SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनन्याय. नाम. श्लोक. कता. क्यां छ? वृत्ति २००० डे. को. वृत्ति नरेंद्रसेन शांतिसूरिA विद्यानंद वृ. पा.२ ३१ प्रमाणनिर्णय * ३२ प्रमाणमीमांसा * प्रमाणविलास * ३४ प्रमाणदीपिका * (१) प्रमाणनौका ३६ (२) प्रमाणनौका * प्रमाणपरीक्षा प्रमितवाद * प्रमेयकमलमार्तण्ड भाषामंजरी धर्मभूषण प्रमाचंद्र वादिसिंह धीरसेन विद्यानंद प्रभादेव १२००० प्रभाचंद्र २४०० | महाकलंक जयपुर वृ.पा.२-७मुं. भो-- वाडो. वृति - A आ शांतिसूरि तेमना नाम उपरथी ते श्वेताम्बर होवा जोइये. अने आ ग्रंथ सरस होवाया तेना उपर तेमणे आ टीका रची होती जोहये, कारण के श्वेताम्बर आचार्योए अन्यमतिना ग्रंथोपर पण, टीकाओ रचेली छे. आ वृत्तिनी प्रत ताडपत्र उपर लखायेली पाटणमां मोजूद छे. म्पटे तेनो खास करी. उतारो करी लेवानी जरूर छे. *आ चिन्ह माटे पेज ८७ मां अव्यातिवाद उपरनी नोट जुओ.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy