SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ नंबर, ८ आराधना पताका गा. ९९३ ७ siverer प्रप्ति गा.२२३ १० नाम. ज्योतिष्करंडक वृत्ति (ससूत्र ) अंगविद्या अवशिष्ट पयन्ना. तिथिप्रकीर्णक त्रीजी गणत्रीए १० पयन्ना. पिंडविशुद्धि गा. १०३ वृत्ति श्लोक. १२०० २८० १८५० ५००० ९००० १२५ ४००० २८०० वीरभद्र ५५० कर्ता. मलयगिरि जिनवल्लभ $ श्रीचंद्र + यशोदेव रव्यामो संवत्. १०७८ A. S. लघुवृत्ति पिका (लघुवृत्तिरूपा ) वीरभद्र सम्बन्धी विशेष इतिहास मळ्यो नथी, परंतु संवत् मन्युं छे. वृहद्दिष्पनि काम ११८० ११७६ * जिनवल्लभगणि विक्रमनी बारमी सदीना मध्यमां हता. + श्रीचंद्रसूरि ते मलधारि हेमचंद्रसूरिया शिष्य छे. तेमणे संवत् ११९३मां मुनिसुव्रत स्वामिनुं चरित्र के तेमना गुरु हेमचंद्रसूरिनी संवत् १९६४ मा स्वहस्तलिखित पोथी पाटणमां मोजूद छे. एम फिलहार्ने |" एगवोससहस्से " भूलथी छपायुं छे ते परथी पिटर्सनसाहेब गोथो खाध लागे छे. आ वृत्ति माटे वृत्तिकार श्रीचंद्र ते मलधारि हेमचंद्रसूरिनांज शिष्य छे एम चोकस निर्णय थाय छे. + आ दीपिका बृहद्दिप्पनिका शिवाय उपर बतावेल कोईपण भंडारमां उपलब्ध यह नथी.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy