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जैनन्याय.
नबर.
नाम.
. | श्लोक.
का.
या
क्या छ ?
पत्र ८
भा.
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नयप्रदीप A न्यायतत्व B न्यायाष्टाध्यायी c प्रमाणसार D प्रमाणांतःस्तव F लिंगलिंगिविचार । विप्रवक्त्रमुद्गर श्वेतांबरदर्शनसिद्धि
पत्र २५/
३०० हर्षमुनि E १२०० यशोदेव G
ली.
जेसलमेर.
१५००
I
A नयप्रदीप कोणे रचेल छे ते माटे भावनगरथी खबर मेळववानी छे. B आ नाम पण हीरालाले नोंघेलं छ एटले शक पडतुं छे.
C न्यायाष्टाध्यायी पाटणनी टीपमा जैनकृत जणाी छे एटले तेना भरोसे अमे इहां तेने नोधी छे. छतां शक रहेछे के वखते ते गौतमप्रणीत न्यायसूत्र तो नहि होय, माटे आ पुस्तक जोवानी पण खास जरूर छे.
D प्रमाणसार जैनन्याय ग्रंथ छे के परमतना न्यायपर जैनकृत व्याख्याग्रंथ छे ते संबंधे कई नोधायु नथी एटले ते ग्रंथ जे मुनिमहाशये जोयो होय तेमणे ते हकीकत जणाववानी कृपा करवी.
E हर्षमुनि ए टुंकुं नाम छ माटे हर्षकीर्ति, हर्षभूषण के हर्षवर्द्धन ए त्रण पैका कयु नाम हशे ते तेनी विशेष माहिती मळ्याथी मालम पडे तेम छे.
F जेसलमेरनी बन्ने टीपमा आ नाम नौधेल छे.
G. H. आ नामोपण जेसलमरनी हीरालालनी टीपमां नोंधेला छे, एटले तेमना माटे तथा तिना कर्ताना नाम माटे अने श्लोकसंख्या माटे शक सखवो पडे छे. आ ग्रंथ खरी रीते तो खंडनमंडननो होवाथी ते वर्गमां गणवो घटित छे, पण अमे एमां न्यायनो विशेष भाग हशे एम मानीमे इहां नोध्यो छे.
I आ ग्रंथ पण ऊपरना ग्रंथ मुजब खंडनमंडननोज हशे पण तेमां पण न्यायनो मुख्य भाग हशे एम धारी इहां नो यो छे.
सदर ग्रंथ फक्त वृहट्टिप्पनिकामा नौलो देखाय छे. पण बीजे स्थले ते उपलब्ध थयो नथी.
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