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________________ जैन भाषासाहित्य नंबर. । रच्या नाम. श्लोक. कर्ता क्या छ ? नोस. क्लास २ जो. परमतना व्याकरण ग्रंथो उपर जैनाचार्योए करेला व्याख्या ग्रंथो. जेसल. असल. कलापव्याकरण A कलापकमुनि , पतुष्काख्यातकृवृत्ति १००० दुर्गसिंह , वौसिंहीवृधि । पृथ्वीचंद्रसरि ,,, অর্থ यमुनिशेखर फौमारसारसमुश्चय ) ३१०० ,, उणादिवाति E , आख्यातवृत्ति । ५८०४ | मोक्षेश्वर F , आल्यातकवृत्ति ४६०५ , आख्यातकृदविवरण toue पा.१ | पा. जेसल. A एनु अपरनाम ' कातंत्र' एबुं छे. B आ वृत्ति जेसलमेरनी टीपमां हीरालाले नौवी छे अने ते त्रुटक छे एम जगाव्युं छे. C आ वृत्ति ते कदाच वृहट्टिप्पनिकामां जणावेलु कातंत्रवृत्ति टिपरन होय तो होय, छतां आ वृत्ति हीरालालना नोंधमां होवाथी तेना काना नाम माटे शक रहे छे. आ बाबतनी खरी खात्री जेसलमेरमांनी प्रत नजरे तपासी जोयाथी थइ शके. D वृट्टिप्पनिकामा एना माटे नीचे मुजब नोंध छे:" उक्तिक वृत्तित्रयोद्धारसूत्रं कौमारसारसमुच्चयः श्लोकरूपोवृत्तित्रयोद्धारसंग्रहात्मकः ३१०." Fथा वृत्ति पांच पादना. F आ नाम कोइ दिगंबर आचार्य- होय तेम संभव छे. Gएना माटे वृद्दिष्पनिकामां "प्रभेयरत्नभांडागारे विशेषविवरणं कलापकाख्यातकृतिपयं आधी नोधछे,
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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