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________________ जैन औपदेशिक नंबर.. नाम. श्लोक. कल की. क्यां छे! 0 १४९१ पा. २-३-४ डेकन. अ..१ डेकन पेज ३४१ डेकन. १५६६ पा. ३-४ लीबडी. १६४८/ पा. ३-४ पा. ३-४ कीबडी. वृत्ति कुमारपालप्रबंध २४५६ जिनमडंन कुमारदेवप्रबंध समर्षिप्रबंध(सं.) गुरुगुणरत्नाकरकाव्य A] पत्र १२ गुर्वावली B ७५८ मुनिसुंदर गुर्वावली (बीजी) धर्मसागर स्वोपक्ष गुर्वावली (श्रीजी) गुर्वावलीविशुद्धि गुरुस्तुति १५/ चतुर्विंशतिप्रबंध D ४००० राजशेखर १६ चित्रोडमहावीरविहारप्रशस्ति का.१०४ चारित्ररत्न १७ जगप्रबंध जयसिंहप्रबंध (गद्य) । पत्र ५/ जिनचंद्रचतुःसप्ततिका |गा. ७४ जिनकुशल जिनप्रभप्रबंध |पा.४ | पिटर्सन रि. ५ १४०५ वृ. पा. १-३-४ १९५/ खंबात. लीबडी. पत्र २ अ.१ लीबडी १२०/ पा.४ A एर्नु अपरनाम “ सोमचरित्र , छे. B एन बीजु नाम “ त्रिदशतरंगिणी " एवं छे. C आ गुर्वावलीविशुद्धि ते वखते धर्मसागरसूरि कृत गुर्वावलोनी वृत्ति तो नहि होय माटे तेनी प्रत फरिथी तपासवानी जरूर रहे छे. ____D वृहत् टिप्पनिकामा एनामाटे " १४ प्रबंधः ८४ कथाश्रराजशेखरसूरिकृतः॥ आपो उल्लेख के,
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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