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________________ जैन औपदेशिक नाम. | नंबर श्लोक. कत्ती. नव्याः क्या छ ? -- - श्रीपार्श्व१०गणधर चरित्रो ४३५० श्रीपालचरित्र (प्रा.) १३४१, रत्नशेश्वर १४२८, पा.१-३भा सुलाय टीका ४५.. क्षमाकल्याण १५५४/ डेक्कन. श्रीपालचरित्र (स.) सत्यराजगणि पा. ३ जेसल-हे. , (श्लोकवस) पत्र ५१ सोमकीर्ति अ.१ १५५० क्षमाकल्याण मागोर. * २००० पंडित राइधु B रिपोर्ट ६ पत्र २४ सोमचंद्र , (गध) जयकीर्ति डेकन. __, (गद्य) पत्र ५३ शानविमल अ.१ श्रेणिकचरित्र (गध )D १०००, धर्मपर्खन डेखन. ८८ 'A सदरहू चरित्र वृहत् टिप्पनिकामां नोध्युं छे. एना माटे ते टिप्पनिकामा " श्रीपार्श्व १. गणघरचरित्राणि प्रा. मु. ४३५०॥ आवो नाँध छ. * आ चरित्र नागोरना भंडारनी टीपमा नोंभ्यु छे. पण तेनी लोकसंख्या उपरथी शक हे छै. कारण के टीका सहित एना श्लोक ४५.. छे, अने टीकाकार क्षमाकल्याण छे. नागोरनी टीपमा १५५० नो आंक नोध्यो छे ते मूळ अंथना हिंसाबे लख्यो होवो जोइये, अने मूळकार रत्नशेखरसूरि होवा जोइये एम विशेष संभव छै. B आ राइधु पंडित अन्यमति होय तेम लागे छे, अने तेमने आ चरित्र रच्यं छे. C सोमचंद्रसरिए गुरुगुणसत्तरि रची छे. D आ श्रेणिकचरित्र फक्त डेक्कन कॉलेजना रिपोर्टमां नोभ्युं छे.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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