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________________ जैनन्याय. नंबर. नाम. श्लोक. कर्ताःच्या क्या छ ? टे, भा. मथुरा, डेकन. धर्मसागर मुद्रित. वृ. मुं. गुलालवाडी १९ (१)मयचक १८० देवसेन वृत्ति (२) नयचक नयवाद। प्रभादेव न्यायदीपिका धर्मभूषण न्यायकुमुदचंद्र A अकलंकदेव ___ न्यायकुमुदचंद्रोदय प्रमाचंद्र २४ न्यायविनिश्चयालंकार + ३०००० अकलंकदेव न्यायविनिश्चयवृत्ति अनंतवीर्य न्यायसदर्थसंग्रह म्यायामृत । माशाधर परीक्षामुख | पत्र ४२, माणिक्यनंदि वृत्ति (प्रमेयरत्नमाला) १५००/ अनंतवीर्य पत्रपरीक्षा प्रमाणप्रेमयकलिकाB कोडाय. पत्र५१३ डेक्कन व. डेक्कन मुद्रित. + आ चिन्ह माटे पेज ८७ मां अध्याप्तिवाद उपरनी नोट जुओ. A आ ग्रंथ वृहटिप्पनिकामां तेनी वृत्तिसाथे नोंधायो छे. अने तेना माटे त्यां आवो उल्लेख है:न्यायकुमुदचंद्रसूत्रवृत्ती दिगंबरी अकलंकदेवप्रभाचंद्रकृते सू. वृ, १६०००। B प्रमाणप्रमेय कलिकाना मूळकार कोण छे ते जाणवामां आव्यु नथी.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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