D आ वृत्ति फक्त लींबदीना भंडारनी टीपमा नोंघी छे, पण ते त्यां श्लोक ४००० सुधीनी एटले दशार्णभद्रनी कथा लगी छे. बाकीनो थोडौक भाग अपूर्ण छे. E ऋषिमंडल स्तवने प्राकृतमा इसिमंडलस्तव एम कहेयाय छे. वृहटिप्पनिकामा एना माटे " इसिमंडलेल्यादि ऋषिमंडलस्तव गा. २७१, आवो नोध छे. एने महर्षिस्तव पण कहे छ. आ स्तव तेनी वृत्ति साथे वृहटिप्पनिकामां नोध्यो छ, पण हजुसुधी अमोने ते क्या पण उपलब्ध थयो नधी माटे सदरहु अंथनो तेनी वृत्ति साथे ज्यां होय त्यांची पत्तो मेळववो जोईए. | F आ स्तोत्र संस्कृतमां रचायलुं छे अने तेनी ७० कारिकाओ छे. वृहटिप्पनिकामां तेना माटे “ऋषिमंडलस्तवः सं. मेरुतुंगसरिकृतः कारिका ७० " आवो उल्लेख छे.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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