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________________ जैन औपदेशिक नाम. श्लोक. कत्ता क्यां छ? डेकन. श्रावकप्रबोध पत्र ३६६ शुभवर्द्धन श्रावकलक्षणसप्तदशक A| १५५५ প্রবন্ধৰিনাৰ B श्रुतास्वादशिक्षा |गा.१६० सहजकुशल | पा. ४ खं. नगीनदास पा.४ षष्ठिशतक गा.१६० नेमिचंद्र श्रावक मुद्रित. वृत्ति अवचूरि पा. ४ को. भा.को. का. ५२ विमलाचार्य सजनचित्तवल्लभ सवृत्तपंचाशिका सम्यक्त्वकलिका D सम्यक्त्वपरीक्षा : पत्र३१४ विमलसूरि चंद्रप्रभ F डेक्कन पेज ३२ वृ. पा. २ सम्यक्त्वप्रकरण A आ अथ संस्कृत प्राकृतमां रचायलो छ. B आ श्रावकविचार खंबातना शेठ नगीनदासना भंडारमा छे, त्यां पण ते अपूर्ण स्थितीमां छे. ___C आ वृत्ति फक्त कोडायना भंडारमा छे. D आ सम्यक्त्वकालिका शेरालाले नोंधी छे माटे शक पडती छे. E आ ग्रंथ डेकन कॉलेजना रिपोर्टमा पेज ३२ मां पत्र ३१४ नो नोध्यो छे पण बीजे कोई पण स्थळे उपलब्ध थयो नथी. F आ सम्यक्त्व प्रकरणना करनार चंद्रप्रभसूरि ते पौर्णमिक चंद्रप्रभसूरि छे, I
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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