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________________ प्रस्तावना आ ग्रंथावळीचें कार्य अमे अमारी अल्प मति मुजब तेमां जणावेला ग्रंथर्नु नाम, कानुं नाम, श्लोकसंख्या तथा रचना काळना संवतनी चोकसी करवा माटे अमाराथी बनती काळजी राखी पूर्ण लक्ष आप्यु छे. छतां भूल करवी ते मनुष्य मात्रनो स्वभाव छे. अने क्षमा करवीं ए सज्जनोतुं शील छे ए उक्ती मुजब अमारा अल्प ज्ञानना योगे मतिदोष अगर प्रुफ सुधारती वेळाए दृष्टीदोषथी ग्रंथना नामनां, श्लोकसंख्यामां, कर्ताना नाममां, रचना काळम, तथा पद्धति आदिमां जे कांई भूल चूक थइ होय तेनी कृपापर मुज्ञो हंसनी पेठे उदार बुद्धि वापरी क्षमा करशे अने अमने लखी जणाववा तस्दी लेशे एवी अमे नम्रतापूर्वक प्रार्थना करीए छीए. विशेषमा विनंती करवानी के नीचे आपेली फुटनोटोमा अमे जे जे ग्रंथो दुर्लभ्य जणान्या छे. ते ते ग्रंथो माटे विद्वान मुनि महाराजाओए खास लक्ष राखी शोध खोळ करी ते ग्रंथो दृष्टीगोचर थतां तेमनी हकीकत तथा अमे जणावेला ग्रंथना नाममा, श्लोकसंख्यामां, कर्ताना नाममां अगर रचना काळमां जे काइ भूल तेमना जाणवामां आवे ते बाबतनी सूचना आ कोन्फरन्स ओफीसना सेक्रेटरीपर मोकली आपयामां आवशे तो तेनो महाउपकार साथे स्वीकार करी हेरल्ड पत्र मारफत ते प्रसिद्ध करवामां आवशे. ॐ शांतिः पायधुनी मुंबई. । ता. १-३-०९ । श्री जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्स.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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