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________________ जैन फिलॉसोफि. १०५ नेवर नाम. श्लोक. कता. क्यां छ? यशोविजय यशोविजय का.१०४ स्वोपज्ञ अ२ S K.मुद्रित मुद्रित. पा. ३ कोडाया खंबात. न्यायखंखाद्य A प्रतिमाशतक टीका B प्रतिमास्थापनन्याय भाषारहस्य C (प्रा.) टीका D २१ मार्गपरिशुद्धि मुक्ताशक्ति E यतिलक्षण समुश्चय वैराग्यकल्पलता षोडशक वृत्ति पत्र १० | कोडाय. यशोविजय यशोविजय | पत्र ३२ स्वोपन यशोविजय यशोविजय यशोविजय | ६७५० यशोविजय यशोविजय यशोविजय पत्र ३२ स्वोपक्ष २६३ पा. ५, खंबात. १२०० भावनगर. सामाचारी प्रकरण F भावनगर, वृत्ति भावनगर. A एजें बीजं नाम महावीर स्तव पण छे. पीटर्सने खंबातना शान्तिनाथना भंडारनी नोंध लेतां पोताना श्रीजा रिपोर्टमां पेज १९४ मां सदरहू प्रत लख्यानो सं. १७३६ जणावेल छे. Bपन्यास आमंदसागरजी जगावे छे के आ टीका उपरांत बीजी एक लघुरीका आसरे श्लोक १२०० नी पूनमिया गच्छना आचार्य रचेली छ एम तमना स्मरणमा छे. C आ. प्रकरण, प्राकृत भाषामां रचायेलुं छे. अने ते खंबातना भंडारमा छे. D अमदावादना डेलाना भंडारमा आ टीका पत्र ३२ नी नोंघाइ छे. E आ ग्रंथ ते वैराग्यकल्पलताना प्रथमना वे स्तबक छ एम पं. आणंदसागरजी जणावे छे.. F आ.प्रकरण फक्त भावनगरनी टीपनां तेनी वृत्ति साथे नोवायुं छे.
SR No.008418
Book TitleJain Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Catalogue
File Size7 MB
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