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________________ जैन औपदोशक. १७९ नाम. श्लोक. कर्ता. क्यां छे ? शानांकुश A का. २८ वृ. भ.१ तत्त्वबिंदु B ६२ तीर्थमालाप्रकरण पत्र अ.१ ७०० दर्शनमाला C (सं.) दर्शनशुद्धिप्रकरण D वृत्ति जेसल. गा.२२६ चंद्रप्रभ वृ. ली. पत्र ८६. विमलगणि E १९८४ पा. १ ३८०० देवभद्र F वृ.पा. १.२-४.५ ली. डेछन. पत्र ४ सोमविमल G वृत्ति ६४० अपचूरि दशदृष्टांतगीता (प्रा.) डेक्कन. A आ ज्ञानांकुश कुलक जेवू लागे छे छतां तेना नाम उपरथी ते ग्रंथ पण होई शके माटे हाल अमे तेने अंथ धारीने इहां नोध्यो छे, ___B आ तस्वबिंदु सूक्तरूपे छे. C आ नामज शक पहतुं लागे छे कारण के ते संबंधी कोई बीजो पुरावो जोवामां आवतो नथी अने ते जेसलमेरनी रीपमां हीरालाले नोध्युं छे. तो ते शा बाबतनो ग्रंथ छे अने तेनुं खरू नाम शंके ते बाक्तनी चौकस खातरी करवा माटे तेनी प्रत फरीथी तपासवानी जरूर छे. ____D आ दर्शनशुद्धिनुं नाम संदेहविषौषधि छे. पिटर्सन रिपोर्ट त्रीजाना पेज १४५ मां एनु अपरनाम सम्यकप्रकरण छे एम जगावेल छ, सम्यक प्रकरणना करनार पण पोर्णमिक चंद्रप्रभसूरि होवायी आ बन्ने ग्रंथो एकज छे के जुदा जुदा छे ते बाबत शक रहे छ. माटे हालमां अमे तेमना नाम नीच नोट आपा जुदा जुदा नोंध्या छ. हमणा पंन्यासजी आणंदसागरजी महाराज तरफथी खबर मळी छे के, दर्शनशुद्धिना करनार पौर्णमिक चंद्रप्रभसूरि नथी पण चंद्रसूरि छे. __E आ विमलगणि धर्मघोषसरिना शिष्य इता. F आ देवभद्रसूरिनी वधु हकीकत जाणवा माटे आ वृत्तिनी प्रशस्ति जोवानी जरूर छे. G आ सोमविमलसूरि हेमसोमसूरिना गुरु हता, तेओ तपगच्छना नायक तरीके सं. १६४६ मां विद्यमान हता,
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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