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जैन औपदेशिक
| नंबर
नाम.
लोक. की. ज्या
क्या छ ।
८०००
स्वर.श्रीतिलक १२७७ यु. पा. ४ जेसल.
१२००
वृत्ति A
वृति B (पीजी) १४३ सम्यक्त्वप्रकाश
सम्यक्त्वरत्नमहोदधि सम्यक्त्वसप्ततिका
वृति
डेक्कन पेज ११८
पा.१ हरिभद्र
पा.५ ७७११ संघतिलक D १४२२. पा.३-४ जे. राधन, ३५७, शिवमंडन
पा.६ पत्र ३३० विवेकसमुद्र जेसल. बे.
जेसल. २०५४ हरिभद्र
अ. १ डे.
अधचूरि सम्यक्त्यालंकार : सम्यक्त्वोद्धार F संबोधप्रकरण G
____A आ वृत्ति माटे वृहटिप्पनिकामां “ सम्यक्त्ववृत्ति: सूत्रकार चंद्रप्रभसरिसंतानीयश्रीतिलकीया १२७७ वार्षिका ८००० " आवी रीते नोंध छे.
B सदरहु वृत्ति पण फक्त वृहटिप्पनिकामा नोंधेली छे, ते टिप्पनिकामां तेना माटे " सम्यक्त्व. वृत्तिः प्रावतकथागर्भा १२००० " आवो नोध छे, कर्त्तानुं नाम आप्यु नथी. पण ते हजुसुधी अमोने कोईपण भंडारमा उपलब्ध थई नयी.
0 एनुं अपरनाम " दर्शनसत्तरी " छे. ___D आ संघतिलकाचार्य रुद्रपल्लीय गुणशेखरसूरिना शिष्य अने प्रश्नोत्तररत्नमालानी वृत्तिना करनार देवेंद्रसरिना गुरु हता.
E आ ग्रंथ जैसलमेरनी बन्ने टीपोमां नोंधेलो छ, पण त्यां सम्यक्त्वालंकारादि आवी रीते आदिपद ओडेल होवाथी बीजा कया कया ग्रंथो छे ते जाणवा माटे प्रत जोवानी जरूर रहे छे.
____F आ सम्यक्त्वोद्धार जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नोच्यो छे, पण तेनी श्लोकसंख्या के कांह इकीकत आपी नथी. ___G एनुं बीजं नाम " तत्वप्रकाशक " छे. आ ग्रंथ पूर्वे हरिभद्रसूरिना वर्गमां नोध्यो छे, छतां ते उपदेशनो होवाथी पुनरपि इहां पण नोधवामां आव्यो छे.
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