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________________ ७४ जैनन्याय. नंबर. नाम. श्लोक. १ कर्ता क्यां छ? वृत्ति A वृ. पा. ली. को. मुं. मुद्रित. नयचक B नयरहस्थ सिद्धर्षि देवचंद्र ५९१ यशोविजय हरिभद्र ८८७ पा. ५. १०८ न्यायप्रवेशकसूत्र. वृत्ति टिप्पन D वृ.पा. ४. घृ., पा. २५. । श्रीचंद्र A नयचक्रना टीकाकार कोण छे ते रोनी लीबंडीना मंडारमा रहेली प्रतमा जणाववामां आव्यु नयो तेमज वृहटिप्पनिकाकारे' पण तेना कर्मोनू नाम आप्यु नथी. छतां पाटणनी टीपमाथी एवी नोंध मळे छ के तेना का सिद्धर्षि छ. तो आ सिद्धर्षि पूर्वे जीतकल्पसूत्रनी फुटनोटमा जणावेला पांच सिद्धसेन नामना सूरिओमांथी क्या सिद्धर्षि छे ते शोधवानी जरूर छे, तेमाटे विद्वान् मुनिमहाशयोने, विनंति करवामां आवे छे के तेमना पासे जो सदरह टीका भोजुद होय तो तेना अंतमां तेना का माटे जे कंई प्रशस्ति लेख होय तेनी नकल कान्फरन्स ऊपर भोकलावी आपवा महेरबानी करवी. B आ नयचक्र प्रकरणरत्नाकरना भाग पेलामां छपायल छे, अने ते सूत्ररूपे नहि पण विस्तारित गद्यमां गुजराती भाषामां रचायलुं छे.. C आ देवचंद्र ते खरतरगच्छना देवचंदजी महाराज छे के जेमणे चौविशी रची छे. तेश्रो विक्रमनी अढारमी सदीनी आखरमा विद्यमान हता एवू सांभळयामां आव्यु छे. D आ टिप्पन फकत वृहटिप्पनिकामां नोधायलं देखाय छे; बीजे स्थळे उपलब्ध थयु नथी. बृहत् टिप्पनिकामां तेनामाटे आगो उल्लेख छ:--- " न्यायप्रवेशकटिप्पनं ११६८ वर्षे श्रीचंद्रीय लोकसंख्या कई आपी नथी. माटे आ ग्रंय .पण जे कोई मुनिमहाशयना जाणवामां के जोयामां आव्यो होय तो तेमणे ते विषे अमने माहिती आपली तथा तेनी लोकसंख्या सूचववी.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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